तुम हंसना चाहो, तो जरूर हंसो, मुझे आपत्ति नहीं

अंगार ने ऋषि की आहुतियों का घी पिया और हव्य के रस चाटे। कुछ देर बाद वह ठंडा होकर राख हो गया और कूड़े की ढेरी पर फेंक दिया गया।

ऋषि ने जब दूसरे दिन नए अंगार पर आहुति अर्पित की तो राख ने पुकारा, "क्या आज मुझसे रुष्ट हो, महाराज?"

ऋषि की करुणा जाग उठी और उन्होंने पात्र को पोंछकर एक आहुति उसे भी अर्पित कर दी।

तीसरे दिन ऋषि जब नए अंगार पर आहुति देने लगे तो राख ने गुर्राकर कहा, "अरे! तू वहां क्या कर रहा है? अपनी आहुतियां यहां क्यों नहीं लाता?"

ऋषि ने शांत स्वर में उत्तर दिया, "ठीक है राख! आज मैं तेरे अपमान का पात्र हूं, क्योंकि कल मैंने मूर्खतावश तुझ अपात्र में आहुति अर्पित करने का पाप किया था। "

जैसी करनी वैसी भरनी :

एक हवेली के तीन हिस्सों में तीन परिवार रहते थे। एक तरफ कुंदनलाल, बीच में रहमानी, दूसरी तरफ जसवंत सिंह।

उस दिन रात में कोई बारह बजे रहमानी के मुन्ने पप्पू के पेट में जाने क्या हुआ कि वह दोहरा हो गया और जोर-जोर से रोने लगा। मां ने बहलाया, बाप ने कंधों पर लिया, आपा ने सहलाया, पर वह चुप न हुआ।

उसके रोने से कुंदनलाल की नींद खुल गई। करवट बदलते हुए उसने सोचा, "कम्बख्त ने नींद ही खराब कर दी। अरे, तकलीफ है, तो उसे सहो, दूसरों को तो तकलीफ में मत डाल।" और कुंदनलाल फिर खर्राटे भरने लगा। नींद जसवंत सिंह की भी उचट गई। उसने करवट बदलते हुए सोचा- बच्चा कष्ट में है। हे भगवान, तू उसकी आंखों में मीठी नींद दे कि मैं भी सो सकूं।

हवेली के सामने बुढ़िया राम दुलारी अपनी कोठरी में रहती थी। उसकी भी नींद उखड़ गई। उसने लाठी उठाई और खिड़की के नीचे आवाज देकर कहा, "ओ बहू! यह हींग ले लो और इसे जरा से पानी में घोलकर मुन्ने की टूंडी पर लेप कर दे। बच्चा है। कच्चा-पक्का हो ही जाता है, फिकर की कोई बात नहीं, अभी सो जाएगा।"

बुढ़िया संतुष्ट थी, कुंदन लाल बुरे सपने देख रहा था। जसवंत सिंह थका-थका-सा था और रहमानी मुन्ने की टूंडी पर हींग का लेप कर रहा था।

बुराई और भलाई :

उभरती बुराई ने दबती-सी अच्छाई से कहा, "कुछ भी हो, लाख मतभेद हों, है तो तू मेरी सहेली ही। मुझे अपने सामने देरा दबना अच्छा नहीं लगता। आ, अलग खड़ी न हो, मुझमें मिल जा, में तुझे भी अपने साथ बढ़ा लूंगी, समाज में फैला लूंगी।"

अच्छाई ने शांति से उत्तर दिया, "तुम्हारी हमदर्दी के लिए धन्यवाद, पर रहना मुझे तुमसे अलग ही है।" बुराई ने आश्चर्यभरी अप्रसन्नता से पूछा, "क्यों?"

"बात यह है कि मैं तुमस मिल जाऊं तो फिर मैं कहां रहूंगी, तब तो तुम-ही-तुम होगी सब जगह।" अच्छाई ने और भी शांत होकर उत्तर दिया।

गुस्से से उफन कर बुराई ने अपनी झाड़ी अच्छाई के चारों ओर फैला दी और फुंकार कर कहा, "ले, भोग मेरे निमंत्रण को ठुकराने की सजा! अब पड़ी रह मिट्टी में मुंह दुबकाए!" दुनिया में तेरे फैलने की अब कोई राह नहीं।"

अच्छाई ने अपने अंकुर की आंख से जिधर झांका, उसे बुराई की झाड़ी का तेज कांटा, तने हुए भाले की तरह, सामने दिखाई दिया। सचमुच आगे कदम सरकाने को भी कहीं जगह न थी।

