जानिए तीनों देवताओं में भगवान विष्णु ही सर्वश्रेष्ठ क्यों..?

हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार, इस सम्पूर्ण सृष्टि का पालन पोषण और संचालन का जिम्मा तीन देवताओं पर हैं यह हम सभी जानते हैं| ब्रह्मदेव को जगत का रचनाकार, भगवान विष्णु को पालनकर्ता और भगवान शिव को संहारकर्ता माना गया है। तीनों ही देव सर्वशक्तिमान और परम पूज्यनीय हैं। कई युगों पहले ऋषि मुनियों में त्रिदेव को लेकर यह जिज्ञासा हुई कि इन तीनों देवताओं में सर्वश्रेष्ठ कौन है?

इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए सभी ऋषि-मुनियों ने महर्षि भृगु से निवेदन किया। महर्षि भृगु परम तपस्वी और तीनों देवों के प्रिय थे। अब इस प्रश्न का उत्तर जाने के लिए सभी ऋषि मुनि बिना आज्ञा के ही ब्रम्हा जी के पास पहुँच गए| इस तरह अचानक आए महर्षि भृगु को देख ब्रह्मा क्रोधित हो गए। इसके बाद महर्षि भृगु इसी तरह शिवजी के सम्मुख जा पहुंचे और वहां भी उन्हें शिवजी द्वारा अपमानित होना पड़ा। अब भृगु भी क्रोधित हो गए और इसी क्रोध में वे भगवान विष्णु के सम्मुख जा पहुंचे। उस समय भगवान विष्णु शेषनाग पर सो रहे थे। महर्षि भृगु के आने का उन्हें ध्यान ही नहीं रहा और वे महर्षि के सम्मान में खड़े नहीं हुए। अतिक्रोधित स्वभाव वाले भृगु ने इसे अपना अपमान समझा और क्रोध से विष्णु की छाती पर लात मार दी। 

इस प्रकार जगाए जाने पर भी विष्णु ने धैर्य रखा और तुरंत ही महर्षि भृगु के सम्मान में खड़े होकर उन्हें प्रणाम किया। भगवान विष्णु ने विनयपूर्वक कहा कि मेरा शरीर वज्र के समान कठोर है, अत: आपके पैर पर चोट तो नहीं लगी? औरे उन्होंने महर्षि के पैर पकड़ लिए और सहलाने लगे। विष्णु की इस महानता से महर्षि भृगु अति प्रसन्न हुए। भगवान विष्णु के इस धैर्य और सम्मान के भाव से प्रसन्न महर्षि ने उन्हें तीनों देवों में सर्वश्रेष्ठ घोषित किया।
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बस्तर में बागियों ने बिगाड़ा भाजपा-कांग्रेस का खेल

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बस्तर संभाग में कांग्रेस और भाजपा में बगावत के सुर फूटने लगे हैं। इसके चलते यहां चुनावी फिजा बदलने-सी लगी है। हर विधानसभा क्षेत्रों में दूसरे दलों में घुसपैठ, तोड़-फोड़ और क्षेत्रीय क्षत्रपों को अपने पाले में खींचने की भारी कसरत शुरू है। कई पूर्व मंत्री, विधायक बागियों की कतार में खड़े दिखाई दे रहे हैं। इस उठापटक के कारण यहां दोनों दलों के बने-बनाए समीकरण बिगड़ने लगे हैं।

अभी नामांकन का दौर पूरा ही हुआ है। ज्यादातर विधानसभा क्षेत्रों में बागियों की बगावत तेज हो गई है। राजनीतिक दल रूठे नेताओं, कार्यकताओं को मनाने में जुट गए हैं। इसके कारण उम्मीदवार ठीक से प्रचार करने क्षेत्रों में नहीं जा पा रहे हैं। शहरों-कस्बों में इक्का-दुक्का पोस्टर ही लगे हैं। गांवों में कोई सरगर्मी नहीं है। सुरक्षा बल के जवान शहरों से लेकर गांवों तक नजर आ रहे हैं। नक्सलियों के चुनाव बहिष्कार संबंधी कुछ बैनर-पोस्टर अंदर जंगलों में जरूर दिख जाते हैं।

प्रदेश के मंत्री विक्रम उसेंडी के सामने कांग्रेस से मंतूराम पवार चुनाव मैदान में हैं। लेकिन भाजपा के जिला महामंत्री भोजराज नाग ने विद्रोही तेवर अख्तियार कर लिया है। काफी मान-मनव्वल के बावजूद भोजराज नहीं मान रहे हैं। उनकी नाराजगी मंतूराम की राह आसान करेगी।

भानुप्रतापपुर में भी भाजपाइयों में ही ज्यादा घमासान देखा जा रहा है। भाजपा ने यहां से वर्तमान विधायक ब्रह्मानंद नेताम का टिकट काटकर सतीश लाटिया को उम्मीदवार बनाया है। अब अनधिकृत उम्मीदवार के रूप में ब्रह्मानंद का नाद लाटिया को परेशान कर रहा है। कांग्रेस के मनोज मंडावी इसका पूरा फायदा उठाने की कोशिश में है।

कांकेर : कांग्रेस से आए कोड़ोपी पर अपनों का कोप :

इस महत्वपूर्ण सीट पर भाजपा ने सुमित्रा मारकोले का टिकट काटा और संजय कोड़ोपी को प्रत्याशी बनाया है। वह हाल ही में कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए हैं। इसलिए स्थानीय कार्यकताओं में ज्यादा नाराजगी है। पूर्व मंत्री अघन सिंह भी अपने तेवर दिखा रहे हैं। यहां के मतदाताओं का मिजाज उलटफेर करने का रहा है। कांग्रेस से शंकर ध्रुवा को टिकट दिया गया है। वह भी यहां उलटफेर के लिए हाथ-पांव मार रही है।

केसकाल : खाकी वाले खादी की दौड़ में

यहां भाजपा और कांग्रेस में सतह पर तो गुटबाजी नजर नहीं आती। पर भीतरघात की संभावना दोनों दलों में बनी हुई है। दोनों तरफ से परफॉरमेंस को लेकर जंग शुरू है। यहां पुलिस की नौकरी छोड़कर राजनीति में आए संतराम कांग्रेस के प्रत्याशी हैं। कांग्रेस के पूर्व मंडी अध्यक्ष धनीराम मरकाम भी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में हैं।

चित्रकोट : परिणाम प्रभावित कर सकते हैं लच्छूराम

यहां की आबो हवा और जलप्रपात लोगों को सहसा अपनी तरफ आकर्षित करती है। पर इस बार सबकी निगाहें भाजपा के पूर्व विधायक लच्छूराम कश्यप पर हैं। वह परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं। कांग्रेस के दीपक बैज की स्थिति भी उतनी ठीक नहीं जितना कांग्रेसी बताते हैं। भाकपा के सोनाधर नाग की सक्रियता को भी यहां कम नहीं आंका जा सकता। त्रिकोणीय संघर्ष की संभावना है।

