यारों! शादी मत करना

यारों! शादी मत करना, ये है मेरी अर्ज़ी
फिर भी हो जाए तो ऊपर वाले की मर्ज़ी।

लैला ने मजनूँ से शादी नहीं रचाई थी
शीरी भी फरहाद की दुल्हन कब बन पाई थी
सोहनी को महिवाल अगर मिल जाता, तो क्या होता
कुछ न होता बस परिवार नियोजन वाला रोता
होते बच्चे, सिल-सिल कच्छे, बन जाता वो दर्ज़ी।

सक्सेना जी घर में झाड़ू रोज़ लगाते हैं
वर्मा जी भी सुबह-सुबह बच्चे नहलाते हैं
गुप्ता जी हर शाम ढले मुर्गासन करते हैं
कर्नल हों या जनरल सब पत्नी से डरते हैं
पत्नी के आगे न चलती, मंत्री की मनमर्ज़ी।

बड़े-बड़े अफ़सर पत्नी के पाँव दबाते हैं
गूंगे भी बेडरूम में ईलू-ईलू गाते हैं
बहरे भी सुनते हैं जब पत्नी गुर्राती है
अंधे को दिखता है जब बेलन दिखलाती है
पत्नी कह दे तो लंगड़ा भी, दौड़े इधर-उधर जी।

पत्नी के आगे पी.एम., सी.एम. बन जाता है
पत्नी के आगे सी एम, डी.एम. बन जाता है
पत्नी के आगे डी. एम. चपरासी होता है
पत्नी पीड़ित पहलवान बच्चों सा रोता है
पत्नी जब चाहे फुड़वा दे, पुलिसमैन का सर जी।

पति होकर भी लालू जी, राबड़ी से नीचे हैं
पति होकर भी कौशल जी, सुषमा के पीछे है
मायावती कुँवारी होकर ही, सी.एम. बन पाई
क्वारी ममता, जयललिता के जलवे देखो भाई
क्वारे अटल बिहारी में, बाकी खूब एनर्जी।
पत्नी अपनी पर आए तो, सब कर सकती है 
कवि की सब कविताएं, चूल्हे में धर सकती है
पत्नी चाहे तो पति का, जीना दूभर हो जाए
तोड़ दे करवाचौथ तो पति, अगले दिन ही मर जाए
पत्नी चाहे तो खुदवा दे, घर के बीच क़बर जी।
शादी वो लड्डू है जिसको, खाकर जी मिचलाए 
जो न खाए उसको, रातों को, निंदिया न आए
शादी होते ही दोपाया, चोपाया होता है
ढेंचू-ढेंचू करके बोझ, गृहस्थी का ढोता है
सब्ज़ी मंडी में कहता है, कैसे दिए मटर जी.....

काल सर्प को दोष नहीं योग कहना चाहिए क्योंकि.......

साढ़े साती और काल सर्प योग का नाम सुनते ही लोग घबरा जाते हैं| इनके प्रति लोगों के मन में जो भय बना हुआ है इसका फायदा उठाकर बहुत से ज्योतिषी लोगों को लूट रहे हैं| बात करें काल सर्प योग की तो इसके भी कई रूप और नाम हैं| काल सर्प को दोष नहीं बल्कि योग कहना चाहिये|

काल सर्प का सामान्य अर्थ यह है कि जब ग्रह स्थिति आएगी तब सर्प दंश के समान कष्ट होगा| पुराने समय राहु तथा अन्य ग्रहों की स्थिति के आधार पर काल सर्प का आंकलन किया जाता था| आज ज्योतिष शास्त्र को वैज्ञानिक रूप में प्रस्तुत करने के लिए नये नये शोध हो रहे हैं| इन शोधो से कालसर्प योग की परिभाषा और इसके विभिन्न रूप एवं नाम के विषय में भी जानकारी मिलती है| वर्तमान समय में कालसर्प योग की जो परिभाषा दी गई है उसके अनुसार जन्म कुण्डली में सभी ग्रह राहु केतु के बीच में हों या केतु राहु के बीच में हों तो काल सर्प योग बनता है|

कालसर्प योग के नाम-

ज्योतिष शास्त्र में प्रत्येक भाव के लिए अलग अलग कालसर्प योग के नाम दिये गये हैं| इन काल सर्प योगों के प्रभाव में भी काफी कुछ अंतर पाया जाता है जैसे प्रथम भाव में कालसर्प योग होने पर अनन्त काल सर्प योग बनता है| 

अनन्त कालसर्प योग -

जब प्रथम भाव में राहु और सप्तम भाव में केतु होता है तब यह योग बनता है| इस योग से प्रभावित होने पर व्यक्ति को शारीरिक और, मानसिक परेशानी उठानी पड़ती है साथ ही सरकारी व अदालती मामलों में उलझना पड़ता है| इस योग में अच्छी बात यह है कि इससे प्रभावित व्यक्ति साहसी, निडर, स्वतंत्र विचारों वाला एवं स्वाभिमानी होता है|

कुलिक काल सर्प योग -

द्वितीय भाव में जब राहु होता है और आठवें घर में केतु तब कुलिक नामक कालसर्प योग बनता है| इस कालसर्प योग से पीड़ित व्यक्ति को आर्थिक काष्ट भोगना होता है| इनकी पारिवारिक स्थिति भी संघर्षमय और कलह पूर्ण होती है| सामाजिक तौर पर भी इनकी स्थिति बहुत अच्छी नहीं रहती|

