भगवान शिव का स्वरुप है एकमुखी रुद्राक्ष

शास्त्रों के अनुसार एकमुखी रुद्राक्ष साक्षात रुद्र स्वरूप है। इसे परम्ब्रम्ह माना जाता है। एकमुखी रुद्राक्ष सत्य, चैतन्यस्वरूप परब्रह्म का प्रतीक है। साक्षात शिव स्वरूप ही है। इसे धारण करने से जीवन में किसी भी वस्तु का अभाव नहीं रहता। लक्ष्मी उसके घर में चिरस्थायी बनी रहती है। चित्त में प्रसन्नता, अनायास धनप्राप्ति, रोगमुक्ति तथा व्यक्तित्व में निखार और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। एक मुखी रूद्राक्ष गोलाकार रूप में तथा काजू दाना रूप वाला भी होता है| गोलाकार रूपी रुद्राक्ष मिलना दुर्लभ होता है| एक मुखी श्वेत रुद्राक्ष बेहद उत्तम माना जाता है|

एकमुखी रूद्राक्ष के लाभ-

ज्योतिषियों के अनुसार, एक मुखी रूद्राक्ष में भगवान शिव विराजमान रहते है| इसे धारण करके मनुष्य भगवान शंकर की कृपा को प्राप्त करता है| जहाँ यह होता है वहां लक्ष्मी का वास होता है| सबसे बड़ी बात यह है की एक मुखी रुद्राक्ष धारण करने से अकाल मृत्यु का भय काम रहता है| एकमुखी रुद्राक्ष धारण करने से नेत्रों की रोशनी बढ़ जाती है| सिरदर्द , हृदय रोग , नजर दोष ,उदर संबंधी रोग जैसी अनेक व्याधियों से छुटकारा मिलता है| इसके अलावा स्नायु रोग ,अतिसार से संबंधित रोगों को दूर करने में एक मुखी रुद्राक्ष लाभदायक होता है|

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जानिये क्या कहते हैं आपके सपने...

सपनों की दुनिया बड़ी रहस्यमयी होती है। हम में से कोई नहीं जानता कि क्यों सपनों में हम ऐसी जगह पहुँच जाते हैं जहाँ जाने की कभी हमने कल्पना भी नहीं की थी। सपनों का हमारे जीवन काफी गहरा महत्व है। हर सपना कुछ-न कुछ कहता है। कुछ सपने निराशा देते हैं, तो कुछ जीवन में खुशियों की लहर भर देते हैं। जब व्यक्ति निद्रावस्था में होता है तो उसकी पाँचों ज्ञानेंद्रियाँ उसका मन और उसकी पाँचों कर्मेंद्रियाँ अपनी-अपनी क्रियाएँ करना बंद कर देती हैं और व्यक्ति का मस्तिष्क पूरी तरह शांत रहता है। उस अवस्था में व्यक्ति को एक अनुभव होता है, जो उसके जीवन से संबंधित होता है। उसी अनुभव को स्वप्न कहा जाता है|

ज्योतिष के अनुसार सपनों में भी भविष्य में होने वाली घटनाओं के राज छिपे होते हैं। इन्हें समझने पर व्यक्ति कई प्रकार की परेशानियों से बच सकता है और अधिक लाभ प्राप्त कर सकता है। आज आपको सपने से जुडी कई रोचक जानकारियां देते हैं जिसके द्वारा आप अपने भविष्य के बारे में जान सकते हैं कैसा होगा आपका आने वाला दिन-

आपको बता दें कि यदि कोई व्यक्ति सपने में अपने आप को पहाड़ पर चढ़ता हुआ देखता है तो समझो कि उसका आने वाले कल में कुछ अच्छा होगा। इसके अलावा गारा वहीँ, कोई अपने आप को रोता हुआ देखता है तो उसे भी निकट भविष्य में कोई शुभ समाचार प्राप्त होगा।

यदि किसी व्यक्ति को सपने में कोई धार्मिक कार्य करना या देवी-देवता की मूर्ति दिखाई देती है तो उसे शुभ समाचार प्राप्त होंगे। इसके अलावा अगर कोई अपने सपने में khud को नारियल का प्रसाद लेता हुआ देखता है तो ऐसे लोगों को जल्द ही कोई शुभ समाचार मिल सकता है| 

इसके अलावा अगर आप इस तरह के स्वप्न देख रहे हैं तो इनके स्वप्नफल इस प्रकार हैं-

मछली देखना- घर में शुभ कार्य होना
माँस खाते हुए देखना- चोट लगना 
अपने आपको मार खाते हुए देखना- फेल हो जाना 
हवा में उड़ते देखना- यात्रा होना
हाथ-पैर धोते हुए देखना- सारी चिंताएँ मिटना 
किसी दुल्हन का चुंबन लेता हुआ देखना- शत्रुओं के साथ समझौता होना
सर्प पकड़ना- सफलता प्राप्त होना 
ऊँट देखना- राज्य से भय होना
स्वप्न में दाढ़ी बनाते हुए देखना- दाम्पत्य जीवन की सा री कठिनाई समाप्त हो जाना। 
बड़े-बूढ़े का आशीर्वाद मिलना- मान सम्मान व प्रतिष्ठा प्राप्त होना
गर्दन अकड़ जाना- धन की प्राप्ति होना
अपने को दूध पीता देखना- इज्जत मिलना
अपने को पानी पीते हुए देखना- भाग्य उदय 
कुत्ता काटना, कुत्ता पालना- संकट आना
उड़ता हुआ पक्षी देखना- इज्जत होना
मोर देखना- शोक होना
अपना विवाह होता देखना- परेशानी आना 
मांग भरते देखना- कोई शुभ कार्य होना 
दर्पण देखना- मन विचलित रहना
रेल में चढ़ना देखना- यात्रा होना 
पैर फिसल कर गिर जाना- अवनति होना
गऊ मिलना- भूमि लाभ होना
घोड़े से गिरता हुआ देखना- पद छूटना 
घोड़े पर चढ़ता हुआ देखना- पद लाभ होना
अपने आपको मरता हुआ देखना- सारी चिंताएँ मिट जाना। 

