वर्ष 2016 के व्रत एवं त्यौहार

नई दिल्ली: प्रत्येक वर्ष की तरह हम अपने पाठकों की सुविधा के लिए वर्ष 2016 के व्रत व त्यौहार की विषय सूची हर माह के रुप में दे रहे हैं। इसमें जनवरी 2016 से लेकर दिसंबर 2016 तक के सभी व्रत व त्यौहारो का वर्णन है। आइये जानें वर्ष 2016 के सम्पूर्ण व्रत एवं त्योहार –

जनवरी 2016

● 1 जनवरी (शुक्रवार) – नव वर्ष प्रारम्भ
● 5 जनवरी (मंगलवार) – सफला एकादशी व्रत
● 7 जनवरी (गुरुवार) – प्रदोष व्रत
● 8 जनवरी (शुक्रवार) – मासिक शिवरात्रि
● 9 जनवरी (शनिवार) – देवकार्ये अमावस्या
● 12 जनवरी (मंगलवार) – स्वामी विवेकानन्द जयंती
● 13 जनवरी (बुधवार) – लोहड़ी पर्व
● 14 जनवरी (गुरुवार) – मकर संक्रान्ति
● 16 जनवरी (शनिवार) – गुरु गोविन्द सिंह जयन्ती
● 20 जनवरी (बुधवार) – पुत्रदा एकादशी व्रत
● 21 जनवरी (गुरुवार) – प्रदोष व्रत
● 23 जनवरी (शनिवार) – नेताजी सुभाष जयन्ती
● 26 जनवरी (मंगलवार) – गणतंत्र दिवस
● 27 जनवरी (बुधवार) – तिलकुटा (सकट) चौथ

फरवरी 2016

● 1 फरवरी (सोमवार) – कालाष्टमी
● 4 फरवरी (गुरुवार) – षट्तिला एकादशी व्रत
● 6 फरवरी (शनिवार) – प्रदोष व्रत, मासिक शिवरात्रि व्रत
● 8 फरवरी (सोमवार) – सोमवती अमावस्या, देव पितृ अमावस्या
● 11 फरवरी (गुरुवार) – तिल चौथ
● 13 फरवरी (शनिवार) – बसन्त पंचमी, कुंभ संक्रान्ति
● 14 फरवरी (रविवार) – रथ सप्तमी
● 15 फरवरी (सोमवार) – भीष्माष्टमी
● 18 फरवरी (गुरुवार) – जया एकादशी व्रत
● 19 फरवरी (शुक्रवार) – भीष्म द्वादशी
● 20 फरवरी (शनिवार) – प्रदोष ब्रत
● 22 फरवरी (सोमवार) – माघी पूर्णिमा, रविदास जयन्ती
● 26 फरवरी (शुक्रवार) – चतुर्थी व्रत

मार्च 2016

● 2 मार्च (बुधवार) – जानकी जयंती
● 3 मार्च (गुरुवार) – समर्थ गुरु रामदास जयन्ती
● 4 मार्च (शुक्रवार) – महर्षि दयानंद सरस्वती जयन्ती
● 5 मार्च (शनिवार) – विजया एकादशी व्रत
● 6 मार्च (रविवार) – प्रदोष व्रत
● 7 मार्च (सोमवार) – महाशिवरात्रि व्रत
● 8 मार्च (मंगलवार) – पितृ कार्ये अमावस्या
● 9 मार्च (बुधवार) – देव कार्ये अमावस्या
● 10 मार्च (गुरुवार) – फुलैरा दूज, रामकृष्ण परमहंस जयंती
● 12 मार्च (शनिवार) – गणेश चतुर्थी
● 13 मार्च (रविवार) – याज्ञवल्क्य जयन्ती
● 14 मार्च (सोमवार) – मीन संक्रान्ति
● 16 मार्च (बुधवार) – होलाष्टकारंभ
● 19 मार्च (शनिवार) – आमलकी एकादशी
● 20 मार्च (रविवार) – प्रदोष व्रत
● 23 मार्च (बुधवार) – होलिका दहन
● 24 मार्च (गुरुवार) – धूलैंडी
● 28 मार्च (सोमवार) – रंग पंचमी
● 29 मार्च (मंगलवार) – एकनाथ षष्ठी व्रत
● 31 मार्च (गुरुवार) – शीतला अष्टमी

अप्रैल 2016

● 3 अप्रैल (रविवार) – पापमोचनी एकादशी व्रत
● 5 अप्रैल (मंगलवार) – प्रदोष व्रत, मासिक शिवरात्रि व्रत
● 7 अप्रैल (गुरुवार) – देवपितृ कार्ये अमावस्या
● 8 अप्रैल (शुक्रवार) – नवरात्रारंभ, झूलेलाल जयन्ती
● 9 अप्रैल (शनिवार) – मत्स्य जयन्ती, गणगोरी पूजा
● 12 अप्रैल (मंगलवार) – स्कंद षष्ठी
● 13 अप्रैल (बुधवार) – मेष संक्रान्ति 19/14
● 15 अप्रैल (शुक्रवार) – श्री राम नवमी
● 17 अप्रैल (रविवार) – कामदा एकादशी
● 19 अप्रैल (मंगलवार) – प्रदोष व्रत, महावीर जयन्ती
● 21 अप्रैल (गुरुवार) – पूर्णिमा व्रत
● 22 अप्रैल (शुक्रवार) – हनुमान जयंती
● 25 अप्रैल (सोमवार) – चतुर्थी व्रत
● 26 अप्रैल (मंगलवार) – अनुसूया जयन्ती

मई 2016

● 1 मई (रविवार) – मजदूर दिवस
● 3 मई (मंगलवार) – वरूथिनी एकादशी व्रत
● 4 मई (बुधवार) – प्रदोष व्रत
● 5 मई (गुरुवार) – मासिक शिवरात्रि व्रत
● 6 मई (शुक्रवार) – देवपितृ कार्ये अमावस्या
● 7 मई (शनिवार) – टैगोर जयन्ती
● 8 मई (रविवार) – शिवाजी जयंती, परशुराम जयंती
● 9 मई (सोमवार) – अक्षय तृतीया
● 11 मई (बुधवार) – आघ शंकराचार्य जयंती
● 12 मई (गुरुवार) – गंगोत्पत्ति, श्रीरामानुज जयंती
● 14 मई (शनिवार) – वृष संक्रान्ति
● 15 मई (रविवार) – सीमा नवमी
● 17 मई (मंगलवार) – मोहनी एकादशी व्रत
● 19 मई (गुरुवार) – प्रदोष व्रत
● 20 मई (शुक्रवार) – नृसिंह जयंती
● 21 मई (शनिवार) – कूर्म जयंती, बुद्ध पूर्णिमा
● 23 मई (सोमवार) – नारद जयन्ती
● 25 मई (बुधवार) – चतुर्थी व्रत चन्द्रोदय 22/16

जून 2016

● 1 जून (बुधवार) – अपरा एकादशी व्रत
● 2 जून (गुरुवार) – प्रदोष व्रत
● 3 जून (शुक्रवार) – मासिक शिव रात्रि व्रत
● 4 जून (शनिवार) – शनिश्चर जयन्ती, पितृ कार्ये अमावस्या, वट सावित्री व्रत
● 5 जून (रविवार) – देवकार्ये अमावस्या
● 7 जून (मंगलवार) – रमजान प्रारम्भ
● 12 जून (रविवार) – दुर्गाष्टमी, धूमावती जयन्ती
● 14 जून (मंगलवार) – मिथुन संक्रान्ति
● 15 जून (बुधवार) – गंगा दशहरा
● 16 जून (गुरुवार) – निर्जला एकादशी व्रत
● 17 जून (शुक्रवार) – प्रदोष व्रत
● 20 जून (सोमवार) – कबीर जयन्ती
● 23 जून (गुरुवार) – चतुर्थी व्रत
● 30 जून (गुरुवार) – योगिनी एकादशी व्रत

