आखिर नदी, जलाशय में सिक्का क्यों फेंकते हैं लोग?

अक्सर आपने देखा होगा कि लोग जब कही जा रहे होते हैं यदि बीच मार्ग में कोई नदी, जलाशय आ जाता है या फिर किसी धार्मिक स्थल पर भी कोई पवित्र जलाशय मिल जाता है तो लोग सिक्का निकालकर उसमें फेंक देते हैं| कभी आपने सोचा है कि आखिर लोग ऐसा क्यों करते हैं? क्या पाने में सिक्के फेंकने के पीछे कोई धार्मिक कारण है? क्या विज्ञान ऐसा करने की इजाजत देता है? 

प्राचीन समय से चली आ रही इस मान्यता के पीछे कई सारे कारण छिपे हैं जिसमें से एक है लोगों का एक विश्वास। बहुत से लोग मानते हैं कि पानी में सिक्का फेंकने से जीवन में चल रहा नकारात्मक प्रभाव दूर होता है। ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में खुशहाली आती है।

कुछ बुजुर्गों का मानना है की नदी पर भूत-प्रेत का साया मंडराता है उस साय को प्रसन्न करने के लिए नदी में सिक्के डाले जाते हैं। अब पीतल, तांबा या चांदी के सिक्कों का चलन बंद होने से लोग स्टील के सिक्के नदी को भेंट करते हैं।

ज्योतिष शास्त्र और लाल किताब के अनुसार तांबे का सिक्का पानी में डालने से सूर्य देव अनुकुल होते हैं और पितरों की कृपा प्राप्त होती है। बदलते दौर में तांबे के सिक्कों का प्रचलन समाप्त होने से स्टेनलेस स्टील के सिक्कों को उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए अब लोग पानी में फेंकते हैं।

कुछ लोगों की मान्यता है कि नदी में सिक्के अर्पित करने से उनके जीवन में आ रही बाधा और परेशानियों से नकारत्मकता का अंत होगा और सकारात्मकता का संचार होगा। धन की देवी लक्ष्मी प्रसन्न होकर अपनी कृपा बनाएं रखेंगी। 

वैज्ञानिक कारण की बात करे तो विभिन्न धातुओं के मिश्रण से पानी की शुद्धता हमेशा बरक़रार रहती है।यही कारण है कि आज भी कई दुर्लभ धातुओं के भस्मों से गम्भीर बीमारी का उपचार किया जाता है। साथ ही तांबे को सूर्य का धातु माना जाता है और यह हमारे शरीर के लिए भी आवश्यक तत्व है। इसके साथ ही मानव जीवन के लिए जड़ी-बुटी या धातुओं की आवश्यकता बहुत जरूरी है।

www.hindi.pardaphash.com

जानिए ब्रह्माजी ने क्यों बनाया अधिकमास

हिन्दू वर्ष में 12 माह होते हैं, लेकिन यह वर्ष करीब 13 माह का होगा। 12 चंद्र मास लगभग 354 दिन का होता है, जिसमें सूर्य की 12 संक्रांतियां होती हैं। जिस चन्द्र मास में सूर्य की संक्रांति नहीं होती है उसे मलमास या पुरुषोत्तम मास कहा जाता है| अधिकमास के संबंध में हिंदू पौराणिक कथाओं में कई किंवदंतियां मिलती हैं। कहते हैं अधिकमास के पीछे हिरण्यकशिपु का पहेलीनुमा वरदान था, जिसे सुलझाने के लिए ब्रह्माजी ने अधिक मास बनाया।

विष्णु पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार आदिपुरुष कश्यप और उनकी पत्नी दिति के दो पुत्र हुए। हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष। हिरण्यकशिपु ने कठिन तपस्या से ब्रह्माजी को प्रसन्न किया और वरदान मांगा कि, ' न वह किसी मनुष्य द्वारा मारा जा सकेगा और न पशु द्वारा, न दिन में मारा जा सकेगा न रात में, न घर के अंदर न ही घर के बाहर, न किसी अस्त्र के प्रहार से और न किसी शस्त्र के प्रहार से, न ही वर्ष के किसी माह में उसे नहीं मारा जा सके।

ब्रह्माजी ने उसे यह वरदान दे दिया। वरदान पाकर हिरण्यकशिपु अहंकारी बन गया। उसने स्वयं को भगवान घोषित कर दिया। युद्ध कर देवराज इंद्र से स्वर्ग भी छीन लिया। लेकिन उसका एक पुत्र था जिसका नाम था प्रह्लाद था, वह भगवान विष्णु का भक्त था। उसने अपने पुत्र को कई यातनाएं दीं ताकि वह पिता को भगवान मान कर उनकी पूजा करे, लेकिन यह संभव नहीं हो सका। हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को ऊंची चोटी से फिंकवाया। हाथी के नीचे कुचलवाया यहां तक कि अपनी बहन होलिका के जरिए उसे अग्निदाह भी करवाया लेकिन उसे किसी भी तरह से हानि नहीं पहुंचा सका।

अंत में जब उसके पापों का घड़ा भर गया तो भगवान विष्णु नृसिंह अवतार में प्रकट हुए। उन्होंने हिरण्यकशिपु से कहा कि, तुम्हारे वरदान के अनुसार न मैं मनुष्य हूं और न ही पशु, क्योंकि मेरा शरीर मनुष्य का है लेकिन सिर सिंह का। इस समय न दिन है और न रात यानी दिन का आखिरी प्रहर शाम के 6 बजे हुए हैं। न तुम इस समय घर में हो और न ही घर के बाहर यानी तुम घर की दहलीज(देहरी) पर है। और यह अधिक मास है। यानी वर्ष का 13 माह जो कि तुम्हारी मृत्यु की पहेली के लिए बनाया गया है। हिरण्यकशिपु तु्म्हें मैं किसी शस्त्र से नहीं बल्कि अपने नाखूनों से मारूंगा। इस तरह अब तुम्हारी मृत्यु निश्चित है। इस तरह भगवान नृसिंह ने हिरण्यकशिपु का वध कर दिया। 

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीनकाल में जब अधिक मास उत्पन्न हुआ, तब स्वामी रहित होने के कारण उसे मलमास कहा गया। सर्वत्र निंदा होने पर वह बैकुंठ में भगवान विष्णु के पास पहुंचा और अपनी व्यथा सुनाई। मलमास की पीड़ा सुनकर भगवान विष्णु उसे सर्वेश्वर श्रीकृष्ण के पास ले गए। मलमास का दुख जानने के बाद भगवान श्रीकृष्ण उसे वरदान देते हुए बोले, मैं अब मलमास का स्वामी हो गया हूं, इसलिए आज से यह पुरुषोत्तम के नाम से जाना जाएगा।

पुरुषोत्तम मास में सारे काम भगवान को प्रसन्न करने के लिए निष्काम भाव से ही किए जाते हैं। इससे प्राणी में पवित्रता का संचार होता है। इस मास में किसी कामना की पूर्ति के लिए अनुष्ठान का आयोजन या विवाह, मुंडन, यज्ञोपवीत, नींव-पूजन, गृह-प्रवेश आदि सांसारिक कार्य सर्वथा निषिद्ध हैं। अधिक मास में भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण की उपासना, जप, व्रत, दान आदि करना चाहिए। संतों का कहना है कि अधिक मास में की गई साधना हमें ईश्वर के निकट ले जाती है।

वट सावित्री व्रत कल, जानिए पूजन विधि, महत्व व कथा

हमारे देश में महिलाएं अपने सुहाग की रक्षा के लिए तरह-तरह के व्रत करती हैं। वट सावित्री व्रत उनमें सबसे प्रमुख है| हर वर्ष सुहागिन महिलाओं द्वारा ज्येष्ठ मास की अमावस्या को वट सावित्री व्रत रखा जाता है| इस बार वट सावित्री पूजा 17 मई रविवार को है| इस बार अमावस्या दो दिन पड़ रही है| पहला दिन व्रत की अमावस्या है और दूसरे दिन स्नान दान की अमावस्या है| मान्यता है कि वटवृक्ष की जडों में ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु व डालियों व पत्तियों में भगवान शिव का निवास स्थान है| इस व्रत में महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती हैं, सति सावित्री की कथा सुनने व वाचन करने से सौभाग्यवति महिलाओं की अखंड सौभाग्य की कामना पूरी होती है|

