ऐश्वर्या के 40वें जन्मदिवस पर विशेष.......

बॉलीवुड की बेहद दिलकश, खूबसूरत ऐक्ट्रेस और बॉलीवुड के 'शहंशाह' अमिताभ बच्चन की बहु ऐश्वर्या राय बच्चन आज अपना 40वां जन्मदिन मना रही हैं| 1 नवंबर 1973 को मैंगलोर में जन्मी ऐश्वर्या का नाम हिन्दी फिल्म जगत की उन चुनिंदा अभिनेत्रियों में शामिल है, जिन्होंने फिल्मों में अभिनेत्रियों को महज शो पीस के तौर पर इस्तेमाल किये जाने की परंपरागत सोच को बदला है| ऐश ने बॉलीवुड को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी विशेष पहचान दिलायी है|

ऐश्वर्या के जन्म के कुछ सालों बाद उनका परिवार मुंबई आ गया और यही उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की| बचपन में ऐश्वर्या एक वास्तुकार बनना चाहती थी लेकिन वक़्त के साथ उनका रूझान मॉडलिंग इंडस्ट्री की ओर हो गया| ऐश्वर्या के मॉडलिंग का सफ़र नौवीं कक्षा से ही शुरू हो गया | पहली बार कैमलिन कंपनी की तरफ से उन्हें मॉडलिंग का प्रस्ताव मिला|

इस प्रस्ताव के बाद तो जैसे ऐश्वर्या का भाग्य तय हो गया और इसके बाद वे कोक, फूजी और पेप्सी के विज्ञापन में भी नज़र आयीं| इस दौरान उन्होंने अपनी पढ़ाई को जारी रखा| ऐश्वर्या राय ने वर्ष 1994 में मिस इंडिया प्रतियोगिता में सुष्मिता सेन के बाद दूसरा स्थान जीता| उसी साल ऐश्वर्या ने 'मिस वर्ल्ड खिताब' पर भी कब्जा जमा लिया|

ऐश्वर्या राय ने साल 1997 में विवादास्पद तमिल फिल्म 'इरूअर' से अपने सिने कैरियर की शुरूआत की| इस फिल्म में वह दक्षिण भारत के जाने माने अभिनेता मोहन लाल के साथ नज़र आईं| विवादों में घिरे होने की वजह से फिल्म को व्यावसायिक सफलता तो नहीं मिली लेकिन ऐश्वर्या राय ने अपने दमदार अभिनय से समीक्षकों का दिल जीत लिया|

हिन्दी में उनकी पहली फिल्म 'और प्यार हो गया' थी| इसके बाद उन्होंने ढेर सारी हिंदी फिल्मों में काम किया लेकिन ऐश्वर्या को निर्देशक सुभाष घई की फिल्म ‘ताल’ से विशेष पहचान मिली। हिन्दी फिल्मों में संजय लीला भंसाली द्वारा बनायी गयी फिल्म 'हम दिल दे चुके सनम' से उन्होंने कामयाबी का जो स्वाद चखा वो आज तक बरकरार है। ऐश्वर्या और सलमान की यह जोड़ी काफी लोकप्रिय रही।

भारतीय सिनेमा की सबसे खूबसूरत अदाकाराओं में शुमार ऐश्वर्या का नाम कभी सलमान खान से भी जुड़ा था। कई बरसों तक इन दोनों का प्यार परवान चढ़ता रहा लेकिन फिर रास्ते बदल गए। ऐश ने सलमान से जुड़ीं पुरानी यादों को भुलाने के लिए अभिनेता विवेक ओबेराय का सहारा लेना चाहा, लेकिन वह भी उन्हें रास नहीं आया। इसके बाद इस विश्व-सुंदरी का दिल अभिषेक बच्चन पर आया और वे दोनों शादी के बंधन में बंधकर एक हो गए।

साल 2000 ऐश्वर्या के लिए खुशियों का खजाना लेकर आया और इस साल सिनेमाघरों में आयी उनकी उनकी फिल्म 'जोश' को जबरदस्त सफलता हासिल हुई| इस फिल्म में वह बॉलीवुड के 'बादशाह' शाहरुख़ खान की बहन की भूमिका में नज़र आईं| ऐश्वर्या की 'हमारा दिल आपके पास है' और 'मोहब्बते' जैसी फिल्मों ने भी दर्शकों के दिल में एक ख़ास जगह बना ली और टिकट खिडक़ी पर शानदार सफलता हासिल की|

साल 2002 में शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के मशहूर उपन्यास 'देवदास' पर बनी फिल्म ऐश्वर्या जीवन की यादगार फिल्म साबित हुई| संजय लीला भंसाली की इसी नाम से बनी फिल्म में पारो के अपने किरदार से उन्होंने दर्शको का दिल जीत लिया| इस फिल्म को कांस फिल्म समारोह में विशेष स्क्रीनिंग के दौरान दिखाया गया| साथ ही इस फिल्म के लिये वह दूसरी बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित हुईं|

साल 2009 में फिल्म क्षेत्र में ऐश्वर्या के सराहनीय योगदान को देखते हुये उन्हें 'पदमश्री पुरस्कार' से सम्मानित किया गया| इसके अलावा उन्होंने कुछ बांग्ला फिल्में की हैं। सन 2004 में ही पहली बार उन्होंने गुरिंदर चड्ढा की एक अंग्रेजी फिल्म 'ब्राइड ऐंड प्रेज्यूडिस' में भी काम किया। इसके बाद उन्होंने ‘प्रोवोक्ड’,‘द मिस्ट्रेस ऑफ स्पाइसेस’ और ‘पिंक पैथर-2’ जैसी अंग्रेजी फिल्मों में भी काम कर विश्व-पटल पर अपनी खूबसूरती और अभिनय की धाक जमा दी। टाइम मैगजीन ने वर्ष 2004 में उन्हें दुनिया की सबसे प्रभावशाली महिलाओं में भी शुमार किया है।

वक्त के साथ ऐश्वर्य की पहचान और नाम भी बदल गया है। 20 अप्रैल 2007 को ऐश्वर्या बॉलीवुड के महानायक अभिताभ बच्चन के बेटे और अभिनेता अभिषेक बच्चन साथ विवाह के बंधन में बंध गई| एक शानदार और दमदार अभिनेत्री के रूप में स्थापित ऐश आज प्रतिष्ठित बच्चन परिवार की बहू बनकर कुछ और खास हो गई हैं।

शादी से ठीक पहले उन्होंने अभिषेक के साथ मणिरत्नम की फिल्म ‘गुरु’ में काम किया था और हाल ही में दोनों मणि की ही फिल्‍म ‘रावण’ में नजर आ चुके हैं। भारत में अभिनेत्रियों की शादी हो जाने के बाद उनका फिल्मी करियर एक तरीके से खत्म माना जाता है लेकिन ऐश्वर्य के साथ फिल्म बनाने वाले निर्देशकों का कहना है कि उनका जादू अभी कायम रहेगा। शादी के बाद भी ऐश्वर्या ने काम करना जारी रखा और कई बेहतरीन फिल्मों में अभिनय किया|

ऐश की पिछले साल प्रदर्शित हुईं फिल्‍मों में ‘गुज़ारिश’, ‘एक्शन रिप्‍ले’ ‘रावन’ और ‘रोबोट’ शामिल हैं, जिनमें ‘रोबोट’ सबसे ज्‍यादा सफल फिल्म रही। हालांकि इसका तमिल संस्‍करण ‘एंधिरन’ ज्यादा हिट रहा। ऐश्‍वर्य की आगामी फिल्‍म है ‘लेडीज एंड जैंटलमेंट’ जो साल 2012 में प्रदर्शित होगी।

सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्म फेयर पुरस्कार, इंटरनेशनल इंडियन फिल्म एकाडमी अवॉर्ड, स्टार स्क्रीन अवॉर्ड्स, जी सिने अवॉर्ड्स और स्टारडस्ट अवॉर्ड्स जीतनेवालीं ऐश्वर्य को महानायक अमिताभ बच्‍चन और सासू मां जया बच्‍चन का स्नेह मिला है| बीते 16 नवंबर 2011 को ऐश ने आराध्या को जन्म दिया। दुनिया के सबसे खूबसूरत महिलाओं में शुमार ऐश्वर्या राय भारत की सबसे धनी महिलाओं में शामिल हैं। दुनिया भर में उनके चाहने वालों ने ऐश्वर्या को समर्पित लगभग 17,000 इंटरनेट साइट बना रखे हैं| मिस वर्ल्‍ड रह चुकीं ऐश्‍वर्या के दुनियाभर में आज भी करोड़ों फैंस हैं जो बॉलीवुड दिवा को उनके जन्मदिन पर मुबारकबाद दे रहे हैं। 'हुस्न की ये मल्लिका' आज भी दिलों पर राज कर रही है|

