संदकफू में देखें बर्फ के बीच धरती के पांच उच्चतम पर्वत शिखर

प्रकृति जब अपनी अदाएं बिखेरती है तब वो किसी भी बंदिश को नहीं मानती। यही बात उन प्रेमियों पर भी लागू होती है जो नज़ारे लेने के लिए धरती और आकाश में कोई अंतर नहीं करते। यदि आप भी उनमे से एक हैं तब आप को बुला रहा है हिमालय। जो ऐसे ही कुदरती हुस्न से अटा पड़ा हुआ है| आज हम आपको बताते हैं संदकफू के बारे में जो पश्चिम बंगाल से सिक्किम तक पसरी सिंगालिला श्रंखलाओं की सबसे ऊंची पर्वत चोटी है।

संदकफू समुद्र तल से 3611 मीटर पर है। यहाँ से पर्यटक धरती के पांच उच्चतम पर्वत शिखर में से चार को एक साथ एक समय में देख सकते हैं। ये चार हैं, माउण्ट एवरेस्ट (8848 मीटर), कंचनजंघा (8585 मीटर), लाहोत्से (8516 मीटर) और मकालू (8463 मीटर)। यहाँ का सबसे बड़ा आकर्षण है सूरज की पहली लाल किरण वो इसलिए की जब पहली किरण इन बर्फीली चोटियों पर पड़ती है तब अलौकिक नज़ारा होता है| इसी को देखने के लिये सवेरे चार बजे से सैलानी हाड जमाती ठण्ड में भी जमे रहते हैं।

सिर्फ यही नहीं मनयभंजन से संदकफू आने तक प्रकृति आप के लिए अपनी बाहें खोले खड़ी नज़र आती है| ये पूरा का पूरा मार्ग भारत-नेपाल सीमा के साथ चलता है| पूरे रास्ते आप नेपाल व भारत दोनों देशो की सीमओं को लांघते हैं|

पूरा रास्ता आपको किसी परी कथा सरीखा लगेगा| दूर- दूर तक फैली हरियाली सीना ताने खड़े पर्वत शिखर मखमली सड़क एलिस इन वंडरलैंड सरीखी ही है, यहाँ के लोग म्रदुभाषी व सीधे-साधे है जोकि अपनी संस्कृति धर्म से जुड़े है। पूरे इलाके में फैले गोम्पा व बौद्ध मठ इसके गवाह हैं।

मनयभंजन से आगे चलने पर चित्रे, तुंबलिंग, कालापोखरी, संदकफू, तक आपको शेरपाओं के लॉज आसानी से मिल जायेंगे जहां कम मूल्य पर ठहरने की जगह और घर जैसा खाना मिलेगा।

आप जब भी यहाँ आये एक बार तुम्बा [देसी बीयर] ज़रूर पिये। सुखाया गया पनीर जो याक के दूध से बनाया जाता है उसे चखे बिना तो आप रह ही नहीं सकते। इसके साथ थुप्पा और नेपाली मोमो ऐसा जो आपकी भूख और बढ़ा देगा।

कैसे पहुंचें

आपका वास्तविक सफ़र आरंभ होगा मनयभंजन से। मनयभंजन तक पहुँचने के लिए दो सड़क मार्ग हैं| पहला सीधा जलपाईगुडी से, इस रास्ते पर न्यू जलपाईगुडी से मनयभंजन की दूरी नब्बे किमी. है। दूसरा है, न्यू जलपाईगुडी से घूम शहर जो दार्जीलिंग से नौ किमी. पहले है। घूम से मनयभंजन का सफर सिर्फ एक घण्टे का है। साधन के तौर पर जीप है। न्यू जलपाईगुडी या दार्जीलिंग से पूरी जीप भी बुक कराई जा सकती है|

कब जाएँ-

संदकफू इलाका सिंगालिला राष्ट्रीय पार्क के अंतर्गत आता है। 15 जून से 15 सितम्बर तक यह पार्क पर्यटकों के लिये बन्द रहता है। मई और जून में मौसम में गुलाबी ठंडक रहती है। इसके बाद ठण्डक अपना असर दिखाती है। यहां जमकर बर्फ गिरती है, जिसका मजा लिया जा सकता है। 

मनयभंजन से आपको गाइड मिल जायेंगे जो एक दिन का 250 से 300 रूपया लेते हैं|

धरती के स्वर्ग को देखना हो तो आएं कश्मीर

जब भारत में प्रकृति की बेइंतहा खूबसूरती की बात हो तो कश्मीर का नाम सबसे पहले आता है। कश्मीर, भारत के मुकुट में जड़ा वो नगीना है जिसकी चमक देश-विदेश के सैलानियों को बरबस आकर्षित करती है। 

आतंकवाद के साये में कई साल गुजारने के बाद पिछले कुछ समय से फिर घाटी की वादियां सैलानियों से गुलजार होने लगी हैं। पिछले दो दशकों का आतंकवाद का दौर लोगों को यहां आने के बारे में डराता जरूर है लेकिन यहां के प्रति लोगों का आकर्षण कम नहीं कर पाया। यही वजह है कि मौका मिलते ही लोग सोचते जरूर हैं कि चलो, एक बार कश्मीर हो आयें। 

इस खूबसूरत घाटी में चारों ओर छाई प्राकृतिक खूबसूरती यहां आने वाले हर व्यक्ति को एक अलग ताजगी का एहसास कराती है। शायद कश्मीर की इसी खूबसूरती से प्रभावित होकर मुगल सम्राट जहांगीर ने इसे ‘धरती पर जन्नत’ जैसी उपमा से नवाजा था। 

वास्तव में यह प्रकृति की उदारता ही कही जायेगी कि क्रूर ताकतों के बारूदी प्रहारों को झेलते हुए भी उसने कश्मीर के प्राकृतिक वैभव को किसी भी मायने में कम नहीं होने दिया। आज कश्मीर घाटी में हर ओर सुरक्षा बलों की मौजूदगी जरूर नजर आती है किन्तु पर्यटकों के लिये वो किसी तरह असुविधाजनक नहीं है।

हिमालय और पीर पंजाल की बर्फ से ढकी चोटियों के बीच फैली यह घाटी हर मौसम में सैलानियों के लिये एक अनुकूल सैरगाह है क्योंकि हर मौसम में इसका बदला स्वरूप इसे एक अलग सौन्दर्य प्रदान करता है। राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर कश्मीर घाटी का सबसे प्रमुख शहर है। इस शहर को ‘लेक सिटी’ भी कहा जाता है क्योंकि यहां डल झील, नगीन झील और शहर के बाहर वूलर झील जैसी समृद्ध झीलें हैं। वैसे डल झील यहां का सबसे पहला आकर्षण है। 