दंतेवाड़ा : भीमा को देवती से भय

बस्तर टाइगर के इस इलाके में इस बार मुकाबला त्रिकोणीय होगा, ऐसे संकेत मिल रहे हैं। विरोधों के बावजूद भाजपा के भीमा मंडावी अभियान में जुटे हैं। दिवंगत महेंद्र कर्मा की पत्नी कांग्रेस की देवती कर्मा परंपरागत वोट साधने में जुटी हैं। भाकपा भी यहां हाथ पैर मार रही है। भाकपा के बोमड़ाराम कवासी के लिए पूरा जोर लगाया जा रहा है।

बीजापुर : सभी को है बगावत का डर

वैसे तो यहां भाजपा, कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला दिख रहा है। यहां कांग्रेस से विक्रम शाह मंडावी हैं। पर कई लोग बगावत पर उतारू हैं। जिला पंचायत अध्यक्ष नीना रावतिया यहां मिच्चा मुतैया व अन्य बागियों के दम पर निर्दलीय के रूप में मैदान में हैं। भाजपा के महेश गागड़ा के लिए यह राहत की बात है।

कोंटा : भाकपा की प्रभावी मौजूदगी रोचक

छत्तीसगढ़ की सम्भवत: यह पहली सीट होगी जिसे भाजपा, कांग्रेस दोनों ही अपने खाते में परिणाम आने तक नहीं जोड़ेंगे। यहां पर अभी से त्रिकोणीय घमासान के आसार हैं। भाकपा के मनीष कुंजाम की प्रभावी मौजूदगी है। वह यहां के अंदरूनी इलाकों में पकड़ बना चुके हैं। यहां से खाता खोलने के लिए भाजपा की जमुना मांझी और मौसम मुत्ती दांवपेंच लगा रही हैं। कांग्रेस के वत्र्तमान विधायक कवासी लखमा के लिए फिलहाल कठिनाई है। नक्सल हमलों के बाद यहां के राजनीतिक हालात जुदा-जुदा हैं।

कोंडागांव : पिता-पुत्र ने किया नाक में दम

इस विधानसभा क्षेत्र से रमन सरकार की एकमात्र महिला मंत्री चुनाव मैदान में हैं। मंत्री लता उसेंडी और कांग्रेस से मोहन मरकाम के बीच सीधा मुकाबला है। लेकिन वरिष्ठ कांग्रेसी मानकूराम सोढ़ी और उनके पुत्र पूर्व मंत्री शंकर का विद्रोह कांग्रेस को परेशान कर सकता है। बागी अकेले कांग्रेस को नुकसान पहुंचाएंगे, ऐसा नहीं कहा जा सकता। भाजपाइयों में भी कुछ बगावती सुर देखने को मिले हैं।

नारायणपुर : पुराने के मुकाबले नए चेहरा पर दांव

बस्तर का यह क्षेत्र आज भी बलिराम कश्यप को नहीं भूला है। केदार कश्यप उनके बाद ही याद आते हैं। केदार के वोट बैंक में भानपुरी क्षेत्र के चंदन कश्यप सेंधमारी कर सकते हैं। कांग्रेस में गुटबाजी फिलहाल नहीं दिख रही। इस लिहाज से मुकाबला ठीक-ठाक है। पर मंत्री और नए चेहरे की राजनीतिक लड़ाई क्या गुल खिलाती हैं, यह वक्त बताएगा।

बस्तर : दोनों ही दलों में कलह

बस्तर में कांग्रेस के लखेश्वर बघेल का सियासी दांव-पेंच शुरू हो गया है। भाजपा से सुभाउ कश्यप भी तैयारी में हैं। कलह तो दोनों जगह है, समय रहते इस पर जो काबू कर सकेगा, वह अपने पक्ष में माहौल बना पाएगा।

जगदलपुर : संतोष के खिलाफ भाजपाइयों में असंतोष

बस्तर के एकमात्र शहरी क्षेत्र जगदलपुर से भाजपा ने संतोष बाफना को दोबारा टिकट दिया है। भाजपा का एक धड़ा काफी नाराज है। इस बात से बाफना भी अच्छी तरह वाकिफ हैं। कांग्रेस के बिलकुल नए चेहरे सामू कश्यप को भी पार्टी के पुराने लोग पचा नहीं पा रहे हैं। हालांकि वह दावा कर रहे हैं कि उनके खिलाफ कोई माहौल नहीं है। 

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गाय का आध्यात्मिक और ज्योतिषीय महत्व

भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही गोधन को मुख्य धन मानते थे, और सभी प्रकार से गौ रक्षा और गौ सेवा, गौ पालन भी करते थे। शास्त्रों, वेदों, आर्ष ग्रथों में गौरक्षा, गौ महिमा, गौपालन आदि के प्रसंग भी अधिकाधिक मिलते हैं। रामायण, महाभारत, भगवतगीता में भी गाय का किसी न किसी रूप में उल्लेख मिलता है। गाय का जहाँ धार्मिक आध्यात्मिक महत्व है वहीं कभी प्राचीन काल में भारतवर्ष में गोधन एक परिवार, समाज के महत्वपूर्ण धनों में से एक है। आज के दौर में गायों को पालने और खिलाने पिलाने की परंपरा में लगातार कमी आ रही है। कभी हमारा देश पशुपालन में अग्रणी रहा है। देशवासियों की काफी जरूरतों को यही गौधन ही पूरा किया करता था। गाय से बछड़ा, बछड़ा से बैल, बैल से खेती की जरूरतें पूरी होती हैं। कृषि के लिए गाय का गोबर आज भी वरदान माना गया है। फिर भी गौ पालन, गौ संरक्षण आदि महत्वपूर्ण क्यों नहीं है? यह एक विचारणीय प्रश्न है।ं।

