..और आसुमल बन गए आसाराम बापू

यौन उत्पीड़न के आरोप में गिरफ्तार स्वयंभू संत आसाराम बापू का पिछले कुछ समय से विवादों से नाता-सा हो गया है। पिछले कुछ अर्से से उनके आश्रम में बच्चों की मौत, जमीन घोटाला, जानलेवा हमला करने के आरोप लगते रहे हैं। कहा जाता है कि संतों को क्रोध शोभा नहीं देता, वे खुद भी लोगों को क्रोध से दूर रहने का उपदेश देते हैं। लेकिन कभी 'ईश्वर की खोज में' घर छोड़ देने वाले 'संत' को क्रोध भी खूब आता है। 2009 में आश्रम के साधकों पर पुलिस कार्रवाई पर उन्हें क्रोध आ गया और उन्होंने कहा कि जब बच्चों पर अन्याय होता है तो मैं दुर्वासा का रूप ले लेता हूं। 

इतना ही नहीं उन्होंने मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी तक को चुनौती दे डाली थी| उन्होंने कहा था कि वाह मुख्यमंत्री, देखें तुम्हारी गद्दी कब तक और कैसे रहती है। बहराल, विभाजन के दौरान पाकिस्तान के सिंध प्रांत से विस्थापित होकर उनका परिवार गुजरात के अहमदाबाद पहुंचा था। आज उनका आश्रम देश कई शहरों में मौजूद है और उनके पास करोड़ों रुपये की संपत्ति बताई जाती है। 

आसाराम का जन्म सिंध प्रान्त के नवाबशाह जिले में सिंधु नदी के तट पर बसे बेराणी गांव में नगर सेठ श्री थाऊमलजी सिरुमलानी के घर 17 अप्रैल, 1941 हुआ था। उनका वास्तविक नाम 'आसुमल सिरुमलानी' है। उनके पिता का नाम थाऊमल और माता का नाम महंगीबा है। उस समय नामकरण संस्कार के दौरान उनका नाम आसुमल रखा गया था।

आसाराम के जन्म के कुछ समय बाद उनका परिवार विभाजन की विभीषिका झेलने के बाद सिंध में चल-अचल सम्पत्ति छोड़कर 1947 में अहमदाबाद शहर आ गया। धन-वैभव सब कुछ छूट जाने के कारण परिवार आर्थिक संकट के चक्रव्यूह में फंस गया। यहां आने के बाद आजीविका के लिए थाऊमल ने लकड़ी और कोयले का व्यवसाय आरम्भ किया और आर्थिक परिस्थिति में सुधार होने लगा। तत्पश्चात शक्कर का व्यवसाय भी शुरू किया। 

आसाराम की प्रारम्भिक शिक्षा सिन्धी भाषा से आरम्भ हुई। सात वर्ष की आयु में प्राथमिक शिक्षा के लिए उन्हें 'जयहिन्द हाईस्कूल', मणिनगर, (अहमदाबाद) में प्रवेश दिलवाया गया। माता-पिता के अतिरिक्त आसाराम के परिवार में एक बड़े भाई तथा दो छोटी बहनें थीं।

तरुणाई के प्रवेश के साथ ही घरवालों ने इनकी शादी करने की तैयारी की। वैरागी आसुमल सांसारिक बंधनों में नहीं फंसना चाहते थे, इसलिए विवाह के आठ दिन पूर्व ही 'ईश्वर की खोज में' वह चुपके से घर छोड़ कर निकल पड़े। काफी खोजबीन के बाद घरवालों ने उन्हें भरूच के एक आश्रम में खोज निकाला। सगाई हो जाने और परिवार की काफी दुहाई के बाद वह शादी के लिए तैयार हो गए। 

इसके बाद 23 फरवरी, 1964 को उन्होंने सिद्धि के लिए घर छोड़ दिया। घूमते-घूमते वह केदारनाथ पहुंचे, जहां उन्होंने अभिषेक करवाया। वहां से वह भगवान श्रीकृष्ण की लीलास्थली वृन्दावन पहुंचे। होली के दिन यहां के दरिद्रनारायण में भंडारा कर कुछ दिन वहीं पर रुके और फिर उत्तराखंड की ओर निकल पड़े। इस दौरान वह गुफाओं, कन्दराओं, घाटियों, पर्वतश्रंखलाओं एवं अनेक तीर्थो में घूमे। 

फिर वह नैनीताल के जंगलों में पहुंचे। 40 दिनों के लम्बे इंतजार के बाद वहां उन्हें सदगुरु स्वामी लीलाशाहजी महाराज मिले। लीलाशाहजी महाराज ने आसुमल को ज्ञान दिया और घर में ही ध्यान भजन करने का आदेश देकर 70 दिनों बाद वापस अहमदाबाद भेज दिया।

साबरमती नदी के किनारे की उबड़-खाबड़ टेकरियों (मिट्टी के टीलों) पर भक्तों द्वारा आश्रम के रूप में 29 जनवरी, 1972 को एक कच्ची कुटिया तैयार की गई। इस स्थान के चारों ओर कंटीली झाड़ियां व बीहड़ जंगल था, जहां दिन में भी आने पर लोगों को चोर-डाकुओं का भय बराबर बना रहता था। लेकिन आश्रम की स्थापना के बाद यहां का भयावह एवं दूषित वातावरण बदल गया। 

आसाराम ने साबरमती तट पर ही अपने आश्रम से करीब आधा किलोमीटर दूर 'नारी उत्थान केन्द्र' के रूप में महिला आश्रम की स्थापना की। महिला आश्रम में भारत के विभिन्न प्रान्तों से एवं विदेशों से भी स्त्रियां आती हैं। इसके बाद सत्संग के लिए योग वेदान्त सेवा समिति की शाखाएं स्थापित की गईं। जिसमें लाखों की संख्या में श्रोता और भक्त पहुंचने लगे।

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सरयू का अस्तित्व संकट में

उत्तर प्रदेश में खैरीगढ़ स्टेट की राजधानी रही सिंगाही एक समृद्ध सांस्कृतिक संस्कृति को संजोये हुए है। कस्बे से एक किलोमीटर उत्तर में भूल-भुलैया स्थित है तो दूसरी ओर वास्तुकला की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण शिव मंदिर है। सरयू नदी पहले इसी शिव मंदिर के पास से बहती थी लेकिन वर्तमान में लगभग एक किलोमीटर सिंगाही के जंगलों में सटकर बह रही है। इसका अस्तित्व सिंगाही व बेलरायां झील से अयोध्या तक रह गया है।

मयार्दा पुरुषोत्तम श्रीराम के अवतरण व लीला परधाम गमन की साक्षी रही सरयू का उद्गम स्थल यूं तो कैलाश मानसरोवर माना जाता है लेकिन अब यह नदी सिंगाही जंगल की झील से श्रीराम नगरी अयोध्या तक ही बहती है। भौगोलिक कारणों से इस नदी का अस्तित्व संकट में दिखाई देता है। मत्स्य पुराण के अध्याय 121 और वाल्मीकि रामायण के 24वें सर्ग में इस नदी का वर्णन है। कहा गया है कि हिमालय पर कैलाश पर्वत है, जिससे लोकपावन सरयू निकली है, यह अयोध्यापुरी से सटकर बहती है। वामन पुराण के 13वें अध्याय, ब्रह्म पुराण के 19वें अध्याय और वायुपुराण के 45वें अध्याय में गंगा, जमुना, गोमती, सरयू और शारदा आदि नदियों का हिमालय से प्रवाहित होना बताया गया है।

सरयू का प्रवाह कैलाश मानसरोवर से कब बंद हुआ, इसका विवरण तो नहीं मिलता लेकिन सरस्वती और गोमती की तरह इसका भी प्रवाह भौगोलिक कारणों से बंद होना माना जाता रहा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सरयू, घाघरा और शारदा नदियों का संगम तो हुआ ही है, सरयू और गंगा का संगम श्रीराम के पूर्वज भगीरथ ने करवाया था। 

सरयू का भगवान विष्णु के नेत्रों से प्रगट होना बताया गया है। 'आनंद रामायण' के यात्रा कांड में वर्णित है कि प्राचीन काल में शंकासुर दैत्य ने वेद को चुराकर समुद्र में डाल दिया और स्वयं वहां छिप गया। भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण कर दैत्य का वध किया और ब्रह्मा को वेद सौंप कर अपना वास्तवित स्वरूप धारण किया। उस समय हर्ष के कारण भगवान विष्णु की आंखों में प्रेमाश्रु टपक पड़े। ब्रह्मा ने उस प्रेमाश्रु को मानसरोवर में डालकर उसे सुरक्षित कर लिया। इस जल को महापराक्रमी वैवस्वत महाराज ने बाण के प्रहार से मानसरोवर से बाहर निकाला। यही जलधारा सरयू नदी कहलाई। बाद में भगीरथ अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाया और उन्होंने ने ही गंगा और सरयू का संगम करवाया।