झील के सामने तख्त-ए-सुलेमान नामक पहाडी है जिस पर प्रसिद्ध शंकराचार्य मन्दिर स्थित है। यह प्राचीन मन्दिर भगवान शंकर को समर्पित है। मन्दिर का महत्व इसलिये भी है क्योंकि यहां आदि शंकराचार्य ने दसवीं सदी में अपने कदम रखे थे। यहां से डल झील और पूरे श्रीनगर का विहंगम दृश्य देखते ही बनता है। 

झील की दूसरी दिशा में हरिपर्वत नामक पहाडी है। वहां एक किला स्थित है जिसका निर्माण 18वीं शताब्दी में अफगान गवर्नर अता मुहम्मद खान ने कराया था। मुगलों द्वारा वादी-ए-कश्मीर में बनवाये गये उद्यान भी पर्यटकों के लिये विशेष आकर्षण हैं।

इन उद्यानों की विशेषता है विभिन्न सोपानों पर बने मनमोहक बगीचे, उनके मध्य बहते सुन्दर झरने और आकर्षक फव्वारे। इन बगीचों में खिले रंगबिरंगे फूल और ऊंचे घने चिनार के पेड इनकी खूबसूरती और बढाते हैं। मुगल उद्यानों की पृष्ठभूमि में जाबराम पहाडियां हैं तो सामने डल झील का झिलमिलाता विस्तार है। 

इनमें शालीमार बाग सबसे भव्य है जिसे बादशाह जहांगीर ने अपनी बेगम नूरजहां के लिये बनवाया था। निशात बाग 1633 में नूरजहां के भाई ने बनवाया था। शाहजहां द्वारा बनवाया गया उद्यान चश्म-ए-शाही है। इस उद्यान में एक चश्में के आसपास हरा-भरा बगीचा है। इस चश्मे का पानी भी काफी चमत्कारिक और रोगनाशक माना जाता है। लोग दूर-दूर से इसका पानी भरकर ले जाते हैं। 

श्रीनगर में अनेक ऐतिहासिक मस्जिद और दरगाह भी देखने योग्य हैं। इनमें ‘हजरतबल’ सबसे महत्त्वपूर्ण धर्मस्थल है। कहते हैं यहां पैगंबर हजरत मुह्म्मद का बाल संग्रहित है। कुछ धार्मिक दिवसों पर यह श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ प्रदर्शित किया जाता है। डलझील के पश्चिमी किनारे पर स्थित इस मस्जिद का संगमरमर का सफेद गुम्बद और मीनार दूर से ही इसकी भव्यता का एहसास कराते हैं। 

‘शाह-ए-हमदान’ कश्मीर में बनी प्रथम मस्जिद होने के कारण दर्शनीय है। इसका निर्माण 1395 में किया गया था। बाद में कई बार इसका जीर्णोद्धार किया गया। इनके अलावा जामा मस्जिद, दस्तगीर साहिब, मख्दूय साहिब भी दर्शनीय हैं। श्रीनगर शहर, झेलम नदी के दोनों ओर बसा है। इस नदी पर कई स्थानों पर लकडी के पुराने पुल आज भी मौजूद हैं। नदी के आसपास नजर आते टीन की ढलवा छत वाले मकान एक अलग ही मंजर प्रस्तुत करते हैं। 

श्रीनगर से 27 किलोमीटर दूर हिंदुओं का पवित्र तीर्थ ‘खीर भवानी मन्दिर’ स्थित है। इस मन्दिर में देवी को खीर समर्पित करने की परम्परा है। नवरात्रों में इस मन्दिर में भीड रहती है। श्रीनगर के अतिरिक्त कश्मीर घाटी में ऐसे अनेक स्थल हैं, जहां प्रकृति अपने अलग-अलग रूपों में विद्यमान है। समुद्र तल से 2130 मीटर की ऊंचाई पर स्थित पहलगाम भी ऐसा ही एक स्थान है। किसी जमाने में पहलगाम चरवाहों का छोटा सा गांव मात्र था। किन्तु यहां की अदभुत नैसर्गिक छटा ने इसे कालान्तर में खुशनुमा सैरगाह बना दिया। 

लिद्दर नदी और शेषनाग झील से आती धारा के संगम के निकट बसे पहलगाम में पहुंच पर्यटकों का साक्षात्कार प्रकृति के एक अद्वितीय रूप से होता है। बैसरन में सुन्दर बुग्याल, और हरे-भरे जंगल, आरू व चन्दनवाडी नामक स्थानों की खूबसूरती पर्यटकों को अवश्य प्रभावित करती है। पहलगाम से हर वर्ष होने वाली अमरनाथ यात्रा भी शुरू होती है। श्रीनगर से पहलगाम जाते हुए मार्ग में केसर की खेती के लिये विख्यात पाम्पोर, नौवीं शताब्दी के शहर अवंतिपुर के कुछ भग्नावशेष और भगवान सूर्य का मार्तंड मन्दिर भी देखे जा सकते हैं।

गुलमर्ग देश का प्रसिद्ध स्कीइंग केन्द्र है। 2650 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस स्थान का सबसे बडा आकर्षण बर्फ से ढके ढलान हैं। इसलिये यह विंटर स्पोर्ट्स यानी बर्फ के खेलों का आदर्श स्थल है। यही गंडोला यानी केबलकार द्वारा बर्फीली ऊंचाइयों को छूकर आना सैलानियों के लिये एक अविस्मरणीय अनुभव होता है। शौकीया तौर पर थोडी बहुत स्कीइंग कर उन्हें एक नये रोमांच का अनुभव भी मिलता है। गर्मियों में जब निचले स्थानों की बर्फ पिघलती है तो यहां मखमली घास के मैदान उन्हें प्रभावित करते हैं।

