उप्र की जेलों में कैदियों की सत्ता!

उत्तर प्रदेश की जेलों में जहां संख्या से लगभग दोगुना कैदी बंद हैं, वहीं इन जेलों को संभालने के लिए जेलरों की संख्या उतनी भी नहीं है जितनी होनी चाहिए। लोग तो यह भी कहते हैं कि जेलों में 'कैदियों की सत्ता' है। कर्मचारियों की कमी ने प्रदेश की जेलों में कैदियों व जेल के कर्मचारियों की संख्या के अनुपात को बिगाड़ दिया है, जिसके चलते अब जेलों में अब कैदी ज्यादा और उन पर नजर रखने वाले कम हो गए हैं। 

सूत्रों का कहना है कि कैदी इसका बड़ा फायदा उठा रहे हैं। जेलों में कैदियों की संख्या निर्धारित संख्या से दोगुना है। यही वजह है कि जेलों में अब अराजकता और निरंकुशता बढ़ गई है। दबी जबान पर लोग यह कहने से गुरेज नहीं कर रहे कि जेल में 'कैदियों की सत्ता' है। 

बताया जाता है कि प्रदेश में केवल उन्हीं जेलों में कर्मचारियों की कमी नहीं है जिनकी गिनती खास जेलों में की जाती है। वैसे तो प्रदेश में 65 जेल हैं जिनमें जेलरों के 87 पद हैं। लेकिन इनमें से 30 पद आजकल खाली पड़े हैं। यही कारण है कि ऐटा उरई, हरदोई, प्रतापगढ़, मिजार्पुर फतेहपुर और गाजीपुर जैसी जेलों में जेलर नहीं हैं। जहां जेलों में जेलरों की कमी है वहीं इन जेलों में कैदी ठूंस-ठूंस कर भरे हुए हैं। 

यही नहीं, जेलरों की कमी से जूझ रहे विभाग के दो जेलरों आलोक सिंह और शशिकांत को प्रदेश के कारागार मंत्री राजेंद्र चौधरी और राज्य मंत्री अभिषेक मिश्र के घर तैनात किया गया है। इस कमी को पूरा करने के लिए हालांकि, काफी समय से 3000 लोगों की भर्ती की बात कही जा रही है। अगर देखा जाए तो पुलिस विभाग ऊपर से लेकर नीचे तक अपने बड़े अधिकारियों की कमी से जूझ रहा है। 

प्रदेश में एडीजी का एक पद रिक्त पड़ा है। वहीं डीआईजी के चार पदों पर किसी अधिकारी को नहीं बैठाया गया है। इसी तरह जेल अधीक्षक के 64 पदों में से 28 पद रिक्त चल रहे हैं और एक निलंबित है। डिप्टी जेलरों के वैसे तो 448 पद हैं, लेकिन लगभग आधे 268 पद खाली हैं और सात निलंबित हैं। बंदी रक्षक व प्रधान बंदी रक्षकों के 2029 पद रिक्त है। कैदियों की सेहत की बात की जाए तो जेलों में चिकित्सकों के वैसे तो 134 पद हैं जिनमें से 46 पद खाली हैं। इसी प्रकार 134 फार्मेसिस्ट पदों में से 52 रिक्त हैं। 

कारागार मंत्री राजेंद्र चौधरी भी मानते हैं कि प्रदेश की जेलों में बंदी रक्षकों और डिप्टी जेलरों की कमी है। उन्होंने बताया कि जेलों में बंदी रक्षकों व डिप्टी जेलरों की कमी है। इस कमी को पूरा करने व नई भर्ती के लिए एक प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेज दिया गया है। 

उन्होंने कहा कि प्रदेश की जेलों में 48 हजार कैदियों के लिए स्थान है, जहां लगभग 84,000 कैदी बंद हैं। जेलों में कैदियों की निर्धारित संख्या से दोगुना कैदियों के होने की समस्या नए जिले बनने के कारण खड़ी हुई है, जिसे दूर करने के लिए सरकार एक दर्जन नई जेले बनवा रही है। उन्होंने कहा कि 2014 तक जेलों से जुड़ी हर समस्या हल कर ली जाएगी।

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गन्ना भुगतान की भेंट चढ़ा एक और किसान, प्रशासन बता रहा पारिवारिक कलह

प्रदेश सरकार की दबंगर्इ के चलते जनपद खीरी मे गन्ना किसानो द्वारा बकाया भुगतान को लेकर आत्महत्या करने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। जनपद के थाना भीरा क्षेत्र के बस्तौली गांव मे किसान सत्यपाल की आत्महत्या का मामला अभी ठण्डा भी नहीं हो पाया था कि थाना नीमगांव क्षेत्र मे एक और गन्ना किसान ने फांसी लगाकर अपनी जान गंवा दी। 

मिली जानकारी के मुताबिक थाना नीमगांव क्षेत्र के ग्राम पकरिया निवासी 45 वर्षीय छोटेलाल पुत्र मिश्रीलाल का क्षेत्र की कुम्भी चीनी मिल पर पिछले वर्ष का लगभग तीस हजार रुपया बाकी था। इस वर्ष भी उसने अपनी छह बीघा खेती मे गन्ना बोया था, छोटेलाल की मंशा थी कि पिछली बार न सही लेकिन इस बार चीनी मिल चलने पर भुगतान मिल जायेगा लेकिन प्रदेश सरकार की उदासीनता के चलते अभी तक चीनी मिले चालू नहीं हो सकी है। तनावग्रस्त गन्ना किसान छोटेलाल कर्ज के बोझ से दब रहा था, लगातार कर्ज अदा करने के बन रहे दबाव के कारण छोटेलाल ने फांसी लगाकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। बताया जाता है कि छोटे लाल सुबह ही अपने घर से निकल गया और दोपहर बाद ग्रामीणों ने रामेश्वर के खेत मे लगे आम के पेड़ से उसका शव फांसी पर झूलता पाया। 

शव मिलने की सूचना पूरे क्षेत्र मे आग की तरह फैली और गन्ना किसान की आत्महत्या की सनसनीखेज घटना से जिला प्रशासन भी हिल गया। आनन फानन मे सूचना पाकर मौके पर पहुंंची नीमगांव पुलिस ने शव को अन्त्य परीक्षण हेतु जिला मुख्यालय भेज दिया। किसान की आत्महत्या की सूचना जिले मे सूखे पत्तो मे लगी आग की तरह फैली और नेता भी अपनी राजनीतिक रोटिया सेेंकने के लिए मौके पर पहुंचना शुरु हो गये। इधर जिला प्रशासन इस घटना को यह कहकर टरकाने का प्रयास कर रहा है कि किसान ने गन्ना भुगतान के कारण आत्महत्या नहीं की है उसने पारिवारिक कलह के चलते आत्महत्या की है।

जनपद के अपर जिलाधिकारी विधा शंकर सिंह का कहना है कि मृतक के नाम छ:-सात बीघा खेती है, मृतक पर कोर्इ कर्जा नहीं है तथा न ही कुम्भी चीनी मिल पर उसका गन्ना भुगतान बकाया है। एडीएम साहब इस सम्बन्ध मे मीडिया को जारी एक प्रेस विज्ञपित मे पेरार्इ सत्र 2012-13 मे उसको प्राप्त गन्ना पर्चियो पर भुगतान किये जाने का प्रमाण उसके खाता संख्या व प्राप्त रकम को आंकड़ों सहित प्रस्तुत कर रहे है। 

प्रशासन भले ही गन्ना किसान द्वारा की गर्इ आत्महत्या को पारिवारिक कलह बता रहा हो लेकिन मृतक छोटेलाल की प्राथमिक विधालय मे रसोइयां पत्नी तथा दो लड़के व तीन लड़कियो पर से छत्रछाया हट गर्इ है।

मुंबई: 8 माह, 229 रेप, 8 गैंगरेप

देश की व्यवसायिक राजधानी मुम्बई में वर्ष 2013 के पहले आठ माह में बलात्कार के 229 और सामूहिक दुष्कर्म के आठ मामले सामने आए जिनमें अधिकतर मामलों में पीड़िता आरोपी को जानती थी और उनमें से ज्यादातर ‘मित्र और प्रेमी’ या पड़ोसी थे।

सामाजिक कार्यकर्ता अनिल गलगली ने सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआई) के तहत ये सूचनाएं जुटायी हैं जिससे पता चला कि इस साल अगस्त तक कम से कम बलात्कार के 229 और सामूहिक बलात्कार के 8 मामले सामने आए। सामूहिक बलात्कार के मामलों में शक्ति मिल में हुई सामूहिक बलात्कार की दो घटनाएं शामिल हैं जिन्होंने देश को हिला दिया था।

