आखिर क्यों मनाई जाती है होली


होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। रंगों का त्योहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन को होलिका जलायी जाती है, जिसे होलिका दहन भी कहते है। दूसरे दिन, जिसे धुरड्डी, धुलेंडी, धुरखेल या धूलिवंदन कहा जाता है, लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि फेंकते हैं, ढोल बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं, और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है। इस बार रंगो का यह त्यौहार 23 व 24 मार्च को पड़ रहा है|

आखिर क्यों मनाई जाती है होली-

रंगों से भरा रंगीला त्योहार, बच्चे, वृद्ध, जवान, स्त्री-पुरुष सभी के ह्रदय में जोश, उत्साह, खुशी का संचार करने वाला पर्व है। इसके एक दिन पहले वाले सायंकाल के बाद भद्ररहित लग्न में होलिका दहन किया जाता है। इस अवसर पर लकडियां, घास-फूस, गोबर के बुरकलों का बडा सा ढेर लगाकर पूजन करके उसमें आग लगाई जाती है। वैदिक काल में इस पर्व को नवात्रैष्टि यज्ञ कहा जाता था। उस समय खेत के अधपके अन्न को यज्ञ में दान करके प्रसाद लेने का विधान समाज में व्याप्त था। अन्न को होला कहते है, इसी से इसका नाम होलिकोत्सव पडा। वैसे होलिकोत्सव को मनाने के संबंध में अनेक मत प्रचलित है। कुछ लोग इसको अग्निदेव का पूजन मानते हैं, तो कुछ इसे नवसंम्बवत् को आरंभ तथा बंसतांमन का प्रतीक मानते हैं। इसी दिन प्रथम पुरुष मनु का जन्म हुआ था। अतः इसे मंवादितिथि भी कहते हैं।

एक कथा के अनुसार इस पर्व का संबंध प्रहलाद से है। हिरण्यकश्यपु ने प्रहलाद को मारने के लिए अनेक उपाय किए पर वह मारा नहीं। हिरण्यकश्यपु की बहन होलिका को अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था। इसलिए हिरण्यकश्यपु ने इस वरदान का लाभ उठाकर लकडियों के ढेर में आग लगवाई। फागुन शुक्ल अष्टमी से पूर्णिमा तक आठ दिन होलाष्टक मनाया जाता है । इसी के साथ होली उत्सव मनाने की शुरु‌आत होती है। होलिका दहन की तैयारी भी यहाँ से आरंभ हो जाती है। इस पर्व को नवसंवत्सर का आगमन तथा वसंतागम के उपलक्ष्य में किया हु‌आ यज्ञ भी माना जाता है। वैदिक काल में इस होली के पर्व को नवान्नेष्टि यज्ञ कहा जाता था। पुराणों के अनुसार ऐसी भी मान्यता है कि जब भगवान शंकर ने अपनी क्रोधाग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया था, तभी से होली का प्रचलन हु‌आ।

सबसे ज्यादा प्रचलित हिरण्यकश्यप की कथा है, जिसमें वह अपने पुत्र प्रहलाद को जलाने के लि‌ए बहनहोलिका को बुलाता है। जब होलिका प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठती हैं तो वह जल जाती है और भक्त प्रहलाद जीवित रह जाता है। तब से होली का यह त्योहार मनाया जाने लगा है। होली के दिन आम्र मंजरी तथा चंदन को मिलाकर खाने का बड़ा माहात्म्य है। कहा जाता है कि फागुन पूर्णिमा – होली के दिन जो लोग चित्त को एकाग्र करके हिंडोले (झूला) में झूलते हु‌ए भगवान विष्णु के दर्शन करते हैं, वे निश्चय ही वैकुंठ को जाते हैं।

भविष्य पुराण के अनुसार नारदजी ने महाराज युधिष्ठिर से कहा था कि हे राजन! फागुन पूर्णिमा – होली के दिन सभी लोगों को अभयदान देना चाहि‌ए, ताकि सारी प्रजा उल्लासपूर्वक हँसे और अट्टहास करते हु‌ए यह होली का त्योहार मना‌ए। इस दिन अट्टहास करने, किलकारियाँ भरने तथा मंत्रोच्चारण से पापात्मा राक्षसों का नाश होता है।

होली – होलिका पूजन के समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहि‌ए :-

अहकूटा भयत्रस्तैः कृता त्वं होलि बालिशैः ।
अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम्‌ ॥

होलिका दहन-

होली पूजन के पश्चात होलिका का दहन किया जाता है। यह दहन सदैव उस समय करना चाहि‌ए जब भद्रा लग्न न हो। ऐसी मान्यता है कि भद्रा लग्न में होलिका दहन करने से अशुभ परिणाम आते हैं, देश में विद्रोह, अराजकता आदि का माहौल पैदा होता है। इसी प्रकार चतुर्दशी, प्रतिपदा अथवा दिन में भी होलिका दहन करने का विधान नहीं है। होलिका दहन के दौरान गेहूँ की बाल को इसमें सेंकना चाहि‌ए। ऐसा माना जाता है कि होलिका दहन के समय बाली सेंककर घर में फैलाने से धन-धान्य में वृद्धि होती है। दूसरी ओर होलिया का यह त्योहार न‌ई फसल के उल्लास में भी मनाया जाता है।

होलिका दहन के पश्चात उसकी जो राख निकलती है, जिसे होली – भस्म कहा जाता है, उसे शरीर पर लगाना चाहि‌ए। होली की राख लगाते समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहि‌ए :-

वंदितासि सुरेन्द्रेण ब्रम्हणा शंकरेण च ।
अतस्त्वं पाहि माँ देवी! भूति भूतिप्रदा भव ॥

ऐसा माना जाता है कि होली की जली हु‌ई राख घर में समृद्धि लाती है। साथ ही ऐसा करने से घर में शांति और प्रेम का वातावरण निर्मित होता है।

दुनिया में होली के अनेकों रंग

रंगों का त्यौहार 'होली' का पर्व शुरु हो गया है| होलिका रुपी सामाजिक बुराई और आपसी द्वेष को जड़ से मिटाने का त्यौहार है 'होली'| यह त्यौहार सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक देशों में धूम-धाम से मनाया जाता है| ये जानकार आपको आश्चर्य होगा कि होली भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के तमाम देशों में पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है| इस अवसर पर कई दिनों तक समारोह आयोजित किये जाते हैं और आधिकारिक रूप से होली के आगमन की सूचना दी जाती है|

पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका में भारतीय परंपरा के अनुरूप होली मनाई जाती है| प्रवासी भारतीय दुनिया के जिन-जिन कोनों में जाकर बसे हैं वहां पर होली मनाने की परंपरा है| जिस तरह से भारत में कई प्रकार से होली मनाई जाती है ठीक वैसे ही दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अगल-अलग तरह से होली मनाने का प्रावधान है| कैरिबियाई देशों में लोग इस त्यौहार का बेसब्री से इन्तजार करते हैं|