सोनमर्ग भी कश्मीर की एक निराली सैरगाह है। सुन्दर पहाडों और देवदार के वृक्षों से घिरा सोनमर्ग एक रमणीक स्थान है। यहां से कुछ दूर थाजीवास ग्लेशियर देखना हो तो घोडों पर आसानी से जा सकते हैं। यहां बर्फ पर घूमने का आनन्द भी लिया जा सकता है। अमरनाथ यात्रा का एक मार्ग सोनमर्ग से भी जाता है। समुद्र तल से 2012 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कोकरनाग औषधीय गुणों से युक्त चश्मों की वजह से पर्यटकों को पसन्द आता है। इस स्थान को पाप शोधन नाग भी कहते हैं। नाग का अर्थ यहां चश्मा भी होता है। बेरीनाग झेलम नदी का उदगम स्थल है। यहां स्थित चश्मों को बादशाह जहांगीर ने एक मोहक सरोवर में एकत्र कर एक अलग ही रूप प्रदान किया था। अस्सी मीटर दायरे में फैले इस सरोवर के आसपास सुन्दर बगीचे हैं।

क्या खरीदें: कश्मीर की यादें साथ ले जानी हों तो यहां से अनेक यादगार वस्तुएं खरीदी जा सकती हैं। श्रीनगर में कई अच्छे बाजार व एंपोरियम हैं जहां से अखरोट की लकडी और पेपरमेशी के बने हस्तशिल्प, कश्मीरी कढाई के वस्त्र, पश्मीना शॉल, संगमरमर के बने ज्वेलरी बॉक्स आदि खरीदे जा सकते हैं। अखरोट, बादाम व केसर भी सैलानी यहां से अवश्य खरीदते हैं।

इस अद्भुत मंदिर के बारे में सुनकर दंग रह जायेंगे आप

छत्तीसगढ़ में एक ऐसा अद्भुत मंदिर जिसके बारे में सुनकर हैरान हो जायेंगे आप| कहा जाता है कि इस मंदिर में एक शिवलिंग है जिसमें एक लाख छिद्र हैं| इसमें से एक छिद्र से पाताल का रास्ता है| यह सुनकर आपको विश्वास नहीं हो रहा होगा लेकिन यह सच है|

प्राप्त जानकारी के अनुसार, राजधानी रायपुर से 120 किमी दूर और शिवरीनारायण से 3 किमी दूरी पर खरौद नगर है। एक समय था जब प्राचीन छत्तीसगढ़ के पांच ललित केन्द्रों में से एक है। खरौद नगर को छत्तीसगढ़ की कशी के नाम से भी जाना जाता है| 

खरौद नगर में एक रामायणकालीन युग का लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर हैं। बताया जाता है कि इस मंदिर का जीर्णोद्धार रतनपुर के राजा खड्गदेव ने करवाया था। यहाँ के विद्वानों का यह मानना है कि इस प्राचीन मंदिर का निर्माण छठी शताब्दी में हुआ था|

इस मंदिर की सबसे रोचक बात है कि यहाँ एक शिवलिंग है| जिसमें एक लाख छिद्र हैं| इसलिए इस शिवलिंग को लक्षलिंग भी कहा जाता है| बताते हैं कि इन एक लाख छिद्रों में एक ऐसा छिद्र है जिसका रास्ता पाताल को जाता है| इसकी विशेषता यह है कि इस छिद्र में कितना भी पानी डाला जाए वह सब समां जाता है| 

इस मंदिर के बारे में यह भी कहा जाता है कि लंकापति रावण का वध करने के बाद जब भगवान श्रीराम को ब्रह्म हत्या का पाप लगा, तब इस पाप से मुक्ति पाने के लिए श्रीराम और लक्ष्मण रामेश्वर लिंग की स्थापना की थी। यह भी कहा जाता है कि इस शिवलिंग का अभिषेक भगवान राम के अनुज लक्ष्मण ने समस्त प्रमुख तीर्थ स्थलों से जल एकत्रित कर किया था| कहते हैं कि जब लक्ष्मण गुप्त तीर्थ शिवरीनारायण से जल लेकर अयोध्या लौट रहे थे तभी वे रोगग्रस्त हो गए| रोग से छुटकारा पाने के लिए लक्ष्मण ने भगवान शंकर की आराधना की| लक्ष्मण की आराधना से खुश होकर भगवान भोलेनाथ दर्शन देते हैं और लक्षलिंग रूप में विराजमान होकर लक्ष्मण को पूजा करने के लिए कहते हैं। लक्ष्मण शिवलिंग की पूजा करने के बाद रोग मुक्त हो जाते हैं और ब्रह्म हत्या के पाप से भी मुक्ति पा जाते हैं| 

मंदिर के मुख्य द्वार में प्रवेश करते ही सभा मंडप मिलता है। इसके दक्षिण तथा वाम भाग में एक-एक शिलालेख दीवार में लगा है। दक्षिण भाग के शिलालेख की भाषा अस्पष्ट है अत: इसे पढ़ा नहीं जा सकता। उसके अनुसार इस लेख में आठवी शताब्दी के इन्द्रबल तथा ईशानदेव नामक शासकों का उल्लेख हुआ है। मंदिर के वाम भाग का शिलालेख संस्कृत भाषा में है। चन्द्रवंशी हैहयवंश में रत्नपुर के राजाओं का जन्म हुआ था। इनके द्वारा अनेक मंदिर, मठ और तालाब आदि निर्मित कराने का उल्लेख इस शिलालेख में है। तदनुसार रत्नदेव तृतीय की राल्हा और पद्मा नाम की दो रानियाँ थीं। राल्हा से सम्प्रद और जीजाक नामक पुत्र हुए। पद्मा से सिंहतुल्य पराक्रमी पुत्र खड्गदेव हुए जो रत्नपुर के राजा भी हुए जिसने लक्ष्मणेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। इससे पता चलता है कि मंदिर आठवीं शताब्दी तक जीर्ण हो चुका था जिसके उद्धार की आवश्यकता पड़ी। इस आधार पर कुछ विद्वान इसको छठी शताब्दी का मानते हैं|

मूल मंदिर के प्रवेश द्वार के उभय पार्श्व में कलाकृति से सुसज्जित दो पाषाण स्तम्भ हैं। इनमें से एक स्तम्भ में रावण द्वारा कैलासोत्तालन तथा अर्द्धनारीश्वर के दृश्य खुदे हैं। इसी प्रकार दूसरे स्तम्भ में राम चरित्र से सम्बंधित दृश्य जैसे राम-सुग्रीव मित्रता, बाली का वध, शिव तांडव और सामान्य जीवन से सम्बंधित एक बालक के साथ स्त्री-पुरूष और दंडधरी पुरुष खुदे हैं। प्रवेश द्वार पर गंगा-यमुना की मूर्ति स्थित है। मूर्तियों में मकर और कच्छप वाहन स्पष्ट दिखाई देते हैं। उनके पार्श्व में दो नारी प्रतिमाएँ हैं। इसके नीचे प्रत्येक पार्श्व में द्वारपाल जय और विजय की मूर्ति है। लक्ष्मणेश्वर महादेव के इस मंदिर में सावन मास में श्रावणी और महाशिवरात्रि में मेला लगता है।

