निर्धनता की आग में झुलस कर अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने वाले शास्त्री जी के जन्मदिन पर शत-शत नमन

आज का दिन भारतवासियों के लिए काफी खास होता है क्योंकि हमारे राष्ट्रपिता के जन्मदिवस के साथ-साथ स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का भी जन्म दिवस है। लालबहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर सन्‌ 1904 ई.में वाराणसी जिले के एक गांव मुगलसराय में हुआ था। इनके पिता शारदा प्रसाद एक शिक्षक थे। मात्र डेढ़ वर्ष की आयु में इनके सर से पिता का साया उठ गया। माता श्रीमती रामदुलारी ने बड़ी कठिनाईयों के साथ इनका लालन-पालन किया। 

लाल बहादुर शास्त्री का जीवन एक साधारण व्यक्ति से असाधारण बनने की सीख देती है। निर्धनता की आग में झुलस कर भी उन्होंने अपने जीवन में अपने लक्ष्यों को प्राप्त किया। उन्होंने बड़ी निर्धन एवं कठिन परिस्थितियों में इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूर्ण की। उसके बाद में वाराणसी स्थित हरिश्चन्द्र स्कूल में प्रवेश लिया। सन् 1921 में वाराणसी आकर जब गांधी जी ने राष्ट्र को स्वतंत्र कराने के लिए नवयुवकों का आह्वान किया, तो उनका आह्वान सुनकर मात्र सत्रह वर्षीय शास्त्री ने भरी सभा में खड़े होकर अपने को राष्ट्रहित में समर्पित करने की घोषणा की।

काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि मिलते ही शास्त्री ने अपने नाम के साथ जन्म से चला आ रहा जातिसूचक शब्द श्रीवास्तव हमेशा के लिए हटा दिया और अपने नाम के आगे शास्त्री लगा लिया। उन्होंने मरो नहीं, मारो का नारा दिया, जिसने एक क्रांति को पूरे देश में उग्र कर दिया। उनका दिया हुआ एक और नारा जय जवान-जय किसान आज भी लोगों की जुबान पर है। शिक्षा छोड़ राष्ट्रीय आंदोलन में कूद पड़े और पहली बार ढाई वर्ष के लिए जेल में बंद कर दिए गए।जेल से छूटने के बाद उन्होंने शिक्षा पूरी की । 

शिक्षा समाप्त कर शास्त्री जी लोक सेवक संघ के सदस्य बनकर उन्होंने अपना जीवन जन सेवा और राष्ट्र को समर्पित कर दिया। अपने कार्यों के फलस्वरूप बाद के इलाहाबाद नगर पालिका एवं इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट के क्रमशः सात और चार वर्षों तक सदस्य बने रहे। बाद में उन्हें इलाहाबाद जिला कांग्रेस का महासचिव, तदुपरांत अध्यक्ष तक मनोनीत किया गया। प्रत्येक पद का निर्वाह इन्होंने बड़ी योग्यता और लगन के साथ निःस्वार्थ भाव से किया। वो सबके चहेते बन गए। 

भारत की स्वतंत्रता के बाद शास्त्रीजी को उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव बनाये गए। वो गोविंद बल्लभ पंत के मुख्यमंत्री के कार्यकाल में प्रहरी एवं यातायात मंत्री बने। जवाहरलाल नेहरू का उनके प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान 27 मई, 1964 को देहांत हो जाने के बाद, शास्त्री जी ने 9 जून 1964 को प्रधान मंत्री बनाये गए। उस समय राजनीति में उथल-पुथल मची थी पाकिस्तान और चीन भारतीय सीमाओं पर तांडव कर रहे थे। 

देश भी आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा था। शास्त्री जी सूझ बुझ के साथ समस्याओं का निपटारा करते रहे। 11 जनवरी 1966 को ताशकंद में पाकिस्तान से समझौता करने के बाद दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गयी। लाल बहादुर शास्त्री आज भी हमारे बीच मौजूद हैं। देश के लिए किये गए उनके कार्य उनके बलिदान स्मरणीय है। इसलिए तो देश का हर व्यक्ति शास्त्री को उनकी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिए आज भी श्रद्धापूर्वक याद करता है।

गांधी से जुड़ा है पुलिसिया कार्रवाई से त्रस्त ठाकुर चौबीसी का इतिहास

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी देश की आजादी की अलख जगाने ठाकुर चौबीसी में आए थे। अब यही ठाकुर बिरादरी रविवार की खेड़ा महापंचायत के बाद हुई पुलिस कार्रवाई को लेकर अपने आपको उपेक्षित महसूस कर रही है। ठाकुर विरादरी की मानें तो युवाओं को फर्जी मुकदमों में फंसाया जा रहा है, जिससे उनके भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लग गया है। 

उत्तर प्रदेश में मेरठ जिले में स्थित सरधना विधानसभा क्षेत्र के 24 गांवों को संयुक्त रूप से ठाकुर चौबीसी कहा जाता है। इन गावों में 95 प्रतिशत आबादी ठाकुरों की है। सरधना विधानसभा की सीमा बागपत, मुजफ्फरनगर से भी लगती है। बीते रविवार आयोजित की गई महापंचात में मौजूद लोगों पर पुलिस ने जमकर लाठियां भांजी थी, जिसमें कई लोग घायल हुए थे। 

ठाकुर चौबीसी के लोगों का कहना है कि गांधी जी तो यहां आजादी की अलख जगाने आए थे, लेकिन पुलिस की इतनी बड़ी कार्रवाई के बाद कोई हाल चाल पूछने तक नहीं आया। ठाकुर चौबीसी के गांव खेड़ा के हरपाल चौधरी ने बताया, "विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा चुनाव, ठाकुरों ने एक राय होकर जिसे चाहा, उसी राजनीतिक दल को वोट दिया। अब रविवार को खेड़ा महापंचायत के दौरान पुलिसिया कहर उन पर बरसा। सैकड़ों लोग घायल हुए। पुलिस ने फर्जी मुकदमे दर्ज कर उनकी गिरफ्तारी भी शुरू कर दी। चार हजार से अधिक लोगों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए गए।"

रविवार की महापंचायत भाजपा विधायक संगीत सोम व सुरेश राणा पर रासुका व हिन्दुओं पर पुलिस प्रशासन द्वारा की जा रही एकपक्षीय कार्रवाई के विरोध में आयोजित की गई थी। मेरठ में भाजपा के जिलाध्यक्ष अजित चौधरी ने कहा, "महापंचायत के बाद अभी भी स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है। लोग गांवों में पुलिस को घुसने नहीं दे रहे हैं।"

चौधरी ने बताया कि लोगों का आरोप है कि पुलिस ने पाली गांव में 100 बीघा गन्ने की खड़ी फसल महज इसलिए जला दी कि उसे अंदेशा था कि इसमें काफी लोग छुपे हुए हैं। चौधरी कहते हैं, "अब गांधी जी का जमाना गया। यहां लोग लाठियों से ही बात करते हैं। जिस तरह से महापंचायत में एकत्र हुए निरीह लोगों पर लाठियां बरसाई गईं, उससे काफी सबक मिला है और इसका जवाब भी उचित समय पर दिया जाएगा।"

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जब बापू ने खुद एक लड़के के लिए बनाई रजाई

जाड़े के दिनों में एक दिन गांधीजी आश्रम की गोशाला में पहुंचे। वहां गायों को सहलाया ओर बछड़ों को थपथपाया। तभी उनकी निगाह वहां पर खड़े एक गरीब लड़के पर गई। वह उसके पास पहुंचे और बोले, "तू रात को यहीं सोता है?" 

