नाम के पहले अक्षर से जाने अपने चाहने वालों का भविष्य


हर किसी को किसी स्त्री या पुरुष के बारे में यह जानने की इच्छा जरुर होती है कि उस स्त्री या पुरुष का स्वभाव कैसा होगा| इसके लिए हमारे ज्योतिषाचार्य ने अब तक आपको कई उपाय बताएं हैं जिसे देखकर आप उस स्त्री या पुरुष के बारे में जान सकते हैं कि उसका स्वभाव कैसा होगा| जैसे उसके अंगों को देखकर, उसकी चाल- ढाल देखकर या फिर उसके खानपान से भी उसके स्वभाव के बारे में अंदाजा लगाया जा सकता है| इसी क्रम में आज आपको एक और चीज बताने जा रहे हैं जिसके बारे में जानकर आप उस स्त्री या पुरुष के स्वभाव के बारे में जान सकते है| 

आपको पता है कि किसी व्यक्ति के जीवन में अक्षरों का क्या प्रभाव पड़ता है अगर नहीं तो आज हम आपको 'ए' से लेकर 'जेड' तक बताते हैं|

ए अक्षर:- अगर किसी लड़की या लड़के का नाम अंग्रेजी के ए अक्षर से शुरू होता है तो ऐसे व्यक्ति प्यार और रिश्तों का काफी महत्व देते हैं लेकिन बहुत ज्यादा रोमांटिक नहीं होते हैं। ए अक्षर वाले सुंदरता को काफी पसंद करते है और खुद भी बहुत सुन्दर और सेक्सी होते है। इनकी एक खासियत होती है ये अपनी बात सबसे नहीं कहते हैं। इनके जीवन में हर चीज देर से हासिल होती है| लेकिन जब भी सफलता मिलती है तो वो सफलता की चरम सीमा होती है। जीवन संघर्ष से भरा होता है लेकिन ये मंजिल को पा ही लेते हैं। ये धोखेबाज बिलकुल नहीं होते है और ना ही ये धोखेबाजी को पसंद करते हैं। ये मौके की नजाकत को समझने वाले और हालात के हिसाब से फैसले लेने के कारण ये हर दिल अजीज होते हैं। लेकिन इनमे एक दोष होता है ये क्रोधी स्वभाव के होते हैं।

बी अक्षर:- इस अक्षर वाले संवेदनशील और रोमांटिक होते है, इन पर छोटी-छोटी बातें काफी असर डालती हैं, इन्हें मनाना काफी आसान होता है। बी अक्षर वाले व्यक्ति सेक्स लाइफ पर काफी भरोसा करते हैं इसलिए अक्सर इस नाम के व्यक्ति प्रेम विवाह करते हैं। ये सौंदर्य प्रेमी, प्रकृति से स्नेह रखने वाले होते हैं। इनके लिए पैसा भी काफी महत्वपूर्ण होता है। ये लेन-देन भी बहुत करते हैं। ये आमतौर पर हिम्मती होते हैं। इसलिए अक्सर इस नाम के लोग सेना या दूसरे जोखिम भरे क्षेत्र में अपना करियर बनाते हैं। इन्हें अपनी मेहनत पर भरोसा होता है। और आम तौर पर इस नाम के लोग धनवान भी होते है। इनके बड़बोले पन के कारण इन्हें घमंडी होने की संज्ञा मिल जाती है। इसलिए इनके दोस्त बहुत ज्यादा नहीं होते है लेकिन जो होते हैं वो काफी पक्के और गहरे होते है

सी अक्षर:- हर दिल अजीज और मिलनसार होते हैं सी अक्षर वाले | ऐसे व्यक्ति सामाजिक कार्यों में बाद चढ़ कर हिस्सा लेने वाले होते हैं| इनके लिए लोगों की भावनाएं काफी मायने रखती है क्योंकि ये खुद भी काफी भावुक होते हैं। लेकिन ये स्पष्ट बोलने वाले होते है लेकिन फिर भी ये जानबूझकर किसी का दिल नहीं दुखाते हैं। इनकी सेक्स लाईफ काफी अच्छी होती है, ये आसानी से किसी को भी अपने वश में कर लेते है लेकिन ये ईमानदार होते हैं। देखने में भी सी नाम के लोग काफी अच्छे होते है । जो भी करियर चुनते हैं उसमें खासा कामयाब होते हैं क्योंकि इनके काम से ज्यादा इनके व्यवहार से लोग खुश होते हैं जिसका फायदा इनके अपने प्रोफेशनल लाईफ में भी आजीवन मिलता रहता है। लक्ष्मी जी की भी इन पर खासी मेहरबानी होती है। कुल मिलाकर ऐसे लोग काफी संपन्न होते हैं।

डी अक्षर:- अपनी मेहनत के दम पर ये काफी आगे जाते हैं डी अक्षर वाले। इस नाम के व्यक्ति काफी जिद्दी स्वाभाव के होते हैं| डी अक्षर से जिन लड़कों का नाम शुरु होता है वे बातों के जादूगर होते हैं। लड़कियां उन तक तितलियों की तरह मंडराती रहती है मगर वे एक समय में एक ही रिश्ता निभाते हैं। यूं भी उनकी किस्मत में फालतु प्यार नहीं लिखा है वे जब भी करेंगे जहनी तौर पर ऐसे व्यक्ति से ही प्यार करेंगे जो उनके आतंरिक संसार को समझने की क्षमता रखता हो। और इस नामाक्षर की अधिकांश लड़कियां किसी बुद्धिमान व्यक्ति से मन ही मन प्यार करती है, और करती रह जाती है। अक्सर बड़ी उम्र तक इस इंतजार में रहती है कि वह खुद इनके पास लौट आएगा। 

ई अक्षर:- बहुत बोलने वाला होते हैं ई अक्षर वाले, लेकिन अपने ज्यादा बोलने के कारण ये हमेशा खतरों में पड़ जाते हैं| ये लोग बड़े ही दिल फेंक होते है। ये काफी मजाकिया स्वभाव के भी होते हैं| ई अक्षर वाले व्यक्ति सेक्स के प्रति ये काफी आकर्षित होते है। इसलिए इनकी लिस्ट में लड़के-लड़कियों की पूरी जमात होती है। ये जो रिश्ता निभाते है उसके प्रति ईमानदार होते है मतलब ये कि भले ही ये चार लोगों से मोहब्बत करे लेकिन अगर ये किसी से शादी करते है तो अपने हमसफर के प्रति ईमानदार होते है।

एफ अक्षर:- इस अक्षर वाले बहुत ही प्यारे और ज़रूरत से ज्यादा भावुक और लोगों की मदद करने वाले होते हैं| इस अक्षर के लोगों की जिंदगी प्यार से शुरू होती है और प्यार पर ही खत्म होती है। ये व्यक्ति सभी कार्य दिल लगाकर करते हैं | इन लोगों की खासियत होती है कि जहाँ भी जाते हैं वहां लोगों को अपना बना लेते हैं| इनके अन्दर आत्म विश्वास कूट-कूट कर भरा होता है। इस अक्षर के व्यक्ति झगडालू नहीं होते हैं| इसके अलावा इस अक्षर वाले व्यक्ति काफी आकर्षक, सेक्सी और रोमांटिंक होते हैं| जिंदगी में हर चीज का लुत्फ उठाते हैं| अपनी मन मोहक छवि से लोगों का दिल जीतने वाले होते है |

जी अक्षर:- शांत प्रिय होते है जी अक्षर वाले लेकिन जब इन्हें गुस्सा आता है तो अगले की खैर नहीं होती है। इस अक्षर वाले व्यक्ति गलतियों को दोहराते नहीं हैं बल्कि उससे सबक लेकर आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं और खासा सफल भी होते है। ये तब तक किसी को परेशान नहीं करते हैं जब तक कोई इन्हें तंग नहीं करता है। फिलहाल इनमें आत्मविश्वास कूट-कूट कर भरा होता है। इस अक्षर वाले व्यक्ति कम बोलने वाले और प्यार पर ज्यादा भरोसा न करने वाले होते हैं| अपनी मेहनत पर भरोसा करने वाले ये व्यक्ति जीवन को एक संघर्ष मानकर चलते हैं इसलिए इन्हें अपनी परेशानियों से ज्यादा दिक्कत नहीं होती है। इस अक्षर वाले व्यक्तियों को ईश्वर पर काफी भरोसा होता है, इसलिए ये हमेशा धर्म-कर्म के काम करते रहते हैं। इनका वैवाहिक जीवन हमेश सुखी रहता है। इन्हें हर वो चीज मिलती है जिसकी इन्हें चाहत होती है लेकिन हर चीज में इन्हें वक्त लगता है।

एच अक्षर:- संकोची और संवेदनशील होते हैं एच अक्षर वाले और इसके साथ ही ये अपनी ख़ुशी और अपना दर्द किसी से शेयर नहीं करते| ये रहस्यमयी व्यक्ति होते हैं, इनको समझ पाना थोड़ा मुश्किल होता है लेकिन दिल के अच्छे और सच्चे व्यक्ति होते हैं। ये तेज़ दिमाग वाले होते हैं| ये व्यक्ति ना काहू से दोस्ती और ना ही काहू से बैर वाले होते हैं | इस अक्षर के व्यक्ति अक्सर राजनीति और प्रशासनिक क्षेत्र में दिखायी देते हैं। इस अक्षर के व्यक्ति किसी से भी अपने प्यार का इजहार नहीं करते हैं लेकिन ये जिसे चाहते हैं, उसे दिल की गहराई से प्यार करते हैं। इनका वैवाहिक जीवन काफी अच्छा होता है। ये इंसान पैसा खूब कमाते है लेकिन ये अपने पैसों को सिर्फ अपने ऊपर खर्च करते हैं। फिलहाल ये काफी तरक्की करने वाले होते है। ऐसे लोग सिर्फ अपनी मर्जी के मालिक होते है ये दूसरों पर हुकूमत करते हैं लेकिन कोई इन पर हुकूम चलाये ये इन्हें बर्दाश्त नहीं। ज्ञान का अथाह सागर कहलाने वाले ये व्यक्ति समाज के लिए अलग मिसाल बनते हैं।

