नागपाल के निलंबन पर सियासत गरमाई

उत्तर प्रदेश में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) की अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल के निलंबन को लेकर शुक्रवार को एक वीडियो सामने आने के बाद पहले से ही इस मामले में फजीहत झेल रही राज्य सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं, जिसमें समाजवादी पार्टी (सपा) के एक नेता को यह कहते दिखाया गया है कि नागपाल का निलंबन उन्होंने 41 मिनट के भीतर करवाया। यह वीडियो सामने आने के बाद विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के तेवर और तल्ख हो गए हैं। उसने राज्य की सपा सरकार पर तीखे हमले किए हैं।

यह वीडियो, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के उस बयान के बाद सामने आया है जिसमें उन्होंने कहा है कि नागपाल का निलंबन इसलिए किया गया, क्योंकि उन्होंने बिना-सोचे समझे इस तरह का कदम उठाया जिससे सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगड़ सकता था। उन्होंने अधिकारी का निलंबन वापस लेने से भी इंकार किया। वीडियो में सपा नेता व उत्तर प्रदेश एग्रो कॉरपोरेशन के अध्यक्ष नरेंद्र भाटी को ग्रेटर नोएडा में समर्थकों से यह कहते दिखाया गया है कि उन्होंने सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को सुबह करीब 10.30 बजे फोन किया और पूर्वाह्न् 11.11 बजे नागपाल के निलंबन का आदेश आ गया।

भाटी को उत्तर प्रदेश एग्रो कॉरपोरेशन के अध्यक्ष के नाते राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त है और वह आगामी लोकसभा चुनाव में गौतमबुद्ध नगर लोकसभा सीट से सपा के उम्मीदवार हैं। भाटी के उक्त बयान के बाद इस मुद्दे पर पहले से ही आक्रामक भाजपा के तेवर अधिक तल्ख हो गए हैं। नोएडा से भाजपा विधायक महेश शर्मा ने आरोप लगाया है कि भाटी खनन माफिया से मिले हुए हैं। उन्होंने खनन माफियाओं से भाटी के संबंधों की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से करवाने की मांग की है।

भाजपा की उत्तर प्रदेश इकाई के प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा कि मुख्यमंत्री का झूठ पकड़ा गया है। कल तक मुख्यमंत्री कह रहे थे कि आईएएस अधिकारी का निलंबन एक प्रशासनिक फैसला था। अब यह स्पष्ट हो गया है कि इसके पीछे राजनीतिक मकसद था। एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने भी इस बात से सहमति जताई कि भाटी का वीडियो सामने आने के बाद सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं। अब तक सरकार कहती आ रही थी कि उनका निलंबन मस्जिद परिसर की दीवार गिराने का आदेश देने के कारण हुआ, जिससे सांप्रदायिक माहौल बिगड़ सकता था। लेकिन सरकार का यह दावा भी विवादों में घिर गया है, क्योंकि इस मामले में सरकार को भेजी गई जिलाधिकारी की रिपोर्ट में इससे इंकार किया गया है।

जिलाधिकारी की रिपोर्ट के मुताबिक, सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) के तौर पर तैनात नागपाल ने ऐसा कोई आदेश नहीं दिया था, बल्कि निर्माण के अवैध होने की जानकारी मिलने के बाद ग्रामीणों ने स्वयं उसे ढहा दिया। 

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राष्ट्रवादी भावनाओं के उद्गाता थे मैथिलीशरण गुप्त


 भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अपनी रचनाओं से भारतीयों में राष्ट्रीयता की अलख जगाने वाले रचनाकारों में कवि मैथिलीशरण गुप्त का नाम अग्रिम पंक्ति में रखा जाता है। खड़ी बोली में काव्य रचना कर हिंदी साहित्य को समृद्ध करने वाले, राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत 'भारत भारती' जैसे काव्यसंग्रह के रचयिता गुप्तजी मानवीय संवेदनाओं के भी प्रखर प्रवक्ता थे। मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त 1886 को झांसी के चिरगांव में सेठ रामचरण कनकने और कौशल्या बाई के घर हुआ। वे अपने माता-पिता की तीसरी संतान थे। विद्यालय में खेलकूद में विशेष रुचि लेने के कारण गुप्तजी की शिक्षा अधूरी रह गई और बाद में उन्होंने घर पर ही हिंदी, बांग्ला और संस्कृत साहित्य का अध्ययन किया।

मुंशी अजमेरी की प्रेरणा से 12 वर्ष की अवस्था से ही ब्रजभाषा में काव्य रचना प्रारंभ करने वाले मैथिलीशरण गुप्त हिंदी साहित्य की अप्रतिम सेवा करने वाले आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के संपर्क में आए। इसके बाद वह द्विवेदी जी के आग्रह पर खड़ी बोली में रचना करने लगे। प्रथम काव्य संग्रह 'रंग में भंग' के बाद गुप्तजी ने 'जयद्रथ वध' की रचना की। गुप्तजी ने बांग्ला से 'मेघनाथ वध', 'ब्रजांगना', संस्कृत से 'स्वप्नवासवदत्त' आदि का अनुवाद भी किया।

उस समय तक रामकथा पर आधारित काव्य रचनाओं में लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला के प्रति कवियों की उदासीनता पर आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने 'कवियों की उर्मिला के प्रति उदासीनता' लेख लिखा था। काव्यजगत की कमी की ओर किए गए इशारे के बाद गुप्तजी ने 'साकेत' की रचना करने का मन बनाया। साकेत में उर्मिला के विरह को जिस मार्मिक ढंग से उन्होंने प्रस्तुत किया है वह अन्यत्र दुलर्भ है।

मैथिलीशरण गुप्त की स्त्री वेदना की दूसरी उत्कृष्ट रचना 'यशोधरा' मानी जाती है। गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधरा को विरह से ज्यादा पति का चुपके से चले जाना सालता है। अपनी पीड़ा को व्यक्त करते हुए यशोधरा एक आम भारतीय नारी का प्रतीक बन जाती हैं, जो निरपराध दंड भुगतने के लिए विवश हैं।

असल में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इसी दौर में नारी मुक्ति का विश्वव्यापी विचार भी उभर कर सामने आया था। मैथिलीशरण गुप्त जहां एक ओर राष्ट्रीयता का सूत्र थामे हुए थे, वहीं दूसरी ओर वे समकालीन वैचारिक आंदोलन पर भारतीय नजरिए के चिंतन को भी काव्य भाषा के माध्यम से रख रहे थे।

1914 में भारत भारती के प्रकाशन के साथ ही मैथिलीशरण गुप्त की ख्याति चारों ओर फैल गई। तीन खंडों की इस रचना की शुरुआत ही पाठकों को बांधे बगैर नहीं रह पाती है। 'मानस भवन में आर्यजन जिसकी उतारें आरती, भगवान भारत वर्ष में गूंजे हमारी भारती।'

1916-17 में उन्होंने साकेत की रचना शुरू की जो 1931 में पूरी हुई। इसी दौरान 'पंचवटी' खंड काव्य भी सामने आया और गुप्तजी महात्मा गांधी के संपर्क में भी आए। इसके बाद 1932 में उन्होंने यशोधरा की रचना की। गुप्त जी 1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रह के तहत जेल गए। महात्मा गांधी ने उन्हें 'राष्ट्रकवि' की संज्ञा से नवाजा और आगरा विश्वविद्यालय ने उन्हें डी. लिट. की उपाधि से विभूषित किया। 1952 में उन्हें राज्य सभा का सदस्य मनोनीत किया गया और 1953 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से अलंकृत किया। 1962 में तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें अभिनंदन ग्रंथ भेंट किया तथा हिंदू विश्वविद्यालय ने उन्हें डी.लिट से सम्मानित किया। 1954 में कवि मैथिलीशरण गुप्त को शिक्षा एवं साहित्य क्षेत्र से पद्म भूषण से अलंकृत किया गया।

1963 में अनुज सियाराम शरण गुप्त के निधन से मैथिलीशरण गुप्त को गहरा सदमा हुआ। 12 दिसंबर 1964 को दिल का दौरा पड़ने से साहित्य के इस महान पुरोधा ने नश्वर पार्थिव संसार से महाप्रस्थान किया। 78 वर्ष की अवस्था तक मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी लेखनी से हिंदी साहित्य को 19 खंड काव्यों, दो महाकाव्य और अनेक नाटिकाओं आदि से समृद्ध किया। हिंदी के प्रखर आलोचक डॉ. नगेंद्र के शब्दों में राष्ट्रकवि थे सच्चे राष्ट्रकवि। रामधारी सिंह दिनकर के मुताबिक उनके काव्य में भारत की प्राचीन संस्कृति एक बार फिर तरुणावस्था को प्राप्त हुई थी। 

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चाहते हैं पापों से मुक्ति तो रखें कामिका एकादशी का व्रत

श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को कामिका एकादशी कहते है| इसे पवित्र एकादशी के नाम से भी जाना जाता है| इस बार कामिका एकादशी 2 अगस्त दिन शुक्रवार को पड़ रही है| इस दिन भगवान विष्णु की पूजा होती है| कामिका एकादशी व्रत के पुण्य से जीवात्मा को पाप से मुक्ति मिलती है| मान्यता है कि जो भी व्यक्ति यह व्रत रखता है उसे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है साथ ही उसके समस्त कष्टों का निवारण हो जाता है| कामिका एकादशी को श्री विष्णु का उत्तम व्रत कहा गया है कहा जाता है कि इस एकादशी की कथा श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाई थी| इससे सूर्यवंशी राजा दिलीप को वशिष्ठ मुनि ने सुनायी थी जिसे सुनकर उन्हें पापों से मुक्ति एवं मोक्ष प्राप्त हुआ|