सामाजिक कार्यकर्त्ता ने कहा है कि वर्ष के अंत तक इन मामलों की संख्या और बढ़ जाएगी क्योंकि केवल नवंबर में ही उपनगरीय दिनदोशी और बोरीवली इलाकों में नाबालिग लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार की दो घटनाएं हुईं। पिछले साल यहां बलात्कार के 223 मामले और सामूहिक बलात्कार के 8 मामले सामने आए थे। जबकि 2011 में बलात्कार के 211 और सामूहिक बलात्कार के 9 मामले दर्ज किए गए थे। इससे पहले 2010 में कुल 188 बलात्कार के मामले जबकि सात सामूहिक बलात्कार के मामलों का पता चला था।

मुम्बई में हो रही इस तरह की घटनों को लेकर बॉलीवुड अभिनेत्रियां भी अपने आप को असुरक्षित पाती हैं| अभी हाल ही में एक फ़ोटो जर्नलिस्ट के साथ हुए बलात्कार के मामले में बॉलीवुड अभिनेत्रियों ने कुछ इस तरह अपनी प्रतिक्रिया दी थी| बॉलीवुड अभिनेत्री प्रीति जिंटा ने कहा था कि हमें उस डर और अनिश्चितता के माहौल को दूर करने के लिए उपचारात्मक समाधान निकालने होंगे, जिनका महिलाओं को सामना करना पड़ता है। नहीं तो हम और अधिक आत्मकेंद्रित हो जाएंगे। वहीँ, स्वरा भास्कर का कहना था कि क्या मैं मुंबई में सुरक्षित महसूस करती हूं? हां या ना। हां, इसलिए चूंकि यहां दिन या रात किसी भी समय बाहर निकलना आसान है। और ना इसलिए क्योंकि मुंबई में मुझसे कई बार छेड़छाड़ हो चुकी है। मुंबई भी देश के अन्य राज्यों की जितनी ही असुरक्षित है।

वहीँ, सोफी चौधरी ने कहा था कि जब मैं अपनी मां के साथ लंदन से मुंबई आई तो हमने इसे लड़कियों के लिए विश्व के सुरक्षित शहरों में से एक पाया था। लेकिन अब ऐसा नहीं रहा। अगर आप अकेली लड़की हैं तो यहां आपको लगातार अपनी चौकीदारी करनी पड़ेगी। जबकि ऋचा चड्ढा का कहना था कि मुझे स्वीकार करना पड़ेगा कि यहां हमेशा सुरक्षित महसूस नहीं करती हूं। लेकिन क्या मैं किसी अन्य शहर में सुरक्षित हूं?

इसके अलावा अमृता राव ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि यह शहर कामकाजी महिलाओं के लिए कतई सुरक्षित नहीं है। जब मैं शूटिंग पर होती हूं तो स्वयं को अनचाहे लोगों से बचाने के लिए अंगरक्षक रखने पड़ते हैं। मनीषा लांबा का कहना था कि यह पेचीदा सवाल है। मैं मुंबई में देश के अन्य शहरों जितना ही सुरक्षित महसूस करती हूं। तनीशा चटर्जी ने कहा था, "मैं बीते पांच वर्षो की तुलना में अब कम सुरक्षित अनुभव करती हूं।" शिल्पा शुक्ला का कहना था कि मैं जब और जहां भी हूं स्वयं को सुरक्षित महसूस करती हूं।

किशोरी का यौन शोषण करने वाले सीओ का तबादला, जांच शुरू

बाराबंकी| नौकरी का झांसा देकर किशोरी का यौन शोषण करने वाले आरोपी सीओ मुसाफिरखाना विपुल कुमार श्रीवास्तव का तबादला अपराध साखा अपराध अनुसंधान विभाग (सीबीसीआइडी) लखनऊ के लिए कर दिया गया। इसके अलावा पीड़िता को धमकाने में कोतवाली प्रभारी मुसाफिरखाना मनोज तिवारी व सिपाही अरुण तिवारी को भी लाइन हाजिर कर दिया गया है। वहीं, दूसरी ओर किशोरी की मेडिकल परीक्षण रिपोर्ट आ गई है, जिसमें दुष्कर्म की पुष्टि हुई है। 

वहीं इस मामले को लेकर पीड़ित लड़की के पिता ने बताया कि सीओ विपुल कुमार श्रीवास्तव ने इस मामले को दबाने के लिए उन्हें एक सिपाही के माध्यम से दो लाख रुपये देने की पेशकश की थी जिसे उसने ठुकरा दिया था। उसके बाद मुसाफिरखाना कोतवाली प्रभारी मनोज तिवारी ने सुलह को पीड़िता के पिता को फर्जी मुकदमे में फंसा जेल भेजने, जान से मारने की धमकी दी थी।

वहीँ पुलिस सूत्रों से खबर मिल रही है कि मुसाफिरखाना एसओ मनोज तिवारी के स्थान पर एसपी हीरालाल ने जायस कोतवाली के एसआई जेपी चौबे को मुसाफिरखाना कोतवाली का प्रभार सौंपा है। वहीं कमरौली एसओ एसके यादव को मोहनगंज थाने की कमान दी गई है। जगदीशपुर के एसआई एपी तिवारी को कमरौली का एसओ बनाया गया है।

शेर के बच्चे की तरह निर्भीक होकर फांसी के तख्ते की ओर बढ़ा था यह सेनानी

भारतीय स्वाधीनता संग्राम की क्रांतिकारी धारा में त्याग और बलिदान जज्बा पैदा करने और देश में आजादी के लिए जान न्योछावर करने का साहस भरने वाले प्रथम सेनानी खुदीराम बोस माने जाते हैं। उनकी शाहदत ने हिंदुस्तानियों में आजादी की जो ललक पैदा की उससे स्वाधीनता आंदोलन को नया बल मिला। खुदीराम बोस मात्र 19 साल की उम्र में देश के लिए फांसी के फंदे पर झूल गए थे। बंगाल में मिदनापुर जिले के हबीबपुर गांव में त्रैलोक्य नाथ बोस के यहां 3 दिसंबर 1889 ई. को जन्म लेने वाले खुदीराम बोस जब बहुत छोटे थे तभी उनके माता-पिता का निधन हो गया था। उनकी बड़ी बहन ने उनका लालन-पालन किया था। 

बंगाल विभाजन (1905 ई.) के बाद खुदीराम बोस स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे। सत्येन बोस के नेतृत्व में खुदीराम बोस ने अपना क्रांतिकारी जीवन शुरू किया था। खुदीराम बोस राजनीतिक गतिविधियों में स्कूल के दिनों से ही भाग लेने लगे थे। वे जलसे जलूसों में शामिल होते थे तथा अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ नारे लगाते थे। उन्होंने नौवीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी और सिर पर कफन बांधकर जंग-ए-आजादी में कूद पड़े।

वे रिवोल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बने और वंदेमातरम पंफलेट वितरित करने में बड़ी भूमिका निभाई। पुलिस ने 28 फरवरी, सन 1906 ई. को सोनार बंगला नामक एक इश्तहार बांटते हुए बोस को दबोच लिया। लेकिन बोस पुलिस के शिकंजे से भागने में सफल रहे। 16 मई, सन 1906 ई. को एक बार फिर पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया, लेकिन उनकी आयु कम होने के कारण उन्हें चेतावनी देकर छोड़ दिया गया था। 6 दिसंबर, 1907 को बंगाल के नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर किए गए बम विस्फोट की घटना में भी बोस भी शामिल थे। 

कलकत्ता (अब कोलकाता) में किंग्सफोर्ड चीफ प्रेंसीडेसी मजिस्ट्रेट बहुत सख्त और क्रूर अधिकारी था। वह अधिकारी देश भक्तों, विशेषकर क्रांतिकारियों को बहुत तंग करता था। उन पर वह कई तरह के अत्याचार करता। क्रांतिकारियों ने उसे मार डालने की ठान ली थी। युगांतर क्रांतिकारी दल के नेता वीरेंद्र कुमार घोष ने घोषणा की कि किंग्सफोर्ड को मुजफ्फरपुर (बिहार) में ही मारा जाएगा। इस काम के लिए खुदीराम बोस तथा प्रपुल्ल चाकी को चुना गया।

ये दोनों क्रांतिकारी बहुत सूझबूझ वाले थे। इनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। देश भक्तों को तंग करने वालों को मार डालने का काम उन्हें सौंपा गया था। एक दिन वे दोनों मुजफ्फरपुर पहुंच गए। वहीं एक धर्मशाला में वे आठ दिन रहे। इस दौरान उन्होंने किंग्सफोर्ड की दिनचर्या तथा गतिविधियों पर पूरी नजर रखी। उनके बंगले के पास ही क्लब था। अंग्रेजी अधिकारी और उनके परिवार के लोग शाम को वहां जाते थे।

