धरती के गर्भ का पानी हो रहा है जहरीला, यूपी के एक तिहाई जिलों के पानी की गुणवत्ता खराब

लखनऊ: इस बार गर्मी का शुरुआती तेवर अभी से डरा रहा है। कहने को अभी अप्रैल का पहला सप्ताह बीता है लेकिन गर्मी अपने चरम पर है। इसके साथ ही पानी के संकट हर ओर आने लगे हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में प्रदूषित जल की वजह से लोग खतरनाक बीमारी की चपेट में है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने यूपी की अखिलेश सरकार और संबंधित प्राधिकरण को भूजल में मौजूद भारी धातुओं की जांच कराए जाने के निर्देश दिए है। यह निर्देश अदालत ने एक याची की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए हैं। बेंच ने सरकार को जिन जिलों में पानी की जाँच के निर्देश दिए हैं उनमें गाजियाबाद, मेरठ, सहारनपुर, बागपत, मुजफ्फरनगर और शामली शामिल हैं।

बागपत जिले के दो गांवों में प्रदूषित पानी की वजह से कैंसर ग्रसित हुए 6 मरीजों की पहचान की यूपी सरकार ने की है। इनमें से तीन की मौत भी हो चुकी है और तीन जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे हैं। इसके अलावा सरकारी प्राधिकरणों के जरिए बागपत जिले में पानी के करीब 331 सैंपल लिए गए थे। इनमें सभी प्रदूषित पाए गए। इस जानकारी के बाद बेंच ने याची की शिकायत पर संबंधित जिलों में भूजल जांच का निर्देश दिया है। जस्टिस स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली बेंच ने शुक्रवार को याची डॉ सीवी सिंह के मामले में यह निर्देश दिया।

याची का आरोप है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इन छह जिलों में लेड, मर्करी, कैडमियम जैसे हैवी मेटल के कारण भू-जल प्रदूषित होकर जानलेवा हो गया है। जबकि स्थानीय प्रशासन इस मामले में आंख मूंदे हुए है। बागपत स्थानीय प्रशासन की ओर से एनजीटी में दाखिल किए गए हलफनामे में भी यह स्वीकार किया गया है कि जिले में हिंडन और कृष्णा नदी के किनारे आबादी के बीच हैंडपंप और भूजल के कुल 80 सैंपल लिए गए थे। इनमें 77 से अधिक प्रदूषित पाए गए। मालूम हो कि इससे पहले भी एनजीटी ने बीते वर्ष पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इन छह जिलों में टैंकर के जरिए स्वच्छ पानी मुहैया कराने का आदेश दिया था। साथ ही स्थानीय प्राधिकरणों को जमकर फटकार भी लगाई थी। बावजूद इसके सरकार टैंकर के जरिये सबको शुद्ध पानी मुहैया नहीं करा सकी है।

यूपी के एक तिहाई जनपदों में पीने योग्य नहीं है पानी

पिछले कई वर्षों से कम बारिश के चलते जहाँ एक ओर भूगर्भ जल इकठ्ठा न होने के कारण सूखे के हालात बन गए हैं वहीँ दूसरी ओर जो पानी उपलब्द्ध भी है तो उसकी गुणवत्ता इतनी ख़राब है कि वह पीने योग्य नहीं है। पश्चिमी यूपी के जिलों में जहाँ फ्लोराइड, क्लोराइड और नाइट्रेट की मौजूदगी पानी को जहरीला बना रही है वहीँ पूर्वी यूपी में आर्सेनिक पानी को जहरीला बना रहा है। पस्चिमी यूपी में आगरा के अछनेरा, बिचपुरी, एत्मादपुर और फतेहाबाद विकास खण्ड में फ्लोराइड की मात्रा तय मानक से तीन गुना अधिक पाया गया। वहीँ प्यूरी यूपी के कई जनपदों में तय मानक से कहीं अधिक आर्सेनिक पाया गया।

लोग अपनी जिंदगी की प्यास बुझाने के लिए जाने-अनजाने में आर्सेनिक का जहर पानी के साथ सीधे गटक रहे हैं। इसी कड़ी में सीमावर्ती तराई के जिले बहराइच के 14 विकास खंडों में से 10 विकास खंड के पानी में आर्सेनिक के जहर की पुष्टि जांच के दौरान हो चुकी है। 18 लाख से भी ज्यादा की आबादी इस स्लीपिंग प्वाईजन के प्रकोप का दंस बुरी तरह झेल रही है। इस जहरीले पानी से जहां लोग अपनी प्यास बुझा रहे हैं। वहीं इस जिले की भारी आबादी जहरीले पानी के बेधड़क इस्तेमाल से न सिर्फ गंभीर बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं बल्कि अपनी जिंदगी बचाने के लिए पीने वाले शुद्ध पानी से ही दिन बदिन मौत के नजदीक जा रहे हैं। हालाकि जल निगम विभाग द्वारा लोगों को इस जहर के प्रकोप से जागरूक करने के लिए कई हाई रिस्क एरिया में लोगों को आगाह करने के लिए आर्सेनिक जहर उगलने वाले हैण्डपम्पों में लाल रंग से निशान लगाकर ऐसे हैंड पम्पों के पानी को न पीने की हिदायद दी जा रही है। उसके बावजूद तमाम लोग मजबूरन प्यास के लिए आर्सेनिक युक्त पानी के इस्तेमाल से गंभीर बीमारी की चपेट में जा रहे हैं।

कानपुर शहर का एक ऐसा मोहल्ला है, जहां 35 साल से लोग एक-एक बूंद पानी के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं, लेकिन इनके इस मर्ज का जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक अमले के पास कोई इलाज नहीं है। राखीमंडी में रहने वाले करीब 5 हजार लोग सालों से जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों की उपेक्षा का शिकार होकर बूंद-बूंद पानी को तरस रहे हैं। करीब पचास वर्ष पहले जूही राखीमंडी में शहर की कई फैक्ट्रियों के ब्वायलर से निकलने वाली राख को डंप किए जाने का काम शुरू किया गया था। इससे क्षेत्र का भूगर्भ प्रदूषित होने से हैंडपंपों व कुंओं से केमिकलयुक्त पानी निकलने लगा। क्षेत्र में संक्रामक बीमारी ने पांव पसारने शुरू कर दिए, जिसमें बीते सालों में कई लोगों की जानें भी चली गईं। जांच में केमिकलयुक्त पानी निकलने से स्वास्थ्य अधिकारियों ने हैंडपंपों में पानी स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होने का बोर्ड लटका दिया था। इसके बाद पानी पीना तो दूर नहाने तक पर रोक लग गई थी।

गर्मी शुरू होते ही जूही राखीमंडी के लोगों को एक बार फिर से बूंद-बूंद पानी की किल्लत सताने लगी है। पूरे दिन हाड़तोड़ मेहनत और फिर दूसरे दिन के लिए पानी का जुगाड़ करना यहां के लोगों की दिनचर्या में शामिल हो गया है। पानी के लिए यह लोग एक-दो से नहीं, बल्कि 36 सालों से मोहताज हैं। जनप्रतिनिधि हों या अधिकारी, सभी इनकी बदहाली को देखने के बाद भी मुंह फेरे हैं। राखी मंडी निवासी राजीव पाल ने बताया कि वो जब पैदा हुए थे, तब भी पानी की समस्या बनी थी, आज 28 साल का हो गया हैं, लेकिन स्वच्छ पानी की सप्लाई नहीं हो पाई है| अमजद भाई ने कहा कि पिछले साल कमिश्नर और डीएम के पास पानी की समस्या की शिकायत लेकर पहुंचे, लेकिन दोनों साहबों ने जल्द समस्या का हल करने की बजाए उन्हें टाल दिया।

एक किलोमीटर दूर स्थित हैंडपंप से पानी लाकर लोग काम चला रहे हैं। जहां हर रोज सुबह से ही लोग पूरे परिवार के साथ पानी के लिए कई घंटे तक लाइन में लगते हैं। जहां से पानी डिब्बों में भरने के बाद ठेले में लादकर ले जाते हैं। इतना सब होने के बाद भी आज तक किसी जन प्रतिनिधि और अधिकारियों को इनकी बदहाली पर तरस नहीं आया। क्षेत्रीय लोगों ने बताया कि बीते विधानसभा चुनाव के दौरान कुछ जनप्रतिनिधियों ने करीब तीन महीने तक पानी के टैंकर लगा दिए थे। चुनाव के बाद शुद्ध पेयजल पाइप लाइन डलवाने की बात कहकर घर-घर पानी पहुंचाने का वादा भी किया था, पर चुनाव खत्म होते ही पाइप लाइन डलवाना तो दूर टैंकरों का क्षेत्र में आना भी बंद हो गया।

राजधानी में पेयजल संकट-

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी पेयजल संकट का सामना लोगों को करना पड़ रहा है। राजधानी के पारा थाना क्षेत्र के अंतर्गत नरपतखेड़ा डूडा निकट सिन्धी कालोनी की 6 साल पुरानी वैध कालोनी है, जिसमें 165 घर में लगभग 4200 लोग रहते हैं। इस कॉलोनी में पानी की आपूर्ति के लिए तीन पम्पिंग स्टेशन बनें हैं, परन्तु आज तक पानी नहीं चालू हुआ न ही इस वैध कालोनी में पानी सप्लाई आई। क्षेत्रीय लोगों की मानें तो तमाम प्रयास होता है। लेकिन असर कुछ भी नहीं होता। विभाग अपना पल्ला झाड़ते हुए कहता हैं कि मुझे हैंडओवर नहीं हुआ तो डूडा कहता है कि मकान देना मेरा काम है, पानी देना नहीं। कुछ ऐसे ही शहर में हजारों लोग पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। रविवार को समाजसेवी प्रताप चन्द्रा की अध्यक्षता में पंचायत हुई, जिसमें सैकड़ों लोग जुटे और सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि यदि जल्द ही पानी न मिला तो आरपार की लड़ाई लड़ी जाएगी। इसके अलावा बक्शी का तालाब और इंटौंजा क्षेत्र में भी सूखे की मार से लोग परेशान हैं। गोमती का भी जलस्तर कम होता जा रहा है।

ग्रामीण इलाकों में 40 फीसदी खराब पड़े हैं हैंडपंप

लखनऊ जनपद के ग्रामीण इलाकों में गर्मी की तपिश बढ़ने के साथ ही पेयजल संकट गहराने लगा है। जाँच में सामने आया है कि आठ ब्लॉक क्षेत्र के करीब 40 फीसदी नलकूप व हैंडपंप खराब पड़े हुए हैं। सिचाईं के लिए नहरों व माइनरों में पानी न होने से गरीब किसान खासा परेशानी झेल रहा है। पेयजल संकट के लिए डीएम ने तीन विभागों की संयुक्त टीम बनाने का निर्देश दिया है। यह टीम क्षेत्र में जाकर खराब पड़े नलकूपों व हैंडपंप का सर्वेक्षण कर सूची तैयार करेगी और जिम्मेदार अभियंता व कर्मचारियों को चिन्हित कर अपनी रिपोर्ट जिलाधिकारी को देंगे। डीएम ने इस कार्य के लिए एक सप्ताह का समय दिया है। जिला पंचायत सदस्यों की माने तो उनका कहना है कि बक्शी का तालाब में 250 नलकूपों में 105, मलिहाबाद में 24 में से 8, माल में 92 में से 40 और सरोजनीनगर में 28 में से 12 नलकूप खराब पड़े हैं।

