आवारा पशुओं का आतंक, चौपट हो रही अन्नदाता की फसल, कुछ तो सोचो सरकार…?

विनीत कुमार वर्मा

हैदरगढ़: उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद जब स्लाटर हाउस पर पाबंदी की खबर आई थी। तब लोगों को लगा कि अब रामराज आ जाएगा। लेकिन इसके कुछ ही दिन बाद इसका दुष्परिणाम भी सामने आ गया। जिसको लेकर अब ग्रामीण इलाकों में रहने वाले किसान खासकर परेशान हैं। जो इन दिनों किसानों के लिए सिरदर्द बन गए हैं। ये पशु मौजूदा समय में झुण्ड के झुण्ड घुम रहे हैं। और सिर्फ घुम ही नहीं रहे हैं बल्कि किसानों के खेतों में घुस कर उनकी पूरी मेहनत पर पानी फेरते हुए उनकी खेती चर दे रहे हैं।

जहां आमजन रात के समय घरों में चैन की नींद सोए रहते है, वहीं किसानों को अपनी फसलें बचाने के लिए दिन रात खेतों में पहरेदारी करनी पड़ रही है। दिन-रात जागकर फसलों की रखवाली करने के बावजूद इन किसानों को बेसहारा पशुओं से अपनी फसलें बचाना मुश्किल होता जा रहा है। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जनपद के हैदरगढ़ क्षेत्र के इलियासपुर और कबूलपुर गांव में अब लोग आधी रात को सोते नहीं बल्कि अपने खेतों की पहरेदारी करते हैं। ताकि कोई गाय-सांड उनकी फसलों को नुकसान ना पहुंचा दे। इस इलाके में कई बार ऐसा हुआ है कि रात को गाय-बैल के झुंड ने फसलों को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है।

दरअसल, इस क्षेत्र में एक-दो-दस-बीस या सौ पचास नहीं इलाके में ऐसे हजारों लावारिस गोवंश का झुंड तैयार हो गया है जिनका कोई मालिक नहीं है ना ही कोई ठिकाना है। इसमें ज्यादातर ऐसे बैल हैं जो खेती किसानी में उपयोगी नहीं रहे, ऐसी गायें भी हैं जो अब दूध नहीं दे सकती, ऐसे में इनके खाने का खर्च किसानों पर बोझ बन गया तो इन्हें लावारिस छोड़ दिया गया। लिहाजा गोवंश का ये झुंड एक गांव से दूसरे गांव खाने की तलाश भटकता रहता है और जहां भी फसल मिलती उस पर टूट पड़ता है।

ये हालात सिर्फ इलियासपुर और कबूलपुर गांव के नहीं है, बल्कि पूरे बाराबंकी जनपद में आवारा मवेशियों का आतंक है। लावारिस गोवंश का ये झुंड रात के वक्त ही खेतों पर धावा बोलता है, लिहाजा किसान रात-रात भर जागकर अपने खेतों में मचान पर चढ़कर पहरा देते हैं। आधे घंटे की चूक भी इनकी महीनों की मेहनत को मिट्टी में मिला सकती है। इसलिए घर के बुजुर्गों से लेकर बच्चे तक बारी-बारी से इस पहरेदारी में शामिल होते हैं।

हादसों का पर्याय बने आवारा पशु

क्षेत्र में लगातार बढ़ रहे आवारा पशुओं के कारण हादसों की संख्या में भी लगातार इजाफा हो रहा है। गलियों व सड़कों के किनारे घूम रहे आवारा पशु अचानक भागकर सड़कों पर आ जाते है। जिससे दोपहिया वाहन चालक चोटिल हो जाते है। वहीं बड़े वाहन की चपेट में आने से कई बार पशु भी गंभीर रूप से जख्मी हो जाते है।

शनिवार को करें यह उपाय, दूर होगी आर्थिक तंगी और घर में क्लेश


धर्मग्रंथों के अनुसार जिस घर में तुलसी का पौधा होता है वहां रोग, दोष या क्लेश नहीं होता वहां हमेशा सुख-समृद्धि का वास होता है। इसीलिए प्रतिदिन तुलसी के पौधे की पूजा करने का भी विधान है। प्राचीन काल से ही यह परंपरा चली आ रही है कि घर में तुलसी का पौधा होना चाहिए।

शास्त्रों में तुलसी को पूजनीय, पवित्र और देवी स्वरूप माना गया है, इस कारण घर में तुलसी हो तो कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। यदि ये बातें ध्यान रखी जाती हैं तो सभी देवी-देवताओं की विशेष कृपा हमारे घर पर बनी रहती है। घर में सकारात्मक और सुखद वातावरण बना रहता है, पैसों की कमी नहीं आती है और परिवार के सदस्यों को स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है।

इससे पैसों से सम्बन्धित परेशानियां दूर हो जाती है। इसके इलावा घर के लोगों के बीच हो रहे झगडे, मन मुटाव और क्लेश भी दूर हो जाता है। हर घर में पैसों को लेकर समस्याएं आती ही रहती है। हम चाहे कितना भी कमा ले पर फिर भी पैसो की तंगी कभी पूरी ही नहीं होती। ऐसे में तुलसी का ये उपाय एक रामबाण उपाय है। वैसे इस उपाय को करना बेहद आसान है। साथ ही इस उपाय को करने से इसका असर भी तुरंत दिखता है। इससे पैसों से सम्बन्धित परेशानियां दूर हो जाती है।

इसके इलावा घर के लोगों के बीच हो रहे झगडे, मन मुटाव और क्लेश भी दूर हो जाता है। इसमें पहले उपाय के अनुसार यदि आप शनिवार को आटा पिसवाने जाए तो जाते समय थोड़े से गेहूं में 100 ग्राम काले चने, 11 तुलसी के पत्ते और उसमे दो दाने केसर के मिला ले। अब इस सामग्री को बाकी गेहूं में मिला कर पिसवा ले.। इसके इलावा केवल शनिवार को ही आटा पिसवाएं। इस उपाय को करने के बाद ही आपको तुरंत इसका असर दिखने लगेगा।

इसके इलावा शनिवार को काले कुत्ते को सरसो के तेल से चुपड़ी रोटी खिलाने से भी धन में वृद्धि होती है। साथ ही शनिवार को पीपल के पेड़ में देसी घी का दीपक जलाने से भी मनोकामनाए पूरी होती है।गौरतलब है, कि तुलसी के पौधे पर प्रतिदिन सुबह शाम दीपक जलाने से भी व्यक्ति की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती है।

कई बीमारियों से निजात दिलाता है तीन मुखी रुद्राक्ष, जानिए और फायदे


रुद्राक्ष दो शब्दों के मेल से बना है पहला रूद्र का अर्थ होता है भगवान शिव और दूसरा अक्ष इसका अर्थ होता है आंसू| माना जाता है की रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के आंसुओं से हुई है| रुद्राक्ष भगवान शिव के नेत्रों से प्रकट हुई वह मोती स्वरूप बूँदें हैं जिसे ग्रहण करके समस्त प्रकृति में आलौकिक शक्ति प्रवाहित हुई तथा मानव के हृदय में पहुँचकर उसे जागृत करने में सहायक हो सकी| 

रूद्राक्ष का बहुत अधिक महत्व होता है तथा हमारे धर्म एवं हमारी आस्था में रूद्राक्ष का उच्च स्थान है। रूद्राक्ष की महिमा का वर्णन शिवपुराण, रूद्रपुराण, लिंगपुराण श्रीमद्भागवत गीता में पूर्ण रूप से मिलता है। सभी जानते हैं कि रूद्राक्ष को भगवान शिव का पूर्ण प्रतिनिधित्व प्राप्त है।

रूद्राक्ष का उपयोग केवल धारण करने में ही नहीं होता है अपितु हम रूद्राक्ष के माध्यम से किसी भी प्रकार के रोग कुछ ही समय में पूर्णरूप से मुक्ति प्राप्त कर सकते है। ज्योतिष के आधार पर किसी भी ग्रह की शांति के लिए रत्न धारण करने की सलाह दी जाती है। असली रत्न अत्यधिक मंहगा होने के कारण हर व्यक्ति धारण नहीं कर सकता।

रुद्राक्ष के मुखो की संख्या रुद्राक्ष की फलश्रुति निर्धारित करती है। वैसे तो 1 मुखी से 21 मुखी तक के सभी रुद्राक्ष लोकप्रिय है। निर्णय सिंधु के अनुसार अग्निसम्भूत त्रिमुखी स्तत्र यानि तीन मुखी रुद्राक्ष अग्नि से उत्पन्न हुआ है और यह पापों को नष्ट करने वाला है। पंच तत्वों में अग्नि का स्थान विशिष्ट है। तीन मुखी रुद्राक्ष स्वंय में बृह्मा, विष्णु और महेश को धारण करता है, वह जठराग्नि, बड़वाग्नि और दावाग्नि समस्त से मनुष्य की रक्षा करता है। 