30 अप्रैल, 1908 की शाम किंग्स फोर्ड और उसकी पत्नी क्लब में पहुंचे। रात्रि के साढ़े आठ बजे मिसेज कैनेडी और उसकी बेटी अपनी बग्घी में बैठकर क्लब से घर की तरफ आ रहे थे। उनकी बग्घी का रंग लाल था और वह बिल्कुल किंग्सफोर्ड की बग्घी से मिलती-जुलती थी। खुदीराम बोस तथा उसके साथी ने किंग्सफोर्ड की बग्घी समझकर उस पर बम फेंक दिया जिससे उसमें सवार मां-बेटी की मौत हो गई। क्रांतिकारी इस विश्वास से भाग निकले कि किंग्सफोर्ड को मारने में वे सफल हो गए हैं।

खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चंद 25 मील तक भागने के बाद एक रेलवे स्टेशन पर पहुंचे। खुदीराम बोस पर पुलिस को संदेह हो गया और पूसा रोड रेलवे स्टेशन (अब यह स्टेशन खुदीराम बोस के नाम पर) पर उन्हें घेर लिया। अपने को घिरा देख प्रफुल्ल चंद ने खुद को गोली मारकर शहादत दे दी पर खुदीराम पकड़े गए। उनके मन में तनिक भी भय नहीं था। खुदीराम बोस को जेल में डाल दिया गया और उन पर हत्या का मुकदमा चला। अपने बयान में स्वीकार किया कि उन्होंने तो किंग्सफोर्ड को मारने का प्रयास किया था। लेकिन, इस बात पर बहुत अफसोस है कि निर्दोष कैनेडी तथा उनकी बेटी गलती से मारे गए।

मुकदमा केवल पांच दिन चला। 8 जून, 1908 को उन्हें अदालत में पेश किया गया और 13 जून को उन्हें प्राण दंड की सजा सुनाई गई। 11 अगस्त, 1908 को इस वीर क्रांतिकारी को फांसी पर चढ़ा दिया गया। उन्होंने अपना जीवन देश की आजादी के लिए न्यौछावर कर दिया

मुजफ्फरपुर जेल में जिस मजिस्ट्रेट ने उन्हें फांसी पर लटकाने का आदेश सुनाया था, उसने बाद में बताया कि खुदीराम बोस एक शेर के बच्चे की तरह निर्भीक होकर फांसी के तख्ते की ओर बढ़ा था। शहादत के बाद खुदीराम इतने लोकप्रिय हो गए कि बंगाल के जुलाहे उनके नाम की एक खास किस्म की धोती बुनने लगे। खुदीराम बोस को भारत की स्वतंत्रता के लिए संगठित क्रांतिकारी आंदोलन का प्रथम शहीद माना जाता है। अपनी निर्भीकता और मृत्यु तक को सोत्साह वरण करने के लिए वे घर-घर में श्रद्धापूर्वक याद किए जाते हैं|
आपको सत-सत नमन  

नौसेना दिवस पर विशेष: गौरवमयी है भारतीय नौसेना का इतिहास

भारतीय जल सीमा की सुरक्षा की जिम्मेदारी निभा रही भारतीय नौसेना की शुरुआत वैसे तो 5 सितंबर 1612 को हुई थी, जब ईस्ट इंडिया कंपनी के युद्धपोतों का पहला बेड़ा सूरत बंदरगाह पर पहुंचा था और 1934 में 'रॉयल इंडियन नेवी' की स्थापना हुई थी, लेकिन हर साल चार दिसंबर को 'भारतीय नौसेना दिवस' मनाए जाने की वजह इसके गौरवमयी इतिहास से जुड़ी हुई है। 

भारतीय नौसेना दिवस का इतिहास 1971 के ऐतिहासिक भारत-पाकिस्तान युद्ध से जुड़ा है, जिसमें भारत ने पाकिस्तान पर न केवल विजय हासिल की थी, बल्कि पूर्वी पाकिस्तान को आजाद कराकर स्वायत्त राष्ट्र 'बांग्लादेश' का दर्जा दिलाया था। भारतीय नौसेना अपने इस गौरवमयी इतिहास की याद में प्रत्येक साल चार दिसंबर को नौसेना दिवस मनाती है।

आधुनिक भारतीय नौसेना की नींव 17वीं शताब्दी में रखी गई थी, जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने एक समुद्री सेना के बेड़े रूप में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की। यह बेड़ा 'द ऑनरेबल ईस्ट इंडिया कंपनीज मरीन' कहलाता था। बाद में यह 'द बॉम्बे मरीन' कहलाया। पहले विश्व युद्ध के दौरान नौसेना का नाम 'रॉयल इंडियन मरीन' रखा गया। 

26 जनवरी 1950 को भारत गणतंत्र बना और इसी दिन भारतीय नौसेना ने अपने नाम से 'रॉयल' को त्याग दिया। उस समय भारतीय नौसेना में 32 नौ-परिवहन पोत और लगभग 11,000 अधिकारी और नौसैनिक थे। 15 अगस्त 1947 में भारत को जब देश आजाद हुआ था, तब भारत के नौसैनिक बेड़े में पुराने युद्धपोत थे। 

आईएनएस 'विक्रांत' भारतीय नौसेना पहला युद्धपोतक विमान था, जिसे 1961 में सेना में शामिल किया गया था। बाद में आईएनएस 'विराट' को 1986 में शामिल किया गया, जो भारत का दूसरा विमानवाही पोत बन गया। आज भारतीय नौसेना के पास एक बेड़े में पेट्रोल चालित पनडुब्बियां, विध्वंसक युद्धपोत, फ्रिगेट जहाज, कॉर्वेट जहाज, प्रशिक्षण पोत, महासागरीय एवं तटीय सुरंग मार्जक पोत (माइनस्वीपर) और अन्य कई प्रकार के पोत हैं।

इसके अलावा भारतीय नौसेना की उड्डयन सेवा कोच्चि में आईएनएस 'गरुड़' के शामिल होने के साथ शुरू हुई। इसके बाद कोयम्बटूर में जेट विमानों की मरम्मत व रखरखाव के लिए आईएनएस 'हंस' को शामिल किया गया। 

भारतीय नौसेना ने जल सीमा में कई बड़ी कार्रवाइयों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिनमें प्रमुख है जब 1961 में नौसेना ने गोवा को पुर्तगालियों से स्वतंत्र करने में थल सेना की मदद की। इसके अलावा 1971 में जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ा तो नौसेना ने अपनी उपयोगिता साबित की। 

भारतीय नौसेना ने देश की सीमा रक्षा के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा शांति कायम करने की विभिन्न कार्यवाहियों में भारतीय थल सेना सहित भाग लिया। सोमालिया में संयुक्त राष्ट्र संघ की कार्रवाई इसी का एक हिस्सा थी। 

देश के अपने स्वयं के पोत निर्माण की दिशा में आरंभिक कदम उठाते हुए भारतीय रक्षा मंत्रालय ने बंबई (मुंबई) के मजगांव बंदरगाह को 1960 में और कलकत्ता (कोलकाता) के गार्डन रीच वर्कशॉप (जीआरएसई) को अपने अधिकार में लिया। वर्तमान में भारतीय नौसेना का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है और यह मुख्य नौसेना अधिकारी 'एडमिरल' के नियंत्रण में होता है। भारतीय नौ सेना तीन क्षेत्रों की कमान (पश्चिम में मुंबई, पूर्व में विशाखापत्तनम और दक्षिण में कोच्चि) के तहत तैनात की गई है, जिसमें से प्रत्येक का नियंत्रण एक फ्लैग अधिकारी द्वारा किया जाता है।

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वर्दी हुई दागदार, नौकरी का झांसा देकर डीएसपी ने किया किशोरी का बलात्कार

वर्दी लोगों की, समाज की सुरक्षा के लिए होती है। वर्दी की हनक से लोगों पर रुतबा कायम करने के लिए पुलिस अफसरों को उसकी आन बरकरार रखनी होती है लेकिन कुछ अफसर वर्दी की आड़ में ऐसा काम कर देते हैं की पूरा महकमा शर्मसार हो जाता है। उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले के एक डीएसपी की काली करतूत ने एक बार फिर से खाकी को शर्मसार कर दिया| ख़बरों के मुताबिक, मुसाफिरखाना की एक किशोरी ने डीएसपी विपुल कुमार श्रीवास्तव पर नौकरी का झांसा देकर दुष्कर्म करने का आरोप लगाया है। डीएसपी ने मुंह खोलने पर उसे, उसके पिता व भाई को मरवा देने की धमकी दी थी। सोमवार को परिजनों की शिकायत पर एसपी ने डीएसपी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी। किशोरी की मेडिकल जांच कराई गई है।

