इस तरह मुस्तफा ने बेटे को बुरे दोस्तों से बचाया

दमिश्क शहर में मुस्तफा नाम का एक धनवान रहता था। उसके सैयद नाम का एक लड़का था। मुस्तफा बेटे सैयद को व्यापार-व्यवसाय में कुशल बनाने का प्रयत्न करता रहता था। लेकिन सैयद की दोस्ती एक बुरे आदमी के साथ हो गई थी और उस आदमी के कहे अनुसार ही वह चलता था। मुस्तफा को इससे दुख होता था। उसे इस बात की चिंता सताने लगी कि यदि यही हाल रहा, तो उसके गुजर जाने पर सैयद अपने दोस्त की सोहबत में पड़कर सारा पैसा बर्बाद कर देगा। 

एक दिन मुस्तफा ने एक तरकीब सोची। उसने सैयद को बुलाया और कहा, "बेटा सैयद, हम दोनों को कुछ दिनों के लिए तिजारत के काम से बगदाद जाना होगा। इन दिनों दमिश्क में चोरों का त्रास बहुत ही बढ़ गया है। इसलिए हमें सोचना यह है कि हम अपने कीमती जेवरों की पेटी किसे सौंपकर जाएं?"

सैयद बोला, "मेरे दोस्त के जैसा ईमानदार आदमी दमिश्क में दूसरा कोई नहीं है। इसलिए अगर आप यह पेटी इन्हें सौंप देंगे तो कोई हर्ज न होगा। पेटी बंद रहेगी, इसलिए फिकर की वैसे भी कोई वजह नहीं है।"

मुस्तफा ने कहा, "सैयद, मुझे भी तुझ पर भरोसा है। ले यह पेटी, तू अपने दोस्त को सौंप आ।" सैयद वैसा ही किया। फिर बाप-बेटे बगदाद के लिए रवाना हुए। वहां कुछ दिन रहकर और व्यापार-संबंधी जरूरी काम निपटाकर वे घर वापस आ गए।

घर आने पर मुस्तफा ने कहा, "बेटा, तू जा और अपनी वह पेटी अपने दोस्त के घर से ले आ।" लेकिन कुछ ही देर बाद सैयद लाल-पीला होता हुआ आया और गुस्से-भरी आवाज में मुस्तफा से कहने लगा, "बाबाजान, आपने मेरे दोस्त की बड़ी तौहीन की है। उसने मुझसे कहा कि आपने उस पेटी में कीमती जेवरों के बदले पत्थर भर रखे थे। इस तरह उसकी तौहीन करके आपने मेरी ही तौहीन की है।"

मुस्तफा ने धीरज के साथ कहा, "लेकिन बेटा, तेरे दोस्त को पता कैसे चला कि पेटी में पत्थर भरे थे? तू तो जानता ही है कि पेटी में तीन-तीन ताले लगे थे। इसका मतलब तो यही हुआ कि तेरे दोस्त ने किसी तरकीब से उन तालों को खोलकर पेटी के अंदर का सामान देखा और फिर ताले ज्यों-के-त्यों बंद कर दिए। अच्छा हुआ कि मैंने पेटी में कीमती जेवर रखने के बदले पत्थर रख दिए थे, नहीं तो तेरा वह दोस्त पता नहीं, क्या-क्या कर डालता! बोल, जो मैंने किया, सो ठीक ही किया न?"

बेचारा सैयद क्या बोलता! वह नीचा सिर करके कहने लगा, "बाबाजान, मुझसे बड़ी भूल हुई। आज तक मैं ऐसे दोस्तों पर यकीन रखकर चलता था। अब मैं कभी इन लोगों को अपना दोस्त नहीं बनाऊंगा।"

पर्दाफाश 

यूपी में गश्त होगी लगातार, विदेशी महिलाएं रहेंगी महफूज

उत्तर प्रदेश में विदेशी महिला पर्यटक अब पूरी तरह सुरक्षित रहेंगी। पुलिस महकमे ने उनकी हिफाजत के लिए कमर कस ली है। प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ने इस दिशा में कारगर कदम उठाने के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश दिए हैं। विदेशी महिला पर्यटकों के साथ छेड़खानी, दुराचार व यौन हिंसा जैसी घटनाओं पर नियंत्रण के लिए पुलिस को और चौकस रहने को कहा गया है। प्रदेश के कुछ पर्यटन स्थल हैं जहां विदेशी पर्यटक ज्यादा आते हैं। वहां आने वाली विदेशी महिला पर्यटकों के संग कोई अप्रिय घटना न हो, इसे ध्यान में रखते हुए पुलिस महानिदेशक ने आवश्यक दिशा-निर्देश दिए हैं। इन निर्देश की जानकारी प्रदेश के पुलिस अधीक्षकों को दे दी गई है। 

निर्देश में कहा गया है कि विदेशी पर्यटकों की आमद वाले प्रमुख स्मारकों व दर्शनीय स्थलों, रेस्तरां, मॉल, रेलवे स्टेशन पर लगातार गश्त कराई जाए। इसके अलावा समय-समय पर आकस्मिक जांच भी कराई जाए। कहा गया है कि दर्शनीय स्थलों पर वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक व पुलिस अधीक्षक से लेकर थानाध्यक्ष स्तर तक के पुलिस अधिकारियों के मोबाइल नंबर अंकित कराए जाएं ताकि यदि उनके साथ कोई अप्रिय घटना होती है तो वे इसकी जानकारी तत्काल दे सकें। 

