भारतीय संगीत व सद्भाव के अग्रदूत अमजद अली खान

12 वर्ष की अल्पायु में अपनी पहली संगीत प्रस्तुति देकर उस्ताद संगितज्ञों को मंत्रमुग्ध कर देने वाले सरोद सम्राट अमजद अली खान का 9 अक्टूबर को (बुधवार) 68वां जन्मदिवस है। अमजद अली खान वर्तमान भारत के वास्तविक सद्भावना दूत हैं, यही कारण है कि महात्मा गांधी की 144वीं जयंती पर जब संयुक्त राष्ट्र की विशेष सभा में राष्ट्रपिता को संगीत से श्रद्धांजलि देने की बारी आई तो इस कार्य के लिए अमजद अली खान को चुना गया।

भारतीय शास्त्रीय संगीत के अनेक वाद्यों का प्रचलन जहां दिनों दिन कम होता जा रहा है, और आने वाली पीढ़ियों की उन वाद्य यंत्रों पर संगीत साधना से रुचि समाप्त होती जा रही है, वहीं अमजद अली खान ने एक ऐसे वाद्य यंत्र से भारतीय शास्त्रीय संगीत को समृद्ध किया जो न सिर्फ दूर देश ईरान से लाए गए वाद्य 'रबाब' को भारतीय संगीत परंपरा एवं वाद्यों के अनुकूल परिवर्धित करके निर्मित किया गया। यह नया वाद्य यंत्र 'सरोद' कहलाया जिसका अर्थ होता है मेलोडी अर्थात् मधुरता।

अमजद अली खान ने संगीत के लिए प्रसिद्ध बंगश घराने की पारंपरिक संगीत को छठी पीढ़ी में न सिर्फ जीवित रखा है, बल्कि अनेक मौलिक रचनाओं के साथ उसे नया जीवन प्रदान किया है। इतना ही नहीं अपने दोनों बेटों अमान अली और अयान अली को सरोद में दीक्षित कर वे इस संगीत की परंपरा को बंगश वंशावली की सातवीं पीढ़ी के सुरक्षित हाथों में सौंप चुके हैं।

ग्वालियर के शाही परिवार के संगीतकार हाफिज अली खां के पुत्र अमजद अली खां प्रसिद्ध बंगश वंशावली की छठी पीढ़ी के हैं, जिसकी जड़ें संगीत की सेनिया बंगश शैली में हैं। इस शैली की परंपरा को शहंशाह अकबर के अमर दरबारी संगीतकार मियां तानसेन के समय से जोड़ा जा सकता है। अमजद अपने पिता के खास शिष्य थे।

भारतीय शास्त्रीय संगीत में अमजद अली खान आज सर्वोत्कृष्ट स्थान हासिल कर चुके हैं, और कला के लिए समर्पण ने उन्हें विश्व में भारतीय संगीत के अग्रदूत के रूप में स्थापित किया है। भारत ही नहीं, पूरा विश्व आज उनसे संगीत की दीक्षा लेना चाहता है, और संगीत के इस असीम सागर से कुछ मोती प्राप्त करना चाहता है। इसी सिलसिले में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय ने उन्हें पिछले वर्ष संगीत की शिक्षा प्रदान करने के लिए आमंत्रित किया। यहां उन्होंने 'इंडियन क्लासिकल म्यूजिक : ए वे आफ लाइफ' शीर्षक वाले पाठ्यक्रम के अंतर्गत विश्व को भारतीय संगीत की मधुरता एवं विश्वप्रियता से अवगत कराया।

भारतीय संगीत के जरिए विश्व में सद्भावना का संदेश प्रसारित करने वाले अमजद अली खान को इस वर्ष 20 अगस्त को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के जन्मदिवस पर राष्ट्रीय एकता एवं सौहार्द के क्षेत्र में अतिविशिष्ट कार्यो के लिए दिया जाने वाला राजीव गांधी सद्भावना सम्मान से सम्मानित किया गया। वैसे तो कहा जाता है कि अमजद अली खान जैसे विश्वस्तर के कलाकारों को ये सम्मान उन सम्मानों का ही सम्मान बढ़ाने का काम करते हैं। इसीलिए शायद विश्वभर से उन्हें इतने सम्मानों से सम्मानित किया गया।

1971 में उन्होंने द्वितीय एशियाई अंतर्राष्ट्रीय संगीत-सम्मेलन में भाग लिया जहां उन्हें 'रोस्टम पुरस्कार' से सम्मानित किया गया। खान साहब को इसके अलावा भारत के प्रतिष्ठित पुरस्कारों, पद्मश्री, पद्म विभूषण, पद्म विभूषण, संगीत नाटक अकादमी सम्मान, कला रत्न सम्मान, तानसेन सम्मान और उनकी उपलब्धियों के लिए उन्हें 2011 में मल्लिकार्जुन भीमरायप्पा मंसूर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा अमजद अली खां साहब को यूनेस्को सम्मान एवं यूनिसेफ के राष्ट्रीय राजदूत सम्मान से नवाजा गया।

अमजद अली खां ऐसे संगीतकार हैं, जिन्हें न सिर्फ संगीत के प्रति समर्पण के लिए ही नहीं बल्कि उसकी परंपरा को भी संजोने के लिए भी जाना जाएगा। उन्होंने अपने पिता हाफिज अली खान पर 'माई फादर, ऑवर फ्रैटर्निटी : द स्टोरी ऑफ हाफिज अली खान एंड माई वल्र्ड' शीर्षक से पुस्तक लिखकर भारतीय के एक संगीत घराने के योगदान एवं परंपरा को अमर कर दिया। उनकी पुस्तक का विमोचन महानायक अमिताभ बच्चन ने किया।

अमजद अली खान का व्यक्तित्व इतना सहज लेकिन इतना प्रभावी है कि मशहूर गीतकार एवं निर्देशक गुलजार ने 1990 में उन पर फिल्म प्रभाग की तरफ से 'अमजद अली खान' शीर्षक से एक वृतचित्र फिल्म का निर्माण किया और इस फिल्म को उस वर्ष सर्वश्रेष्ठ वृतचित्र का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।