वासुकि कालसर्प योग - 

जन्म कुण्डली में जब तृतीय भाव में राहु होता है और नवम भाव में केतु तब वासुकि कालसर्प योग बनता है| इस कालसर्प योग से पीड़ित होने पर व्यक्ति का जीवन संघर्षमय रहता है और नौकरी व्यवसाय में परेशानी बनी रहती है| इन्हें भाग्य का साथ नहीं मिल पाता है व परिजनों एवं मित्रों से धोखा मिलने की संभावना रहती है|

शंखपाल कालसर्प योग-

राहु जब कुण्डली में चतुर्थ स्थान पर हो और केतु दशम भाव में तब यह योग बनता है| इस कालसर्प से पीड़ित होने पर व्यक्ति को आंर्थिक तंगी का सामना करना होता है| इन्हें मानसिक तनाव का सामना करना होता है| इन्हें अपनी मां, ज़मीन, परिजनों के मामले में कष्ट भोगना होता है|

पद्म कालसर्प योग-

पंचम भाव में राहु और एकादश भाव में केतु होने पर यह कालसर्प योग बनता है| इस योग में व्यक्ति को अपयश मिलने की संभावना रहती है| व्यक्ति को यौन रोग के कारण संतान सुख मिलना कठिन होता है| उच्च शिक्षा में बाधा, धन लाभ में रूकावट व वृद्धावस्था में सन्यास की प्रवृत होने भी इस योग का प्रभाव होता है|

महापद्म कालसर्प योग -

जिस व्यक्ति की कुण्डली में छठे भाव में राहु और बारहवें भाव में केतु होता है वह महापद्म कालसर्प योग से प्रभावित होता है| इस योग से प्रभावित व्यक्ति मामा की ओर से कष्ट पाता है एवं निराशा के कारण व्यस्नों का शिकार हो जाता है| इन्हें काफी समय तक शारीरिक कष्ट भोगना पड़ता है| प्रेम के ममलें में ये दुर्भाग्यशाली होते हैं|

तक्षक कालसर्प योग-

तक्षक कालसर्प योग की स्थिति अनन्त कालसर्प योग के ठीक विपरीत होती है| इस योग में केतु लग्न में होता है और राहु सप्तम में| इस योग में वैवाहिक जीवन में अशांति रहती है| कारोबार में साझेदारी लाभप्रद नहीं होती और मानसिक परेशानी देती है| 

शंखचूड़ कालसर्प योग-

तृतीय भाव में केतु और नवम भाव में राहु होने पर यह योग बनता है| इस योग से प्रभावित व्यक्ति जीवन में सुखों को भोग नहीं पाता है| इन्हें पिता का सुख नहीं मिलता है| इन्हें अपने कारोबार में अक्सर नुकसान उठाना पड़ता है|

घातक कालसर्प योग -

कुण्डली के चतुर्थ भाव में केतु और दशम भाव में राहु के होने से घातक कालसर्प योग बनता है| इस योग से गृहस्थी में कलह और अशांति बनी रहती है| नौकरी एवं रोजगार के क्षेत्र में कठिनाईयों का सामना करना होता है|

विषधर कालसर्प योग -

केतु जब पंचम भाव में होता है और राहु एकादश में तब यह योग बनता है| इस योग से प्रभावित व्यक्ति को अपनी संतान से कष्ट होता है| इन्हें नेत्र एवं हृदय में परेशानियों का सामना करना होता है| इनकी स्मरण शक्ति अच्छी नहीं होती| उच्च शिक्षा में रूकावट एवं सामाजिक मान प्रतिष्ठा में कमी भी इस योग के लक्षण हैं| 

शेषनाग कालसर्प योग -

व्यक्ति की कुण्डली में जब छठे भाव में केतु आता है तथा बारहवें स्थान पर राहु तब यह योग बनता है| इस योग में व्यक्ति के कई गुप्त शत्रु होते हैं जो इनके विरूद्ध षड्यंत्र करते हैं| इन्हें अदालती मामलो में उलझना पड़ता है| मानसिक अशांति और बदनामी भी इस योग में सहनी पड़ती है| इस योग में एक अच्छी बात यह है कि मृत्यु के बाद इनकी ख्याति फैलती है| अगर आपकी कुण्डली में है तो इसके लिए अधिक परेशान होने की आवश्यक्ता नहीं है| काल सर्प योग के साथ कुण्डली में उपस्थित अन्य ग्रहों के योग का भी काफी महत्व होता है| आपकी कुण्डली में मौजूद अन्य ग्रह योग उत्तम हैं तो संभव है कि आपको इसका दुखद प्रभाव अधिक नहीं भोगना पड़े और आपके साथ सब कुछ अच्छा हो|

जाने क्या होती है शनि की साढ़ेसाती और उससे बचने के उपाय

क्या आपको पता है कि शनि की साढ़ेसाती क्या होती है, अगर नहीं पता हैं तो आज हम आपको बताते हैं कि क्या होती है शनि के साढ़ेसाती| आपको बता दें कि जन्म राशि (चन्द्र राशि) से गोचर में जब शनि द्वादश, प्रथम एवं द्वितीय स्थानों में भ्रमण करता है, तो साढ़े -सात वर्ष के समय को शनि की साढ़ेसाती कहते हैं।