सुरक्षा के उपायों से संबंधित पम्फलेट को अंग्रेजी में छपवा कर लगाया जाए और वहां रखा भी जाए ताकि पर्यटकों को पम्पलेट दिया भी जा सके। आईजी ने कहा कि पर्यटक स्थलों पर नियुक्त गाइड, फोटोग्राफर, होटलकर्मियों, टैक्सी चालकों, नाव वालों तथा पर्यटन व्यवसाय से जुड़े अन्य व्यक्तियों का समय-समय पर भौतिक सत्यापन भी कराने के निर्देश दिए गए हैं।

प्रमुख धार्मिक स्थलों, ऐतिहासिक धरोहरों, घाटों, दर्शनीय स्थलों पर सीसीटीवी लगाने को कहा गया है। साथ ही सख्त हिदायत दी गई है कि यदि कोई विदेशी पर्यटक कोई समस्या लेकर पहुंचता है तो उसे सुनने के साथ त्वरित कार्रवाई की जाए। डीजीपी ने निर्देश में कहा है कि तमाम सुरक्षा के बावजूद यदि विदेशी महिला पर्यटकों के साथ छेड़छाड़ एवं दुष्कर्म जैसी किसी भी घटना का तत्काल संज्ञान लेकर न केवल अभियोग पंजीकृत किया जाए, बल्कि घटना में संलिप्त अभियुक्तों के विरुद्ध तत्काल कार्रवाई करते हुए उन्हें निरुद्ध भी किया जाए।

पर्दाफाश 

जंगल में उगने लगी वनवासियों की 'रोजी-रोटी'

उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड में बीहड़ वाले इलाके के दर्जनभर गांवों में बसे वनवासियों की 'रोजी-रोटी' कही जाने वाली जंगली सब्जियों में अंकुर फूट आए हैं। बरसात के दो महीने इन सब्जियों के भरोसे ही वनवासी अपने परिवार को जिंदा रखते हैं। 

इन सब्जियों को गांव-देहात और आस-पास के कस्बों में बेच कर वे आटा-चावल का जुगाड़ कर पेट की आग बुझाते हैं। एक दशक से बुंदेलखंड के जंगली गांवों में बसे वनवासी मुफलिसी और त्रासदी का जीवन गुजार रहे हैं, तमाम सरकारी योजनाएं भी इस वर्ग को तंगहाली से उबार नहीं सकी हैं। 

पहले वनवासी वन संपदा पर अपना हक और अधिकार समझकर खैर, गोंद, शहद, आंवला, आचार, तेंदूफल व सीताफल का संग्रह कर उसे शहर व कस्बों में बेच कर अपने परिवार की भूख मिटाते थे, लेकिन अब इधर वन विभाग वन संपदा पर अपना हक जता कर इन उत्पादों की नीलामी करने लगा है। अब तो वनवासी जंगल में घुस भी नहीं सकते, बड़ी मुश्किल और वनकर्मियों की मेहरबानी के बूते ही उन्हें महज सूखी लकड़ी बीनने की इजाजत मिलती है।

जंगली गांवों के वाशिंदों के लिए केन्द्र सरकार की महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना (मनरेगा) भी बेअसर साबित हुई है। बरसात के दो महीने वनवासी जंगली सब्जी बेचकर गुजर-बसर करते हैं। 

बांदा जिले के फतेहगंज के जंगली इलाके के गांवों में बसे वनवासियों की 'रोजी-रोटी' कही जाने वाली सब्जियों वन करैला, वन भिंडी व पड़ोरा के बीजों में अंकुर फूट आए हैं। अब जहां कृषि भूमि के काश्तकार अपने खेतों में खरीफ की फसल की बुआई की तैयारी में जुटे हैं, वहीं वनवासी इन जंगली सब्जियों को जानवरों के उजाड़ से बचाने के लिए 'बिरवाही' (झाड़-झांखड़ की बाड़) बनाने में मशगूल हैं। 

इस इलाके के गांवों गोबरी, गोड़रामपुर, बिलरियामठ, बघोलन, मवासी डेरा, डढ़वामानपुर, गोड़ी बाबा के पुरवा में करीब डेढ़ सौ वनवासी परिवार आबाद हैं जिनमें खैरगर, मवासी व मवइया कौम के लोग हैं। 

मवासी डेरा के रहने वाले मइयादीन मवासी ने बताया, "यहां ज्यादातर वनवासी भूमिहीन हैं, जिनके पास खेती करने की कोई भूमि नहीं है। रोजगार के साधन न होने के कारण वनवासी परदेस में जाकर मेहनत-मजदूरी करते हैं।" उसने बताया, "परदेस गए वनवासी बरसात की शुरुआत में वापस आ गए हैं और जंगली सब्जी के उगे पौधों की रखवाली का इंतजाम करने में जुट गए हैं।" 

गोड़ी बाबा के पुरवा के रहने वाले वनवासी युवक गुलाब ने बताया कि "यहां मनरेगा के तहत भी कोई रोजगार मुहैया नहीं हो पाता, इसलिए वनवासी जंगली सब्जी बेच दो माह तक आटा-चावल का जुगाड़ कर अपने परिवार की भूख मिटाते हैं।"

गाड़ियों की नंबर प्लेट पर भी फैशन की बहार

चौराहे पर ट्रैफिक सिग्नल की लालबत्ती जलते ही सारी गाड़ियां रुक जाती हैं, मगर एक गाड़ी ट्रैफिक पुलिस वाले के इशारे पर भी नहीं रुकती। इतना ही नहीं, ट्रैफिक पुलिस वाला गाड़ी के खिलाफ कोई चालान भी नहीं काटता है। इसकी वजह सिर्फ इतनी है कि उस गाड़ी में किसी पार्टी का झंडा लगा होता है। यह कोई चौंकाने वाली बात नहीं, यह बात आम हो चली है। 