इसी प्रकार समुद्र, खिलता हुआ फूल देखना, युवती से मिलना, आशीर्वाद लेना, पुस्तक पढ़ना, साँप ड़सना, मंदिर देखना, जेवर मिलना, हाथी पर चढ़ना, फल आदि प्राप्त होना, शरीर पर गोबर लगते देखने से धन लाभ होता है। 

खून देखना, स्तनपान करना, शराब पीना, तेल पीना, मिठाई खाना, विवाह होना, पुलिस को देखना, अपना मुंडना करवाते देखने से मृत्युतुल्य कष्‍ट होता है। विधवा के दाढ़ी उगती देखना उसके पुनर्विवाह का संकेत है। विवाहित व्यक्ति या महिला अपने बाल सफेद होते हुए देखने से जीवनसाथी से वियोग या संबंध विच्छेद का योग बताता है।

पशु-पक्षी भी अवगत कराते हैं आपके आने वाले दिनों के बारे में

हर व्यक्ति की यही इच्छा होती है कि मेरा आने वाला दिन कैसा होगा| कहते हैं कि कई जानवरों को आपके भविष्य का पूर्वाभास हो जाता है लेकिन वह इसको बयां नहीं कर सकते हैं| आपको बता दें कि कई ऐसे जानवर हैं जिन्हें आपके आने वाले समय के बारे में पहले से ही ज्ञात हो जाता है जैसे कि कौआ, गाय, कुत्ता, बिल्ली और कबूतर| आपको यह सुनकर थोडा अचम्भा जरुर होगा लेकिन यह सौ फीसदी सच है|

तो आइये जाने कैसे यह पशु, पक्षी हमारे आने वाले समय के बारे में जान जाते हैं-

आपको बता दें कि अगर आप के घर कोई मेहमान आने वाला है तो कौआ को पहले से ही ज्ञात हो जाता है और भोर के समय आपके छत पर आकर चिल्लाएगा, इतना ही नहीं अगर आपके साथ कुछ बुरा या अशुभ होने वाला है तो आपके सिर पर चौंच मार के आपको बाता देगा। 

वहीँ, अगर कबूतर आपके घर आकर बसेरा लेने लगे हैं तो समझ जाइये कि आपके परिवार में से कोई सदस्य कम हो सकता है| कहने का तात्पर्य यह है कि उस व्यक्ति के घर में अकाल मृत्यु हो सकती है या धीरे-धीरे वो घर सुनसान होने वाला है।

इसके आलावा अगर आपके साथ कुछ बुरा या अशुभ होने वाला है तो कुत्ता आपके घर की तरफ मुंह कर के रोने लगेगा, वहीँ अगर कुछ आपके साथ अपशगुन होने वाला होता है तो बिल्ली रास्ता काट देती है|

इतना ही नहीं गाय भी आपके आने वाले दिनों के बारे में जान जाती है| अगर आपका कोई काम होने वाला है या आप किसी काम के लिए जा रहे हैं तब गाय रम्भा दे तो समझ लेना चहिए आपका सोचा हुआ काम पूरा होगा।

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कालसर्प दोष से मुक्ति पाने का आसान उपाय

अगर किसी मनुष्य की जन्मकुंडली में कालसर्प योग है, तो उसके जीवन में अनेक प्रकार की बाधाओं, हानि-परेशानी, दिक्कतों का सामना करना पडता है| जैसे, विवाह, सन्तान में विलम्ब, दाम्पत्य जीवन में असंतोष, मानसिक अशांति, स्वास्थय हानि, धनाभाव एवं प्रगति में रूकावट आदि| 

काल सर्प दोष के निवारण के लिए बारह ज्योतिर्लिंग के अभिषेक एवं शांति का विधान बताया गया है। यदि द्वादश ज्योतिर्लिंग में से केवल एक नासिक स्थित त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग का नागपंचमी के दिन अभिषेक, पूजा की जाए तो इस दोष से हमेशा के लिए मुक्ति मिलती है।

लेकिन हम आपको आज एक ऐसा करने में असमर्थ हैं तो करें ये सरल उपाय-

उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर के शीर्ष पर स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर (जो केवल नागपंचमी के दिन ही खुलता है) के दर्शन करें। सर्प सूक्त से उनकी आराधना करें। दुग्ध,शकर, शहद से स्नान व अभिषेक करें। यदि शुक्ल यजुर्वेद में वर्णित भद्री द्वारा नागपंचमी के दिन महाकालेश्वर की पूजा की जाए तो इस दोष का शमन होता है।

कालसर्प योग शांति के लिए नागपंचमी के दिन व्रत करें और काले पत्थर की नाग देवता की एक प्रतिमा बनवा कर उसकी किसी मन्दिर में प्रतिष्ठा करवा दें| इसके आलावा काले नाग-नागिन का जो़ड़ा सपेरे से मुक्त करके जंगल में छो़ड़ें।

ताँबा धातु की एक सर्पमूर्ति बनवाकर अपने घर के पूजास्थल में स्थापित करें, एक वर्ष तक नित्य उसका पूजन करने के बाद उसे किसी नदी/तालाब इत्यादि में प्रवाहित कर दें|

श्रावण कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि अर्थात नागपंचमी को उपवास रखें और उस दिन सर्पाकार सब्जियाँ खुद न खाकर, न अपने हाथों काटकर बल्कि उनका किसी भिक्षुक को दान करें|

नागपंचमी के दिन रुद्राक्ष माला से शिव पंचाक्षर मंत्र ॐ नमः शिवाय का जप करने से भी इसकी शांति होती है और इस दिन बटुक भैरव यंत्र को पूजास्थल पर रखने से भी इसका शमन होता है।

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जाने अंगों का फड़कने के शुभ-अशुभ फल