ऐसे करें वट सावित्री व्रत और पूजन

सुहागन स्त्रियां वट सावित्री व्रत के दिन सोलह श्रृंगार करके सिंदूर, रोली, फूल, अक्षत, चना, फल और मिठाई से सावित्री, सत्यवान और यमराज की पूजा करें। यह व्रत करने वाली स्त्रियों को चाहिए कि वह वट के समीप जाकर जल का आचमन लेकर कहे-ज्येष्ठ मात्र कृष्ण पक्ष त्रयोदशी अमुक वार में मेरे पुत्र और पति की आरोग्यता के लिए एव जन्म-जन्मान्तर में भी मैं विधवा न होऊं इसलिए सावित्री का व्रत करती हूं। वट के मूल में ब्रह्म, मध्य में जर्नादन, अग्रभाग में शिव और समग्र में सावित्री है। हे वट! अमृत के समान जल से मैं तुमको सींचती हूं। ऐसा कहकर भक्तिपूर्व एक सूत के डोर से वट को बांधे और गंध, पुष्प तथा अक्षत से पूजन करके वट एवं सावित्री को नमस्कार कर प्रदक्षिणा करे|

वट सवित्री व्रत कथा

प्राचीनकाल में मद्रदेश में अश्वपति नाम के एक राजा राज्य करते थे। वे बड़े धर्मात्मा, ब्राह्मणभक्त, सत्यवादी और जितेन्द्रिय थे। राजा को सब प्रकार का सुख था, किन्तु कोई सन्तान नहीं थी। इसलिये उन्होंने सन्तान प्राप्ति की कामना से अठारह वर्षों तक पत्नि सहित सावित्री देवी का विधि पूर्वक व्रत तथा पूजन कठोर तपस्या की। सर्वगुण देवी सावित्री ने प्रसन्न होकर पुत्री के रूप में अश्वपति के घर जन्म लेने का वर दिया। यथासमय राजा की बड़ी रानी के गर्भ से एक परम तेजस्विनी सुन्दर कन्या ने जन्म लिया। राजा ने उस कन्या का नाम सावित्री रखा। राजकन्या शुक्ल पक्षके चन्द्रमा की भाँति दिनों-दिन बढ़ने लगी। धीरे-धीरे उसने युवावस्था में प्रवेश किया। उसके रूप-लावण्य को जो भी देखता उसपर मोहित हो जाता।

कन्या के युवा होने पर अश्वपति ने सावित्री के विवाह का विचार किया । राजा के विशेष प्रयास करने पर भी सावित्री के योग्य कोई वर नहीं मिला। उन्होंने एक दिन सावित्री से कहा—‘बेटी ! अब तुम विवाह के योग्य हो गयी हो, इसलिये स्वयं अपने योग्य वर की खोज करो।’ पिताकी आज्ञा स्वीकार कर सावित्री योग्य मन्त्रियों के साथ स्वर्ण-रथपर बैठकर यात्रा के लिये निकली। कुछ दिनों तक ब्रह्मर्षियों और राजर्षियों के तपोवनों और तीर्थोंमें भ्रमण करने के बाद वह राजमहल में लौट आयी। उसने पिता के साथ देवर्षि नारद को बैठे देखकर उन दोनों के चरणों में श्रद्धा से प्रणाम किया। महाराज अश्वपति ने सावित्री से उसी यात्रा का समाचार पूछा सावित्री ने कहा—पिताजी ! तपोवन में अपने माता-पिता के साथ निवास कर रहे द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान् सर्वथा मेरे योग्य हैं। अतः सत्यवान की कीर्ति सुनकर उन्हें मैंने पति रूप में वरण कर लिया है | ’ नारद जी सत्यवान तथा सावित्री के ग्रहो की गणना कर राजा अश्वति से बोले—‘राजन ! सावित्री ने बहुत बड़ी भूल कर दी है। सत्यवान् के पिता शत्रुओं के द्वारा राज्य से वंचित कर दिये गये हैं, वे वन में तपस्वी जीवन व्यतीत कर रहे हैं और अन्धे हो चुके हैं। सबसे बड़ी कमी यह है कि सत्यवान् की आयु अब केवल एक वर्ष ही शेष है। और सावित्री के बारह वर्ष की आयु होने पर सत्यवान कि मृत्यु हो जायेगी ।’

नारदजी की बात सुनकर राजा अश्वपति व्यग्र हो गये। उन्होंने सावित्री से कहा—‘बेटी ! अब तुम फिर से यात्रा करो और किसी दूसरे योग्य वर का वरण करो।’

सावित्री सती थी। उसने दृढ़ता से कहा—‘पिताजी ! आर्य कन्या होने के नाते जब मै सत्यवान का वरण कर चुकी हूँ तो अब सत्यवान् चाहे अल्पायु हों या दीर्घायु, अब तो वही मेरे पति बनेगें। जब मैंने एक बार उन्हें अपना पति स्वीकार कर लिया, फिर मैं दूसरे पुरुषका वरण कैसे कर सकती हूँ ?’

सावित्री का निश्चय दृढ़ जानकर महाराज अश्वपति ने उसका विवाह सत्यवान् से कर दिया।सावित्री ने नारदजी से सत्यवान की मृत्यु का समय ज्ञातकर लिया तथा अपने श्वसुर परिवार के साथ जंगल मे रहने लगी । धीरे-धीरे वह समय भी आ पहुँचा, जिसमें सत्यवान् की मृत्यु निश्चित थी। सावित्री ने नादरजी द्वारा बताय हुये दिन से तीन दिन पूर्व से ही निराहार व्रत रखना शुरू कर दिया था। नारद द्वारा निश्चित तिथि को पति एवं सास-ससुर की आज्ञा से सावित्री भी उस दिन पति के साथ जंगल में फल-मूल और लकड़ी लेने के लिये गयी। सत्यवान वन में पहुँचकर लकडी काटने के लिए बड के पेड पर चढा । अचानक वृक्ष से लकड़ी काटते समय सत्यवान् के सिर में भंयकर पीडा होने लगी और वह पेड़ से नीचे उतरा। सावित्री ने उसे बड के पेड के नीचे लिटा कर उसका सिर अपनी गोद में रख लिया (कही-कही ऐसा भी उल्लेख मिलता हैं कि वट वृक्ष के नीचे लेटे हुए सत्यवान को सर्प ने डस लिया था) । उसी समय सावित्री को लाल वस्त्र पहने भयंकर आकृति वाला एक पुरुष दिखायी पड़ा। वे साक्षात् यमराज थे। यमराज ने ब्रम्हा के विधान के रूप रेखा सावित्री के सामने स्पष्ट की और सावित्री से कहा—‘तू पतिव्रता है। तेरे पति की आयु समाप्त हो गयी है। मैं इसे लेने आया हूँ।’ इतना कहकर देखते ही देखते यमराज ने सत्यवान के शरीर से सूक्ष्म जीवन को निकाला और सत्यवान के प्राणो को लेकर वे दक्षिण दिशा की ओर चल दिये। सावित्री भी सत्यावान को वट वृक्ष के नीचे ही लिटाकर यमराज के पीछे पीछे चल दी । पीछे आती हुई सावित्री को यमराज ने उसे लौट जाने का आदेश दिया । इस पर वह बोली महराज जहा पति वही पत्नि । यही धर्म है, यही मर्यादा है । सावित्री की बुद्धिमत्ता पूर्ण और धर्मयुक्त बाते सुनकर यमराज का हृदय पिघल गया। सावित्री के धर्म निष्ठा से प्रसन्न होकर यमराज बोले पति के प्राणो से अतिरिक्त कुछ भी माँग लो । सावित्री ने यमराज से सास-श्वसुर के आँखो ज्योती और दीर्घायु माँगी । यमराज तथास्तु कहकर आगे बढ गए सावित्री भी यमराज का पीछा करते हुये रही । यमराज ने अपने पीछे आती सावित्री से वापिस लौटे जाने को कहा तो सावित्री बोली पति के बिना नारी के जीवन के कोई सार्थकता नही । यमराज ने सावित्री के पति व्रत धर्म से खुश होकर पुनः वरदान माँगने के लिये कहा इस बार उसने अपने श्वसुर का राज्य वापिस दिलाने की प्रार्थना की । तथास्तु कहकर यमराज आगे चल दिए सावित्री अब भी यमराज के पीछे चलती रही इस बार सावित्री ने सौ पुत्रो का वरदान दिया है, पर पति के बिना मैं पुत्रो का वरदान दिया है पर पति के बिना मैं माँ किस प्रकार बन सकती हूँ, अपना यह तीसरा वरदान पूरा कीजिए। सावित्री की धर्मनिष्ठा,ज्ञान, विवेक तथा पतिव्रत धर्म की बात जानकर यमराज ने सत्यवान के प्राणो को अपने पाश से स्वतंत्र कर दिया । सावित्री सत्यवान के प्राण को लेकर वट वृक्ष के नीचे पहुँची जहाँ सत्यवान के प्राण को लेकर वट वृक्ष के नीचे पहुँची जहाँ सत्यवान का मृत शरीर रखा था । सावित्री ने वट वृक्ष की परिक्रमा की तो सत्यवान जीवित हो उठा । प्रसन्नचित सावित्री अपने सास-श्वसुर के पास पहुँची तो उन्हे नेत्र ज्योती प्राप्त हो गई इसके बाद उनका खोया हुआ राज्य भी उन्हे मिल गया आगे चलकर सावित्री सौ पुत्रो की माता बनी ।