आज सड़क पर चलने वाली गाड़ियों में ज्यादातर गाड़ियां ऐसी ही हैं, जो किसी न किसी पद का बैनर अपनी गाड़ियों में लगाए हुए हैं। चाहे बात पुलिस की हो या सेना, नेता, सभासद, सचिवालय एवं प्रेस की। नंबर प्लेट पर लिखे पद को देख पुलिस वाले भी ऊंचे रसूख रखने वालों पर कार्रवाई की जहमत नहीं उठाते और कानून का उल्लघंन करने वालों को नहीं रोकते। 

ऐसी ही कुछ गाड़ियां, जिन पर 'उत्तर प्रदेश सचिवालय' लिखा था, के चालक से पूछा गया तो उसने बताया कि इससे पुलिस वाले गाड़ियों को कम रोकते हैं। डॉक्टर गाड़ियों में 'प्लस' चिह्न् लगाना उचित मानते हैं। गाड़ियों की नंबर प्लेट पर प्रेस, एडवोकेट लिखवाने का फैशन काफी पहले से चला आ रहा है। 

लोगों का मानना है कि ऐसा करने से 'नो पार्किंग' में भी बेझिझक गाड़ियां खड़ी की जा सकती हैं। खास बात यह कि नंबर प्लेट में फैशन और रुतबे की झलक अब लगातार बढ़ती जा रही है। अपनी हर गाड़ी पर 'जाट' लिखाने वाले लोकश कहते हैं कि इससे कुछ अलग तरह ही 'फीलिंग' आती है और सड़क पर चलते वक्त लोग आकर्षित भी होते हैं। 

गौर करने वाली बात यह है कि जिन गाड़ियों में पदनाम, पार्टी का झंडा लगा हुआ है, वे वास्तविक ही हों यह जरूरी नहीं है। कई बार ऐसे झूठे मामले भी सामने आए हैं। इसके अलावा एक फैशन और तेजी पकड़े हुए है। नंबर प्लेट पर नंबर के अलावा फोटो लगाना, परिवार के किसी सदस्य का नाम लिखना, इलेक्ट्रॉनिक लाइट लगाना, स्लोगन लिखना (साईं बाबा जी, मॉम गिफ्ट, नीड सेज नो वेज, डैड गिफ्ट) जैसे कई स्लोगन आसानी से गाड़ियों में देखे जा सकते हैं। 

लड़कों की अपेक्षा हालांकि लड़कियों की गाड़ियों में इस तरह के स्लोगन, नाम या तस्वीर कम मिलती हैं, लेकिन प्रतीक चिह्न् आसानी से देखे जा सकते हैं। गाड़ियों की नंबर प्लेट पर अन्य चीजों को सम्मिलित करने में नंबर का आकार निर्धारित मानक से भी छोटा होता जा रहा है, साथ ही नंबर को इतने तिरछे तरीके से लिखा जाता है कि जल्दी पढ़ा भी न जा सके। ऐसा करने के पीछे तर्क है कि इससे गाड़ी वाले का रुतबा बढ़ता है। 

कुछ लोग यह भी मानते हैं कि नवयुवकों में इस तरह कि सोच ज्यादा पाई जाती है। यही वजह है कि कुछ नंबर प्लेट पर 'बैचलर' लिखा भी दिखाई पड़ता है। जहां तक टैक्सी, ट्रकों, बसों एवं टेम्पो की बात है, उसमें ज्यादातर स्लोगन का प्रयोग किया जाता है। जैसे (मेरा भारत महान, हम दो हमारे दो, बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला, जियो और जीने दो, हम सब एक हैं) इनमें से कुछ ऐसे भी हैं जिनके लिखे जाने का तुक समझना बहुत मुश्किल है। ऐसे में 'प्रेस' वाले स्टीकर का दुरुपयोग सबसे ज्यादा पाया जा रहा है। 

प्रेस, जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है, उसका गलत प्रयोग भी किया जा रहा है। गाड़ियों में झूठे तौर पर 'प्रेस' लिखवाना और लोगों के बीच में रौब जमाना एक आम बात होती जा रही है। कई बार यातायात पुलिस द्वारा ऐसे लोगों को पकड़ा भी गया है। अफसोस की बात यह है कि अब भी कई लोग बेवजह गाड़ियों में 'प्रेस' लिखवाए घूम रहे हैं। यह कहना गलत न होगा कि यह फैशन अपराध को बढ़ावा दे रहा है। 

लखनऊ में इन दिनों गाड़ियों पर चढ़ी काली फिल्म उतारने का भी अभियान चलाया जा रहा है। यातायात पुलिस के मुताबिक, कोई दिन अभी तक ऐसा नहीं गया जिसमें रौबदार लोगों ने दबाव बनाने की कोशिश नहीं की हो। इनमें सियासी दलों के नेताओं से लेकर अवैध तरीके से नीली बत्ती लगाए लोग और प्रेस वाले तक शामिल हैं।

यातायात पुलिस स्वयं मानती है कि ऐसे लोगों से निपटना कई बार मुश्किल हो जाता है। पुलिस का कहना है कि चाहे नंबर प्लेट को गलत तरीके से लगाने का मामला हो, अवैध तरीके से नीली बत्ती लगाने का मामला हो या फिर काली फिल्म लगी गाड़ियां, सभी में उचित कार्रवाई की जा रही है।

