बरतें चन्द सावधानियां, और खुशी से मनाएं दीपों का त्यौहार दीपावली

दीपावली का त्योहार हो और पटाखे छोड़कर खुशी न मनार्इ जाए ऐसा संभव नहीं है। मगर चिंतन का विषय यह है कि खुशियों में दागे जाने वाले पटाखों से फैलने वाला ध्वनि एवं वायु प्रदूषण ग्लोबल वार्मिंग में इजाफा कर रहा है इसलिए कोशिश यही होनी चाहिए कि दीपावली की खुशियां भी बरकरार रहे और प्रदूषण कम से कम फैले। दीपावली हर घर में खुशियों का संदेशा लेकर आती है। भारतीय संस्कृति के अनुसार देश में हर त्योहार का अलग-अलग महत्व है। रोशनी का त्योहार कहे जाने वाले इस पर्व को समाज का प्रत्येक वर्ग बड़े हर्षोल्लास से मनाना चाहता है। खासकर बच्चों और युवाओं में पटाखे फोड़ने की ललक रहती है। दीपावली पर हर साल करोडों रुपये की आतिशबाजी फूंकने के बाद पर्यावरण को प्रदूषण के सिवा कुछ नहीं मिलता है। बदलते युग में समाज में तौर-तरीकों पर काफी परिवर्तन आया है। हम अपनी खुशियों के खातिर दूसरों को परेशानियों में डाल देते हैं। हर साल करोड़ों रुपये की आतिशबाजी से ध्वनि प्रदूषण तो होता ही है इसके साथ ही साथ वायु प्रदूषण भी फैलता है।

आतिशबाजी से निकलने वाली गूंज और ध्वनि से स्वास्थ्य पर सबसे ज्यादा असर पड़ता है। इस तरह से प्रदूषण के एकाएक बढ़ जाने से समाज के सभी लोगों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। हम सभी अपनी खुशियों की खातिर समाज को एक जटिल मुशिकल में डाल रहे हैं। धरातल पर कम प्लाटेंशन भी इसकी मुख्य वजह माना जा सकता है। पटाखों से निकलने वाला धुआं शरीर के लिए काफी हानिकारक होता है। सांस रोगियों और दिल के रोगियों को पटाखों से परहेज करना चाहिए। अगर किसी को भी परेशानी हो तो तुरंत ही ड‚क्टर से संपर्क करना चाहिए।

पटाखे फोड़ने पर होने वाले नुकसान : -

• सांस रोगियों को सांस लेने मे परेशानी
• वातावरण में प्रदूषण की मात्रा अधिक होने से स्वच्छ हवा न मिल पाना
• जहरीली गैसों से श्वांस रोगों का बढ़ता खतरा
• श्रवण शक्ति पर पड़ता हैं काफी असर

पटाखे दगाते समय क्या बरतें सावधानी : -

• पटाखे दगाते समय ढीले ढाले वस्त्र पहने
• कसे व सिकन टाइट वस्त्र न पहने
• तेज आवाज के पटाखों का प्रयोग न करें
• खुले मैदान पर पटाखों का प्रयोग करना चाहिए
• तेज रोशनी वाले पटाखों का प्रयोग न करें
• जहरीली गैसों के पटाखों से परहेज करें
• लोकल पटाखों का प्रयोग न करें
• बच्चों को अपने निर्देशन मे ही पटाखे फोड़ने दे

इन चन्द बातों का ध्यान रखकर आप अपनी दीपावली बहुत ही श्रद्धा, उल्लास व खुशी से शांति पूर्वक मना सकते हैं। आप सबकी दीपावली मंगलमय हो, भगवान गणेश, माता लक्ष्मी व कुबेर जी की कृपा सभी पर सदैव बनी रहे।

मेरा संघर्ष की ओर से सभी सुधी पाठकों को दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएं -

भगवान श्रीकृष्ण की उपासना का पर्व है 'गोवर्धन पूजा

कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है| इस वर्ष यह पर्व 4 नवंबर दिन सोमवार को मनाया जायेगा| यह पर्व उत्तर भारत में विशेषकर मथुरा क्षेत्र में बहुत ही धूम-धाम और उल्लास के साथ मनाया जाता है| इसे अन्नकूट पूजा के नाम से भी जाना जाता है| यह पर्व श्रीकृष्ण की भक्ति व प्रकृत्ति के प्रति उपासना व सम्मान को दर्शाता है|

गोवर्धन पूजा-
गाय के गोबर से गोवर्धननाथ जी की बनाकर उनका पूजन किया जाता है तथा अन्नकूट का भोग लगाया जाता है| यह परम्परा आज से नहीं बल्कि द्वापर युग से चली आ रही है| श्रीमद्भागवत में इस बारे में कई स्थानों पर उल्लेख प्राप्त होते हैं जिसके अनुसार भगवान कृष्ण ने ब्रज में इंद्र की पूजा के स्थान पर कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा आरंभ करवाई थी| भगवान श्रीकृष्ण इसी दिन इन्द्र का अहंकार धवस्त करके पर्वतराज गोवर्धन जी का पूजन करने का आहवान किया था| इस विशेष दिन मन्दिरों में अन्नकूट किया जाता है तथा संध्या समय गोबर के गोवर्धन बनाकर पूजा की जाती है|

गोवर्धन पूजा महत्व-
गोवर्धन पूजा के विषय में एक कथा प्रसिद्ध है| जिसके अनुसार ब्रजवासी देवराज इन्द्र की पूजा किया करते थे क्योंकि देवराज इन्द्र प्रसन्न होने पर वर्षा का आशीर्वाद देते जिससे अन्न पैदा होता| किंतु इस पर भगवान श्री कृष्ण ने ब्रजवासीयों को समझाया कि इससे अच्छे तो हमारे पर्वत है, जो हमारी गायों को भोजन देते है| ब्रज के लोगों ने भगवान कृष्ण की बात मानकर गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी प्रारम्भ कर दी| जब इन्द्र देव ने देखा कि सभी लोग मेरी पूजा करने के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा कर रहे है, तो उनके अंह को ठेस पहुँची क्रोधित होकर उन्होने ने मेघों को गोकुल में जाकर खूब बरसने का आदेश दिया आदेश पाकर मेघ ब्रजभूमि में मूसलाधार बारिश करने लगें| ऎसी बारिश देख कर सभी भयभीत हो गये तथा श्री कृष्ण की शरण में पहुंचें, श्री कृ्ष्ण से सभी को गोवर्धन पर्व की शरण में चलने को कहा| जब सब गोवर्धन पर्वत के निकट पहुंचे तो श्री कृ्ष्ण ने गोवर्धन को अपनी कनिष्का अंगूली पर उठा लिया| सभी ब्रजवासी भाग कर गोवर्धन पर्वत की नीचे चले गये| ब्रजवासियों पर एक बूंद भी जल नहीं गिरा| यह चमत्कार देखकर इन्द्रदेव को अपनी गलती का अहसास हुआ और वे श्री कृ्ष्ण से क्षमा मांगी सात दिन बाद श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत नीचे रखा और ब्रजबादियों को प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा और अन्नकूट पर्व मनाने को कहा| तभी से यह पर्व इस दिन से मनाया जाता है|

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दीये बनाने वाले खुद रहते अंधेरे में

महंगाई ने कुंभकारों की कमर तोड़ दी है। दिवाली पर दूसरों के घर रोशन करने के लिए वे रात-दिन एक कर देते हैं, फिर भी उनके घर में अंधेरा ही रहता है। इस दुर्दशा के लिए वह महंगाई के साथ-साथ मोमबत्ती और इलेक्ट्रॉनिक दीयों को भी जिम्मेदार ठहारते हैं।

बाराबिरवा निवासी नानी के नाम से प्रसिद्ध रामकली ने बताया कि महंगाई के इस दौर में इस पेशे के साथ जीना मुश्किल हो गया है। जिंदगी का रुख बदल गया है। पेट भरने के लिए कुम्हारी का पुश्तैनी काम छोड़कर मजदूरी और छोटी-मोटी नौकरियों का रुख करना पड़ रहा है।