लड़के ने जवाब दिया, "हां बापू।" "रात को ओढ़ता क्या है?" बापू ने पूछा।

लड़के ने अपनी फटी चादर उन्हें दिखा दी। बापू उसी समय अपनी कुटिया में लौट आए। बा से दो पुरानी साड़ियां मांगी, कुछ पुराने अखबार तथा थोड़ी सी रुई मंगवाई। रूई को अपने हाथों से धुना। साड़ियों की खोली बनाई, अखबार के कागज और रूई भरकर एक रजाई तैयार कर दी। गोशाला से उस लड़के को बुलाया और उसे उसको देकर बोले, "इसे ओढ़कर देखना कि रात में फिर ठंड लगती है या नहीं?"

दूसरे दिन सुबह बापू जब गोशाला पहुंचे तो लड़का दौड़ता हुआ आया और कहने लगा, "बापू, कल रात मुझे बड़ी मीठी नींद आई।"

बापू के चेहरे पर मुस्कराहट खेलने लगी। वह बोले, "सच! तब तो मैं भी ऐसी ही रजाई ओढ़ूंगा।"

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कई फिल्मकार गांधी पर फिल्म बनाने को उत्सुक

अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी के जीवन दर्शन और सुविचारों की प्रासंगिकता को इसी बात से समझा जा सकता है कि आज, उनके जन्म के 144वें वर्ष में भी कई फिल्मकार उनके दर्शन और उपदेशों को अपनी फिल्मों में उतारना चाहते हैं, और कई फिल्मकार इस दिशा में लगे भी हुए हैं। 

आइए, ऐसी ही कुछ फिल्मों पर एक दृष्टि डालते हैं, जो राष्ट्रपिता के जीवन पर आधारित हैं, साथ-साथ हम ऐसी भी फिल्मों पर दृष्टिपात करेंगे जो गांधी के जीवन पर भले न हों, पर उनमें उनके विचारों को प्रमुखता से रखा गया है :

गांधी (1982) : रिचर्ड एटनबरो के निर्देशन में बनी यह फिल्म गांधी के जीवन पर बनी सबसे उत्कृष्ट फिल्मों में शुमार की जाती है। फिल्म में बेन किंग्स्ले ने गांधी के चरित्र को इतनी खूबसूरती से निभाया है कि उन्हें इस फिल्म में अभिनय के लिए आस्कर अवार्ड से नवाजा गया। फिल्म को सात आस्कर अवार्ड मिले।

द मेकिंग ऑफ द महात्मा (1996) : फातिमा मीर की पुस्तक 'द एप्रेंटिसशिप ऑफ ए महात्मा' का श्रेष्ठ भारतीय फिल्मकार श्याम बेनेगल ने फिल्मी रूपांतर कर इस फिल्म की रचना की। फिल्म में गांधी की भूमिका करने वाले रजित कपूर को उनके अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनय का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।

लगे रहो मुन्नाभाई (2006) : निर्देशक राजकुमार हिरानी ने अपनी इस फिल्म में गांधी के विचारों को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में बेहद सहज अंदाज में पेश किया, और 'गंधीगीरी' के रूप में उनके विचारों को लोकप्रिय बनाया।

गांधी माई फादर (2007) : देश के लिए समर्पित गांधी के अपने परिवार से खासकर अपने बड़े बेटे हरीलाल से संबंधों को इस फिल्म में निर्देशक फीरोज अब्बास खान ने बहुत बारीकी से बुना है। फिल्म को तीन वर्गो में राष्ट्रीय पुरस्कार मिले।

आइए, कुछ ऐसी फिल्मों पर भी नजर डालते हैं, जो सीधे तौर पर तो महात्मा गांधी पर केंद्रित तो नही थीं, लेकिन उनमें गांधी और उनके विचारों का उल्लेख अवश्य है।

सरदार (1993) : मुख्यत: सरदार बल्लभभाई पटेल पर बनी इस फिल्म में निर्देशक केतन मेहता ने गांधी और उनके विचारों को भी गंभीरता से चित्रित किया है।

हे राम (2000) : हिंदी और तमिल, दो भाषाओं में बनी इस फिल्म का निर्देशन प्रख्यात अभिनेता कमल हासन ने किया है। यह फिल्म विभाजन और गांधी की हत्या पर केंद्रित है। फिल्म में गांधी का किरदार मशहूर अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने निभाया है।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस : द फॉरगॉटेन हीरो (2005) : श्याम बेनेगल ने एकबार फिर जब आजादी से पूर्व के काल को सुभाष चंद्र बोस की कहानी के माध्यम से फिल्म में उतारा तो गांधी की जिक्र किए बगैर उन्हें फिल्म बनाना अधूरा सा लगा। यह गांधी के दौर की दो विचारधाराओं पर केंद्रित फिल्म है।

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टैगोर ने दिया था 'महात्मा गांधी' नाम

भारतीय जीवन को जिन मनीषियों ने गहरे रूप से प्रभावित किया, उनमें महात्मा गांधी का नाम अग्रणी है। उनके विराट व्यक्तित्व का असर यह है कि उन्हें धर्म, जाति, भाषा, प्रांत की सीमा में नहीं बांधा जा सकता। वे इन सबसे परे देश-काल की सीमाओं को लांघ जाते हैं। शायद यही वजह है कि भारतीय जनमानस ने उन्हें 'राष्ट्रपिता' माना है। 

महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहन दास करमचंद गांधी था। हम उन्हें महात्मा गांधी के नाम से जानते हैं। महात्मा का अर्थ होता है; जिसके पास महान आत्मा हो। उन्हें इस उपनाम से विश्वप्रसिद्ध कवि गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने नवाजा था। 

गांधी का जन्म गुजरात के पोरबंदर में 2 अक्टूबर, 1869 को हुआ था। उनके पिता करमचंद गांधी पोरबंदर के तत्कालीन राजा के दीवान थे। 13 वर्ष की अवस्था में उनका विवाह कस्तूरबा के साथ हुआ था। गांधी पर भारतीय पुराकथाओं खास तौर से राजा हरिश्चंद्र की कथा का गहरा असर पड़ा था। इस बात का जिक्र गांधी ने अपनी आत्मकथा में भी किया है।