14 करोड़ में लगेंगे 210 नए हैंडपंप

लखनऊ: गर्मी पर पानी की समस्या से जूझ रहे शहरवासियों को इस साल राहत मिल सकती है। शहर में नगरीय पेजयल कार्यक्रम के तहत कुल 344 नए व रिबोर हैंडपंप लगाए जाएंगे। इसके लिए 114.32 लाख रुपए जल निगम को प्राप्त हो चुके हैं। पहले चरण में इस योजना के तहत दर्जन भर क्षेत्रों में 210 नए व रिबोर योग्य हैंडपंपों का कार्य किया जाएगा। जलकल विभाग से कार्यसूची मिलते ही काम शुरू हो जाएगा। पानी की किल्लत को दूर करने के लिए जल निगम और जल कल विभाग ने कार्ययोजना तैयार की है। प्लानिंग के तहत पंप हाउस लगाने के साथ ही नए हैंडपंप व रिबोर करने योग्य हैंडपंप का काम किया जाएगा।

वित्तीय वर्ष 2015-16 में नगरीय पेयजल कार्यक्रम (जिला योजना सामान्य) के तहत शहर में पेयजल सुविधा के लिए धनराशि जारी की गई है। इस धनराशि में शहर में नए हैंडपंप व रिबोर करने योग्य हैंडपंप का काम किया जाएगा। जल निगम में द्वितीय निर्माण खंड के अधिशासी अभियंता आरके गुप्ता ने इस संबंध में जलकल विभाग के महाप्रबंधक राजीव वाजपेई को पत्र लिखकर खराब हैंडपंपों की सूची मांगी है। इस कार्य के लिए गत वर्ष अगस्त 2015 व फरवरी 2016 में प्रस्ताव भेजा गया था। जलापूर्ति आदि कार्यों के लिए शहर में नए हैंडपंप व रिबोर करने के लिए 114.32 लाख की स्वीकृति मिलने के साथ ही फंड भी जल निगम को प्राप्त हो चुका है।

जल निगम के अधिशासी अभियंता से बजट मिलने की जानकारी प्राप्त हुई है। हमंे खराब हैंडपंपों की सूची देनी है। उन क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जाएगी जहां पानी की सबसे ज्यादा जरूरत है। राजीव वाजपेईमहाप्रबंधक, जलकल विभाग
इस धनराशि से कुल 210 नए अथवा रिबोर करने योग्य हैंडपंप लगंेगे। मुख्यमंत्री से प्राप्त शिकायतें, प्रशासन, जन सुविधा केंद्र, तहसील दिवस, आरटीआई तथा महाप्रबंधक जल कल से प्राप्त होने वाली खराब हैंडपंपों की शिकायतों का निस्तारण किया जाएगा। शिकायतों के माध्यम से 74 नए व 270 रिबोर सहित कुल 344 हैंडपम्प की सूची तैयार की गई है। इनमें से प्राथमिकता के आधार पर नगरीय पेजयल कार्यक्रम के तहत प्राप्त धनराशि से काम होंगे।

समझें पानी की कीमत-

अगली जनरेशन को पानी कि किल्लत ना हो इसके लिए हमें आपको अभी से ध्यान देने की जरूरत है। कई इलाके अक्सर इसलिए जलमग्न रहते हैं क्योंकि वहां वॉटर टैंक फुल होने के बाद ट्यूबवेल मशीन को बंद करने वाला कोई नहीं होता। वहीं कुछ इलाके ऐसे भी हैं, जहां पानी के लिए सुबह से ही लाइन लग जाती है। ऐसे में वॉटर वेस्टेज को रोकने की जरूरत है। पानी की बर्बादी पर लगाम लगाएं और व्यर्थ का पानी बहने से बचाने के लिए संकल्प लें।

नवरात्रि के दूसरे दिन करें माँ ब्रम्ह्चारिणी की पूजा


नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना का विधि विधान है| माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप उनके नाम अनुसार ही तपस्विनी है| देवी दुर्गा का यह दूसरा रूप भक्तों और सिद्धों को अकाट्य फल देने वाला है| भगवती दुर्गा का द्वितीय रूप माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा इस वर्ष 9 अप्रैल दिन शनिवार को होगी| इनका नाम ब्रह्मचारिणी इसलिए पड़ा क्योंकि इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इसी कारण ये तपश्चारिणी और ब्रह्मचारिणी के नाम से विख्यात हैं| कहा जाता है कि ब्रह्मचारिणी देवी, ज्ञान, वैराग्य, और ध्यान की देवी हैं। इनकी पूजा से विद्या के साथ साथ ताप, त्याग, और वैराग्य की प्राप्ति होती है। जब मानसपुत्रों से सृष्टि का विस्तार नहीं हो पाया था तो ब्रह्मा की यही शक्ति स्कंदमाता के रूप में आयी। स्त्री को इसी कारण सृष्टि का कारक माना जाता है। माँ ब्रह्मचारिणी की कृपा से मनुष्य को सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है, तथा जीवन की अनेक समस्याओं एवं परेशानियों से छुटकारा मिलता है|

माँ ब्रह्मचारिणी की पूजन विधि-

भगवती दुर्गा की नौ शक्तियों में से द्वितीय शक्ति देवी ब्रह्मचारिणी का है| ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली अर्थात तप का आचरण करने वाली मां ब्रह्मचारिणी| माँ ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्म का स्वरूप हैं| माँ ब्रह्मचारिणी को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे तपश्चारिणी, अपर्णा और उमाइस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान ’चक्र में स्थित होता है| इस चक्र में अवस्थित साधक मां ब्रह्मचारिणी जी की कृपा और भक्ति को प्राप्त करता है| यह देवी शांत और निमग्न होकर तपस्या में लीन हैं| इनके मुख पर कठोर तपस्या के कारण अद्भुत तेज और कांति का ऐसा अनूठा संगम है जो तीनों लोको को उजागर कर रहा है| माँ ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में अक्ष माला है और बायें हाथ में कमण्डल होता है|

सर्वप्रथम हमने जिन देवी-देवताओ एवं गणों व योगिनियों को कलश में आमत्रित किया है उनकी फूल, अक्षत, रोली, चंदन, से पूजा करते हैं | उन्हें दूध, दही,शक्कर, घी, व शहद से स्नान करायें व देवी को जो कुछ भी प्रसाद अर्पित कर रहे हैं उसमें से एक अंश इन्हें भी अर्पण करते हैं| प्रसाद के पश्चात आचमन और फिर पान, सुपारी भेंट कर इनकी प्रदक्षिणा करते हैं| उसके पश्चात घी व कपूर मिलाकर देवी की आरती करते हैं | कलश देवता की पूजा के पश्चात इसी प्रकार नवग्रह, दशदिक्पाल, नगर देवता, ग्राम देवता, की पूजा करते हैं| इनकी पूजा के पश्चात मॉ ब्रह्मचारिणी की करते हैं|

माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय अपने हाथों में एक पुष्प लेकर माँ भगवती की ऊपर लिखे मंत्र के साथ प्रार्थना करते हैं | इसके पश्चात माँ को पंचामृत स्नान करते हैं| और फिर भांति भांति से फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दुर, अर्पित करें देवी को अरूहूल का फूल या लाल रंग का एक विशेष फूल और कमल की माला पहनाये क्योंकि माँ को काफी पसंद है| अंत में इस मंत्र के साथ “आवाहनं न जानामि न जानामि वसर्जनं, पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरी..माँ ब्रम्ह्चारिणी से क्षमा प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए| इसके साथ ही देवी की जल्द प्रसन्नता हेतु भगवान् भोले शंकर जी की पूजा अवश्य करनी चाहिए| क्योंकि भोलेनाथ को पति रूप में प्राप्त करने के लिए माता ने महान व्रत किया था|

सबसे अंत में ब्रह्मा जी के नाम से जल, फूल, अक्षत, सहित सभी सामग्री हाथ में लेकर “ॐ ब्रह्मणे नम:” कहते हुए सामग्री भूमि पर रखें और दोनों हाथ जोड़कर सभी देवी देवताओं को प्रणाम करते हैं|

देवी ब्रह्मचारिणी कथा -

माँ ब्रह्मचारिणी हिमालय और मैना की पुत्री हैं| इन्होंने देवर्षि नारद जी के कहने पर भगवान शंकर की ऐसी कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने इन्हें मनोवांछित वरदान दिया था| जिसके फलस्वरूप यह देवी भगवान भोले नाथ की वामिनी अर्थात पत्नी बनी| जो व्यक्ति अध्यात्म और आत्मिक आनंद की कामना रखते हैं उन्हें इस देवी की पूजा से सहज यह सब प्राप्त होता है| माँ भगवती का द्वितीय स्वरुप योग साधक को साधना के केन्द्र के उस सूक्ष्मतम अंश से साक्षात्कार करा देता है जिसके पश्चात व्यक्ति की ऐन्द्रियां अपने नियंत्रण में रहती और साधक मोक्ष का भागी बनता है| इस देवी की प्रतिमा की पंचोपचार सहित पूजा करके जो साधक स्वाधिष्ठान चक्र में मन को स्थापित करता है उसकी साधना सफल हो जाती है और व्यक्ति की कुण्डलनी शक्ति जागृत हो जाती है| दुर्गा पूजा में नवरात्रे के नौ दिनों तक देवी धरती पर रहती हैं अत: यह साधना का अत्यंत सुन्दर और उत्तम समय होता है| इस समय जो व्यक्ति भक्ति भाव एवं श्रद्धा से दुर्गा पूजा के दूसरे दिन मॉ ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं उन्हें सुख, आरोग्य की प्राप्ति होती है| देवी ब्रह्मचारिणी का भक्त जीवन में सदा शांत-चित्त और प्रसन्न रहता है, उसे किसी प्रकार का भय नहीं सताता है|

ब्रह्मचारिणी मंत्र-

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।

देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

माँ भगवती द्वितीय ब्रम्ह्चारिणी का ध्यान-

वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलु धराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम।

धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥
परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन।
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

माँ भगवती ब्रम्ह्चारिणी का स्तोत्र पाठ -

तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥

माँ भगवती ब्रम्ह्चारिणी कवच-

त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।
अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥
पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्वरी॥
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।  

नव संवत्सर: शुक्र हैं इस वर्ष के राजा और मंत्री हैं बुध

लखनऊ: हिंदू पंचांग में नववर्ष का आरंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी 'गुड़ी पड़वा' से माना जाता है जो कि इस बार 8 अप्रैल को पड़ रहा है| हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, यह दिन सृष्टि रचना का पहला दिन है| इस दिन चैत्र नवरात्रि भी प्रारंभ होती है| हिन्दू परम्परा के अनुसार इस दिन को 'नव संवत्सर' या 'नव संवत' के नाम से भी जाना जाता है| हिंदू पंचांग के मुताबिक, इस वर्ष 8 अप्रैल पर विक्रम संवत् 2073 का प्रारंभ होगा| इस वर्ष का राजा शुक्र और मंत्री बुध है| इसी दिन ब्रह्मा जी ने जगत की रचना प्रारंभ की थी इसीलिए हम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नए साल का आरम्भ मानते हैं| हिन्दू पंचांग का पहला महीना चैत्र होता है| यही नहीं शक्ति और भक्ति के नौ दिन यानी कि नवरात्रि स्थापना का पहला दिन भी यही है| ऐसी मान्यता है कि इस दिन नक्षत्र शुभ स्थिति में आ जाते हैं और किसी भी नए काम को शुरू करने के लिए यह मुहूर्त शुभ होता है| 