अमजद की सृजनात्मक प्रतिभा को उनके द्वारा रचित कई मनमोहक रागों में अभिव्यक्ति मिली। उन्होंने इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की स्मृति में क्रमश: राग प्रियदर्शनी और राग कमलश्री की रचना की। उनके द्वारा रचित अन्य रागों में शिवांजलि, हरिप्रिया कानदा, किरण रंजनी, सुहाग भैरव, ललित ध्वनि, श्याम श्री और जवाहर मंजरी शामिल हैं।

अमजद अली खान ने देश-विदेश के अनेक महžवपूर्ण संगीत केंद्रों में संगीत प्रस्तुत कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया है। इनमें कुछ प्रमुख हैं- रॉयल अल्बर्ट हॉल, रॉयल फेस्टिवल हॉल, केनेडी सेंटर, हाउस ऑफ कॉमंस, फ्रैंकफुर्ट का मोजार्ट हॉल, शिकागो सिंफनी सेंटर, ऑस्ट्रेलिया का सेंट जेम्स पैलेस और ओपेरा हाउस आदि।

सरोद के प्रति उनकी दीवानगी को इसी से समझा जा सकता है कि आपने ग्वालियर में सरोद म्यूजियम 'सरोद घर' भी बनाया है, जिसमें सरोद से जुड़े फोटो, दस्तावेज, शास्त्रीय संगीत पर किताबें, लेख ऑडियो-विडियो दस्तावेजों का बहुमूल्य खजाना उपलब्ध है। वह अपने इस सरोद घर में लाइव संगीत कार्यक्रमों का आयोजन भी करवाते हैं।

अमजद अली खान ने अपनी पत्नी एवं प्रख्यात भरतनाट्यम नृत्यांगना सुब्बालक्ष्मी के लिए विशेष तौर पर एक राग 'सुब्बालक्ष्मी' की रचना की है। अमजद अली खान के विश्व बंधुत्व, सर्वधर्म समभाव और मानवीय हृदय को इसी बात से जाना जा सकता है कि उन्होंने कहा था कि उन्हें संगीत प्रस्तुति देते वक्त मंच पर जाते वक्त ऐसी ही अनुभूति होती है, जैसी किसी धार्मिक व्यक्ति को मस्जिद में रोज नमाज पढ़ने या मंदिर में भगवान के दर्शन के लिए जाने पर होती होगी। 

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वक्त के साथ घटा रामलीलाओं का आकर्षण

करीब 20 साल पहले तक रामलीला के प्रति लोगों में इतना आकर्षण था कि इनमें बड़ी संख्या में दर्शक जुटते थे और भगवान राम और लक्ष्मण बने पात्रों को लोग कंधे पर उठा लेते थे। फूल-माला और आरती लेकर रामलीला देखने आते थे। बैठने के लिए बोरे भी साथ लाते थे, मगर अब यह सब देखने को नहीं मिलता। अब रामलीलाओं में दर्शकों का टोटा रहता है। केवल विजयदशमी पर ही भीड़भाड़ दिखायी देती है।

सूबे के तमाम जनपदों में होने वाली रामलीला कमेटियों के मुख्य व्यवस्थापकों का कहना है कि करीब बीस वर्ष पूर्व रामलीला को देखने का लोगों में जो उत्साह था वह आज देखने को नहीं मिलता। कलाकारों की सोच में भी परिवर्तन दिख रहा है। वह भी इसे प्रोफेशन के रूप में लेते हैं।

लखनऊ की बात करें तो यहां होने वाली तमाम रामलीला कमेटियों के मुख्य व्यवस्थापकों का कहना है कि 20 साल पहले तक गांवों में जब कलाकार रामलीला का मंचन करने पहुंचते थे तो लोग स्टेशन से कंधे पर उठाकर मंच तक ले जाते थे। उन्हें माला पहनाते थे और आरती उतारते थे। सैकड़ों की संख्या में दर्शक जुटते थे और जयकारे लगाते रहते थे, लेकिन अब यह सब कुछ दिखायी नहीं देता।

कुछ ऐसा ही कानपुर में रामलीला कमेटी शास्त्रीनगर के मुख्य व्यवस्थापक महेंद्र कुमार बाजपेयी भी बताते हैं। अध्यक्ष बाबू त्रिपाठी, महामंत्री गुलाब वर्मा और स्वागताध्यक्ष जमशेद आलम अंसारी बताते हैं कि पहले तखत पर पेट्रोमेक्स की रोशनी में रामलीला होती थी। दर्शक दीर्घा में जगह पाने के लिए लोग अपना खाना तक लेकर आते थे, मगर अब वो जुनून नजर नहीं आता। कलाकार भी व्यावसायिक हो गए हैं। पहले कलाकार पैसे मांगते नहीं थे। जितने दो ले लेते थे। 

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अवकाश चाहिए तो रात 9 बजे आवास पर आइए!

उत्तर प्रदेश में लगातार यौन अपराध की घटनाएं सामने आ रही हैं| ताजा मामला अलीगढ़ का है जहां एक बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) ने तो सारी हदें ही पार कर दी| अलीगढ़ के बीसए पर एक महिला ने गंभीर आरोप लगत्ते हुए कहा है कि मातृत्व अवकाश को मंजूर कराने के लिए 'साहब' ने उन्हें आवास पर बुला लिया। नहीं गई तो फाइल महीनेभर उनके यहां पड़ी रही और छुट्टी मंजूर नहीं की गई। फिलहाल इस मामले को लेकर सपा के विधायक जफर आलम के नाराज होने पर सीडीओ ने आरोपों की जांच कराने का निर्देश दिया है।

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, जवां ब्लाक स्थित छेरत प्राइमरी विद्यालय की सहायक अध्यापक शाहिद परवीन ने बताया है कि उनके तीन महीने के बेटे की तबियत खराब होने के कारण एक सितंबर को खंड शिक्षा अधिकारी के यहां मातृत्व अवकाश के लिए आवेदन किया था। उनकी संस्तुति के बाद पत्रावली नौ सितंबर को बीएसए कार्यालय आ गई। तब से अक्सर बीएसए कार्यालय पर जाती रहीं, लेकिन अवकाश स्वीकृत नहीं हुआ। तो एक दिन बीएसए साहब ने कहा कि यदि छुट्टी मंजूर करनी है रत को नौ बजे उनके आवास पर आना होगा| यह सूचना उसने यूपी उर्दू टीचर्स एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष गुलजार अहमद को दी।

पीड़ित टीचर को अवकाश देने के लिए शहर विधायक जफर आलम ने भी बीएसए से बात की, लेकिन हुआ कुछ नहीं। एबीएसए उसे बच्चे को स्कूल लाने से भी रोकते हैं। ऐसे में टीचर क्या करे? सो, उन्हें धरना-प्रदर्शन को मजबूर होना पड़ा। शाम को शहर विधायक जफर आलम ने सीडीओ से फोन पर बात की। सीडीओ शमीम अहमद ने घटना को गंभीरता से लेते हुए जाँच के आदेश दे दिए हैं| वहीँ, इस घटना को बीएसए निराधार बता रहे हैं| उनका कहना है कि मैंने महिला को कभी भी घर आने के लिए नहीं कहा है हाँ रही बात छुट्टी की तो मैंने वह मंजूर कर दी है| 

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बरवां गांव की रामलीला 300 साल पुरानी!