कामदगिरी की परिक्रमा के बिना अधूरी चार धाम की यात्रा



पौराणिक कथाओं में चित्रकूट का कामदगिरी पर्वत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह वह स्थान है जहां भगवान श्रीराम ने अयोध्या के बाद सबसे ज्यादा समय बिताया था। यहां के साधु-संतों का मानना है कि चार धाम की यात्रा करने के बाद कामदगिरी पर्वत की परिक्रमा किए बिना मनवांछित फल की प्राप्ति नहीं होती। 

ऐसी मान्यता है कि 14 वर्ष के वनवास के दौरान श्रीराम ने साढ़े 11 वर्ष कामदगिरी पर्वत के घने जंगलों में ही गुजारे थे। कामदगिरी पर्वत में रहने वाले एक संत एस.गौतम ने बताया कि जब भगवान श्रीराम यहां से जाने लगे तो चित्रकूट पर्वत ने उनसे कहा, "प्रभु आपने तो यहां वास किया है इसलिए अब यह भूमि पवित्र हो गई है लेकिन आपके जाने के बाद हमें कौन पूछेगा।" 

इस पर श्रीराम ने उन्हें वरदान देते हुए कहा, "अब आप कामद हो जाएंगे यानी इच्छाओं की पूर्ति करने वाले बन जाएंगे। जो आपकी शरण में आएगा उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी और उस पर हमारी भी कृपा बनी रहेगी।" कामदगिरी पर्वत की विशेषता है कि इसके चार प्रमुख द्वार, चार अलग-अलग दिशाओं में हैं। इसके बारे में पूछे जाने पर गौतम ने बताया कि श्रीराम इन्हीं जंगलों में निवास करते थे और यहां से निकलने के लिए उत्तर, पूर्व, पश्चिम और दक्षिण में एक-एक द्वार बनाए गए थे।

कामदगिरी पर्वत की परिक्रमा करने में लगभग डेढ़ घंटे का समय लगता है और इसकी पवित्रता की वजह से ही हमेशा यहां आने वाले सैलानियों की भीड़ लगी रहती है। दूर-दूर से लोग यहां अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए आते हैं। इस जंगल में हालांकि, बंदरों की संख्या बहुत ज्यादा है लेकिन ये सैलानियों को नुकसान नहीं पहुंचाते। 

बुंदेलखंड के इस इलाके में जीविकोपार्जन के साधन बहुत सीमित ही हैं लेकिन कामदगिरी पर्वत आने वाले सैलानियों पर यहां के स्थानीय लोगों की आय निर्भर करती है। पर्वत के चारों तरफ जरूरी सामानों की दुकानें लगाई गई हैं।

पर्दाफाश डॉट कॉम से साभार

सुरम्य प्रकृति बेतला राष्ट्रीय उद्यान की पहचान


धरती अब तपने लगी है और गर्मी अभी से सताने लगी है तो क्यों न ऐसी जगह चला जाए जहां चलती ठंडी बयार के झकोरोंसे मन हर्षित हो उठे और वृक्षों की भरमार प्रकृति के अनोखे उपहार का एहसास कराए। आइए चलें बेतला राष्ट्रीय उद्यान जहां सालभर पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है। बच्चों के मासूम मन यहां के वन्यजीवों को देख झूम उठता है और उनके अभिभावक प्राकृतिक छटा का लुत्फ उठाते नहीं थकते। 

यह राष्ट्रीय उद्यान झारखंड राज्य के पलामू प्रमंडल के पठारों पर है। प्रकृति में दिलचस्पी रखने वाले और अनुसंधान करने वालों के लिए यह स्थल उपयुक्त माना जाता है। यह क्षेत्र जैव विविधता के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण माना जाता है। मुख्य रूप से साल वन, मिश्रित पर्णपाती वन एवं बांस इस क्षेत्र में उपलब्ध हैं। वर्ष 1974 में व्याघ्र परियोजना के लिए चयनित नौ उद्यानों में से एक, बेतला का भी चयन किया गया था। 1026 वर्ग किलोमीटर में फैले इस परियोजना के अलावा राष्ट्रीय उद्यान 226 वर्ग किलोमीटर भूमि में फैला हुआ है। 

परियोजना के अंतर्गत बाघ सहित अन्य बड़े-छोटे सभी वन्य प्राणियों की सुरक्षा और संरक्षण के अलावा उनके निवास (वन एवं वनस्पति संवर्धन) पर विशेष ध्यान दिया जाता है। आंकड़ों के मुताबिक वर्तमान समय में यहां बाघ, सांभर, हिरण, बंदर, लंगूर, चीतल, लियोर्ड स्लोथ बीयर सहित कई वन्यजीव स्वच्छंद होकर विचरण करते हैं। साही, कोटरा, माउसडीयर, लंगूर, बंदर सहित कई वन्यप्राणी यहां बड़ी संख्या में हैं। यहां अब तक स्तनपायी की 47 प्रजातियों और पक्षियों की 174 प्रजातियों की पहचान हो चुकी है। साथ ही 970 पौधों की प्रजातियों, घास की 17 प्रजातियों एवं 56 अन्य महत्वपूर्ण औषधीय पौधों की पहचान की गई है। 

परियोजना के निदेशक एस़ ई़ एच़ काजमी ने बताया कि यहां पर्यटकों का आना-जाना बराबर लगा रहता है। पर्यटकों को रहने के लिए यहां कई विश्रामागार हैं और उद्यान के अंदर घूमने के लिए विभाग द्वारा वाहन दिया जाता है। यह सुविधा पाने के लिए पर्यटकों को एक निर्धारित राशि खर्च करनी पड़ती है। विभाग ने एक ट्री-हाउस का भी निर्माण करवाया है। वे कहते हैं कि इसके अलावा भी कई होटल और लॉज यहां हैं, जिसमें आधुनिक सुविधाएं हैं। 