19वीं सदी के आखिरी और 20वीं सदी की शुरुआत में भारतीय लोग कैरिबियाई देश गए थे| इस दौरान गुआना और सुरिनाम जैसे देशों में बड़ी संख्या में भारतीय जा बसे, जिससे वहां की मिट्टी से भी भारतीय त्यौहारों और रस्मों-रिवाजों की महक आने लगी और लोग धीरे-धीरे इसके रंग में रंगने लगे| वैसे होली को लेकर गुआना में एक अलग ही क्रेज है| गुआना के गांवों में इस अवसर पर विशेष तरह के समारोहों का आयोजन होता है| यहां पर संगीत, नाच-गाना और सांस्कृतिक उत्सवों के जरिए होली मनाई जाती है| यही नहीं अन्य देशों में भी वैसे ही होली मनाई जाती है जैसे कि भारत में|

इसके साथ ही इटली, फ्रांस और अमेरिका में भी होली की धूम होती है| इटली में लोग मूर्तियों का निर्माण करते हैं| इसके बाद इन मूर्तियों को रथ में रखकर जुलूस निकालते हैं| जब ये जुलूस मुख्य चौक पर पहुंचता है तो वहां रखी सूखी लकड़ियों को रथ में रखकर उसमे आग लगा दी जाती है| इस दौरान लोग एक-दूसरे को रंग लगाते हैं और नाच-गाना करते हैं|

इसी तरह फ्रांस में घास से बनी मूर्ति को लोग पूरे शहर में गाजे-बाजे के साथ घूमाते हैं| इसके बाद एक निश्चित स्थान पर पहुंचने पर वह भद्दे शब्द बोलते हुए मूर्ति में आग लगा देते हैं| ऐसा कहा जाता है कि यहां के लोग जिस मूर्ति में आग लगाते हैं वह बुराई की देवी होती है जिसे वह जड़ से खत्म करने के लिए आग के हवाले करते हैं| जर्मनी में भी होली का क्रेज किसी अन्य देश से कम नहीं है| यहां पर होली कुछ अलग तरीके से मनाई जाती है| लोग पेड़ों को काटकर उसके आस-पास घास का ढेर लगा देते हैं| इसके बाद उसमे आग लगाकर परिक्रमा करते हैं| लोग एक-दूसरे के कपड़ों में ठप्पे लगाने के साथ रंग खेलते हैं|

इस तरह होली का त्यौहार सिर्फ भारत में ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है| बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाने वाली होली का त्यौहार हमारे संपूर्ण जीवन में रच बस गया है| इस पर्व पर रंग की तरंग में छाने वाली मस्ती वातावरण में आनंद भर देती है और दिल झूमकर इसके रंग में सराबोर हो जाता है|

जानिए क्यों डालते हैं जलती होली में धान या गेंहूँ


लखनऊ: होली बसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। रंगों का त्यौहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन होलिका जलायी जाती है, जिसे होलिका दहन कहते है। होलिका दहन में एक परंपरा जो बरसों से चली आ रही है वह है जलती होली में नया अन्न या धान डालने की| क्या आप जानते हैं कि आखिर जलती होली में धान या नया अन्न क्यों डाला जाता है अगर नहीं तो आज हम आपको बताते हैं|

आपको बता दें कि इस परंपरा का कारण हमारे देश का कृषि प्रधान होना है। होलिका के समय खेतों में गेहूं और चने की फसल आती है। ऐसा माना जाता है कि इस फसल के धान के कुछ भाग को होलिका में अर्पित करने पर यह धान सीधा नैवैद्य के रूप में भगवान तक पहुंचता है। होलिका में भगवान को याद करके डाली गई हर एक आहूति को हवन में अर्पित की गई आहूति के समान माना जाता है।

इसके अलावा यह भी मान्यता है कि इस तरह से नई फसल के धान को भगवान को नैवैद्य रूप में चढ़ा कर और फिर उसे घर में लाने से घर हमेशा धन-धान्य से भरा रहता है। इसलिए होलिका में धान डालने की परंपरा बनाई गई। आज भी हमारे देश के कई क्षेत्रों में इस परंपरा का अनिवार्य रूप से निर्वाह किया जाता है। इसलिए याद रहे जब भी आप होलिका दहन में जाएँ तो अपने साथ धान या फिर नया अन्न जरुर लेकर जाएँ|

अश्लील और द्विअर्थी होली गीतों से संस्कृति हो रही दूषित

लखनऊ: एक समय था जब वसंत पंचमी के दिन ही होलिका स्थापित करने के बाद जोगीरा और होली गीतों की मदमस्त राग से वातावरण ओत-प्रोत हो जाता था। तब के होली गीतों में राग-विहाग, सुर लय ताल, साहित्य, विनम्रता, सौम्यता एवं संस्कारित संदेश हुआ करते थे, मगर अफसोस कि अब ऐसा नहीं है। 'होली खेले रघुबीरा अवध में..,' 'गौरा संग लिए शिवशंकर खेलत फाग..,' 'आज बिरज में होरी रे रसिया..,' जैसे कर्णप्रिय होली गीतों पर देर रात तक थिरकते लोग प्रेम एवं मस्ती के सागर में विभोर हो जाया करते थे। अब ऐसे मदमस्त गीत सुनाई नहीं देते। इनका स्थान ले लिया है अश्लील और द्विअर्थी गानों ने।

होली आज अश्लीलता का पर्याय बन गई है। बीच में कुछ फिल्मी होली गीत भी आए जो लोगों की जुबान पर चढ़े तो आज तक नहीं उतरे। जैसे- फिल्म 'सिलसिला' का यह गीत 'रंग बरसे भीगे चुनरवाली, रंग बरसे..' फिल्म 'मदर इंडिया' का गाना 'होली आई रे कन्हाई रंग बरसे..' और 'कोहिनूर' का गाना 'तन रंग लो जी, मन रंग लो जी' तथा फिल्म 'कटी पतंग' का गाना 'आज न छोड़ेंगे बस हमजोली, खेलेंगे हम होली'.. लेकिन आज के बदलते परिवेश में संस्कारित होली गीतों के मस्ती के सागर में अश्लीलता एवं फूहड़ता का ऐसा प्रदूषण फैल गया है कि इससे समाज का प्रबुद्ध वर्ग मर्माहत है।

वरिष्ठ नागरिकों के मुताबिक आज की होली का स्वरूप तो आंखों से देखा नहीं जाता, गीत परिवार में सुनने लायक नहीं रहे। अपने पुराने दिनों को याद करते हुए ये लोग कहते हैं कि सभी एक साथ मिलकर होली मनाते थे। बुजुर्गों का कहना है कि एक वक्त था जब वास्तव में होली दुश्मनी भुलाकर गले मिलने का पर्व था, अब तो होली के बहाने लोग दुश्मनी निकालने लगे हैं। पहले होली गीतों में देवर-भाभी संवाद-'अखियां त हउवे जैसे ठाकुर जी बुझालें नकिया सुगनवा के ठोर, अस मन करेला की छर देना छींट देतीं, लेइ लेत बबुआ बटोर' जैसे संवाद हुआ करते थे वहीं आज के परिवेश में 'धीरे से रंगवा डालू रे देवरा भीतरा लगेला पाला रे' तथा 'छोड़ब ना तो के पतरकी, चाहे चली लाठी भाला..' आदि बेसिर-पैर और द्विअर्थी संवादों से युक्त होली गीत संस्कृति को दूषित कर रहे हैं।