एक साढ़ेसाती तीन ढ़ैया से मिलकर बनती है। क्योंकि शनि एक राशि में लगभग ढ़ाई वर्षों तक चलता है। प्रायः जीवन में तीन बार साढ़ेसाती आती है। प्राचीन काल से सामान्य भारतीय जनमानस में यह धारणा प्रचलित है कि शनि की साढ़ेसाती बहुधा मानसिक, शारीरिक और आर्थिक दृष्टि से दुखदायी एवं कष्टप्रद होती है। शनि की साढ़ेसाती सुनते ही लोग चिन्तित और भयभीत हो जाते हैं। साढ़ेसाती में असन्तोष, निराशा, आलस्य, मानसिक तनाव, विवाद, रोग-रिपु-ऋण से कष्ट, चोरों व अग्नि से हानि और घर-परिवार में बड़ों-बुजुर्गों की मृत्यु जैसे अशुभ फल होते हैं।

अनुभव में पाया गया है कि सम्पूर्ण साढ़े-सात साल पीड़ा दायक नहीं होते। बल्कि साढ़ेसाती के समय में कई लोगों को अत्यधिक शुभ फल जैसे विवाह, सन्तान का जन्म, नौकरी-व्यवसाय में उन्नति, चुनाव में विजय, विदेश यात्रा, इत्यादि भी मिलते हैं।

शनि की साढ़ेसाती व ढ़ैया से बचने के उपाय-

व्रत-

शनिवार का व्रत रखें। व्रत के दिन शनिदेव की पूजा (कवच, स्तोत्र, मन्त्र जप) करें। शनिवार व्रतकथा पढ़ना भी लाभकारी रहता है। व्रत में दिन में दूध, लस्सी तथा फलों के रस ग्रहण करें, सांयकाल हनुमान जी या भैरव जी का दर्शन करें। काले उड़द की खिचड़ी (काला नमक मिला सकते हैं) या उड़द की दाल का मीठा हलवा ग्रहण करें।

दान-

शनि की प्रसन्नता के लिए उड़द, तेल, इन्द्रनील (नीलम), तिल, कुलथी, भैंस, लोह, दक्षिणा और श्याम वस्त्र दान करें।

रत्न/धातु-

शनिवार के दिन काले घोड़े की नाल या नाव की सतह की कील का बना छल्ला मध्यमा में धारण करें।

मन्त्र

-महामृत्युंजय मंत्र का सवा लाख जप (नित्य 10 माला, 125 दिन) करें-

ऊँ त्रयम्बकम्‌ यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनं
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योमुर्क्षिय मामृतात्‌।

- शनि के निम्नदत्त मंत्र का 21 दिन में 23 हजार जप करें -

ऊँ शत्रोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।
शंयोभिरत्रवन्तु नः। ऊँ शं शनैश्चराय नमः।

-पौराणिक शनि मंत्र :

ऊँ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌।
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्‌।

स्तोत्र-

शनि के निम्नलिखित स्तोत्र का ११ बार पाठ करें या दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करें।

कोणरथः पिंगलो बभ्रुः कृष्णो रौद्रोन्तको यमः
सौरिः शनिश्चरो मन्दः पिप्पलादेन संस्तुतः॥
तानि शनि-नमानि जपेदश्वत्थसत्रियौ।
शनैश्चरकृता पीडा न कदाचिद् भविष्यति॥

साढ़साती पीड़ानाशक स्तोत्र - पिप्पलाद उवाच -
नमस्ते कोणसंस्थय पिड्.गलाय नमोस्तुते।
नमस्ते बभ्रुरूपाय कृष्णाय च नमोस्तु ते॥
नमस्ते रौद्रदेहाय नमस्ते चान्तकाय च।
नमस्ते यमसंज्ञाय नमस्ते सौरये विभो॥
नमस्ते यंमदसंज्ञाय शनैश्वर नमोस्तुते॥
प्रसादं कुरु देवेश दीनस्य प्रणतस्य च॥

औषधि-

प्रति शनिवार सुरमा, काले तिल, सौंफ, नागरमोथा और लोध मिले हुए जल से स्नान करें।

अन्य उपाय

-शनिवार को सांयकाल पीपल वृक्ष के चारों ओर ७ बार कच्चा सूत लपेटें, इस समय शनि के किसी मंत्र का जप करते रहें। फिर पीपल के नीचे सरसों के तेल का दीपक प्रज्वलित करें, तथा ज्ञात अज्ञात अपराधों के लिए क्षमा मँIगें। 

-शनिवार को अपने हाथ की नाप का 19 हाथ काला धागा माला बनाकर पहनें।

टोटका - 

शनिवार के दिन उड्रद, तिल, तेल, गुड़ लिकी लड्डू बना लें और जहाँ हल न चला हो वहां गाड़ दें।

शनि की शान्ति के लिए बिच्छू की जड़ शनिवार को काले डोरे में लपेट कर धारण करें।

छिपकली भी खोलती है शकुन-अपशकुन के राज

हिंदू धर्म शास्त्रों में कई ऐसे संकेत बताये गए हैं जिसके द्वारा आप इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि आपको मनोवांछित कार्य में सफलता मिलेगी या नहीं। इन संकेतों को शकुन-अपशकुन कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार आप जब भी किसी खास कार्य के लिए जा रहे होते हैं ठीक उसी समय कई प्रकार की घटनाएं घटती हैं। इन पर ध्यान दिया जाना चाहिए। छोटी-छोटी शुभ-अशुभ घटनाएं ही शकुन या अपशकुन होती हैं। हालांकि काफी लोग इन बातों को कोरा अंधविश्वास ही मानते हैं लेकिन कई लोग इन बातों पर विश्वास भी करते हैं।