जुलाई 2016

● 2 जुलाई (शनिवार) – प्रदोष व्रत
● 4 जुलाई (सोमवार) – सोमवती अमावस्या
● 6 जुलाई (बुधवार) – श्री जगदीश रथ यात्रा
● 10 जुलाई (रविवार) – स्कंध षष्ठी
● 13 जुलाई (बुधवार) – भड्डली नवमी
● 15 जुलाई (शुक्रवार) – देवशयनी एकादशी व्रत
● 16 जुलाई (शनिवार) – कर्क संक्रान्ति
● 17 जुलाई (रविवार) – प्रदोष व्रत
● 19 जुलाई (मंगलवार) – गुरु पूर्णिमा
● 24 जुलाई (रविवार) – नाग पंचमी
● 30 जुलाई (शनिवार) – कामिका एकादशी व्रत
● 31 जुलाई (रविवार) – प्रदोष व्रत

अगस्त 2016

● 1 अगस्त (सोमवार) – मासिक शिवरात्रि व्रत
● 2 अगस्त (मंगलवार) – देवपितृ कार्ये अमावस्या
● 5 अगस्त (शुक्रवार) – हरियाली तीज
● 6 अगस्त (शनिवार) – वरदचतुर्थी व्रत
● 7 अगस्त (रविवार) – नाग पंचमी
● 8 अगस्त (सोमवार) – कल्कि जयन्ती
● 9 अगस्त (मंगलवार) – शीतला षष्ठी,
● 10 अगस्त (बुधवार) – गोस्वामी तुलसीदास जयंती
● 14 अगस्त (रविवार) – पवित्रा एकादशी व्रत
● 15 अगस्त (सोमवार) – प्रदोष व्रत
● 18 अगस्त (गुरुवार) – पूर्णिमा व्रत, रक्षाबन्धन
● 23 अगस्त (मंगलवार) – हल षष्ठी
● 25 अगस्त (गुरुवार) – जन्माष्टमी व्रत
● 26 अगस्त (शुक्रवार) – गोगा नवमी
● 27 अगस्त (शनिवार) – अजा एकादशी व्रत
● 29 अगस्त (सोमवार) – प्रदोष व्रत

सितम्बर 2016

● 1 सितम्बर (गुरुवार) – देवपितृ कार्ये अमावस्या
● 4 सितम्बर (रविवार) – वाराहजयन्ती, हरतालिका तीज
● 5 सितम्बर (सोमवार) – गणेश चतुर्थी व्रत
● 6 सितम्बर (मंगलवार) – ऋषि पंचमी
● 7 सितम्बर (बुधवार) – सूर्य षष्ठी व्रत
● 8 सितम्बर (गुरुवार) – सन्तान सप्तमी
● 9 सितम्बर (शुक्रवार) – श्रीराधा अष्टमी
● 13 सितम्बर (मंगलवार) – जलझूलनी एकादशी व्रत
● 14 सितम्बर (बुधवार) – प्रदोष व्रत
● 15 सितम्बर (गुरुवार) – अनंत चतुर्दशी व्रत
● 16 सितम्बर (शुक्रवार) – पूर्णिमा व्रत
● 17 सितम्बर (शनिवार) – विश्वकर्मा पूजा
● 19 सितम्बर (सोमवार) – चतुर्थी व्रत
● 23 सितम्बर (शुक्रवार) – महालक्ष्मी व्रत
● 26 सितम्बर (सोमवार) – इन्दिरा एकादशी व्रत
● 28 सितम्बर (बुधवार) – प्रदोष व्रत
● 30 सितम्बर (शुक्रवार) – सर्वपितृ अमावस्या

अक्टूबर 2016

● 1 अक्टूबर (शनिवार) – नवरात्रारंभ, अग्रेसन जयंती
● 2 अक्टूबर (रविवार) – गांधी, शास्त्री जयंती
● 9 अक्टूबर (रविवार) – महाष्टमी
● 11 अक्टूबर (मंगलवार) – विजय दशमी
● 12 अक्टूबर (बुधवार) – पापांकुशा एकादशी व्रत
● 14 अक्टूबर (शुक्रवार) – प्रदोष व्रत
● 15 अक्टूबर (शनिवार) – शरद् पूर्णिमा
● 19 अक्टूबर (बुधवार) – करवा चौथ
● 21 अक्टूबर (शुक्रवार) – स्कंद षष्ठी
● 23 अक्टूबर (रविवार) – अहोई आठें
● 26 अक्टूबर (बुधवार) – रमा एकादशी व्रत
● 28 अक्टूबर (शुक्रवार) – धनतेरस, प्रदोष व्रत
● 29 अक्टूबर (शनिवार) – नरक चतुर्दशी
● 30 अक्टूबर (रविवार) – महालक्ष्मी पूजा
● 31 अक्टूबर (सोमवार) – गोवर्धन पूजा (अन्नकूट)

नवम्बर 2016

● 1 नवम्बर (मंगलवार) – भैया दूज (यमद्वितीय)
● 5 नवम्बर (शनिवार) – सौभाग्य पंचमी
● 8 नवम्बर (मंगलवार) – गोपाष्टमी
● 9 नवम्बर (बुधवार) – अक्षय नवमी
● 11 नवम्बर (शुक्रवार) – प्रबोधिनी एकादशी व्रत
● 12 नवम्बर (शनिवार) – प्रदोष व्रत
● 14 नवम्बर (सोमवार) – पूर्णिमा व्रत, गुरु नानक जयंती
● 17 नवम्बर (गुरुवार) – चतुर्थी व्रत
● 21 नवम्बर (सोमवार) – काल भैरवाष्टमी
● 25 नवम्बर (शुक्रवार) – उत्पत्ति एकादशी व्रत
● 26 नवम्बर (शनिवार) – प्रदोष व्रत
● 29 नवम्बर (मंगलवार) – देवपितृ अमावस्या

दिसम्बर 2016

● 5 दिसम्बर (सोमवार) – स्कंद षष्ठी
● 10 दिसम्बर (शनिवार) – मोक्षदा एकादर्शी व्रत
● 11 दिसम्बर (रविवार) – प्रदोष व्रत
● 13 दिसम्बर (मंगलवार) – दत्रात्रेय जयंती, पूर्णिमा व्रत
● 15 दिसम्बर (गुरुवार) – धनु संक्रान्ति
● 17 दिसम्बर (शनिवार) – चतुर्थी व्रत
● 24 दिसम्बर (शनिवार) – सफलता एकादशी व्रत
● 25 दिसम्बर (रविवार) – क्रिसमस डे (बड़ा दिन)
● 26 दिसम्बर (सोमवार) – प्रदोष व्रत
● 28 दिसम्बर (बुधवार) – पितृकार्ये अमावस्या
● 29 दिसम्बर (गुरुवार) – देवकार्ये अमावस्या

…यहाँ पेड़ पर उगते हैं पैसे!