इसकी शक्ति से कौनसी बीमारिया पल भर में ठीक हो जाती है। सबसे पहले तीनमुखी रुद्राक्ष की विशेषताएं... -यह त्रिदोषों का नाशक है यानि कफ, पित्त और वात का नाश करता है। -यह तीन वरणों यानि स्वर, व्यंजन और विसर्ग पर मनुष्य को अथॉरिटी देता है। यह मनुष्य की तीनों ऐष्णाओं की पूर्ति करता हैः तीन ऐष्णाएं हैं धन, पुत्र और लोक। -यह तीनों नाड़ियों को नियंत्रित करता हैः तीन नाड़ियां हैं आदि, अंत और मध्य। यह तीनों लिंग के लोगों द्वारा पहना जा सकता हैः तीन लिंग हैं- पुरुष, स्त्री और उभय।






चमत्कारों और रहस्यों से भरी हुई है माता वैष्णों देवी की यह गुफा

लखनऊ: वैष्णो देवी मंदिर शक्ति को समर्पित एक पवित्रतम हिंदू मंदिर है, जो भारत के जम्मू और कश्मीर में वैष्णो देवी की पहाड़ी पर स्थित है। हिंदू धर्म में वैष्णो देवी, जो माता रानी और वैष्णवी के रूप में भी जानी जाती हैं, देवी मां का अवतार हैं। 

वैष्णो देवी मंदिर जम्मू-कश्मीर की त्रिकुटा पहाड़ियों पर बसा है। हर साल लाखों भक्त यहां की यात्रा करते हैं। जितना महत्व वैष्णो देवी का है, उतना ही महत्व यहां की गुफा का भी है। देवी के मंदिर तक पहुंचने के लिए एक प्राचीन गुफा का प्रयोग किया जाता था। यह गुफा बहुत ही चमत्कारी और रहस्यों से भरी हुई है।

सबसे पहली बात यह है कि माता वैष्‍णो देवी के दर्शन के ल‌िए वर्तमान में ज‌िस रास्ते का इस्तेमाल क‌िया जाता है, वह गुफा में प्रवेश का प्राकृत‌िक रास्ता नहीं है। श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए कृत्र‌िम रास्ते का न‌िर्माण 1977 में ‌‌क‌िया गया। वर्तमान में इसी रास्ते से श्रद्धालु माता के दरबार में पहुंचते हैं।

क‌िस्मत वाले भक्तों को प्राचीन गुफा से आज भी माता के भवन में प्रवेश का सौभाग्य म‌िल जाता है। यहां पर न‌ियम है क‌ि जब कभी भी दस हजार के कम श्रद्धालु होते हैं तब प्राचीन गुफा का द्वार खोल द‌िया जाता है। मां माता वैष्णो देवी के दरबार में प्राचीन गुफा का काफी महत्व है। मान्यता है कि प्राचीन गुफा के अंदर भैरव का शरीर मौजूद है। माता ने यहीं पर भैरव को अपने त्र‌िशूल से मारा था और उसका सिर उड़कर भैरव घाटी में चला गया और शरीर यहां रह गया।

प्राचीन गुफा का महत्व इसल‌िए भी है क्योंक‌ि इसमें प‌व‌ित्र गंगा जल प्रवाह‌ित होता रहता है। इस जल से पवित्र होकर माता के दरबार में पहुंचने का विशेष महत्व माना जाता है। वैष्‍णो देवी मंदिर तक पहुंचने वाली घाटी में कई पड़ाव भी हैं, जिनमें से एक है आद‌ि कुंवारी या आद्यकुंवारी। यहीं एक और गुफा भी है, ज‌िसे गर्भजून के नाम से जाना जाता है। गर्भजून गुफा को लेकर मान्यता है क‌ि माता यहां 9 महीने तक उसी प्रकार रही ‌‌‌थी जैसे एक श‌िशु माता के गर्भ में 9 महीने तक रहता है।

गर्भजून गुफा को लेकर माना जाता है कि इस गुफा में जाने से मनुष्य को फ‌िर गर्भ में नहीं जाना पड़ता है। अगर मनुष्य गर्भ में आता भी है तो गर्भ में उसे कष्ट नहीं उठाना पड़ता है और उसका जन्म सुख एवं वैभव से भरा होता है।

शहतूत के फायदे सुनकर हैरत में पड़ जाएंगे आप


 लखनऊ: मीठा-मीठा शहतूत खाना सबको अच्छा लगता है लेकिन शायद आप इसकी खूबियों में बारे में नहीं जानते होंगे। शहतूत सेहत के लिए बेहद फायदेमंद होता है। आयुर्वेद में शहतूत के कई फायदों के बारे में बताया गया है। शहतूत में मौजूद गुण शरीर में पानी की कमी को दूर करके प्यास को बुझाते हैं। गर्मी के मौसम में शरीर को ज्यादा पानी की जरूरत होती है और इस के सेवन से पानी की कमी को दूर किया जा सकता है। इसमें पोटैशियम, विटामिन ए और फॉस्फोरस काफी पाया जाता है। 


औषधीय गुणों से भरपूर शहतूत का सेवन करने वाले व्‍यक्तियों की आंखों की रोशनी हमेशा तेज रहती है।  शहतूत की तासीर ठंडी होती है। इसलिए गर्मी के दिनों में शहतूत के रस में चीनी मिलाकर पीते रहना चाहिए। रस से भरे होने के कारण यह सनस्‍ट्रोक से बचाते हैं। शहतूत का शरबत बनाकर पीने से कैंसर जैसी बीमारी दूर रहती है। इसको खाते रहने से पाचन शक्ति अच्छी रहती है। ये सर्दी-जुकाम में भी बेहद फायदेमंद है। शहतूत दिल के रोगियों के लिए भी बहुत फायदेमंद होता है। शहतूत का रस पीने से  कोलेस्‍ट्रॉल लेवल कंट्रोल में रहता है। लीवर से जुड़ी बीमारियों में राहत देने के लिए शहतूत काफी अच्छा है। किडनी के रोगी भी यदि इसका सेवन करें तो वे भी ठीक हो सकते हैं। यह एक बेहतरीन एनर्जी फूड माना जाता है। इसका सेवन करते रहने से शरीर की थकान दूर होती है।

शहतूत में ऐसे कई लाभदायक गुण हैं जो कई बीमारियों में वरदान साबित हो सकते हैं। उसमें पाए जाने वाले रेजवर्टेरोल के बारे में माना जाता है कि यह शरीर में फैले प्रदूषण को साफ  करके संक्रमित चीजों को बाहर निकालता है। शहतूत में एंटी एज यानी उम्र को रोकने वाला गुण होता है। साथ ही यह त्वचा को जवानी की तरह जवां बना देता है और झुर्रियों को चेहरे से गायब कर देता है। अगर आप भी झुर्रियों से परेशान हैं तो इसके  लिए आप शहतूत का जूस पीजिए। आपके चेहरे पर निखार आएगा और साथ ही त्वचा सुंदर हो जाएगी। 

शहतूत बालों में भी भूरापन लाता है, क्योंकि उसमें 79 प्रतिशत ज्यादा एंटीआक्सीडेंट पाया जाता है, जो बालों के लिए अच्छा होता है। शहतूत में रेजवर्टेरोल पाया जाता है जो स्वास्थ्य को लाभ पहुंचाता है। इतना ही नहीं, शहतूत में ऐसे कई गुण पाए जाते हैं, जैसे, आंखों की गड़बड़ी ठीक करना, लंग कैंसर और प्रोस्टेट कैंसर से बचा जा सकता है। मुहासों से परेशान लोगों के लिए तो यह रामबाण है। शहतूत की छाल और नीम की छाल को पीसकर मुहासे पर लगाने से जल्‍दी आराम मिलता है। गर्मियों में शहतूत के सेवन से लू लगने का खतरा कम हो जाता है।

शहतूत में विटामिन, कैल्शियम, फॉस्फोरस, आयरन, ग्लूकोज, मिनरल, फाइबर, फॉलिक एसिड आदि जैसे पौष्टिक तत्त्व होते हैं। ऐसे में यह कई रोगों से निजात दिलाने में कारगर है। उदर रोगों, मस्तिष्क रोगों, डायरिया, उल्टी, दस्त और कैंसर जैसी बीमारियों के दौरान अन्य फलों के अलावा शहतूत का सेवन करना भी बहुत कारगर है। इसमें शुगर की मात्रा लगभग 30 प्रतिशत होती है, इस कारण मधुमेह के मरीज भी इसका सेवन कर सकते हैं। शहतूत की पत्तियां और छाल भी सेहत के लिहाज से काफी उपयोगी हैं। गले की खराश और सूजन के दौरान शहतूत की छाल का काढ़ा बनाकर पीने से राहत मिलती है। दाद और एग्जिमा रोग में इसके पत्तों का लेप लगाने से राहत मिलती है। साथ ही पैर की बिवाइयों में शहतूत के बीजों की लुगदी लगाने से लाभ मिलता है।

शहतूत रोजाना खाने से दूध पिलाने वाली माताओं का दूध बढ़ता है। प्रोटीन और ग्लूकोज शहतूत में अच्छी मात्रा में मिलते हैं। शहतूत के पत्तों पर पानी डालकर, पीसकर, गर्म करके फोड़े पर बांधने से पका हुआ फोड़ा फट जाता है तथा घाव भी भर जाता है।  छाले और गल ग्रन्थिशोध में शहतूत का शर्बत 1 चम्मच 1 कप पानी में मिला कर गरारे करने से लाभ होता है। पित्त और रक्त-विकार को दूर करने के लिए गर्मी के समय दोपहर मे शहतूत खाने चाहिए। पेशाब का रंग पीला हो तो शहतूत के रस में चीनी मिलाकर पीने से रंग साफ हो जाता है। शहतूत के रस में कलमीशोरा को पीसकर नाभि के नीचे लेप करने से पेशाब मे धातु आना बंद हो जाती है।