हमेशा याद आएंगे केपी सक्सेना

बॉलीवुड की चर्चित फिल्मों 'जोधा अकबर', 'स्वदेश' और 'लगान' की पटकथा लिखने वाले और पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात साहित्यकर केपी सक्सेना को लोकप्रिय साहित्यकार और व्यंग्यकार के तौर पर उनके योगदान के लिए हमेशा याद किया जाएगा। सक्सेना ही वह शख्स थे, जिन्होंने पहली बार कवि सम्मेलनों में गद्य विधा को अलग पहचान दिलाई।

मशहूर व्यंग्यकार केपी सक्सेना को लखनऊ की सरजमीं पर रहते हुए देशभर में शोहरत मिली। शुरुआती दौर में उन्हें प्रकाशकों ने हालांकि स्वीकार नहीं किया, लेकिन बाद में अपने धारदार लेखन के बल पर उन्होंने जो पहचान बनाई, वही उन्हें फिल्म फेयर तक ले गई।

लखनवी संस्कृति के वह ऐसे पुरोधा थे, जो फिल्मी नगरी के लिए सबसे विश्वस्त सूत्र बन गए। पद्मश्री सम्मान से अलंकृत केपी की यादें लखनऊ की गलियों से जुड़ी हैं। यहां के गोलागंज के भगवती पान भंडार पर उनका मनपसंद पान मिलता था। साथ ही बबन कश्मीरी की पतंग की दुकान पर भी वह रोज जाया करते थे।

प्रखर समालोचक वीरेंद्र यादव ने कहा, "यह सही है कि केपी जी का जाना एक शून्य पैदा कर गया। वह लोकप्रिय साहित्य से जुड़े थे। इसलिए उनकी अपनी एक अलग पहचान थी। उनकी कमी वाकई प्रशंसकों को खलेगी।" यादव कहते हैं कि यह भी सच है कि केपी 'गंभीर साहित्य' से कोसों दूर थे। यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि वह श्रीलाल शुक्ल और हरिशंकर परसाई की श्रेणी के साहित्यकार तो नहीं थे लेकिन लोकप्रिय साहित्य में जो मुकाम उन्होंने हासिल किया वह शायद ही कोई कर पाएगा। हमने एक प्रमुख लोकप्रिय व्यंग्यकार को खो दिया है।

उन्होंने कहा, "कवि सम्मेलनों में अपनी गद्य शैली के माध्यम से ही जिस तरह उन्होंने लोगों के बीच अपनी पहचान बनाई वह अद्भुत थी। उनसे पहले कवि सम्मेलनों में गद्य विधा को उतनी पहचान नहीं मिली थी।"

साहित्यकार शैलेंद्र सागर ने कहा, "वह एक बेहद लोकप्रिय व्यंग्यकार थे। उनका जाना वाकई में दुखद है। उन्होंने जिस तरह से फिल्मों के माध्यम से अपनी प्रतिभा की पहचान कराई, वह लंबे समय तक लोगों को याद रहेगी।"

उल्लेखनीय है कि बरेली में 1934 में जन्मे कालिका प्रसाद सक्सेना, अपने प्रशंसकों के बीच केपी नाम से लोकप्रिय हुए। वह पचास के दशक में लखनऊ आए थे। सत्तर के दशक में वजीरगंज थाने के पीछे और अस्सी के दशक में रवींद्रपल्ली के पास नारायण नगर में रहे।

केपी ने आकाशवाणी, दूरदर्शन और रंगमंच के लिए 'बाप रे बाप' और 'गज फुट इंच' नाटक लिखने के अलावा दूरदर्शन के लिए धारावाहिक 'बीवी नातियों वाली' भी लिखा जो काफी प्रशंसनीय रहा। केपी के लिखे इस सीरियल को देश का पहला हिंदी का सोप ओपेरा होने का गौरव हासिल है।

यह सीरियल इतना लोकप्रिय हुआ कि पब्लिक डिमांड पर इसके आगे के एपीसोड भी उन्हें लिखने पड़े। रेलवे की नौकरी के दौरान ही उन्होंने विभागीय नाट्य प्रतियोगिताओं में धाक जमाना शुरू कर दिया था। 

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झालर, मोमबत्ती के आगे दीया 'लाचार'

तीन नवंबर को दीयों का पर्व दीपावली धूमधाम से मनाने की तैयारी है। दीपोत्सव में घर की देहरी और छत के छज्जों पर मिट्टी के बने दीये जलाने की परंपरा रही है, लेकिन आधुनिकता पसंद लोग दीये के स्थान पर झालर लाइट और रंग-बिरंगी मोमबत्तियों का उपयोग करने लगे हैं, जिससे कुम्हारों का पुश्तैनी धंधा चौपट हो रहा है।

आधुनिक ढंग से दिवाली मनाए जाने के चलते दीया और ग्वालिन बनाने वाले कुम्हारों का परंपरागत व्यवसाय पहले की अपेक्षा काफी मंदा हो चला है। फिर भी कुम्हार लक्ष्मी पूजा के लिए मां लक्ष्मी की मूर्ति, ग्वालिन दीया आदि बनाने में लगे हुए हैं।

बुजुर्ग बताते हैं कि पहले दीपावली के मौके पर नगर सहित आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में घर-घर दीप दान करने की परंपरा से कुम्हारों का हजारों रुपये का व्यवसाय होता था, लेकिन अब बाजार में उपलब्ध चीनी सामान कुम्हारों के परंपरागत व्यवसाय में सबसे बड़ा रोड़ा साबित हो रहा है। उनके बनाए मिट्टी के दीयों की मांग कम हो गई है।

बुजुर्ग दशरथ लाल मिश्रा बताते हैं कि प्राचीन परंपराओं के अनुसार दीपोत्सव के अवसर पर ग्रामीण क्षेत्रों में लोग दीया लेकर एक दूसरे के घर दीपदान करने जाते थे। इसलिए कुम्हार द्वारा बनाए मिट्टी के दीये खरीदे जाते थे, साथ ही माता लक्ष्मी की मूर्ति, ग्वालिन कुरसा आदि मिट्टी से निर्मित पूजन साम्रगी भी खरीदी जाती थी। इससे कुम्हारों का व्यवसाय भी अच्छा चलता था, पर अब इनका स्थान आधुनिक झालर और मोमबत्तियों ने ले लिया है।

सिमगा के कुंभकार संतराम, दुकालू और शिवप्रताप ने बताया कि वे पिछले कई सालों से मूर्ति व दीया आदि बना रहे हैं। उन्होंने बताया कि वे राजधानी सहित कुछ और शहरों में पसरा लगाकर व घर में भी बेचते हैं। इसी व्यवसाय से उनके परिवार का जीवन यापन होता है, लेकिन पिछले कुछ सालों से आधुनिक बाजार ने उनका धंधा चौपट कर दिया है। ग्राहकी हर साल लगातार कम होती जा रही है। इस बार उनके बनाए दिए काफी मात्रा में जमा है।

बहरहाल, प्राचीन परंपराओं के विलुप्त होते जाने से समाज में कई तरह कि परेशानियां आ रही हैं, कहीं रोजगार खत्म हो रहे हैं तो कहीं संस्कृति का क्षय हो रहा है, जरूरत है आज हमें अपनी इन संस्कृतियों को सहेज कर रखने की। 

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कम खर्च में ऐसे मनाएं पर्यावरण अनुकुल दीपावली

दीपावली का त्योहार आते ही सभी घरों में साफ-सफाई व साज सज्जा की शुरूआत हो जाती है। दिवाली का जिक्र होते ही आंखों के सामने दीपों की जगमगाहट और कानों में पटाखे की आवाज गूंज उठती है। जहां सभी चाहते हैं कि उनके घर की सजावट पारंपरिक होने के साथ साथ कुछ अलग हट कर हो, वहीं अधिक खर्च से बजट गड़बड़ा जाने की चिन्ता भी सबको सताती है। ऐसे में कम खर्चे में ही रचनात्मक तरीकों को अपनाकर घर की शोभा बढ़ाई जा सकती है।