इस प्रकार सावित्री ने सतीत्व के बल पर न केवल अपने पति को मृत्यु के मुख से छीन लिया बल्कि पतिव्रत धर्म से प्रसन्न कर यमराज से सावित्री ने अपने सास-ससुर की आँखें अच्छी होने के साथ राज्यप्राप्त का वर, पिता को पुत्र-प्राप्ति का वर और स्वयं के लिए पुत्रवती होने के आशीर्वाद भी ले लिया। तथा इस प्रकार चारो दिशाएँ सावित्री के पतिव्रत धर्म के पालन की कीर्ति से गूँज उठी ।

 WWW.PARDAPHASH.COM

स्वाद और सेहत का खजाना है सलाद

सलाद हमारे भोजन में बहुत महत्व रखता है। सलाद खाने से हमारे शरीर को सारे पौष्टिक तत्व मिलते हैं। इसीलिए इसे रात को खाना खाने से पहले या खाने के साथ खाना चाहिए। सलाद पेट तो भरता ही है ज्यादा खाना खाने से भी बचाता है। संतुलित भोजन के सेवन से संक्रामक रोगों से जहां बचा जा सकता है वहां पौष्टिक तत्वों के सेवन से शरीर का सुचारू रूप से विकास भी होता है। अनियमित भोजन से मनुष्य विभिन्न रोगों का शिकार हो जाता है जो अंत में उग्र रूप धारण कर लेते हैं। सलाद का भोजन के साथ प्रमुख स्थान होने का मुख्य कारण इसमें सभी विटामिनों, पौष्टिक तत्वों, लोहा, फास्फोरस, गंधक, कार्बोहाइड्रेट्स, वसा, प्रोटीन आदि का होना है।

हरी मिर्च, मूली, गाजर, टमाटर, बंदगोभी, प्याज, नींबू, अदरक आदि के कच्चा खाने पर मूल रूप से अधिक से अधिक विटामिन प्राप्त हो जाते हैं जो स्वास्थ्य बनाये रखने हेतु लाभदायक हैं। सब्जियों को उबाल कर बनाने से विटामिन्स नष्ट हो जाते हैं अथवा शरीर को आवश्यकतानुसार नहीं मिल पाते। यदि सलाद के साथ-साथ पोदीन की चटनी का सेवन करें तो यह अति गुणकारी होता है। इससे पाचन क्रिया सुदृढ़ होती है। भोजन शीघ्र पचता है। मूली से विटामिन बीसी और गाजर से विटामिन एसी लोहा तथा शलजम से विटामिन बी, सी, अधिक एवं वसा की कम प्राप्ति होती है। प्याज में विटामिन बीसी गंधक, फास्फोरस पर्याप्त मात्रा में मिलता है। बंदगोभी से तो विटामिन ए, बीसी, के अतिरिक्त कार्बोहाइड्रेट्स, लवण और वसा की प्राप्ति में बहुत लाभ है। टमाटर से भी एबीसी के साथ कार्बोज, प्रोटीन, वसा आदि प्राप्त होता है। नींबू से भरपूर विटामिन सी मिलता है। चुकंदर तो पूर्ण स्वास्थ्यवर्ध्दक है।

चुकन्दर, मूली, शलजम आदि के मुलायाम पत्तों को भी सलाद रूप में सेवन करने से सर्वाधिक विटामिन मिलते हैं। वृध्दावस्था में सलाद का खाना एक समस्या बन जाता है। इसके लिये सलाद को जहां तक हो सके, तरल एवं बारीक बनाया जा सकता है। मूली, गाजर, शलजम, अदरक आदि को कसकर और टमाटर का जूस निकाल कर आसानी से सलाद के रूप में सेवन किया जा सकता है। अतः सलाद बच्चों, बूढ़ों, जवानों एवं महिलाओं आदि के लिये सेवन करना अति गुणकारी है क्योंकि यह स्वयं में एक वैद्य है। यह शरीर में सभी कमियों को दूर कर रक्त को शुध्द कर पूर्ण स्वास्थ्य लाभ पहुंचाता है जिसके कारण मानव अनेक रोगों का शिकार हो जाता है।

गर्भावस्था के दौरान भी सलाद के पत्ते खाना बहुत लाभदायक होता है। कम कैलोरी में इससे ज़्यादा ख़ुराक मिल जाती है। विशेष रूप से इसमें मौजूद फोलिक एसिड, जिसकी गर्भावस्था के समय तथा बाद में भी शरीर को आवश्यकता रहती है, अच्छी मात्रा में पाया जाता है। फोलिक एसिड मेगालोब्लास्टिक एनिमिया को रोकता है। तथा जिनमें बार बार गर्भपात की संभावना रहती है उन्हें भी कच्चे सलाद के पत्ते खाने की सलाह दी जाती है। कच्चे सलाद के पत्ते खाने से महिलाओं के शरीर में प्रोजेस्टेरोन होरमोन के स्राव पर भी प्रभाव पड़ता है। भोजन के तुरंत बाद सलाद के पत्ते चबाने से दाँतों की बहुत सी बीमारियों जैसे गिंगिविटिस, पायरिया, हेलीटोसिस, स्टोमेटिटिस आदि से निजात मिल सकती है। जिह्वा पर उपस्थित स्वादग्राही तंतुओं तथा इनेमल के क्षय में भी रूकावट पड़ती है। प्रतिदिन आधा लीटर सलाद के पत्ते तथा पालक के रस को पीने से बालों का झड़ना भी कम होता है। 

खीरे का सलाद कब्ज दूर करता है। पीलिया, प्यास, ज्वर, शरीर की जलन और गर्मी की सारी समस्याओं को दूर करता है तथा इससे चर्म रोगों में लाभ पहुंचता है। यदि आपके सलाद में टमाटर भी है तो इससे शरीर में विटामिन ए की कमी को पूरा किया जा सकता है। कच्चा टमाटर खाने से कब्ज़ दूर होती है। यह पाचन शक्ति को बढ़ाता है और रक्त चाप तथा मोटापे को कम करने में भी सहायक सिद्ध होता है। यदि सलाद में खीरे और टमाटर के अतिरिक्त ककड़ी भी हो तो बहुत अच्छी बात है क्योंकि इसमें पोटेशियम तत्व बहुत मिलते हैं।

रोजाना विटामिन सी के सेवन से कैंसर व हृदय रोगों का जोखिम कम हो जाता है। ये इम्यूनिटी के लिए भी महत्वपूर्ण हैं और इन्हीं की बदौलत सर्दी ज़ुकाम तथा वायरसों के अन्य हमलों की अवधि व गंभीरता में कमी आती है। ताजा फलों व सब्जियों में शक्तिशाली एंटी-ऑक्सीडेंट होते हैं, जैसे विटामिन ए और सी, जो हृदयरोग व कैंसर से बचाव करते हैं। सलाद के पत्ते जैसे कि लैटूयूस में कैलोरी कम होती है और इनमें 90 प्रतिशत पानी होता है; लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि इसमें कई महत्वपूर्ण विटामिन व खनिज होते हैं, जैसे कि कैल्शियम, तांबा, पोटेशियम, आयरन, विटामिन ए और सी।

