शादी में क्यों फेंके जाते हैं चावल, जानिए क्यों निभाई जाती है यह रस्म

यदि आप कहीं शादी विवाह में जाते होंगे तो आपने देखा होगा कि द्वारचार के समय दुल्हन व वधु पक्ष के लोग चावल फेंकते हैं। क्या आपको पता है कि आखिर क्यों लोग चावल फेंकते हैं? 

शादी, कई सारे रीति-रिवाजों के साथ की जाती है। ऐसा नहीं कि ये सब सिर्फ भारत में ही होता है बल्कि अन्‍य देशों में भी कई सारी रस्‍में होती हैं। लेकिन बहुत सारी रस्‍में सिर्फ निभा लेते हैं और उनके पीछे के तर्क को नहीं जानते हैं। क्‍या आपने कभी सोचा है कि शादी के दौरान चावल फेंकने की रस्‍म को क्‍यूं निभाया जाता है। क्‍या इसका कोई वैज्ञानिक कारण है या ये सिर्फ एक रीति ही है।

रोम में यह बहुत ही पुरानी रीति है। यह दर्शाता है कि नवविवाहितों के जीवन में खुशियां आएं और वो हमेशा सम्‍पन्‍न रहें। वर और वधू को संतान की प्राप्ति हो और उनका भाग्‍य हमेशा उनका साथ दे। भारत ही नहीं बल्कि अन्‍य देशों में भी चावल को फेंकने की रस्‍म को निभाया जाता है। मानते हैं कि इससे परिवार में सुख-समृद्धि आती है। भारत में चावल को हल्‍दी के साथ फेंका जाता है या वधू की झोली में डाला जाता है। मानते हैं कि इससे जीवन में समृद्धि आती है।

जानिए शनिदेव क्यों हैं काले और क्यों रखते हैं पिता सूर्यदेव से वैरभाव

शनि एक ऐसा नाम है जिसे पढ़ते-सुनते ही लोगों के मन में भय उत्पन्न हो जाता है। ऐसा कहा जाता है कि शनि की कुदृष्टि जिस पर पड़ जाए वह रातो-रात राजा से भिखारी हो जाता है और वहीं शनि की कृपा से भिखारी भी राजा के समान सुख प्राप्त करता है। यदि किसी व्यक्ति ने कोई बुरा कर्म किया है तो वह शनि के प्रकोप से नहीं बच सकता है। शनिदेव और सूर्यदेव की आपस में नहीं बनती। शनि सूर्य से शत्रुता का भाव रखते हैं। शनि और सूर्य के संबंध में शत्रुता तो ठीक है लेकिन हैरानी की बात यह है कि शनि सूर्य के पुत्र हैं और पिता पुत्र में शत्रुता का संबंध कैसे हो सकता है? तो आइये आपको बताते हैं कैसे शनिदेव बने अपने पिता के शत्रु। 

पौराणिक कथाओं के अनुसार सूर्य और शनि की इस शत्रुता के पिछे की कहानी कुछ इस प्रकार है। हुआ यूं कि सूर्यदेव का विवाह त्वष्टा की पुत्री संज्ञा के साथ हो गया। अब सूर्यदेव का तेज था बहुत अधिक जो संज्ञा से सहन नहीं होता था फिर भी जैसे-तैसे उन्होंनें सूर्यदेव के साथ जीवन बिताना शुरु किया वैवस्त मनु, यम और यमी के जन्म के बाद उनके लिये सूर्यदेव का तेज सहन करना बहुत ही मुश्किल होने लगा तब उन्हें एक उपाय सूझा और अपनी परछाई छाया को सूर्यदेव के पास छोड़ कर वे चली गई। सूर्यदेव को छाया पर जरा भी संदेह नहीं हुआ कि यह संज्ञा नहीं है अब सूर्यदेव और छाया खुशी-खुशी अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे उनके मिलन से सावर्ण्य मनु, तपती, भद्रा एवं शनि का जन्म हुआ। 