अंगों के फड़कने से भी शुभ अशुभ की सूचना मिलती है| प्रत्येक अंग का अलग-अलग महत्त्व होता है| उनके फड़कने का भी एक अलग अर्थ होता है| शरीर के विभिन्न अंगों का फड़कना भी भावी घटनाओं के होने का संकेत है| 

तो आइए जानते हैं किस अंग का फड़कना ज्योतिष के अनुसार शुभ है और किसका अशुभ :-

कुछ अंगों जैसे होंठ, कपाल, आंखे आदि को शुभ अंग माना गया है इनका फड़कना अच्छा माना जाता है|

अगर बांये पैर की पहली अंगुली फड़के तो लाभ होता है, इसे एक अच्छा शगुन माना जाता है वहीँ दांये पैर की पहली अंगुली फड़के तो उसे अशुभ संकेत माना जाता है।

पिंडलियां फड़कती हैं, तो यह आपके दुश्मन से परेशानी मिलने के संकेत है|

यदि कंधे फड़के तो भोग विलास में वृद्धी होगी|

बायां घुटना फड़के तो शुभ संकेत पाया जाता है,वहीँ दांया घुटना फड़के तो उसे अशुभ माना जाता है।

बाई जांघ फड़कना अच्छा संकेत माना जाता है। यह दोस्त से मदद मिलने के संकेत के तौर पर हैं।

बांये हाथ का अंगुठा फड़कना अशुभ माना जाता है।

वक्षःस्थल का फड़कना विजय दिलाने वाला होता है।

दोनों भौंहों के मध्य भाग फड़के तो सुख की प्राप्ति होती है।

मस्तक फड़के तो यह भूमि लाभ मिलने का संकेत माना जाता है।

यदि आंखों के पास का हिस्सा फड़के तो प्रिय व्यक्ति से मिलन का संकेत है।

आंखों के कोने फड़के तो यह धन प्राप्ति का संकेत है।

होंठों का फड़कना किसी प्रिय वस्तु के मिलने का संकेत है।

लड़कियों के लिए बाएं अंग फड़कना शुभ माना जाता है और दाएं अंग फड़कना अशुभ।

लड़कों के दाएं अंग फड़कना शुभ माना जाता है और बाएं अंग फड़कना अशुभ।

यह सांकेतिक फल है प्रायः सही बैठता है किन्तु कभी ये संकेत हास्यास्पद हो जाते है|

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हिन्दू विवाह: क्यों होते हैं सात फेरे और सात वचन

आपको पता है हिन्दू धर्मानुसार विवाह में सात फेरों के बाद ही शादी की रस्म पूरी होती है, सात फेरों के बाद वर और कन्या द्वारा सात वचन लिए जाते हैं। प्रात:काल मंगल दर्शन के लिए सात पदार्थ शुभ माने गए हैं। गोरोचन, चंदन, स्वर्ण, शंख, मृदंग, दर्पण और मणि इन सातों या इनमें से किसी एक का दर्शन अवश्य करना चाहिए। सात क्रियाएँ मानव जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। इसलिए इन्हें रोज जरूर करना चाहिए। शास्त्रों में माता, पिता, गुरु, ईश्वर, सूर्य, अग्नि और अतिथि इन सातों को अभिवादन करना अनिवार्य बताया गया है। 

हिन्दू धर्मानुसार ईष्र्या, द्वेष, क्रोध, लोभ, मोह, घृणा और कुविचार ये सात आंतरिक अशुद्धियाँ बताई गई हैं। अत: इनसे सदैव बचना चाहिए, क्योंकि इनके रहते बाह्यशुद्धि, पूजा-पाठ, मंत्र-जप, दान-पुण्य, तीर्थयात्रा, ध्यान-योग तथा विद्या ज्ञान ये सातों निष्फल ही रहते हैं। अत: मानव जीवन में सात सदाचारों का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है। इनका पालन करने से ये सात विशिष्ट लाभ होते हैं - जीवन में सुख, शांति, भय का नाश, विष से रक्षा, ज्ञान, बल और विवेक की वृद्धि होती हैं। 

इसीलिए ऐसा माना जाता है, क्योंकि वर्ष एवं महीनों को सात दिनों के सप्ताह में विभाजित किया गया है। सूर्य के रथ में सात घोड़े होते हैं जो सूर्य के प्रकाश से मिलनेवाले सात रंगों में प्रकट होते हैं। आकाश में इंद्र धनुष के समय वे सातों रंग स्पष्ट दिखाई देते हैं। दांपत्य जीवन में इंद्रधनुषी रंगों की सतरंगी छटा बिखरती रहे। इसीलिए शादी में सात फेरे और सात वचन लिए जाते हैं।

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एक्‍वेरियम लाता है आपके जीवन में धन, वैभव, सुख और समृद्धि

अगर आप अपने घर में रखे एक्‍वेरियम को सजावट का साधन मात्र मानते है तो यह गलत है क्योंकि यह एक्‍वेरियम सजावट के साथ- साथ आपके जीवन में सुख-समृद्धि लाने में भी सहयोग करता है। मछलियो के बारे में प्राचीन काल से ही विदीत है कि यह लक्ष्‍मी लाती हैं और इन्‍हे पालने वालों को धन की प्राप्‍ती होती है। इसी आधार पर प्राचीन काल से राजा महाराजा अपने किले में एक छोटा सा तालाब बनवाते थे और उसमे मछलियां पालते थे। 

आज हम आपको बताते है कि एक्‍वेरियम किस तरह से आपके जीवन में धन, वैभव, सुख, समृद्धि लाता है। एक्‍वेरियम पारिवार में प्रेमपूर्ण माहौल बनाए रखता है, परिवार में कलह आदि होने से बचाता है। एक्‍वेरियम में मछलियों का जल में विचरण करना, आपके विकास के मार्ग प्रसस्‍त करता है।यही नहीं अगर परिवार के उपर कोई विपत्ति आने वाली होती है तो मछलियाँ अपने ऊपर ले लेती हैं और एक्‍वेरियम में रखी किसी मछली की अकस्‍मात मौत हो जाती है। अगर आप जहाँ काम करते हैं वहां एक्‍वेरियम को रखते हैं तो आप में सदैव नयी उर्जा भरता रहेगा| एक्‍वेरियम मानसिक संतुष्‍टी, और दिमाग में नये और अच्‍छे विचार लाता है। 