रामकली कहती हैं कि दीपावली से तीन माह पहले से दीये बनाना शुरू कर देते हैं, मगर त्योहार पर दाल-रोटी ही मयस्सर हो जाये तो बहुत बड़ी बात है। नये कपड़े, मिठाइयां और पटाखे तो बच्चों के लिए सपना बनकर रह गये हैं। हम दूसरों का घर रोशन करने के लिए रात-दिन एक कर देते हैं, मगर अपना ही घर रोशन नहीं कर पाते।

वहीं, नन्हकऊ कहते हैं कि पिछले साल तक एक ट्रॉली मिट्टी की कीमत 5-6 सौ थी, जो अब 15 सौ हो गई है। चूंकि आसपास के जिलों से भी दीये बिकने आते हैं, इसलिए हम लोगों को प्रतिस्पर्धा में माल सस्ता भी बेचना पड़ता है।

ये लोग कहते हैं कि एक साल पहले तक बिजनेस इतना तेज चलता था कि एक-एक कुम्हार तीन माह के अंदर 50-60 हजार दीये बना लेता था, मगर अब नौकरी करने के कारण यह भी संभव नहीं है। जो दीये बनाते हैं, वही नहीं बिक पाते हैं। अब लोग इलेक्ट्रॉनिक दीये और मोमबत्ती ज्यादा पसंद करने लगे हैं। 

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दीपावली कल, इस तरह करें महालक्ष्मी और श्रीगणेश को प्रसन्न

हर वर्ष भारतीय पंचांग के कार्तिक मास की अमावस्या का दिन दीपावली के रूप में पूरे देश में बडी धूम-धाम से मनाया जाता हैं। इस वर्ष दिपावली, 3 नवम्बर दिन रविवार को होगी| दीपावली में अमावस्या तिथि, प्रदोष काल, शुभ लग्न व चौघाडिया मुहूर्त विशेष महत्व रखते है| कहा जाता है कि कार्तिक अमावस्या को भगवान रामचन्द्र जी चौदह वर्ष का बनवास पूरा कर अयोध्या लौटे थे। अयोध्या वासियों ने श्री रामचन्द्र के लौटने की खुशी में दीप जलाकर खुशियाँ मनायी थीं, इसी याद में आज तक दीपावली पर दीपक जलाए जाते हैं और कहते हैं कि इसी दिन महाराजा विक्रमादित्य का राजतिलक भी हुआ था। एक अन्य कथा के अनुसार, एक बार के साधु के मन में राजसिक सुख भोगने का विचार आया| इसके लिये उसने लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिये तपस्या करनी प्रारम्भ कर दी| तपस्या पूरी होने पर लक्ष्मी जी ने प्रसन्न होकर उसे मनोवांछित वरदान दे दिया| वरदान प्राप्त करने के बाद वह साधु राजा के दरबार में पहुंचा और सिंहासन पर चढ कर राजा का मुकुट नीचे गिरा दिया| राजा ने देखा कि मुकुट के अन्दर से एक विषैला सांप निकल कर भागा| यह देख कर राजा बहुत प्रसन्न हुआ, क्योकि साधु ने सर्प से राजा की रक्षा की थी| इसी प्रकार एक बार साधु ने सभी दरबारियों को फौरन राजमहल से बाहर जाने को कहा, सभी के बाहर जाते ही, राजमहल गिर कर खंडहर में बदल गया| राजा ने फिर उसकी प्रशंसा की, अपनी प्रशंसा सुनकर साधु के मन में अहंकार आने लगा| साधु को अपनी गलती का पता चला, उसने गणपति को प्रसन्न किया, गणपति के प्रसन्न होने पर राजा की नाराजगी दूर हो गई, और साधु को उसका स्थान वापस दे दिया गया| इसी लिए कहा गया है कि धन के लिये बुद्धि का होना आवश्यक है. यही कारण कि दीपावली पर लक्ष्मी व श्री गणेश के रुप में धन व बुद्धि की पूजा की जाती है|

दीपावली यानी दीप पक्तियां, अमावस्या को जब चन्द्रमा और सूर्य दोनों किसी भी एक डिग्री पर होते हैं तो गहन अंधकार को जन्म देते हैं। दीपावली गहन अंधकार में भी प्रकाश फैलने का पर्व है, यह त्योहार हम सभी को प्रेरणा देता है कि अज्ञान रूपी अंधकार में भटकने के बजाय हम अपने जीवन में ज्ञान रूपी प्रकाश से उजाला करें और जगत के कल्याण में सहभागिता करें। कहते हैं कि दीपावली की रात्रि को महालक्ष्मी की कृपा जिस व्यक्ति या परिवार पर पड़ जाती है उसे कभी धन का अभाव नहीं होता है और उसके घर में हमेशा सुख-समृद्धि रहती है| दीपावली के शुभ अवसर पर महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिये कुछ पूजा-आराधना इस प्रकार से करनी चाहिये कि पूरे वर्ष धन-धान्य में वृद्धि होकर सुख-समृद्धि बनी रहे और निरन्तर मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहे। रावण के पास जो सोने की लंका थी, कहते हैं वह लंका रावण को महालक्ष्मी की कृपा से ही प्राप्त हुई थी। रावण के भाई कुबेर जो धनाधिपति के रूप में भी जाने जाते हैं, उनके साथ भी लक्ष्मी का शुभ आर्शीवाद ही था। दीपावली के शुभ अवसर पर भगवती महालक्ष्मी जी एवं गणेश जी का ही विशेष पूजन किया जाता है, क्योंकि पूरे वर्ष में एक यही पर्व है जिसमें लक्ष्मी का पूजन भगवान विष्णु के साथ नहीं होता क्योंकि भगवान विष्णु तो चार्तुमास शयन कर रहे हैं इसलिये लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी का पूजन दीपावली के शुभ अवसर पर किया जाता है|

माँ लक्ष्मी की पूजा के लिये लक्ष्मी-गणेश की नवीन मूर्ति, श्रीयंत्रा, कुबेर मंत्रा, फल-फूल, धूप-दीपक, खील-बतासे, मिठाई, पंचमेवा, दूध, दही, शहद, गंगाजल, रोली, कलावा, कच्चा नारियल, तेल के दीपक, व दीपकों की कतार और एक घी के दीपक जलाएं| पूजन के लिये एक थाली में रोली से ओम और स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर गणेश जी व माता लक्ष्मी जी को स्थापित करे। थाली में एक तरफ षोडस् मातृका पूजन के लिये रोली से 16 बिन्दु लगायें। नवग्रह पूजन के लिये रोली से ही खाने बनायें, सर्प आकृति बनायें, एक तरफ अपने पितरों को स्थान दें, अब आप पूर्व की दिशा या उत्तर की दिशा में मुहं कर बैठकर आचमन, पवित्रो-धारण-प्राणायाम कर अपने ऊपर तथा पूजा-सामग्री पर यह मंत्र ( ओइम् अपवित्राः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोडपि वा। य स्मरेत पुण्डरीकाक्षं सः बाह्य अत्यंतरः शुचि।।) पढ़ते हुये गंगाजल छिड़ककर शुद्ध कर लें| तत्पश्चात सभी देवी-देवताओं को गंगाजल छिड़ककर स्नान करायें, स्नान करने के बाद उनको तिलक करें, इसके पश्चात् गंगाजल मिले हुए जल से भरा लोटा या कलश का पूजन करे, डोरी बांधे, रोली से तिलक करे, पुष्प व चावल कलश पर वरूण देवता को नमस्कार करते हुये अर्पित करें। इतना करने के बाद थाली में जो 9 खाने वाली जगह है, उस पर रोली, डोरी, पुष्प, चावल, फल, मिठाई आदि चढ़ाते हुये नवग्रह का ध्यान व प्रणाम करे और प्रार्थना करें कि सभी नवग्रह सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, बृह॰, शुक्र, शानि, राहू, केतू शान्ति प्रदान करें| इसके पश्चात इस मंत्र के द्वारा कुबेर का ध्यान करें-

धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।
भवंतु त्वत्प्रसादान्मे धनधान्यादिसम्पदः॥