होलिका दहन 23 को, जानिए क्या है शुभ समय

होली का त्यौहार हमारी पौराणिक कथाओं में श्रद्धा विश्वास और भक्ति का त्यौहार माना गया है तथा साथ ही होली के दिन किये जाने वाले अद्‌भूत प्रयोगों से मानव अपने जीवन में आने वाले संकटों से मुक्ति भी पा सकता है। होली हर वर्ष फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को मनायी जाती है तथा भद्रारहित समय में होली का दहन किया जाता हैं। इस बार होलिका दहन 23 मार्च दिन बुधवार को है| आपको बता दें कि प्रदोष व्यापिनी फाल्गुन पूर्णिमा के दिन भ्रद्रारहित काल में होलिका दहन किया जाता हैं|

होलिका दहन में आहुतियाँ देना बहुत ही जरुरी माना गया है इसलिए याद रहे कि होलिका दहन में आहुतियाँ जरुर दें| होलिका दहन होने के बाद होलिका में जिन वस्तुओं की आहुति दी जाती है, उसमें कच्चे आम, नारियल, भुट्टे या सप्तधान्य, चीनी के बने खिलौने, नई फसल का कुछ भाग है. सप्त धान्य है, गेंहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर आदि है|

पूजन विधि -

ध्यान रहे होलिका दहन से पहले होली की पूजा की जाती है| जिस वक्त आप होली की पूजा कर रहे हों उस समय आपका मुख पूर्व या उतर दिशा की ओर होना चाहिए उसके पश्चात निम्न सामग्रियों का प्रयोग करना चाहिए| एक लोटा जल, माला, रोली, चावल, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल आदि का प्रयोग करना चाहिए| इसके अलावा नई फसल के धान्यों जैसे- पके चने की बालियां व गेंहूं की बालियां भी सामग्री के रुप में रखी जाती है| इसके बाद होलिका के पास गोबर से बनी ढाल रख दें|

होलिका दहन मुहुर्त समय में जल, मोली, फूल, गुलाल तथा गुड आदि से होलिका की पूजा करें| गोबर से बनाई गई ढाल की चार मालाएं अलग से घर लाकर सुरक्षित रख लें इसमें से एक माला पितरों के नाम की, दूसरी हनुमान जी के नाम की, तीसरी शीतला माता के नाम की तथा चौथी अपने घर- परिवार के नाम की होती है|

होली – होलिका पूजन के समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहि‌ए :-

अहकूटा भयत्रस्तैः कृता त्वं होलि बालिशैः ।
अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम्‌ ॥

होलिका दहन के पश्चात उसकी जो राख निकलती है, जिसे होली – भस्म कहा जाता है, उसे शरीर पर लगाना चाहि‌ए। होली की राख लगाते समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहि‌ए :-

वंदितासि सुरेन्द्रेण ब्रम्हणा शंकरेण च ।
अतस्त्वं पाहि माँ देवी! भूति भूतिप्रदा भव ॥

ऐसा माना जाता है कि होली की जली हु‌ई राख घर में समृद्धि लाती है। साथ ही ऐसा करने से घर में शांति और प्रेम का वातावरण निर्मित होता है।

शुभ मुहूर्त-

होली पूजन के पश्चात होलिका का दहन किया जाता है। यह दहन सदैव उस समय करना चाहि‌ए जब भद्रा लग्न न हो। ऐसी मान्यता है कि भद्रा लग्न में होलिका दहन करने से अशुभ परिणाम आते हैं, देश में विद्रोह, अराजकता आदि का माहौल पैदा होता है। इसी प्रकार चतुर्दशी, प्रतिपदा अथवा दिन में भी होलिका दहन करने का विधान नहीं है। होलिका दहन के दौरान गेहूँ की बाल को इसमें सेंकना चाहि‌ए। ऐसा माना जाता है कि होलिका दहन के समय बाली सेंककर घर में फैलाने से धन-धान्य में वृद्धि होती है। दूसरी ओर होलिया का यह त्योहार न‌ई फसल के उल्लास में भी मनाया जाता है।

तो आइए जाने इस वर्ष क्या है शुभ मुहूर्त-

ज्योतिषियों की माने तो उनका कहना है कि इस बार 22 मार्च को किया जाना था लेकिन इस दिन भद्रा 3.12 बजे से शुरू होकर मध्यरात्रि पश्चात अगले दिन 4.11 बजे तक रहेगी। यह सूर्योदय के पूर्व है, इसलिए 4.11 बजे के बाद होलिका दहन के बाद 23 को धुलेंडी मनाई जा सकती है।

सहजन के लाभ

सहजन से तो आप भलि-भाति परिचित होगें। यह एक ऐसी हरी सब्‍जी है जो बाजार में चारों ओर बिकती है पर हम में ऐसे बहुत से लोग हैं तो इस सब्‍जी को देख कर भी अनदेखा कर देते हैं। सहजन की सब्‍जी ही नहीं बल्‍कि इसके पेड़ के विभिन्‍न भाग के अनेको प्रयोग पुराने जमाने से ही किये जा रहे हैं। सहजन के बीज से तेल निकाला जाता है और छाल पत्ती, गोंद, जड़ आदि से आयुर्वेदिक दवाएं तैयार की जाती हैं। सहजन कई बीमारियों को दूर करती है और शरीर के हर अंग को मजबूती भी देती है क्‍योंकि इसमें बहुत सारे पोषक तत्‍व भरे हुए हैं। सहजन (ड्रमस्टिक्स) या मुनगा जड़ से लेकर फूल और पत्तियों तक सेहत का खजाना है। सहजन के ताजे फूल और गाय का दूध ऐसा हर्बल टॉनिक है जिससे पुरुषों की मर्दाना कमजोरी और महिलाओं में सेक्स की कमजोरी दूर होती है।

सहजन की छाल का पावडर रोज लेने से वीर्य की गुणवत्ता में सुधार होता है तथा पुरुषों में शीघ्रपतन की समस्या भी दूर होती है। छाल का पावडर, शहद और पानी से ऐसा मिश्रण तैयार होता है जो शीघ्रपतन की समस्या का अचूक इलाज है। मुनगा या सहजन या ड्रम स्टिक्स की करीब 50 ग्राम पत्तियों को लेकर चटनी बनाए जाए तो यह पेट के कृमियों को बाहर निकाल फेंकने में काफी कारगर होती है। चटनी बनाने के लिए पत्तियों को बारीक कुचल लिया जाए, इसमें स्वादानुसार नमक और मिर्च पाउडर भी मिला लिया जाए और इस पूरे मिश्रण को तवे या कढाही पर आधा चम्मच तेल डालकर कुछ देर भून लिया जाए। सप्ताह में एक या दो बार इस चटनी का सेवन बेहद गुणकारी होता है।