दिवाली पर बंदनवार व रंगोली बनाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। आज बाजार में बहुत प्रकार के बंदनवार उपलब्ध है, लेकिन आप चाहें तो अपने घर पर ही बंदनवार बना सकते हैं जो बजट में कम होने के साथ आर्कषक भी लगेगी और आप अवश्य ही तारीफ की पात्र भी होंगी। पुराने जमाने में लोग अपने घरों के दरवाजों पर रंगीन फूलों, अशोक व आम के पत्तों आदि से बंदनवार सजाते थे, लेकिन इस आधुनिक युग में सबको चलन से हटकर चलना पसंद है इसलिए कुछ नए प्रकार के बंदनवार बनाए जा सकते हैं। इनमें जरी बार्डर बंदनवार बनाने के लिए कोई भी व्यक्ति अपनी पंसद के साइज के बुकरम के दोनों तरफ जरी बार्डर लगा सकता है, फिर उस पर स्टोन व मिरर चिपका दे, अंत में मोती या घुंघरू भी सुई धागे की सहायता से लगाई जा सकती है। इसे अपने दरवाजे पर लगाएं, यह डिजाइनर होने के साथ-साथ पारंपरिक लुक भी देगा।

इसी तरह सुनहरा चमकीला बंदनवार बनाने के लिए बुकरम की चौड़ी पट्टी पर फेविकोल की मदद से सुनहरा रंग चिपकाएं फिर उस पर टिशू का रिबन बनाकर डिजाइन तैयार करें। अब फूल पत्तियां चिपकाएं। फिर सुई-धागे में मोती और सितारे पिरो कर बंदनवार में जगह-जगह लगाएं। इस तरह आकर्षक बंदनवार बनाकर घर सजाया जा सकता है।

इसके अलावा दीपावली पर खास महत्व रखने वाले दीयों की जगमगाहट से दीवाली की खूबसूरती में चार चांद लग जाते हैं, पर इनके साथ कुछ नए तरीके अपनाकर और भी आकर्षक बनाया जा सकता है। बाजार में उपलब्ध मोमबत्ती जिनके साथ नीचे छोटा स्टैण्ड होता है, उन्हें ले आइए फिर घर में उपलब्ध बहुत सारे कांच के छोटे छोटे व रंगीन जार में इन्हें रखें। यह एक नया ही लुक देगा।

आप चाहें तो इन जारों को एक सपाट आईने पर समूह में सजा कर रख सकते है। कॉफी मग में बहुत सारी लंबी मोमबत्ती को काफी मात्रा में एक साथ रखें और जलाएं, यह बहुत ही खुबसूरत लगता है। बाजार में उपलब्ध डिजाइनर दीये दीवाली की चमक को ओर बढ़ा देते हैं।

घर की साज-सजावट के साथ-साथ पूजास्थल की सजावट का भी अपना ही महत्व है। अपने पूजास्थल के आस-पास के क्षेत्र को सजाने के लिए चौड़ी बार्डर वाली बांधनी दुपट्टे या सिल्क साड़ियों का प्रयोग किया जा सकता है। इन्हें झालर के रूप में टेप से चिपकाएं। यह निश्चित रूप से सजावट को नया रूप देगा।

रंगोली के बिना दीवाली की सजावट अधूरी ही लगती है। पारंपरिक रंगोली को और अधिक आकर्षक बनाने के लिए इसमें अलग-अलग रंगांे की दालों तथा फूल पत्तियों को प्रयोग कर सकते हंै जो रंगोली को पारंपरिकता के साथ-साथ आधुनिक झलक भी देगा और देखने वाला तारीफ किए बगैर नहीं रह पाएगा।

दीवाली के त्यौहार में इन सबके साथ एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि पर्यावरण और बढ़ते प्रदूषण के प्रति आप कितने जागरूक हैं। दीवाली के धूम धड़ाके में हम यह भूल जाते हैं कि इन पटाखों से हम वातावरण को कितना अधिक प्रदूषित कर रहे हैं। अगर आप दीवाली पर्यावरण के अनुकुल मनाए तो निश्चित ही आप रोशनी के इस त्यौहार पर सभी को एक संदेश देंगे कि प्रकृति की सुरक्षा हम सभी का फर्ज है। 

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लौहपुरूष सरदार वल्लभभाई पटेल की जयन्ती पर विशेष........

आज हम जिस विशाल भारत को देखते हैं उसकी कल्पना लौह पुरुष कहलाने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल के बिना शायद पूरी नहीं हो पाती| वल्लभ भाई पटेल एक ऐसे इंसान थे जिन्होंने देश के छोटे-छोटे रजवाड़ों और राजघरानों को एककर भारत में सम्मिलित किया| भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की जब भी बात होती है तो सरदार पटेल का नाम सबसे पहले ध्यान में आता है| उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति, नेतृत्व कौशल का ही कमाल था कि 600 देशी रियासतों का भारतीय संघ में विलय कर सके| भारत के प्रथम गृह मंत्री और प्रथम उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नाडियाड में उनके ननिहाल में हुआ| वह खेड़ा जिले के कारमसद में रहने वाले झावेर भाई पटेल की चौथी संतान थे| वल्लभ भिया पटेल की माता का नाम लाडबा पटेल था| बचपन से ही उनके परिवार ने उनकी शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया| प्रारंभिक शिक्षा काल में ही उन्होंने एक ऐसे अध्यापक के विरुद्ध आंदोलन खड़ाकर उन्हें सही मार्ग दिखाया जो अपने ही व्यापारिक संस्थान से पुस्तकें क्रय करने के लिए छात्रों के बाध्य करते थे। हालाँकि 16 साल में उनका विवाह कर दिया गया था पर उन्होंने अपने विवाह को अपनी पढ़ाई के रास्ते में नहीं आने दिया| 22 साल की उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और ज़िला अधिवक्ता की परीक्षा पास की, जिससे उन्हें वकालत करने की अनुमति मिली| अपनी वकालत के दौरान उन्होंने कई बार ऐसे केस लड़े जिसे दूसरे निरस और हारा हुए मानते थे| उनकी प्रभावशाली वकालत का ही कमाल था कि उनकी प्रसिद्धी दिनों-दिन बढ़ती चली गई| गम्भीर और शालीन पटेल अपने उच्चस्तरीय तौर-तरीक़ों और चुस्त अंग्रेज़ी पहनावे के लिए भी जाने जाते थे| लेकिन गांधीजी के प्रभाव में आने के बाद जैसे उनकी राह ही बदल गई|

भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने जब पूरी शक्ति से अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन चलाने का निश्चय किया तो सरदार पटेल ने अहमदाबाद में एक लाख जन-समूह के सामने लोकल बोर्ड के मैदान में इस आंदोलन की रूपरेखा समझाई। लौह पुरुष कहे जाने वाले सरदार बल्लभ भाई पटेल ने पत्रकार परिषद में कहा, ऐसा समय फिर नही आएगा, आप मन में भय न रखें। चौपाटी पर दिए गए भाषण में कहा, आपको यही समझकर यह लड़ाई छेड़नी है कि महात्मा गांधी और अन्य नेताओं को गिरफ्तार कर लिया जाएगा तो आप न भूलें कि आपके हाथ में शक्ति है कि 24 घंटे में ब्रिटिश सरकार का शासन खत्म हो जाएगा।

सितंबर, 1946 में जब पंडित जवाहर लाल नेहरु की अस्थाई राष्ट्रीय सराकर बनी तो सरदार पटेल को गृहमंत्री नियुक्त किया गया। अत्यधिक दूरदर्शी होने के कारण भारत मे विभाजन के पक्ष में पटेल का स्पष्ट मत था कि जहरवाद फैलने से पूर्व गले-से अंग को ऑपरेशन कर कटवा देना चाहिए। नवंबर,1947 में संविधान परिषद की बैठक में उन्होंने अपने इस कथन को स्पष्ट किया, मैंने विभाजन को अंतिम उपाय मे रूप में तब स्वीकार किया था जब संपूर्ण भारत के हमारे हाथ से निकल जाने की संभावना हो गई थी। मैंने यह भी शर्त रखी कि देशी राज्यों के संबंध में ब्रिटेन हस्तक्षेप नहीं करेगा। इस समस्या को हम सुलझाएंगे। और निश्चय ही देशी राज्यों के एकीकरण की समस्या को पटेल ने बिना खून-खराबे के बड़ी खूबी से हल किया, देशी राज्यों में राजकोट, जूनागढ़, वहालपुर, बड़ौदा, कश्मीर, हैदराबाद को भारतीय महासंघ में सम्मिलित करना में सरदार को कई पेचीदगियों का सामना करना पड़ा।