आई अक्षर- यदि किसी लड़की या लड़के का नाम अंग्रेजी के I अक्षर से शुरू होता है तो ऐसे व्यक्ति काफी सुंदर होते हैं और सुंदरता को पसंद भी करते हैं। इन्हें बच्चों की कंपनी भी काफी अच्छी लगती है। धर्म-कर्म में रूचि रखते हैं। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि ऐसे लोग बहुत ही प्यारे और मोहक होते है जिनका साथ हर कोई पसंद करता है। इस अक्षर वाले व्यक्ति सिर्फ और सिर्फ प्यार का भूखा है। उसे अपनेपन और प्यार की तलाश होती है । ये इंसान बहुत ही भावुक होते हैं। ये हर काम दिल से करते हैं इसलिए इन्हें आसानी से इन्हें बुद्धू भी बनाया जा सकता है। ये अक्सर अपने इस स्वभाव के कारण अपनी बहुत सारी उपयोगी चीजों को खो देते हैं। इस अक्षर वाले व्यक्तियों को जिंदगी बहुत कुछ देती है लेकिन उसका सुख कम ही मिल पाता है। शिक्षा और लेखनी के क्षेत्र में ये विशेष जानकारी रखते है। खैर इन्हें कभी पैसे की कमी नहीं होती है। प्रेम और पारिवारिक सौगात भी इन्हें थोक मात्रा में मिलती है। समाज में ये अच्छी पकड़ रखते है। सेक्स लाईफ काफी अच्छी होती है।

जे अक्षर:- जिंदगी को बहुत ही खुशनुमा अंदाज से जीते है जे अक्षर वाले| इस नाम का व्यक्ति अपने रिश्तों के प्रति काफी ईमानदार और वफादार होता है। इस नाम के व्यक्ति जितने तन से सुन्दर होते हैं, उतना ही मन से सुन्दर होते हैं| ऐसे लोग जीवन में काफी तरक्की करते है| स्वभाव से बेहद ही नखरीले होते हैं जे अक्षर वाले| पैसा,रूतबा, मुहब्बत हर चीज इनके पास थोक मात्रा में होती है| इस अक्षर के लोगों के साथ बस एक समस्या होती है और वो है इनका स्वास्थ्य जो कि काफी कमजोर होता है। इनको हमेशा कोई न कोई बीमारी घेरे रहती है| इनकी सेक्स लाईफ काफी रोमांचित होती है। ये प्रेम विवाह पर ज्यादा भरोसा रखते हैं।

के अक्षर:-किसी लड़की या लड़के का नाम अंग्रेजी के 'K''अक्षर से शुरू होता है तो वे व्यक्ति काफी निडर होते है। इस अक्षर वाले व्यक्ति बेहद खुबसूरत होते हैं यही वजह है कि लोग इनकी तरफ काफी आकर्षित भी होते है। इस अक्षर वाला व्यक्ति बेहद ही दिखावे वाला होता है। किसी को कुछ भी कह देना इनके स्वभाव में शामिल होता है। बिना कुछ सोचे समझे ये किसी को भी कुछ सुना देते है जिसकी वजह से इन्हें लोग मुंहफट कहते हैं| इस नाम के व्यक्ति अपने फायदे के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। के अक्षर वाले पैसा तो बहुत कमाते हैं, लेकिन इन्हें इज्जत से कुछ लेना-देना नहीं होता है। जहां तक वैवाहिक संबधों का सवाल है तो ये ससुराल पक्ष पर भी अपना रुतबा कायम रखते हैं| लोग इनसे डरते हैं। इनके सामने अपनी बात कहने में हिचकते हैं। "के" अक्षर वाले सेक्स लाईफ को भी ये ज्यादा तवज्जों नहीं देते है और ज्यादातर ये लोग अरेंज मैरिज ही करते हैं| इनका वैवाहिक जीवन समझौतों पर ही निर्भर होता है।

एल अक्षर- जिस लड़की या लड़के के नाम की शुरुआत अंग्रेजी के 'L' अक्षर से होता है तो उस व्यक्ति के लिए प्यार, रोमांस ही सब कुछ होता है| रंग-रूप में भी ये काफी सुंदर होते हैं| हर चीज दिल से सोचने वाले होते हैं एल अक्षर वाले| इन्हें गुस्सा भी बहुत जल्दी आता है, लेकिन इनके गुस्से पर भोलेनाथ की कृपा रहती है इसलिए इनका गुस्सा जल्द ही काफूर हो जाता है। इस अक्षर वाले लोगों की एक खासियत होती है वो है इस अक्षर का व्यक्ति कभी किसी बड़ी चीज की तमन्ना नहीं रखता हैं। इन्हें छोटी-छोटी ही चीजों में खुशी मिलती है। ये बहुत कल्पनाशील होते हैं। इसलिए ये लोग अक्सर साहित्य के क्षेत्र में अपना करियर बनाते हैं। 

एम अक्षर- संकोची और चिंतन में डूबे रहने वाले होते हैं एम अक्षर वाले| इस अक्षर का व्यक्ति हर छोटी-बड़ी बात को दिल से लगा लेने वाले होते हैं, इसलिए इनका जब दिल टूटता है तो कभी-कभी दूसरों के लिए काफी खतरनाक साबित होते है। इसलिए इन्हें संवेदनशील भी कहा जा सकता है। ऐसे लोग राजनीति में ज्यादा दिखायी पड़ते है। आमतौर पर इन्हें लोग पसंद ही करते है। वैसे ये दिल के काफी साफ इंसान होते है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि जब तक आप इन्हें छेड़े नहीं तब तक ये आपको नुकसान नहीं पहुंचायेगे। एम अक्षर वाले व्यक्तियों के लिए प्रेम काफी मायने रखता है और ये अपना प्यार पाने के लिए हर संभव कोशिश भी करते है लेकिन ये धोखा करने वालों को बिल्कुल भी बक्शते नहीं है । इनके ऊपर किस्मत काफी मेहरबान होती है इसलिए धन और इज्जत इन्हें मिल ही जाती है। इस अक्षर वाले व्यक्तियों के लिए सेक्स लाईफ काफी मायने रखती है। जिद्दी स्वभाव के होते हैं एम अक्षर वाले | ये जिस चीज को एक बार पकड़ लेते हैं उसे छोड़ते भी नहीं है।

एन अक्षर:-बेहद ही स्वतंत्र विचारों वाले और मनमौजी होते है एन अक्षर वाले| एन अक्षर वाले व्यक्तियों को दिखावे पर बहुत यकीन होता है। ये कब क्या करेगें इन्हें खुद भी पता नहीं होता है। इनका किसी से कोई लेना-देना नहीं होता है| अपनी ही धुन और दुनिया में मस्त रहने वाले होते हैं ये लोग| कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि मस्तमौला होते हैं एन अक्षर वाले| एन अक्षर वाले बिना मेहनत के हर चीज पाने की कामना रखते है| ऐसे व्यक्ति वैसे तो ऊपरी तौर पर शांत दिखायी देते है लेकिन अंदर ही अंदर ये बेहद ही आक्रमक होते है। इनको अपनी आलोचना बर्दाश्त नहीं होती है। ये जरूरत से ज्यादा मुंहफट,स्वार्थी,और घमंडी होते हैं| एन अक्षर वाले अपना काम निकालने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं| ऐसे व्यक्तियों के लिए प्रेम एक हिसाब किताब की तरह होता है| ये वहीं रिश्ता जोड़ते है जहां इनका फायदा होता है। सेक्स लाईफ भी इनके लिए काफी मायने रखती है| ये आकर्षक रूप-रंग के मालिक होते हैं। जिसका फायदा ये समय-समय पर उठाते रहते है। मै तो यही कहूँगा कि इन लोगों से दूरी बनाकर ही रखिए| 

ओ अक्षर- बेहद आकर्षक और उर्जावान होते हैं ओ अक्षर वाले| इस अक्षर वाले व्यक्ति सामाजिक सेवा में काफी योगदान देने वाले होते हैं| कुल मिलाकर यह कहा जाता है कि इस नाम के लोग सफल और अच्छे इंसान होते है। इन्हें नाम, पैसा, सोहरत सभी इनके क़दमों तले होती है| प्रेम, भावनाएं और रिश्ते इन लोगों के लिए काफी मायने रखते है। सेक्स लाइफ को बहुत पसंद करते है। इस अक्षर वाले लोग प्रेम विवाह पर ज्यादा भरोसा करते हैं| बस इनमें एक कमी होती है कि हर चीज को दिल से लगा लेते है। जो चीज इनके दिल में एक बार घर कर गई उसे निकालना काफी मुश्किल होता है। ये जल्दी किसी को माफ नहीं करते हैं।

पी अक्षर- यदि किसी लड़के या लड़की का नाम अंग्रेजी के 'P' अक्षर से शुरू होता है तो ऐसे व्यक्ति देश, दुनिया, घर, परिवार सबका ख्याल रखने वाले होते हैं| पी अक्षर वाले व्यक्तियों के लिए अपना मान-सम्मान ही सबसे बड़ा है जिसके लिए कुछ भी त्यागने को तैयार रहते हैं। ये तानाशाही भी कहलाते है क्योंकि इनका स्वभाव जिद्दी प्रवृत्ति का होता है। इनकी नजर से जो एक बार उतर जाये वो फिर लाख कोशिश कर ले वो इनके करीब नहीं आ सकता है| इनके रुतबे को लोग पसंद भी करते है और डरते भी है। पी अक्षर वाले आकर्षक छवि के मालिक होते है। इनके लिए इनके अपने अलग उसूल होते है जिसके लिए किसी भी प्रकार का कोई समझौता नहीं करते है। इन्हें प्रेम जैसे शब्द पर ज्यादा भरोसा नहीं होता है। इनके लिए सेक्स लाईफ भी काफी महत्त्वपूर्ण होती है| हालांकि ये जिस किसी को भी मानते हैं उसे दिल से मानते हैं।

