शनिवार को लोहे के बर्तन में बनाये खाना, बनी रहेगी शनिदेव की कृपा

कठोर न्यायाधीश कहे जाने वाले शनि देव के कोप से सभी भलीभांति परिचित हैं क्योंकि शनि देव बुरे कर्मों का न्याय बड़ी कठोरता से करते हैं। शनि की बुरी नजर किसी भी राजा को रातों-रात भिखारी बना सकती है और यदि शनि शुभ फल देने वाला हो जाए तो कोई भी भिखारी राजा के समान बन सकता है।

क्या आपको पता है कि शनि की साढ़ेसाती क्या होती है, अगर नहीं पता हैं तो आज हम आपको बताते हैं कि क्या होती है शनि के साढ़ेसाती| आपको बता दें कि जन्म राशि (चन्द्र राशि) से गोचर में जब शनि द्वादश, प्रथम एवं द्वितीय स्थानों में भ्रमण करता है, तो साढ़े -सात वर्ष के समय को शनि की साढ़ेसाती कहते हैं।

एक साढ़ेसाती तीन ढ़ैया से मिलकर बनती है। क्योंकि शनि एक राशि में लगभग ढ़ाई वर्षों तक चलता है। प्रायः जीवन में तीन बार साढ़ेसाती आती है। प्राचीन काल से सामान्य भारतीय जनमानस में यह धारणा प्रचलित है कि शनि की साढ़ेसाती बहुधा मानसिक, शारीरिक और आर्थिक दृष्टि से दुखदायी एवं कष्टप्रद होती है। शनि की साढ़ेसाती सुनते ही लोग चिन्तित और भयभीत हो जाते हैं। साढ़ेसाती में असन्तोष, निराशा, आलस्य, मानसिक तनाव, विवाद, रोग-रिपु-ऋण से कष्ट, चोरों व अग्नि से हानि और घर-परिवार में बड़ों-बुजुर्गों की मृत्यु जैसे अशुभ फल होते हैं।

आज आपको बताते हैं कि शनि की साढ़ेसाती से कैसे बचा जा सकता है| आपको बता दें कि शनिवार शनि के निमित्त विशेष पूजा अर्चना करने पर उनका कृपा जल्दी ही प्राप्त हो जाती है। इसके साथ ही शनि की प्रिय धातु है लौहा। अत: लौहे के बर्तनों का उपयोग करने पर भी शनि की कृपा प्राप्त होती है। शनिवार के दिन एक समय लौहे के बर्तन में भोजन किया जा सकता है। बर्तन एकदम साफ और स्वच्छ होने चाहिए।

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इस अनोखी ट्रिक से स्वयं जाने अपना भविष्य

आँखें दिल की जुबां होती हैं आज हम आपको आँखों के बारे में एक ऐसी ट्रिक बताएँगे जिसके द्वारा आप स्वयं किसी का भविष्य जान सकते हैं| आप सोच रहे होंगे कि यह कैसे संभव हो सकता है| जी यह संभव है 

तो आइये जाने आँखों के द्वारा कैसे किसी का भविष्य जान सकते हैं-

आपको बता दें कि आप किसी भी व्यक्ति की आँखों की पलकों को गौर से देखें और यह देखें कि वह व्यक्ति कितनी कितनी देर में पलक झपकत है| 

यदि कोई व्यक्ति पांच सेकंड में पलक झपकाता है तो समझिये वह व्यक्ति जीवन से परेशान वैभव व समृद्धि हीन होता है, वहीँ जिन व्यक्तियों की पलकें दस सेकंड में झपकती हैं तो समझ जाइए कि वह व्यक्ति हमेशा दूसरों पर आश्रित रहने वाला होगा और अपना काम स्वयं न करकर दूसरों से करवाकर अधिक खुशी महसुस करते हैं।

इसके अलावा जिन व्यक्तियों की पन्द्रह सेकंड में पलकें झपकती हैं तो समझिये कि ऐसे व्यक्ति तेजी से निर्णय लेने वाले और चतुर होते हैं। वहीँ, जिनकी पलकें बीस सेकंड में झपकती हैं तो ऐसे व्यक्ति स्थिरबुद्धि वाले और प्रभावशाली होते हैं।

इसके अलावा पच्चीस सेकंड या इससे अधिक समय में पलकें झपकाने वाले व्यक्तियों में किसी को सम्मोहित करने की क्षमता अधिक होती है।

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प्रदोष व्रत से पूरी होती हैं सभी मुरादें

ष व्रत कलियुग में अति मंगलकारी और शिव कृपा प्रदान करनेवाला होता है। माह की त्रयोदशी तिथि में सायं काल को प्रदोष काल कहा जाता है। मान्यता है कि प्रदोष के समय महादेवजी कैलाश पर्वत के रजत भवन में इस समय नृत्य करते हैं और देवता उनके गुणों का स्तवन करते हैं। जो भी लोग अपना कल्याण चाहते हों यह व्रत रख सकते हैं। प्रदोष व्रत को करने से हर प्रकार का दोष मिट जाता है। सप्ताह केसातों दिन के प्रदोष व्रत का अपना विशेष महत्व है।

आपको बता दें कि अगर आप-

- रविवार के दिन प्रदोष व्रत आप रखते हैं तो सदा नीरोग रहेंगे ।
-सोमवार के दिन व्रत करने से आपकी इच्छा फलितहोती है ।
-मंगलवार कोप्रदोष व्रत रखने से रोग से मुक्ति मिलती है और आप स्वस्थ रहते हैं।
-बुधवार के दिन इस व्रत का पालन करने से सभी प्रकार की कामना सिद्ध होतीहै।
-बृहस्पतिवार के व्रत से शत्रु का नाश होता है। शुक्र प्रदोष व्रत सेसौभाग्य की वृद्धि होती है।
-शनि प्रदोष व्रत से पुत्र की प्राप्ति होती है।