बुराई का अट्टहास चारों ओर गूंज गया। परिस्थितियां निश्चय ही प्रतिकूल थीं। फिर भी पूरे आत्मविश्वास से अच्छाई ने कहा, "तुम्हारा फैलाव आजकल बहुत व्यापक है, बहन! जानती हूं, इस फैलाव से अपने अस्तित्व को बचाकर मुझे व्यक्तित्व की ओर बढ़ने में पूरा संघर्ष करना पड़ेगा, पर तुम यह न भूलना कि कांटे-कांटे के बीच से गुजर कर जब मैं तुम्हारी झाड़ी के ऊपर पहुंचूंगी तो मेरे फूलों की महक चारों ओर फैल जाएगी और यह जानना भी कठिन होगा कि तुम हो कहां।"

व्यंग्य की शेखी से इठलाकर बुराई ने कहा, "दिल के बहलाने को यह ख्याल अच्छा है।"

गहरे संतुलन में अपने को समेटकर अच्छाई ने कहा, "तुम हंसना चाहो, तो जरूर हंसो, मुझे आपत्ति नहीं, पर जीवन के इस सत्य को हंसी के मुलम्मे से झुठलाया नहीं जा सकता कि तुम्हारे फैलाव की भी एक सीमा है, क्योंकि उस सीमा तक तुम्हारे पहुंचते-न-पहुंचते तुम्हारे सहायकों और अंगरक्षकों का ही दम घुटने लगता है। इसके विरुद्ध मेरे फैलाव की कोई सीमा ही प्रकृति ने नहीं बांधी, बुराई बहन।"

बुराई गंभीर हो गई और उसे लगा कि उसके कांटों की शक्ति आप-ही-आप पहले से कम होती जा रही है और अच्छाई का अंकुर तेजी से बढ़ रहा है। 

पर्दाफाश  से साभार

गंगा दशहरा पर इस तरह करें गंगा मैया की पूजा


गंगा दशहरा हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है । ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा दशहरा मनाया जाता है। दस दिन चलने वाले इस पर्व का मुख्य स्नान 18 जून दिन मंगलवार को है। गंगा दशहरा ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है। स्कन्द पुराण के अनुसार, इस दिन व्यक्ति को किसी भी पवित्र नदी पर जाकर स्नान, ध्यान तथा दान करना चाहिए| इससे वह अपने सभी पापों से मुक्ति पाता है|

हमारे ज्योतिषाचार्य आचार्य विजय कुमार बताते हैं कि ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी को संवत्सर का मुख कहा गया है| इसलिए इस इस दिन दान और स्नान का ही अत्यधिक महत्व है| वराह पुराण के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल दशमी, बुधवार के दिन, हस्त नक्षत्र में गंगा स्वर्ग से धरती पर आई थी| ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन गंगा स्नान करने से व्यक्ति के दस प्रकार के पापों का नाश होता है| इन दस पापों में तीन पाप कायिक, चार पाप वाचिक और तीन पाप मानसिक होते हैं| इन सभी से व्यक्ति को मुक्ति मिलती है|

गंगा दशहरे की पूजन विधि-

गंगा दशहरा के दिन पवित्र नदी गंगा जी में स्नान किया जाता है| गंगा जी का पूजन करते हुए इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए-

“ऊँ नम: शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै नम:” इस मंत्र के बाद “ऊँ नमो भगवते ऎं ह्रीं श्रीं हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा” मंत्र का पाँच पुष्प अर्पित पतित पावनी माँ गंगा का स्मरण करना चहिये|

गंगा मैया की पूजा में दस प्रकार के फूल, दस गंध, दस दीपक, दस प्रकार का नैवेद्य, दस पान के पत्ते, दस प्रकार के फल होने चाहिए| पूजन
करने के बाद किसी ब्राह्मण को दान देना चाहिए | गंगा दशहरा के दिन अगर हो सके तो 10 प्रकार की ही चीजें दान देनी चहिये अगर यह संभव नहीं हो पा रहा है तो जौ और तिल का दान सोलह मुठ्ठी का होना चाहिए| दक्षिणा भी दस ब्राह्मणों को देनी चाहिए| जब गंगा नदी में स्नान करें तब दस बार डुबकी लगानी चाहिए|

गंगा दशहरे का महत्व-

पुराणों में कहा गया है कि भगीरथी की घोर तपस्या के बाद जब गंगा माता धरती पर आती हैं उस दिन ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी थी| गंगा मैया के धरती पर अवतरण के दिन को ही गंगा दशहरा के नाम से पूजा जाना जाने लगा| इस दिन गंगा नदी में खड़े होकर जो गंगा स्तोत्र पढ़ता है वह अपने सभी पापों से मुक्ति पाता है|