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मुस्लिमों को लुभाने के लिए सपा का ट्रंप कार्ड

लोकसभा चुनाव के मद्देनजर उत्तर प्रदेश में मुसलमान मतदाताओं को अपने पाले में करने की खींचतान के बीच समाजवादी पार्टी (सपा) ने ट्रंप कार्ड चल दिया है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव की सरकार ने सरकारी योजनाओं में अल्पसंख्यकों को आरक्षण देने का निर्णय किया है। सरकार की इस निर्णय को मुसलमान मतदाताओं को लुभाने के कदम के रूप में देखा जा रहा है। 

बीते सप्ताह सपा सरकार ने राज्य सरकार द्वारा संचालित 30 विभागों की 85 योजनाओं में अल्पसंख्यकों को 20 प्रतिशत आरक्षण देने का महत्वपूर्ण निर्णय लिया। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की तरफ से इस निर्णय के पीछे तर्क दिया गया कि अल्पसंख्यक वर्ग को समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए शैक्षिक, आर्थिक व सामाजिक दूष्टि से विभिन्न आयोगों द्वारा विचार किया गया। यह आवश्यकता अनुभव की जा रही थी कि उन्हें भी समाज के अन्य वर्गो की भांति अवसर उपलब्ध कराते हुए सभी प्रकार की सुविधाएं इस प्रकार सुलभ कराई जाएं कि इन समुदायों को भी पिछड़ेपन से मुक्त करते हुए समाज की मुख्यधारा में लाया जा सके।

उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यक आबादी करीब 19 प्रतिशत है, जिसमें से करीब 16 प्रतिशत मुसलमान हैं। राज्य की करीब 30 लोकसभा सीटें ऐसी जहां पर मुसलमान नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं। ऐसे में सपा उन्हें अपने पाले में रखना चाहती है। कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार, बिजली संकट, बाढ़ जैसे तमाम मुद्दों पर घिरी अखिलेश सरकार का ये कदम आगामी लोकसभा चुनाव में अल्संख्यकों, खासकर मुसलमानों को खुश करने के रूप में देखा जा रहा है।

दरअसल, सपा को अंदेशा है कि विधानसभा चुनाव में सपा को वोट देने वाले मुस्लिम मतदाता का मूड लोकसभा चुनाव के समय बदल सकता है। वे सपा को अनदेखा कर कांग्रेस की तरफ जा सकते हैं, इसलिए सपा नेतृत्व ने आरक्षण का निर्णय लेकर बड़ा ट्रंप कार्ड खेला है।

सपा के प्रदेश प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी कहते हैं कि यह किसी का तुष्टीकरण नहीं, बल्कि समाज के पिछड़ों और वंचितों को विशेष अवसर देने के राम मनोहर लोहिया के सिद्धांत को अमली जामा पहनाने का प्रयास है। इसे वोट बैंक की राजनीति के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए।

वह कहते हैं कि कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने अपने शासनकाल में मुस्लिमों का इस्तेमाल सिर्फ वोट बैंक की तरह किया और भाजपा का तो मुस्लिम विरोध जगजाहिर है। ताजा राजनीतिक हालात में पार्टी नेतृत्व को लगता है कि अगर मुसलमान और पिछड़ा वर्ग सपा के साथ रहा तो लोकसभा सीटें जीतने में उसकी स्थिति नंबर एक पर रहेगी। अखिलेश द्वारा हाल में पिछड़े वर्ग के चार नेताओं को कैबिनेट मंत्री का पद देने से ऐसे संकेत मिलते हैं। 

उधर, कांग्रेस पार्टी का आरोप है कि अल्पसंख्यक समुदाय में सरकार के विरुद्ध बढ़ती हुई नाराजगी और आने वाले लोकसभा चुनाव में अल्पसंख्यक वोटों के खिसकने के डर से सपा सरकार ने 20 प्रतिशत भागीदारी देने के नाम पर प्रदेश के अल्पसंख्यक समाज पर डोरा डाला है।

कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता मारूफ खान कहते हैं कि विधानसभा चुनाव में सपा ने अपने घोषणापत्र में मुसलमानों को 18 प्रतिशत आरक्षण देने की बात कही थी जिसे पूरा न किए जाने से मुसलमानों में बढ़ती नाराजगी और अल्पसंख्यक हितों से जुड़े तमाम मुद्दों से अल्पसंख्यक समुदाय का ध्यान हटाने के लिए यह सिर्फ एक शिगूफा है। वहीं, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रदेश प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक कहते हैं कि सपा अल्पसंख्यकों के हित के नाम पर केवल मुस्लिम वर्ग को लाभ पहुंचाकर तुष्टीकरण की नीति पर काम कर रही है। उसका मकसद मुसलमानों का भला नहीं, बल्कि उनका वोट लेना है।

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सपने में दिखें प्रेतात्मा तो जानिए क्या होगा आपके साथ.....


आज हम आपको आपके सपनो की दुनिया में ले कर चलते हैं| आपको बता दें, यदि आप रात में सोते समय सपना देखते हैं और सोचते हैं कि इस सपने का अर्थ क्या है| आज हम आपको सपनों के बारे में कुछ संछिप्त जानकारी देते हैं जिससे आप अनुमान लगा सकते हैं कि आपने जो भी सपना देखा है उस सपने का अर्थ क्या है|

हर सपना कुछ-न कुछ कहता है। कुछ सपने निराशा देते हैं, तो कुछ जीवन में खुशियों की लहरभर देते हैं। जब व्यक्ति निद्रावस्था में होता है तो उसकी पाँचों ज्ञानेंद्रियाँ उसका मन और उसकी पाँचों कर्मेंद्रियाँ क्रिया शुन्य हो जाती हैं और व्यक्ति का मस्तिष्क पूरी तरह शांत रहता है। उस अवस्था में व्यक्ति को एक अलौकिक अनुभव होता है, जो उसके जीवन से संबंधित होता है। उसी अनुभव को स्वप्न कहा जाता है।

आपको बता दें कि आप अपने सपनों में भूत-प्रेत, मुर्दे आदि देख रहे हैं तो समझ जाइए कि आपकी किस्मत अचानक बदलने वाली है| हमारे ज्योतिषाचार्य आचार्य विजय कुमार बताते हैं कि डरावने सपने जहाँ अशुभ फल देने वाले होते हैं वही कुछ शुभ संकेत भी देते हैं। यदि आपको ऐसे सपने आने लगे तो समझें आपके साथ कुछ होने वाला है।

आप सपने में किसी मुर्दे को पुकारते हैं तो समझ जाइये कि आप पर कोई विपत्ति आने वाली है आप को दुःख भोगना पड़ सकता हैं, वहीँ, अगर सपने में साफ-सुथरी शमशान दिखाई दे तो समझिए कि जल्द ही आपके व्यापार में वृद्धि होने वाली है।

इसके अलावा जिस व्यक्ति के स्वप्न में अपनी शवयात्रा दिखाई दे उसकी उम्र बढ़ जाती है। परंतु यदि कोई रोगी ऐसा स्वप्न देखता है तो उसकी शीघ्र ही मृत्यु हो जाती है। सपने में जिसे ताबूत में मुर्दा रखा दिखाई दे तो निकट भविष्य में उसके साथ कोई दुर्घटना हो जाती है।

आपको बता दें कि सपने में किसी मुर्दे से बात करते हुए देखें, तो समझ जाइए कि बहुत ही जल्दी आपकी सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। इसके अलावा स्वप्न में जो किसी की कब्र पर लिखी हुई पंक्तियां पढ़ता है उसे उच्च पद प्राप्त होता है।

सपने में अपनी ही पत्नी का शव देख रहे हैं तो समझ जाइए कि आप किसी रोग से पीड़ित होने वाले हैं, इसके अलावा आप किसी प्रेत आत्मा से मित्रता कर रहे हैं तो समझ जाइए कि आपके उद्योग व व्यवसाय में वृद्धि होने वाली है। स्वप्न में जो विष पीकर मर जाए तो वह रोगी हो जाता है तथा अनेक दु:खों को भोगता है।

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सपने में दिखें रंग- बिरंगे कपड़े तो जानिए क्या होगा आपके साथ.....