लंदन: अभी तक आपने दादी-नानी से पेड़ पर पैसे उगने के किस्से खूब सुने होंगे लेकिन क्या कभी देखा है पैसों का पेड़। शायद नहीं न लेकिन यदि आपको पैसों का पेड़ देखना है तो बस इंग्लैण्ड आ जाइए और देखिए यहाँ पैसों का पेड़।

इंगलैंड में पैसों का एक पेड़ है जिसमें लोग सदियों से सिक्के गाड़ रहे हैं। इस पेड़ में करीब लाखों सिक्के लगे हुए हैं। अपनी इच्छाओं की पूर्ती के लिए ब्रिटेनवासी इस पेड़ में पैसे डालते थे। इस पेड़ की कहानी की शुरुआत सन 1700 से हुई। इसमें कई और दिलचस्प पहलू हैं।

इंगलैंड के स्कॉटिश द्वीप के पीक जिले में यह पेड़ स्थित है। गुड लक पाने की लालसा में लोग इस पेड़ के दर्शन करने आते हैं। एक मान्यता के अनुसार- त्यौहार एवं ख़ुशियों के मौके पर लोग इसमें सिक्के डालते थे ताकि मन की मुराद पूरी हो सके। क्रिसमस एवं अन्य बड़े मौकों पर लोग यहां अपनी खुशी के लिए सिक्के लाते हैं।

इस पेड़ में कई बहुमूल्य सिक्के भी है, जिनकी कीमत वर्तमान में अरबों रुपए हैं। इसमें कई देशों के सिक्के देखने को मिल जाएंगे। एक मान्यता के अनुसार इस पेड़ में देवों का वास है। इंगलैंड के अलावा अमेरिकियों को भी इस पेड़ के प्रति काफ़ी श्रद्धा है।

...यहां गिरा था देवी सती का दायां वक्ष (स्तन)

हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। ये अत्यंत पावन तीर्थ कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है। हालांकि देवी भागवत में जहां 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का ज़िक्र मिलता है, वहीं तन्त्रचूडामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं। देवी पुराण में ज़रूर 51 शक्तिपीठों की ही चर्चा की गई है। इन 51 शक्तिपीठों में से कुछ विदेश में भी हैं और पूजा-अर्चना द्वारा प्रतिष्ठित हैं।

51 शक्तिपीठों के सन्दर्भ में जो कथा है वह यह है राजा प्रजापति दक्ष की पुत्री के रूप में माता जगदम्बिका ने जन्म लिया| एक बार राजा प्रजापति दक्ष एक समूह यज्ञ करवा रहे थे| इस यज्ञ में सभी देवताओं व ऋषि मुनियों को आमंत्रित किया गया था| जब राजा दक्ष आये तो सभी देवता उनके सम्मान में खड़े हो गए लेकिन भगवान शंकर बैठे रहे| यह देखकर राजा दक्ष क्रोधित हो गए| उसके बाद एक बार फिर से राजा दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया इसमें सभी देवताओं को बुलाया गया, लेकिन अपने दामाद व भगवान शिव को यज्ञ में शामिल होने के लिए निमंत्रण नहीं भेजा| जिससे भगवान शिव इस यज्ञ में शामिल नहीं हुए।

नारद जी से सती को पता चला कि उनके पिता के यहां यज्ञ हो रहा है लेकिन उन्हें निमंत्रित नहीं किया गया है। इसे जानकर वे क्रोधित हो उठीं। नारद ने उन्हें सलाह दी कि पिता के यहां जाने के लिए बुलावे की ज़रूरत नहीं होती है। जब सती अपने पिता के घर जाने लगीं तब भगवान शिव ने मना कर दिया। लेकिन सती पिता द्वारा न बुलाए जाने पर और शंकरजी के रोकने पर भी जिद्द कर यज्ञ में शामिल होने चली गई। यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा और पिता से उग्र विरोध प्रकट किया। इस पर दक्ष ने भगवान शंकर के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें करने लगे। इस अपमान से पीड़ित हुई सती को यह सब बर्दाश्त नहीं हुआ और वहीं यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी।

भगवान शंकर को जब इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया। सर्वत्र प्रलय-सा हाहाकार मच गया। भगवान शंकर के आदेश पर वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट दिया और अन्य देवताओं को शिव निंदा सुनने की भी सज़ा दी और उनके गणों के उग्र कोप से भयभीत सारे देवता और ऋषिगण यज्ञस्थल से भाग गये। तब भगवान शिव ने सती के वियोग में यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कंधे पर उठा लिया और दुःखी हुए सम्पूर्ण भूमण्डल पर भ्रमण करने लगे। भगवती सती ने अन्तरिक्ष में शिव को दर्शन दिया और उनसे कहा कि जिस-जिस स्थान पर उनके शरीर के खण्ड विभक्त होकर गिरेंगे, वहाँ महाशक्तिपीठ का उदय होगा।

सती का शव लेकर शिव पृथ्वी पर विचरण करते हुए तांडव नृत्य भी करने लगे, जिससे पृथ्वी पर प्रलय की स्थिति उत्पन्न होने लगी। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देखकर और देवों के अनुनय-विनय पर भगवान विष्णु सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खण्ड-खण्ड कर धरती पर गिराते गए। जब-जब शिव नृत्य मुद्रा में पैर पटकते, विष्णु अपने चक्र से शरीर का कोई अंग काटकर उसके टुकड़े पृथ्वी पर गिरा देते। इस प्रकार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। इस तरह कुल 51 स्थानों में माता की शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। माना जाता जाता है शक्तिपीठ में देवी सदैव विराजमान रहती हैं। जो भी इन स्थानों पर मॉ की पूजा अर्चना करता है उसकी मनोकामना पूरी होती है।

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा का बज्रेश्वरी शक्तिपीठ मां का एक ऐसा धाम है जहां पहुंच कर भक्तों का हर दुख उनकी तकलीफ मां की एक झलक भर देखने से दूर हो जाती है। यह 52 शक्तिपीठों में से मां का वो शक्तिपीठ है जहां सती का दाहिना वक्ष गिरा था और जहां तीन धर्मों के प्रतीक के रूप में मां की तीन पिंडियों की पूजा होती है। मान्यता है कि यहां माता सती का दाहिना वक्ष गिरा था इसलिए बज्रेश्वरी शक्तिपीठ में मां के वक्ष की पूजा होती है। माता बज्रेश्वरी का यह शक्तिपीठ अपने आप में अनूठा और विशेष है क्योंकि यहां मात्र हिंदू भक्त ही शीश नहीं झुकाते बल्कि मुस्लिम और सिख धर्म के श्रद्धालु भी इस धाम में आकर अपनी आस्था के फूल चढ़ाते है। आ

ज कांगड़ा की प्रसिद्धि यहां स्थित बज्रेश्वरी देवी के मंदिर के कारण अधिक है। जिसे नगरकोट कांगड़े वाली देवी भी कहा जाता है। हजार वर्ष पूर्व यहां भी बड़ा ही भव्य और समृद्ध मंदिर था। मंदिर की हीरे-मोती, सोने-चांदी की संपदा की ख्याति दूर तक फैली थी। किंतु 1009 में महमूद गजनवी, 1337 में मुहम्मद बिन तुगलक तथा 1420 के आसपास सिकंदर लोदी ने आक्रमण कर यहां की संपदा लूट ली। आक्रांताओं के हर आक्रमण के बाद यह मंदिर पुन: निर्मित हुआ। किंतु भूकंप ने इसे फिर क्षतिग्रस्त कर दिया। उसके बाद 1920 में वर्तमान मंदिर निर्मित किया गया।मंदिर के गर्भगृह में पिंडी के रूप में देवी के दर्शन होते हैं।मान्यता है कि अपने सगे संबंधियों के साथ पीले वस्त्र धारण कर देवी की स्तुति करें तो पुत्र प्राप्ति की कामना पूर्ण होती है।

कहते हैं कि जब सतयुग में राक्षसों का वध करके माता विजय प्राप्त करके आई थीं तो सभी देवो ने माता की स्तुति की थी। उस दिन से मकर संक्रांति का पर्व यहां मनाया जाता है। बताते हैं कि जहां-जहां देवी के शरीर पर घाव आए, वहां -वहां देवताओं ने मिलकर घृत का लेप किया। जिससे माता के शरीर पर आए घाव ठीक हो गए थे। आज भी उसी परंपरा को जारी रखते हुए माता की पिंडी पर मक्खन का लेप किया जाता है।