क्यू अक्षर- पैसा,प्यार और नाम कमाने वाले होते हैं क्यू अक्षर वाले| इनको हर छोटी-छोटी चीजों में खुशी मिलती है। अपने आप में हमेशा खोए रहने वाले होते हैं क्यू अक्षर वाले| ये लोग कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते है। लेकिन इनकी इस प्रवृत्ति के चलते इन्हें लोगों की उपहास का शिकार भी होना पड़ता है। क्यू अक्षर वाले सबको खुश रखने की कोशिश करते है बस इन में एक कमी होती है और वो ये कि ये अपनी बातें जल्दी किसी से शेयर नहीं करते है। कुल मिला कर कहा जा सकता है ऐसे नाम के लोगों के साथ अक्सर लोगों को मित्रता रखनी चाहिए क्योंकि इनसे आपको हमेशा कुछ ना कुछ सीखने को मिलेगा। सेक्स लाईफ को भी ये काफी पसंद करते है। इन्हें गुस्सा आमतौर पर बहुत कम आता है लेकिन जब भी आता है तो बहुत बुरी तरह से आता है। हर काम को दिल से करने वाले ये लोग अक्सर एक बहुत अच्छे चित्रकार,कवि या लेखक होते है।

आर अक्षर:- अपनी ही दुनिया में खोये रहने वाले होते हैं R अक्षर वाले| इन्हें रूतबा और दौलत दोनों ही नसीब होती है। ये दिल के भी बहुत अच्छे होते है। ये समय पड़ने पर दूसरों की मदद भी करते है। इनकी एक खास बात होती है ये हमेशा कुछ नये चीज की तलाश में होते है। इन्हें वहां अच्छा लगता है जहां इन्हें ज्ञान मिलता है। इसलिए इनकी दोस्ती लेखकों, दार्शनिकों इत्यादि से ही होती है। इन्हें सासंरिक चीजों में कोई खास रूचि नहीं होती है। आर अक्षर वालों का वैवाहिक जीवन ज्यादा सही नहीं होता है ज्यादातर इनके वैवाहिक जीवन में खटपट होती रहती है| इन्हें प्रेम, सेक्स आदि में कोई खास दिलचस्पी नहीं होती है। 

एस अक्षर:- बहुमुखी प्रतिभा और क्रोधी स्वाभाव वाले होते हैं एस अक्षर वाले| पैसा,रूतबा हासिल करने वाले ये लोग अपनी चीज आसानी से किसी को कुछ नही देते है। कुल मिलकर कहा जा सकता है कि ये कंजूस होते है, एस अक्षर वाले दिल के बुरे नहीं होते लेकिन उनका तेज स्वभाव उन्हें बुरा बना देता है। ये व्यक्ति अपनी मेहनत के बल पर ये सब कुछ पा ही लेते है। एस अक्षर वाले अपने प्यार के प्रति सचेत रहने वाले होते हैं, ये लोग कुछ शक्की मिजाज के भी होते हैं, इसके पीछे इनकी भावना सिर्फ इतनी होती है कि वो अपने प्रेम को किसी से शेयर नहीं करते हैं लेकिन उनका ये ही तरीका दूसरे लोगों के लिए सिरदर्द का कारण बन जाते हैं। इनकी सेक्स के प्रति भी कोई दिलचस्पी नहीं होती है|

टी अक्षर- यदि किसी लड़की या लड़के का नाम अंग्रेजी के प्रथम अक्षर 'T' अक्षर से शुरू होता है तो वह व्यक्ति बेहद मेहनती, होशियार, चालाक औऱ बुद्धिमान होता है। इस अक्षर वाले व्यक्ति अपनी खुशी और गम जल्दी किसी को नहीं बताते हैं लेकिन हां दूसरो को हमेशा खुश और उनके दुख दूर करने की कोशिश करते है। लोग इनके इस गुण के कारण इन्हें काफी पसंद करते हैं। इन्हें खुद पर काफी भरोसा होता है। अपने दम पर ये बड़ी से बड़ी मुश्किलों को भी सुलझा लेते हैं। अपनी मेहनत के बल पर ये दुनिया जीतने का भी रिस्क रखते हैं। टी अक्षर वाले पैसा और शोहरत तो बहुत कमाते हैं लेकिन प्रेम के नाम पर इनका सिक्का नहीं चलता है। ये प्रेम और सेक्स के प्रति इनकी सोच नकारात्मक होती है| वैसे ये रिश्तों और भावनाओं के प्रति काफी केयरिंग होते हैं लेकिन इन में अपनी भावनाओं को व्यक्त करने की क्षमता नहीं होती है।

यू अक्षर:- ऐसे व्यक्ति बेहद जोशीले, होशियार और नेकदिल के होते हैं| इस अक्षर वाले व्यक्ति छोटी- छोटी बातों से ही खुश रहने वाले होते हैं| इनके किस्मत के सितारे हमेशा इन पर मेहरबान भी रहते हैं। अपने लोगों और अपनी चीजों से बेइंतहा प्रेम करने वाले इन लोगों के व्यक्तित्व में जरूर ऐसा कुछ होता है जो इन्हें लोगों की भीड़ से अलग करता है। मेरा कहने का मतलब यह है कि या तो अत्यधिक लम्बे होंगे या फिर अत्यधिक छोटे ही होंगे| ऐसे व्यक्तियों के पास पैसा, शौहरत सब कुछ होता है लेकिन इनके पास घमंड नाम की कोई चीज नहीं होती है| ऐसे इन्सान थोडा हठी स्वभाव के होते हैं लेकिन अगर इन्हें प्रेम से समझाया जाये तो मान भी जाते है। ये व्यक्ति बच्चों को बेहद प्यार करने वाले होते हैं| आपको बता दें कि इस अक्षर वाले व्यक्ति अपने प्यार के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं| ऐसे लोग बहुत ज्यादा रोमांटिक और अपनी सेक्स लाईफ को लेकर बहुत ज्यादा उत्साहित रहते हैं।

वी अक्षर:- जिसके नाम की शुरुआत अंग्रेजी के 'V' अक्षर से होती है, तो वह व्यक्ति किसी की बंदिशे पसंद नहीं करता है। ऐसे व्यक्ति अपनी बातें , अपने सपने , ये किसी से शेयर नहीं करते हैं। किसी को रोक-टोक इन्हें अच्छी नहीं लगती है| ये केवल वो ही काम करते हैं जो इनका मन कहता है, इनसे किसी काम को जबरदस्ती नहीं करवाया जा सकता है अगर किसी ने भूल से इनसे जबरदस्ती काम करवाने की कोशिश की तो ये ऐसा कुछ कर देगें जिससे वो काम रूक जायेगा। कुल मिलकर कहा जा सकता है की आजाद ख्याल के होते हैं वी अक्षर वाले व्यक्ति| इस अक्षर वाले व्यक्ति नाम, इज्जत और पैसा बहुत कमाते हैं लेकिन इसमें वक्त लगता है। इनको चीजें रूक-रूक कर और धीमी गति से मिलती है लेकिन स्थायी तौर पर इनके पास रहती है। ये जिद्दी और आलसी भी होते हैं लेकिन वक्त आने पर अपनी जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन करते हैं। सामाजिक जीवन में इनकी रूचि ज्यादा नहीं होती है इसलिए ये आलोचनाओं के भी शिकार होते हैं। वैसे अपने दम पर आगे बढ़ने वाले ये लोग जीवन में देर से तरक्की करते है और जिनके निकट होते हैं उनके काफी अजीज होते हैं। वी अक्षर वाले व्यक्ति भावनाओं की कद्र करते हैं | लेकिन अपनी भावनाओं के बारे में ये किसी से कुछ नहीं कहते हैं। इनका पारिवारिक और वैवाहिक जीवन आम तौर पर सुखमय ही होता है। इसलिए इन्हें अपनी चीजों को लेकर परेशानी नहीं होती है। इनमें एक चीज होती है, ये बहुत जल्दी किसी भी चीज से ऊब जाते हैं। परिवर्तन से प्रेम करने वाले इन लोगों के लिए सेक्स भी मायने नहीं रखता है। 

डब्ल्यू अक्षर:- ज्ञानी,रौबदार और जिद्दी स्वभाव वाले होते हैं डब्ल्यू अक्षर वाले व्यक्ति| ऐसे व्यक्ति दिखावा भी बहुत करते हैं जिसके चलते ये अक्सर फिजूल खर्ची भी कर जाते हैं | इस नाम के लोग काफी तरक्की करते हैं, नाम, पैसा और शोहरत इनके कदम चूमती है लेकिन इस बात का इनको अभिमान बहुत होता है। डब्लू अक्षर वाले व्यक्तियों को अपनी सुनाने की आदत होती है, दूसरों की सुनने की नहीं| इनकी एक खास बात होती है वह है इनकी सबसे पटती भी नहीं है, इसलिए ये हमेशा आलोचनाओं के घेरे में घिरे रहते हैं। हालांकि ये दिल के बुरे नहीं होते हैं| अक्सर इस नाम के लोग राजनीति, सिविल सर्विसेज और पुलिस विभाग में पाये जाते हैं| इस नाम के लोग धर्म-कर्म में भी काफी रूचि रखते है। इस अक्षर वाले व्यक्ति प्रेम पर यकीन नहीं करते हैं। अक्सर ये असफल प्रेमी करार दिये जाते है लेकिन इनको हमसफ़र हमेशा अच्छा ही मिलता है|

एक्स अक्षर:- आप बहुत जल्दी बोर हो जाते हैं। आप एक साथ कई प्रेम संबंधों को निभाने की ताकत रखते हैं। आपको लगातार बोलते रहने में भी मजा आता है। आपके अपनी तरफ से कई प्रेम संबंध होते हैं यानी उनमें से कई काल्पनिक होते हैं। आप ख्वाबों में अव्वल दर्जे के सेक्सी हैं लेकिन हकीकत में ऐसे संयमित होने का ढोंग करते हैं जैसे आपके जैसा सीधा कोई नहीं। अपने अल्फाबेट की तरह ही प्यार के मामले में आप गलत इंसान है।

वाय अक्षर:- आप संवेदनशील और आत्मनिर्भर हैं। आप संबंधों में ज्यादा हक जताते हैं जिससे आपका रिश्ता लंबे समय तक नहीं टिकता। प्रेम में आपको स्पर्श में बहुत आनंद आता है जैसे हाथ पकड़कर बैठना, कंधे पर हाथ रखकर चलना। आप अपने प्रेमी को बार बार जताते हैं कि आप कितने अच्छे प्रेमी हैं। आपको उनकी प्रतिक्रिया भी चाहिए। आप खुले दिल के और रोमांटिक हैं।