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हनुमान जी ने नहीं, देवी के इस श्राप के कारण जलकर ख़ाक हो गई सोने की लंका

नई दिल्ली: लंका दहन की बात हो तो जेहन में झट से हनुमान जी का नाम आ जाता है। लेकिन आज हम आपको लंका दहन के बारे में कुछ ऐसा बताने जा रहे हैं, जो आपने शायद ही पहले कहीं सुना हो। जी हाँ आपको बता दें कि हनुमान ने नहीं बल्कि माता पार्वती के एक श्राप के कारण रावण की सोने की लंका जलकर भष्म हो गई।

पुराणों में उल्लेख है कि एक बार भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी भ्रमण के लिए कैलाश पर्वत पहुँचे। दोनों को आता देख भगवान शिव विह्वल हो उठे। उन्होंने अपने कमर पर लिपटे गजचर्म को अपने सर्प से कमरबंद की भाँति लपेट लिया। नजदीक आते ही भगवान शिव ने विष्णु को गले से लगा लिया। परंतु गरूड़ को देखकर शिव-सर्प संकुचित हो गया जिससे उनकी कमरबंद खिसक गई और भगवान भोलेनाथ नग्न हो गए।
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भगवान शिव को नग्न अवस्था में देख लक्ष्मी और पार्वती बड़ी लज्जित हुई और सिर झुकाकर खड़ी हो गई। स्थिति सामान्य होते ही शिव विष्णु से और लक्ष्मी पार्वती से बातें करने लगी। उस दौरान लक्ष्मी शीत से ठिठुर रही थी। जब उनसे न रहा गया तो उन्होंने पार्वती से कहा कि आप राजकुमारी होते हुए भी इस हिम-पर्वत पर इतने ठंड में कैसे रह रहीं हैं? खैर यह बात यही पर समाप्त हो गई और अन्य बातें शुरू हो गईं।

कुछ दिन बीतने के बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के निमंत्रण पर भगवान शिव और पार्वती बैकुण्ठ गए। वहाँ मोतियों की माला और अन्य वैभव देख पार्वती चकित हुए बिना न रह सकी। बातचीत के दौरान लक्ष्मी जी ने पुनः कैलाश पर शीत से ठिठुरने वाली घटना का ज़िक्र कर दिया। लक्ष्मी की बात को व्यंग्य समझ माता पार्वती आहत हो गई और भगवान शिव से अपने लिए भी घर बनाने की ज़िद करने लगी। उसके पश्चात शिव ने विश्वकर्मा को सुवर्ण जड़ित दिव्य भवन निर्मित करने को कहा। विश्वकर्मा ने शीघ्र ही लंका नगर की रचना की जो शुद्ध सोने से बनी थी। पार्वती के निवेदन पर उस नगर का प्रतिष्ठा महोत्सव मनाया गया जिसमें समस्त देवी देवताओं को बुलाया गया।

विश्रवा नामक महर्षि ने उस नगर की वास्तुप्रतिष्ठा की। पार्वती ने लक्ष्मी को अपना भवन विशेष चाव से दिखाया। लेकिन जब भगवान शिव ने महर्षि विश्रवा से दक्षिणा माँगने को कहा तो उन्होंने वो नगरी ही माँग ली। शिव ने तत्काल ही स्वर्णनगरी उन्हें दक्षिणा में दे दी। इससे पार्वती बड़ी क्रोधित हुई और उन्होंने विश्रवा को श्राप देते हुए कहा कि तेरी यह नगरी भस्म हो जाएगी। पार्वती के श्राप के कारण ही रावण द्वारा रक्षित वह लंका हनुमान ने फूँक डाली थी।

कहां गायब हो जाता है पातालगंगा का पानी, एक बड़ा रहस्य

स्वर्गलोक, मृत्युलोक और पाताललोक के बारे में तो सभी ने सुना होगा। पातालगंगा इस नाम से तो आप भलि-भांति परीचित होंगे। लेकिन क्या आप इसके अजीबो गरीब रहस्यों के बारे में जानते हैं? आंध्र प्रदेश राज्य में एक गुफा स्थित है। कहा जाता है कि इस गुफा के नीचे से पातालगंगा बहती है। इसके बारे में बड़ी अजीब बात यह है कि आज तक किसी को ये नहीं पता लग पाया है कि वह पानी जाता कहां है।

आंध प्रदेश में स्थित कुरनूल शहर से लगभग 106 किमी की दूरी पर स्थित इस प्राचीन गुफा का नाम बेलम है। सर्वेयर रॉबर्ट ब्रुस नामक एक ब्रिटिश ने इस गुफा की खोज सन् 1884 में की थी। करीब 3229 मीटर लंबी इस गुफा के 150 फीट नीचे से पातालगंगा बहती है। लेकिन क्या आपको पता है कि यह पानी केवल कुछ दूर तक ही दिखाई देता है और आगे जाकर गायब हो जाता है। हालांकि यह पानी आगे जाकर कहां गायब हो जाता है ये बात आज भी एक बड़ा रहस्य है।

पुरातात्विक विशेषज्ञों का मानना है कि हजारों वर्ष पूर्व गुफा के नीचे बहने वाले पानी का फ्लो बहुत तेज होगा इसी कारण इस गुफा का निर्माण हुआ होगा। यह अंदाजा इसलिए लगाया जा रहा है क्योंकि आज भी गुफा के अंदर ऐसे कई चट्टान मौजूद हैं जिनसे पानी गिरता है। इसके अलावा इन गुफाओं में बौद्ध और जैन भिक्षुओं से संबंधित अवशेष मिले हैं जिन्हें म्यूजियम में सुरक्षित रखा गया है।

महाभारत की इन राजकुमारियों ने भी बनाया था अनैतिक सम्बन्ध, वजह जानकार रह जाएंगे हैरान

पौराणिक महाकाव्य महाभारत के बारे में जानता तो हर कोई है। यह एक ऐसा शास्‍त्र है जिसके बारे में सबसे ज्‍यादा चर्चा और बातें की जाती है और इस काव्‍य में कई रहस्‍य है जिनके बारे में आजतक सही-सही पता नहीं लग पाया है या फिर बहुत कम लोगों को ही पता है। उदाहरण के लिए राजकुमारियों ने बनाया था बनाना पड़ा अनैतिक संबंध- मतलब पति के होने के बावजूद इन रानी व पटरानियों ने किसी अन्य के साथ यौन सम्बन्ध बनाकर बच्चों को जन्म दिया।

मत्स्यगंधा जो कि महाभारत की एक प्रमुख पात्र हैं। मत्स्यगंधा बाद में सत्यवती के नाम से जानी गई। सत्यवती बहुत सुन्दर थी, इसी कारण शांतनु उनके रूप पर मोहित हो गए और विवाह कर लिया। विवाह के पश्चात दो पुत्र हुए चित्रांगद और विचित्रवीर्य। सत्यवती के पास एक तीसरा पुत्र भी था जिनका नाम व्यास था। जो बाद में महर्षि व्यास के नाम से जाने गए। सत्यवती ने व्यास को तब जन्म दिया जब वह कुमारी थी। महर्षि व्यास के पिता का नाम ऋषि पराशर था।

महर्षि व्यास ने सत्यवती से जब कहा कि एक राजकुमारी का पुत्र अंधा और दूसरी राजकुमारी का पुत्र रोगी होगा तो सत्यवती ने व्यास से एक बार और राजकुमारियों को व्यास के पास भेजना चाहा, लेकिन राजकुमारियां डर गई थी इसलिए उन्होंने अपनी दासी को व्यास के पास भेज दिया। दासी ने व्यास से गर्भधारण किया जिससे स्वस्थ और ज्ञानी पुत्र विदुर का जन्म हुआ।

सत्यवती के पुत्र चित्रांगद और विचित्रवीर्य का विवाह अंबिका और अंबालिका से हुआ, परन्तु विवाह के कुछ ही दिनों बाद चित्रांगद और विचित्रवीर्य की मृत्यु हो गई। भीष्म ने आजीवन विवाह नहीं करने की प्रतिज्ञा की थी। अपनी वंश-रेखा को मिटते देख सत्यवती ने इन दोनों राजकुमारियों को अपने तीसरे पुत्र व्यास से संतान उत्पन्न करने के लिए कहा। सत्यवती की आज्ञा से इन दोनों राजकुमारियों ने महर्षि व्यास से गर्भ धारण किया जिससे धृतराष्ट्र और पाण्डु का जन्म हुआ।

कुंती के नाम से तो हर कोई वाकिफ है। राजकुमारी कुंती की जो बाद में महाराज पांडु की पत्नी और कुरूवंश की महारानी बनी। एक ऋषि के शाप से पांडु की कोई संतान नहीं थी। तब पांडु की आज्ञा से कुंती ने, पवनदेव और इंद्र से गर्भ धारण किया और तीन पुत्रों को जन्म दिया जो युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन कहलाए। पांड़ु की एक अन्य पत्नी थी मादरी। पांड़ु की आज्ञा से इन्होंने अश्विनी कुमारों का आह्वान किया और उनसे नकुल और सहदेव को जन्म दिया।