बज्रेश्वरी मंदिर के वरिष्ठ पुजारी कहते हैं कि मंदिर में यह प्रथा आदि काल से चली आ रही है। घृत पर्व का प्रसाद चरम और जोड़ों के दर्द में सहायक होता है। मंदिर में घृत प्रसाद के तौर पर श्रद्धालुओं में बांटा जाता है। मंदिर के इतिहास पर छपी किताब में भी इस परंपरा का जिक्र है। घृत मंडल पर्व पर माता की पिंडी पर मक्खन चढ़ाने की प्रक्रिया काफी पहले शुरू हो जाती है। स्थानीय और बाहरी लोगों द्वारा मंदिर में दान स्वरूप देसी घी पहुंचाया जाता है।

मंदिर प्रशासन इस घी को 101 बार ठंडे पानी से धोकर मक्खन बनाने के लिए मंदिर के पुजारियों की एक कमेटी का गठन करता है। पुजारियों की यही कमेटी मक्खन की पिन्नियां बनाती है और चौदह जनवरी को देर शाम माता की पिंडी पर मक्खन चढ़ाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है जो सुबह तक जारी रहती है।

रावण के वध के पाप से मुक्ति के पाने के लिए भगवान राम ने यहां किया था यज्ञ


अहमदाबाद: गुजरात की राजधानी अहमदाबाद से करीब 100 किमी की दूरी पर एक ऐसा प्राचीन मंदिर जहाँ मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने लंकापति रावण के वध के पाप से मुक्ति के पाने के लिए यज्ञ किया था, क्या आपको पता है यदि नहीं तो आज हम आपको उस प्राचीन मंदिर के बारे में बताते हैं| आपको बता दें अहमदाबाद से 100 किमी की दूरी पर मोढेरा में बहुत ही खूबसूरत प्राचीन सूर्य मन्दिर है। इस मन्दिर को 11वीं सदी में राजा भीमदेव सोलंकी ने बनवाया था।

यह सूर्य मंदिर पशुपवती नदी के तट पर स्थित है| इस मंदिर की ख़ास बात यह है कि इस मंदिर की पवित्रता और भव्यता का वर्णन स्कन्द और ब्रम्ह पुराण में भी देखने को मिलता है| आपको बता दें कि मोढेरा का इतिहास बहुत ही प्राचीन है। मोढ़ लोग मोढेश्वरी माँ के आनुयाई है जो अंबे माँ के अठारह हाथ वाले स्वरूप की उपासना करते हैं। इस तरह मोढेरा मोढ़ वैश्य व मोढ़ ब्राह्मण की मातृभूमि है। इस स्थान पर बहुत से देवी-देवताओं के चरण पड़े हैं। मान्यता है कि इस स्थान पर ही यमराज (धर्मराज) ने 1000 साल तक तपस्या की थी जिनका तप देखकर इंद्र को अपने आसन का खतरा महसूस हुआ, लेकिन यमराज ने कहा कि वे तो शिव को प्रसन्न करने के लिए तप कर रहे हैं। शिव ने प्रसन्न होकर यमराज से कहा कि आज से इस स्थान का नाम तुम्हारे नाम यमराज (धर्मराज) पर धर्मारण्य होगा।

स्कंद पुराण और ब्रह्म पुराण के अनुसार भगवान राम भी इस स्थान पर आए थे। मान्यता अनुसार जब भगवान राम इस नगर में यज्ञ करने हेतु आए थे तब एक स्थानीय महिला रो रही थी। सभी ने रोने का कारण जानना चाहा, लेकिन महिला ने कहा कि मैं सिर्फ प्रभु श्रीराम को ही कारण बताऊँगी।

राम को जब यह पता चला तो उन्होंने उस महिला से कारण जानना चाहा। महिला ने बताया कि इस स्थान से यहाँ के मूल निवासी वैश्य, ब्राह्मण आदि पलायन करके चले गए हैं उन्हें वापस लाने का उपाय करें। तब श्रीराम ने इस नगर को पुनः बसाया व सभी पलायन किए हुए लोगों को वापस बुलाया और नगर की रक्षा का भार हनुमानजी को दिया। लेकिन धर्मारण्य की खुशियाँ ज्यादा दिनों तक न रह सकी। कान्यकुब्ज राजा कनोज अमराज ने यहाँ की जनता पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। धर्मारण्य की जनता ने राजा को समझाया कि हनुमानजी इस नगरी के रक्षक है आप उनके प्रकोप से डरें, लेकिन राज ने जनता की बात न मनी। राजा से त्रस्त होकर फिर कुछ लोग कठिन यात्रा कर रामेश्वर पहुँचे। जहाँ हनुमानजी से अनुरोध किया और धर्मारण्य कि रक्षा करने का प्रभु श्रीराम का वचन याद दिलाया। हनुमानजी ने वचन की रक्षा करते हुए राजा को सबक सिखाया और नगर की रक्षा की।

मोढेरा सूर्य मंदिर निर्माण-

यहां के राजा सोलंकी सूर्यवंशी माने जाते थे, जिस कारण उन्होंने यहां पर इस विशाल सूर्य मंदिर की स्थापना की थी सूर्य भगवान इनके कुलदेवता के रूप में पूजे जाते थे यह राजा इस मंदिर में वह अपने आद्य देवता की आराधना किया करते थे| यह मंदिर भारत के प्रमुख सूर्य मंदिरों की श्रेणी में आता है| मोढेरा का यह सूर्य मंदिर शिल्पकला का अदभुत उदाहरण प्रस्तुत करता है इस संपूर्ण मंदिर के निर्माण में अनेक महत्वपूर्ण बातों को देखा जा सकता है|

एक तो इस मंदिर के निर्माण में ईरानी शैली का उपयोग देखा जा सकता है, और दूसरा यह कि राजा भीमदेव ने इस मंदिर को दो हिस्सों में बनवाया था जिसके प्रथम भाग में गर्भगृह तथा द्वितीय भाग में सभामंडप है, मन्दिर का गर्भग्रह काफी बडा है| मंदिर के सभामंडप में 52 स्तंभ हैं जिन पर उत्कृष्ट कारीगरी की गई है इन स्तंभों पर देवी-देवताओं के चित्रों, रामायण, महाभारत के प्रसंगों को उकेरा गया है| इस मन्दिर का स्थापत्य बहुत ही उत्तम है मंदिर का निर्माण इस प्रकार से किया गया है कि सूर्योदय होने पर सूर्य की पहली किरण मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश करती है इस मंदिर में विशाल कुंड स्थित है जिसे सूर्यकुंड तथा रामकुंड कहा जाता है|

संवत् 1356 में गुजरात के अंतिम राजपूत राजा करण देव वाघेला के अलाउदीन खिलजी से हारने के बाद मुगलों ने गुजरात पर कब्जा कर लिया। अलाउदीन खिलजी ने मोढेरा पर भी आक्रमण किया परन्तु यहाँ के उच्च वर्ग के लोग लड़ाई में भी पारंगत थे तो उन्होंने अलाउदिन खिलजी का डट के मुकाबला किया। लेकिन खिलजी के एक षड़यंत्र में वे फँस गए और मोढेरा पर खिलजी ने कब्जा कर नगर व सूर्य मंदिर को क्षति पहुँचाई।

वर्तमान धर्मारण्य (मोढेरा) में मातंगि के विशाल मन्दिर के अलावा कुछ नहीं है यहाँ के मूल निवासी अपना यह मूल स्थान छोड़ कर दूर बस गए हैं। मंदिर जीर्णोद्धार का कार्य माँ के भक्तों के सहयोग से प्रगति पर है। गुजरात के विकास के साथ ही यहाँ की सड़कों का भी विकास हुआ है जिस कारण यहाँ पहुँचना अब सुगम हो गया है।