जेड अक्षर:- आप सामान्य रूप से रोमांटिक हैं। जीवन में चीजों आसानी से लेना आपका शौक है और प्यार में भी यही बात आपको सच लगती है। आपको कहीं भी किसी से भी प्रेम हो सकता है। हर शख्स में आप खूबी तलाश लेते हैं। इसी कारण से लोग आपसे प्रभावित हो जाते हैं। आप प्रेम के मामले में खिलाड़ी हैं। आपको कोई खास फर्क नहीं पड़ता जब ब्रेक अप होता है। आप तुरंत नई तलाश शुरू कर सकते हैं।

जन्म-जन्मांतर की गाथा: इस तरह बार- बार भोगता रहा नरक

यह प्रश्न बड़ा ही विचित्र-सा लगता है कि हम कौन हैं? क्या थे? और क्या होंगे? मनुष्य के भूत, भविष्य और वर्तमान को लेकर अनेक मत-मतांतर हैं। कुछ लोग पूर्वजन्म पर विश्वास करते हैं- बौद्ध धर्म संबंधी जातक कथाएं भी हिंदू धर्म के इस विश्वास की पुष्टि करती हैं, तो ज्योतिष भूत, वर्तमान के साथ भविष्य भी बताता है। पुराणों में पुनर्जन्म संबंधी अनेक कहानियां मिलती हैं। मरक डेय पुराण में वर्णित ऐसी ही एक कहानी है- निशाकर की। यह कहानी महाबली ने शुक्र को सुनाई थी।

प्राचीन काल में मुद्गल नामक एक मुनि थे। इनके कोशकार नाम का एक पुत्र था, जो समस्त शास्त्रों के ज्ञाता थे। वात्स्यायन की पुत्री धर्मिष्ठा उनकी सहधर्मिणी थी। इस दम्पति के एक पुत्र हुआ। वह जन्म से ही जड़ प्रकृति का था। अंधा था और मूक भी। साध्वी धर्मिष्ठा ने सोचा कि वह बालक अचेतन है। इसलिए छठे दिन वह उस शिशु को अपने गृह के द्वार के सामने छोड़ आई।

उन दिनों में समीप के जंगल में 'शूर्पाक्षी' नामक एक राक्षसी निवास करती थी। वह शिशुओं को चुराकर उन्हें मारकर खाया करती थी। शूर्पाक्षी ने कोशकार के द्वार पर एक शिशु को देखा, तब वह अपने एक कृशकाय शिशु को वहां पर छोड़कर कोशकार के पुत्र को उठाकर एक पहाड़ पर ले गई और उस शिशु को खाना ही चाहती थी। शूर्पाक्षी का पति घटोधर अंधा था। उसने शूर्पाक्षी के पैरों की आहट पाकर पूछा, "कैसा आहार ले आई हो?"

शूर्पाक्षी ने उत्तर दिया, "अपने शिशु को कोशकार के द्वार पर छोड़कर उनके शिशु को उठा लाई हूं।" तुमने बड़ा बुरा किया। वे महान तपस्वी और ज्ञानी हैं। वे क्रोध में आकर श्राप देंगे। इसलिए तुम इसी वक्त इस शिशु को कोशकार के द्वार पर छोड़ किसी दूसरे शिशु को उठा लाओ।

कोशकार के द्वार पर राक्षस शिशु अंगूठा मुंह में डाले रोने लगा। शिशु का रुदन सुनकर कोशकार अपनी कुटिया से बाहर आए ओर उस शिशु को देखकर मंदहास करते हुए अपनी पत्नी से बोले, "सुनो, यह कोई भूत है। लगता है कि यह हमें धोखा देने के लिए यहां पर आया है।" यह कहकर कोशकार ने मत्र पठन करके राक्षस के शिशु को बोध दिया। इस बीच शूर्पाक्षी काशकार के शिशु को उठाकर ले आई। परंतु मंत्र के प्रभाव के कारण वह अपने पुत्र गिराकर दुखी हो, अपने पति के पास गई और अपनी करनी पर पछताने लगी।

कोशकार ने दोनों शिशुओं को अपनी पत्नी के हाथ सौंप दिया। मुनि के आश्रम में दोनों बच्चे पलने लगे। जब वे बच्चे सात वर्ष के हुए, तब कोशकार ने उनका नामकरण किया-दिवाकर और निशाकर। यथा समय दोनों का उपनयन करके वेदपाठ आरंभ किया। दिवाकर वेद-पठन करने लगा, परंतु निशाकर उच्चारण नहीं कर पाया- सब कोई उसे देख घृणा करने लगे। आखिर बालक के पिता कोशकार ने क्रोधावेश में आकर उसको एक निर्जन कुएँ में डाल दिया और जगह पर एक चट्टान ढंक दिया।

दस वर्ष बीत गए। किसी कार्य से कोशकार की पत्नी धर्मिष्ठा उस कुएं के पास पहुंची। कुएं पर चट्टान ढंका हुआ देख उसने उच्च स्वर में पूछा, "किसने कुएं को चट्टान से ढंक दिया है? "इसके उत्तर में कुएं के भीतर से ये शब्द सुनाई दिए।" मां, क्रोध में आकर पिताजी ने मुझे इस कुएं में डालकर इस पर चट्टान ढंक दिया है।"

धर्मिष्ठा यह उत्तर सुनकर भयभीत हो गई। उसने पूछा, "यह कंठध्वनि किसकी है?" इस बार स्पष्ट उत्तर मिला, "मैं तुम्हार पुत्र निशाकर हूं।" फिर क्या था, धर्मिष्ठा ने विस्मय में आकर कुएं पर से ढक्कन हटाया। कुएं से बाहर निकलकर निशाकर ने अपनी माता के चरणों में प्रणाम किए।

धर्मिष्ठा निशाकार को घर ले गई और सारा वृत्तांत अपने पति को सुनाया। कोशकार ने आश्चर्य में आकर पूछा, "बेटे, तुम तो मूक थे, कैसे बोल पाते हो?" निशाकर ने अपने पूर्वजन्मों का वृत्तांत सुनाया, "पिताजी, मेरे अंधे, मूक तथा जड़त्व को प्राप्त होने का कारण सुनिए। प्राचीन काल में मैं एक मुनि तथा माला नामक स्त्री का पुत्र था। विप्र वंश में मेरा जन्म हुआ था। उस समय मेरे पिताजी ने मुझे धर्म, अर्थ एवं काम-संबंधी शास्त्रों का अध्ययन कराया। मुझे अपने ज्ञान का अहंकार था। 

मैंने सब प्रकार के दुष्कृत्य करके उन पापों के कारण मृत्यु के होते ही एक हजार वर्ष रौरव नरक भोगा। फिर मैंने एक बाघ का जन्म लिया। एक राजा ने जंगल से मुझे पकड़कार ले जाकर पिंजड़े में बंद करके अपने महल में रख लिया। परंतु पूर्वाभ्यास के कारण व्याघ्र जन्म मेुं भी मुझे सभी शास्त्र और अन्य कर्म स्मरण थे। एक दिन राजा की अद्भुत रूपवती पत्नी 'जिता' मेरे निकट आई। 

मैं काममोहित हो रानी से बोला, "महारानी, रूप यौवनवती! आपका मधुर स्वर मन को मोह लेता है।" रानी भी कामवासना के वशीभूत हो गई। मेरे अनुरोध पर उसने पिंजड़े का द्वार खोल दिया। पिंजड़े से बाहर निकलकर मैंने बंधन तोड़कर रानी के साथ संयोग करना चाहा। इतने में राजसेवकों ने आकर मेरा वध कर डाला। पर-स्त्री गमन के पापों के विचार से मुझे पुन: एक हजार वर्ष का नरक प्राप्त हुआ।

इसके बाद मैंने एक तोता का जन्म लिया। एक भील युवक ने मुझे जाल में फंसाकर एक पिंजड़े में बंद किया और एक नगर में ले जाकर मुझे एक वणिक्-पुत्र के हाथ बेच डाला। उसने मुझे अपने महल में रखा। वहां की युवतियां मुझे फल आदि खिलाकर प्रेम से मेरा पालन-पोषण करने लगीं।

एक दिन की घटना है। वणिक्-पुत्र की पत्नी चंद्रवती ने मुझे पिंजड़े से बाहर निकाला। अपने कोमल हाथों में लेकर मुझे पुचकारा, प्यार किया और मेरे सुंदर रूप पर मुग्ध हो मुझे अपने वक्ष से लगाया। मैंने कामवासना से प्रेरित होकर उस युवती का संगम चाहा और उसके अधरों का चुंबन किया। कुछ वर्ष के पश्चात् मेरी मृत्यु हुई, परंतु इस पापाचार के कारण मुझे पुन: नरक की प्राप्ति हुई।

नरकवास के पश्चात् मैंने चंडाल पत्तन में बैल का जन्म लिया। एक बार उस चंडाल ने मुझे एक गाड़ी में जोत लिया। उस गाड़ी में वह अपनी नवोढ़ा पत्नी के साथ, जो अत्यंत सुंदर थी, एक वन की ओर मुझे हांक ले गया। गाड़ी में आगे चंडाल बैठा हुआ था और पीछे उसकी पत्नी। 

वह युवती मधुर कंठ से गीत गाने लगी। उस चंडाली का मधुर गीत सुनकर मेरा मन विचलित हो गया। उस मीठी तान को सुनते स्तब्ध हो, मैं पीछे मुड़कर उस रमणी की आंखों में देखता ही रह गया। क्रमश: मेरी चाल धीमी हो गई और मैं चलना भूलकर स्थिर खड़ा रह गया। इस समय एक झटका हुआ। जुए से बंधे रस्सी ने मेरा कंठ कस लिया और मेरे प्राण पंचभूतों में विलीन हो गए। इस पाप-कर्म के लिए मुझे एक हजार वर्ष का रौरव नरक भोगना पड़ा।

अब इस चौथे जन्म में मैं आपके घर में मूक, अंधे और जड़ बनकर पैदा हुआ। परंतु पूर्वजन्म-कृत अभ्यास के कारण इस जन्म में भी मुझे समस्त शास्त्रों का ज्ञान स्मरण है। मैं ज्ञानी था, इस कारण मन, वाणी व कर्मणा द्वारा कृत घोर पापों की स्मृति बनाए रख सका।