प्रदोष व्रत के नियम-

प्रदोष व्रत में बिना जल पिए व्रत रखना होता है। सुबह स्नान करके भगवान शंकर, पार्वती और नंदी को पंचामृत व गंगाजल से स्नान कराकर बेल पत्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, फल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची भगवान को चढ़ाएं। शाम के समय पुन: स्नान करके इसी तरह शिवजी की पूजा करें। शिवजी की षोडशोपचार पूजा करें। जिसमें भगवान शिव की सोलह सामग्री से पूजा करें। 

इसके अलावा भगवान शिव को घी और शक्कर मिले जौ के सत्तू का भोग लगाएं। आठ दीपक आठ दिशाओं में जलाएं। आठ बार दीपक रखते समय प्रणाम करें। शिव आरती करें। शिव स्त्रोत, मंत्र जप करें । रात्रि में जागरण करें। इस प्रकार समस्त मनोरथ पूर्ति और कष्टों से मुक्ति के लिए व्रती को प्रदोष व्रत के धार्मिक विधान का नियम और संयम से पालन करना चाहिए। 

प्रदोष व्रत का महत्व-

प्रदोष व्रत हर महीने में दो बार शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत कहते हैं। यदि इन तिथियों को सोमवार होतो उसे सोम प्रदोष व्रत कहते हैं, यदि मंगल वार होतो उसे भौम प्रदोष व्रत कहते हैं और शनिवार होतो उसे शनि प्रदोष व्रत व्रत कहते हैं। विशेष कर सोमवार, मंगलवार एवं शनिवार के प्रदोष व्रत अत्याधिक प्रभावकारी माने गये हैं। साधारण तौर पर अलग-अलग जगह पर द्वाद्वशी और त्रयोदशी की तिथि को प्रदोष तिथि कहते हैं। इस दिन व्रत रखने का विधान हैं।

प्रदोष व्रत का महत्व कुछ इस प्रकार का बताया गया हैं कि यदि व्यक्ति को सभी तरह के जप, तप और नियम संयम के बाद भी यदि उसके गृहस्थ जीवन में दुःख, संकट, क्लेश आर्थिक परेशानि, पारिवारिक कलह, संतानहीनता या संतान के जन्म के बाद भी यदि नाना प्रकार के कष्ट विघ्न बाधाएं, रोजगार के साथ सांसारिक जीवन से परेशानिया खत्म नहीं हो रही हैं, तो उस व्यक्ति के लिए प्रति माह में पड़ने वाले प्रदोष व्रत पर जप, दान, व्रत इत्यादि पूण्य कार्य करना शुभ फलप्रद होता हैं।

ज्योतिष कि द्रष्टि से जो व्यक्ति चंद्रमा के कारण पीडित हो उसे वर्ष भर प्रदोष व्रतों पर चहे वह किसी भी वारको पडता हो उसे प्रदोष व्रत अवश्य करना चाहिये। प्रदोष व्रतों पर उपवास रखना, लोहा, तिल, काली उड़द, शकरकंद, मूली, कंबल, जूता और कोयला आदि दान करने से शनि का प्रकोप भी शांत हो जाता हैं, जिस्से व्यक्ति के रोग, व्याधि, दरिद्रता, घर कि अशांति, नौकरी या व्यापार में परेशानी आदि का स्वतः निवारण हो जाएगा।

भौम प्रदोष व्रत एवं शनि प्रदोष व्रत के दिन शिवजी, हनुमानजी, भैरव कि पूजा-अर्चना करना भी लाभप्रद होता हैं।

गुरुवार के दिन पडने वाला प्रदोष व्रत विशेष कर पुत्र कामना हेतु या संतान के शुभ हेतु रखना उत्तम होता हैं। संतानहीन दंपत्तियों के लिए इस व्रत पर घरमें मिष्ठान या फल इत्यादि गाय को खिलाने से शीघ्र शुभ फलकी प्राप्ति होति हैं। संतान कि कामना हेतु 16 प्रदोष व्रत करने का विधान हैं, एवं संतान बाधा में शनि प्रदोष व्रत सबसे उत्तम मनागया हैं।

संतान कि कामना हेतु प्रदोष व्रत के दिन पति-पत्नी दोनो प्रातः स्नान इत्यादि नित्य कर्म से निवृत होकर शिव, पार्वती और गणेशजी कि एक साथमें आराधना कर किसी भी शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग पर जल भिषेक, पीपल के मूल में जल चढ़ाकर सारे दिन निर्जल रहने का विधान हैं।

प्रदोष कथा-

इस व्रत के महात्म्य को गंगा के तट पर किसी समय वेदों के ज्ञाता और भगवान के भक्त श्री सूत जी ने सौनकादि ऋषियों को सुनाया था। सूत जी ने कहा है कि कलियुग में जब मनुष्य धर्म के आचरण से हटकर अधर्म की राह पर जा रहा होगाहर तरफ अन्याय और अनचार का बोलबाला होगा। मानव अपने कर्तव्य से विमुख होकर नीच कर्म में संलग्न होगा उस समय प्रदोष व्रत ऐसा व्रत होगा जो मानव कोशिव की कृपा का पात्र बनाएगा और नीच गति से मुक्त होकर मनुष्य उत्तम लोकको प्राप्त होगा।सूत जी ने सौनकादि ऋषियों को यह भी कहा कि प्रदोष व्रत से पुण्य से कलियुग में मनुष्य के सभी प्रकार के कष्ट और पापनष्ट हो जाएंगे। यह व्रत अति कल्याणकारी हैइस व्रत के प्रभाव से मनुष्यको अभीष्ट की प्राप्ति होगी। इस व्रत में अलग अलग दिन के प्रदोष व्रत सेक्या लाभ मिलता है यह भी सूत जी ने बताया। सूत जी ने सौनकादि ऋषियों कोबताया कि इस व्रत के महात्मय को सर्वप्रथम भगवान शंकर ने माता सती कोसुनाया था। मुझे यही कथा और महात्मय महर्षि वेदव्यास जी ने सुनाया और यहउत्तम व्रत महात्म्य मैने आपको सुनाया है।प्रदोष व्रत विधानसूत जी ने कहा है प्रत्येक पक्ष कीत्रयोदशी के व्रत को प्रदोष व्रत कहते हैं। सूर्यास्त के पश्चात रात्रि केआने से पूर्व का समय प्रदोष काल कहलाता है। इस व्रत में महादेव भोले शंकरकी पूजा की जाती है। इस व्रत में व्रती को निर्जल रहकर व्रत रखना होता है।प्रात: काल स्नान करके भगवान शिव की बेल पत्र, गंगाजल अक्षत धूप दीप सहित पूजा करें। संध्या काल में पुन: स्नान करके इसी प्रकार से शिव जी कीपूजा करना चाहिए। इस प्रकार प्रदोष व्रत करने से व्रती को पुण्य मिलता है।