1888 में गांधी उच्च शिक्षा के लिए लंदन चले गए और वहां उन्होंने कानून की पढ़ाई की। वहां शाकाहार के आग्रही गांधी को कई दिनों तक भूखे ही रहना पड़ा और अंतत: उन्होंने शकाहारी भोजन तलाश लिया। हेनरी साल्ट के लेखन से प्रभावित गांधी ने वहां शाकाहार समुदाय की सदस्यता ग्रहण की और अपने आग्रही स्वभाव के कारण इसकी कार्यकारिणी में शामिल किए गए।

1891 में गांधी अपनी कानून की पढ़ाई पूरी कर भारत लौटे और बम्बई (मुंबई) में वकील के रूप में काम करना शुरू किया, लेकिन बोलने में झिझकने वाले गांधी यहां असफल साबित हुए। 1893 में वे एक वर्ष के करार पर दक्षिण अफ्रीका चले गए, जहां उन्हें दादा अब्दुल्ला एंड को. ने उन्हें अपना कानूनी सलाहकार नियुक्त किया था।

दक्षिण अफ्रीका में उन दिनों नस्लभेद चरम पर था। प्रथम दर्जे का टिकट होते हुए भी गांधी को ट्रेन से अपमानजनक तरीके से उतार दिया गया। इस एक घटना ने गांधी के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया और उन्होंने वहां रंगभेद के खिलाफ लड़ने की ठान ली। उसी लड़ाई ने गांधी को पहचान दिलाई जिसके बाद वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत बने।

गांधीजी ने जीवन में सत्य की अनुभूति करने के लिए तमाम तरह की नकारात्मक प्रवृत्तियों से बचाते हुए उन्होंने स्वयं पर ही कई तरह के प्रयोग किया। गांधीजी न तो शिक्षाविद् थे, न सिद्धांतकार। खुद को ज्ञानी पंडित की तरह पेश करने के लिए उन्होंने कभी शब्दाडंबर का सहारा नहीं लिया। 

उन्हें भलिभांति मालूम था कि उनकी कही हर बात को भारत और दुनिया भर के करोड़ों लोग गंभीरता से लेते हैं, उन्होंने कभी भी अपने विचारों को सिद्धांत रूप देने की कोशिश नहीं की। 

वे एक स्वप्नदर्शी, एक व्यावहारिक आदर्शवादी और इन सबसे भी ऊपर एक कर्मयोगी थे। उन्होंने दुनिया को दिखाया कि किस तरह शुद्ध इच्छाशक्ति से आदमी हर तरह की दासता; चाहे वह राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक या नैतिक हो, से मुक्ति पा सकता है। सत्य का पालन करने के लिए वे शहादत देने तक की इच्छाशक्ति से लैस थे और इसी ताकत ने उन्हें उस रूप में खड़ा किया जिसे आज हम गर्व और आदर से देखते हैं।

शब्द और कर्म के जरिए गांधीजी का दुनिया में अवदान कोई मामूली उपलब्धि नहीं है। उनका सत्याग्रह हालांकि साधारण आदमी के लिए सहज बोधगम्य नहीं है, फिर भी इस का व्यापक अर्थ परिणाम की चिंता किए बगैर हर हाल में सत्य का दामन थामे रहने के अलावा कुछ और नहीं है। इसी के प्रति आग्रह रखने के कारण गांधीजी आज भी पूजे और याद किए जाते हैं। उनका यही आग्रह 'गांधीवाद' के नाम से महात्मा की विरासत के तौर पर दुनिया में उपलब्ध है। 

वे एक चिंतक के साथ-साथ कर्मयोगी भी थे। अपनी अपर्याप्तता के लिए वे अक्सर आलोचना के पात्र बनते थे, लेकिन अपने आदर्श के साथ समझौता करने के लिए कभी भी वे दबाव में नहीं आए। 

गांधी के अपने सिद्धांतों के प्रति समर्पण को इसी से समझा जा सकता है कि विभाजन के बाद मिली आजादी का जब देश जश्न मना रहा था तब वे नूआखाली में सांप्रदायिक दंगों के खिलाफ उपवास कर रहे थे। इस विराटा व्यक्तित्व का अत्यंत दारुण अंत 30 जनवरी 1948 को तब हुआ जब एक सिरफिरे नाथूराम गोडसे ने दिल्ली में प्रार्थना सभा के लिए जाते समय उनके सीने में तीन गोलियां दाग दीं। गांधी 'हे राम' बोलकर सदा के लिए सो गए।

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महात्मा गांधी देश के आधिकारिक 'राष्ट्रपिता' नहीं!

देश की बाल आरटीआई कार्यकर्ता ऐश्वर्या पाराशर की सूचना के अधिकार की अर्जियों पर केंद्र सरकार ने यह सूचना दी है कि महात्मा गांधी आधिकारिक रूप से राष्ट्रपिता नहीं हैं और महात्मा गांधी का जन्मदिवस गांधी जयंती राष्ट्रीय पर्व नहीं है। महात्मा गांधी को आधिकारिक रूप से राष्ट्रपिता घोषित करने के सवाल पर केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय ने संविधान के अनुच्छेद 18(1) का हवाला देते हुए कहा है कि महात्मा गांधी को आधिकारिक रूप से राष्ट्रपिता घोषित नहीं किया गया है। गृह मंत्रालय ने ऐश्वर्या की सूचना की अर्जी भारतीय अभिलेखागार को स्थानांतरित कर दी थी। 

भारत सरकार के जवाबों से असंतुष्ट ऐश्वर्या ने पिछले दिनों इन दोनों मामलों में केंद्रीय सूचना आयोग में अपील दायर की थी। केंद्रीय सूचना आयुक्त बसंत सेठ ने अपने जवाब में कहा, "भारत सरकार के पास महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता घोषित करने का कोई अभिलेख नहीं है। पूरे देश द्वारा गांधीजी को आदरपूर्वक राष्ट्रपिता कहा जाता है। यह उपाधि किसी अभिलेख की उपस्थिति या अनुपस्थिति की मोहताज नहीं है।" 

उन्होंने कहा, "हमारे देश के स्वाधीनता संग्राम में उनका सर्वोच्च योगदान हमारी अविवादित गौरवमयी धरोहर है। ऐसे प्रकरणों में अनावश्यक विवाद दुख पहुंचाने वाले हैं और सभी को ऐसे विवाद उठाने से बचना चाहिए। हमें इससे अधिक कुछ नहीं कहना है।" इसी प्रकार केंद्रीय सूचना आयुक्त सुषमा सिंह के पत्रानुसार, भारत सरकार द्वारा गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस और गांधी जयंती को राष्ट्रीय पर्व घोषित करने संबंधी कोई भी आदेश जारी नहीं किया गया है।