देश के विभिन्न हिस्सों में रामलीला के माध्यम से मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के चरित्र को रंगमंच पर उतारने की परंपरा काफी प्राचीन है, लेकिन वाराणसी जनपद में एक गांव ऐसा भी है, जहां यह परंपरा 300 वर्षो से भी पहले से चली आ रही है। 

वाराणसी से 40 किलोमीटर दूर स्थित बरवां गांव के बुजुर्गो की मानें तो वाराणसी के रामनगर में आयोजित होने वाली विश्वप्रसिद्ध रामलीला से भी पहले से इस गांव में रामलीला का मंचन होता आया है। बरवां गांव में रामलीला करने वालों के मुताबिक, हालांकि इसका कोई लिखित प्रमाण तो नहीं है, लेकिन इस गांव की रामलीला का मंचन लगभग 300 वर्ष पहले से होता आ रहा है।

बरवां गांव की रामलीला राघवेंद्र रामलीला समिति के नेतृत्व में पूरी परंपरा और निष्ठा के साथ आज भी अनवरत जारी है और उसी 300 वर्ष पुरानी परंपरा के अनुसार यहां प्रतिवर्ष रामलीला होती है।

रामनगर की रामलीला को वैसे तो अति प्राचीन माना जाता है, लेकिन बरवां गांव के बुजुर्गो का कहना है कि अगर उनके पास इस रामलीला मंचन का लिखित अभिलेख सुरक्षित होता तो उनके गांव की रामलीला के रामनगर से भी प्राचीन होने के प्रमाण मिल जाते।

समिति के वर्तमान अध्यक्ष महेंद्र दुबे ने बताया, "हमारे पास पिछले 100 वर्षो का प्रमाण तो है, लेकिन उसके पहले के प्रमाण नष्ट हो चुके हैं।" उन्होंने बताया, "बढ़ती महंगाई ने वर्तमान में जहां अन्य जगहों पर होने वाली रामलीलाओं पर असर डाला है, वहीं गांव वालों के सहयोग से हमारी रामलीला इससे अछूती है।"

उन्होंने आगे बताया, "11 दिनों चलने वाली रामलीला के आयोजन की तैयारी दो महीने पहले से शुरू हो जाती है। पात्रों के पोशाकों के चयन से लेकर संवाद तक हर पहलू को ध्यान में रखते हुए कड़ी मेहनत की जाती है। संगीत पक्ष भी अपनी तैयारी करता है। रामलीला में इसका बहुत ही महत्व है।"

इस गांव में होने वाली रामलीला में कुछ ऐसे कलाकार भी हैं जो लगातार कई वर्षो से हनुमान, रावण और अंगद का किरदार निभाते आ रहे हैं।

पिछले 25 वर्षो से रावण का किरदार निभाने वाले 60 वर्षीय पन्नालाल शर्मा ने बताया, "रावण रामकथा का एक विशेष पात्र है। किसी भी कृति के लिए अच्छे पात्रों के साथ-साथ बुरे पात्रों का होना अति आवश्यक है। किंतु रावण में अवगुणों की अपेक्षा गुण अधिक थे। यदि रावण न होता तो रामायण की रचना भी न हो पाती।"

शर्मा ने कहा, "देखा जाए तो रामकथा में रावण ही ऐसा पात्र है, जो राम के उज्ज्वल चरित्र को उभारने का काम करता है।"

शर्मा ने कहा, "रावण जहां दुष्ट और पापी था वहीं उसमें शिष्टाचार और ऊंचे आदर्श वाली मर्यादाएं भी थीं। रावण कितना भी अहंकारी क्यों न रहा हो, लेकिन उसके गुणों को विस्मृत नहीं किया जा सकता। रावण एक अति बुद्घिमान ब्राह्मण तथा शंकर भगवान का बहुत बड़ा भक्त था। वह महा तेजस्वी, प्रतापी, पराक्रमी, रूपवान तथा विद्वान था।"
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व्रत में सेहत का रखे ख़ास ख्याल

नवरात्र में ज्यादातर माँ के भक्त उपवास रखते हैं और फलाहार पर ही पूरा दिन बिता देते हैं| यदि ऐसे में आप सामान्य भोजन नहीं ले रहे हैं तो सेहत को चुस्त-दुरुस्त बनाये रखने के लिए आपको विशेष सावधानी बरतनी होगी| ख़ास तौर से मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग से पीड़ित रोगियों को उपवास के दौरान विशेष सावधानी बरतनी चाहिए| क्योंकि खान-पान में लापरवाही बरतने से आप कई तरह की समस्याओ से घिर सकते हैं|

यदि आप उपवास रख रहे हैं तो आपको अपने दिन की शुरुआत मूंगफली और चाय के साथ करनी चाहिए क्यूंकि इस से आपको अच्छी मात्रा में प्रोटीन, वसा और ऊर्जा प्राप्त होगी| आपको ये ध्यान रखना होगा कि आप जो भी कुछ खा रहे हो उसमें पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा हो| इस लिहाज़ से एक ग्लास फ्रूट मिल्क शेक, या एक कटोरी फ्रूट सलाद, या एक गिलास जूस ले सकते हैं|

नवरात्र में कुछ बातो का ध्यान अवश्य रखें:-

पानी पीने में कोई कोताही नहीं बरतनी चाहिए कम से कम 4-5 लीटर पानी जरुर पीना चाहिए| इसके अलावा व्यायाम या कठिन परिश्रम बिलकुल मत करें| 

उपवास में सब्जियों और फलों का जूस लेना फायदेमंद होता है और इस से शरीर में उर्जा बनी रहती है| इसके साथ- साथ यह भी ध्यान रखें कि उपवास कभी भी भारी भोजन के साथ नहीं तोड़ना चाहिए|

नवरात्रि में ही क्यों होती तांत्रिक पूजा ?