बेतला राष्ट्रीय उद्यान आने वाले पर्यटक वर्ष 1857 की क्रांति में मुख्य भूमिका निभाने वाले चेरो राजाओं द्वारा बनवाए गए दो प्राचीन किलों (पलामू किला) को भी देखना नहीं भूलते। इस इलाके की सुंदरता को तीन नदियां- उत्तर कोयल, औरंगा व बूढ़ा नदी और बढ़ा देती हैं। प्राकृतिक छटा का आंनद लेने के लिए आसपास के क्षेत्रों में मिरचइया झरना, सुग्गा बांध, लोध जलप्रपात, मंडल बांध भी पर्यटकों को आकर्षित करता है। यों तो सालभर यहां पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है, मगर यहां पर्यटकों की आमद नवंबर से मार्च के बीच बढ़ जाती है। झारखंड के लातेहार जिले में पड़ने वाला बेतला राष्ट्रीय उद्यान रांची-डालटनगंज मार्ग पर राजधानी रांची से 156 किलामीटर की दूरी पर है, जबकि डाल्टनगंज रेलवे स्टेशन से महज 25 किलोमीटर दूर है।

पर्दाफाश डॉट कॉम से साभार

वीराने शहर की दास्तान




हमने किताबों में पढ़ी होगी कभी ऐसा वक़्त कि जब घरों के दरवाजों पर ताले नहीं लगाये जाते थे लोग बिना खौफ के रहते थे। ऐसा ही एक गांव राजस्थान के रेगिस्तान के बीच में बसा था। गांव का मुख्‍य-द्वार और गांव के घरों के बीच बहुत लंबा फ़ासला था। लेकिन ध्‍वनि-प्रणाली ऐसी थी कि मुख्‍य-द्वार से ही क़दमों की आवाज़ गांव तक पहुंच जाती थी।


गांव के तमाम घर झरोखों के ज़रिए आपस में जुड़े थे इसलिए एक सिरे वाले घर से दूसरे सिरे तक अपनी बात आसानी से पहुंचाई जा सकती थी। घरों के भीतर पानी के कुंड, ताक और सीढि़यां कमाल के हैं। कहते हैं कि इस कोण में घर बनाए गये थे कि हवाएं सीधे घर के भीतर होकर गुज़रती थीं। ये घर रेगिस्‍तान में भी वातानुकूलन का अहसास देते थे। 



लेकिन एक दिन ऐसा कुछ हुआ कि पूरा गांव रातों रात वीरान हो गया। चरों तरफ सन्नाटा ही सन्नाटा पसर गया। आज इस गांव में कदम रखते ही खंडहरों की दीवारों से रौंगटे खड़े कर देने वाली आवाजे आने लगती हैं। लोगों का कहना है कि इस गांव पर रूहानी ताकतों का कब्जा है ये रूहें ऐसी भयावह आवाज करती हैं जैसे कह रही हो यहां से चले जाओ।



लोगों का मानना है कि इस गांव के भीतर लोगों के कदम जैसे-जैसे बढ़ते हैं यहां का तापमान लगातार कम होता जाता है यहां तक कि कई जगह यह तापमान माइनस में भी पहुंच जाता है। वीरान खंडहरों में पसरा अँधेरा और सन्नाटा जैसे चीखने लगतीं हैं। ऐसा लगता है मानो ये आवाजें हमें वहां से चले जाने का आदेश दे रही हों। लोग कहते हैं कि इस गांव में भूतों का बसेरा है। 



ये कहानी है राजस्थान के जैसलमेर जिले के कुलधारा गांव की। कहा जाता है कि यह गांव पिछले दो सौ सालों से रूहानी ताकतों के कब्जे में हैं। प्रशासन ने इस गांव की सरहद पर एक फाटक बनवा दिया है जिसके पार दिन में तो सैलानी घूमने आते रहते हैं लेकिन रात में इस फाटक को पार करने की कोई हिम्मत नहीं कर सकता। ऐसा कहा जाता है कि गांव का यह वीराना एक दीवान के पाप के कारण है, यह गांव आज तक नहीं बस पाया उसके पीछे पालीवाल ब्राह्मणों का श्राप है जो उन्होंने राजा के पाप करने पर दिया था। आज वीरान खंडहरों में तब्दील हो चुका गांव बारहवीं शताब्दी में पालीवाल ब्राह्मणों की राजधानी हुआ करता था, जिसकी सम्रद्धि के चर्चे पूरे राजस्थान में थे। यहां की इमारतों की वास्तुकला मन को मोहने वाली हुआ करती थी, आज भी यहां के खंडहरों की नक्कासी देखकर उन पालीवाल ब्राह्मणों की सम्रद्धि का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। 



कहा जाता है कि पालीवाल ब्राह्मणों की यह सम्रद्धि जैसलमेर के दीवान सालिम सिंह को फूटी आंख ना भाई और उसने कुलधारा सहित आस पास के चौरासी गांवों पर भारी लाद दिए। पालीवाल ब्राह्मणों ने इसका खुलकर विरोध किया लेकिन दीवान का अन्याय यहीं ख़त्म नहीं हुआ, अय्यास सालिम सिंह की नज़र कुलधारा की एक बहुत ही खूबसूरत लड़की पर पड़ी और वह उसे अपने हरम में लाने के लिए कुलधारा पर जोर देने लगा, वो किस भी तरह बस उससे पा लेना चाहता था लेकिन पालीवाल ब्राह्मणों ने साफ़ इनकार कर दिया, पलिवाल किसी भी कीमत पर अपनी बेटी उस राक्षस के हाथों में नहीं सौपना चाहते थे। गुस्साए सालिम सिंह के अत्याचार बढ़ते गए।



दीवान से तंग आकर एक दिन पालीवाल ब्राह्मणों ने तय किया कि वे इस गांव को छोड़कर कहीं और चले जायेंगे और एक रात वे गांव छोड़कर चले गए और जाते- जाते श्राप दे गए कि अब यह गांव कभी नहीं बसेगा। उसी श्राप के कारण आज कुलधारा का यह हाल है। भूत प्रेतों पर रिसर्च करने वाली एक टीम ने बताया कि कुछ तो असामान्य है यहाँ| टीम के एक सदस्य ने बताया कि विजिट के दौरान रात में कई बार मैंने महसूस किया कि किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा, जब मुड़कर देखा तो वहां कोई नहीं था।



पेरानॉर्मल सोसायटी के उपाध्यक्ष अंशुल शर्मा ने बताया कि हमारे पास एक डिवाइस है जिसका नाम गोस्ट बॉक्स है। इसके माध्यम से हम ऐसी जगहों पर रहने वाली आत्माओं से सवाल पूछते हैं। कुलधारा में भी ऐसा ही किया जहां कुछ आवाजें आई तो कहीं असामान्य रूप से आत्माओं ने अपने नाम भी बताए।