क्यों मनाते हैं 'गुड़ी पड़वा'- 

चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या नववर्ष आरम्भ होता है| 'गुड़ी' का अर्थ होता है 'विजय पताका'| कहा जाता है कि शालिवाहन नामक एक कुम्हार के लड़के ने मिट्टी के सैनिकों का निर्माण किया और उनकी एक सेना बनाकर उस पर पानी छिड़कर उनमें प्राण फूंक दिए| उसने इस सेना की सहायता से शक्तिशाली शत्रुओं को पराजित किया| इसी विजय के प्रतीक के रूप में 'शालिवाहन शक' का प्रारंभ हुआ| महाराष्ट्र में यह पर्व 'गुड़ी पड़वा' के रूप में मनाया जाता है| कश्मीरी हिन्दुओं के लिए नववर्ष एक महत्वपूर्ण उत्सव की तरह है| 

इसी तिथि से प्रारंभ होता है विक्रम संवत्- 

भारतीय इतिहास में जनप्रिय और न्यायप्रिय शासकों की जब भी बात चलेगी तो वह उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के नाम के बगैर पूरी नहीं हो सकेगी। उनकी न्यायप्रियता के किस्से भारतीय परिवेश का हिस्सा बन चुके हैं। विक्रमादित्य का राज्य उत्तर में तक्षशिला जिसे वर्तमान में पेशावर (पाकिस्तान) के नाम से जाना जाता हैं, से लेकर नर्मदा नदी के तट तक था। उन्होंने यह राज्य मध्य एशिया से आये एक शक्तिशाली राजा को परास्त कर हासिल किया था। राजा विक्रमादित्य ने यह सफलता मालवा के निवासियों के साथ मिलकर गठित जनसमूह और सेना के बल पर हासिल की थी| विक्रमादित्य की इस विजय के बाद जब राज्यारोहण हुआ तब उन्होंने प्रजा के तमाम ऋणों को माफ करने का ऐलान किया तथा नए भारतीय कैलेंडर को जारी किया, जिसे विक्रम संवत नाम दिया गया| 

इतिहास के मुताबिक, अवन्ती (वर्तमान उज्जैन) के राजा विक्रमादित्य ने इसी तिथि से कालगणना के लिए 'विक्रम संवत्' का प्रारंभ किया था, जो आज भी हिंदू कालगणना के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है| कहा जाता है कि विक्रम संवत्, विक्रमादित्य प्रथम के नाम पर प्रारंभ होता है जिसके राज्य में न तो कोई चोर हो और न ही कोई अपराधी या भिखारी था|  वहीँ, अगर ज्योतिष की माने तो प्रत्येक संवत् का एक विशेष नाम होता है| विभिन्न ग्रह इस संवत् के राजा, मंत्री और स्वामी होते हैं| इन ग्रहों का असर वर्ष भर दिखाई देता है| सिर्फ यही नहीं समाज को श्रेष्ठ (आर्य) मार्ग पर ले जाने के लिए स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन को 'आर्य समाज' स्थापना दिवस के रूप में चुना था| 

संस्कृति से जोड़ता है विक्रम संवत्- 

गुलामी के बाद अंग्रेजों ने हम पर ऐसा रंग चढ़ाया ताकि हम अपने नववर्ष को भूल उनके रंग में रंग जाए| उन्ही की तरह एक जनवरी को ही नववर्ष मनाये और हुआ भी यही लेकिन अब देशवासियों को यह याद दिलाना होगा कि उन्हें अपना भारतीय नववर्ष विक्रमी संवत बनाना चाहिए, जो आगामी 8 अप्रैल को है| वैसे अगर देखा जाये तो विक्रम संवत् ही हमें अपनी संस्कृति से जोड़ता है| भारतीय संस्कृति से जुड़े सभी समुदाय विक्रम संवत् को एक साथ बिना प्रचार और नाटकीयता से परे होकर मनाते हैं और इसका अनुसरण करते हैं| दुनिया का लगभग हर कैलेण्डर सर्दी के बाद बसंत ऋतु से ही प्रारम्भ होता है| यही नहीं इस समय प्रचलित ईस्वी सन बाला कैलेण्डर को भी मार्च के महीने से ही प्रारंभ होना था| 

आपको बता दें कि इस कैलेण्डर को बनाने में कोई नयी खगोलीय गणना करने के बजाए सीधे से भारतीय कैलेण्डर (विक्रम संवत) में से ही उठा लिया गया था| 12 महीनों के नाम- ऐसा कहा जाता है कि पृथ्वी द्वारा 365/366 दिन में होने वाली सूर्य की परिक्रमा को वर्ष और इस अवधि में चंद्रमा द्वारा पृथ्वी के लगभग 12 चक्कर को आधार मानकर कैलेण्डर तैयार किया और क्रम संख्या के आधार पर उनके नाम रखे गए हैं| हिंदी महीनों के 12 नाम हैं चैत्र, बैशाख, ज्‍येष्‍ठ, आषाढ, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्‍गुन| 


नवसम्वत का प्रवेश कन्या लग्न में हो रहा है।  इस  बार सम्वत का राजा शुक्र और मंत्री बुध है। हम बता रहे कि राजा शुक्र किस पर क्या असर डालेंगे। इस नवसंवत के राजा शुक्र के कारण इस वर्ष स्त्री  वर्ग, कला मनोरंजन और रचनात्मक कार्य करने वाले बुद्धिजीवी वर्ग का बोलाबाला रहेगा। स्त्रियों का वर्चस्व बढ़ेगा। फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोग, आभूषण विक्रेता, डेकोरेटर, सौंदर्य प्रसाधन आदि का कार्य करने वालों के लिए नवसम्वत शुभ होगा।

इस संवत में अच्छी और समय पर बारिश की उम्मीद जताई जा रही है। इससे अनाज और फलों की पैदावार अच्छी होगी। लोग सुविधाओं का अधिक इस्तेमाल कर सकेंगे। किसान और व्यापारी वर्ग का लाभ बढ़ेगा। ज्योतिषी विभोर इंदूसुत का कहना है कि संवत 2073 (अप्रैल 2016 से मार्च 2017) में समस्त भूमंडल पर केवल दो सूर्यग्रहण होंगे, लेकिन भारत से इस वर्ष कोई भी ग्रहण नहीं देखा जा सकेगा। इसलिए एक सितंबर 2016 और 25 फरवरी 2017 को पड़ने वाले ग्रहण देश में  मान्य नही होंगे।

इस वर्ष नवसम्वत प्रवेश कुंडली में राजा शुक्र का उच्च राशि में बैठना शुभ है, लेकिन वर्ष मध्य तक बन रहे गुरु चांडाल योग और शनि, मंगल के विध्वंसकारी योग के चलते वर्ष मध्य तक उठा पटक की स्थिति रहेगी। विशेषकर नौ मई में बृहस्पति के मार्गी होने के बाद समाज में उठा पठक की स्थिति बनेगी। असामाजिक तत्व उपद्रव फैलाएंगे। साथ ही प्राकृतिक आपदा, आंधी तूफान, भूकंप जैसी घटनाएं भी होंगी। शनि मंगल के योग के कारण भी दुर्घटनाओं की अधिकता रहेगी, लेकिन अगस्त में बृहस्पति के कन्या राशि में आने पर चल रही सामाजिक और प्राकृतिक उठा पटक और आपदाओ की रोकथाम होगी और समाज में शांति आएगी। साथ ही शनि मंगल का विध्वंसकारी योग भी सितंबर माह में समाप्त होने पर शुभ कामों में वृद्धि होगी।

शुक्र ग्रह वनस्पति और रसों का स्वामी होता है। अच्छे योग होने पर आधुनिक सुख भी देता है, इसके कारण आधुनिकी करण के क्षेत्र में देश आगे बढ़ेगा। देश को प्रगति की राह पर आगे ले जाने कुछ नए अविष्कार हो सकते हैं। महंगाई कम होने के आसार हैं। गुड़, शक्कर जैसी चीजें सस्ती होंगी। शुक्र के राज में शांति रहेगी। मंत्री बुध ग्रह शुक्र का मित्र है।
राजा शुक्र, शनि ग्रह से भी मित्र भाव रखता है। जबकि चंद्रमा के साथ समभाव रखता है। इसके कारण शुभ कार्यों में विघ्न डालने वाला कोई भी ग्रह नहीं है। गुरू के प्रभाव से अनाज और सब्जियों के दाम घटते-बढ़ते रहेंगे, लेकिन बड़ा अंतर नहीं आएगा। चंद्रमा रसेस होने के कारण बारिश अच्छी होगी।
नवसंत्सर का मंडल
राजा- शुक्र
मंत्री-बुध
धनेश-शनि
सत्व रस का स्वामी-शनि
अन्न का स्वामी- गुरू
रसों का स्वामी-चंद्रमा

स्वाधीनता के अग्रणी क्रांतिकारी थे मंगल पांडे

लखनऊ| भारतीय स्वाधीनता संग्राम में मंगल पांडे का नाम अग्रणी योद्धाओं के रूप में लिया जाता है जिनके द्वारा भ़डकाई गई क्रांति की ज्वाला से ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन बुरी तरह हिल गया था । सन 1857 में हुए पहले स्वतंत्रता संग्राम के नायक मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई, 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नागवा गाँव में हुआ था| मंगल पांडे ने ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के खिलाफ विद्रोह का जो कदम उठाया वह अंग्रेजों पर ज्वाला बनकर टूट पड़ा था|

बैरकपुर की सैनिक छावनी में 34वीं बंगाल नेटिव इनफैंट्री के इस जवान के मन में अंग्रेजों के खिलाफ धधक रही अग्नि ने उस समय उग्र रूप ले लिया जब सेना में इनफील्ड पी-53 राइफल को शामिल किया गया| इस राइफल के कारतूस के बारे में कहा गया था कि इसमें गाय व सुअर की चर्बी लगी है और अंग्रेज ऐसा हिन्दू-मुसलमानों का धर्म नष्ट करने के मकसद से कर रहे हैं| इस बात ने आज़ादी की पहली लड़ाई को मजबूत आधार प्रदान किया|

यही वजह थी कि हिंदू और मुसलमान सिपाहियों ने अंग्रेजों को सबक सिखाने की ठान ली तथा कारतूसों का इस्तेमाल करने से इंकार कर दिया| गोरी हुकूमत को देश से बाहर का रास्ता दिखाने के इरादे से मंगल पांडे ने 29 मार्च, 1857 को लेफ्टिनेंट बॉग़ सहित अन्य अंग्रेज अधिकारियों पर हमला कर दिया लेकिन वह पकड़ लिए गए| उनकी गिरफ्तारी की खबर देशभर की सैनिक छावनियों में जंगल में आग की तरह फैल गई और नाराज़ भारतीय सैनिकों ने बगावत का बिगुल फूंक दिया|

कोर्ट मार्शल में छह अप्रैल 1857 को मंगल पांडे को फांसी देने के लिए 18 अप्रैल की तारीख तय की गई| उनको मिली मौत की सजा की खबर सुनते ही देश में विद्रोह फ़ैल गया और देश में अंग्रेजों के खिलाफ संग्राम छिड गया| देश में उठ रही विरोध की लहर को देखते हुए मंगल पांडे को तय समय से 10 दिन पहले 8 अप्रैल को फांसी दे दी गई| देश के इस महान सेनानी की फांसी के बाद देश में महीनों तक आजादी की लड़ाई चलती रही लेकिन अंग्रेजों द्वारा इस विद्रोह को दबा दिया गया|

देश की स्वतंत्रता के लिए लड़े गए इस युद्ध को शुरू में ‘1857 का गदर’ नाम मिला लेकिन बाद में इसे पहली ‘जंग ए आजादी’ के रूप में मान्यता प्राप्त हो गई| उनके प्रयास का ही नतीजा था कि स्वंत्रता संग्राम की पहली लड़ाई के 90 साल बाद 1947 में देश को अंग्रेजों की गुलामी से आज़ादी मिल गयी|  