गैस की समस्या से हैं परेशान तो अपनाइए ये घरेलू नुस्खे

लगातार बैठ कर काम करने और खान-पान सावधानी नहीं रखने के कारण गैस की समस्या आज आम हो गई है। इस रोग में डकारें आना, पेट में गैस भरने से बेचैनी, घबराहट, छाती में जलन, पेट में गुड़गुडाहट, पेट व पीठ में हलका दर्द, सिर में भारीपन, आलस्य व थकावट तथा नाड़ी दुर्बलता जैस लक्षण देखने को मिलते हैं। कभी-कभी भूख नहीं लगने पर भी कुछ न कुछ खाने की बेवजह आदतों से भी पेट में एसिडिटी बनने लगती है। यदि आपको भी गैस की समस्या रहती है तो अब घबराने की जरुरत नहीं बस यहाँ कुछ घरेलू उपाय बताये जा रहे हैं जिन पर ध्यान दिया जाए तो इस समस्या से हल निकल सकता है| 

भोजन में मूंग, चना, मटर, अरहर, आलू, सेम, चावल, तथा तेज मिर्च मसाले युक्त आहार अधिक मात्रा में सेवन न करें! शीर्घ पचने वाले आहार जैसे सब्जियां, खिचड़ी, चोकर सहित बनी आटें कि रोटी, दूध, तोरई, कद्दू, पालक, टिंडा, शलजम, अदरक, आवंला, नींबू आदि का सेवन अधिक करना चाहिए। भोजन खूब चबा चबा कर आराम से करना चाहिए! बीच बीच में अधिक पानी ना पिएं! भोजन के दो घंटे के बाद 1 से 2 गिलास पानी पिएं। दोनों समय के भोजन के बीच हल्का नाश्ता फल आदि अवश्य खाएं। 

तेल गरिष्ठ भोजन से परहेज करें! भोजन सादा, सात्त्विक और प्राक्रतिक अवस्था में सेवन करने कि कोशिश करें। दिन भर में 8 से 10 गिलास पानी का सेवन अवश्य करें। प्रतिदिन कोई न कोई व्यायाम करने कि आदत जरुर बनाएं! शाम को घूमने जाएं! पेट के आसन से व्यायाम का पूरा लाभ मिलता है। प्राणयाम करने से भी पेट की गैस की तकलीफ दूर हो जाती है| शराब, चाय, कॉफी, तम्बाकू, गुटखा, जैसे व्यसन से बचें। दिन में सोना छोड़ दें और रात को मानसिक परिश्रम से बचें|

एक चम्मच अजवाइन के साथ चुटकी भर काला नमक भोजन के बाद चबाकर खाने से पेट कि गैस शीर्घ ही निकल जाती है| अदरक और नींबू का रस एक एक चम्मच कि मात्रा में लेकर थोड़ा सा नमक मिलकर भोजन के बाद दोनों समय सेवन करने से गैस कि सारी तकलीफें दूर हो जाती हैं , और भोजन भो हजम हो जाता है! भोजन करते समय बीच बीच में लहसुन, हिंग, थोड़ी थोड़ी मात्रा में खाते रहने से गैस कि तकलीफ नहीं होती| हरड, सोंठ का चूर्ण आधा आधा चम्मच कि मात्रा में लेकर उसमे थोड़ा सा सेंधा नमक मिलाकर भोजन के बाद पानी से सेवन करने से पाचन ठीक प्रकार से होता है और गैस नहीं बनती! नींबू का रस लेने से गैस कि तकलीफ नहीं होती और पाचन क्रिया सुधरती है! 

गैस बनने पर हींग, जीरा, अजवायन और काला नमक, बहुत कम मात्रा में नौसादर मिलाकर गुनगुने पानी से लें। इनमें से कोई एक चीज भी ले सकते हैं। इसके अलावा आधे कच्चे, आधे भुने जीरे को कूट कर गर्म पानी से दो ग्राम लें। ऐसा दिन में दो बार एक सप्ताह तक करें। इसके बाद मोटी सौंफ को भून-पीसकर गुड़ के साथ मिक्स करके 6-6 ग्राम के लड्डू बना लें। दिन में दो-तीन बार लड्डू चूसें। 

एक मुनक्के का बीज निकालकर उसमें मूंग की दाल के एक दाने के बराबर हींग या फिर लहसुन की एक छिली कली रखकर मुनक्के को बंद कर लें। इसे सुबह खाली पेट पानी से निगल लें। इसके 20-25 मिनट बाद तक कुछ न खाएं। तीन दिन लगातार ऐसा करें। इसके अलावा अजवायन, जीरा, छोटी हरड़ और काला नमक बराबर मात्रा में पीस लें। बड़ों के लिए दो से छह ग्राम, खाने के तुरंत बाद पानी से लें। बच्चों के लिए मात्रा कम कर दें। 

लहसुन की एक-दो कलियों के बारीक टुकड़े काटकर थोड़ा-सा काला नमक और नीबू की बूंदें डालकर गर्म पानी से सुबह खाली पेट निगल लें। इससे कॉलेस्ट्रॉल, एंजाइना और आंतों की टीबी आदि बीमारियां ठीक होने में भी मदद मिलेगी। गर्मियों में एक-दो और सर्दियों में दो-तीन कलियां लें। बिना दूध की नीबू की चाय भी फायदा करती है, पर नीबू की बूंदें चाय बनाने के बाद ही डालें। इसमें चीनी की जगह हल्का-सा काला नमक डाल लें, फायदा होगा। 

पांच ग्राम हल्दी या अजवायन और तीन ग्राम नमक मिलाकर पानी से लें। 
दो लौंग चूस लें या फिर उन्हें उबालकर उस पानी को पी लें। 
पानी में 10-12 ग्राम पुदीने का रस और 10 ग्राम शहद मिलाकर लें। 
खाना खाने के बाद 25 ग्राम गुड़ खाने से गैस नहीं बनती और आंतें मजबूत रहती हैं। 
बेल का चूर्ण, त्रिफला और कुटकी मिलाकर (दो से छह ग्राम) रात को खाना खाने के बाद पानी से लें।

hindi.pardaphash.com

मेकअप के समय ऑयली स्किन वाली महिलाएं रखें विशेष ध्यान

सभी महिलाएं चाहती हैं कि उनकी त्वचा सुंदर दिखे लेकिन सही स्किन न होने के कारण ऐसा नहीं हो पाता है। चेहरे का ड्राई होना, पिंपल्स का होना, ब्लैक स्पॉट होना हमारी सुंदरता को बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। चेहरे की इन समस्याओं में से सबसे बड़ी समस्या ऑयली स्किन की है| कई महिलाओं की शिकायत रहती है कि उनकी स्किन ऑयली है, इसीलिए वो ज्यादा मेकअप नहीं करतीं। ऑयली स्किन होना आम बात है और इसकी ज्यादा चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। हां मेकअप करते समय आप कुछ बातों पर ध्यान दें तो ऑयली स्किन से छुटकारा पा सकती हैं।

मेकअप करने से पहले आप अपने चेहरे को धोएं और स्क्रब करें। यह बहुत जरूरी है मेकअप करने से पहले| त्वचा को तैयार करें मेकअप लगाने से पहले अपने चेहरे को एल्कोहल फ्री टोनर से साफ करें। इसे क्लींजर से चेहरा साफ करने के 5 मिनट बाद ही लगाएं। यह तेल को सोख लेता है और त्वचा को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचाता है। ऑयली स्किन होने पर आप अपने लिए ऑयल फ्री फाउंडेशन चुन सकते हैं। यह त्वचा के रोम छिद्रों को पूरी तरह से ढक देता है और चेहरे पर अच्छी तरह से लग भी जाता है। अच्छे रिजल्ट के लिये इसे थोड़े से मॉइस्चराइजर के साथ मिक्स करें और चेहरे पर उंगलियों या ब्रश की मदद से लगाएं।