एक्‍वेरियम किस दिशा में रखें, किस दिशा में न रखें :-

वास्‍तुशास्‍त्र के अनुसार एक्‍वेरियम को सदैव घर के उत्‍तर-पूर्व के कोने में रखें, कभी भी कमरे के मध्‍य या कमरे के बीच के टेबल आदि पर न रखें। एक्‍वेरियम को कभी भी दक्षिण दिशा में नहीं रखना चाहिए। रात में कमरे की बत्‍ती बन्‍द करने के बाद भी एक्‍वेरियम की लाईट जलती रहनी चाहिए। इससे घर में किसी तरह बुरी रूहे या गलत ताकते या प्रेत आत्माएं प्रवेश नहीं कर सकती है।

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जहां आज भी मौजूद है अंग्रेजों की 'नील कोठी'

बिहार के पूर्णिया जिले में 'नील कोठी' के अवशेष आज भी मौजूद हैं, जहां कभी अंग्रेज प्रशासक नील तैयार करवाते थे। अब यहां के किसान संसाधनहीन होने के कारण हालांकि उन्नत खेती भी नहीं कर पा रहे हैं। इतिहासकारों के मुताबिक, अंग्रेज प्रशासक मेक्स इलटे ने पूर्णिया जिले के बड़हरा कोठी प्रखंड में किसानों पर दबाव बनाकर वर्ष 1769 में 1400 एकड़ में नील की खेती शुरू करवाई थी। इसके बाद नील की खेती के लिए उपयुक्त इस जमीन पर उनका व्यापार बढ़ता चला गया।

एक बुजुर्ग सत्यनारायण तिवारी ने बताया कि वर्ष 1775 में अंग्रेजों ने यहां 'काझा कोठी' का निर्माण करवाया और यहीं से वे दूर-दूर तक फैली नील की खेती को देखते थे। उन्होंने बताया कि इस प्रखंड क्षेत्र में तब 1400 एकड़ में नील की खेती होती थी। उनकी बातों को सच मानें तो यहां प्रतिवर्ष चार सौ मन (एक मन बराबर 37.500 किलोग्राम) से ज्यादा नील तैयार होता था।

नील खेती के स्मारक स्थल बड़हरा कोठी और काझा कोठी को प्रशासन द्वारा स्थानीय स्तर पर एक दर्शनीय स्थल का रूप दिया गया है। काझा कोठी के विशाल तालाब के किनारे नववर्ष के अवसर पर जिले के दूर-दूर से लोग पिकनिक मनाने पहुंचते हैं। वहीं बड़हरा कोठी पूर्णियां के धमदाहा प्रमंडल का एक ऐतिहासिक और स्थानीय पर्यटन स्थल है। इसे भी स्थानीय प्रशासन ने सुंदर रूप देने की कोशिश की है और तालाब के किनारे पेड़-पौधे तथा रंग-बिरंगे फूल लगाए गए हैं।

काझा कोठी और बड़हारा कोठी देखने की इच्छा रखने वालों को पूर्णियां से बड़हरा जाने वाली बस पर बैठना चाहिए। पूर्णियां से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर काझा कोठी है, जहां तक पहुंचने में बस से मुश्किल से आधा घंटा लगता है। यही बस आगे बड़हरा कोठी तक जाती है। बड़हरा कोठी बड़हरा ब्लॉक कॉलोनी के पास है।

तिवारी ने बताया कि खेत में उपजे नील को बंगला के सामने ही बड़े-बड़े कड़ाह में डाल कर गर्म किया जाता था और शुद्ध नील तैयार किया जाता था। यही कारण है कि मेक्स इलटे की कोठी को ही 'नील कोठी' के नाम से पुकारा जाने लगा था। वैसे नील कोठी के नाम पर अब कुछ खास नहीं बचा है, परंतु कुछ दीवारों के अवशेष लोगों को नील कोठी की याद दिलाते हैं।

ग्रामीण अखिलेश कुमार बताते हैं कि आज भी नील कोठी में बड़े-बड़े कड़ाह मौजूद हैं। उन्होंने बताया कि जिस चूल्हे पर नील के कड़ाह को गर्म किया जाता था उसका भी अस्तित्व इस कोठी में आज देखा जा सकता है। नील कोठी हालांकि अब खंडहर हो गया है, परंतु आज भी यहां आने वाले लोगों में इस कोठी को देखने की उत्सुकता जरूर होती है।

कुमार बताते हैं कि नील की सफाई करने के बाद जो पानी निकलता था उसके लिए एक तालाब का निर्माण करवाया गया था, जो आज भी मौजूद है। उन्होंने बताया कि इस प्रखंड क्षेत्र में करीब 80 वर्षो तक नील की खेती चली थी। अंग्रेजी शासन काल में ही धीरे-धीरे नील की खेती बंद हो गई। वे कहते हैं कि स्थानीय लोगों ने नील कोठी की ईंटें भी निकाल लीं, जिस कारण अब दीवारों का अस्तित्व भी समाप्त होने के कगार पर है।

ग्रामीण बुजुर्ग परमेश्वर तिवारी बताते हैं कि अंग्रेज यहां से तैयार नील नागौर नदी तथा कदईधार नदी से नाव द्वारा शहरों में भेजते थे। तिवारी की मानें तो प्रारंभ में यहां के किसान नील की खेती करने को तैयार नहीं थे, फिर भी अंग्रेज जबरन उनसे यह सब करवाते थे। बाद में मुनाफा होने पर किसान स्वयं नील की खेती से जुड़ते चले गए। यही वजह है कि यह क्षेत्र उस समय काफी समृद्ध था, मगर अब यहां के किसान पिछड़े हुए हैं।