जब शनि छाया के गर्भ में थे छाया तपस्यारत रहते हुए व्रत उपवास करती थीं। कहते हैं कि अत्यधिक उपवास करने के कारण गर्भ में ही शनिदेव का रंग काला हो गया। जन्म के बाद जब सूर्यदेव ने शनि को देखा तो उनके काले रंग को देखकर उसे अपनाने से इंकार करते हुए छाया पर आरोप लगाया कि यह उनका पुत्र नहीं हो सकता, लाख समझाने पर भी सूर्यदेव नहीं माने। इसी कारण खुद के और अपनी माता के अपमान के कारण शनिदेव सूर्यदेव से वैरभाव रखने लगे। शनि देव ने अपनी साधना तपस्या द्वारा शिवजी को प्रसन्न कर अपने पिता सूर्य की भाँति शक्ति प्राप्त की और शिवजी ने शनि देव को वरदान मांगने को कहा, तब शनि देव ने प्रार्थना की कि युगों युगों में मेरी माता छाया की पराजय होती रही हैं, मेरे पिता पिता सूर्य द्वारा अनेक बार अपमानित व् प्रताड़ित किया गया हैं। 

अतः माता की इच्छा है कि मेरा पुत्र अपने पिता से मेरे अपमान का बदला ले और उनसे भी ज्यादा शक्तिशाली बने। तब भगवान शंकर ने वरदान देते हुए कहा कि नवग्रहों में तुम्हारा सर्वश्रेष्ठ स्थान होगा।मानव तो क्या देवता भी तुम्हरे नाम से भयभीत रहेंगे। शनि के सम्बन्ध मे हमे पुराणों में अनेक आख्यान मिलते हैं। माता के छल के कारण पिता ने उसे शाप दिया। पिता अर्थात सूर्य ने कहा,”आप क्रूरतापूर्ण द्रिष्टि देखने वाले मंदगामी ग्रह हो जाये।

इस गुफा मे है गणेश जी का कटा हुआ मस्तक

धार्मिक मान्यतानुसार हिन्दू धर्म में गणेश जी सर्वोपरि स्थान रखते हैं। सभी देवताओं में इनकी पूजा-अर्चना सर्वप्रथम की जाती है। श्री गणेश जी विघ्न विनायक हैं। भगवान गणेश गजानन के नाम से भी जाने जाते हैं क्योंकि उनका मुख हाथी का है| क्या आपको पता है कि भगवान श्रीगणेश का सिर कटने के बाद हाथी के बच्चे का मुख लगा लेकिन उनका असली सिर कहाँ गया? इसके बारे में आज आपको एक रोचक जानकारी देते हैं।

ब्रह्मांड पुराण में कहा गया है कि जिस समय माता पार्वती ने भगवान श्री गणेश को जन्म दिया उस समय इन्द्रदेव समेत कई देवी- देवता उनके दर्शनों के लिए उपस्थित हुए| जिस समय यह देवी देवता पधारे उसी समय न्यायाधीश कहे जाने वाले शनिदेव भी वहां आये| शनिदेव के बारे में कहा जाता है कि उनकी क्रूर दृष्टि जहां भी पड़ेगी, वहां हानि होगी। उनकी उपस्थिति से माता पार्वती रुष्ट हो गईं| फिर भी शनि देव की दृष्टि जब गणेश पर पड़ी और दृष्टिपात होते ही श्री गणेश का मस्तक अलग होकर चन्द्रमण्डल में चला गया।

इसी तरह दूसरे प्रसंग के मुताबिक, एक बार की बात है माता पार्वती स्नान करने जा रही थीं। वह चाहती थी की स्नान करते समय उन्हें कोई परेशान न करें। तब उन्होंने स्नान से पहले अपने मैल से एक सुंदर बालक को उत्पन्न किया और उसे अपना द्वारपाल बनाकर दरवाजे पर पहरा देने का आदेश दिया। उसी समय वहाँ भगवान शिवजी आये और अन्दर प्रवेश करने लगे, तब बालक ने उन्हें बाहर रोक दिया। शिव जी ने उस बालक को कई बार समझाया लेकिन वह नहीं माना। इस पर शिवगणों ने भगवान शिवजी के कहने पर उस बालक को द्वार से हटाने के लिए उससे भयंकर युद्ध किया। लेकिन उसे कोई पराजित नहीं कर सका। बालक के पराक्रम और हठधर्मिता से क्रोधित होकर शिवजी ने उस बालक का सिर काट दिया। जो चंद्रलोक चला गया|