पर्दाफाश से साभार 

उत्तराखंड त्रासदी: कुलियों, खच्चरों की सुध किसी को नहीं

उत्तराखंड में आए 'हिमालयी सुनामी' के कारण हुई तबाही में सैकड़ों की संख्या में बोझा ढोने वाले कुलियों तथा उनके लगभग 2,000 खच्चर अभी भी लापता हैं। कुछ गैर सरकारी संगठनों का दावा है कि उनमें से कुछ बाढ़ में बह गए तथा कुछ अभी भी फंसे हुए हैं, तथा बचाव करने वाले अधिकारियों की बाट जोह रहे हैं। 

गैर सरकारी संगठनों के अनुसार, इनमें से कुछ लोगों तथा उनके खच्चरों को तुरंत निकाले जाने की जरूरत है, अन्यथा वे भूख के कारण एक धीमी और क्रूर मौत की भेंट चढ़ जाएंगे। इस तरह के एक गैर सरकारी संगठन 'जनादेश' के सचिव लक्ष्मण नेगी ने बताया, "केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री एवं गंगोत्री वाले चार धाम के अतिरिक्त गौरीकुंड, गोविंदघाट, रुद्रप्रयाग तथा उत्तराखंड के अन्य इलाकों में लगभग 2,000 खच्चर फंसे हुए हैं। बाढ़ के कारण उनकी जान बचाने के लिए या तो उनके मालिकों ने उन्हें छोड़ दिया है या उनके मालिक खुद बह गए हैं और अपने पीछे खच्चरों को छोड़ गए हैं।"

उत्तराखंड में लगभग एक पखवाड़े पहले हुई मानसूनी बारिश के कारण आई भयानक बाढ़ के कारण सैकड़ों लोगों की मौत हो गई है, बल्कि कुछ तो हजारों के मरने की बात भी कर रहे हैं। राहत एवं बचाव कर्मियों ने अब तक राज्य से एक लाख से भी अधिक लोगों को सुरक्षित बचा लिया है, तथा अभी भी कुछ लोग फंसे हुए हैं।

नेगी ने बताया कि राज्य के अधिकारियों का पूरा ध्यान तीर्थयात्रियों एवं पर्यटकों को ही बचाने पर है तथा स्थानीय लोगों के बचाव कार्य के प्रति वे जरा भी चिंतित नहीं हैं। नेगी ने बताया, "गोविंदघाट में सबसे बुरा हाल है। मैंने सुना है कि वहां सैकड़ों की संख्या में खच्चर फंसे हुए हैं। अधिकारियों को उनके बारे में विचार करना चाहिए, अन्यथा हमें उनकी ठठरियां ही मिलेंगी। उन्हें बचाने के लिए सेना का सहयोग लिया जाना चाहिए।"

एक अन्य गैरसरकारी संगठन, पर्वतीय नियोजन एवं विकास संस्थान के चंद्रमोहन ने भी यहीं चिंता व्यक्त की। चंद्रमोहन ने बताया, "मुझे लगता है कि इस बाढ़ प्रभावित इलाके में लगभग 2,500 खच्चर फंसे हुए हैं। बाढ़ प्रभावित इलाकों से भागकर आए गांववालों ने ये बातें बताईं। ऐसी बातें भी सुनने में आई हैं कि अपने खच्चरों के साथ ही रुक गए कुछ लोगों की हालत भूख के कारण बेहद नाजुक है।"

'ऐक्शनएड' की कार्यक्रम अधिकारी बर्षा चक्रबर्ती के अनुसार, खच्चरों के जरिए बोझा ढोने वाले समुदाय राज्य सरकार के अंतर्गत पंजीकृत नहीं हैं। मोटे अनुमान के आधार पर राज्य में बोझा ढोने वाले लगभग 20,000 लोग हैं, जो पर्यटकों को या तो खच्चरों पर या अपनी पीठ पर ढोकर तीर्थस्थलों तक पहुंचाते हैं।

पर्दाफाश से साभार

इस तरह हुआ द्रोणाचार्य का जन्म...?

महाभारत वह महाकाव्य है जिसके बारे में जानता तो हर कोई है लेकिन आज भी कुछ ऐसे चीजें हैं जिसे जानने वालों की संख्या कम है| क्या आपको पता है गुरु द्रोणाचार्य का जन्म कैसे हुआ था? हुआ कुछ यूँ कि एक बार भरद्वाज मुनि गंगा स्नान को गए थे वहाँ पर उन्होंने घृतार्ची नामक एक अप्सरा को गंगा स्नान कर निकलते हुये देख लिया। उस अप्सरा को देख कर उनके मन में काम वासना जागृत हुई और उनका वीर्य स्खलित हो गया जिसे उन्होंने एक यज्ञ पात्र में रख दिया। 

कालान्तर में उसी यज्ञ पात्र से द्रोण की उत्पत्ति हुई। द्रोण अपने पिता के आश्रम में ही रहते हुये चारों वेदों तथा अस्त्र-शस्त्रों के ज्ञान में पारंगत हो गये। द्रोण के साथ प्रषत् नामक राजा के पुत्र द्रुपद भी शिक्षा प्राप्त कर रहे थे तथा दोनों में प्रगाढ़ मैत्री हो गई। उन्हीं दिनों परशुराम अपनी समस्त सम्पत्ति को ब्राह्मणों में दान कर के महेन्द्राचल पर्वत पर तप कर रहे थे। एक बार द्रोण उनके पास पहुँचे और उनसे दान देने का अनुरोध किया। इस पर परशुराम बोले, "वत्स! तुम विलम्ब से आये हो, मैंने तो अपना सब कुछ पहले से ही ब्राह्मणों को दान में दे डाला है। अब मेरे पास केवल अस्त्र-शस्त्र ही शेष बचे हैं। तुम चाहो तो उन्हें दान में ले सकते हो।" द्रोण यही तो चाहते थे अतः उन्होंने कहा, "हे गुरुदेव! आपके अस्त्र-शस्त्र प्राप्त कर के मुझे अत्यधिक प्रसन्नता होगी, किन्तु आप को मुझे इन अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा-दीक्षा देनी होगी तथा विधि-विधान भी बताना होगा।" इस प्रकार परशुराम के शिष्य बन कर द्रोण अस्त्र-शस्त्रादि सहित समस्त विद्याओं के अभूतपूर्व ज्ञाता हो गये।

शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात द्रोण का विवाह कृपाचार्य की बहन कृपी के साथ हो गया। कृपी से उनका एक पुत्र हुआ। उनके उस पुत्र के मुख से जन्म के समय अश्व की ध्वनि निकली इसलिये उसका नाम अश्वत्थामा रखा गया। किसी प्रकार का राजाश्रय प्राप्त न होने के कारण द्रोण अपनी पत्नी कृपी तथा पुत्र अश्वत्थामा के साथ निर्धनता के साथ रह रहे थे। एक दिन उनका पुत्र अश्वत्थामा दूध पीने के लिये मचल उठा किन्तु अपनी निर्धनता के कारण द्रोण पुत्र के लिये गाय के दूध की व्यवस्था न कर सके। अकस्मात् उन्हें अपने बाल्यकाल के मित्र राजा द्रुपद का स्मरण हो आया जो कि पांचाल देश के नरेश बन चुके थे। द्रोण ने द्रुपद के पास जाकर कहा, "मित्र! मैं तुम्हारा सहपाठी रह चुका हूँ। मुझे दूध के लिये एक गाय की आवश्यकता है और तुमसे सहायता प्राप्त करने की अभिलाषा ले कर मैं तुम्हारे पास आया हूँ।" इस पर द्रुपद अपनी पुरानी मित्रता को भूलकर तथा स्वयं के नरेश होने अहंकार के वश में आकर द्रोण पर बिगड़ उठे और कहा, "तुम्हें मुझको अपना मित्र बताते हुये लज्जा नहीं आती? मित्रता केवल समान वर्ग के लोगों में होती है, तुम जैसे निर्धन और मुझ जैसे राजा में नहीं।"

अपमानित होकर द्रोण वहाँ से लौट आये और कृपाचार्य के घर गुप्त रूप से रहने लगे। एक दिन युधिष्ठिर आदि राजकुमार जब गेंद खेल रहे थे तो उनकी गेंद एक कुएँ में जा गिरी। उधर से गुजरते हुये द्रोण से राजकुमारों ने गेंद को कुएँ से निकालने लिये सहायता माँगी। द्रोण ने कहा, "यदि तुम लोग मेरे तथा मेरे परिवार के लिये भोजन का प्रबन्ध करो तो मैं तुम्हारा गेंद निकाल दूँगा।" युधिष्ठिर बोले, "देव! यदि हमारे पितामह की अनुमति होगी तो आप सदा के लिये भोजन पा सकेंगे।" द्रोणाचार्य ने तत्काल एक मुट्ठी सींक लेकर उसे मन्त्र से अभिमन्त्रित किया और एक सींक से गेंद को छेदा। फिर दूसरे सींक से गेंद में फँसे सींक को छेदा। इस प्रकार सींक से सींक को छेदते हुये गेंद को कुएँ से निकाल दिया।

इस अद्भुत प्रयोग के विषय में तथा द्रोण के समस्त विषयों मे प्रकाण्ड पण्डित होने के विषय में ज्ञात होने पर भीष्म पितामह ने उन्हें राजकुमारों के उच्च शिक्षा के नियुक्त कर राजाश्रय में ले लिया और वे द्रोणाचार्य के नाम से विख्यात हुये।

पर्दाफाश से साभार 

शेर की मांद में कर रहे थे सेक्स तभी.......

जिम्बाब्वे में एक प्रेमी जोड़े के साथ ऐसी घटना घटी जिसे सुनकर आप भी हैरान हो जायेंगे| यहाँ एक प्रेमी युगल जंगल घूमने गया था जंगल में घूमते-घूमते दोनों को एक शेर की मांद दिखाई दी| फिर क्या था फ़ौरन दोनों शेर की मांद की तरफ मुड़ गए वहां जाकर दोनों को सहवास करने की इच्छा हुई लेकिन हुआ वहीँ जो सोचा नहीं था| मिली खबर के मुताबिक, शराई मावेरा नाम की लड़की अपने प्रेमी के साथ जंगल में घूमने गई थी। वही दोनो ने शेर की गुफा देख सेक्स करने की सोची। उन्होंने शेर की मांद में अपना बिस्तर बना लिया। लेकिन उनकी यह सोच उनके लिए खतरनाक साबित हुई।

बताते हैं कि जब वह सेक्स कर रहे थे, उसी दौरान शेर अपनी मांद में आ धमका| मांद में प्रेमी जोड़े को देखकर शेर ने उन पर हमला कर दिया। हमले में लड़की की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि लड़का भागने में कामयाब रहा। लेकिन यह क्या जब वह भागते भागते मुख्य सड़क पर पहुंचा तो लोगों ने उसे पागल बताते हुए पुलिस के हवाले कर दिया| क्योंकि लड़का नग्नावस्था में था| लड़का बार-बार कहता रहा ‌कि मेरी गर्लफ्रेंड खतरे में है, लेकिन जब तक पुलिस को मामला समझ में आता लड़की की मौत हो चुकी थी।