सहजन की पत्तियों का सूप टीबी, ब्रोंकाइटिस तथा अस्थमा पर नियंत्रण के लिए कारगर समझा जाता है। इसका स्वाद बढ़ाने के लिए नींबू का रस, कालीमिर्च और सेंधा नमक मिलाया जा सकता है। सहजन में हाई मात्रा में ओलिक एसिड होता है जो कि एक प्रकार का मोनोसैच्‍युरेटेड फैट है और यह शरीर के लिये अति आवश्‍यक है। सहजन में विटामिन सी की मात्रा बहुत होती है। विटामिन सी शीर के कई रोगों से लड़ता है, खासतौर पर सर्दी जुखाम से। अगर सर्दी की वजह से नाक कान बंद हो चुके हैं तो, आप सहजन को पानी में उबाल कर उस पानी का भाप लें। इससे जकड़न कम होगी। महिलाओं के लिए सहजन का सेवन माहवारी संबंधी परेशानियों के अलावा गर्भाशय की समस्याओं से भी बचाता है।

यह हाजमें के लिए सबसे मुफीद सब्जी मानी जाती है। ताजी पत्तियों को निचो़ड़कर निकाले गए रस को एक चम्मच शहद तथा एक गिलास नारियल के पानी के साथ लेना चाहिए। इससे कॉलरा, डायरिया, डीसेंट्री, पीलिया तथा कोलाइटिस की समस्या में आराम मिलता है। अगर पेशाब में अधिक मात्रा में यूरिया जा रहा हो तो मरीज को सहजन की ताजी पत्तियों के निचोड़े हुए रस के साथ खीरा या गाजर के रस के मिलाकर पिला दें। इससे तत्काल आराम मिलता है। सहजन की ताजा पत्तियों के निचोड़े हुए रस के साथ नींबू के रस से मुंहासों का कारगर इलाज किया जाता है। इससे ब्लेक स्पॉट्स हटते हैं साथ ही उम्र के कारण थकी और कांति हीन त्वचा में नई जान फूंकी जा सकती है। इसी के साथ ही सहजन के फूलों के साथ पत्तियां, सहजन के बीज और जड़ से शरीर में हुई गठानों का इलाज किया जा सकता है।

जड़ रूखी और स्वाद में कड़वी होती है लेकिन फेफड़ों के लिए बढ़िया टॉनिक के रूप में काम करती है। यह कफ को बाहर निकालती है। मूत्रवर्धक होने से मूत्र संबंधी विकारों का निवारण भी करती है। इसमें कैल्‍शियम की मात्रा अधिक होती है जिससे हड्डियां मजबूत बनती है। इसके अलावा इसमें आइरन, मैग्‍नीशियम और सीलियम होता है। पुराने समय से ही सजहन का प्रयोग यौन शक्‍ति को बढाने के लिये किया जा रहा है। ऐसा इसलिये क्‍योंकि इसमें जिंक होता है जो स्‍पर्म बढाता है। जड़ों से तैयार किए गए रस से त्वचा के कई रोगों में राहत मिलती है।

सहजन की पत्‍तियों के साथ ही सजहन का फल भी बी कामप्‍लेक्‍स से भरा होता है। इसमें बहुत सारा विटामिन जैसे, विटामिन बी6, नियासिन, राइबोफ्लेविन और फॉलिक एसिड होता है। सहजन में विटामिन ए होता है जो कि पुराने समय से ही सौंदर्य के लिये प्रयोग किया आता जा रहा है। अगर आप इस हरी सब्‍जी को अक्‍सर अपने खाने में शामिल करेंगी तो आप कभी बूढी नहीं होंगी। इससे आंखों की रौशनी भी अच्‍छी होती है। आप सहजन को सूप के रूप में पी सकती हैं, इससे शरीर का रक्‍त साफ होता है। पिंपल जैसी समस्‍याएं तभी सही होंगी जब आपका खून अंदर से साफ होगा।

सहजन के छाल में शहद मिलाकर पीने से वातए व कफ रोग शांत हो जाते है, इसकी पत्ती का काढ़ा बनाकर पीने से गठिया, शियाटिका ,पक्षाघात,वायु विकार में शीघ्र लाभ पहुंचता है, शियाटिका के तीव्र वेग में इसकी जड़ का काढ़ा तीव्र गति से चमत्कारी प्रभाव दिखता है। सहजन को अस्सी प्रकार के दर्द व बहत्तर प्रकार के वायु विकारों का शमन करने वाला बताया गया है। सहजन की सब्जी खाने से पुराने गठिया और जोड़ों के दर्द व् वायु संचय , वात रोगों में लाभ होता है। सहजन के ताज़े पत्तों का रस कान में डालने से दर्द ठीक हो जाता है। सहजन की सब्जी खाने से गुर्दे और मूत्राशय की पथरी कटकर निकल जाती है। सहजन की जड़ की छाल का काढा सेंधा नमक और हिंग डालकर पीने से पित्ताशय की पथरी में लाभ होता है।

सहजन के पत्तों का रस बच्चों के पेट के कीड़े निकालता है और उलटी दस्त भी रोकता है। सहजन फली का रस सुबह शाम पीने से उच्च रक्तचाप में लाभ होता है। सहजन की पत्तियों के रस के सेवन से मोटापा धीरे धीरे कम होने लगता है। सहजन. की छाल के काढ़े से कुल्ला करने पर दांतों के कीड़ें नष्ट होते है और दर्द में आराम मिलता है। सहजन के कोमल पत्तों का साग खाने से कब्ज दूर होती है। सहजन. की जड़ का काढे को सेंधा नमक और हींग के साथ पिने से मिर्गी के दौरों में लाभ होता है। सहजन की पत्तियों को पीसकर लगाने से घाव और सुजन ठीक होते है।

सहजन के पत्तों को पीसकर गर्म कर सिर में लेप लगाए या इसके बीज घीसकर सूंघे तो सर दर्द दूर हो जाता है .सहजन के गोंद को जोड़ों के दर्द और शहद को दमा आदि रोगों में लाभदायक माना जाता है। सहजन में विटामिन सी की मात्रा बहुत होती है। विटामिन सी शरीर के कई रोगों से लड़ता है खासतौर पर सर्दी जुखाम से। अगर सर्दी की वजह से नाक कान बंद हो चुके हैं तोए आप सहजन को पानी में उबाल कर उस पानी का भाप लें। इससे जकड़न कम होगी। सहजन में कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है जिससे हड्डियां मजबूत बनती है। इसके अलावा इसमें आयरन , मैग्नीशियम और सीलियम होता है। सहजन के बीजों का तेल शिशुओं की मालिश के लिए प्रयोग किया जाता है। त्वचा साफ करने के लिए सहजन के बीजों का सत्व कॉस्मेटिक उद्योगों में बेहद लोकप्रिय है। सत्व के जरिए त्वचा की गहराई में छिपे विषैले तत्व बाहर निकाले जा सकते हैं।