कामिका एकादशी व्रत विधि-


कामिका एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठना चाहिए| स्नान से पहले नित्यक्रियाओं से मुक्त होना चाहिए और स्नान करने के लिये मिट्टी, तिल और कुशा का प्रयोग करना चाहिए| स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करने चाहिए और भगवान श्री विष्णु के समक्ष व्रत का संकल्प लेना चाहिए| इसके बाद भगवान का पूजन करना चाहिए| भगवान विष्णु को फूल, फल, तिल, दूध, पंचामृत आदि नाना पदार्थ निवेदित करके, आठों प्रहर निर्जल रहकर विष्णु जी के नाम का स्मरण एवं कीर्तन करना चाहिए| एकादशी व्रत में ब्राह्मण भोजन एवं दक्षिणा का बड़ा ही महत्व है अत: ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करने के पश्चात ही भोजन ग्रहण करें|

कामिका एकादशी व्रत कथा-

एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा: हे! प्रभु श्रावण के कृष्णपक्ष में कौन सी एकादशी होती है ? कृपया उसका वर्णन कीजिये ।

इस पर भगवान श्रीकृष्ण बोले: राजन् ! सुनो । मैं तुम्हें एक पापनाशक उपाख्यान सुनाता हूँ, जिसे पूर्वकाल में ब्रह्माजी ने नारदजी के पूछने पर कहा था।

एक बार नारद जी ने ब्रम्हा जी से प्रश्न किया: हे कमलासन मैं आपसे यह सुनना चाहता हूँ कि श्रवण के कृष्णपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है? उसके देवता कौन हैं तथा उससे कौन सा पुण्य होता है? प्रभु इसका विस्तार से वर्णन कीजिये|

ब्रम्हाजी ने नारद के प्रश्नों का उत्तर देते हुए कहा: नारद! सुनो । मैं सम्पूर्ण लोकों के हित की इच्छा से तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दे रहा हूँ । श्रावण मास में जो कृष्णपक्ष की एकादशी होती है, उसका नाम ‘कामिका’ है । उसके स्मरणमात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। उस दिन श्रीधर, हरि, विष्णु, माधव और मधुसूदन आदि नामों से भगवान का पूजन करना चाहिए ।

भगवान श्रीकृष्ण के पूजन से जो फल मिलता है, वह गंगा, काशी, नैमिषारण्य तथा पुष्कर क्षेत्र में भी सुलभ नहीं है । सिंह राशि के बृहस्पति होने पर तथा व्यतीपात और दण्डयोग में गोदावरी स्नान से जिस फल की प्राप्ति होती है, वही फल भगवान श्रीकृष्ण के पूजन से भी मिलता है ।

जो समुद्र और वनसहित समूची पृथ्वी का दान करता है तथा जो ‘कामिका एकादशी’ का व्रत करता है, वे दोनों समान फल के भागी माने गये हैं।

जो ब्यायी हुई गाय को अन्यान्य सामग्रियों सहित दान करता है, उस मनुष्य को जिस फल की प्राप्ति होती है, वही ‘कामिका एकादशी’ का व्रत करने वाले को मिलता है। जो नरश्रेष्ठ श्रावण मास में भगवान श्रीधर का पूजन करता है, उसके द्वारा गन्धर्वों और नागों सहित सम्पूर्ण देवताओं की पूजा हो जाती है ।

अत: पापभीरु मनुष्यों को यथाशक्ति पूरा प्रयत्न करके ‘कामिका एकादशी’ के दिन श्रीहरि का पूजन करना चाहिए। जो पापरुपी पंक से भरे हुए संसार समुद्र में डूब रहे हैं, उनका उद्धार करने के लिए ‘कामिका एकादशी’ का व्रत सबसे उत्तम है । अध्यात्म विधापरायण पुरुषों को जिस फल की प्राप्ति होती है, उससे बहुत अधिक फल ‘कामिका एकादशी’ व्रत का सेवन करने वालों को मिलता है।

‘कामिका एकादशी’ का व्रत करने वाला मनुष्य रात्रि में जागरण करके न तो कभी भयंकर यमदूत का दर्शन करता है और न कभी दुर्गति में ही पड़ता है । लालमणि, मोती, वैदूर्य और मूँगे आदि से पूजित होकर भी भगवान विष्णु वैसे संतुष्ट नहीं होते, जैसे तुलसीदल से पूजित होने पर होते हैं । जिसने तुलसी की मंजरियों से श्रीकेशव का पूजन कर लिया है, उसके जन्मभर का पाप निश्चय ही नष्ट हो जाता है ।

‘जो दर्शन करने पर सारे पापसमुदाय का नाश कर देती है, स्पर्श करने पर शरीर को पवित्र बनाती है, प्रणाम करने पर रोगों का निवारण करती है, जल से सींचने पर यमराज को भी भय पहुँचाती है, आरोपित करने पर भगवान श्रीकृष्ण के समीप ले जाती है और भगवान के चरणों मे चढ़ाने पर मोक्षरुपी फल प्रदान करती है, उस तुलसी देवी को नमस्कार है ।’

जो मनुष्य एकादशी को दिन रात दीपदान करता है, उसके पुण्य की संख्या चित्रगुप्त भी नहीं जानते। एकादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण के सम्मुख जिसका दीपक जलता है, उसके पितर स्वर्गलोक में स्थित होकर अमृतपान से तृप्त होते हैं। घी या तिल के तेल से भगवान के सामने दीपक जलाकर मनुष्य देह त्याग के पश्चात् करोड़ो दीपकों से पूजित हो स्वर्गलोक में जाता है।’

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: युधिष्ठिर ! यह तुम्हारे सामने मैंने ‘कामिका एकादशी’ की महिमा का वर्णन किया है । ‘कामिका’ सब पातकों को हरनेवाली है, अत: मानवों को इसका व्रत अवश्य करना चाहिए। यह स्वर्गलोक तथा महान पुण्यफल प्रदान करने वाली है । जो मनुष्य श्रद्धा के साथ इसका माहात्म्य श्रवण करता है, वह सब पापों से मुक्त हो श्रीविष्णुलोक में जाता है ।

वहीं कामिका एकादशी के बारे में एक दूसरी कथा प्रचलित है जो इस प्रकार है- प्राचीन काल में किसी गांव में एक ठाकुर जी थे| क्रोधी ठाकुर का एक ब्राह्मण से झगडा हो गया और क्रोध में आकर ठाकुर से ब्राह्मण का खून हो जाता है| अत: अपने अपराध की क्षमा याचना हेतु ब्राहमण की क्रिया उसने करनी चाही परन्तु पंडितों ने उसे क्रिया में शामिल होने से मना कर दिया और वह ब्रहम हत्या का दोषी बन गया परिणाम स्वरुप ब्राह्मणों ने भोजन करने से इंकार कर दिया| तब उन्होने एक मुनि से निवेदन किया कि हे भगवान, मेरा पाप कैसे दूर हो सकता है| इस पर मुनि ने उसे कामिका एकाद्शी व्रत करने की प्रेरणा दी| ठाकुर ने वैसा ही किया जैसा मुनि ने उसे करने को कहा था| जब रात्रि में भगवान की मूर्ति के पास जब वह शयन कर रहा था| तभी उसे स्वपन में प्रभु दर्शन देते हैं और उसके पापों को दूर करके उसे क्षमा दान देते हैं|

चलो दिलदार चलो, चाँद के पार चलो...

चलो दिलदार चलो, चाँद के पार चलो- फिल्म पाकीजा का यह गाना बॉलीवुड की खूबसूरत अदाकारा मीनाकुमारी की खूबसूरती में चार चाँद लगा गया था , भले ही फिल्म कामयाब नहीं रही पर 70 के दशक में यह गाना यादगार गानों में गिना जाने लगा, 1 अगस्त 1932 को जन्मी मीना कुमारी फ़िल्मी दुनिया में जड़ें मीने की तरह थी|

आज के फ़िल्मी दौर में फिल्म में हीरोइने कब आती है कब चली जाती है पता ही चलता। टाकीज में फिल्म लगती है और उतर जाती है पर इन फिल्मो की फिल्मी गलियारो में चर्चा भी नही होती क्योंकि आज फिल्म की हीरोइने अदाकारी की बजाये अपना तन दिखाने और अपने कपड़े उतारने में ही अपना ध्यान लगती हैं जबकि पुराने जमाने की कई अभिनेत्रिया और फिल्मे आज भी कई बरस बीत जाने के बाद भी दिलो दिमाग से नही उतरती, उन में एक नाम मीना कुमारी का भी है। मीना कुमारी का नाम आते ही फिल्मो का वो इतिहास सामने आ जाता है जिसे लोग आज भी फिल्मो के गोल्डन दौर के रूप में याद करते है।

मीना कुमारी का असली नाम मेंजबीं बानो था और यह बांबे में पैदा हुई थीं। उनके पिता अली बक्श भी फिल्मों में और पारसी रंगमंच के एक मंजे हुए कलाकार थे और उन्होंने कुछ फिल्मों में संगीतकार का भी काम किया था। उनकी मां प्रभावती देवी (बाद में इकबाल बानो) भी एक मशहूर नृत्यांगना एवं अदाकारा थी।

