लौहपुरूष सरदार वल्लभभाई पटेल की जयन्ती पर विशेष........

आज हम जिस विशाल भारत को देखते हैं उसकी कल्पना लौह पुरुष कहलाने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल के बिना शायद पूरी नहीं हो पाती| वल्लभ भाई पटेल एक ऐसे इंसान थे जिन्होंने देश के छोटे-छोटे रजवाड़ों और राजघरानों को एककर भारत में सम्मिलित किया| भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की जब भी बात होती है तो सरदार पटेल का नाम सबसे पहले ध्यान में आता है| उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति, नेतृत्व कौशल का ही कमाल था कि 600 देशी रियासतों का भारतीय संघ में विलय कर सके| भारत के प्रथम गृह मंत्री और प्रथम उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नाडियाड में उनके ननिहाल में हुआ| वह खेड़ा जिले के कारमसद में रहने वाले झावेर भाई पटेल की चौथी संतान थे| वल्लभ भिया पटेल की माता का नाम लाडबा पटेल था| बचपन से ही उनके परिवार ने उनकी शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया| प्रारंभिक शिक्षा काल में ही उन्होंने एक ऐसे अध्यापक के विरुद्ध आंदोलन खड़ाकर उन्हें सही मार्ग दिखाया जो अपने ही व्यापारिक संस्थान से पुस्तकें क्रय करने के लिए छात्रों के बाध्य करते थे। हालाँकि 16 साल में उनका विवाह कर दिया गया था पर उन्होंने अपने विवाह को अपनी पढ़ाई के रास्ते में नहीं आने दिया| 22 साल की उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और ज़िला अधिवक्ता की परीक्षा पास की, जिससे उन्हें वकालत करने की अनुमति मिली| अपनी वकालत के दौरान उन्होंने कई बार ऐसे केस लड़े जिसे दूसरे निरस और हारा हुए मानते थे| उनकी प्रभावशाली वकालत का ही कमाल था कि उनकी प्रसिद्धी दिनों-दिन बढ़ती चली गई| गम्भीर और शालीन पटेल अपने उच्चस्तरीय तौर-तरीक़ों और चुस्त अंग्रेज़ी पहनावे के लिए भी जाने जाते थे| लेकिन गांधीजी के प्रभाव में आने के बाद जैसे उनकी राह ही बदल गई|

भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने जब पूरी शक्ति से अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन चलाने का निश्चय किया तो सरदार पटेल ने अहमदाबाद में एक लाख जन-समूह के सामने लोकल बोर्ड के मैदान में इस आंदोलन की रूपरेखा समझाई। लौह पुरुष कहे जाने वाले सरदार बल्लभ भाई पटेल ने पत्रकार परिषद में कहा, ऐसा समय फिर नही आएगा, आप मन में भय न रखें। चौपाटी पर दिए गए भाषण में कहा, आपको यही समझकर यह लड़ाई छेड़नी है कि महात्मा गांधी और अन्य नेताओं को गिरफ्तार कर लिया जाएगा तो आप न भूलें कि आपके हाथ में शक्ति है कि 24 घंटे में ब्रिटिश सरकार का शासन खत्म हो जाएगा।

सितंबर, 1946 में जब पंडित जवाहर लाल नेहरु की अस्थाई राष्ट्रीय सराकर बनी तो सरदार पटेल को गृहमंत्री नियुक्त किया गया। अत्यधिक दूरदर्शी होने के कारण भारत मे विभाजन के पक्ष में पटेल का स्पष्ट मत था कि जहरवाद फैलने से पूर्व गले-से अंग को ऑपरेशन कर कटवा देना चाहिए। नवंबर,1947 में संविधान परिषद की बैठक में उन्होंने अपने इस कथन को स्पष्ट किया, मैंने विभाजन को अंतिम उपाय मे रूप में तब स्वीकार किया था जब संपूर्ण भारत के हमारे हाथ से निकल जाने की संभावना हो गई थी। मैंने यह भी शर्त रखी कि देशी राज्यों के संबंध में ब्रिटेन हस्तक्षेप नहीं करेगा। इस समस्या को हम सुलझाएंगे। और निश्चय ही देशी राज्यों के एकीकरण की समस्या को पटेल ने बिना खून-खराबे के बड़ी खूबी से हल किया, देशी राज्यों में राजकोट, जूनागढ़, वहालपुर, बड़ौदा, कश्मीर, हैदराबाद को भारतीय महासंघ में सम्मिलित करना में सरदार को कई पेचीदगियों का सामना करना पड़ा।

भारतीय नागरिक सेवाओं (आई.सी.एस.) का भारतीयकरण कर इसे भारतीय प्रशासनिक सेवाएं (आई.ए.एस.) में परिवर्तित करना सरदार पटेल के प्रयासो का ही परिणाम है। यदि सरदार पटेल को कुछ समय और मिलता तो संभवत: नौकरशाही का पूर्ण कायाकल्प हो जाता। उनके मन में किसानो एवं मजदूरों के लिये असीम श्रद्धा थी। वल्लभभाई पटेल ने किसानों एवं मजदूरों की कठिनाइयों पर अन्तर्वेदना प्रकट करते हुए कहा:-

” दुनिया का आधार किसान और मजदूर पर हैं। फिर भी सबसे ज्यादा जुल्म कोई सहता है, तो यह दोनों ही सहते हैं। क्योंकि ये दोनों बेजुबान होकर अत्याचार सहन करते हैं। मैं किसान हूँ, किसानों के दिल में घुस सकता हूँ, इसलिए उन्हें समझता हूँ कि उनके दुख का कारण यही है कि वे हताश हो गये हैं। और यह मानने लगे हैं कि इतनी बड़ी हुकूमत के विरुद्ध क्या हो सकता है ? सरकार के नाम पर एक चपरासी आकर उन्हें धमका जाता है, गालियाँ दे जाता है और बेगार करा लेता है। “

किसानों की दयनीय स्थिति से वे कितने दुखी थे इसका वर्णन करते हुए पटेल ने कहा: -

“किसान डरकर दुख उठाए और जालिम की लातें खाये, इससे मुझे शर्म आती है और मैं सोचता हूँ कि किसानों को गरीब और कमजोर न रहने देकर सीधे खड़े करूँ और ऊँचा सिर करके चलने वाला बना दूँ। इतना करके मरूँगा तो अपना जीवन सफल समझूँगा”

कहते हैं कि यदि सरदार बल्लभ भाई पटेल ने जिद्द नहीं की होती तो ‘रणछोड़’ राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति पद के लिए तैयार ही नहीं होते। जब सरदार वल्‍लभभाई पटेल अहमदाबाद म्‍युनिसिपेलिटी के अध्‍यक्ष थे तब उन्‍होंने बाल गंगाघर तिलक का बुत अहमदाबाद के विक्‍टोरिया गार्डन में विक्‍टोरिया के स्‍तूप के समान्‍तर लगवाया था। जिस पर गाँधी जी ने कहा था कि- “सरदार पटेल के आने के साथ ही अहमदाबाद म्‍युनिसिपेलिटी में एक नयी ताकत आयी है। मैं सरदार पटेल को तिलक का बुत स्‍थापित करने की हिम्‍मत बताने के लिये उन्हे अभिनन्‍दन देता हूं।”

सरदार पटेल को कई बार जाना पड़ा जेल-

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1929 के लाहौर अधिवेशन में पटेल, गांधी के बाद अध्यक्ष पद के दूसरे उम्मीदवार थे। गांधी ने स्वाधीनता के प्रस्ताव को स्वीकृत होने से रोकने के प्रयास में अध्यक्ष पद की दावेदारी छोड़ दी और पटेल पर भी नाम वापस लेने के लिए दबाव डाला। इसका प्रमुख कारण मुसलमानों के प्रति पटेल की हठधर्मिता थी। अंतत: जवाहरलाल नेहरू अध्यक्ष बने। 1930 में नमक सत्याग्रह के दौरान पटेल को तीन महीने की जेल हुई। मार्च 1931 में पटेल ने इंडियन नेशनल कांग्रेस के करांची अधिवेशन की अध्यक्षता की। जनवरी 1932 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। जुलाई 1934 में वह रिहा हुए और 1937 के चुनावों में उन्होंने कांग्रेज़ पार्टी के संगठन को व्यवस्थित किया। 1937-38 में वह कांग्रेस के अध्यक्ष पद के प्रमुख दावेदार थे। एक बार फिर गांधी के दबाव में पटेल को अपना नाम वापस लेना पड़ा और जवाहर लाल नेहरू निर्वाचित हुए। अक्टूबर 1940 में कांग्रेस के अन्य नेताओं के साथ पटेल भी गिरफ़्तार हुए और अगस्त 1941 में रिहा हुए। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, जब जापानी हमले की आशंका हुई, तो पटेल ने गांधी की अहिंसा की नीति को अव्यावहारिक बताकर ख़ारिज कर दिया। सत्ता के हस्तान्तरण के मुद्दे पर भी पटेल का गांधी से इस बात पर मतभेद था कि उपमहाद्वीप का हिन्दू भारत तथा मुस्लिम पाकिस्तान के रूप में विभाजन अपरिहार्य है। पटेल ने ज़ोर दिया कि पाकिस्तान दे देना भारत के हित में है।

माना जाता है पटेल कश्मीर को भी बिना शर्त भारत से जोड़ना चाहते थे पर जवाहर लाला नेहरु ने हस्तक्षेप कर कश्मीर को विशेष दर्जा दे दिया| नेहरू ने कश्मीर के मुद्दे को यह कहकर अपने पास रख लिया कि यह समस्या एक अंतरराष्ट्रीय समस्या है| यदि कश्मीर का निर्णय नेहरू की बजाय पटेल के हाथ में होता तो कश्मीर आज भारत के लिए समस्या नहीं बल्कि गौरव का विषय होता| 15 दिसंबर 1950 को प्रातःकाल 9.37 पर इस महापुरुष का 76 वर्ष की आयु में निधन हो गया| 

www.pardaphash.com

विश्व पटल पर भारत को पहचान दिलाने वाली महिला प्रधानमंत्री की पुण्यतिथि पर विशेष......

प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आज 29वीं पुण्यतिथि है| राजनीति के प्रभावशाली परिवार में 19 नवंबर 1917 को जन्मी इंदिरा प्रियदर्शिनी गाँधी जिन्हें सभी इंदिरा गांधी के नाम से जानते हैं, ने देश की पहली और एकमात्र प्रधानमंत्री बनने का गौरव अपने नाम किया था| इंदिरा गांधी ने लगातार तीन बार इस पद को सुशोभित किया| इंदिरा ने जब फिरोज़ गाँधी से विवाह किया तब उन्हें 'गांधी' उपनाम मिला था|

उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी छोटी लेकिन महत्वपूर्ण भूमिका निभाई| इस दौरान उन्होंने अपने साहस का परिचय भी दिया| उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पुलिस की नज़र से बचा कर अपने पिता के घर से एक महत्वपूर्ण दस्तावेज, जिसमें 1930 दशक के शुरुआत की एक प्रमुख क्रांतिकारी पहल की योजना थी, को अपने स्कूलबैग के माध्यम से बाहर निकाल लाई थीं|

इंदिरा गांधी ने 1950 के दशक में भारत के पहले प्रधानमंत्री और अपने पिता जवाहर लाल नेहरु के कार्यकाल के दौरान गैरसरकारी तौर पर एक निजी सहायक के रूप में काम किया था| अपने पिता की मृत्यु के बाद सन् 1964 में वे राज्यसभा सदस्य के रूप में चयनित हुईं| इससे कुछ कदम आगे बढ़ते हुए लालबहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में उन्होंने सूचना और प्रसारण मंत्रालय का कार्यभार सम्भाला| एक राजनैतिक परिवार में जन्म लेने के कारण वह शुरुआत से ही राजनीति की तरफ आकर्षित थीं|

लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद तत्कालीन कॉंग्रेस पार्टी अध्यक्ष के. कामराज ने इंदिरा को प्रधानमंत्री बनाने में निर्णायक योगदान दिया| इंदिरा ने सबकी उम्मीदों पर खरा उतरते हुए जीत हासिल की और जनमानस में अपनी ख़ास छाप छोड़ी| अपने चमत्कारी व्यक्तित्व से वह भारतीय राजनीति में जननायक के रूप में उभरीं| इंदिरा ने महिलाओं को कमज़ोर समझने वाली उन सभी धारणाओं को चकनाचूर किया, जिसमें पुरुषप्रधान समाज ने महिला को कमज़ोर साबित करने की कोशिश की थी| उन्होंने सही मायने में 'महिला सशक्तिकरण' को सबके समक्ष प्रदर्शित किया|

इंदिरा ने ऐसे समय में भारतीय राजनीति में कदम रखा जब देश को एक सही नेता और नेतृत्व की ज़रूरत थी| उस समय इंदिरा गांधी रुपी इस सितारे ने भारतीय राजनीति को अपनी चमक से प्रकाशमय कर दिया| वह नेतृत्व संकट से जूझ रहे देश के लिए 'संकटमोचन' के रूप में सामने आयीं| शुरू में ‘गूंगी गुड़िया’ कहलाने वाली इंदिरा गाँधी ने अपने चमत्कारिक नेतृत्व से न केवल देश को कुशल नेतृत्व प्रदान किया बल्कि विश्व मंच पर भी भारत की धाक जमा दी|

इंदिरा ने जनप्रियता के माध्यम से विरोधियों के ऊपर हावी होने की योग्यता दर्शायी| वह अधिक बामवर्गी आर्थिक नीतियाँ लायीं और कृषि उत्पादकता को बढ़ावा दिया| इंदिरा गाँधी न सिर्फ एक कुशल प्रशासक थीं बल्कि उनके नेतृत्व में भारत ने विश्व पटल पर अपनी छाप छोड़ी| देश में परमाणु कार्यक्रम और हरित क्रांति लाने का श्रेय इंदिरा गांधी को ही जाता है| उन्होंने आधुनिक भारत की नीव रखी, जिसने विश्व पटल पर देश को एक नयी पहचान दिलाई|

भारत ने परमाणु शक्ति के रूप में उभरते हुए साल 1974 में राजस्थान के रेगिस्तान में बसे गांव पोखरण में 'स्माइलिंग बुद्धा' के नाम से सफलतापूर्वक एक भूमिगत परमाणु परीक्षण किया| शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परीक्षण का वर्णन करते हुए भारत दुनिया की सबसे नवीनतम परमाणु शक्तिधर बन गया| 1960 में उन्होंने संगठित हरित क्रांति गहन कृषि जिला कार्यक्रम (आईएडीपी) की शुरुआत की| इसका उद्देश्य देश में चल रही खाद्द्यान्न की कमी से निपटना था|