इसमें कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है, जिससे हड्डियां मजबूत बनती है। इसके अलावा इसमें आयरन, मैग्नीशियम और सीलियम होता है। इसीलिए महिलाओं व बच्चों को इसका सेवन जरूर करना चाहिए। इसमें जिंक भी भरपूर मात्रा में पाया जाता है जो कि पुरुषों की कमजोरी दूर करने में अचूक दवा का काम करता है। इसकी छाल का काढ़ा और शहद के प्रयोग से शीघ्र पतन की बीमारी ठीक हो जाती है और यौन दुर्बलता भी समाप्त हो जाती है। सहजन में ओलिक एसिड भरपूर मात्रा में पाया जाता है। यह एक तरह का मोनोसैच्युरेटेड फैट है और यह शरीर के लिए अति आवश्यक है। साथ ही सहजन में विटामिन सी बहुत मात्रा में होता है। यह कफ की समस्या में भी रामबाण दवा की तरह काम करता है। जुकाम में सहजन को पानी में उबाल कर उस पानी का भाप लें।

यहां बजरंग बली को चढ़ता है नारियल का भोग, मुंह में रखते ही हो जाते हैं दो टुकड़े

अभी तक आपने श्रीराम भक्त हनुमान के कई मंदिरों के बारे में देखा और सुना होगा लेकिन आज हम बजरंग बली एक ऐसे अनूठे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके बारे में आप भी सुनकर भौचक्के रह जाएंगे। हनुमान जी का यह अनूठा मंदिर है गुजरात के बोटाद शहर के पास स्थित सारंगपुर का हनुमान मंदिर। यहां मारूतिनंदन को नारियल का भोग चढ़ाया जाता है जो कि उनकी प्रतिमा के मुंह में रख दिया जाता है। मूर्ति नारियल का आधा हिस्सा हाथ से भक्त को वापस दे देती है जबकि बचा हुआ हिस्सा हनुमानजी को अर्पित हो जाता है।

मंदिर के महंत श्रीलालभाई के अनुसार इस प्रतिमा को इसी उद्देश्य से बनाया गया है। उन्होंने मंदिर को साफ-सुथरा रखने के मकसद से इसकी पहल की है। उन्होंने बताया कि मंदिरों में नारियल फोड़ने के चलते गंदगी का माहौल रहता है। इसीलिए हमने ऐसी मूर्ति का निर्माण करवाया, जिससे भगवान को प्रसाद भी अर्पित हो जाए और गंदगी भी न हो।

उन्होंने बताया कि वास्तव में मूर्ति के मुंह में एक मशीन लगाई गई है जो नारियल के दो टुकड़े कर देती है। मूर्ति के मुंह से नारियल अंदर जाता है जहां मशीन के जरिए दो हिस्सों में बंट जाता है। एक टुकड़ा प्रतिमा के हाथ के जरिए बाहर आ जाता है जिसे श्रद्धालुजनों को प्रसाद के रूप में दे दिया जाता है जबकि बचा हुआ दूसरा हिस्सा मशीन में चला जाता है जिसे मंदिर प्रशासन भोग के रूप में स्वीकार कर लेता है।

अरे ओ सांभा, होली कब है रे?

रंगों का त्योहार होली करीब आ चुका है। हर किसी पर रंगों की खुमारी छाने लगी है, लेकिन इस बार होली को लेकर सभी कन्फ्यूज है और इस कन्फ्यूजन को देखकर ‘शोले’ फिल्म का वह डायलॉग याद आता है, जब गब्बर पूछता है, “अरे ओ सांभा, होली कब है रे?”

दरअसल, होली की छुट्टी 24 मार्च को है और लोग 23 मार्च को होली खेलने की तैयारी कर रहे हैं, जिससे लोग कन्फ्यूज हो रहे हैं कि आखिर वह किस दिन होली खेलें?

क्या कहता है पंचांग?

अगर बात करें पंचांग की, तो उसमें होली खेलने की तारीख 24 मार्च है और यही तारीख सरकारी कैलेंडर में भी है। इसीलिए सरकारी और प्राइवेट दफ्तरों में होली की छुट्टी 24 मार्च को ही है। प्रशासन की शराब बंदी भी 24 मार्च को ही है। धर्माचार्यो के अनुसार, 22 और 23 मार्च की रात 2.30 बजे से पूर्णिमा तिथि लगेगी। इसके बाद ही होलिका दहन शुभ है। इसीलिए 23 मार्च को ही होलिका दहन होगा और होली खेली जाएगी।

237 साल बाद आया ऐसा योग :

22 मार्च को दोपहर 2.29 बजे तक चतुर्दशी तिथि रहेगी। 22 और 23 मार्च की रात 2.30 बजे से पूर्णिमा तिथि लगेगी। हिन्दू पंचांग के हिसाब से ऐसा योग 237 साल बाद आया है।

हमरे अंगना मा फिर से आओ प्यारी गौरैया

कभी हमारे घरों को अपनी चीं..चीं से चहकने वाली गौरैया अब नहीं दिखाई देती है| इस छोटे आकार वाले खूबसूरत पक्षी का कभी इंसान के घरों में बसेरा हुआ करता था और बच्चे बचपन से इसे देखते बड़े हुआ करते थे लेकिन आज वह स्थिति आ गई है कि कभी कभार ही घरों में देखेने को मिलती हैं| दोपहर के समय जब व्यक्ति थका हारा अपने घर में आराम करता था तो मिट्टी के घरों में गौरैया अपने बच्चों को दाना चुगाया करती थी, तो बच्चे इसे बड़े कौतूहल से देखते थे। लेकिन अब तो इसके दर्शन भी मुश्किल हो गए हैं और यह विलुप्त हो रही प्रजातियों की सूची में आ गई है। भारत में गौरैया की संख्या घटती ही जा रही है। इस नन्हें से परिंदे को बचाने के लिए प्रत्येक वर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस के रूप में मनाया जाता है।

पर्यावरण संरक्षण में गौरैया के महत्व व भूमिका के प्रति लोगों का ध्यान आकृष्ट करने तथा इस पक्षी के संरक्षण के प्रति जनजागरूकता उत्पन्न करने के इरादे से यह आयोजन किया जाता है। यह दिवस पहली बार वर्ष 2010 में मनाया गया था। वैसे देखा जाए तो इस नन्ही गौरैया के विलुप्त होने का कारण मानव ही है। हमने तरक्की तो बहुत की लेकिन इस नन्हें पक्षी की तरक्की की तरफ कभी ध्यान नहीं दिया। यही कारण है कि जो दिवस हमें खुशी के रूप में मनाना चाहिए था, वो हम आज इसलिए मनाते हैं कि इनका अस्तित्व बचा रहे।

वक्त के साथ जमाना बदला और छप्पर के स्थान पर सीमेंट की छत आ गई। आवासों की बनावट ऐसी कि गौरैया के लिए घोंसला बनाना मुश्किल हो गया। एयरकंडीशनरों ने रोशनदान तो क्या खिड़कियां तक बन्द करवा दीं। गौरैया ग्रामीण परिवेश का प्रमुख पक्षी है, किन्तु गांवों में फसलों को कीटों से बचाने के लिए कीटनाशकों के प्रयोग के कारण गांवों में गौरैया की संख्या में कमी हो रही है। पहले घर-घर दिखने वाली इस गौरैया के संरक्षण अभियान में अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी जुड़ गए हैं। उन्होंने राज्य की जनता से गौरैया को लुप्त होने से बचाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की अपील की है।