पूर्वजन्मों में मैंने जो दुष्कृत्य किए थे, उनके प्रति मैं पश्चाताप करता रहा। फलत: मेरे मन में निर्वेद पैदा हुआ, इसलिए मैं इस जन्म में समस्त पापों से मुक्त होना चाहता हूं। इसलिए आपसे मेरा सादर निवेदन है कि मैं अपने पूर्वजन्मों के पापों के परिहार हेतु वानप्रस्थ में जाना चाहता हूं। आप मेरा निवेदन स्वीकार करके दिवाकर को गृहस्थाश्रम में प्रवेश कराकर संतुष्ट हो जाइए।

इसके पश्चात् निशाकर ने अपने-पिता के चरणों में भक्तिपूर्वक प्रणाम किया और वानप्रस्थ में प्रवेश करने के लिए बदरिकाश्रम की ओर निकल पड़ा।

गुरु बिनु ज्ञान कहाँ जग माही

'गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लगौ पांय, बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताय ' भगवान से भी ऊँचा दर्जा पाने वाले गुरुजनों के सम्मान के लिए एक दिन है व है शिक्षक दिवस | भारत में शिक्षक दिवस (5 सितम्बर) के मौके पर शिक्षा क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान देने वाले कई शिक्षकों को प्रति वर्ष राष्ट्रपति और राज्यपाल द्वारा सम्मानित किया जाता है| यह सम्मान शिक्षकों को उनके पेशे के लिए नहीं बल्कि उनकी शिक्षा देने के भावना और उनके शिक्षण के प्रति समर्पण के लिए दिया जाता है|

शिक्षक दिवस का महत्व-

'शिक्षक दिवस' कहने-सुनने में तो बहुत अच्छा प्रतीत होता है। लेकिन क्या आप इसके महत्व को समझते हैं। शिक्षक दिवस का मतलब साल में एक दिन बच्चों के द्वारा अपने शिक्षक को भेंट में दिया गया एक गुलाब का फूल या ‍कोई भी उपहार नहीं है और यह शिक्षक दिवस मनाने का सही तरीका भी नहीं है।

आप अगर शिक्षक दिवस का सही महत्व समझना चाहते है तो सर्वप्रथम आप हमेशा इस बात को ध्यान में रखें कि आप एक छात्र हैं, और ‍उम्र में अपने शिक्षक से काफ़ी छोटे है। और फिर हमारे संस्कार भी तो हमें यही सिखाते है कि हमें अपने से बड़ों का आदर करना चाहिए। हमको अपने गुरु का आदर-सत्कार करना चाहिए। हमें अपने गुरु की बात को ध्यान से सुनना और समझना चाहिए। अगर आपने अपने क्रोध, ईर्ष्या को त्याग कर अपने अंदर संयम के बीज बोएं तो निश्‍चित ही आपका व्यवहार आपको बहुत ऊँचाइयों तक ले जाएगा। और तभी हमारा शिक्षक दिवस मनाने का महत्व भी सार्थक होगा।

क्यों मनाते हैं शिक्षक दिवस-

शिक्षक दिवस वैसे तो पूरे विश्व में मनाया जाता है लेकिन अलग-अलग तिथियों को। भारत में यह दिवस पूर्व राष्ट्रपति डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस पांच सितम्बर को मनाया जाता है। देश में शिक्षक दिवस मनाने की परम्परा तब शुरू हुई जब डॉ. राधाकृष्णन 1962 में राष्ट्रपति बने और उनके छात्रों एवं मित्रों ने उनका जन्मदिन मनाने की उनसे अनुमति मांगी।

स्वयं 40वर्षो तक शिक्षण कार्य कर चुके राधाकृष्णन ने कहा कि मेरा जन्मदिन मनाने की अनुमति तभी मिलेगी जब केवल मेरा जन्मदिन मनाने के बजाय देशभर के शिक्षकों का दिवस आयोजित करें।’ बाद से प्रत्येक वर्ष शिक्षक दिवस मनाया जाने लगा।

आपको बता दें कि राधाकृष्णन का जन्म पांच सितम्बर 1888 को मद्रास (चेन्नई) के तिरुत्तानी कस्बे में हुआ था। उनके पिता वीरा समय्या एक जमींदारी में तहसीलदार थे। उनका बचपन एवं किशोरावस्था तिरुत्तानी और तिरुपति (आंध्र प्रदेश) में बीता। उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से एम.ए.की पढ़ाई पूरी की तथा ‘वेदांत के नीतिशास्त्र’ पर शोधपत्र प्रस्तुत कर पी.एचडी. की उपाधि हासिल की।

मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज के दर्शनशास्त्र विभाग में 1909 में वह व्याख्याता नियुक्त किए गए। फिर 1918 में मैसूर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बने। लंदन के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में वह 1936 से 39 तक पूर्व देशीय धर्म एवं नीतिशास्त्र के प्रोफेसर रहे। राधाकृष्णन 1939 से 48 तक बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे।

वर्ष 1946 से 52 तक राधाकृष्णन को यूनेस्को के प्रतिनिधिमंडल के नेतृत्व का अवसर मिला। वह रूस में 1949 से 52 तक भारत के राजदूत रहे। 1952 में ही उन्हें भारत का उपराष्ट्रपति चुना गया। मई 1962 से मई 1967 तक उन्होंने राष्ट्रपति पद को सुशोभित किया।

डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन का मानना था कि शिक्षक उन्हीं लोगों को बनना चाहिए जो सर्वाधिक योग्य व बुद्धिमान हों। उनका स्पष्ट कहना था कि जब तक शिक्षक शिक्षा के प्रति समर्पित और प्रतिबद्ध नहीं होता है और शिक्षा को एक मिशन नहीं मानता है, तब तक अच्छी शिक्षा की कल्पना नहीं की जा सकती है। शिक्षक को छात्रों को सिर्फ पढ़ाकर संतुष्ट नहीं होना चाहिए, शिक्षकों को अपने छात्रों का आदर व स्नेह भी अर्जित करना चाहिए। सिर्फ शिक्षक बन जाने से सम्मान नहीं होता, सम्मान अर्जित करना महत्वपूर्ण है|

7 हजार 122 साल पहले हुआ था प्रभु श्रीराम का जन्म

यदि आपसे कोई यह पूछे कि भगवान श्रीराम का जन्म कब हुआ था? तो शायद आपका जवाब रामनवमी ही होगा| आपको बता दें कि दिल्ली के इंस्टीट्यूट फॉर साइंटिफिक रिसर्च ऑन वेदाज (आइ-सर्व) को भगवान राम के जन्म की सटीक तिथि के बारे में पता लगाने में सफलता मिल गई है| इतना ही नहीं संस्थान ने इसे वैज्ञानिक तौर पर प्रमाणित करने का भी दावा किया है। 

साइंटिफिक रिसर्च ऑन वेदाज की निदेशक सरोज बाला ने बताया कि हमने अपने सहयोगियों और प्लैनेटेरियम सॉफ्टवेयर के माध्यम से श्रीराम की जन्मतिथि की सटीक जानकारी प्राप्त की है। इससे भगवान राम का अस्तित्व भी प्रमाणित होता है।

सरोज बाला ने बताया है कि भगवान श्रीराम का जन्म 10 जनवरी, 5014 ईसा पूर्व (सात हजार, 122 साल) पहले हुआ था। जिस दिन भगवान श्रीराम ने अवतार लिया था उस दिन चैत्र का महीना और शुक्ल पक्ष की नवमी थी| जन्म का वक्त दोपहर 12 बजे से दो बजे की बीच था। 

आइ-सर्व के वैज्ञानिकों ने बताया कि वे न केवल भगवान राम बल्कि अन्य पौराणिक पात्रों की जन्मतिथि और अस्तित्व का सत्यापन करने का प्रयास कर रहे हैं। बल्कि प्रभु श्रीराम के जीवन में हुई घटनाओं, जैसे वनवास, रावण वध का भी सत्यापन करने जा रहे हैं।

कृष्णभागिनी द्रौपदी के समान हैं यमराज की बहन यमुना

जीवनदायिनी नदियों पर केंद्रित आलेख का आज हम तीसरा भाग प्रस्तुत करने जा रहे हैं| आज हम बात करते हैं यमराज की बहन यमुना की| हिमालय तो भव्यता का भंडार है। जहां-तहां भव्यता को बिखेरकर भव्यता की भव्यता को कम करते रहना ही मानो हिमालय का व्यवसाय है। फिर भी ऐसे हिमालय में एक ऐसा स्थान है, जिसकी ऊर्जस्विता हिमालय-वासियों का भी ध्यान खींचती है। यह है यमराज की बहन यमुना का उद्गम-स्थान। 

ऊंचाई से बर्फ पिघलकर एक बड़ा प्रपात गिरता है। इर्द-गिर्द गगनचुम्बी नहीं, बल्कि गगनभेदी पुराने वृक्ष आड़े गिरकर गल जाते हैं। उत्तुंग पहाड़ यमदूतों की तरह रक्षण करने के लिए खड़े हैं। कभी पानी जमकर बर्फ के जितना ठंडा पानी बन जाता है। ऐसे स्थान में जमीन के अंदर से एक अद्भुत ढंग से उबलता हुआ पानी उछलता रहता है। जमीन के भीतर से ऐसी आवाज निकलती है मानो किसी वाष्पयंत्र से क्रोधायमान भाप निकल रही हो और उन झरनों से सिर से भी ऊंची उड़ती बूंदें सर्दी में भी मनुष्य को झुलसा देती हैं। 

ऐसे लोक-चमत्कारी स्थान में शुद्ध जल से स्नान करना असंभव-सा है। ठंडे पानी में नहाएं तो ठंडे पड़ जाएंगे और गरम पानी में नहाएं तो वहीं के वहीं आलू की तरह उबलकर मर जाएंगे। इसीलिए वहां मिश्रजल के कुंड तैयार किए गए हैं। एक झरने के ऊपर एक गुफा है। उसमें लकड़ी के पटिये डालकर सो सकते हैं। हां, रातभर करवट बदलते रहना चाहिए, क्योंकि ऊपर की ठंड और नीचे की गरमी, दोनों एक-सी अस' होती है।