वर्ष 2017 के व्रत, पर्व व त्यौहार


नववर्ष 2017 के आगमन में अब कुछ ही माह शेष रह गये है। इसलिए हम आपके लिए वर्ष 2017 के व्रत, पर्व और त्यौहार की सूची लाए हैं–

वर्ष 2017, 2017 के पर्व, 2017 के त्यौहार, साल 2017

जनवरी माह
01 जनवरी (रविवार) – अंग्रेज़ी नव वर्ष
02 जनवरी (सोमवार) – विनायक चतुर्थी
03 जनवरी (मंगलवार) – स्कन्द षष्ठी
05 जनवरी (बृहस्पतिवार) – गुरु गोबिन्द सिंह जयन्ती
06 जनवरी (शुक्रवार) – मासिक दुर्गाष्टमी, शाकम्भरी उत्सवारम्भ
08 जनवरी (रविवार) – पौष पुत्रदा एकादशी, तैलंग स्वामी जयन्ती, मासिक कार्तिगाई
09 जनवरी (सोमवार) – गौण पौष पुत्रदा एकादशी, वैष्णव पौष पुत्रदा एकादशी, कूर्म द्वादशी
10 जनवरी (मंगलवार) – प्रदोष व्रत, रोहिणी व्रत
11 जनवरी (बुधवार) – अरुद्र दर्शन
12 जनवरी (बृहस्पतिवार) – पौष पूर्णिमा, शाकम्भरी पूर्णिमा, पूर्णिमा उपवास
13 जनवरी (शुक्रवार) – माघ प्रारम्भ "उत्तर, लोहड़ी
14 जनवरी (शनिवार) – पोंगल, मकर संक्रान्ति
15 जनवरी (रविवार) – संकष्टी चतुर्थी, सकट चौथ, माघ बिहु
19 जनवरी (बृहस्पतिवार) – स्वामी विवेकानन्द जयन्ती, कालाष्टमी
23 जनवरी (सोमवार) – षटतिला एकादशी, सुभाष चन्द्र बोस जयन्ती
25 जनवरी (बुधवार) – प्रदोष व्रत, मेरु त्रयोदशी
26 जनवरी (बृहस्पतिवार) – मासिक शिवरात्रि, 68 वाँ गणतन्त्र दिवस
27 जनवरी (शुक्रवार) – माघ अमावस्या, दर्श अमावस्या, मौनी अमावस, थाई अमावसाइ
28 जनवरी (शनिवार) – गुप्त नवरात्रि प्रारम्भ
29 जनवरी (रविवार) – चन्द्र दर्शन
31 जनवरी (मंगलवार) – विनायक चतुर्थी, गणेश जयन्ती

Read in English : Indian Festivals 2017 with Holidays List

फरवरी माह
01 फरवरी (बुधवार) – वसन्त पञ्चमी
02 फरवरी (बृहस्पतिवार) – स्कन्द षष्ठी
03 फरवरी (शुक्रवार) – रथ सप्तमी, नर्मदा जयन्ती
04 फरवरी (शनिवार) – भीष्म अष्टमी, मासिक दुर्गाष्टमी
05 फरवरी (रविवार) – मासिक कार्तिगाई
06 फरवरी (सोमवार) – रोहिणी व्रत
07 फरवरी (मंगलवार) – जया एकादशी, भीष्म द्वादशी
08 फरवरी (बुधवार) – प्रदोष व्रत
10 फरवरी (शुक्रवार) – माघ पूर्णिमा, चन्द्र ग्रहण, पूर्णिमा उपवास, गुरु रविदास जयन्ती, ललिता जयन्ती, थाई पूसम
11 फरवरी (शनिवार) – फाल्गुन प्रारम्भ "उत्तर
12 फरवरी (रविवार) – कुम्भ संक्रान्ति
14 फरवरी (मंगलवार) – संकष्टी चतुर्थी, संत वेलेनटाइन डे
17 फरवरी (शुक्रवार) – यशोदा जयन्ती
18 फरवरी (शनिवार) – शबरी जयन्ती, कालाष्टमी
19 फरवरी (रविवार) – जानकी जयन्ती
21 फरवरी (मंगलवार) – महर्षि दयानन्द सरस्वती जयन्ती
22 फरवरी (बुधवार) – विजया एकादशी
24 फरवरी (शुक्रवार) – प्रदोष व्रत
25 फरवरी (शनिवार) – महाशिवरात्री
26 फरवरी (रविवार) – फाल्गुन अमावस्या, दर्श अमावस्या, सूर्य ग्रहण
27 फरवरी (सोमवार) – चन्द्र दर्शन
28 फरवरी (मंगलवार) – फुलैरा दूज, रामकृष्ण जयन्ती

मार्च माह
02 मार्च (बृहस्पतिवार) – विनायक चतुर्थी
03 मार्च (शुक्रवार) – स्कन्द षष्ठी
04 मार्च (शनिवार) – अष्टाह्निका विधान प्रारम्भ, मासिक कार्तिगाई
05 मार्च (रविवार) – मासिक दुर्गाष्टमी, रोहिणी व्रत
08 मार्च (बुधवार) – आमलकी एकादशी
09 मार्च (बृहस्पतिवार) – नरसिंह द्वादशी
10 मार्च (शुक्रवार) – प्रदोष व्रत
11 मार्च (शनिवार) – चौमासी चौदस, मासी मागम
12 मार्च (रविवार) – छोटी होली, होलिका दहन, वसन्त पूर्णिमा, दोल पूर्णिमा, पूर्णिमा उपवास, अष्टाह्निका विधान पूर्ण, फाल्गुन पूर्णिमा, लक्ष्मी जयन्ती, चैतन्य महाप्रभु जयन्ती, अट्टुकल पोंगल
13 मार्च (सोमवार) – होली, चैत्र प्रारम्भ "उत्तर
14 मार्च (मंगलवार) – भाई दूज, भ्रातृ द्वितीया, मीन संक्रान्ति, कारादाइयन नौम्बू
15 मार्च (बुधवार) – शिवाजी जयन्ती
16 मार्च (बृहस्पतिवार) – संकष्टी चतुर्थी
17 मार्च (शुक्रवार) – रंग पञ्चमी
19 मार्च (रविवार) – भानु सप्तमी, शीतला सप्तमी
20 मार्च (सोमवार) – बसोड़ा, शीतला अष्टमी, कालाष्टमी, वसन्त सम्पात
21 मार्च (मंगलवार) – वर्षी तप आरम्भ
24 मार्च (शुक्रवार) – पापमोचिनी एकादशी
25 मार्च (शनिवार) – प्रदोष व्रत, शनि त्रयोदशी
26 मार्च (रविवार) – मासिक शिवरात्रि
27 मार्च (सोमवार) – दर्श अमावस्या
28 मार्च (मंगलवार) – चैत्र अमावस्या, चैत्र नवरात्रि, गुड़ी पड़वा, युगादी
29 मार्च (बुधवार) – चन्द्र दर्शन, झूलेलाल जयन्ती
30 मार्च (बृहस्पतिवार) – गौरीपूजा, गणगौर, मत्स्य जयन्ती
31 मार्च (शुक्रवार) – विनायक चतुर्थी

अप्रैल माह
01 अप्रैल (शनिवार) – लक्ष्मी पञ्चमी, स्कन्द षष्ठी, बैंक अवकाश, रोहिणी व्रत
02 अप्रैल (रविवार) – यमुना छठ
03 अप्रैल (सोमवार) – नवपद ओली प्रारम्भ
04 अप्रैल (मंगलवार) – मासिक दुर्गाष्टमी, महातारा जयन्ती
05 अप्रैल (बुधवार) – राम नवमी
07 अप्रैल (शुक्रवार) – कामदा एकादशी, वामन द्वादशी
08 अप्रैल (शनिवार) – प्रदोष व्रत, शनि त्रयोदशी
09 अप्रैल (रविवार) – महावीर स्वामी जयन्ती, पैन्गुनी उथिरम
10 अप्रैल (सोमवार) – पूर्णिमा उपवास, हजरत अली का जन्मदिन
11 अप्रैल (मंगलवार) – हनुमान जयन्ती, चैत्र पूर्णिमा, नवपद ओली पूर्ण
12 अप्रैल (बुधवार) – वैशाख प्रारम्भ "उत्तर
14 अप्रैल (शुक्रवार) – संकष्टी चतुर्थी, सोलर नववर्ष, मेष संक्रान्ति, बैसाखी, पुथन्डू, विषु कानी, अम्बेडकर जयन्ती, गुड फ्राइडे
15 अप्रैल (शनिवार) – पहेला वैशाख
16 अप्रैल (रविवार) – ईस्टर
19 अप्रैल (बुधवार) – कालाष्टमी
22 अप्रैल (शनिवार) – बरूथिनी एकादशी, वल्लभाचार्य जयन्ती
23 अप्रैल (रविवार) – वैष्णव बरूथिनी एकादशी
24 अप्रैल (सोमवार) – प्रदोष व्रत, मासिक शिवरात्रि
26 अप्रैल (बुधवार) – वैशाख अमावस्या, दर्श अमावस्या
27 अप्रैल (बृहस्पतिवार) – चन्द्र दर्शन
28 अप्रैल (शुक्रवार) – परशुराम जयन्ती, अक्षय तृतीया, वर्षी तप पारण
29 अप्रैल (शनिवार) – मातङ्गी जयन्ती, विनायक चतुर्थी, रोहिणी व्रत
30 अप्रैल (रविवार) – शंकराचार्य जयन्ती, सूरदास जयन्ती