गाय का आध्यात्मिक महत्वः-

गाय का विश्व स्तर पर आध्यात्मिक महत्व है, ''गावो विश्वस्य मातरः''। नवग्रहों सूर्य, चंद्रमा, मंगल, राहु, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, केतु के साथ साथ वरूण, वायु आदि देवताओं को यज्ञ में दी हुई प्रत्येक आहुति गाय के घी से देने की परंपरा है, जिससे सूर्य की किरणों को विशेष ऊर्जा मिलती है। यही विशेष ऊर्जा वर्षा का कारण बनती है, और वर्षा से ही अन्न, पेड़-पौधों आदि को जीवन प्राप्त होता है। हिंदू धर्म में जितने धार्मिक कार्य, धार्मिक संस्कार होते हैं जैसे नामकरण, गर्भाधान, जन्म आदि सभी में गाय का दूध, गोबर, घी, आदि का ही प्रयोग किया जाता है जहां विवाह संस्कार आदि होते हैं वहां भी गोबर के लेप से शुद्धिकरण की क्रिया करते हैं। विवाह के समय गोदान का भी बहुत महत्व माना गया है। जनना शौच और मरणाशौच मिटाने के लिए भी गाय का गोबर और गौमूत्र का प्रयोग किया जाता है। इसकी धार्मिक वजह यह भी है कि गाय के गोबर में लक्ष्मी जी का और गोमूत्र में गंगा जी का निवास है।
वैतरणी पार करने के लिए गोदान की प्रथा आज भी हमारे समाज में मौजूद है, श्राद्ध कर्म में भी गाय के दूध की खीर का प्रयोग किया जाता है क्योंकि इसी खीर से पितरों की ज्यादा से ज्यादा तृप्ति होती है। पितर, देवता, मनुष्य आदि सभी को शारीरिक बल गाय के दूध और घी से ही मिलता है। गाय के शारीरिक अंगों में सभी देवताओं का निवास माना जाता है। गाय की छाया भी बेहद शुभ प्रद मानी गयी है। गाय के दर्शन मात्र से ही यात्रा की सफलता स्वतः सिद्ध हो जाती है। दूध पिलाती गाय का दर्शन तो बेहद शुभ माना जाता है।

गाय का ज्योतिषीय महत्वः-

1. नवग्रहों की शांति के संदर्भ में गाय की विशेष भूमिका होती है कहा तो यह भी जाता है कि गोदान से ही सभी अरिष्ट कट जाते हैं। शनि की दशा, अंतरदशा, और साढेसाती के समय काली गाय का दान मनुष्य को कष्ट मुक्त कर देता है।

2. मंगल के अरिष्ट होने पर लाल वर्ण की गाय की सेवा और निर्धन ब्राम्हण को गोदान मंगल के प्रभाव को क्षीण करता है।

3. बुध ग्रह की अशुभता निवारण हेतु गौवों को हरा चारा खिलाने से बुध की अशुभता नष्ट होती है।

4. गाय की सेवा, पूजा, आराधना, आदि से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं और भक्तों को सुखमय होने का वरदान भी देती हैं।

5. गाय की सेवा मानसिक शांति प्रदान करती है।

गाय से संबंधित धार्मिक वृत व उपवासः-

1. गोपद्वमव्रतः- सुख, सौभाग्य, संपत्ति, पुत्र, पौत्र, आदि के सुखों को देने वाला है।
2. गोवत्सद्वादशी व्रतः- इस व्रत से समस्त मनोकामनाऐं पूर्ण होती हैं।
3. गोवर्धन पूजाः- इस लोक के समस्त सुखों में वृद्धि के साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है।
4. गोत्रि-रात्र व्रतः- पुत्र प्राप्ति, सुख भोग, और गोलोक की प्राप्ति होती है।
5. गोपाअष्टमीः- सुख सौभाग्य में वृद्धि होती है।
6. पयोव्रतः- पुत्र की प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दम्पत्तियों को संतान प्राप्ति होती है।

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दिवाली पर इन बातों का रखें विशेष ध्यान

हर साल भारतीय पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की अमावस्या के दिन दीपावली के रूप में पूरे देश में बडी धूम-धाम से मनाया जाता हैं। इस वर्ष दिपावली, 3 नवंबर को मनाई जायेगी| दीपावली की रात्रि को महालक्ष्मी की कृपा जिस व्यक्ति या परिवार पर पड़ जाती है उसे कभी धन का अभाव नहीं होता है और उसके घर में हमेशा सुख-समृद्धि रहती है| दीपावली के शुभ अवसर पर महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिये कुछ पूजा-आराधना इस प्रकार से करनी चाहिये कि पूरे वर्ष धन-धान्य में वृद्धि होकर सुख-समृद्धि बनी रहे और निरन्तर मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहे।

दीपावली के दिन हर व्यक्ति अपने घर को सामर्थ्य के अनुसार खूब सजाना चाहता है ताकि धन की देवी माता लक्ष्मी उससे प्रसन्न होकर उसके घर में प्रवेश करें| लेकिन कई बार होता क्या है कि लोग घर को ज्यादा सुंदर बनाने के चक्कर में ऐसी गलतियां कर बैठते हैं कि वास्तु के विपरीत स्थितियां बन जाती हैं इसलिए घर को सजाते समय वास्तु का ध्यान भी जरूर रखें।

सबसे पहले यदि आप अपने घर में कबाड़ इकठ्ठा कर रहे हैं तो उसे फ़ौरन निकल दें क्योंकि ऐसा करने से दरिद्रता तो आती ही है साथ ही वास्तुदोष भी बढ़ता है| इसके अलावा यह भी ध्यान रहे कि घर सजा लेने से ही कुछ नहीं होता है घर व छत पर कहीं भी दीपवली के दिन कूड़ा इकठ्ठा न करें|

इसके अलावा जिन लोगों के घर का मुख्य द्वार दक्षिण दिशा की ओर है उन्हें मुख्य द्वार पर पिरामिड या लक्ष्मी गणेश की तस्वीर लगानी चाहिए। आपके घर का मुख्य द्वार पूर्व दिशा या उत्तर दिशा की ओर है तो उत्तर पू्र्व दिशा को विशेष रूप से सजाएं। इसके अलावा घर के खिड़की व दरवाजों पर पहले सरसों का तेल लगाएं उसके बाद उस पर स्वास्तिक बनायें और शुभ लाभ लिखें| 


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सोने से उठ रहा राजनीतिक धुआं!

उन्नाव जिले के एक गांव में स्थित पूर्ववर्ती राजा के किले के खंडहरों में दबे 1000 टन सोने की खोज में अभी तक कांच की कुछ टूटी हुई चूड़ियां, मिट्टी के बर्तन और चूल्हा ही मिल पाया है, लेकिन इस मुद्दे पर राजनीतिक पारा चरम पर पहुंच चुका है।

राजधानी लखनऊ से कोई 100 किलोमीटर दूर डौंडियाखेड़ा गांव में सोने की खोज जोरशोर से जारी है। खुदाई के काम की निगरानी कर रहे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के अधिकारियों ने अभी तक करीब सात फुट फीट तक ही खुदाई की है। अधिकारियों का कहना है कि क्षेत्र में ज्यादा कुछ नहीं मिलने वाला।

लेकिन इसे लेकर विवादों का सिलसिला चरम पर है। जनता दल-यूनाइटेड के अध्यक्ष शरद यादव ने सपने में सोने का खजाना देखने वाले साधु शोभन सरकार के चेले स्वामी ओमजी के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है।

ओमजी के समर्थकों ने यादव का पुतला दहन किया है। बीघपुर गांव के प्रधान ने सवाल किया, "स्वामी ओमजी एक साधु हैं। आखिर शरद यादव उनकी छवि को धूमिल कैसे कर सकते हैं?"

