'तुनक मिजाजों' की खातिर कब तक शर्मिदा होते रहेंगे अखिलेश!

वर्ष 2014 में होने वाले आम चुनाव से पहले मुस्लिम मतों को अपने पाले में करने की कवायद में जुटे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के सामने नित नई चुनौतियां सामने आ रही हैं। उनके लिए कभी आजम खां परेशानी का सबब बन जाते हैं तो कभी दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री तौकीर रजा ही सरकार की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर देते हैं। इस बीच बड़ा सवाल यह है कि तुनक मिजाजी के लिए मशहूर इन मंत्रियों को मनाने के लिए अखिलेश आखिर कब तक शर्मिदगी झेलते रहेंगे?

मुजफ्फरनगर में हुई हिंसा के बाद से ही पश्चिमी उप्र में सपा के खिलाफ माहौल बना हुआ है। अपने खिलाफ बने इस माहौल को दबाने और मुस्लिम समुदाय की नाराजगी दूर करने के लिए ही अखिलेश यादव ने उस क्षेत्र विशेष से जुड़े लोगों को लालबत्तियों से नवाजा। मुजफ्फरनगर हिंसा में प्रभावित होने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के लिए उन्होंने सूबे का खजाना ही खोल दिया और 90 करोड़ रुपये के मुआवजे की घोषणा कर दी। यह बात अलग है कि अदालत की फटकार के बाद सरकार को अन्य समुदायों को भी इस योजना में शामिल करना पड़ा। बावजूद इसके मुस्लिम समुदाय लगातार उन पर मुसलमानों की बेहतरी के लिए काम न करने का आरोप लगा रहा है।

सरकार ने अल्पसंख्यकों को लुभाने के लिए ही 'हमारी बेटी, उसका कल' जैसी महात्वाकांक्षी योजना चलाई लेकिन बाद में इसकी राशि भी 30 हजार से घटाकर 20 हजार रुपये करनी पड़ी। दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री तौकीर रजा के इस्तीफे और मुख्यमंत्री अखिलेश को लिखे पत्र से एक बार फिर सपा की बेचैनी बढ़ गई है। तौकीर ने पत्र लिखकर सीधे तौर पर अखिलेश सरकार पर यह आरोप लगाया है कि वह मुसलमानों की बेहतरी के लिए काम नहीं कर पा रही है।

तौकीर रजा से पहले सूबे के एक अन्य कद्दावर मंत्री आजम खान ने भी सूबे के वित्त विभाग पर काफी गंभीर आरोप लगाते हुए मुख्य सचिव को एक पत्र लिखा था। पत्र में तब आजम खां ने गाजियाबाद हज हाउस के निर्माण को लेकर वित्त विभाग पर कई तरह के आरोप लगाए थे। सरकार की कार्यशैली को लेकर अल्पसंख्यक समुदाय के इन मंत्रियों की नाराजगी कई मौकों पर सामने आती रही हैं और सपा के नेता हर समय जलालत झेलने को तैयार रहते हैं। तौकीर के इस्तीफे से मचे तूफान के बीच अब उन्हें मनाने का भी दौर चल रहा है। इससे पूर्व भी उप्र विधानसभा चुनाव के समय इमाम बुखारी के दबाव के आगे सपा मुखिया मुलायम सिंह को झुकना पड़ा था। बुखारी ने भी सौदेबाजी के तहत सपा के सामने अपनी कई मांगें रखी थीं।

एक वरिष्ठ पत्रकार भी मानते हैं कि लोकसभा चुनाव की आहट को देखते हुए अल्पसंख्यक नेता अखिलेश को सीधेतौर पर 'ब्लैकमेल' कर रहे हैं। पंकज ने कहा, "अल्पसंख्यक नेताओं को यह बखूबी पता है कि मुजफ्फरनगर हिंसा के बाद सपा पश्चिमी उप्र में इस समय कठिन दौर से गुजर रही है। सपा की इसी कमजोर नब्ज को अल्संख्यक नेता पकड़े हुए हैं और इसी का असर है कि कभी इमाम बुखारी तो कभी तौकीर रजा जैसे लोग अखिलेश को ब्लैकमेल कर रहे हैं और उन्हें बार-बार मनाने के लिए सपा को मजबूर होना पड़ रहा है।"