मई माह
01 मई (सोमवार) – स्कन्द षष्ठी, रामानुज जयन्ती
02 मई (मंगलवार) – गंगा सप्तमी
03 मई (बुधवार) – मासिक दुर्गाष्टमी, बगलामुखी जयन्ती
04 मई (बृहस्पतिवार) – सीता नवमी, अग्नि नक्षत्रम् प्रारम्भ
05 मई (शुक्रवार) – महावीर स्वामी कैवल्य ज्ञान, थ्रिस्सूर पूरम
06 मई (शनिवार) – मोहिनी एकादशी
07 मई (रविवार) – परशुराम द्वादशी, रबीन्द्रनाथ टैगोर जयन्ती
08 मई (सोमवार) – प्रदोष व्रत
09 मई (मंगलवार) – नरसिंघ जयन्ती, छिन्नमस्ता जयन्ती, टैगोर जयन्ती "बंगाल
10 मई (बुधवार) – वैशाख पूर्णिमा, कूर्म जयन्ती, बुद्ध पूर्णिमा, पूर्णिमा उपवास, चित्रा पूर्णनामी
11 मई (बृहस्पतिवार) – ज्येष्ठ प्रारम्भ "उत्तर, नारद जयन्ती
14 मई (रविवार) – संकष्टी चतुर्थी, वृषभ संक्रान्ति
18 मई (बृहस्पतिवार) – कालाष्टमी
21 मई (रविवार) – हनुमान जयन्ती "तेलुगू
22 मई (सोमवार) – अपरा एकादशी
23 मई (मंगलवार) – प्रदोष व्रत
24 मई (बुधवार) – मासिक शिवरात्रि
25 मई (बृहस्पतिवार) – ज्येष्ठ अमावस्या, दर्श-भावुका अमावस्या, शनि जयन्ती, वट सावित्री व्रत
26 मई (शुक्रवार) – रोहिणी व्रत
27 मई (शनिवार) – चन्द्र दर्शन
28 मई (रविवार) – महाराणा प्रताप जयन्ती, अग्नि नक्षत्रम् समाप्त
29 मई (सोमवार) – विनायक चतुर्थी
30 मई (मंगलवार) – स्कन्द षष्ठी

जून माह
02 जून (शुक्रवार) – मासिक दुर्गाष्टमी, धूमावती जयन्ती
03 जून (शनिवार) – महेश नवमी, गंगा दशहरा
05 जून (सोमवार) – गायत्री जयन्ती, निर्जला एकादशी, रामलक्ष्मण द्वादशी
06 जून (मंगलवार) – प्रदोष व्रत
07 जून (बुधवार) – वैकासी विसाकम
08 जून (बृहस्पतिवार) – वट पूर्णिमा व्रत
09 जून (शुक्रवार) – ज्येष्ठ पूर्णिमा, पूर्णिमा उपवास, कबीरदास जयन्ती
10 जून (शनिवार) – आषाढ़ प्रारम्भ "उत्तर
13 जून (मंगलवार) – संकष्टी चतुर्थी
15 जून (बृहस्पतिवार) – मिथुन संक्रान्ति
17 जून (शनिवार) – कालाष्टमी
20 जून (मंगलवार) – योगिनी एकादशी
21 जून (बुधवार) – प्रदोष व्रत, साल का सबसे बड़ा दिन
22 जून (बृहस्पतिवार) – मासिक शिवरात्रि
23 जून (शुक्रवार) – दर्श अमावस्या, जमात उल-विदा, रोहिणी व्रत
24 जून (शनिवार) – आषाढ़ अमावस्या, गुप्त नवरात्रि प्रारम्भ
25 जून (रविवार) – चन्द्र दर्शन, जगन्नाथ रथयात्रा
26 जून (सोमवार) – ईद उल-फ़ित्र, रमज़ान
27 जून (मंगलवार) – विनायक चतुर्थी
28 जून (बुधवार) – स्कन्द षष्ठी
30 जून (शुक्रवार) – अष्टाह्निका विधान प्रारम्भ

जुलाई माह
01 जुलाई (शनिवार) – मासिक दुर्गाष्टमी
04 जुलाई (मंगलवार) – देवशयनी एकादशी
05 जुलाई (बुधवार) – गौरी व्रत प्रारम्भ "गुजरात, वासुदेव द्वादशी
06 जुलाई (बृहस्पतिवार) – प्रदोष व्रत, जयापार्वती व्रत प्रारम्भ
07 जुलाई (शुक्रवार) – चौमासी चौदस
08 जुलाई (शनिवार) – कोकिला व्रत "गुजरात, पूर्णिमा उपवास
09 जुलाई (रविवार) – व्यास पूजा, आषाढ़ पूर्णिमा, गुरु पूर्णिमा, गौरी व्रत समाप्त "गुजरात, अष्टाह्निका विधान पूर्ण
10 जुलाई (सोमवार) – सावन प्रारम्भ "उत्तर, श्रावण सोमवार व्रत "उत्तर
11 जुलाई (मंगलवार) – मंगला गौरी व्रत "उत्तर
12 जुलाई (बुधवार) – जयापार्वती व्रत समाप्त, संकष्टी चतुर्थी
16 जुलाई (रविवार) – भानु सप्तमी, कालाष्टमी, कर्क संक्रान्ति
17 जुलाई (सोमवार) – श्रावण सोमवार व्रत "उत्तर
18 जुलाई (मंगलवार) – मंगला गौरी व्रत "उत्तर
19 जुलाई (बुधवार) – कामिका एकादशी, मासिक कार्तिगाई
20 जुलाई (बृहस्पतिवार) – गौण कामिका एकादशी, वैष्णव कामिका एकादशी, रोहिणी व्रत
21 जुलाई (शुक्रवार) – प्रदोष व्रत, सावन शिवरात्रि
23 जुलाई (रविवार) – श्रावण अमावस्या, दर्श अमावस्या, हरियाली अमावस्या, आदि अमावसाइ
24 जुलाई (सोमवार) – चन्द्र दर्शन, श्रावण सोमवार व्रत
25 जुलाई (मंगलवार) – मंगला गौरी व्रत
26 जुलाई (बुधवार) – हरियाली तीज, विनायक चतुर्थी, अन्दल जयन्थी
27 जुलाई (बृहस्पतिवार) – नाग पञ्चमी
28 जुलाई (शुक्रवार) – कल्की जयन्ती, स्कन्द षष्ठी, ऋग्वेद उपाकर्म, यजुर्वेद उपाकर्म
29 जुलाई (शनिवार) – गायत्री जापम
30 जुलाई (रविवार) – भानु सप्तमी, तुलसीदास जयन्ती
31 जुलाई (सोमवार) – मासिक दुर्गाष्टमी, श्रावण सोमवार व्रत

अगस्त माह
01 अगस्त (मंगलवार) – मंगला गौरी व्रत
02 अगस्त (बुधवार) – आदि पेरुक्कू
03 अगस्त (बृहस्पतिवार) – श्रावण पुत्रदा एकादशी, दामोदर द्वादशी
04 अगस्त (शुक्रवार) – प्रदोष व्रत, वरलक्ष्मी व्रत
07 अगस्त (सोमवार) – श्रावण पूर्णिमा, राखी, रक्षा बन्धन, गायत्री जयन्ती, नारली पूर्णिमा, चन्द्र ग्रहण,पूर्णिमा उपवास, हयग्रीव जयन्ती, संस्कृत दिवस, श्रावण सोमवार व्रत
08 अगस्त (मंगलवार) – भाद्रपद प्रारम्भ "उत्तर
10 अगस्त (बृहस्पतिवार) – कजरी तीज
11 अगस्त (शुक्रवार) – संकष्टी चतुर्थी, संकटहरा चतुर्थी "तमिल, बोल चौथ "गुजरात
12 अगस्त (शनिवार) – नाग पञ्चम "गुजरात
13 अगस्त (रविवार) – बलराम जयन्ती, रांधण छठ "गुजरात
14 अगस्त (सोमवार) – शीतला सातम "गुजरात, जन्माष्टमी "स्मार्त, कालाष्टमी, आद्याकाली जयन्ती
15 अगस्त (मंगलवार) – जन्माष्टमी "इस्कॉन, दही हाण्डी, मासिक कार्तिगाई, स्वतन्त्रता दिवस
16 अगस्त (बुधवार) – रोहिणी व्रत
17 अगस्त (बृहस्पतिवार) – सिंह संक्रान्ति, मलयालम नव वर्ष
18 अगस्त (शुक्रवार) – अजा एकादशी
19 अगस्त (शनिवार) – पर्यूषण पर्वारम्भ, प्रदोष व्रत, शनि त्रयोदशी
20 अगस्त (रविवार) – मासिक शिवरात्रि
21 अगस्त (सोमवार) – भाद्रपद अमावस्या, दर्श अमावस्या, पिठोरी अमावस्या, पोला, वृषभोत्सव,सोमवती अमावस, सूर्य ग्रहण
23 अगस्त (बुधवार) – चन्द्र दर्शन
24 अगस्त (बृहस्पतिवार) – वराह जयन्ती, हरतालिका तीज, गौरी हब्बा
25 अगस्त (शुक्रवार) – सामवेद उपाकर्म, गणेश चतुर्थी
26 अगस्त (शनिवार) – ऋषि पञ्चमी, सम्वत्सरी पर्व
27 अगस्त (रविवार) – स्कन्द षष्ठी
28 अगस्त (सोमवार) – ललिता सप्तमी
29 अगस्त (मंगलवार) – गौरी आवाहन, राधा अष्टमी, मासिक दुर्गाष्टमी, महालक्ष्मी व्रत आरम्भ, दूर्वा अष्टमी
30 अगस्त (बुधवार) – गौरी पूजा
31 अगस्त (बृहस्पतिवार) – गौरी विसर्जन