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अरे ! यहां तो हाथी भी हो गये कच्ची के शौकीन

‘‘सबको मालूम है, मैं शराबी नहीं, फिर भी कोई पिलाये तो मैं क्या करुं....‘‘ पंकज उधास की यह गजल वैसे तो शराब के शौकीनों द्वारा काफी पसंद की जाती है लेकिन आज कल यह गजल जनपद लखीमपुर खीरी के सिंगाही क्षेत्र के जंगली हाथियों पर बिल्कुल सटीक बैठ रही हैं। कहा जाता है कि जब आदमी शराब पीना शुरू करता है और उसका आदी हो जाता है तो उसकी लत जल्दी नही छूटती और उसी लत के चलते वह कभी कभी बेचैन होने लगता है। यहां कुछ ऐसा ही हाल जंगली हाथियों का है। प्राप्त जानकारी के अनुसार जनपद के सिंगाही क्षेत्र में नेपाल बार्डर की एसएसबी कृष्णा नगर की चैकी के पास आधा दर्जन हाथियों का झुण्ड लहन पीकर बेहोश होकर जमीन पर लुढ़क गया। जंगल से निकल कर हाथी किसानों की धान, गन्ना ,और मक्के की फसल को तो बर्बाद कर ही रहे थे इसके साथ ही जंगल किनारे अवैध कच्ची शराब बनाने वाले कारेाबारी भी अब हाथियों के निशाने पर आ गये है। जंगल से निकल कर फसल नष्ट करने के इरादे से बाहर आये जंगली हाथियों के एक झुण्ड ने शराब बनाने के लिये रखी गयी लहन का क्या सेवन कर लिया कि अब शायद यह उनकी पहली पसन्द बन गया है। 

कहने सुनने में शायद यह बात अजीब जरुर लगती होगी लेकिन हकीकत यही है कि जंगली हाथी अब कच्ची शराब के शौकीन हो गये हैं। क्षेत्र में सैकड़ो एकड़ गन्ना, धान, मक्का की फसल हाथियो की भेंट चढ़ चुकी है, हालत यह है कि जहां एक ओर लोग बाग अब अपनी फसलों को बचाने के लिये खेतों पर जाने से भी डरने लगे है। वहीं दूसरी ओर अब जंगल के किनारे अवैध कच्ची शराब बनाने वाले भी हाथियों के निशाने पर आ गयें है। आबकारी व पुलिस विभाग की मिलीभगत के चलते कच्ची शराब बनाने वाले कारोबारी जंगल के किनारे का ही इलाका चुनते है वहीं वह लोग कच्ची बनाने के लिये ड्रम में पानी भरकर उसमें गुड, खाण्डसारी, या शीरा मिला देते है, और कुछ दिनो के लिये छोड़ देते है। दो तीन दिन के बाद यह लहन कच्ची शराब बनाने के लिये तैयार हो जाता हैं। इस लहन से वह लोग दारू निकाले इससे पहले ही जंगली हाथियों का झुण्ड जंगल से बाहर आया और उनकी नजर लहन वाले ड्रम पर पड गयी और हाथियों ने जी भरकर उसे पी लिया। जब उनके उपर कच्ची का असर हुआ तो हाथियों ने क्षेत्र में जमकर उत्पात मचाया हाथियो के उत्पात से कच्ची बनाने वालो ने किसी प्रकार भाग कर अपनी जान बचाई। कच्ची का चस्का हाथियो को इस कदर लगा है कि अब हाथी कच्ची शराब के बगैर नहीं रह पा रहे है और हाथियों को कच्ची दारु की तलाश रहने लगी है। जंगल से निकल कर हाथियो के झुण्ड अब सबसे पहले कच्ची के लहन को ढूंढते नजर आते है। इसके चलते अब किसानो के साथ कच्ची बनाकर आजिविका चलाने वालो के सामने रोजी रोटी का संकट खडा हो गया है। कुछ ऐसा ही जनपद के सिंगाही क्षेत्र के अंतर्गत ग्राम महराजनगर, पचपेडा माझा, बघौडिया, रहीमपुरवा, इच्छानगर, रामनगर, में हुआ जहाँ कच्ची के सहारे रोजी रोटी कमाने वाले लोगो की लहन को हाथी पी गये और जब उन्हें नशा चढ़ा तो कच्ची बनाने वालों की शामत आ गयी। 

कच्ची शराब बनाने के लिए रखी जाने वाली लहन में चूकिं गुड और खाण्डसारी के अलावा कुछ अन्य मादक वस्तुयें भी कारोबारी मिलाते है, जिसके कारण लहन स्वादिष्ट हो जाती है। लोगों के अनुसार इसका नशा भी ठीक ठाक चढ़ता है, इस कारण हाथी उसे खूब पसन्द कर रहे है। हाथियों को कच्ची का स्वाद मिल जाने के कारण अब किसानो के साथ कच्ची बनाने वाले भी हाथियों के निशाने पर आ गये है। वैसे जब हाथियों का झुण्ड जंगल से निकलकर किसानों की फसलें तबाह करते थे तब किसान उन्हें गोले व पटाखे दगाकर भगा देते थे लेकिन अब ऐसा नही है। बताया जाता है कि शराबी हाथियों मे से एक हांथी बहरा भी है जो किसी की भी नही सुनता है। एक तो बहरा दूसरे कच्ची के नशे में धुत उस हाथी पर गोले व पटाखों का कोई असर नहीं होता हैं और वह वहां से जाने का नाम ही नही लेता है लेकिन इससे वन विभाग को कोई मतलब नही है वन विभाग के ही नक्शे कदम पर चलता हुआ पुलिस विभाग भी जान कर भी अनजान बना हुआ हैं। हाथी गरीब किसानों की चाहे जितनी फसल बर्बाद करे उससे किसी को फर्क नही पड़ता मगर यदि कोई व्यक्ति जंगल में पेड़ों से गिरी हुयी जलौनी लकड़ी अगर बीन बटोर लेता है तो उससे फारेस्ट विभाग व पुलिस विभाग दोनो अपनी जेबें भरने के लिए पूरी कानूनी कार्यवाही दिखाते हुए अपनी जेबें भरने से बाज नहीं आते हैं। एक ओर जहां फसल बचाव के लिय लोग अपने आप हाथियों को भगाने हेतु उपचार में जुट जातेे है। वहीं दूसरी ओर कच्ची शराब पीने का मजा ले चुके हाथियों का झुण्ड नशेड़ी हो चुका है और वह अब मानने वाले नही है, इसीलिए वह प्रतिदिन जंगल से बाहर आ रहे है। आज इंडो नेपाल बार्डर की कृष्णा नगर की एस एस बी चैकी के पास लगभग आधादर्जन हाथी जहरीली कच्ची शराब बनाने वाली लहन को पीकर बेहोश होकर जमीन पर लुढ़क गये और घण्टों वहीं पड़े रहे। नशा उतरने के बाद लोगों द्वारा काफी मशक्कत के बाद उन्हें वहां से भगाया जा सका। 