सरकार की कार्यशैली को लेकर मुस्लिम समुदाय में नाराजगी और तौकीर रजा के इस्तीफे के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में सूबे के एक अन्य दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री आबिद खान ने इस मसले पर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। आबिद ने कहा, "इस मामले की पूरी जानकारी हमें नहीं है। तौकीर रजा ने किन बातों का जिक्र किया है और किस बात को लेकर उन्होंने यह कदम उठाया है, इसकी जानकारी करने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है।"

जाहिर है कि आबिद खान को तौकीर रजा के इस्तीफे की जानकारी तो थी लेकिन इस गंभीर मुद्दे पर उन्होंने कुछ न बोलने में ही भलाई समझी। इस बीच अल्पसंख्यक समुदाय की इस नाराजगी पर विरोधी भी चुटकी लेने से नहीं चूक रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की उप्र इकाई के प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा, "तुष्टीकरण की पराकाष्ठा पर पहुंचने वाली सपा सरकार को एक वर्ग विशेष के लिए इतना करने के बावजूद शर्मिदा होना पड़ रहा है। अल्पसंख्यक समुदाय के लिए योजनाओं का पिटारा खोलने वाली यह सरकार अन्य वर्गो के साथ ही अब इस समुदाय विशेष का भी भरोसा खो रही है।" 

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चिपैंजी को च्यवनप्राश तो गैंडे को गन्ना जूस

बिहार में बढ़ती ठंड का असर अब पटना का दिल कहे जाने वाले संजय गांधी जैविक उद्यान के जानवरों पर भी देखने को मिल रह है। ठंड से बचाने के लिए शेर को भरपूर मांस दिया जा रहा है, चिपैंजी को च्यवनप्राश और छुहारा दिया जा रहा है तो गैंडे को गन्ने का जूस देकर उसे वातावरण के अनुकूल रखा जा रहा है।

पटना सहित राज्य के लगभग सभी इलाकों में शीतलहर का प्रकोप है। इस कारण उद्यान के जानवरों के रहने के लिए भी खास व्यवस्था की गई है। संजय गांधी जैविक उद्यान के एक अधिकारी की मानें तो शेर और बाघों के कटघरों में फूस के टाट लगा दिए गए हैं और ब्लोअर भी चलाया जा रहा है। सांपघर में सांपों को गरमी पहुंचाने के लिए ज्यादा वाट के बल्ब जला दिए गए हैं और कंबल की व्यवस्था की गई है।

चिपैंजी और बिग कैट के कटघरों में ब्लोअर चल रहे हैं, तो बंदर, भालू और हिरण के बाड़ों में भी पुआल का इंतजाम कर दिया गया है। इसके अलाव ठंडी हवा से इन जानवरों को ज्यादा परेशानी न हो, इसके लिए उनके कटघरों को तिरपाल और टाट से घेरा भी गया है और कई जानवरों के लिए हीटर की व्यवस्था की गई है।

जैविक उद्यान के निदेशक एस़ चंद्रशेखर ने बताया कि ठंड के मौसम में हर वर्ष वन्यजीवों के भोजन की सूची में परिवर्तन किया जाता है। सभी पशु-पक्षियों के लिए मौसम के हिसाब से उनके शरीर में प्रतिरोधक क्षमता बनाए रखने के लिए ऐसी व्यवस्था की जाती है। उन्होंने बताया कि इस चिड़ियाघर में करीब 1,200 वन्यजीव हैं, जिनके खाने पर हर साल करीब नौ लाख रुपये खर्च होते हैं।