हर सपना कुछ-न कुछ कहता है। कुछ सपने निराशा देते हैं, तो कुछ जीवन में खुशियों की लहर भर देते हैं। जब व्यक्ति निद्रावस्था में होता है तो उसकी पाँचों ज्ञानेंद्रियाँ उसका मन और उसकी पाँचों कर्मेंद्रियाँ अपनी-अपनी क्रियाएँ करना बंद कर देती हैं और व्यक्ति का मस्तिष्क पूरी तरह शांत रहता है। उस अवस्था में व्यक्ति को एक अनुभव होता है, जो उसके जीवन से संबंधित होता है। उसी अनुभव को स्वप्न कहा जाता है|

अगर आप सपने में रंग बिरंगे कपड़े देखें तो इसे हल्के में न लें क्योंकि सपने में खुद के कपड़े रंग-बिरंगे होने पर कुछ अनचाही घटनाओं का सामना करना पड़ सकता है। आपको बता दें कि अगर आप अपने आपको गंदे और मैले कपड़ों में देखें तो समझ जाइए कि आपको मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा। इतना ही नहीं आपको अपमान का भी सामना करना पड़ेगा|

अगर आप अपने आप को पीले रंग के कपड़ों में देखें तो आपको दुःख भोगना पड़ेगा इसके अलावा आपके जीवन में तबाही भी आ सकती है। अगर काले रंग के कपड़ों में देखें तो ऐसा सपना देखने वाले व्यक्ति को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। इतना ही नहीं आप पर कोई कलंक भी लग सकता है|

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बिहार में आतंकवादियों की मजबूत होती जड़ें

आतंकवदी संगठन इंडियन मुजाहिदीन के सह-संस्थापक और भारत सहित दूसरे कई देशों की एजेंसियों द्वारा वांछित यासीन भटकल और असादुल्लाह अख्तर उर्फ हड्डी की गिरफ्तारी से बिहार-नेपाल सीमा पर आतंकवादी गतिविधियों में बाढ़ की खबर को बल मिला है। वैसे सीमांचल के इलाकों से आतंकवादियों की गिरफ्तारी का यह पहला मामला नहीं है। इसके पहले भी कई आतंकवादियों की गिरफ्तारी हो चुकी है, परंतु भटकल जैसे बड़े आतंकवादी की गिरफ्तारी ने बिहार में आतंकवादियों की जड़ें मजबूत होने की आशंका बढ़ा दी है।

आतंकवादियों की गिरफ्तारी के बाद पूछताछ के दौरान सुरक्षा एजेंसियों को ऐसे सबूत मिले हैं, जिससे इस बात की ताकीद हो जाती है कि नेपाल के रास्ते आतंकवादी बिहार की सीमा में प्रवेश करते हैं। इसके कुछ दिनों पूर्व दिल्ली पुलिस ने भारत-नेपाल सीमा से लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के 'बम मशीन' कहे जाने वाले अब्दुल करीम टुंडा को गिरफ्तार किया था।

सुरक्षा अधिकारियों के अनुसार, देश के विभिन्न हिस्सों में घटी आतंकवादी घटनाओं के बाद संदिग्धों की तलाश में एजेंसियां अन्य राज्यों के साथ-साथ बिहार भी आती रही हैं। बिहार और नेपाल की सीमा खुले रहने के कारण आतंकवादी इसका इस्तेमाल देश में आने-जाने के लिए करते रहे हैं।

वर्ष 2010 में बांग्लादेश भागने की फिराक में एक संदिग्ध तालिबानी आतंकी गुलाम रसूल उर्फ मिर्जा खान को पूर्णिया पुलिस ने गिरफ्तार किया था। वैसे एजेंसियां इस बात को लेकर आश्वस्त थीं कि बिहार में आतंकवादी घटनाएं नहीं होंगी, लेकिन बोधगया में सिलसिलेवार विस्फोट के बाद एजेंसियों की यह धारणा भी बदल गई।

एजेंसियों के सूत्रों का दावा है कि भटकल देश में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने के बाद दरभंगा और मधुबनी में पनाह लेता था। कुछ दिनों पूर्व ऐसे ही पनाहगाह पर छापा मारकर कई सुरक्षा एजेंसी ने संदिग्ध वस्तुएं भी बरामद की थी। पिछले 10 वर्षों के दौरान आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में विभिन्न इलाकों से सीमांचल क्षेत्रों से 10 से अधिक संदिग्धों की गिरफ्तारी हो चुकी है। दरभंगा जिले के लहेरियासराय थाना क्षेत्र से भटकल के सहयोगी माने जाने वाले मोहम्मद दानिश अंसारी को इसी वर्ष जनवरी महीने में गिरफ्तार किया गया था। पुलिस आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2000 में सीतामढ़ी जिले से आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन के सदस्य मकबूल और जहीर को गिरफ्तार करने में पुलिस को सफलता मिली थी, जबकि 20 जुलाई, 2006 को मुंबई एटीएस की टीम ने मधुबनी जिले के बासोपटी गांव से मोहम्मद कमाल अंसारी को मुंबई में हुए श्रृंखलाबद्ध विस्फोट के आरोप में गिरफ्तार किया था।

इसके बाद 12 नवंबर, 2007 को मधुबनी के रहने वाले मोहम्मद सबाउद्दीन उर्फ फरहान को जयपुर के रामपुर स्थित केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) शिविर पर गोलीबारी करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद दिल्ली में सरोजनी नगर में हुए विस्फोट के मामले में नौ जुलाई, 2008 को उत्तर प्रदेश आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने लखनऊ से मधुबनी जिले के रहने वाले पप्पू खान को गिरफ्तार किया था।

कुछ ही समय बाद 14 अक्टूबर, 2008 को उत्तर प्रदेश एटीएस ने मधुबनी के ही रहने वाले मोहम्मद खलील को धर दबोचा था और 17 अगस्त, 2009 को आतंकवादी संगठन एलईटी के आतंकवादी उमर मदानी (मधुबनी के बासोपटी निवासी) को दिल्ली से गिरफ्तार कर लिया गया था।

पुलिस आंकड़े के अनुसार, रामपुर में सीआरपीएफ के शिविर पर हमले के आरोप में 2010 में मधुबनी के गंधवारी से मोहम्मद शबाउद्दीन की गिरफ्तारी की गई थी। वर्ष 2010 के प्रथम महीने में ही गुप्त सूचना के आधार पर पूर्णिया रेलवे स्टेशन से अलकायदा आंतकी मिर्जा खान को गिरफ्तार किया गया, तो 17 अगस्त, 2011 को हुजी के आतंकी रियाजुल को किशनगंज से दबोचा गया था।

एक बार फिर एटीएस की टीम को उस समय सफलता मिली, जब मधुबनी से 24 नंवबर, 2011 को इंडियन मुजाहिदीन के आतंकी अहमद जीमल और मोहम्मद अजमल को गिरफ्तार किया गया। इन दोनों की तलाश कई आतंकी घटनाओं में थी।

पिछले नवंबर महीने में ही चेन्नई पुलिस की विशेष शाखा ने इंडियन मुजाहिदीन के आतंकवादी और समस्तीपुर के रहने वाले इरशाद खान को गिरफ्तार कर लिया, जबकि 12 जनवरी, 2012 को इंडियन मुजाहिदीन के नकवी और नदीम को दरभंगा से गिरफ्तार किया गया। इसी तरह छह मई, 2012 को आतंकवादी घटनाओं के आरोप में कर्नाटक पुलिस ने दरभंगा से कफील अख्तर को गिरफ्तार किया था।

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यासीन भटकल: एक आतंकवादी की कहानी

कर्नाटक के भटकल गांव में एक अभियांत्रिकी विद्यालय में जेहाद पर व्याख्यान सुनने के बाद 19 वर्षीय युवा यासीन भटकल की भावनाएं कट्टरपंथ से काफी प्रभावित हुईं। इसके चार वर्ष बाद उसने एक संगठन स्थापित किया तथा देशभर में बम विस्फोटों एवं हत्या का तांडव करने लगा। बुधवार की रात नेपाल सीमा से गिरफ्तार भटकल से पूछताछ करने के बाद पुलिस अधिकारियों ने यह जानकारी दी। 15 जनवरी, 1983 को जन्मे भटकल का असली नाम मोहम्मद जर्रार अहमद सिद्धिबापा है तथा वह कर्नाटक की राजधानी बेंगलूरू से 400 किलोमीटर दूर उत्तरा कन्नड़ा जिले के भटकल गांव का रहने वाला है।

पुलिस ने बताया कि भटकल उग्र स्वभाव का है, तथा अमेरिका में हुए आतंकी हमले 9/11 के बाद अफगानिस्तान में अमेरिकी सैन्य हस्तक्षेप तथा गुजरात में 2002 में हुए दंगों के बाद कट्टरपंथ की तरफ झुक गया। जेहाद के प्रति रूझान होने के कारण भटकल इंजीनियरिंग महाविद्यालय के पुस्तकालय में इस्लाम से संबंधित पुस्तकें एवं लेख पढ़ने जाया करता था, तथा इस्लाम में वर्णित पवित्र युद्ध के संदेश से वह विशेष तौर पर प्रभावित था।

पुलिस ने बताया कि 2002 के अक्टूबर महीने में भटकल ने मौलाना शीष का व्याख्यान सुना। संभवत: पाकिस्तान के मौलाना शीष बेहद प्रभावकारी वक्ता माने जाते हैं। मौलाना शीष के व्याख्यान से प्रभावित भटकल ने उनसे निजी तौर पर मुलाकात की तथा उसे बाद में कट्टरपंथ के विचारों का हिमायती बना दिया गया तथा भारत और उसके निवासियों के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए प्रेरित कर दिया गया। भटकल ने 2007 में छह अन्य लोगों के साथ मिलकर इंडियन मुजाहिदीन की स्थापना की।