इसके लिए एक पाट पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर एक जोड़ी लक्ष्मी तथा गणेशजी की मूर्ति रखें। समीप ही एक सौ एक रुपए, सवा सेर चावल, गुढ़, चार केले, मूली, हरी ग्वार की फली तथा पाँच लड्डू रखकर लक्ष्मी-गणेश का पूजन करें और उन्हें लड्डुओं से भोग लगाएँ।

कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी कहते हैं। इस दिन यमराज के निमित्त पूजा की जाती है। इस बार यह पर्व 2 नवम्बर, शनिवार को है। नरक चतुर्दशी की जिसे छोटी दीपावली भी कहते हैं। इसे छोटी दीपावली इसलिए कहा जाता है क्योंकि दीपावली से एक दिन पहले रात के वक्त उसी प्रकार दीयों की रोशनी से रात के तिमिर को प्रकाश पुंज से दूर भगा दिया जाता है जैसे दीपावली की रात। इस रात दीए जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं और लोकमान्यताएं हैं। एक कथा के अनुसार आज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी दु्र्दान्त असुर नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष में दीयों की बरात सजायी जाती है।

नरक चतुर्दशी की एक और कथा प्रचलित है| प्राचीन काल की बात है रन्तिदेवी नाम के राजा हुए थे। रन्तिदेवी अपने पूर्व जन्म में काफी धार्मिक व दानी थे, इस जन्म में भी दान पुण्य में ही समय बिताया था। कोई पाप किया याद न था, लेकिन जब अंतिम समय आया तो यमदूत लेने आए। राजा ने यमदूतों से पूछा कि मैंने तो काफी दान पुण्य किया है कोई पाप नहीं किया फिर यमदूत क्यों आए हैं मतलब मैं नरक में जांऊगा। राजा रन्तिदेवी ने यमदूतों से एक वर्ष की आयु की माँग की। यमदूतों ने राजा की प्रार्थना स्वीकार कर ली और बताया कि एक बार तुम्हारे द्वार से एक ब्राह्मण भूखा वापस लौट गया था इस कारण नरक भोगना पडेगा। राजा ने ऋषि मुनियों से जाकर अपनी व्यथा बताई। ऋषियों ने कहा कि राजन् तुम कार्तिक मास की कष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करो और इस ब्राह्मणों को भोजन कराओ और अपना अपराध सबके सामने स्वीकार कर क्षमा याचना करो। ऐसा करने से तुम पाप से मुक्त हो जाओगे। राजा ने ब्राह्मणों के कहे अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को व्रत रखा व सब पापों से मुक्त हो विष्णु लोक चला गया। 

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मोदी रॉकेट, प्रियंका फुलझड़ी से सजा पटाखा बाजार

रोशनी के त्योहार दीपावली के मौके पर इस बार नेताओं ने अभिनेताओं को पूरी तरह से पछाड़ दिया है। राजनीति के अखाड़े में जोर आजमाइश करने वाले इन राजनेताओं की प्रतिद्वंद्विता दीपावली के इस खास मौके पर भी नजर आ रही है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का चेहरा बन चुके नरेंद्र मोदी के नाम पर बने रॉकेट की जबर्दस्त बिक्री हो रही है, वहीं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की बेटी प्रियंका वाड्रा के नाम पर बिक रही फुलझड़ियां भी लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।

सूबे के अलग-अलग शहरों के बाजारों में नेताओं के चित्र वाले पटाखों की भरमार है। पटाखों के खरीदार पटाखों की प्रति को नेताओं के व्यवहार से भी जोड़ कर देख रहे हैं। अगर बाजार में मोदी, सोनिया और लाल कृष्ण आडवाणी के नाम से रॉकेट बिक रहे हैं तो मुलायम सिंह यादव व राहुल गांधी के नाम वाले अनार की भी खूब खरीदारी हो रही है। दुकानदारों का कहना है कि भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार मोदी के चित्र वाले रॉकेट की मांग सबसे अधिक है। मोदी के बाद सोनिया रॉकेट व प्रियंका फुलझड़ी बिक रही हैं, अन्य नेताओं को लेकर जनता में विशेष रुचि नहीं है।

हर बार की अपेक्षा इस बार दीपावली के मौके पर पटाखों में बॉलीवुड के अभिनेता, अभिनेत्रियों की तुलना में राजनेताओं की तस्वीरें ज्यादा दिखाई दे रही हैं। पटाखा विक्रेताओं को राजनेताओं के सहारे माल बिकने की उम्मीद भी है। पटाखों के थोक विक्रेता साबिर अली कहते हैं कि चुनावी मौसम में पटाखा बाजार भी उसी रंग में रंगे हुए हैं। खरीदार अपने पसंद के नेता की तस्वीर वाले पटाखे ले रहे हैं, बच्चे, युवाओं व बुजुर्गो सभी की पसंद मोदी रॉकेट बना है।

हर बार की अपेक्षा इस बार पटाखा बाजार में रौनक कम है। पटाखों की दुकानें तरह-तरह के अनार, फुलझड़ी, बम, चकरी से सजी हैं, लेकिन उन्हें खरीदने के लिए हर बार की अपेक्षा भीड़ कम है। सिविल लाइंस के दुकानदार राजेश शर्मा के अनुसार, इस बार बच्चों की भीड़ काफी कम है, इससे उनकी बिक्री प्रभावित हुई है। चौक के दुकानदार अनवर कहते हैं कि तेज आवाज के पटाखों की बिक्री न के बराबर हुई है, बिना आवाज वाले अनार, फुलझड़ी, चकरी ही लोग ले जा रहे हैं। 

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...यहाँ एक महीने बाद मनाई जाती है दीपावली

आपको पता है पूरे देश में दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या को मनाई जाती है लेकिन हिमांचल प्रदेश में एक महीने बाद दीपावली मनाई जाती हैं| आपको बता दें कि हिमाचल प्रदेश के कुछ इलाकों में शुक्रवार से इस त्योहार को मनाया जाएगा। इस अवसर पर परम्परा के मुताबिक स्थानीय लोगों द्वारा सैकड़ों पशुओं की बलि चढ़ाई जाती है।

देर से दीवाली मनाने के विषय में राज्य मंदिर समिति के सदस्य सचिव प्रेम प्रसाद पंडित ने बताया कि स्थानीय लोगों की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान राम के विजयी होकर अयोध्या लौटने की खबर इन क्षेत्रों में देर से पहुंची थी। इस त्योहार को स्थानीय लोग बूढ़ी दीवाली कहते हैं। इसे प्रमुख रूप से कुल्लू जिले के अनी तथा र्निमड, सिरमौर जिले के शिल्लई और शिमला जिले के छोपाल में मनाया जाता है।

अमावस्या के दिन शुरू होने वाला यह त्योहार स्थानीय परम्परा और रीति-रिवाज के अनुसार तीन दिन से एक हफ्ते तक चलता है। लोग रात में आग के सामने महाभारत से सम्बंधित लोककथा को गाकर नृत्य करते हैं और ढोल बजाकर देवताओं का आह्वान करते हैं। उत्सव की परम्परा महाभारत के युद्ध से भी जुड़ी है। माना जाता है कि बूढ़ी दीवाली के दिन ही यह युद्ध शुरू हुआ था।

परम्परा के अनुसार गांव वाले अपने पशुओं को मंदिर ले जाते हैं जहां उनकी अमावस्या पर बलि चढ़ाई जाती है। पशुओं के सिर देवताओं को चढ़ा दिए जाते हैं और मांस पकाकर खाया जाता है। पंडित ने कहा कि कुछ स्थानीय रीति-रिवाज हैं जिन पर सरकार को प्रतिबंध नहीं लगाना चाहिए।

ऐश्वर्या के 40वें जन्मदिवस पर विशेष.......