चिड़ियाघर घूमने आने वाले लोग भी मानते हैं कि ठंड के मौसम में खिली धूप में घूमने में तो मजा आता है लेकिन ठंड के कारण हिरण की मदमस्त चाल ठहरी होती है, तो चीतल और सांभर भी ठंड से ठिठुर रहे होते हैं और कोहरे भरे दिनों में तो वन्यजीव बाहर ही नहीं निकलते। मोर, तोता और शुतुरमुर्ग जैसे पक्षी धूप की आस में घोंसले से बाहर सुबह जरूर निकलते हैं, परंतु कोहरे के कारण फिर से घोंसलों में दुबक जाते हैं। इस समय हालत यह है कि ठंड की वजह से चिड़ियाघर घूमने आने वाले दर्शक काफी इंतजार के बाद भी वन्यजीवों को नहीं देख पा रहे हैं।

चिड़ियाघर प्रशासन ने पशु-पक्षियों को ठंड से बचाने के लिए मुकम्मल व्यवस्था की है। उद्यान के अधिकारी ने बताया कि शेर, बाघ और तेंदुए के खाने में मांस की मात्रा बढ़ा दी गई है और नाश्ते में चिकन परोसा जा रहा है। चिपैंजी को ठंड से बचाने के लिए च्यवनप्राश, अनार, सेब, काजू और बादाम दिया जा रहा है तथा भालू और बंदर को अंडे खिलाकर उन्हें सर्दी से बचाने का प्रयास किया जा रहा है।

उन्होंने बताया कि वन्यजीवों के लिए महुआ की व्यवस्था की गई है और उनके भोजन में गुड़ की मात्रा बढ़ा दी गई है। गैंडे, हिरण और हाथी के लिए गन्ने के जूस की व्यवस्था की गई है। अधिकारियों ने बताया कि वन्यजीवों की सेहत का ख्याल रखते हुए ठंड में उन्हें कई तरह की दवाइयां, मल्टी विटामिन और मिनरल मिश्रण भी दिए जा रहे हैं। पटना की 152. 95 एकड़ भूमि में फैले इस उद्यान में 1,200 से ज्यादा पशु-पक्षी हैं। देश-विदेश से प्रतिदिन यहां सैकड़ों लोग घूमने आते हैं और पशुओं को देखकर रोमांचित होते हैं। 

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ज़िंदगी की रेस हारते घोड़े

कभी रेस में अपनी जांबाजी दिखाने वाले घोड़े आज जिंदगी के लिए मौत से लड़ रहे हैं। कुछ तो इस ज़िंदगी और मौत की लड़ाई में हार भी चुके हैं| यही घोड़े कल तक अपनी पीट पर घुड़सवारों को बैठाकर आंधी तूफ़ान की तरह दौड़ लगाते थे लेकिन आज वे भूख के कारण इतने कमजोर हो गए हैं एक पल के लिए भी खड़ा नहीं रहा जाता चक्कर खाकर गिर जाते हैं। फिलहाल देश में पशुओं के अधिकारों के लिए लड़ने वाले समूह ने उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले स्थित प्रजनन केंद्र से 49 घोड़ों को बदहाल हालत में छुड़ाया है|

बताते हैं कि फ्रेंडिकोज द्वारा संचालित चिकित्सा केंद्र में घोड़ों का इलाज चल रहा है। इनमें से चार की हालत गंभीर है। इन्हें बचाना मुश्किल हो रहा है। बाकी घोड़ों की हालत भी ठीक नहीं है। सभी इतने कमजोर हो चुके हैं कि गश खाकर गिर जाते हैं। इनके इलाज में संगठन से जुड़े 25 लोग दिन रात लगे हुए हैं। विशेष ध्यान देने के लिए रॉयल रेसिंग क्लब के विशेषज्ञ डा.प्रभू को बुलाया गया है। इनके आने के बाद से इलाज में तेजी आई है लेकिन स्थिति में बहुत अधिक सुधार नहीं हो रहा है। हालाँकि घोड़ों को बचाने के लिए विशेषज्ञों से सलाह ली जा रही है ताकि अन्य घोड़ों को बचाया जा सके|