हालांकि, इंदिरा गाँधी के ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे| इसके बाद 26 जून 1975 को संविधान की धारा- 352 के प्रावधानानुसार आपातकालीन की घोषणा उनके राजनितिक जीवन का सबसे गलत कदम साबित हुआ और देश में उनके लिए नाराज़गी फ़ैल गयी| इसके बाद साल 1981 में ओपरेशन ब्लू स्टार' उनके जीवन की सबसे बड़ी गलती साबित हुई| सन् 1980 में सत्ता में लौटने के बाद वह अधिकतर पंजाब के अलगाववादियों के साथ बढ़ते हुए द्वंद्व में उलझी रहीं| सन् 1984 में अपने ही अंगरक्षकों द्वारा उनकी राजनैतिक हत्या कर दी गई| 

www.pardaphash.com

धनतेरस कल, इस तरह करें कुबेर महाराज को प्रसन्न

उत्तरी भारत में कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस का पर्व पूरी श्रद्धा व विश्वास से मनाया जाता है| इस बार धन तेरस कार्तिकमास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी यानि की 1 नवम्बर दिन शुक्रवार को है| धनवन्तरी के अलावा इस दिन, देवी लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की भी पूजा करने की मान्यता है| धनतेरस के दिन कुबेर के अलावा यमदेव को भी दीपदान किया जाता है| यमदेव की पूजा करने के विषय में एक मान्यता है कि इस दिन यमदेव की पूजा करने से घर में असमय मृ्त्यु का भय नहीं रहता है| पूजा करने के बाद घर के मुख्य द्वार पर दक्षिण दिशा की ओर मुख वाला दीपक जिसमें कुछ पैसा और कौड़ी डालकर पूरी रात्रि जलाना चाहिए|

धनतेरस पर्व का महत्व-

शास्त्रों के अनुसार, धन त्रयोदशी के दिन देव धनवंतरी देव का जन्म हुआ था| धनवंतरी देव, देवताओं के चिकित्सकों के देव है| यही कारण है कि इस दिन चिकित्सा जगत में बडी-बडी योजनाएं प्रारम्भ की जाती है| धनतेरस के दिन नये उपहार, सिक्का, चाँदी, बर्तन व गहनों की खरीदारी करना शुभ माना जाता है| लक्ष्मी जी व गणेश जी की चांदी की प्रतिमाओं को इस दिन घर लाना, घर- कार्यालय, व्यापारिक संस्थाओं में धन, सफलता व उन्नति को बढाता है| इस दिन भगवान धनवन्तरी समुद्र से कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिये इस दिन खास तौर से बर्तनों की खरीदारी की जाती है| ऐसी मान्यता है कि इस दिन सूखे धनिया के बीज खरीद कर घर में रखना भी परिवार की धन संपदा में वृ्द्धि करता है| दीपावली के दिन इन बीजों को बाग, खेत खलिहानों में लागाया जाता है ये बीज व्यक्ति की उन्नति व धन वृ्द्धि के प्रतीक होते है|

इस दिन शुभ मुहूर्त में पूजन करने के साथ- साथ सात धान्यों (गेंहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर) की पूजा की जाती है| सात धान्यों के साथ ही पूजन सामग्री में विशेष रुप से स्वर्णपुष्पा के पुष्प से भगवती का पूजन करना लाभकारी रहता है| इस दिन पूजा में भोग लगाने के लिये नैवेद्ध के रुप में श्वेत मिष्ठान का प्रयोग किया जाता है, इसके साथ ही इस दिन स्थिर लक्ष्मी की भी पूजा करने का विशेष महत्व है|

धनतेरस के दिन कुबेर को प्रसन्न करने का मंत्र-

शुभ मुहूर्त में धनतेरस के दिन धूप, दीप, नैवैद्ध से पूजन करने के बाद निम्न मंत्र का जाप करें- इस मंत्र का जाप करने से भगवन धनवन्तरी बहुत खुश होते हैं, जिससे धन और वैभव की प्राप्ति होती है|

'यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन-धान्य अधिपतये
धन-धान्य समृद्धि मे देहि दापय स्वाहा ।'

धनतेरस की कथा-

एक किवदन्ती के अनुसार एक राज्य में एक राजा था, कई वर्षों तक प्रतिक्षा करने के बाद, उसके यहां पुत्र संतान कि प्राप्ति हुई| राजा के पुत्र के बारे में किसी ज्योतिषी ने यह कहा कि, बालक का विवाह जिस दिन भी होगा, उसके चार दिन बाद ही इसकी मृ्त्यु हो जायेगी|

ज्योतिषी की यह बात सुनकर राजा को बेहद दु:ख हुआ, ओर ऎसी घटना से बचने के लिये उसने राजकुमार को ऎसी जगह पर भेज दिया, जहां आस-पास कोई स्त्री न रहती हो, एक दिन वहां से एक राजकुमारी गुजरी, राजकुमार और राजकुमारी दोनों ने एक दूसरे को देखा, दोनों एक दूसरे को देख कर मोहित हो गये, और उन्होने आपस में विवाह कर लिया|

ज्योतिषी की भविष्यवाणी के अनुसार ठीक चार दिन बाद यमदूत राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचें| यमदूत को देख कर राजकुमार की पत्नी विलाप करने लगी| यह देख यमदूत ने यमराज से विनती की और कहा की इसके प्राण बचाने का कोई उपाय बताईयें, इस पर यमराज ने कहा की जो प्राणी कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की त्रयोदशी की रात में मेरा पूजन करके दीप माला से दक्षिण दिशा की ओर मुंह वाला दीपक जलायेगा, उसे कभी अकाल मृ्त्यु का भय नहीं रहेगा, तभी से इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाये जाते है|

www.pardaphash.com

...इसलिए धनतेरस को करते हैं दीपदान

कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। इस दिन मृत्यु के देवता यमराज का पूजन किए जाने का विधान है। धनतेरस पर यमराज के निमित्त व्रत भी रखा जाता है। इस दिन सायंकाल घर के बाहर मुख्य दरवाजे पर एक पात्र में अन्न रखकर उसके ऊपर यमराज के निर्मित्त दक्षिण की ओर मुंह करके दीपदान करते हैं|

आज हम आपको बताते हैं आखिर क्यों हम करते हैं यमराज को दीपदान| एक बार की बात है, भगवान विष्णु माता लक्ष्मीजी सहित पृथ्वी पर घूमने आए। कुछ देर बाद भगवान विष्णु लक्ष्मीजी से बोले कि मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूं। तुम यहीं ठहरो। परंतु लक्ष्मीजी भी विष्णुजी के पीछे चल दीं। कुछ दूर चलने पर ईख (गन्ने) का खेत मिला। लक्ष्मीजी एक गन्ना तोड़कर चूसने लगीं। भगवान लौटे तो उन्होंने लक्ष्मीजी को गन्ना चूसते हुए पाया। इस पर वह क्रोधित हो उठे। उन्होंने श्राप दे दिया कि तुम जिस किसान का यह खेत है उसके यहां पर 12 वर्ष तक उसकी सेवा करो।

विष्णु भगवान क्षीर सागर लौट गए तथा लक्ष्मीजी ने किसान के यहां रहकर उसे धन-धान्य से पूर्ण कर दिया। 12वर्ष के बाद लक्ष्मीजी भगवान विष्णु के पास जाने के लिए तैयार हो गईं परंतु किसान ने उन्हें जाने नहीं दिया। भगवान विष्णुजी लक्ष्मीजी को बुलाने आए परंतु किसान ने उन्हें रोक लिया। तब भगवान विष्णु बोले कि तुम परिवार सहित गंगा स्नान करने जाओ और इन कौड़ियों को भी गंगाजल में छोड़ देना तब तक मैं यहीं रहूंगा। किसान ने ऐसा ही किया। गंगाजी में कौडि़यां डालते ही चार हाथ बाहर निकले और कौडि़यां लेकर चलने को तैयार हुए। ऐसा आश्चर्य देखकर किसान ने गंगाजी से पूछा कि ये चार हाथ किसके हैं। गंगाजी ने किसान को बताया कि ये चारों हाथ मेरे ही थे। तुमने जो मुझे कौडि़यां भेंट की हैं। वे तुम्हें किसने दी हैं।

किसान बोला कि मेरे घर पर एक स्त्री और पुरुष आए हैं। तभी गंगाजी बोलीं कि वे देवी लक्ष्मीजी और भगवान विष्णु हैं। तुम लक्ष्मीजी को मत जाने देना। वरना दोबारा निर्धन हो जाओगे। किसान ने घर लौटने पर देवी लक्ष्मीजी को नहीं जाने दिया। तब भगवान ने किसान को समझाया कि मेरे श्राप के कारण लक्ष्मीजी तुम्हारे यहां 12 वर्ष से तुम्हारी सेवा कर रही हैं। फिर लक्ष्मीजी चंचल हैं। इन्हें बड़े-बड़े नहीं रोक सके। तुम हठ मत करो। फिर लक्ष्मीजी बोलीं हे किसान यदि तुम मुझे रोकना चाहते हो तो कल धनतेरस है। तुम अपने घर को साफ-सुथरा रखना। रात में घी का दीपक जलाकर रखना। मैं तुम्हारे घर आउंगी। तुम उस वक्त मेरी पूजा करना। परंतु मैं अदृश्य रहूंगी। किसान ने देवी लक्ष्मीजी की बात मान ली और लक्ष्मीजी द्वारा बताई विधि से पूजा की। उसका घर धन से भर गया।

इस प्रकार किसान प्रति वर्ष लक्ष्मीजी को पूजने लगा तथा अन्य लोग भी देवी लक्ष्मीजी का पूजन करने लगे। इस दिन घर के टूटे-फूटे पुराने बर्तनों के बदले नये बर्तन खरीदे जाते हैं। इस दिन चांदी के बर्तन खरीदना अत्यधिक शुभ माना जाता है। इन्हीं बर्तनों में भगवान गणेश और देवी लक्ष्मीजी की मूर्तियों को रखकर पूजा की जाती है। इस दिन लक्ष्मीजी की पूजा करते समय 'यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन-धान्य अधिपतये धन-धान्य समृद्ध में देहि दापय स्वाहा' का स्मरण करके फूल चढ़ाये। इसके पश्चात कपूर से आरती करें। इस समय देवी लक्ष्मीजी, भगवान गणेशजी और जगदीश भगवान की आरती करे। धनतेरस के ही दिन देवता यमराज की भी पूजा होती है।

यम के लिए आटे का दीपक बनाकर घर के मुख्य द्वार पर रखा जाता है। रात्रि में महिलाएं दीपक में तेल डालकर चार बत्तियां जलाती हैं। जल, रोली, चावल, गुड़ और फूल आदि मिठाई सहित दीपक जलाकर पूजा की जाती है। यम दीपदान को धनतेरस की शाम में तिल के तेल से युक्त दीपक प्रज्वलित करें। इसके पश्चात गंध, पुष्प, अक्षत से पूजन कर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके यम से निम्न प्रार्थना करें। मृत्युना दंडपाशाभ्याम्घ्कालेन यामया सह।

त्रयोदश्यां दीपदानात्घ्सूर्यज: प्रयतां मम। अब उन दीपकों से यम की प्रसन्नतार्थ सार्वजनिक स्थलों को प्रकाशित करें। इसी प्रकार एक अखंड दीपक घर के प्रमुख द्वार की देहरी पर किसी प्रकार का अन्न (साबुत गेहूं या चावल आदि)बिछाकर उस पर रखें।

देवता यमराज के लिये भी एक लोकप्रिय कथा है। एक बार यमदूतों ने यमराज को बताया कि महाराज अकाल मृत्यु से हमारे मन भी पसीज जाते हैं। यमराज ने द्रवित होकर कहा कि क्या किया जाए विधि के विधान की मर्यादा हेतु हमें ऐसा अप्रिय कार्य करना ही पड़ता है। यमराज ने अकाल मृत्यु से बचाव के उपाय बताते हुए कहा कि धनतेरस के दिन पूजन एवं दीपदान को विधिपूर्वक करने से अकाल मृत्यु से छुटकारा मिल जाता है। जहां-जहां और जिस-जिस घर में यह पूजन होता है वहां अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। इसी घटना से धनतेरस के दिन धनवंतरि पूजन सहित यमराज को दीपदान की प्रथा का भी प्रचलन हुआ।

www.pardaphash.com

खौफ के साये में रही बच्चियां!

हर रोज एक बच्ची अपना बचपन खो रही थी, हर दिन किसी न किसी बच्ची की अस्मत लूटी जा रही थी। कुछ बदकिस्मत बच्चियां बार-बार किसी हैवान की हैवानियत का शिकार हो रही थीं। दर्द पूछने वाला कोई नहीं था, कहती भी तो किससे? अपने उस गुरु से जो 'सेक्स एजुकेशन' के नाम पर उनके साथ यह घिनौना काम कर रहा था या उन चौकीदारों से जो उनके शरीर से खेल रहे थे। न जाने खौफ के किस भयानक साये में रहती रही होंगी वे बच्चियां!

एक बार, दो बार ऐसा करने के बाद उनकी हिम्मत बढ़ी। आश्रम के चौकीदार और अन्य लोगों को विश्वास में लिया। बदले में उन्होंने भी 'सेक्स एजुकेशन' का घिनौना खेल शुरू किया। जिसमें आश्रम की इंचार्ज ने उनका पूरा साथ दिया। उन सभी को लग रहा था कि गांव की डरी हुई बच्चियां हैं, कभी कुछ कहेंगी नहीं और इनका मतलब निकलता रहेगा।

इस धृणित अपराध में गांव के स्कूल का शिक्षाकर्मी भी शामिल था। कभी बारिश के बहाने तो नासाज तबियत के बहाने वह आश्रम में अक्सर रुक जाता था और आश्रम की बच्चियों को अपनी हवस का शिकार बनाता था। उन्हें डरा धमका कर मुंह न खोलने की हिदायत तो देता ही था, यह भी कहता था कि यह सब सेक्स एजुकेशन का हिस्सा है। जो सबको करना पड़ता है।

शिक्षा कर्मी और अन्य लोगों द्वारा कांकेर के झलियामारी आश्रम में रहने वाली 13 नाबालिग बच्चियों के साथ दुष्कर्म के मामले ने देश ही नहीं पूरी दुनिया को सकते में ला दिया था। दिल्ली सामूहिक दुष्कर्म के बाद सामने आये इस मामले ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। कांकेर के डीजे कोर्ट ने इस मामले में 8 लोगों को आरोपी करार दिया है जिन पर अंतिम फैसला आज कांकेर जिला अदालत ने सुनाया। कोर्ट ने इस मामले में मन्नूलाल गोटा और दीनानाथ नागेश को प्रमुख और छह अन्य लोगों को सहयोगी दोषी करार दिया।

कई नेता, मीडिया चैनल्स, अध्यात्म गुरु मामले का जायजा लेने झलियामारी पहुंचे थे। इसके साथ ही राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया था। राज्य सरकार पर मामले को दबाने का आरोप भी लगाया गया। कांकेर शहर से 20 किलोमीटर दूर एक छोटा-सा गांव है झलियामारी। यहां छत्तीसगढ़ आदिमजाति कल्याण विभाग द्वारा छात्राओं के लिए एक आश्रम संचालित किया जा रहा था। यह आश्रम एक कच्चे मकान में बिना चारदीवारी, बिना पेयजल सुविधा, बिना किसी सुरक्षा के संचालित किया जा रहा था। 

www.pardaphash.com

सोने की खोज: 'एस-5 के फेर में अंधविश्वासी बना देश!