भारतीय नागरिक सेवाओं (आई.सी.एस.) का भारतीयकरण कर इसे भारतीय प्रशासनिक सेवाएं (आई.ए.एस.) में परिवर्तित करना सरदार पटेल के प्रयासो का ही परिणाम है। यदि सरदार पटेल को कुछ समय और मिलता तो संभवत: नौकरशाही का पूर्ण कायाकल्प हो जाता। उनके मन में किसानो एवं मजदूरों के लिये असीम श्रद्धा थी। वल्लभभाई पटेल ने किसानों एवं मजदूरों की कठिनाइयों पर अन्तर्वेदना प्रकट करते हुए कहा:-

” दुनिया का आधार किसान और मजदूर पर हैं। फिर भी सबसे ज्यादा जुल्म कोई सहता है, तो यह दोनों ही सहते हैं। क्योंकि ये दोनों बेजुबान होकर अत्याचार सहन करते हैं। मैं किसान हूँ, किसानों के दिल में घुस सकता हूँ, इसलिए उन्हें समझता हूँ कि उनके दुख का कारण यही है कि वे हताश हो गये हैं। और यह मानने लगे हैं कि इतनी बड़ी हुकूमत के विरुद्ध क्या हो सकता है ? सरकार के नाम पर एक चपरासी आकर उन्हें धमका जाता है, गालियाँ दे जाता है और बेगार करा लेता है। “

किसानों की दयनीय स्थिति से वे कितने दुखी थे इसका वर्णन करते हुए पटेल ने कहा: -

“किसान डरकर दुख उठाए और जालिम की लातें खाये, इससे मुझे शर्म आती है और मैं सोचता हूँ कि किसानों को गरीब और कमजोर न रहने देकर सीधे खड़े करूँ और ऊँचा सिर करके चलने वाला बना दूँ। इतना करके मरूँगा तो अपना जीवन सफल समझूँगा”

कहते हैं कि यदि सरदार बल्लभ भाई पटेल ने जिद्द नहीं की होती तो ‘रणछोड़’ राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति पद के लिए तैयार ही नहीं होते। जब सरदार वल्‍लभभाई पटेल अहमदाबाद म्‍युनिसिपेलिटी के अध्‍यक्ष थे तब उन्‍होंने बाल गंगाघर तिलक का बुत अहमदाबाद के विक्‍टोरिया गार्डन में विक्‍टोरिया के स्‍तूप के समान्‍तर लगवाया था। जिस पर गाँधी जी ने कहा था कि- “सरदार पटेल के आने के साथ ही अहमदाबाद म्‍युनिसिपेलिटी में एक नयी ताकत आयी है। मैं सरदार पटेल को तिलक का बुत स्‍थापित करने की हिम्‍मत बताने के लिये उन्हे अभिनन्‍दन देता हूं।”

सरदार पटेल को कई बार जाना पड़ा जेल-

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1929 के लाहौर अधिवेशन में पटेल, गांधी के बाद अध्यक्ष पद के दूसरे उम्मीदवार थे। गांधी ने स्वाधीनता के प्रस्ताव को स्वीकृत होने से रोकने के प्रयास में अध्यक्ष पद की दावेदारी छोड़ दी और पटेल पर भी नाम वापस लेने के लिए दबाव डाला। इसका प्रमुख कारण मुसलमानों के प्रति पटेल की हठधर्मिता थी। अंतत: जवाहरलाल नेहरू अध्यक्ष बने। 1930 में नमक सत्याग्रह के दौरान पटेल को तीन महीने की जेल हुई। मार्च 1931 में पटेल ने इंडियन नेशनल कांग्रेस के करांची अधिवेशन की अध्यक्षता की। जनवरी 1932 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। जुलाई 1934 में वह रिहा हुए और 1937 के चुनावों में उन्होंने कांग्रेज़ पार्टी के संगठन को व्यवस्थित किया। 1937-38 में वह कांग्रेस के अध्यक्ष पद के प्रमुख दावेदार थे। एक बार फिर गांधी के दबाव में पटेल को अपना नाम वापस लेना पड़ा और जवाहर लाल नेहरू निर्वाचित हुए। अक्टूबर 1940 में कांग्रेस के अन्य नेताओं के साथ पटेल भी गिरफ़्तार हुए और अगस्त 1941 में रिहा हुए। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, जब जापानी हमले की आशंका हुई, तो पटेल ने गांधी की अहिंसा की नीति को अव्यावहारिक बताकर ख़ारिज कर दिया। सत्ता के हस्तान्तरण के मुद्दे पर भी पटेल का गांधी से इस बात पर मतभेद था कि उपमहाद्वीप का हिन्दू भारत तथा मुस्लिम पाकिस्तान के रूप में विभाजन अपरिहार्य है। पटेल ने ज़ोर दिया कि पाकिस्तान दे देना भारत के हित में है।

माना जाता है पटेल कश्मीर को भी बिना शर्त भारत से जोड़ना चाहते थे पर जवाहर लाला नेहरु ने हस्तक्षेप कर कश्मीर को विशेष दर्जा दे दिया| नेहरू ने कश्मीर के मुद्दे को यह कहकर अपने पास रख लिया कि यह समस्या एक अंतरराष्ट्रीय समस्या है| यदि कश्मीर का निर्णय नेहरू की बजाय पटेल के हाथ में होता तो कश्मीर आज भारत के लिए समस्या नहीं बल्कि गौरव का विषय होता| 15 दिसंबर 1950 को प्रातःकाल 9.37 पर इस महापुरुष का 76 वर्ष की आयु में निधन हो गया| 

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विश्व पटल पर भारत को पहचान दिलाने वाली महिला प्रधानमंत्री की पुण्यतिथि पर विशेष......

प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आज 29वीं पुण्यतिथि है| राजनीति के प्रभावशाली परिवार में 19 नवंबर 1917 को जन्मी इंदिरा प्रियदर्शिनी गाँधी जिन्हें सभी इंदिरा गांधी के नाम से जानते हैं, ने देश की पहली और एकमात्र प्रधानमंत्री बनने का गौरव अपने नाम किया था| इंदिरा गांधी ने लगातार तीन बार इस पद को सुशोभित किया| इंदिरा ने जब फिरोज़ गाँधी से विवाह किया तब उन्हें 'गांधी' उपनाम मिला था|

उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी छोटी लेकिन महत्वपूर्ण भूमिका निभाई| इस दौरान उन्होंने अपने साहस का परिचय भी दिया| उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पुलिस की नज़र से बचा कर अपने पिता के घर से एक महत्वपूर्ण दस्तावेज, जिसमें 1930 दशक के शुरुआत की एक प्रमुख क्रांतिकारी पहल की योजना थी, को अपने स्कूलबैग के माध्यम से बाहर निकाल लाई थीं|

इंदिरा गांधी ने 1950 के दशक में भारत के पहले प्रधानमंत्री और अपने पिता जवाहर लाल नेहरु के कार्यकाल के दौरान गैरसरकारी तौर पर एक निजी सहायक के रूप में काम किया था| अपने पिता की मृत्यु के बाद सन् 1964 में वे राज्यसभा सदस्य के रूप में चयनित हुईं| इससे कुछ कदम आगे बढ़ते हुए लालबहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में उन्होंने सूचना और प्रसारण मंत्रालय का कार्यभार सम्भाला| एक राजनैतिक परिवार में जन्म लेने के कारण वह शुरुआत से ही राजनीति की तरफ आकर्षित थीं|

लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद तत्कालीन कॉंग्रेस पार्टी अध्यक्ष के. कामराज ने इंदिरा को प्रधानमंत्री बनाने में निर्णायक योगदान दिया| इंदिरा ने सबकी उम्मीदों पर खरा उतरते हुए जीत हासिल की और जनमानस में अपनी ख़ास छाप छोड़ी| अपने चमत्कारी व्यक्तित्व से वह भारतीय राजनीति में जननायक के रूप में उभरीं| इंदिरा ने महिलाओं को कमज़ोर समझने वाली उन सभी धारणाओं को चकनाचूर किया, जिसमें पुरुषप्रधान समाज ने महिला को कमज़ोर साबित करने की कोशिश की थी| उन्होंने सही मायने में 'महिला सशक्तिकरण' को सबके समक्ष प्रदर्शित किया|