गंगा दशहरे की कथा-

गंगा दशहरा की कथा इस प्रकार है- प्राचीन काल में अयोध्या में सगर नाम के महाप्रतापी राजा राज्य करते थे। उन्होंने सातों समुद्रों को जीतकर अपने राज्य का विस्तार किया। उनके केशिनी तथा सुमति नामक दो रानियाँ थीं। पहली रानी के एक पुत्र असमंजस का उल्लेख मिलता है, परंतु दूसरी रानी सुमति के साठ हज़ार पुत्र थे। एक बार राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया और यज्ञ पूर्ति के लिए एक घोड़ा छोड़ा। इंद्र ने उस यज्ञ को भंग करने के लिए यज्ञीय अश्व का अपहरण कर लिया और उसे कपिल मुनि के आश्रम में बांध आए। राजा ने उसे खोजने के लिए अपने साठ हज़ार पुत्रों को भेजा। सारा भूमण्डल छान मारा फिर भी अश्व नहीं मिला। फिर अश्व को खोजते-खोजते जब कपिल मुनि के आश्रम में पहुँचे तो वहाँ उन्होंने देखा कि साक्षात भगवान 'महर्षि कपिल' के रूप में तपस्या कर रहे हैं और उन्हीं के पास महाराज सगर का अश्व घास चर रहा है। सगर के पुत्र उन्हें देखकर 'चोर-चोर' शब्द करने लगे। इससे महर्षि कपिल की समाधि टूट गई। ज्योंही महर्षि ने अपने नेत्र खोले त्योंही सब जलकर भस्म हो गए।

अपने पितृव्य चरणों को खोजता हुआ राजा सगर का पौत्र अंशुमान जब मुनि के आश्रम में पहुँचा तो महात्मा गरूड़ ने भस्म होने का सारा वृतांत सुनाया। गरूड़ जी ने यह भी बताया- 'यदि इन सबकी मुक्ति चाहते हो तो गंगाजी को स्वर्ग से धरती पर लाना पड़ेगा। इस समय अश्व को ले जाकर अपने पितामह के यज्ञ को पूर्ण कराओ, उसके बाद यह कार्य करना।'

अंशुमान ने घोड़े सहित यज्ञमण्डप पर पहुँचकर सगर से सब वृतांत कह सुनाया। महाराज सगर की मृत्यु के उपरान्त अंशुमान और उनके पुत्र दिलीप जीवन पर्यन्त तपस्या करके भी गंगाजी को मृत्युलोक में ला न सके। सगर के वंश में अनेक राजा हुए सभी ने साठ हज़ार पूर्वजों की भस्मी के पहाड़ को गंगा के प्रवाह के द्वारा पवित्र करने का प्रयत्न किया किंतु वे सफल न हुए। अंत में महाराज दिलीप के पुत्र भागीरथ ने गंगाजी को इस लोक में लाने के लिए गोकर्ण तीर्थ में जाकर कठोर तपस्या की। इस प्रकार तपस्या करते-करते कई वर्ष बीत गए। उनके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने वर मांगने को कहा तो भागीरथ ने 'गंगा' की मांग की।

इस पर ब्रह्माजी ने कहा- 'राजन! तुम गंगा को पृथ्वी पर तो ले जाना चाहते हो? परंतु गंगाजी के वेग को सम्भालेगा कौन? क्या तुमने पृथ्वी से पूछा है कि वह गंगा के भार तथा वेग को संभाल पाएगी?' ब्रह्माजी ने आगे कहा-' भूलोक में गंगा का भार एवं वेग संभालने की शक्ति केवल भगवान शंकर में है। इसलिए उचित यह होगा कि गंगा का भार एवं वेग संभालने के लिए भगवान शिव का अनुग्रह प्राप्त कर लिया जाए।' महाराज भागीरथ ने वैसा ही किया। एक अंगूठे के बल खड़ा होकर भगवान शंकर की आराधना की। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने गंगा की धारा को अपने कमण्डल से छोड़ा और भगवान शिव ने प्रसन्न होकर गंगा की धारा को अपनी जटाओं में समेट कर जटाएँ बांध लीं। गंगाजी देवलोक से छोड़ी गईं और शंकर जी की जटा में गिरते ही विलीन हो गईं। गंगा को जटाओं से बाहर निकलने का पथ नहीं मिल सका। गंगा को ऐसा अहंकार था कि मैं शंकर की जटाओं को भेदकर रसातल में चली जाऊंगी। पुराणों में ऐसा उल्लेख मिलता है कि गंगा शंकर जी की जटाओं में कई वर्षों तक भ्रमण करती रहीं लेकिन निकलने का कहीं मार्ग ही न मिला।