जब माता पार्वती स्नान करके निकली तो अपने पुत्र का कटा हुआ सिर देखकर क्रोधित हो उठीं और शिवजी से उसे पुनः जीवित करने के लिए कहा। उन्होंने कहा की अगर उनके पुत्र को जीवित नहीं किया गया तो प्रलय आ जाएगी। यह सब देखकर सारे देवी-देवता भयभीत हो गये। तब देवर्षि नारद न एपर्वती जी को शांत किया और बालक को जिन्दा करने का अनुराध भगवान शिवजी से करने लगे। बड़ी समस्या यह थी कि कटा हुआ सिर वापस से धड के साथ जुड नही सकता था। अतः यह तय हुआ कि अगर किसी दूसरे जीव का सिर मिल जाए तो यह बालक वापस से जिन्दा हो जाएगा।

शिव जी के आदेशानुसार शिवगणों जब दूसरा सिर खोजने निकले तो उन्हें एक जंगल में एक हाथी का बच्चा मिला। शिवगणों उस हाथी के बच्चे का सिर काटकर ले आए। इसके पश्चात शिव जी ने उस गज के कटे हुए मस्तक को बालक के धड पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया और इस बालक का नाम गणेश पड़ा। अगर आप उस कटे हुए स‌िर को देखना चाहते हैं तो आपको उत्तराखंड के प‌िथौरागढ़ में स्‍थ‌ित एक गुफा के अंदर जाना होगा। यहां न स‌िर्फ आपको गणेश जी के कटे हुए स‌िर द‌िखेंगे बल्क‌ि कई ऐसे दृश्य द‌िखेंगे जो आपको हैरत में डालने के ल‌िए काफी है।

इस रहस्यमयी गुफा की खोज धरती पर भगवान श‌िव के अवतार माने जाने वाले आद‌िगुरू शंकराचार्य को माना जाता है। यह ऐसी गुफा है ज‌िसके वहां मौजूद होने की कल्पना करना भी आम आदमी के ल‌िए मुश्क‌िल हो सकता था क्योंक‌ि यह पहाड़ी से करीब 90 फीद अंदर पाताल में मौजूद है। इसमें प्रवेश के ल‌िए श्रद्धालुओं को जंजीर का सहारा लेना पड़ता है। इस तस्वीर में गुफा में मौजूद कुंड देख‌िए। रहस्यमयी गुफा में आप जाएंगे तो देखकर हैरान रह जाएंगे क‌ि गुफा में करीब 33 करोड़ देवी-देवता मौजूद हैं। यानी यह गुफा अपने आप में पूरा का पूरा देवलोक प्रतीत होता है। इसी गुफा में एक स्‍थान पर गणेश जी का कटा हुआ स‌िर भी रखा हुआ है।

यह कोई आम प‌िंड नहीं है बल्क‌‌ि यह है अपने गणपत‌ि बप्पा। माना जाता है क‌ि यही है भगवान गणेश का कटा हुआ स‌िर ज‌िस पर भगवान श‌िव की अद्भुत कृपा आज भी बरसाती है। अब आप यह भी जान लीज‌िए क‌ि इस गुफा का नाम है पाताल भुवनेश्वर गुफा यानी संसार के माल‌िक ईश्वर की गुफा। भगवान श‌िव ने अपने पुत्र के कटे हुए स‌िर की तृप्ति‌ के ल‌िए यहां सहस्रकमल दल की स्‍थापना की है ऐसी मान्यता है। इस कमल दल से जल की बूंदें भगवान गणेश के स‌िर पर टपकता है। कमल के मध्य से टपकता हुआ बूंद स‌ीधे गणेश जी के मुंख में जाता है। कुदरत के इस अद्भुत दृश्य को देखकर श्रद्धालु भाव-व‌िभोर होकर हैरत में पड़ जाते हैं।