आपने अपने घर में ज्यादातर छिपकली को छत या दीवार से गिरते हुए जरुर देखा होगा| हमारे ज्योतिष आचार्य विजय कुमार ने बताया है कि छिपकली के गिरने से भी कई शकुन और अपशकुन जुड़े हुए हैं। उन्होंने बताया है कि छिपकली जब गिरती है तब ध्यान देना चाहिए कि वह किस दिशा में गिरी है? कहां गिरी है? यदि किसी व्यक्ति के शरीर पर गिरी है तो किस अंग पर गिरी है? ऐसे तमाम बातों से आने वाले कल में होने वाली शुभ-अशुभ घटनाओं का संकेत प्राप्त किया जा सकता है।

आपको बता दें कि जब छिपकली किसी पुरुष के सीधे हाथ की ओर गिरती है तो इसे शुभ माना जाता है जबकि बाएं हाथ की ओर छिपकली गिरने पर अशुभ माना जाता है। वहीँ अगर स्त्रियों की बात करें तो स्त्रियों के अगर बाईं ओर छिपकली गिरती है तो वह शुभ मानी जरी है अगर वह दाईं ओर गिरे तो समझो स्त्रियों के लिये अशुभ है| 

छिपकली गिरने या गिरगिट चढ़ने पर करे यह आसान उपाय-

जब कभी शरीर पर छिपकली गिर जाती है या गिरगिट चढ़ जाता है तो अपशकुन निवारणार्थ हेतु सर्वप्रथम स्नान कर यह मंत्र अवश्य जपें :
'ॐ नमः शांते प्रशांते ॐ,
हीं हीं सर्व क्रोध प्रशमनी स्वाहा।'

यह मंत्र जप 108 बार या 21 बार पढ़ें। उक्त मंत्र लाभप्रद है एवं अशुभ प्रभाव को क्षीण करते हैं और मंगल होता है। 

अगर ह्रदय रोग से हैं परेशान तो यह अचूक मंत्र है इसका समाधान

हम सभी जानते हैं, कि आजकल की भाग दौड़ से भरी ज़िन्दगी में हमें जीवन शैली की अनियमितताओं का सामना करना पड़ता हैI शरीर पर आलस्य या परिश्रम की कमी से हावी होने वाला दोष दिल की बीमारी के रूप में देखा जा सकता है। बच्चे हो या बूढ़े किसी की भी जिंदग़ी की गति को थामने वाली इस बीमारी में खोया मनोबल और इच्छाशक्ति को पाने के लिए इलाज के साथ धार्मिक उपाय भी कारगर साबित होते हैं। कहा जाता है कि दवा के साथ दुवा की बहुत जरुरत होती है| 

आज आपको हम ह्रदय रोग से बचने का एक अचूक मंत्र बताने जा रहे हैं| यह मंत्र भगवान शिव के महामृत्युंजय रूप की उपासना का अंग है। शिव का यह रूप काल, रोग और भय से रक्षा करने वाला माना जाता है। यह महामृत्युंजय मंत्र का ही एक रूप है, जो चार अक्षरी महामृत्युंजय मंत्र कहलाता है। 

यह अद्भुत मंत्र है - ऊँ वं जू़ स: ।। 

आपको बता दें कि अगर आप हृदय रोग से पीडि़त हैं तो अब आपको परेशान होने की जरुरत नहीं है बस अब से आप प्रतिदिन या सोमवार को स्नानादि के बाद शिवालय में बिल्वपत्र, रोली, चंदन, सफेद फूल, धूप, दीप अर्पित कर इस अद्भुत मंत्र का कम से 108 बार उच्चारण करें।

ऐसा करने से जल्द मिलेगी मनचाही वधू

कहा जाता है कि अगर कोई भी टोना या टोटका गुप्त नवरात्रि के दिन किया जाये तो वह सफल होता है| हिंदू पंचांग के अनुसार माघ शुक्ल प्रतिपदा से गुप्त नवरात्रि प्रारंभ हो रही है, जिसका समापन माघ शुक्ल दशमी को होगा। धर्म ग्रंथों के अनुसार गुप्त नवरात्रि में प्रमुख रूप से भगवान शंकर व देवी शक्ति की आराधना की जाती है। इनकी आराधना करने से गुप्त सिद्धियां प्राप्त होती हैं। यदि दिनों किए जाने वाले टोने-टोटके भी बहुत प्रभावशाली होते हैं, जिनके माध्यम से कोई भी मनोकामना पूर्ति कर सकता है। अगर आपके विवाह में अड़चनें आ रही हैं तो नीचे लिखा उपाय करने पर शीघ्र ही आपको मनचाही दुल्हन मिलेगी| 

उपाय- 

गुप्त नवरात्रि में पड़ने वाले हर सोमवार को किसी शिव मंदिर में जाएं और शिवलिंग पर दूध, दही, घी, शहद और शक्कर चढ़ाते हुए शिवलिंग को अच्छी तरह से साफ कर लें। फिर शुद्ध जल शिवलिंग पर चढ़ाकर पूरे मंदिर को झाड़ू लगाकर साफ करें।फिर भगवन भोलेनाथ की चंदन, पुष्प एवं धूप, दीप आदि से उपासना करें| उसके बाद रात्रि के करीब 10 बजे के पश्चात अग्नि प्रज्वलित कर ऊँ नम: शिवाय मंत्र का उच्चारण करते हुए घी से 108 बार भगवन शंकर को आहुति दें| 11 दिनों तक नित्य इसी मंत्र की पांच माला जप भगवान शिव के सम्मुख करते रहें शीघ्र ही मनोकामना पूर्ण होगी और आपको मनचाही दुल्हन मिलेगी|