मीना कुमारी का वास्तविक नाम मेहजबी बानो था। मीना कुमारी ने केवल छह साल की छोटी उम्र में फिल्मो में काम करना शुरू कर दिया था। 1952 में विजय भट्ट की फिल्म बैजू बावरा ने मीना कुमारी को बतौर अभिनेत्री फिल्मी दुनिया में स्थापित किया और इस फिल्म की लोकप्रियता के बाद मीना की अदाकारी की चारो ओर काफी प्रसंशा होने के साथ ही मेहजबी से यह अदाकारा मीना कुमारी बन गई। दिल अपना और प्रीत पराई, यहूदी, बंदिश, दिल एक मंदिर, प्यार का सागर, मैं चुप रहॅूगी, आरती, भाभी की चूडिया, काजल, कोहेनूर, सहारा, शारदा, फूल और पत्थर, गजल, नूर जहॉ ,मझली दीदी, चन्दन का पालना, भीगी रात, मिस मैरी, बेनजीर, साहिब बीवी और गुलाम, ये सारी ऐसी फिल्मी है जिन्होने मीना कुमारी को बुलंदी के उस आसमान पर पहुंचा दिया जहॉ से आसमान को छूना बहुत आसान हो जाता है।

धर्मन्द्र के साथ मीना कुमारी के रोमांस की चर्च सब से ज्यादा हुई पर फिल्मी पर्द पर दुख झेलती इस अदाकारा के असली जीवन में भी दुख ही दुख भर गये। या यू कहा जाये कि इस अदाकारा ने खुद को जमाने से दूर बहुत दूर कर दुखो से दोस्ती कर ली। पर इतनी बडी दुनिया में तन्हा जीना बडा मुश्क्लि होता है। मीना को तन्हाई खाए जा रही थी इसी दौरान न जाने कब उन्होने शराब और शायरी को अपना दोस्त बना लिया खुद उन्हे भी नही पता। मीना कुमारी शायरी के माध्यम से शोर कह कर अपने दिल का दर्द हल्खा करने लगी वो नाज नाम से उर्द् शायरी करती थी।

मीना कुमारी ने कमाल अमरोही से शादी की, हालांकि उनकी शादीशुदा जिंदगी तनाव से भरी रही। पाकीजा फिल्म निर्माण में सत्रह साल का समय लगा। पाकीजा फिल्म मीना कुमारी ने बीमारी की हालत में की। गुरुदत्त की फिल्म साहिब, बीवी और गुलाम की छोटी बहू के किरदार में मीना कुमारी को सराहा गया। कहते हैं मीना कुमारी पहली तारिका थीं, जिन्होंने बॉलीवुड में पराए मर्दों के बीच बैठकर शराब पी। कहते तो यह भी हैं धर्मेन्द्र की बेवफाई ने मीना कुमारी को अकेले में भी पीने पर मजबूर किया। मीना धर्मेद्र के गम क्या डूबी उन्होंने छोटी-छोटी बोतलों में देसी-विदेशी शराब भरकर अपने पर्स में रखना शुरू कर दिया, जब मौका मिला एक शीशी गटक ली।फिल्म 'पाकीजा' 4 फरवरी 1972 को रिलीज हुई और 31 अगस्त 1972 को मीना कुमारी चल बसी। महज चालीस साल की उम्र में महजबीं उर्फ मीना कुमारी खुद-ब-खुद मौत के मुँह में चली गईं। मीना कुमारी का नाम कई लोगों से जोड़ा गया।

मोहम्मद रफ़ी साहब की पुण्यतिथि पर विशेष........

अपनी मदहोश कर देने वाली आवाज़ से सबको अपना दीवाना बनाने वाले गायक मोहम्मद रफ़ी की आज पुण्यतिथि है| इन्हें 'शहंशाह-ए-तरन्नुम' भी कहा जाता है| रफ़ी का जन्म 24 दिसम्बर 1924 को अमृतसर, के पास 'कोटला सुल्तान सिंह' में हुआ था। इनके परिवार का संगीत से कोई ताल्लुक नहीं था। रफ़ी के गायन की शुरुआत साल 1940 के आस पास हुई| वर्ष1960 में फ़िल्म 'चौदहवीं का चांद' के शीर्षक गीत के लिए रफ़ी को अपना पहला फ़िल्म फेयर पुरस्कार मिला था। 

मोहम्मद रफ़ी अपने दर्द भरे नगमों के लिए खासतौर पर जाने जाते है| इन्होनें अपने करियर में लगभग 26000 हज़ार गाने गाये| सन 1946 में आई फिल्म 'अनमोल घड़ी' का गाना 'तेरा खिलौना टूटा' से रफ़ी को पहली बार हिन्दी जगत में ख्याति मिली।

मोहम्मद रफ़ी बहुत ही शर्मीले स्वभाव के समर्पित मुस्लिम थे। आजादी के समय विभाजन के दौरान उन्होने भारत में रहना पसन्द किया। उन्होने बेगम विक़लिस से शादी की और उनकी सात संतान हुईं-चार बेटे तथा तीन बेटियां। रफ़ी का देहान्त 31 जुलाई 1980 को हृदयगति रुक जाने के कारण हुआ।

यह किसी से छुपा नहीं है कि दिवंगत अभिनेता शम्मी कपूर के लोकप्रिय गीतों में मोहम्मद रफ़ी का कितना योगदान है| शम्मी कपूर तो इनकी आवाज से इतने प्रभावित थे कि वह अपना हर गाना रफ़ी से गवातें थे| शम्मी कपूर के ऊपर फिल्माए गए यह लोकप्रिय गाने 'चाहे कोई मुझे जंगली कहे', 'एहसान तेरा होगा मुझपर', 'ये चांद सा रोशन चेहरा', 'दीवाना हुआ बादल' जो रफ़ी द्वारा गायें गए है| 

इनकी प्रसिद्धि धीरे-धीरे इतनी बढ़ गयी कि ज्यादातर अभिनेता इन्हीं से गाना गवाने का आग्रह करने लगे। अभिनेता दिलीप कुमार व धर्मेन्द्र तो मानते ही नहीं थे कि उनके लिए कोई और गायक गाए। इस कारण से कहा जाता है कि रफ़ी साहब ने अन्जाने में ही 'मन्ना डे', 'तलत महमूद' और 'हेमन्त कुमार' जैसे गायकों के करियर को नुकसान पहुँचाया|

सन 1961 में रफ़ी को अपना दूसरा फ़िल्मफेयर आवार्ड फ़िल्म 'ससुराल' के गीत 'तेरी प्यारी प्यारी सूरत को' के लिए मिला। इसके बाद 1965 में ही लक्ष्मी-प्यारे के संगीत निर्देशन में फ़िल्म दोस्ती के लिए गाए गीत 'चाहूंगा मै तुझे सांझ सवेरे के' लिए रफ़ी को तीसरा फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिला। साल 1965 में उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा। उस वक्त तक रफ़ी सफलता की उचाईयों को छुते जा रहे थे| साल 1966 में फ़िल्म सूरज के गीत 'बहारों फूल बरसाओ' बहुत प्रसिद्ध हुआ और इसके लिए उन्हें चौथा फ़िल्मफेयर अवार्ड मिला। साल 1968 में शंकर जयकिशन के संगीत निर्देशन में फ़िल्म ब्रह्मचारी के गीत 'दिल के झरोखे में तुझको बिठाकर' के लिए उन्हें पाचवां फ़िल्मफेयर अवार्ड मिला।

1960 के दशक में अपने करियर के शीर्ष पर पहुंचने के बाद उनके लिए दशक का अन्त सुखद नहीं रहा।1969 में फ़िल्म आराधना के निर्माण के समय सचिन देव बर्मन (जिन्हे दादा नाम से भी जाना जाता था) को संगीतकार चुना गया। इसी साल दादा बीमार पड़ गए और उन्होने अपने पुत्र राहुल देव बर्मन(पंचमदा) से गाने रिकार्ड करवाने को कहा। उस समय रफ़ी हज के लिए गए हुए थे। पंचमदा को अपने प्रिय गायक किशोर कुमार से गवाने का मौका मिला और उन्होने रूप तेरा मस्ताना तथा मेरे सपनों की रानी गाने किशोर दा की आवाज में रिकॉर्ड करवाया। 

ये दोनों गाने बहुत ही लोकप्रिय हुए, साथ ही गायक किशोर कुमार भी जनता तथा संगीत निर्देशकों की पहली पसन्द बन गए। इसके बाद रफ़ी के गायक जीवन का अंत शुरू हुआ। हालांकि, इसके बाद भी उन्होने कई हिट गाने दिये, जैसे 'ये दुनिया ये महफिल', 'ये जो चिलमन है', 'तुम जो मिल गए हो'। 1977 में फ़िल्म 'हम किसी से कम नहीं' के गीत 'क्या हुआ तेरा वादा' के लिए उन्हे अपने जीवन का छठा तथा अन्तिम फ़िल्म फेयर एवॉर्ड मिला।

रफ़ी के कुछ प्रमुख गाने 

मैं जट यमला पगला दीवाना
चढ़ती जवानी मेरी चाल मस्तानी
हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों 
ये देश है वीर जवानों का
नन्हें मुन्ने बच्चे तेरी मुठ्ठी में क्या है
रे मामा रे मामा 
चक्के पे चक्का
बाबुल की दुआए
आज मेरे यार की शादी है

जुलाई: कुछ तो खास है इस महीने में, प्रसिद्ध लोगों का प्रसिद्ध महीना...