उन्होंने गौरैया के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु वन विभाग से प्रदेश स्तर पर अभियान चलाने के लिए कहा है। प्रकृति ने सभी वनस्पतियों और प्राणियों के लिए विशिष्ट भूमिका निर्धारित की है। इसलिए पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं को पूरा संरक्षण प्रदान किया जाए। गौरैया के संरक्षण में इंसानों की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। आवास की छत, बरामदे अथवा किसी खुले स्थान पर बाजरा या टूटे चावल डालने व उथले पात्र में जल रखने पर गौरैया को भोजन व पीने का जल मिलने के साथ-साथ स्नान हेतु जल भी उपलब्ध हो जाता है। बाजार से नेस्ट हाउस खरीद कर लटकाने अथवा आवास में बरामदे में एक कोने में जूते के डिब्बे के बीच लगभग चार से.मी. व्यास का छेद कर लटकाने पर गौरैया इनमें अपना घांेसला बना लेती है। सिर्फ एक दिन नहीं हमें हर दिन जतन करना होगा गौरैया को बचाने के लिए।

गौरैया महज एक पक्षी नहीं है, ये हमारे जीवन का अभिन्न अंग भी रहा है। बस इनके लिए हमें थोड़ी मेहनत रोज करनी होगी। छत पर किसी खुली छावदार जगह पर कटोरी या किसी मिट्टी के बर्तन में इनके लिए चावल और पीने के लिए साफ बर्तन में पानी रखना होगा। फिर देखिये रूठा दोस्त कैसे वापस आता है।

गर्भवती महिलाएं नन्हीं ज़िंदगी का ख्याल रखकर खेलें होली

होली खुशियों और मस्ती से भरपूर त्योहार है, लाजिमी है कि गर्भावस्था के दौरान भी महिलाएं रंगों से सराबोर होना और दूसरे को भिगोना चाहेंगी। इसमें कोई हर्ज नहीं है, मगर थोड़ी सावधानी बरतने की जरूरत है, ताकि त्योहार का मजा किरकिरा न होने पाए। होली एक ऐसा खुशियों और मस्ती से भरा हुआ त्योहार है, जिसका हर कोई अपने परिवार और दोस्तों के साथ लुत्फ उठाना चाहता है। वहीं गर्भवती महिलाओं के लिए होली में रंगों से खेलना खतरे से खाली नहीं है। ऐसे में गर्भवती महिलाओं को खान-पान का भी खास ख्याल रखना बेहद आवश्यक है।

विशेषज्ञों का मानना है की गर्भवती महिलाओं में प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिस कारण बीमारी और संक्रमण बढ़ जाते हैं। साथ ही वह ये भी मानती हैं कि गर्भवस्था के दौरान रासायनिक रंगों से होली खेलने से महिलाओं को शारीरिक तौर पर प्रभावित होना पड़ सकता है। ऐसे में रासायनिक रंगों से दूर रहना ही फायदेमंद होगा, क्योंकि ये पदार्थ एसिड, माइका, ग्लास पाउडर, अल्कालिस, लीड, बेंजीन, तथा एरोमेटिक कंपाउंड के जरिए बनाए जाते हैं।

कभी-कभी रंगों को बनाने के लिए डाई का भी इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे पदार्थ तंत्रिका तंत्र, गुर्दे तथा जनन तंत्र को प्रभावित कर सकते हैं। गायनिकोलॉजिस्ट एवं ऑब्स्टेट्रिशन नर्चर आईवीएफ सेंटर की डॉ.अर्चना धवन बजाज कुछ सावधानी बरतने की सलाह देती हैं, ताकि गर्भवती महिलाओं का स्वास्थ्य न बिगड़े और उनमें त्योहार का उत्साह बना रहे। डॉ. अर्चना बताती हैं कि सावधानी न बरतने पर समय से पहले बच्चे का जन्म होना, जन्म के दौरान बच्चे के वजन में कमी तथा गर्भपात जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। उनका सुझाव है कि गर्भवती महिलाएं हर्बल के रंगों से खेल सकती हैं, जो फलों तथा फूलों से बनाए जाते हैं।

याद रखें, होली खेलना एक तरह का मनोरंजन है। मगर गर्भवतियों को ध्यान रखना चाहिए कि अब सिर्फ आप नहीं हैं, आपके साथ एक नन्ही जिंदगी भी है, जिसका पूरा ख्याल रखना है। होली खेलते वक्त पानी से सतर्क रहें, क्योंकि आप फिसल सकती हैं। फिसलने पर बच्चे के लिए बहुत सी परेशानियां खड़ी हो सकती हैं। डॉ. अर्चना धवन बजाज साफ तौर पर शराब जैसी पदार्थ के सेवन को मना करती हैं। हालांकि भांग जोकि प्राकृतिक चीज है, मगर उसका नशा भी बच्चे के जीवन के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।

उनकी सलाह है कि मिठाई और सॉफ्ट ड्रिंक्स का सेवन न के बराबर करें, क्योंकि इन पदार्थों से शुगर बढ़ जाता है, जो होने वाले शिशु के लिए लाभकारी नहीं है। गर्भावस्था के समय अगर जेस्टेशनल डायबिटीज के अवसर भी पैदा हो जाते हैं तो आपको ऐसी अव्यवस्था में कोई खतरा नहीं उठाना चाहिए। आप मिठाई का सेवन कर सकती हैं, मगर बहुत कम मात्रा में। होली खेलने के बाद अपने आप को पूरी तरह से साफ करें। लोग कई बार रंगों को साफ करने के लिए मिट्टी का तेल, नेल पेंट रिमूवर जैसी चीजों का इस्तेमाल करते हैं, मगर आपको ऐसा कुछ करने की जरूरत नहीं है। आप रंगों को हटाने के लिए बेसन का भी प्रयोग कर सकती हैं जो पूरी तरह प्राकृतिक है।

-अगर आप पर किसी ने गिला या रसायन युक्त रंग डाल दिया है तो तुरंत अपने चेहरे को साफ पानी से धोएं।

-नमकीन पानी या सिरके का सेवन न करें, क्योंकि उससे उलटी हो सकती है।

-रंगों को हटाने के लिए हर्बल चीजों का ही इस्तमाल करें।

-रंग लगी त्वचा पर जलन, सूखापन या फुंसी हो जाए तो डॉक्टर से जांच करवाएं।

-अपनी आंखों को रंग व गुलाल से बचाएं।

जानिए कहां जली थी होलिका!