इसे अंधविश्वास की जकड़न ही कहेंगे कि 'शोभन-सपना-सोना-संप्रग-सोनिया जैसे पांच 'एस अक्षर से शुरू होने वाले नामों यानि 'एस-5 पर विश्वास कर उन्नाव के डौंडि़याखेड़ा किले से सोने का कथित 'महाखजाना मिलने की आस में समूचा देश 'अंधविश्वासी बन गया और वहां एक टका सोना हाथ नहीं लगा।

पूरे देश को मालूम है कि बक्सर आश्रम के संत शोभन सरकार को उन्नाव के डौंडि़याखेड़ा के राजा राव रामबक्श सिंह के 155 साल से वीरान और खंड़हर हो गए किले में एक हजार टन सोना दबा होने का सपना आया था, इस सपने को सच मान कर केन्द्रीय मंत्री चरणदास महंत ने केन्द्र की संप्रग सरकार के कैबिनेट के कर्इ मंत्रियों के अलावा सोनिया गांधी व राहुल गांधी तक न सिर्फ पहुंचाया, बलिक प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को पत्राचार तक किया था। मंत्री पर भरोसा करना लाजमी भी है, इसी से पीएमओ ने आनन-फानन में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआर्इ) को निर्देश दिया और उसने भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआर्इ) से सर्वे कराया तो जीएसआर्इ ने भी अपनी रिपोर्ट में किले के नीचे 'धातु दबी होने की पुषिट कर दी, जिससे महाखजाना की संभावना प्रबल हो गर्इ। फिर क्या था, इस वीरान किले में भारी पुलिस बल की मौजूदगी में एएसआर्इ व जीएसआर्इ के अधिकारियों की टीम द्वारा ग्यारह दिन चली खुदार्इ में न तो सोना हाथ लगा और न कोर्इ धातु या पुरातत्व महत्व की वस्तु ही मिल पार्इ, लाखों रुपये खर्च होने के बाद जग हंसार्इ अलग हुर्इ। अब तो सभी यह कहने लगे हैं कि 'शोभन-सपना-सोना-संप्रग-सोनिया यानि 'एस-5 के अजीब मिलन ने इस देश को ही नहीं, बलिक विज्ञान को भी सपने पर यकीन करने के लिए मजबूर कर दिया।

सनद रहे, संत शोभन सरकार के सहयोगी बाबा ओमजी महराज ने कर्इ बार यह दावा कर चुके थे कि '15 फुट की गहरार्इ में सोना है। उन्होंने यह भी कहा था कि 'सोना न मिले तो सरकार मेरा सिर कलम करवा दे। अब तब 11 दिन में 4.90 मीटर (लगभग 15 फुट) गहरार्इ तक खुदार्इ हुर्इ और कुछ न मिला तो वह अपने दावे से पलटते हुए कह दिये कि 'सोना न निकला तो सरकार को नुकसान नहीं होगा। मंगलवार की खुदार्इ तक जब सोना या अन्य कोर्इ धातु नहीं मिली तो एएसआर्इ के अधिकारी एस.बी. शुक्ल कहते हैं कि 'जीएसआर्इ की रिपोर्ट के आधार पर एएसआर्इ ने खुदार्इ शुरू की थी। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या एएसआर्इ व जीएएसआर्इ जैसी एजेंसिया भी विज्ञान पर नहीं, सपने (अंधविश्वास) पर ज्यादा भरोसा करती हैं? चूंकि सोना न मिलने की दशा में जीएसआर्इ की रिपोर्ट के अनुसार कोर्इ 'धातु का मिलना जरूरी था।

किले की खुदार्इ में सोना नहीं मिला, फिर भी डौंडि़याखेड़ा गांव के कुछ बुजुर्ग संत शोभन सरकार के सपने को अब भी सच मान रहे हैं, बुजुर्ग सरवन का कहना है कि 'खुदार्इ की गति बहुत धीमी थी, 'शोभन सरकार ने पहले ही कह दिया था कि समय से खुदार्इ न की गर्इ तो सोना 'राख हो जाएगा। स्नातक की शिक्षा ग्रहण कर रहे इस गांव के युवक राजेन्द्र सिंह का कहना है कि 'यह पहले से ही तय था कि सोना नहीं मिलेगा, सिर्फ अंधविश्वास फैलाया गया है। सामाजिक कार्यकर्ता सुरेश रैकवार का कहना है कि 'संत शोभन के सपने के आधार पर केन्द्र सरकार ने अंधविश्वास को बढ़ावा दिया है, इसके जिम्मेदारों के खिलाफ वैधानिक कार्रवार्इ होनी चाहिए। उत्तर प्रदेश की विधानसभा में बसपा विधायक दल के उपनेता और बांदा की नरैनी सीट से विधायक गयाचरण दिनकर कहते हैं कि 'शोभन-सपना-सोना-संप्रग-सोनिया (एस-5) के अजीब मिलन ने देश में अंधविश्वास फैलाने का निकृष्टतम कार्य किया है। वह कहते हैं कि 'संत के सपने को केन्द्र सरकार तक पहुंचाने वाले मंत्री चरणदास महंत के खिलाफ विधि संगत कार्रवार्इ अमल में लार्इ जानी चाहिए।

www.pardaphash.com

जदयू के चिंतन शिविर में नमो-नमो!

बिहार के नालंदा जिले स्थित प्रसिद्ध पर्यटन स्थल राजगीर में आयोजित जनता दल-युनाइटेड (जदयू) के दो दिवसीय चिंतन शिविर के दूसरे दिन मंगलवार को गुजरात के मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी नरेंद्र मोदी (नमो) का नाम बार-बार लिया गया।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रविवार को रैली के दौरान नमो द्वारा किए गए शाब्दिक प्रहार पर पलटवार किया तो वहीं जदयू के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने नमो की तारीफ भी कर दी। इस दौरान हालांकि जदयू के कुछ कार्यकर्ताओं ने शिवानंद के विरोध में नारे लगाए।

शिवानंद ने मोदी की तारीफ करते हुए कहा, "मोदी ने मेहनत की बदौलत जो मुकाम हासिल किया है, उसकी मैं तारीफ करता हूं। मैं मोदी की विचारधारा का नहीं, बल्कि उनकी मेहनत का कायल हूं। वे एक पिछड़े परिवार में पैदा होकर कड़ी मेहनत कर आज इस मुकाम पर पहुंचे हैं।" उन्होंने आगे कहा, "जहां तक मोदी की विचारधारा का प्रश्न है, तो यह हमलोगों के लिए एक चुनौती है।"

शिवानंद यहीं नहीं रुके, उन्होंने एक ओर जहां मोदी की तारीफ की, वहीं नमो के धुर विरोधी माने जाने वाले अपने ही नेता और बिहार के मुख्यमंत्री का खुला विरोध कर डाला। उन्होंने स्पष्ट कहा, "उनके नेतृत्व में पार्टी के अंदर कोई नया नेता पैदा नहीं हुआ है क्योंकि वे जमीनी नेता नहीं हैं।"

नीतीश भी पार्टी के चिंतन शिविर में नमो पर ही भाषण देते रहे। इस दौरान उन्होंने कई मुद्दों को लेकर नमो की आलोचना की तो कई मुद्दों पर उनकी खिल्ली भी उड़ाई। उन्होंने नमो को 'झूठा कथावाचक' बताते हुए उन्हें नसीहत दी की कि प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार को धैर्यवान होना चाहिए।

नीतीश ने कहा, "प्रधानमंत्री पद पाने के लिए उनमें उतावलापन दिखता है पर देश के सबसे बड़े पद पर बैठने वाले शख्स को ऐसा नहीं होना चाहिए।" नीतीश ने नमो पर पलटवार करते हुए उनके द्वारा रैली के दौरान दिए गए भाषण में कई तथ्यात्मक भूल का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने तो बिहार का इतिहास ही बदल दिया। उन्होंने रैली के नाम पर प्रश्न उठाते हुए कहा कि हुंकार का मतलब ही घमंड के साथ जोर से बोलना होता है।

नीतीश ने भाजपा पर विश्वासघात करने का आरोप लगाते हुए कहा कि गैर कांग्रेसवाद को भाजपा ने गठबंधन तोड़कर कमजोर कर दिया है। मुख्यमंत्री ने भाजपा पर न केवल सांप्रदायिक होने का आरोप लगाया बल्कि नमो के भाषण को फासीवाद का भाषण बताया। उन्होंने कहा कि क्या लोकतंत्र में चुन-चुनकर साफ करने की बात होती है? उल्लेखनीय है कि नमो ने पटना के गांधी मैदान में हुंकार रैली के दौरान नीतीश पर जमकर हमला किया था।
WWW.PARDAPHASH.COM

'संतों पर अत्याचार' को भुनाने का प्रयास, भाजपा ने पल्ला झाड़ा

उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की रैलियों को सफल बनाने के लिए अब एक हिंदूवादी संगठन संतों पर हुए अत्याचार को भुनाने में जुट गया है। बहराइच में कई जगहों पर लगी होर्डिग इस बात की ओर इशारा करती है कि हिंदूवादी संगठन संतों को भुनाने की तैयारी में लगे हुए हैं। इस बीच भाजपा ने इस होर्डिग से अपना पल्ला झाड़ लिया है ।

उप्र में मोदी की रैली 8 नवंबर को बहराइच में होने वाली है। रैली में मात्र कुछ दिन शेष बचे हुए हैं। एक तरफ जहां भाजपा के कार्यकर्ता तैयारियों में जुटे हुए हैं, वही दूसरी तरफ संस्कृति रक्षक दल नामक संगठन ने सुब्रमण्यम स्वामी को निवेदक दिखाते हुए पूरे शहर में करीब 8 से 10 जगहों पर यह विवादित होर्डिग लगवाई गई है।

होर्डिग में आसाराम बापू को केंद्रित करते हुए धर्म विशेष के संतों को लगातार फर्जी मामलों में फंसाने का आरोप दर्शाया गया है। धर्म विशेष के लोगों की भवानाओं को भड़काने की कोशिश की गई है। इन सभी होर्डिग में कभी जनता पार्टी के अध्यक्ष रहे और अब भाजपा में शामिल सुब्रमण्यम स्वामी को निवेदक के तौर पर दर्शाया गया है। 

यह होर्डिग शहर में सिद्धनाथ मंदिर, ब्राह्मणीपुरा और खासतौर से हिंदू बहुल मोहल्लों में लगाया गया है। होर्डिग में आसाराम बापू, रामदेव और साध्वी प्रज्ञा ठाकुर सहित कई संतों का चित्र दर्शाया गया है। होर्डिग पर लिखा गया है-'हिंदू संतों का अपमान क्या सहता रहेगा हिंदुस्तान'। 

मोदी की रैली के लिए भाजपा के कार्यकर्ता तैयारी में दिन-रात एक किए हुए हैं। भाजपा के कार्यकर्ताओं द्वारा लोगों को रैली में आने के लिए आमंत्रित किया जा रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि लोगों को रैली स्थल तक लाने के लिए ही इस होर्डिग को शहर में कई जगहों पर लगवाया गया है।

प्रशासन की ओर से लगातार मोदी की सभास्थल का निरीक्षण किया जा रहा है। लेकिन शोचनीय बात यह है कि मोदी की रैली को लेकर जहां प्रशासन एक तरफ शख्त है तो वहीं दूसरी तरफ शहरों में विभिन्न जगह लगी विवादित होर्डिग से अनजान है। 

इस समय जनपद बहराइच में जिलाधिकारी द्वारा धारा 144 लागू किया गया है, जिसमें ऐसी विवादित होर्डिग नहीं लगाई जा सकती। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि मोदी की रैली को लेकर एक तरफ प्रशासन जहां पसीना बहा रहा है, वहीं दूसरी ओर विवादित होर्डिग से जिला प्रशासन के आला अधिकारी अंजान क्यों बने हुए हैं।

होर्डिग को लेकर सुब्रमण्यम स्वामी ने आईएएनएस से बातचीत के दौरान इस बात से साफतौर पर कहा कि संस्कृति रक्षक दल से उनका कोई लेना-देना नहीं है। उनके बयान को गलत तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। 

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने कहा कि इस होर्डिग से भाजपा का कोई लेनादेना नहीं है। इसे किसी व्यक्तिगत संगठन की ओर से लगाया गया है और इससे भाजपा का कोई लेनादेना नहीं है।

WWW.PARDAPHASH.COM

यहां 'जिन्नात' ने दिया था खजाने का सपना!

बुद्धजीवी वर्ग सपने को अंधविश्वास मानकर भले ही नकार रहा हो लेकिन बुंदेलखंड के बुजुर्ग इससे इत्तेफाक नहीं रखते। वह उन्नाव जिले के डौंड़ियाखेड़ा किले में सोने के खजाने का सपना सच मान रहे हैं। कई लोगों का मानना है कि बांदा जिले के गौर-शिवपुर गांव में एक मुस्लिम परिवार को जमीन में खजाना होने का सपना 'जिन्नात' ने दिया था और वह मिला भी, लेकिन उस खजाने की रखवाली जिन्नात सांप बनकर अब भी कर रहा है।

उन्नाव जिले के डौंड़ियाखेड़ा किले में सपने को सच मानकर कथित सोने के खजाने की खोज के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) पिछले 18 अक्टूबर से खुदाई करवा रहा है। बुद्धजीवी वर्ग सपने को सिर्फ सपना मानता है, लेकिन बुंदेलखंड के बुजुर्ग इन सपनों को सच मानते हैं। हमारे संवाददाता ने बुजुर्गों से इस बारे में जानना चाहा तो बड़े रोचक तथ्य उभर कर सामने आए। इस संवाददाता ने बांदा जिले के गौर-शिवपुरा गांव का दौरा किया, जहां जिन्नात द्वारा करीब 35 साल पहले एक मुस्लिम परिवार को सोने के खजाने की बात सपने में बताई थी।

यहां चुपचाप खुदाई हुई और सोने-चांदी के ढेर सारे सिक्के मिले हैं। परन्तु अब तक यह कुनबा एक भी सिक्का खर्च नहीं कर सका है। बताया जा रहा है कि जब भी इस्तेमाल करने की सोची तो काला नाग बनकर हिफाजत करने वाला जिन्नात गृहस्वामी को डस लेता है, अब तक वह उसे 48 बार डस चुका है। इस परिवार के मुखिया ने नाम का खुलासा न करने की शर्त बताया कि करीब 35 साल पहले उसकी दादी को एक जिन्नात ने सपने में बताया कि केन नदी के किनारे खंडहरनुमा जानवर बाड़े में खजाना गड़ा है। खुदाई की गई तो वहां करीब दो किलोग्राम सोने और 20 किलोग्राम चांदी के सिक्के मिले थे, जो अब भी उनके पास मौजूद हैं। 

इस व्यक्ति ने बताया कि इस धन की हर साल पूजा-अर्चना तो कर रहे हैं, लेकिन जब भी उसे खर्च करने के बारे में सोचा जाता है, काला नाग डस लेता है। उसने बताया कि अब तक यह काला नाग उसे 48 बार डस चुका है। इसी गांव के साकिर ने बताया कि जमीन में गड़े धन की जानकारी यहां हर किसी को है, लेकिन जब खर्च नहीं कर सकते तो वह मिट्टी के बराबर है। उन्नाव जिले के डौंड़ियाखेड़ा किले में सोने के खजाने से संबंधित सपने को भी यहां के बुजुर्ग सच मान रहे हैं। बुजुर्गों को उम्मीद है कि संत शोभन सरकार का सपना सच होगा और वहां सोने का खजाना जरूर मिलेगा।

www.pardaphash.com

जानिए तीनों देवताओं में भगवान विष्णु ही सर्वश्रेष्ठ क्यों..?

हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार, इस सम्पूर्ण सृष्टि का पालन पोषण और संचालन का जिम्मा तीन देवताओं पर हैं यह हम सभी जानते हैं| ब्रह्मदेव को जगत का रचनाकार, भगवान विष्णु को पालनकर्ता और भगवान शिव को संहारकर्ता माना गया है। तीनों ही देव सर्वशक्तिमान और परम पूज्यनीय हैं। कई युगों पहले ऋषि मुनियों में त्रिदेव को लेकर यह जिज्ञासा हुई कि इन तीनों देवताओं में सर्वश्रेष्ठ कौन है?

इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए सभी ऋषि-मुनियों ने महर्षि भृगु से निवेदन किया। महर्षि भृगु परम तपस्वी और तीनों देवों के प्रिय थे। अब इस प्रश्न का उत्तर जाने के लिए सभी ऋषि मुनि बिना आज्ञा के ही ब्रम्हा जी के पास पहुँच गए| इस तरह अचानक आए महर्षि भृगु को देख ब्रह्मा क्रोधित हो गए। इसके बाद महर्षि भृगु इसी तरह शिवजी के सम्मुख जा पहुंचे और वहां भी उन्हें शिवजी द्वारा अपमानित होना पड़ा। अब भृगु भी क्रोधित हो गए और इसी क्रोध में वे भगवान विष्णु के सम्मुख जा पहुंचे। उस समय भगवान विष्णु शेषनाग पर सो रहे थे। महर्षि भृगु के आने का उन्हें ध्यान ही नहीं रहा और वे महर्षि के सम्मान में खड़े नहीं हुए। अतिक्रोधित स्वभाव वाले भृगु ने इसे अपना अपमान समझा और क्रोध से विष्णु की छाती पर लात मार दी। 

इस प्रकार जगाए जाने पर भी विष्णु ने धैर्य रखा और तुरंत ही महर्षि भृगु के सम्मान में खड़े होकर उन्हें प्रणाम किया। भगवान विष्णु ने विनयपूर्वक कहा कि मेरा शरीर वज्र के समान कठोर है, अत: आपके पैर पर चोट तो नहीं लगी? औरे उन्होंने महर्षि के पैर पकड़ लिए और सहलाने लगे। विष्णु की इस महानता से महर्षि भृगु अति प्रसन्न हुए। भगवान विष्णु के इस धैर्य और सम्मान के भाव से प्रसन्न महर्षि ने उन्हें तीनों देवों में सर्वश्रेष्ठ घोषित किया।
www.pardaphash.com

बस्तर में बागियों ने बिगाड़ा भाजपा-कांग्रेस का खेल

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बस्तर संभाग में कांग्रेस और भाजपा में बगावत के सुर फूटने लगे हैं। इसके चलते यहां चुनावी फिजा बदलने-सी लगी है। हर विधानसभा क्षेत्रों में दूसरे दलों में घुसपैठ, तोड़-फोड़ और क्षेत्रीय क्षत्रपों को अपने पाले में खींचने की भारी कसरत शुरू है। कई पूर्व मंत्री, विधायक बागियों की कतार में खड़े दिखाई दे रहे हैं। इस उठापटक के कारण यहां दोनों दलों के बने-बनाए समीकरण बिगड़ने लगे हैं।

अभी नामांकन का दौर पूरा ही हुआ है। ज्यादातर विधानसभा क्षेत्रों में बागियों की बगावत तेज हो गई है। राजनीतिक दल रूठे नेताओं, कार्यकताओं को मनाने में जुट गए हैं। इसके कारण उम्मीदवार ठीक से प्रचार करने क्षेत्रों में नहीं जा पा रहे हैं। शहरों-कस्बों में इक्का-दुक्का पोस्टर ही लगे हैं। गांवों में कोई सरगर्मी नहीं है। सुरक्षा बल के जवान शहरों से लेकर गांवों तक नजर आ रहे हैं। नक्सलियों के चुनाव बहिष्कार संबंधी कुछ बैनर-पोस्टर अंदर जंगलों में जरूर दिख जाते हैं।

प्रदेश के मंत्री विक्रम उसेंडी के सामने कांग्रेस से मंतूराम पवार चुनाव मैदान में हैं। लेकिन भाजपा के जिला महामंत्री भोजराज नाग ने विद्रोही तेवर अख्तियार कर लिया है। काफी मान-मनव्वल के बावजूद भोजराज नहीं मान रहे हैं। उनकी नाराजगी मंतूराम की राह आसान करेगी।

भानुप्रतापपुर में भी भाजपाइयों में ही ज्यादा घमासान देखा जा रहा है। भाजपा ने यहां से वर्तमान विधायक ब्रह्मानंद नेताम का टिकट काटकर सतीश लाटिया को उम्मीदवार बनाया है। अब अनधिकृत उम्मीदवार के रूप में ब्रह्मानंद का नाद लाटिया को परेशान कर रहा है। कांग्रेस के मनोज मंडावी इसका पूरा फायदा उठाने की कोशिश में है।

कांकेर : कांग्रेस से आए कोड़ोपी पर अपनों का कोप :

इस महत्वपूर्ण सीट पर भाजपा ने सुमित्रा मारकोले का टिकट काटा और संजय कोड़ोपी को प्रत्याशी बनाया है। वह हाल ही में कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए हैं। इसलिए स्थानीय कार्यकताओं में ज्यादा नाराजगी है। पूर्व मंत्री अघन सिंह भी अपने तेवर दिखा रहे हैं। यहां के मतदाताओं का मिजाज उलटफेर करने का रहा है। कांग्रेस से शंकर ध्रुवा को टिकट दिया गया है। वह भी यहां उलटफेर के लिए हाथ-पांव मार रही है।

केसकाल : खाकी वाले खादी की दौड़ में

यहां भाजपा और कांग्रेस में सतह पर तो गुटबाजी नजर नहीं आती। पर भीतरघात की संभावना दोनों दलों में बनी हुई है। दोनों तरफ से परफॉरमेंस को लेकर जंग शुरू है। यहां पुलिस की नौकरी छोड़कर राजनीति में आए संतराम कांग्रेस के प्रत्याशी हैं। कांग्रेस के पूर्व मंडी अध्यक्ष धनीराम मरकाम भी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में हैं।

चित्रकोट : परिणाम प्रभावित कर सकते हैं लच्छूराम

यहां की आबो हवा और जलप्रपात लोगों को सहसा अपनी तरफ आकर्षित करती है। पर इस बार सबकी निगाहें भाजपा के पूर्व विधायक लच्छूराम कश्यप पर हैं। वह परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं। कांग्रेस के दीपक बैज की स्थिति भी उतनी ठीक नहीं जितना कांग्रेसी बताते हैं। भाकपा के सोनाधर नाग की सक्रियता को भी यहां कम नहीं आंका जा सकता। त्रिकोणीय संघर्ष की संभावना है।

दंतेवाड़ा : भीमा को देवती से भय

बस्तर टाइगर के इस इलाके में इस बार मुकाबला त्रिकोणीय होगा, ऐसे संकेत मिल रहे हैं। विरोधों के बावजूद भाजपा के भीमा मंडावी अभियान में जुटे हैं। दिवंगत महेंद्र कर्मा की पत्नी कांग्रेस की देवती कर्मा परंपरागत वोट साधने में जुटी हैं। भाकपा भी यहां हाथ पैर मार रही है। भाकपा के बोमड़ाराम कवासी के लिए पूरा जोर लगाया जा रहा है।

बीजापुर : सभी को है बगावत का डर

वैसे तो यहां भाजपा, कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला दिख रहा है। यहां कांग्रेस से विक्रम शाह मंडावी हैं। पर कई लोग बगावत पर उतारू हैं। जिला पंचायत अध्यक्ष नीना रावतिया यहां मिच्चा मुतैया व अन्य बागियों के दम पर निर्दलीय के रूप में मैदान में हैं। भाजपा के महेश गागड़ा के लिए यह राहत की बात है।

कोंटा : भाकपा की प्रभावी मौजूदगी रोचक

छत्तीसगढ़ की सम्भवत: यह पहली सीट होगी जिसे भाजपा, कांग्रेस दोनों ही अपने खाते में परिणाम आने तक नहीं जोड़ेंगे। यहां पर अभी से त्रिकोणीय घमासान के आसार हैं। भाकपा के मनीष कुंजाम की प्रभावी मौजूदगी है। वह यहां के अंदरूनी इलाकों में पकड़ बना चुके हैं। यहां से खाता खोलने के लिए भाजपा की जमुना मांझी और मौसम मुत्ती दांवपेंच लगा रही हैं। कांग्रेस के वत्र्तमान विधायक कवासी लखमा के लिए फिलहाल कठिनाई है। नक्सल हमलों के बाद यहां के राजनीतिक हालात जुदा-जुदा हैं।

कोंडागांव : पिता-पुत्र ने किया नाक में दम

इस विधानसभा क्षेत्र से रमन सरकार की एकमात्र महिला मंत्री चुनाव मैदान में हैं। मंत्री लता उसेंडी और कांग्रेस से मोहन मरकाम के बीच सीधा मुकाबला है। लेकिन वरिष्ठ कांग्रेसी मानकूराम सोढ़ी और उनके पुत्र पूर्व मंत्री शंकर का विद्रोह कांग्रेस को परेशान कर सकता है। बागी अकेले कांग्रेस को नुकसान पहुंचाएंगे, ऐसा नहीं कहा जा सकता। भाजपाइयों में भी कुछ बगावती सुर देखने को मिले हैं।

नारायणपुर : पुराने के मुकाबले नए चेहरा पर दांव

बस्तर का यह क्षेत्र आज भी बलिराम कश्यप को नहीं भूला है। केदार कश्यप उनके बाद ही याद आते हैं। केदार के वोट बैंक में भानपुरी क्षेत्र के चंदन कश्यप सेंधमारी कर सकते हैं। कांग्रेस में गुटबाजी फिलहाल नहीं दिख रही। इस लिहाज से मुकाबला ठीक-ठाक है। पर मंत्री और नए चेहरे की राजनीतिक लड़ाई क्या गुल खिलाती हैं, यह वक्त बताएगा।

बस्तर : दोनों ही दलों में कलह

बस्तर में कांग्रेस के लखेश्वर बघेल का सियासी दांव-पेंच शुरू हो गया है। भाजपा से सुभाउ कश्यप भी तैयारी में हैं। कलह तो दोनों जगह है, समय रहते इस पर जो काबू कर सकेगा, वह अपने पक्ष में माहौल बना पाएगा।

जगदलपुर : संतोष के खिलाफ भाजपाइयों में असंतोष

बस्तर के एकमात्र शहरी क्षेत्र जगदलपुर से भाजपा ने संतोष बाफना को दोबारा टिकट दिया है। भाजपा का एक धड़ा काफी नाराज है। इस बात से बाफना भी अच्छी तरह वाकिफ हैं। कांग्रेस के बिलकुल नए चेहरे सामू कश्यप को भी पार्टी के पुराने लोग पचा नहीं पा रहे हैं। हालांकि वह दावा कर रहे हैं कि उनके खिलाफ कोई माहौल नहीं है। 

www.pardaphash.com

गाय का आध्यात्मिक और ज्योतिषीय महत्व

भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही गोधन को मुख्य धन मानते थे, और सभी प्रकार से गौ रक्षा और गौ सेवा, गौ पालन भी करते थे। शास्त्रों, वेदों, आर्ष ग्रथों में गौरक्षा, गौ महिमा, गौपालन आदि के प्रसंग भी अधिकाधिक मिलते हैं। रामायण, महाभारत, भगवतगीता में भी गाय का किसी न किसी रूप में उल्लेख मिलता है। गाय का जहाँ धार्मिक आध्यात्मिक महत्व है वहीं कभी प्राचीन काल में भारतवर्ष में गोधन एक परिवार, समाज के महत्वपूर्ण धनों में से एक है। आज के दौर में गायों को पालने और खिलाने पिलाने की परंपरा में लगातार कमी आ रही है। कभी हमारा देश पशुपालन में अग्रणी रहा है। देशवासियों की काफी जरूरतों को यही गौधन ही पूरा किया करता था। गाय से बछड़ा, बछड़ा से बैल, बैल से खेती की जरूरतें पूरी होती हैं। कृषि के लिए गाय का गोबर आज भी वरदान माना गया है। फिर भी गौ पालन, गौ संरक्षण आदि महत्वपूर्ण क्यों नहीं है? यह एक विचारणीय प्रश्न है।ं।

गाय का आध्यात्मिक महत्वः-

गाय का विश्व स्तर पर आध्यात्मिक महत्व है, ''गावो विश्वस्य मातरः''। नवग्रहों सूर्य, चंद्रमा, मंगल, राहु, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, केतु के साथ साथ वरूण, वायु आदि देवताओं को यज्ञ में दी हुई प्रत्येक आहुति गाय के घी से देने की परंपरा है, जिससे सूर्य की किरणों को विशेष ऊर्जा मिलती है। यही विशेष ऊर्जा वर्षा का कारण बनती है, और वर्षा से ही अन्न, पेड़-पौधों आदि को जीवन प्राप्त होता है। हिंदू धर्म में जितने धार्मिक कार्य, धार्मिक संस्कार होते हैं जैसे नामकरण, गर्भाधान, जन्म आदि सभी में गाय का दूध, गोबर, घी, आदि का ही प्रयोग किया जाता है जहां विवाह संस्कार आदि होते हैं वहां भी गोबर के लेप से शुद्धिकरण की क्रिया करते हैं। विवाह के समय गोदान का भी बहुत महत्व माना गया है। जनना शौच और मरणाशौच मिटाने के लिए भी गाय का गोबर और गौमूत्र का प्रयोग किया जाता है। इसकी धार्मिक वजह यह भी है कि गाय के गोबर में लक्ष्मी जी का और गोमूत्र में गंगा जी का निवास है।
वैतरणी पार करने के लिए गोदान की प्रथा आज भी हमारे समाज में मौजूद है, श्राद्ध कर्म में भी गाय के दूध की खीर का प्रयोग किया जाता है क्योंकि इसी खीर से पितरों की ज्यादा से ज्यादा तृप्ति होती है। पितर, देवता, मनुष्य आदि सभी को शारीरिक बल गाय के दूध और घी से ही मिलता है। गाय के शारीरिक अंगों में सभी देवताओं का निवास माना जाता है। गाय की छाया भी बेहद शुभ प्रद मानी गयी है। गाय के दर्शन मात्र से ही यात्रा की सफलता स्वतः सिद्ध हो जाती है। दूध पिलाती गाय का दर्शन तो बेहद शुभ माना जाता है।