घर में उड़ते हुए हनुमान लायेंगे शक्ति,सम्पदा और वैभव

यदि आप की आस्था महावीर हनुमान में है और आप जल्द ही इनकी तस्वीर अपने घर में लगाने का मन बना रहे हैं तब ज़रा इन छोटी छोटी बातों का विशेष धयान दें| जो बातें आज हम आप को बता रहे हैं उनका अनुशरण कर आप अपने जीवन में शक्ति,सम्पदा और वैभव ला सकते है| 

भारतीय वास्तुशास्त्र के मुताबिक घर में देवताओ के चित्रों को लगाने से दुख व परेशानियाँ नहीं सताती साथ ही सुख-शांति बनी रहती है। घर का वातावरण उर्जावान और शांत बना रहता है। वैसे तो आप किसी भी देव चित्र को कभी भी लगा सकते हैं किन्तु महावीर हनुमान के चित्र के साथ कुछ सावधानियां है |

भारतीय वास्तु के मुताबिक, हनुमानजी की फोटो हमेशा दक्षिण दिशा की ओर देखती हुई लगानी चाहिए क्योंकि हनुमानजी ने अपना प्रभाव सर्वाधिक इसी दिशा में दिखाया है। इस दिशा में ही लंका भी है और सीता की खोज, लंका दहन और राम-रावण का युद्ध भी हुआ है। दक्षिण दिशा में हनुमानजी विशेष बलशाली हैं।

इसी तरह उत्तर दिशा में हनुमान जी का फोटो लगाने पर दक्षिण दिशा से आने वाली हर बुरी ताकत को हनुमान जी रोक देते हैं। वास्तु के मुताबिक, इससे घर में सुख और समृद्धि बढ़ेगी।

कहा जाता है कि हनुमान जी फोटो में उड़ते हुए दिखाइ देना चाहिए।

इस अचूक मंत्र के द्वारा शत्रु भी बन जायेगा मित्र

यह सत्य है कि मन्त्रों में शक्ति होती है। परन्तु मन्त्रों की क्रमबद्धता, शुद्ध उच्चारण और प्रयोग का ज्ञान भी परम आवश्यक है। जिस प्रकार कई सुप्त व्यक्तियों में से जिस व्यक्ति के नाम का उच्चारण होता है, उसकी निद्रा भंग हो जाती है, अन्य सोते रहते हैं उसी प्रकार शुद्ध उच्चारण से ही मन्त्र प्रभावशाली होते हैं और देवों को जाग्रत करते हैं।

अगर आपका कोई शत्रु है और आप उससे परेशान है तो यह जान लें कि शत्रुओं के मन से शत्रु भाव मिटाना बड़ा ही कठिन है, लेकिन आज आपको एक ऐसा आसान उपाय बताने जा रहे हैं जिसके द्वारा शत्रु भी आपका मित्र बन जाएगा और भूलकर भी सपने में वह आपका अहित नहीं सोचेगा।

आज आपको एक आसान मंत्र बताने जा रहे हैं जिसके द्वारा आप किसी को भी अपना मित्र बना सकते हैं तो आइये जाने क्या है या आसान मंत्र-

गरल सुधा रिपु करहिं मिताई, गोपद सिंधु अनल सितलाई

आपको बता दें कि कोई मंत्र नहीं बल्कि यह तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस की एक चौपाई है|

विधि-

प्रत्येक सुबह स्नानादि करके भगवान राम की पूजा करें| हमेशा ध्यान रहे कि आप जब भी पूजा कर रहे हो तो आप का मुख पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए| इसके बाद कुश के आसन पर बैठें और तुलसी की माला से इस मंत्र का जप करें। कम से कम 5 माला का जप अवश्य करें। कुछ ही दिनों में आपके शत्रु, मित्र बन जाएंगे।

अगर रखते हैं स्वर्ग की प्राप्ति की इच्छा तो माघी पूर्णिमा को करें गंगा स्नान

माघ पूर्णिमा हिन्दुओं के सबसे पवित्र माने जाने वाली पूर्णिमाओं में से एक है| इस बार माघ मास की पूर्णिमा 7 फरवरी मंगलवार को पड़ रही है| मान्यता है कि माघ मास की पूर्णिमा को गंगा स्नान करने से मनुष्य का तन-मन पवित्र हो जाता है| माघी पूर्णिमा में किसी नदी,सरोवर, कुण्ड अथवा जलाशय में सूर्य के उदित होने से पहले स्नान करने मात्र से ही पाप धुल जाते हैं और हृदय शुद्ध होता है। शास्त्रों में भी कहा गया है कि व्रत, दान और तप से भगवान विष्णु को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी कि माघी पूर्णिमा में स्नान करने मात्र से होती है। यह स्नान समस्त रोगों को शांत करने वाला है| इस समय ओम नमः भगवते वासुदेवाय नमः का जाप करते हुए स्नान व दान करना चाहिए|

माघी पूर्णिमा में पूजा की विधि-

माघ पूर्णिमा के अवसर पर भगवान सत्यनारायण जी कि कथा की जाती है भगवान विष्णु की पूजा में केले के पत्ते व फल, पंचामृत, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, दूर्वा का उपयोग किया जाता है| सत्यनारायण की पूजा के लिए दूध, शहद केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत तैयार किया जाता है, इसके साथ ही साथ आटे को भून कर उसमें चीनी मिलाकर चूरमे का प्रसाद बनाया जाता है और इस का भोग लगता है| सत्यनारायण की कथा के बाद उनका पूजन होता है, इसके बाद देवी लक्ष्मी, महादेव और ब्रह्मा जी की आरती कि जाती है और चरणामृत लेकर प्रसाद सभी को दिया जाता है|