मां बगलामुखी का शक्तिशाली मंत्र


नई दिल्ली: माँ बगलामुखी की साधना करने वाला साधक सर्वशक्ति सम्पन्न हो जाता है| यह मंत्र विधा अपना कार्य करने में सक्षम हैं| मंत्र का सही विधि द्वारा जाप किया जाए तो निश्चित रूप से सफलता प्राप्त होती है| बगलामुखी मंत्र के जाप से पूर्व बगलामुखी कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए| देवी बगलामुखी पूजा अर्चना सर्वशक्ति सम्पन्न बनाने वाली सभी शत्रुओं का शमन करने वाली तथा मुकदमों में विजय दिलाने वाली होती है|

माँ बगलामुखी मंत्र —-विनियोग –श्री ब्रह्मास्त्र-विद्या बगलामुख्या नारद ऋषये नम: शिरसि।त्रिष्टुप् छन्दसे नमो मुखे। श्री बगलामुखी दैवतायै नमो ह्रदये।ह्रीं बीजाय नमो गुह्ये। स्वाहा शक्तये नम: पाद्यो:।ऊँ नम: सर्वांगं श्री बगलामुखी देवता प्रसाद सिद्धयर्थ न्यासे विनियोग:।

मंत्र ॐ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्ववां कीलय बुद्धि विनाशय ह्रीं ओम् स्वाहा।

इन छत्तीस अक्षरों वाले मंत्र में अद्‍भुत प्रभाव है। इसको एक लाख जाप द्वारा सिद्ध किया जाता है। अधिक सिद्धि हेतु पाँच लाख जप भी किए जा सकते हैं। जप की संपूर्णता के पश्चात् दशांश यज्ञ एवं दशांश तर्पण भी आवश्यक है। बगलामुखी साधना की सावधानियां :-

बगलामुखी साधना के दौरान पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना अत्यधिक आवश्यक है। इस क्रम में स्त्री का स्पर्श, उसके साथ किसी भी प्रकार की चर्चा या सपने में भी उसका आना पूर्णत: निषेध है। अगर आप ऐसा करते हैं तो आपकी साधना खण्डित हो जाती है। किसी डरपोक व्यक्ति या बच्चे के साथ यह साधना नहीं करनी चाहिए। बगलामुखी साधना के दौरान साधक को डराती भी है। साधना के समय विचित्र आवाजें और खौफनाक आभास भी हो सकते हैं इसीलिए जिन्हें काले अंधेरों और पारलौकिक ताकतों से डर लगता है, उन्हें यह साधना नहीं करनी चाहिए।

साधना से पहले आपको अपने गुरू का ध्यान जरूर करना चाहिए। मंत्रों का जाप शुक्ल पक्ष में ही करें। बगलामुखी साधना के लिए नवरात्रि सबसे उपयुक्त है। उत्तर की ओर देखते हुए ही साधना आरंभ करें। मंत्र जाप करते समय अगर आपकी आवाज अपने आप तेज हो जाए तो चिंता ना करें। जब तक आप साधना कर रहे हैं तब तक इस बात की चर्चा किसी से भी ना करें। साधना करते समय अपने आसपास घी और तेल के दिये जलाएं।

साधना में जरूरी श्री बगलामुखी का पूजन यंत्र चने की दाल से बनाया जाता है। अगर सक्षम हो तो ताम्रपत्र या चांदी के पत्र पर इसे अंकित करवाए। बगलामुखी यंत्र एवं इसकी संपूर्ण साधना यहां देना संभव नहीं है। किंतु आवश्‍यक मंत्र को संक्षिप्त में दिया जा रहा है ताकि जब साधक मंत्र संपन्न करें तब उसे सुविधा रहे।

जादू टोना नाशक मंत्र

यदि आपको लगता है कि आप किसी बुरु शक्ति से पीड़ित हैं, नजर जादू टोना या तंत्र मंत्र आपके जीवन में जहर घोल रहा है, आप उन्नति ही नहीं कर पा रहे अथवा भूत प्रेत की बाधा सता रही हो तो देवी के तंत्र बाधा नाशक मंत्र का जाप करना चाहिए।

ॐ ह्लीं श्रीं ह्लीं पीताम्बरे तंत्र बाधाम नाशय नाशय

आटे के तीन दिये बनाये व देसी घी ड़ाल कर जलाएं। कपूर से देवी की आरती करें। रुद्राक्ष की माला से 7 माला का मंत्र जप करें। मंत्र जाप के समय दक्षिण की और मुख रखें।

नवरात्रि के प्रथम दिन करें माँ शैलपुत्री की पूजा


नई दिल्ली| मां दुर्गा शक्ति की उपासना का पर्व चैत्र नवरात्र के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है| इस वर्ष चैत्र नवरात्रि का आरंभ 8 अप्रैल से हैं| मां दुर्गा अपने प्रथम स्वरूप में शैलपुत्री के रूप में जानी जाती हैं| शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं| इसी वजह से मां के इस स्वरूप को शैलपुत्री कहा जाता है।

माँ भगवती शैलपुत्री का वाहन वृषभ है, उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है| इस स्वरूप का पूजन नवरात्री के प्रथम दिन किया जाता है| सभी देवता, राक्षस, मनुष्य आदि इनकी कृपा-दृष्टि के लिए लालायित रहते हैं| किसी एकांत स्थान पर मृत्तिका से वेदी बनाकर उसमें जौ, गेहूं बोएं और उस पर कलश स्थापित करें | मूर्ति स्थापित कर, कलश के पीछे स्वास्तिक और उसके युग्म पा‌र्श्व में त्रिशूल बनाएं| माँ शैलपुत्री के पूजन से योग साधना आरंभ होती है| जिससे नाना प्रकार की उपलब्धियां प्राप्त होती हैं |

शैलपुत्री पूजा विधि-

चैत्र नवरात्र पर कलश स्थापना के साथ ही माँ दुर्गा की पूजा शुरू की जाती है| पहले दिन माँ दुर्गा के पहले स्वरूप शैलपुत्री की पूजा होती है| दुर्गा को मातृ शक्ति यानी स्नेह, करूणा और ममता का स्वरूप मानकर हम पूजते हैं| माँ शैलपुत्री की पूजा में सभी तीर्थों, नदियों, समुद्रों, नवग्रहों, दिक्पालों, दिशाओं, नगर देवता, ग्राम देवता सहित सभी योगिनियों का कलश पर विराजने के लिए प्रार्थना कर आवाहन किया जाता है | कलश में सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी, मुद्रा सादर भेट किया जाता है और पंच प्रकार के पल्लव से कलश को सुशोभित किया जाता है|

कलश के नीचे सात प्रकार के अनाज और जौ बोये जाते हैं जिन्हें दशमी तिथि को काटा जाता है और इससे सभी देवी-देवता की पूजा होती हैI “जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी, दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा, स्वधा नामोस्तुते” मंत्र से पुरोहित यजमान के परिवार के सभी सदस्यों के सिर पर जयंती डालकर सुख, सम्पत्ति एवं आरोग्य का आर्शीवाद देते हैं|

कलश स्थापना के बाद देवी दु्र्गा जिन्होंने दुर्गम नामक प्रलयंकारी असुर का संहार कर अपने भक्तों को उसके त्रास से यानी पीड़ा से मुक्त कराया उस देवी का आह्वान किया जाता है कि ‘हे मां दुर्गे’ हमने आपका स्वरूप जैसा सुना है उसी रूप में आपकी प्रतिमा बनवायी है आप उसमें प्रवेश कर हमारी पूजा अर्चना को स्वीकार करें| माँ देवी दुर्गा ने महिषासुर को वरदान दिया था कि तुम्हारी मृत्यु मेरे हाथों हुई है इस हेतु तुम्हें मेरा सानिध्य प्राप्त हुआ है अत: मेरी पूजा के साथ तुम्हारी भी पूजा की जाएगी इसलिए देवी की प्रतिमा में महिषासुर और उनकी सवारी शेर भी साथ होता है|

माँ दुर्गा की प्रतिमा पूजा स्थल पर बीच में स्थापित की जाती है और उनके दोनों तरफ यानी दायीं ओर देवी महालक्ष्मी, गणेश और विजया नामक योगिनी की प्रतिमा रहती है और बायीं ओर कार्तिकेय, देवी महासरस्वती और जया नामक योगिनी रहती है तथा भगवान भोले नाथ की भी पूजा की जाती है| प्रथम पूजन के दिन “शैलपुत्री” के रूप में भगवती दुर्गा दुर्गतिनाशिनी की पूजा फूल, अक्षत, रोली, चंदन से होती है|इस प्रकार दुर्गा पूजा की शुरूआत हो जाती है प्रतिदिन संध्या काल में देवी की आरती के समय “जग जननी जय जय” और “जय अम्बे गौरी” के गीत भक्तजनो को गाना चाहिए|

शैलपुत्री मंत्र-

वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्द्वकृतशेखराम्।

वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्॥

माँ शैलपुत्री का ध्यान :-

वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रर्धकृत शेखराम्।

वृशारूढ़ा शूलधरां शैलपुत्री यशस्वनीम्॥

पूणेन्दु निभां गौरी मूलाधार स्थितां प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम्॥

पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता॥

प्रफुल्ल वंदना पल्लवाधरां कातंकपोलां तुग कुचाम्।

कमनीयां लावण्यां स्नेमुखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम्॥

माँ शैलपुत्री का स्तोत्र पाठ-

प्रथम दुर्गा त्वंहिभवसागर: तारणीम्।

धन ऐश्वर्यदायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम्॥

त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान्।

सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम्॥

चराचरेश्वरी त्वंहिमहामोह: विनाशिन।

मुक्तिभुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रमनाम्यहम्॥

माँ शैलपुत्री का कवच-

ओमकार: मेंशिर: पातुमूलाधार निवासिनी।

हींकार: पातु ललाटे बीजरूपा महेश्वरी॥

श्रींकारपातुवदने लावाण्या महेश्वरी ।

हुंकार पातु हदयं तारिणी शक्ति स्वघृत।

फट्कार पात सर्वागे सर्व सिद्धि फलप्रदा॥

चैत्र नवरात्रि आज से शुरू, जानिए कलश स्थापना का मुहूर्त एवं पूजन व‌िध‌ि

हमारे वेद, पुराण व शास्त्र साक्षी हैं कि जब-जब किसी आसुरी शक्तियों ने अत्याचार व प्राकृतिक आपदाओं द्वारा मानव जीवन को तबाह करने की कोशिश की तब-तब किसी न किसी दैवीय शक्तियों का अवतरण हुआ। इसी प्रकार जब महिषासुरादि दैत्यों के अत्याचार से भू व देव लोक व्याकुल हो उठे तो परम पिता परमेश्वर की प्रेरणा से सभी देवगणों ने एक अद्भुत शक्ति का सृजन किया जो आदि शक्ति मां जगदंबा के नाम से सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त हुईं। उन्होंने महिषासुरादि दैत्यों का वध कर भू व देव लोक में पुनःप्राण शक्ति व रक्षा शक्ति का संचार कर दिया। शक्ति की परम कृपा प्राप्त करने हेतु संपूर्ण भारत में नवरात्रि का पर्व बड़ी श्रद्धा, भक्ति व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष चैत्र नवरात्रि 8 अप्रैल से प्रारम्भ हो रहे हैं| माता पर श्रद्धा व विश्वास रखने वाले व्यक्तियों के लिये यह दिन विशेष रहेगा| इस बार नवरात्रि पूरे नौ दिन के होंगे| 

