सपने में दिखे यह तो जानिए क्या होगा आपके साथ...


सपनों का हमारे जीवन काफी गहरा महत्व है। हर सपना कुछ-न कुछ कहता है। कुछ सपने निराशा देते हैं, तो कुछ जीवन में खुशियों की लहर भर देते हैं। जब व्यक्ति निद्रावस्था में होता है तो उसकी पाँचों ज्ञानेंद्रियाँ उसका मन और उसकी पाँचों कर्मेंद्रियाँ अपनी-अपनी क्रियाएँ करना बंद कर देती हैं और व्यक्ति का मस्तिष्क पूरी तरह शांत रहता है। उस अवस्था में व्यक्ति को एक अनुभव होता है, जो उसके जीवन से संबंधित होता है। उसी अनुभव को स्वप्न कहा जाता है|


ज्योतिष के अनुसार सपनों में भी भविष्य में होने वाली घटनाओं के राज छिपे होते हैं। आज आपको बताते हैं किया अगर आपके सपने में शरीर का कोई अंग कटा हुआ देंखे तो निकट भविष्य में उसके किसी परिजन की मृत्यु हो सकती है| वहीँ, अगर आप अपने सपने कौआ देख रहे हैं तो जल्द ही किसी की मृत्यु का समाचार मिल सकता है।

जो व्यक्ति स्वयं को स्वप्न में निर्वस्त्र देखता है उसे अपमान, आर्थिक संकट, और व्यापार में हानि आदि परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वहीँ, जो व्यक्ति स्वप्न में ताबूत में मुर्दा रखा देखता है वह निकट भविष्य में दुर्घटना का शिकार हो जाता है।

यदि किसी स्त्री को स्वप्न में बच्चा रोता हुआ दिखाई दे तो उसे समझना चाहिए कि उसके पति के किसी दूसरी महिला से संबंध हैं। यदि कोई स्वयं को किसी महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाते देखता है तो उसे बीमारी भुगतनी पड़ती है।

स्वप्न में यदि स्त्री नाचती हुई दिखे तो उसका अपने प्रेमी या प्रेमिका से संबंध विच्छेद हो जाता है। जो व्यक्ति स्वप्न में स्वयं को हंसता या नाचता हुआ देखता है उसकी हत्या हो जाती है या फिर उसे किसी कारण से कारावास भुगतना पड़ता है।

www.pardaphash.com

सपने में दिखे जलती आग तो समझिए......

सपनों का हमारे जीवन काफी गहरा महत्व है। हर सपना कुछ-न कुछ कहता है। कुछ सपने निराशा देते हैं, तो कुछ जीवन में खुशियों की लहर भर देते हैं। जब व्यक्ति निद्रावस्था में होता है तो उसकी पाँचों ज्ञानेंद्रियाँ उसका मन और उसकी पाँचों कर्मेंद्रियाँ अपनी-अपनी क्रियाएँ करना बंद कर देती हैं और व्यक्ति का मस्तिष्क पूरी तरह शांत रहता है। उस अवस्था में व्यक्ति को एक अनुभव होता है, जो उसके जीवन से संबंधित होता है। उसी अनुभव को स्वप्न कहा जाता है|

ज्योतिष के अनुसार सपनों में भी भविष्य में होने वाली घटनाओं के राज छिपे होते हैं। इन्हें समझने पर व्यक्ति कई प्रकार की परेशानियों से बच सकता है और अधिक लाभ प्राप्त कर सकता है। आज हम आपको सपनो से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियां देंगे| आपको बता दें कि लड़की हो या लड़का अगर आपके सपने में यह दिखे तो समझिये कि आपकी शादी बहुत जल्द होने वाली है-

कोई लड़का या लड़की अपने सपने में जलती हुई आग के शोले देखे तो उसे आने वाले समय में कई शुभ समाचार प्राप्त होते हैं। यदि कोई व्यक्ति अविवाहित है और उसे सपने में आग के शोले दिखाई दे तो समझना चाहिए कि जल्दी ही उसकी शादी होने वाली है। ऐसे व्यक्ति को उसका मनपसंद जीवन साथी मिलता है, ऐसे प्रबल योग बनते हैं। 

अगर आप अपने सपने में यह देख रहे हैं कि आपका घर जल रहा है और आप इधर- उधर भाग रहे हैं तो ऐसा सपना आपके लिए बहुत ही शुभ है। अगर ऐसा देख रहे हैं तो समझ जाइए कि बहुत जल्द ही आपको वफादार सेवक और आज्ञाकारी संतान की प्राप्ति होगी । 

इसके अलावा अगर यही सपना कोई व्यापारी देख रहा है तो उसके लिए एक ख़ुशी की बात है ऐसे सपने के अर्थ होता है की उसे अपने व्यापार में लाभदायक परिणाम मिलने वाले हैं लेकिन वहीं अगर व्यापारी सपने में ये देखे की उसकी दूकान पूरी तरह से जल चुकी है और वहां केवल दूकान के अवशेष है तो ये सपना संकेत है की भविष्य में उसे अपने व्यापार में भयंकर हानि होने वाली है। 

अगर आप अपने सपने में ये देख रहे हैं कि आपके घर में आग लग गयी है और आप उसमें जल रहे है तो जल्द ही आप विदेश यात्रा कर सकते हैं|

सपने में दिखे मछली तो जानिए क्या होगा आपके साथ

अभी तक हमने आपको सपनों से जुडी तमाम रोचक जानकारियां दी हैं हमने आपको पहले भी बताया है कि सपनों का हमारे जीवन काफी गहरा महत्व है। हर सपना कुछ-न कुछ कहता है। कुछ सपने निराशा देते हैं, तो कुछ जीवन में खुशियों की लहर भर देते हैं। जब व्यक्ति निद्रावस्था में होता है तो उसकी पाँचों ज्ञानेंद्रियाँ उसका मन और उसकी पाँचों कर्मेंद्रियाँ अपनी-अपनी क्रियाएँ करना बंद कर देती हैं और व्यक्ति का मस्तिष्क पूरी तरह शांत रहता है। उस अवस्था में व्यक्ति को एक अनुभव होता है, जो उसके जीवन से संबंधित होता है। उसी अनुभव को स्वप्न कहा जाता है|

ज्योतिष के अनुसार सपनों में भी भविष्य में होने वाली घटनाओं के राज छिपे होते हैं। इन्हें समझने पर व्यक्ति कई प्रकार की परेशानियों से बच सकता है और अधिक लाभ प्राप्त कर सकता है। 

आज हम आपको मछलियों के बारे में बताएँगे तो जानिये कि अगर आपको अपने सपने में मछलियाँ दिख रही हैं तो क्या होने वाला है आपके साथ-