गाय का ज्योतिषीय महत्वः-

1. नवग्रहों की शांति के संदर्भ में गाय की विशेष भूमिका होती है कहा तो यह भी जाता है कि गोदान से ही सभी अरिष्ट कट जाते हैं। शनि की दशा, अंतरदशा, और साढेसाती के समय काली गाय का दान मनुष्य को कष्ट मुक्त कर देता है।

2. मंगल के अरिष्ट होने पर लाल वर्ण की गाय की सेवा और निर्धन ब्राम्हण को गोदान मंगल के प्रभाव को क्षीण करता है।

3. बुध ग्रह की अशुभता निवारण हेतु गौवों को हरा चारा खिलाने से बुध की अशुभता नष्ट होती है।

4. गाय की सेवा, पूजा, आराधना, आदि से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं और भक्तों को सुखमय होने का वरदान भी देती हैं।

5. गाय की सेवा मानसिक शांति प्रदान करती है।

गाय से संबंधित धार्मिक वृत व उपवासः-

1. गोपद्वमव्रतः- सुख, सौभाग्य, संपत्ति, पुत्र, पौत्र, आदि के सुखों को देने वाला है।
2. गोवत्सद्वादशी व्रतः- इस व्रत से समस्त मनोकामनाऐं पूर्ण होती हैं।
3. गोवर्धन पूजाः- इस लोक के समस्त सुखों में वृद्धि के साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है।
4. गोत्रि-रात्र व्रतः- पुत्र प्राप्ति, सुख भोग, और गोलोक की प्राप्ति होती है।
5. गोपाअष्टमीः- सुख सौभाग्य में वृद्धि होती है।
6. पयोव्रतः- पुत्र की प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दम्पत्तियों को संतान प्राप्ति होती है।

www.pardaphash.com

दिवाली पर इन बातों का रखें विशेष ध्यान

हर साल भारतीय पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की अमावस्या के दिन दीपावली के रूप में पूरे देश में बडी धूम-धाम से मनाया जाता हैं। इस वर्ष दिपावली, 3 नवंबर को मनाई जायेगी| दीपावली की रात्रि को महालक्ष्मी की कृपा जिस व्यक्ति या परिवार पर पड़ जाती है उसे कभी धन का अभाव नहीं होता है और उसके घर में हमेशा सुख-समृद्धि रहती है| दीपावली के शुभ अवसर पर महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिये कुछ पूजा-आराधना इस प्रकार से करनी चाहिये कि पूरे वर्ष धन-धान्य में वृद्धि होकर सुख-समृद्धि बनी रहे और निरन्तर मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहे।

दीपावली के दिन हर व्यक्ति अपने घर को सामर्थ्य के अनुसार खूब सजाना चाहता है ताकि धन की देवी माता लक्ष्मी उससे प्रसन्न होकर उसके घर में प्रवेश करें| लेकिन कई बार होता क्या है कि लोग घर को ज्यादा सुंदर बनाने के चक्कर में ऐसी गलतियां कर बैठते हैं कि वास्तु के विपरीत स्थितियां बन जाती हैं इसलिए घर को सजाते समय वास्तु का ध्यान भी जरूर रखें।

सबसे पहले यदि आप अपने घर में कबाड़ इकठ्ठा कर रहे हैं तो उसे फ़ौरन निकल दें क्योंकि ऐसा करने से दरिद्रता तो आती ही है साथ ही वास्तुदोष भी बढ़ता है| इसके अलावा यह भी ध्यान रहे कि घर सजा लेने से ही कुछ नहीं होता है घर व छत पर कहीं भी दीपवली के दिन कूड़ा इकठ्ठा न करें|

इसके अलावा जिन लोगों के घर का मुख्य द्वार दक्षिण दिशा की ओर है उन्हें मुख्य द्वार पर पिरामिड या लक्ष्मी गणेश की तस्वीर लगानी चाहिए। आपके घर का मुख्य द्वार पूर्व दिशा या उत्तर दिशा की ओर है तो उत्तर पू्र्व दिशा को विशेष रूप से सजाएं। इसके अलावा घर के खिड़की व दरवाजों पर पहले सरसों का तेल लगाएं उसके बाद उस पर स्वास्तिक बनायें और शुभ लाभ लिखें| 


www.pardaphash.com

सोने से उठ रहा राजनीतिक धुआं!

उन्नाव जिले के एक गांव में स्थित पूर्ववर्ती राजा के किले के खंडहरों में दबे 1000 टन सोने की खोज में अभी तक कांच की कुछ टूटी हुई चूड़ियां, मिट्टी के बर्तन और चूल्हा ही मिल पाया है, लेकिन इस मुद्दे पर राजनीतिक पारा चरम पर पहुंच चुका है।

राजधानी लखनऊ से कोई 100 किलोमीटर दूर डौंडियाखेड़ा गांव में सोने की खोज जोरशोर से जारी है। खुदाई के काम की निगरानी कर रहे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के अधिकारियों ने अभी तक करीब सात फुट फीट तक ही खुदाई की है। अधिकारियों का कहना है कि क्षेत्र में ज्यादा कुछ नहीं मिलने वाला।

लेकिन इसे लेकर विवादों का सिलसिला चरम पर है। जनता दल-यूनाइटेड के अध्यक्ष शरद यादव ने सपने में सोने का खजाना देखने वाले साधु शोभन सरकार के चेले स्वामी ओमजी के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है।

ओमजी के समर्थकों ने यादव का पुतला दहन किया है। बीघपुर गांव के प्रधान ने सवाल किया, "स्वामी ओमजी एक साधु हैं। आखिर शरद यादव उनकी छवि को धूमिल कैसे कर सकते हैं?"

स्वामी ओमजी ने इससे पहले पत्रकारों से यह कह कर कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी 'झूठ का सौदागर है' विवाद खड़ा कर दिया था।

भाजपा ने तुरत-फुरत में ओमजी का इतिहास खंगाल लिया और दावा किया कि स्वामी ओमजी 90 के दशक में युवा कांग्रेस के नेता हुआ करते थे।

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने ओमजी पर 'कांग्रेस का कार्यकर्ता' होने का आरोप लगाया। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने हालांकि साधु की किले के अंदर गड़ा धन सपने में देखने के लिए सराहना की। उन्नाव से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सांसद बृजेश पाठक ने कहा कि वे घटनाक्रम पर नजर रखे हुए हैं।

ओमजी के खिलाफ दो मुकदमे वाराणसी और लखनऊ की अदालतों में दर्ज कराए जा चुके हैं। उनके खिलाफ तंत्रमंत्र को बढ़ावा और समाज को गुमराह करने का आरोप लगाया गया है।

वाराणसी में अपनी अर्जी में पेशे से वकील कमलेश चंद्र त्रिपाठी ने कहा है कि एएसआई के अधिकारी एक साधु के सपने पर सक्रिय होने में विज्ञान को ताक पर रख दिया है।

वकील ने कहा है, "साधु को भारतीय दंड विधान की धारा 295 (ए) और 298 के तहत दंडित किया जाए।" लखनऊ में दायर एक अन्य मामले में केंद्रीय मंत्री एवं कांग्रेस नेता चरणदास महंत को भी नामजद किया गया है। इस मामले की अगली सुनवाई 11 नवंबर को होगी।

उन्नाव के पूर्व राजा राव राम बख्श सिंह के किले की खुदाई का आदेश देने के लिए मोदी ने पिछले सप्ताह केंद्र सरकार की आलोचना की थी और कहा था कि इससे बेहतर होता कि सरकार स्विस बैंक से काला धन वापस लाने का प्रयत्न करती।

बाद में हालांकि उन्होंने अपने वचन पर यह ट्वीट करते हुए माफी भी मांगी कि उनके दिल में 'शोभन सरकार की तपस्या और त्याग के लिए असीम श्रद्धा है।'

इस हंगामे में इतना ही काफी नहीं है। बौद्ध साधु भी खुदाई वाली जगह को प्राचीन बौद्ध स्थल होने दावा करते हुए कूद पड़े हैं। भीम राव अंबेडकर महासभा के अध्यक्ष लालजी प्रसाद निर्मल ने कहा कि है वे लोग शनिवार को गांव की ओर कूच करेंगे और जिला दंडाधिकारी से मुलाकात कर अपना दावा पेश करेंगे। 

www.pardaphash.com

रंगों से पहचानें लोगों का स्वभाव

क्या आप जानते हैं कि रंगों की पसंद के अनुसार भी किसी व्यक्ति का स्वभाव मालूम किया जा सकता है। ज्योतिष के अनुसार हमारा जैसा स्वभाव होता है वैसे ही रंग हमारी पसंद होते हैं। रंगों का ग्रहों से भी गहरा संबंध होता है। वहीं यदि यह कहा जाए कि हमारी पसंद-नापसंद पर शुभ-अशुभ ग्रहों का प्रभाव पड़ता है तो गलत न होगा। 

कुछ ज्योतिष के जानकारों का कहना है कि लाल, काला, नीला, हरा, पीला रंग के अनुसार हम अपना स्वभाव जान सकते हैं। निम्नलिखित रंगों के अनुसार हम अपने स्वभाव को जान सकते हैं।

लाल- आप बहुत सावधान रहने वाले हैं, आपके जीवन प्रेम का बहुत अधिक महत्व है। आप बहुत अच्छे प्रेमी सिद्ध हो सकते हैं।

काला- आपका स्वभाव रूढ़िवादी है। साथ ही आपको गुस्सा बहुत जल्द आता है। आपको बदलाव बहुत कम ही पसंद आता है।

नीला- आप स्वाभिमानी हैं, किसी से मदद लेना आपको पसंद नहीं होता। प्रेमी को पूरा समय देते हैं।

हरा- आप बहुत शांति प्रिय इंसान हैं। लड़ाई-झगड़ों से दूर ही रहते हैं।

पीला- आप हमेशा खुश रहने वाले इंसान हैं। दूसरों को हमेशा सही मार्गदर्शन देते हैं। सभी की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।

कहा जाता है कि ज्योतिष के अनुसार उपर्युक्त रंगों के अनुसार व्यक्ति का स्वभाव लगभग इसी तरह का रहता है। वहीं नौ ग्रहों की अलग-अलग स्थिति के अनुसार स्वभाव में परिवर्तन भी हो सकता है।

इस बार ड्रिंकिंग गेम्स के साथ मनाइए दिलचस्प दीवाली


कौन कहता है कि दिवाली पर घर में होने वाली दावतें सिर्फ ताश के पत्ते खेलने या सामाजिकता निभाने तक की सीमित हैं। 'स्नैक्स एंड शॉट्स', 'क्रॉस एंड शॉट्स' जैसे खेलों के वयस्क रूपांतरण के साथ आप अपनी दीवाली दावत को नया और दिलचस्प बना सकते हैं। आपकी दिवाली मस्ती को दुगुना करने के लिए बाजार में बास्केट शॉट गेम, ट्रथ और शॉट, बीयर पॉन्ग और ड्रिंकिंग रौलेट, ड्रिंकिंग शतरंज, ड्रिकिंग बास्केटबॉल जैसे खेल उपलब्ध हैं।

राजधानी दिल्ली स्थित एक्सटर्डम किचन एंड बार के सनुज बिड़ला का कहना है, "सिर्फ शराब पीना उबाऊ है।" एक्सटर्डम किचन एंड बार में लोगों के निवेदन पर ड्रिंकिंग गेम्स की व्यवस्था की गई है। बिरला ने बताया, "शराब के साथ खेल होना मजेदार है, ये खेल आपके अंदर छिपे बचपने को बाहर लाते हैं।" राजधानी की कई मधुशालाओं में मांग पर ड्रिंकिंग गेम्स की पेशकश की गई है। इसमें वेयरहाउस कैफे के अलावा अंडरडॉग्स स्पोर्ट्स बार और ग्रिल भी अच्छे विकल्प हैं।

डीजे खुशी के नाम से मशहूर खुश सोनी का मानना है कि ऐसे खेल खेलने में काफी मजा आता है। फैट निंजा के मालिक और पैंजिया के प्रबंध साझेदार का कहना है कि प्रबंधन को यह अच्छी तरह पता होना चाहिए कि लाइन कहां बनाई जाए। कई बार युवा घर में ही दोस्तों के साथ ड्रिंकिंग गेम्स का लुत्फ उठाते हैं। 'ये जवानी है दिवानी' का ट्रेन का ड्रिंकिंग गेम वाला दृश्य तो आपको याद ही होगा।

29 वर्षीय श्रेय कुमार कहते हैं, "बाहर जाना महंगा होता है और पेय भी अत्यिधिक कर के साथ मिलते हैं। इसलिए बेहतर है कि दावत घर पर ही की जाए। यहां हम खेलों का मजा बेहतर तरीके से उठा सकते हैं और बिल की चिंता भी नहीं होगी। " वयस्कों के लिए ऑनलाइन भी बहुत सारे ड्रिंकिंग गेम्स उपलब्ध हैं। ये गेम्स 500 से 1,000 रुपये तक में उपलब्ध हैं।

आईपार्टी वाइल्ड की संस्थापक श्रुति सिंह ने बताया, "जैसे-जैसे ऐसी दावतें बढ़ रही हैं, लोगों ने मेहमानों के मनोरंजन के लिए नए तरीके ढूंढ़ने शुरू कर दिए हैं और इस तरह ड्रिकिंग गेम्स दावतों का हिस्सा बन रहे हैं।" श्रुति की कंपनी ने ट्रिपी डाइस, क्वीन बी, अल्टीमेट डेयरडेविल्स, किंग्स सर्कल और फिल्म-ओ-हॉलिक जैसे कुछ नए गेम्स पेश किए हैं ।

श्रुति ने बताया, "ड्रिकिंग गेम्स शराब के लिए नहीं है, ये इन्हें खेलते हुए आपके अनुभव के लिए है। ये खेल नशे की हालत में आपके धर्य, गति, सोचने की क्षमता को चुनौती देने के लिए बनाए गए हैं। इनके नियम सरल हैं, इसलिए लोग इन खेलों में जल्दी घुलमिल जाते हैं।" अगर आप शराब नहीं पीते हैं तो परेशान मत होइए। आप नींबू पानी के साथ भी इन खेलों का लुत्फ उठा सकते हैं।

www.pardaphash.com

मुजफ्फरनगर के ग्रामीण नहीं मनाएंगे दीवाली

दंगों का दंश झेलने वाले मुजफ्फरनगर के सैकड़ों ग्रामीण इस साल दिवाली पर न तो पटाखे छोड़ेंगे और न ही मोमबत्तियां जलाकर घरों की सजावट करेंगे। बीते माह भड़की हिंसा के दौरान राज्य सरकार की 'भूमिका' से नाराज कई गावों के लोग इस साल दिवाली नहीं मनाएंगे।