किशोरी ने डीएसपी पर आरोप लगाते हुए कहा है कि गलती से उसके मोबाइल से डीएसपी मुसाफिरखाना विपुल कुमार श्रीवास्तव के सीयूजी नंबर पर काल चली गई थी। इसके बाद डीएसपी ने काल बैक कर उसकी परेशानी पूछी, तो उसने कोई समस्या न कहकर फोन रख दिया। लेकिन डीएसपी ने उसे फोन लगाना जारी रखा। नौकरी लगवाने व शादी का झांसा देकर उससे बातचीत करने लगे। उससे मिलने डीएसपी उसके गांव भी आए पर मुलाकात नहीं हो सकी। उसके बाद 23 नवमबर को डीएसपी ने उसे राजधाजी लखनऊ के आलमबाग में बुलाया| किशोरी नौकरी के लालच में अपने परिजनों को बिना बताये उससे मिलने 24 नवंबर को आलमबाग गई तो डीएसपी ने उसे एक होटल में बुलाया| किशोरी का आरोप है कि वहाँ डीएसपी ने उसके साथ कई बार बलात्कार किया| पीड़िता ने जब पूरा मामला सबके सामने लाने की बात डीएसपी से कही तो वह उसके परिजनों को जान से मरवाने की धमकी देने लगे। इस बीच लड़की ने फोन करके पूरा घटनाक्रम अपने परिजनों को बताया।

तब एसओ मुसाफिरखाना मनोज तिवारी व कांस्टेबल अरुण तिवारी ने पीड़िता के पिता को मुकदमे में फंसाने और जान से मारने की धमकी दी। पुलिस महकमा पहले तो इस मामले को दबाने में जुटा रहा लेकिन जब बात नहीं बनी तो सोमवार को एसपी ने एसो रेखा सिंह को मामला दर्ज करने के आदेस्ज दे दिए है| एसपी हीरालाल ने प्रकरण को गम्भीर बताते हुए उच्च स्तरीय जाँच करने की बात कही है| 

आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश में यह कोई पहला मामला नहीं है जब खाकी दागदार हुई हो इससे पहले भी इस तरह के संगीन मामले प्रकाश में आ चुके हैं| अपराध रोकने के लिए बनाई गई खाकी को खुद खाकीधारी ही कलंकित करने में जरा भी नही चूक रहे है। इसी के चलते महिला सिपाही ने थानाध्यक्ष पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए आईजी जोन से शिकायत की। उन्होने मामले की जांच सीओ चांदपुर को सौंप दी है।

एक महिला सिपाही ने आईजी जोन बरेली मुकुल गोयल से शिकायत की कि थाने में प्रभारी पद पर रहे दरोगा ने शादी करने का झांसा देकर उसका एक साल तक यौन शोषण किया। बाद में शादी करने से इंकर कर दिया। महिला कास्टेबिल ने कई बार एसओ पर शादी करने क लिए दवाब बनाया, पर वह तैयार नहीं हुआ। इज्जत के डर से महिला कांस्टेबिल अपना मुंह खोलने से भी डर रही है। आईजी जोन मुकुल गोयल ने सीओ चांदपुर सीपी सिंह को इस मामले की जांच सौंपकर जांच रिपोर्ट देने को कहा। सीओ चांदपुर ने महिला कांस्टेबिल व उसकी साथी अन्य महिला कांस्टेबिल के भी इस संबंध में बयान दर्ज किए है। 

अभी हाल ही में कुशीनगर जिले में भी एक ऐसा मामला देखनें को मिला था| यहाँ एक बलात्कार पीड़ित जब आरोपी के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाने थाने पहुंची तो वहां मौजूद दरोगा ने उसके साथ सहानभूति दिखाने के स्थान पर अश्लील सवाल पूछने शुरू कर दिए| ये सुनकर बेचारी भौचक्की रह गयी| वो तो यहाँ आई थी इन्साफ मांगने लेकिन कानून के रखवालों ने उसे ऐसा रूप दिखाया कि उसका तो विश्वाश ही उठ गया इस कानून से| दरोगा की इस हरकत से शर्मसार महिला वापस लौट गयी| खबर लिखे जाने तक ये नहीं पता चल सका कि उसने इस दरोगा की शिकायत बड़े अधिकारी से की है या नहीं| हमारे देश का सामाजिक ढांचा कुछ ऐसा है कि बदनामी और अन्य कारणों से बलात्कार के अधिकतर मामले दर्ज ही नहीं होते। यदि कोई पीड़ित पुलिस वालों से शिकायत करने जाता है तो उसे ऐसी बेईज्ज़ती से दो चार होना पड़ता है| सिर्फ इतना ही नहीं रसूखदार आरोपी के सामने हमारी पुलिस भी नतमस्तक नज़र आती है और समझौता करने का दबाव बना देती है|

सितम्बर 2013 में प्रदेश के देवरिया में नौकरी दिलाने के नाम पर एक महिला खिलाड़ी के साथ महीनों तक सिपाही द्वारा दुराचार किये जाने का मामला सामने आया। इस मामले में आरोपी सिपाही के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली गयी थी। एसपी देवरिया उमेश श्रीवास्तव ने बताया किसदर कोतवाली इलाके की एक युवती ने देवरिया में तैनात सिपाही राम नारायण यादव के खिलाफ शिकायत दर्ज करायी| युवती का कहना है कि नौकरी दिलाने के नाम पर महीनों तक उसके साथ दुष्कर्म किया गया। सिपाही उस वक्त सदर कोतवाली में तैनात था। पीड़ित युवती ने कहा कि वह रोज पुलिस लाइन में दौड़ का अभ्यास करती थी। उसी वक्त सिपाही ने उसे नौकरी दिलाने का झांसा दिया।सिपाही ने झारखंड के देवघर में वैद्यनाथ धाम मंदिर में उसके साथ शादी भी की। वहां से लौटने के बाद उसने अपना तबादला प्रतापगढ़ करा लिया| सिपाही राम नारायण यादव के खिलाफ आईपीसी की धारा 419,420,467,468 तथा 376 के तहत रिपोर्ट दर्ज की गयी है।

इसके अलावा दिसंबर 2012 में एक ऐसा ही मामला फैजाबाद जिले में देखने को मिला था| जहां एक पुलिस वाले ने डीआइजी के यहां बयान दिलाने के बहाने एक युवती को अपनी हवस का शिकार बनाया|सूचना पाकर मौके पर पहुंची पुलिस ने आरोपी दारोगा को गिरफ्तार कर लिया। युवती की तहरीर पर महिला थाने में एसएसआइ के विरुद्ध दुराचार का मुकदमा पंजीकृत कर दारोगा को जेल भेज दिया गया। 

पुलिस ने बताया कि अम्बेडकर जिले के कोतवाली अकबरपुर क्षेत्र की पहितीपुर निवासी 16 वर्षीय युवती ने चार महीने पहले अकबरपुर कोतवाली में रेप का मुकदमा दर्ज कराया था| इस मामले की जांच सीनियर सब-इंस्पेक्टर मान सिंह को सौंपी गई थी। बुधवार को आरोपी दारोगा युवती को डीआईजी के यहां बयान दिलाने के बहाने फैजाबाद लेकर आया और शहर के एक होटल में युवती को अपना करीबी रिश्तेदार बताकर कमरा लिया| दिनभर युवती उसी होटल में रही और देर शाम डीआईजी के न मिलने की बात कहकर मान सिंह ने युवती को कमरे में रुकने को कहा। युवती ने बताया कि कुछ देर बाद मान सिंह लौटकर आया और मेरे सात गलत हरकत करने लगा| इसके बाद जब मान सिंह सो गया तो युवती ने इसकी जानकारी मोबाइल के जरिये अपने परिचितों को दी| इस दौरान परिचितों ने पुलिस से संपर्क साधा| पुलिस ने युवती को होटल से बरामद किया और आरोपी दारोगा को पकड़ लिया। युवती का कहना है उसके पिता ने उसे घर से निकाल दिया है और वह अपने दादी के साथ रहती है।

नवम्बर 2012 में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के एक दरोगा की काली करतूत ने खाकी को शर्मसार कर दिया था| माल में तैनात दरोगा ने जांच के बहाने दलित महिला को थाने बुलाया और एसओ आवास में बंधक बनाकर दुष्कर्म करने का प्रयास किया| दलित महिला की पुकार सुनकर एसओ व अन्य पुलिसकर्मी मौके पर पहुंचे और दरवाजा तोड़कर महिला की आबरू लुटने से बचाया| क़स्बा माल की विजयलक्ष्मी ने नौ महीने पहले एक दलित महिला पर मारपीट का आरोप लगाते हुए थाने में तहरीर दी थी| बाद में इलाके के कुछ लोगों ने दोनों के बीच समझौता कराकर मामले को रफा-दफा कर दिया लेकिन विजयलक्ष्मी की तहरीर थाने में ही रह गई| कुछ दिन पहले विजयलक्ष्मी की यह तहरीर दरोगा कामत प्रसाद अवस्थी के साथ लगी| दरोगा ने दलित महिला के बारे में छानबीन की और जांच के बहाने उसे फोन करना शुरू कर दिया| 