इस समूह ने अनेक बम विस्फोट कर भारत में जमकर आतंक फैलाया। इस संगठन द्वारा किए गए आतंकी हमलों में 2010 में पुणे के जर्मन बेकरी में किया गया बम विस्फोट था, जिसमें 17 व्यक्तियों की मौत हो गई थी। जयपुर में भी एक ही समय पर नौ बम विस्फोट करने के पीछे भी इसी संगठन का हाथ माना जाता है। इस विस्फोट में 60 लोगों की मौत हो गई थी, तथा इसी वर्ष आईएम द्वारा दिल्ली में किए गए बम विस्फोट में 30 व्यक्ति मारे गए थे।

भटकल 2008 में दिल्ली लौटा तथा जामिया नगर इलाके में शादी रचाई। इसके कुछ ही सप्ताह बाद दिल्ली में बम विस्फोट हुए। आईएम को सरकार द्वारा 2010 में आतंकवादी संगठन घोषित किया गया। भारत सरकार द्वारा अतिवांछित एवं खतरनाक आतंकवादी संगठन आईएम का मुख्य कार्यकर्ता भटकल पिछले पांच वर्षो से फरार चल रहा था, तथा नेपाल, बांग्लादेश और पाकिस्तान में शरण लिए हुए था।
 
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भारतीय खेल जगत के पितामह हैं ध्यानचंद


दुनिया भर में 'हॉकी के जादूगर' के नाम से मशहूर भारत के महान व कालजयी हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद सिंह की आज 108वीं जयंती है। 29 अगस्त 1905 को जन्मे ध्यानचंद को सम्मान देने के लिए भारत में हर वर्ष इस तारीख को 'राष्ट्रीय खेल दिवस' मनाया जाता है| आज के दिन खेल की दुनिया में अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन के जरिये देश का नाम रौशन करने वाले सभी खिलाड़ियों को राष्ट्रपति भवन में भारत के राष्ट्रपति के द्वारा 'खेल पुरस्कारों' से नवाजा जाता है जिनमें राजीव गांधी खेल-रत्न पुरस्कार, अर्जुन पुरस्कार, द्रोणाचार्य पुरस्कार, ध्यानचंद पुरस्कार, तेनजिंग नोर्गे साहसिक पुरस्कार प्रमुख हैं| इस मौके पर खिलाड़ियों के साथ-साथ उनकी प्रतिभा निखारने वाले कोचों को भी सम्मानित किया जाता है।

मेजर ध्यानचंद सिंह का जीवन परिचय

पूरी दुनिया में अपनी हॉकी का लोहा मनवाने वाले मेजर ध्यानचंद सिंह का जन्म 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद में हुआ था| भले ही उनका जन्म इलाहाबाद में हुआ हो लेकिन उन्हें पहचान झांसी से ही मिली। यहां की मिट्टी में खेलकूद कर हॉकी का पाठ पढ़ने वाले ध्यानचंद ताउम्र झांसी में ही रहे। ध्यानचंद को अपने सरकारी सेवा में कार्यरत पिता के झांसी में स्थानांतरण होने के कारण यहां आना पड़ा। यहां रेल की पटरियों के किनारे वे लकड़ी के तिरछे डंडे से बाल को नचाते घूमाते थे। चौदह वर्ष की उम्र में उन्होंने पहली बार हॉकी स्टिक अपने हाथ में थामी थी|

सोलह वर्ष की आयु में वह आर्मी की पंजाब रेजिमेंट में शामिल हुए| इसके बाद भी हॉकी खेलने की लगन कम नहीं हुई। उनकी लगन देखकर सेना के सूबेदार बाले तिवारी ने ध्यानचंद को हॉकी के खेल में निपुण किया और जल्द ही उन्हें हॉकी के अच्छे खिलाड़ियों का मार्गदर्शन प्राप्त हो गया जिसके परिणामस्वरूप ध्यानचंद के कॅरियर को उचित दिशा मिलने लगी|

एक बार झांसी में सेना की दो टीमों के बीच हॉकी का मैच चल रहा था, जिसमें ध्यानचंद भी बतौर दर्शक मौजूद थे। एक टीम पांच शून्य से पिछड़ रही थी तब ध्यानचंद ने कहा कि मैं होता तो इस टीम को जिता देता। हारने वाली टीम के कोच ने रिस्क लेते हुए उन्हें अपनी टीम से खिलाया और देखते ही देखते ध्यानचंद ने गोलों की झड़ी लगा दी और जो टीम पहले हार रही थी वह जीत गई। उनके खेल को देखकर टीम के अंग्रेज कोच ने कहा कि तुम तो चांद हो ध्यानचांद। इसके बाद वे ध्यान सिंह से 'ध्यानचंद' बन गए। आर्मी से संबंधित होने के कारण ध्यानचंद को 'मेजर ध्यानचंद' के नाम से पहचान मिली|

फिर तो ध्यानचंद ब्रिटिश के अधीन भारतीय सेना के नियमित सदस्य हो गए। वर्ष 1922 से लेकर 1926 के बीच ध्यानचंद केवल पंजाब रेजिमेंट और आर्मी हॉकी टूर्नामेंट में ही खेलते थे| वह न्यूजीलैंड दौरे पर जाने वाली आर्मी हॉकी टीम का हिस्सा बने| ध्यानचंद के अदभुत कौशल और उत्कृष्ट प्रदर्शन के कारण भारतीय आर्मी हॉकी टीम एक मैच हारने और अठ्ठारह हॉकी मैचों में जीत दर्ज करने के बाद भारत लौटी| भारत वापसी के बाद ध्यानचंद को आर्मी में लांस नायक की उपाधि प्रदान की गई|

'इंडियन हॉकी फेडरेशन' के गठन के बाद इसके सदस्यों ने पूरी कोशिश की कि वर्ष 1928 में एम्सटर्डम में होने वाले ओलंपिक खेलों में अच्छे खिलाड़ियों के दल को भेजा जाए| इसीलिए वर्ष 1925 में उन्होंने एक इंटर-स्टेट हॉकी चैंपियनशिप की शुरुआत की जिसमें पांच राज्यों (संयुक्त प्रांत, बंगाल राजपुताना, पंजाब, केंद्रीय प्रांत) की टीमों ने भाग लिया| ध्यानचंद भी आर्मी हॉकी टीम की ओर से संयुक्त प्रांत की टीम में चयनित हुए|

पहली बार वह आर्मी से बाहर किसी हॉकी मैच का हिस्सा बन रहे थे| हॉकी को पहली बार 1928 में ओलंपिक में जगह दी गई और पहले ही ओलंपिक में ध्यानचंद के खेल ने भारत को विजेता बना दिया। यहीं से उनके अंतर्राष्ट्रीय कॅरियर की शुरुआत हुई| 1932 और 1936 के ओलंपिक में भी यह करिश्मा जारी रहा। उन्होंने लगभग हर मैच में सर्वाधिक गोल करने वाले खिलाड़ी का खिताब जीता| अपने बेजोड़ और अदभुत खेल के कारण उन्होंने लगातार तीन ओलंपिक खेलों, एम्सटर्डम ओलंपिक 1928, लॉस एंजेल्स 1932, बर्लिन ओलंपिक 1936 (कैप्टैंसी) में टीम को तीन स्वर्ण पदक दिलवाए|

लॉस एंजेल्स ओलंपिक खेलों के फाइनल में भारत ने अमेरिका को 24-1 से रौंद दिया था, जो आज भी एक रिकॉर्ड है। इस मैच में ध्यानचंद ने आठ गोल किए जबकि बर्लिन ओलंपिक के फाइनल में भारत ने जर्मनी को 8-1 से करारी शिकस्त दी थी। ध्यानचंद ने सबसे ज्यादा तीन गोल किए थे। हॉकी ही एक ऐसा खेल है, जिसमें भारत ने आठ स्वर्ण सहित ग्यारह पदक जीते हैं।

जर्मनी के खिलाफ भारतीय जीत के बाद जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने जर्मन आर्मी में उच्च अधिकारी बनाने की पेशकश की लेकिन ध्यानचंद ने अपनी सभ्यता और नम्र व्यवहार का परिचय देते हुए इस ओहदे के लिए मना कर दिया| हिटलर ने ही उन्हें 'हॉकी के जादूगर' के खिताब से नवाजा था। एक बार विपक्षी टीम के खिलाड़ियों को शक हुआ कि ध्यानचंद की स्टिक में चुंबक लगी है। उनकी स्टिक तोड़ी गई लेकिन आशंका गलत साबित हुई। बाद में उसी मैच में उन्होंने टूटी स्टिक से जिताऊ गोल दागे।