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....ऐसे हुआ वीर हनुमान का जन्म

कलियुग में बहुत जल्दी प्रसन्न होने वाले देवी-देवताओं में से एक हैं हनुमान जी। आपको बता दें कि जीवन में जब भी कोई अत्यधिक मुश्किल प्रतीत हो रहा हो या लाख कोशिशों के बाद भी वह पूर्ण नहीं हो पा रहा हो या बार-बार बाधाएं उत्पन्न हो रही हों तब हनुमानजी को प्रसन्न कर उन रुकावटों को दूर किया जा सकता है।

हनुमान जी को हिन्दु धर्म में कष्त विनाशक और भय नाशक देवता के रूप में जाना जाता है| हनुमान जी अपनी भक्ति और शक्ति के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं| सारे पापों से मुक्त करने ओर हर तरह से सुख-आनंद एवं शांति प्रदान करने वाले हनुमान जी की उपासना लाभकारी एवं सुगम मानी गयी है। पुराणों के अनुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी मंगलवार, स्वाति नक्षत्र मेष लग्न में स्वयं भगवान शिवजी ने अंजना के गर्भ से रुद्रावतार लिया।

क्या आप जानते हैं कि हनुमान जी का जन्म कैसे हुआ अगर नहीं जानते हैं तो आज हम आपको बताते हैं कि कैसे जन्मे पवनसुत हनुमान-

आपको बता दें कि हनुमान के जन्म के संबंध में धर्मग्रंथों में कई कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार-

भगवान विष्णु के मोहिनी रूप को देखकर लीलावश शिवजी ने कामातुर होकर अपना वीर्यपात कर दिया। सप्तऋषियों ने उस वीर्य को कुछ पत्तों में संग्रहित कर वानरराज केसरी की पत्नी अंजनी के गर्भ में स्थापित कर दिया, जिससे अत्यंत तेजस्वी एवं प्रबल पराक्रमी श्री हनुमानजी उत्पन्न हुए। हनुमान जी सब विद्याओं का अध्ययन कर पत्नी वियोग से व्याकुल रहने वाले सुग्रीव के मंत्री बन गए।

उन्होंने पत्नीहरण से खिन्न व भटकते रामचंद्रजी की सुग्रीव से मित्रता कराई। सीता की खोज में समुद्र को पार कर लंका गए और वहां उन्होंने अद्भुत पराक्रम दिखाए। हनुमान ने राम-रावण युद्ध ने भी अपना पराक्रम दिखाया और संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण के प्राण बचाए। अहिरावण को मारकर लक्ष्मण व राम को बंधन से मुक्त कराया। 

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जानिए मनोकामना की पूर्ति हेतु कौन सी हनुमान प्रतिमा का पूजन करें

नई दिल्ली| हिन्दू पंचांग के अनुसार हनुमान जयंती प्रतिवर्ष चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है| इस बार हनुमान जयन्ती 6 अप्रैल शुक्रवार को है| मान्यता है कि इसी पावन दिवस को भगवान राम की सेवा करने के उद्येश्य से भगवान शंकर के ग्यारहवें रूद्र ने वानरराज केसरी और अंजना के घर पुत्र रूप में जन्म लिया था| इस दिन यदि कोई श्रद्धापूर्वक केसरीनंदन की पूजा करता है तो प्रभु उसके सभी अनिष्टों को दूर कर देते हैं और उसे सब प्रकार से सुख, समृद्धि और एश्वर्य प्रदान करते हैं

आज हम आपको बताते हैं कि हनुमान जयंती के शुभ अवसर पर अपनी मनोकामना की पूर्ति हेतु कौन सी हनुमान प्रतिमा का पूजन करना लाभप्रद रहेगा।

राम भक्त हनुमान स्वरुप -

राम भक्ति में मग्न हनुमानजी की उपासना करने से जीवन के महत्व पूर्ण कार्यो में आ रहे संकटो एवं बाधाओं को दूर करती हैं एवं अपने लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु आवश्यक एकाग्रता व अटूट लगन प्रदान करने वाली होती है।

संजीवनी पहाड़ लिये हनुमान स्वरुप -

संजीवनी पहाड़ उठाये हुए हनुमानजी की उपासना करने से व्यक्ति को प्राणभय, संकट, रोग इत्यादी हेतु लाभप्रद मानी गई हैं। विद्वानो के मत से जिस प्रकार हनुमानजी ने लक्षमणजी के प्राण बचाये थे उसी प्रकार हनुमानजी अपने भक्तो के प्राण की रक्षा करते हैं एवं अपने भक्त के बडे से बडे संकटो को संजिवनी पहाड़ की तरह उठाने में समर्थ हैं।

ध्यान मग्न हनुमान स्वरुप -

हनुमानजी का ध्यान मग्न स्वरुप व्यक्ति को साधना में सफलता प्रदान करने वाला, योग सिद्धि या प्रदान करने वाला मानागया हैं।


रामायणी हनुमान स्वरुप -

रामायणी हनुमानजी का स्वरुप विद्यार्थीयो के लिये विशेष लाभ प्रद होता हैं। जिस प्रकार रामायण एक आदर्श ग्रंथ हैं उसी प्रकार हनुमानजी के रामायणी स्वरुप का पूजन विद्या अध्यन से जुडे लोगो के लिये लाभप्रद होता हैं।

हनुमानजी का पवन पुत्र स्वरुप-

हनुमानजी का पवन पुत्र स्वरुप के पूजन से आकस्मिक दुर्घटना, वाहन इत्यादि की सुरक्षा हेतु उत्तम माना गया हैं।

