घर में भगवान शिव की प्रतिमा लगाने के लिए वास्तुशास्त्र के नियमों का ध्यान रखें


नई दिल्ली : घर में देवी-देवताओं की प्रतिमा या तस्वीर लगाने के बारे में वास्तुशास्त्र में बड़ी ही सावधानी के साथ बताया गया है! इसी के मद्देनजर घर में भगवान शिव की प्रतिमा या तस्वीर लगाते समय भी हमें इन बातों का जरूर ध्यान रखना चाहिए जिससे हमें इनका शुभ फल प्राप्त हो सके!  


भगवान शिव की इस दिशा में प्रतिमा या तस्वीर लगाना माना जाता है शुभ: घर में भगवान शिव की प्रतिमा या तस्वीर लगाने की सबसे उत्तम दिशा उत्तर दिशा होती है! ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव का निवास स्थान कैलाश पर्वत उत्तर दिशा में है इसीलिए घर में भगवान शिव की प्रतिमा या तस्वीर उत्तर दिशा में लगाने की सलाह दी जाती है! ऐसा करने से घर में एक विशेष तरह की ऊर्जा घर में संचरित होती है!


घर में भगवान शिव की ऐसी तस्वीर लगाना होता है शुभ: घर में भगवान शिव की ऐसी प्रतिमा या तस्वीर लगानी चाहिए जिसमें वह प्रसन्न मुद्रा में बैठे हुए हों या नंदी बैल के साथ ध्यान मुद्रा में बैठे हुए हों! ऐसी तस्वीर लगाने से घर के सदस्यों में आपसी प्रेम बढ़ता है!


बहुत ही शुभ मानी जाती है भगवान शिव की ऐसी प्रतिमा: वास्तुशास्त्र के मुताबिक भगवान शिव की ऐसी प्रतिमा या तस्वीर जिसमें वह अपने पूरे परिवार के साथ यानी कि जिसमें बैठे हुए भगवान के शिव के साथ माता पार्वती, उनके दोनों पुत्र (भगवान कार्तिकेय और भगवान गणेश) हों तो ऐसी प्रतिमा या तस्वीर घर में लगाने से परिवार के सभी कार्य पूरे होते हैं और परिवार में हमेशा खुशियां बनी रहती हैं!


इसका भी रखें खास ध्यान: घर में भगवान शिव की प्रतिमा या तस्वीर लगाते समय इन बातों का जरूर ध्यान रखना चाहिए. जैसे-


भगवान शिव की नटराज वाली मूर्ति या तस्वीर घर या ऑफिस में कदापि नहीं रखनी चाहिए!

भगवान शिव के रौद्र रूप वाली या खड़ी मुद्रा वाली प्रतिमा या तस्वीर को कभी भी घर या ऑफिस में नहीं लगाना चाहिए!

घर में प्रतिमा या तस्वीर वाली जगह साफ-सुथरा होनी चाहिए!

आवारा पशुओं का आतंक, चौपट हो रही अन्नदाता की फसल, कुछ तो सोचो सरकार…?

विनीत कुमार वर्मा

हैदरगढ़: उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद जब स्लाटर हाउस पर पाबंदी की खबर आई थी। तब लोगों को लगा कि अब रामराज आ जाएगा। लेकिन इसके कुछ ही दिन बाद इसका दुष्परिणाम भी सामने आ गया। जिसको लेकर अब ग्रामीण इलाकों में रहने वाले किसान खासकर परेशान हैं। जो इन दिनों किसानों के लिए सिरदर्द बन गए हैं। ये पशु मौजूदा समय में झुण्ड के झुण्ड घुम रहे हैं। और सिर्फ घुम ही नहीं रहे हैं बल्कि किसानों के खेतों में घुस कर उनकी पूरी मेहनत पर पानी फेरते हुए उनकी खेती चर दे रहे हैं।