स्वामी ओमजी ने इससे पहले पत्रकारों से यह कह कर कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी 'झूठ का सौदागर है' विवाद खड़ा कर दिया था।

भाजपा ने तुरत-फुरत में ओमजी का इतिहास खंगाल लिया और दावा किया कि स्वामी ओमजी 90 के दशक में युवा कांग्रेस के नेता हुआ करते थे।

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने ओमजी पर 'कांग्रेस का कार्यकर्ता' होने का आरोप लगाया। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने हालांकि साधु की किले के अंदर गड़ा धन सपने में देखने के लिए सराहना की। उन्नाव से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सांसद बृजेश पाठक ने कहा कि वे घटनाक्रम पर नजर रखे हुए हैं।

ओमजी के खिलाफ दो मुकदमे वाराणसी और लखनऊ की अदालतों में दर्ज कराए जा चुके हैं। उनके खिलाफ तंत्रमंत्र को बढ़ावा और समाज को गुमराह करने का आरोप लगाया गया है।

वाराणसी में अपनी अर्जी में पेशे से वकील कमलेश चंद्र त्रिपाठी ने कहा है कि एएसआई के अधिकारी एक साधु के सपने पर सक्रिय होने में विज्ञान को ताक पर रख दिया है।

वकील ने कहा है, "साधु को भारतीय दंड विधान की धारा 295 (ए) और 298 के तहत दंडित किया जाए।" लखनऊ में दायर एक अन्य मामले में केंद्रीय मंत्री एवं कांग्रेस नेता चरणदास महंत को भी नामजद किया गया है। इस मामले की अगली सुनवाई 11 नवंबर को होगी।

उन्नाव के पूर्व राजा राव राम बख्श सिंह के किले की खुदाई का आदेश देने के लिए मोदी ने पिछले सप्ताह केंद्र सरकार की आलोचना की थी और कहा था कि इससे बेहतर होता कि सरकार स्विस बैंक से काला धन वापस लाने का प्रयत्न करती।

बाद में हालांकि उन्होंने अपने वचन पर यह ट्वीट करते हुए माफी भी मांगी कि उनके दिल में 'शोभन सरकार की तपस्या और त्याग के लिए असीम श्रद्धा है।'

इस हंगामे में इतना ही काफी नहीं है। बौद्ध साधु भी खुदाई वाली जगह को प्राचीन बौद्ध स्थल होने दावा करते हुए कूद पड़े हैं। भीम राव अंबेडकर महासभा के अध्यक्ष लालजी प्रसाद निर्मल ने कहा कि है वे लोग शनिवार को गांव की ओर कूच करेंगे और जिला दंडाधिकारी से मुलाकात कर अपना दावा पेश करेंगे। 

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रंगों से पहचानें लोगों का स्वभाव

क्या आप जानते हैं कि रंगों की पसंद के अनुसार भी किसी व्यक्ति का स्वभाव मालूम किया जा सकता है। ज्योतिष के अनुसार हमारा जैसा स्वभाव होता है वैसे ही रंग हमारी पसंद होते हैं। रंगों का ग्रहों से भी गहरा संबंध होता है। वहीं यदि यह कहा जाए कि हमारी पसंद-नापसंद पर शुभ-अशुभ ग्रहों का प्रभाव पड़ता है तो गलत न होगा। 

कुछ ज्योतिष के जानकारों का कहना है कि लाल, काला, नीला, हरा, पीला रंग के अनुसार हम अपना स्वभाव जान सकते हैं। निम्नलिखित रंगों के अनुसार हम अपने स्वभाव को जान सकते हैं।

लाल- आप बहुत सावधान रहने वाले हैं, आपके जीवन प्रेम का बहुत अधिक महत्व है। आप बहुत अच्छे प्रेमी सिद्ध हो सकते हैं।

काला- आपका स्वभाव रूढ़िवादी है। साथ ही आपको गुस्सा बहुत जल्द आता है। आपको बदलाव बहुत कम ही पसंद आता है।

नीला- आप स्वाभिमानी हैं, किसी से मदद लेना आपको पसंद नहीं होता। प्रेमी को पूरा समय देते हैं।

हरा- आप बहुत शांति प्रिय इंसान हैं। लड़ाई-झगड़ों से दूर ही रहते हैं।

पीला- आप हमेशा खुश रहने वाले इंसान हैं। दूसरों को हमेशा सही मार्गदर्शन देते हैं। सभी की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।

कहा जाता है कि ज्योतिष के अनुसार उपर्युक्त रंगों के अनुसार व्यक्ति का स्वभाव लगभग इसी तरह का रहता है। वहीं नौ ग्रहों की अलग-अलग स्थिति के अनुसार स्वभाव में परिवर्तन भी हो सकता है।

इस बार ड्रिंकिंग गेम्स के साथ मनाइए दिलचस्प दीवाली


कौन कहता है कि दिवाली पर घर में होने वाली दावतें सिर्फ ताश के पत्ते खेलने या सामाजिकता निभाने तक की सीमित हैं। 'स्नैक्स एंड शॉट्स', 'क्रॉस एंड शॉट्स' जैसे खेलों के वयस्क रूपांतरण के साथ आप अपनी दीवाली दावत को नया और दिलचस्प बना सकते हैं। आपकी दिवाली मस्ती को दुगुना करने के लिए बाजार में बास्केट शॉट गेम, ट्रथ और शॉट, बीयर पॉन्ग और ड्रिंकिंग रौलेट, ड्रिंकिंग शतरंज, ड्रिकिंग बास्केटबॉल जैसे खेल उपलब्ध हैं।

राजधानी दिल्ली स्थित एक्सटर्डम किचन एंड बार के सनुज बिड़ला का कहना है, "सिर्फ शराब पीना उबाऊ है।" एक्सटर्डम किचन एंड बार में लोगों के निवेदन पर ड्रिंकिंग गेम्स की व्यवस्था की गई है। बिरला ने बताया, "शराब के साथ खेल होना मजेदार है, ये खेल आपके अंदर छिपे बचपने को बाहर लाते हैं।" राजधानी की कई मधुशालाओं में मांग पर ड्रिंकिंग गेम्स की पेशकश की गई है। इसमें वेयरहाउस कैफे के अलावा अंडरडॉग्स स्पोर्ट्स बार और ग्रिल भी अच्छे विकल्प हैं।

डीजे खुशी के नाम से मशहूर खुश सोनी का मानना है कि ऐसे खेल खेलने में काफी मजा आता है। फैट निंजा के मालिक और पैंजिया के प्रबंध साझेदार का कहना है कि प्रबंधन को यह अच्छी तरह पता होना चाहिए कि लाइन कहां बनाई जाए। कई बार युवा घर में ही दोस्तों के साथ ड्रिंकिंग गेम्स का लुत्फ उठाते हैं। 'ये जवानी है दिवानी' का ट्रेन का ड्रिंकिंग गेम वाला दृश्य तो आपको याद ही होगा।