मनीषा कोइराला कैंसर को मात दे घर वापस लौटीं

बॉलीवुड अभिनेत्री मनीषा कोइराला गर्भाशय के कैंसर के इलाज के लिए 6 महीनो से अमेरिका में रह रहीं थीं। कैंसर के इस जानलेवा बीमारी को मात देने के बाद बुधवार की शाम मुंबई लौट आई। मनीषा कोइराला के चेहरे पर एक नयी चमक दिख रही थी। 

मनीषा के प्रबंधक सुब्रोतो घोष ने बताया कि मनीषा भारत पहुंच गई हैं और अब वह पूरी तरह स्वस्थ हैं। वह पहले की ही तरह सुंदर दिख रही हैं। घोष ने कहा कि यहां पहुंचने के बाद वह सीधा अंधेरी स्थित अपने घर गईं। जब डॉक्टरों ने उसके पूरी तरह स्वस्थ होने की घोषणा की तब उन्होंने इसे अपना पुनर्जन्म बताया। 

खबरों की मानें तो शादी के बाद से ही मनीषा और उनके पति के बीच अनबन रहती थी। मनीषा परेशान रहने लगीं थी और कई मौकों पर उन्‍हें ज्‍यादा शराब पीते देखा गया जिससे उन्‍हें कैंसर होने का खतरा बढ़ गया था। अब वह पूरी तरह से ठीक होने के बाद वापस अपने घर आ गई है।

राझणां: बनारस की खट्टी मीठी लव स्टोरी

बैनर : इरोज इंटरनेशनल
निर्माता : कृषिका लुल्ला
निर्देशक : आनंद एल. राय
संगीत : एआर रहमान
कलाकार : धनुष, सोनम कपूर, अभय देओल, मोहम्मद जीशान अय्यूब, स्वरा भास्कर

शुक्रवार को पर्दे पर मोस्ट 'राझणां' ने रिलीज हुई है फिल्म को उम्मीद से ज्यादा अच्छी प्रतिक्रियाएं मिली हैं। निर्देशक आनंद एल रॉय की फिल्म 'रांझणा' बनारस की पृष्ठ भूमि पर एक खट्टी मीठी लव स्टोरी है। रांझणा' कुंदन (धनुष) और जोया(सोनम) की प्रेम कहानी है। जोया बनारस की रहने वाली मुश्लिम परिवार की लड़की है। जोया को उनके पड़ोस में रहने वाला कुंदन ‘धनुष’ जो की हिन्दू है। एक तरफ प्‍यार करना शुरू कर देता है। इस बात का पता जब जोया के परिवार को लगता है तो वे उसको पढ़ने के लिए अलीगढ़ भेज देते हैं, और फिर आगे की पढ़ाई के लिए दिल्‍ली चली जाती है। दिल्‍ली पहुंचते ही जोया की जिन्‍दगी में अकरम ‘अभय देओल’ आता है। इस बीच जोया वापस बनारस लौटती है, और उसकी मुलाकात पुराने पागल प्रेमी से कुंदन से होती है। जोया कुंदन का इस्‍तेमाल कर अपने मां बाप को अकरम से शादी करवाने के लिए राजी करती है। इस दौरान कुछ घटनाक्रम घटते हैं, जो कहानी को रोमांचक बनाते हैं।

कुंदन का किरदार निभा रहे घनुष की अभिनय क्षमता दर्शकों की निगाह में हीरो बना देता है। रजनीकांत के दामाद धनुष ने अपनी पहली फिल्‍म में दिखा दिया कि उनमें काफी संभावनाएं हैं। वे बॉलीवुड में लम्‍बी पारी खेल सकते हैं। धनुष के संवादों की हिंदी डबिंग ठीक-ठाक हो गयी है। धनुष ने अपने किरदार को बखूबी निभाया है। पूरी फिल्म में बेचारे आशिक की भूमिका उन्होंने अच्छी तरह से निभायी है। फिल्म में रोमांस और कॉमेडी दृश्‍यों को अच्छी तरह दर्शकों के सामने पेश किया गया है । यह फिल्म सोनम कपूर के लिए एक बड़ा मौका थी। 'आयशा' फिल्म की तरह सोनम कपूर इस फिल्म में भी सुंदर तो बहुत दिखी हैं लेकिन जज्बाती दृश्यों में उनकी कलई खुल जाती है। गेस्ट रोल में अभय देओल ने अपनी छवि के अनुरूप ही काम किया है। कुंदन को एकतरफा प्रेम करने वाली लड़की की भूमिका में स्वरा भास्कर और दोस्त के रूप में मोहम्‍मद जीशान अयूब अच्छे लगे हैं। जीशान इससे बड़ी भूमिका पाने की का‌बलियत रखते हैं। नाट्यकर्मी अरविंद गौड़ ने इस फिल्म से अपने फिल्मी अभिनय की पारी शुरू की है।

हिमांशु शर्मा की कहानी ताज़ा तरीन है और वाराणसी की झलक साफ़ नज़र आती है। स्क्रीनप्ले में अच्छा खासा हास्य है और भावनाओं को भी बेहतरीन तरीके से व्यक्त किया गया है। फिल्म के संबाद काफी रोचक हैं। फिल्म में एक प्यार की मासूमियत को दर्शाने की पूरी कोशिश की गई इसमें हिमांशु काफी हद तक कामयाब भी हुयें हैं। गाने इस फिल्म की खूबसूरती हैं। खूबसूरती इस बात में भी कि कोई भी गाना फिल्म की कहानी को नहीं रोकता है। सभी गाने दिल को छू लेने वालें हैं। पिया मिलेंगे, रांझणा हुआ, बनारसिया गाने सुनने में बेहद खूबसूरत लगते हैं। इरशाद कामिल ने हर सिचुएशन के लिए गाना लिखा है। एआर रहमान ने लिरिक्स और सिचुएशन के हिसाब से शानदार म्यूजिक तैयार किया है। कुल मिलाकर आनंद एल रॉय ने कहानी को एक जोरदार ढंग से दर्शकों के सामने पेश किया। फिल्म की कहानी, इसके गाने आपको बोर नहीं करेंगे।