जहां आमजन रात के समय घरों में चैन की नींद सोए रहते है, वहीं किसानों को अपनी फसलें बचाने के लिए दिन रात खेतों में पहरेदारी करनी पड़ रही है। दिन-रात जागकर फसलों की रखवाली करने के बावजूद इन किसानों को बेसहारा पशुओं से अपनी फसलें बचाना मुश्किल होता जा रहा है। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जनपद के हैदरगढ़ क्षेत्र के इलियासपुर और कबूलपुर गांव में अब लोग आधी रात को सोते नहीं बल्कि अपने खेतों की पहरेदारी करते हैं। ताकि कोई गाय-सांड उनकी फसलों को नुकसान ना पहुंचा दे। इस इलाके में कई बार ऐसा हुआ है कि रात को गाय-बैल के झुंड ने फसलों को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है।

दरअसल, इस क्षेत्र में एक-दो-दस-बीस या सौ पचास नहीं इलाके में ऐसे हजारों लावारिस गोवंश का झुंड तैयार हो गया है जिनका कोई मालिक नहीं है ना ही कोई ठिकाना है। इसमें ज्यादातर ऐसे बैल हैं जो खेती किसानी में उपयोगी नहीं रहे, ऐसी गायें भी हैं जो अब दूध नहीं दे सकती, ऐसे में इनके खाने का खर्च किसानों पर बोझ बन गया तो इन्हें लावारिस छोड़ दिया गया। लिहाजा गोवंश का ये झुंड एक गांव से दूसरे गांव खाने की तलाश भटकता रहता है और जहां भी फसल मिलती उस पर टूट पड़ता है।

ये हालात सिर्फ इलियासपुर और कबूलपुर गांव के नहीं है, बल्कि पूरे बाराबंकी जनपद में आवारा मवेशियों का आतंक है। लावारिस गोवंश का ये झुंड रात के वक्त ही खेतों पर धावा बोलता है, लिहाजा किसान रात-रात भर जागकर अपने खेतों में मचान पर चढ़कर पहरा देते हैं। आधे घंटे की चूक भी इनकी महीनों की मेहनत को मिट्टी में मिला सकती है। इसलिए घर के बुजुर्गों से लेकर बच्चे तक बारी-बारी से इस पहरेदारी में शामिल होते हैं।

हादसों का पर्याय बने आवारा पशु

क्षेत्र में लगातार बढ़ रहे आवारा पशुओं के कारण हादसों की संख्या में भी लगातार इजाफा हो रहा है। गलियों व सड़कों के किनारे घूम रहे आवारा पशु अचानक भागकर सड़कों पर आ जाते है। जिससे दोपहिया वाहन चालक चोटिल हो जाते है। वहीं बड़े वाहन की चपेट में आने से कई बार पशु भी गंभीर रूप से जख्मी हो जाते है।

शनिवार को करें यह उपाय, दूर होगी आर्थिक तंगी और घर में क्लेश


धर्मग्रंथों के अनुसार जिस घर में तुलसी का पौधा होता है वहां रोग, दोष या क्लेश नहीं होता वहां हमेशा सुख-समृद्धि का वास होता है। इसीलिए प्रतिदिन तुलसी के पौधे की पूजा करने का भी विधान है। प्राचीन काल से ही यह परंपरा चली आ रही है कि घर में तुलसी का पौधा होना चाहिए।

शास्त्रों में तुलसी को पूजनीय, पवित्र और देवी स्वरूप माना गया है, इस कारण घर में तुलसी हो तो कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। यदि ये बातें ध्यान रखी जाती हैं तो सभी देवी-देवताओं की विशेष कृपा हमारे घर पर बनी रहती है। घर में सकारात्मक और सुखद वातावरण बना रहता है, पैसों की कमी नहीं आती है और परिवार के सदस्यों को स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है।

इससे पैसों से सम्बन्धित परेशानियां दूर हो जाती है। इसके इलावा घर के लोगों के बीच हो रहे झगडे, मन मुटाव और क्लेश भी दूर हो जाता है। हर घर में पैसों को लेकर समस्याएं आती ही रहती है। हम चाहे कितना भी कमा ले पर फिर भी पैसो की तंगी कभी पूरी ही नहीं होती। ऐसे में तुलसी का ये उपाय एक रामबाण उपाय है। वैसे इस उपाय को करना बेहद आसान है। साथ ही इस उपाय को करने से इसका असर भी तुरंत दिखता है। इससे पैसों से सम्बन्धित परेशानियां दूर हो जाती है।