नवरात्रि का अर्थ होता है, नौ रातें। हिन्दू धर्मानुसार यह पर्व वर्ष में दो बार आता है। एक शरद माह की नवरात्रि और दूसरी बसंत माह की| इस पर्व के दौरान तीन प्रमुख हिंदू देवियों- पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ स्वरुपों श्री शैलपुत्री, श्री ब्रह्मचारिणी, श्री चंद्रघंटा, श्री कुष्मांडा, श्री स्कंदमाता, श्री कात्यायनी, श्री कालरात्रि, श्री महागौरी, श्री सिद्धिदात्री का पूजन विधि विधान से किया जाता है | जिन्हे नवदुर्गा कहते हैं।

नव दुर्गा-

नव दुर्गा- श्री दुर्गा का प्रथम रूप श्री शैलपुत्री हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण ये शैलपुत्री कहलाती हैं। नवरात्र के प्रथम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। इसके आलावा श्री दुर्गा का द्वितीय रूप श्री ब्रह्मचारिणी का हैं। यहां ब्रह्मचारिणी का तात्पर्य तपश्चारिणी है। इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप से प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। अतः ये तपश्चारिणी और ब्रह्मचारिणी के नाम से विख्यात हैं। नवरात्रि के द्वितीय दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है। श्री दुर्गा का तृतीय रूप श्री चंद्रघंटा है। इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। नवरात्रि के तृतीय दिन इनका पूजन और अर्चना किया जाता है। इनके पूजन से साधक को मणिपुर चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं तथा सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। श्री दुर्गा का चतुर्थ रूप श्री कूष्मांडा हैं। अपने उदर से अंड अर्थात् ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से पुकारा जाता है। नवरात्रि के चतुर्थ दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। श्री कूष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं।

श्री दुर्गा का पंचम रूप श्री स्कंदमाता हैं। श्री स्कंद (कुमार कार्तिकेय) की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। नवरात्रि के पंचम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। इनकी आराधना से विशुद्ध चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं। श्री दुर्गा का षष्ठम् रूप श्री कात्यायनी। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं। नवरात्रि के षष्ठम दिन इनकी पूजा और आराधना होती है। श्रीदुर्गा का सप्तम रूप श्री कालरात्रि हैं। ये काल का नाश करने वाली हैं, इसलिए कालरात्रि कहलाती हैं। नवरात्रि के सप्तम दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है। इस दिन साधक को अपना चित्त भानु चक्र (मध्य ललाट) में स्थिर कर साधना करनी चाहिए। श्री दुर्गा का अष्टम रूप श्री महागौरी हैं। इनका वर्ण पूर्णतः गौर है, इसलिए ये महागौरी कहलाती हैं। नवरात्रि के अष्टम दिन इनका पूजन किया जाता है। इनकी उपासना से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। श्री दुर्गा का नवम् रूप श्री सिद्धिदात्री हैं। ये सब प्रकार की सिद्धियों की दाता हैं, इसीलिए ये सिद्धिदात्री कहलाती हैं। नवरात्रि के नवम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है।

नवरात्रि का महत्व एवं मनाने का कारण –

नवरात्रि काल में रात्रि का विशेष महत्‍व होता है| देवियों के शक्ति स्वरुप की उपासना का पर्व नवरात्र प्रतिपदा से नवमी तक, निश्चित नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ सनातन काल से मनाया जा रहा है। सर्वप्रथम श्रीरामचंद्रजी ने इस शारदीय नवरात्रि पूजा का प्रारंभ समुद्र तट पर किया था और उसके बाद दसवें दिन लंका विजय के लिए प्रस्थान किया और विजय प्राप्त की । तब से असत्य, अधर्म पर सत्य, धर्म की जीत का पर्व दशहरा मनाया जाने लगा। नवरात्रि के नौ दिनों में आदिशक्ति माता दुर्गा के उन नौ रूपों का भी पूजन किया जाता है जिन्होंने सृष्टि के आरम्भ से लेकर अभी तक इस पृथ्वी लोक पर विभिन्न लीलाएँ की थीं। माता के इन नौ रूपों को नवदुर्गा के नाम से जाना जाता है। नवरात्रि के समय रात्रि जागरण अवश्‍य करना चाहिये और यथा संभव रात्रिकाल में ही पूजा हवन आदि करना चाहिए। नवदुर्गा में कुमारिका यानि कुमारी पूजन का विशेष अर्थ एवं महत्‍व होता है।कहीं-कहीं इन्हें कन्या पूजन के नाम से भी जाना जाता है| जिसमें कन्‍या पूजन कर उन्‍हें भोज प्रसाद दान उपहार आदि से कुमारी कन्याओं की सेवा की जाती है। आश्विन मास के शुक्लपक्ष कि प्रतिपद्रा से लेकर नौं दिन तक विधि पूर्वक व्रत करें। प्रातः काल उठकर स्नान करके, मन्दिर में जाकर या घर पर ही नवरात्रों में दुर्गाजी का ध्यान करके कथा पढ़नी चहिए। यदि दिन भर का व्रत न कर सकें तो एक समय का भोजन करें। इस व्रत में उपवास या फलाहार आदि का कोई विशेष नियम नहीं है। कन्याओं के लिये यह व्रत विशेष फलदायक है। कथा के अन्त में बारम्बार ‘दुर्गा माता तेरी सदा जय हो’ का उच्चारण करें ।

गुप्त नवरात्रि:-

हिंदू धर्म के अनुसार एक वर्ष में चार नवरात्रि होती है। वर्ष के प्रथम मास अर्थात चैत्र में प्रथम नवरात्रि होती है। चौथे माह आषाढ़ में दूसरी नवरात्रि होती है। इसके बाद अश्विन मास में प्रमुख नवरात्रि होती है। इसी प्रकार वर्ष के ग्यारहवें महीने अर्थात माघ में भी गुप्त नवरात्रि मनाने का उल्लेख एवं विधान देवी भागवत तथा अन्य धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। इनमें अश्विन मास की नवरात्रि सबसे प्रमुख मानी जाती है। इस दौरान पूरे देश में गरबों के माध्यम से माता की आराधना की जाती है। दूसरी प्रमुख नवरात्रि चैत्र मास की होती है। इन दोनों नवरात्रियों को क्रमश: शारदीय व वासंती नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। इसके अतिरिक्त आषाढ़ तथा माघ मास की नवरात्रि गुप्त रहती है। इसके बारे में अधिक लोगों को जानकारी नहीं होती, इसलिए इन्हें गुप्त नवरात्रि कहते हैं। गुप्त नवरात्रि विशेष तौर पर गुप्त सिद्धियां पाने का समय है। साधक इन दोनों गुप्त नवरात्रि में विशेष साधना करते हैं तथा चमत्कारिक शक्तियां प्राप्त करते हैं।

नवरात्रि व्रत की कथा-

नवरात्रि व्रत की कथा के बारे प्रचलित है कि पीठत नाम के मनोहर नगर में एक अनाथ नाम का ब्रह्मण रहता था। वह भगवती दुर्गा का भक्त था। उसके सुमति नाम की एक अत्यन्त सुन्दर कन्या थी। अनाथ, प्रतिदिन दुर्गा की पूजा और होम किया करता था, उस समय सुमति भी नियम से वहाँ उपस्थित होती थी। एक दिन सुमति अपनी साखियों के साथ खेलने लग गई और भगवती के पूजन में उपस्थित नहीं हुई। उसके पिता को पुत्री की ऐसी असावधानी देखकर क्रोध आया और पुत्री से कहने लगा कि हे दुष्ट पुत्री! आज प्रभात से तुमने भगवती का पूजन नहीं किया, इस कारण मै किसी कुष्ठी और दरिद्र मनुष्य के साथ तेरा विवाह करूँगा। पिता के इस प्रकार के वचन सुनकर सुमति को बड़ा दुःख हुआ और पिता से कहने लगी कि ‘मैं आपकी कन्या हूँ। मै सब तरह से आधीन हूँ जैसी आप की इच्छा हो मैं वैसा ही करूंगी। रोगी, कुष्ठी अथवा और किसी के साथ जैसी तुम्हारी इच्छा हो मेरा विवाह कर सकते हो। होगा वही जो मेरे भाग्य में लिखा है। मनुष्य न जाने कितने मनोरथों का चिन्तन करता है, पर होता है वही है जो भाग्य विधाता ने लिखा है।

अपनी कन्या के ऐसे कहे हुए वचन सुनकर उस ब्राम्हण को अधिक क्रोध आया। तब उसने अपनी कन्या का एक कुष्ठी के साथ विवाह कर दिया और अत्यन्त क्रुद्ध होकर पुत्री से कहने लगा कि जाओ-जाओ जल्दी जाओ अपने कर्म का फल भोगो। सुमति अपने पति के साथ वन चली गई और भयानक वन में कुशायुक्त उस स्थान पर उन्होंने वह रात बड़े कष्ट से व्यतीत की।उस गरीब बालिका कि ऐसी दशा देखकर भगवती पूर्व पुण्य के प्रभाव से प्रकट होकर सुमति से कहने लगी की, हे दीन ब्रम्हणी! मैं तुम पर प्रसन्न हूँ, तुम जो चाहो वरदान माँग सकती हो। मैं प्रसन्न होने पर मनवांछित फल देने वाली हूँ। इस प्रकार भगवती दुर्गा का वचन सुनकर ब्रह्याणी कहने लगी कि आप कौन हैं जो मुझ पर प्रसन्न हुईं। ऐसा ब्रम्हणी का वचन सुनकर देवी कहने लगी कि मैं तुझ पर तेरे पूर्व जन्म के पुण्य के प्रभाव से प्रसन्न हूँ। तू पूर्व जन्म में निषाद (भील) की स्त्री थी और पतिव्रता थी। एक दिन तेरे पति निषाद द्वारा चोरी करने के कारण तुम दोनों को सिपाहियों ने पकड़ कर जेलखाने में कैद कर दिया था। उन लोगों ने तेरे और तेरे पति को भोजन भी नहीं दिया था। इस प्रकार नवरात्र के दिनों में तुमने न तो कुछ खाया और न ही जल पिया इसलिए नौ दिन तक नवरात्र का व्रत हो गया।हे ब्रम्हाणी ! उन दिनों में जो व्रत हुआ उस व्रत के प्रभाव से प्रसन्न होकर तुम्हे मनोवांछित वस्तु दे रही हूँ। ब्राह्यणी बोली की अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृपा करके मेरे पति के कोढ़ को दूर करो। उसके पति का शरीर भगवती की कृपा से कुष्ठहीन होकर अति कान्तियुक्त हो गया।

घट स्थापना मुहूर्त-

नवरात्र में तिथि वृद्धि सुखद संयोग माना जाता है। नवरात्र के प्रथम दिन घट स्थापना के साथ दैनिक पूजा भी बहुत सरल विधि से की जा सकती है| 
शुभ मूहूर्त
वैधृति योग- सुबह 10 बजकर 40 मिनट तक
घट स्थापना अभिजित मुहूर्त- दोपहर 12 बजकर 04 मिनट से 12 बजकर 54 मिनट तक
अमृत चौघडिया मूहूर्त- सुबह 10 बजकर 40 मिनट से 10 बजे 55 मिनट तक
शुभ चौघडिया मूहूर्त- दोपहर 12 बजकर 29 मिनट से 2 बजे 03 मिनट तक