29 वर्षीय श्रेय कुमार कहते हैं, "बाहर जाना महंगा होता है और पेय भी अत्यिधिक कर के साथ मिलते हैं। इसलिए बेहतर है कि दावत घर पर ही की जाए। यहां हम खेलों का मजा बेहतर तरीके से उठा सकते हैं और बिल की चिंता भी नहीं होगी। " वयस्कों के लिए ऑनलाइन भी बहुत सारे ड्रिंकिंग गेम्स उपलब्ध हैं। ये गेम्स 500 से 1,000 रुपये तक में उपलब्ध हैं।

आईपार्टी वाइल्ड की संस्थापक श्रुति सिंह ने बताया, "जैसे-जैसे ऐसी दावतें बढ़ रही हैं, लोगों ने मेहमानों के मनोरंजन के लिए नए तरीके ढूंढ़ने शुरू कर दिए हैं और इस तरह ड्रिकिंग गेम्स दावतों का हिस्सा बन रहे हैं।" श्रुति की कंपनी ने ट्रिपी डाइस, क्वीन बी, अल्टीमेट डेयरडेविल्स, किंग्स सर्कल और फिल्म-ओ-हॉलिक जैसे कुछ नए गेम्स पेश किए हैं ।

श्रुति ने बताया, "ड्रिकिंग गेम्स शराब के लिए नहीं है, ये इन्हें खेलते हुए आपके अनुभव के लिए है। ये खेल नशे की हालत में आपके धर्य, गति, सोचने की क्षमता को चुनौती देने के लिए बनाए गए हैं। इनके नियम सरल हैं, इसलिए लोग इन खेलों में जल्दी घुलमिल जाते हैं।" अगर आप शराब नहीं पीते हैं तो परेशान मत होइए। आप नींबू पानी के साथ भी इन खेलों का लुत्फ उठा सकते हैं।

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मुजफ्फरनगर के ग्रामीण नहीं मनाएंगे दीवाली

दंगों का दंश झेलने वाले मुजफ्फरनगर के सैकड़ों ग्रामीण इस साल दिवाली पर न तो पटाखे छोड़ेंगे और न ही मोमबत्तियां जलाकर घरों की सजावट करेंगे। बीते माह भड़की हिंसा के दौरान राज्य सरकार की 'भूमिका' से नाराज कई गावों के लोग इस साल दिवाली नहीं मनाएंगे।

सिसौली, बुढ़ाना, पुरकाजी और सिखेड़ा क्षेत्र के करीब 15 गांवों के ग्रामीणों ने सितंबर में भड़की दो वर्गो के बीच हिंसा में निर्दोष लोगों की मौत और घटना में राज्य सरकार की कथित एक पक्षीय कार्रवाई से नाराज होकर इस साल दिवाली नहीं मनाने का ऐलान किया है।

सलेमपुर गांव निवासी पूर्व ग्राम प्रधान प्रेम सिंह राणा ने कहा, "आस-पास के करीब पांच गावों की पंचायत करके हमने ये फैसला लिया है कि राज्य सरकार द्वारा सिर्फ समुदाय विशेष को खुश करने के लिए की गई एक पक्षीय कार्रवाई के खिलाफ हम दीपावली नहीं मनाएंगे।"

राणा ने कहा, "किसी भी सरकार की नजर में हर नागरिक एक समान होना चाहिए, लेकिन समाजवादी पार्टी की सरकार जाति और धर्म के चश्मे से देखकर कार्रवाई करती है। हिंसा के बाद एक विशेष समुदाय को खुश करने के लिए हमें झूठे मुकदमों में फंसाया जा रहा है, इसीलिए हमने दिवाली नहीं मनाने का फैसला लिया है।"

सलेमपुर की तरह अन्य गावों के लोगों ने भी पंचायत कर फैसला किया कि वे दिवाली की रात न तो घरों में दीप जलाएंगे, न मोमबत्ती से घर को सजाएंगे और न ही पटाखे छोड़ेंगे। उनकी दिवाली केवल गणेश-लक्ष्मी की पूजा तक सीमित रहेगी।

लखनौती गांव के निवासी प्रेमपाल शर्मा ने कहा कि अगर कवाल की घटना में राज्य सरकार निष्पक्ष कार्रवाई करती तो दंगे के हालात पैदा ही न होते और निर्दोष लोग मारे नहीं जाते।

शर्मा ने कहा, "हिंसा के बाद अब हमारे समुदाय के सैकड़ों निर्दोष लोगों को झूठे मुकदमों में फंसाया जा रहा है। कई गावों के युवक तो दूसरे स्थानों पर शरण लिए हुए हैं, क्योंकि उन्हें भय है कि कहीं पुलिस उन्हें हिंसा भड़काने के आरोप में पकड़ न ले। राज्य सरकार की एकतरफा कार्रवाई से हम लोग बहुत आहत हैं, ऐसी हालत में हम खुशियां क्या मनाएं।"

याद रहे कि राज्य सरकार पर एकतरफा कार्रवाई का आरोप लगाते हुए करीब दर्जनभर गांवों के लोगों ने दशहरे के दिन बुराई के प्रतीक माने जाने वाले रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले जलाने के बजाय सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और कैबिनट मंत्री आजम खान के पुतले जलाए थे।

विगत 27 अगस्त को जिले के कवाल गांव में एक छेड़खानी की घटना को लेकर हुए विवाद के तूल पकड़ने के बाद सात सितंबर को जिलेभर में हिंसा भड़क गई थी, जिसमें 62 लोग मारे गए थे और करीब 50,000 लोग बेघर हो गए थे।

हिंसा के बाद एक निजी समाचार चैनल के स्टिंग आपरेशन में इस तरह की बातें सामने आई थीं कि राज्य सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री ने अधिकारियों से कवाल की घटना के दोषियों को पुलिस हिरासत से छोड़ने को कहा, जिसके बाद दूसरे समुदाय के लोगों में अंसतोष पैदा हुआ और हालात बिगड़ने शुरू हो गए। 

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लुप्त हो रही कार्तिक स्नान की पुरातन परंपरा

आधुनिकता की होड़ में तीज त्योहारों की पुरानी परम्पराएं धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है। शहरी परिवेश ने तो कई अच्छी परम्पराओं पर एक तरह से पर्दा डाल दिया है। ऐसी ही एक परम्परा है कार्तिक स्नान की। लेकिन आज के बदलते दौर में न सिर्फ युवाओं ने बल्कि बुजुर्गों ने भी भोर के समय कार्तिक स्नान की पुरानी परम्परा को लगभग भुला दिया है।