हिन्दू धर्मानुसार चैत्र और अश्विन मास में पडऩे वाली नवरात्रि का हिन्दू त्योहारों में बड़ा ही महत्व है। दोनों ही नवरात्रियां माता पर्व के दिन हैं, फिर तांत्रिक अनुष्ठानों व सिद्धियों के लिए अश्विन नवरात्रि को ही श्रेष्ठ माना जाता है?

अश्विन नवरात्रि पर्व को सिद्धि के लिए विशेष लाभदायी माना गया है। इस नवरात्रि में की गयी पूजा, जप-तप साधना, यंत्र-सिद्धियां, तांत्रिक अनुष्ठान आदि पूर्ण रूप से सफल एवं प्रभावशाली होते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि माँ दुर्गा स्वयं आदि शक्ति का रूप हैं और नवरात्रों में स्वयं मूर्तिमान होकर उपस्थित रहती हैं और उपासकों की उपासना का उचित फल प्रदान करती हैं। 

सृष्टि के पांच प्रमुख तत्वों में देवी को भूमि तत्व की अधिपति माना जाता है। तंत्र-मंत्र की सारी सिद्धियां इस प्रथ्वी पर मौजूद सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा से जुड़ी होती हैं। नवरात्रि के नौ दिनों में नकारात्मक ऊर्जा कमजोर पड़ जाती है सकारात्मक ऊर्जा अपने पूरे प्रभाव में होती है। 
ऐसा इसलिए क्योंकि इन दिनों चारों तरफ पूजा और मंत्रों का उच्चारण होता है| अन्य दिनों की अपेक्षा इन दिनों जो भी काम किया जाता है, वह सफल होता है| यही वजह है की तंत्र की सिद्धि आम दिनों के मुकाबले बहुत आसानी से और कम समय में मिलती है।

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'ठक-ठक' गिरोह से बचकर रहिए नहीं तो....

अपनी कार में बैठे हुए आप लाल बत्ती के हरा होने का इंतजार कर रहे हों या किसी बाजार एवं भीड़ भरे इलाके में कार खड़ी कर उसके अंदर बैठे किसी का इतजार कर रहे हो, और कोई अनजान व्यक्ति आपकी कार का सीसा ठकठकाए तो भूलकर भी खोलिए मत। वरना आप राष्ट्रीय राजधानी में सक्रिय 'ठक-ठक' गिरोह का शिकार हो सकते हैं। 

राष्ट्रीय राजधानी में सक्रिय यह 'ठक-ठक' गिरोह आपका ध्यान चूकते ही कार में से आपकी मूल्यवान वस्तुएं लूट या चुरा सकता है। पुलिस ने बताया कि नई दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के विभिन्न इलाकों में इस तरह के कई गिरोह सक्रिय हैं, और इस वर्ष अब तक काफी लोगों को लूट चुके हैं।

जनवरी से लेकर 15 सितंबर तक यह गिरोह ऐसी कई लूट की वारदातों को अंजाम दे चुका है, जिनमें करोल बाग से एक कार से 40 लाख रुपये से ज्यादा की चोरी, चांदनी चौक के एक व्यापारी से 60 लाख रुपये से ज्यादा की नकदी लूट और सफदरजंग के एक जौहरी से उत्तर प्रदेश के मुरादनगर से 50 लाख रुपयों के जवाहरातों की लूट शामिल है।

चांदनी चौक के व्यापारी मृदुल जैन ने अपने साथ हुई लूट की घटना के बारे में बताया कि वह उप्र के मेरठ से अपनी कार से आ रहे थे कि 14 एवं 15 वर्ष की आयु के दो किशोरों ने उनकी कार का शीशा खटखटा कर उन्हें बताया कि उनकी कार से तेल रिस रहा है।

मृदुल ने बताया, "जब मैं तेल के रिसाव की जांच के लिए कार से उतरा, इसी दौरान कार की पिछली सीट पर रखा 60 लाख रुपयों से भरा मेरा बैग चोरी हो गया। दोनों किशोर भी गायब थे।"
पुलिस उपायुक्त (दक्षिण) बी. एस. जायसवाल ने बताया, "दक्षिणी दिल्ली पुलिस ने मई महीने में दोनों किशोरों को धर दबोचा। दोनों ने इस तरह के कई मामलों में अपनी संलिप्तता स्वीकार कर ली।"

सितंबर की शुरुआत में दिल्ली पुलिस ने विभिन्न स्थानों से अलग-अलग गैंग के तीन व्यक्तियों को गिरफ्तार किया। पुलिस उपायुक्त (दक्षिणी पूर्व) पी. करुणाकरन ने बताया, "गिरफ्तार संदिग्धों में एक बात समान पाई गई कि वे सभी तमिलनाडु के त्रिची के रहने वाले हैं।"

लूट एवं चोरी की वारदातों को अंजाम देने वाले इन गिरोहों को 'ठक-ठक' गिरोह नाम इसलिए दिया गया है, क्योंकि वे पहले कार का शीशा खटखटाते हैं, फिर शीशा खुलने पर कार मालिक को पता चलने से पहले कार में पड़ी मूल्यवान वस्तुएं चुरा ले जाते हैं।

अतिरिक्त पुलिस आयुक्त कुलवंत सिंह ने बताया कि वे किसी संगठित गिरोह का हिस्सा नहीं हैं। उन्होंने बताया कि वे पिछले आठ वर्षो से राजधानी में सक्रिय हैं और उनकी संख्या का सही-सही पता तो नहीं है, लेकिन वे हजारों की संख्या में हो सकते हैं।
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कुत्ते ने रक्तदान कर बचाई बिल्ली की जान

अभी तक आपने केवल मनुष्यों को ही रक्तदान करते हुए सुना होगा, लेकिन यदि आपसे कोई जानवर को रक्तदान करने की बात कहे तो शायद आपको उसकी बात पर विश्वास न हो लेकिन एक ऐसी खबर आ रही है जिसे सुनकर आप भी हैरान हो जायेंगे खबर है न्यूजीलैंड की जहाँ एक बिल्ली को बचाने के लिए एक कुत्ते ने रक्तदान किया| 