माघ मास को बत्तीसी पूर्णिमा व्रत भी कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार माघी पूर्णिमा के दिन अन्न दान और वस्त्रदान का बड़ा ही महत्व है। इस तिथि को स्नान के पश्चात भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। श्री हरि की पूजा के पश्चात यथा संभव अन्नदान किया जाता है अथवा भूखों को भरपेट भोजन कराया जाता है। ब्रह्मणों एवं पुरोहितों को यथा संभव श्रद्धा पूर्वक दान दे उनका आशीर्वाद लिया जाता है। शैव मत को मानने वाले व्यक्ति भगवान शंकर की पूजा करते हैं, जो भक्त शिव और विष्णु के प्रति समदर्शी होते हैं वे शिव और विष्णु दोनों की ही पूजा करते हैं।

शास्त्रों के अनुसार माघी पूर्णिमा के दिन अन्न दान और वस्त्रदान का बड़ा ही महत्व है| इस तिथि को गंगा स्नान के पश्चात भगवान विष्णु की पूजा करें| श्री हरि की पूजा के पश्चात यथा संभव अन्नदान करें अथवा भूखों को भरपेट भोजन कराए| ब्रह्मणों एवं पुरोहितों को यथा संभव श्रद्धा पूर्वक दान दें और उनका आशीर्वाद लें, इसके बाद आप स्वयं भोजन करें|

शैव मत को मानने वाले व्यक्ति भगवान शंकर की पूजा कर सकते हैं| जो भक्त शिव और विष्णु के प्रति समदर्शी होते हैं वे शिव और विष्णु दोनों की ही पूजा करते हैं| समदर्शी भक्तों के प्रति भगवान शंकर और विष्णु दोनों ही प्रेम रखते हैं अत: गंगा के जल से शिव और विष्णु की पूजा करना परम कल्याणकारी माना गया है|

माघी पूर्णिमा का महत्व:-

हिन्दु धर्म पंचांग के ग्यारह-वें महीने ‘माघ’ में स्नान, दान, धर्म-कर्म का विशेष महत्व होता है इस महीने कि पूर्णिमा तिथि को चंद्रमा मघा नक्षत्र में होता है जिस कारण इसे माघ कहा जाता है| माघ मास की पूर्णिमा की विशेषता है कि इसमें जहां-कहीं भी स्वच्छ जल हो, वह गंगाजल के समान गुणकारी हो जाता है। जिन्हें प्रयाग, काशी, हरिद्वार, कुरुक्षेत्र, नैमिषारण्य, मथुरा, अवंतिका (उज्जैन) आदि किसी तीर्थ में माघ-स्नान का सुअवसर प्राप्त होगा, वे निश्चय ही सौभाग्यशाली हैं। किंतु जो श्रद्धालु किन्ही कारणों से बाहर नहीं जा सकते, वे साफ जल को किसी बाल्टी में भरकर उसमें आंवले और तुलसीदल का चूर्ण मिला दें और उससे स्नान करें। 

पुरातन मान्यता है कि गंगा में जहां कही भी स्नान किया जाए वे कुरुक्षेत्र के समान फल देने वाली हैं। जिनका चित्त पाप से दूषित है, ऐसे समस्त प्राणियों और मनुष्यों की गंगा के अलावा अन्यत्र कहीं दूसरा स्थान नहीं है। भगवान शंकर के मस्तक से निकली हुई गंगा सब पापों का हरण करने वाली शुभ फल देने वाली हैं। वे पापियों को भी पवित्र कर उनका उद्धार करने वाली हैं।

आपको बता दें कि पूर्णिमा में प्रात:स्नान, यथाशक्ति दान तथा सहस्त्र नाम अथवा किसी स्तोत्र द्वारा भगवान विष्णु की आराधना करने से यह अनुष्ठान पूरा होता है। यदि किसी कामना की पूर्ति के उद्देश्य से माघ-स्नान किया जाए, तो मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। निष्काम भाव से माघ-स्नान मोक्ष प्रदायक है। माघ-स्नान से समस्त पाप-ताप-शाप नष्ट हो जाते हैं। माघ-स्नान के व्रती स्त्री-पुरुष को नित्य कुछ न कुछ दान अवश्य करना चाहिए।

माघी पूर्णिमा में दान का महत्व:-

माघ मास की पूर्णिमा के दिन स्नान व व्रत रखने से विशेष पुण्य मिलता है ऐसा धर्मशास्त्रों में वर्णित है। सुबह नित्यकर्म एवं स्नान आदि से निपट कर भगवान विष्णु का विधिपूर्वक पूजन करें। फिर पितरों का श्राद्ध करें। गरीबों को भोजन तथा वस्त्र दान दें। तिल, कंबल, कपास, गुड़, घी, मोदक, जूते, फल, अन्न और यथाशक्ति सोना, चांदी आदि का दान भी दें तथा पूरे दिन का व्रत रखकर ब्राह्मणों को भोजन कराएं और सत्संग एवं कथा कीर्तन में दिन-भर बिताकर दूसरे दिन पारण करें।

माघ शुक्ल पूर्णिमा को यदि शनि मेष राशि पर, गुरु और चंद्रमा सिंह राशि पर तथा सूर्य श्रवण नक्षत्र पर हों तो महामाघी पूर्णिमा का योग होता है। यह तिथि स्नान तथा दान के लिए अक्षय फलदायिनी होती है।