राष्ट्रपिता और राष्ट्रीय पर्वो पर इन नकारात्मक जवाबों से निराश ऐश्वर्या कहती है कि उसे राष्ट्रीय गौरव की जो बातें उनके बड़-बुजुर्गो ने बताई थीं, वे सब एक-एक कर गलत साबित होती जा रही हैं। ऐश्वर्या इस संबंध में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी पत्र लिख चुकी है। ऐश्वर्या बताती है कि उसने इस संबंध में सभी सांसदों को ई-मेल भेजकर उनसे राष्ट्रीय गौरव के इन मुद्दों पर कार्यवाही करने का आग्रह करने के लिए लोकसभा और राज्यसभा से सांसदों के ई-मेल पता की जानकारी मांगी थी, पर उन्हें बताया गया कि कुछ सांसद ही ई-मेल का प्रयोग करते हैं। 

सभी सांसदों के ई-मेल न मिल पाने के कारण और सांसदों को डाक से पत्र भेजने के लिए ऐश्वर्या के पास जमा जेबखर्च के पैसे नाकाफी हैं, इसलिए ऐश्वर्या सांसदों को अपनी इच्छा नहीं बता पाई है। ऐश्वर्या कहती है कि 2 अक्टूबर को न जाने कितने नेता टेलीविजन पर गांधीजी को राष्ट्रपिता कहते और गांधी जयंती को राष्ट्रीय पर्व कहते नजर आएंगे, पर जब यही सम्मान आधिकारिक रूप से देने की बात आती है तो संविधान की दुहाई दी जाती है।

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...इस व्रत से होती है पितरों को बैकुंठ की प्राप्ति!

हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी कहते हैं। इस बार यह एकादशी एक अक्टूबर दिन मंगलवार को पड़ रही है| 

इंदिरा एकादशी व्रत विधि-

इंदिरा एकादशी के बारे में मान्यता है कि इसका व्रत करने वाले के सात पीढ़ियों तक के पितृ तर जाते हैं। इस एकादशी का व्रत करने वाला स्वयं मोक्ष प्राप्त करता है। इस एकादशी के व्रत और पूजा का विधान वही है जो अन्य एकादशियों का है। अंतर केवल यह है कि इस दिन शालिग्राम की पूजा की जाती है। इस दिन स्नानादि से पवित्र होकर भगवान शालिग्राम को पंचामृत से स्नान कराकर भोग लगाना चाहिए तथा पूजा कर, आरती करनी चाहिए। फिर पंचामृत वितरण कर, ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा देनी चाहिए। इस दिन पूजा तथा प्रसाद में तुलसी की पत्तियों का (तुलसीदल) का प्रयोग अनिवार्य रूप से किया जाता है।

इंदिरा एकादशी व्रत कथा- 

एक बार धर्मराज युधिष्ठिर भगवान् श्रीकृष्ण से कहने लगे कि हे भगवान! आश्विन कृष्ण एकादशी का क्या नाम है? इसकी विधि तथा फल क्या है? सो कृपा करके बताइए। मधुसूदन कहने लगे कि इस एकादशी का नाम इंदिरा एकादशी है। यह एकादशी पापों को नष्ट करने वाली तथा पितरों को अधोगति से मुक्ति देने वाली होती है। हे प्रभु इस कथा के बारे में कृपया विस्तार पूर्वक बताइए| श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहने लगे कि हे राजन! ध्यानपूर्वक इसकी कथा सुनो। इसके सुनने मात्र से ही वायपेय यज्ञ का फल मिलता है।

प्राचीनकाल में सतयुग के समय में महिष्मति नाम की एक नगरी में इंद्रसेन नाम का एक प्रतापी राजा धर्मपूर्वक अपनी प्रजा का पालन करते हुए शासन करता था। वह राजा पुत्र, पौत्र और धन आदि से संपन्न और विष्णु का परम भक्त था। एक दिन जब राजा सुखपूर्वक अपनी सभा में बैठा था तो आकाश मार्ग से महर्षि नारद उतरकर उसकी सभा में आए। राजा उन्हें देखते ही हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और विधिपूर्वक आसन व अर्घ्य दिया।

सुख से बैठकर मुनि ने राजा से पूछा कि हे राजन! आपके सातों अंग कुशलपूर्वक तो हैं? तुम्हारी बुद्धि धर्म में और तुम्हारा मन विष्णु भक्ति में तो रहता है? देवर्षि नारद की ऐसी बातें सुनकर राजा ने कहा- हे महर्षि! आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल है तथा मेरे यहाँ यज्ञ कर्मादि सुकृत हो रहे हैं। आप कृपा करके अपने आगमन का कारण कहिए। तब ऋषि कहने लगे कि हे राजन! आप आश्चर्य देने वाले मेरे वचनों को सुनो।

मैं एक समय ब्रह्मलोक से यमलोक को गया, वहाँ श्रद्धापूर्वक यमराज से पूजित होकर मैंने धर्मशील और सत्यवान धर्मराज की प्रशंसा की। उसी यमराज की सभा में महान ज्ञानी और धर्मात्मा तुम्हारे पिता को एकादशी का व्रत भंग होने के कारण देखा। उन्होंने संदेशा दिया सो मैं तुम्हें कहता हूँ। उन्होंने कहा कि पूर्व जन्म में ‍कोई विघ्न हो जाने के कारण मैं यमराज के निकट रह रहा हूँ, सो हे पुत्र यदि तुम आश्विन कृष्णा इंदिरा एकादशी का व्रत मेरे निमित्त करो तो मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है।

आश्विन कृष्ण एकादशी का क्या नाम है? इसकी विधि तथा फल क्या है? सो कृपा करके कहिए। भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि इस एकादशी का नाम इंदिरा एकादशी है। यह एकादशी पापों को नष्ट करने वाली तथा पितरों को अधोगति से मुक्ति देने वाली होती है। 

इतना सुनकर राजा कहने लगा कि हे महर्षि आप इस व्रत की विधि मुझसे कहिए। नारदजी कहने लगे- आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन प्रात:काल श्रद्धापूर्वक स्नानादि से निवृत्त होकर पुन: दोपहर को नदी आदि में जाकर स्नान करें। फिर श्रद्धापूर्व पितरों का श्राद्ध करें और एक बार भोजन करें। प्रात:काल होने पर एकादशी के दिन दातून आदि करके स्नान करें, फिर व्रत के नियमों को भक्तिपूर्वक ग्रहण करता हुआ प्रतिज्ञा करें कि ‘मैं आज संपूर्ण भोगों को त्याग कर निराहार एकादशी का व्रत करूँगा। 

हे अच्युत! हे पुंडरीकाक्ष! मैं आपकी शरण हूँ, आप मेरी रक्षा कीजिए, इस प्रकार नियमपूर्वक शालिग्राम की मूर्ति के आगे विधिपूर्वक श्राद्ध करके योग्य ब्राह्मणों को फलाहार का भोजन कराएँ और दक्षिणा दें। पितरों के श्राद्ध से जो बच जाए उसको सूँघकर गौ को दें तथा ध़ूप, दीप, गंध, ‍पुष्प, नैवेद्य आदि सब सामग्री से ऋषिकेश भगवान का पूजन करें।