यदि आबकारी विभाग व पुलिस विभाग द्वारा क्षेत्र में अवैध शराब के कारोबारियों द्वारा बनायी जा रही अवैध कच्ची शराब पर यदि समय रहते अंकुश नहीं लगाया गया तो नशे के आदी हो चुके हाथियों द्वारा कभी भी मचाई जाने वाली किसी भी प्रलयंकारी घटना से इंकार नहीं किया जा सकता। 

लखीमपुर-खीरी से एसडी त्रिपाठी की रिपोर्ट

सपने में दिखें यह चीजें तो जानिए क्या होगा आपके साथ.....

आज हम आपको आपके सपनो की दुनिया में ले चल रहे हैं, आपको बता दें कि अगर आप रात में सोते समय जो भी सपना देखते हैं और सोचते होंगे कि इस सपने का मतलब क्या है| आज हम आपको सपनों के बारे में कुछ संछिप्त जानकारी देते हैं जिससे आप अनुमान लगा सकते हैं कि आपने जो भी सपना देखा है उस सपने का क्या मतलब है| 

आपको बता दें कि कुछ सपने व्यक्ति अपने सपने में धन लाभ, विवाह, पत्नी, संतान, मृत्यु तथा उन्नति आदि कई बातों के बारे में पूर्व में सूचित कर देते हैं।

स्वप्न ज्योतिष के माध्यम से भविष्य में घटित होने वाले शुभ-अशुभ कार्यों की जानकारी मिलती है। अक्सर नींद में सपने सभी देखते हैं। कुछ सपने याद रह जाते हैं, कुछ याद नहीं रहते। जो सपने याद रहते हैं उनके आधार पर हम भविष्य के संबंध में अंदाजा लगा सकते हैं। ऐसे ही कुछ सपनों की आज हम बात कर रहे हैं जो आने वाले कल के सुखमय होने का संकेत देते हैं।

जो व्यक्ति सपने में तिल, चावल सरसों, जौ, अन्न, का ढेर देखता है। उस व्यक्ति को जीवन में सभी सुख मिलते हैं। वहीँ सपने में कलश, शंख और सोने के गहने देखने से जीवन में हर सुख मिलता है। 

जो व्यक्ति स्वयं को अगर सपने में चाय की चुस्की लेते देखें तो उसे जीवन में हर्ष उल्लास और समृद्धि मिलती है। जब कोई अपनी खोई हुई वस्तु प्राप्त करता है तो उसे आगामी जीवन में सुख मिलता है। यदि कोई व्यक्ति सपने में में इन्द्र धनुष देखता है तो उसका जीवन बहुत सुखमय और खुशियों से भरा होता है।

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..और आसुमल बन गए आसाराम बापू

यौन उत्पीड़न के आरोप में गिरफ्तार स्वयंभू संत आसाराम बापू का पिछले कुछ समय से विवादों से नाता-सा हो गया है। पिछले कुछ अर्से से उनके आश्रम में बच्चों की मौत, जमीन घोटाला, जानलेवा हमला करने के आरोप लगते रहे हैं। कहा जाता है कि संतों को क्रोध शोभा नहीं देता, वे खुद भी लोगों को क्रोध से दूर रहने का उपदेश देते हैं। लेकिन कभी 'ईश्वर की खोज में' घर छोड़ देने वाले 'संत' को क्रोध भी खूब आता है। 2009 में आश्रम के साधकों पर पुलिस कार्रवाई पर उन्हें क्रोध आ गया और उन्होंने कहा कि जब बच्चों पर अन्याय होता है तो मैं दुर्वासा का रूप ले लेता हूं। 

इतना ही नहीं उन्होंने मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी तक को चुनौती दे डाली थी| उन्होंने कहा था कि वाह मुख्यमंत्री, देखें तुम्हारी गद्दी कब तक और कैसे रहती है। बहराल, विभाजन के दौरान पाकिस्तान के सिंध प्रांत से विस्थापित होकर उनका परिवार गुजरात के अहमदाबाद पहुंचा था। आज उनका आश्रम देश कई शहरों में मौजूद है और उनके पास करोड़ों रुपये की संपत्ति बताई जाती है। 

आसाराम का जन्म सिंध प्रान्त के नवाबशाह जिले में सिंधु नदी के तट पर बसे बेराणी गांव में नगर सेठ श्री थाऊमलजी सिरुमलानी के घर 17 अप्रैल, 1941 हुआ था। उनका वास्तविक नाम 'आसुमल सिरुमलानी' है। उनके पिता का नाम थाऊमल और माता का नाम महंगीबा है। उस समय नामकरण संस्कार के दौरान उनका नाम आसुमल रखा गया था।