घट स्थापना विधि-

नवरात्र पूजन में कई लोग घट व नारियल स्थापना उन्होंने कलश स्थापना की सही विधि घट सही तरीके से न करने से शुभ की जगह अशुभ फल प्राप्त होता है। आपको बता दें कि मंदिर के उत्तर पूर्व दिशा के मध्य में स्थित ईशान कोण में मिट्टी या धातु के पात्र में साख लगाएं। इसके बाद पात्र में घट (कलश) की स्थापना करें। घट धातु का ही होना चाहिए, तांबे या पीतल धातु का शुभ होता है। घट को मौली बांधे, उसमें जल, चावल, पंचरतनी, चुटकी भर तुलसी की मिट्टी, स्र्वोष्धी, तिलक, फूल व द्रूवा व सिक्के डाल कर आम के नौ पत्ते रख कर उस पर चावल से भरे दोने से ढक सभी देवी-देवताओं का ध्यान कर उनका आह्वान करें। इसके बाद चावलों के ऊपर नारियल का मुख अपनी और इस तरह रखें कि उसे देखने पर साधक की नजरें सीधे मुख पर पड़े।

शास्त्रों में वर्णित श्लोक के मुताबिक ‘अधोमुखं शत्रु विवर्धनाय, ऊ‌र्ध्वस्य वस्त्रं बहुरोग वृध्यै। प्राचीमुखं वित विनाशनाय, तस्तमात् शुभम संमुख्यम नारीकेलम’ के अनुसार स्थापना के दौरान नारियल का मुख नीचे रखने से शत्रु बढ़ते हैं, ऊपर रखने से रोग में वृद्धि, पूर्व दिशा में करने से धन हानि होती है। इसलिए नारियल का मुख अपनी तरफ रख ही उसकी स्थापना करनी चाहिए। नारियल जिस तरफ से पेड़ पर लगा होता है, वह उसका मुख वह होता और उसका ठीक उल्टा हिस्सा नुकीला होता है। 

पापमोचिनी एकादशी व्रत से होता है समस्त पापों का नाश


हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। हिन्दू धर्म में कहा गया है कि संसार में उत्पन्न होने वाला कोई भी ऐसा मनुष्य नहीं है जिससे जाने अनजाने पाप नहीं हुआ हो। पाप एक प्रकार की ग़लती है जिसके लिए हमें दंड भोगना होता है। ईश्वरीय विधान के अनुसार पाप के दंड से बचा जा सकता हैं अगर पापमोचिनी एकादशी का व्रत रखें। पुराणों के अनुसार चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचिनी एकादशी कहते हैं। इस बार यह एकादशी 3 अप्रैल को वैष्णव और 4 अप्रैल को स्मार्त दिन को पड़ रही है।

पापमोचिनी एकादशी की व्रत विधि-

पापमोचिनी एकादशी व्रत में भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है। जिस व्यक्ति को इस एकाद्शी का व्रत करना हो व इस व्रत का संकल्प करके इस व्रत का आरंभ नियम दशमी तिथि से ही प्रारम्भ करे| व्रत के दिन व्रत के सामान्य नियमों का पालन करना चाहिए| इसके साथ ही साथ जहां तक हो सके व्रत के दिन सात्विक भोजन करना चाहिए| भोजन में उसे नमक का प्रयोग बिल्कुल नहीं करना चाहिए| इस व्रत को करने वाले व्यक्ति को व्रत के दिन प्रातःकाल स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण कर माथे पर श्रीखंड चंदन अथवा गोपी चंदन लगाकर कमल अथवा वैजयन्ती फूल, फल, गंगा जल, पंचामृत, धूप, दीप, सहित लक्ष्मी नारायण की पूजा एवं आरती करें और और भगवान को भोग लगायें| इस दिन भगवान नारायण की पूजा का विशेष महत्व होता है| पूजा के पश्चात भगवान के सामने बैठकर भग्वद् कथा का पाठ अथवा श्रवण करें। एकादशी तिथि को जागरण करने से कई गुणा पुण्य मिलता है अत: रात्रि में भी निराहार रहकर भजन कीर्तन करते हुए जागरण करें। द्वादशी के दिन प्रात: स्नान करके विष्णु भगवान की पूजा करें फिर ब्राह्मणों को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करें पश्चात स्वयं भोजन करें। इस प्रकार पापमोचिनी एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु अति प्रसन्न होते हैं तथा व्रती के सभी पापों का नाश कर देते हैं।

पापमोचनी एकादशी व्रत की कथा-

राजा मान्धाता ने एक बार लोमश ऋषि से पूछा कि मनुष्य जो जाने-अनजाने में पाप करता है उससे कैसे मुक्त हो सकता है? तब लोमश ऋषि ने राजा को एक कहानी सुनाई कि चैत्ररथ नामक सुन्दर वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि तपस्या में लीन थे। इस वन में एक दिन मंजुघोषा नामक अप्सरा की नजर ऋषि पर पड़ी तो वह उन पर मोहित हो गई और उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करने लगी। कामदेव भी उस समय उधर से गुजर रहे थे कि उनकी नजऱ अप्सरा पर गई और वह उसकी मनोभावना को समझते हुए उसकी सहायता करने लगे। अप्सरा अपने प्रयास में सफल हुई और ऋषि की तपस्या भंग हो गई।

ऋषि शिव की तपस्या का व्रत भूल गए और अप्सरा के साथ रमण करने लगे। कई वर्षों के बाद जब उनकी चेतना जागी तो उन्हें एहसास हुआ कि वह शिव की तपस्या से विरक्त हो चुके हैं उन्हें तब उस अप्सरा पर बहुत क्रोध हुआ और तपस्या भंग करने का दोषी जानकर ऋषि ने अप्सरा को श्राप दे दिया कि तुम पिशाचिनी बन जाओ। श्राप से दु:खी होकर वह ऋषि के पैरों पर गिर पड़ी और श्राप से मुक्ति के लिए प्रार्थना करने लगी।

मेधावी ऋषि ने तब उस अप्सरा को विधि सहित चैत्र कृष्ण एकादशी (पापमोचिनी एकादशी) का व्रत करने के लिए कहा। भोग में निमग्न रहने के कारण ऋषि का तेज भी लोप हो गया था अत: ऋषि ने भी इस एकादशी का व्रत किया जिससे उनका पाप नष्ट हो गया। उधर अप्सरा भी इस व्रत के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हो गयी और उसे सुन्दर रूप प्राप्त हुआ तब वह पुन: स्वर्ग चली गई।

कानून व्यवस्था को दुरुस्त करने में अखिलेश सरकार नाकाम, पुलिस हिरासत में हो रही मौतें

पिछले कुछ महीनो पर नज़र डालें तो साफ़ जाहिर होता है कि उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था के नाम पर जमकर खिलवाड़ हो रहा है। प्रदेश में अपराध का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है| यहाँ हिरासत में मौत आम बात हो गयी हैं। उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले में एक मामले को लेकर हिरासत में लिए गए 2 युवकों की कोतवाली परिसर में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। प्रताडऩा के कारण दोनों की मृत्यु का आरोप लगने पर 3 पुलिसकर्मियों को निलम्बित कर दिया गया।

पुलिस सूत्रों ने बताया कि मादक पदार्थों की तस्करी के आरोप में पूरनपुर कोतवाली की पुलिस सद्दाम तथा अकील नामक युवकों को कल रात पकड़कर लाई थी। दोनों आज सुबह संदिग्ध परिस्थितियों में मृत पाए गए। उन्होंने बताया कि कोतवाली पुलिस का कहना है कि सुबह तबीयत खराब होने पर सद्दाम और अकील को अस्पताल भेजा गया था, जहां दोनों की मौत हो गई। सूत्रों ने बताया कि मृतकों के परिजन ने पुलिस पर प्रताडऩा देकर दोनों युवकों की हत्या करने का आरोप लगाया है। उन्होंने बताया कि पुलिस अधीक्षक अनिल कुमार सिंह ने कोतवाली में तैनात इंस्पेक्टर शक्ति सिंह समेत 3 पुलिसकर्मियों को निलम्बित कर दिया है। मामले की जांच की जा रही है।

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में यह कोई पहला मामला नहीं है जब पुलिस हिरासत में कैदियों की मौत हो रही है इससे पहले भी कई मामले इस तरह के आ चुके हैं लेकिन अखिलेश सरकार कार्यवाई करने के बजाय हाथ पर हाथ रखे हुए बैठी है।

क्यों मनाते हैं ‘अप्रैल फूल’ और कब हुई इसकी शुरुआत


दुनिया के कई देशों में 1 अप्रैल को ‘अप्रैल फूल डे’ के रूप में मनाया जाता है| कहीं-कहीं इसे ‘ऑल फूल्स डे’ भी कहा जाता है। इस दिन लोग एक-दूसरे को बेवकूफ बनाते हैं और जो बेवकूफ बन जाता है उसे ‘अप्रैल फूल’ कहकर चिढ़ाते हैं। वैसे तो एक अप्रैल को कोई आधिकारिक छुट्टी नहीं होती, लेकिन इसे स्पेशली एक ऐसे दिन मनाया जाता है जब एक दूसरे के साथ मजाक और सामान्य तौर पर मूर्खतापूर्ण हरकतें की जाती हैं|

आपको यह जानकर हैरानी होगी कि कुछ देशों जैसे न्यूजीलैंड, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका में इस तरह के मजाक केवल दोपहर तक ही किए जाते हैं और अगर कोई दोपहर के बाद मजाक करने की कोशिश करता है तो उसे ‘अप्रैल फूल’ कहा जाता है। कहा जाता है कि ऐसा इसीलिये किया जाता है क्योंकि ब्रिटेन के अखबार जो अप्रैल फूल पर मुख्य पृष्ठ निकालते हैं वे ऐसा सिर्फ पहले (सुबह के) एडिशन के लिए ही करते हैं|

वहीं फ्रांस, आयरलैंड, इटली, दक्षिण कोरिया, जापान, रूस, नीदरलैंड, जर्मनी, ब्राजील, कनाडा और अमेरिका में मजाक का सिलसिला पूरे दिन चलता रहता है। फ्रांस और इटली में तो इस दिन कागज की मछली बनाकर उसे एक-दूसरे की पीठ पर चिपकाकर ‘अप्रैल फिश’ मनाने का प्रचलन है।

क्यों मनाते हैं ‘अप्रैल फूल’

बहुत से लोगो का मानना है कि ‘अप्रैल फूल’ की शुरुआत 17वीं सदी से शुरू हुई है लेकिन एक अप्रैल को ‘फूल्स डे ‘ के रूप मे माना जाना और लोगों के साथ हंसी मजाक करने का सिलसिला वर्ष 1564 के बाद फ्रांस में शुरू हुआ| इस परंपरा की शुरुआत की कहानी बड़ी ही मनोरंजक है|

दरअसल, वर्ष 1564 से पहले यूरोप के लगभग सभी देशों मे एक जैसा कैलेंडर प्रचलित था जिसमे हर नया वर्ष एक अप्रैल से शुरू होता था| उन दिनों एक अप्रैल को लोग न्यू ईयर की तरह सेलिब्रेट करते थे| इस दिन लोग एक दूसरे को न्यू ईयर गिफ्ट और शुभकामनाएं भेजते थे| वर्ष 1564 मे वहां के राजा चार्ल्स नवम (CHARLES1X) ने एक बेहतर कैलेंडर को अपनाने का आदेश दिया| इस नए कैलेंडर मे आज की तरह एक जनवरी को वर्ष का प्रथम दिन माना गया था| अधिकतर लोगो ने इस नए कैलेंडर को अपना लिया लेकिन कुछ ऐसे भी लोग थे जिन्होंने नए कैलेंडर को अपनाने से इंकार कर दिया था|

ऐसे में जो लोग एक जनवरी को वर्ष का नया दिन न मानकर ‘एक अप्रैल’ को ही वर्ष का पहला दिन मानते थे, उन्हें नया कैलेंडर अपनाने वालो ने मूर्ख समझकर एक अप्रैल के दिन विचित्र प्रकार के मजाक और झूठे उपहार देने शुरू कर दिए| तभी से आज तक एक अप्रैल को लोग ‘फूल्स डे’ के रूप मे मनाते हैं|