खाकी को शर्मसार करने वाले इस दरोगा ने मामला समाप्त कराने के बहाने महिला को फोन किया और उससे अश्लील बातें करने लगा| दरोगा ने बुधवार रात दलित महिला को फोन किया और कहा कि कप्तान के यहां से जांच आई है, जल्दी थाने में मेरे कमरे पर आ जाओ, बयान दर्ज करके तुरंत रिपोर्ट देनी है| ऐसा करने से यह मामला समाप्त हो जायेगा| इसके बाद महिला अपने पति के साथ रात में थाने के गेट पर पहुंची लेकिन दरोगा ने उसे दोबारा फोन कर अकेले कमरे में आने के लिए कहा| 

थाने में कई अन्य पुलिस को देखकर महिला एसओ के आवास में गई| वहां पहले से उपस्थित दरोगा ने उसे कमरे में बुलाया और दरवाजा भीतर से बंद कर छेड़खानी करने लगा| खींचतान में दरोगा की बनियान फट गई| महिला की चींख पुकार सुनकर एसओ राकेश कुमार सिंह व अन्य पुलिसकर्मी कमरे की तरफ दौड़े| एसओ ने किसी तरह कमरा खुलवाकर महिला को दरोगा के चंगुल से छुड़ाया| इस बीच मौका पाकर दरोगा कामता प्रसाद ने खुद को कमरे में बंद कर लिया और दूसरे रास्ते से फरार हो गया| दरोगा कामता प्रसाद द्वारा दलित महिला के साथ थाने में दुष्कर्म का प्रयास करने की खबर फैलाते ही ग्रामीण थाने के बाहर एकत्रित हो गए और दरोगा के खिलाफ कार्यवाहीं की मांग कर प्रदर्शन करने लगे| एसओ ने दरोगा के खिलाफ सख्त कार्यवाही का आश्वासन देते हुए उग्र ग्रामीणों को शांत कराया| यदि प्रदेश में हो रही इस तरह की ताबड़तोड़ घटनाओं को सूबे की सरकार गम्भीरता से नहीं लेती हैं तो मित्रता का ढोल पीटने वाले यूपी की पुलिस पर से जनता का विश्वास उठ जाएगा?

दशकों बाद भी बरकरार है चुनाव चिन्हों की अहमियत

नारियल, तुरही, नेल कटर, छड़ी, अंगूर, कोट, प्रेसर कूकर, रोटी, टूथब्रश इत्यादि का जीवंत भारतीय लोकतंत्र में क्या काम? लेकिन ये चुनाव चिन्ह के रूप में आज भी प्रासंगिक हैं। 

चुनाव आयोग का कहना है कि प्रत्याशियों और पार्टी को पहचानने के लिए 'चुनाव चिन्ह' अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि देश में आज भी बड़ी संख्या में लोग मतपत्रों और इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन पर नाम नहीं पढ़ सकते।

दिल्ली में 70 सदस्यीय विधानसभा के लिए होने जा रहे चुनाव के चरम पर पहुंचने के साथ ही राष्ट्रीय राजधानी में चुनाव चिन्ह लहरा कर मतदाताओं को आकर्षित करने का काम जोरों पर है।

कांग्रेस का हाथ और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का कमल जाने पहचाने चिन्हों में से हैं। इसी तरह के चिन्हों में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का हाथी और महज एक वर्ष पुरानी आम आदमी पार्टी (आप) का चुनाव चिन्ह झाड़ू भी लोकप्रिय हो चुका है।

लेकिन इसके अलावा और भी कई चिन्ह हैं जो रोजाना के काम में घरों में इस्तेमाल किए जाते हैं। असंख्य स्वतंत्र प्रत्याशियों, अप्रचारित राजनीतिक पार्टियों को आवंटित चुनाव चिन्हों में स्लेट, हैट, आटोरिक्शा, टेलीविजन, हैंड पंप, सिलाई मशीन, ब्लैक बोर्ड, गुब्बारा, पेन स्टैंड, पतंग आदि शामिल हैं।

राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल का चुनाव चिन्ह केतली है। लोक प्रिय समाज पार्टी बुजुर्गो की छड़ी के साथ वोट मांग रही है। समता संघर्ष पार्टी को मोमबत्ती चिन्ह मिला है।

कैमरा अखिल भारतीय हिंदू महासभा का चिन्ह है। कल्याणकारी जनतांत्रिक पार्टी का चिन्ह टेलीफोन है। और क्रिकेट के खुमार वाले देश में आदर्शवादी कांग्रेस पार्टी ने बैट्समैन को चुना है।

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बोधगया : विस्फोटों के बावजूद परवान चढ़ा पर्यटन

बिहार के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल और बौद्ध संप्रदाय के प्रसिद्ध तीर्थस्थल बोधगया में पर्यटन के मौसम पर आतंकवादियों द्वारा किए गए बम विस्फोटों का कोई असर नहीं पड़ा है। नवंबर के मध्य से ही देसी और विदेशी पर्यटकों की आमद यहां बढ़ गई है। 

महाबोधि मंदिर प्रबंध कार्यकारिणी समिति (बीटीएमसी) के पदाधिकारियों का कहना है कि हाल के दिनों में महाबोधि मंदिर के गुंबद में स्वर्ण अच्छादन होने के बाद पर्यटन में मंदिर का आकर्षण और बढ़ गया है। 

आंकड़ों के मुताबिक, 15 से 28 नवंबर तक 44 हजार से ज्यादा देसी पर्यटक और 15 हजार से ज्यादा विदेशी पर्यटकों ने महाबोधि मंदिर का भ्रमण किया। 

उल्लेखनीय है कि बीटीएमसी ने 15 नवंबर से मंदिर प्रवेश के लिए नि:शुल्क प्रवेश टिकट की सुविधा उपलब्ध कराई है। इसमें देसी और विदेशी श्रद्धालुओं के लिए अलग-अलग रंग का टिकट उपलब्ध है। 

बीटीएमसी को आशा है कि आने वाले दिनों में बौद्धों के काग्यू मोनलम और निगमा मोनलम सहित अन्य पूजा समारोह क आयोजन होना है, जिसमें बौद्ध भिक्षुओं, श्रद्धालुओं और पर्यटकों की संख्या में और वृद्धि होगी। 

गौरतलब है कि महाबोधि मंदिर परिसर में जुलाई महीने में आतंकवादियों द्वारा किए गए श्रृंखलाबद्ध विस्फोट में दो बौद्ध भिक्षु घायल हो गए थे। 

बिहार की राजधानी पटना से मात्र 100 किलोमीटर दूर गया से सटे बोधगया में प्रतिवर्ष लाखों देसी और विदेशी पर्यटक आते हैं। मान्यता है कि बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे तपस्या कर रहे गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। इस कारण इसे 'ज्ञानस्थली' भी कहा जाता है। बोधगया बौद्धधर्म के अनुयायियों के लिए काफी महत्वपूर्ण स्थान है। 

बोधिवृक्ष के पास ही महाबोधि मंदिर स्थापित है। कहा जाता है कि सम्राट अशोक ने सबसे पहले यहां एक छोटे से मंदिर का निर्माण करवाया था। वर्तमान महाबोधि मंदिर पांचवीं या छठी शताब्दी का बताया जाता है।

गौरतलब है कि वर्ष 2002 में यूनेस्को ने इस मंदिर परिसर को विश्व धरोहर घोषित किया है। महाबोधि मंदिर की बनावट सम्राट अशोक द्वारा स्थापित स्तूपों से मिलती-जुलती है। 

मंदिर के अंदर भगवान बुद्ध की पद्मासन मुद्रा में विराट मूर्ति है। कहा जाता है कि जहां भगवान बुद्ध की मूर्ति स्थापित है वहीं बुद्घ को ज्ञान प्राप्त हुआ था। ऐसे तो यह जगह बौद्ध संप्रदाय के लोगों के लिए प्रमुख है परंतु प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में सभी संप्रदाय के लोग यहां आते हैं। 

यहां घूमने आने के लिए नंवबर से फरवरी तक का उत्तम समय माना जाता है। इस कारण यहां के लोग इसे पर्यटन का मौसम मानते हैं।