प्राप्त जानकारी के अनुसार, न्यूजीलैंड में एक लैब्रोडोर नस्ल के कुत्ते ने बिल्ली को बचाने के लिए रक्त दिया। हालांकि कुत्ते और बिल्ली का कोई रिश्ता नहीं होता है ऐसे में कुत्ते ने उस समय बिल्ली को खून देकर जान बचाई जिस समय वह जिंदगी और मौत की घड़ी में जूझ रही थी| पशु चिकित्सक का कहना है कि बिल्ली ने गलती से चूहे मारने की दवा खा ली थी, जिससे उसकी हालत एकदम खराब हो गयी थी। 

बिल्ली की मालकिन किम ने बताया कि रोरी यानि की बिल्ली की तबियत बिल्कुल बिगड़ती ही जा रही थी, हमारे पास बिल्कुल भी वक्त नहीं था कि हम एक बिल्ली का खून लें और उसे लैब में मैच करवाकर रोरी को दें तभी मैनें अपने दोस्त से बात की जिनके पास लैब्रोडोर प्रजाति का कुत्ता है। उस कुत्ते के रक्त को टेस्ट करके बिल्ली को चढ़ाया गया और बिल्ली ठीक हो गयी।
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एक कामाख्या झारखंड में भी


नवरात्र यानी दुर्गापूजा शुरू हो गई है। शक्ति स्वरूपा देवी मां की पूजा के लिए श्रद्धालु देश के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में पहुंच रहे हैं। ऐसी ही एक शक्तिपीठ झारखंड के गोड्डा जिले में है जिसे मां योगिनी स्थल नाम से जाना जाता है। 

पथरगामा प्रखंड में स्थित मां योगिनी मंदिर तंत्र साधकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। तंत्र विद्या के साधक इस प्राचीन मंदिर को असम केकामाख्या मंदिर के समकक्ष मानते हैं।

शिव पुराण के अनुसार, पति भगवान शंकर के अपमान से आहत सती के अग्निकुंड में कूदने के बाद उनके जलते शरीर को लेकर जब शिव तांडव करने लगे थे तब भगवान विष्णु ने अपने चक्र सुदर्शन से सती के शव को विच्छिन्न किया था। सती के अंग विभिन्न जगहों पर गिरे और मान्यता है कि उनकी बाईं जांघ यहीं गिरी थी। लेकिन इस सिद्धस्थल को गुप्त रखा गया था।

विद्वानों के मुताबिक, हमारे पुराणों में 51 सिद्धपीठों का वर्णन है, लेकिन योगिनी पुराण के अनुसार वास्तव में 52 सिद्धपीठ हैं।

मंदिर में साधना कर रहे पंडित देव ज्योति हलधर बताते हैं कि शहर की गहमागहमी से दूर यह मंदिर तंत्र साधना के लिए कामाख्या मंदिर के समकक्ष है। दोनों मंदिरों में पूजा के विधि-विधान एक सामान हैं। वहां के मंदिर में भी तीन दरवाजे हैं और यहां के मंदिर में भी वैसा ही है। कामाख्या मंदिर की तरह योगिनी मंदिर में भी पिंड की पूजा होती है।

वे कहते हैं कि योगिनी मां अष्टमालिका की सहचरणी हैं। नवरात्र और काली पूजा की रात में यहां विशेष मंत्र सिद्धि के लिए सैकड़ों तांत्रिक आते हैं। माना जाता है कि वास्तु और ग्रह-नक्षत्र के अनुसार मां की अराधना की जाए तो मंत्र सिद्धि आसानी से प्राप्त हो जाती है।

गोड्डा जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर की दूरी पर बारकोपा स्थित मां योगिनी मंदिर का काफी पुराना इतिहास रहा है। ऐतिहासिक और धार्मिक पुस्तकों के अनुसार, द्वापरकालीन इस मंदिर में पांडवों ने अपने अज्ञातवास के कई दिन यहां गुजारे थे, जिसकी चर्चा महाभारत में भी की गई है। तब यह मंदिर गुप्त योगिनी के नाम से प्रसिद्ध था।

पथरगामा के एक बुजुर्ग बताते हैं कि पहले यहां नर बलि दी जाती थी जिसे अंग्रेजों के शासन काल में बंद करवाया गया था। वे कहते हैं कि मंदिर के सामने स्थित वटवृक्ष काफी पुराना है। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, साधक पहले इस वटवृक्ष पर बैठकर साधना किया करते थे।

पुजारी आशुतोष बताते हैं कि इस मंदिर में प्रतिदिन 400 से 500 श्रद्धालु पहुंचते हैं, परंतु नवरात्र के दिनों में भक्तों की भीड़ बढ़ जाती है। मान्यता है कि यहां सच्चे मन से आने वाले लोगों की पीड़ा मां दूर करती हैं। योगिनी पुराण के मुताबिक, मां योगिनी सभी देवियों में सर्वश्रेष्ठ हैं।

इस मंदिर की विशेषता है उसका गर्भगृह। 354 सीढ़ियां ऊपर चढ़ने पर पहाड़ पर मां का गर्भगृह दिखाई देता है। गर्भगृह के अंदर जाने के लिए एक गुफा से होकर गुजरना पड़ता है। बाहर से देखने पर गुफा में अंधेरा नजर आता है, लेकिन प्रवेश करते ही प्रकाश ही प्रकाश नजर आता है, जबकि गुफा के अंदर बिजली की व्यवस्था नहीं है। श्रद्धालु इसे चमत्कार मानते हैं।

बाहर से गुफा का द्वार और अंदर चारों तरफ नुकीले पत्थरों को देखकर लोग अंदर जाने से घबराते हैं, लेकिन देखा गया है कि मोटा से मोटा व्यक्ति भी इस संकरी गुफा में आसानी से प्रवेश कर जाता है और मां का जयकारा लगाते हुए सकुशल निकल आता है। गुफा के अंदर टेढ़ा-मेढ़ा रास्ता है। अंदर गर्भगृह में भी कई साधु अपनी साधना में लीन रहते हैं।

स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि पांच दशक पूर्व तक यहां लोगों की कम आवाजाही थी। घने जंगल के बीच मंदिर होने के कारण काफी कम लोग यहां पहुंचते थे, लेकिन अब यहां लोगों की भीड़ लगी रहती है। कहा जाता है कि एक साधक ने यहां आकर गुफा में गर्भगृह होने का खुलासा किया था।

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क्या नेताओं की भी होनी चाहिए सेवानिवृत्ति उम्र?