भारत में किसी भी बात को आम होने और आम से खास होने में ज्यादा वक़्त नही लगता| कहते है कि वक़्त, जगह, समाज, लोग, सभी पहलुओं से कुछ ऐसी बाते जुडी रहती है, जो उस व्यक्ति या समय को खास बना देती है, ऐसा ही कुछ है, इंग्लिश कैलेण्डर के हिसाब से सातंवे महीने में आने वाले जुलाई महीने का| जुलाई की खासियत यह है कि इस महीने जन्म लेने वाले लोग किसी न किसी वजह से चर्चा में जरुर रहते है|

वैसे तो इस महीने में पूरे विश्व में करोड़ों लोगो ने जन्म लिया होगा पर उन करोड़ों लोगो में जो विशिष्ट लोग शामिल हुए उन्होंने अपने अपने क्षेत्रो में कुछ अलग पहचान बनाई, साथ ही इस महीने में कुछ ऐसी शख्सियते भी रही जिन्होंने अपनी देह को भी छोड़ा भी है| ऐसे ही कुछ खास लोगो के बारे में जब लिखने के लिए सोचा गया तो फिल्म उद्योग से लेकर बड़े राजनेताओ के साथ वह शख्सियते भी सामने आई जिन्होंने अपने खास हुनर से लोगो का दिल जीत लिया| भारतीय राजनीति के धुरंधर बाबू जगजीवन राम हो या फिर भारत को दो विश्व कप दिलाने वाले धोनी, युवा दिलो की धड़कन कैटरिना कैफ हो, या पूर्व विश्व सुंदरी और देसी गर्ल के खिताब से नवाजी गई बॉलीवूड अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा या कभी आम ज़िन्दगी में खलनायक घोषित किये गए संजय दत्त हो, अपने उपन्यासों से समाज का आइना दिखाने वाले साहित्यकार और उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद्र, विश्व को शांति का पाठ पढ़ाने वाले दलाई लामा सहित दर्जनों ऐसी शख्सियत है, जो इस महीने पैदा हुई और इन्होने अपने अपने क्षेत्रो में इतना नाम किया कि लोग आज उनके नाम और काम के मुरीद है| 

1- कैटरीना कैफ: हिंदी सिनेमा की बार्बी डॉल यानी की कैटरीना कैफ का जन्म 16 जुलाई 1984 को हाँगकाँग में हुआ था| फिल्म जगत में वर्ष 2003 में आई फिल्म 'बूम' से कदम रखने वाली कैटरीना अभिनेता सलमान खान की खासम-खास मानी जाती है| यहाँ तक कि बॉलीवुड में उन्हें सलमान ही लेकर आये थे| क्यूट से चेहरे वाली कैटरीना अपनी शालीनता के लिए भी काफी मशहूर हैं| अपने माता-पिता की आठ संतानों में से एक कैटरीना इन दिनों बॉलीवुड की सबसे डिमांडिंग अभिनेत्रियों में से एक हैं|

कैटरीना का बचपन और पढाई-लिखाई हवाई, चीन, जापान, फ्रांस, पोलेंड, जर्मनी, बेल्जियम और अन्य यूरोपीय देशों में हुई। शुरूआती दिनों में उन्हें हिंदी न के बराबर आती थी, जिसकी वजह से उन्हें इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी लेकिन अब वह काफी हद तक स्पष्ट हिंदी बोल लेती हैं|

2- प्रियंका चोपड़ा: वर्ष 2003 में आई फिल्म 'अंदाज' में मुख्य भुमिका निभाकर बॉलीवुड में कदम रखने वाली अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा का जन्म झारखण्ड के जमशेदपुर में 18 जुलाई, 1982 को हुआ था| 'पिग्गी चोप्स' के नाम से भी मशहूर प्रियंका ने वर्ष 2000 में ‘मिस इंडिया वर्ल्‍ड’ का ताज पहना और फिर प्रियंका ने ‘मिस वर्ल्‍ड’ प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्‍व कर ‘मिस वर्ल्‍ड-2000’ का खिताब जीता। प्रियंका ने अब तक के करियर में वैसे तो कई बड़े व छोटे बजट की फ़िल्में की लेकिन वर्ष 2008 में आई उनकी फिल्म 'फैशन' ने सफलता के नए आयाम लिखे| 

अपने ग्लैमरस लुक और अट्रैक्टिव मुस्कराहट की वजह से प्रियंका आज लाखों दिलों पर राज करती हैं| वैसे प्रियंका के बारे में यह बात कम लोग ही जानते होंगें कि वह ऐसी दूसरी और आखिरी अभिनेत्री हैं, जिनको 'फिल्मफेयर बेस्ट विलन अवार्ड' से नवाज़ा गया है| यह अवार्ड उन्हें वर्ष 2005 में आई फिल्म 'एतराज' के लिए मिला|

3- संजय दत्त: अपने खास स्टाइल के लिए मशहूर हिंदी सिनेमा के अभिनेता संजय दत्त का जन्म 29 जुलाई, 1959 को मुंबई में अभिनेता सुनील दत्त व अभिनेत्री नर्गिस दत्त के घर में हुआ| संजय दत्त ने अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत वर्ष 1981 में आई फिल्म 'रॉकी' से की थी| यह फिल्म एक हिट साबित हुई थी लेकिन इसके बाद उनकी जिंदगी में कुछ ऐसा हुआ कि वह अपने आगे बढने से पहले ही गिर गये| उनके पिता ने उन्हें जैसे-तैसे संभाला उसके बाद उन्होंने वर्ष 1982 में आई फिल्म 'विधाता' से वापसी की| 

संजय को वर्ष 1991 में आई फिल्म 'साजन' से बड़ी सफलता का स्वाद चखने को मिला| युवाओं के बीच अपने टफ लुक की वजह से खासे लोकप्रिय संजय ने राजनीति में भी हाथ अजमाया है लेकिन शायद उन्हें राजनीति ज्यादा रास नहीं आई और कुछ समय बाद ही उन्होंने इससे किनारा कर लिया| अपने फैन्स के बीच संजू बाबा के नाम से मशहूर संजय का वैवाहिक जीवन काफी उतार-चढ़ाव से भरा रहा| उनकी पहली शादी वर्ष 1989 में अभिनेत्री रिचा सिंह से हुई लेकिन रिचा और उनका साथ लम्बा न चल सका और उनकी मौत हो गई, इसके बाद उन्होंने मॉडल रिया पिल्लै को वर्ष 1998 में अपनी जीवनसंगिनी बनाया लेकिन यह रिश्ता भी सफल नहीं रहा और वह दोनों वर्ष 2005 में आपसी सहमती से अलग हो गये| इसके बाद वर्ष 2008 में संजय ने अपनी दोस्त मान्यता को अपना हमसफर बनाया|

4- सोनू निगम: 'सूरज हुआ मद्धम' , 'कल हो न हो' और 'अब मुझे रात दिन' जैसे बेहतरीन गीत गाने वाले मशहूर प्ले बैक सिंगर सोनू निगम का जन्म 30 जुलाई, 1973 को हरियाणा के फरीदाबाद में हुआ था| सोनू ने 'रफ़ी की यादें' एल्बम से अपने कॅरियर की शुरुआत की लेकिन वर्ष 1995 में फिल्म 'सनम बेवफा' के गीत 'अच्छा सिला दिया तुने' से उन्हें अपार सफलता मिली| सोनू के बारे में यह बात कम ही लोग जानते हैं कि उन्होंने फ़राह ख़ान की फ़िल्म ‘तीस मार ख़ां’ के एक गीत को 54 अलग-अलग आवाज़ों में गाया है| तीन साल की उम्र में गायन की शुरुआत करने वाले सोनू के जीवन में लोकप्रिय टी. वी. प्रोग्राम 'सारेगामापा' के आने के बाद से नया मोड़ आ गया था|

सोनू को ज्यादातर मोहम्मद रफी के गीतों के लिए जाना जाता है। उनके कुछ हिट गाने इस प्रकार हैं - 'संदेसे आतें हैं' , 'इश्क बिना' , 'साथिया' , कल हो न हो' , 'कभी अलविदा न कहना' आदि|

5- नसीरुद्दीन शाह:प्रतिभाशाली अभिनेता-निर्देशक नसीरुद्दीन शाह का जन्म उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में 20 जुलाई, 1950 में हुआ था| नसीरुद्दीन शाह को इंडस्ट्री में अपने आपको स्थापित करने में काफी मशक्कत करनी पड़ी थी| रंगमंच से होते हुए उन्होंने मेन सिनेमा में जगह बनाई| वर्ष 1983 में आई फिल्म ‘मासूम’, उनके करियर की मुख्य फिल्मों में से एक हैं| इसके बाद उन्होंने बहुत सी बेहतरीन फ़िल्में दी जिनमे, ‘कर्मा’, ‘इजाज़त’, ‘जलवा’, ‘हीरो हीरालाल’, ‘गुलामी’, ‘विश्वात्मा’, ‘मोहरा’, ‘सरफ़रोश’ जैसी कमर्शियल फिल्में शामिल है|

फिल्म 'इकबाल', 'द डर्टी पिक्चर', 'आक्रोश' में उनके अभिनय के लिए काफी सराहना भी मिली| शाह को वर्ष 1987 में बेहतर अभिनय के लिए 'पद्मश्री' और वर्ष 2003 में 'पद्म भूषण' से नवाजा जा चुका है। साथ ही वह फिल्म निर्देशन में भी हाथ आजमा चुके हैं|

6- राजेंद्र कुमार: फिल्म 'मदर इण्डिया' में अभिनय कर चर्चा में आये अभिनेता राजेंद्र कुमार का जन्म पश्चिम पंजाब के सियालकोट (वर्तमान पाकिस्तान) में 20 जुलाई 1929 को एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था| फिल्म इंडस्ट्री में जुबली कुमार का दर्जा पाने वाली राजेंद्र कभी भी एक तरह भी भूमिका में नहीं बंधे| यह भी एक सच है कि राजेंद्र कुमार को शुरूआती दिनों में बेहद संघर्ष करना पड़ा था| इसके बाद कही जाकर उन्होंने सफलता का स्वाद चखा|