देश में इन दिनों ‘भारत माता की जय’ पर जिरह छिड़ी हुई है इतना ही नहीं जय के आधार पर ही देशभक्त और देशद्रोही तय किए जा रहे हैं, मगर बुंदेलखंड के झांसी जिले में ‘वीरा’ एक ऐसा गांव है, जहां होली के मौके पर हिंदू ही नहीं, मुसलमान भी देवी के जयकारे लगाकर गुलाल उड़ाते हैं। झांसी के मउरानीपुर कस्बे से लगभग 12 किलोमीटर दूर है वीरा गांव। यहां हरसिद्घि देवी का मंदिर है। यह मंदिर उज्जैन से आए परिवार ने वर्षो पहले बनवाया था, इस मंदिर में स्थापित प्रतिमा भी यही परिवार अपने साथ लेकर आए थे।

मान्यता है कि इस मंदिर में आकर जो भी मनौती (मुराद) मांगी जाती है, वह पूरी होती है। क्षेत्र के पूर्व विधायक प्रागीलाल बताते हैं कि वीरा गांव में होली का पर्व उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है, यहां होलिका दहन से पहले ही होली का रंग चढ़ने लगता है, मगर होलिका दहन के एक दिन बाद यहां की होली सांप्रदायिक सद्भाव का संदेश देने वाली होती है। जिसकी मनौती पूरी होती है, वे होली के मौके पर कई किलो व क्विंटल तक गुलाल लेकर हरसिद्धि देवी के मंदिर में पहुंचते हैं। यही गुलाल बाद में उड़ाया जाता है।

प्रागीलाल का कहना है कि इस होली में हिंदुओं के साथ मुसलमान भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं और देवी के जयकारे भी लगाते हैं। होली के मौके पर यहां का नजारा उत्सवमय होता है, क्योंकि लगभग हर घर में मेहमानों का डेरा होता है, जो मनौती पूरी होने के बाद यहां आते हैं। स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार अशोक गुप्ता ने बताया कि बुंदेलखंड सांप्रदायिक सदभाव की मिसाल रहा है। यहां कभी धर्म के नाम पर विभाजन रेखाएं नहीं खिंची हैं। होली के मौके पर वीरा में आयोजित समारोह इस बात का जीता जागता प्रमाण है।

यहां फाग (जिसे भोग की फाग कहा जाता है) के गायन की शुरुआत मुस्लिम समाज का प्रतिनिधि ही करता रहा है, उसके गायन के बाद ही गुलाल उड़ने का क्रम शुरू होता रहा है। अब सभी समाज के लोग फाग गाकर होली मनाते हैं। इसमें मुस्लिम भी शामिल होते हैं। व्यापारी हरिओम साहू के मुताबिक, होली के मौके पर इस गांव के लोग पुराने कपड़े नहीं पहनते, बल्कि नए कपड़ों को पहनकर होली खेलते हैं, क्योंकि उनके लिए यह खुशी का पर्व है।

सामाजिक कार्यकर्ता संजय सिंह होली को बुंदेलखंड के लोगों के लिए सांप्रदायिक सद्भाव और सामाजिक समरसता का पर्व बताते हैं। उनका कहना है कि होली ही एक ऐसा त्योहार है, जब यहां के लोग सारी दूरियों और अन्य कुरीतियों से दूर रहते हुए एक दूसरे के गालों पर गुलाल और माथे पर तिलक लगाते हैं। वीरा गांव तो इसकी जीती-जागती मिसाल है।

बुंदेलखंड के वीरा गांव की होली उन लोगों के लिए भी सीख देती है, जो धर्म और जय के नाम पर देश में देशभक्त और देशद्रोह की बहस को जन्म दे रहे हैं। अगर देश का हर गांव और शहर ‘वीरा’ जैसा हो जाए, तो विकास और तरक्की की नई परिभाषाएं गढ़ने से कोई रोक नहीं सकेगा।

यहां गुलाल उड़ाकर मुसलमान लगाते हैं देवी के जयकारे!

देश में इन दिनों ‘भारत माता की जय’ पर जिरह छिड़ी हुई है इतना ही नहीं जय के आधार पर ही देशभक्त और देशद्रोही तय किए जा रहे हैं, मगर बुंदेलखंड के झांसी जिले में ‘वीरा’ एक ऐसा गांव है, जहां होली के मौके पर हिंदू ही नहीं, मुसलमान भी देवी के जयकारे लगाकर गुलाल उड़ाते हैं। झांसी के मउरानीपुर कस्बे से लगभग 12 किलोमीटर दूर है वीरा गांव। यहां हरसिद्घि देवी का मंदिर है। यह मंदिर उज्जैन से आए परिवार ने वर्षो पहले बनवाया था, इस मंदिर में स्थापित प्रतिमा भी यही परिवार अपने साथ लेकर आए थे।

मान्यता है कि इस मंदिर में आकर जो भी मनौती (मुराद) मांगी जाती है, वह पूरी होती है। क्षेत्र के पूर्व विधायक प्रागीलाल बताते हैं कि वीरा गांव में होली का पर्व उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है, यहां होलिका दहन से पहले ही होली का रंग चढ़ने लगता है, मगर होलिका दहन के एक दिन बाद यहां की होली सांप्रदायिक सद्भाव का संदेश देने वाली होती है। जिसकी मनौती पूरी होती है, वे होली के मौके पर कई किलो व क्विंटल तक गुलाल लेकर हरसिद्धि देवी के मंदिर में पहुंचते हैं। यही गुलाल बाद में उड़ाया जाता है।

प्रागीलाल का कहना है कि इस होली में हिंदुओं के साथ मुसलमान भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं और देवी के जयकारे भी लगाते हैं। होली के मौके पर यहां का नजारा उत्सवमय होता है, क्योंकि लगभग हर घर में मेहमानों का डेरा होता है, जो मनौती पूरी होने के बाद यहां आते हैं। स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार अशोक गुप्ता ने बताया कि बुंदेलखंड सांप्रदायिक सदभाव की मिसाल रहा है। यहां कभी धर्म के नाम पर विभाजन रेखाएं नहीं खिंची हैं। होली के मौके पर वीरा में आयोजित समारोह इस बात का जीता जागता प्रमाण है।

यहां फाग (जिसे भोग की फाग कहा जाता है) के गायन की शुरुआत मुस्लिम समाज का प्रतिनिधि ही करता रहा है, उसके गायन के बाद ही गुलाल उड़ने का क्रम शुरू होता रहा है। अब सभी समाज के लोग फाग गाकर होली मनाते हैं। इसमें मुस्लिम भी शामिल होते हैं। व्यापारी हरिओम साहू के मुताबिक, होली के मौके पर इस गांव के लोग पुराने कपड़े नहीं पहनते, बल्कि नए कपड़ों को पहनकर होली खेलते हैं, क्योंकि उनके लिए यह खुशी का पर्व है।

सामाजिक कार्यकर्ता संजय सिंह होली को बुंदेलखंड के लोगों के लिए सांप्रदायिक सद्भाव और सामाजिक समरसता का पर्व बताते हैं। उनका कहना है कि होली ही एक ऐसा त्योहार है, जब यहां के लोग सारी दूरियों और अन्य कुरीतियों से दूर रहते हुए एक दूसरे के गालों पर गुलाल और माथे पर तिलक लगाते हैं। वीरा गांव तो इसकी जीती-जागती मिसाल है।