यदि सूत्रों की माने तो इस स्टड फार्म में घोड़े 25 दिनों से भूखे थे| जिसकी जानकारी जानवरों की रक्षा के क्षेत्र में कार्यरत संगठन फ्रेंडिकोज को किसी तरह से मिली। संगठन के कई कार्यकर्ता मौके पर पहुंचे तो वहाँ की हालत देखकर हताश रह गए| देखा कि कई घोड़े भूख के कारण मर चुके थे जबकि कई ज़िंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहे थे| कार्यकर्ता जिंदगी व मौत से जूझ रहे 49 घोड़ों को लेकर दस ट्रक से आए। इनमें से पांच की हालत काफी गंभीर थी जिसकी मौत संगठन के चिकित्सा केंद्र में हो गई। एक छोटा बच्चा था वह भी इस बीच गुजर गया।

इस घटना को लेकर फ्रेंडिकोज की संचालिका गीता सेशमणि कहती हैं कि स्टड फार्म में घोड़ों की ऐसी हालत हो सकती है, ऐसा सपने में भी नहीं सोचा था। यही वजह थी कि अलीगढ़ स्थित फार्म के घोड़ों की हालत देखकर मन व्यथित हो गया। रेस में भाग लेने वाले घोड़ों की शरीर की हड्डियां दिख रही थीं। 15-20 घोड़े सामने ही जमीन पर गिरे दिखे जो खत्म हो चुके थे। जो घोड़े खड़े वह चक्कर खाकर गिर रहे थे। ऐसा क्यों हुआ, क्यों घोड़ों को भूखे छोड़ दिया गया, आदि जानकारी हासिल करने का प्रयास किया जा रहा है लेकिन अभी तक इसमें सफलता नहीं मिल पाई है।

फिलहाल इस फॉर्म का मालिक अभी फरार है और वहां मौजूद चार कर्मचारियों ने बताया कि उन्हें पिछले एक वर्ष से वेतन नहीं मिला है| कर्मचारियों ने बताया कि दूसरे सारे कर्मचारी छोड़कर चले गए हैं और इस फॉर्म का इस्तेमाल रेस के घोड़ों के प्रजनन के लिए होता है| उन्होंने कहा कि यहां अधिकांश घोड़े अच्छी नस्ल के थे| फॉर्म में मौजूद कर्मचारियों ने राहत दल को बताया कि इन जानवरों को पिछले कई महीनों से ऐसी ही हालत में छोड़ा हुआ है| कर्मचारियों ने कहा कि शुरुआत में घोड़े घास-फूस खाकर गुजारा करते थे और इसके बाद उन्होंने अपना मल ही खाना शुरू कर दिया लेकिन पिछले कुछ सप्ताह से उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं है|

बाबरी मस्जिद विध्वंस की 21वीं बरसी पर विशेष.......

6 दिसम्बर 1992 के दिन एक ऐसी बर्बर घटना घटी जिसे याद करके आज भी हमारी रूह कांप उठती है। धर्म के नाम पर जो कुछ हुआ वो न भुलाये जाने वाली घटना बन कर रह गई। लोग लड़े-भिड़े, कत्लेआम हुए, आज तक उन घावों के दर्द बरकरार हैं। और आज-तक उस घटना से उत्पन्न टकराव जारी है… आज के दिन कोई अपने आन मान की लड़ाई के लिए कोई शौर्य दिवस मनाता है, तो कोई कलंक दिवस, लेकिन जिन पर वो सब गुजरा उनसे पूछें वो …वो क्या मनाते हैं?…क्या सोचते हैं?…आज उस अमानुशिक घटना की 21 बरसी है।