इसके बाद वर्ष 1963 से 1966 के बीच कामयाबी के सुनहरे दौर में राजेन्द्र कुमार की लगातार छह फिल्में हिट रहीं| 'मेरे महबूब' (1963), 'जिन्दगी', 'संगम' और 'आई मिलन की बेला' (1964), 'आरजू' (1965) और 'सूरज' (1966) ने सिनेमाघरों पर धमाल मचा दिया था| राजेंद्र कुमार के फिल्मी योगदान को देखते हुए वर्ष 1969 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया| राजेंद्र कुमार की मृत्यु 12 जुलाई 1999 में मुंबई में हुई थी|

7- दलाई लामा: तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा यानी तेनजिन ग्यात्सो का जन्म 6 जुलाई, 1935 को क्वींगहाई के तक्तसर में हुआ था| तिब्बतियों द्वारा उनके जन्म के दो साल बाद उन्हें 13वें दलाई का अवतार घोषित कर दिया गया | इसके बाद उन्हें औपचारिक रूप से 17 नवंबर, 1950 को 15 साल की उम्र में 14वें दलाई लामा का दर्जा दे दिया गया| दलाई लामा वर्ष 1959 में चीनी शासन के खिलाफ असफल आंदोलन के बाद भारत आ गए थे| 

दरअसल, दलाई लामा एक मंगोलियाई पदवी है, जिसका मतलब होता है ज्ञान का महासागर और दलाई लामा के वंशज करूणा, अवलोकेतेश्वर के बुद्ध के गुणों के साक्षात रूप माने जाते हैं। 

8- मनोज कुमार: अपनी देशभक्ति फिल्मों के लिए मशहूर अभिनेता मनोज कुमार का जन्म 24 जुलाई, 1937 को पाकिस्तान के एबटाबाद में हुआ था। फिल्म इंडस्ट्री में में उन्हें 'भारत कुमार' के नाम से भी जाना जाता है| वैसे उनका असली नाम हरिकिशन गिरि गोस्वामी है। मनोज कुमार ने अपने करियर की शुरूआत वर्ष 1957 में प्रदर्शित फिल्म 'फैशन' से की लेकिन उनका सितारा वर्ष 1962 में प्रदर्शित फिल्म 'हरियाली और रास्ता' से चमका। मनोज कुमार को अपने करियर में सात फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है|

लगभग 30 साल के करियर में 'वो कौन थी', 'हिमालय की गोद में', 'गुमनाम', 'शोर', 'सन्यासी' ,'दस नम्बरी', 'क्लर्क' जैसी ढेरों फ़िल्में देने वाले मनोज कुमार ने अपनी फिल्मों के जरिये यह सन्देश भी दिया कि देशप्रेम और देशभक्ति क्या होती है। यह भी एक सच है कि जब भी 15 अगस्त और 26 जनवरी का दिन आता है तब लोग 'लोग-मेरे देश की धरती सोना उगले-उगले हीरे मोती' गीत जरूर सुनते हैं और यह गीत मनोज के ऊपर ही फिल्माया गया है|

9- महेंद्र सिंह धोनी: भारतीय क्रिकेट का वो सितारा जो एक छोटे से शहर से निकल कर भारतीय क्रिकेट पर उस धूमकेतु की तरह छा गया जिसको छूना समकालीन क्रिकेट खिलाडियों के लिए मुश्किल है, अपनी कप्तानी में भारत को करीब 30 साल बाद वर्ल्ड कप जिताने वाले धोनी ने भारत को पहला टी-20 चैम्पियन भी बनाया था| जब से इन्होने भारतीय क्रिकेट की कमान संभाली है तब से भारत वन डे क्रिकेट के साथ टेस्ट में भी नंबर वन बना, इस खिलाडी का जन्म 7 जुलाई को पड़ता है, महेंद्र सिंह धोनी रांची में पैदा हुए थे, बचपन से ही क्रिकेट के शौक़ीन धोनी ने कुछ समय भारतीय रेल में टिकट चेकर की नौकरी भी की थी|

10- मुंशी प्रेम चंद्र: हिंदी उर्दू साहित्य के कालजयी साहित्यकार मुंशीप्रेम चंद्र का जन्म उत्तर प्रदेश के बनारस जिले के लमही गाँव में 31 जुलाई, 1880 में हुआ था, मुंशी प्रेमचंद्र का असली नाम धनपत राय था, उन्होंने लिखना शुरू किया था, नवाब राय के नाम से और प्रसिद्द हुए मुंशी प्रेमचंद्र के नाम से मुंशी प्रेम चंद्र को उपन्यासकार के तौर पर ज्यादा जाना जाता है, उनके लिखे उपन्यासों में समाज का आइना दिखता है, गबन, बाज़ार-ए- हुस्न, कर्मभूमि, शतरंज के खिलाडी,और सेवा सदन मुख्य उपन्यास है|

इस महीने और जिन प्रसिद्ध शख्सियतों ने जन्म लिया उनमे माकपा नेता और भारत के बंगाल राज्य पर सबसे ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री पद संभालने वाले ज्योति बसु का जन्म 8 जुलाई को हुआ था| लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई को हुआ था| आज़ादी की लड़ाई में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने वाले बालगंगाधर तिलक ने स्वराज का नारा दिया, बालगंगाधर तिलक आज़ादी की लड़ाई के अगुवा माने जाते थे|

चंद्रशेखर आज़ाद का जन्म भी 23 जुलाई को बदरका जिला उन्नाव उत्तर प्रदेश में हुआ था, आज़ादी की लड़ाई में इनका नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है| चंद्रशेखर आज़ाद ने अंग्रेजो से सीधा मुकाबला लिया था| काकोरी ट्रेन में सरकारी खजाना लूटने के प्लान में शामिल चंद्रशेखर आज़ाद को कभी भी अंग्रेज पुलिस पकड़ नही सकी, इनकी मौत भी खुद इनके रिवाल्वर से हुई थी|

'DEATH'

1- दारा सिंह: पहलवान व अभिनेता दारा सिंह ने लम्बी बीमारी से लड़ते हुए 12 जुलाई, 2012 को अपने घर पर अंतिम सांस ली| 84 वर्षीय दारा की हालत इतनी ख़राब थी कि उनकी किडनी, गुर्दे, दिल, दिमाग ने पहले से ही काम करना बंद कर दिया था| 19 नवंबर, 1928 को पंजाब के अमृतसर में जन्मे दारा सिंह ने खेल और मनोरंजन की दुनिया में समान रुप से नाम कमाया| दारा को कुश्ती के लिए 'रुस्तम-ए-हिंद' का खिताब मिला था| वहीं, उन्होंने वर्ष 1952 में फिल्म 'संगदिल' से अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा था|

दारा सिंह ने वर्ष 2007 में आई फिल्म 'जब वी मेट' में आखिरी बार अभिनय किया| छोटे पर्दे के लोकप्रिय धारावाहिक 'रामायण' में निभाई गई उनकी हनुमान की भूमिका से उन्हें काफी लोकप्रियता मिली थी|

2- राजेश खन्ना: बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना ने 18 जुलाई, 2012 को दुनिया को अलविदा कह दिया| महिला प्रशंसकों के बीच खासे मशहूर राजेश का निधन 69 वर्ष की उम्र में लम्बी बीमारी के बाद हुआ| जिन्दादिली से भरपूर राजेश का असली नाम जतिन खन्ना था| अपने फैन्स के बीच 'काका' के नाम से मशहूर राजेश का साथ अंतिम दिनों में उनसे अलग रह रही उनकी पत्नी व अभिनेत्री डिम्पल कपाडिया व बेटियां ट्विंकल खन्ना, रिंकी और दामाद अक्षय कुमार ने दिया|

'आराधना', 'अमर प्रेम' 'सफर', 'कटी पतंग' और 'आनंद' जैसी फिल्मों में अपने दमदार किरदार से लाखों दिलों पर छाप छोड़ने वाले राजेश के खन्ना के गुजरने के बाद बॉलीवुड जगत में शोक की लहर दौड़ गई| 29 दिसंबर, 1942 को अमृतसर में जन्मे राजेश ने परिवार की मर्जी के खिलाफ अभिनय को बतौर करियर चुना था| जब राजेश खन्ना 24 साल के थे तब उन्होंने फिल्म 'आखिरी खत' से अपने करियर की शुरुआत की थी| हालांकि, उन्हें शुरूआती दिनों में कुछ ख़ास सफलता नहीं मिली थी लेकिन बाद में मुमताज़, शर्मीला टैगोर, हेमा मालिनी, आशा पारेख, के साथ उनकी जोड़ी को बहुत सराहा गया था|

3- राज कुमार: 'आपके पांव देखे बहुत हसीन हैं इन्हें ज़मीन पर मत उतारियेगा मैले हो जायेगें' फिल्म 'पाकीजा' का यह संवाद बीते दौर में ही नहीं आज भी सिने प्रेमियों के जुबां पर चढ़ा हुआ है| राज कुमार द्वारा कहीं गयी इन लाइनों ने उनको बेहद लोकप्रिय कर दिया था| लगभग चार दशक तक प्रशंसकों के दिल पर राज करने वाले अभिनेता राज कुमार ने 3 जुलाई, 1996 को इस दुनिया को अलविदा कहा|

राजकुमार ने वर्ष 1952 में प्रदर्शित फ़िल्म 'रंगीली' से अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत की थी लेकिन यह फिल्म चली नहीं| फ़िल्मी दुनिया में आने से पहले राजकुमार मुंबई के माहिम पुलिस स्टेशन में बतौर सब इंस्पेक्टर तैनात थे| वर्ष 1957 में प्रदर्शित महबूब ख़ान की फ़िल्म 'मदर इंडिया' में राजकुमार के छोटे से रोल ने उनको जबरदस्त लोकप्रियता दिलाई थी| 'दिल अपना और प्रीत पराई-1960', 'घराना- 1961', 'गोदान- 1963', 'दिल एक मंदिर- 1964', 'दूज का चांद- 1964' जैसी हिट फ़िल्में देने के बाद ऐसा भी समय आया जब राजकुमार फिल्मों में अपनी भूमिका खुद चुनते थे|