अब महाराज भागीरथ को और भी अधिक चिंता हुई। उन्होंने एक बार फिर भगवान शिव की प्रसन्नतार्थ घोर तप शुरू किया। अनुनय-विनय करने पर शिव ने प्रसन्न होकर गंगा की धारा को मुक्त करने का वरदान दिया। इस प्रकार शिवजी की जटाओं से छूटकर गंगाजी हिमालय में ब्रह्माजी के द्वारा निर्मित बिन्दुसार सर में गिरी, उसी समय इनकी सात धाराएँ हो गईं। आगे-आगे भागीरथ दिव्य रथ पर चल रहे थे, पीछे-पीछे सातवीं धारा गंगा की चल रही थी।

पृथ्वी पर गंगाजी के आते ही हाहाकार मच गया। जिस रास्ते से गंगाजी जा रही थीं, उसी मार्ग में ऋषिराज जहु का आश्रम तथा तपस्या स्थल पड़ता था। तपस्या में विघ्न समझकर वे गंगाजी को पी गए। फिर देवताओं के प्रार्थना करने पर उन्हें पुन: जांघ से निकाल दिया। तभी से ये जाह्नवी कहलाईं।

इस प्रकार अनेक स्थलों का तरन-तारन करती हुई जाह्नवी ने कपिल मुनि के आश्रम में पहुँचकर सगर के साठ हज़ार पुत्रों के भस्मावशेष को तारकर उन्हें मुक्त किया। उसी समय ब्रह्माजी ने प्रकट होकर भागीरथ के कठिन तप तथा सगर के साठ हज़ार पुत्रों के अमर होने का वर दिया। साथ ही यह भी कहा- 'तुम्हारे ही नाम पर गंगाजी का नाम भागीरथी होगा। अब तुम अयोध्या में जाकर राज-काज संभालों।' ऐसा कहकर ब्रह्माजी अंतर्धान हो गए। इस प्रकार भागीरथ पृथ्वी पर गंगावतरण करके बड़े भाग्यशाली हुए। उन्होंने जनमानस को अपने पुण्य से उपकृत कर दिया। भागीरथ पुत्र लाभ प्राप्त कर तथा सुखपूर्वक राज्य भोगकर परलोक गमन कर गए। युगों-युगों तक बहने वाली गंगा की धारा महाराज भागीरथ की कष्टमयी साधना की गाथा कहती है। गंगा प्राणीमात्र को जीवनदान ही नहीं देती, वरन मुक्ति भी देती है।

गंगा तेरा पानी अमृत

गंगोत्री भारत के उत्तराखंड राज्य के उत्तर-काशी में स्थित है। यह हिन्दू धर्म के उत्तर दिशा में स्थित चार धामों में से एक है। गंगोत्री में प्रकृति का वैभवशाली सौंदर्य देखकर आनंद प्राप्त होता है। इस पुण्य भूमि में गंगा का महत्व है। वास्तव में यहां से लगभग 19 किलोमीटर आगे की ओर गंगोत्री ग्लेशियर पर गौमुख नामक स्थान से गंगा निकलती है। इस तीर्थ में गंगा को भागीरथी नाम से जाना जाता है। यहां से निकलकर गंगा जब अलकनंदा से मिलती है, तो वह गंगा कहलाती है। जब गंगा पहाड़ों से निकलकर मैदानी भागों में आती है तो अपने पवित्र जल से उपजाऊ जमीन को सिंचित करती हुई लाखों करोड़ों लोगों का प्यास बुझाती हुई अंत में गंगा बंगाल की खाड़ी में गंगा सागर नामक स्थान पर मिल जाती है।

गंगा तेरा पानी अमृत इसको अगर धार्मिक दृष्टिकोण को दरकिनार कर दें तो गंगा में अब ऐसी बातें नहीं रही है। जलस्तर की कमी, सफाई का अभाव, कल कारखाने व शहरों के नाले का नदी में बहाव ने गंगा के आंचल को मैला कर दिया है।

Sonam Kapoor bats for father Anil Kapoor

he sizzling Bollywood beauty Sonam Kapoor, who is running busy promoting her forthcoming film 'Raanjhanaa' opposite Dhanush, says that she is still the little girl of his father Anil Kapoor. She also revealed that she loves her father a lot and holds all praises for him as an actor.

Sonam feels proud of being the daughter of such a huge Bollywood personality and her father deserves much more respect than he has achieved.

While addressing the reporters on occasion of Father's Day, Sonam said, "My father has gone through a wonderful career in the Hindi film industry. He created his own path to success. I don't want to sound bias but I feel he deserves more than what he has achieved."

"I had started working when I was just 18. Since then, I have been bearing my own expenses. Sometimes, my father gets really upset and asks me why he is earning so much. Then I have to tell him that that is for my family," concluded the 28-year-old actor.

However, Sonam Kapoor's upcoming film 'Raanjhanaa' is gearing up for its release on June 21.