खुले आसमां तले ठिठुर रही आशियाने से महरूम गरीबी


लखनऊ: दिसंबर का चौथा सप्ताह शुरू हो गया है। रात में सर्द हवाएं कंपकपी पैदा करने लगी हैं। लाखों रुपये होने के बावजूद भी गरीब ठिठुर रहे है। आशियाने से महरूम गरीबी खुले आसमां तले ठिठुर रही है। इसके बावजूद अब तक जिलों में कंबल की खरीद पूरी नहीं हो सकी है। चौराहों पर अभी अलाव जलना भी शुरू नहीं हुए। ऐसे में इस ठंड में गरीबों की मौत से अफसर खेलने पर अमादा हैं। यह हालत तब है जब राहत आयुक्त कार्यालय से मुख्य सचिव आलोक रंजन के निर्देश पर 18 करोड़ 75 लाख रुपए जारी किए जा चुके हैं।

मुख्य सचिव आलोक रंजन ने अभी हाल ही में कहा है कि कि यह अधिकारि‍यों की घोर लापरवाही है। ठंड शुरू हो गई है और अगर किसी भी जिले में निर्देश के बावजूद कंबल नहीं बंटे हैं और अलाव नहीं जल रहे हैं तो इसके लि‍ए अधि‍कारी सीधे तौर पर जि‍म्‍मेदार हैं। इसके लिए उन पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। राज्य आपदा प्रबंधन विभाग का कहना है कि बीते 4 नवंबर को ही 18 करोड़ 75 लाख रुपए सभी जिलों के लिए जारी कर दिए गए हैं। इसमें से कंबल के लिए प्रत्येक तहसील के लिए 5 लाख रुपए आवंटित किए गए हैं। इस राशि से जहां कंबल वितरण का काम पूरा करना है वहीं 50 हजार रुपए अलाव के लिए भी जारी किए गए हैं।

कई दिनों से पड़ रहा घना कोहरा प्रशासन की आंख नहीं खोल पा रहा है। इस घने कोहरे के कारण लोगोें का घरों से निकलना मुश्किल हो चला है। कोहरे के बीच स्टेशन रोड पर फुटपाथ किनारे बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक दुबके नजर आए। बस इसी कशमकश के साथ इन गरीबों की सर्द रातें गुजर रही हैं। रोडवेज के आगे भी फुटपाथ पर बने टीन शैड पर कुछ ऐसा ही नजारा दिखाई देता है। वहीं पेट की आग बुझाने निकले रिक्शा चालक पूस की रात के हल्कू की तरह सवारी ढोने के बजाए सुलगती आग छोड़ने को तैयार नजर नहीं आए।

गरीब व बुजुर्ग लोग पूरी रात सर्द हवाओं में ठिठुरते नजर आते है, लेकिन प्रशासन को गरीब जनता की ओर कोई ध्यान नहीं है। बस तो अपने नियम पूरे करने के बाद ही कंबलों का वितरण करना है। चाहे फिर किसी की जान पर बन जाए। गरीबों का इंतजार है कि जाने कब प्रशासन उन्हें कंबल देगा। लेकिन अभी तक कई जनपदों में यह फाइनल तक ही नहीं किया कि उन्हें कंबल कब बांटने है। गरीब प्रशासन द्वारा दिए जाने वाले कंबल के लिए इंतजार में बैठे हुए है और सोच रहे है कि उन्हें वह कंबल जल्दी से देंगे, ताकि उनकी ठंड उनके कंबलों के सहारे से गुजर सके।

आपको बता दें कि 4 नवम्बर को ही राजस्व विभाग ने प्रत्येक तहसील 5 लाख रूपए कम्बल और 50 हजार रूपए अलाव के लिए रिलीज़ कर दिए थे। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि राजधानी लखनऊ समेत गोरखपुर, उन्नाव, जालौन, कन्नौज, मिर्जापुर, रायबरेली, अमेठी, कौशांबी और अन्य जिलों में लोग रातों को महज प्लास्टिक की बोरी ओढ़कर सो रहे हैं। अब देख कर तो यही लगता है कि कम्बल की खरीद ठंड खत्म होने के बाद ही हो सकेगी।

चाहते हैं रोगों से मुक्ति तो आज करें सूर्य नारायण की पूजा

भारतीय संस्कृति में मार्गशीर्ष मास का अपना एक विशेष महत्व होता है। इस मास में सांसारिक विषयों से ध्यान हटाकर आध्यात्मिक से रिश्ता जोडा जाता है। मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को विष्णु सप्तमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु का व्रत किया जाता है। इस बार विष्णु सप्तमी 18 दिसंबर दिन शुक्रवार को पड़ रही है। मान्यता है कि विष्णु सप्तमी के दिन उपवास रखकर भगवान विष्णु का पूजन करने से समस्त कार्य सफल होते हैं। विष्णु पुराण में शुक्लपक्ष की विष्णु सप्तमी तिथि को आरोग्यदायिनी कहा गया है। इस तिथि में सूर्यनारायण का पूजन करने से रोग-मुक्ति मिलती है।

इस व्रत को रखने वाले सप्तमी का व्रत करने वाले को प्रात:काल में स्नान और नित्यक्रम क्रियाओं से निवृत होकर, स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद प्रात:काल में श्री विष्णु और भगवान शिव की पूजा अर्चना करनी चाहिए। और सप्तमी व्रत का संकल्प लेना चाहिए। निराहार व्रत कर, दोपहर को चौक पूरकर चंदन, अक्षत, धूप, दीप, नैवेध, सुपारी तथा नारियल आदि से फिर से शिव- पार्वती की पूजा करनी चाहिए। सप्तमी तिथि के व्रत में नैवेद्ध के रुप में खीर-पूरी तथा गुड के पुए बनाये जाते है। पूजा पाठ करने के बाद इस व्रत की कथा सुननी चाहिए। व्रत की कथा सुनने के बाद सांय काल में भगवान विष्णु की पूजा धूप, दीप, फल, फूल और सुगन्ध से करते हुए नैवैध का भोग भगवान को लगाना चाहिए। और भगवान की आरती करनी चाहिए।

भगवान विष्णु सृष्टि के पालनहार हैं सर्वव्यापक भगवान श्री विष्णु समस्त संसार में व्याप्त हैं कण-कण में उन्हीं का वास है उन्हीं से जीवन का संचार संभव हो पाता है संपूर्ण विश्व भगवान विष्णु की शक्ति से ही संचालित है वे निर्गुण, निराकार तथा सगुण साकार सभी रूपों में व्याप्त हैं। अत: विष्णु सप्तमी व्रत करते हुए जो भी प्रभु विष्णु का ध्यान मन करता है वह समस्त भव सागरों को पार करके विष्णु धाम को पाता है।

मादा को आकर्षित करने के लिए रुमानी गीत गाते हैं नर चमगादड़

नर चमगादड़ पशु-पक्षियों की दुनिया में सबसे रुमानी गायक होते हैं। वे मादा चमगादड़ को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए खास तरह का स्वर निकालते हैं और अपने स्वर बदलकर मादा चमगादड़ के मनोरंजन के लिए ब्यूह रचते हैं। एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है। नया अध्ययन टेक्सास ए एंड एम विश्वविद्यालय में किया गया है। फ्लोरिडा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के जीव विज्ञान के प्रोफेसर और चमगादड़ के व्यवहार के जाने-माने ज्ञाता माइक स्मोदरमैन ने चमगादड़ की स्वर ध्वनियों और गायन पर यह अध्ययन किया। यह अध्ययन ‘एनिमल विहैवियर’ में प्रकाशित हुआ है।

पिछले तीन सालों में उनकी टीम ने बिना पूंछ वाले हजारों मैक्सिकन चमगादड़ों पर टेक्सास में अध्ययन किया, जिसके परिणामस्वरुप नर चमगादड़ के गायक होने का पता चला है। उन्होंने पाया कि खास समय में नर चमगादड़, मादा चमगादड़ को आकर्षित करने के लिए गीत गाते हैं। वे ऐसा जल्दी-जल्दी करते हैं क्योंकि उन्हें जल्दी उड़ना होता है।