इसके इलावा घर के लोगों के बीच हो रहे झगडे, मन मुटाव और क्लेश भी दूर हो जाता है। इसमें पहले उपाय के अनुसार यदि आप शनिवार को आटा पिसवाने जाए तो जाते समय थोड़े से गेहूं में 100 ग्राम काले चने, 11 तुलसी के पत्ते और उसमे दो दाने केसर के मिला ले। अब इस सामग्री को बाकी गेहूं में मिला कर पिसवा ले.। इसके इलावा केवल शनिवार को ही आटा पिसवाएं। इस उपाय को करने के बाद ही आपको तुरंत इसका असर दिखने लगेगा।

इसके इलावा शनिवार को काले कुत्ते को सरसो के तेल से चुपड़ी रोटी खिलाने से भी धन में वृद्धि होती है। साथ ही शनिवार को पीपल के पेड़ में देसी घी का दीपक जलाने से भी मनोकामनाए पूरी होती है।गौरतलब है, कि तुलसी के पौधे पर प्रतिदिन सुबह शाम दीपक जलाने से भी व्यक्ति की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती है।

कई बीमारियों से निजात दिलाता है तीन मुखी रुद्राक्ष, जानिए और फायदे


रुद्राक्ष दो शब्दों के मेल से बना है पहला रूद्र का अर्थ होता है भगवान शिव और दूसरा अक्ष इसका अर्थ होता है आंसू| माना जाता है की रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के आंसुओं से हुई है| रुद्राक्ष भगवान शिव के नेत्रों से प्रकट हुई वह मोती स्वरूप बूँदें हैं जिसे ग्रहण करके समस्त प्रकृति में आलौकिक शक्ति प्रवाहित हुई तथा मानव के हृदय में पहुँचकर उसे जागृत करने में सहायक हो सकी| 

रूद्राक्ष का बहुत अधिक महत्व होता है तथा हमारे धर्म एवं हमारी आस्था में रूद्राक्ष का उच्च स्थान है। रूद्राक्ष की महिमा का वर्णन शिवपुराण, रूद्रपुराण, लिंगपुराण श्रीमद्भागवत गीता में पूर्ण रूप से मिलता है। सभी जानते हैं कि रूद्राक्ष को भगवान शिव का पूर्ण प्रतिनिधित्व प्राप्त है।

रूद्राक्ष का उपयोग केवल धारण करने में ही नहीं होता है अपितु हम रूद्राक्ष के माध्यम से किसी भी प्रकार के रोग कुछ ही समय में पूर्णरूप से मुक्ति प्राप्त कर सकते है। ज्योतिष के आधार पर किसी भी ग्रह की शांति के लिए रत्न धारण करने की सलाह दी जाती है। असली रत्न अत्यधिक मंहगा होने के कारण हर व्यक्ति धारण नहीं कर सकता।

रुद्राक्ष के मुखो की संख्या रुद्राक्ष की फलश्रुति निर्धारित करती है। वैसे तो 1 मुखी से 21 मुखी तक के सभी रुद्राक्ष लोकप्रिय है। निर्णय सिंधु के अनुसार अग्निसम्भूत त्रिमुखी स्तत्र यानि तीन मुखी रुद्राक्ष अग्नि से उत्पन्न हुआ है और यह पापों को नष्ट करने वाला है। पंच तत्वों में अग्नि का स्थान विशिष्ट है। तीन मुखी रुद्राक्ष स्वंय में बृह्मा, विष्णु और महेश को धारण करता है, वह जठराग्नि, बड़वाग्नि और दावाग्नि समस्त से मनुष्य की रक्षा करता है। 