आपको बता दें कि अगर आप अपने सपने में रंग बिरंगी छोटी मछली देख रहे हैं तो यह आपके लिए बहुत ही शुभ है| क्योंकि मछलियाँ बताती हैं कि व्यक्ति का जीवन बहुत ही सफल है और भविष्य में उसे किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना होगा। 

इसके अलावा अगर आप अपने सपने में बड़ी मछली देख रहे हैं तो समझ जाइए कि यह आपके लिए अच्छे संकेत नहीं हैं| अगर अपने ज्योतिषाचार्य की माने तो जो लोग बड़ी मछली देखते हैं तो वे लोग अपने आगामी जीवन में कर्ज ग्रसित होते हैं और हमेशा ही परेशान रहते हैं। लेकिन सपने में डॉल्फिन धन और अच्छी सेहत को दर्शाती है।

यदि व्यक्ति अपने सपने में ये देखे की वो मछली पकड़ रहा है और कोई बड़ी मछली उसके हाथ लगी है। तो ज्योतिष के अनुसार इसका अर्थ बहुत ही शुभ है। ऐसा सपना बताता है की जल्द ही उसे कोई बहुत सा धन प्राप्त होने वाला है। साथ ही उसके साथ कोई विशेष घटना घटने वाली है जो उसे बहुत सारा फायदा देगी। 

इसके अलावा अगर आप मछली पकड रहे हैं और आपके हाथ बड़ी मछली लगी है तो समझ जाइए कि आपको बहुत जल्द सफलता मिलने वाली है|

www.pardaphash.com

सपने में दिखे नेवला तो समझो.....

अभी तक हमने आपको सपनों से जुडी तमाम रोचक जानकारियां दी हैं हमने आपको पहले भी बताया है कि सपनों का हमारे जीवन काफी गहरा महत्व है। हर सपना कुछ-न कुछ कहता है। कुछ सपने निराशा देते हैं, तो कुछ जीवन में खुशियों की लहर भर देते हैं। जब व्यक्ति निद्रावस्था में होता है तो उसकी पाँचों ज्ञानेंद्रियाँ उसका मन और उसकी पाँचों कर्मेंद्रियाँ अपनी-अपनी क्रियाएँ करना बंद कर देती हैं और व्यक्ति का मस्तिष्क पूरी तरह शांत रहता है। उस अवस्था में व्यक्ति को एक अनुभव होता है, जो उसके जीवन से संबंधित होता है। उसी अनुभव को स्वप्न कहा जाता है|

ज्योतिष के अनुसार सपनों में भी भविष्य में होने वाली घटनाओं के राज छिपे होते हैं। इन्हें समझने पर व्यक्ति कई प्रकार की परेशानियों से बच सकता है और अधिक लाभ प्राप्त कर सकता है। 

आज हम आपको नेवले के बारे में बताते हैं| नेवले के बारे में कहा जाता है कि अगर सुबह - सुबह उठते ही नेवला दिख जाए तो समझो कि आपके लिए यह बहुत अच्छा है, क्योंकि सुबह- सुबह नेवला देखना शकुन माना गया है, वहीँ अगर यही नेवला कहीं जा रहे हो तो दिख जाए तो ज्योतिष में इसे अपशकुन माना गया है| फिलहाल यहाँ हम शकुन- अपशकुन की नहीं बल्कि सपनों के बारे में बात कर रहे हैं| आइये जानिये कि अगर आप सपनों में नेवला देख रहे हैं तो क्या होगा आपके साथ- 

अगर कोई व्यक्ति अपने सपने में नेवला देख रहा है तो यह बहुत ही शुभ संकेत है, जिसको भी सपने में नेवला दिख जाए तो उस समझ लेना चाहिए कि वह निकट भविष्य में मालामाल होने वाला है। नेवले का सीधा संबंध जमीन में छुपे खजाने से भी माना जाता है। 

आपको बता दें कि अगर यही सपना भोर में देखा जाए तो यह गुप्त धन प्राप्त होने का संकेत देता है और वहीँ यह सपना दोपहर के समय देख रहे हैं तो यह आपके लिए बुरे संकेत देता है| ज्योतिष के अनुसार दोपहर में सपने में नेवला आर्थिक हानि और परेशानी लेकर आता है।

www.pardaphash.com

राम की अयोध्या बनी सियासत का कुरूक्षेत्र!

उत्तर प्रदेश में राम की नगरी अयोध्या एक बार सियासत का कुरूक्षेत्र बन गयी है। सियासत की इस अयोध्या रूपी बिसात पर विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) जहां अपनी 84 कोसी परिक्रमा को लेकर अडिग है वहीं राज्य सरकार ने भी इस परिक्रमा को रोकने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। 

विहिप और राज्य सरकार के टकराव के बीच अब इसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) भी कूद पड़ा है तो भारतीय जनता पार्टी ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। आरएसएस के प्रवक्ता राम माधव ने इलाहाबाद में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान खुलेआम यह घोषणा कर दि कि आरएसएस भी संतों का पूरा सहयोग करेगा। संघ सूत्रों के मुताबिक 84 कोसी परिक्रमा जिन छह जिलों से गुजरनी है वहां संघ ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। राम माधव ने कहा, राज्य सरकार यदि संतों से टकराएगी तो उसका सत्तामद चूर-चूर हो जाएगा।

माधव के बयान से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि विहिप के साथ ही संघ भी 84 कोसी परिक्रमा के बहाने अपनी खोई हुई जमीन हासिल करना चाहता है। संघ सूत्रों ने बताया कि संघ की शाखाएं पहले गांवों में खूब लगा करती थीं लेकिन बीते एक दशक में इतनी भारी कमी आयी है। संघ की पकड़ जैसे जैसे गावों से ढीली हुई वैसे-वैसे भाजपा का जनाधार भी घटता चला गया। 

विहिप के सूत्र बताते हैं कि 84 कोसी परिक्रमा पर प्रतिबंध लगने के बावजूद विहिप ने संतों की भीड़ जुटाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया है। अयोध्या में लगने वाले सावन मेले में करीब 5 हजार से अधिक संत अन्य राज्यों से यहां आए हुए हैं। विहिप की रणनीति बाहर से आए उन संतांे को मठों में रोकना और परिक्रमा में शामिल होने का निवेदन करना है।

विहिप के प्रांतीय प्रवक्ता शरद शर्मा भी यह स्वीकार करते हैं कि मठ-मंदिरों में जाकर अयोध्या में होने वाली 84 कोसी परिक्रमा में शामिल होने का निवेदन किया जाएगा। उनके रहने का इंतजाम अलग अलग जगहों पर गांवों में किया जाएगा। लोग भी संतो के ठहरने की सूचना से काफी खुश हैं। इस बीच विहिप की रणनीति को भांपते हुए प्रशासन ने भी अयोध्या में लगे सावन मेले के समाप्त होने के साथ ही बाहर से आए साधु संतों को वापस भेजने की रणनीति तैयार कर रहा है। 