दोनों बहनों में गंगा से यमुना बड़ी, प्रौढ़ और गंभीर है, कृष्णभागिनी द्रौपदी के समान कृष्णवर्णा और मानिनी है। गंगा तो मानो बेचारी मुग्ध शकुंतला ही ठहरी, पर देवाधिदेव ने उसको स्वीकार किया, इसलिए यमुना ने अपना बड़प्पन छोड़कर, गंगा को ही अपनी सरदारी सौंप दी। ये दोनों बहनें एक-दूसरे से मिलने के लिए बड़ी आतुर दिखाई देती हैं। 

हिमालय में तो एक जगह दोनों करीब-करीब आ जाती हैं, किंतु विघ्नसंतोषी की तरह ईष्र्यालु दंडाल पर्वत के बीच में आड़े आने से उनका मिलन वहां नहीं हो पाता। एक काव्यहृदयी ऋषि यमुना के किनारे रहकर हमेशा गंगा स्नान के लिए जाया करता था, किंतु भोजन के लिए वापस यमुना के ही घर आ जाता था। जब वह बूढ़ा हुआ तब उसके थके-मांदे पांवों पर तरस खाकर गंगा ने अपना प्रतिनिधिरूप एक छोटा-सा झरना यमुना के तीर पर ऋषि के आश्रम के पास भेज दिया। आज भी वह छोटा सा सफेद प्रवाह उस ऋषि का स्मरण करता हुआ वहां बह रहा है।

देहरादून के पास भी हमें आशा होती है कि ये दोनों एक-दूसरे से मिलेंगी। किंतु नहीं, अपने शैत्य-पाचनत्व से अंतर्वेदी के समूचे प्रदेश को पुनीत करने का कर्तव्य पूरा करने से पहले उन्हें एक-दूसरे से मिलकर फुरसत की बातें करने की सूझती ही कैसे? गंगा तो उत्तरकाशी, टिहरी, श्रीनगर, हरिद्वार, कन्नौज, ब्रह्मावर्त, कानपुर आदि पुराण पवित्र और इतिहास प्रसिद्ध स्थानों को अपना दूध पिलाती हुई दौड़ती है, जबकि यमुना कुरुक्षेत्र और पानीपत के हत्यारे भूमि-भाग को देखती हुई भारतवर्ष की राजधानी के पास आ पहुंचती है। 

यमुना के पानी में साम्राज्य की शक्ति होना चाहिए। उसके स्मरण-संग्रहालय में पांडवों से लेकर मुगल-साम्राज्य तक को गदर के जमाने से लेकर स्वामी श्रद्धानंदजी की हत्या तक का सारा इतिहास भरा पड़ा है। दिल्ली से आगरे तक ऐसा मालूम होता है, मानो बाबर के खानदान के लोग ही हमारे साथ बातें करना चाहते हों। दोनों नगरों के किले साम्राज्य की रक्षा के लिए नहीं, बल्कि यमुना की शोभा निहारने के लिए ही मानो बनाए गए हैं। मुगल साम्राज्य के नगाड़े तो कब के बंद हो गए, किंतु मथुरा-वृंदावन की बांसुरी अब भी बज रही हैं।

यमुना और मथुरा-वृंदावन :

मथुरा-वृंदावन की शोभा कुछ अपूर्व ही है। यह प्रदेश जितना रमणीय है, उतना ही समृद्ध है। हरियाने की गाएं अपने मीठे, सरस, सकस दूध के लिए हिंदुस्तान में मशहूर हैं। यशोदा मैया ने या गोपराजा नन्द ने खुद यह स्थान पसंद किया था, इस बात को तो मानो यहां की भूमि भूल ही नहीं सकती। मथुरा-वृंदावन तो हैं बालकृष्ण की क्रीड़ा-भूमि, वीर कृष्ण की विक्रम भूमि। द्वारकावास को यदि छोड़ दें तो श्रीकृष्ण के जीवन के साथ अधिक से अधिक सहयोग कालिन्दी ने ही किया है। 

जिस यमुना ने कालियामर्दन देखा, उसी यमुना ने कंस का शिरोच्छेद भी देखा। जिस यमुना ने हस्तिानापुर के दरबार में श्रीकृष्ण की सचिव-वाणी सुनी, उसी यमुना ने रण-कुशल श्रीकृष्ण की योगमूर्ति कुरुक्षेत्र पर विचरती निहारी। जिस यमुना ने वृंदावन की प्रणय-बांसुरी के साथ अपना कलरव मिलाया, उसी यमुना ने कुरुक्षेत्र पर रोमहर्षक गीतावाणी को प्रतिध्वनित किया। 

यमराज की बहन का भाईपन तो श्रीकृष्ण को ही शोभा दे सकता है। जिसने भारतवर्ष के कुल का कई बार संहार देखा है, उस यमुना के लिए पारिजात के फूल के समान ताजबीवी का अवसान कितना मर्मभेदी हुआ होगा? फिर भी उसने प्रेमसम्राट शाहजहां के जमे हुए संगमरमरी आंसुओं को प्रतिबिंबित करना स्वीकार कर लिया है।

भारतीय काल से मशहूर वैदिक नदी चर्मण्वती से करभार लेकर यमुना ज्योंही आगे बढ़ती है, त्योंही मध्ययुगीन इतिहास की झांगी करानेवाली नन्ही-सी सिंधु नदी उसमें आ मिलती है।

अब यमुना अधीर हो उठी है। कई दिन हुए, बहन गंगा के दर्शन नहीं हुए। ऐसी बातें पेट में समाती नहीं हैं। पूछने के लिए असंख्य सवाल भी इकट्ठे हो गए हैं। कानपुर और कालपी बहुत दूर नहीं हैं। यहां गंगा की खबर पाते ही खुशी से वहां की मिश्री से मुंह मीठा बनाकर यमुना ऐसी दौड़ी कि प्रयागराज में गंगा के गले से लिपट गई। क्या दोनों का उन्माद! 

मिलने पर भी मानो उनको यकिन नहीं होता कि वे मिली हैं। भारतवर्ष के सब के सब साधु संत इस प्रेम संगम को देखने के लिए इकट्ठे हुए हैं, पर इन बहनों को उसकी सुध-बुध नहीं है। आंगन में अक्षयवट खड़ा है। उसकी भी इन्हें परवा नहीं है। बूढ़ा अकबर छावनी डाले पड़ा है, उसे कौन पूछता है? और अशोक का शिलास्तंभ लाकर खंडा करें तो भी क्या ये बहनें उसकी ओर नजर उठाकर देखेंगी?

प्रेम का यह संगम-प्रवाह बहता रहता है और उसके साथ कवि-सम्राट् कालिदास की सरस्वती भी अखंड बह रही है! -

क्वचित् प्रभा लेपिभिरिन्द्रनीलैर्मुक्तामयी यष्टिरिवानुविद्धा।

अन्यत्र माला सित-पंकजानाम् इन्दीवर्रै उत्खचितान्तरेव।।

क्वचित्खगानां प्रिय-मानसानां कादम्ब-संसर्गवतीव पंक्ति:।

अन्यत्र कालागुरु-दत्तपत्रा भक्ति भुवशचन्दन-कल्पितेव।।

क्वचित् प्रभा चांद्रमसी तमोभिश्छायाविलीनै: शबलीकृतेव।

अन्यत्र शुभ्रा शरद्अभ्रलेखा-रन्ध्रष्विवालक्ष्यनभ: प्रदेशा।।

क्वचित च कृष्णोरग-भूषणेव भस्मांग-रागा तनरू ईश्वरस्य।

पश्यानवद्यांगि! विभाति गंगा भिन्नप्रवाहा यमुनारतंगै:।।

अर्थात् - हे निर्दोष अंगवाली सीते, देखो, इस गंगा के प्रवाह में यमुना की तरंगे धंसकर प्रवाह को खंडित कर रही है। यह कैसा दृश्य है! मालूम होता है, मानो कहीं मोतियों की माला में पिरोये हुए इंद्रनीलमणि मोतियों की प्रभा को कुछ धुंधला कर रहे हैं। कहीं ऐसा दीखता है, मानो सफेद कमल के हार में नील कमल गूंथ दिये गए हों। कहीं मानो मानसरोवर जाते हुए श्वेत चंदन से लीपी हुई जमीन पर कृष्णागरु की पत्र रचना की गई हो। कहीं मानो चंद्र की प्रभा के साथ छाया में सोए हुए अंधकार की क्रीड़ा चल रही हो; कहीं शरदऋतु के शुभ्र मेघों की पीछे से इधर-उधर आसमान दीख रहा हो और कहीं ऐसा मालूम होता है, मानो महादेवजी के भस्म-भूषित शरीर पर कृष्ण सर्पो के आभूषण धारण करा दिए हों।

कैसा सुंदर दृश्य! ऊपर पुष्पक विमान में मेघ श्याम रामचंद्र और धवल-शीला जानकी चौदह साल के वियोग के पश्चात् अयोध्या में पहुंचने के लिए अधीर हो उठे हैं और नीचे इंदीवर-श्यामा कालिंदी और सुधा-जला जाह्न्वी एक दूसरे का परिरंभ छोड़े बिना सागर में नामरूप को छोड़कर विलीन होने के लिए दौड़ रही है। इस पावन दृश्य को देखकर स्वर्ग में सुमनों की पुष्प-वृष्टि हुई होगी और भूतल पर कवियों की प्रतिभा-सृष्टि के फुहारे उड़े होंगे।

कहीं तपस्विनी कन्या तो कहीं कुलवधू की तरह सौभाग्यवती दिखती हैं 'माँ गंगा'

जीवनदायिनी नदियों पर केंद्रित आलेख का आज हम दूसरा भाग प्रस्तुत करने जा रहे हैं| आज हम बात करते हैं पतित पावनी गंगा मैया की| गंगा कुछ भी न करती, सिर्फ देवव्रत भीष्म को ही जन्म देती, तो भी आर्यजाति की माता के तौर पर वह आज प्रख्यात होती। पितामह भीष्म की टेक, उनकी निस्पृहता, ब्रह्मचर्य और तत्वज्ञान हमेशा के लिए आर्यजाति का आदरपात्र ध्येय बन चुका है। हम गंगा को आर्य-संस्कृति के ऐसे आधारस्तंभ महापुरुष की माता के रूप में पहचानते हैं।

