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हर वर्ष भारतीय पंचांग के कार्तिक मास की अमावस्या का दिन दीपावली के रूप
में पूरे देश में बडी धूम-धाम से मनाया जाता हैं। इस वर्ष दिपावली, 3
नवम्बर दिन रविवार को होगी| दीपावली में अमावस्या तिथि, प्रदोष काल, शुभ
लग्न व चौघाडिया मुहूर्त विशेष महत्व रखते है| कहा जाता है कि कार्तिक
अमावस्या को भगवान रामचन्द्र जी चौदह वर्ष का बनवास पूरा कर अयोध्या लौटे
थे। अयोध्या वासियों ने श्री रामचन्द्र के लौटने की खुशी में दीप जलाकर
खुशियाँ मनायी थीं, इसी याद में आज तक दीपावली पर दीपक जलाए जाते हैं और
कहते हैं कि इसी दिन महाराजा विक्रमादित्य का राजतिलक भी हुआ था। एक अन्य
कथा के अनुसार, एक बार के साधु के मन में राजसिक सुख भोगने का विचार आया|
इसके लिये उसने लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिये तपस्या करनी प्रारम्भ
कर दी| तपस्या पूरी होने पर लक्ष्मी जी ने प्रसन्न होकर उसे मनोवांछित
वरदान दे दिया| वरदान प्राप्त करने के बाद वह साधु राजा के दरबार में
पहुंचा और सिंहासन पर चढ कर राजा का मुकुट नीचे गिरा दिया| राजा ने देखा कि
मुकुट के अन्दर से एक विषैला सांप निकल कर भागा| यह देख कर राजा बहुत
प्रसन्न हुआ, क्योकि साधु ने सर्प से राजा की रक्षा की थी| इसी प्रकार एक
बार साधु ने सभी दरबारियों को फौरन राजमहल से बाहर जाने को कहा, सभी के
बाहर जाते ही, राजमहल गिर कर खंडहर में बदल गया| राजा ने फिर उसकी प्रशंसा
की, अपनी प्रशंसा सुनकर साधु के मन में अहंकार आने लगा| साधु को अपनी गलती
का पता चला, उसने गणपति को प्रसन्न किया, गणपति के प्रसन्न होने पर राजा की
नाराजगी दूर हो गई, और साधु को उसका स्थान वापस दे दिया गया| इसी लिए कहा
गया है कि धन के लिये बुद्धि का होना आवश्यक है. यही कारण कि दीपावली पर
लक्ष्मी व श्री गणेश के रुप में धन व बुद्धि की पूजा की जाती है|
दीपावली यानी दीप पक्तियां, अमावस्या को जब चन्द्रमा और सूर्य दोनों किसी
भी एक डिग्री पर होते हैं तो गहन अंधकार को जन्म देते हैं। दीपावली गहन
अंधकार में भी प्रकाश फैलने का पर्व है, यह त्योहार हम सभी को प्रेरणा देता
है कि अज्ञान रूपी अंधकार में भटकने के बजाय हम अपने जीवन में ज्ञान रूपी
प्रकाश से उजाला करें और जगत के कल्याण में सहभागिता करें। कहते हैं कि
दीपावली की रात्रि को महालक्ष्मी की कृपा जिस व्यक्ति या परिवार पर पड़
जाती है उसे कभी धन का अभाव नहीं होता है और उसके घर में हमेशा सुख-समृद्धि
रहती है| दीपावली के शुभ अवसर पर महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिये कुछ
पूजा-आराधना इस प्रकार से करनी चाहिये कि पूरे वर्ष धन-धान्य में वृद्धि
होकर सुख-समृद्धि बनी रहे और निरन्तर मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहे। रावण के
पास जो सोने की लंका थी, कहते हैं वह लंका रावण को महालक्ष्मी की कृपा से
ही प्राप्त हुई थी। रावण के भाई कुबेर जो धनाधिपति के रूप में भी जाने जाते
हैं, उनके साथ भी लक्ष्मी का शुभ आर्शीवाद ही था। दीपावली के शुभ अवसर पर
भगवती महालक्ष्मी जी एवं गणेश जी का ही विशेष पूजन किया जाता है, क्योंकि
पूरे वर्ष में एक यही पर्व है जिसमें लक्ष्मी का पूजन भगवान विष्णु के साथ
नहीं होता क्योंकि भगवान विष्णु तो चार्तुमास शयन कर रहे हैं इसलिये
लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी का पूजन दीपावली के शुभ अवसर पर किया जाता है|
माँ लक्ष्मी की पूजा के लिये लक्ष्मी-गणेश की नवीन मूर्ति, श्रीयंत्रा,
कुबेर मंत्रा, फल-फूल, धूप-दीपक, खील-बतासे, मिठाई, पंचमेवा, दूध, दही,
शहद, गंगाजल, रोली, कलावा, कच्चा नारियल, तेल के दीपक, व दीपकों की कतार और
एक घी के दीपक जलाएं| पूजन के लिये एक थाली में रोली से ओम और स्वास्तिक