करवा चौथ: अखंड सुहाग व पारस्परिक प्रेम का प्रतीक

करवा चौथ भारत में मुख्यतः उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और गुजरात में मनाया जाता है। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला यह व्रत इस बार 19 अक्टूबर दिन बुधवार को मनाया जायेगा| करवा चौथ का पर्व सुहागिन स्त्रियाँ मनाती हैं| पति की दीर्घायु और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन चन्द्रमा की पूजा की जाती है| चंद्रमा के साथ- साथ भगवान शिव, पार्वती जी, श्रीगणेश और कार्तिकेय की पूजा की जाती है| करवाचौथ के दिन उपवास रखकर रात्रि समय चन्द्रमा को अर्ध्य देने के उपरांत ही भोजन करने का विधान है|

करवा चौथ की व्रत विधि-

कार्तिक माह की कृष्ण चन्द्रोदयव्यापिनी चतुर्थी के दिन किया जाने वाला करक चतुर्थी व्रत स्त्रियां अखंड़ सौभाग्य की कामना के लिए करती हैं| इस व्रत में शिव-पार्वती, गणेश और चन्द्रमा का पूजन किया जाता है| इस शुभ दिवस के उपलक्ष्य पर सुहागिन स्त्रियां पति की लंबी आयु की कामना के लिए निर्जला व्रत रखती हैं| पति-पत्नी के आत्मिक रिश्ते और अटूट बंधन का प्रतीक यह करवाचौथ या करक चतुर्थी व्रत संबंधों में नई ताज़गी एवं मिठास लाता है| करवा चौथ में सरगी का काफी महत्व है| सरगी सास की तरफ से अपनी बहू को दी जाने वाली आशीर्वाद रूपी अमूल्य भेंट होती है|

करवा चौथ व्रत की प्रक्रिया-

करवा चौथ में प्रयुक्त होने वाली संपूर्ण सामग्री को एकत्रित करें| व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें- ‘मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये। करवा चौथ का व्रत पूरे दिन बिना कुछ खाए पिए रहा जाता है| दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें। इसे वर कहते हैं। चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है। उसके बाद आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ और पक्के पकवान बनाएं। उसके बाद पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएं। ध्यान रहे गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं। चौक बनाकर आसन को उस पर रखें। गौरी को चुनरी ओढ़ाएं। बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी का श्रृंगार करें। उसके बाद जल से भरा हुआ लोटा रखें। वायना (भेंट) देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। करवा में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें। रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाएं। गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा करें। पति की दीर्घायु की कामना करें।

‘नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्‌। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥’ करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें। कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सासूजी के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें। तेरह दाने गेहूं के और पानी का लोटा या टोंटीदार करवा अलग रख लें। रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें।इसके बाद पति से आशीर्वाद लें। उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें। पूजन के पश्चात आस-पड़ोस की महिलाओं को करवा चौथ की बधाई देकर पर्व को संपन्न करें।

करवा चौथ की कथा-

इस पर्व को लेकर कई कथाएं प्रचलित है, जिनमें एक बहन और सात बहनों की कथा बहुत प्रसिद्ध है| बहुत समय पहले की बात है, एक लडकी थी, उसके साथ भाई थें, उसकी शादी एक राजा से हो गई| शादी के बाद पहले करवा चौथ पर वो अपने मायके आ गई| उसने करवा चौथ का व्रत रखा, लेकिन पहला करवा चौथ होने की वजह से वो भूख और प्यास बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी| वह बडी बेसब्री से चांद निकलने की प्रतिक्षा कर रही थी|

उसके सातों भाई उसकी यह हालत देख कर परेशान हो गयें, वे सभी अपने बहन से बेहद स्नेह करते थें| उन्होने अपनी बहन का व्रत समाप्त कराने की योजना बनाई| और पीपल के पत्तों के पीछे से आईने में नकली चांद की छाया दिखा दी| बहन ने इसे असली चांद समझ लिया और अपना व्रत समाप्त कर, भोजन खा लिया| बहन के व्रत समाप्त करते ही उसके पति की तबियत खराब होने लगी| अपने पति की तबियत खराब होने की खबर सुन कर, वह अपने पति के पास ससुराल गई और रास्ते में उसे भगवान शंकर पार्वती देवी के साथ मिलें| पार्वती देवी ने रानी को बताया कि उसके पति की मृ्त्यु हो चुकी है, क्योकि तुमने नकली चांद को देखकर व्रत समाप्त कर लिया था|