1936 के बाद ध्यानचंद भारतीय टीम के मैनेजर बन गए| ध्यानचंद ने ओलंपिक खेलों में 101 गोल और अंतर्राष्ट्रीय खेलों में 300 गोल दाग कर एक ऐसा रिकॉर्ड बनाया जिसे आज तक कोई तोड़ नहीं पाया है| एम्सटर्डम हॉकी ओलंपिक मैच में 28 गोल किए गए जिनमें से ग्यारह गोल अकेले ध्यानचंद ने ही किए थे| हॉकी के क्षेत्र में प्रतिष्ठित सेंटर-फॉरवर्ड खिलाड़ी ध्यानचंद ने 42 वर्ष की आयु तक हॉकी खेलने के बाद वर्ष 1948 में हॉकी से संन्यास ग्रहण कर लिया|

इस दौरान उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं अन्य मान्यता प्राप्त हॉकी प्रतियोगिताओं में एक हजार से अधिक गोल किए। उनके गोलों की संख्या देखकर क्रिकेट के भीष्म पितामह डॉन ब्रैडमैन ने कहा था कि यह तो किसी क्रिकेटर के रनों की संख्या मालूम होती है। वर्ष 1956 में मेजर ध्यानचंद सिंह को भारत के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया| कैंसर जैसी लंबी बीमारी को झेलते हुए 3 दिसंबर वर्ष 1979 में मेजर ध्यानचंद का देहांत हो गया|

इनकी मृत्यु के बाद उनके जीवन के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए भारत की राजधानी दिल्ली में उनके नाम से एक हॉकी स्टेडियम का उद्घाटन किया गया| इसके अलावा भारतीय डाक सेवा ने भी ध्यानचंद के नाम से डाक-टिकट चलाई| इस महान खिलाड़ी के सम्मान में वियना के एक स्पोर्ट्स क्लब में उनकी एक मूर्ति लगाई गई है। इसमें उनको चार हाथों में चार स्टिक पकड़े हुए दिखाया गया है। पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव के कार्यकाल में ध्यानचंद के जन्मदिवस को राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित किया गया।

मेजर ध्यानचंद ने अपनी जीवनी और महत्वपूर्ण घटना वृतांत को अपने प्रशंसकों के लिए अपनी आत्मकथा गोल में सम्मिलित किए हैं| हॉकी में कॅरियर बनाने वाले युवाओं के लिए उनका जीवन और खेल दोनों ही एक मिसाल हैं| इस दिन युवाओं में खेलों के प्रति रुझान को बढ़ाने के लिए उन्हें प्रेरित भी किया जाता है|

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सपने में दिखे गुलाब तो जानिये क्या होगा आपके साथ

आज हम आपको आपके सपनो की दुनिया में लेकर चलते हैं| आपको बता दें, यदि आप रात में सोते समय सपना देखते हैं और सोचते हैं कि इस सपने का अर्थ क्या है| आज हम आपको सपनों के बारे में कुछ संक्षिप्त जानकारी देते हैं जिससे आप अनुमान लगा सकते हैं कि आपने जो भी सपना देखा है उस सपने का अर्थ क्या है| 

हर सपना कुछ-न कुछ कहता है। कुछ सपने निराशा देते हैं, तो कुछ जीवन में खुशियों की लहर भर देते हैं। जब व्यक्ति निद्रावस्था में होता है तो उसकी पाँचों ज्ञानेंद्रियाँ उसका मन और उसकी पाँचों कर्मेंद्रियाँ क्रिया शून्य हो जाती हैं और व्यक्ति का मस्तिष्क पूरी तरह शांत रहता है। उस अवस्था में व्यक्ति को एक अलौकिक अनुभव होता है, जो उसके जीवन से संबंधित होता है। उसी अनुभव को स्वप्न कहा जाता है। 

प्राय: नींद में सपने सभी देखते हैं। कुछ सपने याद रह जाते हैं, कुछ याद नहीं रहते। जो सपने याद रहते हैं उनके आधार पर हम भविष्य के संबंध में अंदाजा लगा सकते हैं और यदि कोई अशुभ फल वाला स्वप्न हो तो उसका आवश्यक निदान किया जा सकता है।

अगर आप अपने सपने में गुलाब का फूल देख रहे हैं तो स्वप्न ज्योतिष के हिसाब से गुलाब का फूल देखना काफी शुभ माना गया है। आपको बता दें कि अगर आपके सपने में गुलाब दिखाई दे तो निकट भविष्य में ऑफिस में परेशानियां खत्म होंगी और कोई ऊंचा पद मिलने के योग बनेंगे। इसके अलावा घर-परिवार या मित्रों से कोई शुभ समाचार प्राप्त होगा। इतना नहीं व्यापार-व्यवसाय में पुराने नुकसान को पूरा करेंगे और अत्यधिक लाभ प्राप्त करेंगे। 

इसके अलावा गर्भवती पत्नी का पति सपने में गुलाब देखे तो उसे पुत्र की प्राप्ति होने के योग बनेंगे| कोई स्त्री या लड़की सपने में गुलाब देखे तो अपने पति या प्रेमी से विवाद या समस्याएं समाप्त हो जाएंगी और प्रेम प्राप्त होगा।

वहीँ अगर विवाहित स्त्री गुलाब देखे तो उसे ससुराल में मान-सम्मान मिलेगा।

सपने में दिखे सुन्दर स्त्री तो समझो...

सपनों का हमारे जीवन काफी गहरा महत्व है। हर सपना कुछ-न कुछ कहता है। कुछ सपने निराशा देते हैं, तो कुछ जीवन में खुशियों की लहर भर देते हैं। जब व्यक्ति निद्रावस्था में होता है तो उसकी पाँचों ज्ञानेंद्रियाँ उसका मन और उसकी पाँचों कर्मेंद्रियाँ अपनी-अपनी क्रियाएँ करना बंद कर देती हैं और व्यक्ति का मस्तिष्क पूरी तरह शांत रहता है। उस अवस्था में व्यक्ति को एक अनुभव होता है, जो उसके जीवन से संबंधित होता है। उसी अनुभव को स्वप्न कहा जाता है|

ज्योतिष के अनुसार सपनों में भी भविष्य में होने वाली घटनाओं के राज छिपे होते हैं। आज आपको बताते हैं किया अगर आपके सपने में सुन्दर स्त्री बार- बार दिखाई दे रही हैं तो समझ जाइए कि आपको शुभ फल प्राप्त होने वाला है| इसके अलावा ऐसे व्यक्ति को निकट भविष्य में कई सफलताएं होती हैं। उसके रुके हुए कार्य पूर्ण हो जाते हैं। 

अगर आप बीमार हैं और तब आपके सपने में कोई सुन्दर स्त्री दिखे तो समझ जाइए कि आपकी जल्द ही बीमारी दूर होने की संभावना है । परिवार में चल रहे विवाद दूर हो जाएंगे। इसके अलावा यदि कोई कार्य बिगड़ रहा हो तो वह भी सही होने की पूरी संभावना है।

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जन्माष्टमी पर 5057 साल बाद दुर्लभ संयोग

श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है| मंदिरों में भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की भव्य झांकियां सजाई गई हैं। जन्माष्टमी को लेकर बाजारों में भी चहल पहल देखी जा रही है| समूचे ब्रज मंडल में आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की धूम मची हुई है। चारों तरफ श्रद्धालुओं में अपने आराध्य के जन्मोत्सव को लेकर मस्ती का माहौल है। खासकर युवाओं में गजब का उत्साह दिख रहा है। यहाँ के मठ और मंदिरों की विशेष सजावट की गई है। घरों में भी विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया जा रहा है।

ब्रज क्षेत्र योगीराज भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति और आस्था के सरोवर में पूरी तरह सराबोर है। यूं तो श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व देश भर में उत्साह के साथ मनाया जाता है। लेकिन मथुरा नगरी में इसका अलग ही महत्व है। यह भगवान श्रीकृष्ण की जन्म एवं क्रीड़ास्थली है। इस मौके पर मथुरा में देश के विभिन्न प्रांतों के अलावा विदेशों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंच चुके हैं। 