आप अपनी स्किन से मेल खाता कंसीलर खरीदें। इसे चेहरे के दाग धब्बों पर लगा कर उसे छुपा सकती हैं। इसे लगाने के लिये आप ब्रश या उंगलियों का प्रयोग कर सकती हैं। हमेशा अपने साथ एक ऑइल ब्लाटिंग शीट रखें। इससे आप आराम से चेहरे पर जमे तेल को सोख सकती हैं| फाउंडेशन लगाने के बाद ट्रांसलूसेंट पाउडर लगाना चाहिये। इसे फाउंडेशन लगाने के 10 मिनट बाद लगाएं और ध्यान दे कर गालों, माथा और नाक को हाईलाइट करें। ट्रांसलूसेंट पाउडर हमेशा लाइट कलर का होना चाहिये।

हो सके तो चेहरे पर अंडे का सफेद भाग लगाएं और थोड़ी देर के बाद जब ये सूख जाए, तो उसे बेसन के आटे से साफ कर लें| चावल के आटे में पुदीने का अर्क और गुलाबजल मिलाकर, गोलाई में घुमाते हुए चेहरे पर लगाएं| इसके सुखने के बाद पानी से धो लें| ऑयली त्वचा पर मुहांसे की समस्या आम होती है। इसके लिए दवा लें लेकिन इन्हें फोड़ने की गलती न करें। इससे संक्रमण फैलता है और ऑयली त्वचा की समस्याएं बढ़ जाती हैं। दिन में कम से कम आठ ग्लास पानी रोज पिएं जिससे त्वचा सेहतमंद रहेगी और शरीर डीटॉक्सिफाई होगी।

इस किले पर दशकों से हर साल गिरती है आकाशीय बिजली, जानिए क्यों?

आपने कई किलों के खंडहर में तब्दील होने की कहानी सुनी और देखी भी होगी, लेकिन प्रतिवर्ष आकाशीय बिजली गिरने से एक किले को तबाह होते कभी नहीं देखा होगा। यह हकीकत है। झारखंड के रांची-पतरातू मार्ग के पिठौरिया गांव स्थित राजा जगतपाल सिंह के 100 कमरों का विशाल महल (किला) इसका साक्षात प्रमाण है। यह आकाशीय बिजली गिरने से तबाह हो गया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि इसके पीछे एक 'श्राप' है।

झारखंड की राजधानी रांची से करीब 18 किलोमीटर दूर पिठौरिया गांव में दो शताब्दी पुराना यह किला राजा जगतपाल सिंह का है, जो आज खंडहर में तब्दील हो चुका है। इस किले पर दशकों से हर साल आसमानी बिजली गिरती है, जिससे हर साल इसका कुछ हिस्सा टूटकर गिर जाता है। पिठौरिया गांववासियों की मान्यता है कि ऐसा एक क्रांतिकारी द्वारा राजा जगतपाल सिंह को दिए गए श्राप के कारण होता है। बिजली गिरना वैसे तो एक प्राकृतिक घटना है, लेकिन यहां के लोग एक ही जगह पर दशकों से लगातार बिजली गिरने को एक आश्चर्यजनक की बात मानते हैं।

इतिहासकार डा. भुवनेश्वर अनुज ने बताया कि पिठौरिया शुरुआत से ही मुंडा और नागवंशी राजाओं का प्रमुख केंद्र रहा है। यह इलाका 1831-32 में हुए कौल विद्रोह के कारण इतिहास में अंकित है। पिठौरिया के राजा जगतपाल सिंह ने क्षेत्र का चहुंमुखी विकास किया। इसे व्यापार और संस्कृति का प्रमुख केंद्र बनाया। वह क्षेत्र की जनता में काफी लोकप्रिय था, लेकिन उनकी कुछ गलतियों ने उसका नाम इतिहास में खलनायकों और गद्दारों की सूची में शामिल करवा दिया।

उन्होंने बताया कि वर्ष 1831 में सिंदराय और बिंदराय के नेतृत्व में आदिवासियों ने आंदोलन किया था, लेकिन यहां की भौगोलिक परिस्तिथियों से अनजान अंग्रेज, विद्रोह को दबा नहीं पा रहे थे। ऐसे में अंग्रेज अधिकारी विलकिंग्सन ने राजा जगतपाल सिंह के पास सहायता का संदेश भिजवाया, जिसे उसने स्वीकार करते हुए अंग्रेजों की मदद की। उनकी इस मदद के बदले तत्कालीन गवर्नर जनरल विलियम वैंटिक ने उन्हें 313 रुपये प्रतिमाह आजीवन पेंशन दी।

इतिहासकारों के मुताबिक, 1857 के दौरान भी उसने अंग्रेजों का साथ दिया था। स्थानीय बुजुर्ग कहते हैं कि जगतपाल सिंह की गवाही के कारण ही झारखंड के क्रांतिकारी ठाकुर विश्वनाथ नाथ शाहदेव को फांसी दी गई थी। मान्यता है कि विश्वनाथ शाहदेव ने जगतपाल सिंह को अंग्रेजों का साथ देने और देश के साथ गद्दारी करने पर यह श्राप दिया कि आने वाले समय में जगतपाल सिंह का कोई नामलेवा नहीं रहेगा और उसके किले पर हर साल बिजली गिरेगी। तब से हर साल इस किले पर बिजली गिरती आ रही है। इस कारण किला खंडहर में तब्दील हो चुका है।

भूगर्भशास्त्री ग्रामीणों की इस मान्यता से सहमत नहीं हैं। किले पर शोध कर चुके जाने-माने भूगर्भशास्त्री नितीश प्रियदर्शी इसके दूसरे ही कारण बताते हैं। उनके मुताबिक, यहां मौजूद ऊंचे पेड़ और पहाड़ों में मौजूद लौह अयस्कों की प्रचुरता दोनों मिलकर आसमानी बिजली को आकर्षित करने का एक बहुत ही सुगम माध्यम उपलब्ध कराती है। इस कारण बारिश के दिनों में यहां अक्सर बिजली गिरती है। बहरहाल ग्रामीणों की मान्यता और भूगर्भशास्त्रियों की शोध के अपने-अपने दावे हैं, लेकिन कई लोगों के लिए आज भी यह प्रश्न बना हुआ है कि यह किला जब दशकों तक आबाद रहा, तब क्यों नहीं बिजलियां गिरी थी? उस समय तो और ज्यादा पेड़ और लौह अयस्क रहे होंगे। 

www.pardaphash.com

हथेली देखकर स्वयं जानिए भाग्य ने आपके लिए किस तरह का करियर चुना है

भविष्य से जुड़े सभी प्रश्नों के सटीक उत्तर ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्राप्त किए जा सकते हैं। यदि किसी व्यक्ति को ज्योतिष में महारत हासिल हो तो वह आने वाले कल में होने वाली घटनाओं की जानकारी दे सकता है। भविष्य जानने की कई विद्याएं प्रचलित हैं, इन्हीं में से एक विद्या है हस्तरेखा ज्योतिष। हाथों में दिखाई देने वाली रेखाएं और हमारे भविष्य का गहरा संबंध है। इन रेखाओं का अध्ययन किया जाए तो हमें भविष्य में होने वाली घटनाओं की भी जानकारी प्राप्त हो सकती है। वैसे तो हाथों की सभी रेखाओं का अलग-अलग महत्व होता है। लेकिन अगर आप अपनी रेखाओं को ध्यान से देखें तो जान सकते हैं कि भाग्य ने आपके लिए किस तरह का करियर चुना है...