बॉलीवुड की बेहद दिलकश, खूबसूरत ऐक्ट्रेस और बॉलीवुड के 'शहंशाह' अमिताभ बच्चन की बहु ऐश्वर्या राय बच्चन आज अपना 40वां जन्मदिन मना रही हैं| 1 नवंबर 1973 को मैंगलोर में जन्मी ऐश्वर्या का नाम हिन्दी फिल्म जगत की उन चुनिंदा अभिनेत्रियों में शामिल है, जिन्होंने फिल्मों में अभिनेत्रियों को महज शो पीस के तौर पर इस्तेमाल किये जाने की परंपरागत सोच को बदला है| ऐश ने बॉलीवुड को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी विशेष पहचान दिलायी है|

ऐश्वर्या के जन्म के कुछ सालों बाद उनका परिवार मुंबई आ गया और यही उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की| बचपन में ऐश्वर्या एक वास्तुकार बनना चाहती थी लेकिन वक़्त के साथ उनका रूझान मॉडलिंग इंडस्ट्री की ओर हो गया| ऐश्वर्या के मॉडलिंग का सफ़र नौवीं कक्षा से ही शुरू हो गया | पहली बार कैमलिन कंपनी की तरफ से उन्हें मॉडलिंग का प्रस्ताव मिला|

इस प्रस्ताव के बाद तो जैसे ऐश्वर्या का भाग्य तय हो गया और इसके बाद वे कोक, फूजी और पेप्सी के विज्ञापन में भी नज़र आयीं| इस दौरान उन्होंने अपनी पढ़ाई को जारी रखा| ऐश्वर्या राय ने वर्ष 1994 में मिस इंडिया प्रतियोगिता में सुष्मिता सेन के बाद दूसरा स्थान जीता| उसी साल ऐश्वर्या ने 'मिस वर्ल्ड खिताब' पर भी कब्जा जमा लिया|

ऐश्वर्या राय ने साल 1997 में विवादास्पद तमिल फिल्म 'इरूअर' से अपने सिने कैरियर की शुरूआत की| इस फिल्म में वह दक्षिण भारत के जाने माने अभिनेता मोहन लाल के साथ नज़र आईं| विवादों में घिरे होने की वजह से फिल्म को व्यावसायिक सफलता तो नहीं मिली लेकिन ऐश्वर्या राय ने अपने दमदार अभिनय से समीक्षकों का दिल जीत लिया|

हिन्दी में उनकी पहली फिल्म 'और प्यार हो गया' थी| इसके बाद उन्होंने ढेर सारी हिंदी फिल्मों में काम किया लेकिन ऐश्वर्या को निर्देशक सुभाष घई की फिल्म ‘ताल’ से विशेष पहचान मिली। हिन्दी फिल्मों में संजय लीला भंसाली द्वारा बनायी गयी फिल्म 'हम दिल दे चुके सनम' से उन्होंने कामयाबी का जो स्वाद चखा वो आज तक बरकरार है। ऐश्वर्या और सलमान की यह जोड़ी काफी लोकप्रिय रही।

भारतीय सिनेमा की सबसे खूबसूरत अदाकाराओं में शुमार ऐश्वर्या का नाम कभी सलमान खान से भी जुड़ा था। कई बरसों तक इन दोनों का प्यार परवान चढ़ता रहा लेकिन फिर रास्ते बदल गए। ऐश ने सलमान से जुड़ीं पुरानी यादों को भुलाने के लिए अभिनेता विवेक ओबेराय का सहारा लेना चाहा, लेकिन वह भी उन्हें रास नहीं आया। इसके बाद इस विश्व-सुंदरी का दिल अभिषेक बच्चन पर आया और वे दोनों शादी के बंधन में बंधकर एक हो गए।

साल 2000 ऐश्वर्या के लिए खुशियों का खजाना लेकर आया और इस साल सिनेमाघरों में आयी उनकी उनकी फिल्म 'जोश' को जबरदस्त सफलता हासिल हुई| इस फिल्म में वह बॉलीवुड के 'बादशाह' शाहरुख़ खान की बहन की भूमिका में नज़र आईं| ऐश्वर्या की 'हमारा दिल आपके पास है' और 'मोहब्बते' जैसी फिल्मों ने भी दर्शकों के दिल में एक ख़ास जगह बना ली और टिकट खिडक़ी पर शानदार सफलता हासिल की|

साल 2002 में शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के मशहूर उपन्यास 'देवदास' पर बनी फिल्म ऐश्वर्या जीवन की यादगार फिल्म साबित हुई| संजय लीला भंसाली की इसी नाम से बनी फिल्म में पारो के अपने किरदार से उन्होंने दर्शको का दिल जीत लिया| इस फिल्म को कांस फिल्म समारोह में विशेष स्क्रीनिंग के दौरान दिखाया गया| साथ ही इस फिल्म के लिये वह दूसरी बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित हुईं|

साल 2009 में फिल्म क्षेत्र में ऐश्वर्या के सराहनीय योगदान को देखते हुये उन्हें 'पदमश्री पुरस्कार' से सम्मानित किया गया| इसके अलावा उन्होंने कुछ बांग्ला फिल्में की हैं। सन 2004 में ही पहली बार उन्होंने गुरिंदर चड्ढा की एक अंग्रेजी फिल्म 'ब्राइड ऐंड प्रेज्यूडिस' में भी काम किया। इसके बाद उन्होंने ‘प्रोवोक्ड’,‘द मिस्ट्रेस ऑफ स्पाइसेस’ और ‘पिंक पैथर-2’ जैसी अंग्रेजी फिल्मों में भी काम कर विश्व-पटल पर अपनी खूबसूरती और अभिनय की धाक जमा दी। टाइम मैगजीन ने वर्ष 2004 में उन्हें दुनिया की सबसे प्रभावशाली महिलाओं में भी शुमार किया है।

वक्त के साथ ऐश्वर्य की पहचान और नाम भी बदल गया है। 20 अप्रैल 2007 को ऐश्वर्या बॉलीवुड के महानायक अभिताभ बच्चन के बेटे और अभिनेता अभिषेक बच्चन साथ विवाह के बंधन में बंध गई| एक शानदार और दमदार अभिनेत्री के रूप में स्थापित ऐश आज प्रतिष्ठित बच्चन परिवार की बहू बनकर कुछ और खास हो गई हैं।

शादी से ठीक पहले उन्होंने अभिषेक के साथ मणिरत्नम की फिल्म ‘गुरु’ में काम किया था और हाल ही में दोनों मणि की ही फिल्‍म ‘रावण’ में नजर आ चुके हैं। भारत में अभिनेत्रियों की शादी हो जाने के बाद उनका फिल्मी करियर एक तरीके से खत्म माना जाता है लेकिन ऐश्वर्य के साथ फिल्म बनाने वाले निर्देशकों का कहना है कि उनका जादू अभी कायम रहेगा। शादी के बाद भी ऐश्वर्या ने काम करना जारी रखा और कई बेहतरीन फिल्मों में अभिनय किया|

ऐश की पिछले साल प्रदर्शित हुईं फिल्‍मों में ‘गुज़ारिश’, ‘एक्शन रिप्‍ले’ ‘रावन’ और ‘रोबोट’ शामिल हैं, जिनमें ‘रोबोट’ सबसे ज्‍यादा सफल फिल्म रही। हालांकि इसका तमिल संस्‍करण ‘एंधिरन’ ज्यादा हिट रहा। ऐश्‍वर्य की आगामी फिल्‍म है ‘लेडीज एंड जैंटलमेंट’ जो साल 2012 में प्रदर्शित होगी।

सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्म फेयर पुरस्कार, इंटरनेशनल इंडियन फिल्म एकाडमी अवॉर्ड, स्टार स्क्रीन अवॉर्ड्स, जी सिने अवॉर्ड्स और स्टारडस्ट अवॉर्ड्स जीतनेवालीं ऐश्वर्य को महानायक अमिताभ बच्‍चन और सासू मां जया बच्‍चन का स्नेह मिला है| बीते 16 नवंबर 2011 को ऐश ने आराध्या को जन्म दिया। दुनिया के सबसे खूबसूरत महिलाओं में शुमार ऐश्वर्या राय भारत की सबसे धनी महिलाओं में शामिल हैं। दुनिया भर में उनके चाहने वालों ने ऐश्वर्या को समर्पित लगभग 17,000 इंटरनेट साइट बना रखे हैं| मिस वर्ल्‍ड रह चुकीं ऐश्‍वर्या के दुनियाभर में आज भी करोड़ों फैंस हैं जो बॉलीवुड दिवा को उनके जन्मदिन पर मुबारकबाद दे रहे हैं। 'हुस्न की ये मल्लिका' आज भी दिलों पर राज कर रही है|