गंगा-जमुनी तहजीब का संगम है अयोध्या, हिंदुओं के लिए रामलला, हनुमंतलाल और नागेश्वरनाथ जैसे तीर्थ का स्थान, कुंभ की नगरी यहीं मुस्लिमों के पैगंबरों, बौद्धों के धर्मगुरुओं और जैनियों के तीर्थकरों का केंद्र भी यहीं हैं…इस धरती ने समय-समय पर विदेशी के कई घाव झेले फिर भी शान से खड़ा रहा। लेकिन इस धरती के अपनों ने ही उसे ऐसे घाव दे डाले जिसके नासूर आज भी कायम हैं। ऐसा पहली बार नहीं हुआ देश में साम्प्रदायिक दंगे हुए। आजादी मिली तो दंगे, आजाद हुए तो दंगे। वर्ष 1947 में देश आजाद होने के साथ भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय हिन्दू- मुस्लिम एक दूसरे के खून के प्यासे बन गए। वर्ष 1984 में दो सिक्खों की गलती की सजा पूरे सिक्ख समुदाय को भुगतनी पड़ी और देश में नरसंहार हुआ। 1984 के जख्म के नासूर भरे नहीं थे कि 1992 में एक बार फिर देश के सीने पर एक घाव दे दिया गया। हिन्दू-मुसलमान आमने-सामने थे। एक बार फिर धर्म के आग में मासूमों की बलि चढ़ाई गई।

इसके बाद बांग्लादेश और पाकिस्तान समेत देश के भी कई हिस्सों में बेगुनाह हिन्दुओं का खून बहा। इस घटना कि सबसे बड़ी विडंबना ये थी कि इस नरसंहार में वह भी मारे गए जिन्हें यह तक मालूम न था कि अयोध्या का असली मुद्दा क्या है? बाबरी मस्जिद क्या है? फिर गुजरात में दंगे हुए। कब तक देश को धर्म के नाम पर इन दंगों को झेलना पड़ेगा।

अयोध्या की कहानी

1528: पांच सौ साल पहले अयोध्या में एक ऐसे स्थल पर मस्जिद का निर्माण किया गया जिसे हिंदू भगवान राम का जन्म स्थान मानते हैं। समझा जाता है कि मुग़ल सम्राट बाबर ने ये मस्जिद बनवाई थी जिस कारण इसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता था।

1853: फिर दंगा हुआ हिंदुओं का आरोप कि भगवान राम के मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण हुआ। इस मुद्दे पर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच पहली हिंसा हुई।

1859: ब्रिटिश सरकार ने तारों की एक बाड़ खड़ी करके विवादित भूमि के आंतरिक और बाहरी परिसर में मुस्लिमों और हिदुओं को अलग-अलग प्रार्थनाओं की इजाजत दे दी।

1885: मामला पहली बार अदालत में पहुंचा। महंत रघुबर दास ने फैजाबाद अदालत में बाबरी मस्जिद से लगे एक राम मंदिर के निर्माण की इजाजत के लिए अपील दायर की।

23 दिसंबर, 1949: करीब 50 हिंदुओं ने मस्जिद के केंद्रीय स्थल पर कथित तौर पर भगवान राम की मूर्ति रख दी। इसके बाद उस स्थान पर हिंदू नियमित रूप से पूजा करने लगे। मुसलमानों ने नमाज पढ़ना बंद कर दिया।

5 दिसम्बर, 1950: महंत परमहंस रामचंद्र दास ने हिंदू प्रार्थनाएं जारी रखने और बाबरी मस्जिद में राममूर्ति को रखने के लिए मुकदमा दायर किया। मस्जिद को ‘ढांचा’ नाम दिया गया।

17 दिसम्बर, 1959: निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल हस्तांतरित करने के लिए मुकदमा दायर किया।

18 दिसम्बर, 1961: उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर किया।

1984: विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने और राम जन्मस्थान को स्वतंत्र कराने व एक विशाल मंदिर के निर्माण के लिए अभियान शुरू किया।

1 फरवरी, 1986: फैजाबाद जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल पर हिदुओं को पूजा की इजाजत दी। ताले दोबारा खोले गए। नाराज मुस्लिमों ने विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया।

11 नवंबर 1986 को विश्व हिंदू परिषद ने विवादित मस्जिद के पास की ज़मीन पर गड्ढे खोदकर शिला पूजन किया।