रात में भगवान के निकट जागरण करें। इसके पश्चात द्वादशी के दिन प्रात:काल होने पर भगवान का पूजन करके ब्राह्मणों को भोजन कराएँ। भाई-बंधुओं, स्त्री और पुत्र सहित आप भी मौन होकर भोजन करें। नारदजी कहने लगे कि हे राजन! इस विधि से यदि तुम आलस्य रहित होकर इस एकादशी का व्रत करोगे तो तुम्हारे पिता अवश्य ही स्वर्गलोक को जाएँगे। इतना कहकर नारदजी अंतर्ध्यान हो गए।

नारदजी के कथनानुसार राजा द्वारा अपने बाँधवों तथा दासों सहित व्रत करने से आकाश से पुष्पवर्षा हुई और उस राजा का पिता गरुड़ पर चढ़कर विष्णुलोक को गया। राजा इंद्रसेन भी एकादशी के व्रत के प्रभाव से निष्कंटक राज्य करके अंत में अपने पुत्र को सिंहासन पर बैठाकर स्वर्गलोक को गया। हे युधिष्ठिर! यह इंदिरा एकादशी के व्रत का माहात्म्य मैंने तुमसे कहा। इसके पढ़ने और सुनने से मनुष्य सब पापों से छूट जाते हैं और सब प्रकार के भोगों को भोगकर बैकुंठ को प्राप्त होते हैं।

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दीवानगी ऐसी कि घर को बना दिया लता का मंदिर

दीवानगी को सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता और न ही उसका जानने का कोई पैमाना होता है। इसका प्रमाण है मध्य प्रदेश के इंदौर में स्वर कोकिला लता मंगेशकर की दीवानी वर्षा झालानी का घर, जो मंदिर में बदल चुका है। उन्होंने तो अपने घर का नाम ही लताश्रय रख दिया है।

लता की दीवानी वर्षा झालानी इंदौर के ओल्ड पलासिया क्षेत्र के सकेत नगर में रहती हैं। वर्षा का घर बाहर से तो आम मकानों जैसा ही है, मगर अंदर का नजारा अचरज पैदा कर देने वाला होता है, क्योंकि दरवाजे से लेकर हर तरफ सिर्फ एक ही तस्वीर नजर आती है और वह है लता मंगेशकर की। लता के जीवन से जु़ड़ी शायद ही कोई फोटो हो जो इस मकान में न सजी हो और न ही मकान का कोई ऐसा कोना है जहां लता न नजर आएं।

वर्षा का जीवन ही लता के इर्द गिर्द घूमता है। दिन की शुरुआत लता के गीत से होती है तो रात भी। सुबह और शाम उनकी आरती उतरती है। उसका कहना है कि लता ताई के रूप में इस धरती पर साक्षात मां सरस्वती ने जन्म लिया है।

लता के प्रति वर्षा में यह दीवानगी अचानक नहीं जगी है, बल्कि वह कहती हैं कि लता के प्रति उसकी यह दीवानगी जन्मजात है। उसकी मां भी लता की दीवानी थीं। जब वह गर्भ में थी तो मां भगवान से सिर्फ यही प्रार्थना करती थी कि उसके घर में बेटी पैदा हो और वह बड़ी होकर लता की तरह ही अपनी आवाज का जादू बिखेरे।

वह बताती है कि मां उन दिनों सिर्फ लता ताई के ही गाने सुना करती थीं। जब वह छोटी थी तो मां रेडियो में बजने वाले लता के गाने उसे भी सुनाती थी। जैसे-जैसे बड़ी होती गई लता ताई के बारे में जानने के लिए उत्सुक रहने लगी, जिन दिनों बच्चे खिलौनों की मांग किया करते थे, वर्षा लता के गानों के कैसेट मांगती थी।

वर्षा को जेब खर्च के लिए जो पैसे मिलते थे, उसमें से बचत कर वह लता के कैसेट खरीद लाती थी। वह बताती है कि जैसे-जैसे उम्र बढ़ती गई, वैसे-वैसे लता के प्रति उसका समर्पण बढ़ता गया, आज उसके लिए यदि कोई भगवान है और वह पूजा करती है तो सिर्फ लता की। घर में उनका मन्दिर भी है। इसी मन्दिर के सामने बैठकर वह घंटों लता के गाए गानों का रियाज करती है।

पूरा देश शनिवार 28 सितंबर को लता मंगेशकर का जन्मदिन मना रहा है और वर्षा भी अपने देवता को अपने तरह से याद कर रही है। वर्षा के लिए आज सबसे खुशी का दिन है।

वर्षा बताती है कि उसने संगीत की शिक्षा तो ली है, लेकिन उसका कोई गुरु नहीं है। वह सिर्फ लता को ही अपना गुरु मानती है। वर्षा की लता से मुलाकात हो चुकी है और लता ने उसे आशीर्वाद भी दिया था कि वह खूब तरक्की करे, साथ ही रियाज का सिलसिला भी जारी रखे। वर्षा लता के गाए गानों को एक नहीं बल्कि बारह भाषाओं में गा सकती है। टीवी चैनल के एक रियलिटी शो से लता के गाने गाकर अपनी पहचान बनाने वाली वर्षा अपने देवता की दीर्घायु की कामना करती है।

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शहीद-ए-आज़म भगत सिंह की जयंती पर विशेष.....

आधुनिक विश्व में ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता कि किसी ने सरदार भगत सिंह की तरह कम उम्र में ही अपने मौलिक विचारों का प्रवर्तन करने का प्रयास किया हो। भगत सिंह बुद्धिजीवी थे, लेकिन शहीद-ए-आजम का यह पक्ष अब तक अप्रचारित है। उनके उज्ज्वल व्यक्तित्व के इस पहलू की तरफ वे लोग भी ध्यान नहीं देते जो स्वयं को भगत सिंह की परंपरा के ध्वजवाहक कहते हैं।

भगत सिंह जब 17 वर्ष के थे, तो 'पंजाब में भाषा और लिपि की समस्या' विषय पर आयोजित एक राष्ट्रीय निबंध प्रतियोगिता में उन्होंने हिस्सा लिया था। कलकत्ता से प्रकाशित होने वाली पत्रिका 'मतवाला' में उन्होंने एक लेख लिखा था और उसी लेख को इस प्रतियोगिता में भेज दिया। भगत सिंह को इस लेख के लिए 50 रुपये का प्रथम पुरस्कार मिला था।

भगत सिंह एक ऐसे परिवार में पैदा हुए थे जो राष्ट्रवादी और देशभक्त परिवार था। भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह विचारक, लेखक और देशभक्त नागरिक थे। उनके पिता खुद एक बड़े देशभक्त थे। उनका भगत सिंह के जीवन पर गहरा असर पड़ा। लाला छबीलदास जैसे पुस्तकालय के प्रभारी से मिली किताबें भगत सिंह ने दीमक की तरह चाट डाली थी। पुस्तकालय प्रभारी ने कहा था कि भगत सिंह किताबों को पढ़ता नहीं था, वह तो निगलता था। भगत सिंह को फांसी होने वाली थी, फिर भी वह अपने अंतिम समय तक रोज किताबें पढ़ रहे थे। भगत सिंह मृत्युंजय थे।