बिमारियों का रामबाण इलाज है मूली

आपको पता है बाज़ारों में बिकने वाली मूली जिसे आप सलाद और सब्जी दोनों ही रूपों में प्रयोग करते हैं, यह कितनी गुणकारी होती है अगर नहीं तो हम बतातें हैं कि मूली आपके लिए कितनी फायदेमंद सिद्ध हो सकती है| मूली स्वयं तो पचती नहीं, लेकिन अन्य भोज्य पदार्थों को पचा देती है| 

आपको बता दें कि मूली में प्रोटीन, कैल्शियम, गन्धक, आयोडीन तथा लौह तत्व पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते हैं। इसमें सोडियम, फॉस्फोरस, क्लोरीन तथा मैग्नीशियम भी है। मूली में विटामिन ए प्रचुर मात्र में होता है। विटामिन बी और सी भी इसमें उपलब्ध रहते हैं| मूली के पत्ते भी पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं इसलिए मूली के साथ उसके पत्तों का सेवन भी किया जाना चाहिए।

ज्यादातर लोग मोटी मूली पसन्द करते हैं। कारण उसका अधिक स्वादिष्ट होना है, मगर स्वास्थ्य तथा उपचार की दृष्टि से छोटी, पतली और चरपरी मूली ही उपयोगी है। ऐसी मूल वात, पित्त और कफ नाशक है। इसके विपरीत मोटी और पकी मूली त्रिदोष कारक मानी जाती है। मूली कच्ची खायें या इसके पत्तों की सब्जी बनाकर खाएं, हर प्रकार से बवासीर में लाभदायक है। मूली खाने से मधुमेह में लाभ होता है। मूली हमारे दांतों को मजबूत करती है तथा हडि्डयों को शक्ति प्रदान करती है। मूली का ताजा रस पीने से मूत्र संबंधी रोगों में राहत मिलती है। पीलिया रोग में भी मूली लाभ पहुंचाती है| एक कच्ची मूली नित्य प्रात: उठते ही खाते रहने से कुछ दिनों में पीलिया रोग ठीक हो जाता है। 

गर्मी के प्रभाव से खट्टी डकारें आती हो तो एक कप मूली के रस में मिश्री मिलाकर पीने से लाभ होता है। मासिकधर्म की कमी के कारण लड़कियों के यदि मुहाँसे निकलते हों तो प्रात: पत्तों सहित एक मूली नित्य खाएं। मूली पत्ते चबाने से हिचकी बंद हो जाती है। मूली खाने से मधुमेह में लाभ होता है। रोज मूली खाने से शरीर की खुश्की दूर होती है। पानी में मूली का रस मिलाकर सिर धोने से जुएं नष्ट हो जाती हैं। मूली के रस में नींबू का रस समान मात्रा में मिलाकर चेहरे पर लगाने से चेहरे की रंगत निखरती है। त्वचा के रोगों में यदि मूली के पत्तों और बीजों को एक साथ पीसकर लेप कर दिया जाये, तो यह रोग खत्म हो जाते हैं। मूली के रस में थोड़ा नमक और नीबू का रस मिलाकर नियमित रूप में पीने से मोटापा कम होता है और शरीर सुडौल बन जाता है। मूली सौंदर्यवर्द्धक भी है। नीबू के रस में मूली का रस मिलाकर चेहरे पर लगाने से चेहरे का सौंदर्य निखरता है। 

मूली के पत्ते जिमिकंद के कुछ टुकड़े एक सप्ताह तक कांजी में डाले रखने तथा उसके बाद उसके सेवन से बढ़ी हुई तिल्ली ठीक होती है और बवासीर का रोग नष्ट हो जाता है। मूली के पत्तों के चार तोला रस में तीन माशा अजमोद का चूर्ण और चार रत्ती जोखार मिलाकर दिन में दो बार एक सप्ताह तक लेने पर गुर्दे की पथरी गलने की संभावना होती है। एक कप मूली के रस में एक चम्मच अदरक का और एक चम्मच नीबू का रस मिलाकर नियमित सेवन से भूख बढ़ती है|मोटे लोगों के लिए मूली के पत्तों का सेवन काफी फायदेमंद है, क्योंकि इनमें पानी की मात्रा अधिक रहती है। सौ ग्राम मूली के कच्चे पत्तों में नीबू निचोड़कर चबाकर निगल लें। इससे पेट साफ होगा और शरीर में स्फूर्ति आएगी।

अजीर्ण रोग होने पर मूली के पत्तों की कोंपलों को बारीक काटकर, नीबू का रस मिलाकर व चुटकी भर सेंधा नमक डालकर खाने से लाभ होता है। चूंकि मूली के पत्तों में फास्फोरस होता है। भोजन के बाद इनका सेवन करने से बालों का असमय गिरना बंद हो जाता है।मूली के पत्तों में लौह तत्व भी काफी मात्रा में रहता है इसलिए इनका सेवन खून को साफ करता है और इससे शरीर की त्वचा भी मुलायम होती है। मूली के पत्तों का शाक पाचन क्रिया में वृद्धि करता है। मूली के नरम पत्तों पर सेंधा नमक लगाकर (प्रात:) खाएं, इससे मुंह की दुर्गंध दूर होगी। हाथ-पैरों के नाखूनों का रंग सफेद हो जाए तो मूली के पत्तों का रस पीना हितकारी है। पेट में गैस बनती हो तो मूली के पत्तों के रस में नीबू का रस मिलाकर पीने से तुरंत लाभ होता है। मूली के पत्तों में सोडियम होता है, जो हमारे शरीर में नमक की कमी को पूरा करता है।

पुदीने में छिपा है सेहत का राज

चटनी, सलाद व अन्य पेय पदार्थों में इस्तेमाल होने वाला पुदीना न सिर्फ टेस्टी और रिफ्रेशिंग होता है, बल्कि यह हेल्थ को भी कई तरीकों से संवारता है। आपको पता है पुदीना कई बिमारियों में रामबाण औषधि से कम नहीं है| तो आइये जाने इसकी खूबियों के बारे में-

आपको बता दें कि पुदीने का इस्तेमाल सलाद में सबसे स्वास्थ्यवर्द्धक है, प्रतिदिन इसकी पत्ती चबाई जाए तो दंत क्षय मसूढ़ों से रक्त निकलना पायरिया आदि रोग कम हो जाते हैं| यह एंटीसेप्टिक जैसा कार्य करता है और दांतों तथा मसूढ़ों को जरूरी पोषक तत्व पहुंचाता है|

