Kamadhenu: "Cow Of Plenty" in Uttar Pradesh

Uttar Pradesh: "Parijaat" special category tree in the village of Kintoo...

Two NRI arrested against smuggling charges

अजमेर शरीफ जहाँ अकबर ने मांगी थी बेटे की मुराद

बेटे के जन्म की मुराद मांगने पहुंचे बादशाह अकबर से लेकर पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की रविवार को होने वाली अजमेर शरीफ यात्रा तक यहां कुछ नहीं बदला है। 12वीं शताब्दी की ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के प्रति लोगों की आस्था वैसी ही है। अब भी यहां हर रोज करीब 12,000 लोग जियारत के लिए पहुंचते हैं।

जयपुर से 145 किलोमीटर दूर अजमेर के बीचोंबीच सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की संगमरमर से बनी गुम्बदाकार मज़ार लोगों की आस्था का केंद्र है। लोग यहां अपनी-अपनी मुरादें लेकर आते हैं।

मज़ार एक प्रांगण के बीचोंबीच है और इसके चारों ओर संगमरमर का मंच बना हुआ है। ऐसा माना जाता है कि सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के अवशेष इस मज़ार में रखे हुए हैं। चिश्ती को ख्वाजा गरीब नवाज नाम से भी जाना जाता है।

दरगाह के खादिमों का दावा है कि वे ख्वाजा के वंशज हैं और वहां इबादत करने का अधिकार उन्हीं का है। परिसर में आठ और कब्रें भी हैं, जो ख्वाजा के परिवार के अन्य सदस्यों की हैं।

एक खादिम एस.एफ. हुसैन चिश्ती ने बताया कि लोग यहां अपनी मुरादें पूरी होने की उम्मीदें लेकर आते हैं और दरगाह में चादर चढ़ाते हैं। जब उनकी मुरादें पूरी हो जाती हैं तो वे कृतज्ञता व्यक्त करने दोबारा आते हैं। चिश्ती ने यह भी कहा, "यह दरगाह मुगल बादशाह अकबर के लिए बरसों तक उनका पसंदीदा गंतव्य स्थल बनी रही।"

दरगाह की खास बात यह है कि यहां सजदा करने सिर्फ मुसलमान ही नहीं आते बल्कि हिंदू, सिख व जैन सहित अन्य धर्मो के लोग भी यहां आते हैं। इस दरगाह को बने हुए जून में 800 साल पूरे हो जाएंगे।

कहा जाता है कि हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का जन्म 1142 ईसवी में ईरान में हुआ था। एक खादिम ने बताया, "उन्होंने सूफीवाद की शिक्षा फैलाने के लिए अपना स्थान छोड़ दिया था। वह भारत आकर अजमेर में बस गए थे।" उन्होंने यह भी बताया, "उस समय समाज में बहुत सी सामाजिक कुरीतियां थीं। उन्होंने समानता व भाईचारे की शिक्षा फैलाई। सूफीवाद बीच का रास्ता दिखाने वाला दर्शन है और मुगल बादशाह उनकी शिक्षाओं व उनके प्रसार से प्रभावित थे।" खादिमों ने कहा कि ख्वाज सूफी दर्शन के लिए प्रसिद्ध थे। सूफीवाद भाईचारे, सद्भाव व समृद्धि की शिक्षा देता है।

इतिहासकार मोहम्मद आजम ने बताया कि बादशाह अकबर आगरा से अजमेर तक नंगे पांव आए थे और उन्होंने यहां बेटे के जन्म की मुराद मांगी थी। उन्होंने यह भी बताया, "यहां एक अकबरी मस्जिद व एक शहानी मस्जिद भी है जिन्हें मुगल बादशाह शाहजहां ने बनवाया था।"

आजम ने बताया, "दरगाह में प्रवेश के लिए आठ दरवाजे हैं लेकिन केवल तीन दरवाजे ही इस्तेमाल में लाए जाते हैं। निजाम दरवाजा, हैदराबाद के निजाम ने बनवाया है।"

आस्था या अन्धविश्वास! इस दरगाह पर चढ़ती है जलती हुई सिगरेट

अभी तक आपने यही सुना होगा कि मंदिरों में प्रसाद, जल और नारियल आदि चढ़ता है और दरगाहों में लोग फूल अगरबत्ती, चादर, व प्रसाद चढ़ता है लेकिन एक ऐसी दरगाह जिसे सुनकर आप भी हैरान हो जायेंगे| यहाँ फूल, अगरबत्ती व प्रसाद नहीं चढ़ता है बल्कि इस दरगाह पर जलती हुई सिगरेट चढा़कर लोग मन्नत मांगते हैं| अब इसे आस्था कहें या फिर अन्धविश्वास|