हमेशा याद आएंगे केपी सक्सेना

बॉलीवुड की चर्चित फिल्मों 'जोधा अकबर', 'स्वदेश' और 'लगान' की पटकथा लिखने वाले और पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात साहित्यकर केपी सक्सेना को लोकप्रिय साहित्यकार और व्यंग्यकार के तौर पर उनके योगदान के लिए हमेशा याद किया जाएगा। सक्सेना ही वह शख्स थे, जिन्होंने पहली बार कवि सम्मेलनों में गद्य विधा को अलग पहचान दिलाई।

मशहूर व्यंग्यकार केपी सक्सेना को लखनऊ की सरजमीं पर रहते हुए देशभर में शोहरत मिली। शुरुआती दौर में उन्हें प्रकाशकों ने हालांकि स्वीकार नहीं किया, लेकिन बाद में अपने धारदार लेखन के बल पर उन्होंने जो पहचान बनाई, वही उन्हें फिल्म फेयर तक ले गई।

लखनवी संस्कृति के वह ऐसे पुरोधा थे, जो फिल्मी नगरी के लिए सबसे विश्वस्त सूत्र बन गए। पद्मश्री सम्मान से अलंकृत केपी की यादें लखनऊ की गलियों से जुड़ी हैं। यहां के गोलागंज के भगवती पान भंडार पर उनका मनपसंद पान मिलता था। साथ ही बबन कश्मीरी की पतंग की दुकान पर भी वह रोज जाया करते थे।

प्रखर समालोचक वीरेंद्र यादव ने कहा, "यह सही है कि केपी जी का जाना एक शून्य पैदा कर गया। वह लोकप्रिय साहित्य से जुड़े थे। इसलिए उनकी अपनी एक अलग पहचान थी। उनकी कमी वाकई प्रशंसकों को खलेगी।" यादव कहते हैं कि यह भी सच है कि केपी 'गंभीर साहित्य' से कोसों दूर थे। यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि वह श्रीलाल शुक्ल और हरिशंकर परसाई की श्रेणी के साहित्यकार तो नहीं थे लेकिन लोकप्रिय साहित्य में जो मुकाम उन्होंने हासिल किया वह शायद ही कोई कर पाएगा। हमने एक प्रमुख लोकप्रिय व्यंग्यकार को खो दिया है।

उन्होंने कहा, "कवि सम्मेलनों में अपनी गद्य शैली के माध्यम से ही जिस तरह उन्होंने लोगों के बीच अपनी पहचान बनाई वह अद्भुत थी। उनसे पहले कवि सम्मेलनों में गद्य विधा को उतनी पहचान नहीं मिली थी।"

साहित्यकार शैलेंद्र सागर ने कहा, "वह एक बेहद लोकप्रिय व्यंग्यकार थे। उनका जाना वाकई में दुखद है। उन्होंने जिस तरह से फिल्मों के माध्यम से अपनी प्रतिभा की पहचान कराई, वह लंबे समय तक लोगों को याद रहेगी।"

उल्लेखनीय है कि बरेली में 1934 में जन्मे कालिका प्रसाद सक्सेना, अपने प्रशंसकों के बीच केपी नाम से लोकप्रिय हुए। वह पचास के दशक में लखनऊ आए थे। सत्तर के दशक में वजीरगंज थाने के पीछे और अस्सी के दशक में रवींद्रपल्ली के पास नारायण नगर में रहे।

केपी ने आकाशवाणी, दूरदर्शन और रंगमंच के लिए 'बाप रे बाप' और 'गज फुट इंच' नाटक लिखने के अलावा दूरदर्शन के लिए धारावाहिक 'बीवी नातियों वाली' भी लिखा जो काफी प्रशंसनीय रहा। केपी के लिखे इस सीरियल को देश का पहला हिंदी का सोप ओपेरा होने का गौरव हासिल है।

यह सीरियल इतना लोकप्रिय हुआ कि पब्लिक डिमांड पर इसके आगे के एपीसोड भी उन्हें लिखने पड़े। रेलवे की नौकरी के दौरान ही उन्होंने विभागीय नाट्य प्रतियोगिताओं में धाक जमाना शुरू कर दिया था। 

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झालर, मोमबत्ती के आगे दीया 'लाचार'

तीन नवंबर को दीयों का पर्व दीपावली धूमधाम से मनाने की तैयारी है। दीपोत्सव में घर की देहरी और छत के छज्जों पर मिट्टी के बने दीये जलाने की परंपरा रही है, लेकिन आधुनिकता पसंद लोग दीये के स्थान पर झालर लाइट और रंग-बिरंगी मोमबत्तियों का उपयोग करने लगे हैं, जिससे कुम्हारों का पुश्तैनी धंधा चौपट हो रहा है।

आधुनिक ढंग से दिवाली मनाए जाने के चलते दीया और ग्वालिन बनाने वाले कुम्हारों का परंपरागत व्यवसाय पहले की अपेक्षा काफी मंदा हो चला है। फिर भी कुम्हार लक्ष्मी पूजा के लिए मां लक्ष्मी की मूर्ति, ग्वालिन दीया आदि बनाने में लगे हुए हैं।

बुजुर्ग बताते हैं कि पहले दीपावली के मौके पर नगर सहित आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में घर-घर दीप दान करने की परंपरा से कुम्हारों का हजारों रुपये का व्यवसाय होता था, लेकिन अब बाजार में उपलब्ध चीनी सामान कुम्हारों के परंपरागत व्यवसाय में सबसे बड़ा रोड़ा साबित हो रहा है। उनके बनाए मिट्टी के दीयों की मांग कम हो गई है।

बुजुर्ग दशरथ लाल मिश्रा बताते हैं कि प्राचीन परंपराओं के अनुसार दीपोत्सव के अवसर पर ग्रामीण क्षेत्रों में लोग दीया लेकर एक दूसरे के घर दीपदान करने जाते थे। इसलिए कुम्हार द्वारा बनाए मिट्टी के दीये खरीदे जाते थे, साथ ही माता लक्ष्मी की मूर्ति, ग्वालिन कुरसा आदि मिट्टी से निर्मित पूजन साम्रगी भी खरीदी जाती थी। इससे कुम्हारों का व्यवसाय भी अच्छा चलता था, पर अब इनका स्थान आधुनिक झालर और मोमबत्तियों ने ले लिया है।

सिमगा के कुंभकार संतराम, दुकालू और शिवप्रताप ने बताया कि वे पिछले कई सालों से मूर्ति व दीया आदि बना रहे हैं। उन्होंने बताया कि वे राजधानी सहित कुछ और शहरों में पसरा लगाकर व घर में भी बेचते हैं। इसी व्यवसाय से उनके परिवार का जीवन यापन होता है, लेकिन पिछले कुछ सालों से आधुनिक बाजार ने उनका धंधा चौपट कर दिया है। ग्राहकी हर साल लगातार कम होती जा रही है। इस बार उनके बनाए दिए काफी मात्रा में जमा है।

बहरहाल, प्राचीन परंपराओं के विलुप्त होते जाने से समाज में कई तरह कि परेशानियां आ रही हैं, कहीं रोजगार खत्म हो रहे हैं तो कहीं संस्कृति का क्षय हो रहा है, जरूरत है आज हमें अपनी इन संस्कृतियों को सहेज कर रखने की। 

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कम खर्च में ऐसे मनाएं पर्यावरण अनुकुल दीपावली

दीपावली का त्योहार आते ही सभी घरों में साफ-सफाई व साज सज्जा की शुरूआत हो जाती है। दिवाली का जिक्र होते ही आंखों के सामने दीपों की जगमगाहट और कानों में पटाखे की आवाज गूंज उठती है। जहां सभी चाहते हैं कि उनके घर की सजावट पारंपरिक होने के साथ साथ कुछ अलग हट कर हो, वहीं अधिक खर्च से बजट गड़बड़ा जाने की चिन्ता भी सबको सताती है। ऐसे में कम खर्चे में ही रचनात्मक तरीकों को अपनाकर घर की शोभा बढ़ाई जा सकती है।