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घर आये भिखारी को कभी खाली हाथ नहीं भेजना चाहिए

अगर आपके दरवाजे पर कोई भिखारी आये तो उसे कभी भी खाली हाथ नहीं लौटना चाहिए क्योंकि हिन्दू धर्म में भिखारी को भी नारायण ही माना गया है। इन्हें दरिद्र नारायण कहा जाता है। 

शास्त्रों अनुसार भगवान हमारी समय-समय पर परीक्षा लेते हैं। पुराने समय में भी कई ऐसे प्रसंग मिलते हैं जहां भगवान भिक्षुक बनकर भक्त की परीक्षा लेने पहुंचे। भगवान हमेशा ही भक्तों की श्रद्धा को परखने के लिए नए वेश धारण करते हैं। 

इसके अलावा शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि ऐसे जरूरतमंदों की दुआओं का अच्छा प्रभाव पड़ता है। गरीबों की दुआएं हमें बुरे समय से बचाती है। साथ ही हमारे पुण्यों में बढ़ोतरी करती है जिसके प्रभाव से हमारे कई रुके हुए कार्य पूर्ण हो जाते हैं। इसलिए कभी भी घर आये भिखारी को घर से खाली हाथ नहीं भेजना चाहिए|

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'धोबिनिया दइ दे आपन सुहाग, हमार बन्नी हाथ जोरे खड़ी..'

'धोबिनिया दइ दे आपन सुहाग, हमार बन्नी हाथ जोरे खड़ी..' यह बुंदेलखण्ड का एक ऐसा वैवाहिक मंगल गीत है जो कन्या को 'सुहागिन' बनाते वक्त गाया जाता है। हिंदू रीति-रिवाज के इस वैवाहिक बंधन में अगड़ों, पिछड़ों और अनुसूचित वर्ग की सात कौमों के मिलन का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि दलित वर्ग की महिला के 'जूठे सुहाग' से ही कन्याएं 'सुहागिन' बनती हैं। 

राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक कारणों से भले ही समाज में छुआछूत, भेदभाव और वैचारिक मतभेदों की गहरी खाई हो, पर वैवाहिक बंधन से जुड़ी इस रस्म के दौरान मंडप में एक ऐसा अद्भुत संगम देखने को मिलता है जो कुछ पल के लिए समाज को एक सूत्र में बांधकर बराबरी का दर्जा देने में सफल है। वैवाहिक मंडप में दूर-दूर तक छुआछूत या भेदभाव का किसी से कोई सरोकार नहीं होता। 

हिंदू धर्म के रीति-रिवाजों से सम्पन्न होने वाली वैवाहिक रस्मों में सबसे बड़ी भूमिका समाज के अनुसूचित वर्ग की उस महिला की होती है, जो अपना जूठा सुहाग (मांग में भरा सिंदूर) कन्या की मांग में भरकर उसे 'सुहागिन' बनाती है। 

"हिंदू समाज के वैवाहिक कार्यक्रमों में समाज के सात वर्गो की भूमिका अलग-अलग लेकिन अहम होती है। ये सभी लोग पूरे वैवाहिक कार्यक्रम में सभी रस्में पूरी कराकर शादी का गवाह बनते हैं। इस सबके बावजूद एक महत्वपूर्ण अवसर ऐसा भी आता है जब अनुसूचित जाति की एक महिला अपनी मांग में भरे सिंदूर से कन्या को 'सुहागिन' बनाती है। इस रस्म के बाद ही वर-कन्या के सात फेरों की रस्म पूरी की जाती है।"

"कन्या में देवी दुर्गा, चंडी व काली जैसी सात देवियों का तेज मौजूद रहता है। कन्या के तेज को कम करने के लिए इस बिरादरी की महिला के 'जूठे सुहाग' से 'सुहागिन' बनाने का रिवाज है, ताकि कन्या को छूने से वर का अनिष्ट न हो।"

पशु कयों करते हैं जुगाली ?

आपने अक्सर देखा होगा कि गाय, भैंस, ऊंट, भेड़, बकरी इत्यादि जानवर घास-फूस पेड़ों की पत्तियां इत्यादि अपना भोजन जल्दी-जल्दी खा लेते हैं और उसके बाद आराम से बैठकर अपना मुंह चलाते रहते हैं। गाय, भेड़, बकरी आदि के ऊपर के जबड़े में दांत नहीं होते लेकिन इनके मसूढ़े बहुत सख्त होते हैं और नीचे के जबड़े के दांतों तथा ऊपर के जबड़ों द्वारा ही ये जानवर अपने भोजन को मुंह में ले 
जाते हैं।
भोजन खाने के बाद ये पशु खाए हुए भोजन को आराम से पेट से दोबारा मुंह में लाते हैं और उसे अच्छी तरह से चबाते हैं। भोजन चबाने की इसी क्रिया को ‘जुगाली’ कहा जाता है। चबाए हुए भोजन को ये जानवर फिर पेट में ले जाते हैं जहां यह बहुत आसानी से पच जाता है। जो जानवर जुगाली करते हैं उन्हें ‘रुमीनेंट’ कहा जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि 
जानवर जुगाली क्यों करते हैं और 
इन्हें जुगाली करने की आदत 
कैसे पड़ी?