एस्ट्रो गुरु विजय कुमार के अनुसार, मजबूत शनि, लम्बी गहरी मस्तिष्क रेखा, लम्बी एवं गांठदार अंगुलियां जातक का रूझान मशीनरी क्षेत्र में करती हैं। इसके अलावा जिस जातक की लम्बी कनिष्ठा, उठा हुआ शुक्र तथा तर्जनी का विकसित एवं मोटा तीसरा पोरा हो तो आप समझ जाइए कि आप पाकशास्त्री हो सकते हैं|

निष्कंलक अर्थात् शुद्ध भाग्य रेखा अनामिका की तुलना में लम्बी तर्जनी, कनिष्ठा, अनामिका के पहले पोरे को पारकर जाए। शाखायुक्त मस्तिष्क रेखा, अच्छा मजबूत दोषयुक्त सूर्य क्षेत्र तथा श्रेष्ठ अन्य रेखाएं जातक को प्रशासन संबंधी कार्यों की ओर ले जाने का संकेत करती हैं। लम्बी शनि अंगुली, सबल एवं लम्बा दूसरा पोरा तथा सख्त हाथ कृषि की तरफ रूझान देता है।

लम्बा एवं सख्त मजबूत अंगूठा, उन्नत शुक्र एवं मंगल अच्छी सूर्य एवं भाग्य रेखा तथा वर्गाकार या चमसाकार अंगुलियां सैन्य सेवा के लिए अच्छी हैं। इसके साथ यदि मंगल अति विकसित एवं सख्त है तो थल सेना के लिए उपयुक्त है। यदि उक्त के साथ विकसित बृहस्पति एवं मजबूत एवं थोड़ा सा अन्तराल लिए मस्तिष्क एवं जीवन रेखा का उदय हो तो हवाई सेना के लिए संकेत हैं।

अपने उदय के समय मस्तिष्क रेखा एवं जीवन रेखा थोड़ा गैप लेकर चले तथा मस्तिष्क रेखा के अंत में कोई फोर्क (द्विशाखा) हो, कनिष्ठा का पहला पोरा लम्बा एवं मजबूत हो तथा अच्छा बुध, तीन खड़ी लाइन युक्त हो तथा मजबूत अंगूठे का दूसरा पोरा सबल हो तो यह न्याय के क्षेत्र में ले जाने का संकेत है।

अंगुलियों की तुलना में लम्बी हथेली, कोणाकार अंगुलियां, मस्तिष्क एवं जीवन रेखा में प्रारम्भ से ही गैप तथा शाखा युक्त मस्तिष्क रेखा एवं शुक्र व चन्द्र अच्छे हों तो समझ जाइए आपके गायकी क्षेत्र में जाने के संकेत हैं| लम्बी एवं शाखा युक्त मस्तिष्क रेखा जिसकी एक शाखा बुध पर जाए, विकसित बुध तथा शुक्र तथा सूर्य एवं अच्छा चन्द्र एवं लम्बी कनिष्ठा अंगुली ऐक्टिंग के लिए उपयुक्त है। डांसर के लिए लचीला अंगूठा, लचीली एवं हथेली की तुलना में लम्बी अंगुलियां हों|

लम्बा अंगूठा, तर्जनी का लम्बा दूसरा पोरा वर्गाकार हथेली, अच्छी संधि गांठें, अंगुलियों की वर्गाकार नोक, विकसित शनि एवं लम्बी मध्यमा तथा मस्तिष्क रेखा एवं अच्छा बुध इंजीनियर के लिए उपयुक्त हैं। अच्छी एवं सफेद धब्बे युक्त मस्तिष्क रेखा तथा अच्छे बुध पर त्रिकोण का चिह्न वैज्ञानिक क्षेत्र में ले जाने के लिए उचित है। अच्छे बुध पर तीन-चार खड़ी लाइनें, लम्बी एवं गांठदार अंगुलियां तथा वर्गाकार हथेली तथा अच्छी आभास रेखा चिकित्सा क्षेत्र के लिए उपयुक्त है।

www.pardaphash.com

जानिए कोई भी शुभ कार्य करते समय क्यों बनाते हैं स्वास्तिक?

हिन्दू धर्म व भारतीय संस्कृति में वैदिक काल से ही स्वस्तिक को विशेष महत्त्व प्रदान किया गया है। यूँ तो बहुत से लोग इसे हिन्दू धर्म का एक प्रतीक चिह्न ही मानते हैं । किन्तु वे लोग ये नहीं जानते कि इसके पीछे कितना गहरा अर्थ छिपा हुआ है। स्वस्तिक शब्द को "सु" एवं "अस्ति" का मिश्रण योग माना जाता है । यहाँ "सु" का अर्थ है शुभ और "अस्ति" का अर्थ होना । संस्कृ्त व्याकरण अनुसार "सु" एवं "अस्ति" को जब संयुक्त किया जाता है तो जो नया शब्द बनता है वो है "स्वस्ति" अर्थात "शुभ हो", "कल्याण हो" ।

स्वस्तिक शब्द सु+अस+क से बना है। 'सु' का अर्थ अच्छा, 'अस' का अर्थ सत्ता 'या' अस्तित्व और 'क' का अर्थ है करने वाला। इस प्रकार स्वस्तिक शब्द का अर्थ हुआ मंगल करने वाला। इसलिए देवता का तेज़ शुभ करनेवाला - स्वस्तिक करने वाला है और उसकी गति सिद्ध चिह्न 'स्वस्तिक' कहा गया है। प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में स्वस्तिक को मंगल-प्रतीक माना जाता रहा है। विघ्नहर्ता गणेश की उपासना धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी के साथ भी शुभ लाभ, स्वस्तिक तथा बहीखाते की पूजा की परम्परा है। इसे भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान प्राप्त है। इसीलिए जातक की कुण्डली बनाते समय या कोई मंगल व शुभ कार्य करते समय सर्वप्रथम स्वास्तिक को ही अंकित किया जाता है।

किसी भी पूजन कार्य का शुभारंभ बिना स्वस्तिक के नहीं किया जा सकता। चूंकि शास्त्रों के अनुसार श्री गणेश प्रथम पूजनीय हैं, अत: स्वस्तिक का पूजन करने का अर्थ यही है कि हम श्रीगणेश का पूजन कर उनसे विनती करते हैं कि हमारा पूजन कार्य सफल हो। स्वस्तिक बनाने से हमारे कार्य निर्विघ्न पूर्ण हो जाते हैं। किसी भी धार्मिक कार्यक्रम में या सामान्यत: किसी भी पूजा-अर्चना में हम दीवार, थाली या ज़मीन पर स्वस्तिक का निशान बनाकर स्वस्ति वाचन करते हैं। साथ ही स्वस्तिक धनात्मक ऊर्जा का भी प्रतीक है, इसे बनाने से हमारे आसपास से नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है। आपको बता दें कि स्वस्तिक चिन्ह को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। जिन्हें शुभ कार्यो में आम की पत्तियों को आपने लोगों को अक्सर घर के दरवाजे पर बांधते हुए देखा होगा क्योंकि आम की पत्ती ,इसकी लकड़ी ,फल को ज्योतिष की दृष्टी से भी बहुत शुभ माना जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि आखिर स्वास्तिक क्यों बनाया जाता है> 

भारतीय दर्शन के अनुसार स्वस्तिक की चार रेखाओं को चार वेद, चार पुरूषार्थ, चार आश्रम, चार लोक और चार देवों यानी ब्रह्मा, विष्णु, महेश और गणेश से तुलना की गई है। ऋग्वेद में स्वास्तिक को सूर्य का प्रतीक माना गया है और उसकी चार भुजाओं को चार दिशाओं की उपमा दी गई है। जबकि सिद्धान्तसार ग्रन्थ में स्वास्तिक को विश्व ब्रह्माण्ड का प्रतीक चित्र माना गया है। उसके मध्य भाग को विष्णु की कमल नाभि और रेखाओं को ब्रह्माजी के चार मुख, चार हाथ और चार वेदों के रूप में निरूपित किया गया है।

हर मंगल कार्य में स्वास्तिक बनाया जाता है, क्योंकि इसका बायां हिस्सा गणेश की शक्ति का स्थान गं बीजमंत्र होता है। इसमें जो चार बिंदियां होती हैं, उनमें गौरी, पृथ्वी, कच्छप और अनंत देवताओं का वास होता है। भगवान गणेश की उपासना, धन और वैभव की देवी लक्ष्मी के साथ ही बही-खाते की पूजा में भी स्वास्तिक का विशेष स्थान है। स्वास्तिक की बनावट ऐसी होती है कि यह हर दिशा में एक जैसा दिखता है। और इसी कारण यह घर में मौजूद हर प्रकार के वास्तुदोष को कम करने में सहायक होता है। इसके प्रयोग से घर की नकारात्मक ऊर्जा बाहर चली जाती है। शास्त्रों में स्वास्तिक को विष्णु का आसन और लक्ष्मी का स्वरुप माना गया है। चंदन, कुमकुम और सिंदूर से बना स्वास्तिक ग्रह दोषों को दूर करने वाला होता है और यह धन कारक योग बनाता है। स्वास्तिक के चिह्न को भाग्यवर्धक वस्तुओं में गिना जाता है।

www.hindi.pardaphash.com

जानिए भगवान विष्णु को क्यों माना जाता है सर्वश्रेष्ठ देवता?

हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार, इस सम्पूर्ण सृष्टि का पालन पोषण और संचालन का जिम्मा तीन देवताओं पर हैं यह हम सभी जानते हैं| ब्रह्मदेव को जगत का रचनाकार, भगवान विष्णु को पालनकर्ता और भगवान शिव को संहारकर्ता माना गया है। तीनों ही देव सर्वशक्तिमान और परम पूज्यनीय हैं। कई युगों पहले ऋषि मुनियों में त्रिदेव को लेकर यह जिज्ञासा हुई कि इन तीनों देवताओं में सर्वश्रेष्ठ कौन है?

इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए सभी ऋषि-मुनियों ने महर्षि भृगु से निवेदन किया। महर्षि भृगु परम तपस्वी और तीनों देवों के प्रिय थे। अब इस प्रश्न का उत्तर जाने के लिए सभी ऋषि मुनि बिना आज्ञा के ही ब्रम्हा जी के पास पहुँच गए| इस तरह अचानक आए महर्षि भृगु को देख ब्रह्मा क्रोधित हो गए। इसके बाद महर्षि भृगु इसी तरह शिवजी के सम्मुख जा पहुंचे और वहां भी उन्हें शिवजी द्वारा अपमानित होना पड़ा। अब भृगु भी क्रोधित हो गए और इसी क्रोध में वे भगवान विष्णु के सम्मुख जा पहुंचे। उस समय भगवान विष्णु शेषनाग पर सो रहे थे। महर्षि भृगु के आने का उन्हें ध्यान ही नहीं रहा और वे महर्षि के सम्मान में खड़े नहीं हुए। अतिक्रोधित स्वभाव वाले भृगु ने इसे अपना अपमान समझा और क्रोध से विष्णु की छाती पर लात मार दी। 

इस प्रकार जगाए जाने पर भी विष्णु ने धैर्य रखा और तुरंत ही महर्षि भृगु के सम्मान में खड़े होकर उन्हें प्रणाम किया। भगवान विष्णु ने विनयपूर्वक कहा कि मेरा शरीर वज्र के समान कठोर है, अत: आपके पैर पर चोट तो नहीं लगी? औरे उन्होंने महर्षि के पैर पकड़ लिए और सहलाने लगे। विष्णु की इस महानता से महर्षि भृगु अति प्रसन्न हुए। भगवान विष्णु के इस धैर्य और सम्मान के भाव से प्रसन्न महर्षि ने उन्हें तीनों देवों में सर्वश्रेष्ठ घोषित किया।

www.pardaphash.com

पांच पतियों के बावजूद कभी भंग नहीं हुआ द्रौपदी का ‘कौमार्य’

महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत जैसा अन्य कोई ग्रंथ नहीं है। यह ग्रंथ बहुत ही विचित्र और रोचक है। विद्वानों ने इसे पांचवां वेद भी कहा है। महाभारत के बारे में जानता तो हर कोई है लेकिन आज भी कुछ ऐसी चीजें हैं जिसे जानने वालों की संख्या कम है| जैसा कि द्रोपदी के पांच पति थे। इसके बावजूद आजीवन उनका कौमार्य बना रहा। इसी लिए उन्‍हें कन्‍या कहा जाता था नारी नहीं। 


कहा जाता है कि द्रौपदी का विवाह महर्षि वेद व्‍यास ने पांडवों के साथ करवाया था। स्‍वयंवर की शर्त के अनुसार, अर्जुन ने अपनी प्रतिभा प्रदर्शित करते हुए उन्होंने मछली की आंख पर निशाना लगाया। अर्जुन से विवाह करने के बाद द्रौपदी जब पांडवों के साथ उनके घर गईं तो उन्होंने अपनी मां से कहा, मां देखो हम क्या लाए हैं। उनकी मां ने बिना देखे पुत्रों से कहा कि वे जो भी लाए हैं उसे आपस में बांट लें।


मां का कहना टालना मुश्किल था इसलिए पांचों ने पांचाली से विवाह करने का निश्चय किया और मजबूरन पांचाली को सिर्फ अर्जुन की नहीं बल्कि पांडवों की पत्नी बनना स्वीकार करना पड़ा। वेद व्यास ने पांडवों के साथ पांचाली का विवाह करवाया। पांचों भाइयों की सुविधा को देखते हुए उनसे कहा कि द्रौपदी एक-एक वर्ष के लिए सभी पांडवों के साथ रहेंगी और जब वह एक भाई से दूसरे भाई के पास जाएगी, तो उसका कौमार्य पुन: वापस आ जाएगा। 


वेद व्यास ने ये भी कहा जब द्रौपदी एक भाई के साथ पत्नी के तौर पर रहेंगी तब अन्य चार भाई उनकी तरफ नजर उठाकर भी नहीं देखेंगे। लेकिन शायद अर्जुन को वेद व्यास की ये शर्त और पांचाली का पांडवों से विवाह करना पसंद नहीं आया, तभी तो वह पति के रूप में भी कभी भी द्रौपदी के साथ सामान्य नहीं रह पाए। अलग-अलग साल द्रौपदी, अलग-अलग पांडव के साथ रहती थीं। एक पुरुष होने के नाते कोई भी पांडव अगले चार वर्ष तक अपनी काम वासना पर नियंत्रण नहीं कर पाया और द्रौपदी के इतर सबने अलग-अलग स्त्री को अपनी पत्नी बनाया। पांच पतियों की पत्नी होने के बावजूद द्रौपदी ताउम्र अपने पति के प्रेम के लिए तरसती रहीं|

www.hindi.pardaphash.com

शिवजी शरीर पर क्यों रमाते हैं भस्म?

हिन्दू धर्म में भगवान शिव को मृत्युलोक देवता माने गए हैं। शिव को अनादि, अनंत, अजन्मा माना गया है यानि उनका कोई आरंभ है न अंत है। न उनका जन्म हुआ है, न वह मृत्यु को प्राप्त होते हैं। इस तरह भगवान शिव अवतार न होकर साक्षात ईश्वर हैं। शिव की साकार यानि मूर्तिरुप और निराकार यानि अमूर्त रुप में आराधना की जाती है। शास्त्रों में भगवान शिव का चरित्र कल्याणकारी माना गया है। भगवान भोलेनाथ का स्वरूप सभी देवी-देवताओं से बिल्कुल भिन्न है। जहां सभी देवी-देवता दिव्य आभूषण और वस्त्रादि धारण करते हैं वहीं शिवजी ऐसा कुछ भी धारण नहीं करते, वे शरीर पर भस्म रमाते हैं| लेकिन कभी आपने सोचा है कि शिवजी शरीर पर भस्म क्यों रमाते हैं? 