बुंदेलखंड के वीरा गांव की होली उन लोगों के लिए भी सीख देती है, जो धर्म और जय के नाम पर देश में देशभक्त और देशद्रोह की बहस को जन्म दे रहे हैं। अगर देश का हर गांव और शहर ‘वीरा’ जैसा हो जाए, तो विकास और तरक्की की नई परिभाषाएं गढ़ने से कोई रोक नहीं सकेगा।

होली में रंग खेलने से पहले जरूर पढ़ें यह खबर


अगर आपकी त्वचा संवेदनशील है और आप यह सोचकर परेशान हैं कि होली के रंग आपकी त्वचा को बेजान कर देंगे, तो अब चिंता की बात नहीं है। आप प्राकृतिक रंगों को चुनें। मॉश्चराइजर का इस्तेमाल करें। होली शुक्रवार को मनाई जाएगी। इसे देखते हुए मेडलिंक्स क्लीनिक के वरिष्ठ त्वचा विशेषज्ञ पंकज चतुर्वेदी ने संवेदनशील त्वचा वालों को कुछ सुझाव दिए हैं।

-त्वचा को धूप से बचाने के लिए चेहरे पर वाटरप्रूफ सनस्क्रीन लगाएं।

-त्वचा फ्रेंडली प्राकृतिक रंग ही खरीदें। सबसे अच्छा आप फूलों व घर में बने रंगों से होली खेल सकते हैं, ताकि आपकी त्वचा को नुकसान न पहुंचे।

-पूरे शरीर पर अच्छे से मॉश्चराइज या तेल लगाएं। त्वचा की चिपचिपाहट उसे सूखे रंगों के चिपकने से बचाती है। वहीं, इससे बाद में रंग भी आसानी से छूट जाता है।

-अगर शरीर में कहीं भी खारिश या झनझनाहट हो तो तुरंत ठंडे पानी से धोएं। उसे अच्छे से पोछ लें और कोई आरामदायक लोशन लगाएं। फेसवॉश का आए दिन इस्तेमाल न करें।

-अगर होली के रंग सही से न निकल पाएं तो चेहरे को बार बार रगड़े या मसले नहीं। ऐसा करने से त्वचा रूखी हो सकती है और छिल भी सकती है। बालों व शरीर को कोमल बनाने के लिए दही का इस्तेमाल कर सकते हैं।

-घरेलू उबटन जैसे मुल्तानी मिट्टी और चंदन पाउडर होली के रंगों को छुड़ाने में मददगार साबित होते हैं।

-दूध व हल्दी मिलाकर पेस्ट तैयार करें। यह पेस्ट चेहरे की संवेदनशील त्वचा के लिए अच्छा है।

भारत का एक ऐसा राज्य जहां महिलाओं के स्तनों पर लगाया जाता था 'ब्रेस्ट टैक्स'

भारत को आज़ाद हुए कई साल बीत गए है। हम आज की दौर में खुद को और बेहतर बनने के लिए आगे की तरफ अपने कदम बढ़ा रहें है। मगर क्या आपको पता है जिस आज़ादी की हवा में हम सांस लें रहें है उसे पाने के लिए बहुत सारे लोगो ने बहुत सारी कुर्बानियां दी हैं। पहले देश के भीतर के राजा भी अपने प्रजा में अंतर करते थे। ऐसी ही एक चौंकाने वाली घटना 19वीं सदी की है जब निचली जाती की महिलाओ के ऊपर लगाया जाता था एक ऐसा टैक्स जिसके बारे में जानकर आप हैरान हो जाएंगे।

केरल में 19वीं सदी में त्रावणकोर के राजा द्वारा निचली जातियों की महिलाओं के स्तनों पर ब्रेस्ट टैक्स लगाया जाता था। इस क्रूर टैक्स से बचने का सिर्फ एक ही तरीका था कि अपने स्तन उघारे कर के घूमो। यह न सिर्फ इन महिलाओं के लिए अपमानजनक था बल्कि सम्मानपूर्वक जीने का हक भी उनसे छीनता था। इसी ब्रेस्ट टैक्स के खिलाफ खड़ी हुईं एक महिला नानगेली। जिसने अपनी जान देकर इस प्रथा का ऐसा साहसिक विरोध किया कि क्रांति हो गयी। और यह साहसिक कदम इस ब्रेस्ट टैक्स के खात्मे की वजह बन गया।

यह टैक्स त्रावणकोर के राजा द्वारा लगाया जाता था। नियमों के मुताबिक उस समय निचली जाति की महिलाओं को अपने स्तन ढंकने की इजाजत नहीं थी। इसलिए सार्वजनिक जगहों पर अपने स्तनों को ढंकने के लिए राजा द्वारा उन पर ब्रेस्ट टैक्स लगाया जाता था। कहा जाता है कि टैक्स का निर्धारण स्तन के साइज के आधार पर होता था। यह टैक्स निचली जाति के लोगों को अपमानित करने और उन्हें कर्ज में डुबाए रखने के उद्देश्य से लगाया जाता था। ब्रेस्ट टैक्स के साथ-साथ निचली जाति के लोगों को जूलरी पहनने और पुरुषों को मूंछ रखने के अधिकार पर भी टैक्स लगता था।

नानगेली चेरथाला की निचली जाति की महिला थी। वह बेहद गरीब परिवार की थी और इस टैक्स का भुगतान करने में असमर्थ थी। इसलिए ब्रेस्ट टैक्स के खिलाफ विद्रोही तेवर दिखाते हुए नानगेली ने सार्वजनिक जगहों पर अपने स्तनों को न ढकने से इनकार कर दिया। जब टैक्स अधिकारकी नानगेली के घर पर ब्रेस्ट टैक्स लेने पहुंचा तो इस टैक्स के विरोध में नानगेली ने जो कदम उठाया उससे लोगों के होश उड़ गये। उसने अपने दोनों स्तनों को काटकर एक केले के पत्ते पर रखकर उस टैक्स अधिकारी के सामने रख दिया। यह देखकर टैक्स अधिकारी भाग खड़ा हुआ और खून से लथपथ नानगेली ने वहीं दम तोड़ दिया। नानगेली के मौत की खबर जंगल में आग की तरह फैली और लोग इस टैक्स के खिलाफ उठ खड़े हुए। इस टैक्स के विरोध में नानगेली के पति चिरकुंडन ने उनकी चिता में कूदकर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली।

यह किसी पुरुष के सती होने की पहली ज्ञात घटना थी। नानगेली के इस कदम से लोग ब्रेस्ट टैक्स के खिलाफ उठ खड़े हुए और राजा को यह क्रूर टैक्स समाप्त करना पड़ा। चेरथाला की वह जगह, जहां पर नानगेली और उनके पति चिरकुंडन ने अपने प्राण त्यागे थे, उसे उनके सम्मान में मुलाचीपराम्बु (महिलाओं के स्तन की भूमि) के नाम से जाना जाता था। अब इसे मनोरमा कवाला (कवाला मतलब जंक्शन) के नाम से जाना जाता है। वह जगह जहां नानगेली की झोपड़ी थी, वह जगह आज भी अनछुई है।