कई हजार वर्ष पूर्व, जब मनुष्य ने इन जानवरों को पालतू नहीं बनाया था, ये जंगलों में घूमा करते थे। जंगल में शेर, चीता तथा मांस भक्षण करने वाले दूसरे जानवर भी अपने भोजन की तलाश में घूमते थे। इन भयानक जानवरों से खुद को बचाने के लिए ही ये जानवर घास और पेड़ों की पत्तियों को जल्दी-जल्दी निगल कर किसी सुरक्षित स्थान की ओर भाग निकलते थे और सुरक्षित स्थान पर पहुंच कर निङ्क्षश्चत होकर जल्दी-जल्दी निगले हुए भोजन को जुगाली करके पचाते थे। इस प्रकार इन जानवरों में जुगाली की यह आदत विकसित होती गई।
इन पशुओं के पेट की बनावट बड़ी जटिल होती है। इनका पेट चार भागों में बंटा होता है। पहले भाग को ‘पाऊच’ दूसरे को ‘रेटीकुलम’ या ‘हनीकॉम बैग’, तीसरे को ‘ओमासम’ या ‘मेनीप्लाइज’ तथा चौथे भाग को ‘एबोमासम’  या ‘टू-स्टमक’ कहा जाता है। इनमें से केवल ऊंट ही ऐसा जानवर है जिसके पेट में इनमें से तीसरा भाग नहीं होता। निगला हुआ भोजन सबसे पहले पेट के प्रथम भाग में जाता है। यह हिस्सा दूसरे भाग की अपेक्षा बड़ा होता है। यहां पहुंच कर निगला हुआ भोजन पेट में स्रावित एंजाइमों से मुलायम हो जाता है। उसके बाद भोजन यहां से पेट के दूसरे हिस्से में पहुंचता है। इस हिस्से में भोजन जुगाली करने लायक हो जाता है। इसके बाद जानवर अपने किए हुए भोजन को मुंह में लाकर काफी देर तक  चबाते रहते हैं। जुगाली की क्रिया पूरी होने के उपरांत भोजन पेट के  तीसरे भाग में पहुंच जाता है। पेट के तीसरे हिस्से में इसमें कुछ और पाचक रस मिल जाते हैं और अंत में यह भोजन पेट की मांसपेशियों द्वारा पचने के लिए आमाशय में भेज दिया जाता है। इस तरह भोजन के पचने की क्रिया पूरी हो जाती है।

चैत्र नवरात्रि में कन्या पूजन का महत्व

चैत्र मास की नवरात्रि शुक्रवार को प्रारंभ हो गई है, नवरात्रि के साथ ही भारतीय नववर्ष का भी आरंभ हो गया है| बासंतिक नवरात्रि पर्व के इन नौ दिनों के दौरान आदिशक्ति सृष्टि रचियता माता जगदम्बा के नौ विभिन्न रूपों की आराधना की जाती है|

हिन्दू वर्ष के आरम्भ में अर्थात चैत्र माह के शुक्ल पक्ष के प्रथम दिवस से नवरात्रि का आरंभ होता है इसे बासंतिक नवरात्रि कहते हैं| ये नवरात्र शीत ऋतु बीतने और ग्रीष्म ऋतु आरम्भ होने वाली होती है उस दौरान आती है| नवरात्रि के नौ दिन वर्ष के सर्वाधिक शुद्ध एवं पवित्र दिवस माने गए हैं| वर्ष के इन नौ और नौ अर्थात् 18 दिनों का भारतीय धर्म एवं दर्शन में विशेष ऐतिहासिक महत्व है और इन्हीं दिनों में बहुत सी दिव्य घटनाओं के घटने की जानकारी हिन्दू पौराणिक ग्रन्थों में मिलती है|

धर्म ग्रंथों के अनुसार तीन वर्ष से लेकर नौ वर्ष की कन्याएं साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती है। शास्त्रों के अनुसार एक कन्या की पूजा से ऐश्वर्य, दो की पूजा से भोग और मोक्ष, तीन की अर्चना से धर्म, अर्थ व काम, चार की पूजा से राज्यपद, पांच की पूजा से विद्या, छ: की पूजा से छ: प्रकार की सिद्धि, सात की पूजा से राज्य, आठ की पूजा से संपदा और नौ की पूजा से पृथ्वी के प्रभुत्व की प्राप्ति होती है। कन्या पूजन की विधि इस प्रकार है-

पूजन विधि-

कन्या पूजन में तीन से लेकर नौ साल तक की कन्याओं का ही पूजन करना चाहिए इससे कम या ज्यादा उम्र वाली कन्याओं का पूजन वर्जित है। अपने सामथ्र्य के अनुसार नौ दिनों तक अथवा नवरात्रि के अंतिम दिन कन्याओं को भोजन के लिए आमंत्रित करें। कन्याओं को आसन पर एक पंक्ति में बैठाएं। ऊँ कुमार्यै नम: मंत्र से कन्याओं का पंचोपचार पूजन करें। इसके बाद उन्हें रुचि के अनुसार भोजन कराएं। भोजन में मीठा अवश्य हो, इस बात का ध्यान रखें। भोजन के बाद कन्याओं के पैर धुलाकर विधिवत कुंकुम से तिलक करें तथा और यथाशक्ति दक्षिणा देकर विदा करें| 

जानिए आपके लिए कैसा रहेगा यह वर्ष, होगा बड़ा चमत्कार

हिंदू नव वर्ष का प्रारंभ चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है। इसे हिंदू नव संवत्सर या नव संवत कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन से सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी।

हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष 22 मार्च 2012 को रात 7.10 बजे विक्रम संवत् 2069 का प्रारंभ कन्या लग्न में हो गया| इस वर्ष विश्वावसु नाम का संवत्सर रहेगा, जिसका स्वामी राहु है। इस वर्ष का राजा और मंत्री शुक्र है साथ ही दुर्गेश का पद भी शुक्र के ही पास है। इससे खुशहाली और विलासिता बढ़ेगी। पैदावार अच्छी होगी और स्त्रियों का वर्चस्व बढ़ेगा| इस बार 23 मार्च से विश्वासु नामक नया संवत्सर शुरू हो रहा है। यह 12 के स्थान पर 13 महीने का होगा। भादो दो महीने का होगा। 

इस वर्ष का नाम आश्विन है। चातुर्मास के बादलों का नाम आवृत्त है। रोहिणी का निवास पर्वत में है। समय का निवास कुम्हार के घर में है। कुल 20 विश्वा समय का वाहन दार्दुर है। इस साल 2 सोमवती अमावस्या हैं। दो सोमवती पंचमी हैं। 2 अंगारक चतुर्थी हैं। 2 भानु सप्तमी हैं। 3 बुधाष्टमी है। एक रवि दशमी है। और कुल शुभ मुहूर्त 390 हैं। साल के 384 दिन हैं। 20 विश्वा में सत्य एक विश्वा , धर्म 1 विश्वा , अधर्म 8 विश्वा , दुष्कर्म 5 विश्वा और पाप 5 विश्वा है। शनि की दृष्टि पश्चिम में रहेगी।