Katrina Kaif Turns Responsible Woman

Sensuous British Indian actress Katrina Kaif has already grabbed huge success in the Hindi film industry. Ever since her debut in film 'Boom' in 2003, she has been in the headlines of every leading newspaper. Last year, she delivered two blockbuster films 'Ek Tha Tiger' and 'Jab Tak Hai Jaan' with two of Bollywood's most successful actors, Salman Khan and Shahrukh Khan. Though, the actress doesn't believe in just enjoying the achievement but she has decided to take on the responsibility of her big family.

While talking to a popular magazine, Katrina Kaif revealed that she is gearing up to become a fully responsible family woman. The actress also said that she has taken the move because one of her seven sisters had a baby and two of them got engaged in 2012. So, she has made up her mind to be accountable for their every need.

Katrina Kaif, who is amongst the top three actresses of the industry, feels that the time has come to become more sincere towards her family. She also said that her feelings for her family are the reflection of her mother's thoughts.

However, the actress is working really hard for her two upcoming film, 'Bang Bang' and 'Dhoom 3'. Both of them are big budget movies and Kat is playing one of the pivotal roles in them.

Movie Review | Yeh Jawaani Hai Deewani is a 'Pichkaari' of Love and Fun

Cast: Ranbir Kapoor, Deepika Padukone, Aditya Roy Kapur, Kalki Koechlin, Kunal Roy Kapur, Farooq Shiekh, Tanvi Azmi

Directed by: Ayan Mukherji

Ratings: * * * 1/2

If you are a die hard fan of Fun, Frolic, Emotions, Love, Disappointments, Romance, Dilwale Dulhaniya Le Jaayenge kind of stories, I would propose you to go ahead and buy the tickets of Yeh Jawaani Hai Deewani and you will not regret it. Ranbir Kapoor and Deepika Padukone especially makes this Joy full-Romantic ride worth a while.

Yeh Jawaani Hai Deewani is a journey of two different people who are also poles apart. Bunny (Ranbir Kapoor) and Naina (Deepika Padukone) who meets up and begins a crazy journey which has one final destination called Love. They discover Love, Hate, Joy, Emotions together. They discover madness and fun together. And they get separated. They again meet up to celebrate their best friends wedding who are Avi (Aditya Roy Kapur) and Aditi (Kalki Koechlin). Will this time Bunny and Naina travel through their shattered emotions and feelings?

Ranbir Kapoor fits in as her perfect soul mate with an outstanding and charismatic performance. There’s not a single frame or emotion that he gets wrong. He is successful in creating a world of Bunny within our hearts. Deepika Padukone plays out Naina’s insecurities and her discovery of new found freedom and zest for life with superb maturity. Aditya Roy Kapur is tremendous to watch and Kalki Koechlin tries her level best, But this time it looks as she is over-acting in some scenes. There were better options instead of Kalki. Farooq Sheikh, Tanvi Azmi and Dolly Ahluwalia were outstanding. Kunaal Roy Kapur as Taran is loveable and real cute.

On the Music side, The songs are already a chart-buster. But special mention goes to Badtameez Dil and today's hot favorite Balam Pichkaari. The cinematography is excellent. Ayan Mukherji has written and directed this film. Earlier, Ayan made Wake Up Sid with Ranbir Kapoor and Dharma Productions. This time he writes a beautiful screenplay but the film somehow drags a bit in the second half. Especially the marriage portions. The editing could have been easily on a Tighter note.

But still, The Production Value and the performances keeps you hook till the climax. The film also looked like a "Karan Johar" directed film in most of it's part.

Yeh Jawaani Hai Deewani is of course a delight to watch and it will certainly won't ruin your weekend. The film is fun-filled romantic roller coaster pichkaari.

Ankur Arora Murder Case hits the conscience| Movie Review

Film: Ankur Arora Murder Case
Cast: Kay Kay Menon, Arjun Mathur, Vishakha Singh, Paoli Dam, Tisca Chopra and Manish Chaudhary Writer: Vikram Bhatt
Director: Suhail Tatari
Rating: ****

A mother watches her young son being wheeled into the operation theatre for a minor operation. The child never returns.

Medical negligence is passe. Medical arrogance is the new menace. Enter a high-end seven-star hospital and you're bound to run into the incredibly arrogant Dr. Asthana (Kay Kay Menon, back in fabulous form), who addresses the media as though he was obliging them by giving out information and who tells his junior, "Medicine is not just about healing. It's also about making money. Who pays the bills of those who can't afford them? The rich of course."

But of course.

The pragmatism underscoring the Hippocratic Oath bypasses the young idealistic Rohan(Arjun Mathur), the intern who dares to speak out of turn to question Dr. Asthana's supreme authority in the hospital.