कैसे बनाये ‘अप्रैल फूल डे’


एक अप्रैल के दिन अपने फ्रेंड्स, फेमिली मेम्बर्स, पति, पत्नी, गर्लफ्रेंड, ब्वॉयफ्रेंड एक दूसरे को बेवकूफ बनाने के लिए मोबाइल फोन, ईमल,गिफ्ट पैकेट्स का यूज करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते| बेवकूफ बनाने के लिए आकर्षक पैकिंग वाले डिब्बों में ईंट-पत्थर के टुकड़े या मिठाई की जगह आटे के लोने रखकर मूर्ख बनाए जा सकते हैं|

लड़के लड़कियां एक दूसरे को फोन पर शादी का ऑफर देकर, जॉब का ऑफर देकर बेवकूफ बना सकते हैं| अगर सभी को मूर्ख बना रहे है तो पत्रकारों को कैसे छोड़ दिया जाए| मीडिया के दफ्तरों में फोन पर झूठी सूचनाएं देकर पत्रकारों को आसानी से परेशान किया जा सकता है। पत्रकारों को फोन पर किसी स्थान पर पूल टूटने, किसी जीप के दुर्घटनाग्रस्त होने, कही प्रेस कांफ्रेंस की झूठी खबर देकर आसानी से अप्रैल फूल बनाया जा सकता है|

पत्रकारों के अलावा पुलिस वालों को भी झूठी सूचनाएं देकर इधर-उधर दौड़ाया जा सकता है, लेकिन ध्यान रखें की यह मजाक एक हद के भीतर ही हो जिससे कोई अनहोनी या फिर आत्मग्लानी देने वाली घटना ना घटे|

6 साल पहले गंगा में किया था बेटी का अंतिम संस्कार, आज वह वापस आ गई

शहडोल: कभी-कभी कुछ ऐसी घटनाये घट जाती है जिन पर यकीन करना मुश्किल होता है। ऐसी ही एक घटना हाल ही में मध्य प्रदेश के शहडोल में घटी है जहाँ गंगा में प्रवाहित की गई एक 12 वर्षीय लड़की छह साल बाद जिंदा मिली है। घटना आज से छह साल पहले की है, जब ब्यौहारी तहसील के कुंआ गांव निवासी झुरू कचेर की बेटी स्वाति एक रात खाना खाकर सो रही थी, तभी उसके पेट में अचानक असहनीय पीड़ा हुई और मुंह से झाग भी गिरने लगा। परिजनों ने आनन-फानन में गांव के ही एक डॉक्टर को दिखाया, जहां डॉक्टर ने बच्ची को मृत घोषित कर दिया। झुरू कचेर की एक ही बेटी थी, जिसकी मौत की खबर के बाद परिवार में पहाड़ सा टूट पड़ा।

स्वाति के मौत के बाद परिजनों ने उसे इलाहबाद में गंगा में प्रवाहित करने का फैसला किया और उसे वहां ले गए। वजन कम होने के कारण परिजन उसके शरीर में पत्थर बांध कर जल में प्रवाहित कर लौट आये, लेकिन वृंदावन के साधुओं की नजर जब बच्ची पर पड़ी तो उसे गंगा से निकाल कर डॉक्टर के पास ले गए, जहां उसकी सांसे चलती मिली और उसका इलाज करवाया तो स्वस्थ्य हो गई। स्वस्थ्य होने पर वो साधुओं के साथ ही रहने लगी। यहीं रहकर स्वाति ने कथावाचन सीख लिया। साधु-संतों ने स्वाति को 12 साल का संकल्प दिलाया है। इसके बाद ही वह अपने घर जा सकेगी।

फरवरी में उमरिया जिले के मुड़गुड़ी गांव के यादव परिवार में भागवत कथा थी। इसमें वृंदावन से बतौर कथावाचक स्वाति भी पहुंची। भागवत में स्वाति के बड़े पिता भी गए थे। स्वाति यहां अपने बड़े पिता नारेन्द्र कचेर को देखते ही पहचान गई। सूचना मिलते ही बच्ची के माता-पिता भी उसे देखने पहुंचे। बच्ची ने सभी को पहचान लिया। बीते दिनों होली के समय बच्ची के परिजन उसे घुमाने वृंदावन से अपने गांव लाए थे। इसके बाद वो वापस वृंदावन चली गई। बाद में गांव आकर स्वाति यहां आश्रम बनाना चाहती है।

आपको बता दें कि एक ऐसी ही घटना कुछ साल पहले उत्तर प्रदेश के बरेली में देखने को मिला था जहाँ एक युवक को उसके परिजनों ने मृत समझकर गंगा में बहा दिया था लेकिन 14 साल बाद वह युवक वापस अपने घर आ गया। उत्तर प्रदेश के बरेली के थाना क्षेत्र देबरनिया के भुड़वा नगला गाँव के कृषक नन्थू लाल का 23 वर्षीय पुत्र छत्रपाल को 14 वर्ष पूर्व खेत मे काम करते समय सर्पदंश से मौत हो गयी थी| छत्रपाल की मौत के बाद परिजनो ने अन्य सैकड़ो ग्रामीणो के साथ जाकर रामगंगा में छत्रपाल की लाश को जल समाधि देकर अंतिम संस्कार कर दिया ,लेकिन आज 14 बर्ष बाद मृतक छत्रपाल परिजनों के पास जिन्दा होकर अपने घर लौटा है इस चमत्कार से ग्रामीणो में उत्साह व छत्रपाल को देखने होड़ में आसपास के तमाम ग्रामीणो की भारी भीड़ उमड़ पड़ी है|

मृतक छत्रपाल को 14 वर्ष बाद जिन्दा देखकर उस के परिजनो व पत्त्नी बच्चो को तो अपार ख़ुशी के बाद चमत्कारी कर्तव्य देखकर पुरे परिवार में खुशियाँ ही खुशियाँ दिख रही है वही हजारो की तादायत में ग्रामीणो का हुजूम नन्थुलाल के घर के बाहर उमड़ पड़ा है| मृतक छत्रपाल को देखकर सभी ग्रामीण अचम्भितब हो कर देख रहे है कि आखिर मौत के बाद आँखों के सामने लाश का हुआ अंतिम संस्कार फिर यह चमत्कार की छत्रपाल जिन्दा होकर सामने खड़ा है यह भगवन की लीला क्या है जबकि छत्रपाल को डॉक्टरो ने मृतक घोषित किया और सभी ग्रामीणो ने मिलकर उसकी लाश का अंतिम संस्कार 14 वर्ष पूर्व कर दिया था|

आज वही छत्रपाल उन्ही ग्रामीणो व परिवार के लोगो के सामने जिन्दा खड़ा हुआ है और अब छत्रपाल के पिता, पत्नी, भाई, माँ तमाम परिजन व ग्रामीण अपने-अपने तरीके से छत्रपाल के साथ पूर्व जीवन में बीती घटनाओ को पूछ-पूछ कर जीवित छत्रपाल की परीक्षा ले रहे है और मृतक छत्रपाल है कि हर सवालों का जवाब स्पष्ट रूप से देता चला जा रहा है| छत्रपाल के गुरु सपेरो ने पिछली जिंदगी भुला कर छत्रपाल को नया जीवन देकर उसका नाम भी नया रखते हुए रूपकिशोर नाम रख दिया है|

नन्थुलाल के पुत्र छत्रपाल को जिन जिन्दा कर के घर पर लाने वाले गुरु सपेरे हरिसिंह को नन्थुलाल का परिवार ही नहीं तमाम ग्रामीण भी उन्हें भगवान रूपी इंसान मानने के लिये मजबूर हैं| वही चमत्कारी सपेरा भी निस्वार्थ समाज सेवा करते हुए तमाम मरे हुए लोगो को जिन्दा कर के अपने साथ लिये घूम रहा है| अपनी इस कला का प्रदर्शन करते हुए अपने साथ अन्य लाये हुए चेलो को भी इसी प्रकार जिन्दा कर अपना शिष्य बनाने की बात कह रहे है सपेरे हरिसिंह भी आपबीती सुनते हुए बताते है कि वह भी सांप के डसने से मर गये थे और उनके परिजनो ने सामजिक रीतिरिवाजो के अनुसार उनकी लाश को भी परिजनो ने गंगा में बहा दिया था हरिसिंह की लाश बहती हुई बंगाल जा पहुँची वहाँ एक महात्मा ने हरीसिंह की लाश देखकर उसे जिन्दा कर दिया और अपना शिष्य बना लिया हरिसिंह भी अपने गुरु का परम शिष्य बन गया और गुरु सेवा करते-करते हरिसिंह ने भी बंगाल के अपने गुरु से सारी गुरु विद्या सीख ली और आज उसी गुरु विद्या से समाज सेवा करते हुए सर्पदश से मरे हुए लोगो को जीवन दान देकर अपने जीवन को सार्थक बना रहा है|

जड़ी बूटियों के ज्ञानी सपेरे हरिसिंह लाइलाज बीमारियो को फ्री सेवा भाव से ही ठीक कर देते है| सांप के काटने से मर चुके दर्जनो लोगो को इन्होने जीवन दान देकर उनके परिजनों को बगैर कीमत वसूले सौप है आज वो परिवार जिनके परिजन मृत्यु को प्राप्त हो चुके है और उन युवकों को सपेरे गुरु ने जिन्दा कर के उनके परिजनो को सौपा है वह लोग उनको अपना गुरु मानते हुए भगवान रूपी इंसान मान रहे है| सपेरे हरिसिंह का कहना है कि वह सांप के काटे का इलाज फ्री करते हुए बीन बजाकर सापो की लीला दिखाते हुए साधू-सन्यासी व ब्रम्ह्चर्य जीवन व्यतीत कर रहे है| निस्वार्थ भाव से जड़ी बूटियों के माध्यम से लोगो का फ्री इलाज भी कर देते है संपर्क के लिये इन्होने अपना मोबाइल नंबर भी लोगो को दे रखा है-8941943751 .