ज्योतिष के जानकारों की माने तो इस बार 28 अगस्त को मनाई जाने वाली जन्माष्टमी तिथि राशि और नक्षत्र के अनुसार बहुत ही खास है। आज बाल गोपाल 5239 वर्ष के हो जायेंगे| जानकारों के मुताबिक 5057 साल बाद जन्म अष्टमी पर तिथि, वार, नक्षत्र व ग्रहों के अद्भुत मेल का ऐसा संयोग बना है जो श्रीकृष्ण जन्म के समय द्वापर युग में बना था। इस लिहाज से इस बार की जन्माष्टमी विशेष फलदायी होगी। इससे पहले सन 1932 और 2000 में भी बुधवार के दिन जन्म अष्टमी पड़ी थी। उस समय तिथि और नक्षत्र का मेल नहीं था लेकिन इस बार नक्षत्र, दिन, तिथि, लग्न सभी एक साथ विद्यमान रहेंगे। अष्टमी तिथि सूर्योदय से होने के कारण वैष्णव और शैव संप्रदाय इस पर्वको एक ही दिन मनाएंगे। गीता में श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास, कृष्ण पक्ष, अष्टम तिथि, बुधवार, रोहिणी नक्षत्र एवं वृषभ के चंद्रमा की मध्य रात्रि में होना बताया गया है।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी को अर्द्धरात्रि अष्टमी पड़ रही है। यह तिथि रोहिणी नक्षत्र में है। इसके अलावा वृष राशि पर चंद्रमा का दुर्लभ एवं पुण्य प्रदायक योग बन रहा है। निर्णय सिंधु में लिखा है कि आधी रात के समय रोहिणी में यदि अष्टमी तिथि मिल जाए तो उसमें भगवान श्री कृष्ण का पूजन करने से तीन जन्मों के पाप समाप्त हो जाते हैं। बुधवार और रोहिणी नक्षत्र का योग हो तो ऐसी जन्माष्टमी पर रखा गया व्रत सौ जन्मों का उद्धार करती है। रोहिणी नक्षत्र और बुधवार एक ही दिन है। इससे जयंती नामक योग बन रहा है। इस योग से हजारों जन्मों का पुण्य संचय हो जाता है।

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हाथी-घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की

यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। 
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥

गीता की इस अवधारण द्वारा भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं कि जब जब धर्म का नाश होता है तब तब मैं स्वयं इस पृथ्वी पर अवतार लेता हूँ और अधर्म का नाश करके धर्म कि स्थापना करता हूँ| अत: जब असुर एवं राक्षसी प्रवृतियों द्वारा पाप का आतंक व्याप्त होता है तब-तब भगवान विष्णु किसी न किसी रूप में अवतरित होकर इन पापों का शमन करते हैं| भगवान विष्णु इन समस्त अवतारों में से एक महत्वपूर्ण अवतार श्रीकृष्ण का रहा| भगवान स्वयं जिस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे उस पवित्र तिथि को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं| भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव का यह उत्सव हिंदुओं का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है| भगवान विष्णु के अवतार रूप में श्रीकृष्ण जी का अवतरण भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि कोरोहिणी नक्षत्र में देवकी व श्रीवसुदेव के पुत्ररूप में हुआ था| इस वर्ष जन्माष्टमी का त्यौहार 28 अगस्त 2013 को स्मार्तों का व्रत है और वैष्णव संप्रदाय के लोगों द्वारा मनाया जाएगा|

जन्माष्टमी पूजन विधि-

जन्‍माष्‍टमी के अवसर पर महिलाएं, पुरूष व बच्चे उपवास रखते हैं और श्री कृष्ण का भजन-कीर्तन करते हैं। इस पावन पर्व में कृष्ण मन्दिरों व घरों को सुन्‍दर ढंग से सजाया जाता है। उत्‍तर प्रदेश के मथुरा-वृन्‍दावन के मन्दिरों में इस अवसर पर कई तरह के रंगारंग समारोह आयोजित किए जाते हैं। कृष्‍ण की जीवन की घटनाओं की याद को ताजा करने व राधा जी के साथ उनके प्रेम का स्‍मरण करने के लिए रास लीला का भी आयोजन किया जाता है। इस त्‍यौहार को 'कृष्‍णाष्‍टमी' अथवा 'गोकुलाष्‍टमी' के नाम से भी जाना जाता है।

श्री कृष्ण का जन्म रात्रि 12 बजे हुआ था इसलिए बाल कृष्‍ण की मूर्ति को आधी रात के समय दूध, दही, धी, जल से स्‍नान कराया जाता है। इसके बाद शिशु कृष्ण का श्रृंगार कर उनकी पूजा अर्चना की जाती है और उन्हें भोग लगाया जाता है। जो लोग उपवास रखते हैं वह इसी भोग को ग्रहण कर अपना उपवास पूरा करते हैं।

जो व्यक्ति जन्माष्टमी के व्रत को करता है, वह ऐश्वर्य और मुक्ति को प्राप्त करता है। आयु, कीर्ति, यश, लाभ, पुत्र व पौत्र को प्राप्त कर इसी जन्म में सभी प्रकार के सुखों को भोग कर अंत में मोक्ष को प्राप्त करता है। जो मनुष्य भक्तिभाव से श्रीकृष्ण की कथा को सुनते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। वे उत्तम गति को प्राप्त करते हैं।

जन्माष्टमी की कथा-

एक बार इंद्र ने नारद जी से कहा है- हे ब्रह्मपुत्र, हे मुनियों में श्रेष्ठ, सभी शास्त्रों के ज्ञाता, व्रतों में उत्तम उस व्रत को बताएँ, जिस व्रत से मनुष्यों को मुक्ति, लाभ प्राप्त हो तथा प्राणियों को भोग व मोक्ष भी प्राप्त हो जाए। इंद्र की बातों को सुनकर देवर्षि ने कहा- त्रेतायुग के अन्त में और द्वापर युग के प्रारंभ समय में निन्दितकर्म को करने वाला कंस नाम का एक अत्यंत पापी दैत्य हुआ। उस दुष्ट व नीच कर्मी दुराचारी कंस की देवकी नाम की एक सुंदर बहन थी। देवकी के गर्भ से उत्पन्न आठवाँ पुत्र कंस का वध करेगा।

नारदजी की बातें सुनकर इंद्र ने कहा- हे महामते! उस दुराचारी कंस की कथा का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए। क्या यह संभव है कि देवकी के गर्भ से उत्पन्न आठवाँ पुत्र अपने मामा कंस की हत्या करेगा। इंद्र की सन्देहभरी बातों को सुनकर नारदजी ने कहा-हे इंद्र! एक समय की बात है। उस दुष्ट कंस ने एक ज्योतिषी से पूछा कि ब्राह्मणों में श्रेष्ठ ज्योतिर्विद! मेरी मृत्यु किस प्रकार और किसके द्वारा होगी। ज्योतिषी बोले-हे दानवों में श्रेष्ठ कंस! वसुदेव की धर्मपत्नी देवकी जो वाक्‌पटु है और आपकी बहन भी है। उसी के गर्भ से उत्पन्न उसका आठवां पुत्र जो कि शत्रुओं को भी पराजित कर इस संसार में 'कृष्ण' के नाम से विख्यात होगा, वही एक समय सूर्योदयकाल में आपका वध करेगा।

ज्योतिषी की बातें सुनकर कंस ने कहा- हे दैवज, बुद्धिमानों में अग्रण्य अब आप यह बताएं कि देवकी का आठवां पुत्र किस मास में किस दिन मेरा वध करेगा। ज्योतिषी बोले- हे महाराज! माघ मास की शुक्ल पक्ष की तिथि को सोलह कलाओं से पूर्ण श्रीकृष्ण से आपका युद्ध होगा। उसी युद्ध में वे आपका वध करेंगे। इसलिए हे महाराज! आप अपनी रक्षा यत्नपूर्वक करें। इतना बताने के पश्चात नारदजी ने इंद्र से कहा- ज्योतिषी द्वारा बताए गए समय पर हीकंस की मृत्युकृष्ण के हाथ निःसंदेह होगी। तब इंद्र ने कहा- हे मुनि! उस दुराचारी कंस की कथा का वर्णन कीजिए, और बताइए कि कृष्ण का जन्म कैसे होगा तथा कंस की मृत्यु कृष्ण द्वारा किस प्रकार होगी।

इंद्र की बातों को सुनकर नारदजी ने पुनः कहना प्रारंभ किया- उस दुराचारी कंस ने अपने एक द्वारपाल से कहा- मेरी इस प्राणों से प्रिय बहन की पूर्ण सुरक्षा करना। द्वारपाल ने कहा- ऐसा ही होगा। कंस के जाने के पश्चात उसकी छोटी बहन दुःखित होते हुए जल लेने के बहाने घड़ा लेकर तालाब पर गई। उस तालाब के किनारे एक घनघोर वृक्ष के नीचे बैठकर देवकी रोने लगी। उसी समय एक सुंदर स्त्री जिसका नाम यशोदा था, उसने आकर देवकी ने उनके विलाप का कारण पूछा| तब दुःखित देवकी ने यशोदा से कहा- हे बहन! नीच कर्मों में आसक्त दुराचारी मेरा ज्येष्ठ भ्राता कंस है। उस दुष्ट भ्राता ने मेरे कई पुत्रों का वध कर दिया। इस समय मेरे गर्भ में आठवाँ पुत्र है। वह इसका भी वध कर डालेगा। इस बात में किसी प्रकार का संशय या संदेह नहीं है, क्योंकि मेरे ज्येष्ठ भ्राता को यह भय है कि मेरे अष्टम पुत्र से उसकी मृत्यु अवश्य होगी।

देवकी की बातें सुनकर यशोदा ने कहा- हे बहन! विलाप मत करो। मैं भी गर्भवती हूँ। यदि मुझे कन्या हुई तो तुम अपने पुत्र के बदले उस कन्या को ले लेना। इस प्रकार तुम्हारा पुत्र कंस के हाथों मारा नहीं जाएगा।