अधिकारिक सूत्रों के मुताबिक स्थानीय प्रशासन इस दिशा में पहल कर रहा है और उसने कई टीमें गठित करने का फैसला किया है जो अलग अलग मठों में जाकर बाहर से आए संतों को वापस जाने का निवेदन करेगी। प्रशासन को भी इस बात का अंदाजा है कि बाहर से आए हजारों संत विहिप की ताकत बन सकते हैं।

सूत्रों ने यह भी बताया कि प्रशासन की ओर से खुफिया विभाग को भी भीड़ पर नजर रखने की जिम्मेदारी सौंपी है और अधिकारियों द्वारा उन जगहों को चिन्हित किया जा रहा है जहां आवश्यकता पड़ने पर अस्थायी जेलें बनायी जा सकें। इधर, 84 कोसी परिक्रमा को लेकर भाजपा ने भी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। भाजपा की तरफ से यही कहा जा रहा है कि परिक्रमा पर सरकार लोग नहीं सकती। विहिप का साथ देने के सवाल पर भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक कहते हैं, सरकार कुतर्कों के सहारे संतों की यात्रा रोक रही है। सरकार को संतों को परिक्रमा करने की इजाजत देनी चाहिए और सरकार को यात्रा की सुरक्षा का प्रबंध करना चाहिए ताकि सौहार्दपूर्ण वातावरण में यात्रा सम्पन्न हो सके।

WWW.PARDAPHASH.COM

बॉलीवुड नायिकाएं बोलीं, भाई हैं बहुमूल्य तोहफा

हिंदी सिनेमा जगत की अभिनेत्रियों का कहना है कि उनके भाई उनके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। एक तरफ शबानी आजमी जैसी अनुभवी अभिनेत्री के लिए उनके भाई बाबा बहुमूल्य तोहफा हैं, तो दूसरी तरफ नवोदित अभिनेत्री परिणीति चोपड़ा के कहती हैं कि उनके भाई उनके सबसे अच्छे दोस्त हैं। 

रक्षाबंधन के पर्व के मौके पर सिनेमा जगत की अभिनेत्रियों ने अपने भाइयों के साथ खट्टे-मीठे रिश्ते की बातें साझा कीं।

शबाना आजमी कहती हैं, "मेरे भाई बाबा मेरे लिए बेहद कीमती हैं। वह मेरे बेटे, मेरे दोस्त, मेरे मार्गदर्शक, सबकुछ हैं। रक्षाबंधन मेरे लिए एक भावनात्मक पर्व है। इस बार मैं रक्षाबंधन पर अपने पैतृक गांव मिजवान में रहूंगी, मुझे बाबा को अपने हाथों से राखी नहीं बांध पाने का अफसोस होगा।"

परिणीति चोपड़ा ने कहा, "मेरे भाई सहज और शिवांग बचपन से ही मेरे सबसे अच्छे दोस्त हैं। मैं उनसे बड़ी हूं, तो इस रक्षाबंधन पर मैं उनको ढेर सारा प्यार-दुलार करूंगी।"

पूजा भट्ट ने कहा, "मैं अपने भाई राहुल से बड़ी हूं, तो रक्षाबंधन पर भी मुझे ही उसे तोहफा देना होगा। मेरे पास इसके सिवा कोई चारा भी नहीं है।"

मनीषा कोईराला कहती हैं, "मेरे पास दुनिया का सबसे कीमती तोहफा मेरा भाई सिद्धार्थ है। मैं हमेशा उसकी खुशी और कामयाबी की दुआ करती हूं। मैं खुद को दुनिया की सबसे खुशनसीब बहन मानती हूं।"

सेलिना जेटली ने कहा, "मेरा भाई विक्रांत आर्मी में मेजर है। रक्षाबंधन पर उसके लिए मेरी यही दुआ होगी कि वह हमेशा सुरक्षित रहे।"

बेला सहगल कहती हैं, "मैं बहुत खुशकिस्मत हूं कि मुझे संजय (संजय लीला भंसाली) जैसा भाई मिला। वह समझदार, प्यार करने वाला और मेरा ख्याल रखने वाला भाई है। रक्षाबंधन पर मैं उसके अच्छे स्वास्थ्य और उसकी फिल्म 'राम लीला' की सफलता की कामना करती हूं।"

दिव्या दत्ता ने कहा, "मेरे भाई राहुल दत्ता (अभिनेता) बड़े भाई से ज्यादा मेरे दोस्त हैं। उन्हें पता होता है कि मुझे कब क्या चाहिए होता है। वह अभी बाहर हैं लेकिन राखी तक वापस आ जाएंगे।"

मिनीषा लांबा ने कहा, "मेरे भाई मेरे सबसे करीबी हैं। उनका पास होना ही मेरे लिए रक्षाबंधन का तोहफा है।"

www.pardaphash.com

राजीव गांधी की 69वीं जयंती पर विशेष........


भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी की जयन्ती पर देशवासियों ने मंगलवार को उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की| राजीव गांधी का जन्म 20 अगस्त 1944 को मुंबई में हुआ था| पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के पुत्र और जवाहरलाल नेहरू के पौत्र राजीव भारत के नौवें प्रधानमंत्री थे|

राजीव का विवाह एन्टोनिया मैनो से हुआ जो उस समय इटली की नागरिक थी| विवाह के पश्चात एन्टोनिया मैनो ने अपना नाम बदल कर सोनिया गांधी रख लिया| कहा जाता है कि सोनिया से राजीव गांधी की मुलाकात उस समय हुई थी जब राजीव कैम्ब्रिज में पढने गये थे| वर्ष 1968 में शादी के बाद सोनिया भारत आ गई और यही पर रहने लगी| राजीव और सोनिया के दो बच्चे हैं| उनके पुत्र व कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी का जन्म वर्ष 1970 और पुत्री प्रियंका का जन्म 1971 में हुआ था| 

हालांकि राजीव गांधी की राजनीति में कोई रूचि नहीं थी लेकिन जब आपातकाल के उपरान्त इन्दिरा गांधी को सत्ता छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा था तब कुछ समय के लिए राजीव गांधी अपने परिवार के साथ विदेश में रहने चले गए थे| इसी दौरान अपने छोटे भाई संजय गांधी की एक हवाई जहाज़ दुर्घटना में असामयिक मृत्यु के बाद माता इन्दिरा को सहयोग देने के लिए वह भारत लौट आये और राजनीति में प्रवेश किया| 