स्मोदरमैन के अनुसार, ये चमगादड़ बहुत तीव्र, 30 फीट प्रति सेकेंड के हिसाब से उड़ते हैं। उनके पास मादा को आकर्षित करने लिए एक सेकेंड का केवल दसवां हिस्सा रहता है। जैसे ही मादा चमगादड़ अपने बसेरे से उड़ती है, वे खास अंदाज में मादा का ध्यान अपनी ओर खींचते हैं और फिर देर तक उसका मनोरंजन करते हैं।

उनका कहना है कि चमगादड़ के गाने में मुहावरे और शब्दांश होते हैं। बिना पूंछ वाले चमगादड़ खास होते हैं और तेजी से अपने मुहावरों को पहचान लेते हैं। नर अपने गाने में बहुत ही रचनात्मक होते हैं। केवल ये चमगादड़ ही नहीं हैं, जो प्रेम गीत गाते हैं। कुछ अन्य पक्षी भी हैं जो सुरीली आवाज निकालते हैं लेकिन स्तनधारी पशुओं में यह नहीं देखा जाता।

ज्यादातर पशु अपने साथी को आकर्षित करने के लिए अलग-अलग हाव-भाव पैदा करते हैं। इस तरह के पक्षी चमकदार रूपक (शरीर से भाव-भंगिमा) बनाते हैं, जबकि चमगादड़ अन्य जानवरों की तुलना में गीत ज्यादा गाते हैं।

16 दिसंबर एक वो था जिसने दुनिया का नक्शा बदला, एक आज है जिसने बेटियों की सोच बदली


16 दिसंबर को भारत की लौह महिला कही जाने वाली इंदिरा गांधी ने देश की मुक्ति वाहिनी भारतीय सेना की जीत से पाकिस्तान के कब्जे से पूर्वी पाकिस्तान को मुक्त करा दिया था। इस पूरे युद्ध ,में करीब 90 हज़ार पाकिस्तानी सैनिकों को भारतीय सेना ने आत्मसमर्पण करने के लिये मजबूर कर दिया। 1971 की लड़ाई के बाद 16 दिसंबर की तारीख इतिहास में अमर हो गई| साथ ही भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी एक मजबूत इरादों वाली महिला के तौर पर पूरे विश्व में जाना जाने लगा।

1971 का 16 दिसम्बर जहाँ भारतीय सेना और इंदिरा गांधी को तारीख में अमर कर गया| वही 2012 का 16 दिसंबर भारत में महिलाओं के प्रति समाज की सोच को बदलने वाला साबित हुआ। 16 दिसंबर 2012 को देश की अति सुरक्षित मानी जाने वाली राजधानी दिल्ली की सड़कों पर दौड़ती एक बस में मानवता को शर्मशार करने वाला वो चेहरा सामने आया जिसने हमें ये सोचने पर मजबूर कर दिया कि हम किस समाज में रह रहे है और कैसे लोग हमारे इर्द गिर्द विचरते है।

दिल्ली की सड़कों पर दौड़ती एक बस में कुछ दरिंदो ने एक लड़की के साथ वो क्रूकृत्य किया जिसने हमारे समाज को सोचने और बदलने पर मजबूर कर दिया। उस घटना ने जहाँ देश को झकझोर दिया वहीँ, देश की उस सोच को बदलने पर भी मजबूर किया कि हम जिस समाज में रहते है उस समाज की पुरुष मानसिकता को बदलने की जरुरत है। देश में निर्भया काण्ड के तौर पर मशहूर हुये इस काण्ड ने बलात्कारियों और महिलाओं के प्रति गन्दी सोच रखने वालों के लिये एक सख्त कानून बनाये जाने की जरुरत को उजागर कर दिया।

निर्भया काण्ड ने देश के युवाओ में उबाल ला दिया था, देश के सभी प्रांतो और शहरो में इस काण्ड को लेकर आक्रोश था| वहीँ, लोग बाल्त्कारियों को कड़ी से कड़ी सज़ा दिलाने के लिये सड़कों पर थे। आधुनिक भारत में ऐसा दूसरी बार हुआ था जब किसी मुद्दे को लेकर युवा और अनुभवी लोग कंधे से कंधा मिलाकर आंदोलन और विरोध दोनों एक साथ कर रहे थे। अन्ना आंदोलन जो भ्रष्टाचार को लेकर एक मजबूत लोकपाल बिल लाने के लिये शुरू हुआ था जिसको लेकर देश कि राजधानी दिल्ली से लेकर दूर सिक्किम में भी आंदोलन हुआ| ऐसा ही आंदोलन 16 दिसंबर की घटना के बाद हुआ जिसने बलात्कारियों को उनके अंजाम तक पहुंचाने के लिए हुआ।

इन्ही आंदोलन की आग कहे या लोगो का गुस्सा आज दिल्ली ने आम आदमी पार्टी को इतना मजबूत कर दिया की आज वो दिल्ली में सरकार बनाने की दौड़ में शामिल हो गई। लोगो के गुस्से ने बलात्कार के क़ानून में भी संशोधनकरा दिया जिसे उसी लड़की को समर्पित किया गया। आज देश में महिला अधिकारों के लिए जमकर बहस हो रही है। निर्भया काण्ड ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी ध्यान दिया। सरकार ने दिवंगत न्यायमूर्ति जे एस वर्मा के नेतृतव में जिस कानून की नीव रखी उस क़ानून का असर भी देश में दिखाई पड़ने लगा है| आज बड़े से बड़ा आदमी भी उस कानून के चंगुल में फंस कर कराह रहा है जिसका ताज़ा तरीन मामला है अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बुद्धिजीवियों की जमात में शामिल देश के धुरंधर पत्रकार तरुण तेजपाल प्रकरण| वहीँ, कथा वाचक आसाराम बापू और उसके बेटे नारायण स्वामी का कानून के फंदे में फसना।

इन सबके बीच एक बात बुरी हुई कि देश में बलात्कार की घटनाओं में बढ़ोतरी दर्ज की गई। राजधानी दिल्ली में 2013 में 1121 मामले दर्ज हुये जो बीते वर्ष से दोगुने थे। वहीँ, देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश का हाल भी बुरा रहा| नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार उत्तर प्रदेश में महिलायें और प्रांतो से ज्यादा असुरक्षित है। 2012 में प्रदेश में 23 हज़ार 569 मामले दर्ज हुये जो करीब देश में दर्ज मामलों का 10 % है। वही पश्चिम बंगाल जो महिला सशक्तिकरण वाला प्रदेश माना जाता है वहाँ सबसे ज्यादा 30 हज़ार 942 और आंध्र प्रदेश में 28 हज़ार 171 मामले दर्ज हुये। देश के इन तीन बड़े प्रांतों में ही महिलाओं के खिलाफ सबसे ज्यादा मामले आये। वहीँ, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 2012 में 5959 मामले दर्ज हुये थे। दिल्ली पुलिस का बलात्कार मामलों में दर्ज हो रहे केस में बढ़ोतरी पर मानना है कि अब लड़कियों की ऐसे मामलों में शर्मसार होने के दिन खत्म हो गये महिलाओं ने झिझक छोड़कर पुलिस थानो का रुख कर लिया है।

देश में बढ़ रहे मामलों में भले ही समाज और सरकार को नहीं जगाया लेकिन देश की बेटियों को मजबूर से मजबूत बना दिया और बेटियां अपने साथ हुये कुकर्म को दुनिया के सामने लाने लगी। आज देश की महिलाओं ने समाज के दरिंदो को सबक सिखाने के लिये उसी कानून का सहारा लेना मुनासिब समझा जो उनकी दोस्त सहेली निर्भया मर कर उन्हें दे गई। महिलाओं ने आगे बढ़कर सिस्टम और सरकार के प्रति अपना गुस्सा भी दिखाया जिसका सबसे बड़ा परिणाम है दिल्ली में शीला की सल्तनत की विदाई| दिल्ली कि जनता ने अपनी गुस्से को उस पार्टी के हक़ में जाहिर कर दिया जो उसी आंदोलन के बाद निकली थी।