महानगरीय चकाचौंध और कस्बे, गांवों में तालाबों का अस्तित्व गुम हो जाने के कारण ज्यादातर लोग चाहते हुए भी इस परम्परा का निर्वहन नहीं कर पा रहे हैं। रायपुर की बुजुर्ग महिला सरिता शास्त्री कहती हैं कि पहले कार्तिक माह में दिन के प्रथम प्रहर में स्नान कर भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती थी, अब इसे भुला दिया गया है। पहले शरद पूर्णिमा से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक पूरे एक माह प्रतिदिन नदी और तालाब में स्नान कर जल में दीप प्रज्वलित किए जाते थे। आधुनिकता के दौर में गांवों की वर्षो पुरानी परम्परा धीरे-धीरे अब विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई है। शहर में तो यह न के बराबर दिखती है।

वर्तमान में कस्बों के साथ गांवों में भी तालाबों का अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है। इसकी वजह से भी लोग कार्तिक स्नान की धार्मिक परम्परा में रुचि नहीं दिखा रहे हैं। घर के बड़े बुजुर्ग कार्तिक स्नान की परम्परा को आज याद तो करते हैं पर आसपास में तालाब या नदी के अभाव में वे केवल याद करके ही रह जाते हैं। पुराणी बस्ती के सुरेश वर्मा का कहना है कि पहले कार्तिक का महीना प्रारम्भ होते ही सुबह चार बजे लोग अपने घर से स्नान के लिए निकल पड़ते थे। ठंडे पानी में स्नान के बाद जल में दीप प्रज्वलित करने का नजारा देखते ही बनता था। भोर के समय कार्तिक स्नान के लिए तालाब में दूर दूर के लोग पहुंच कर दीपदान करते थे, तालाब के आसपास बेहद मनोरम दृष्य बन जाता था।

भिलाई के कमल शर्मा ने बताया कि आधुनिकता के चलते अब पुरानी परंपरा विलुप्त कर दी गई है। उन्होंने कहा कि कार्तिक स्नान की परम्परा के पीछे धार्मिक कारण से अधिक अच्छे स्वास्थ्य पर ध्यान देने की आदत बनती थी। शर्मा ने कहा कि गुलाबी ठंड में प्रात: का स्नान स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहतर रहता है। तालाब अथवा नदी में दीप प्रज्वलित करने के बाद चावल आदि से भगवान शिव की पूजा अर्चना करने से आसपास के जीव जन्तुओं को भोजन मिलता है। इससे तालाब का पानी भी स्वच्छ रहता है। भोर में कार्तिक स्नान के बहाने लोगों को जल्द उठने की आदत बन जाती है। पर अब आधुनिकता कि आड़ में अच्छी परम्पराओं को भुला दिया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि अच्छे स्वास्थ्य के लिए इन परम्पराओं को जीवित रखना बेहद जरूरी है। बहरहाल आज भी कुछ गांवों में परम्पराओं को मानने वाले लोग हैं, जो अलसुबह कार्तिक स्नान के लिए तालाबों की तरफ निकल पड़ते हैं। 

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सुनत हैं गुजरात में बड़ा विकास कीन है....

उत्तर प्रदेश के बुंदेलों की नगरी झांसी के जीआईसी ग्राउंड में शुक्रवार को नरेंद्र मोदी को सुनने पहुंचे युवाओं के साथ ही बुजुर्गो को भी मोदी से बड़ी उम्मीदें हैं, उन्होंने कहा, "सुनत हैं कि गुजरात में बड़ा विकास कीन है। उनकै सुने खाती आइन बानी।"

भाजपा की विजय शंखनाद रैली में आए लोगों का कहना है कि उन्होंने मोदी में विकास पुरुष की छवि दिखी। झांसी के समथर इलाके से आए 50 वर्षीय किसान गंगा प्रसाद ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, "हम मोदी को सुनने आए हैं।" भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की कानपुर के बाद झांसी में आयोजित दूसरी विजय शंखनाद रैली में पहली रैली की अपेक्षा बेहतर प्रबंधन दिखा। कार्यकर्ताओं और रैली में आने वाले लोगों में उत्साह भी कई गुना रहा।

झांसी के सबसे बड़े जीआईसी ग्राउंड में आयोजित रैली में खड़े होने तक की जगह नहीं बची। नेताओं के भाषण के दौरान लगातार 'मोदी-मोदी' के नारे गूंजते रहे। इस बीच बड़ागांव क्षेत्र से आए परवेश सिंह राजपूत कहते हैं कि उनका घर पारिक्षा पावर प्लांट के पास है। यहां से बिजली उत्पादन होता है, लेकिन हमारे गांव में ही बिजली नहीं आती। सड़कें जर्जर हैं। समय से खाद बीज नहीं मिल पाता।

राजपूत ने कहा, "मोदी और भाजपा को लेकर मेरी पसंद या नपसंद की बात नहीं है। हमने सुना है कि मोदी ने बहुत अच्छा कार्य किया है। गुजरात का विकास किया है।" पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने कहा कि बुंदेलखंड की यह रैली ऐतिहासिक है। पार्टी की यह दूसरी रैली थी। उन्होंने दावा किया कि आगे की सभी रैलियों में संख्या में और भी इजाफा होता रहेगा। 

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बेटे की लंबी उम्र के लिए रखें अहोई अष्टमी का व्रत

कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अहोई अष्टमी का व्रत किया जाता है| पुत्रवती महिलाओं के लिए यह व्रत अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह व्रत व पूजन संतान व पति के कल्याण हेतु किया जाता है| माताएं अहोई अष्टमी के व्रत में दिन भर उपवास रखती हैं और सायंकाल तारे दिखाई देने के समय अहोई माता का का पूजन किया जाता है। तारों को करवा से अर्ध्य भी दिया जाता है। इस दिन धोबी मारन लीला का भी मंचन होता है, जिसमें श्री कृष्ण द्वारा कंस के भेजे धोबी का वध करते प्रदर्शन किया जाता है। इस वर्ष अहोई अष्टमी का व्रत 26 अक्टूबर दिन शनिवार को मनाया जायेगा| कहते हैं कि जिन्हें संतान का सुख प्राप्त नहीं हो पा रहा हो उन्हें अहोई अष्टमी व्रत अवश्य करना चाहिए क्योंकि संतान प्राप्ति हेतु अहोई अष्टमी व्रत अमोघफल दायक होता है| इसके लिए, एक थाल मे सात जगह चार-चार पूरियां एवं हलवा रखना चाहिए| इसके साथ ही पीत वर्ण की पोशाक-साडी एवं रूपये आदि रखकर श्रद्धा पूर्वक अपनी सास को उपहार स्वरूप देना चाहिए| शेष सामग्री हलवा-पूरी आदि को अपने पास-पडोस में वितरित कर देना चाहिए सच्ची श्रद्धा के साथ किया गया यह व्रत शुभ फलों को प्रदान करने वाला होता है|