राज कुमार का जन्म पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में 8 अक्तूबर 1926 को एक मध्यम वर्गीय कश्मीरी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका असली नाम कुलभूषण पंडित था जो बाद में बदलकर राज कुमार हो गया|

4- लक्ष्मी सहगल: ब्रिटिश राज से देश को स्वतंत्रता दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले क्रांतिकारी नेता सुभाष चंद्र बोस की नजदीकी सहयोगी लक्ष्मी सहगल आजाद हिंद फोज या इंडियन नेशनल आर्मी की पहली महिला कैप्टन थीं। 97 वर्षीय सहगल का 23 जुलाई, 2012 को कानपुर में निधन हो गया| वर्ष 2002 में एपीजे अब्दुल कलाम के खिलाफ राष्ट्रपति चुनाव में उतरने वाली सहगल ने 24 अक्तूबर 1914 में एक तमिल परिवार में जन्म लिया था|

सहगल ने मद्रास मेडिकल कॉलेज से मेडिकल की शिक्षा ली। फिर वे सिंगापुर चली गईं। सहगल अपने जीवन के अंतिम सालों तक बतौर डॉक्टर कानपुर में अपने घर में बीमारों का इलाज करती रहीं। सहगल को वर्ष 1998 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया था। उनकी बेटी सुभाषिनी अली वर्ष 1989 में कानपुर से मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की सांसद भी रहीं|

5- राजेंद्र कुमार: वर्ष 1950 में आई फिल्म 'जोगन' में छोटा सा किरदार निभाकर लोकप्रियता हासिल करने वाले अभिनेता राजेंद्र कुमार का 12 जुलाई, 1999 को निधन हुआ था| पहली बार वह फिल्म 1959 ‘गूंज उठी शहनाई’ में एक अभिनेता के तौर पर दिखे| वैसे राजेंद्र कुमार को जनता ने हमेशा सम्मान दिया| उनकी फिल्मों को इस कदर कामयाबी मिली कि उन्हें 'जुबली कुमार' का नाम दिया गया| इस सफलता के बावजूद राजेंद्र कुमार के पांव हमेशा जमीन पर रहे|

6- बाबू जगजीवन राम: देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री और स्वतंत्रता सेनानी बाबू जगजीवन राम का निधन 6 जुलाई, 1986 को हुआ था| जगजीवन राम का ऐसा व्यक्तित्व था जिसने कभी भी अन्याय से समझौता नहीं किया और दलितों के सम्मान के लिए हमेशा संघर्षरत रहे। विद्यार्थी जीवन से ही उन्होंने अन्याय के प्रति आवाज़ उठायी। बाबू जगजीवन राम का भारत में संसदीय लोकतंत्र के विकास में काफी योगदान है।

एक दलित के घर में 5 अप्रैल, 1908 को बिहार में भोजपुर में जन्मे बाबू जगजीवन राम पंडित जवाहरलाल नेहरू की अंतरिम सरकार में शामिल होने के बाद सत्ता की ऊँची सीढ़ियों पर चढ़ते चले गए और तीस साल तक कांग्रेस मंत्रिमंडल में रहे। पांच दशक से अधिक समय तक सक्रिय राजनीति में रहे बाबू जगजीवन राम ने सामाजिक कार्यकर्ता, सांसद और कैबिनेट मंत्री के रूप में देश की सेवा की।

7- स्वामी विवेकानंद की मृत्यु मात्रा 39 साल की अवस्था में कोलकाता के निकट बेलूर मठ में हुई थी, स्वामी विवेकानंद ने भारत का नाम विश्व धर्म सम्मलेन में तब ऊँचा किया था जब इन्होनें शिकागो में इस सम्मलेन में हिस्सा लेकर अमेरिका का दिल यह कह कर जीत लिया था की "सिस्टर एंड ब्रदर ऑफ अमेरिका" साथ ही भारत की धार्मिक भावनाए क्या है इस पर बोलते हुए उन्होंने पूरे विश्व के धर्म पर प्रकाश डाला था|

जुलाई के महीने को हमने इस लिए भी चुना की यह महीना ऐसे लोगो की पैदाइश और मृत्यु का गवाह है, जिन्होंने अपने काम से इस सामज को कुछ ना कुछ दिया, नहीं तो एक साल में बारह महीने होते है इन बारह महीनो में ग्यारह ऐसे महीने है, जिनमे कुछ खास होता होगा पर जुलाई महीने में इतने प्रसिद्द लोगो के जन्म हुए है जितने किसी महीने में नहीं हुए, इस महीने जन्म लिए सभी महान विभूतियों को उनके जन्म की बधाइयां साथ ही मृत्यु को प्राप्त हो चुके लोगो को मेरी तरफ से श्रद्धांजलि|

उप्र के पुलिस थानों में पांच रुपये में मिलता है ‘भोजन’!

केन्द्रीय योजना आयोग द्वारा गरीबी का ‘बेतुका’ मानक तय करने के बाद भर पेट भोजन को लेकर देश भर में हायतौबा मची है, लेकिन एक सरकारी सच जानकार आप परेशान हो जाएंगे। भले ही बढ़ती मंहगाई के बीच देश के किसी हिस्से में बारह रुपये, पांच रुपये या एक रुपये में भर पेट भोजन न मिलता हो, पर उत्तर प्रदेश की पुलिस अपनी हिरासत में लिए गए व्यक्ति को एक दशक से ‘पांच रुपये’ में भर पेट ‘भोजन’ करा रही है।

हाल ही में केन्द्रीय योजना आयोग द्वारा ग्रामीण क्षेत्र में 27 रुपये और शहरी क्षेत्र में 33 रुपये रोजाना खर्च करने वाले को ‘अमीर’ का दर्जा दिए जाने का ‘बेतुका’ मानक तय करने के बाद कांग्रेसी नेताओं राज बब्बर के 12 रुपये, रशीद मसूद के पांच रुपये और केन्द्रीय मंत्री फारुक अब्दुल्ला के एक रुपये में भर पेट भोजन मिलने के बयानों के बाद समूचे देश में ‘भोजन’ को लेकर ‘गरीबी’ और ‘अमीरी’ को परिभाषित करने की जबर्दस्त बहस छिड़ गई है। कांग्रेसी नेता रोजाना कितने रुपये के भोजन से अपना पेट भरते हैं, यह तो वह खुद जानते होंगे, पर तल्खसच्चाई है कि देश के किसी भी हिस्से में नेताओं के रेट पर भर पेट भोजन नहीं मिलता और उत्तर प्रदेश की पुलिस पिछले एक दशक से अपनी हिरासत में लिए गए व्यक्ति को ‘पांच रुपये’ के सरकारी मानक में भर पेट भोजन करा रही है और इसी मानक के अनुसार सूबे की सरकार भुगतान भी करती आयी है, हालांकि अमानवीय हरकत के लिए बदनाम उत्तर प्रदेश की पुलिस इस पांच रुपये में भी ‘खेल’ कर रही है। ज्यादातर थानों के लाकप में बंद व्यक्ति के भोजन का इंतजाम उसके परिजन ही करते हैं, मगर यह छोटी सी रकम भी पुलिस डकार रही है।

बांदा के अपर पुलिस अधीक्षक स्वामी प्रसाद की मानें तो एक दशक पूर्व हिरासत में लिए गए व्यक्ति के भोजन के लिए शासन से सिर्फ दो रुपए प्रति खुराक के हिसाब से भुगतान किए जाने का प्राविधान था, बाद में शासन स्तर से मंहगाई को देखते हुए यह रकम बढ़ा कर पांच रुपये कर दी गई है जो थानेवार थाना प्रभारियों को उपलब्ध करा दी जाती है। अपर पुलिस अधीक्षक स्वामी प्रसाद कहते हैं कि ‘आज आसमान छू रही मंहगाई को देखते हुए यह धनराशि ऊंट के मुंह में जीरा भी नहीं है, लेकिन एक दशक से इस धनराशि में कोई इजाफा नहीं किया गया।’ वह स्वीकार करते हैं कि ‘होटल से पांच रुपये में अच्छी चाय भी नहीं मिल पाती, किन्तु ‘शासन की मंशा के अनुरूप’ पुलिस किस तरह भर पेट भोजन उपलब्ध कराती होगी? आप अंदाजा लगा सकते हैं।’ बिसंड़ा के थानाध्यक्ष पंकज तिवारी का कहना है कि ‘वैसे तो हिरासत में लिए गए आस-पास के गांवों के व्यक्तियों के भोजन का इंतजाम उनके परिजन ही करते हैं, यदि दूर-दराज का व्यक्ति पकड़ा गया तो सिपाहियों का पेट काट भोजन दिया जाना मजबूरी है।’ वह बताते हैं कि ‘जिले के अधिकारी उसी व्यक्ति के नाम का भुगतान करते हैं, जिन्हें न्यायालय में पेश किया जाता है। अक्सर ऐसे भी हिरासत में ले लिए जाते हैं, जिन्हें जेल नहीं भेजा जा सकता और उनके पेट का प्रबंध अपनी जेब से करना पड़ता है।’