नववर्ष में कैसी रहेगी ग्रहों की स्थिति-

विक्रम संवत् 2069 में शनि अधिकांश समय तुला राशि में ही व्यतीत करेगा। यह शनि की उच्चर राशि है। हालांकि 16 मई को ही यह वक्र गति से घूमता हुआ कुछ समयके लिए कन्या राशि में लौटेगा। यहां शनि का ठहराव 4 अगस्त तक रहेगा और फिर से तुला राशि में लौट आएगा और पूरे संवत्सनर वहीं रहेगा। 

बृहस्पति साल के शुरूआत में जहां मेष राशि में होगा वहीं 17 मई को यह अपनी राशि बदलकर वृष में चला जाएगा। मेष जहां मंगल के अधिकार की राशि है वहीं वृष शुक्र के अधिकार वाली राशि है। 

संवत्सशर समाप्त होने तक गुरु इसी राशि में बना रहेगा। नववर्ष प्रवेश के समय राहू वृश्चिक और केतू वृष राशि में होंगे। हमेशा वक्री चलने वाले ये छाया ग्रह 6 दिसम्बंर को राशि बदलेंगे। राहू तुला और केतू मेष राशि में आ जाएंगे। बड़े ग्रहों का राशि परिवर्तन संकेत देता है कि मई के बाद देश, समाज, व्यापार एवं अन्य क्षेत्रों में बड़े परिवर्तन दिखाई देंगे। सितम्बर में राजनीति में बड़ी उथल-पुथल के संकेत हैं।

व्यापार के लिए कैसा रहेगा नववर्ष-

व्यापार की दृष्टि से यह वर्ष काफी उथल-पुथल वाला रहेगा। सबसे अधिक उतार-चढ़ाव शेयर बाजार में देखने को मिलेगी। इस साल राहु, शनि और मंगल व्यापार पर पूरा-पूरा असर डालेंगे। व्यापार में तेजी-मंदी कादौर साल के अंत तक जारी रहेगा क्योंकि विक्रम संवत 2069 में पूरे वर्ष राहु मंगल के घर वृश्चिक राशि में भ्रमण करेगा जिसके कारण सोना-चांदी, लोहा के बाजार में उतार-चढ़ाव देखने को मिलेगा। 

शनि राहु का द्विद्वादश योग विश्व बाजार में उतार-चढ़ाव का कारण रहेगा।औद्योगिक क्षेत्रों में थोड़ी मंदी रहेगी लेकिन तेल, खाद्य पदार्थ, कोयला, बिजली, रसोई गैस व धातु के भावों में वृद्धि होने के योग हैं। मनोरंजन एवं कॉस्मेटिक्स व्यापार में मंदी आएगी। तुला राशि में शनि के जाने से अनाज की कमी होगी जिसके कारण दाम में अचानक वृद्धि होगी।

शेयर बाज़ारों के लिए कैसा रहेगा नववर्ष-

शनि-गुरु आमने-सामने सम सप्तम योग बना रह हैं जिससे शेयर बाजार थोड़े घटकर बढ़ेंगे। मार्च के बाद व्यापार थोड़ा सोच-समझकर करें। अप्रैल में उतार-चढ़ाव जारी रहेगा। जून में बड़ा फेरबदल होने की संभावना है। अक्टूबर-नवंबर में शेयर बाजार में अचानक गिरावट दर्ज की जाएगी जो बड़ी नुकसानदायक साबित होगी।

इस वर्ष महिलाओं की रहेगी प्रभुता -

शुक्र ग्रह की प्रधानता बताती है कि राष्ट्रीय राजनीति के नियंत्रण में स्त्री वर्ग की विशेष भूमिका रहेगी| भारत में इस समय देशी-विदेशी मूल के अनेक संवतों का प्रचलन है किंतु सर्वाधिक लोकप्रिय विक्रम संवत ही है|

आज से लगभग 2069 वर्ष पूर्व यानी 57 ई.पू में भारतवर्ष के प्रतापी राजा विक्रमादित्य ने देशवासियों को 95 शक राजाओं को पराजित करके भारत को उनके अत्याचारों से मुक्त किया था| उसी विजय की स्मृति में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि से विक्रम संवत का भी आरम्भ हुआ था|

प्राचीन काल में नया संवत चलाने से पहले विजयी राजा को अपने राज्य में रहने वाले सभी लोगों को ऋण-मुक्त करना आवश्यक होता था| राजा विक्रमादित्य ने भी अपने सभी नागरिकों का कर्ज राज्यकोष से चुकाया और उसके बाद चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से मालवगण के नाम से नया संवत चलाया|

फसलों के लिए कैसा रहेगा विक्रम संवत-

फसलों का स्वामी चंद्रमा है। धान्य पदार्थ शनि के आधीन हैं। मेघ यानी वर्षा का स्वामी गुरु है। रसों का स्वामी मंगल है, शुष्क और नीरस पदार्थ शनि के आधीन हैं। फल आदि गुरु के आधीन हैं। धन-सम्पत्ति का स्वामी सूर्य है। सुरक्षा और सेना का स्वामी गुरु है। इन दशाधिकारियों के बीच राजा और मंत्री का पद शुक्र के आधीन है। 

विक्रम संवत् 2069 में होंगे दो सूर्य व एक चंद्र ग्रहण

 विक्रम संवत् 2069 का प्रारंभ 23 मार्च, शुक्रवार की शाम कन्या लग्न में हो रहा है। इस दौरान शनि ग्रह तुला राशि में, राहु वृश्चिक राशि में , सूर्य चन्द्रमा और बुध मीन राशि में ,गुरु और शुक्र मेष राशि में , केतु वृष राशि में और मंगल सिंह राशि में रहेगा। संवत्सर का नाम विश्वावसु है। ज्योतिष के अनुसार इस संवत् में दो सूर्य व एक चंद्रग्रहण होगा। इनमें से सिर्फ एक सूर्यग्रहण ही भारत में दिखाई देगा शेष दो भारत में दिखाई नहीं देंगे| 

