'तुनक मिजाजों' की खातिर कब तक शर्मिदा होते रहेंगे अखिलेश!

वर्ष 2014 में होने वाले आम चुनाव से पहले मुस्लिम मतों को अपने पाले में करने की कवायद में जुटे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के सामने नित नई चुनौतियां सामने आ रही हैं। उनके लिए कभी आजम खां परेशानी का सबब बन जाते हैं तो कभी दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री तौकीर रजा ही सरकार की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर देते हैं। इस बीच बड़ा सवाल यह है कि तुनक मिजाजी के लिए मशहूर इन मंत्रियों को मनाने के लिए अखिलेश आखिर कब तक शर्मिदगी झेलते रहेंगे?

मुजफ्फरनगर में हुई हिंसा के बाद से ही पश्चिमी उप्र में सपा के खिलाफ माहौल बना हुआ है। अपने खिलाफ बने इस माहौल को दबाने और मुस्लिम समुदाय की नाराजगी दूर करने के लिए ही अखिलेश यादव ने उस क्षेत्र विशेष से जुड़े लोगों को लालबत्तियों से नवाजा। मुजफ्फरनगर हिंसा में प्रभावित होने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के लिए उन्होंने सूबे का खजाना ही खोल दिया और 90 करोड़ रुपये के मुआवजे की घोषणा कर दी। यह बात अलग है कि अदालत की फटकार के बाद सरकार को अन्य समुदायों को भी इस योजना में शामिल करना पड़ा। बावजूद इसके मुस्लिम समुदाय लगातार उन पर मुसलमानों की बेहतरी के लिए काम न करने का आरोप लगा रहा है।

सरकार ने अल्पसंख्यकों को लुभाने के लिए ही 'हमारी बेटी, उसका कल' जैसी महात्वाकांक्षी योजना चलाई लेकिन बाद में इसकी राशि भी 30 हजार से घटाकर 20 हजार रुपये करनी पड़ी। दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री तौकीर रजा के इस्तीफे और मुख्यमंत्री अखिलेश को लिखे पत्र से एक बार फिर सपा की बेचैनी बढ़ गई है। तौकीर ने पत्र लिखकर सीधे तौर पर अखिलेश सरकार पर यह आरोप लगाया है कि वह मुसलमानों की बेहतरी के लिए काम नहीं कर पा रही है।

तौकीर रजा से पहले सूबे के एक अन्य कद्दावर मंत्री आजम खान ने भी सूबे के वित्त विभाग पर काफी गंभीर आरोप लगाते हुए मुख्य सचिव को एक पत्र लिखा था। पत्र में तब आजम खां ने गाजियाबाद हज हाउस के निर्माण को लेकर वित्त विभाग पर कई तरह के आरोप लगाए थे। सरकार की कार्यशैली को लेकर अल्पसंख्यक समुदाय के इन मंत्रियों की नाराजगी कई मौकों पर सामने आती रही हैं और सपा के नेता हर समय जलालत झेलने को तैयार रहते हैं। तौकीर के इस्तीफे से मचे तूफान के बीच अब उन्हें मनाने का भी दौर चल रहा है। इससे पूर्व भी उप्र विधानसभा चुनाव के समय इमाम बुखारी के दबाव के आगे सपा मुखिया मुलायम सिंह को झुकना पड़ा था। बुखारी ने भी सौदेबाजी के तहत सपा के सामने अपनी कई मांगें रखी थीं।

एक वरिष्ठ पत्रकार भी मानते हैं कि लोकसभा चुनाव की आहट को देखते हुए अल्पसंख्यक नेता अखिलेश को सीधेतौर पर 'ब्लैकमेल' कर रहे हैं। पंकज ने कहा, "अल्पसंख्यक नेताओं को यह बखूबी पता है कि मुजफ्फरनगर हिंसा के बाद सपा पश्चिमी उप्र में इस समय कठिन दौर से गुजर रही है। सपा की इसी कमजोर नब्ज को अल्संख्यक नेता पकड़े हुए हैं और इसी का असर है कि कभी इमाम बुखारी तो कभी तौकीर रजा जैसे लोग अखिलेश को ब्लैकमेल कर रहे हैं और उन्हें बार-बार मनाने के लिए सपा को मजबूर होना पड़ रहा है।"

सरकार की कार्यशैली को लेकर मुस्लिम समुदाय में नाराजगी और तौकीर रजा के इस्तीफे के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में सूबे के एक अन्य दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री आबिद खान ने इस मसले पर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। आबिद ने कहा, "इस मामले की पूरी जानकारी हमें नहीं है। तौकीर रजा ने किन बातों का जिक्र किया है और किस बात को लेकर उन्होंने यह कदम उठाया है, इसकी जानकारी करने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है।"

जाहिर है कि आबिद खान को तौकीर रजा के इस्तीफे की जानकारी तो थी लेकिन इस गंभीर मुद्दे पर उन्होंने कुछ न बोलने में ही भलाई समझी। इस बीच अल्पसंख्यक समुदाय की इस नाराजगी पर विरोधी भी चुटकी लेने से नहीं चूक रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की उप्र इकाई के प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा, "तुष्टीकरण की पराकाष्ठा पर पहुंचने वाली सपा सरकार को एक वर्ग विशेष के लिए इतना करने के बावजूद शर्मिदा होना पड़ रहा है। अल्पसंख्यक समुदाय के लिए योजनाओं का पिटारा खोलने वाली यह सरकार अन्य वर्गो के साथ ही अब इस समुदाय विशेष का भी भरोसा खो रही है।" 

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