पुलिस हिरासत के दौरान भोजन दिए जाने की हकीकत जानने के लिए जब हमारे संवाददाता ने बांदा जेल से रिहा हुए तेन्दुरा गांव के युवक रिंकू उर्फ संकल्प से मुलाकात की। उसने बताया कि ‘उसे जेल भेजने से पूर्व चार दिन तक नरैनी पुलिस के लाकप में रहना पड़ा था, एक भी दिन पुलिस ने खाना नहीं दिया। तीसरे दिन उसके परिजन खाना लेकर गए, तब कहीं भूख मिटी।’ मुकदमा अपराध संख्या-149/20013 में गिरफ्तार किए गए इस युवक के नाम भुगतान की गई धनराशि के बारे में पुलिस लाइन बांदा में तैनात प्रतिसार निरीक्षक (आरआई) ने बताया कि ‘नरैनी पुलिस को तीन खुराक के हिसाब से केवल 15 रुपये का भुगतान किया गया है।’ इस युवक के मामले से साफ जाहिर होता है कि स्थानीय पुलिस ने उसे एक भी बार भोजन नहीं दिया और उसके नाम पर मिले 15 रुपये भी हजम करने से परहेज नहीं किया गया। यह तो सिर्फ बानगी है, ऐसा किया जाना पुलिस के लिए आम बात है। 

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लक्ष्मण ने की थी मनकामेश्वर मंदिर की स्थापना

भगवान भोलेनाथ का सबसे प्रिय मास सावन शुरू हो चुका है। कहा जाता है कि सावन में किया गया शिव पूजन, व्रत और उपवास बहुत फलदायी होता है। शास्त्रों में शिव का मतलब कल्याण करने वाला बताया गया है। 

भगवान भोलेनाथ के भक्त बाबा को प्रसन्न करने के लिए उनकी सेवा में जुट गए हैं। जगह-जगह शिव मंदिरों में पूजा अर्चना के लिए भक्तों का तांता लगने लगा है। राजधानी के मनकामेश्र्वर मंदिर में भी सावन के प्रथम दिन से ही शिवभक्तों का ताँता लगा रहा| 

गोमती नदी के बाएं तट पर मन की सभी इच्छाओं को पूरा करने वाले मनकामेश्वर मंदिर की खासी मान्यता है| कहा जाता है कि इसकी स्थापना लक्ष्मण ने की थी। माता सीता को वनवास छोड़ने के बाद लखनपुर के राजा लक्ष्मण ने इसी स्थान पर रुककर भगवान शिव की आराधना की थी। कालांतर में इसी स्थान पर मनकामेश्र्वर मंदिर की स्थापना की गई। 

बताते हैं कि इस मंदिर का निर्माण राजा हिरण्यधनु ने अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के उल्लास में कराया था। मंदिर के शिखर पर 23 स्वर्णकलश थे। दक्षिण के शिव भक्तों और पूर्व के तारकेश्वर मन्दिर के उपासक साहनियों ने मध्यकाल तक इस मंदिर के मूल स्वरूप में बनाए रखा था। आज के भव्य मंदिर का निर्माण सेठ पूरन शाह ने कराया।

इस मंदिर की मान्यता है कि जो भी शिवभक्त यहाँ सच्चे मन से जो भी कुछ मांगता है, उसकी मुराद जरूर पूरी होती है। सावन के प्रत्येक सोमवार को मनकामेश्र्वर मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ मौजूद रहती है। मंदिर में काले रंग का शिवलिंग है और उसपर चांदी का छत्र विराजमान है। सावन में भगवान शिव का श्रृंगार करने के लिए शिव भक्तों में खासा उत्साह देखने को मिलता है।

सावन माह में करें यह उपाय, मिलेगी भोलेनाथ की विशेष कृपा

सभी कष्टों के निवारण को शिव का नाम ही पर्याप्त है। वेदों, शास्त्रों तक में शिव का शाब्दिक अर्थ कल्याण, सुख का आनंद बताया गया है। हिंदू धर्म के मुताबिक पूरी प्रकृति ही शिव का रूप है। हिंदू कलेंडर में पांचवें माह श्रावण यानी सावन माह में शिव अराधना का विशेष महत्व है। इस बार सावन की शुरुआत 4 जुलाई दिन बुधवार से हो रही है और इसकी समाप्ति 2 अगस्त को होगी| 

सावन की विशेषता-

सावन माह के बारे में एक पौराणिक कथा है कि जब सनत कुमारों ने भगवान शिव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो भगवान भोलेनाथ ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया, जिसके बाद ही महादेव के लिए यह विशेष हो गया। इसके आलावा एक अन्य कथा के मुताबिक, मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए सावन माह में ही घोर तप कर शिव कृपा प्राप्त की। जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे| 

इस तरह करें भगवान शिव की पूजा-

आपको बता दें कि सावन मास में भगवान शंकर की पूजा उनके परिवार के सदस्यों संग करनी चाहिए| इस माह में रुद्राभिषेक का विशेष महत्व है। इसलिए इस मास में प्रत्येक दिन रुद्राभिषेक किया जा सकता है जबकि अन्य माह में शिववास का मुहूर्त देखना पड़ता है। भगवान शिव के रुद्राभिषेक में जल, दूध, दही, शुद्ध घी, शहद, शक्कर या चीनी, गंगाजल तथा गन्ने के रस आदि से स्नान कराया जाता है| अभिषेक कराने के बाद बेलपत्र, समीपत्र, कुशा तथा दूब आदि से शिवजी को प्रसन्न करते हैं| अंत में भांग, धतूरा तथा श्रीफल भोलेनाथ को भोग के रुप में चढा़या जाता है| 

शिवलिंग पर बेलपत्र तथा शमीपत्र चढा़ने का वर्णन पुराणों में भी उल्लेख किया गया है| बेलपत्र भोलेनाथ को प्रसन्न करने के शिवलिंग पर चढा़या जाता है| कहा जाता है कि एक फूल शिवलिंग पर चढाने से सोने के दान के बराबर फल देता है वो आक के फूल को चढाने से मिल जाता है, हज़ार आक के फूलों की अपेक्षा एक कनेर का फूल, हज़ार कनेर के फूलों के चढाने की अपेक्षा एक बिल्व-पत्र से मिल जाता है| हजार बिल्वपत्रों के बराबर एक द्रोण या गूमा फूल फलदायी। हजार गूमा के बराबर एक चिचिड़ा, हजार चिचिड़ा के बराबर एक कुश का फूल, हजार कुश फूलों के बराबर एक शमी का पत्ता, हजार शमी के पत्तो के बराकर एक नीलकमल, हजार नीलकमल से ज्यादा एक धतूरा और हजार धतूरों से भी ज्यादा एक शमी का फूल शुभ और पुण्य देने वाला होता है। 

इसलिए बढ़ा बेलपत्र का महत्व-

शिव को प्रसन्न करने का सबसे सरल तरीका बेलपत्र है| बेलपत्र के पीछे भी एक पौराणिक कथा का महत्व है| इस कथा के अनुसार भील नाम का एक डाकू था| यह डाकू अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए लोगों को लूटता था| एक बार सावन माह में यह डाकू राहगीरों को लूटने के उद्देश्य से जंगल में गया और एक वृक्ष पर चढ़कर बैठ गया| एक दिन-रात पूरा बीत जाने पर भी उसे कोई शिकार नहीं मिला|

जिस पेड़ पर वह डाकू छिपा था वह बेल का पेड़ था| रात-दिन पूरा बीतने पर वह परेशान होकर बेल के पत्ते तोड़कर नीचे फेंकने लगा| पेड़ के नीचे एक शिवलिंग था, जो पत्ते वह तोडकर फेंख रहा था वह अनजाने में शिवलिंग पर गिर रहे थे| लगातार बेल के पत्ते शिवलिंग पर गिरने से भगवान शिव प्रसन्न हुए और अचानक डाकू के सामने प्रकट हो गए और डाकू को वरदान माँगने को कहा ,उस दिन से बिल्व-पत्र का महत्व और बढ़ गया|

तो इसलिए पूजा-पाठ के बाद जरुर होती है आरती

आपने देखा होगा कि भगवान की पूजा के बाद आरती जरुर होती है अब चाहे घर हो या फिर मंदिर| बिना आरती के कोई भी पूजा अपूर्ण मानी जाती है। क्या आपको पता है पूजा में आरती का इतना महत्त्व क्यों है..? यदि नहीं तो आज हम आपको बताते हैं कि पूजा में आरती का इतना महत्त्व क्यों है| 

स्कन्द पुराण में उल्लेख है कि यदि कोई व्यक्ति मंत्र नहीं जानता, पूजा की विधि नहीं जानता लेकिन आरती कर लेता है तो भगवान उसकी पूजा को पूर्ण रूप से स्वीकार कर लेते हैं। आरती का धार्मिक महत्व होने के साथ ही वैज्ञानिक महत्व भी है।

आपको बता दें कि आरती में रुई, घी, कपूर, फूल, चंदन आदि जरूर होता है रुई शुद्घ कपास होता है इसमें किसी प्रकार की मिलावट नहीं होती है। इसी प्रकार घी भी दूध का मूल तत्व होता है। कपूर और चंदन भी शुद्घ और सात्विक पदार्थ है। जब रुई के साथ घी और कपूर की बाती जलाई जाती है तो एक अद्भुत सुगंध वातावरण में फैल जाती है। इससे आस-पास के वातावरण में मौजूद नकारत्मक उर्जा भाग जाती है और सकारात्मक उर्जा का संचार होने लगता है।

लखनऊ में भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिग

सावन माह में आपकी ख्वाहिश भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिगों के दर्शन करने की है और किसी वजह से आपका जाना संभव नहीं हो पा रहा हो, तो निराश न हों। आप नवाबों की नगरी लखनऊ में ही द्वादश ज्योतिर्लिगों के दर्शन कर सकेंगे। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में गोमती नदी तट पर स्थित खाटू श्याम जी मंदिर परिसर में करीब 25 हजार वर्ग फुट इलाके में ऐसी झांकी सजाई गई हैं, जहां बारहों ज्योतिर्लिंगों के प्रतिरूपों के दर्शन का सौभाग्य मिल रहा है। 