आपको बता दें कि इस संवत कब-कब होंगे ग्रहण-

कंकड़ाकृति सूर्यग्रहण-

इस वर्ष का पहला ग्रहण यानि कि कंकड़ाकृति सूर्यग्रहण ज्येष्ठ मास की अमावस्या (20 मई दिन रविवार) को होगा। यह ग्रहण कृत्तिका नक्षत्र, वृष राशि में होगा, जो भारत के केवल पूर्वी भाग में खण्डग्रास रूप में दिखाई देगा। ग्रहण का मोक्ष दूसरे दिन यानी 21 मई, सोमवार को सुबह 4 बजकर 51 मिनट पर होगा।

खण्डग्रास चंद्रग्रहण-

इसके बाद संवत् 2069 के ज्येष्ठ मास में दूसरा ग्रहण भी होगा। ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा (4 जून दिन सोमवार) को खण्डग्रास चंद्रग्रहण होगा, यह भारत में दिखाई नहीं देगा इसलिए धार्मिक दृष्टि से भारत में इसकी कोई मान्यता नहीं रहेगी। यह ग्रहण ज्येष्ठा नक्षत्र, वृश्चिक राशि में होगा। 

खग्रास सूर्यग्रहण- 

इस वर्ष का तीसरा और अंतिम खग्रास सूर्यग्रहण कार्तिक मास की अमावस्या (13/14 नवंबर, मंगलवार) को होगा। यह ग्रहण भी भारत में दिखाई नहीं देगा इसलिए धार्मिक दृष्टि से भारत में इसका कोई महत्व नहीं रहेगा। यह ग्रहण विशाखानक्षत्र तुला राशि में होगा। 

आइये जाने आखिर मंदिरों में क्यों बजाया जाता है घंटा

आप जब भी मंदिर जाते है तो आपने देखा होगा कि मंदिर में घंटों की आवाज आती रहती हैं, क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर मंदिर में घंटा क्यों बजाया जाता है| अगर नहीं पता है तो आज हम आपको घंटा से जुड़े धार्मिक और वैज्ञानिक कारण बताते हैं|

तो आइये जाने मंदिर में आखिर क्यों बजाया जाता है घंटा-

आपको बता दें कि शास्त्रों में भगवान की कृपा शीघ्र प्राप्त करने के लिए कई प्रकार के नियम बनाए गए हैं। इन नियमों का पालन पर देवी-देवता जल्दी ही प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों की परेशानियों का निराकरण कर देते हैं।

मंदिरों से हमेशा घंटी की आवाज आती रहती है। सामान्यत: सभी श्रद्धालु मंदिरों में लगी घंटी अवश्य बजाते हैं। घंटी की आवाज हमें ईश्वर की अनुभूति तो कराती है साथ ही हमारे स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है। घंटी आवाज से जो कंपन होता है उससे हमारे शरीर पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। घंटी की आवाज से हमारा दिमाग बुरे विचारों से हट जाता है और विचार शुद्ध बनते हैं।

पुराणों में भी कहा गया है कि मंदिर में घंटी बजाने से हमारे कई पाप नष्ट हो जाते हैं। जब सृष्टि का प्रारंभ हुआ तब जो नाद (आवाज) था, वहीं स्वर घंटी की आवाज से निकलती है। यही नाद ओंकार के उच्चारण से भी जाग्रत होता है। घंटे को काल का प्रतीक भी माना गया है। धर्म शास्त्रियों के अनुसार जब प्रलय काल आएगा तब भी इसी प्रकार का नाद प्रकट होगा। 

इतना ही नही इसके वैज्ञानिक कारण भी है। जब घंटी बजाई जाती है तो उससे वातावरण में कंपन उत्पन्न होता है जो वायुमंडल के कारण काफी दूर तक जाता है। इस कंपन की सीमा में आने वाले जीवाणु, विषाणु आदि सुक्ष्म जीव नष्ट हो जाते हैं तथा मंदिर का तथा उसके आस-पास का वातावरण शुद्ध बना रहता है। साथ ही इस कंपन का हमारे शरीर पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। घंटी की आवाज से हमारा दिमाग बुरे विचारों से हट जाता है और विचार शुद्ध बनते हैं। नकारात्मक सोच खत्म होती है। 

इसलिए अब से जब भी आप मंदिर या किसी भी देव स्थान पर जाएँ तो घंटा जरुर बजाएं|

आचार्य विनीत कुमार
मो. 9554963764 

धरती का दूसरा स्वर्ग है मनाली

मनाली हिमाचल प्रदेश राज्य में स्थित कुल्लू घाटी का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। मनाली कुल्लू से उत्तर दिशा में केवल 40 किमी की दूरी पर लेह की ओर जाने वाले राष्‍ट्रीय राजमार्ग पर घाटी के सिरे के पास स्थित है। मनाली भारत का प्रसिद्ध पर्वतीय स्थल है। समुद्र तल से 2050 मीटर की ऊँचाई पर स्थित मनाली व्यास नदी के किनारे बसा हुआ है। सर्दियों में मनाली का तापमान 0° से नीचे पहुँच जाता है। मनाली में आप यहाँ के ख़ूबसूरत प्राकृतिक दृश्यों के अलावा हाइकिंग, पैराग्लाइडिंग, राफ्टिंग, ट्रैकिंग, कायकिंग जैसे खेलों का भी आनंद उठा सकते हैं। 

मनाली के जंगली फूलों और सेब के बगीचों से छनकर आती सुंगंधित हवाएँ दिलो दिमाग को ताज़गी से भर देती हैं। सबसे पहले बर्फ़ से ढकी हुई पहाडियाँ, साफ पानी वाली व्‍यास नदी दिखाई देती है। दूसरी ओर देवदार और पाइन के पेड़, छोटे छोटे खेत और फलों के बागान दिखाई देते हैं।

हिमाचल प्रदेश में स्थित मनाली कुल्लू घाटी के पूर्वी छोर पर बसा शांत पर्वतीय पर्यटन स्थल है। बर्फ से ढंकी चोटियां, देवदार के ऊंचे वृक्ष, कलकल बहती व्यास नदी और शांत-प्राकृतिक नजारों से भरपूर वातावरण पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर खींच लेता है.