सिसौली, बुढ़ाना, पुरकाजी और सिखेड़ा क्षेत्र के करीब 15 गांवों के ग्रामीणों ने सितंबर में भड़की दो वर्गो के बीच हिंसा में निर्दोष लोगों की मौत और घटना में राज्य सरकार की कथित एक पक्षीय कार्रवाई से नाराज होकर इस साल दिवाली नहीं मनाने का ऐलान किया है।

सलेमपुर गांव निवासी पूर्व ग्राम प्रधान प्रेम सिंह राणा ने कहा, "आस-पास के करीब पांच गावों की पंचायत करके हमने ये फैसला लिया है कि राज्य सरकार द्वारा सिर्फ समुदाय विशेष को खुश करने के लिए की गई एक पक्षीय कार्रवाई के खिलाफ हम दीपावली नहीं मनाएंगे।"

राणा ने कहा, "किसी भी सरकार की नजर में हर नागरिक एक समान होना चाहिए, लेकिन समाजवादी पार्टी की सरकार जाति और धर्म के चश्मे से देखकर कार्रवाई करती है। हिंसा के बाद एक विशेष समुदाय को खुश करने के लिए हमें झूठे मुकदमों में फंसाया जा रहा है, इसीलिए हमने दिवाली नहीं मनाने का फैसला लिया है।"

सलेमपुर की तरह अन्य गावों के लोगों ने भी पंचायत कर फैसला किया कि वे दिवाली की रात न तो घरों में दीप जलाएंगे, न मोमबत्ती से घर को सजाएंगे और न ही पटाखे छोड़ेंगे। उनकी दिवाली केवल गणेश-लक्ष्मी की पूजा तक सीमित रहेगी।

लखनौती गांव के निवासी प्रेमपाल शर्मा ने कहा कि अगर कवाल की घटना में राज्य सरकार निष्पक्ष कार्रवाई करती तो दंगे के हालात पैदा ही न होते और निर्दोष लोग मारे नहीं जाते।

शर्मा ने कहा, "हिंसा के बाद अब हमारे समुदाय के सैकड़ों निर्दोष लोगों को झूठे मुकदमों में फंसाया जा रहा है। कई गावों के युवक तो दूसरे स्थानों पर शरण लिए हुए हैं, क्योंकि उन्हें भय है कि कहीं पुलिस उन्हें हिंसा भड़काने के आरोप में पकड़ न ले। राज्य सरकार की एकतरफा कार्रवाई से हम लोग बहुत आहत हैं, ऐसी हालत में हम खुशियां क्या मनाएं।"

याद रहे कि राज्य सरकार पर एकतरफा कार्रवाई का आरोप लगाते हुए करीब दर्जनभर गांवों के लोगों ने दशहरे के दिन बुराई के प्रतीक माने जाने वाले रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले जलाने के बजाय सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और कैबिनट मंत्री आजम खान के पुतले जलाए थे।

विगत 27 अगस्त को जिले के कवाल गांव में एक छेड़खानी की घटना को लेकर हुए विवाद के तूल पकड़ने के बाद सात सितंबर को जिलेभर में हिंसा भड़क गई थी, जिसमें 62 लोग मारे गए थे और करीब 50,000 लोग बेघर हो गए थे।

हिंसा के बाद एक निजी समाचार चैनल के स्टिंग आपरेशन में इस तरह की बातें सामने आई थीं कि राज्य सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री ने अधिकारियों से कवाल की घटना के दोषियों को पुलिस हिरासत से छोड़ने को कहा, जिसके बाद दूसरे समुदाय के लोगों में अंसतोष पैदा हुआ और हालात बिगड़ने शुरू हो गए। 

WWW.PARDAPHASH.COM

लुप्त हो रही कार्तिक स्नान की पुरातन परंपरा

आधुनिकता की होड़ में तीज त्योहारों की पुरानी परम्पराएं धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है। शहरी परिवेश ने तो कई अच्छी परम्पराओं पर एक तरह से पर्दा डाल दिया है। ऐसी ही एक परम्परा है कार्तिक स्नान की। लेकिन आज के बदलते दौर में न सिर्फ युवाओं ने बल्कि बुजुर्गों ने भी भोर के समय कार्तिक स्नान की पुरानी परम्परा को लगभग भुला दिया है।

महानगरीय चकाचौंध और कस्बे, गांवों में तालाबों का अस्तित्व गुम हो जाने के कारण ज्यादातर लोग चाहते हुए भी इस परम्परा का निर्वहन नहीं कर पा रहे हैं। रायपुर की बुजुर्ग महिला सरिता शास्त्री कहती हैं कि पहले कार्तिक माह में दिन के प्रथम प्रहर में स्नान कर भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती थी, अब इसे भुला दिया गया है। पहले शरद पूर्णिमा से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक पूरे एक माह प्रतिदिन नदी और तालाब में स्नान कर जल में दीप प्रज्वलित किए जाते थे। आधुनिकता के दौर में गांवों की वर्षो पुरानी परम्परा धीरे-धीरे अब विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई है। शहर में तो यह न के बराबर दिखती है।

वर्तमान में कस्बों के साथ गांवों में भी तालाबों का अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है। इसकी वजह से भी लोग कार्तिक स्नान की धार्मिक परम्परा में रुचि नहीं दिखा रहे हैं। घर के बड़े बुजुर्ग कार्तिक स्नान की परम्परा को आज याद तो करते हैं पर आसपास में तालाब या नदी के अभाव में वे केवल याद करके ही रह जाते हैं। पुराणी बस्ती के सुरेश वर्मा का कहना है कि पहले कार्तिक का महीना प्रारम्भ होते ही सुबह चार बजे लोग अपने घर से स्नान के लिए निकल पड़ते थे। ठंडे पानी में स्नान के बाद जल में दीप प्रज्वलित करने का नजारा देखते ही बनता था। भोर के समय कार्तिक स्नान के लिए तालाब में दूर दूर के लोग पहुंच कर दीपदान करते थे, तालाब के आसपास बेहद मनोरम दृष्य बन जाता था।

भिलाई के कमल शर्मा ने बताया कि आधुनिकता के चलते अब पुरानी परंपरा विलुप्त कर दी गई है। उन्होंने कहा कि कार्तिक स्नान की परम्परा के पीछे धार्मिक कारण से अधिक अच्छे स्वास्थ्य पर ध्यान देने की आदत बनती थी। शर्मा ने कहा कि गुलाबी ठंड में प्रात: का स्नान स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहतर रहता है। तालाब अथवा नदी में दीप प्रज्वलित करने के बाद चावल आदि से भगवान शिव की पूजा अर्चना करने से आसपास के जीव जन्तुओं को भोजन मिलता है। इससे तालाब का पानी भी स्वच्छ रहता है। भोर में कार्तिक स्नान के बहाने लोगों को जल्द उठने की आदत बन जाती है। पर अब आधुनिकता कि आड़ में अच्छी परम्पराओं को भुला दिया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि अच्छे स्वास्थ्य के लिए इन परम्पराओं को जीवित रखना बेहद जरूरी है। बहरहाल आज भी कुछ गांवों में परम्पराओं को मानने वाले लोग हैं, जो अलसुबह कार्तिक स्नान के लिए तालाबों की तरफ निकल पड़ते हैं। 

WWW.PARDAPHASH.COM

सुनत हैं गुजरात में बड़ा विकास कीन है....

उत्तर प्रदेश के बुंदेलों की नगरी झांसी के जीआईसी ग्राउंड में शुक्रवार को नरेंद्र मोदी को सुनने पहुंचे युवाओं के साथ ही बुजुर्गो को भी मोदी से बड़ी उम्मीदें हैं, उन्होंने कहा, "सुनत हैं कि गुजरात में बड़ा विकास कीन है। उनकै सुने खाती आइन बानी।"

भाजपा की विजय शंखनाद रैली में आए लोगों का कहना है कि उन्होंने मोदी में विकास पुरुष की छवि दिखी। झांसी के समथर इलाके से आए 50 वर्षीय किसान गंगा प्रसाद ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, "हम मोदी को सुनने आए हैं।" भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की कानपुर के बाद झांसी में आयोजित दूसरी विजय शंखनाद रैली में पहली रैली की अपेक्षा बेहतर प्रबंधन दिखा। कार्यकर्ताओं और रैली में आने वाले लोगों में उत्साह भी कई गुना रहा।

झांसी के सबसे बड़े जीआईसी ग्राउंड में आयोजित रैली में खड़े होने तक की जगह नहीं बची। नेताओं के भाषण के दौरान लगातार 'मोदी-मोदी' के नारे गूंजते रहे। इस बीच बड़ागांव क्षेत्र से आए परवेश सिंह राजपूत कहते हैं कि उनका घर पारिक्षा पावर प्लांट के पास है। यहां से बिजली उत्पादन होता है, लेकिन हमारे गांव में ही बिजली नहीं आती। सड़कें जर्जर हैं। समय से खाद बीज नहीं मिल पाता।

राजपूत ने कहा, "मोदी और भाजपा को लेकर मेरी पसंद या नपसंद की बात नहीं है। हमने सुना है कि मोदी ने बहुत अच्छा कार्य किया है। गुजरात का विकास किया है।" पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने कहा कि बुंदेलखंड की यह रैली ऐतिहासिक है। पार्टी की यह दूसरी रैली थी। उन्होंने दावा किया कि आगे की सभी रैलियों में संख्या में और भी इजाफा होता रहेगा। 

www.pardaphash.com

बेटे की लंबी उम्र के लिए रखें अहोई अष्टमी का व्रत

कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अहोई अष्टमी का व्रत किया जाता है| पुत्रवती महिलाओं के लिए यह व्रत अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह व्रत व पूजन संतान व पति के कल्याण हेतु किया जाता है| माताएं अहोई अष्टमी के व्रत में दिन भर उपवास रखती हैं और सायंकाल तारे दिखाई देने के समय अहोई माता का का पूजन किया जाता है। तारों को करवा से अर्ध्य भी दिया जाता है। इस दिन धोबी मारन लीला का भी मंचन होता है, जिसमें श्री कृष्ण द्वारा कंस के भेजे धोबी का वध करते प्रदर्शन किया जाता है। इस वर्ष अहोई अष्टमी का व्रत 26 अक्टूबर दिन शनिवार को मनाया जायेगा| कहते हैं कि जिन्हें संतान का सुख प्राप्त नहीं हो पा रहा हो उन्हें अहोई अष्टमी व्रत अवश्य करना चाहिए क्योंकि संतान प्राप्ति हेतु अहोई अष्टमी व्रत अमोघफल दायक होता है| इसके लिए, एक थाल मे सात जगह चार-चार पूरियां एवं हलवा रखना चाहिए| इसके साथ ही पीत वर्ण की पोशाक-साडी एवं रूपये आदि रखकर श्रद्धा पूर्वक अपनी सास को उपहार स्वरूप देना चाहिए| शेष सामग्री हलवा-पूरी आदि को अपने पास-पडोस में वितरित कर देना चाहिए सच्ची श्रद्धा के साथ किया गया यह व्रत शुभ फलों को प्रदान करने वाला होता है|

अहोई अष्टमी व्रत विधि-

संतान की शुभता को बनाये रखने के लिये क्योकि यह उपवास किया जाता है इसलिये इसे केवल माताएं ही करती है| इस व्रत को रखने वाली माताएं प्रात: काल उठकर स्नान आदि करके अहोई माता का चित्रांकन करें| चित्रांकन में ज्यादातर आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती है। उसी के पास सेह तथा उसके बच्चों की आकृतियां बना दी जाती हैं। उत्तर भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अहोई माता का स्वरूप वहां की स्थानीय परंपरा के अनुसार बनता है। सम्पन्न घर की महिलाएं चांदी की अहोई बनवाती हैं। जमीन पर गोबर से लीपकर कलश की स्थापना होती है। अहोईमाता की पूजा करके उन्हें दूध-चावल का भोग लगाया जाता है। तत्पश्चात एक पाटे पर जल से भरा लोटा रखकर कथा सुनी जाती है। तारे निकलने पर इस व्रत का समापन किया जाता है| तारों को करवे से अर्ध्य दिया जाता है. और तारों की आरती उतारी जाती है| इसके पश्चात संतान से जल ग्रहण कर, व्रत का समापन किया जाता है|

पूजा पाठ करके अपनी संतान की दीर्घायु व सुखमय जीवन हेतू कामना करें और माता अहोई से प्रार्थना करें, कि हे माता मैं अपनी संतान की उन्नति, शुभता और आयु वृ्द्धि के लिये व्रत कर रही हूं, इस व्रत को पूरा करने की आप मुझे शक्ति दें| यह कर कर व्रत का संकल्प लें| एक मान्यता के अनुसार इस व्रत को करने से संतान की आयु में वृ्द्धि, स्वास्थय और सुख प्राप्त होता है| साथ ही माता पार्वती की पूजा भी इसके साथ-साथ की जाती है| क्योकि माता पार्वती भी संतान की रक्षा करने वाली माता कही गई है|

अहोई अष्टमी व्रत कथा-

प्राचीन काल में किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात लड़के थे। दीपावली से पहले साहूकार की स्त्री घर की लीपा-पोती हेतु मिट्टी लेने खदान में गई और कुदाल से मिट्टी खोदने लगी। दैव योग से उसी जगह एक सेह की मांद थी। सहसा उस स्त्री के हाथ से कुदाल सेह के बच्चे को लग गई जिससे सेह का बच्चा तत्काल मर गया। अपने हाथ से हुई हत्या को लेकर साहूकार की पत्नी को बहुत दुख हुआ परन्तु अब क्या हो सकता था? वह शोकाकुल पश्चाताप करती हुई अपने घर लौट आई। कुछ दिनों बाद उसके बेटे का निधन हो गया। फिर अकस्मात दूसरा, तीसरा और इस प्रकार वर्ष भर में उसके सभी बेटे मर गए। महिला अत्यंत व्यथित रहने लगी। एक दिन उसने अपने आस-पड़ोस की महिलाओं को विलाप करते हुए बताया कि उसने जान-बूझ कर कभी कोई पाप नहीं किया। हाँ, एक बार खदान में मिट्टी खोदते हुए अंजाने में उससे एक सेह के बच्चे की हत्या अवश्य हुई है और तत्पश्चात मेरे सातों बेटों की मृत्यु हो गई।

यह सुनकर पास-पड़ोस की वृद्ध औरतों ने साहूकार की पत्नी को दिलासा देते हुए कहा कि यह बात बताकर तुमने जो पश्चाताप किया है उससे तुम्हारा आधा पाप नष्ट हो गया है। तुम उसी अष्टमी को भगवती माता की शरण लेकर सेह और सेह के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी अराधना करो और क्षमा-याचना करो। ईश्वर की कृपा से तुम्हारा पाप धुल जाएगा। साहूकार की पत्नी ने वृद्ध महिलाओं की बात मानकर कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उपवास व पूजा-याचना की। वह हर वर्ष नियमित रूप से ऐसा करने लगी। बाद में उसे सात पुत्र रत्नों की प्राप्ति हुई। तभी से अहोई व्रत की परम्परा प्रचलित हो गई।