आज भी महिलाओं के प्रति समाज को अपनी सोच में बदलाव लाने की जरुरत है नहीं तो आने वाले समय में समाज को ऐसे असामाजिक तत्तवों से बचाने के लिये किसी इंदिरा गांधी जैसी मजबूत इरादों वाली महिला या ऐसी सैकड़ो निर्भयाओं की जरुरत पड़ेगी जो इस कुत्सित सोच को बदलने के लिये सड़कों पर निकलेंगी।

‘द ग्रेट खली’ को भी पीछे छोड़ दिया इस महाबली कांस्टेबल ने, जानिए कैसे


वर्ष 2006 में अंडर टेकर को पराजित कर विश्व कुश्ती मुकाबलों में तहलका मचाने वाले ‘द ग्रेट खली’ का नाम कौन नहीं जानता। खली रोजाना 15 से 20 अंडे, चिकन, 1 किलो दूध, केले, सेब और कई तरह के फल और सब्जियां खाते हैं, लेकिन खली की तरह दिखने वाले हरियाणा के अंबाला जिले के गांव दनौरा निवासी 7 फीट 4 इंच लम्बे युवक राजेश कुमार उर्फ महाबली भीम 4 लीटर दूध, 4 किलो चिकन, 5 किलो फल, 40 अंडे, लगभग 40 चपाती रोजाना खाते हैं और हर दो-ढाई घंटे के बाद उन्हें डाइट की जरूरत पड़ती है। 7.4 फीट लंबे राजेश भी खली की तरह ही प्रतिदिन 6 घंटे एक्सरसाइज करते हैं।

आठ भाई-बहनों में राजेश से इतनी ज्यादा ऊंचाई किसी की नहीं है। राजेश की लंबाई उनके लिए फायदेमंद साबित हो रही है। कुछ समय पहले हरियाणा सरकार ने उन्हें पुलिस में नौकरी दी। दावा किया जा रहा है कि भारत में राजेश की लंबाई तीसरे नंबर पर है तथा पंजाब-हरियाणा का सबसे लंबा व्यक्ति है। 38 साल के राजेश 3 साल से यूएसए की WWE रेसलिंग की तैयारी कर रहे हैं। जालंधर से वह इसकी कोचिंग ले रहे थे। करीब एक साल पहले उन्हें हरियाणा पुलिस में कॉन्स्टेबल की जॉब मिल गई। 20 जनवरी को उन्हें हरियाणा पुलिस में एक साल पूरा हो जाएगा। फिलहाल वह ट्रेनिंग के साथ प्रैक्टिस भी कर रहे हैं।

दावा किया जा रहा है कि भारत में राजेश की लंबाई तीसरे नंबर पर है तथा पंजाब-हरियाणा का वह सबसे लंबा व्यक्ति है। राजेश बताते हैं कि महाबली खली उर्फ दलीप सिंह राणा को नाहन में मिलने के बाद उनकी रेसलिंग में जाने की दिलचस्पी बढ़ी। खुराक का खर्च वो अपनी नौकरी और जमीन से होने वाली आय से खुद उठाते हैं। राजेश का बेटा 10वीं क्लास में पढ़ता है और बेटी 7वीं क्लास में पढ़ती है। लंबाई की वजह से राजेश आम लोगों के बीच बिल्कुल अलग दिखाई देते हैं। यही देख कर उसकी ड्यूटी आम लोगों के बीच जागरूकता लाने वाले कैंपेन में ज्यादा लगाई जाती है, ताकि लोग उसे देखकर रुकें और उसकी बात सुनें। इन दिनों उनकी ड्यूटी हेल्मेट पहनने और सुरक्षित ड्राइविंग के प्रति लोगों को जागरूक करने की लगाई गई है।

'चुड़ैलों' का गांव

यूं तो आपने अंधविश्वास से जुड़े बहुत सारे अजीबो-गरीब किस्से सुने होंगे लेकिन एक ऐसा मामला सच में सकते में डालने वाला है। क्या आपने चुड़ैलों के गांव के बारे में कभी सुना है? अगर नहीं सुना तो बता दें कि अफ्रीकी देश घाना में इस तरह के 6 गांव हैं, जो चुड़ैलों के गांव के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन गांवों में ऐसी महिलाएं रहती हैं, जिन्हें डायन या चुड़ैल कहकर समाज से बहिष्कृत कर दिया गया है।

इन औरतों को चुड़ैल या डायन घोषित करने की वजह भी बड़ी ही अजीब है। सांप काटने से किसी की मौत किसी व्यक्ति के नदी में डूबकर मर जाने की वजह से कई औरतों को चुड़ैल घोषित कर दिया गया। वह अंधविश्वास के कारण महिलाओं को चुड़ैल घोषित कर देते हैं। उन्हें जिंदा जला दिया जाता है और मानसिक और शरीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है। इन सबसे बचने के लिए अपना गांव छोड़कर कहीं दूर चली जाती है।

हाल ही में म्यूनिख की फोटोग्राफर एन क्रिस्टिने वोएहर्ल ने इनकी कुछ तस्वीरें ली है। उनका कहना हैं कि चुड़ैलों के गांव में ये औरतें झोपड़ियां बना कर रहती हैं और आस-पास के खेतों में काम कर खाने का इंतजाम करती हैं। चुड़ैल घोषित की जा चुकी महिलाएं अगर जिंदा बच जाती हैं तो उन्हें अपना घर छोड़कर घाना में मौजूद चुड़ैलों के गांवों में जाना होता है।

आपको बता दें कि करीब-करीब पूरे पश्चिमी अफ्रीका में लोग जादू और चुड़ैलों पर विश्वास करते हैं। हर धर्म, हर जाति, शहर, गांव कहीं के भी हों, इन पर उनका विश्वास है। घाना में इस तरह के 6 गांव हैं, जिनमें गांबागा और गुशीगू प्रमुख हैं। गांव-परिवार छोड़कर चुड़ैलों के गांव में रहने वाली ये महिलाएं अपनी पहचान खो चुकी होती हैं। उनके परिवारिक सदस्य भी उनसे कोई रिश्ता नहीं रखते। वह समाज से पूरी तरह से अलग हो जाती है। इनकी संख्या 1500 के आसपास है।

इंडिया के सबसे एडवांस कमांडो, हाथ पैर बंधे होने पर भी तैर जाते हैं ये


भारतीय नौसेना के स्पेशल कमांडोज जिन्हें आम नज़रों से बचा कर रखा गया है। मार्कोस को जल, थल और हवा में लड़ने के लिए विशेष ट्रेनिंग दी जाती है। समुद्री मिशन को अंजाम देने के लिए इन्हें महारत है। मार्कोस को दुनिया के बेहतरीन यूएस नेवी सील्स की तर्ज पर ट्रेंड किया जाता है। मार्कोस कमांडो बनने के लिए कड़े मुकाबले से गुजरना होता है। 20 साल उम्र वाले प्रति 10 हजार युवा सैनिकों में एक का सिलेक्शन मार्कोस के लिए होता है।