मिली जानकारी के मुताबिक, यह दरगाह राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली के सरदार पटेल मार्ग पर मालचा मार्ग के अंदर घने जंगल में स्थित है। यहां हर नौचंदी के दिन (गुरूवार) को सैकड़ों लोग जिनमें अधिकांश हिन्दू स्त्री-पुरुष और विशेष कर पंजाबी लोग आकर दुआएं मांगते है। यह लोग यहाँ फूल, अगरबत्ती के अलावा एक जलती हुई सिगरेट चढ़ाकर अपनी मन्नत मांगते है| 

दरगाह शरीफ हजरत ख्वाजा मोनुद्दीन चिश्ती ऊर्फ बरने वाला बाबा के गद्दीनशीन एम.अली. खान साबरी ने उपरोक्त जानकारी देते हुए बताया कि जंगल में स्थित यह दरगाह 800 वर्ष पुरानी है। जिस पर लोगों की आस्थाएं है कि यहां आकर वह जो दुआएं मांगेंगे अवश्य पूरी होंगी।
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तुझे सब कुछ पता है मेरी मां

मां, कितना मीठा, कितना अपना, कितना गहरा और कितना खूबसूरत शब्द है। समूची पृथ्वी पर बस यही एक पावन रिश्ता है जिसमें कोई कपट नहीं होता। कोई प्रदूषण नहीं होता। इस एक रिश्ते में निहित है छलछलाता ममता का सागर। शीतल और सुगंधित बयार का कोमल अहसास। इस रिश्‍ते की गुदगुदाती गोद में ऐसी अव्यक्त अनुभूति छुपी है जैसे हरी, ठंडी व कोमल दूब की बगिया में सोए हों। अब चाहे वह मनुष्य हो या फिर पंछी|

इस तस्वीर को देखकर आप कुछ चक्कर में जरूर पड़ गए होंगे कि आखिर यह माजरा क्या है। आपको बता दें कि इन बत्तख के बच्चों व मुर्गी का कोई तालमेल नहीं है, लेकिन इसके बावजूद भी हिल्डा नाम की यह मुर्गी इन बत्तख के बच्चों को पाल रही है।

दरअसल हुआ यूँ कि छह महीने पहले गलती से हिल्डा अंडों के गलत घोंसले पर बैठ गई थी जो उसका नहीं था। उस घोंसले में एक बत्तख ने 5 अंडे दे रखे थे जिसे हिल्डा गलती से एक माह तक सेती रही लेकिन जब अण्डों से बच्चे निकले तो वह हिल्डा के नहीं बल्कि बत्तख के थे| फिर भी हिल्डा ने इन बच्चों को अपना लिया है और इनकी अपनी तरफ से पूरा ख्याल रख रही है।

इसलिए लगाया जाता है माता शीतला को बासी भोग

नई दिल्ली| क्या आप जानते हैं कि माता शीतला को बासी भोग लगाया जाता है| अगर नहीं जानते हैं तो आज हम आपको बताते हैं कि आखिर माता शीतला को बासी भोग क्यों लगाया जाता है|

धर्म शास्त्र में बासी भोजन को त्याज्य कहा गया है। यह तामसी होने से बुद्धि को मंद करने वाला होता है, लेकिन जिस प्रकार कुछ विशेष परिस्थितियों में विष भी औषधि का कार्य करता है, इसे भी ऎसा ही समझना चाहिए। 

बासी भोजन करने से रक्त के दबाव अर्थात ब्लडप्रेशर पर नियंत्रण होता है जिससे विस्फोटों की तीव्रता कम हो जाती है। फलत: रोगी को आराम मिलता है।

लक्ष्मी क्यों दबाती हैं श्री विष्णु के पैर

आपने हमेशा देखा होगा कि लक्ष्मी जी भगवान विष्णु के पैर दबाया करती है, ऐसा देखकर आपके मान में जानने की लालसा होती होगी कि आखिर लक्ष्मी जी विष्णु भगवान के पैर क्यों दबाती हैं|

आइये जाने माता लक्ष्मी भगवान विष्णु के पैर क्यों दबाती हैं-

हमारे ज्योतिषाचार्य ने बताया है कि लक्ष्मी श्री विष्णु की माया हैं। वे श्री विष्णु की सहायिका हैं- जगत का पालन करने के अर्थ में। नारी स्वतंत्रता के संदर्भ में इसकी व्याख्या करना भूल है। 

लक्ष्मी विष्णु की थकान मिटाती हैं, इसीलिए श्री विष्णु स्वयं से पहले उनका नाम लेने का निर्देश देते हैं। यथा- "लक्ष्मीनारायण"। कारण एक-दूसरे का सम्मान करके ही श्रेष्ठ लक्ष्य की प्राप्ति की जा सकती है, ऎसा श्रीकृष्ण ने कहा है।