माघ मास की धार्मिक मान्यता:-

शास्त्रों में कहा गया है कि माघी पूर्णिमा पर स्वंय भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करतें है अत: इस पावन समय गंगाजल का स्पर्शमात्र भी स्वर्ग की प्राप्ति देता है | इसके सन्दर्भ में यह भी कहा जाता है कि इस तिथि में भगवान नारायण क्षीर सागर में विराजते हैं तथा गंगा जी क्षीर सागर का ही रूप है| धार्मिक मान्यता है कि माघ पूर्णिमा में स्नान करने से सूर्य और चन्द्रमा युक्त दोषों से मुक्ति प्राप्त होती है| यह महीना जप-तप व संयम का महीना माना गया है इस महीने तामसी प्रवृत्ति के लोग भी सात्विकता को अपना लेते हैं, ऋषि मुनियों ने भी माघ मास में मांस भक्षण को निषिद्व कहा है| 

अगर पैसों की तंगी से हैं परेशान तो सोमवार को करें यह उपाय आसान


 यदि आपके जीवन में लगातार परेशानयों का आना-जाना लगा रहता है, यदि आपके कार्य समय पर पूर्ण नहीं होते हैं, यदि आपको धन की कमी के कारण आर्थिक तंगी झेलना पड़ रही है, घर-परिवार की समस्याओं से जुझना पड़ रहा है तो घबराये नहीं, बस पूरी श्रद्धा और भक्ति से ये उपाय करें |

हमारे ज्योतिषाचार्य आचार्य विजय कुमार बताते हैं कि अगर आप धन की कमी को लेकर परेशान है तो सोमवार के दिन भगवान शिव की उपासना करतें और शिवलिंग पर जल चढ़ाएं क्योंकि भगवान शंकर जगतगुरु कहलाते हैं| 

उपाय-
सोमवार को सुबह स्नानादि करने के बाद भगवान शंकर के साथ- साथ माता पार्वती और उनकी सवारी नंदी का गंगाजल, चंदन, अक्षत, बिल्वपत्र, धतूरा या आंकड़े के फूल चढ़ाएं। तत्पश्चात भगवान शंकर के इस मंत्र को 108 बार जप करें| 

मन्दारमालाङ्कुलितालकायै कपालमालांकितशेखराय।

दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नम: शिवायै च नम: शिवाय।। 

श्री अखण्डानन्दबोधाय शोकसन्तापहा​रिणे। 

सच्चिदानन्दस्वरूपाय शंकराय नमो नम:॥ 

कहते हैं विश्वास से बढ़कर इस दुनिया में कुछ नहीं है इसलिए आप भगवान भोलेनाथ पर आस्था रखें निश्चित ही आपकी दरिद्रता दूर होगी| क्योंकि भगवान भोलेनाथ बहुत ही दयालु हैं| 

पूजा करते समय आखिर क्यों ढका जाता है सिर

अगर आप कहीं पूजा में या मंदिर जाते होंगे तो आपने देखा होगा कि लोग पूजा करते समय या पूजा में बैठते समय अपने सिर को ढक लेते हैं| क्या आपको पता है पूजा करते समय आखिर क्यों ढका जाता है सिर| 

आपको बता दें कि हमारी परंपरा में सिर को ढकना स्त्री और पुरुषों सबके लिए आवश्यक किया गया था। सभी धर्मों की स्त्रियां दुपट्टा या साड़ी के पल्लू से अपना सिर ढंककर रखती थी। इसीलिए मंदिर या किसी अन्य धार्मिक स्थल पर जाते समय या पूजा करते समय सिर ढकना जरूरी माना गया था। 

लेकिन सिर ढकने का एक वैज्ञानिक कारण भी है| दरअसल सिर मनुष्य के अंगों में सबसे संवेदनशील भाग होता है। ब्रह्मरंध्र सिर के बीचों-बीच स्थित होता है। मौसम के मामूली से परिवर्तन के दुष्प्रभाव ब्रह्मरंध्र के भाग से शरीर के अन्य अंगों पर आते हैं। इसीलिये सिर को ढक लिया जाता है| 

इसके अलावा आकाशीय विद्युतीय तरंगे खुले सिर वाले व्यक्तियों के भीतर प्रवेश कर क्रोध, सिर दर्द, आंखों में कमजोरी आदि रोगों को जन्म देती है। इसलिए इन सब से बचने के लिए औरतें और पुरुष अपना सिर ढक लेते हैं| 

इसी कारण सिर और बालों को ढककर रखना हमारी परंपरा में शामिल था। इसके बाद धीरे-धीरे समाज की यह परंपरा बड़े लोगों को या भगवान को सम्मान देने का तरीका बन गई। साथ ही इसका एक कारण यह भी है कि सिर के मध्य में सहस्त्रारार चक्र होता है। पूजा के समय इसे ढककर रखने से मन एकाग्र बना रहता है। इसीलिए नग्न सिर भगवान के समक्ष जाना ठीक नहीं माना जाता है। 

यह मान्यता है कि जिसका हम सम्मान करते हैं या जो हमारे द्वारा सम्मान दिए जाने योग्य है उनके सामने हमेशा सिर ढककर रखना चाहिए। इसीलिए पूजा के समय सिर पर और कुछ नहीं तो कम से कम रूमाल ढक लेना चाहिए। इससे मन में भगवान के प्रति जो सम्मान और समर्पण है उसकी अभिव्यक्ति होती है।