जानिए कैसे हुई इस कमांडो यूनिट की स्थापना


पाकिस्तान के साथ 1971 के युद्ध के बाद नौसेना में ऐसे कमांडो यूनिट की आवश्यकता महसूस की गई और तब नेवी ने कुछ खास अधिकारियों को इंडियन आर्मी और सिक्‍योरिटी फोर्सेज की ओर से शुरूआती ट्रेनिंग दिलवाई।1986 में नेवी ने एक मैरीटाइम स्‍पेशल फोर्स की योजना शुरू की। इसके बाद तीन आॅफिसर्स को पहले यूएस नेवी सील्‍स कमांडो और फिर ब्रिटिश स्‍पेशल एयर सर्विस के पास एक विशेष कार्यक्रम के तहत ट्रेनिंग के लिए भेजा गया। इंडियन मैरिटाइम स्‍पेशल फोर्स की स्‍थापना फरवरी 1987 में हुई। इसका नाम वर्ष 1991 में आईएमएसएफ से बदलकर एमसीएफ कर दिया गया। मार्कोस अक्सर विषम परिस्थितियों में हीं बुलाये जाते हैं। मार्कोस कमांडो बनने के लिये 20 साल के युवा सैनिको को चुना जाता है जिन्हे कड़े परीक्षण से गुजरना होता है। करगिल युद्ध में भी मार्कोस कमांडो ने पाकिस्तान को बहुत नुकसान पहुंचाया था।

हाथ पैर बंधे होने पर भी तैरने में होते हैं माहिर-


मार्कोस भारतीय नौसेना के स्पेशल मरीन कमांडोज हैं। स्‍पेशल ऑपरेशन के लिए इंडियन नेवी के इन कमांडोज को बुलाया जाता है। ये कमांडो हमेशा आम नज़रों से बचकर रहते हैं। मार्कोस हाथ पैर बंधे होने पर भी तैरने में माहिर होते हैं। नौसेना के सीनियर अफसर की मानें तो परिवार वालों को भी उनके कमांडो होने का पता नहीं होता है। मार्कोस का मकसद आतंकियों को उन्हीं के तरीके से मारना, जवाबी कार्रवाई, मुश्किल हालात में युद्ध करना, लोगों को बंधकों से मुक्त कराना जैसे खास ऑपरेशनों को पूरा करना है।

ऐसा मक़बरा जहां जूते मारकर जियारत करते हैं लोग

वैसे किसी व्‍यक्ति के मरने के बाद चाहे वह अच्‍छा हो या बुरा, लोग उसे श्रद्धांजलि देने के लिए फूल ही चढ़ाते हैं, लेकिन उत्‍तर प्रदेश के इटावा जनपद में एक ऐसा भी शख्‍स हुआ है जिसकी कब्र पर फूल नहीं चढ़ाए जाते। बल्कि उसे जूते मारते हैं| यह सुनने में थोड़ा अजीब जरूर लग रहा होगा लेकिन यह सच है| ये कब्र भोलू सैय्यद की। यहां लोग फूल, अगरबत्‍ती से नहीं बल्कि जूतों से जियारत करते हैं और कब्र को जूतों से पीटकर मन्‍नत पूरी करते हैं।

इटावा से तकरीबन तीन किलोमीटर दूर इटावा-बरेली राजमार्ग पर है भोलू सैय्यद का यह 500 साल पुराना मकबरा। यहाँ के निवासियों का कहना है कि एक बार इटावा के बादशाह ने अटेरी के राजा के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। युद्ध के बाद में इटावा के बादशाह को पता चला कि इस युद्ध के लिए उसका दरबारी भोलू सैय्यद जिम्मेदार था।

इससे नाराज बादशाह ने ऐलान किया कि सैय्यद को इस दगाबाजी के लिए तब तक जूतों से पीटा जाए जब तक कि उसकी मौत न हो जाए। सैय्यद की मौत के बाद से ही उसकी कब्र पर जूते मारने की परंपरा चली आ रही है। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि इटावा-बरेली मार्ग पर अपनी तथा परिवार की सुरक्षित यात्रा के लिए सैय्यद की कब्र पर कम से कम पांच जूते मारना जरूरी है।

... इस तरह मोर पंख में समाहित हो गईं 33 करोड़ देवी-देवताओं की शक्तियां


मोर संसार का सबसे सुन्दर पक्षी माना जाता है। सनातन धर्म में मोर पंख को बहुत आदरणीय स्थान प्राप्त है। भारतीय संस्कृति में उसके महत्व को देखते हुए ही भारत सरकार ने भारतीय वन्य परिषद की अनुशंसा पर सन् 1962 में इसे राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया। सभी शास्त्रों व ग्रंथो तथा वास्तु एवं ज्योतिष शास्त्र में मोर के पंखों का अति महत्त्वपूर्ण स्थान है.मोर के पंख घर में रखने का बहुत महत्त्व है इसका धार्मिक प्रयोग भी है, इसे भगवान श्री कृष्ण ने अपने मुकुट पर स्थान दे कर सम्मान दिया| शास्त्रों के अनुसार मोर के पंखों में सभी देवी-देवताओं और सभी नौ ग्रहों का वास होता है। ऐसा क्यों होता है इसकी हमारे धर्म ग्रंथों में कथा है जो इस प्रकार है -

प्रचलित कथाओं के अनुसार, आदिकाल में संध्यासुर का नाम का एक दैत्य था। वह भगवान शिव का परम भक्त था। उसने शिव से अतिवीर होने का वरदान भी लिया था। वर पाने के बाद उसे इतना अहंकार हुआ कि उसने विष्णु भक्तों को ही परेशान करना शुरु कर दिया और कई देवताओं को बंदी बना लिया। उसने भक्ति से इतनी शक्ति प्राप्त कर ली थी कि भगवान विष्णु भी उसका वध करने में समर्थ नहीं थे। कहते हैं जब देवतागण, दैत्यासुर के अत्याचार से बहुत दुःखी हो गए तो उन्होंने योगमाया को सहायता के लिए पुकारा योगमाया ने नवग्रहों और देवताओं के तेज से एक पक्षी की रचना की जिसे नाम दिया गया 'मोर'। इस 'दिव्य मोर' के पंखों में छिपकर अपनी शक्तियां बढ़ाईं और एक दिन मोर के साथ असुर पर आक्रमण कर दिया। संध्यासुर मोर के आगे टिक नहीं पाया और मोर के सामने घुटने टेक दिए। तभी से मोर पंख में नवग्रहों और तैंतीस करोड़ देवी देवताओं की शक्ति समाहित हो गई।

घर में मोर पंख को रखने से शुभता का संचार होता है तथा सुख-समृद्धि और लक्ष्मी कृपा प्राप्त होती है। घर के वातावरण में मौजूद नकारात्मक शक्तियां नष्ट होती हैं और सकारात्मक शक्तियां सक्रिय होती हैं। सांप मोर पंख से भय खाते हैं क्योंकि मोर का प्रिय आहार है सांप। अत: सांप उस स्थान में नहीं जाते जहां उन्हें मोर या मोर पंख दिखाई देते हैं। जो व्यक्ति सदैव अपने पास मोर पंख रखता है उस पर कोई अमंगल नहीं मंडराता। मोर पंख से बने पंखे को घर के अंदर ऊपर से नीचे फहराने से घर की आसपास की नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है। मोर पंख को सिर पर धारण करने से विद्या लाभ प्राप्त होता है।

काल-सर्प के दोष को भी दूर करने की इस मोर के पंख में अद्भुत क्षमता है। काल-सर्प वाले व्यक्ति को अपने तकिये के खौल के अंदर 7 मोर के पंख सोमवार रात्री काल में डालें तथा प्रतिदिन इसी तकिये का प्रयोग करे। और अपने बैड रूम की पश्चिम दीवार पर मोर के पंख का पंखा जिसमे कम से कम 11 मोर के पंख तो हों लगा देने से काल सर्प दोष के कारण आयी बाधा दूर होती है। बच्चा जिद्दी हो तो इसे छत के पंखे के पंखों पर लगा दे ताकि पंखा चलने पर मोर के पंखो की भी हवा बच्चे को लगे धीरे-धीरे हठ व जिद्द कम होती जायेगी।