Taking the conflict between the blase megalomaniacal medicine-man and the idealistic intern as the central point in the plot, Vikram Bhatt has written a script that is partly a conscience-pricking morality tale, and partly a racy thriller set in the spick-and-span corridors of a high-end hospital where, for the record, an eminent surgeon has just goofed up.

But shhhh! No one in his intimidated medical team is allowed to speak of his horrid faux pas.

The "Ankur Arora Murder Case" is one of the most gripping moral dramas in recent times. The deftly crafted script raises the question of right and wrong in the medical profession without getting peachy or hysterical. Somewhere, Dr. Asthana's medical arrogance connects with each one of us who has in one way or another encountered deadends in healthcare.

Looking at Kay Kay Menon's brilliantly underscored emphatically italicised performance, I finally understood what was meant by the Biblical proverb, "Physician, heal thyself".

Many portions of the pacy plot would seem excessively racy. The post-interval helping seems specially eager to seek out unexpected twists and turns. And that's fine. The idea of making a film on medical ethics is to ensure that audiences' participation in the proceedings never flags. To that extent, director Suhail Tatari (who earlier directed the gripping thriller 'My Wife's Murder'), keeps the large array of conflicted characters in a constant state of self-questioning anxiety. It's cinematically a terrific space to be in. Tatari explores that space with intelligence, sensitivity and some charm.

While not allowing us to forget that we are watching a medical thriller, Tatari also gives deepened shape to various inter-relationships in the plot. The characters are convincing and yet distant from what we generally perceive to be authentic cinema. The narration moves on two different levels: the headline-inspired pseudo-documentary and the sprawling soap opera that life often throwns open in situations that we see as too unreal to be happening.

The performances in both the first-half (the medical drama) and the second-half (the courtroom conflict) are all supremely poised. The actors assume brilliancy without getting compromised by the need to shine. Tisca Arora's bereaved mother's act is so real and restrained! She gives us goosebumps when after her son's death, she gets busy on her smartphone to fob off the terrible reality of the tragedy. Really, Tisca is one of our most underrated actresses.

Kay Kay Menon rediscovers the awe-inspiring actor within himself with a performance that leaves us repelled and fascinated. Arjun Mathur as the daring intern who takes on the mighty medicine man exudes integrity without brimming over with righteous indignation. In an era when all our filmy heroes are growing stubbles and trying to look mean, Arjun plays a true-blue old-fashioned hero (the kind who used to fight for the truth) in a very contemporary context and style.

Paoli Dam, who had played a sexually intense role in "Hate Story", undergoes a personality volte face. As a lawyer battling on behalf of the powerful medical mafia, she pitches a poignant but strong performance. Some of the film's most powerful moments feature Paoli with her courtroom opponent (Manish Chaudhury, brilliant) in bed and on the brink. The way Paoli and Tisca connect as two grieving mothers, is a masterstroke of scripting.

Indeed, this is is a far cleverer, wiser and relevant film than most of what we get to see these days. At a time when Bollywood is raining bubbles and effervescence about
'jawaani deewanis' and 'yamla paglas', this sobering clenched disturbing medical thriller comes as an invigorating cloudburst. The film makes out a scathing and rousing case against medical malpractices.

Bursting at the seams with acting talent, director Suhail Tatari's restorative drama hits us where it hurts the most. The conscience.

2 रुपये महंगा हुआ पेट्रोल, दरें मध्यरात्रि से लागू

आम आदमी के लिए एक बुरी खबर आ रही है खबर यह है कि पेट्रोल के दाम एक बार फिर बढ़ा दिए गए हैं| इस बार पेट्रोल के दामों में 2 रुपये प्रति लीटर की वृद्धि की गई है जो आज रात 12 बजे से लागू कर दी जायेंगी| सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, डॉलर के मुकाबले रुपये में आ रही गिरावट की वजह से पेट्रोल के दामों में वृद्धि की गई|

कीमत बढ़ने के बाद दिल्ली में अब पेट्रोल 65.99 रुपये प्रति लीटर हो जाएगा। डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार टूट रहा है। शुक्रवार को एक डॉलर की कीमत 57.51 रुपए थी। गिरते रुपये की वजह से कच्चे तेल का आयात पहले से महंगा पड़ रहा है।

इससे पहले 31 मई को तेल कंपनियों ने पेट्रोल और डीजल की कीमतों में क्रमश: 75 पैसे और 50 पैसे प्रति लीटर की वृद्धि की गई थी।

मानसरोवर में लगी अब हंसो पर रोक


मानसरोवर में लगी अब हंसो पर रोक!
बगुलों ने दावा दिया न्यायालय में ठोंक!
शैतानों की भीड़ में खोवे हैं इंसान
किसको अवसर है कहाँ कौन करे पहचान
राजा के दरबार में मिला सभी को न्याय
तोते को पिंजरा मिला मिली शेर को गाय||