दिवाली पर बंदनवार व रंगोली बनाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। आज बाजार में बहुत प्रकार के बंदनवार उपलब्ध है, लेकिन आप चाहें तो अपने घर पर ही बंदनवार बना सकते हैं जो बजट में कम होने के साथ आर्कषक भी लगेगी और आप अवश्य ही तारीफ की पात्र भी होंगी। पुराने जमाने में लोग अपने घरों के दरवाजों पर रंगीन फूलों, अशोक व आम के पत्तों आदि से बंदनवार सजाते थे, लेकिन इस आधुनिक युग में सबको चलन से हटकर चलना पसंद है इसलिए कुछ नए प्रकार के बंदनवार बनाए जा सकते हैं। इनमें जरी बार्डर बंदनवार बनाने के लिए कोई भी व्यक्ति अपनी पंसद के साइज के बुकरम के दोनों तरफ जरी बार्डर लगा सकता है, फिर उस पर स्टोन व मिरर चिपका दे, अंत में मोती या घुंघरू भी सुई धागे की सहायता से लगाई जा सकती है। इसे अपने दरवाजे पर लगाएं, यह डिजाइनर होने के साथ-साथ पारंपरिक लुक भी देगा।

इसी तरह सुनहरा चमकीला बंदनवार बनाने के लिए बुकरम की चौड़ी पट्टी पर फेविकोल की मदद से सुनहरा रंग चिपकाएं फिर उस पर टिशू का रिबन बनाकर डिजाइन तैयार करें। अब फूल पत्तियां चिपकाएं। फिर सुई-धागे में मोती और सितारे पिरो कर बंदनवार में जगह-जगह लगाएं। इस तरह आकर्षक बंदनवार बनाकर घर सजाया जा सकता है।

इसके अलावा दीपावली पर खास महत्व रखने वाले दीयों की जगमगाहट से दीवाली की खूबसूरती में चार चांद लग जाते हैं, पर इनके साथ कुछ नए तरीके अपनाकर और भी आकर्षक बनाया जा सकता है। बाजार में उपलब्ध मोमबत्ती जिनके साथ नीचे छोटा स्टैण्ड होता है, उन्हें ले आइए फिर घर में उपलब्ध बहुत सारे कांच के छोटे छोटे व रंगीन जार में इन्हें रखें। यह एक नया ही लुक देगा।

आप चाहें तो इन जारों को एक सपाट आईने पर समूह में सजा कर रख सकते है। कॉफी मग में बहुत सारी लंबी मोमबत्ती को काफी मात्रा में एक साथ रखें और जलाएं, यह बहुत ही खुबसूरत लगता है। बाजार में उपलब्ध डिजाइनर दीये दीवाली की चमक को ओर बढ़ा देते हैं।

घर की साज-सजावट के साथ-साथ पूजास्थल की सजावट का भी अपना ही महत्व है। अपने पूजास्थल के आस-पास के क्षेत्र को सजाने के लिए चौड़ी बार्डर वाली बांधनी दुपट्टे या सिल्क साड़ियों का प्रयोग किया जा सकता है। इन्हें झालर के रूप में टेप से चिपकाएं। यह निश्चित रूप से सजावट को नया रूप देगा।

रंगोली के बिना दीवाली की सजावट अधूरी ही लगती है। पारंपरिक रंगोली को और अधिक आकर्षक बनाने के लिए इसमें अलग-अलग रंगांे की दालों तथा फूल पत्तियों को प्रयोग कर सकते हंै जो रंगोली को पारंपरिकता के साथ-साथ आधुनिक झलक भी देगा और देखने वाला तारीफ किए बगैर नहीं रह पाएगा।

दीवाली के त्यौहार में इन सबके साथ एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि पर्यावरण और बढ़ते प्रदूषण के प्रति आप कितने जागरूक हैं। दीवाली के धूम धड़ाके में हम यह भूल जाते हैं कि इन पटाखों से हम वातावरण को कितना अधिक प्रदूषित कर रहे हैं। अगर आप दीवाली पर्यावरण के अनुकुल मनाए तो निश्चित ही आप रोशनी के इस त्यौहार पर सभी को एक संदेश देंगे कि प्रकृति की सुरक्षा हम सभी का फर्ज है। 

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लौहपुरूष सरदार वल्लभभाई पटेल की जयन्ती पर विशेष........

आज हम जिस विशाल भारत को देखते हैं उसकी कल्पना लौह पुरुष कहलाने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल के बिना शायद पूरी नहीं हो पाती| वल्लभ भाई पटेल एक ऐसे इंसान थे जिन्होंने देश के छोटे-छोटे रजवाड़ों और राजघरानों को एककर भारत में सम्मिलित किया| भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की जब भी बात होती है तो सरदार पटेल का नाम सबसे पहले ध्यान में आता है| उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति, नेतृत्व कौशल का ही कमाल था कि 600 देशी रियासतों का भारतीय संघ में विलय कर सके| भारत के प्रथम गृह मंत्री और प्रथम उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नाडियाड में उनके ननिहाल में हुआ| वह खेड़ा जिले के कारमसद में रहने वाले झावेर भाई पटेल की चौथी संतान थे| वल्लभ भिया पटेल की माता का नाम लाडबा पटेल था| बचपन से ही उनके परिवार ने उनकी शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया| प्रारंभिक शिक्षा काल में ही उन्होंने एक ऐसे अध्यापक के विरुद्ध आंदोलन खड़ाकर उन्हें सही मार्ग दिखाया जो अपने ही व्यापारिक संस्थान से पुस्तकें क्रय करने के लिए छात्रों के बाध्य करते थे। हालाँकि 16 साल में उनका विवाह कर दिया गया था पर उन्होंने अपने विवाह को अपनी पढ़ाई के रास्ते में नहीं आने दिया| 22 साल की उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और ज़िला अधिवक्ता की परीक्षा पास की, जिससे उन्हें वकालत करने की अनुमति मिली| अपनी वकालत के दौरान उन्होंने कई बार ऐसे केस लड़े जिसे दूसरे निरस और हारा हुए मानते थे| उनकी प्रभावशाली वकालत का ही कमाल था कि उनकी प्रसिद्धी दिनों-दिन बढ़ती चली गई| गम्भीर और शालीन पटेल अपने उच्चस्तरीय तौर-तरीक़ों और चुस्त अंग्रेज़ी पहनावे के लिए भी जाने जाते थे| लेकिन गांधीजी के प्रभाव में आने के बाद जैसे उनकी राह ही बदल गई|

भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने जब पूरी शक्ति से अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन चलाने का निश्चय किया तो सरदार पटेल ने अहमदाबाद में एक लाख जन-समूह के सामने लोकल बोर्ड के मैदान में इस आंदोलन की रूपरेखा समझाई। लौह पुरुष कहे जाने वाले सरदार बल्लभ भाई पटेल ने पत्रकार परिषद में कहा, ऐसा समय फिर नही आएगा, आप मन में भय न रखें। चौपाटी पर दिए गए भाषण में कहा, आपको यही समझकर यह लड़ाई छेड़नी है कि महात्मा गांधी और अन्य नेताओं को गिरफ्तार कर लिया जाएगा तो आप न भूलें कि आपके हाथ में शक्ति है कि 24 घंटे में ब्रिटिश सरकार का शासन खत्म हो जाएगा।

सितंबर, 1946 में जब पंडित जवाहर लाल नेहरु की अस्थाई राष्ट्रीय सराकर बनी तो सरदार पटेल को गृहमंत्री नियुक्त किया गया। अत्यधिक दूरदर्शी होने के कारण भारत मे विभाजन के पक्ष में पटेल का स्पष्ट मत था कि जहरवाद फैलने से पूर्व गले-से अंग को ऑपरेशन कर कटवा देना चाहिए। नवंबर,1947 में संविधान परिषद की बैठक में उन्होंने अपने इस कथन को स्पष्ट किया, मैंने विभाजन को अंतिम उपाय मे रूप में तब स्वीकार किया था जब संपूर्ण भारत के हमारे हाथ से निकल जाने की संभावना हो गई थी। मैंने यह भी शर्त रखी कि देशी राज्यों के संबंध में ब्रिटेन हस्तक्षेप नहीं करेगा। इस समस्या को हम सुलझाएंगे। और निश्चय ही देशी राज्यों के एकीकरण की समस्या को पटेल ने बिना खून-खराबे के बड़ी खूबी से हल किया, देशी राज्यों में राजकोट, जूनागढ़, वहालपुर, बड़ौदा, कश्मीर, हैदराबाद को भारतीय महासंघ में सम्मिलित करना में सरदार को कई पेचीदगियों का सामना करना पड़ा।