इसके अलावा एक गिलास पानी में पुदीने की चार से पांच पत्तियां डालकर उबालें| फिर ठंडा होने के लिए फ्रिज में रख दें| इस पानी से कुल्ला करने पर मुंह की दुर्गध दूर हो जाती है क्योंकि पुदीना कीटाणुनाशक है| यदि घर के चारों तरफ पुदीने के तेल का छिड़काव कर दिया जाए तो मक्खी, मच्छर, चींटी आदि कीटाणु भाग जाते हैं|

मासिक धर्म समय पर न आने पर पुदीने की सूखी पत्तियों के चूर्ण को शहद के साथ समान मात्रा में मिलाकर दिन में दो-तीन बार नियमित रूप से सेवन करने पर लाभ मिलता है। इसके अलावा यदि महिलाओं को प्रसव के समय दिक्कते आ रही हैं तो पुदीने का रस पिलाने से प्रसव आसानी से हो जाता है।

हरा पुदीना पीसकर उसमें नींबू के रस की दो-तीन बूँद डालकर चेहरे पर लेप करें। कुछ देर लगा रहने दें। बाद में चेहरा ठंडे पानी से धो डालें। कुछ दिनों के प्रयोग से मुँहासे दूर हो जाएँगे तथा चेहरे की कांति खिल उठेगी।

हरे पुदीने की 20-25 पत्तियाँ, मिश्री व सौंफ 10-10 ग्राम और कालीमिर्च 2-3 दाने इन सबको पीस लें और सूती, साफ कपड़े में रखकर निचोड़ लें। इस रस की एक चम्मच मात्रा लेकर एक कप कुनकुने पानी में डालकर पीने से हिचकी बंद हो जाती है।

एक टब में पानी भरकर उसमें कुछ बूंद पुदीने का तेल डालकर यदि उसमें पैर रखे जाएं तो थकान से राहत मिलती है और बिवाइयों के लिए बहुत लाभकारी है| पुदीने का ताजा रस क्षय रोग अस्थमा और विभिन्न प्रकार के श्वास रोगों में बहुत लाभकारी है|

पानी में नींबू का रस, पुदीना और काला नमक मिलाकर पीने से मलेरिया के बुखार में राहत मिलती है| इसके अलावा हकलाहट दूर करने के लिए पुदीने की पत्तियों में काली मिर्च पीस लें तथा सुबह शाम एक चम्मच सेवन करें| पुदीने की चाय में दो चुटकी नमक मिलाकर पीने से खांसी में लाभ मिलता है| हैजे में पुदीना, प्याज का रस, नींबू का रस समान मात्रा में मिलाकर पिलाने से लाभ होता है|

पुदीने का ताजा रस शहद के साथ सेवन करने से ज्वर दूर हो जाता है तथा न्यूमोनिया से होने वाले विकार भी नष्ट हो जाते हैं| पेट में अचानक दर्द उठता हो तो अदरक और पुदीने के रस में थोड़ा सा सेंधा नमक मिलाकर सेवन करे| नकसीर आने पर प्याज और पुदीने का रस मिलाकर नाक में डाल देने से नकसीर के रोगियों को बहुत लाभ होता है|

एक चम्मच पुदीने का रस, दो चम्मच सिरका और एक चम्मच गाजर का रस एकसाथ मिलाकर पीने से श्वास संबंधी विकार दूर होते हैं। इतना ही नहीं अधिक गर्मी या उमस के मौसम में जी मिचलाए तो एक चम्मच सूखे पुदीने की पत्तियों का चूर्ण और आधी छोटी इलायची के चूर्ण को एक गिलास पानी में उबालकर पीने से लाभ होता है।

पुदीने को सूखाकर पीस लें। अब इसे कपड़े से छानकर बारीक पाउडर बनाकर एक शीशे में रख लें। सुबह-शाम एक चम्मच चूर्ण पानी के साथ लें। यह फेफड़ों में जमे हुए कफ के कारण होने वाली खांसी और दमा की समस्या को दूर करता है। बिच्छू या बर्रे के दंश स्थान पर पुदीने का अर्क लगाने से यह विष को खींच लेता है और दर्द को भी शांत करता है।

कहाँ से आया यह पुदीना-

जब इतने सारे गुण पुदीना में विधमान हैं तो सवाल यह उठता है कि यह आया कहाँ से है? गहरे हरे रंग की पत्तियों वाले पुदीने की उत्पत्ति कुछ लोग योरप से मानते हैं तो कुछ का विश्वास है कि मेंथा का उद्भव भूमध्यसागरीय बेसिन में हुआ तथा वहाँ से यह प्राकृतिक तथा अन्य तरीकों से संसार के अन्य हिस्सों में फैला। लगभग तीस जातियों और पाँच सौ प्रजातियों वाला पुदीने का पौधा आज पुदीना, ब्राजील, पैरागुए, चीन, अर्जेन्टिना, जापान, थाईलैंड, अंगोला, तथा भारतवर्ष में उगाया जा रहा है। लेकिन इसकी विभिन्न जातियों में- पिपमिंट और स्पियरमिंट का प्रयोग ही अधिक होता है। 

भारतवर्ष में मुख्यतया तराई के क्षेत्रों (नैनीताल, बदायूँ, बिलासपुर, रामपुर, मुरादाबाद तथा बरेली) तथा गंगा यमुना दोआन (बाराबंकी, तथा लखनऊ तथा पंजाब के कुछ क्षेत्रों (लुधियाना तथा जलंधर) में उत्तरी-पश्चिमी भारत के क्षेत्रों में इसकी खेती की जा रही है। पूरे विश्व का सत्तर प्रतिशत स्पियर मिंट अकेले संयुक्त राज्य में उगाया जाता है।

खाने का स्वाद ही नहीं बीमारियों में रामबाण है लहसुन

आमतौर पर लहसुन को सिर्फ खाने का स्वाद बढ़ाने के लिए ही उपयोग में लिया जाता था और ऐसा माना भी जाता था कि यह सिर्फ खाने में स्वाद बढ़ाने वाली वस्तु हैं, लेकिन लहसुन में स्वाद बढ़ाने के अलावा भी कई ऐसी खूबियां होती हैं जो लहसुन को बेजोड़ और बहुत कीमती बनाती हैं| तो आइए जानते है इस लहसुन में छुपे हुए अनमोल गुण-