अहोई अष्टमी व्रत विधि-

संतान की शुभता को बनाये रखने के लिये क्योकि यह उपवास किया जाता है इसलिये इसे केवल माताएं ही करती है| इस व्रत को रखने वाली माताएं प्रात: काल उठकर स्नान आदि करके अहोई माता का चित्रांकन करें| चित्रांकन में ज्यादातर आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती है। उसी के पास सेह तथा उसके बच्चों की आकृतियां बना दी जाती हैं। उत्तर भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अहोई माता का स्वरूप वहां की स्थानीय परंपरा के अनुसार बनता है। सम्पन्न घर की महिलाएं चांदी की अहोई बनवाती हैं। जमीन पर गोबर से लीपकर कलश की स्थापना होती है। अहोईमाता की पूजा करके उन्हें दूध-चावल का भोग लगाया जाता है। तत्पश्चात एक पाटे पर जल से भरा लोटा रखकर कथा सुनी जाती है। तारे निकलने पर इस व्रत का समापन किया जाता है| तारों को करवे से अर्ध्य दिया जाता है. और तारों की आरती उतारी जाती है| इसके पश्चात संतान से जल ग्रहण कर, व्रत का समापन किया जाता है|

पूजा पाठ करके अपनी संतान की दीर्घायु व सुखमय जीवन हेतू कामना करें और माता अहोई से प्रार्थना करें, कि हे माता मैं अपनी संतान की उन्नति, शुभता और आयु वृ्द्धि के लिये व्रत कर रही हूं, इस व्रत को पूरा करने की आप मुझे शक्ति दें| यह कर कर व्रत का संकल्प लें| एक मान्यता के अनुसार इस व्रत को करने से संतान की आयु में वृ्द्धि, स्वास्थय और सुख प्राप्त होता है| साथ ही माता पार्वती की पूजा भी इसके साथ-साथ की जाती है| क्योकि माता पार्वती भी संतान की रक्षा करने वाली माता कही गई है|

अहोई अष्टमी व्रत कथा-

प्राचीन काल में किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात लड़के थे। दीपावली से पहले साहूकार की स्त्री घर की लीपा-पोती हेतु मिट्टी लेने खदान में गई और कुदाल से मिट्टी खोदने लगी। दैव योग से उसी जगह एक सेह की मांद थी। सहसा उस स्त्री के हाथ से कुदाल सेह के बच्चे को लग गई जिससे सेह का बच्चा तत्काल मर गया। अपने हाथ से हुई हत्या को लेकर साहूकार की पत्नी को बहुत दुख हुआ परन्तु अब क्या हो सकता था? वह शोकाकुल पश्चाताप करती हुई अपने घर लौट आई। कुछ दिनों बाद उसके बेटे का निधन हो गया। फिर अकस्मात दूसरा, तीसरा और इस प्रकार वर्ष भर में उसके सभी बेटे मर गए। महिला अत्यंत व्यथित रहने लगी। एक दिन उसने अपने आस-पड़ोस की महिलाओं को विलाप करते हुए बताया कि उसने जान-बूझ कर कभी कोई पाप नहीं किया। हाँ, एक बार खदान में मिट्टी खोदते हुए अंजाने में उससे एक सेह के बच्चे की हत्या अवश्य हुई है और तत्पश्चात मेरे सातों बेटों की मृत्यु हो गई।

यह सुनकर पास-पड़ोस की वृद्ध औरतों ने साहूकार की पत्नी को दिलासा देते हुए कहा कि यह बात बताकर तुमने जो पश्चाताप किया है उससे तुम्हारा आधा पाप नष्ट हो गया है। तुम उसी अष्टमी को भगवती माता की शरण लेकर सेह और सेह के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी अराधना करो और क्षमा-याचना करो। ईश्वर की कृपा से तुम्हारा पाप धुल जाएगा। साहूकार की पत्नी ने वृद्ध महिलाओं की बात मानकर कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उपवास व पूजा-याचना की। वह हर वर्ष नियमित रूप से ऐसा करने लगी। बाद में उसे सात पुत्र रत्नों की प्राप्ति हुई। तभी से अहोई व्रत की परम्परा प्रचलित हो गई।

इसके अलावा एक और काठ प्रचलित है जो इस प्रकार है, प्राचीन काल में दतिया नगर में चंद्रभान नाम का एक आदमी रहता था। उसकी बहुत सी संतानें थीं, परंतु उसकी संताने अल्प आयु में ही अकाल मृत्यु को प्राप्त होने लगती थीं। अपने बच्चों की अकाल मृत्यु से पति-पत्नी दुखी रहने लगे थे। कालान्तर तक कोई संतान न होने के कारण वह पति-पत्नी अपनी धन दौलत का त्याग करके वन की ओर चले जाते हैं और बद्रिकाश्रम के समीप बने जल के कुंड के पास पहुंचते हैं तथा वहीं अपने प्राणों का त्याग करने के लिए अन्न-जल का त्याग करके उपवास पर बैठ जाते हैं। इस तरह छह दिन बीत जाते हैं तब सातवें दिन एक आकाशवाणी होती है कि, हे साहूकार! तुम्हें यह दुख तुम्हारे पूर्व जन्म के पाप से मिल रहे है।

अतः इन पापों से मुक्ति के लिए तुम्हें अहोई अष्टमी के दिन व्रत का पालन करके अहोई माता की पूजा-अर्चना करनी चाहिए, जिससे प्रसन्न हो अहोई माता तुम्हें पुत्र प्राप्ति के साथ-साथ उसकी दीर्घ आयु का वरदान देंगी। इस प्रकार दोनों पति-पत्नी अहोई अष्टमी के दिन व्रत करते हैं और अपने पापों की क्षमा मांगते हैं। अहोई मां प्रसन्न हो उन्हें संतान की दीर्घायु का वरदान देती हैं। आज के समय में भी संस्कारशील माताओं द्वारा जब अपनी सन्तान की इष्टकामना के लिए अहोई माता का व्रत रखा जाता है और सांयकाल अहोई मता की पूजा की जाती है तो निश्चित रूप से इसका शुभफल उनको मिलता ही है और सन्तान चाहे पुत्र हो या पुत्री, उसको भी निश्कंटक जीवन का सुख मिलता है। 

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बुंदेलों को आकर्षित करेंगे मोदी

उत्तर प्रदेश के झांसी शहर में स्थित महारानी लक्ष्मीबाई के किले की तर्ज पर तैयार मंच से शुक्रवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी लोगों को सम्बोधित करेंगे।

कानपुर की रैली में जिस तरह से मोदी ने क्षेत्रीय समस्याओं को तवज्जो दी थी, उसके बाद अब झांसी में भी बुंदेलखंड पैकेज के बहाने लोगों को आकर्षित करते नजर आएंगे। इस बीच सूत्रों की माने तो मप्र से भी भीड़ जुटाने की जोरदार तैयारी चल रही है।