मौत के बाद छत्रपाल को जीवन दान देकर सपेरा हरीसिंह अपने कबीलो की परंपरा को बताते हुए बोले की जिन्दा किया हुआ इंसान कम से कम बारह वर्ष तक हमारे साथ रहता है उसके बाद वह अपनी वा पूर्व परिजनो की मर्जी से अपने घर जा सकता है नहीं तो वह जीवन भर हमारे साथ रहे और हमारी तरह बीन बजाये और गुरु शिक्षा ग्रहण करते हुए साधू रूपी जीवन जिये भगवान रूपी सपेरे दावा करते है कि सांप का काटा हुआ इंसान मर जाये और उसके नाक, कान, मुँह से खून नहीं निकला हो तो हम दस दिन एक महीना बाद भी उसे जिन्दा कर लेते है इसी प्रकार जिन्दा किये हुए कई लोग आज अपने परिवार के साथ जिंदगिया जी रहे है| इस काम का हम लोग किसी से कोई रुपया पैसा नहीं लेते है|

हरिसिंह सपेरे बताते है कि सांप के काटे का इलाज सबसे आसान है इस इलाज में इस्तमाल लाने वाला मुख्य यंत्र साइकिल में हवा डालने वाला पम्प होता है इसी पम्प से हम मरे हुए लोगो को पुनः जीवन दान देते है सपेरे हरी सिंह अपने कबीलो के साथ ग्राम शरीफ नगर इटौआ में अपने डेरो समेत रुके है थे और साथ में पड़ोस के गाँव भड़वा नगला के नन्थुलाल का मृतक बेटा भी था अचानक मृतक छत्रपाल की याददाश्त आ गयी और वह स्थानीय लोगो को बताने लगा कि मै पड़ौस के गाँव भड़वा के नन्थुलाल का पुत्र हूँ 14 वर्ष पूर्व साँप के काटे जाने से मौत हो गयी थी सपेरे गुरु हरिसिंह ने अपनी विद्या से मुझे जीवित कर लिया|

इस चमत्कार भरी कहानी सुनते ही पूरे क्षेत्र में अफरा तफरी मच गयी और खबर आग की तरह फैलते हुई पड़ौसी गांव भड़वा नगला के नन्थुलाल तक पहुँच गयी फिर तो ग्रामीण क्या परिजन क्या हजारो की तादात में लोगो का हुजूम सपेरो के काफिलो की तरफ उमड़ पड़ा और होड़ सी मच गयी उस मृतक युवक को जिन्दा देखने के लिये जो 14 वर्ष पूर्व मर गया था आज वह जिन्दा कैसे हो गया है इन तमाम सवालो का जवाब खोजने में लगे लोगो में चर्चा की मुख्य वजह तो थी ही वही मृतक के परिजन भी अन्य ग्रामीणो के साथ सपेरो के डेरे पर पहुँच गये और अपने खोये हुए लाल को पहचानने में जरा सी भी देरी नहीं की और तमाम मिन्नतो और खेरो खुशमात से सपेरो को अपने घर नन्थुलाल ले आया|

ऐसा आपने फ़िल्मी कहानियो में देखा होगा पर यहाँ यह हकीकत है कि पूरा गाँव इस कहानी को चमत्कार मान रहा है कला हो या चमत्कार या फिर जड़ीबूटियों की ताकत पर गुरु सपेरा हरिसिंह किसी भी चमत्कारी से कम नहीं।

क्रांतिकारी पत्रकार थे गणेश शंकर विद्यार्थी

लखनऊ: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जिन पत्रकारों ने अपनी लेखनी को हथियार बनाकर आजादी की जंग लड़ी थी उनमें गणेश शंकर विद्यार्थी का नाम अग्रगण्य है। आजादी की क्रांतिकारी धारा के इस पैरोकार ने अपने धारदार लेखन से तत्कालीन ब्रिटिश सत्ता को बेनकाब किया और इस जुर्म के लिए उन्हें जेल तक जाना पड़ा। सांप्रदायिक दंगों की भेंट चढ़ने वाले वह संभवत: पहले पत्रकार थे। उनका जन्म 26 अक्टूबर, 1890 को उनके ननिहाल प्रयाग (इलाहाबाद) में हुआ था। इनके पिता का नाम जयनारायण था। पिता एक स्कूल में अध्यापक थे और उर्दू व फारसी के जानकार थे। विद्यार्थी जी की शिक्षा-दीक्षा मुंगावली (ग्वालियर) में हुई थी। पिता के समान ही इन्होंने भी उर्दू-फारसी का अध्ययन किया।

आर्थिक कठिनाइयों के कारण वह एंट्रेंस तक ही पढ़ सके, लेकिन उनका स्वतंत्र अध्ययन जारी रहा। विद्यार्थी जी ने शिक्षा ग्रहण करने के बाद नौकरी शुरू की, लेकिन अंग्रेज अधिकारियों से नहीं पटने के कारण उन्होंने नौकरी छोड़ दी। पहली नौकरी छोड़ने के बाद विद्यार्थी जी ने कानपुर में करेंसी आफिस में नौकरी की, लेकिन यहां भी अंग्रेज अधिकारियों से उनकी नहीं पटी। इस नौकरी को छोड़ने के बाद वह अध्यापक हो गए।

महावीर प्रसाद द्विवेदी उनकी योग्यता के कायल थे। उन्होंने विद्यार्थी जी को अपने पास 'सरस्वती' में बुला लिया। उनकी रुचि राजनीति की ओर पहले से ही थी। एक ही वर्ष के बाद वह 'अभ्युदय' नामक पत्र में चले गए और फिर कुछ दिनों तक वहीं पर रहे। सन 1907 से 1912 तक का उनका जीवन संकट में रहा। उन्होंने कुछ दिनों तक 'प्रभा' का भी संपादन किया था। अक्टूबर 1913 में वह 'प्रताप' (साप्ताहिक) के संपादक हुए। उन्होंने अपने पत्र में किसानों की आवाज बुलंद की।

सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं पर विद्यार्थी जी के विचार बड़े ही निर्भीक होते थे। विद्यार्थी जी ने देशी रियासतों द्वारा प्रजा पर किए गए अत्याचारों का तीव्र विरोध किया। पत्रकारिता के साथ-साथ गणेश शंकर विद्यार्थी की साहित्य में भी अभिरुचि थी। उनकी रचनाएं 'सरस्वती', 'कर्मयोगी', 'स्वराज्य', 'हितवार्ता' में छपती रहीं। 'शेखचिल्ली की कहानियां' उन्हीं की देन है। उनके संपादन में 'प्रताप' भारत की आजादी की लड़ाई का मुखपत्र साबित हुआ। सरदार भगत सिंह को 'प्रताप' से विद्यार्थी जी ने ही जोड़ा था। विद्यार्थी जी ने राम प्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा 'प्रताप' में छापी, क्रांतिकारियों के विचार व लेख 'प्रताप' में निरंतर छपते रहते थे।

महात्मा गांधी ने उन दिनों अंग्रेजों के खिलाफ अहिंसात्मक आंदोलन की शुरुआत की थी, जिससे विद्यार्थी जी सहमत नहीं थे, क्योंकि वह स्वभाव से उग्रवादी विचारों के समर्थक थे। विद्यार्थी जी के 'प्रताप' में लिखे अग्रलेखों के कारण अंग्रेजों ने उन्हें जेल भेजा, जुर्माना लगाया और 22 अगस्त 1918 में 'प्रताप' में प्रकाशित नानक सिंह की 'सौदा ए वतन' नामक कविता से नाराज अंग्रेजों ने विद्यार्थी जी पर राजद्रोह का आरोप लगाया व 'प्रताप' का प्रकाशन बंद करवा दिया।

आर्थिक संकट से जूझते विद्यार्थी जी ने किसी तरह व्यवस्था जुटाई तो 8 जुलाई 1918 को फिर इसकी की शुरुआत हो गई। 'प्रताप' के इस अंक में विद्यार्थी जी ने सरकार की दमनपूर्ण नीति की ऐसी जोरदार खिलाफत कर दी कि आम जनता 'प्रताप' को आर्थिक सहयोग देने के लिए मुक्त हस्त से दान करने लगी। जनता के सहयोग से आर्थिक संकट हल हो जाने पर साप्ताहिक 'प्रताप' का प्रकाशन 23 नवंबर 1990 से दैनिक समाचार पत्र के रूप में किया जाने लगा। लगातार अंग्रेजों के विरोध में लिखने से इसकी पहचान सरकार विरोधी बन गई और तत्कालीन दंडाधिकारी मि. स्ट्राइफ ने अपने हुक्मनामे में 'प्रताप' को 'बदनाम पत्र' की संज्ञा देकर जमानत की राशि जप्त कर ली। कानपुर के हिंदू-मुस्लिम दंगे में निस्सहायों को बचाते हुए 25 मार्च 1931 को विद्यार्थी जी भी शहीद हो गए। उनका पार्थिव शरीर अस्पताल में पड़े शवों के बीच मिला था। 

...यहां देवी-देवता भी खेलते हैं होली!

होली का त्योहार यूं तो पूरे भारत वर्ष में धूमधाम से मनाया जाता है, पर छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में पारम्परिक होली का अंदाज कुछ जुदा है। लोग यहां होली देखने दूर-दूर से आते हैं। यहां होली में होलिका दहन के दूसरे दिन पादुका पूजन व ‘रंग-भंग’ नामक अनोखी और निराली रस्म होती है। इसमें सैकड़ों की संख्या में लोग हिस्सा लेते हैं। मान्यता है कि होलिका दहन स्थल के राख से मंडई में मां दंतेश्वरी आमंत्रित देवी-देवताओं तथा पुजारी व सेवादारों के साथ होली खेलती हैं। इस मौके पर फागुन मंडई के अंतिम रस्म के रूप में विभिन्न ग्रामों से मेले में पहुंचे देवी-देवताओं को विधिवत विदाई भी दी जाती है। यहां का जनसमुदाय इस पारम्परिक आयोजन का जमकर लुत्फ उठाता है।

इस पारम्परिक आयोजन के बारे में मां दंतेश्वरी मंदिर के सहायक पुजारी हरेंद्र नाथ जिया ने बताया कि यहां विराजमान सती सीता की प्राचीन प्रतिमा लगभग सात सौ साल पुरानी है। एक ही शिला में बनी इस प्रतिमा को राजा पुरुषोत्तम देव ने यहां स्थापित किया था। तब से यहां फागुन मंडई के दौरान होलिका दहन और देवी-देवताओं के होली खेलने की परम्परा चली आ रही है। सात सौ साल पुरानी इस प्रतिमा को एक पुलिया निर्माण के चलते फिलहाल एक शनि मंदिर में रखा गया था। अब इस सीता की प्रतिमा की विधिवत स्थापना पुजारी हरेंद्र नाथ जिया व पं. रामनाथ दास ने वैदिक मंत्रोचार के साथ किया। प्रतिमा स्थल पर ऐतिहासिक फागुन मंडई के दौरान आंवरामार रस्म के बाद होलिका दहन की जाती है। यहां जनसमूह की उपस्थिति में बाजा मोहरी की गूंज के बीच प्रधान पुजारी जिया बाबा द्वारा होलिका दहन की रस्म अदा की जाती है। इसे देखने सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण मौजूद रहते हैं।

यहां के फागुन मंडई में आंवरामार रस्म के बाद सती सीता स्थल पर होलिका दहन की जाती है। यहां गंवरमार रस्म में गंवर (वनभैंसा) का पुतला तैयार किया जाता है। इसमें प्रयुक्त बांस का ढांचा तथा ताड़-फलंगा धोनी में प्रयुक्त ताड़ के पत्तों से होली सजती है। मंदिर के प्रधान पुजारी पारम्परिक वाद्ययंत्र मोहरी की गूंज के बीच होलिका दहन की रस्म पूरी करते हैं। पूरे देश में जहां होली के अवसर पर रंग-गुलाल खेलकर अपनी खुशी का इजहार किया जाता है, वहीं बस्तर में होली के अवसर पर मेले का आयोजन कर सामूहिक रूप से हास-परिहास करने की प्रथा आज भी विद्यमान है।

इतिहासकारों का कहना है कि बस्तर के काकतीय राजाओं ने इस परम्परा की शुरुआत माड़पाल ग्राम में होलिका दहन से की थी। तब से यह परम्परा जारी है। इन इलाकों में होलिका दहन का कार्यक्रम भी अनूठा है। माड़पाल, नानगूर तथा ककनार में आयोजित किए जाने वाले होलिका दहन कार्यक्रम इसके जीते-जागते उदाहरण हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि काकतीय राजवंश के उत्तराधिकारियों द्वारा आज भी सर्वप्रथम ग्राम माढ़पाल में सर्वप्रथम होलिका दहन किया जाता है, इसके बाद ही अन्य स्थानों पर होलिका दहन का कार्यक्रम आरम्भ होता है। माढ़पाल में होलिका दहन की रात छोटे रथ पर सवार होकर राजपरिवार के सदस्य होलिका दहन की परिक्रमा भी करते हैं, जिसे देखने के लिए हजारों की संख्या में वनवासी एकत्रित होते हैं। इस अनूठी परम्परा की मिसाल आज भी कायम है।