क्या नेताओं को भी एक निश्चित उम्र के बाद सेवानिवृत्त हो जाना चाहिए? सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद जनप्रतिनिधियों को अयोग्य ठहराने के बाद छात्रों, युवा पेशेवरों और कारोबारियों के बीच इस सवाल का उत्तर हां है। 

चिकित्सा पेशे से जुड़े ए. हैरिस ने कहा, "हां, हर लिहाज से, चुनावी राजनीति के लिए सेवानिवृत्ति की उम्र तय की जानी चाहिए और जितनी जल्दी यह काम हो जाए उतना ही अच्छा रहेगा।" उन्होंने कहा कि बुजुर्गो में मतिभ्रम और दिमाग से संबंधित क्षीणता (बेकार होना या आकार में कम होना) आम बात है।

सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले महीने व्यवस्था दी कि किसी भी अदालत से दोषी करार दिए जाने के बाद जनप्रतिनिधि को अयोग्य करार दिया जाए भले ही संबंधित जनप्रतिनिधि की अपील ऊपर की अदालत में लंबित क्यों न हो। ऐसे नेता को छह वर्षो तक चुनाव लड़ने से भी प्रतिबंधित किया जाए। 

इस फैसले के बाद कांग्रेस के राज्यसभा सांसद रशीद मसूद ऐसे पहले जनप्रतिनिधि हैं जिन्हें अपनी सदस्यता खोनी पड़ेगी। उन्हें भ्रष्टाचार के एक मामले में दोषी ठहराया गया है। इसके बाद पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव चारा घोटाले में दोषी ठहराए गए। सेंटर फॉर डेवलपमैंट के काम करने वाले जे. मुरलीधरन ने हालांकि कहा कि राजनीति कोई पेशा नहीं है, बल्कि सेवा है। अत: किसी के दिमागी रूप से और शारीरिक रूप से स्वस्थ होने पर उम्र कोई मुद्दा नहीं रह जाता।

राज्य सरकार के कर्मचारी 56 वर्ष की उम्र होने पर सेवानिवृत्त हो जाते हैं, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र में 58 और केंद्र सरकार के कर्मचारी 60 वर्ष की उम्र होने पर सेवा से मुक्त हो होते हैं। एक पेशेवर पाठ्यक्रम के छात्र जी. एस. विवेक ने कहा, "जब सभी की सेवानिवृत्ति की उम्र होती है तो नेताओं की भी उम्र तय होनी चाहिए। हम बार-बार एक ही चेहरे को देखते रहते हैं।" उन्होंने कहा, "बदलाव का सदैव स्वागत है।"
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बेगम अख्तर: सुरीले सफर की दिलकश मुसाफिर

भारत में ऐसे कई गायक हुए हैं जिनकी दशकों पहले की आवाज का जादू आज भी कायम है, ऐसी ही एक गायिका थीं बेगम अख्तर। सात अक्टूबर, 1914 को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में जन्मी प्रतिभाशाली अख्तरी बाई, यानी, बेगम अख्तर आगे चलकर 'मल्लिका-ए-गजल' कहलाई और पद्मभूषण से सम्मानित हुईं। 

कौन जानता था कि वह अपनी मखमली आवाज में गजल, ठुमरी, ठप्पा, दादरा और ख्याल पेश कर संगीत प्रेमियों के दिलों पर राज करेंगी और देश की विख्यात गायिका बनेगी। बेगम अख्तर का वास्तविक नाम 'अख्तरी बाई फैजाबादी' था। वह एक कुलीन परिवार से ताल्लुक रखती थीं। बेहद कम उम्र में उन्होंने संगीत सीखने में रुचि दिखाई। उन्हें उस जमाने के विख्यात संगीत उस्ताद अता मुहम्मद खान, अब्दुल वाहिद खान और पटियाला घराने के उस्ताद झंडे खान से भारतीय शास्त्रीय संगीत की दीक्षा दिलाई गई। 

अख्तरी बाई फैजाबादी उर्फ बेगम अख्तर ने 15 वर्ष की छोटी उम्र में मंच पर अपनी पहली प्रस्तुति दी थी। यह कार्यक्रम वर्ष 1930 में बिहार में आए भूकंप के पीड़ितों के लिए आर्थिक मदद जुटाने के लिए आयोजित किया गया था, जिसकी मुख्य अतिथि प्रसिद्ध गायिका सरोजनी नायडू थीं। वह बेगम अख्तर की गायिकी से इस कदर प्रभावित हुईं कि उन्हें उपहार स्वरूप एक साड़ी भेंट की।

उस कार्यक्रम में बेगम ने गजल 'तूने बूटे हरजाई कुछ ऐसी अदा पाई, ताकता तेरी सूरत हरेक तमाशाई' और दादरा 'सुंदर साड़ी मोरी मायके मैलाई गई' से समां बांधा था। वर्ष 1945 में लखनऊ के एक बैरिस्टर इश्तियाक अहमद अब्बासी से निकाह के बाद अख्तरी बाई को बेगम अख्तर के नाम से जाना गया।

'दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे..', 'कोयलिया मत कर पुकार करेजा लगे कटार'.., 'छा रही घटा जिया मोरा लहराया है' जैसे गीत उनके प्रसिद्ध गीतों में शामिल हैं। शकील बदायूंनी की गजल 'ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया' उनकी सबसे मशहूर गजल है।

बेगम साहिबा ने वर्ष 1930 और 1940 में कुछ हिंदी फिल्मों जैसे 'एक दिन की बादशाहत', 'नल दमयंती' (1933), 'अमीना', 'मुमताज बेगम' (1934), 'जवानी का नशा' (1935), 'नसीब का चक्कर' (1936) जैसी फिल्मों में अभिनय भी किया। महबूब खान की 'रोटी' (1942) उनकी प्रसिद्ध फिल्म थी। इसमें उन्होंने छह गीत गाए थे।

मलिका-ए-गजल की मखमली आवाज आम-ओ खास को अपना दीवाना बना चुकी थी। शास्त्रीय गायक पंडित जसराज स्कूल के दिनों से ही उनके जबर्दस्त प्रशंसक रहे हैं। इस बात का खुलासा उन्होंने स्वयं एक साक्षात्कार में किया है।