आमतौर पर सब्जियों में प्रयोग होने वाला लहसुन रासायनिक तत्वों का भंडार होता है। लहसुन में कई रसायनिक तत्व जैसे- वाष्पशील तेल, प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, खनिज पदार्थ, चूना व आयरन पाए जाते हैं| 

आपको बता दें कि भोजन में लहसुन का प्रयोग मनुष्य प्राचीन समय से ही करता आ रहा है। इसकी गंध बहुत ही तेज और स्वाद तीखा होता है। कहा जाता है कि प्राचीन रोम के लोग अपने सिपाहियों को इसलिए लहसुन खिलाते थे क्योंकि उनका विश्वास था कि इसे खाने से शक्ति में वृद्धि होती है। मध्ययुग में प्लेग जैसे भयानक रोग के आक्रमण से बचने के लिए भी लहसुन का इस्तेमाल किया जाता था।

औषधि के रूप में लहसुन के महत्व का पता मनुष्य को कुछ वर्ष पहले ही लगा है। लहसुन में एलियम नामक एंटीबायोटिक होता है जो बहुत से रोगों के बचाव में लाभप्रद है। नियमित लहसुन खाने से ब्लडप्रेशर कम या ज्यादा होने की बीमारी नहीं होती। गैस्टिक ट्रबल और एसिडिटी की शिकायत में इसका प्रयोग बहुत ही लाभदायक होता है। 

इसके अलावा अगर आपके बदन में दर्द है तो आपको परेशान होने की जरुरत नहीं है बस 100 ग्राम सरसों के तेल में दो ग्राम अजवाइन व एक लहसुन की कलियां डालकर धीमी आंच पर पका लें। लहसुन और अजवाइन काली हो जाए तब तेल उतारकर ठंडा कर छान लें। तेल की मालिश करने से पहले इसे हल्का गर्म कर लें, जब तेल गुनगुनी हो जाए, तब इसका इस्तेमाल करें। हर प्रकार का बदन दर्द दूर हो जाएगा ।

लहसुन दमा के इलाज में कारगर साबित होता है। 30 मिली दूध में लहसुन की पांच कलियां उबालें और इस मिश्रण का हर रोज सेवन करने से दमे की शुरुआती अवस्था में काफी फायदा मिलता है। अदरक की गरम चाय में लहसुन की दो पिसी कलियां मिलाकर पीने से भी अस्थमा नियंत्रित रहता है।

यदि रोज नियमित रूप से लहसुन की पाँच कलियाँ खाई जाएँ तो हृदय संबंधी रोग होने की संभावना में कमी आती है। इसको पीसकर त्वचा पर लेप करने से विषैले कीड़ों के काटने या डंक मारने से होने वाली जलन कम हो जाती है। 

जुकाम और सर्दी में तो यह रामबाण की तरह काम करता है। पाँच साल तक के बच्चों में होने वाले प्रॉयमरी कॉम्प्लेक्स में यह बहुत फायदा करता है। लहसुन को दूध में उबालकर पिलाने से बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। लहसुन की कलियों को आग में भून कर खिलाने से बच्चों की साँस चलने की तकलीफ पर काफी काबू पाया जा सकता है। जिन बच्चों को सर्दी ज्यादा होती है उन्हें लहसुन की कली की माला बनाकर पहनाना चाहिए। 

इसमें कई पोषक तत्व भी पाये जाते हैं। प्रतिदिन लहसुन की एक कली के सेवन से शरीर को विटामिन ए, बी और सी के साथ आयोडीन, आयरन, पोटेशियम, कैल्शियम और मैग्नीशियम जैसे कई पोषक तत्व एक साथ मिल जाते हैं। इसमें लौह तत्व होते हैं, इसलिए यह रक्त निर्माण में सहायक है। इसमें विटामिन 'सी' होने से यह स्कर्वी रोग से बचाने में मदद करता है। इसके अलावा लहसुन का सेवन करने वालों को टीबी रोग नहीं होता। 

लहसुन एक शानदार कीटाणुनाशक है, यह एंटीबायोटिक दवाइयों का अच्छा विकल्प है। लहसुन से टीबी के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। इसके लिए सबसे पहले लहसुन को छील लीजिए। एक कली के तीन-चार टुकड़े कर लें। दोनों समय भोजन के आधा घंटे बाद काटे हुए दो टुकड़ों को मुंह में रखें। धीरे-धीरे चबाएं। जब अच्छी तरह से उसका रस बन जाए तब ऊपर से पानी पीकर सारी चबाई लहसुन निगल लें। लहसुन का तीखापन सहन नहीं कर पाते हों तो एक-एक मनुक्का में दो-दो टुकड़े रखकर चबाएं।

लहसुन दमा के इलाज में कारगर साबित होता है। 30 मिली दूध में लहसुन की पांच कलियां उबालें और इस मिश्रण का हर रोज सेवन करने से दमे में शुरुआती अवस्था में काफी फायदा मिलता है। अदरक की गरम चाय में लहसुन की दो पिसी कलियां मिलाकर पीने से भी अस्थमा नियंत्रित रहता है।

अक्सर युवाओं को मुहासे परेशान करते रहते हैं। ये शरीर में हार्मोनल चेंज, पेट की खराबी की वजह से हो सकते हैं। मुंहासों में लहसुन बहुत ही कारगर साबित होता है। इतना ही नहीं अगर गला बैठ रहा है तो गुनगुने पानी में लहसुन का रस मिलाकर गरारे करें, गला ठीक हो जायेगा। लहसुन की 2-3 कलियां और प्‍याज का प्रतिदिन सेवन से यौन-शाक्ति बढ़ती है।

सावधानियां-

बेशक लहसुन कुदरती खूबियों से भरपूर है। लेकिन इसका इस्तेमाल उचित मात्रा में ही करें| ऐसा इसलिए क्योंकि लहसुन की तासीर काफी गर्म और खुश्क होती है कुछ लोगों को रास नही आती। इसलिए इसका इस्तेमाल संतुलित मात्रा में ही करना चाहिए खासकर गर्मियों में। अगर एक या दो लहसुन की कली का इस्तेमाल करने पर भी इसका कोई साइडइफेक्ट हो तो इसके लिए अपने डाक्टर से सलाह लें। मौसम के हिसाब से लहसुन को खाने में बदलाव करें। जाड़ों में लहसुन अधिक मात्रा में खाया जा सकता है लेकिन गर्मी में इसकी मात्रा सीमित करें।