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29 साल बाद भी हरे हैं जख्म

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 29 वर्ष पहले हुई गैस त्रासदी की भयावह दास्तां आज भी लोग नहीं भुला पाए हैं, क्योंकि उन्हें वे सुविधाएं हासिल ही नहीं हो सकी हैं जो जख्मों को सुखा सकें। अलबत्ता उन्हें लगता है कि वक्त गुजरने के साथ जख्म हरे होते जा रहे हैं। 

झीलों की नगरी भोपाल के लिए दो-तीन दिसंबर 1984 की रात काल बनकर आई थी। उस रात यूनियन कार्बाइड संयंत्र से रिसी जहरीली गैस ने तीन हजार से ज्यादा लोगों को मौत की नींद सुला दिया था, वहीं लाखों लोगों को बीमारियों का तोहफा दिया था। उसके बाद भी गैस का शिकार बने लोगों की मौत का सिलसिला जारी है। 

हादसे के 29 वर्ष गुजरने के बाद भी पीड़ितों को अब तक इंसाफ नहीं मिल पाया है। न तो मुआवजा मिला और न हीं वे स्वास्थ्य सुविधाएं जो उनके जीवन को कष्टों से मुक्ति दिला सकें। हाल यह है कि पीड़ितों का जख्म पहले के मुकाबले कम होने के बजाय कहीं बढ़ता जा रहा है। 

ग्रुप फॉर इंफार्मेशन एण्ड एक्शन की रचना ढींगरा कहती हैं कि गैस पीड़ित मर रहे हैं और सरकारें हैं कि वे उन्हें गैस पीड़ित मानने को तैयार नहीं है। सरकार लगातार आंकड़े छुपा रही है। वहीं आरोपियों को सरकार के रवैए के कारण ही सजा नहीं मिल पा रही है।

ग्रुप फॉर इंफार्मेशन एण्ड एक्शन के सतीनाथ षडंगी कहते हैं कि एक तरफ पीडितों को उनका हक नहीं मिला वहीं दूसरी ओर हजारों लोगों की जान लेने के दोषियों को सजा नहीं मिली है। वे तो राज्य सरकार पर आम लोगों के साथ अदालत को भी गुमराह करने की कोशिश कर रही है। 

भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के अब्दुल जब्बार का कहना है कि हादसे के समय से अब पीड़ितों की संख्या पांच गुना हो गई है। पीड़ितों को मुआवजे के नाम पर सिर्फ 50 हजार रुपये मिले हैं, जो पांच रुपये दिन होता है। सरकार की कार्यशैली का ही नतीजा है कि आज तक गुनहगारों को सजा नहीं मिल पाई है। 

एक तरफ जहां पीड़ितों को मुआवजा नहीं मिला, वहीं उन्हें स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए तरसना पड़ रहा है। गैस पीड़ितों के नाम पर कई अस्पताल खुले मगर वहां चिकित्सक तक नहीं हैं। गैस पीड़ित अब भी दुष्प्रभाव भुगत रहे हैं। बड़ी संख्या में नवजात शिशु भी विकलांग हो रहे हैं। वहीं यूनियन कार्बाइड संयंत्र के आसपास की बस्तियों के लोगों को पीने का पानी तक नहीं मिल पा रहा है। गुर्दा, हृदय रोग सहित अन्य बीमारियों के मरीजों की संख्या भी बढ़ती जा रही है।

पीड़ित एक बार फिर अपने हक की खातिर सोमवार और बुधवार को कई कार्यक्रम कर रहे हैं। उन्हें भरोसा है कि एक दिन आएगा जब उनकी बात सुनी जाएगी।

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..जब राजेंद्र बाबू गोखले से मिले

सन् 1910 का किस्सा है, राजेंद्र बाबू तब कलकत्ता में वकालत पढ़ रहे थे। यहां एक दिन उन्हें उस दौर के प्रसिद्ध वकील परमेश्वर लाल ने बुलाया था। वे कुछ समय पहले ही गोखलेजी (अग्रणी स्वतंत्रता संग्रामी गोपाल कृष्ण गोखले) से मिले थे। बातचीत में गोखलेजी ने उनसे कहा था कि वे यहां के दो-चार होनहार छात्रों से मिलना चाहते हैं। परमेश्वरजी ने सहज ही राजेंद्र बाबू का नाम सुझा दिया। 

राजेंद्र बाबू गोखलेजी से मिलने गए, अपने एक मित्र श्रीकृष्ण प्रसाद के साथ। सर्वेट्स ऑफ इंडिया सोसायटी की स्थापना अभी कुछ ही दिन पहले हुई थी। गोखलेजी उस काम के लिए हर जगह कुछ अच्छे युवकों की तलाश में थे। उन्हें यह जानकारी परमेश्वरजी से मिल गई थी कि ये बड़े शानदार विद्यार्थी हैं।

वकालत उन दिनों ऐसा पेशा था जो प्रतिष्ठा और पैसा एक साथ देने लगा था। इस धंधे में सरस्वती और लक्ष्मी जुड़वां बहनों की तरह आ मिलती थीं। कोई डेढ़ घंटे चली इस पहली ही मुलाकात में राजेंद्र बाबू से गोखले ने सारी बातों के बाद आखिर में कहा था, "हो सकता है तुम्हारी वकालत खूब चल निकले। बहुत रुपये कमा सको। बहुत आराम और ऐश-इशरत में दिन बिताओ। बड़ी कोठी, घोड़ा-गाड़ी इत्यादि दिखावट का सामान सब जुट जाए..और चूंकि तुम पढ़ने में अच्छे हो, तो इसलिए तुम पर वह दावा और भी अधिक है।"


गोखलेजी थोड़ा रुक गए थे। कुछ क्षणों के उस सन्नाटे ने भी राजेंद्र बाबू के मन में न जाने कितनी उथल-पुथल पैदा की होगी। वे फिर बोलने लगे : "मेरे सामने भी यही सवाल आया था, ऐसी ही उमर में। मैं भी एक साधारण गरीब घर का बेटा था। घर के लोगों को मुझसे बहुत बड़ी-बड़ी उम्मीदें थीं। उन्हें लगता था कि मैं पढ़कर तैयार हो जाऊंगा, रुपये कमाऊंगा और सबको सुखी बना सकूंगा, पर मैंने उन सबकी आशाओं पर पानी फेर कर देशसेवा का व्रत ले लिया। मेरे भाई इतने दुखी हुए कि कुछ दिनों तक तो वे मुझसे बोले तक नहीं। हो सकता है यही सब तुम्हारे साथ भी हो। पर विश्वास रखना कि सब लोग अंत में तुम्हारी पूजा करने लगेंगे।"


गोखले के मुख से मानो एक आकाशवाणी-सी हुई थी। बाद का किस्सा लंबा है। लंबी है राजेंद्र बाबू के मन में कई दिनों तक चले संघर्ष की कहानी और घर में मचे कोहराम की, रोने धोने की, बेटे के साधु बन जाने की आशंका की दास्तान। इस किस्से से ऐसा न मान लें हम लोग कि वे अगले ही दिन अपना सब कुछ छोड़ देशसेवा में उतर पड़े थे। गोखले खुद बड़े उदार थे। उन्होंने उस दिन कहा था कि "ठीक इसी समय उत्तर देना जरूरी नहीं है। सवाल गहरा है। फिर एक बार और मिलेंगे, तब अपनी राय बताना।"


अगले 10-12 बारह दिनों का वर्णन नहीं किया जा सकता। भाई साथ ही रहते थे। इनके व्यवहार में आ रहे बदलाव वे देख ही रहे थे। राजेंद्र बाबू ने कोर्ट जाना बंद कर दिया था। न ठीक से खाते-पीते, न किसी से मिलते-जुलते थे। फिर एक दिन हिम्मत जुटाई। एक पत्र, काफी बड़ा पत्र, भाई को लिखा और घर छोड़ने की आज्ञा मांगी। पत्र तो लिख दिया पर सीधे उन्हें देते नहीं बना। सो एक शाम जब भाई टहलने के लिए गए थे, तब उसे उनके बिस्तरे पर रख खुद भी बाहर टहलने चले गए।


भाई ने लौटकर पत्र देखा और अब खुद राजेंद्र बाबू को तलाशने लगे। जब वे बाहर कहीं मिल गए तो भाई बुरी तरह से लिपट कर रोने लगे। राजेंद्र बाबू भी अपने को रोक नहीं पाए। दोनों फूट-फूट कर रोते रहे। ज्यादा बातचीत की हिम्मत नहीं थी फिर भी तय हुआ कि कलकत्ता से गांव जाना चाहिए। मां, चाची और बहन को सब बताना होगा।


राजेंद्र बाबू को अब लग गया था कि देश-प्रेम और घर-प्रेम में घर का वजन ज्यादा भारी पड़ रहा है। वे इतनी आसानी से इस प्रेम बंधन को काट नहीं पाएंगे। गोखलेजी अभी वहीं थे। राजेंद्र बाबू एक बार और उनसे भेंट करने गए। सारी परिस्थिति बताई। गोखलेजी ने भी उन्हें पाने की आशा छोड़ दी। गांव पहुंचने का किस्सा तो और भी विचित्र है। चारों तरफ रोना-धोना। बची-खुची हिम्मत भी टूट गई थी। वे जैसे थे वैसे ही बन गए। फिर से लगा कि पुरानी जिंदगी पटरी पर वापस आने लगी है, पर उस दिन जो आकाशवाणी हुई थी, वह झूठी कैसे पड़ती?