नदी को यदि कोई उपमा शोभा देती है, तो वह माता की ही। नदी के किनारे रहने से अकाल का डर तो रहता ही नहीं। मेघराज जब धोखा देते हैं तब नदीमाता ही हमारी फसल पकाती है। नदी का किनारा यानी शुद्ध और शीतल हवा। नदी के किनारे-किनारे घूमने जाएं तो प्रकृति के मातृवात्सल्य के अखंड प्रवाह का दर्शन होता है। नदी बड़ी हो और उसका प्रवाह धीर-गंभीर हो, तब तो उसके किनारे पर रहने वालों की शानो-शौकत उस नदी पर ही निर्भर करती है

सचमुच, नदी जनसमाज की माता है। नदी किनारे बसे हुए शहर की गली-गली में घूमते समय एकाध कोने से नदी का दर्शन हो जाए, तो हमें कितना आनंद होता है! कहां शहर का वह गंदा वायुमंडल और कहां नदी का यह प्रसन्न दर्शन! दोनों के बीच का फर्क फौरन ही मालूम हो जाता है। नदी ईश्वर नहीं है, बल्कि ईश्वर का स्मरण कराने वाली देवी है। यदि गुरु का वंदन करना आवश्यक है तो नदी का भी वंदन करना उचित है।

यह तो हुई सामान्य नदी की बात, किंतु गंगा मैया तो आर्य-जाति की माता है। आर्यो के बड़े-बड़े साम्राज्य इसी नदी के तट पर स्थापित हुए हैं। कुरु-पांचाल देश का अंग-वंगादि देशों के साथ गंगा ने ही संयोग किया है। आज भी हिंदुस्तान की आबादी गंगा के तट पर ही सबसे अधिक है। जब हम गंगा का दर्शन करते हैं तब हमारे ध्यान में फसल से लहलाते सिर्फ खेत ही नहीं आते, न सिर्फ माल से लदे जहाज ही आते हैं, बल्कि वाल्मीकि का काव्य, बुद्ध-महावीर के विहार, अशोक, समुद्रगुप्त या हर्ष - जैसे सम्राटों के पराक्रम और तुलसीदास या कबीर जैसे संतजनों के भजन-इन सबका एक साथ ही स्मरण हो आता है। गंगा का दर्शन तो शैत्य-पावनत्व का हार्दिक तथा प्रत्यक्ष दर्शन है।

किंतु गंगा के दर्शन का एक ही प्रकार नहीं है। गंगोत्री के पास के हिमाच्छादित प्रदेशों में इसका खिलाड़ी कन्यारूप, उत्तरकाशी की ओर चीड़-देवदार के काव्यमय प्रदेश में मुग्धा रूप, देवप्रयाग के पहाड़ी और संकरे प्रदेश में चमकीली अलकनंदा के साथ इसकी अठखेलियां, लक्ष्मण-झूले की विकराल दंष्ट्रा में से छूटने के बाद हरिद्वार के पास अनेक धाराओं में स्वच्छंद विहार, कानपुर से सटकर जाता हुआ उसका इतिहास-प्रसिद्ध प्रवाह, प्रयाग के विशाल तट पर हुआ उसका कालिंदी के साथ का त्रिवेणी-संगम यानी हरेक की शोभा कुछ निराली ही है। एक दृश्य देखने पर दूसरे की कल्पना नहीं हो सकती। हरेक का सौंदर्य अलग, भाव अलग, वातावरण अलग और माहात्म्य अलग!

प्रयाग से गंगा अलग ही स्वरूप धारण कर लेती है। गंगोत्री से लेकर प्रयाग तक की गंगा वर्धमान होते हुए भी एकरूप मानी जाती है। किंतु प्रयाग के पास उससे यमुना आकर मिलती है। यमुना का तो पहले से ही दोहरा पाट है। वह खेलती है, कूदती है, किंतु क्रीड़ासक्त नहीं मालूम होती। गंगा शकुंतला जैसी तपस्वी कन्या दिखती है। काली यमुना द्रौपदी-जैसी मानिनी राजकन्या मालूम होती है।

शर्मिष्ठा और देवयानी की कथा जब सुनते हैं, तब भी प्रयाग के पास गंगा और यमुना के बड़ी कठिनाई के साथ मिलते हुए शुक्ल-कृष्ण प्रवाहों का स्मरण हो आता है। हिंदुस्तान में अनगिनत नदियां हैं, इसलिए संगमों का भी कोई पार नहीं है। इन सभी संगमों में हमारे पुरखों ने गंगा-यमुना का यह संगम सबसे अधिक पसंद किया है और इसीलिए उसका 'प्रयागराज' जैसा गौरवपूर्ण नाम रखा है। हिंदुस्तान में मुगलों के आने के बाद जिस प्रकार हिंदुस्तान के इतिहास का रूप बदला, उसी प्रकार दिल्ली-आगरा और मथुरा-वृंदावन के समीप से आते हुए यमुना के प्रवाह के कारण गंगा का स्वरूप भी प्रयाग के बाद बिल्कुल ही बदल गया है।

प्रयाग के बाद गंगा कुलवधू की तरह गंभीर और सौभाग्यवती दिखती है। इसके बाद उसमें बड़ी-बड़ी नदियां मिलती जाती हैं। यमुना का जल मथुरा-वृंदावन से श्रीकृष्ण के संस्मरण अर्पण करता है, जबकि अयोध्या होकर आनेवाली सरयू आदर्श राजा रामचंद्र के प्रतापी किंतु करुण जीवन की स्मृतियां लाती है।

दक्षिण की ओर से आनेवाली चंबल नदी रतिदेव के यज्ञ-याग की बातें करती है, जबकि महान कोलाहल करता हुआ सोनभद्र गज-ग्राह के दारुण द्वंद्वयुद्ध की झांकी कराता है। इस प्रकार हृष्ट-पुष्ट बनी हुई गंगा पाटलिपुत्र के पास मगध साम्राज्य जैसी विस्तीर्ण हो जाती है। फिर भी गंडकी अपना अमूल्य कर-भार लाते हुए हिचकिचाई नहीं। 

जनक और अशोक की, बुद्ध और महावीर की प्राचीन भूमि से निकलकर आगे बढ़ते समय गंगा मानो सोच में पड़ जाती है कि अब कहां जाना चाहिए। जब इतनी प्रचंड वारि-राशि अपने अमोघ वेग से पूर्व की ओर बह रही ही हो, तब उसे दक्षिण की ओर मोड़ना क्या कोई आसान बात है? फिर भी वह उस ओर मुड़ गई है। दो सम्राट या दो जगद्गुरु जैसे एकाएक एक दूसरे से नहीं मिलते, वैसा ही गंगा और ब्रह्मपुत्र का हाल है। 

ब्रह्मपुत्र हिमालय के उस पार का सारा पानी लेकर असम से होती हुई पश्चिम की ओर आती है, और गंगा इस ओर से पूर्व की ओर बढ़ती है। उनकी आमने-सामने भेंट कैसे हो? कौन किसके सामने पहले झुके? कौन किसे पहले रास्ता दे? अंत में दोनों ने तय किया कि दोनों को 'दाक्षिण्य' धारण कर सरित्पति के दर्शन के लिए जाना चाहिए और भक्ति नम्र होकर जाते-जाते जहां संभव हो, रास्ते में एक-दूसरे से मिल लेना चाहिए।

इस प्रकार गोआलंदो के पास जब गंगा और ब्रह्मपुत्र का विशाल जल आकर मिलता है, तब मन में संदेह पैदा होता है कि सागर और क्या होता होगा? विजय प्राप्त करने के बाद कसी हुई खड़ी सेना भी जिस प्रकार अव्यवस्थित हो जाती है और विजयी वीर मन में जो आए वहां-वहां घूमते हैं उसी प्रकार का हाल इसके बाद इन दो महान नदियों का होता है। अनेक मुखों द्वारा वे सागर से जाकर मिलती हैं। हरेक प्रवाह का नाम अलग-अलग है और कुछ प्रवाहों के तो एक से भी अधिक नाम हैं। गंगा और ब्रह्मपुत्र एक होकर पद्मा का नाम धारण करती हैं। यही आगे जाकर मेघना के नाम से पुकारी जाती है

यह अनेकमुखी गंगा कहां जाती है? सुंदरवन में बेंत के झुंड उगाने? या सागर-पुत्रों की वासना को तृप्त कर उनका उद्धार करने? आज जाकर आप देखेंगे तो यहां पुराने काव्य का कुछ भी शेष नहीं होगा। जहां देखो, वहां पटसन की बोरियां बनाने वाली मिलें दीख पड़ेंगीं। जहां से हिंदुस्तानी कारीगरी की असंख्य वस्तुएं हिंदुस्तानी जहाजों से लंका या जावा द्वीप तक जाती थीं, उसी रास्ते अब विलायती और जापानी अगिन-बोटें, विदेशी कारखानों में बना हुआ भद्दा माल हिंदुस्तान के बाजारों में भर डालने के लिए आती हुई दिखाई देती हैं। गंगा मैया पहले ही की तरह हमें अनेक प्रकार की समृद्धि प्रदान करती जाती है, किंतु हमारे निर्बल हाथ उसे उठा नहीं सकते!