यह सुनकर बहन ने अपनी भाईयों की करनी के लिये क्षमा मांगी| माता पार्वती ने कहा” कि तुम्हारा पति फिर से जीवित हो जायेगा, लेकिन इसके लिये तुम्हें, करवा चौथ का व्रत पूरे विधि-विधान से करना होगा| इसके बाद माता पार्वती ने करवा चौथ के व्रत की पूरी विधि बताई| माता के कहे अनुसार बहन ने फिर से व्रत किया और अपने पति को वापस प्राप्त कर लिया|

धर्म ग्रंथों में एक महाभारत से संबंधित अन्य पौराणिक कथा का भी उल्लेख किया गया है| इसके अनुसार पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर चले जाते हैं व दूसरी ओर पांडवों पर कई प्रकार के संकटों से आन पड़ते हैं| यह सब देख द्रौपदी चिंता में पड़ जाती है वह भगवान श्री श्रीकृष्ण से इन सभी समस्याओं से मुक्त होने का उपाय पूछती हैं| श्रीकृष्ण द्रौपदी से कहते हैं कि यदि वह कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन करवा चौथ का व्रत रहे तो उसे इन सभी संकटों से मुक्ति मिल सकती है| भगवान कृष्ण के कथन अनुसार द्रौपदी विधि विधान सहित करवा चौथ का व्रत रखती हैं जिससे उनके समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं|

मंदोदरी के मायके में क्षमा मांगने के बाद होता है रावण का वध


भोपाल: देश में भले ही मंगलवार को दशहरे के मौके पर रावण के साथ कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतलों का दहन कर असत्य पर सत्य की जीत का पर्व मनाया जाएगा, मगर मध्य प्रदेश में एक स्थान ऐसा है, जहां के लोग रावण के सामने खड़े होकर क्षमा याचना करते हैं और उसके बाद उसका वध करते हैं।

मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के खानपुरा क्षेत्र में रावण की लगभग 20 फुट उंची प्रतिमा है। इस प्रतिमा की नामदेव समाज के लोग साल भर पूजा करते हैं। मान्यता है कि इस प्रतिमा के पैर में धागा बांधने से बीमारी नहीं होती। यही कारण है कि अन्य अवसरों के अलावा महिलाएं दशहरे के मौके पर रावण की प्रतिमा के पैर में धागा बांधती हैं।

विभिन्न स्थानों पर इस बात का उल्लेख है कि रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका मंदसौर था, और इसी कारण इस स्थान का नाम मंदसौर पड़ा है। इस लिहाज से मंदसौर के निवासियों का रावण दामाद हुआ। लिहाजा यहां के लोग अब भी रावण को अपना दामाद मानते हैं।

स्थानीय लोग बताते हैं कि नामदेव समाज के लोग दशहरे के दिन प्रतिमा के समक्ष उपस्थित होकर पूजा-अर्चना करते हैं। उसके बाद राम और रावण की सेनाएं निकलती हैं। वध से पहले लोग रावण के समक्ष खड़े होकर क्षमा-याचना मांगते हैं। प्रार्थना करते हुए वे लोग कहते हैं कि आपने सीता का हरण किया था, इसलिए राम की सेना आपका वध करने आई है। उसके बाद वहां अंधेरा छा जाता है और फिर उजाला होते ही राम सेना उत्सव मनाने लगती है।

स्थानीय लोग बताते हैं कि रावण मंदसौर का दामाद है, इसलिए महिलाएं जब प्रतिमा के सामने पहुंचती हैं तो घूंघट डाल लेती हैं। क्योंकि दामाद के सामने कोई महिला सिर खोलकर नहीं निकलती है।खानपुरा क्षेत्र में दशहरा मनाने की तैयारियां जोरों पर हैं। रावण की प्रतिमा को आकर्षक रूप दिया गया है, सजावट का दौर जारी है। विशेष प्रकाश की व्यवस्था भी की जा रही है।