इसकी शक्ति से कौनसी बीमारिया पल भर में ठीक हो जाती है। सबसे पहले तीनमुखी रुद्राक्ष की विशेषताएं... -यह त्रिदोषों का नाशक है यानि कफ, पित्त और वात का नाश करता है। -यह तीन वरणों यानि स्वर, व्यंजन और विसर्ग पर मनुष्य को अथॉरिटी देता है। यह मनुष्य की तीनों ऐष्णाओं की पूर्ति करता हैः तीन ऐष्णाएं हैं धन, पुत्र और लोक। -यह तीनों नाड़ियों को नियंत्रित करता हैः तीन नाड़ियां हैं आदि, अंत और मध्य। यह तीनों लिंग के लोगों द्वारा पहना जा सकता हैः तीन लिंग हैं- पुरुष, स्त्री और उभय।






चमत्कारों और रहस्यों से भरी हुई है माता वैष्णों देवी की यह गुफा

लखनऊ: वैष्णो देवी मंदिर शक्ति को समर्पित एक पवित्रतम हिंदू मंदिर है, जो भारत के जम्मू और कश्मीर में वैष्णो देवी की पहाड़ी पर स्थित है। हिंदू धर्म में वैष्णो देवी, जो माता रानी और वैष्णवी के रूप में भी जानी जाती हैं, देवी मां का अवतार हैं। 

वैष्णो देवी मंदिर जम्मू-कश्मीर की त्रिकुटा पहाड़ियों पर बसा है। हर साल लाखों भक्त यहां की यात्रा करते हैं। जितना महत्व वैष्णो देवी का है, उतना ही महत्व यहां की गुफा का भी है। देवी के मंदिर तक पहुंचने के लिए एक प्राचीन गुफा का प्रयोग किया जाता था। यह गुफा बहुत ही चमत्कारी और रहस्यों से भरी हुई है।

सबसे पहली बात यह है कि माता वैष्‍णो देवी के दर्शन के ल‌िए वर्तमान में ज‌िस रास्ते का इस्तेमाल क‌िया जाता है, वह गुफा में प्रवेश का प्राकृत‌िक रास्ता नहीं है। श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए कृत्र‌िम रास्ते का न‌िर्माण 1977 में ‌‌क‌िया गया। वर्तमान में इसी रास्ते से श्रद्धालु माता के दरबार में पहुंचते हैं।

क‌िस्मत वाले भक्तों को प्राचीन गुफा से आज भी माता के भवन में प्रवेश का सौभाग्य म‌िल जाता है। यहां पर न‌ियम है क‌ि जब कभी भी दस हजार के कम श्रद्धालु होते हैं तब प्राचीन गुफा का द्वार खोल द‌िया जाता है। मां माता वैष्णो देवी के दरबार में प्राचीन गुफा का काफी महत्व है। मान्यता है कि प्राचीन गुफा के अंदर भैरव का शरीर मौजूद है। माता ने यहीं पर भैरव को अपने त्र‌िशूल से मारा था और उसका सिर उड़कर भैरव घाटी में चला गया और शरीर यहां रह गया।

प्राचीन गुफा का महत्व इसल‌िए भी है क्योंक‌ि इसमें प‌व‌ित्र गंगा जल प्रवाह‌ित होता रहता है। इस जल से पवित्र होकर माता के दरबार में पहुंचने का विशेष महत्व माना जाता है। वैष्‍णो देवी मंदिर तक पहुंचने वाली घाटी में कई पड़ाव भी हैं, जिनमें से एक है आद‌ि कुंवारी या आद्यकुंवारी। यहीं एक और गुफा भी है, ज‌िसे गर्भजून के नाम से जाना जाता है। गर्भजून गुफा को लेकर मान्यता है क‌ि माता यहां 9 महीने तक उसी प्रकार रही ‌‌‌थी जैसे एक श‌िशु माता के गर्भ में 9 महीने तक रहता है।

गर्भजून गुफा को लेकर माना जाता है कि इस गुफा में जाने से मनुष्य को फ‌िर गर्भ में नहीं जाना पड़ता है। अगर मनुष्य गर्भ में आता भी है तो गर्भ में उसे कष्ट नहीं उठाना पड़ता है और उसका जन्म सुख एवं वैभव से भरा होता है।