भगत सिंह को हिंदी, उर्दू, पंजाबी तथा अंग्रेजी के अलावा बांग्ला भाषा भी आती थी, जो उन्होंने बटुकेश्वर दत्त से सीखी थी। जेल में भगत सिंह करीब दो साल रहे। इस दौरान वह लेख लिखकर अपने क्रांतिकारी विचार व्यक्त करते रहे। जेल में रहते हुए उनका अध्ययन बराबर जारी रहा। जेल प्रवास के दौरान उनके लिखे लेख व सगे-संबंधियों को लिखे पत्र वस्तुत: उनके विचारों के दर्पण हैं।

भगत सिंह मानते थे कि केवल अंग्रेजों के चले जाने से देश की आजादी का सपना पूरा नहीं हो सकता। केवल गोरे साहबों के स्थान पर भूरे साहबों का शासन होने से देश की बहुसंख्यक गरीब जनता का भला नहीं होने वाला है। इसलिए भगत सिंह ने समाजवादी विचारों का प्रचार करने और देश में समाजवादी शासन की स्थापना का सपना देखा।

भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को पंजाब के लायलपुर जिले के बंगा गांव में हुआ था, जो इस समय पाकिस्तान में है। उनके पिता का नाम किशन सिंह और मां का नाम विद्यावती कौर था। इस सिख परिवार ने आर्य समाज के विचारों को अपना लिया था। उनके परिवार पर आर्य समाज और महर्षि दयानंद की विचारधारा का गहरा प्रभाव पड़ा था। क्रांतिकारी भगत सिंह को 23 मार्च 1931 को मात्र 23 वर्ष की अवस्था में फांसी दे दी। वह शहीद-ए-आजम कहलाए और आज भी लाखों युवाओं के दिल में बसते हैं। 

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दुरुस्त दिल के लिए भ्रमों से रहें दूर

हृदयरोग से जुड़े ऐसे कई मिथक हैं, जो पूरी तरह बेबुनियाद होने के बावजूद अधिकांश लोगों के दिमाग में घर किए रहते हैं। ये गलत-सही जानकारियां हमें कहीं से भी मिल सकती हैं, लेकिन इन पर विश्वास करना हमारे हृदय के लिए हानिकारक हो सकता है।

हृदय विशेषज्ञों का कहना है कि उन्हें हृदयरोगियों का उपचार करते समय उन्हें रोगियों के ऐसे कई मिथकों को भी दूर करना पड़ता है। कुछ मिथक तो बहुत आम होते हैं और इन मिथकों को तोड़कर सही तथ्य स्पष्ट करने मात्र से रोगियों के हृदय को लंबे समय तक स्वस्थ रखा जा सकता है।

विख्यात हृदयरोग विशेषज्ञ अशोक सेठ के अनुसार, हृदयरोग से जुड़े मिथकों में सबसे आम धारणा यह है कि हर तरह का व्यायाम हृदय के लिए लाभकारी होता है। सेठ ने बताया, "तेज गति से 45 मिनट टहलना या एरोबिक्स करना दिल के लिए स्वास्थ्यकर होता है। लेकिन जरूरी नहीं है कि भारोत्तोलन और कसरत भी दिल के लिए लाभकारी ही हो।"

लोगों में आम धारणा यह भी है कि महिलाओं में दिल की बीमारी का खतरा कम होता है। सेठ ने बताया, "महिलाओं की मृत्यु के सबसे बड़े कारकों में दिल की बीमारी ही है, बल्कि स्तन कैंसर की अपेक्षा छह गुना अधिका महिलाओं की मौत दिल की बीमारी से होती है।"

उन्होंने आगे बताया कि पुरुषों को हल्की परेशानी होते ही वे चिकित्सक के पास चले जाते हैं, लेकिन सहनशक्ति अधिक होने के कारण महिलाएं हल्की-फुल्की परेशानी यूं ही झेल जाती हैं।उन्होंने यह भी बताया कि कई बार तो चिकित्सक के पास जाने पर कैंसर तक की जांच लिख दी जाती है, लेकिन दिल की जांच नहीं करवाई जाती।

दिल्ली के मैक्स अस्पताल में हृदयरोग विशेषज्ञ के.के. तलवार ने भी इन बातों का समर्थन किया। उन्होंने बताया, "महिलाओं में एस्ट्रोजन हार्मोन के रहने से वे कुछ हद तक इससे संरक्षित तो रहती हैं, लेकिन धुम्रपान, अस्वास्थ्यकर भोजन करने की आदत और गर्भनिरोधक दवाएं लेने के कारण उनमें भी दिल की बीमारी का खतरा काफी होता है। मेनोपाज के बाद तो यह खतरा और बढ़ जाता है।"

इसके अलावा ऐसे ढेरों मिथक हैं, जिन्हें समाज के मस्तिष्क से दूर किए जाने की जरूरत है, जैसे युवाओं को दिल की बिमारी नहीं हो सकती या जब सीने के बाईं ओर दर्द हो तभी दिल की बीमारी की आशंका व्यक्त की जाती है। हृदयरोग विशेषज्ञ सुनीता चौधरी ने बताया कि दिल की बीमारी होने पर दाहिनी बांह, ऊपरी पेड़ू या आम तौर पर बाईं बांह में भी दर्द हो सकता है।

अधिकांश विज्ञापनों में कुछ विशेष तरह के खाद्य तेलों को हृदय के लिए अच्छा बताया जाता है, लेकिन वास्तव में यह पूरी तरह सच नहीं होता। हृदयरोग विशेषज्ञों का मानना है कि कई बार सही और गलत जानकारी में बहुत मामूली अंतर होता है, इसलिए सावधान रहने की जरूरत है।

विशेषज्ञों की सलाह :

-सक्रिय रहें : नियमित तौर पर प्रतिदिन 30 से 45 मिनट तक टहलने और हल्के व्यायाम करने से न सिर्फ आपका हृदय बल्कि पूरा शरीर स्वस्थ रहेगा।

- भोजन : अपने भोजन के प्रति सजग रहें। ताजी हरी सब्जियां और फल खाएं, मोटे अनाज की रोटी और चावल का सेवन करें तथा वसायुक्त भोजन से बचें। जंक फूड से भी बचें।

-धूम्रपान न करें

-शराब का संतुलित सेवन ही करें

-तनाव से मुक्त रहें।

एक प्रख्यात हृदयरोग विशेषज्ञ ने बहुत व्यावहारिक बात कही है कि तनाव रहित नहीं रहा जा सकता, लेकिन उससे निजात पाने का पूरा प्रयास करना चाहिए। इसके लिए वह संगीत को सबसे बेहतर विकल्प बताते हैं। 

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विश्व हृदय दिवस पर विशेष: 'युवाओं को खानपान में सावधानी बरतने की जरूरत'