इंदिरा ने ऐसे समय में भारतीय राजनीति में कदम रखा जब देश को एक सही नेता और नेतृत्व की ज़रूरत थी| उस समय इंदिरा गांधी रुपी इस सितारे ने भारतीय राजनीति को अपनी चमक से प्रकाशमय कर दिया| वह नेतृत्व संकट से जूझ रहे देश के लिए 'संकटमोचन' के रूप में सामने आयीं| शुरू में ‘गूंगी गुड़िया’ कहलाने वाली इंदिरा गाँधी ने अपने चमत्कारिक नेतृत्व से न केवल देश को कुशल नेतृत्व प्रदान किया बल्कि विश्व मंच पर भी भारत की धाक जमा दी|

इंदिरा ने जनप्रियता के माध्यम से विरोधियों के ऊपर हावी होने की योग्यता दर्शायी| वह अधिक बामवर्गी आर्थिक नीतियाँ लायीं और कृषि उत्पादकता को बढ़ावा दिया| इंदिरा गाँधी न सिर्फ एक कुशल प्रशासक थीं बल्कि उनके नेतृत्व में भारत ने विश्व पटल पर अपनी छाप छोड़ी| देश में परमाणु कार्यक्रम और हरित क्रांति लाने का श्रेय इंदिरा गांधी को ही जाता है| उन्होंने आधुनिक भारत की नीव रखी, जिसने विश्व पटल पर देश को एक नयी पहचान दिलाई|

भारत ने परमाणु शक्ति के रूप में उभरते हुए साल 1974 में राजस्थान के रेगिस्तान में बसे गांव पोखरण में 'स्माइलिंग बुद्धा' के नाम से सफलतापूर्वक एक भूमिगत परमाणु परीक्षण किया| शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परीक्षण का वर्णन करते हुए भारत दुनिया की सबसे नवीनतम परमाणु शक्तिधर बन गया| 1960 में उन्होंने संगठित हरित क्रांति गहन कृषि जिला कार्यक्रम (आईएडीपी) की शुरुआत की| इसका उद्देश्य देश में चल रही खाद्द्यान्न की कमी से निपटना था|

हालांकि, इंदिरा गाँधी के ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे| इसके बाद 26 जून 1975 को संविधान की धारा- 352 के प्रावधानानुसार आपातकालीन की घोषणा उनके राजनितिक जीवन का सबसे गलत कदम साबित हुआ और देश में उनके लिए नाराज़गी फ़ैल गयी| इसके बाद साल 1981 में ओपरेशन ब्लू स्टार' उनके जीवन की सबसे बड़ी गलती साबित हुई| सन् 1980 में सत्ता में लौटने के बाद वह अधिकतर पंजाब के अलगाववादियों के साथ बढ़ते हुए द्वंद्व में उलझी रहीं| सन् 1984 में अपने ही अंगरक्षकों द्वारा उनकी राजनैतिक हत्या कर दी गई| 

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धनतेरस कल, इस तरह करें कुबेर महाराज को प्रसन्न

उत्तरी भारत में कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस का पर्व पूरी श्रद्धा व विश्वास से मनाया जाता है| इस बार धन तेरस कार्तिकमास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी यानि की 1 नवम्बर दिन शुक्रवार को है| धनवन्तरी के अलावा इस दिन, देवी लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की भी पूजा करने की मान्यता है| धनतेरस के दिन कुबेर के अलावा यमदेव को भी दीपदान किया जाता है| यमदेव की पूजा करने के विषय में एक मान्यता है कि इस दिन यमदेव की पूजा करने से घर में असमय मृ्त्यु का भय नहीं रहता है| पूजा करने के बाद घर के मुख्य द्वार पर दक्षिण दिशा की ओर मुख वाला दीपक जिसमें कुछ पैसा और कौड़ी डालकर पूरी रात्रि जलाना चाहिए|

धनतेरस पर्व का महत्व-

शास्त्रों के अनुसार, धन त्रयोदशी के दिन देव धनवंतरी देव का जन्म हुआ था| धनवंतरी देव, देवताओं के चिकित्सकों के देव है| यही कारण है कि इस दिन चिकित्सा जगत में बडी-बडी योजनाएं प्रारम्भ की जाती है| धनतेरस के दिन नये उपहार, सिक्का, चाँदी, बर्तन व गहनों की खरीदारी करना शुभ माना जाता है| लक्ष्मी जी व गणेश जी की चांदी की प्रतिमाओं को इस दिन घर लाना, घर- कार्यालय, व्यापारिक संस्थाओं में धन, सफलता व उन्नति को बढाता है| इस दिन भगवान धनवन्तरी समुद्र से कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिये इस दिन खास तौर से बर्तनों की खरीदारी की जाती है| ऐसी मान्यता है कि इस दिन सूखे धनिया के बीज खरीद कर घर में रखना भी परिवार की धन संपदा में वृ्द्धि करता है| दीपावली के दिन इन बीजों को बाग, खेत खलिहानों में लागाया जाता है ये बीज व्यक्ति की उन्नति व धन वृ्द्धि के प्रतीक होते है|

इस दिन शुभ मुहूर्त में पूजन करने के साथ- साथ सात धान्यों (गेंहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर) की पूजा की जाती है| सात धान्यों के साथ ही पूजन सामग्री में विशेष रुप से स्वर्णपुष्पा के पुष्प से भगवती का पूजन करना लाभकारी रहता है| इस दिन पूजा में भोग लगाने के लिये नैवेद्ध के रुप में श्वेत मिष्ठान का प्रयोग किया जाता है, इसके साथ ही इस दिन स्थिर लक्ष्मी की भी पूजा करने का विशेष महत्व है|

धनतेरस के दिन कुबेर को प्रसन्न करने का मंत्र-

शुभ मुहूर्त में धनतेरस के दिन धूप, दीप, नैवैद्ध से पूजन करने के बाद निम्न मंत्र का जाप करें- इस मंत्र का जाप करने से भगवन धनवन्तरी बहुत खुश होते हैं, जिससे धन और वैभव की प्राप्ति होती है|

'यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन-धान्य अधिपतये
धन-धान्य समृद्धि मे देहि दापय स्वाहा ।'

धनतेरस की कथा-

एक किवदन्ती के अनुसार एक राज्य में एक राजा था, कई वर्षों तक प्रतिक्षा करने के बाद, उसके यहां पुत्र संतान कि प्राप्ति हुई| राजा के पुत्र के बारे में किसी ज्योतिषी ने यह कहा कि, बालक का विवाह जिस दिन भी होगा, उसके चार दिन बाद ही इसकी मृ्त्यु हो जायेगी|

ज्योतिषी की यह बात सुनकर राजा को बेहद दु:ख हुआ, ओर ऎसी घटना से बचने के लिये उसने राजकुमार को ऎसी जगह पर भेज दिया, जहां आस-पास कोई स्त्री न रहती हो, एक दिन वहां से एक राजकुमारी गुजरी, राजकुमार और राजकुमारी दोनों ने एक दूसरे को देखा, दोनों एक दूसरे को देख कर मोहित हो गये, और उन्होने आपस में विवाह कर लिया|

ज्योतिषी की भविष्यवाणी के अनुसार ठीक चार दिन बाद यमदूत राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचें| यमदूत को देख कर राजकुमार की पत्नी विलाप करने लगी| यह देख यमदूत ने यमराज से विनती की और कहा की इसके प्राण बचाने का कोई उपाय बताईयें, इस पर यमराज ने कहा की जो प्राणी कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की त्रयोदशी की रात में मेरा पूजन करके दीप माला से दक्षिण दिशा की ओर मुंह वाला दीपक जलायेगा, उसे कभी अकाल मृ्त्यु का भय नहीं रहेगा, तभी से इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाये जाते है|

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...इसलिए धनतेरस को करते हैं दीपदान

कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। इस दिन मृत्यु के देवता यमराज का पूजन किए जाने का विधान है। धनतेरस पर यमराज के निमित्त व्रत भी रखा जाता है। इस दिन सायंकाल घर के बाहर मुख्य दरवाजे पर एक पात्र में अन्न रखकर उसके ऊपर यमराज के निर्मित्त दक्षिण की ओर मुंह करके दीपदान करते हैं|