लड़कियों की चाल देखकर जाने आप से इश्क फरमाती हैं या नहीं

अगर आपका किसी लड़की पर दिल आ गया है तो थोड़ा संजीदा होकर उस लडकी की चाल पर गौर फरमाइये अगर उस लड़की की चाल-ढाल बदली-बदली सी है और कमर में लचक ज्यादा है तो समझिए कि वह इश्क फरमाने के लिए तैयार हैं| यह हम नहीं बल्कि इसका खुलासा हुआ है| 

मिली जानकारी के मुताबिक, फ्रांस के ब्रेताग्ने-सद यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि शारीरिक क्रियाओं के कारण जिस वक्त महिला के गर्भवती होने की संभावना होती है, उस वक्त उनकी चाल-ढाल में अपेक्षाकृत ज्यादा आकर्षण होता है। इस दौरान महिलाओं की चाल कामोत्तेजक कही जा सकती है और इसमें सामान्य व्यवहार से थोड़ा परिवर्तन होता है। इस वक्त महिलाएं अधिक आकर्षक लगती हैं। 

इस यूनिवर्सिटी के एक प्रोफ़ेसर निकोलस गुएग्वेन के नेतृत्व में किए गए अध्ययन का परिणाम 103 अविवाहित लड़कियों की आकर्षक चाल-ढाल के विश्लेषण के आधार पर किया गया है। अध्ययन में हर लड़की को एक कमरे में बैठकर इंतजार करने के लिए कहा गया। कुछ समय बाद एक स्मार्ट आदमी उनके बीच जाकर बैठा। वह उनके साथ मुस्कराकर बात करने लगा। 

इसके बाद सभी को एक लैब तक लाया, जहां उनसे अध्ययन की बात कही गयी थी| बताया जा रहा है कि उन लड़कियों को इस बात की भनक नहीं थी कि उनकी चाल को कैमरे में कैद किया गया है। जब महिलाएं कमरे में पहुंचीं, तो उनकी मंजूरी से उनकी लार की जांच की गई। जाँच के आधार पर शोधकर्ताओं ने कहा कि महिलाओं की चाल के आधार पर प्यार के प्रति उनके रुझान का पता लगाया जा सकता है।

आपसी मनमुटाव से खुशहाल रहता है वैवाहिक जीवन

अभी तक यही माना जा रहा था कि वैवाहिक संबंध में छोटी-मोटी नोक-झोंक होना एक आम बात है| प्राय: देखा जाता है कि एक-दूसरे से नाराज दंपत्ति जब अपने बीच के मनमुटाव को सुलझा लेते हैं तो ऐसे में वे एक-दूसरे के और निकट तो आते ही हैं साथ ही उनकी आपसी समझ और सहयोग की भावना को भी बढ़ावा मिलता है| अब यह सच साबित हो गया है क्योंकि सर्वेक्षण में भारत के 44 फीसदी दम्पत्तियों का मानना है कि हफ्ते में एक से अधिक बार की नोकझोंक वैवाहिक जीवन को लम्बा और खुशहाल बनाती है। 

बताया जा रहा है कि मैट्रिमॉनियल वेबसाइट 'शादी डॉट काम' और सर्वेक्षण संस्था 'आईएमआरबी' द्वारा 'शादी आजकल' नाम से कराए गए सर्वेक्षण में इन दम्पतियों ने स्वीकार किया कि हफ्ते में एक से अधिक बार की नोकझोंक से संवाद के रास्ते खुले रहते हैं।

निजी कम्पनी में कार्यरत आनंद सेठ ने बताया है कि नोकझोंक से पति-पत्नी को एक दूसरे के नजदीक आने का मौका मिलता है और इससे अक्सर गलतफहमियां दूर होती हैं। रिश्ते में यह लड़ाई जरूरी होती है इससे बंधन मजबूत होते हैं। वहीँ, बहुराष्ट्रीय कम्पनी में विपणन प्रबंधक सुशीला बासु ने कहा कि दम्पतियों के कुढ़ने के बजाय बहस से मनमुटाव को दूर करने में सहायता मिलती है।

दिल्ली एवं मुम्बई के क्रमश: 32 फीसदी एवं 33 फीसदी दम्पति महीने में एक बार आपस में झगड़ते हैं। सर्वेक्षण में एक बात सामने आई कि 20-25 वर्ष आयु वर्ग के 10 फीसदी दम्पति महीने में एक बार वाद-विवाद में पड़ते हैं, जबकि 41-45 वर्ष आयु वर्ग के मध्य यह आंकड़ा सिर्फ दो फीसदी दम्पतियों का है।

सर्वेक्षण में यह तथ्य सामने आया कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं में बहस करने की प्रवृत्ति अधिक होती है। आठ फीसदी पुरुषों की तुलना में 12 फीसदी महिलाओं ने स्वीकार किया कि वे प्रतिदिन वाद विवाद में पड़ती हैं।

सम्मोहन चिकित्सक प्रकृति पोद्दार का मानना है कि वैवाहिक जीवन के लिए वाद विवाद अच्छा नहीं हैं। वहीँ, दिल्ली स्थित अस्पताल की चिकित्सक पूनम दर्षवाल ने कहा है कि प्रत्येक विवाद से मेरे और मेरे पति के बीच में दूरियां बढ़ती हैं, खास तौर पर तब जब हम किसी सही निष्कर्ष पर न पहुंचे। यद्यपि इससे कभी-कभी एक दूसरे को समझने में सहायता मिलती है जब एक दूसरे को खुले दिल से सुना जाए।

सर्वेक्षण में दम्पतियों ने माना कि उन्हें आपसी नोकझोंक से कोई समस्या नहीं है लेकिन जीवन साथी के विवाहेत्तर सम्बंध असहनीय हैं।