विनीत वर्मा "शिब्बू"

मृत व्यक्ति के क्यों फेंक दिए जाते हैं कपड़े व बिस्तर

भारत मान्यताओं और परम्पराओं का देश है| यहाँ तमाम तरह की परम्पराएँ है इन परम्पराओं में एक परम्परा यह है कि किसी परिवार के सदस्य या संबंधी की मौत हो जाने पर उसके कपड़े व बिस्तर फेंक दिए जाते है| क्या आपको पता है कि आखिर क्यों ऐसा किया जाता है| अगर नहीं तो हम आपको बताते हैं|

आपको बता दें कि हमारी कोई भी परंपरा अंधविश्वास नहीं है। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, हर परंपरा के पीछे कोई न कोई धार्मिक और वैज्ञानिक कारण जुड़े होते है| शास्त्रों के अनुसार किसी घर में मौत होती है तो उस घर में बारह दिन का सुतक रहता है और बारह दिन तक घर में पूजा-पाठ भी नहीं किया जाता है| उसके बाद सुतक निकाला जाता है और उसके बिस्तर भी दान कर दिए जाते हैं उस व्यक्ति के बिस्तर जिस पर उसकी मृत्यु होती है। घर में नहीं रखे जाते हैं क्योंकि मृत व्यक्ति के बिस्तर रखने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह भी होता है।

वहीँ, कपड़ा व बिस्तर फेंकने का वैज्ञानिक कारण यह है कि मृत व्यक्ति के शरीर में जो सूक्ष्मजीव होते हैं वे उसके बिस्तर पर भी होते हैं।

..इसलिए शिव ने धारण किया चंद्रमा

धर्म शास्त्रो में भगवान शिव को जगत पिता बताया गया हैं, क्योकि भगवान शिव सर्वव्यापी एवं पूर्ण ब्रह्म हैं। हिंदू संस्कृति में शिव को मनुष्य के कल्याण का प्रतीक माना जाता हैं। शिव शब्द के उच्चारण या ध्यान मात्र से ही मनुष्य को परम आनंद प्रदान करता हैं। भगवान शिव भारतीय संस्कृति को दर्शन ज्ञान के द्वारा संजीवनी प्रदान करने वाले देव हैं। इसी कारण अनादि काल से भारतीय धर्म साधना में निराकार रूप में होते हुवे भी शिवलिंग के रूप में साकार मूर्ति की पूजा होती हैं।

शास्त्रों में शिव के अनेक कल्याणकारी रूप और नाम की महिमा बताई गई है। शिव ने विषपान किया तो नीलकंठ कहलाए, गंगा को सिर पर धारण किया तो गंगाधर पुकारे गए। भूतों के स्वामी होने से भूतभावन भी कहलाते हैं। इनका एक नाम और भी है वह है शशिधर। आपको बता दें कि भगवान शिव अपने सिर पर चन्द्र धारण किये हुए हैं इसलिए उन्हें शशिधर कहा जाता है|

क्या आपको पता है कि भगवान शिव अपने सिर पर चन्द्रमा क्यों धारण किया है? अगर नहीं तो आज हम आपको बताते हैं कि भगवान शिव ने क्यों चन्द्रमा धारण किया है|

शिव पुराण में उल्लेख है कि जब देवताओं और असुरों द्वारा समुद्र मंथन किया गया, तब 14 रत्नों के मंथन से प्रकट हुए। इस मंथन में सबसे पहले विष निकला। विष इतना भयंकर था कि इसका प्रभाव पूरी सृष्टि पर फैलता जा रहा था परंतु इसे रोक पाना किसी भी देवी-देवता या असुर के बस में नहीं था। इस समय सृष्टि को बचाने के उद्देश्य से शिव ने वह अति जहरीला विष पी लिया। इसके बाद शिवजी का शरीर विष प्रभाव से अत्यधिक गर्म होने लगा। शिवजी के शरीर को शीतलता मिले इस वजह से उन्होंने चंद्र को धारण किया।

जाने भगवान शंकर की लिंग रूप में ही क्यों होती है पूजा

आप जब भी मंदिर में जाते होंगे तो आपने यह जरुर देखा होगा कि मंदिर में सभी देवताओं की साकार पूजा होती है लेकिन भगवान भोलेनाथ की हमेशा लिंग रूप में ही पूजा की जाती हैं| क्या आपको पता है कि आखिर भगवान शंकर की लिंग रूप में पूजा क्यों होती है? अगर नहीं पता है तो आज हम आपको बताते हैं कि आखिर शिव की लिंग रूप में पूजा क्यों की जाती है|