राजनीति में अहम योगदान

एक राजनीतिक परिवार के ताल्लुख रखने वाले राजीव गांधी ने कभी भी राजनीति में रूचि नहीं ली| यदि भारतीय राजनीति और शासन व्यवस्था में राजीव गांधी का प्रवेश पर नज़र डाले तो ये सिर्फ हालातों की ही देन थी| आपातकाल के उपरान्त जब इन्दिरा गांधी को सत्ता छोड़नी पड़ी थी, तब कुछ समय के लिए राजीव परिवार के साथ विदेश में रहने चले गए लेकिन अपने छोटे भाई संजय गांधी की एक हवाई जहाज़ दुर्घटना में असामयिक मृत्यु के बाद मां इन्दिरा गांधी को सहयोग देने के लिए वर्ष 1982 में राजीव गांधी ने राजनीति में प्रवेश लिया|

राजीव अमेठी से लोकसभा का चुनाव जीत कर सांसद बने और 31 अक्टूबर 1984 को आतंकवादियों द्वारा प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की हत्या किए जाने के बाद भारत के प्रधानमंत्री बने| दिसंबर 1984 के चुनावों में कांग्रेस को जबरदस्त बहुमत हासिल हुआ| अपने शासनकाल में उन्होंने प्रशासनिक सेवाओं और नौकरशाही में सुधार लाने के लिए कई कदम उठाए| 

कश्मीर और पंजाब में चल रहे अलगाववादी आंदोलनकारियों को हतोत्साहित करने के लिए राजीव गांधी ने कड़े प्रयत्न किए| भारत में गरीबी के स्तर में कमी लाने और गरीबों की आर्थिक दशा सुधारने के लिए 1 अप्रैल 1989 को राजीव गांधी ने 'जवाहर रोजगार गारंटी योजना' को लागू किया, जिसके अंतर्गत 'इंदिरा आवास योजना' और दस लाख कुआं योजना जैसे कई कार्यक्रमों की शुरुआत की लेकिन समय ने करवट बदली और अगले चुनाव में कांग्रेस की हार हुई और राजीव को प्रधानमंत्री पद से हटना पड़ा| 

निधन

श्रीलंका में चल रहे लिट्टे और सिंघलियों के बीच युद्ध को शांत करने के लिए राजीव गांधी ने भारतीय सेना को श्रीलंका में तैनात कर दिया, जिसका प्रतिकार लिट्टे ने तमिलनाडु में चुनावी प्रचार के दौरान राजीव गांधी पर आत्मघाती हमला करवा कर लिया| 21 मई, 1991 को सुबह 10 बजे के करीब एक महिला राजीव गांधी से मिलने के लिए स्टेज तक गई और उनके पांव छूने के लिए जैसे ही झुकी उसके शरीर में लगा बम फट गया| इस हमले में राजीव गांधी की मौत हो गई| राजीव गांधी के निधन के बाद देश ने ऐसा युवा नेता खो दिया था, जो आने वाले सालों में देश की सूरत बदलने वाला था| राजीव गांधी की स्मृति पर उनके लिए कुछ पक्तियां.....

चमका था जो नसीब का सितारा वो न जाने कहां चला गया,
गुलशन से बहारों का नज़ारा दूर आसमां में कहीं खो गया,
हम देखते ही रह गए और कश्ती से किनारा दूर हो गया

जब बाथरूम में छिपे थे नन्हे राजीव.........


पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न स्वर्गीय राजीव गांधी की आज जयन्ती के अवसर के हम आपको राजीव गांधी के जीवन से जुड़े कुछ अनछुए पहलु से रुबरु कराएंगे| आज हम राजीव गांधी के जीवन की कुछ ऐसी बातें बताएंगे जिनसे शायद आप अनजान हो|

यह बात उस समय की है जब राजीव गांधी दून स्कूल में पढ़ाई कर रहे थे| एक बार राजीव गांधी के नाना पंडित जवाहर लाल नेहरू उनसे मिलने पहली बार देहरादून गए हुए थे| जब संकोची स्वभाव के राजीव को यह पता चला कि उनके नाना उनसे मिलने आये हैं तो वह वहां से भाग गए| नन्हे राजीव को ना पाकर सभी लोग काफी चिंतित थे| चारों ओर लोग राजीव की खोज में लग गए तब किसी ने पाया कि यह नन्हा बच्चा स्कूल के बाथरूम में गंदे कपड़े रखने की बास्केट में छिपा हुआ हैं| बहुत खोजबीन के बाद उनके ढूंढा जा सका| संकोची स्वभाव के होने की वहज से राजीव ने ऐसा किया था|

कांग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर ने बताया कि उन्होंने नन्हे राजीव के जीवन की यह घटना दून स्कूल के हेडमास्टर जॉन मार्टिन की जर्मन पत्नी मैडी मार्टिन की पुस्तक में पढ़ी थी| वहीँ ये भी कहा जा रहा था कि उन्हें अपने नाना और प्रधानमंत्री का सामना करने में संकोच हो रहा था|

इतना ही नहीं जब कभी राजीव गांधी अपने मित्रों के समक्ष अपने नाना के वचन बोलते थे तो उनके मित्र उन्हें ये कहकर चिढ़ाते थे कि नाना की बात बोलता है और जब कभी वह विपरीत बात बोलते थे तो उनके मित्र कहा करते थे कि इतने बड़े और ज्ञानी आदमी के विपरीत बोल रहा है| ये बहुत ही गलत बात है|

www.pardaphash.com

रक्षाबंधन: भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक


रक्षाबंधन हिन्दुओं का सबसे प्रमुख त्यौहार है| श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला यह त्यौहार भाई बहन के प्यार का प्रतीक है| इस दिन सभी बहने अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और भाई की लम्बी उम्र की कामना करती हैं| भाई अपनी बहन को रक्षा करने का वचन देता है| इस वर्ष यह त्यौहार 21 अगस्त दिन बुधवार को मनाया जायेगा| 

रक्षा बंधन का त्यौहार भाई बहन के प्रेम का प्रतीक होकर चारों ओर अपनी छटा को बिखेरता सा प्रतीत होता है| सात्विक एवं पवित्रता का सौंदर्य लिए यह त्यौहार सभी जन के हृदय को अपनी खुशबू से महकाता है| इतना पवित्र पर्व यदि शुभ मुहूर्त में किया जाए तो इसकी शुभता और भी अधिक बढ़ जाती है|