वकालत राजेंद्र बाबू को आने वाले दिनों में, पांच-छह बरस बाद चंपारण ले गई। वहां उन पर, उनके जीवन पर नील का रंग चढ़ा। नील का रंग यानी गांधीजी के चम्पारण आंदोलन का रंग। यह रंग उन पर इतना चोखा चढ़ा कि फिर कभी उतरा ही नहीं।

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जन्मदिवस पर विशेष: सादगी पसंद थे डा. राजेंद्र प्रसाद

गणतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद सादगी पसंद, अत्यंत दयालु और निर्मल स्वभाव के महान व्यक्ति थे। देश और दुनिया उन्हें एक विनम्र राष्ट्रपति के रूप में उन्हें हमेशा याद करती है। 'सादा जीवन, उच्च विचार' के अपने सिद्धांत का निर्वाह उन्होंने जीवन र्पयत किया। डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर, 1884 को बिहार राज्य के सिवान जिले के जीरादेई में हुआ था। 

उनके पिता महादेव सहाय फारसी और संस्कृत दोनों ही भाषाओं के विद्वान थे, जबकि उनकी माता कमलेश्वरी देवी एक धार्मिक महिला थीं। वह अपने बेटों को 'रामायण' की कहानियां सुनाया करती थीं।

उस समय शिक्षा की शुरुआत फारसी से की जाती थी। प्रसाद जब पांच वर्ष के हुए, तब माता-पिता ने उन्हें फारसी सिखाने की जिम्मेदारी एक मौलवी को दी। इस प्रारंभिक पारंपरिक शिक्षण के बाद उन्हें 12 वर्ष की अल्पायु में आगे की पढ़ाई के लिए छपरा जिला स्कूल भेजा गया। उसी दौरान किशोर राजेंद्र का विवाह राजवंशी देवी से हुआ।

बाद में वे अपने बड़े भाई महेंद्र प्रसाद के साथ पढ़ाई के लिए पटना चले गए जहां उन्होंने टी.के. घोष अकादमी में दाखिला लिया। इस संस्थान में उन्होंने दो वर्ष अध्ययन किया। वर्ष 1902 में कोलकाता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में उन्होंने पहला स्थान प्राप्त किया। इस उपलब्धि पर उन्हें 30 रुपये प्रतिमाह की छात्रवृत्ति से पुरस्कृत भी किया गया था। सन् 1915 में राजेंद्र बाबू ने कानून में मास्टर की डिग्री विशिष्टता के साथ हासिल की और इसके लिए उन्हें स्वर्ण पदक मिला था। कानून में ही उन्होंने डाक्टरेट भी किया। 

राजेंद्र तेजस्वी वह एक महान विद्वान थे। इस बात को उनकी उत्तरपुस्तिका पर लिखी परीक्षक की टिप्पणी, "परीक्षक की तुलना में परीक्षार्थी बेहतर है" बखूबी प्रमाणित करती है।

कानून की पढ़ाई से अधिवक्ता प्रसाद भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए और बिहार प्रदेश के एक बड़े नेता के रूप में उभरे।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के समर्थक प्रसाद को ब्रिटिश प्रशासन ने 1931 के 'नमक सत्याग्रह' और 1942 के 'भारत छोड़ो आंदोलन' के दौरान जेल में डाल दिया था।

1950 में जब भारत गणतंत्र बना तो प्रसाद को संविधान सभा द्वारा इसका प्रथम राष्ट्रपति बनाया गया। बतौर महामहिम प्रसाद ने गैर-पक्षपात और पदधारी से मुक्ति की परंपरा स्थापित की।

आजादी से पूर्व, 2 दिसंबर 1946 को वह अंतरिम सरकार में खाद्य एवं कृषि मंत्री बने और आजादी के बाद 26 जनवरी 1950 को भारत को गणतंत्र राष्ट्र का दर्जा मिलने के साथ राजेंद्र बाबू देश के प्रथम राष्ट्रपति बने। वर्ष 1957 में वह दोबारा राष्ट्रपति चुने गए। इस तरह प्रेसीडेंसी के लिए दो बार चुने जाने वाले वह एकमात्र शख्सियत थे।

प्रसाद भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन के महान नेता थे और भारतीय संविधान के शिल्पकार भी। राष्ट्रपति पद पर रहते हुए उन्होंने कई देशों की सभाद्वना यात्रा की। उन्होंने आण्विक युग में शांति बनाए रखने पर जोर दिया दिया था।

वर्ष 1962 में राजेंद्र बाबू को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से नवाजा गया। बाद में उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया और पटना के सदाकत आश्रम में जीवन बिताने लगे। 28 फरवरी, 1963 को बीमारी के चलते यह महान नेता इस नश्वर संसार से कूच कर गए।
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झड़ते बालों से न हो परेशान करें ये सरल उपाय

आजकल बाल झड़ने की समस्या आम हो गई है जिसको देखो वही इस समस्या से पीड़ित है| पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं इसकी ज्यादा शिकार हो रही हैं| बाल झड़ने के कई कारण हो सकते हैं कई बार किसी गंभीर रोग के कारण या महिलाओं में प्रसव होने के कारण बाल झड़ने लगते हैं| यदि आपके बाल झड़ते या टूटते हो और आप काले, घने व चमकीले बाल चाहते हैं तो आपको अपने बालों की अतिरिक्त देखभाल करने की आवश्यकता है। 

बाल झड़ने के कारण-

बाल झड़ने का एक मुख्य कारण स्ट्रेसफुल लाइफ भी है। आजकल लोगों पर काम का इतना ज्यादा बोझ है जिससे वे तनाव में आ जाते हैं। ऐसे में हमें बालों को झड़ने से बचाने के लिए तनाव से दूर रहना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि अधिक से अधिक खुशनुमा माहौल में रहें।

कई बार मौसम बदलने या फिर जगह बदलने के कारण भी बाल झड़ने लगते हैं, ऐसे में आपको अपने बालों की केयर करते रहनी चाहिए और बालों को सप्ताह में दो-तीन बार जरूर धोना चाहिए।कोई मेजर सर्जरी, इंफेक्शन और लंबे समय तक बीमार होने पर भी बाल गिरने लगते हैं। 

अगर अचानक हार्मोन लेवल चेंज हो गया है और आप किसी बीमारी से पीडि़त हैं तो उसका प्रभाव भी आपके बालों पर पड़ने की आशंका रहती हैं जिससे बाल कमजोर भी हो सकते हैं।

प्रेगनेंसी या फिर बच्चे के जन्म के बाद भी कुछ महिलाओं में कमजोरी आ जाती है और कमजोरी के कारण भी बाल गिरने लगते हैं। ऐसी स्थिति में चाहे बाल कम समय के लिए ही झड़ते हैं लेकिन फिर भी आप अपने बालों को पोषण देने के लिए हर्बल शैंपू का इस्ते़माल भी कर सकती हैं।

जो शैंपू झाग देता है, उसमें डिटर्जेंट जरूर होता है। हर्बल शैंपू भी इसका अपवाद नहीं है। महज शिकाकाई या रीठा की कुछ बूंदें डालने से चीजें नहीं बदलतीं। डिटर्जेंट्स से बचना है तो रीठा, शिकाकाई और मेहंदी का मिक्सचर घर में बनाकर लगाएं। 

कुछ इस तरह से टूटते बालों से बचा जा सकता है -

आपको बता दें कि बाल झड़ने के कई कारण होते हैं जैसे कि - सिर को गंदा रखने पर ज्यादा बाल झड़ते हैं, जबकि नियमित शैंपू करने पर कम। जो लोग खुले में ज्यादा नहीं जाते और ज्यादातर एसी में रहते हैं, वे हफ्ते में दो-तीन बार शैंपू करें। जो बाहर का काम करते हैं या जिन्हें पसीना ज्यादा आता है, उन्हें रोजाना बाल धोने चाहिए। 

तेल बालों को भारी और गंदा बनाता है। नहाने के बाद तेल लगाने का कोई फायदा नहीं है। तेल लगाने से बाल लंबे होने की बात भी गलत है। कई लोगों को लगता है कि तेल लगाकर बाल धोने से बाल मजबूत होते हैं, लेकिन यह सही नहीं है। हां, उनमें लुब्रिकेशन और चमक जरूर आ जाती है। 