मोदी की उत्तर प्रदेश में यह दूसरी रैली है। इससे पहले कानपुर की रैली में बड़ी संख्या में जुटी भीड़ से उत्साहित मोदी ने कांग्रेस की दुखती रग पर हाथ फेरा था। कानपुर में बंद पड़े उद्योग धंधों और आजादी में उनके योगदान का जिक्र कर अपने को उनके करीब खड़ा करने का प्रयास किया था। पार्टी सूत्रों का दावा है कि मोदी झांसी में भी स्थानीय समस्याओं को ही उठाएंगे।

भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा कि पार्टी के लिए विकास हमेशा से ही मुद्दा रहा है और जाहिर है कि पार्टी अपनी रैलियों में विकास को मुद्दा बनाएगी। इस बीच झांसी में शुक्रवार को आयोजित विजय शंखनाद रैली की तैयारियों में पूरी भाजपा ने धरती आसमान एक कर रखा है। इस क्षेत्र के चारों लोकसभा क्षेत्रों बांदा, झांसी, ललितपुर, हमीरपुर और जालौन से भीड़ जुटाने के साथ आस पास के क्षेत्रों से लोगों के आने की उम्मीद लगाई जा रही है।

मोदी की रैली के लिये झांसी का जीआइसी ग्राउंड जोर शोर से सजाया जा रहा है। देर रात तक सजावट का कार्य पूरा कर लिया जाएगा। मोदी के स्वागत में भाजपाइयों ने शहर के हर चौराहे पर होर्डिंग बैनर पाट दिए हैं। भाजपा नेताओं में अब भी भीड़ जुटने को लेकर चिंता दिख रही है। बताया जा रहा है कि वैसे तो मोदी की रैली के लिहाज से पार्टी के नेता जीआइसी ग्राउंड को छोटा मानकर चल रहे हैं। लेकिन बुंदेलखण्ड में कानपुर जैसी भीड़ एकत्र हो, इस पर भी आश्वस्त नहीं हो सकते। यही वजह है कि पार्टी ने इस मैदान को चुना है।

झांसी शहर मध्य प्रदेश से सटा हुआ है। मध्य प्रदेश का दतिया जिला मुख्यालय रैली स्थल से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर है। वहां से बड़ी संख्या में लोगों के आने की उम्मीद है। मप्र के शिवपुरी से भी लोग आएंगे। पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री व प्रभारी अमित शाह खुद रैली स्थल पर जमे हुए हैं। वह हर पहलू पर ध्यान दे रहे हैं।

ऐसे में यदि जीआइसी ग्राउंड छोटा पड़ गया तो पास के दो ग्राउंड पर पार्टी नेताओं व जिला प्रशासन की नजर है। उसी में चिन्हित कर किसी ग्राउंड पर लोगों को रोका जा सकता है। देर रात तक उस ग्राउंड में एलईडी लगाने की योजना है जिससे कि रैली नहीं पहुंच पाने वाले लोग भी मोदी का भाषण सुन सकें।

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ लक्ष्मीकांत बाजपेयी का दावा है कि केवल चार लोकसभा क्षेत्रों के लोग ही आ रहे हैं। उनका दावा है कि इस क्षेत्रों के प्रत्येक बूथ से कार्यकर्ता आ रहे हैं। उनका मानना है कि यह रैली बुंदेलखण्ड की ऐतिहासिक रैली साबित होगी। 

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नमो की रैली में बुलाने का अनोखा तरीका

वीरों की भूमि बुंदेलखंड तथा वीरंगना रानी लक्ष्मीबाई की तपोभूमि झांसी में हो रही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की दूसरी विजय शंखनाद रैली में लोगों को बुलाने के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं ने एक अनोखा तरीका अख्तिायार किया है। यह अनूठी पहल हालांकि वर्तमान पीढ़ी के लिए नई बात हो सकती है, लेकिन आनादि काल से ही शुभ कार्य में आगंतुकों को बुलाने के लिए पीला अक्षत (चावल) भेजे जाने की भारतीय परंपरा रही है।

भाजपा के इस अनूठे निमंत्रण से मोदी की रैली में आने वालों की संख्या काफी बढ़ने की संभावना है। भाजपा समर्थकों का कहना है कि यही एक ऐसी पार्टी है जो भारतीय परंपरा को बचा सकती है, साथ ही देश को सशक्त व समृद्धि के रास्ते पर ले जा सकती है। शहर के कुछ लोगों का भी मानना है कि निमंत्रण के इस तरीके से लोगों का भाजपा से लगाव ही नहीं, आत्मीयता भी बढ़ी है। इतना ही नहीं, जो इस पार्टी का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विरोध करते हैं, वे भी भाजपा द्वारा भेजे गए पीले अक्षत को स्वीकार कर रहे हैं और रैली में आने का वादा कर रहे हैं।

झांसी के रहने वाले ज्योतिषाचार्य पं. संजय ने बताया, "हमारी भारतीय परंपरा में सनातन धर्म का प्रतीक है पीतांबर। परंपरा में तीन रंग शुभकारी हैं- रक्तांबर, पीतांबर और श्वेतांबर।" उन्होंने बताया कि ब्रह्मा रजोगुण यानी पीतांबर, विष्णु सतोगुण यानी श्वेतांबर तथा भगवान शंकर तमोगुण यानी रक्तांबर के प्रतीक हैं। उन्होंने कहा कि वैदिक परंपरा में अक्षत का महात्मय बहुत है। अच्छत का मतलब जिसका कभी क्षय (नाश) न हो। पीले रंग में रंगना अर्थात शुभकार्य का प्रगटीकरण, प्रगति का प्रतीक तथा ताकत के प्रतीक को दर्शाती है। पीले रंग अर्थात हल्दी को महौषधि भी कहा गया है। हल्दी एक ऐसी औषधि है जिसे सभी प्रकार के रोगों में इस्तेमाल किया जाता है, यह एंटीबायोटिक भी है।

इस निमंत्रण से अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा संदेश देना चाहती है कि भारतीय परंपराओं व प्राचीन विरासत की नींव पर ही भारत का विकास होगा। मोदी के मंच पर रानी लक्ष्मीबाई की तस्वीर को लगाकर पार्टी ने विपक्षियों को यह भी संदेश देने की कोशिश की है कि भारत में अब महापुरुषों व क्रांतिकारियों का अपमान नहीं होने दिया जाएगा और उनके सपनों को पार्टी सकार भी करेगी।

इस अनोखे निमंत्रण पर पार्टी के मीडिया प्रभारी मनीष शुक्ल ने कहा कि वीरंगना रानी लक्ष्मीबाई की इस धरती से विपक्षियों को मोदी की ताकत का अहसास होगा। इस अनोखी पहल का मतलब ही है कि वर्तमान देश की जर्जर अवस्था से उबारने के लिए देश को मोदी भाई जैसे एंटीबायोटिक यानी हल्दी की आवश्यकता है। 

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