The hottest & popular screen idols: Devon Ke Dev-Madadev's Mohit Raina, Ramayana's Ram Arun Govil

The face of the Indian television changed when the mythological serials were introduced to it. Amid high TRP race, still, the mythological soaps and the actors have been making waves. 

Be it the current hottest Mohit Raina who plays Lord Shiva in Life Ok’s Devon Ke Dev Mahadev or others.

Indian audience whole-heartedly accepted it. In fact, the people fell in love with the shows made a point to watch it; they use to make themselves available to watch these shows. The characters that played the roles of the Hindu Gods were recognized with their character names in real life and accorded a lot of respect and was loved by everyone.

‘Ramayan’, ‘Krishna’, ‘Jai Hanuman’ were among the most famous mythological serials. The characters who played the roles in the mythological series received huge admiration from the audience.

The most famous actors of these shows are Arun Govil, Sarvadaman D. Banerjee and Sanjay Khan.

Arun Govil who essayed the role of Hindu mythological God Ram, got very popular amongst the audience. In fact, still few recall him as the actor who played Ram.

Sarvadaman D. Banerjee is an another actor who shot to fame with a mythological serial that portrayed the story of lord Krishna, the actor played the role of the Hindu God ‘Krishna’ in it. 

Sanjay Khan is another name that became popular amongst the people for its role in ‘Jai Hanuman’. He played the role of Hindu god Hanuman.

Another most popular mythological character running these days is of Lord Shiva in the serial ‘ Devon K Dev..Mahadev’ actor Mohit Raina is receiving lot of appreciation, love and respect for his role.

Well, the popularity of television stars that were a part of the mythological series proves that whether its older generation or today’s both love to watch them.

जब भाई ने देखी बहन की अश्लील वीडियो तो.......

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सटे बाराबंकी जिले में बड़ा ही अजीबो गरीब मामला प्रकाश में आया है| यहाँ एक लड़की जो घरों में घुस-घुसकर लड़कियों का पहले अश्लील एमएमएस बनाती और बाद में उसे मोबाइल की दुकानों पर बेच देती| 

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, यह मामला बाराबंकी के सफदरगंज थाना क्षेत्र का है| सूत्र बताते है कि यहाँ एक लड़की ने अपने ही पड़ोस में रहने वाली दूसरी लड़की की नहाते समय अश्लील वीडियो बना ली और उसके बाद उसे अपने दोस्तों और मोबाइल की दुकानों पर बेच दिया। बाजार में बिक रही उस अश्लील वीडियो क्लिप्स को जब लड़की के भाई ने देखा हक्का-बक्का रह गया।

लड़की के भाई ने इस मामले को लेकर सम्बंधित थाने में उस लड़की के खिलाफ मामला दर्ज करा दिया है| पीड़िता के भाई ने बताया है कि उसकी बहन का अश्लील एमएमएस बनाने वाली लड़की देह व्यापार करती है। वह इलाके में कई लड़कियों का अश्लील एमएमएस बना चुकी है। वह गांव में काफी अश्लीलता फैला रही है। उसने यह भी बताया यह लड़की वीडियो बनाकर मोबाइल की दुकानों पर अपलोड और डाउनलोड करने वालों से सौदा करती है। फिलहाल पुलिस अभी तक आरोपी लड़की को गिरफ्तार नहीं कर सकी|

केदारनाथ में पूजा-अर्चना करने जाना चाहते हैं संत

उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में फंसे लोगों को सुरक्षित वापसी के लिए सुरक्षा बलों के संघर्ष के बीच साधु-संतों ने केदारनाथ जा कर पूजा-अर्चना करने की इच्छा जताई है। द्वारका के शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने पारंपरिक पूजा अर्चना के लिए उत्तराखंड सरकार से आपदा का शिकार हुए तीर्थ क्षेत्र में जाने देने की अनुमति मांगी है।


यहां कनखल में साधुओं की बैठक के बाद सरस्वती ने मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा से उन्हें केदारनाथ जाने देने की अनुमति मांगी है। उन्होंने केदारनाथ महादेव की उखीमठ में अर्चना शुरू किए जाने का विरोध जताया। उखीमठ सर्दियों में शिव का स्थान होता है। एक साधु ने कहा, "गर्मियों में भगवान शिव को किसी दूसरे स्थान पर ले जाने का कोई प्रावधान नहीं है।" बादल फटने के बाद तीर्थ क्षेत्र में मलबा और गाद भर जाने से कपाट बंद कर दिए गए। सोमवार को केदारनाथ से प्रतिमा पूजा अर्चना के लिए उखीमठ लाई गई। 


नवंबर महीने में सर्दियां शुरू हो जाने के बाद भगवान शिव की पवित्र प्रतिमा केदारनाथ से उखीमठ लाई जाती है जहां उनकी इस अवधि में पूजा अर्चना की जाती है। मई के पहले सप्ताह में प्रतिमा फिर से केदारनाथ में स्थापित कर दी जाती है। यही समय होता है जब मंदिर के कपाट तीर्थयात्रियों के लिए खोल दिए जाते हैं। देश के विभिन्न हिस्सों से हजारों लाखों की तादाद में श्रद्धालु तीर्थयात्रा के लिए यहां पहुंचते हैं।