भारतीय नागरिक सेवाओं (आई.सी.एस.) का भारतीयकरण कर इसे भारतीय प्रशासनिक सेवाएं (आई.ए.एस.) में परिवर्तित करना सरदार पटेल के प्रयासो का ही परिणाम है। यदि सरदार पटेल को कुछ समय और मिलता तो संभवत: नौकरशाही का पूर्ण कायाकल्प हो जाता। उनके मन में किसानो एवं मजदूरों के लिये असीम श्रद्धा थी। वल्लभभाई पटेल ने किसानों एवं मजदूरों की कठिनाइयों पर अन्तर्वेदना प्रकट करते हुए कहा:-

” दुनिया का आधार किसान और मजदूर पर हैं। फिर भी सबसे ज्यादा जुल्म कोई सहता है, तो यह दोनों ही सहते हैं। क्योंकि ये दोनों बेजुबान होकर अत्याचार सहन करते हैं। मैं किसान हूँ, किसानों के दिल में घुस सकता हूँ, इसलिए उन्हें समझता हूँ कि उनके दुख का कारण यही है कि वे हताश हो गये हैं। और यह मानने लगे हैं कि इतनी बड़ी हुकूमत के विरुद्ध क्या हो सकता है ? सरकार के नाम पर एक चपरासी आकर उन्हें धमका जाता है, गालियाँ दे जाता है और बेगार करा लेता है। “

किसानों की दयनीय स्थिति से वे कितने दुखी थे इसका वर्णन करते हुए पटेल ने कहा: -

“किसान डरकर दुख उठाए और जालिम की लातें खाये, इससे मुझे शर्म आती है और मैं सोचता हूँ कि किसानों को गरीब और कमजोर न रहने देकर सीधे खड़े करूँ और ऊँचा सिर करके चलने वाला बना दूँ। इतना करके मरूँगा तो अपना जीवन सफल समझूँगा”

कहते हैं कि यदि सरदार बल्लभ भाई पटेल ने जिद्द नहीं की होती तो ‘रणछोड़’ राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति पद के लिए तैयार ही नहीं होते। जब सरदार वल्‍लभभाई पटेल अहमदाबाद म्‍युनिसिपेलिटी के अध्‍यक्ष थे तब उन्‍होंने बाल गंगाघर तिलक का बुत अहमदाबाद के विक्‍टोरिया गार्डन में विक्‍टोरिया के स्‍तूप के समान्‍तर लगवाया था। जिस पर गाँधी जी ने कहा था कि- “सरदार पटेल के आने के साथ ही अहमदाबाद म्‍युनिसिपेलिटी में एक नयी ताकत आयी है। मैं सरदार पटेल को तिलक का बुत स्‍थापित करने की हिम्‍मत बताने के लिये उन्हे अभिनन्‍दन देता हूं।”

सरदार पटेल को कई बार जाना पड़ा जेल-

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1929 के लाहौर अधिवेशन में पटेल, गांधी के बाद अध्यक्ष पद के दूसरे उम्मीदवार थे। गांधी ने स्वाधीनता के प्रस्ताव को स्वीकृत होने से रोकने के प्रयास में अध्यक्ष पद की दावेदारी छोड़ दी और पटेल पर भी नाम वापस लेने के लिए दबाव डाला। इसका प्रमुख कारण मुसलमानों के प्रति पटेल की हठधर्मिता थी। अंतत: जवाहरलाल नेहरू अध्यक्ष बने। 1930 में नमक सत्याग्रह के दौरान पटेल को तीन महीने की जेल हुई। मार्च 1931 में पटेल ने इंडियन नेशनल कांग्रेस के करांची अधिवेशन की अध्यक्षता की। जनवरी 1932 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। जुलाई 1934 में वह रिहा हुए और 1937 के चुनावों में उन्होंने कांग्रेज़ पार्टी के संगठन को व्यवस्थित किया। 1937-38 में वह कांग्रेस के अध्यक्ष पद के प्रमुख दावेदार थे। एक बार फिर गांधी के दबाव में पटेल को अपना नाम वापस लेना पड़ा और जवाहर लाल नेहरू निर्वाचित हुए। अक्टूबर 1940 में कांग्रेस के अन्य नेताओं के साथ पटेल भी गिरफ़्तार हुए और अगस्त 1941 में रिहा हुए। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, जब जापानी हमले की आशंका हुई, तो पटेल ने गांधी की अहिंसा की नीति को अव्यावहारिक बताकर ख़ारिज कर दिया। सत्ता के हस्तान्तरण के मुद्दे पर भी पटेल का गांधी से इस बात पर मतभेद था कि उपमहाद्वीप का हिन्दू भारत तथा मुस्लिम पाकिस्तान के रूप में विभाजन अपरिहार्य है। पटेल ने ज़ोर दिया कि पाकिस्तान दे देना भारत के हित में है।

माना जाता है पटेल कश्मीर को भी बिना शर्त भारत से जोड़ना चाहते थे पर जवाहर लाला नेहरु ने हस्तक्षेप कर कश्मीर को विशेष दर्जा दे दिया| नेहरू ने कश्मीर के मुद्दे को यह कहकर अपने पास रख लिया कि यह समस्या एक अंतरराष्ट्रीय समस्या है| यदि कश्मीर का निर्णय नेहरू की बजाय पटेल के हाथ में होता तो कश्मीर आज भारत के लिए समस्या नहीं बल्कि गौरव का विषय होता| 15 दिसंबर 1950 को प्रातःकाल 9.37 पर इस महापुरुष का 76 वर्ष की आयु में निधन हो गया| 

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विश्व पटल पर भारत को पहचान दिलाने वाली महिला प्रधानमंत्री की पुण्यतिथि पर विशेष......

प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आज 29वीं पुण्यतिथि है| राजनीति के प्रभावशाली परिवार में 19 नवंबर 1917 को जन्मी इंदिरा प्रियदर्शिनी गाँधी जिन्हें सभी इंदिरा गांधी के नाम से जानते हैं, ने देश की पहली और एकमात्र प्रधानमंत्री बनने का गौरव अपने नाम किया था| इंदिरा गांधी ने लगातार तीन बार इस पद को सुशोभित किया| इंदिरा ने जब फिरोज़ गाँधी से विवाह किया तब उन्हें 'गांधी' उपनाम मिला था|

उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी छोटी लेकिन महत्वपूर्ण भूमिका निभाई| इस दौरान उन्होंने अपने साहस का परिचय भी दिया| उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पुलिस की नज़र से बचा कर अपने पिता के घर से एक महत्वपूर्ण दस्तावेज, जिसमें 1930 दशक के शुरुआत की एक प्रमुख क्रांतिकारी पहल की योजना थी, को अपने स्कूलबैग के माध्यम से बाहर निकाल लाई थीं|

इंदिरा गांधी ने 1950 के दशक में भारत के पहले प्रधानमंत्री और अपने पिता जवाहर लाल नेहरु के कार्यकाल के दौरान गैरसरकारी तौर पर एक निजी सहायक के रूप में काम किया था| अपने पिता की मृत्यु के बाद सन् 1964 में वे राज्यसभा सदस्य के रूप में चयनित हुईं| इससे कुछ कदम आगे बढ़ते हुए लालबहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में उन्होंने सूचना और प्रसारण मंत्रालय का कार्यभार सम्भाला| एक राजनैतिक परिवार में जन्म लेने के कारण वह शुरुआत से ही राजनीति की तरफ आकर्षित थीं|

लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद तत्कालीन कॉंग्रेस पार्टी अध्यक्ष के. कामराज ने इंदिरा को प्रधानमंत्री बनाने में निर्णायक योगदान दिया| इंदिरा ने सबकी उम्मीदों पर खरा उतरते हुए जीत हासिल की और जनमानस में अपनी ख़ास छाप छोड़ी| अपने चमत्कारी व्यक्तित्व से वह भारतीय राजनीति में जननायक के रूप में उभरीं| इंदिरा ने महिलाओं को कमज़ोर समझने वाली उन सभी धारणाओं को चकनाचूर किया, जिसमें पुरुषप्रधान समाज ने महिला को कमज़ोर साबित करने की कोशिश की थी| उन्होंने सही मायने में 'महिला सशक्तिकरण' को सबके समक्ष प्रदर्शित किया|

इंदिरा ने ऐसे समय में भारतीय राजनीति में कदम रखा जब देश को एक सही नेता और नेतृत्व की ज़रूरत थी| उस समय इंदिरा गांधी रुपी इस सितारे ने भारतीय राजनीति को अपनी चमक से प्रकाशमय कर दिया| वह नेतृत्व संकट से जूझ रहे देश के लिए 'संकटमोचन' के रूप में सामने आयीं| शुरू में ‘गूंगी गुड़िया’ कहलाने वाली इंदिरा गाँधी ने अपने चमत्कारिक नेतृत्व से न केवल देश को कुशल नेतृत्व प्रदान किया बल्कि विश्व मंच पर भी भारत की धाक जमा दी|

इंदिरा ने जनप्रियता के माध्यम से विरोधियों के ऊपर हावी होने की योग्यता दर्शायी| वह अधिक बामवर्गी आर्थिक नीतियाँ लायीं और कृषि उत्पादकता को बढ़ावा दिया| इंदिरा गाँधी न सिर्फ एक कुशल प्रशासक थीं बल्कि उनके नेतृत्व में भारत ने विश्व पटल पर अपनी छाप छोड़ी| देश में परमाणु कार्यक्रम और हरित क्रांति लाने का श्रेय इंदिरा गांधी को ही जाता है| उन्होंने आधुनिक भारत की नीव रखी, जिसने विश्व पटल पर देश को एक नयी पहचान दिलाई|

भारत ने परमाणु शक्ति के रूप में उभरते हुए साल 1974 में राजस्थान के रेगिस्तान में बसे गांव पोखरण में 'स्माइलिंग बुद्धा' के नाम से सफलतापूर्वक एक भूमिगत परमाणु परीक्षण किया| शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परीक्षण का वर्णन करते हुए भारत दुनिया की सबसे नवीनतम परमाणु शक्तिधर बन गया| 1960 में उन्होंने संगठित हरित क्रांति गहन कृषि जिला कार्यक्रम (आईएडीपी) की शुरुआत की| इसका उद्देश्य देश में चल रही खाद्द्यान्न की कमी से निपटना था|

हालांकि, इंदिरा गाँधी के ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे| इसके बाद 26 जून 1975 को संविधान की धारा- 352 के प्रावधानानुसार आपातकालीन की घोषणा उनके राजनितिक जीवन का सबसे गलत कदम साबित हुआ और देश में उनके लिए नाराज़गी फ़ैल गयी| इसके बाद साल 1981 में ओपरेशन ब्लू स्टार' उनके जीवन की सबसे बड़ी गलती साबित हुई| सन् 1980 में सत्ता में लौटने के बाद वह अधिकतर पंजाब के अलगाववादियों के साथ बढ़ते हुए द्वंद्व में उलझी रहीं| सन् 1984 में अपने ही अंगरक्षकों द्वारा उनकी राजनैतिक हत्या कर दी गई| 

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धनतेरस कल, इस तरह करें कुबेर महाराज को प्रसन्न

उत्तरी भारत में कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस का पर्व पूरी श्रद्धा व विश्वास से मनाया जाता है| इस बार धन तेरस कार्तिकमास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी यानि की 1 नवम्बर दिन शुक्रवार को है| धनवन्तरी के अलावा इस दिन, देवी लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की भी पूजा करने की मान्यता है| धनतेरस के दिन कुबेर के अलावा यमदेव को भी दीपदान किया जाता है| यमदेव की पूजा करने के विषय में एक मान्यता है कि इस दिन यमदेव की पूजा करने से घर में असमय मृ्त्यु का भय नहीं रहता है| पूजा करने के बाद घर के मुख्य द्वार पर दक्षिण दिशा की ओर मुख वाला दीपक जिसमें कुछ पैसा और कौड़ी डालकर पूरी रात्रि जलाना चाहिए|

धनतेरस पर्व का महत्व-

शास्त्रों के अनुसार, धन त्रयोदशी के दिन देव धनवंतरी देव का जन्म हुआ था| धनवंतरी देव, देवताओं के चिकित्सकों के देव है| यही कारण है कि इस दिन चिकित्सा जगत में बडी-बडी योजनाएं प्रारम्भ की जाती है| धनतेरस के दिन नये उपहार, सिक्का, चाँदी, बर्तन व गहनों की खरीदारी करना शुभ माना जाता है| लक्ष्मी जी व गणेश जी की चांदी की प्रतिमाओं को इस दिन घर लाना, घर- कार्यालय, व्यापारिक संस्थाओं में धन, सफलता व उन्नति को बढाता है| इस दिन भगवान धनवन्तरी समुद्र से कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिये इस दिन खास तौर से बर्तनों की खरीदारी की जाती है| ऐसी मान्यता है कि इस दिन सूखे धनिया के बीज खरीद कर घर में रखना भी परिवार की धन संपदा में वृ्द्धि करता है| दीपावली के दिन इन बीजों को बाग, खेत खलिहानों में लागाया जाता है ये बीज व्यक्ति की उन्नति व धन वृ्द्धि के प्रतीक होते है|

इस दिन शुभ मुहूर्त में पूजन करने के साथ- साथ सात धान्यों (गेंहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर) की पूजा की जाती है| सात धान्यों के साथ ही पूजन सामग्री में विशेष रुप से स्वर्णपुष्पा के पुष्प से भगवती का पूजन करना लाभकारी रहता है| इस दिन पूजा में भोग लगाने के लिये नैवेद्ध के रुप में श्वेत मिष्ठान का प्रयोग किया जाता है, इसके साथ ही इस दिन स्थिर लक्ष्मी की भी पूजा करने का विशेष महत्व है|

धनतेरस के दिन कुबेर को प्रसन्न करने का मंत्र-

शुभ मुहूर्त में धनतेरस के दिन धूप, दीप, नैवैद्ध से पूजन करने के बाद निम्न मंत्र का जाप करें- इस मंत्र का जाप करने से भगवन धनवन्तरी बहुत खुश होते हैं, जिससे धन और वैभव की प्राप्ति होती है|

'यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन-धान्य अधिपतये
धन-धान्य समृद्धि मे देहि दापय स्वाहा ।'

धनतेरस की कथा-

एक किवदन्ती के अनुसार एक राज्य में एक राजा था, कई वर्षों तक प्रतिक्षा करने के बाद, उसके यहां पुत्र संतान कि प्राप्ति हुई| राजा के पुत्र के बारे में किसी ज्योतिषी ने यह कहा कि, बालक का विवाह जिस दिन भी होगा, उसके चार दिन बाद ही इसकी मृ्त्यु हो जायेगी|

ज्योतिषी की यह बात सुनकर राजा को बेहद दु:ख हुआ, ओर ऎसी घटना से बचने के लिये उसने राजकुमार को ऎसी जगह पर भेज दिया, जहां आस-पास कोई स्त्री न रहती हो, एक दिन वहां से एक राजकुमारी गुजरी, राजकुमार और राजकुमारी दोनों ने एक दूसरे को देखा, दोनों एक दूसरे को देख कर मोहित हो गये, और उन्होने आपस में विवाह कर लिया|

ज्योतिषी की भविष्यवाणी के अनुसार ठीक चार दिन बाद यमदूत राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचें| यमदूत को देख कर राजकुमार की पत्नी विलाप करने लगी| यह देख यमदूत ने यमराज से विनती की और कहा की इसके प्राण बचाने का कोई उपाय बताईयें, इस पर यमराज ने कहा की जो प्राणी कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की त्रयोदशी की रात में मेरा पूजन करके दीप माला से दक्षिण दिशा की ओर मुंह वाला दीपक जलायेगा, उसे कभी अकाल मृ्त्यु का भय नहीं रहेगा, तभी से इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाये जाते है|

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