तदनन्तर कंस ने अपने द्वारपाल से पूछा- देवकी कहाँ है? इस समय वह दिखाई नहीं दे रही है। तब द्वारपाल ने कंस से नम्रवाणी में कहा- हे महाराज! आपकी बहन जल लेने तालाब पर गई हुई हैं। यह सुनते ही कंस क्रोधित हो उठा और उसने द्वारपाल को उसी स्थान पर जाने को कहा जहां वह गई हुई है। द्वारपाल की दृष्टि तालाब के पास देवकी पर पड़ी। तब उसने कहा कि आप किस कारण से यहां आई हैं। उसकी बातें सुनकर देवकी ने कहा कि मेरे गृह में जल नहीं था, जिसे लेने मैं जलाशय पर आई हूँ। इसके पश्चात देवकी अपने गृह की ओर चली गई।

कंस ने पुनः द्वारपाल से कहा कि इस गृह में मेरी बहन की तुम पूर्णतः रक्षा करो। अब कंस को इतना भय लगने लगा कि गृह के भीतर दरवाजों में विशाल ताले बंद करवा दिए और दरवाजे के बाहर दैत्यों और राक्षसों को पहरेदारी के लिए नियुक्त कर दिया। कंस हर प्रकार से अपने प्राणों को बचाने के प्रयास कर रहा था। एक समय सिंह राशि के सूर्य में आकाश मंडल में जलाधारी मेघों ने अपना प्रभुत्व स्थापित किया। भादौ मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को घनघोर अर्द्धरात्रि थी। उस समय चंद्रमा भी वृष राशि में था, रोहिणी नक्षत्र बुधवार के दिन सौभाग्ययोग से संयुक्त चंद्रमा के आधी रात में उदय होने पर आधी रात के उत्तर एक घड़ी जब हो जाए तो श्रुति-स्मृति पुराणोक्त फल निःसंदेह प्राप्त होता है।

इस प्रकार बताते हुए नारदजी ने इंद्र से कहा- ऐसे विजय नामक शुभ मुहूर्त में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ और श्रीकृष्ण के प्रभाव से ही उसी क्षण बन्दीगृह के दरवाजे स्वयं खुल गए। द्वार पर पहरा देने वाले पहरेदार राक्षस सभी मूर्च्छित हो गए। देवकी ने उसी क्षण अपने पति वसुदेव से कहा- हे स्वामी! आप निद्रा का त्याग करें और मेरे इस अष्टम पुत्र को गोकुल में ले जाएँ, वहाँ इस पुत्र को नंद गोप की धर्मपत्नी यशोदा को दे दें। उस समय यमुनाजी पूर्णरूपसे बाढ़ग्रस्त थीं, किन्तु जब वसुदेवजी बालक कृष्ण को सूप में लेकर यमुनाजी को पार करने के लिए उतरे उसी क्षण बालक के चरणों का स्पर्श होते ही यमुनाजी अपने पूर्व स्थिर रूप में आ गईं। किसी प्रकार वसुदेवजी गोकुल पहुँचे और नंद के गृह में प्रवेश कर उन्होंने अपना पुत्र तत्काल उन्हें दे दिया और उसके बदले में उनकी कन्या ले ली। वे तत्क्षण वहां से वापस आकर कंस के बंदी गृह में पहुँच गए।

प्रातःकाल जब सभी राक्षस पहरेदार निद्रा से जागे तो कंस ने द्वारपाल से पूछा कि अब देवकी के गर्भ से क्या हुआ? इस बात का पता लगाकर मुझे बताओ। द्वारपालों ने महाराज की आज्ञा को मानते हुए कारागार में जाकर देखा तो वहाँ देवकी की गोद में एक कन्या थी। जिसे देखकर द्वारपालों ने कंस को सूचित किया, किन्तु कंस को तो उस कन्या से भय होने लगा। अतः वह स्वयं कारागार में गया और उसने देवकी की गोद से कन्या को झपट लिया और उसे एक पत्थर की चट्टान पर पटक दिया किन्तु वह कन्या विष्णु की माया से आकाश की ओर चली गई और अंतरिक्ष में जाकर विद्युत के रूप में परिणित हो गई।

उसने कंस से कहा कि हे दुष्ट! तुझे मारने वाला गोकुल में नंद के गृह में उत्पन्न हो चुका है और उसी से तेरी मृत्यु सुनिश्चित है। मेरा नाम तो वैष्णवी है, मैं संसार के कर्ता भगवान विष्णु की माया से उत्पन्न हुई हूँ, इतना कहकर वह स्वर्ग की ओर चली गई। उस आकाशवाणी को सुनकर कंस क्रोधित हो उठा। उसने नंदजी के गृह में पूतना राक्षसी को कृष्ण का वध करने के लिए भेजा किन्तु जब वह राक्षसी कृष्ण को स्तनपान कराने लगी तो कृष्ण ने उसके स्तन से उसके प्राणों को खींच लिया और वह राक्षसी कृष्ण-कृष्ण कहते हुए मृत्यु को प्राप्त हुई।

जब कंस को पूतना की मृत्यु का समाचार प्राप्त हुआ तो उसने कृष्ण का वध करने के लिए क्रमशः केशी नामक दैत्य को अश्व के रूप में उसके पश्चात अरिष्ठ नामक दैत्य को बैल के रूप में भेजा, किन्तु ये दोनों भी कृष्ण के हाथों मृत्यु को प्राप्त हुए। इसके पश्चात कंस ने काल्याख्य नामक दैत्य को कौवे के रूप में भेजा, किन्तु वह भी कृष्ण के हाथों मारा गया। अपने बलवान राक्षसों की मृत्यु के आघात से कंस अत्यधिक भयभीत हो गया। उसने द्वारपालों को आज्ञा दी कि नंद को तत्काल मेरे समक्ष उपस्थित करो। द्वारपाल नंद को लेकर जब उपस्थित हुए तब कंस ने नंदजी से कहा कि यदि तुम्हें अपने प्राणों को बचाना है तो पारिजात के पुष्प ले लाओ। यदि तुम नहीं ला पाए तो तुम्हारा वध निश्चित है।

कंस की बातों को सुनकर नंद ने 'ऐसा ही होगा' कहा और अपने गृह की ओर चले गए। घर आकर उन्होंने संपूर्ण वृत्तांत अपनी पत्नी यशोदा को सुनाया, जिसे श्रीकृष्ण भी सुन रहे थे। एक दिन श्रीकृष्ण अपने मित्रों के साथ यमुना नदी के किनारे गेंद खेल रहे थे और अचानक स्वयं ने ही गेंद को यमुना में फेंक दिया। यमुना में गेंद फेंकने का मुख्य उद्देश्य यही था कि वे किसी प्रकार पारिजात पुष्पों को ले आएँ। अतः वे कदम्ब के वृक्ष पर चढ़कर यमुना में कूद पड़े।

कृष्ण के यमुना में कूदने का समाचार श्रीधर नामक गोपाल ने यशोदा को सुनाया। यह सुनकर यशोदा भागती हुई यमुना नदी के किनारे आ पहुँचीं और उसने यमुना नदी की प्रार्थना करते हुए कहा- हे यमुना! यदि मैं बालक को देखूँगी तो भाद्रपद मास की रोहिणी युक्त अष्टमी का व्रत अवश्य करूंगी क्योंकि दया, दान, सज्जन प्राणी, ब्राह्मण कुल में जन्म, रोहिणियुक्त अष्टमी, गंगाजल, एकादशी, गया श्राद्ध और रोहिणी व्रत ये सभी दुर्लभ हैं।

हजारों अश्वमेध यज्ञ, सहस्रों राजसूय यज्ञ, दान तीर्थ और व्रत करने से जो फल प्राप्त होता है, वह सब कृष्णाष्टमी के व्रत को करने से प्राप्त हो जाता है। यह बात नारद ऋषि ने इंद्र से कही। इंद्र ने कहा- हे मुनियों में श्रेष्ठ नारद! यमुना नदी में कूदने के बाद उस बालरूपी कृष्ण ने पाताल में जाकर क्या किया? यह संपूर्ण वृत्तांत भी बताएँ। नारद ने कहा- हे इंद्र! पाताल में उस बालक से नागराज की पत्नी ने कहा कि तुम यहाँ क्या कर रहे हो, कहाँ से आए हो और यहाँ आने का क्या प्रयोजन है?