इसके अलावा एक और काठ प्रचलित है जो इस प्रकार है, प्राचीन काल में दतिया नगर में चंद्रभान नाम का एक आदमी रहता था। उसकी बहुत सी संतानें थीं, परंतु उसकी संताने अल्प आयु में ही अकाल मृत्यु को प्राप्त होने लगती थीं। अपने बच्चों की अकाल मृत्यु से पति-पत्नी दुखी रहने लगे थे। कालान्तर तक कोई संतान न होने के कारण वह पति-पत्नी अपनी धन दौलत का त्याग करके वन की ओर चले जाते हैं और बद्रिकाश्रम के समीप बने जल के कुंड के पास पहुंचते हैं तथा वहीं अपने प्राणों का त्याग करने के लिए अन्न-जल का त्याग करके उपवास पर बैठ जाते हैं। इस तरह छह दिन बीत जाते हैं तब सातवें दिन एक आकाशवाणी होती है कि, हे साहूकार! तुम्हें यह दुख तुम्हारे पूर्व जन्म के पाप से मिल रहे है।

अतः इन पापों से मुक्ति के लिए तुम्हें अहोई अष्टमी के दिन व्रत का पालन करके अहोई माता की पूजा-अर्चना करनी चाहिए, जिससे प्रसन्न हो अहोई माता तुम्हें पुत्र प्राप्ति के साथ-साथ उसकी दीर्घ आयु का वरदान देंगी। इस प्रकार दोनों पति-पत्नी अहोई अष्टमी के दिन व्रत करते हैं और अपने पापों की क्षमा मांगते हैं। अहोई मां प्रसन्न हो उन्हें संतान की दीर्घायु का वरदान देती हैं। आज के समय में भी संस्कारशील माताओं द्वारा जब अपनी सन्तान की इष्टकामना के लिए अहोई माता का व्रत रखा जाता है और सांयकाल अहोई मता की पूजा की जाती है तो निश्चित रूप से इसका शुभफल उनको मिलता ही है और सन्तान चाहे पुत्र हो या पुत्री, उसको भी निश्कंटक जीवन का सुख मिलता है। 

www.pardaphash.com

बुंदेलों को आकर्षित करेंगे मोदी

उत्तर प्रदेश के झांसी शहर में स्थित महारानी लक्ष्मीबाई के किले की तर्ज पर तैयार मंच से शुक्रवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी लोगों को सम्बोधित करेंगे।

कानपुर की रैली में जिस तरह से मोदी ने क्षेत्रीय समस्याओं को तवज्जो दी थी, उसके बाद अब झांसी में भी बुंदेलखंड पैकेज के बहाने लोगों को आकर्षित करते नजर आएंगे। इस बीच सूत्रों की माने तो मप्र से भी भीड़ जुटाने की जोरदार तैयारी चल रही है।

मोदी की उत्तर प्रदेश में यह दूसरी रैली है। इससे पहले कानपुर की रैली में बड़ी संख्या में जुटी भीड़ से उत्साहित मोदी ने कांग्रेस की दुखती रग पर हाथ फेरा था। कानपुर में बंद पड़े उद्योग धंधों और आजादी में उनके योगदान का जिक्र कर अपने को उनके करीब खड़ा करने का प्रयास किया था। पार्टी सूत्रों का दावा है कि मोदी झांसी में भी स्थानीय समस्याओं को ही उठाएंगे।

भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा कि पार्टी के लिए विकास हमेशा से ही मुद्दा रहा है और जाहिर है कि पार्टी अपनी रैलियों में विकास को मुद्दा बनाएगी। इस बीच झांसी में शुक्रवार को आयोजित विजय शंखनाद रैली की तैयारियों में पूरी भाजपा ने धरती आसमान एक कर रखा है। इस क्षेत्र के चारों लोकसभा क्षेत्रों बांदा, झांसी, ललितपुर, हमीरपुर और जालौन से भीड़ जुटाने के साथ आस पास के क्षेत्रों से लोगों के आने की उम्मीद लगाई जा रही है।

मोदी की रैली के लिये झांसी का जीआइसी ग्राउंड जोर शोर से सजाया जा रहा है। देर रात तक सजावट का कार्य पूरा कर लिया जाएगा। मोदी के स्वागत में भाजपाइयों ने शहर के हर चौराहे पर होर्डिंग बैनर पाट दिए हैं। भाजपा नेताओं में अब भी भीड़ जुटने को लेकर चिंता दिख रही है। बताया जा रहा है कि वैसे तो मोदी की रैली के लिहाज से पार्टी के नेता जीआइसी ग्राउंड को छोटा मानकर चल रहे हैं। लेकिन बुंदेलखण्ड में कानपुर जैसी भीड़ एकत्र हो, इस पर भी आश्वस्त नहीं हो सकते। यही वजह है कि पार्टी ने इस मैदान को चुना है।

झांसी शहर मध्य प्रदेश से सटा हुआ है। मध्य प्रदेश का दतिया जिला मुख्यालय रैली स्थल से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर है। वहां से बड़ी संख्या में लोगों के आने की उम्मीद है। मप्र के शिवपुरी से भी लोग आएंगे। पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री व प्रभारी अमित शाह खुद रैली स्थल पर जमे हुए हैं। वह हर पहलू पर ध्यान दे रहे हैं।

ऐसे में यदि जीआइसी ग्राउंड छोटा पड़ गया तो पास के दो ग्राउंड पर पार्टी नेताओं व जिला प्रशासन की नजर है। उसी में चिन्हित कर किसी ग्राउंड पर लोगों को रोका जा सकता है। देर रात तक उस ग्राउंड में एलईडी लगाने की योजना है जिससे कि रैली नहीं पहुंच पाने वाले लोग भी मोदी का भाषण सुन सकें।

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ लक्ष्मीकांत बाजपेयी का दावा है कि केवल चार लोकसभा क्षेत्रों के लोग ही आ रहे हैं। उनका दावा है कि इस क्षेत्रों के प्रत्येक बूथ से कार्यकर्ता आ रहे हैं। उनका मानना है कि यह रैली बुंदेलखण्ड की ऐतिहासिक रैली साबित होगी। 

WWW.PARDAPHASH.COM

नमो की रैली में बुलाने का अनोखा तरीका

वीरों की भूमि बुंदेलखंड तथा वीरंगना रानी लक्ष्मीबाई की तपोभूमि झांसी में हो रही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की दूसरी विजय शंखनाद रैली में लोगों को बुलाने के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं ने एक अनोखा तरीका अख्तिायार किया है। यह अनूठी पहल हालांकि वर्तमान पीढ़ी के लिए नई बात हो सकती है, लेकिन आनादि काल से ही शुभ कार्य में आगंतुकों को बुलाने के लिए पीला अक्षत (चावल) भेजे जाने की भारतीय परंपरा रही है।

भाजपा के इस अनूठे निमंत्रण से मोदी की रैली में आने वालों की संख्या काफी बढ़ने की संभावना है। भाजपा समर्थकों का कहना है कि यही एक ऐसी पार्टी है जो भारतीय परंपरा को बचा सकती है, साथ ही देश को सशक्त व समृद्धि के रास्ते पर ले जा सकती है। शहर के कुछ लोगों का भी मानना है कि निमंत्रण के इस तरीके से लोगों का भाजपा से लगाव ही नहीं, आत्मीयता भी बढ़ी है। इतना ही नहीं, जो इस पार्टी का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विरोध करते हैं, वे भी भाजपा द्वारा भेजे गए पीले अक्षत को स्वीकार कर रहे हैं और रैली में आने का वादा कर रहे हैं।

झांसी के रहने वाले ज्योतिषाचार्य पं. संजय ने बताया, "हमारी भारतीय परंपरा में सनातन धर्म का प्रतीक है पीतांबर। परंपरा में तीन रंग शुभकारी हैं- रक्तांबर, पीतांबर और श्वेतांबर।" उन्होंने बताया कि ब्रह्मा रजोगुण यानी पीतांबर, विष्णु सतोगुण यानी श्वेतांबर तथा भगवान शंकर तमोगुण यानी रक्तांबर के प्रतीक हैं। उन्होंने कहा कि वैदिक परंपरा में अक्षत का महात्मय बहुत है। अच्छत का मतलब जिसका कभी क्षय (नाश) न हो। पीले रंग में रंगना अर्थात शुभकार्य का प्रगटीकरण, प्रगति का प्रतीक तथा ताकत के प्रतीक को दर्शाती है। पीले रंग अर्थात हल्दी को महौषधि भी कहा गया है। हल्दी एक ऐसी औषधि है जिसे सभी प्रकार के रोगों में इस्तेमाल किया जाता है, यह एंटीबायोटिक भी है।

इस निमंत्रण से अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा संदेश देना चाहती है कि भारतीय परंपराओं व प्राचीन विरासत की नींव पर ही भारत का विकास होगा। मोदी के मंच पर रानी लक्ष्मीबाई की तस्वीर को लगाकर पार्टी ने विपक्षियों को यह भी संदेश देने की कोशिश की है कि भारत में अब महापुरुषों व क्रांतिकारियों का अपमान नहीं होने दिया जाएगा और उनके सपनों को पार्टी सकार भी करेगी।

इस अनोखे निमंत्रण पर पार्टी के मीडिया प्रभारी मनीष शुक्ल ने कहा कि वीरंगना रानी लक्ष्मीबाई की इस धरती से विपक्षियों को मोदी की ताकत का अहसास होगा। इस अनोखी पहल का मतलब ही है कि वर्तमान देश की जर्जर अवस्था से उबारने के लिए देश को मोदी भाई जैसे एंटीबायोटिक यानी हल्दी की आवश्यकता है। 

WWW.PARDAPHASH.COM

क्रांतिकारी पत्रकार थे गणेश शंकर विद्यार्थी

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जिन पत्रकारों ने अपनी लेखनी को हथियार बनाकर आजादी की जंग लड़ी थी उनमें गणेश शंकर विद्यार्थी का नाम अग्रगण्य है। आजादी की क्रांतिकारी धारा के इस पैरोकार ने अपने धारदार लेखन से तत्कालीन ब्रिटिश सत्ता को बेनकाब किया और इस जुर्म के लिए उन्हें जेल तक जाना पड़ा। सांप्रदायिक दंगों की भेंट चढ़ने वाले वह संभवत: पहले पत्रकार थे। उनका जन्म 26 अक्टूबर, 1890 को उनके ननिहाल प्रयाग (इलाहाबाद) में हुआ था। इनके पिता का नाम जयनारायण था। पिता एक स्कूल में अध्यापक थे और उर्दू व फारसी के जानकार थे। विद्यार्थी जी की शिक्षा-दीक्षा मुंगावली (ग्वालियर) में हुई थी। पिता के समान ही इन्होंने भी उर्दू-फारसी का अध्ययन किया।

आर्थिक कठिनाइयों के कारण वह एंट्रेंस तक ही पढ़ सके, लेकिन उनका स्वतंत्र अध्ययन जारी रहा। विद्यार्थी जी ने शिक्षा ग्रहण करने के बाद नौकरी शुरू की, लेकिन अंग्रेज अधिकारियों से नहीं पटने के कारण उन्होंने नौकरी छोड़ दी। पहली नौकरी छोड़ने के बाद विद्यार्थी जी ने कानपुर में करेंसी आफिस में नौकरी की, लेकिन यहां भी अंग्रेज अधिकारियों से उनकी नहीं पटी। इस नौकरी को छोड़ने के बाद वह अध्यापक हो गए।

महावीर प्रसाद द्विवेदी उनकी योग्यता के कायल थे। उन्होंने विद्यार्थी जी को अपने पास 'सरस्वती' में बुला लिया। उनकी रुचि राजनीति की ओर पहले से ही थी। एक ही वर्ष के बाद वह 'अभ्युदय' नामक पत्र में चले गए और फिर कुछ दिनों तक वहीं पर रहे। सन 1907 से 1912 तक का उनका जीवन संकट में रहा। उन्होंने कुछ दिनों तक 'प्रभा' का भी संपादन किया था। अक्टूबर 1913 में वह 'प्रताप' (साप्ताहिक) के संपादक हुए। उन्होंने अपने पत्र में किसानों की आवाज बुलंद की।

सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं पर विद्यार्थी जी के विचार बड़े ही निर्भीक होते थे। विद्यार्थी जी ने देशी रियासतों द्वारा प्रजा पर किए गए अत्याचारों का तीव्र विरोध किया। पत्रकारिता के साथ-साथ गणेश शंकर विद्यार्थी की साहित्य में भी अभिरुचि थी। उनकी रचनाएं 'सरस्वती', 'कर्मयोगी', 'स्वराज्य', 'हितवार्ता' में छपती रहीं। 'शेखचिल्ली की कहानियां' उन्हीं की देन है। उनके संपादन में 'प्रताप' भारत की आजादी की लड़ाई का मुखपत्र साबित हुआ। सरदार भगत सिंह को 'प्रताप' से विद्यार्थी जी ने ही जोड़ा था। विद्यार्थी जी ने राम प्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा 'प्रताप' में छापी, क्रांतिकारियों के विचार व लेख 'प्रताप' में निरंतर छपते रहते थे।

महात्मा गांधी ने उन दिनों अंग्रेजों के खिलाफ अहिंसात्मक आंदोलन की शुरुआत की थी, जिससे विद्यार्थी जी सहमत नहीं थे, क्योंकि वह स्वभाव से उग्रवादी विचारों के समर्थक थे। विद्यार्थी जी के 'प्रताप' में लिखे अग्रलेखों के कारण अंग्रेजों ने उन्हें जेल भेजा, जुर्माना लगाया और 22 अगस्त 1918 में 'प्रताप' में प्रकाशित नानक सिंह की 'सौदा ए वतन' नामक कविता से नाराज अंग्रेजों ने विद्यार्थी जी पर राजद्रोह का आरोप लगाया व 'प्रताप' का प्रकाशन बंद करवा दिया।

आर्थिक संकट से जूझते विद्यार्थी जी ने किसी तरह व्यवस्था जुटाई तो 8 जुलाई 1918 को फिर इसकी की शुरुआत हो गई। 'प्रताप' के इस अंक में विद्यार्थी जी ने सरकार की दमनपूर्ण नीति की ऐसी जोरदार खिलाफत कर दी कि आम जनता 'प्रताप' को आर्थिक सहयोग देने के लिए मुक्त हस्त से दान करने लगी। जनता के सहयोग से आर्थिक संकट हल हो जाने पर साप्ताहिक 'प्रताप' का प्रकाशन 23 नवंबर 1990 से दैनिक समाचार पत्र के रूप में किया जाने लगा। लगातार अंग्रेजों के विरोध में लिखने से इसकी पहचान सरकार विरोधी बन गई और तत्कालीन दंडाधिकारी मि. स्ट्राइफ ने अपने हुक्मनामे में 'प्रताप' को 'बदनाम पत्र' की संज्ञा देकर जमानत की राशि जप्त कर ली। कानपुर के हिंदू-मुस्लिम दंगे में निस्सहायों को बचाते हुए 25 मार्च 1931 को विद्यार्थी जी भी शहीद हो गए। उनका पार्थिव शरीर अस्पताल में पड़े शवों के बीच मिला था। 