सितम्बर माह
02 सितम्बर (शनिवार) – परिवर्तिनी एकादशी, कल्की द्वादशी, ईद-उल-जुहा, बकरीद
03 सितम्बर (रविवार) – वामन जयन्ती, भुवनेश्वरी जयन्ती, प्रदोष व्रत
04 सितम्बर (सोमवार) – ओणम
05 सितम्बर (मंगलवार) – अनन्त चतुर्दशी, गणेश विसर्जन, पूर्णिमा उपवास, पूर्णिमा श्राद्ध
06 सितम्बर (बुधवार) – भाद्रपद पूर्णिमा, प्रतिपदा श्राद्ध
07 सितम्बर (बृहस्पतिवार) – आश्विन प्रारम्भ "उत्तर, द्वितीया श्राद्ध
08 सितम्बर (शुक्रवार) – तृतीया श्राद्ध
09 सितम्बर (शनिवार) – चतुर्थी श्राद्ध, संकष्टी चतुर्थी
10 सितम्बर (रविवार) – महा भरणी, पञ्चमी श्राद्ध
11 सितम्बर (सोमवार) – षष्ठी श्राद्ध, मासिक कार्तिगाई
12 सितम्बर (मंगलवार) – सप्तमी श्राद्ध, महालक्ष्मी व्रत पूर्ण, रोहिणी व्रत
13 सितम्बर (बुधवार) – अष्टमी श्राद्ध, जीवितपुत्रिका व्रत, कालाष्टमी, अष्टमी रोहिणी
14 सितम्बर (बृहस्पतिवार) – नवमी श्राद्ध
15 सितम्बर (शुक्रवार) – दशमी श्राद्ध
16 सितम्बर (शनिवार) – इन्दिरा एकादशी, एकादशी श्राद्ध
17 सितम्बर (रविवार) – द्वादशी श्राद्ध, त्रयोदशी श्राद्ध, प्रदोष व्रत, कन्या संक्रान्ति, विश्वकर्मा पूजा
18 सितम्बर (सोमवार) – मघा श्राद्ध, चतुर्दशी श्राद्ध, मासिक शिवरात्रि
19 सितम्बर (मंगलवार) – सर्वपित्री दर्श अमावस्या, सर्वपित्रू अमावस्या
20 सितम्बर (बुधवार) – अश्विन अमावस्या
21 सितम्बर (बृहस्पतिवार) – चन्द्र दर्शन, नवरात्रि प्रारम्भ, घटस्थापना, महाराजा अग्रसेन जयन्ती
22 सितम्बर (शुक्रवार) – अल-हिजरा, इस्लामी नया साल
23 सितम्बर (शनिवार) – विनायक चतुर्थी, शरद्कालीन सम्पात
24 सितम्बर (रविवार) – ललिता पञ्चमी
25 सितम्बर (सोमवार) – स्कन्द षष्ठी
26 सितम्बर (मंगलवार) – बिल्व निमन्त्रण, कल्पारम्भ, अकाल बोधन
27 सितम्बर (बुधवार) – सरस्वती आवाहन, नवपत्रिका पूजा, नवपद ओली प्रारम्भ
28 सितम्बर (बृहस्पतिवार) – सरस्वती पूजा, दुर्गा अष्टमी, सन्धि पूजा
29 सितम्बर (शुक्रवार) – महा नवमी, दुर्गा बलिदान, आयुध पूजा, दक्षिण सरस्वती पूजा, बंगाल महा नवमी
30 सितम्बर (शनिवार) – सरस्वती बलिदान, सरस्वती विसर्जन, दुर्गा विसर्जन, दशहरा, विजयदशमी, बंगाल विजयदशमी, मैसूर दसरा, विद्याआरम्भम् का दिन, बुद्ध जयन्ती, मध्वाचार्य जयन्ती

अक्टूबर माह
01 अक्टूबर (रविवार) – पापांकुशा एकादशी, अशुरा का दिन, मुहर्रम
02 अक्टूबर (सोमवार) – पद्मनाभ द्वादशी, गाँधी जयन्ती
03 अक्टूबर (मंगलवार) – प्रदोष व्रत
05 अक्टूबर (बृहस्पतिवार) – अश्विन पूर्णिमा, कोजागर पूजा, शरद पूर्णिमा, पूर्णिमा उपवास, वाल्मीकि जयन्ती, मीराबाई जयन्ती, नवपद ओली पूर्ण
06 अक्टूबर (शुक्रवार) – कार्तिक प्रारम्भ "उत्तर
08 अक्टूबर (रविवार) – अट्ल तद्दी, करवा चौथ, संकष्टी चतुर्थी, मासिक कार्तिगाई
10 अक्टूबर (मंगलवार) – रोहिणी व्रत
12 अक्टूबर (बृहस्पतिवार) – अहोई अष्टमी, राधा कुण्ड स्नान, कालाष्टमी
15 अक्टूबर (रविवार) – रमा एकादशी
16 अक्टूबर (सोमवार) – गोवत्स द्वादशी
17 अक्टूबर (मंगलवार) – धन तेरस, यम पञ्चक प्रारम्भ, यम दीपम, प्रदोष व्रत, तुला संक्रान्ति
18 अक्टूबर (बुधवार) – नरक चतुर्दशी, तमिल दीपावली, काली चौदस, हनुमान पूजा, मासिक शिवरात्रि
19 अक्टूबर (बृहस्पतिवार) – दीवाली, लक्ष्मी पूजा, दीपमालिका, केदार गौरी व्रत, चोपड़ा पूजा, शारदा पूजा, काली पूजा, कमला जयन्ती, कार्तिक अमावस्या, दर्श अमावस्या
20 अक्टूबर (शुक्रवार) – गोवर्धन पूजा, अन्नकूट, बलि प्रतिपदा, द्यूत क्रीडा, नव सम्वत प्रारम्भ
21 अक्टूबर (शनिवार) – चन्द्र दर्शन, भैया दूज, यम द्वितीया
23 अक्टूबर (सोमवार) – नागुला चविति "तेलुगू, विनायक चतुर्थी
25 अक्टूबर (बुधवार) – लाभ पञ्चमी, सूर सम्हारम
26 अक्टूबर (बृहस्पतिवार) – छट पूजा
27 अक्टूबर (शुक्रवार) – अष्टाह्निका विधान प्रारम्भ
28 अक्टूबर (शनिवार) – गोपाष्टमी, मासिक दुर्गाष्टमी
29 अक्टूबर (रविवार) – अक्षय नवमी, जगद्धात्री पूजा
30 अक्टूबर (सोमवार) – कंस वध
31 अक्टूबर (मंगलवार) – देवुत्थान एकादशी, भीष्म पञ्चक प्रारम्भ

नवम्बर माह
01 नवम्बर (बुधवार) – तुलसी विवाह, योगेश्वर द्वादशी, प्रदोष व्रत
02 नवम्बर (बृहस्पतिवार) – वैकुण्ठ चतुर्दशी, विश्वेश्वर व्रत
03 नवम्बर (शुक्रवार) – मणिकर्णिका स्नान, चौमासी चौदस, देव दीवाली
04 नवम्बर (शनिवार) – कार्तिक पूर्णिमा, पुष्कर स्नान, पूर्णिमा उपवास, गुरु नानक जयन्ती, भीष्म पञ्चक समाप्त, अष्टाह्निका विधान पूर्ण, रथ यात्रा
05 नवम्बर (रविवार) – मार्गशीर्ष प्रारम्भ "उत्तर, मासिक कार्तिगाई
06 नवम्बर (सोमवार) – रोहिणी व्रत
07 नवम्बर (मंगलवार) – संकष्टी चतुर्थी
10 नवम्बर (शुक्रवार) – कालभैरव जयन्ती
14 नवम्बर (मंगलवार) – उत्पन्ना एकादशी, नेहरू जयन्ती
15 नवम्बर (बुधवार) – प्रदोष व्रत, अयप्पा उत्सव (15 नवम्बर से 14 जनवरी तक)
16 नवम्बर (बृहस्पतिवार) – मासिक शिवरात्रि, वृश्चिक संक्रान्ति, मण्डला काल प्रारम्भ
18 नवम्बर (शनिवार) – मार्गशीर्ष अमावस्या, दर्श अमावस्या
19 नवम्बर (रविवार) – चन्द्र दर्शन
22 नवम्बर (बुधवार) – विनायक चतुर्थी
23 नवम्बर (बृहस्पतिवार) – विवाह पञ्चमी, नाग पञ्चमी "तेलुगू
24 नवम्बर (शुक्रवार) – सुब्रहमन्य षष्ठी, चम्पा षष्ठी
26 नवम्बर (रविवार) – भानु सप्तमी
27 नवम्बर (सोमवार) – मासिक दुर्गाष्टमी
30 नवम्बर (बृहस्पतिवार) – मोक्षदा एकादशी, गीता जयन्ती, मत्स्य द्वादशी, गुरुवायुर एकादशी