आज हम आपको बताते हैं आखिर क्यों हम करते हैं यमराज को दीपदान| एक बार की बात है, भगवान विष्णु माता लक्ष्मीजी सहित पृथ्वी पर घूमने आए। कुछ देर बाद भगवान विष्णु लक्ष्मीजी से बोले कि मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूं। तुम यहीं ठहरो। परंतु लक्ष्मीजी भी विष्णुजी के पीछे चल दीं। कुछ दूर चलने पर ईख (गन्ने) का खेत मिला। लक्ष्मीजी एक गन्ना तोड़कर चूसने लगीं। भगवान लौटे तो उन्होंने लक्ष्मीजी को गन्ना चूसते हुए पाया। इस पर वह क्रोधित हो उठे। उन्होंने श्राप दे दिया कि तुम जिस किसान का यह खेत है उसके यहां पर 12 वर्ष तक उसकी सेवा करो।

विष्णु भगवान क्षीर सागर लौट गए तथा लक्ष्मीजी ने किसान के यहां रहकर उसे धन-धान्य से पूर्ण कर दिया। 12वर्ष के बाद लक्ष्मीजी भगवान विष्णु के पास जाने के लिए तैयार हो गईं परंतु किसान ने उन्हें जाने नहीं दिया। भगवान विष्णुजी लक्ष्मीजी को बुलाने आए परंतु किसान ने उन्हें रोक लिया। तब भगवान विष्णु बोले कि तुम परिवार सहित गंगा स्नान करने जाओ और इन कौड़ियों को भी गंगाजल में छोड़ देना तब तक मैं यहीं रहूंगा। किसान ने ऐसा ही किया। गंगाजी में कौडि़यां डालते ही चार हाथ बाहर निकले और कौडि़यां लेकर चलने को तैयार हुए। ऐसा आश्चर्य देखकर किसान ने गंगाजी से पूछा कि ये चार हाथ किसके हैं। गंगाजी ने किसान को बताया कि ये चारों हाथ मेरे ही थे। तुमने जो मुझे कौडि़यां भेंट की हैं। वे तुम्हें किसने दी हैं।

किसान बोला कि मेरे घर पर एक स्त्री और पुरुष आए हैं। तभी गंगाजी बोलीं कि वे देवी लक्ष्मीजी और भगवान विष्णु हैं। तुम लक्ष्मीजी को मत जाने देना। वरना दोबारा निर्धन हो जाओगे। किसान ने घर लौटने पर देवी लक्ष्मीजी को नहीं जाने दिया। तब भगवान ने किसान को समझाया कि मेरे श्राप के कारण लक्ष्मीजी तुम्हारे यहां 12 वर्ष से तुम्हारी सेवा कर रही हैं। फिर लक्ष्मीजी चंचल हैं। इन्हें बड़े-बड़े नहीं रोक सके। तुम हठ मत करो। फिर लक्ष्मीजी बोलीं हे किसान यदि तुम मुझे रोकना चाहते हो तो कल धनतेरस है। तुम अपने घर को साफ-सुथरा रखना। रात में घी का दीपक जलाकर रखना। मैं तुम्हारे घर आउंगी। तुम उस वक्त मेरी पूजा करना। परंतु मैं अदृश्य रहूंगी। किसान ने देवी लक्ष्मीजी की बात मान ली और लक्ष्मीजी द्वारा बताई विधि से पूजा की। उसका घर धन से भर गया।

इस प्रकार किसान प्रति वर्ष लक्ष्मीजी को पूजने लगा तथा अन्य लोग भी देवी लक्ष्मीजी का पूजन करने लगे। इस दिन घर के टूटे-फूटे पुराने बर्तनों के बदले नये बर्तन खरीदे जाते हैं। इस दिन चांदी के बर्तन खरीदना अत्यधिक शुभ माना जाता है। इन्हीं बर्तनों में भगवान गणेश और देवी लक्ष्मीजी की मूर्तियों को रखकर पूजा की जाती है। इस दिन लक्ष्मीजी की पूजा करते समय 'यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन-धान्य अधिपतये धन-धान्य समृद्ध में देहि दापय स्वाहा' का स्मरण करके फूल चढ़ाये। इसके पश्चात कपूर से आरती करें। इस समय देवी लक्ष्मीजी, भगवान गणेशजी और जगदीश भगवान की आरती करे। धनतेरस के ही दिन देवता यमराज की भी पूजा होती है।

यम के लिए आटे का दीपक बनाकर घर के मुख्य द्वार पर रखा जाता है। रात्रि में महिलाएं दीपक में तेल डालकर चार बत्तियां जलाती हैं। जल, रोली, चावल, गुड़ और फूल आदि मिठाई सहित दीपक जलाकर पूजा की जाती है। यम दीपदान को धनतेरस की शाम में तिल के तेल से युक्त दीपक प्रज्वलित करें। इसके पश्चात गंध, पुष्प, अक्षत से पूजन कर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके यम से निम्न प्रार्थना करें। मृत्युना दंडपाशाभ्याम्घ्कालेन यामया सह।

त्रयोदश्यां दीपदानात्घ्सूर्यज: प्रयतां मम। अब उन दीपकों से यम की प्रसन्नतार्थ सार्वजनिक स्थलों को प्रकाशित करें। इसी प्रकार एक अखंड दीपक घर के प्रमुख द्वार की देहरी पर किसी प्रकार का अन्न (साबुत गेहूं या चावल आदि)बिछाकर उस पर रखें।

देवता यमराज के लिये भी एक लोकप्रिय कथा है। एक बार यमदूतों ने यमराज को बताया कि महाराज अकाल मृत्यु से हमारे मन भी पसीज जाते हैं। यमराज ने द्रवित होकर कहा कि क्या किया जाए विधि के विधान की मर्यादा हेतु हमें ऐसा अप्रिय कार्य करना ही पड़ता है। यमराज ने अकाल मृत्यु से बचाव के उपाय बताते हुए कहा कि धनतेरस के दिन पूजन एवं दीपदान को विधिपूर्वक करने से अकाल मृत्यु से छुटकारा मिल जाता है। जहां-जहां और जिस-जिस घर में यह पूजन होता है वहां अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। इसी घटना से धनतेरस के दिन धनवंतरि पूजन सहित यमराज को दीपदान की प्रथा का भी प्रचलन हुआ।

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खौफ के साये में रही बच्चियां!

हर रोज एक बच्ची अपना बचपन खो रही थी, हर दिन किसी न किसी बच्ची की अस्मत लूटी जा रही थी। कुछ बदकिस्मत बच्चियां बार-बार किसी हैवान की हैवानियत का शिकार हो रही थीं। दर्द पूछने वाला कोई नहीं था, कहती भी तो किससे? अपने उस गुरु से जो 'सेक्स एजुकेशन' के नाम पर उनके साथ यह घिनौना काम कर रहा था या उन चौकीदारों से जो उनके शरीर से खेल रहे थे। न जाने खौफ के किस भयानक साये में रहती रही होंगी वे बच्चियां!

एक बार, दो बार ऐसा करने के बाद उनकी हिम्मत बढ़ी। आश्रम के चौकीदार और अन्य लोगों को विश्वास में लिया। बदले में उन्होंने भी 'सेक्स एजुकेशन' का घिनौना खेल शुरू किया। जिसमें आश्रम की इंचार्ज ने उनका पूरा साथ दिया। उन सभी को लग रहा था कि गांव की डरी हुई बच्चियां हैं, कभी कुछ कहेंगी नहीं और इनका मतलब निकलता रहेगा।

इस धृणित अपराध में गांव के स्कूल का शिक्षाकर्मी भी शामिल था। कभी बारिश के बहाने तो नासाज तबियत के बहाने वह आश्रम में अक्सर रुक जाता था और आश्रम की बच्चियों को अपनी हवस का शिकार बनाता था। उन्हें डरा धमका कर मुंह न खोलने की हिदायत तो देता ही था, यह भी कहता था कि यह सब सेक्स एजुकेशन का हिस्सा है। जो सबको करना पड़ता है।

शिक्षा कर्मी और अन्य लोगों द्वारा कांकेर के झलियामारी आश्रम में रहने वाली 13 नाबालिग बच्चियों के साथ दुष्कर्म के मामले ने देश ही नहीं पूरी दुनिया को सकते में ला दिया था। दिल्ली सामूहिक दुष्कर्म के बाद सामने आये इस मामले ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। कांकेर के डीजे कोर्ट ने इस मामले में 8 लोगों को आरोपी करार दिया है जिन पर अंतिम फैसला आज कांकेर जिला अदालत ने सुनाया। कोर्ट ने इस मामले में मन्नूलाल गोटा और दीनानाथ नागेश को प्रमुख और छह अन्य लोगों को सहयोगी दोषी करार दिया।

कई नेता, मीडिया चैनल्स, अध्यात्म गुरु मामले का जायजा लेने झलियामारी पहुंचे थे। इसके साथ ही राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया था। राज्य सरकार पर मामले को दबाने का आरोप भी लगाया गया। कांकेर शहर से 20 किलोमीटर दूर एक छोटा-सा गांव है झलियामारी। यहां छत्तीसगढ़ आदिमजाति कल्याण विभाग द्वारा छात्राओं के लिए एक आश्रम संचालित किया जा रहा था। यह आश्रम एक कच्चे मकान में बिना चारदीवारी, बिना पेयजल सुविधा, बिना किसी सुरक्षा के संचालित किया जा रहा था। 

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सोने की खोज: 'एस-5 के फेर में अंधविश्वासी बना देश!