घर के उत्तर दिशा में लगायें भगवान शंकर की फोटो, फिर देखें चमत्कार

धर्म शास्त्रो में भगवान शिव को जगत पिता बताया गया हैं, क्योकि भगवान शिव सर्वव्यापी एवं पूर्ण ब्रह्म हैं। हिंदू संस्कृति में शिव को मनुष्य के कल्याण का प्रतीक माना जाता हैं। शिव शब्द के उच्चारण या ध्यान मात्र से ही मनुष्य को परम आनंद प्रदान करता हैं। भगवान शिव भारतीय संस्कृति को दर्शन ज्ञान के द्वारा संजीवनी प्रदान करने वाले देव हैं। आपको बता दें कि भगवान भोलेनाथ, जिनका न आदि है और न ही अंत|

वास्तु के मुताबिक, घर में देवी देवताओं का चित्र लगाने से कई शुभ प्रभाव प्राप्त होते हैं। घर का वातावरण शुद्ध और पवित्र बना रहता है। घर के सदस्यों के विचार भी अच्छे बने रहते हैं। 
आज हम आपको बताते हैं कि देवाधि देव महादेव की फोटो घर में कहाँ लगाने से आपके लिए फलदाई रहेगा| भगवान शिव की फोटो वहाँ लगाना चाहिए जिसके प्रभाव से हमें सभी सुख-समृद्धि की वस्तुओं की भी प्राप्ति होती हो।

आपको बता दें कि भोलेनाथ का फोटो घर में उत्तर दिशा की ओर किसी साफ और स्वच्छ दीवार पर लगाना चाहिए। उत्तर दिशा शिवजी की प्रिय दिशा मानी गई है। उत्तर दिशा में ही कैलाश पर्वत है और इसे महादेव का निवास स्थान बताया जाता है। इसी वजह से उत्तर दिशा में ही शिवजी का फोटो लगाने पर सर्वश्रेष्ठ परिणाम प्राप्त होते हैं।

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जाने घर में भगवान को चढ़े फल- फूलों का क्या करें

हर किसी के घर में मंदिर होता है चाहे वह बड़ा हो या फिर छोटा, खैर छोटे बड़े से क्या लेना देना मंदिर तो मंदिर होता है भगवान मंदिर में नहीं आपके ह्रदय में वास करते हैं| आज हम आपको बताते हैं कि मंदिर में जो आप फुल पट्टी चढाते हैं तो उन्हें कब और किस समय मंदिर से बाहर करना चाहिए|

देवी-देवताओं पूजा के संबंध में कई महत्वपूर्ण नियम बताए गए हैं। इन नियमों का पालन करना सभी श्रद्धालुओं के लिए अनिवार्य माना गया है। विधिवत पूजन के साथ ही भक्त को देवी-देवताओं की कृपा तुरंत प्राप्त हो जाती है और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

आपको बता दें कि घर में भगवान को फूल-फल आदि चढ़ाए जाते हैं, उसके बाद सामान्यत: भगवान को चढ़ाए गए फूल जब मुरझा जाए तो उन्हें उतारकर बहती नदी के प्रवाहित कर दिया जाता है जो कि अनुचित है। विद्वानों के अनुसार जल को दूषित करना पाप माना जाता है। ऐसे में इन हार-फूल को भगवान की प्रतिमा से उतारकर अपने माथे लगाना चाहिए, इसके बाद इन्हें किसी ऐसे स्थान पर डाल देना चाहिए जहां ये किसी के पैरों में आए और इन फूलों का अपमान न हो। 

हार-फूल आदि को किसी पेड़ की जड़ों में डाला जा सकता है जिससे इनका उपयोग खाद के रूप हो जाए और उस पेड़ को लाभ प्राप्त हो। भगवान को अर्पित की गई सभी वस्तुएं पवित्र हो जाती हैं और किसी भी प्रकार इनका अपमान किया जाना, सीधे-सीधे भगवान का ही अनादर करने के समान है। प्रसाद आदि अधिक समय तक नहीं रखना चाहिए, इसे अन्य भक्तों में वितरित कर देना चाहिए। 

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वैशाख में प्याऊ लगाने से होती है विष्णुलोक की प्राप्ति

हिंदू मान्यता का पोषक धर्म सिंधु ग्रंथ में वैशाख मास के स्नान, दान, तप,व्रत कथा आदि के श्रवण-मनन का विशेष महत्व बताया गया है। बारह महीनों में माघ, वैशाख और कार्तिक मास की विशेष महिमा बताई गई है। 