हर नदी कुछ कहती है, जानिए उनकी कहानी हमारी जुबानी

काका कालेलकर के नाम से चर्चित गांधीवादी समाज सुधारक दत्तात्रेय बालकृष्ण कालेलकर ने आजादी से पूर्व और उसके आसपास हिमालय से निकलने वाली नदियों के संदर्भ में काफी कुछ लिखा है। जीवनदायिनी नदियों पर केंद्रित उनके आलेख आज से हम क्रमिक रूप से प्रस्तुत करने जा रहे हैं:- पार्वती और सरोजा

चंद नदियां पहाड़ों से निकलती हैं और चंद सरोवरों से निकलकर बहने लगती हैं। पर्वतों से जन्म पानेवाली नदियों को पार्वती या शैलजा कहते हैं। जो सरोवरों से जन्म लेती हैं, वे हैं सरोजा। हिमालय के उस पार दो बहुत बड़े और अत्यंत पवित्र सरोवर हैं। एक का नाम है मानस-सरोवर, दूसरे का राकसताल या रावण-हृद। इन सरोवरों से निकलनेवाली नदियों को सरोजा ही कहना पड़ेगा।

देखा जाए तो हिमालय की सभी नदियों को पार्वती नाम दिया जा सकता है। नदियां यानी अप्सरा। पहाड़ों से अप् यानी पानी जब सरने लगता है, यानी बहने लगता है, दौड़ने लगता है, तब उस प्रवाह को जिस तरह हम आप-गा या नदी कहते हैं, उसी प्रकार उसे 'अप्सरा' कहने में भी कोई आपत्ति नहीं है। पार्वती और सरोजा अप्सराओं के दो स्वतंत्र कुल कहे जा सकते हैं। 

हिमालय कहते ही जिस तरह गंगा और यमुना ये दोनों प्रमुख नदियां पहले ध्यान में आती हैं, उसी प्रकार हिमालय का आदरपूर्वक चक्कर काटकर, हिमालय के उत्तर की तरफ का सारा पानी, एक बूंद भी बेकार न जाने देने तथा दक्षिण की ओर हिंदुस्तान में लाकर छोड़ने वाली इन नदियों का भी स्मरण हुए बिना नहीं रहता। इन्हें नदियों के बजाय नद कहना ठीक रहेगा। 

सिंधु और ब्रह्मपुत्र- ये दो नद मानस-सरोवर और रावण-हृद के परिसर में से निकलकर दो भिन्न-भिन्न दिशाओं में बहने लगते हैं। सिंधु-नद पश्चिम की ओर जाकर, हिमालय का चक्कर काटकर, हिंदुस्तान में ही (अब पाकिस्तान में) दक्षिण की ओर बहने लगता है। ब्रह्मपुत्र, जिसका तिब्बती नाम 'सांग्पो' है, पूर्व तरफ दूर तक दौड़ लगाकर फिर एक गहन कांतर (अरण्य) में प्रवेश करता है और असम में प्रकट होता है। यह प्रदेश सचमुच देखने लायक है। 

हाथ की उंगलियां फैलाने पर उनका जिस प्रकार पंखे का आकार बनता है, उसी प्रकार असम प्रदेश में सदिया गांव के आसपास लोहित, डिहंग, सुबनसेखी आदि अनेक नदियों के प्रवाह, पंखे की उंगलियों के समान, ब्रह्मपुत्र में आकर मिलते हैं।

वहां पंजाब की तरफ स्वात, क्रुमू (काबुल) आदि नदियों का पानी साथ लेकर सिंधुनद पंजाब में प्रवेश करता है और फिर कश्मीर या मिट्टनकोट तक झेलम, चिनाब, रावी, व्यास और सतलज नदियों के पानी से बनने वाला पंचनद कब आकर अपने सतलज इन नदियों के पानी से बननेवाला पंचनद कब आकर अपने में समा जाता है, इसकी राह देखता दौड़ता है। यह संगम भी अद्भुत रम्य है। आज हमने सिंधु और ब्रह्मपुत्र दोनों नाम स्त्रीलिंग बना दिए हैं और ब्रह्मपुत्र को 'ब्रह्मापुत्रा' कहने लगे हैं।

कुछ भी हो, इतने बड़े प्रचंड हिमालय को मानो अपने भुजपाश में लेने के लिए भारतमाता ने सिंधु और ब्रह्मपुत्र, ये अपने दो बाहु लंबे फैलाकर सिर एकमेक कर जोड़ दिए हैं। उनके इस भव्य काव्य का चिंतन करते मानवीय मन करीब-करीब समाधिस्थ हो जाता है। सिंधु और ब्रह्मपुत्र -ये प्रौढ़ कन्यकाएं हिमालय का चक्कर काटती हैं। इसके विपरीत उनकी दो अल्हड़ लड़कियां कहती हैं, "हम आदर-वादर कुछ नहीं जानतीं। हमें हिमालय के उस पार का जल लेकर हिंदुस्तान में प्रवेश करना है। पिताजी को हमें राह देनी ही पड़ेगी।"

छोटी और लाडली लड़कियां हमेशा शरीर (ऊधम मचाने वाली) ही होती हैं। उन्होंने अपना सीधा मार्ग ढूढ़ निकालकर, वृद्ध हिमालय को बिल्कुल आर-पार छेदकर, दक्षिण की तरफ आने का निश्चय किया। अपत्य-वत्सल हिमालय करता भी क्या? उनकी बात मान गया और दबकर उसने लड़कियों को राह दे दी। सतलज और घाघरा ही हैं वे दो लड़कियां। इनका उद्गम भी मानस-सरोवर और रावण हृद के परिसर में ही होता है। घाघरा को ही 'रामायण' में सरयू कहा गया है। इसका उद्गम भी उसके नाम के अनुसार सम्भवत: किन्ही सरोवरों में से ही हुआ है।

मैंने हिमालय क्षेत्र का सारा प्रदेश किसी न किसी समय आंखभर देख लिया है। हिमालय के वाक्य में अबट्टाबाद और कश्मीर-श्रीनगर से लेकर ठेठ उत्तर-पूर्व की तरफ सदिया और परशुराम कुंड तक का सारा प्रदेश मैंने अपनी आंखों से देख लिया है। जहां मेरे पैर या आंखें पहुंच नहीं पाईं, वहां कल्पना की मदद से विहंगावलोकन किया है और अब तो इस काम में फोटोग्राफी की उत्कृष्ट सहायता होती रहती है। इस प्रदेश में असंख्य नदियां वक्र गतियों से बहती रहती हैं। जगह न मिले या बहुत संकरी हो, तो वह कुछ ऐसी चिढ़ जाती हैं कि उनका वह हुलिया देखकर दिल में प्रेम ही उमड़ आता है!

समतल भूमि पर आहिस्ता, बिल्कुल शांति से बहने वाली नदियां हिंदुस्तान में असंख्य हैं। उनकी शोभा अलग प्रकार की है। उनका दर्शन करने के लिए हमें किसान की दृष्टि धारण करनी चाहिए और जरूरत के मुताबिक छोटी-बड़ी नहरें निकालने का पुरुषार्थ भी करना चाहिए; लेकिन हिमालयीन नदियों की बात अलग है। उनके किनारे पहुंचकर उनके पवित्र जल का आचमन करने के लिए भी 200-400 फुट नीचे उतरना पड़ता है। फिर, कहां की खेती और कहां की नहरें!

कोई ऐसा न मान बैठे कि सिंधु और ब्रह्मपुत्र, गंगा और यमुना, सरयू और सतलज के नाम लेने पर हिमालय की मुख्य नदियां पूरी हुईं। बिहार की पुरानी और नई दो नदियों-गंडक और तूफानी कोसी - इनका नाम भी आदर के साथ ही लेना पड़ता है, लेकिन मेरी अत्यंत प्रिय नदी है तीस्ता। यह नदी सिक्किम की तरफ के कांचन-जोंगा या पंचहिमाकर पर्वत के हिम-प्रपात से बनती है और दक्षिण की तरफ बहते-बहते ब्रह्मपुत्र में आ मिलती है। इसमें आकर मिलने वाली रंगपो और रंगीत आदि अनेक नदियों के संगम मैंने देखे हैं।

नदियों का संगम यानी दो भिन्न रंगों का विलास। यह बात मानो निश्चित ही हो गई है। दो नदियों का जल एकमेक से मिल जाने से पहले बहुत समय तक खेल करता रहता है। गंगा-यमुना के मिलनोत्सव का वर्णन कालिदास ने इतना लंबा-चौड़ा किया है कि हमें महसूस होने लगता है कि मानो हम एक नदी में ही तैर रहे हों।

गंगा के बारे में भारतीयों की भक्ति ध्यान में रखकर हम उसे भारतमाता कहते हैं, लेकिन वास्तव में वह भारतीयों के पुरुषार्थ से बनी हुई भारतकन्या है। गंगा, यानी भागीरथी, अलकनंदा, मंदाकिनी आदि अनेक प्रवाहों के अनेक संगम। हरेक संगम को 'प्रयाग' कहा जाता है। ऐसी गंगा का जब यमुना के साथ संगम होता है, तब उस स्थान को हमारे पुरखाओं ने प्रयागराज का गौरवपूर्ण नाम दिया है।

हमारी नदियां- यानी हमारा पौराणिक इतिहास और इतिहास-कालीन पुरुषार्थ। हिमालय की तमसा का नाम लेते ही विश्वमित्र का स्मरण होगा ही। यमुना कहते ही वृंदावन-विहारी श्रीकृष्ण और कुरुक्षेत्र पर गीतागायक जगद्गुरु उभय विभूतियों का स्मरण होना अपरिहार्य है। 

सरयू, यानी प्रभु रामचंद्र की करुण कथा। सप्तसिंधु के किनारे वैदिक आर्यो ने महान पुरुषार्थ किए। युद्ध और यज्ञ उनके पुरुषार्थ की दो धाराएं थीं और गंगा तो भागीरथ से लेकर ठेठ कबीर तक भारतीय संस्कृति के सब प्रतिनिधियों की प्रवृत्तियों का प्रवाह। बिलकुल दूर उत्तर-पूर्व ईशान में लोहित ब्रह्मपुत्र के उद्गम के पास जाने पर वहां परशुराम का कुंड देखने को मिलता है। 

जब इक्कीस बार ब्राह्मण-क्षत्रियों का आत्मघातक झगड़ा चला, पर थक जाने के बाद इस स्थान पर परशुराम के हाथ से उसकी कुल्हाड़ी छूट गई और उसको शांति मिली। गीता का उपदेश सुनानेवाली यमुना के किनारे शांति का वही पाठ गांधीजी के बलिदान के रूप में आज हमें सुनाई देता है।

हिमालय के हिमधवल शिखरों ने शांति का जो सूचन किया, उसे ही ऋषि-मुनियों ने हिमालय के अपने आश्रमों में बैठकर किए हुए चिंतन में विकसित किया और उसी निर्वैरता के, अहिंसा के संदेश को अनेक युद्धों के अंत में भारतीयों ने अपने विषादपूर्ण अंत:करणों में अनुभव किया। हिमालय की सब नदियां इस विविध शांति की साक्षी हैं और हमें अपना इतिहास सिद्ध शांति-गीत अखंड रूप से सुना रही हैं।