शिवमहापुराण में कहा गया है कि एकमात्र भगवान शिव ही ब्रह्मरूप होने के कारण निष्कल (निराकार) कहे गए हैं। रूपवान होने के कारण उन्हें सकल (साकार) भी कहा गया है। इसलिए शिव सकल व निष्कल दोनों हैं। उनकी पूजा का आधारभूत लिंग भी निराकार ही है अर्थात शिवलिंग शिव के निराकार स्वरूप का प्रतीक है। इसी तरह शिव के सकल या साकार होने के कारण उनकी पूजा का आधारभूत विग्रह साकार प्राप्त होता है अर्थात शिव का साकार विग्रह उनके साकार स्वरूप का प्रतीक होता है।

सकल और अकल रूप होने से ही वे ब्रह्म शब्द कहे जाने वाले परमात्मा हैं। यही कारण है सिर्फ शिव एकमात्र ऐसे देवता हैं जिनका पूजन निराकार(लिंग) तथा साकार(मूर्ति) दोनों रूप में किया जाता है।

जानिए भगवान राम नीले और कृष्ण काले क्यों है....

शास्त्रों में यह कहा गया कि भगवान श्रीराम नीले रंग के थे और श्रीकृष्ण सावले यानि की काले थे| शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि यह दोनों अवतार तीनों लोकों के स्वामी भगवान विष्णु के हैं|

ऐसा सुनकर मन में एक सवाल जरुर उठता है वह है यह कि व्यक्ति कला तो होता है पर नीले रंग का व्यक्ति तो किसी ने नहीं देखा? आखिर इन भगवानों के रंग-रूप के पीछे क्या रहस्य है।

आपको बता दें कि भगवान राम के नीले वर्ण और कृष्ण के काले रंग के पीछे एक दार्शनिक रहस्य है। भगवानों का यह रंग उनके व्यक्तित्व को दर्शाते हैं। दरअसल इसके पीछे भाव है कि भगवान का व्यक्तित्व अनंत है। उसकी कोई सीमा नहीं है, वे अनंत है। ये अनंतता का भाव हमें आकाश से मिलता है। आकाश की कोई सीमा नहीं है। वह अंतहीन है। राम और कृष्ण के रंग इसी आकाश की अनंतता के प्रतीक हैं। राम का जन्म दिन में हुआ था। दिन के समय का आकाश का रंग नीला होता है।

इसी तरह कृष्ण का जन्म आधी रात के समय हुआ था और रात के समय आकाश का रंग काला प्रतीत होता है। दोनों ही परिस्थितियों में भगवान को हमारे ऋषि-मुनियों और विद्वानों ने आकाश के रंग से प्रतीकात्मक तरीके से दर्शाने के लिए है काले और नीले रंग का बताया है।

यही कारण है कि है कि भगवान श्रीराम के शरीर का रंग नीला और श्रीकृष्ण का रंग श्याम था|

जानिये आखिर सोमवार ही क्यों हैं भगवान शंकर का दिन

हिन्दू धर्म में प्रत्येक दिन देवताओं के लिए बंटे होते हैं जैसे सोमवार भगवान शिव का है, मंगलवार हनुमान जी का है और शनिवार न्यायधीश कहे जाने वाले शनिदेव का है| क्या आपको पता है कि आखिर सोमवार ही क्यों भगवान शंकर को मिला है? अगर नहीं पता है तो आज हम आपको बताते हैं-

आपको बता दें कि पुराणों में सोम का अर्थ चंद्रमा होता है और चंद्रमा भगवान शिव के शीश पर मुकुटायमान होकर अत्यन्त सुशोभित होता है। भगवान शंकर ने जैसे कुटिल, कलंकी, कामी, वक्री एवं क्षीण चंद्रमा को उसके अपराधी होते हुए भी क्षमा कर अपने शीश पर स्थान दिया वैसे ही भगवान् हमें भी सिर पर नहीं तो चरणों में जगह अवश्य देंगे। यह याद दिलाने के लिए सोमवार को ही लोगों ने शिव का वार बना दिया।

इसके अलावा सोम का अर्थ सौम्य होता है। इस सौम्य भाव को देखकर ही भक्तों ने इन्हें सोमवार का देवता मान लिया। सहजता और सरलता के कारण ही इन्हें भोलेनाथ कहा जाता है।

अथवा सोम का अर्थ होता है उमा के सहित शिव। केवल कल्याणरी शिव की उपासना न करके साधक भगवती शक्ति की भी साथ में उपासना करना चाहता है क्योंकि बिना शक्ति के शिव के रहस्य को समझना अत्यन्त कठिन है। इसलिए भक्तों ने सोमवार को शिव का वार स्वीकृत किया।