हिंदू चंद्र पंचांग के मुताबिक हर वर्ष कार्तिक मास के पहले दिन तीर्थ का कपाट बंद कर दिया जाता है और वैशाख में कपाट खोला जाता है। बंद रहने के दौरान तीर्थस्थल बर्फ से ढंका होता है और भगवान की पूजा उखीमठ में होती है। इस वर्ष केदारनाथ यात्रा 14 मई से शुरू हुई थी।

देसी 'आम' हुए 'खास'

छत्तीसगढ़ में मौसम ने देसी आम को खास बना दिया है। फसल कमजोर पड़ने से अचारी आम भी आम लोगों के पहुंच से दूर हो गए हैं। शुरुआती दौर में बौर देखकर प्रदेश के ज्यादातर जिलों में रिकार्ड उत्पादन की संभावना जताई जा रही थी, पर बार-बार बदलते मौसम ने आम की फसल को पूरी तरह से खराब कर डाला है। इस कारण इस वर्ष भी लोगों को आम का स्वाद लेना महंगा पड़ रहा है। प्रदेश के ज्यादातर इलाकों में वसंत के आगमन के साथ ही उन्नत नस्ल के आम के पेड़ों पर लगे बौर से किसानों के चेहरे पर रौनक आ गई थी। वहीं देसी प्रजाति के आम के पेड़ों में भी बौर आने शुरू हो गए थे। उम्मीद की जाने लगी थी कि इस साल आम की फसल काफी अच्छी होगी, मगर मौसम ने पानी फेर दिया।

गौरतलब है कि पिछले चार साल से खराब मौसम के कारण छत्तीसगढ़ में आम की फसल कम हुई है। हवा-पानी के कारण भी समय-समय पर बौर झड़ गए, जिससे आम के रसीले खट्ठे-मीठे स्वाद से ज्यादातर लोग वंचित रह गए थे। इस वर्ष पेड़ों में बौर लगने के बाद बारिश नहीं होने के कारण बौर भी खराब हो गए थे। प्रदेश के जशपुर जिले में बड़ी संख्या में किसान आम की खेती करते हैं। देसी के साथ-साथ उन्नत प्रजाति के आम के बागान भी यहां बड़ी संख्या में लगाए गए हैं, जिसे इस वर्ष मौसम ने खराब कर दिया। इससे किसानों को लाखों रुपये का नुकसान होगा।

जिले में 4020 हेक्टेयर में आम के पौधे लगे हुए हैं, जिनसे 15678 किसान फसल लेते हैं। इस वर्ष आखरी समय में मौसम की बेरुखी से आम का फसल खराब हो गया है, जिससे 50 से 60 प्रतिशत उत्पादन में गिरावट आ गई। इसी तरह की स्थिति कुछ और जिलों में भी देखने को मिली हैं। महासमुंद, धमतरी, दुर्ग, बेमेतरा और कवर्धा में भी आम का उत्पादन लेनेवाले किसान हताश और निराश हैं।

प्रदेश के आम विक्रेताओं का कहना है कि पिछले वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष फसल अच्छी होने की संभावना थी और प्रदेश में खासकर जशपुर जिले के आम उत्पादक आम के पेड़ पर पर्याप्त बौर होने से संतुष्ट नजर आ रहे थे। फल झड़ जाने जाने के कारण आम के उत्पादक निराश नजर आ रहे हैं। 

कृषक सुनील पाटले ने बताया कि हाईब्रिड पेड़ के बौर पहले ही झड़ गए थे। यहां देसी के अलावा चौसा, लंगड़ा, दशहरी, फजलीह, बाम्बेग्रीन जैसी उन्नत प्रजातियों के आम का भी अच्छा उत्पादन होता है। देसी आम स्थानीय बाजार में खप जाते हैं। वहीं उन्नत प्रजाति के आम को रायपुर, बिलासपुर, झारसुगुड़ा, खरसिया सहित जगह अन्य जगहों में निर्यात किया जाता है। 

कृषकों के बागानों के साथ-साथ उद्यानिकी विभाग के बागानों में आम की फसल चौपट होने से जिले सहित अन्य राज्यों के लोगों को रसीले आमों का स्वाद नहीं मिल पाएगा। इस संबंध में उद्यान अधीक्षक सियाराम सिंह यादव कहते हैं कि इस वर्ष बेहतर मौसम के बाद भी आम की फसल 50 प्रतिशत कम हुई है। यही वजह है कि लोकल आम भी ज्यादा कीमतों पर बिक रहे हैं।

छत्तीसगढ़ में, खासकर जशपुर क्षेत्र में जून-जुलाई में आम के फल की तोड़ाई होती है, जिससे यहां के किसानों को अच्छा भाव मिल जाता था। हाईब्रीड आम जहां चांपा, बिलासपुर, रायपुर, झारखंड ओडिशा के क्षेत्रों में जाते थे, वहीं आचार के लिए देसी आम की भी खूब मांग रहती है। इस समय जिस अनुपात में फल निकल रहा है वह पर्याप्त नहीं है। जिसके कारण दाम बढ़ गए हैं। जहां हाईब्रीड आम 40 से 80 रुपये किलो बिक रहे हैं, वहीं देसी आम 20 से 25 रुपये किलो बिक रहे हैं जो अन्य वर्षो की तुलना में काफी अधिक हैं।

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