WWW.PARDAPHASH.COM

गीतों को नया आयाम देने वाले गायक थे मन्ना डे

महान पाश्र्व गायक मन्ना डे की शास्त्रीय संगीत में रुचि और पसंद उनके फिल्मी करियर के लिए अभिशाप भी साबित हो सकती थी, लेकिन दादा साहेब फाल्के अवार्ड से सम्मानित डे को उनकी बहुमुखी और प्रेम गीतों की मर्दानी शैली की गायिकी के लिए जाना जाएगा। 

डे ने अपने लचीले और बहुआयामी गायन का परिचय 'आजा सनम मधुर चांदनी में हम', 'चुनरी संभाल गोरी उड़ी चली जाए रे', 'जिंदगी कैसी है पहेली हाय' और 'चलत मुसाफिर मोह लियो रे' जैसे मशहूर और लोकप्रिय गानों में दिया।

उनकी बहुमुखी प्रतिभा को दुनिया के सामने लाने का श्रेय संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन को भी जाता है, जिन्होंने उनसे अलग-अलग शैली के गाने गवाए।

शुरुआत में शास्त्रीय गायक के रूप में पहचाने जाने वाले डे को अपने समकालीन गायकों, पाश्र्व गायकों जितनी शोहरत और पहचान नहीं मिली, इसके बावजूद उन्होंने अपने पूरे करियर में 3,500 से ज्यादा गाने गाए। कला और संस्कृति के क्षेत्र में उन्हें कई सारे सम्मानों से भी नवाजा गया।

डे ने अपनी जीवनी 'जीबोनेर जोलशाघोरे' अंग्रेजी में 'मेमोरीज कम्स अलाईव' में संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन का आभार जताते हुए लिखा है, "उन्हें विश्वास था कि रोमांटिक गीतों में मेरी मर्दाना आवाज श्रोताओं का ध्यान खींचने और उनका दिल जीतने में कामयाब होगी।" 

उन्होंने लिखा है, "मैं खास तौर से शंकरजी का आभारी हूं। उनकी सरपरस्ती न मिलती, तो शायद मैं कामयाबी की उस ऊंचाई को नहीं छू पाता। वही एक व्यक्ति थे, जिन्हें पता था कि कैसे मेरे अंदर से बेहतर गायक को बाहर लाना है।"

मन्ना डे शंकर-जयकिशन के आभारी होने के साथ अभिनेता राज कपूर के भी शुक्रगुजार हैं, जिन्हें महसूस हुआ कि उनकी गायकी और आवाज में सचमुच दम है।

डे ने एक बार एक साक्षात्कार में कहा था, "मैं राज कपूर को फिल्म क्षेत्र का एक आइकन मानता था। वही हैं, जिन्होंने मुझे 'प्यार हुआ, इकरार हुआ' और 'ये रात भीगी भीगी' जैसे गीत गाने का अवसर दिया।"

उन्होंने कहा, "लोगों को लगता था कि मन्ना डे और रोमांटिक गाने, असंभव है। लेकिन मैंने यह भी साबित कर के दिखाया।"

शंकर-जयकिशन, मन्ना डे और राज कपूर की टीम ने कई सारे मशहूर और लोकप्रिय गीत दिए हैं। इनमें 'तेरे बिना आग ये चांदनी', 'मुड़ मुड़ के न देख' 'ऐ भाई जरा देख के चलो' और 'यशोमती मईया से बोले नंदलाला' कुछ प्रमुख गीत हैं।

www.pardaphash.com

'अनुशासन के कड़े पर नर्म दिल थे मन्ना डे'

महान पाश्र्व गायक मन्ना डे के करीबी लोगों को कहना है कि वह ज्ञान को तलाशने वाले, साहसिक व्यक्तित्व वाले और बेहद सख्त अनुशासन वाले व्यक्ति थे। मन्ना डे का गुरुवार तड़के बेंगलुरू के एक अस्पताल में निधन हो गया। 94 साल के डे लंबे समय से बीमार थे। वाइलिन वादक दुर्बादल चटर्जी मन्ना डे के साथ बिताए अपने चार दशकों को याद करते हुए कहते हैं, "वह अपनी जड़ों को नहीं भूले थे। बाहर से सख्त होने के बावजूद वह अंदर से उतने ही नर्म दिल इंसान थे। मछली पकड़ना उनका प्रिय शौक था।"

चटर्जी ने बताया, "उनके बारे में कई लोगों को गलतफहमी थी कि वह बेहद सख्त और रूखे व्यवहार वाले हैं। असल में तो वह अंदर से बेहद नर्म दिल इंसान थे। यदि वह किसी को पसंद करते तो उसके कायल हो जाते और यदि नापसंद करते तो सख्त रहते। वह अजनबियों से घुलते-मिलते नहीं थे।" चटर्जी, मन्ना डे के बारे में एक मशहूर किस्सा बताते हैं, "एक बार हम उनके पुराने घर में बैठे थे। वह हारमोनियम लेकर गा रहे थे और मैं उनके सुरों को लिखता जा रहा था। अचानक एक लड़की दरवाजा खोलकर अंदर आई। मन्ना डे ने बिल्कुल रूखाई और सख्ती से कहा कि वह व्यस्त हैं और उसे वहां से जाने को कहा। लेकिन वह लड़की थोड़ी देर बाद फिर वहीं नजर आई।"

उन्होंने आगे बताया, "इस बार लड़की ने आग्रह से पूछा कि क्या मन्ना डे का घर यही है। मन्ना डे ने दो टूक शब्दों में पूछा कि वह क्यों आई है, वह उनकी बहुत बड़ी प्रशंसक थी और एक बार उनके चरण स्पर्श करना चाहती थी। यह सुनकर डे नर्म पड़ गए और उस लड़की को अंदर आने दिया। वह बेहद शालीन थे।" मन्ना डे ने अपने संगीत करियर में हिंदी, बांग्ला, गुजराती, मराठी, मलयालम, कन्नड़, असमी फिल्मों में पाश्र्व गायक के रूप में अपनी आवाज दी। उन्हें भारतीय क्षेत्रीय संगीत से बेहद प्रेम था, लेकिन पारंपरिक संगीत, सुर और राग के साथ आधुनिकता का मिश्रण भी उन्हें स्वीकार्य था।

चटर्जी ने कहा, "वह कोई भी नया सुर, नया राग, नई बोली बहुत जल्दी सीखते थे, ऐसा नहीं होता तो कई सारी भाषाओं में उनके गीत नहीं होते।" मोहम्मद रफी, किशोर कुमार, मुकेश और हेमंत मुखोपाद्ययाय जैसे गायकों के समकालीन मन्ना डे ने हमेशा अपनी गायकी के स्तर को बनाए रखा। चटर्जी बताते हैं कि मन्ना सिर्फ काम और संगीत के क्षेत्र में ही अनुशासनप्रिय नहीं थे बल्कि निजी जिंदगी में भी वह काम और समय के बेहद पाबंद थे। वह रोज सुबह पांच बजे उठते थे, नित्यकर्म से निबटकर व्यायाम के लिए जाते थे, वापस आकर सुबह की चाय बनाते थे और फिर अपनी पत्नी को जगाते थे।
www.pardaphash.com

यूकेलिप्टस की पत्तियां बताती हैं जमीन में दबे सोने का राज

भारत में जहां एक संत के सपने के आधार पर जमीन में दबे सोने के खजाने की तलाश की जा रही है, वहीं आस्ट्रेलिया में कुछ पेड़ों की पत्तियां जमीन में दबे खजाने की पता बताती हैं। इन वृक्षों ने सदियों पुरानी उस कहावत को भी झुठला दिया है, जिसमें कहा गया है कि रुपया पेड़ों पर नहीं उगता। आस्ट्रेलिया के पश्चिमी हिस्से में कालगूर्ली क्षेत्र में युकेलिप्टस के कुछ ऐसे वृक्ष मिले हैं जिनकी पत्तियों में अत्यंत बारीक सोने के कण पाए गए।

आस्ट्रेलिया के एक समाचार पत्र 'द वेस्ट आस्ट्रेलियन' में बुधवार को प्रकाशित रपट के अनुसार, पश्चिमी आस्ट्रेलिया के कालगूर्ली क्षेत्र में यूकेलिप्टस की पत्तियां जमीन के भीतर दबे सोने का पता बताती हैं। समाचार पत्र के अनुसार इस क्षेत्र में जमीन के नीचे दबे सोने के कणों को ये वृक्ष अपनी जड़ों के जरिए पत्तियों एवं अन्य हिस्सों तक पहुंचा देते हैं।

इस प्रकार इस क्षेत्र में यदि किसी वृक्ष की पत्तियों में सोने के कण दिखाई देते हैं, तो समझ लिया जाता है कि वहां जमीन के नीचे सोने की खान होगी। सीएसआईआरओ के वैज्ञानिकों ने इसका पता लगाया और इससे संबंधित शोध पत्र विज्ञान शोध पत्रिका 'नेचर कम्यूनिकेशंस' के ताजा अंक में प्रकाशित हुआ है। शोध पत्र में मुख्य शोधकर्ता एवं भूरसायनविद मेल लिंटर ने कहा है, "सुनहरी पत्तियों से जमीन के नीचे सोने के अमूल्य खजाने का पता लग सकता है।"

लिंटन ने आगे कहा है, "इनमें से कुछ वृक्षों की जड़ें जमीन में बहुत गहराई तक गई हुई हैं, तथा हमारे लिए जमीन के भीतर दबे खजाने के लिए खिड़की की तरह काम करती हैं।" समाचार पत्र के अनुसार, इस शोध के बाद पारंपरिक तरीके से ड्रीलिंग द्वारा जमीन के अंदर सोने का पता लगाने की बजाय पत्तियों के परीक्षण द्वारा यह कार्य काफी किफायती हो जाएगा। इस तकनीक से सोने के अलावा जमीन में दबे अन्य धातुओं का भी पता लगाया जा सकता है।
www.pardaphash.com

उप्र में पिछड़ों को लुभाने की सियासत हुई तेज

वर्ष 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव का समय जैसे जैसे नजदीक आ रहा है वैसे वैसे विभिन्न राजनीतिक दलों ने सियासी दांव चलना शुरू कर दिया है। सूबे की सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी (सपा) की सरकार ने जहां पिछड़ों को हक दिलाने के नाम पर रथयात्राएं निकालने का निर्णय लिया है वहीं विपक्षी दलों ने सपा पर पिछड़ों को गुमराह करने का आरोप लगाया है।

भाजपा ने सपा की मंशा पर सवाल खड़ा करते हुए कहा है कि सपा यह बताए कि जिन 17 जातियों के नाम पर वह अधिकार यात्रा और सामाजिक न्याय यात्रा निकालने जा रही है, उनके लिए क्या कदम उठाए हैं। भाजपा के प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा, "आरक्षण के संदर्भ में उच्च न्यायालय ने आरक्षण की व्यवस्था को लेकर अपनी राय रखी और सरकार से अपेक्षा थी कि सरकार उन परिस्थितियों पर विचार करे जिनमें आरक्षण से वंचित रह गए लोगों को पहले आरक्षण का लाभ मिले इसकी व्यवस्था की जाए।"

पाठक ने कहा कि राजनाथ सिंह के कार्यकाल के दौरान समाज में आरक्षण पाने से वंचित पिछड़े तबके के लोगों को आरक्षण का समुचित लाभ मिल पाए, इसके लिए समाजिक न्याय समिति का गठन किया गया। समाजिक न्याय समिति की संस्तुतियों के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था से आरक्षण की मूल अवधारणा को बल मिलता और सामाजिक रूप से पिछड़ी जातियों का जीवन स्तर उठाने में सहायता मिलती।

उन्होंने कहा, "राजनीतिक स्वार्थो के नाते सामाजिक न्याय समिति की संस्तुतियों को लागू करने से बचती सरकारों ने आरक्षण के नाम पर राजनीति तो खूब की, पर जब हिस्सेदारी देने की बात आती है तो कहीं न कहीं आश्चर्यजनक चुप्पी छा जाती है।"

बकौल पाठक जिन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की वकालत करते हुए समाजवादी पार्टी यात्राएं और रैलियों का आयोजन करने जा रही है। अखिलेश सरकार यह क्यों नहीं बताती कि अपने स्तर से इन जातियों का जीवन स्तर उठाने के लिए क्या प्रयास किए हैं?

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के प्रदेश अध्यक्ष रामअचल राजभर ने कहा कि सपा सीधतौर पर इन 17 जातियों को गुमराह करने का काम कर रही है। सपा यह अच्छी तरह से जानती है कि यह उसके वश की बात नहीं है। पिछड़ी जातियों को गुमराह करने के लिए यात्राओं के नाम पर सपा नौटंकी करने जा रही है।

उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव से पहले पिछड़ों को जोड़ने की मुहिम के तहत ही सपा मुख्यालय से 24 अक्टूबर को 17 पिछड़ी जातियों को उनका अधिकार दिलाने के लिए अधिकार यात्रा और सामाजिक न्याय यात्रा का आगाज किया जाएगा। दोनों यात्राएं 29 अक्टूबर को आजमगढ़ में होने वाली रैली स्थल पर जाकर समाप्त होंगी।

यात्राओं के बारे में सपा के पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के अध्यक्ष नरेश उत्तम ने बताया कि सूबे में पिछड़ी जातियों की आबादी 60 फीसदी है, लेकिन उन्हें 27 फीसदी आरक्षण तक ही सीमित कर दिया गया है। अधिकांश पिछड़ी आबादी आर्थिक-सामाजिक दृष्टि से बहुत कमजोर हैं। पिछड़ों को जागृत करने के लिए ही सामाजिक न्याय यात्रा और 17 पिछड़ी जातियों की अधिकार यात्रा निकाली जा रही है।

इधर, राष्ट्रीय लोकदल के प्रदेश अध्यक्ष मुन्ना सिंह चौहान ने इसे सपा सरकार का लॉलीपाप करार दिया। चौहान ने कहा, सपा 17 पिछड़ी जातियों को को उसी तरह का लालीपॉप दे रही है, जिस तरह उसने विधानसभा चुनाव से पहले मुसलमानों को दिया था। चौहान ने कहा कि यह सपा भी जानती है कि वह चाहकर भी ऐसा नहीं कर सकती है। विधानसभा चुनाव से पहले उसने मुसलमानों से वादा किया था कि सरकार बनी तो 18 फीसदी आरक्षण दिया जाएगा, नतीजा सबके सामने है। वे पिछड़ों को बेवकूफ बनाना चाहते हैं।
www.pardaphash.com