कला क्षेत्र में उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने बेगम अख्तर को संगीत नाटक अकादमी (1972), पद्मश्री (1968) और पद्मभूषण (1975) से सम्मानित किया। 30 अक्टूबर, 1974 को बेगम अख्तर ने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा था, "वह एकमात्र ऐसी गायिका थीं, जो गजल गायन में लफ्जों का हमेशा सही उच्चारण करती थीं।" वह अपने प्रशंसकों के दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगी।
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भगवती दुर्गा की तीसरी शक्ति का नाम है चंद्रघंटा, आज करें इनकी पूजा

भगवती दुर्गा की तीसरी शक्ति का नाम है चंद्रघंटा | नवरात्रि के तीसरे दिन आदि-शक्ति माँ दुर्गा के तृतीय स्वरूप माँ चंद्रघंटा की पूजा की जाती है| माँ का यह स्वरूप शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके माथे पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसी लिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। माँ चन्द्रघण्टा अपने भक्तों की सभी प्रकार की बाधाओं एवं संकटों से उबारने वाली हैं और इनकी कृपा से समस्त पाप और बाधाएँ विनष्ट हो जाती हैं । इनका शरीर स्वर्ण के समान उज्ज्वल है, इनके दस हाथ हैं। दसों हाथों में खड्ग, बाण आदि शस्त्र सुशोभित रहते हैं। इनका वाहन सिंह है। इनकी मुद्रा युद्ध के लिए उद्यत रहने वाली है। इनके घंटे की भयानक चडंध्वनि से दानव, अत्याचारी, दैत्य, राक्षस डरते रहते हैं। चंद्रघंटा की कृपा से साधक को अलौकिक दर्शन होते हैं, दिव्य सुगन्ध और विविध दिव्य ध्वनियाँ सुनायी देती हैं। ये क्षण साधक के लिए अत्यंत सावधान रहने के होते हैं । माँ चन्द्रघंटा की कृपा से साधक के इनकी अराधना सद्य: फलदायी है। इनकी मुद्रा सदैव युद्ध के लिए अभिमुख रहने की होती हैं, अत: भक्तों के कष्ट का निवारण ये शीघ्र कर देती हैं । इनका वाहन सिंह है, अत: इनका उपासक सिंह की तरह पराक्रमी और निर्भय हो जाता है। इनके घंटे की ध्वनि सदा अपने भक्तों की प्रेत-बाधादि से रक्षा करती है । दुष्टों का दमन और विनाश करने में सदैव तत्पर रहने के बाद भी इनका स्वरूप दर्शक और अराधक के लिए अत्यंत सौम्यता एवं शान्ति से परिपूर्ण रहता है । 

माँ चंद्रघंटा का उपासना मंत्र- 

समस्त भक्त जनों को देवी चंद्रघंटा की वंदना करते हुए कहना चाहिए ” या देवी सर्वभूतेषु चन्द्रघंटा रूपेण संस्थिता. नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:”.. 

अर्थात देवी ने चन्द्रमा को अपने सिर पर घण्टे के सामान सजा रखा है उस महादेवी, महाशक्ति चन्द्रघंटा को मेरा प्रणाम है, बारम्बार प्रणाम है| इस प्रकार की स्तुति एवं प्रार्थना करने से देवी चन्द्रघंटा की प्रसन्नता प्राप्त होती है|

देवी चंद्रघंटा की पूजन विधि-

माँ चंद्रघंटा की जो व्यक्ति श्रद्धा एवं भक्ति भाव सहित पूजा करता है उसे मां की कृपा प्राप्त होती है जिससे वह संसार में यश, कीर्ति एवं सम्मान प्राप्त करता है| मां के भक्त के शरीर से अदृश्य उर्जा का विकिरण होता रहता है जिससे वह जहां भी होते हैं वहां का वातावरण पवित्र और शुद्ध हो जाता है, इनके घंटे की ध्वनि सदैव भक्तों की प्रेत-बाधा आदि से रक्षा करती है तथा उस स्थान से भूत, प्रेत एवं अन्य प्रकार की सभी बाधाएं दूर हो जाती है|

तीसरे दिन की पूजा का विधान भी लगभग उसी प्रकार है जो दूसरे दिन की पूजा का है. इस दिन भी आप सबसे पहले कलश और उसमें उपस्थित देवी-देवता, तीर्थों, योगिनियों, नवग्रहों, दशदिक्पालों, ग्रम एवं नगर देवता की पूजा अराधना करें फिर माता के परिवार के देवता, गणेश, लक्ष्मी, विजया, कार्तिकेय, देवी सरस्वती एवं जया नामक योगिनी की पूजा फिर देवी चन्द्रघंटा उसके बाद भगवान शंकर और ब्रह्मा की पूजा करते हैं|

माँ भगवती चन्द्रघंटा का ध्यान-

वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्।

सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥

मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।

खंग, गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥

पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।

मंजीर हार केयूर,किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥

प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुगं कुचाम्।

कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥

माँ भगवती चन्द्रघंटा का स्तोत्र पाठ-

आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्।

अणिमादि सिध्दिदात्री चंद्रघटा प्रणमाभ्यम्॥

चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टं मन्त्र स्वरूपणीम्।

धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघंटे प्रणमाभ्यहम्॥

नानारूपधारिणी इच्छानयी ऐश्वर्यदायनीम्।

सौभाग्यारोग्यदायिनी चंद्रघंटप्रणमाभ्यहम्॥

माँ भगवती चन्द्रघंटा का कवच मंत्र -

रहस्यं श्रुणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने।

श्री चन्द्रघन्टास्य कवचं सर्वसिध्दिदायकम्॥

बिना न्यासं बिना विनियोगं बिना शापोध्दा बिना होमं।

स्नानं शौचादि नास्ति श्रध्दामात्रेण सिध्दिदाम॥

कुशिष्याम कुटिलाय वंचकाय निन्दकाय च न दातव्यं न दातव्यं न दातव्यं कदाचितम्॥
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नवरात्रि के दूसरे दिन करें माँ ब्रम्ह्चारिणी की पूजा

नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना का विधि विधान है| माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप उनके नाम अनुसार ही तपस्विनी है| देवी दुर्गा का यह दूसरा रूप भक्तों और सिद्धों को अकाट्य फल देने वाला है| भगवती दुर्गा का द्वितीय रूप माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा इस वर्ष 6 अक्टूबर दिन रविवार को होगी| इनका नाम ब्रह्मचारिणी इसलिए पड़ा क्योंकि इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इसी कारण ये तपश्चारिणी और ब्रह्मचारिणी के नाम से विख्यात हैं| कहा जाता है कि ब्रह्मचारिणी देवी, ज्ञान, वैराग्य, और ध्यान की देवी हैं। इनकी पूजा से विद्या के साथ साथ ताप, त्याग, और वैराग्य की प्राप्ति होती है। जब मानसपुत्रों से सृष्टि का विस्तार नहीं हो पाया था तो ब्रह्मा की यही शक्ति स्कंदमाता के रूप में आयी। स्त्री को इसी कारण सृष्टि का कारक माना जाता है। माँ ब्रह्मचारिणी की कृपा से मनुष्य को सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है, तथा जीवन की अनेक समस्याओं एवं परेशानियों से छुटकारा मिलता है|


माँ ब्रह्मचारिणी की पूजन विधि-


भगवती दुर्गा की नौ शक्तियों में से द्वितीय शक्ति देवी ब्रह्मचारिणी का है| ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली अर्थात तप का आचरण करने वाली मां ब्रह्मचारिणी| माँ ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्म का स्वरूप हैं| माँ ब्रह्मचारिणी को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे तपश्चारिणी, अपर्णा और उमाइस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान ’चक्र में स्थित होता है| इस चक्र में अवस्थित साधक मां ब्रह्मचारिणी जी की कृपा और भक्ति को प्राप्त करता है| यह देवी शांत और निमग्न होकर तपस्या में लीन हैं| इनके मुख पर कठोर तपस्या के कारण अद्भुत तेज और कांति का ऐसा अनूठा संगम है जो तीनों लोको को उजागर कर रहा है| माँ ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में अक्ष माला है और बायें हाथ में कमण्डल होता है|

सर्वप्रथम हमने जिन देवी-देवताओ एवं गणों व योगिनियों को कलश में आमत्रित किया है उनकी फूल, अक्षत, रोली, चंदन, से पूजा करते हैं | उन्हें दूध, दही,शक्कर, घी, व शहद से स्नान करायें व देवी को जो कुछ भी प्रसाद अर्पित कर रहे हैं उसमें से एक अंश इन्हें भी अर्पण करते हैं| प्रसाद के पश्चात आचमन और फिर पान, सुपारी भेंट कर इनकी प्रदक्षिणा करते हैं| उसके पश्चात घी व कपूर मिलाकर देवी की आरती करते हैं | कलश देवता की पूजा के पश्चात इसी प्रकार नवग्रह, दशदिक्पाल, नगर देवता, ग्राम देवता, की पूजा करते हैं| इनकी पूजा के पश्चात मॉ ब्रह्मचारिणी की करते हैं|

माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय अपने हाथों में एक पुष्प लेकर माँ भगवती की ऊपर लिखे मंत्र के साथ प्रार्थना करते हैं | इसके पश्चात माँ को पंचामृत स्नान करते हैं| और फिर भांति भांति से फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दुर, अर्पित करें देवी को अरूहूल का फूल या लाल रंग का एक विशेष फूल और कमल की माला पहनाये क्योंकि माँ को काफी पसंद है| अंत में इस मंत्र के साथ “आवाहनं न जानामि न जानामि वसर्जनं, पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरी..माँ ब्रम्ह्चारिणी से क्षमा प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए| इसके साथ ही देवी की जल्द प्रसन्नता हेतु भगवान् भोले शंकर जी की पूजा अवश्य करनी चाहिए| क्योंकि भोलेनाथ को पति रूप में प्राप्त करने के लिए माता ने महान व्रत किया था| 

सबसे अंत में ब्रह्मा जी के नाम से जल, फूल, अक्षत, सहित सभी सामग्री हाथ में लेकर “ॐ ब्रह्मणे नम:” कहते हुए सामग्री भूमि पर रखें और दोनों हाथ जोड़कर सभी देवी देवताओं को प्रणाम करते हैं|


देवी ब्रह्मचारिणी कथा -


माँ ब्रह्मचारिणी हिमालय और मैना की पुत्री हैं| इन्होंने देवर्षि नारद जी के कहने पर भगवान शंकर की ऐसी कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने इन्हें मनोवांछित वरदान दिया था| जिसके फलस्वरूप यह देवी भगवान भोले नाथ की वामिनी अर्थात पत्नी बनी| जो व्यक्ति अध्यात्म और आत्मिक आनंद की कामना रखते हैं उन्हें इस देवी की पूजा से सहज यह सब प्राप्त होता है| माँ भगवती का द्वितीय स्वरुप योग साधक को साधना के केन्द्र के उस सूक्ष्मतम अंश से साक्षात्कार करा देता है जिसके पश्चात व्यक्ति की ऐन्द्रियां अपने नियंत्रण में रहती और साधक मोक्ष का भागी बनता है| इस देवी की प्रतिमा की पंचोपचार सहित पूजा करके जो साधक स्वाधिष्ठान चक्र में मन को स्थापित करता है उसकी साधना सफल हो जाती है और व्यक्ति की कुण्डलनी शक्ति जागृत हो जाती है| दुर्गा पूजा में नवरात्रे के नौ दिनों तक देवी धरती पर रहती हैं अत: यह साधना का अत्यंत सुन्दर और उत्तम समय होता है| इस समय जो व्यक्ति भक्ति भाव एवं श्रद्धा से दुर्गा पूजा के दूसरे दिन मॉ ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं उन्हें सुख, आरोग्य की प्राप्ति होती है| देवी ब्रह्मचारिणी का भक्त जीवन में सदा शांत-चित्त और प्रसन्न रहता है, उसे किसी प्रकार का भय नहीं सताता है|


ब्रह्मचारिणी मंत्र-


या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।

देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

माँ भगवती द्वितीय ब्रम्ह्चारिणी का ध्यान-

वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलु धराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम।

धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥
परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन।
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥


माँ भगवती ब्रम्ह्चारिणी का स्तोत्र पाठ -


तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥


माँ भगवती ब्रम्ह्चारिणी कवच-


त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।
अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥
पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्वरी॥
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।
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