इसे अंधविश्वास की जकड़न ही कहेंगे कि 'शोभन-सपना-सोना-संप्रग-सोनिया जैसे पांच 'एस अक्षर से शुरू होने वाले नामों यानि 'एस-5 पर विश्वास कर उन्नाव के डौंडि़याखेड़ा किले से सोने का कथित 'महाखजाना मिलने की आस में समूचा देश 'अंधविश्वासी बन गया और वहां एक टका सोना हाथ नहीं लगा।

पूरे देश को मालूम है कि बक्सर आश्रम के संत शोभन सरकार को उन्नाव के डौंडि़याखेड़ा के राजा राव रामबक्श सिंह के 155 साल से वीरान और खंड़हर हो गए किले में एक हजार टन सोना दबा होने का सपना आया था, इस सपने को सच मान कर केन्द्रीय मंत्री चरणदास महंत ने केन्द्र की संप्रग सरकार के कैबिनेट के कर्इ मंत्रियों के अलावा सोनिया गांधी व राहुल गांधी तक न सिर्फ पहुंचाया, बलिक प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को पत्राचार तक किया था। मंत्री पर भरोसा करना लाजमी भी है, इसी से पीएमओ ने आनन-फानन में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआर्इ) को निर्देश दिया और उसने भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआर्इ) से सर्वे कराया तो जीएसआर्इ ने भी अपनी रिपोर्ट में किले के नीचे 'धातु दबी होने की पुषिट कर दी, जिससे महाखजाना की संभावना प्रबल हो गर्इ। फिर क्या था, इस वीरान किले में भारी पुलिस बल की मौजूदगी में एएसआर्इ व जीएसआर्इ के अधिकारियों की टीम द्वारा ग्यारह दिन चली खुदार्इ में न तो सोना हाथ लगा और न कोर्इ धातु या पुरातत्व महत्व की वस्तु ही मिल पार्इ, लाखों रुपये खर्च होने के बाद जग हंसार्इ अलग हुर्इ। अब तो सभी यह कहने लगे हैं कि 'शोभन-सपना-सोना-संप्रग-सोनिया यानि 'एस-5 के अजीब मिलन ने इस देश को ही नहीं, बलिक विज्ञान को भी सपने पर यकीन करने के लिए मजबूर कर दिया।

सनद रहे, संत शोभन सरकार के सहयोगी बाबा ओमजी महराज ने कर्इ बार यह दावा कर चुके थे कि '15 फुट की गहरार्इ में सोना है। उन्होंने यह भी कहा था कि 'सोना न मिले तो सरकार मेरा सिर कलम करवा दे। अब तब 11 दिन में 4.90 मीटर (लगभग 15 फुट) गहरार्इ तक खुदार्इ हुर्इ और कुछ न मिला तो वह अपने दावे से पलटते हुए कह दिये कि 'सोना न निकला तो सरकार को नुकसान नहीं होगा। मंगलवार की खुदार्इ तक जब सोना या अन्य कोर्इ धातु नहीं मिली तो एएसआर्इ के अधिकारी एस.बी. शुक्ल कहते हैं कि 'जीएसआर्इ की रिपोर्ट के आधार पर एएसआर्इ ने खुदार्इ शुरू की थी। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या एएसआर्इ व जीएएसआर्इ जैसी एजेंसिया भी विज्ञान पर नहीं, सपने (अंधविश्वास) पर ज्यादा भरोसा करती हैं? चूंकि सोना न मिलने की दशा में जीएसआर्इ की रिपोर्ट के अनुसार कोर्इ 'धातु का मिलना जरूरी था।

किले की खुदार्इ में सोना नहीं मिला, फिर भी डौंडि़याखेड़ा गांव के कुछ बुजुर्ग संत शोभन सरकार के सपने को अब भी सच मान रहे हैं, बुजुर्ग सरवन का कहना है कि 'खुदार्इ की गति बहुत धीमी थी, 'शोभन सरकार ने पहले ही कह दिया था कि समय से खुदार्इ न की गर्इ तो सोना 'राख हो जाएगा। स्नातक की शिक्षा ग्रहण कर रहे इस गांव के युवक राजेन्द्र सिंह का कहना है कि 'यह पहले से ही तय था कि सोना नहीं मिलेगा, सिर्फ अंधविश्वास फैलाया गया है। सामाजिक कार्यकर्ता सुरेश रैकवार का कहना है कि 'संत शोभन के सपने के आधार पर केन्द्र सरकार ने अंधविश्वास को बढ़ावा दिया है, इसके जिम्मेदारों के खिलाफ वैधानिक कार्रवार्इ होनी चाहिए। उत्तर प्रदेश की विधानसभा में बसपा विधायक दल के उपनेता और बांदा की नरैनी सीट से विधायक गयाचरण दिनकर कहते हैं कि 'शोभन-सपना-सोना-संप्रग-सोनिया (एस-5) के अजीब मिलन ने देश में अंधविश्वास फैलाने का निकृष्टतम कार्य किया है। वह कहते हैं कि 'संत के सपने को केन्द्र सरकार तक पहुंचाने वाले मंत्री चरणदास महंत के खिलाफ विधि संगत कार्रवार्इ अमल में लार्इ जानी चाहिए।

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जदयू के चिंतन शिविर में नमो-नमो!

बिहार के नालंदा जिले स्थित प्रसिद्ध पर्यटन स्थल राजगीर में आयोजित जनता दल-युनाइटेड (जदयू) के दो दिवसीय चिंतन शिविर के दूसरे दिन मंगलवार को गुजरात के मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी नरेंद्र मोदी (नमो) का नाम बार-बार लिया गया।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रविवार को रैली के दौरान नमो द्वारा किए गए शाब्दिक प्रहार पर पलटवार किया तो वहीं जदयू के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने नमो की तारीफ भी कर दी। इस दौरान हालांकि जदयू के कुछ कार्यकर्ताओं ने शिवानंद के विरोध में नारे लगाए।

शिवानंद ने मोदी की तारीफ करते हुए कहा, "मोदी ने मेहनत की बदौलत जो मुकाम हासिल किया है, उसकी मैं तारीफ करता हूं। मैं मोदी की विचारधारा का नहीं, बल्कि उनकी मेहनत का कायल हूं। वे एक पिछड़े परिवार में पैदा होकर कड़ी मेहनत कर आज इस मुकाम पर पहुंचे हैं।" उन्होंने आगे कहा, "जहां तक मोदी की विचारधारा का प्रश्न है, तो यह हमलोगों के लिए एक चुनौती है।"

शिवानंद यहीं नहीं रुके, उन्होंने एक ओर जहां मोदी की तारीफ की, वहीं नमो के धुर विरोधी माने जाने वाले अपने ही नेता और बिहार के मुख्यमंत्री का खुला विरोध कर डाला। उन्होंने स्पष्ट कहा, "उनके नेतृत्व में पार्टी के अंदर कोई नया नेता पैदा नहीं हुआ है क्योंकि वे जमीनी नेता नहीं हैं।"

नीतीश भी पार्टी के चिंतन शिविर में नमो पर ही भाषण देते रहे। इस दौरान उन्होंने कई मुद्दों को लेकर नमो की आलोचना की तो कई मुद्दों पर उनकी खिल्ली भी उड़ाई। उन्होंने नमो को 'झूठा कथावाचक' बताते हुए उन्हें नसीहत दी की कि प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार को धैर्यवान होना चाहिए।