दिसम्बर
01 दिसम्बर (शुक्रवार) – प्रदोष व्रत, हनुमान जयन्ती "कन्नड़, मिलाद उन-नबी, ईद-ए-मिलाद
02 दिसम्बर (शनिवार) – कार्तिगाई दीपम्
03 दिसम्बर (रविवार) – मार्गशीर्ष पूर्णिमा, दत्तात्रेय जयन्ती, पूर्णिमा उपवास, अन्नपूर्णा जयन्ती, त्रिपुर भैरवी जयन्ती, रोहिणी व्रत
04 दिसम्बर (सोमवार) – पौष प्रारम्भ "उत्तर
06 दिसम्बर (बुधवार) – संकष्टी चतुर्थी
10 दिसम्बर (रविवार) – कालाष्टमी
13 दिसम्बर (बुधवार) – सफला एकादशी
15 दिसम्बर (शुक्रवार) – प्रदोष व्रत
16 दिसम्बर (शनिवार) – मासिक शिवरात्रि, धनु संक्रान्ति
17 दिसम्बर (रविवार) – दर्शवेला अमावस्या
18 दिसम्बर (सोमवार) – पौष अमावस्या, सोमवती अमावस, हनुमथ जयन्थी
19 दिसम्बर (मंगलवार) – चन्द्र दर्शन
21 दिसम्बर (बृहस्पतिवार) – साल का सबसे छोटा दिन
22 दिसम्बर (शुक्रवार) – विनायक चतुर्थी
24 दिसम्बर (रविवार) – स्कन्द षष्ठी
25 दिसम्बर (सोमवार) – गुरु गोबिन्द सिंह जयन्ती, मेरी क्रिसमस
26 दिसम्बर (मंगलवार) – मासिक दुर्गाष्टमी, शाकम्भरी उत्सवारम्भ, मण्डला पूजा
29 दिसम्बर (शुक्रवार) – पौष पुत्रदा एकादशी, तैलंग स्वामी जयन्ती, वैकुण्ठ एकादशी
30 दिसम्बर (शनिवार) – कूर्म द्वादशी, प्रदोष व्रत, शनि त्रयोदशी
31 दिसम्बर (रविवार) – रोहिणी व्रत -

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इस मंदिर के बारे में सुनकर रह जायेंगे हैरान


भगवान शिव को सभी विद्याओं के ज्ञाता होने के कारण जगत गुरु भी कहा गया है। भोले शंकर की आराधना से सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं। शिव की आराधना किसी भी रूप में की जा सकती है। आज आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे भूत ने एक ही रात में बना दिया था। यह सुनने में थोड़ा अजीब जरूर लग रहा होगा लेकिन यह सच है। यह मंदिर है काठियावाड़, गुजरात का नवलखा मंदिर। जहाँ की सुन्दरता को देखकर आपका भी मन मोहित हो जाएगा।

बताया जाता है कि यह मंदिर करीब ढाई सौ साल पहले बाबरा नाम के एक भूत ने किया था, जिसे उसने मात्र एक रात में बनाकर खड़ा किया था। यह नवलखा मंदिर सोमनाथ के ज्योतिलिंग के समान ही बहुत ऊंचा है, जिसे जीर्णोद्धार करके ठीक किया गया है। यह मंदिर एक भूत द्वारा भले ही बनाया गया है, पर इसकी सुन्दरता देखते ही बनती है। इस मंदिर के चारों ओर  नग्न-अद्र्धनग्न नवलाख मूर्तियों के शिल्प हैं, जिसे 16 कोने वाली नींव के आधार पर निर्मित किया गया है।

इस मंदिर के अन्दर सभा-मंडप, गर्भगृह और प्रदक्षिणा पथ जैसी जगहें बनाई गई है। जिसकी छत अश्त्कोनी और गुम्बज विशाल है। इस मंदिर के बारे में प्रचलित कहानी की वजह से यहाँ पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है। 

सीता ही नहीं इन स्त्रियों पर भी थी रावण की बुरी नज़र


वैसे तो टेलीविजन पर रामायण सबने देखी होगी लेकिन रावण से जुड़े हुए कुछ रहस्य हममें से बहुत कम लोग जानते होंगे। आज हम आपको रावण से जुड़े कई ऐसे रहस्य बताने जा रहे हैं जिसे शायद आप लोग न जानते होंगे। सबसे पहली बात यह कि रावण का नाम रावण नहीं था। यह एक पद था, राक्षसों के महाराजा को रावण पद से अलंकृत क्या जाता है, रावण का असली नाम दशग्रीव था, क्योंकि वह दस सरों वाला असाधारण बालक था। रावण एक प्रकांड पंडित था, वह रसायन और भौतिक शास्त्र का अलौकिक ज्ञाता था, वह धरती पर जन्मा प्रथम वैज्ञानिक था। कुबेर से पाये पुष्पक विमान में भी उसने कई प्रयोग किये थे। रावण को चारों वेदों का ज्ञाता कहा गया है। रावण भगवान शंकर का अनन्य भक्त था। लेकिन ज्ञानी पंडित होने के बावजूद उसका चरित्र और आचरण ठीक नहीं था। भगवान राम की धर्मपत्नी माँ सीता को रावण ने पंचवटी से अपहरण कर दो वर्ष तक कैद कर रखा था। रावण ने सीता के अलावा भी कई स्त्रियों पर अपनी बुरी नज़र डाली थी। आइए आपको बताते हैं कौन थी वो स्त्रियां जिनपर थी रावण की बुरी नज़र।

रम्भा
रम्भा एक नर्तकी है, जो स्वर्गलोक में इन्द्रदेव की सभा मे गायन और वादन किया करती है। रम्भा कश्यप और प्राधा की पुत्री थी। रंभा अपने रूप और सौन्दर्य के लिए तीनों लोकों में प्रसिद्ध थी। इन्द्र रम्भा को ऋषियों की तपस्या भंग करने के लिये भेजा करता था। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, विश्व विजय करने के लिए जब रावण स्वर्गलोक पहुंचा तो उसने वहां रम्भा को नृत्य करते हुए देखा। कामातुर होकर उसने रम्भा को पकड़ लिया। तब अप्सरा रम्भा ने कहा कि आप मुझे इस तरह से स्पर्श न करें, मैं आपके बड़े भाई कुबेर के बेटे नलकुबेर के लिए आरक्षित हूं इसलिए मैं आपकी पुत्रवधू के समान हूं लेकिन रावण ने उसकी बात नहीं मानी और रम्भा से दुराचार किया। यह बात जब नलकुबेर को पता चली तो उसने रावण को श्राप दे दिया तुझे न चाहने वाली स्त्री से तू बलात्कार करेगा, तब तुझे अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ेगा।

माया

माया रावण की पत्नी की बड़ी बहन थी। रावण उस पर भी गन्दी नज़र रखता था। माया के पति वैजयंतपुर के शंभर राजा थे। एक दिन रावण शंभर के यहां गया। वहां रावण ने माया को अपनी बातों में फंसाने का प्रयास किया। इस बात का पता लगते ही शंभर ने रावण को बंदी बना लिया। उसी समय शंभर पर राजा दशरथ ने आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में शंभर की मृत्यु हो गई। जब माया सती होने लगी तो रावण ने उसे अपने साथ चलने को कहा। तब माया ने कहा कि तुमने वासनायुक्त होकर मेरा सतीत्व भंग करने का प्रयास किया इसलिए मेरे पति की मृत्यु हो गई अतः तुम्हारी मृत्यु भी इसी कारण होगी।

तपस्विनी
एक बार रावण अपने पुष्पक विमान से कहीं जा रहा था। तभी उसे एक सुंदर स्त्री दिखाई दी, जो भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थी। रावण ने उसके बाल पकड़े और अपने साथ चलने को कहा। उस तपस्विनी ने उसी क्षण अपनी देह त्याग दी और रावण को श्राप दिया कि एक स्त्री के कारण ही तेरी मृत्यु होगी।

सीता
भगवान राम की पत्नी मां सीता को पंचवटी के पास लंकाधिपति रावण ने अपहरण करके 2 वर्ष तक अपनी कैद में रखा था लेकिन इस कैद के दौरान रावण ने माता सीता को छुआ तक नहीं था। इसका कारण रम्भा द्वारा दिया गया शाप था। रावण जब सीता के पास विवाह प्रस्ताव लेकर गया तो माता ने घास के एक टुकड़े को अपने और रावण के बीच रखा और कहा, ’हे रावण! सूरज और किरण की तरह राम-सीता अभिन्न हैं। राम व लक्ष्मण की अनुपस्थिति में मेरा अपहरण कर तुमने अपनी कायरता का परिचय और राक्षस जाति के विनाश को आमंत्रित कर दिया है। तुम्हारा श्रीरामजी की शरण में जाना इस विनाश से बचने का एकमात्र उपाय है अन्यथा लंका का विनाश निश्चित है।’