नागपत्नी बोलीं- हे कृष्ण! क्या तूने द्यूतक्रीड़ा की है, जिसमें अपना समस्त धन हार गया है। यदि यह बात ठीक है तो कंकड़, मुकुट और मणियों का हार लेकर अपने गृह में चले जाओ क्योंकि इस समय मेरे स्वामी शयन कर रहे हैं। यदि वे उठ गए तो वे तुम्हारा भक्षण कर जाएँगे। नागपत्नी की बातें सुनकर कृष्ण ने कहा- 'हे कान्ते! मैं किस प्रयोजन से यहाँ आया हूँ, वह वृत्तांत मैं तुम्हें बताता हूँ। समझ लो मैं कालियानाग के मस्तक को कंस के साथ द्यूत में हार चुका हूं और वही लेने मैं यहाँ आया हूँ। बालक कृष्ण की इस बात को सुनकर नागपत्नी अत्यंत क्रोधित हो उठीं और अपने सोए हुए पति को उठाते हुए उसने कहा- हे स्वामी! आपके घर यह शत्रु आया है। अतः आप इसका हनन कीजिए।

अपनी स्वामिनी की बातों को सुनकर कालियानाग निन्द्रावस्था से जाग पड़ा और बालक कृष्ण से युद्ध करने लगा। इस युद्ध में कृष्ण को मूर्च्छा आ गई, उसी मूर्छा को दूर करने के लिए उन्होंने गरुड़ का स्मरण किया। स्मरण होते ही गरुड़ वहाँ आ गए। श्रीकृष्ण अब गरुड़ पर चढ़कर कालियानाग से युद्ध करने लगे और उन्होंने कालियनाग को युद्ध में पराजित कर दिया।

अब कालियानाग ने भलीभांति जान लिया था कि मैं जिनसे युद्ध कर रहा हूँ, वे भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ही हैं। अतः उन्होंने कृष्ण के चरणों में साष्टांग प्रणाम किया और पारिजात से उत्पन्न बहुत से पुष्पों को मुकुट में रखकर कृष्ण को भेंट किया। जब कृष्ण चलने को हुए तब कालियानाग की पत्नी ने कहा हे स्वामी! मैं कृष्ण को नहीं जान पाई। हे जनार्दन मंत्र रहित, क्रिया रहित, भक्तिभाव रहित मेरी रक्षा कीजिए। हे प्रभु! मेरे स्वामी मुझे वापस दे दें। तब श्रीकृष्ण ने कहा- हे सर्पिणी! दैत्यों में जो सबसे बलवान है, उस कंस के सामने मैं तेरे पति को ले जाकर छोड़ दूँगा अन्यथा तुम अपने गृह को चली जाओ। अब श्रीकृष्ण कालियानाग के फन पर नृत्य करते हुए यमुना के ऊपर आ गए।

तदनन्तर कालिया की फुंकार से तीनों लोक कम्पायमान हो गए। अब कृष्ण कंस की मथुरा नगरी को चल दिए। वहां कमलपुष्पों को देखकर यमुनाके मध्य जलाशय में वह कालिया सर्प भी चला गया। इधर कंस भी विस्मित हो गया तथा कृष्ण प्रसन्नचित्त होकर गोकुल लौट आए। उनके गोकुल आने पर उनकी माता यशोदा ने विभिन्न प्रकार के उत्सव किए। अब इंद्र ने नारदजी से पूछा- हे महामुने! संसार के प्राणी बालक श्रीकृष्ण के आने पर अत्यधिक आनंदित हुए। आखिर श्रीकृष्ण ने क्या-क्या चरित्र किया? वह सभी आप मुझे बताने की कृपा करें। नारद ने इंद्र से कहा- मन को हरने वाला मथुरा नगर यमुना नदी के दक्षिण भाग में स्थित है। वहां कंस का महाबलशायी भाई चाणूर रहता था। उस चाणूर से श्रीकृष्ण के मल्लयुद्ध की घोषणा की गई। हे इंद्र! कृष्ण एवं चाणूर का मल्लयुद्ध अत्यंत आश्चर्यजनक था। चाणूर की अपेक्षा कृष्ण बालरूप में थे। भेरी शंख और मृदंग के शब्दों के साथ कंस और केशी इस युद्ध को मथुरा की जनसभा के मध्य में देख रहे थे। 

श्रीकृष्ण ने अपने पैरों को चाणूर के गले में फँसाकर उसका वध कर दिया। चाणूर की मृत्यु के पश्चात उनका मल्लयुद्ध केशी के साथ हुआ। अंत में केशी भी युद्ध में कृष्ण के द्वारा मारा गया। केशी के मृत्युपरांत मल्लयुद्ध देख रहे सभी प्राणी श्रीकृष्ण की जय-जयकार करने लगे। बालक कृष्ण द्वारा चाणूर और केशी का वध होना कंस के लिए अत्यंत हृदय विदारक था। अतः उसने सैनिकों को बुलाकर उन्हें आज्ञा दी कि तुम सभी अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित होकर कृष्ण से युद्ध करो।

हे इंद्र! उसी क्षण श्रीकृष्ण ने गरुड़, बलराम तथा सुदर्शन चक्र का ध्यान किया, सुदर्शन चक्र को लेकर गरुड़ की पीठ पर बैठकर न जाने कितने ही राक्षसों और दैत्यों का वध कर दिया, कितनों के शरीर अंग-भंग कर दिए। इस युद्ध में श्रीकृष्ण और बलदेव ने असंख्य दैत्यों का वध किया। बलरामजी ने अपने आयुध शस्त्र हल से और कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को विशाल दैत्यों के समूह का सर्वनाश किया।

जब अन्त में केवल दुराचारी कंस ही बच गया तो कृष्ण ने कहा- हे दुष्ट, अधर्मी, दुराचारी अब मैं इस महायुद्ध स्थल पर तुझसे युद्ध कर तथा तेरा वध कर इस संसार को तुझसे मुक्त कराऊँगा। यह कहते हुए श्रीकृष्ण ने उसके केशों को पकड़ लिया और कंस को घुमाकर पृथ्वी पर पटक दिया, जिससे वह मृत्यु को प्राप्त हुआ। कंस के मरने पर देवताओं ने शंखघोष व पुष्पवृष्टि की। वहां उपस्थित समुदाय श्रीकृष्ण की जय-जयकार कर रहा था। कंस की मृत्यु पर नंद, देवकी, वसुदेव, यशोदा और इस संसार के सभी प्राणियों ने हर्ष पर्व मनाया।

गोविंदा आला रे...

पूरे उत्‍तर भारत में इस त्‍यौहार के उत्‍सव के दौरान भजन गाए जाते हैं नृत्‍य किया जाता है। मथुरा व महाराष्‍ट्र में जन्‍माष्‍टमी के दौरान मिट्टी की मटकियों जिन्हें लोगों की पहुंच से दूर उचाई पर बांधा जाता है, इनसे दही व मक्‍खन चुराने की कोशिश की जाती है। इन वस्‍तुओं से भरा एक मटका अथवा पात्र जमीन से ऊपर लटका दिया जाता है, तथा युवक व बालक इस तक पहुंचने के लिए मानव पिरामिड बनाते हैं और अन्‍तत: इसे फोड़ते हैं। इसके पीछे आशय यह है कि लोगों का मानना है कि भगवान श्री कृष्ण इसे ही अपने मित्रों के साथ दही और मक्खन की मटकियों को फोड़ते थे और दही, मक्खन चुरा कर खाते थे। यह उत्सव करीब सप्ताह तक चलता है।

सपने में खुद को ऐसा देखे तो समझिये आपके साथ...

हर सपना कुछ-न कुछ कहता है। कुछ सपने निराशा देते हैं, तो कुछ जीवन में खुशियों की लहर भर देते हैं। जब व्यक्ति निद्रावस्था में होता है तो उसकी पाँचों ज्ञानेंद्रियाँ उसका मन और उसकी पाँचों कर्मेंद्रियाँ अपनी-अपनी क्रियाएँ करना बंद कर देती हैं और व्यक्ति का मस्तिष्क पूरी तरह शांत रहता है। उस अवस्था में व्यक्ति को एक अनुभव होता है, जो उसके जीवन से संबंधित होता है। उसी अनुभव को स्वप्न कहा जाता है|

आज हम आपको स्वप्न ज्योतिष से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियाँ देने जा रहे हैं जिसके द्वारा आप स्वयं अपने भविष्य के बारे में जान सकते हैं| 

अगर लड़का अपने सपने में खुद को सपने में गंजा देखते हैं तो जल्द ही आपकी तमाम परेशानियां समाप्त हो जाएंगी। बिगड़े कार्य बनते जाएंगे। यदि आप कोई परीक्षा या साक्षात्कार देने जाने वाले हैं तो उसे सफलता के पूर्ण योग बनेंगे। उम्मीद से अधिक धन प्राप्त होगा। साथ ही समाज में मान-सम्मान की प्राप्ति होगी।

वहीँ अगर कोई लड़की यही सपना देखती है तो उसको कई अशुभ फल झेलने पड़ सकते हैं। लड़कियों के लिए ऐसा सपना बुरे समय की ओर संकेत करता है। ऐसी परिस्थिति में लड़कियों को मंदिर जाकर पूजन करना चाहिए। शिवलिंग पर जल, अक्षत, कुमकुम आदि चढ़ाकर सुख और समृद्धि और बुरे समय को दूर रखने की कामना करना चाहिए। 

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