किस तरह से बांधें राखी-

रक्षासूत्र के लिए उचित मुहूर्त की चाह हर किसी को होती है| इस त्यौहार की ख़ास बात यह है कि राखी के साथ कुमकुम, हल्दी, चावल, दीपक, अगरबती, मिठाई का उपयोग किया जाता है| कुमकुम, हल्दी और चावल से पहले भाई को टीका करें उसके बाद उसकी आरती फिर भाई की दाहिनी कलाई रक्षासूत्र बांधें| राखी बांधते समय बहनें निम्न मंत्र का उच्चारण करें, इससे भाईयों की आयु में वृ्द्धि होती है. “येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल: | तेन त्वांमनुबध्नामि, रक्षे मा चल मा चल ||”

इस दिन व्यक्ति को चाहिए कि उसे उस दिन प्रात: काल में स्नान आदि कार्यों से निवृ्त होकर, शुद्ध वस्त्र धारण करने चाहिए| इसके बाद अपने इष्ट देव की पूजा करने के बाद राखी की भी पूजा करें साथ ही पितृरों को याद करें व अपने बडों का आशिर्वाद ग्रहण करें|

पौराणिक प्रसंग-

भाई बहन का यह पावन पर्व आज से ही नहीं बल्कि युगों-युगों से चलता चला आ रहा है भविष्य पुराण में भी इसका व्याख्यान किया गया है| एक बार दानवों और देवताओं में युद्ध शुरू हुआ| दानव देवताओं पर भारी पड़ने लगे तब इन्द्र घबराकर वृहस्पतिदेव के पास गए| वहां बैठी इंद्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी। उन्होंने रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र कर के अपने पति के हाथ पर बांध दिया। वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। लोगों का विश्वास है कि इंद्र इस लड़ाई में इसी धागे की मंत्र शक्ति से विजयी हुए थे। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बांधने की प्रथा चली आ रही है। 

इसके अलावा स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में रक्षाबन्धन का प्रसंग मिलता है। कथा कुछ इस प्रकार है- दानवेन्द्र राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। तब भगवान ने वामन अवतार लेकर ब्राम्हण का वेष धारण कर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंचे। गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। भगवान ने तीन पग में सारा आकाश,पाताल और धरती नाप कर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु द्वारा बलि राजा के अभिमान को चकानाचूर कर देने के कारण यह त्योहार 'बलेव' नाम से भी प्रसिद्ध है। 

कहा जाता है कि जब बलि रसातल चला गया तो उसने अपने तप से भगवान को रात- दिन अपने पास रहने का वचन ले लिया| भगवान विष्णु के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मी जी को देवर्षि नारद ने एक उपाय सुझाया| नारद के उस उपाय का पालन करते हुए लक्ष्मी जी राजा बलि के पास गई और उन्हें राखी बांधकर अपना भाई बना लिया| उसके बाद अपने पति भगवान विष्णु और बलि को अपने साथ लेकर वापस स्वर्ग लोक चली गईं| उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। विष्णु पुराण के एक प्रसंग में कहा गया है कि श्रावण की पूर्णिमा के दिन भागवान विष्णु ने हयग्रीव के रूप में अवतार लेकर वेदों को ब्रह्मा के लिए फिर से प्राप्त किया था। हयग्रीव को विद्या और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है।

महाभारत में ही रक्षाबंधन से संबंधित कृष्ण और द्रौपदी का एक और वृत्तांत मिलता है। जब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई। द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उँगली पर पट्टी बाँध दी। यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। कृष्ण ने इस उपकार का बदला बाद में चीरहरण के समय उनकी साड़ी को बढ़ाकर चुकाया। कहते हैं परस्पर एक दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना रक्षाबंधन के पर्व में यहीं से आन मिली।

पौराणिक युग के साथ साथ एतिहासिक युग में भी यह त्यौहार काफी प्रचलित था कहते हैं कि राजपूत जब युद्ध के लिए जाते थे तब महिलाएं उनके मस्तक पर कुमकुम का टीका लगाती थी और हाथ में रेशम का धागा बांधती थी| महिलाओं को यह विश्वास होता था कि उनके पति विजयी होकर लौटेंगे|

मेवाड़ की महारानी कर्मवती के राज्य पर जब बहादुर शाह जफ़र द्वारा हमला की सूचना मिली तब रानी ने अपनी कमजोरी को देखते हुए मुग़ल शासक हुमायूँ को राखी भेजी। हुमायूँ ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी और मेवाड़ पहुँच कर बहादुरशाह के विरूद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए रानी कर्मवती और उसके राज्य की रक्षा की। कहते है सिकंदर की पत्नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु पुरूवास को राखी बांध कर अपना मुंहबोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया। पुरूवास ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी का और अपनी बहन को दिये हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवदान दिया। इस तरह से तमाम येसे प्रसंग हैं जो भ्रात्र स्नेह से जुड़े हुए हैं|

कहाँ किस नाम से जाना जाता है यह त्यौहार-

रक्षाबंधन का यह त्यौहार अलग- अलग राज्यों में अलग- अलग नामों से जाना जाता है| उत्तरांचल में इसे श्रावणी कहते हैं। इस दिन यजुर्वेदी द्विजों का उपकर्म होता है। उत्सर्जन, स्नान-विधि, ॠषि-तर्पणादि करके नवीन यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। ब्राह्मणों का यह सर्वोपरि त्यौहार माना जाता है। इस दिन ब्राह्मण अपने यजमानों को राखी देकर दक्षिणा लेते हैं।

इसके अलावा महाराष्ट्र में इसे नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से जाना जाता है| इस दिन लोग नदी या समुद्र के तट पर जाकर अपने जनेऊ बदलते हैं और समुद्र की पूजा करते हैं। इस अवसर पर समुद्र के स्वामी वरुण देवता को प्रसन्न करने के लिए नारियल अर्पित करने की परंपरा भी है। वहीँ, अगर राजस्थान की बात करें तो रामराखी और चूड़ाराखी या लूंबा बांधने का रिवाज़ है। रामराखी सामान्य राखी से भिन्न होती है। इसमें लाल डोरे पर एक पीले छींटों वाला फुंदना लगा होता है और केवल भगवान को बांधी जाती है। चूड़ा राखी भाभियों की चूड़ियों में बाँधी जाती है। 
जोधपुर में राखी के दिन केवल राखी ही नहीं बाँधी जाती, बल्कि दोपहर में पद्मसर और मिनकानाडी पर गोबर, मिट्टी और भस्मी से स्नान कर शरीर को शुद्ध किया जाता है। इसके बाद धर्म तथा वेदों के प्रवचनकर्ता अरुंधती, गणपति, दुर्गा, गोभिला तथा सप्तर्षियों के दर्भ के चट(पूजास्थल) बनाकर मंत्रोच्चारण के साथ पूजा की जाती हैं। उनका तर्पण कर पितृॠण चुकाया जाता है। धार्मिक अनुष्ठान करने के बाद घर आकर हवन किया जाता है, वहीं रेशमी डोरे से राखी बनाई जाती है। राखी में कच्चे दूध से अभिमंत्रित करते हैं और इसके बाद भोजन का प्रावधान है।

तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र और उड़ीसा के दक्षिण भारतीय ब्राह्मण इस पर्व को अवनि अवित्तम कहते हैं। यज्ञोपवीतधारी ब्राह्मणों के लिए यह दिन अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन नदी या समुद्र के तट पर स्नान करने के बाद ऋषियों का तर्णण कर नया यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। 

भाई-बहनों का पर्व रक्षाबंधन

मेले और त्योहारों के देश भारत में हर त्योहार पौराणिक आख्यानकों से जुड़े हैं, लेकिन उसका लौकिक अर्थ और महत्व है। ऐसे ही त्योहारों में रक्षाबंधन भी है जिसे श्रावण महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है। आम प्रथा के अनुसार इस अवसर पर बहनें अपने भाई की दाहिनी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हैं और भाई बदले में सामथ्र्य के अनुसार उपहार देता है। रक्षाबन्धन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चांदी जैसी मंहगी वस्तु तक की हो सकती है। सामान्यत: बहनें भाई को ही राखी बांधती हैं, लेकिन ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित संबन्धियों को भी बांधी जाती है। 

प्रात: स्नानादि से निवृत्त होकर लड़कियां और महिलाएं पूजा की थाली सजाती हैं। थाली में राखी के साथ रोली या हल्दी, चावल, दीपक और मिठाई होते हैं। लड़के और पुरुष स्नानादि कर पूजा या किसी उपयुक्त स्थान पर बैठते हैं। उन्हें रोली या हल्दी से टीका कर चावल को टीके पर लगाया जाता है और सिर पर छिड़का जाता है, उनकी आरती उतारी जाती है और तब दाहिनी कलाई पर राखी बांधी जाती है। भाई बहन को उपहार या धन देता है। रक्षाबंधन का अनुष्ठान पूरा होने के बाद ही भोजन किया जाता है।

यह पर्व भारतीय समाज में इतनी व्यापकता और गहराई से समाया हुआ है कि इसका सामाजिक महत्व तो है ही, धर्म, पुराण, इतिहास, साहित्य और फिल्में भी इससे अछूते नहीं हैं।

राखी का त्योहार कब शुरू हुआ यह कोई नहीं जानता। लेकिन भविष्य पुराण में वर्णन मिलता है कि देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव हावी होते नजर आने लगे। भगवान इंद्र घबरा कर बृहस्पति के पास गए। वहां बैठी इन्द्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी। उन्होंने रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बांध दिया। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था।

स्कंध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में रक्षाबंधन का प्रसंग मिलता है। दानवेंद्र राजा बलि का अहंकार चूर करने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और ब्राह्मण के वेश में राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए।

भगवान ने बलि से भिक्षा में तीन पग भूमि की मांग की। भगवान ने तीन पग में सारा आकाश, पाताल और धरती नाप लिया और राजा बलि को रसातल में भेज दिया। बलि ने अपनी भक्ति के बल पर भगवान से रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया। भगवान को वापस लाने के लिए नारद ने लक्ष्मी जी को एक उपाय बताया। लक्ष्मी जी ने राजा बलि राखी बांध अपना भाई बनाया और पति को अपने साथ ले आईं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी।

इस त्योहार से कई ऐतिहासिक प्रसंग जुड़े हैं। राजपूत जब लड़ाई पर जाते थे तब महिलाएं उनको माथे पर कुमकुम तिलक लगाने के साथ-साथ हाथ में रेशमी धागा बांधती थी। यह विश्वास था कि यह धागा उन्हें विजयश्री के साथ वापस ले आएगा।

मेवाड़ की रानी कर्मावती को बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर आक्रमण करने की सूचना मिली। रानी उस समय लड़ने में असमर्थ थी अत: उन्होंने मुगल बादशाह हुमायूं को राखी भेज कर रक्षा की याचना की। हुमायूं ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी और मेवाड़ पहुंच कर बहादुरशाह के विरुद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ाई लड़ी। हुमायूं ने कर्मावती व उनके राज्य की रक्षा की।

एक अन्य प्रसंग में कहा जाता है कि सिकंदर की पत्नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु पोरस (पुरू) को राखी बांधकर अपना मुंहबोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन ले लिया। पोरस ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी और अपनी बहन को दिए हुए वचन का सम्मान किया और सिकंदर पर प्राण घातक प्रहार नहीं किया।

रक्षाबंधन की कथा महाभारत से भी जुड़ती है। जब युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूं तब भगवान कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिए राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी।

कृष्ण और द्रौपदी से संबंधित वृत्तांत में कहा गया है कि जब श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया था तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई। द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उंगली पर पट्टी बांध दी थी। यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। कृष्ण ने इस उपकार का बदला बाद में चीरहरण के समय उनकी साड़ी को बढ़ाकर चुकाया था।

www.pardaphash.com

अब कम बनती हैं भाई-बहन पर आधारित फिल्में

एक दौर में हिंदी सिनेमा में भाई-बहन के रिश्ते और रक्षाबंधन के पर्व का महत्व हिंदी फिल्मों की कहानी और गानों में लगातार दिख जाता था। लेकिन अब इस रिश्ते के महत्व को दिखाती फिल्में और गाने कम ही देखने को मिलते हैं। 

हाल के वर्षो में 'भाग मिल्खा भाग'(फरहान अख्तर-दिव्या दत्ता) 'काई पो छे'(सुशांत सिंह राजपूत-अमृता पुरी) 'हाऊसफुल'(अर्जुन रामपाल-दीपिका पादुकोण) और 'जाने तू या जाने न' (जेनेलिया डिसूजा-प्रतीक बब्बर) में फिल्म की मुख्य कहानी के बीच भाई-बहन के रिश्ते की गरिमा जरूर देखने को मिली।

लेकिन फिल्म इतिहासकार एस. एम. एम. औसजा कहते हैं कि नब्बे के दशक की फिल्मों में भाई-बहन के रिश्ते की गरिमा, प्यार और नोंक झोंक सहज दिखलाई देती थी।

औसजा ने कहा, "पहले की तुलना में अब भाई-बहन के रिश्ते फिल्मों में कम ही दिखते हैं। वर्तमान फिल्मों में व्यावसायिक पक्ष सामाजिक उत्तरदायित्व से बढ़कर हो गया है।"