आसाराम के जन्म के कुछ समय बाद उनका परिवार विभाजन की विभीषिका झेलने के बाद सिंध में चल-अचल सम्पत्ति छोड़कर 1947 में अहमदाबाद शहर आ गया। धन-वैभव सब कुछ छूट जाने के कारण परिवार आर्थिक संकट के चक्रव्यूह में फंस गया। यहां आने के बाद आजीविका के लिए थाऊमल ने लकड़ी और कोयले का व्यवसाय आरम्भ किया और आर्थिक परिस्थिति में सुधार होने लगा। तत्पश्चात शक्कर का व्यवसाय भी शुरू किया। 

आसाराम की प्रारम्भिक शिक्षा सिन्धी भाषा से आरम्भ हुई। सात वर्ष की आयु में प्राथमिक शिक्षा के लिए उन्हें 'जयहिन्द हाईस्कूल', मणिनगर, (अहमदाबाद) में प्रवेश दिलवाया गया। माता-पिता के अतिरिक्त आसाराम के परिवार में एक बड़े भाई तथा दो छोटी बहनें थीं।

तरुणाई के प्रवेश के साथ ही घरवालों ने इनकी शादी करने की तैयारी की। वैरागी आसुमल सांसारिक बंधनों में नहीं फंसना चाहते थे, इसलिए विवाह के आठ दिन पूर्व ही 'ईश्वर की खोज में' वह चुपके से घर छोड़ कर निकल पड़े। काफी खोजबीन के बाद घरवालों ने उन्हें भरूच के एक आश्रम में खोज निकाला। सगाई हो जाने और परिवार की काफी दुहाई के बाद वह शादी के लिए तैयार हो गए। 

इसके बाद 23 फरवरी, 1964 को उन्होंने सिद्धि के लिए घर छोड़ दिया। घूमते-घूमते वह केदारनाथ पहुंचे, जहां उन्होंने अभिषेक करवाया। वहां से वह भगवान श्रीकृष्ण की लीलास्थली वृन्दावन पहुंचे। होली के दिन यहां के दरिद्रनारायण में भंडारा कर कुछ दिन वहीं पर रुके और फिर उत्तराखंड की ओर निकल पड़े। इस दौरान वह गुफाओं, कन्दराओं, घाटियों, पर्वतश्रंखलाओं एवं अनेक तीर्थो में घूमे। 

फिर वह नैनीताल के जंगलों में पहुंचे। 40 दिनों के लम्बे इंतजार के बाद वहां उन्हें सदगुरु स्वामी लीलाशाहजी महाराज मिले। लीलाशाहजी महाराज ने आसुमल को ज्ञान दिया और घर में ही ध्यान भजन करने का आदेश देकर 70 दिनों बाद वापस अहमदाबाद भेज दिया।

साबरमती नदी के किनारे की उबड़-खाबड़ टेकरियों (मिट्टी के टीलों) पर भक्तों द्वारा आश्रम के रूप में 29 जनवरी, 1972 को एक कच्ची कुटिया तैयार की गई। इस स्थान के चारों ओर कंटीली झाड़ियां व बीहड़ जंगल था, जहां दिन में भी आने पर लोगों को चोर-डाकुओं का भय बराबर बना रहता था। लेकिन आश्रम की स्थापना के बाद यहां का भयावह एवं दूषित वातावरण बदल गया। 

आसाराम ने साबरमती तट पर ही अपने आश्रम से करीब आधा किलोमीटर दूर 'नारी उत्थान केन्द्र' के रूप में महिला आश्रम की स्थापना की। महिला आश्रम में भारत के विभिन्न प्रान्तों से एवं विदेशों से भी स्त्रियां आती हैं। इसके बाद सत्संग के लिए योग वेदान्त सेवा समिति की शाखाएं स्थापित की गईं। जिसमें लाखों की संख्या में श्रोता और भक्त पहुंचने लगे।

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सरयू का अस्तित्व संकट में

उत्तर प्रदेश में खैरीगढ़ स्टेट की राजधानी रही सिंगाही एक समृद्ध सांस्कृतिक संस्कृति को संजोये हुए है। कस्बे से एक किलोमीटर उत्तर में भूल-भुलैया स्थित है तो दूसरी ओर वास्तुकला की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण शिव मंदिर है। सरयू नदी पहले इसी शिव मंदिर के पास से बहती थी लेकिन वर्तमान में लगभग एक किलोमीटर सिंगाही के जंगलों में सटकर बह रही है। इसका अस्तित्व सिंगाही व बेलरायां झील से अयोध्या तक रह गया है।

मयार्दा पुरुषोत्तम श्रीराम के अवतरण व लीला परधाम गमन की साक्षी रही सरयू का उद्गम स्थल यूं तो कैलाश मानसरोवर माना जाता है लेकिन अब यह नदी सिंगाही जंगल की झील से श्रीराम नगरी अयोध्या तक ही बहती है। भौगोलिक कारणों से इस नदी का अस्तित्व संकट में दिखाई देता है। मत्स्य पुराण के अध्याय 121 और वाल्मीकि रामायण के 24वें सर्ग में इस नदी का वर्णन है। कहा गया है कि हिमालय पर कैलाश पर्वत है, जिससे लोकपावन सरयू निकली है, यह अयोध्यापुरी से सटकर बहती है। वामन पुराण के 13वें अध्याय, ब्रह्म पुराण के 19वें अध्याय और वायुपुराण के 45वें अध्याय में गंगा, जमुना, गोमती, सरयू और शारदा आदि नदियों का हिमालय से प्रवाहित होना बताया गया है।

सरयू का प्रवाह कैलाश मानसरोवर से कब बंद हुआ, इसका विवरण तो नहीं मिलता लेकिन सरस्वती और गोमती की तरह इसका भी प्रवाह भौगोलिक कारणों से बंद होना माना जाता रहा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सरयू, घाघरा और शारदा नदियों का संगम तो हुआ ही है, सरयू और गंगा का संगम श्रीराम के पूर्वज भगीरथ ने करवाया था। 