नीतीश ने कहा, "प्रधानमंत्री पद पाने के लिए उनमें उतावलापन दिखता है पर देश के सबसे बड़े पद पर बैठने वाले शख्स को ऐसा नहीं होना चाहिए।" नीतीश ने नमो पर पलटवार करते हुए उनके द्वारा रैली के दौरान दिए गए भाषण में कई तथ्यात्मक भूल का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने तो बिहार का इतिहास ही बदल दिया। उन्होंने रैली के नाम पर प्रश्न उठाते हुए कहा कि हुंकार का मतलब ही घमंड के साथ जोर से बोलना होता है।

नीतीश ने भाजपा पर विश्वासघात करने का आरोप लगाते हुए कहा कि गैर कांग्रेसवाद को भाजपा ने गठबंधन तोड़कर कमजोर कर दिया है। मुख्यमंत्री ने भाजपा पर न केवल सांप्रदायिक होने का आरोप लगाया बल्कि नमो के भाषण को फासीवाद का भाषण बताया। उन्होंने कहा कि क्या लोकतंत्र में चुन-चुनकर साफ करने की बात होती है? उल्लेखनीय है कि नमो ने पटना के गांधी मैदान में हुंकार रैली के दौरान नीतीश पर जमकर हमला किया था।
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'संतों पर अत्याचार' को भुनाने का प्रयास, भाजपा ने पल्ला झाड़ा

उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की रैलियों को सफल बनाने के लिए अब एक हिंदूवादी संगठन संतों पर हुए अत्याचार को भुनाने में जुट गया है। बहराइच में कई जगहों पर लगी होर्डिग इस बात की ओर इशारा करती है कि हिंदूवादी संगठन संतों को भुनाने की तैयारी में लगे हुए हैं। इस बीच भाजपा ने इस होर्डिग से अपना पल्ला झाड़ लिया है ।

उप्र में मोदी की रैली 8 नवंबर को बहराइच में होने वाली है। रैली में मात्र कुछ दिन शेष बचे हुए हैं। एक तरफ जहां भाजपा के कार्यकर्ता तैयारियों में जुटे हुए हैं, वही दूसरी तरफ संस्कृति रक्षक दल नामक संगठन ने सुब्रमण्यम स्वामी को निवेदक दिखाते हुए पूरे शहर में करीब 8 से 10 जगहों पर यह विवादित होर्डिग लगवाई गई है।

होर्डिग में आसाराम बापू को केंद्रित करते हुए धर्म विशेष के संतों को लगातार फर्जी मामलों में फंसाने का आरोप दर्शाया गया है। धर्म विशेष के लोगों की भवानाओं को भड़काने की कोशिश की गई है। इन सभी होर्डिग में कभी जनता पार्टी के अध्यक्ष रहे और अब भाजपा में शामिल सुब्रमण्यम स्वामी को निवेदक के तौर पर दर्शाया गया है। 

यह होर्डिग शहर में सिद्धनाथ मंदिर, ब्राह्मणीपुरा और खासतौर से हिंदू बहुल मोहल्लों में लगाया गया है। होर्डिग में आसाराम बापू, रामदेव और साध्वी प्रज्ञा ठाकुर सहित कई संतों का चित्र दर्शाया गया है। होर्डिग पर लिखा गया है-'हिंदू संतों का अपमान क्या सहता रहेगा हिंदुस्तान'। 

मोदी की रैली के लिए भाजपा के कार्यकर्ता तैयारी में दिन-रात एक किए हुए हैं। भाजपा के कार्यकर्ताओं द्वारा लोगों को रैली में आने के लिए आमंत्रित किया जा रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि लोगों को रैली स्थल तक लाने के लिए ही इस होर्डिग को शहर में कई जगहों पर लगवाया गया है।

प्रशासन की ओर से लगातार मोदी की सभास्थल का निरीक्षण किया जा रहा है। लेकिन शोचनीय बात यह है कि मोदी की रैली को लेकर जहां प्रशासन एक तरफ शख्त है तो वहीं दूसरी तरफ शहरों में विभिन्न जगह लगी विवादित होर्डिग से अनजान है। 

इस समय जनपद बहराइच में जिलाधिकारी द्वारा धारा 144 लागू किया गया है, जिसमें ऐसी विवादित होर्डिग नहीं लगाई जा सकती। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि मोदी की रैली को लेकर एक तरफ प्रशासन जहां पसीना बहा रहा है, वहीं दूसरी ओर विवादित होर्डिग से जिला प्रशासन के आला अधिकारी अंजान क्यों बने हुए हैं।

होर्डिग को लेकर सुब्रमण्यम स्वामी ने आईएएनएस से बातचीत के दौरान इस बात से साफतौर पर कहा कि संस्कृति रक्षक दल से उनका कोई लेना-देना नहीं है। उनके बयान को गलत तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। 

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने कहा कि इस होर्डिग से भाजपा का कोई लेनादेना नहीं है। इसे किसी व्यक्तिगत संगठन की ओर से लगाया गया है और इससे भाजपा का कोई लेनादेना नहीं है।

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यहां 'जिन्नात' ने दिया था खजाने का सपना!

बुद्धजीवी वर्ग सपने को अंधविश्वास मानकर भले ही नकार रहा हो लेकिन बुंदेलखंड के बुजुर्ग इससे इत्तेफाक नहीं रखते। वह उन्नाव जिले के डौंड़ियाखेड़ा किले में सोने के खजाने का सपना सच मान रहे हैं। कई लोगों का मानना है कि बांदा जिले के गौर-शिवपुर गांव में एक मुस्लिम परिवार को जमीन में खजाना होने का सपना 'जिन्नात' ने दिया था और वह मिला भी, लेकिन उस खजाने की रखवाली जिन्नात सांप बनकर अब भी कर रहा है।

उन्नाव जिले के डौंड़ियाखेड़ा किले में सपने को सच मानकर कथित सोने के खजाने की खोज के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) पिछले 18 अक्टूबर से खुदाई करवा रहा है। बुद्धजीवी वर्ग सपने को सिर्फ सपना मानता है, लेकिन बुंदेलखंड के बुजुर्ग इन सपनों को सच मानते हैं। हमारे संवाददाता ने बुजुर्गों से इस बारे में जानना चाहा तो बड़े रोचक तथ्य उभर कर सामने आए। इस संवाददाता ने बांदा जिले के गौर-शिवपुरा गांव का दौरा किया, जहां जिन्नात द्वारा करीब 35 साल पहले एक मुस्लिम परिवार को सोने के खजाने की बात सपने में बताई थी।

यहां चुपचाप खुदाई हुई और सोने-चांदी के ढेर सारे सिक्के मिले हैं। परन्तु अब तक यह कुनबा एक भी सिक्का खर्च नहीं कर सका है। बताया जा रहा है कि जब भी इस्तेमाल करने की सोची तो काला नाग बनकर हिफाजत करने वाला जिन्नात गृहस्वामी को डस लेता है, अब तक वह उसे 48 बार डस चुका है। इस परिवार के मुखिया ने नाम का खुलासा न करने की शर्त बताया कि करीब 35 साल पहले उसकी दादी को एक जिन्नात ने सपने में बताया कि केन नदी के किनारे खंडहरनुमा जानवर बाड़े में खजाना गड़ा है। खुदाई की गई तो वहां करीब दो किलोग्राम सोने और 20 किलोग्राम चांदी के सिक्के मिले थे, जो अब भी उनके पास मौजूद हैं। 

इस व्यक्ति ने बताया कि इस धन की हर साल पूजा-अर्चना तो कर रहे हैं, लेकिन जब भी उसे खर्च करने के बारे में सोचा जाता है, काला नाग डस लेता है। उसने बताया कि अब तक यह काला नाग उसे 48 बार डस चुका है। इसी गांव के साकिर ने बताया कि जमीन में गड़े धन की जानकारी यहां हर किसी को है, लेकिन जब खर्च नहीं कर सकते तो वह मिट्टी के बराबर है। उन्नाव जिले के डौंड़ियाखेड़ा किले में सोने के खजाने से संबंधित सपने को भी यहां के बुजुर्ग सच मान रहे हैं। बुजुर्गों को उम्मीद है कि संत शोभन सरकार का सपना सच होगा और वहां सोने का खजाना जरूर मिलेगा।

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