मनाली में रोमांचकारी पर्यटन भी मशहूर हैं। यहां स्थित पर्वतारोहण संस्थान रोमांचकारी पर्यटन में इच्छुक पर्यटकों को गर्मियों में पर्वतारोहण का प्रशिक्षण भी देता है। मनाली शीतकालीन खेल पर्यटाकों के लिए भी आकर्षण का केन्द्र है। 

प्रमुख आकर्षण-

हिडिम्बा मंदिर-

समुद्र तल से 1533 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर धूंगरी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर यहां की स्थानीय देवी हिडिम्बा को समर्पित है। हिडिम्बा महाभारत में वर्णित भीम की पत्नी थी। मई के महीने में यहां एक उत्सव मनाया जाता है। महाराज बहादुर सिंह ने यह मंदिर 1553 ई. में बनवाया था। लकड़ी से निर्मित यह मंदिर पैगोड़ा शैली में बना है। 

वशिष्ठ-

मनाली से 3 किमी. दूर वशिष्ठ स्थित है। प्राचीन पत्थरों से बने मंदिरों का यह जोड़ा एक दूसरे के विपरीत दिशा में है। एक मंदिर भगवान राम को और दूसरा संत वशिष्ठ को समर्पित है।

कोठी-

मनाली से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, कोठी। यहां से पहाड़ों का मनोरम दृश्य दिखाई देता है। यहां बीस नदी का तेजी से बहता ठंडा पानी अदभुत नजारा पेश करता है।

राहला फॉल्स, मनाली सैंचुरी-

कोठी से दो किमी की दूरी पर बीस नदी पर राहला फॉल्स स्थित है। यहां 50 मीटर की ऊंचाई से गिरता झरने का पानी सैलानियों को खूब लुभाता है। मनाली सैंचुरी में पर्यटक कैपिंग के लिए पहुंचते हैं।

सोलन वैली-

यहां से 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सोलन वैली सैलानियों को खासी आकर्षित करती है। यहां ट्रैकिंग, स्कीइंग और माउंटेनियरिंग के कैंप आयोजित किए जाते हैं। 10 से 14 फरवरी के बीच यहां सालाना विंटर कार्निवाल का आयोजन किया जाता है।

रोहतांग दर्रा-

मनाली से 50 किमी. दूर समुद्र तल से 4111 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह दर्रा साहसिक पर्यटकों को बहुत रास आता है। दर्रे के पश्चिम में दसोहर नामक एक खूबसूरत झील है। गर्मियों के दिनों मे भी यह स्थान काफी ठंडा रहता है। जून से नवंबर के बीच लाहौल घाटी से यहां पहुंचा जा सकता है। यहां से कुछ दूरी पर सोनपानी ग्लेशियर है।

रोहतांग भी है मनाली के पास-

मनाली के आस-पास के इलाकों में सैलानियों के लिए बहुत कुछ बिखरा पड़ा है। प्रकृति ने यहां आने वालों के लिए अपना खजाना दोनों हाथों से खोल दिया है। पहाड़ियों पर बने छोटे-छोटे घर और इनके आस-पास फैली हरियाली मन को लुभाती है। यहां से 51 किमी की दूरी पर मशहूर पर्यटक स्थल रोहतांग पास स्थित है। यहां हर साल हजारों की संख्या में सैलानी घूमने के लिए आते हैं।

व्यास कुंड-

यह कुंड पवित्र व्यास नदी का जल स्रोत है। व्यास नदी में झरने के समान यहां से पानी बहता है। यहां का पानी एकदम साफ और इतना ठंडा होता है कि उंगलियों को सुन्न कर देता है। इसके चारों ओर पत्थर ही पत्थर हैं और वनस्पतियां बहुत कम हैं। 

ओल्ड मनाली-

मनाली से 3 किमी. उत्तर पश्चिम में ओल्ड मनाली है जो बगीचों और प्राचीन गेस्टहाउसों के लिए काफी प्रसिद्ध है। मनालीगढ़ नामक क्षतिग्रस्त किला भी यहां देखा जा सकता है। 

सोलंग नुल्लाह-

मनाली से 13 किमी की दूरी पर स्थित सोलंग नुल्लाह 300 मीटर की स्की लिफ्ट के लिए लोकप्रिय है। इस खूबसूरत स्थान से ग्लेशियर और बर्फ से ढकी पहाड़ों की चोटियों के मनोहर नजारे देखे जा सकते हैं। नजदीक ही मनाली की प्रारंभिक राजधानी जगतसुख भी देखने योग्य जगह है। 

मनु मंदिर-

ओल्ड मनाली में स्थित मनु मंदिर महर्षि मनु को समर्पित है। यहां आकर उन्होंने ध्यान लगाया था। मंदिर तक पहुंचने का मार्ग दुरूह और रपटीला है। 

अर्जुन गुफा-

कहा जाता है महाभारत के अर्जुन ने यहां तपस्या की थी। इसी स्थान पर इन्द्रदेव ने उन्हें पशुपति अस्त्र प्रदान किया था। 

कब जाएं-

यहां जाने के लिए गर्मी के लिहाज से मार्च से जून और ठण्ड के लिहाज से अक्टूबर से फरवरी के महीने ज्यादा ठीक रहते हैं। 

कैसे जाएं-

वायुमार्ग - मनाली से 50 किमी. की दूरी पर भुंटार नजदीकी एयरपोर्ट है। मनाली पहुंचने के लिए यहां से बस या टैक्सी की सेवाएं ली सकती हैं।

रेलमार्ग - जोगिन्दर नगर नैरो गैज रेलवे स्टेशन मनाली का नजदीकी रेलवे स्टेशन है, जो मनाली से 135 किमी. की दूरी पर है। मनाली से 310 किमी. दूर चंडीगढ़ नजदीकी ब्रॉड गेज रेलवे स्टेशन है। 

सड़क मार्ग - मनाली हिमाचल और आसपास के शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। राज्य परिवहन निगम की बसें अनेक शहरों से मनाली जाती हैं।