सरयू का भगवान विष्णु के नेत्रों से प्रगट होना बताया गया है। 'आनंद रामायण' के यात्रा कांड में वर्णित है कि प्राचीन काल में शंकासुर दैत्य ने वेद को चुराकर समुद्र में डाल दिया और स्वयं वहां छिप गया। भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण कर दैत्य का वध किया और ब्रह्मा को वेद सौंप कर अपना वास्तवित स्वरूप धारण किया। उस समय हर्ष के कारण भगवान विष्णु की आंखों में प्रेमाश्रु टपक पड़े। ब्रह्मा ने उस प्रेमाश्रु को मानसरोवर में डालकर उसे सुरक्षित कर लिया। इस जल को महापराक्रमी वैवस्वत महाराज ने बाण के प्रहार से मानसरोवर से बाहर निकाला। यही जलधारा सरयू नदी कहलाई। बाद में भगीरथ अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाया और उन्होंने ने ही गंगा और सरयू का संगम करवाया।

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मुस्लिमों को लुभाने के लिए सपा का ट्रंप कार्ड

लोकसभा चुनाव के मद्देनजर उत्तर प्रदेश में मुसलमान मतदाताओं को अपने पाले में करने की खींचतान के बीच समाजवादी पार्टी (सपा) ने ट्रंप कार्ड चल दिया है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव की सरकार ने सरकारी योजनाओं में अल्पसंख्यकों को आरक्षण देने का निर्णय किया है। सरकार की इस निर्णय को मुसलमान मतदाताओं को लुभाने के कदम के रूप में देखा जा रहा है। 

बीते सप्ताह सपा सरकार ने राज्य सरकार द्वारा संचालित 30 विभागों की 85 योजनाओं में अल्पसंख्यकों को 20 प्रतिशत आरक्षण देने का महत्वपूर्ण निर्णय लिया। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की तरफ से इस निर्णय के पीछे तर्क दिया गया कि अल्पसंख्यक वर्ग को समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए शैक्षिक, आर्थिक व सामाजिक दूष्टि से विभिन्न आयोगों द्वारा विचार किया गया। यह आवश्यकता अनुभव की जा रही थी कि उन्हें भी समाज के अन्य वर्गो की भांति अवसर उपलब्ध कराते हुए सभी प्रकार की सुविधाएं इस प्रकार सुलभ कराई जाएं कि इन समुदायों को भी पिछड़ेपन से मुक्त करते हुए समाज की मुख्यधारा में लाया जा सके।

उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यक आबादी करीब 19 प्रतिशत है, जिसमें से करीब 16 प्रतिशत मुसलमान हैं। राज्य की करीब 30 लोकसभा सीटें ऐसी जहां पर मुसलमान नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं। ऐसे में सपा उन्हें अपने पाले में रखना चाहती है। कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार, बिजली संकट, बाढ़ जैसे तमाम मुद्दों पर घिरी अखिलेश सरकार का ये कदम आगामी लोकसभा चुनाव में अल्संख्यकों, खासकर मुसलमानों को खुश करने के रूप में देखा जा रहा है।

दरअसल, सपा को अंदेशा है कि विधानसभा चुनाव में सपा को वोट देने वाले मुस्लिम मतदाता का मूड लोकसभा चुनाव के समय बदल सकता है। वे सपा को अनदेखा कर कांग्रेस की तरफ जा सकते हैं, इसलिए सपा नेतृत्व ने आरक्षण का निर्णय लेकर बड़ा ट्रंप कार्ड खेला है।

सपा के प्रदेश प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी कहते हैं कि यह किसी का तुष्टीकरण नहीं, बल्कि समाज के पिछड़ों और वंचितों को विशेष अवसर देने के राम मनोहर लोहिया के सिद्धांत को अमली जामा पहनाने का प्रयास है। इसे वोट बैंक की राजनीति के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए।

वह कहते हैं कि कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने अपने शासनकाल में मुस्लिमों का इस्तेमाल सिर्फ वोट बैंक की तरह किया और भाजपा का तो मुस्लिम विरोध जगजाहिर है। ताजा राजनीतिक हालात में पार्टी नेतृत्व को लगता है कि अगर मुसलमान और पिछड़ा वर्ग सपा के साथ रहा तो लोकसभा सीटें जीतने में उसकी स्थिति नंबर एक पर रहेगी। अखिलेश द्वारा हाल में पिछड़े वर्ग के चार नेताओं को कैबिनेट मंत्री का पद देने से ऐसे संकेत मिलते हैं। 

उधर, कांग्रेस पार्टी का आरोप है कि अल्पसंख्यक समुदाय में सरकार के विरुद्ध बढ़ती हुई नाराजगी और आने वाले लोकसभा चुनाव में अल्पसंख्यक वोटों के खिसकने के डर से सपा सरकार ने 20 प्रतिशत भागीदारी देने के नाम पर प्रदेश के अल्पसंख्यक समाज पर डोरा डाला है।

कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता मारूफ खान कहते हैं कि विधानसभा चुनाव में सपा ने अपने घोषणापत्र में मुसलमानों को 18 प्रतिशत आरक्षण देने की बात कही थी जिसे पूरा न किए जाने से मुसलमानों में बढ़ती नाराजगी और अल्पसंख्यक हितों से जुड़े तमाम मुद्दों से अल्पसंख्यक समुदाय का ध्यान हटाने के लिए यह सिर्फ एक शिगूफा है। वहीं, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रदेश प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक कहते हैं कि सपा अल्पसंख्यकों के हित के नाम पर केवल मुस्लिम वर्ग को लाभ पहुंचाकर तुष्टीकरण की नीति पर काम कर रही है। उसका मकसद मुसलमानों का भला नहीं, बल्कि उनका वोट लेना है।

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