उन्होंने कहा कि पहले महबूब खान की 'बहन' (1941) और देव आनन्द की 'हरे रामा हरे कृष्णा' (1971) जैसी फिल्मों में किस तरह बहन का किरदार कहानी का प्रमुख हिस्सा हुआ करता था।

उन्होंने कहा कि पहले कितनी ही फिल्मों में भाई-बहन के रिश्ते पर आधारित गीत हुआ करते थे, जिनमें प्रमुख हैं, 'फूलों का तारों का सबका कहना है एक हजारों में मेरी बहना है' 'मेरी प्यारी बहनियां बनेगी दुल्हनियां' 'भईया मेरे राखी के बंधन को निभाना' 'रंग-बिरंगी राखी लेकर आई बहना' 'बहना ने भाई की कलाई पे प्यार बांधा है' 'मेरे भईया मेरे चंदा मेरे अनमोल रत्न' 'ये राखी बंधन है ऐसा'।

अब भी हालांकि भाई-बहन के रिश्तों को दर्शाती फिल्में सिनेमा जगत में बन रही हैं। पिछले 15 सालों में 'हम साथ-साथ हैं' 'बड़े मियां छोटे मियां' 'जोश' 'प्यार किया तो डरना क्या' 'फिजा' 'माई ब्रदर निखिल' और 'गर्व' जैसी फिल्में बनी हैं, जिनमें भाई-बहन का प्यार और नोंक झोंक देखने को मिली है। लेकिन भाई-बहन के पावन रिश्ते के लिए हिंदी सिनेमा जगत और बेहतर प्रयास कर सकता है।

WWW.PARDAPHASH.COM

संतान प्राप्ति के लिए रखें पुत्रदा एकादशी का व्रत

हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रतिवर्ष पुत्रदा एकादशी का व्रत दो बार कहा जाता है एक बार पौष माह की शुक्ल पक्ष को तो दूसरा श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है| इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है| पौष माह की पुत्रदा एकादशी उत्तर भारतीय प्रदेशों में ज्यादा महत्वपूर्ण जबकि श्रावण माह की पुत्रदा एकादशी दूसरे प्रदेशों में ज्यादा महत्वपूर्ण है। इस बार पुत्रदा एकादशी 17 अगस्त दिन शनिवार को पड़ रही है|

पुत्रदा एकादशी व्रत का महत्व-

इस व्रत के नाम के अनुसार ही इस व्रत का फल है| जिन व्यक्तियों के संतान होने में बाधाएं आती हैं उनके लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत बहुत ही शुभफलदायक होता है| इसलिए संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को व्यक्ति विशेष को अवश्य रखना चाहिए, जिससे उन्हें मनोवांछित फल की प्राप्ति हो| इस व्रत को रखने के लिए सबसे पहले सुबह स्नानादि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने के पश्चात श्रीहरि का ध्यान करना चाहिए| सबसे पहले धूप दीप आदि से भगवान नारायण की पूजा अर्चना की जाती है, उसके बाद फल- फूल, नारियल, पान सुपारी लौंग, बेर आंवला आदि व्यक्ति अपनी सामर्थ्य अनुसार भगवान नारायण को अर्पित करते हैं| पूरे दिन निराहार रहकर संध्या समय में कथा आदि सुनने के पश्चात फलाहार किया जाता है|

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा-

युधिष्ठिर बोले: श्रीकृष्ण ! कृपा करके श्रावण मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का माहात्म्य बतलाइये । उसका नाम क्या है? उसे करने की विधि क्या है ? उसमें किस देवता का पूजन किया जाता है ?

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा: राजन्! श्रावण मास के शुक्लपक्ष की जो एकादशी है, उसका नाम ‘पुत्रदा’ है ।

‘पुत्रदा एकादशी’ को नाम-मंत्रों का उच्चारण करके फलों के द्वारा श्रीहरि का पूजन करे । नारियल के फल, सुपारी, बिजौरा नींबू, जमीरा नींबू, अनार, सुन्दर आँवला, लौंग, बेर तथा विशेषत: आम के फलों से देवदेवेश्वर श्रीहरि की पूजा करनी चाहिए । इसी प्रकार धूप दीप से भी भगवान की अर्चना करे ।

‘पुत्रदा एकादशी’ को विशेष रुप से दीप दान करने का विधान है । रात को वैष्णव पुरुषों के साथ जागरण करना चाहिए । जागरण करनेवाले को जिस फल की प्राप्ति होति है, वह हजारों वर्ष तक तपस्या करने से भी नहीं मिलता । यह सब पापों को हरनेवाली उत्तम तिथि है ।

चराचर जगतसहित समस्त त्रिलोकी में इससे बढ़कर दूसरी कोई तिथि नहीं है । समस्त कामनाओं तथा सिद्धियों के दाता भगवान नारायण इस तिथि के अधिदेवता हैं ।

"पूर्वकाल की बात है, भद्रावतीपुरी में राजा सुकेतुमान राज्य करते थे । उनकी रानी का नाम चम्पा था । राजा को बहुत समय तक कोई वंशधर पुत्र नहीं प्राप्त हुआ । इसलिए दोनों पति पत्नी सदा चिन्ता और शोक में डूबे रहते थे । राजा के पितर उनके दिये हुए जल को शोकोच्छ्वास से गरम करके पीते थे । ‘राजा के बाद और कोई ऐसा नहीं दिखायी देता, जो हम लोगों का तर्पण करेगा …’ यह सोच सोचकर पितर दु:खी रहते थे ।

एक दिन राजा घोड़े पर सवार हो गहन वन में चले गये । पुरोहित आदि किसीको भी इस बात का पता न था । मृग और पक्षियों से सेवित उस सघन कानन में राजा भ्रमण करने लगे । मार्ग में कहीं सियार की बोली सुनायी पड़ती थी तो कहीं उल्लुओं की । जहाँ तहाँ भालू और मृग दृष्टिगोचर हो रहे थे । इस प्रकार घूम घूमकर राजा वन की शोभा देख रहे थे, इतने में दोपहर हो गयी । राजा को भूख और प्यास सताने लगी । वे जल की खोज में इधर उधर भटकने लगे । किसी पुण्य के प्रभाव से उन्हें एक उत्तम सरोवर दिखायी दिया, जिसके समीप मुनियों के बहुत से आश्रम थे । शोभाशाली नरेश ने उन आश्रमों की ओर देखा । उस समय शुभ की सूचना देनेवाले शकुन होने लगे । राजा का दाहिना नेत्र और दाहिना हाथ फड़कने लगा, जो उत्तम फल की सूचना दे रहा था । सरोवर के तट पर बहुत से मुनि वेदपाठ कर रहे थे । उन्हें देखकर राजा को बड़ा हर्ष हुआ । वे घोड़े से उतरकर मुनियों के सामने खड़े हो गये और पृथक् पृथक् उन सबकी वन्दना करने लगे । वे मुनि उत्तम व्रत का पालन करनेवाले थे । जब राजा ने हाथ जोड़कर बारंबार दण्डवत् किया,तब मुनि बोले : ‘राजन् ! हम लोग तुम पर प्रसन्न हैं।’