बालों को मजबूत बनाने और टूटने से बचाने के लिए आपको सप्ताह में कम से कम दो बार बालों की जड़ों में आंवला, बादाम, ऑलिव ऑयल, नारियल का तेल, सरसो का तेल इत्यादि में से कोई एक लगाना चाहिए। इससे बालों का झड़ना, बाल पतले होना, डैंड्रफ, दोमुंहे बाल व उम्र से पहले बालों का सफेद होने जैसी प्रॉब्लम्स से निपटा जा सकता है।

बालों को झड़ने से बचाने के लिए आपको अपने बालों को धूप से बचाना चाहिए। जब भी आप बाहर धूप में जाएं तो अपने साथ छाता लेकर जाएं या फिर अपने बालों को कपड़े से पूरी तरह ढक लें।

कई शैंपू एक्स्ट्रा प्रोटीन होने का दावा करते हैं। इसी तरह प्रोटीन युक्त सीरम भी मार्केट में मिलते हैं। बाल धोने के दौरान शैंपू का प्रोटीन बालों के अंदर नहीं जाता। इसका काम बालों की बाहरी सतह यानी क्यूटिकल को साफ करना है। बालों को प्रोटीन की जरूरत है, लेकिन वह खुराक से मिलता है। 

कुछ लोग बालों में बार-बार कंधी करते हैं,ये सोचकर कि इससे बाल लंबे होंगे या फिर बाल सुलझें रहेंगे लेकिन आपको बता दें इससे भी कई बार बाल झड़ते है। आपको बालों को दिन में कम से कम 2-3 बार कंधी करें, इससे आपके बाल कम से कम उलझेंगे और बाल कम टूटेंगे। यानी बाल सुलझे भी रहेंगे और बालों के टूटने का डर भी खत्म।

शैंपू करने के बाद बहुत-से लोग कंडिशनर नहीं लगाते। उन्हें लगता है कि इससे बाल कमजोर हो जाते हैं। यह गलत है। कंडिशनर से बालों की चमक बनी रहती है और वे उलझते नहीं हैं। ध्यान रखें कि कंडिशनर सिर की सतह यानी त्वचा में न जाए। इससे बालों को नुकसान पहुंचता है। 

नजला-जुकाम से बाल टूटने की भ्रांति बहुत लोगों में होती है। असल में देखा गया है कि नजले-जुकाम आदि से पीड़ित लोग ज्यादातर दवाएं खाते रहते हैं और उनकी सेहत ठीक नहीं होती। इस वजह से कई बार बाल गिरने लगते हैं। नजला/जुकाम से बाल नहीं गिरते। 

अक्सर लोग सफेद बाल उखाड़ने से मना करते हैं क्योंकि उनका मानना होता है कि अगर एक बाल उखाड़ेंगे तो उसकी जड़ से दव निकलेगा, जो आसपास के बालों को भी सफेद कर देगा। यह गलत है। 

बालों को टूटने से बचाने के लिए आपको डाइट में प्रोटीन, आयरन, जिंक, सल्फर, विटामिन सी, के अलावा विटामिन बी से युक्त खाघ पदार्थ भरपूर मात्रा में लेने चाहिए।बालों को टाइट बांधना, हॉट रोलर्स व ब्लो ड्रायर व आयरन के ज्यादा इस्तेमाल करने से भी बाल डैमेज हो जाते हैं। इसीलिए कोशिश करें कि बालों को प्राकृतिक ही रहने दें और बालों पर बहुत ज्यादा एक्सेपेरिमेंट करने से बचें।

बालों को सही पोषण न मिलने से भी बाल झड़ने लगते हैं, ऐसे में बालों को झड़ने से बचाने के लिए समय-समय पर बालों में मेंहदी लगानी चाहिए या फिर बालों को पोषण देने के लिए दही भी लगा सकते हैं।

झड़ते बालों से बचने के लिए घरेलू नुस्खे-

झड़ते बालों से बचने के लिए रात में मेथी के बीजों को पानी में भिगो देना चाहिए। सुबह उठने पर इन्हे पीसकर लेप जैसा बना लेना चाहिए और फिर इस लेप को बालों पर लगाना चाहिए। ऐसा कुछ दिनों तक करने से रोगी के बाल झड़ना रुक जाते हैं। इसके अलावा बाल झड़ने बेर के पत्तों को पीसकर इसमें नींबू का रस मिलाकर सिर पर लगाने से बाल दोबारा उगने लगते हैं।

ताजा धनिये का रस या गाजर का रस बालों की जड़ों में लगाने से रोगी व्यक्ति के बाल झड़ने बंद हो जाते हैं। सिर में जिस जगह से बाल झड़ गये हैं उस जगह पर प्याज का रस लगाने से बाल दोबारा उग आते हैं।

खोपरे के तेल को मुलेठी, ब्राह्मी, मेहंदी के पत्ते डाल कर उबालें और ठंडा होने के बाद बोतल में भरकर रखें और नियमित रूप से बालों की मालिश करें। इससे बाल घने, काले, चमकीले तो होंगे ही साथ ही दिमाग को भी पोषण मिलेगा।

बाल झड़ते हैं तो गरम जैतून के तेल में एक चम्मच शहद और एक चम्मच दालचीनी पाउडर का पेस्ट बनाएं। नहाने से पहले इस पेस्ट को सिर पर लगा लें। 15 मिनट बाद बाल गरम पानी से सिर को धोएं। ऐसा करने पर कुछ ही दिनों बालों के झडऩे की समस्या दूर हो जाएगी।

दालचीनी और शहद के मिश्रण काफी कारगर रहता है। आयुर्वेद के अनुसार इनके मिश्रण से कई बीमारियों का इलाज किया जा सकता है। त्वचा और शरीर को चमकदार और स्वस्थ बनाए रखने के लिए इनका उपयोग करना चाहिए।

गाजर को पीसकर लेप बना लें। फिर इस लेप को सिर पर लगाये और दो घंटे के बाद धो दें। ऐसा प्रतिदिन करने से बाल झड़ने बंद हो जाते हैं। गंजेपन को दूर करने के लिए रात को सोते समय नारियल के तेल में नींबू का रस मिलाकर सिर की मालिश करनी चाहिए।

आंवला, ब्राह्मी तथा भृंगराज को एकसाथ मिलाकर पीस लें। फिर इस मिश्रण को लोहे की कड़ाही में फूलने के लिए रखना चाहिए और सुबह के समय में इसको मसल कर लेप बना लेना चाहिए। इसके बाद इस लेप को 15 मिनट तक बालों में लगाएं। ऐसा सप्ताह में दो बार करने से बाल झड़ना रुक जाते हैं तथा बाल कुदरती काले हो जाते हैं।

रात को तांबे के बर्तन में पानी भरकर रखें। सुबह के समय उठते ही इस पानी को पी लें। इसके साथ ही आधा चम्मच आंवले के चूर्ण का सेवन भी करे। इससे कुछ ही समय में बालों के झड़ने का रोग ठीक हो जाता है।

गुड़हल के फूल तथा पोदीने की पत्तियों को एक साथ पीसकर थोड़े से पानी में मिलाकर लेप बना लें। इस लेप को सप्ताह में कम से कम दो बार आधे घण्टे के लिए बालों पर लगाना चाहिए। ऐसा करने से बाल झड़ना रुक जाते हैं तथा बाल सफेद भी नहीं होते हैं।

लगभग 80 ग्राम चुकन्दर के पत्तों के रस को सरसों के 150 ग्राम तेल में मिलाकर आग पर पकाएं। जब पत्तों का रस सूख जाए तो इसे आग पर से उतार लें और ठंडा करके छानकर बोतल में भर लें। इस तेल से प्रतिदिन सिर की मालिश करने से बाल झड़ने रुक जाते हैं तथा बाल समय से पहले सफेद भी नहीं होते हैं।

कलौंजी को पीसकर पानी में मिला लें। इस पानी से सिर को कुछ दिनों तक धोने से बाल झडना बंद हो जाते हैं तथा बाल घने भी होना शुरु हो जाते हैं।
नीम की पत्तियों और आंवले के चूर्ण को पानी में डालकर उबाल लें और सप्ताह में कम से कम एक बार इस पानी से सिर को धोएं। ऐसा करने से कुछ ही समय में बाल झड़ना बंद हो जाता है।

आधा कप शराब में थोड़े से प्याज के टुकड़े डालकर 1 दिन के लिए रख दें। फिर 1 दिन के बाद प्याज के टुकड़ों को शराब में से बाहर निकाल दें और सिर पर इसकी मालिश करें। इसे बाल झड़ना बन्द हो जाते हैं और सिर पर नए बाल भी उगना शुरू हो जाते हैं।