का चिन्ह बनाकर गणेश जी व माता लक्ष्मी जी को स्थापित करे। थाली में एक तरफ
षोडस् मातृका पूजन के लिये रोली से 16 बिन्दु लगायें। नवग्रह पूजन के लिये
रोली से ही खाने बनायें, सर्प आकृति बनायें, एक तरफ अपने पितरों को स्थान
दें, अब आप पूर्व की दिशा या उत्तर की दिशा में मुहं कर बैठकर आचमन,
पवित्रो-धारण-प्राणायाम कर अपने ऊपर तथा पूजा-सामग्री पर यह मंत्र ( ओइम्
अपवित्राः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोडपि वा। य स्मरेत पुण्डरीकाक्षं सः
बाह्य अत्यंतरः शुचि।।) पढ़ते हुये गंगाजल छिड़ककर शुद्ध कर लें| तत्पश्चात
सभी देवी-देवताओं को गंगाजल छिड़ककर स्नान करायें, स्नान करने के बाद उनको
तिलक करें, इसके पश्चात् गंगाजल मिले हुए जल से भरा लोटा या कलश का पूजन
करे, डोरी बांधे, रोली से तिलक करे, पुष्प व चावल कलश पर वरूण देवता को
नमस्कार करते हुये अर्पित करें। इतना करने के बाद थाली में जो 9 खाने वाली
जगह है, उस पर रोली, डोरी, पुष्प, चावल, फल, मिठाई आदि चढ़ाते हुये नवग्रह
का ध्यान व प्रणाम करे और प्रार्थना करें कि सभी नवग्रह सूर्य, चन्द्रमा,
मंगल, बुध, बृह॰, शुक्र, शानि, राहू, केतू शान्ति प्रदान करें| इसके पश्चात
इस मंत्र के द्वारा कुबेर का ध्यान करें-
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।
भवंतु त्वत्प्रसादान्मे धनधान्यादिसम्पदः॥
इसके लिए एक पाट पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर एक जोड़ी लक्ष्मी तथा गणेशजी की
मूर्ति रखें। समीप ही एक सौ एक रुपए, सवा सेर चावल, गुढ़, चार केले, मूली,
हरी ग्वार की फली तथा पाँच लड्डू रखकर लक्ष्मी-गणेश का पूजन करें और
उन्हें लड्डुओं से भोग लगाएँ।
कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी कहते हैं। इस दिन
यमराज के निमित्त पूजा की जाती है। इस बार यह पर्व 2 नवम्बर, शनिवार को है।
नरक चतुर्दशी की जिसे छोटी दीपावली भी कहते हैं। इसे छोटी दीपावली इसलिए
कहा जाता है क्योंकि दीपावली से एक दिन पहले रात के वक्त उसी प्रकार दीयों
की रोशनी से रात के तिमिर को प्रकाश पुंज से दूर भगा दिया जाता है जैसे
दीपावली की रात। इस रात दीए जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं
और लोकमान्यताएं हैं। एक कथा के अनुसार आज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने
अत्याचारी और दुराचारी दु्र्दान्त असुर नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार
एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान
किया था। इस उपलक्ष में दीयों की बरात सजायी जाती है।
नरक चतुर्दशी की एक और कथा प्रचलित है| प्राचीन काल की बात है रन्तिदेवी
नाम के राजा हुए थे। रन्तिदेवी अपने पूर्व जन्म में काफी धार्मिक व दानी
थे, इस जन्म में भी दान पुण्य में ही समय बिताया था। कोई पाप किया याद न
था, लेकिन जब अंतिम समय आया तो यमदूत लेने आए। राजा ने यमदूतों से पूछा कि
मैंने तो काफी दान पुण्य किया है कोई पाप नहीं किया फिर यमदूत क्यों आए हैं
मतलब मैं नरक में जांऊगा। राजा रन्तिदेवी ने यमदूतों से एक वर्ष की आयु की
माँग की। यमदूतों ने राजा की प्रार्थना स्वीकार कर ली और बताया कि एक बार
तुम्हारे द्वार से एक ब्राह्मण भूखा वापस लौट गया था इस कारण नरक भोगना
पडेगा। राजा ने ऋषि मुनियों से जाकर अपनी व्यथा बताई। ऋषियों ने कहा कि
राजन् तुम कार्तिक मास की कष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करो और इस
ब्राह्मणों को भोजन कराओ और अपना अपराध सबके सामने स्वीकार कर क्षमा याचना
करो। ऐसा करने से तुम पाप से मुक्त हो जाओगे। राजा ने ब्राह्मणों के कहे
अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को व्रत रखा व सब पापों से
मुक्त हो विष्णु लोक चला गया।