1987 में उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ में एक याचिका दायर की कि विवादित मस्जिद के मालिकाना हक़ के लिए ज़िला अदालत में चल रहे चार अलग अलग मुक़दमों को एक साथ जोड़कर उच्च न्यायालय में उनकी एक साथ सुनवाई की जाए।

जून 1989: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने विहिप को औपचारिक समर्थन देना शुरू करके मंदिर आंदोलन को नया जीवन दे दिया।

जुलाई, 1989: भगवान रामलला विराजमान नाम से पांचवा मुकदमा दाखिल किया गया

9 नवम्बर, 1989: तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने बाबरी मस्जिद के नजदीक शिलान्यास की इजाजत दी।

25 सितम्बर, 1990: भाजपा अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली, जिसके बाद साम्प्रदायिक दंगे हुए।

नवम्बर 1990: आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया। भाजपा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया। सिंह ने वाम दलों और भाजपा के समर्थन से सरकार बनाई थी। बाद में उन्होंने इस्तीफा दे दिया।

अक्टूबर 1991: उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह सरकार ने बाबरी मस्जिद के आस-पास की 2.77 एकड़ भूमि को अपने अधिकार में ले लिया।

6 दिसम्बर, 1992: हजारों की संख्या में कार सेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी मस्जिद ढाह दिया, जिसके बाद सांप्रदायिक दंगे हुए। जल्दबाजी में एक अस्थाई राम मंदिर बनाया गया। प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने मस्जिद के पुनर्निर्माण का वादा किया।

16 दिसम्बर, 1992: मस्जिद की तोड़-फोड़ की जिम्मेदार स्थितियों की जांच के लिए एम.एस. लिब्रहान आयोग का गठन हुआ।

जनवरी 2002: प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यालय में एक अयोध्या विभाग शुरू किया, जिसका काम विवाद को सुलझाने के लिए हिंदुओं और मुसलमानों से बातचीत करना था।

अप्रैल 2002: अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर उच्च न्यायालय के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की।

मार्च-अगस्त 2003: इलाहबाद उच्च न्यायालय के निर्देशों पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में खुदाई की। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का दावा था कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष होने के प्रमाण मिले हैं। मुस्लिमों में इसे लेकर अलग-अलग मत थे।

सितम्बर 2003: एक अदालत ने फैसला दिया कि मस्जिद के विध्वंस को उकसाने वाले सात हिंदू नेताओं को सुनवाई के लिए बुलाया जाए।

अक्टूबर 2004: आडवाणी ने अयोध्या में मंदिर निर्माण की भाजपा की प्रतिबद्धता दोहराई।

जुलाई 2005: संदिग्ध इस्लामी आतंकवादियों ने विस्फोटकों से भरी एक जीप का इस्तेमाल करते हुए विवादित स्थल पर हमला किया। सुरक्षा बलों ने पांच आतंकवादियों को मार गिराया।

जुलाई 2009: लिब्रहान आयोग ने गठन के 17 साल बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी।

28 सितम्बर 2010: सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहबाद उच्च न्यायालय को विवादित मामले में फैसला देने से रोकने वाली याचिका खारिज करते हुए फैसले का मार्ग प्रशस्त किया।

30 सितम्बर 2010: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया।

6 दिसम्बर 1992 कैसे क्या हुआ..

1992: विश्व हिंदू परिषद, शिव सेना और भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया। इसके परिणामस्वरूप देश भर में हिंदू और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे जिसमें 2000 से ज़्यादा लोग मारे गए।

5 दिसंबर, 1992 लाखों की संख्या में भीड़ इकट्ठा हो रही है। दूर दूर से लोग इसमें हिस्सा लेने अयोध्या पहुँच रहें हैं। कारसेवको का नारा बार-बार गूंज रहा है... मिट्टी नहीं सरकाएंगे, ढांचा तोड़ कर जाएंगे। ये तैयारी एक दिन पहले की गयी थी। कारसेवकों की भीड़ ने अगले दिन 12 बजे का वक्त तय किया कारसेवा शुरू करने का। सबके चेहरे पर जोश और एक जूनून देखा जा रहा था।