इस झांकी को देखने से भक्तों को भगवान शिव के सभी ज्योतिर्लिंगों की यात्रा का अनुभव होता है। इतना ही नहीं उत्तराखंड में आई त्रासदी से तबाह हुए केदारनाथ धाम के दर्शन का भी सौभाग्य यहां मिल रहा है। सावन के पहले सोमवार यानी 23 जुलाई से भक्तों के लिए यह झांकी खोल दी गई है। शाम चार से रात नौ बजे तक द्वादश ज्योतिर्लिंगों के नि:शुल्क दर्शन का सुखद आनंद लिया जा सकता है। यह झांकी अगले 15 दिनों तक सजी रहेगी।

सोमनाथ मंदिर से शुरू हुई द्वादश ज्योतिर्लिंगों की यात्रा केदारनाथ, त्रयम्बकेश्वर, ओमकारेश्वर, नागेश्वर, रामेश्वरम, महाकालेश्वर, मल्लिकार्जुन, भीमाशंकर, घृश्णेश्वर, वैद्यनाथ धाम के बाद काशी विश्वनाथ में समाप्त होती है। खाटू श्याम धाम के मीडिया प्रभारी सुधीश गर्ग कहते हैं कि दिल्ली, मुंबई, और कोलकाता से आए करीब पचास कारीगरों ने महीनेभर से अधिक समय तक दिन रात काम करके यह विशाल झांकी तैयार की है। झांकियों को प्राकृतिक बनावट देने के लिए झरने और पहाड़ आदि बनाए गए हैं, जिससे भक्तों को वास्तविक आनंद मिल सके। कुछ ज्योतिर्लिगों को 20 फुट ऊंचाई पर सजाया गया है। 

उन्होंने कहा कि केदारनाथ धाम की झांकी पर विशेष काम किया गया है। इस धाम की झांकी पर पहुंचने के लिए लगभग सौ फुट के मार्ग को ऊबड़खड़ और घुमावदार बनाया गया है, जिससे कि लोगों को उत्तराखंड जाकर केदारनाथ धाम के साक्षात दर्शन जैसा अनुभव हो सके। जिस दिन से द्वादश ज्योतिर्लिगों की अनोखी झांकी खोली गई है, भक्तों का रेला दर्शन के लिए पहुंच रहा है। हर रोज करीब दस हजार लोग दर्शन करने पहुंच रहे हैं। 

आयोजकों के मुताबिक भक्तों की भारी भीड़ के मद्देनजर सुरक्षा के लिहाज यहां 12 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। धाम के 50 स्वयंसेवक और दो दर्जन सुरक्षा गार्ड जगह-जगह पूरे परिसर में तैनात हैं। यात्रा का अनुभव लेने बाराबंकी जिले से आए रमाकांत शुक्ला ने कहा कि वाकई यह एक अद्भुद झांकी है। एक साथ भोलेनाथ के सभी बारहों रूपों के दर्शन कराने के लिए आयोजक बधाई के पात्र हैं।

फैजाबाद से सपरिवार आए अजय कुमार कहते हैं कि झांकी इस ढंग से सजाई गई है कि मानों हम सचमुच में जाकर इन ज्योतिर्लिंगों के दर्शन कर रहे हों। वाकई द्वादश ज्योतिर्लिंगों की यात्रा का यह अनोखा अनुभव है, जिसे शायद शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता।

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जाने क्यों करते हैं भगवान की परिक्रमा

शास्त्रों में भगवान को प्रसन्न करने के लिए कई मार्ग बताए गए हैं। यह अलग-अलग विधियां भगवान की प्रसन्नता दिलाती है जिससे हमारी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए लोग मंदिर या भगवान् की प्रतिमा की परिक्रमा करते हैं| वैसे तो सभी देवी देवताओं की परिक्रमा की जाती है| क्या आप जानते हैं भगवान की परिक्रमा क्यों की जाती है?

आपको बता दें कि मंदिर में आरती, पूजा, मंत्रों उच्चारण व विविध प्रकार की साधना के उपरांत भगवान के श्री स्वरूप के चारों ओर दिव्य प्रभा और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, इस ऊर्जा को ग्रहण करने के लिए परिक्रमा की जाती है। इससे ज्योतिर्मडल से निकलने वाले तेज की सहज ही प्राप्ति हो जाती है। 

हिन्दू धर्म शास्त्रों में अलग-अलग देवी देवताओं के लिए परिक्रमा की अलग-अलग संख्या भी निर्धारित की गई है| श्रीराम भक्त हनुमान व पर्वत्री नंदन गणेश की तीन परिक्रमा करनी चाहिए| इसके अलावा भगवान भोलेनाथ की आधी परिक्रमा की जाती है| भगवान विष्णुजी एवं उनके सभी अवतारों की चार परिक्रमा करनी चाहिए। इसके अलावा देवियों की तीन परिक्रमा करने का विधान है|

देवी देवताओं की परिक्रमा करते समय ध्यान रहे कि परिक्रमा करते समय बीच में रुकना नहीं चाहिए| इसके अलावा परिक्रमा जहाँ से शुरू करें खत्म भी वहीँ करें। इसके अलावा परिक्रमा करते समय बातचीत बिलकुल न करें और मन में जिस जिस देवी या देवता को परिक्रमा कर रहे हैं उसका सुमिरन करते रहें|

परिक्रमा से पहले देवी-देवताओं से प्रार्थना करें। हाथ जोडकर, भावपूर्ण नाम जप करते हुए मध्यम गति से परिक्रमा लगाएं। ऐसा करते समय गर्भगृह को स्पर्श न करें। परिक्रमा लगाते हुए, देवता की पीठ की ओर पहुंचने पर रुकें एवं देवता को नमस्कार करें।

गुजरे जमाने की बात हुई सावन में खेल-खिलौने

बुंदेलखण्ड में सावन बच्चों के लिए खेल-खिलौनों का माह हुआ करता था, मगर अब यह गुजरे जमाने की बात लगने लगी है| बदलते वक्त के असर से बुंदेलखण्ड के खेल-खिलौने भी नहीं बच पाए हैं| आलम यह है कि सावन की पहचान चकरी, बांसुरी, भौंरा और चपेटा की जगह अब आधुनिक खेल-खिलौनों ने ले ली है| बुंदेलखण्ड में सावन आते ही दुकानों पर परंपरागत खेल-खिलौने का जखीरा नजर आने लगता था और बच्चे भी इन खिलौनों के रंग में रंग जाते थे| हाथ की उंगली में धागे की डोर के साथ लकड़ी की चकरी के चक्कर लगाकर हर कोई खुश व उत्साहित हो जाता था| इतना ही नहीं, गलियों में बांसुरी की धुन कुछ इस तरह गूंजती थी, मानो यह इलाका कृष्ण की नगरी मथुरा-वृंदावन हो|

एक तरफ जहां लड़के चकरी, बांसुरी और भौंरा से अपने को सावन के रंग से सराबोर कर लेते थे, वहीं लड़कियों के लिए लाख के चपेटे सावन की खुशियां लेकर आते थे। आलम यह होता था कि शहर से लेकर गांव की गलियों में घरों के बाहर बने चबूतरों पर लड़कियां चपेटा उछालते नजर आती थीं, लेकिन अब न तो आसानी से बाजार में चपेटा मिलते हैं और न ही लड़कियां इन्हें उछालते दिखती हैं|

वर्षो से बच्चों के खिलौना का कारोबार कर रहे छतरपुर के राम स्वरूप बताते हैं कि बच्चों की पसंद अब बदल गई है। वे ज्यादातर इलेक्ट्रॉनिक खिलौने खरीदना पसंद करते हैं। एक तरफ जहां बेवलेट की मांग बढ़ी है, वहीं बैटरी आधारित तरह-तरह के खिलौने विकल्प के तौर पर आ गए हैं। यही कारण है कि चकरी, भौंरा, बांसुरी जैसे खिलौने उनकी प्राथमिकता में कहीं पिछड़ गए हैं। इसके बाद भी ऐसा नहीं है कि पुरातन खिलौनों की मांग बिल्कुल न हो|

सामाजिक कार्यकर्ता ओ.पी. तिवारी का मानना है कि बच्चों पर पढ़ाई का बोझ बढ़ा है। वहीं खेल-खिलौनों की तुलना में टेलीविजन से लेकर कम्प्यूटर के प्रति रुचि कहीं ज्यादा है। इसके अलावा बच्चे ऐसे खेल कम ही खेलना पसंद करते हैं, जिसमें श्रम लगता हो। यही कारण है कि बुंदेलखंड के परंपरागत खेल-खिलौने सावन में भी नजर नहीं आ रहे हैं। 

टीकमगढ़ के शिक्षक डा. राजेंद्र मिश्रा कहते हैं कि सिर्फ सावन ही नहीं, तमाम त्योहारों पर महंगाई का असर पड़ा है। यही कारण है कि मध्यम श्रेणी वर्ग के परिवारों की त्योहारों में रुचि कम हुई है। एक तरफ अभिभावकों की जेब में रकम नहीं है, दूसरी ओर बच्चे भी चकरी, बांसुरी जैसे खिलौनों से खेलना नहीं चाहते| बदलते वक्त ने बुंदलखंड के सावन की रौनक को कमतर कर दिया है। यहां न तो पहले जैसे खिलौने ही नजर आ रहे हैं और न ही वह उत्साह, जो यहां की परंपरागत पहचान हुआ करती थी|