हृदय रोगों से पीड़ित भारतीयों की बढ़ती तादाद के बीच जीवनशैली व खान-पान की आदतों में बदलाव आज की जरूरत बन गई है। चिकित्सकों का कहना है कि युवाओं को समय रहते ही खानपान को लेकर सावधानी बरतने की आवश्यकता है, वरना अगले 10 वषरें में देश की आबादी लगभग 20 फीसदी लोगों को हृदय से संबंधित बीमारी से ग्रसित होने की आशंका है।

डा़. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ़ भुवन सी. तिवारी ने कहा कि आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में एक हृदय ही है जिस पर सबसे ज्यादा बोझ पड़ता है। तनाव, थकान, प्रदूषण आदि कई वजहों से खून का आदान-प्रदान करने वाले इस अति महत्वपूर्ण अंग को अपना काम करने में मुश्किल होती है।

डॉ. तिवारी ने बताया कि युवाओं में हृदयाघात और हृदय संबंधी बीमारियों के बढ़ने का प्रमुख कारण धूम्रपान और मशालेदार एवं तली भुनी चीजों का अधिक मात्रा में सेवन करना है। इससे बचने के लिए रेशायुक्त भोजन करना चाहिए और व्यायाम को नियमित दिनचर्या का अंग बनाना अति आवश्यक है।

उन्होंने कहा कि पहले जहां 30 से 40 वर्ष तक के बीच हृदय की समस्याएं आंकी जाती थीं, आज यह 20 वर्ष से कम उम्र के लोगों में भी होने लगी है। ऐसे में हृदय की समस्याओं से बचने का एक ही उपाय है कि लोग खुद अपनी कुछ सामान्य जांच कराएं और हृदय संबंधी सामान्य समस्याओं को भी गंभीरता से लें।

उन्होंने कहा कि अगले पांच से 10 सालों में भारतीय आबादी का करीब 20 प्रतिशत हिस्सा इससे प्रभावित होगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 तक भारत में मौतों और विकलांगता की सबसे बड़ा वजह हृदय से संबंधित रोग ही होंगे।

हृदय के साथ होने वाली छेड़छाड़ का ही नतीजा है कि आज विश्व भर में हृदय रोगियों की संख्या बढ़ गई है। एक अनुमान के अनुसार, भारत में 10 . 2 करोड़ लोग इस बीमारी की चपेट में हैं। पूरी दुनिया में हर साल 1 . 73 करोड़ लोगों की मौत इस बीमारी की वजह से हो जाती है और यदि हालातों पर काबू नहीं किया गया तो 2020 तक हर तीसरे व्यक्ति की मौत हृदय रोग से होगी।

चिकित्सकों के मुताबिक जीवनशैली व खान-पान में बदलाव लाकर हृदय रोगों से छुटकारा पा सकते हैं। इससे बचने के लिए मशालेदार व अधिक तली भुनी चीजों से परहेज करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि आजकल लोग अधिकतर समय कार्यालय में सिर्फ बैठकर अपना काम करते हैं। इस स्थिति में शरीर निष्क्रिय जीवनशैली का आदी बन जाता है। आज के युवा कार्यालय में तो बैठे बैठे काफी पीते हैं और फिर घर पर भी रात को देर तक टेलीविजन देखकर सुबह देर से जगते हैं और व्यायाम नहीं करते हैं। ऐसे में हृदय रोगों की आहट आना लाजमी है।

चिकित्सकों की मानें तो मधुमेह और हाइपरटेंशन के मरीजों को शुगर तथा रक्त चाप पर नियंत्रण रखना चाहिए। एक सप्ताह में कम से कम पांच दिन व्यायाम जरुरी है। तंबाकू का सेवन नहीं करना चाहिए। वसायुक्त भोजन का सेवन न करें साथ ही ताजे फल एवं सब्जियों का सेवन करना चाहिए। चिकनाई युक्त पदार्थ नहीं खाना चाहिए। चिकित्सक रचनात्मक और मनोरंजनात्मक कायरें में मन लगने की भी सलाह देते हैं।

बलरामपुर अस्पताल के योग विशेषज्ञ एऩ एल़ यादव कहते हैं कि तनाव के कारण मस्तिष्क से जो रसायन स्रावित होते हैं वे हृदय की पूरी प्रणाली को खराब कर देते हैं। तनाव से उबरने के लिए योग का भी सहारा लिया जा सकता है। हृदय हमारे शरीर का ऐसा अंग है जो लगातार पंप करता है और पूरे शरीर में रक्त प्रवाह को संचालित करता है। प्रतिदिन कम से कम आधे घंटे तक व्यायाम करना हृदय के लिए अच्छा होता है। 

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विश्व पर्यटन दिवस पर विशेष: विदेशी सैलानियों में अमेरिका, ब्रिटेन का दबदबा

भारत आने वाले विदेशी सैलानियों में अमेरिका और ब्रिटेन के पर्यटकों का दबदबा रहा है। यह तथ्य भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय के 2011 और 2012 के आंकड़ों से उजागर होती है। 27 सितंबर को पूरी दुनिया में विश्व पर्यटन दिवस मनाया जाता है और भारत में भी पर्यटन सत्र लगभग इसी समय शुरू होता है, जो अक्टूबर, नवंबर, दिसंबर, जनवरी और फरवरी भर चलता है। इस दौरान होटलों और पर्यटन उद्योग से जुड़े कारोबार को काफी लाभ होता है।

पिछले कुछ महीने में डॉलर के मुकाबले रुपये में आई गिरावट के कारण अमेरिका तथा यूरोप के पर्यटकों के लिए भारत एक सस्ता गंतव्य बन गया है और इस नाते इस बार शीत ऋतु में देश में विदेशी सैलानियों की संख्या में भारी वृद्धि होने का अनुमान है। मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2012 में देश में आए विदेशी सैलानियों में अमेरिका का अनुपात 15.81 फीसदी था, जबकि ब्रिटेन का अनुपात 11.98 फीसदी था।

भारत की लगभग गोद में बसा बांग्लादेश अमेरिका और ब्रिटेन के बाद भारत आने वाले विदेशी सैलानियों में सबसे बड़ी भूमिका निभाता है। 2012 में बांग्लादेश का अनुपात 7.41 फीसदी रहा।अमेरिका, ब्रिटेन और बांग्लादेश से 2012 में क्रमश: 10,39,947 पर्यटक, 7,88,170 और 4,87,397 पर्यटक भारत आए थे। तीनों देश 2011 में विदेशी सैलानी भेजने वाले देशों में पहले, दूसरे और तीसरे स्थानों पर रहे थे और इनकी हिस्सेदारी भी लगभग इतनी ही (15.54 फीसदी, 12.65 फीसदी और 7.35 फीसदी) थी।

मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 2012 में भारत में विदेशी सैलानी भेजने वाले 15 सबसे बड़े देशों की सूची और उनकी हिस्सेदारी इस प्रकार है : 1. अमेरिका (15.81 फीसदी), 2. ब्रिटेन (11.98 फीसदी), 3. बांग्लादेश (7.41 फीसदी), 4. श्रीलंका (4.51 फीसदी), 5. कनाडा (3.89 फीसदी), 6. जर्मनी (3.87 फीसदी), 7. फ्रांस (3.66 फीसदी), 8. जापान (3.34 फीसदी), 9. आस्ट्रेलिया (3.07 फीसदी), 10. मलेशिया (2.98 फीसदी), 11. रूस (2.70 फीसदी), 12. चीन मुख्य भूमि (2.57 फीसदी), 13. सिंगापुर (2.00 फीसदी), 14. नेपाल (1.91 फीसदी) और 15. कोरिया गणराज्य (1.66 फीसदी)।

2012 में देश के विदेशी सैलानियों में इन 15 देशों का अनुपात कुल 46,94,722 पर्यटकों के साथ 71.37 फीसदी रहा। इस वर्ष देश में कुल 65 लाख, 77 हजार, 745 विदेश सैलानी पहुंचे।महादेशों के मामले में 2012 में भारत आने वाले विदेशी सैलानियों में पश्चिमी यूरोप की हिस्सेदारी सबसे अधिक 18,53,066 पर्यटकों के साथ 28.17 फीसदी रही। दूसरे स्थान पर 12,95,968 पर्यटकों के साथ उत्तरी अमेरिका की हिस्सेदारी 19.70 फीसदी रही। तीसरे स्थान पर 11,71,499 सैलानियों के साथ दक्षिण एशिया की हिस्सेदारी 17.81 फीसदी रही। उपर्युक्त आंकड़ों से स्पष्ट संकेत मिलता है कि पर्यटन उद्योग के विकास के लिए भारत को किस बाजार को लुभाने की कोशिश करनी चाहिए।

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लता मंगेशकर : आवाज ही पहचान है..

भारत रत्न से विभूषित भारत की 'स्वर कोकिला' लता मंगेशकर का गाया गीत 'नाम गुम जाएगा चेहरा ये बदल जाएगा, मेरी आवाज ही पहचान है गर याद रहे' वास्तव में उनके व्यक्तित्व, कला और अद्वितीय प्रतिभा का परिचायक है। 28 सितंबर को लता जी अपने जीवन के 84 साल पूरे कर रही हैं। उन्होंने फिल्मों में पाश्र्वगायन के अलावा गर फिल्मी गीत भी गाए हैं। 

मध्य प्रदेश के इंदौर में 28 सितंबर 1929 को जन्मीं कुमारी लता दीनानाथ मंगेशकर रंगमंचीय गायक दीनानाथ मंगेशकर और सुधामती की पुत्री हैं। चार भाई-बहनों में सबसे बड़ी लता को उनके पिता ने पांच साल की उम्र से ही संगीत की तालीम दिलवानी शुरू की थी। 

बहनों आशा, उषा और मीना के साथ संगीत की शिक्षा ग्रहण करने के साथ साथ लता बचपन से ही रंगमंच के क्षेत्र में भी सक्रिय थीं। जब लता सात साल की थीं, तब उनका परिवार मुंबई आ गया, इसलिए उनकी परवरिश मुंबई में हुई।

वर्ष 1942 में दिल का दौरा पड़ने से पिता के देहावासान के बाद लता ने परिवार के भरण पोषण के लिए कुछ वर्षो तक हिंदी और मराठी फिल्मों में काम किया, जिनमें प्रमुख हैं 'मीरा बाई', 'पहेली मंगलागौर' 'मांझे बाल' 'गजा भाऊ' 'छिमुकला संसार' 'बड़ी मां' 'जीवन यात्रा' और 'छत्रपति शिवाजी'।

लेकिन लता की मंजिल तो गायन और संगीत ही थे। बचपन से ही उन्हें गाने का शौक था और संगीत में उनकी दिलचस्पी थी। लता ने एक बार बातचीत में बीबीसी को बताया था कि जब वह चार-पांच साल की थीं तो किचन में खाना बनाती स्टूल पर खड़े होकर अपनी मां को गाने सुनाया करती थीं। तब तक उनके पिता को उनके गाने के शौक के बारे में पता नहीं था। 

एक बार पिता की अनुपस्थिति में उनके एक शागिर्द को लता एक गीत के सुर गाकर समझा रही थीं, तभी पिता आ गए। पिताजी ने उनकी मां से कहा, "हमारे खुद के घर में गवैया बैठी है और हम बाहर वालों को संगीत सिखा रहे हैं।" अगले दिन पिताजी ने लता को सुबह छह बजे जगाकर तानपुरा थमा दिया।

लता के फिल्मों में पाश्र्वगायन की शुरुआत 1942 में मराठी फिल्म 'कीती हसाल' से हुई, लेकिन दुर्भाग्य से यह गीत फिल्म में शामिल नहीं किया गया। कहते हैं, सफलता की राह आसान नहीं होती। लता को भी सिनेमा जगत में कॅरियर के शुरुआती दिनों में काफी संघर्ष करना पड़ा। उनकी पतली आवाज के कारण शुरुआत में संगीतकार फिल्मों में उनसे गाना गवाने से मना कर देते थे। 

अपनी लगन और प्रतिभा के बल पर हालांकि धीरे-धीरे उन्हें काम और पहचान दोनों मिलने लगे। 1947 में आई फिल्म 'आपकी सेवा में' में गाए गीत से लता को पहली बार बड़ी सफलता मिली और फिर उन्होंने पीछे मुढ़कर नहीं देखा। 

वर्ष 1949 में गीत 'आएगा आने वाला', 1960 में 'ओ सजना बरखा बहार आई', 1958 में 'आजा रे परदेसी', 1961 में 'इतना न तू मुझसे प्यार बढ़ा', 'अल्लाह तेरो नाम', 'एहसान तेरा होगा मुझ पर' और 1965 में 'ये समां, समां है ये प्यार का' जैसे गीतों के साथ उनके प्रशंसकों और उनकी आवाज के चाहने वालों की संख्या लगातार बढ़ती गई।

यह कहना गलत नहीं होगा कि हिंदी सिनेमा में गायकी का दूसरा नाम लता मंगेशकर है। वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद जब एक कार्यक्रम में लता ने पंडित प्रदीप का लिखा गीत 'ऐ मेरे वतन के लोगों' गाया था तो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की आंखों में आंसू आ गए थे।

भारत सरकार ने लता को पद्म भूषण (1969) और भारत रत्न (2001) से सम्मानित किया। सिनेमा जगत में उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार, दादा साहेब फाल्के पुरस्कार और फिल्म फेयर पुरस्कारों सहित कई अनेकों सम्मानों से नवाजा गया है। 

सुरीली आवाज और सादे व्यक्तित्व के लिए विश्व में पहचानी जाने वाली लता जी आज भी गीत रिकार्डिग के लिए स्टूडियो में प्रवेश करने से पहले चप्पल बाहर उतार कर अंदर जाती हैं।

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