ग्रंथों के अनुसार जो मनुष्य वर्ष भर धर्म, कर्म, दान, तप, व्रत और नियमों का पालन नहीं कर पाते वे वैशाख संयुक्त अघिक मास में सकल धर्म का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। 

आपको बता दें कि वैशाख के समान कोई मास नहीं है, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं है, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है। 

धर्म ग्रंथों के अनुसार स्वयं ब्रह्माजी ने वैशाख को सब मासों से उत्तम मास बताया है। भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाला इसके समान दूसरा कोई मास नहीं है। जो वैशाख मास में सूर्योदय से पहले स्नान करता है, उससे भगवान विष्णु विशेष स्नेह करते हैं। सभी दानों से जो पुण्य होता है और सब तीर्थों में जो फल मिलता है। उसी को मनुष्य वैशाख मास में केवल जलदान करके प्राप्त कर लेता है। 

जो जलदान नहीं कर सकता यदि वह दूसरों को जलदान का महत्व समझाए तो भी उसे श्रेष्ठ फल प्राप्त होता है। जो मनुष्य इस मास में प्याऊ लगता है वह विष्णुलोक में स्थान पाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि जिसने वैशाख मास में प्याऊ लगाकर थके-मांदे मनुष्यों को संतुष्ट किया है, उसने ब्रह्मा, विष्णु और शिव आदि देवताओं को संतुष्ट कर लिया।

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वैशाख मास में गंगा स्नान करने से होती हैं भगवान विष्णु की कृपा

आपको पता है चैत्र शुक्ल पूर्णिमा से वैशाख मास स्नान आरंभ हो जाता है। यह स्नान पूरे वैशाख मास तक चलता है। इस बार वैशाख मास स्नान 6 अप्रैल, शुक्रवार से प्रारंभ हो चुका है। धर्म ग्रंथों में वैशाख मास को अन्य मासों में सबसे उत्तम माना गया है| पुराणों में भी कहा गया है कि वैशाख मास में जो व्यक्ति सूर्योदय से पहले गंगा स्नान करता है , वह भगवान विष्णु का कृपापात्र होता है।

वैशाख व्रत महात्म्य की कथा सुनना चाहिए तथा ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का यथासंभव जप करना चाहिए। व्रती को एक समय भोजन करना चाहिए। वैशाख मास में जलदान का विशेष महत्व है। इस मास में प्याऊ की स्थापना करवानी चाहिए। पंखा, खरबूजा एवं अन्य फल, नवीन अन्न आदि का दान करना चाहिए।

वैशाख मास में क्यों जरुरी माना गया है गंगा स्नान-

क्या आपको पता है कि वैशाख मास में क्यों गंगा स्नान को महत्व दिया गया है? अगर नहीं पता है तो आज हम आपको बताते हैं कि आखिर वैशाख मास में क्यों गंगा स्नान करना चाहिए|

आपको बता दें कि हिन्दू धर्म में गंगा को मां का दर्जा दिया गया है। यह देव नदी भी मानी गई है। क्योंकि पौराणिक मान्यताओं में गंगा स्वर्ग से भू-लोक में जगत कल्याण के लिए राजा भगीरथी के घोर तप से आई। इस दौरान गंगा के अलौकिक वेग को भगवान शंकर ने अपनी जटाओं से काबू किया। यही कारण है कि युग-युगान्तर से गंगा पावन और मोक्ष देने वाली मानी जाती है। वैज्ञानिक रूप से यह साबित हो चुका है कि गंगा का जल पवित्र और रोगनाशक है। 

यही कारण है कि धर्म में आस्था रखने वाले अनेक लोग गंगा स्नान की गहरी चाहत रखते हैं। खासतौर पर हिन्दू माह वैशाख में तो गंगा स्नान महापापों का नाश करने वाला भी माना गया है। इसलिए गंगा स्नान करना चाहिए|

वैशाख मास में स्नान का महत्व-

कार्तिक मास में एक हज़ार बार यदि गंगा स्नान करें और माघ मास में सौ बार स्नान करें, वैशाख मास में नर्मदा में करोड़ बार स्नान करें तो उन स्नानों का जो फल होता है वह फल प्रयाग में कुम्भ के समय पर स्नान करने से प्राप्त होता है।

इस मास में प्रात: स्नान का विधान है।

विशेष रूप से इस अवसर पर पवित्र सरिताओं में स्नान की आज्ञा दी गयी है। इस सम्बन्ध में पद्म पुराण का कथन है कि वैशाख मास में प्रात: स्नान का महत्त्व अश्वमेध यज्ञ के समान है। इसके अनुसार शुक्ल पक्ष की सप्तमी को गंगाजी का पूजन करना चाहिए, क्योंकि इसी तिथि को महर्षि जह्नु ने अपने दक्षिण कर्ण से गंगा जी को बाहर निकाला था।