मान्यता यह है कि शिव को मृत्यु का स्वामी माना गया है और शिवजी शव के जलने के बाद बची भस्म को अपने शरीर पर धारण करते हैं। इस प्रकार शिवजी भस्म लगाकर हमें यह संदेश देते हैं कि यह हमारा यह शरीर नश्वर है और एक दिन इसी भस्म की तरह मिट्टी में विलिन हो जाएगा। अत: हमें इस नश्वर शरीर पर गर्व नहीं करना चाहिए। कोई व्यक्ति कितना भी सुंदर क्यों न हो, मृत्यु के बाद उसका शरीर इसी तरह भस्म बन जाएगा। अत: हमें किसी भी प्रकार का घमंड नहीं करना चाहिए।

भस्म की एक विशेषता होती है कि यह शरीर के रोम छिद्रों को बंद कर देती है। इसका मुख्य गुण है कि इसको शरीर पर लगाने से गर्मी में गर्मी और सर्दी में सर्दी नहीं लगती। भस्मी त्वचा संबंधी रोगों में भी दवा का काम करती है। भस्मी धारण करने वाले शिव यह संदेश भी देते हैं कि परिस्थितियों के अनुसार अपने आपको ढ़ालना मनुष्य का सबसे बड़ा गुण है।

कामदा एकादशी कल, जानिए महत्व, व्रत विधि व कथा

हिंदू पंचांग की ग्यारहवी तिथि को एकादशी कहते हैं। यह तिथि मास में दो बार आती है। पूर्णिमा के बाद और अमावस्या के बाद। पूर्णिमा के बाद आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी और अमावस्या के बाद आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष की एकादशी कहते हैं। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। चैत्र शुक्ल पक्ष में ‘कामदा’ नाम की एकादशी होती है। "कामदा एकादशी" जिसे फलदा एकादशी भी कहते हैं, श्री विष्णु का उत्तम व्रत कहा गया है। इस व्रत के पुण्य से जीवात्मा को पाप से मुक्ति मिलती है। यह एकादशी कष्टों का निवारण करने वाली और मनोनुकूल फल देने वाली होने के कारण फलदा और कामना पूर्ण करने वाली होने से कामदा कही जाती है। इस बार कामदा एकदशी का व्रत 31 मार्च दिन मंगलवार को है| 

कामदा एकादशी व्रत विधि-

एकादशी के दिन स्नानादि से पवित्र होने के पश्चात संकल्प करके श्री विष्णु के विग्रह की पूजन करें। विष्णु को फूल, फल, तिल, दूध, पंचामृत आदि नाना पदार्थ निवेदित करें। आठों प्रहर निर्जल रहकर विष्णु जी के नाम का स्मरण एवं कीर्तन करें। एकादशी व्रत में ब्राह्मण भोजन एवं दक्षिणा का बड़ा ही महत्व है, अत: ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करने के पश्चात ही भोजन ग्रहण करें। इस प्रकार जो चैत्र शुक्ल पक्ष में कामदा एकादशी का व्रत रखता है उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होती है। 

कामदा एकादशी व्रत कथा-

युधिष्ठिर ने पूछा: वासुदेव ! आपको नमस्कार है ! कृपया आप यह बताइये कि चैत्र शुक्लपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है? भगवान श्रीकृष्ण बोले : राजन् ! एकाग्रचित्त होकर यह पुरातन कथा सुनो, जिसे वशिष्ठजी ने राजा दिलीप के पूछने पर कहा था ।

वशिष्ठजी बोले : राजन् ! चैत्र शुक्लपक्ष में ‘कामदा’ नाम की एकादशी होती है । वह परम पुण्यमयी है । पापरुपी ईँधन के लिए तो वह दावानल ही है ।

प्राचीन काल की बात है: नागपुर नाम का एक सुन्दर नगर था, जहाँ सोने के महल बने हुए थे । उस नगर में पुण्डरीक आदि महा भयंकर नाग निवास करते थे । पुण्डरीक नाम का नाग उन दिनों वहाँ राज्य करता था । गन्धर्व, किन्नर और अप्सराएँ भी उस नगरी का सेवन करती थीं । वहाँ एक श्रेष्ठ अप्सरा थी, जिसका नाम ललिता था । उसके साथ ललित नामवाला गन्धर्व भी था । वे दोनों पति पत्नी के रुप में रहते थे । दोनों ही परस्पर काम से पीड़ित रहा करते थे । ललिता के हृदय में सदा पति की ही मूर्ति बसी रहती थी और ललित के हृदय में सुन्दरी ललिता का नित्य निवास था ।

एक दिन की बात है । नागराज पुण्डरीक राजसभा में बैठकर मनोंरंजन कर रहा था । उस समय ललित का गान हो रहा था किन्तु उसके साथ उसकी प्यारी ललिता नहीं थी । गाते गाते उसे ललिता का स्मरण हो आया । अत: उसके पैरों की गति रुक गयी और जीभ लड़खड़ाने लगी ।

नागों में श्रेष्ठ कर्कोटक को ललित के मन का सन्ताप ज्ञात हो गया, अत: उसने राजा पुण्डरीक को उसके पैरों की गति रुकने और गान में त्रुटि होने की बात बता दी । कर्कोटक की बात सुनकर नागराज पुण्डरीक की आँखे क्रोध से लाल हो गयीं । उसने गाते हुए कामातुर ललित को शाप दिया : ‘दुर्बुद्धे ! तू मेरे सामने गान करते समय भी पत्नी के वशीभूत हो गया, इसलिए राक्षस हो जा ।’

महाराज पुण्डरीक के इतना कहते ही वह गन्धर्व राक्षस हो गया । भयंकर मुख, विकराल आँखें और देखनेमात्र से भय उपजानेवाला रुप - ऐसा राक्षस होकर वह कर्म का फल भोगने लगा ।

ललिता अपने पति की विकराल आकृति देख मन ही मन बहुत चिन्तित हुई । भारी दु:ख से वह कष्ट पाने लगी । सोचने लगी: ‘क्या करुँ? कहाँ जाऊँ? मेरे पति पाप से कष्ट पा रहे हैं…’

वह रोती हुई घने जंगलों में पति के पीछे पीछे घूमने लगी । वन में उसे एक सुन्दर आश्रम दिखायी दिया, जहाँ एक मुनि शान्त बैठे हुए थे । किसी भी प्राणी के साथ उनका वैर विरोध नहीं था । ललिता शीघ्रता के साथ वहाँ गयी और मुनि को प्रणाम करके उनके सामने खड़ी हुई । मुनि बड़े दयालु थे । उस दु:खिनी को देखकर वे इस प्रकार बोले : ‘शुभे ! तुम कौन हो ? कहाँ से यहाँ आयी हो? मेरे सामने सच सच बताओ ।’

ललिता ने कहा : महामुने ! वीरधन्वा नामवाले एक गन्धर्व हैं । मैं उन्हीं महात्मा की पुत्री हूँ । मेरा नाम ललिता है । मेरे स्वामी अपने पाप दोष के कारण राक्षस हो गये हैं । उनकी यह अवस्था देखकर मुझे चैन नहीं है । ब्रह्मन् ! इस समय मेरा जो कर्त्तव्य हो, वह बताइये । विप्रवर! जिस पुण्य के द्वारा मेरे पति राक्षसभाव से छुटकारा पा जायें, उसका उपदेश कीजिये ।

ॠषि बोले : भद्रे ! इस समय चैत्र मास के शुक्लपक्ष की ‘कामदा’ नामक एकादशी तिथि है, जो सब पापों को हरनेवाली और उत्तम है । तुम उसीका विधिपूर्वक व्रत करो और इस व्रत का जो पुण्य हो, उसे अपने स्वामी को दे डालो । पुण्य देने पर क्षणभर में ही उसके शाप का दोष दूर हो जायेगा ।

राजन् ! मुनि का यह वचन सुनकर ललिता को बड़ा हर्ष हुआ । उसने एकादशी को उपवास करके द्वादशी के दिन उन ब्रह्मर्षि के समीप ही भगवान वासुदेव के (श्रीविग्रह के) समक्ष अपने पति के उद्धार के लिए यह वचन कहा: ‘मैंने जो यह ‘कामदा एकादशी’ का उपवास व्रत किया है, उसके पुण्य के प्रभाव से मेरे पति का राक्षसभाव दूर हो जाय ।’

वशिष्ठजी कहते हैं : ललिता के इतना कहते ही उसी क्षण ललित का पाप दूर हो गया । उसने दिव्य देह धारण कर लिया । राक्षसभाव चला गया और पुन: गन्धर्वत्व की प्राप्ति हुई ।

नृपश्रेष्ठ ! वे दोनों पति पत्नी ‘कामदा’ के प्रभाव से पहले की अपेक्षा भी अधिक सुन्दर रुप धारण करके विमान पर आरुढ़ होकर अत्यन्त शोभा पाने लगे । यह जानकर इस एकादशी के व्रत का यत्नपूर्वक पालन करना चाहिए ।

मैंने लोगों के हित के लिए तुम्हारे सामने इस व्रत का वर्णन किया है । ‘कामदा एकादशी’ ब्रह्महत्या आदि पापों तथा पिशाचत्व आदि दोषों का नाश करनेवाली है । राजन् ! इसके पढ़ने और सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है ।


www.pardaphash.com