नर्क का द्वार है यह तालाब, इसमें उबलता हैं खून

दुनिया में एक से एक घटनाएं होती हैं। कई घटनाएं जहां बेहद सामान्य होती हैं तो कुछ घटना बेहद चौंकाने वाली होती हैं। आज हम आपको एक ऐसी रहस्यमयी जगह से रूबरू करवाते हैं जिसको सुनकर आप भी हैरान हो जाएंगे। जी हाँ हम बात करते हैं जापान का ब्लडी पॉन्ड की। इस तालाब के पानी को देखने के बाद आपको यही लगेगा कि यहां लाल खून खौल रहा हो। जानिए क्या है इस खूनी तालाब का रहस्य। 

इस जगह पर जाना खतरे से खाली नहीं हैं। इस तालाब के आस-पास जाने पर भी प्रतिबंध लगा है, क्योंकि इस पोखर का तापमान 194 फैरेनहाइट है। यह जापान के सबसे प्रसिद्ध स्थानों में से एक है। इस झील का पानी खून की तरह लाल है। पानी खून की तरह लाल होने की वजह लोहे और नमक की अधिक मात्रा है। यहां पानी की सतह से भाप वाष्पित होती रहती है। नर्क के द्वार की तरह लगने वाली इस जगह को दूर  से देखने पर ऐसा लगता है मानों खून उबल रहा हो।

इस तालाब का पानी लाल है जो खून की तरह ही लगता है। माना जाता है कि इस तलाब में लोहे और नमक की मात्रा बहुत ज्यादा है। वहीं, पानी ज्यादा गर्म होने के कारण इसके सतह से भाप वाष्पित होती रहती है। इसे देखकर ऐसा लगता है कि जैसे यह नर्क का द्वार हो।

इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था श्रीमद भगवद गीता का उपदेश

हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। इस बार मोक्षदा एकादशी का व्रत 11 दिसंबर दिन शनिवार को है| इसी दिन भगवान श्रीकृ्ष्ण ने महाभारत के प्रारम्भ होने से पूर्व अर्जुन को श्रीमद भगवतगीता का उपदेश दिया था| अतः इस दिन भगवान श्रीकृ्ष्ण के साथ साथ गीता का भी पूजन करना चाहिए| मोक्षदा एकाद्शी को दक्षिण भारत में वैकुण्ठ एकादशी के नाम से भी जाना जाता है| 

मोक्षदा एकाद्शी व्रत विधि- 

मोक्षदा एकादशी का व्रत करने वाले व्रती को चाहिए कि वह एकादशी व्रत के दिन मुख्य रुप से दस वस्तुओं का सेवन नहीं किया जाता है| जौ, गेहूं, उडद, मूंग, चना, चावल और मसूर की दाल दशमी तिथि के दिन नहीं खानी चाहिए| इसके अतिरिक्त मांस और प्याज आदि वस्तुओं का भी त्याग करना चाहिए| दशमी तिथि के दिन उपवासक को ब्रह्माचार्य करना चाहिए| और अधिक से अधिक मौन रहने का प्रयास करना चाहिए| बोलने से व्यक्ति के द्वारा पाप होने की संभावनाएं बढती है, यहां तक की वृ्क्ष से पत्ता भी नहीं तोडना चाहिए| 

व्रत के दिन मिट्टी के लेप से स्नान करने के बाद ही मंदिर में पूजा करने के लिये जाना चाहिए| मंदिर या घर में श्री विष्णु पाठ करना चाहिए और भगवान के सामने व्रत का संकल्प लेना चाहिए| दशमी तिथि के दिन विशेष रुप से चावल नहीं खाने चाहिए| परिवार के अन्य सदस्यों को भी इस दिन चावल खाने से बचना चाहिए| इस व्रत का समापन द्वादशी तिथि के दिन ब्राह्माणों को दान-दक्षिणा देने के बाद ही होता है| व्रत की रात्रि में जागरण करने से व्रत से मिलने वाले शुभ फलों में वृ्द्धि होती है| 

मोक्षदा एकादशी की कथा-

एक बार धर्मराज युधिष्ठिर बोले : देवदेवेश्वर ! मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष में कौन सी एकादशी होती है ? उसकी क्या विधि है तथा उसमें किस देवता का पूजन किया जाता है? स्वामिन् ! यह सब यथार्थ रुप से बताइये ।

श्रीकृष्ण ने कहा : नृपश्रेष्ठ ! मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का वर्णन करुँगा, जिसके श्रवणमात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है । उसका नाम ‘मोक्षदा एकादशी’ है जो सब पापों का अपहरण करनेवाली है । राजन् ! उस दिन यत्नपूर्वक तुलसी की मंजरी तथा धूप दीपादि से भगवान दामोदर का पूजन करना चाहिए । पूर्वाक्त विधि से ही दशमी और एकादशी के नियम का पालन करना उचित है । मोक्षदा एकादशी बड़े बड़े पातकों का नाश करनेवाली है । उस दिन रात्रि में मेरी प्रसन्न्ता के लिए नृत्य, गीत और स्तुति के द्वारा जागरण करना चाहिए । जिसके पितर पापवश नीच योनि में पड़े हों, वे इस एकादशी का व्रत करके इसका पुण्यदान अपने पितरों को करें तो पितर मोक्ष को प्राप्त होते हैं । इसमें तनिक भी संदेह नहीं है ।

पूर्वकाल की बात है, वैष्णवों से विभूषित परम रमणीय चम्पक नगर में वैखानस नामक राजा रहते थे । वे अपनी प्रजा का पुत्र की भाँति पालन करते थे । इस प्रकार राज्य करते हुए राजा ने एक दिन रात को स्वप्न में अपने पितरों को नीच योनि में पड़ा हुआ देखा । उन सबको इस अवस्था में देखकर राजा के मन में बड़ा विस्मय हुआ और प्रात: काल ब्राह्मणों से उन्होंने उस स्वप्न का सारा हाल कह सुनाया ।

राजा बोले : ब्रह्माणो ! मैने अपने पितरों को नरक में गिरा हुआ देखा है । वे बारंबार रोते हुए मुझसे यों कह रहे थे कि : ‘तुम हमारे तनुज हो, इसलिए इस नरक समुद्र से हम लोगों का उद्धार करो। ’ द्विजवरो ! इस रुप में मुझे पितरों के दर्शन हुए हैं इससे मुझे चैन नहीं मिलता । क्या करुँ ? कहाँ जाऊँ? मेरा हृदय रुँधा जा रहा है । द्विजोत्तमो ! वह व्रत, वह तप और वह योग, जिससे मेरे पूर्वज तत्काल नरक से छुटकारा पा जायें, बताने की कृपा करें । मुझ बलवान तथा साहसी पुत्र के जीते जी मेरे माता पिता घोर नरक में पड़े हुए हैं ! अत: ऐसे पुत्र से क्या लाभ है ?

ब्राह्मण बोले : राजन् ! यहाँ से निकट ही पर्वत मुनि का महान आश्रम है । वे भूत और भविष्य के भी ज्ञाता हैं । नृपश्रेष्ठ ! आप उन्हींके पास चले जाइये ।

ब्राह्मणों की बात सुनकर महाराज वैखानस शीघ्र ही पर्वत मुनि के आश्रम पर गये और वहाँ उन मुनिश्रेष्ठ को देखकर उन्होंने दण्डवत् प्रणाम करके मुनि के चरणों का स्पर्श किया । मुनि ने भी राजा से राज्य के सातों अंगों की कुशलता पूछी ।

राजा बोले: स्वामिन् ! आपकी कृपा से मेरे राज्य के सातों अंग सकुशल हैं किन्तु मैंने स्वप्न में देखा है कि मेरे पितर नरक में पड़े हैं । अत: बताइये कि किस पुण्य के प्रभाव से उनका वहाँ से छुटकारा होगा ?

राजा की यह बात सुनकर मुनिश्रेष्ठ पर्वत एक मुहूर्त तक ध्यानस्थ रहे । इसके बाद वे राजा से बोले : ‘महाराज! मार्गशीर्ष के शुक्लपक्ष में जो ‘मोक्षदा’ नाम की एकादशी होती है, तुम सब लोग उसका व्रत करो और उसका पुण्य पितरों को दे डालो । उस पुण्य के प्रभाव से उनका नरक से उद्धार हो जायेगा ।’

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : युधिष्ठिर ! मुनि की यह बात सुनकर राजा पुन: अपने घर लौट आये । जब उत्तम मार्गशीर्ष मास आया, तब राजा वैखानस ने मुनि के कथनानुसार ‘मोक्षदा एकादशी’ का व्रत करके उसका पुण्य समस्त पितरों सहित पिता को दे दिया । पुण्य देते ही क्षणभर में आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी । वैखानस के पिता पितरों सहित नरक से छुटकारा पा गये और आकाश में आकर राजा के प्रति यह पवित्र वचन बोले: ‘बेटा ! तुम्हारा कल्याण हो ।’ यह कहकर वे स्वर्ग में चले गये ।

राजन् ! जो इस प्रकार कल्याणमयी ‘‘मोक्षदा एकादशी’ का व्रत करता है, उसके पाप नष्ट हो जाते हैं और मरने के बाद वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है । यह मोक्ष देने वाली ‘मोक्षदा एकादशी’ मनुष्यों के लिए चिन्तामणि के समान समस्त कामनाओं को पूर्ण करनेवाली है । इस माहात्मय के पढ़ने और सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है ।