राजा बोले: आप लोग कौन हैं ? आपके नाम क्या हैं तथा आप लोग किसलिए यहाँ एकत्रित हुए हैं? कृपया यह सब बताइये ।

मुनि बोले: राजन् ! हम लोग विश्वेदेव हैं । यहाँ स्नान के लिए आये हैं । माघ मास निकट आया है । आज से पाँचवें दिन माघ का स्नान आरम्भ हो जायेगा । आज ही ‘पुत्रदा’ नाम की एकादशी है,जो व्रत करनेवाले मनुष्यों को पुत्र देती है ।

राजा ने कहा: विश्वेदेवगण ! यदि आप लोग प्रसन्न हैं तो मुझे पुत्र दीजिये।

मुनि बोले: राजन्! आज ‘पुत्रदा’ नाम की एकादशी है। इसका व्रत बहुत विख्यात है। तुम आज इस उत्तम व्रत का पालन करो । महाराज! भगवान केशव के प्रसाद से तुम्हें पुत्र अवश्य प्राप्त होगा ।

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: युधिष्ठिर ! इस प्रकार उन मुनियों के कहने से राजा ने उक्त उत्तम व्रत का पालन किया । महर्षियों के उपदेश के अनुसार विधिपूर्वक ‘पुत्रदा एकादशी’ का अनुष्ठान किया । फिर द्वादशी को पारण करके मुनियों के चरणों में बारंबार मस्तक झुकाकर राजा अपने घर आये । तदनन्तर रानी ने गर्भधारण किया । प्रसवकाल आने पर पुण्यकर्मा राजा को तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ, जिसने अपने गुणों से पिता को संतुष्ट कर दिया । वह प्रजा का पालक हुआ ।

इसलिए राजन्! ‘पुत्रदा’ का उत्तम व्रत अवश्य करना चाहिए । मैंने लोगों के हित के लिए तुम्हारे सामने इसका वर्णन किया है । जो मनुष्य एकाग्रचित्त होकर ‘पुत्रदा एकादशी’ का व्रत करते हैं, वे इस लोक में पुत्र पाकर मृत्यु के पश्चात् स्वर्गगामी होते हैं। इस माहात्म्य को पढ़ने और सुनने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिलता है ।

किस्सागोई के माहिर रचनाकार थे अमृतलाल नागर

प्रेमचंदोत्तर हिंदी साहित्य को जिन साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं से संवारा है उनमें अमृतलाल नागर का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। किस्सागोई के धनी अमृतलाल नागर ने कई विधाओं से साहित्य को समृद्ध किया। अमृतलाल नागर ने कहानी और उपन्यास के अलावा नाटक, रेडियो नाटक, रिपोर्ताज, निबंध, संस्मरण, अनुवाद, बाल साहित्य आदि के क्षेत्र में भी महžवपूर्ण योगदान दिया है। साहित्य जगत में उपन्यासकार के रूप में सर्वाधिक ख्याति प्राप्त इस साहित्यकार का हास्य-व्यंग्य भी कम महžवपूर्ण नहीं है।

अमृतलाल नागर का जन्म एक गुजराती परिवार में 17 अगस्त, 1916 ई. को गोकुलपुरा, आगरा, उत्तर प्रदेश में हुआ था। आगरा में इनकी ननिहाल थी। इनके पितामह पंडित शिवराम नागर 1895 में लखनऊ आकर बस गए थे। पिता पंडित राजाराम नागर की मृत्यु के समय नागर जी सिर्फ 19 वर्ष के थे।

पिता के असामयिक निधन के कारण जीवकोपार्जन का दबाव आन पड़ा और इस कारण अमृतलाल नागर की विधिवत शिक्षा हाईस्कूल तक ही हो पाई। विद्या के धुनी नागरजी ने निरंतर स्वाध्याय जारी रखा और साहित्य, इतिहास, पुराण, पुरातžव, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान आदि विषयों पर और हिंदी, गुजराती, मराठी, बांग्ला एवं अंग्रेजी आदि भाषाओं पर अधिकार हासिल कर लिया।

रोजीरोटी के लिए अमृतलाल नागर ने एक छोटी सी नौकरी की और कुछ समय तक मुक्त लेखन एवं 1940 से 1947 ई. तक कोल्हापुर में हास्यरस के प्रसिद्ध पत्र 'चकल्लस' का संपादन किया। इसके बाद वे बंबई एवं मद्रास के फिल्म क्षेत्र में लेखन करने लगे। दिसंबर, 1953 से मई, 1956 तक वे आकाशवाणी, लखनऊ में ड्रामा, प्रोड्यूसर, रहे और उसके कुछ समय बाद स्वतंत्र रूप लेखन करने लगे।

किस्सागोई में माहिर नागरजी के साहित्य का लक्ष्य साधारण नागरिक रहा। अपनी शुरुआती कहानियों में उन्होंने कहीं-कहीं स्वछंदतावादी भावुकता की झलक दी है।

'बूंद और समुद्र' तथा 'अमृत और विष' जैसे वर्तमान जीवन पर लिखित उपन्यासों में ही नहीं, 'एकदा नैमिषारण्ये' तथा 'मानस का हंस' जैसे पौराणिक-ऐतिहासिक पीठिका पर रचित सांस्कृतिक उपन्यासों में भी उन्होंने उत्पीड़कों का पर्दाफाश करने और उत्पीड़ितों का साथ देने का अपना व्रत बखूबी निभाया है।

नागर जी की जिंदादिली और विनोदी वृत्ति उनकी कृतियों को कभी विषादपूर्ण नहीं बनने देती। 'नवाबी मसनद' और 'सेठ बांकेमल' में हास्य व्यंग्य की जो धारा प्रवाहित हुई है, वह अनंत धारा के रूप में उनके गंभीर उपन्यासों में भी विद्यमान है और विभिन्न चरित्रों एवं स्थितियों में बीच-बीच में प्रकट होकर पाठक को उल्लासित करती रहती है।

नागर जी के चरित्र समाज के विभिन्न वर्गो से गृहीत हैं। उनमें अच्छे बुरे सभी प्रकार के लोग हैं, किन्तु उनके चरित्र-चित्रण में मनोविश्लेषणात्मकता को कम और घटनाओं के मध्य उनके व्यवहार को अधिक महžव दिया गया है।
 
www.pardaphash.com