6 दिसंबर, सुबह 11 बजे: सुबह 11 बजते ही कारसेवकों के एक बड़ा जत्था सुरक्षा घेरा तोड़ने की कोशिश करता है, लेकिन उन्हें वापस पीछे धकेला दिया जाता है। तभी वहां नजर आतें हैं वीएचपी नेता अशोक सिंघल, कारसेवकों से घिरे हुए और वो उन्हें कुछ समझाते हैं। थोड़ी ही देर में उनके साथ बीजेपी के बड़े नेता मुरली मनोहर जोशी भी इन कारसेवकों से जुड़ जातें हैं। तभी भीड़ में एक और चेहरा नजर आता है लालकृष्ण आडवाणी का। सभी सुरक्षा घेरे के भीतर मौजूद हैं और लगातार बाबरी मस्जिद की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं। कारसेवकों के नारे वातावरण में गूंज रहें हैं। सभी मंदिर के दरवाजे पर पहुंचतें हैं और मंदिर के दरवाजे को तोड़ने की कोशिश करतें हैं| पहली बार मस्जिद का बाहरी दरवाजा तोड़ने की कोशिश की जाती है लेकिन पुलिस इनके कोशिश को नाकाम करती है।

6 दिसंबर, सुबह साढ़े 11 बजे: मस्जिद अब भी सुरक्षित थी। आज के दिन ऐसी थी जो सदियों तक नासूर बने रहने वाली थी। तभी वहां पीली पट्टी बांधे कारसेवकों का आत्मघाती दस्ता आ पहुंचता है। उसने पहले से मौजूद कारसेवकों को कुछ वो कुछ समझातें हैं। सबके चेहरे के भाव से लगता है कि वो किसी बड़ी घटना के लिए सबको तैयार कर रहे हैं। तभी एक चौकाने वाली घटना होती है। बाबरी मस्जिद की सुरक्षा में लगी पुलिस की इकलौती टुकड़ी धीरे धीरे बाहर निकल रही है। न कोई विरोध, न मस्जिद की सुरक्षा की परवाह। पुलिस के निकलते ही कारसेवकों का दल मस्जिद के मेन गेट की तरफ बढ़ता है| दूसरा और बड़ा धावा बोला दिया जाता है। जो कुछ पुलिसवाले वहां बचे रह गए थे वो भी पीठ दिखाकर भाग खड़े होतें हैं।

6 दिसंबर, घडी में दोपहर के 12 बज रहे थे एक शंखनाद पूरे इलाके में गूंज उठाता है। वहाँ सिर्फ कारसेवकों के नारों की आवाज गूंज रही है। कारसेवकों का एक बड़ा जत्था मस्जिद की दीवार पर चढ़ने लगा है। बाड़े में लगे गेट का ताला भी तोड़ दिया गया है। लाखों के भीड़ में कारसेवक मस्जिद में टूट पड़तें हैं और कुछ ही देर में मस्जिद को कब्जे में ले लेतें हैं। तभी इस वक्त तत्कालीन एसएसपी डीबी राय पुलिसवालों को मुकाबला करने के लिए कहतें हैं कोई उनकी बातें नहीं सुनता है। सबके दिमाग में एक ही सवाल उभरा कि क्या पुलिस ड्रामा कर रही हैं। या कारसेवकों के साथ हैं। पुलिस पूरी तरह समर्पण कर चुकी होती है। हाथों में कुदाल लिए और नारे लगते हुए कारसेवक तब तक मस्जिद गिराने का काम शुरू कर देतें हैं। एक दिन पहले की गई रिहर्सल काम आई और कुछ ही घंटों में बाबरी मस्जिद को पूरी तरह ढहा दिया गया।

1990 बैच की आईपीएस अधिकारी अंजु गुप्ता का बयान: 1990 बैच की आईपीएस अधिकारी अंजु गुप्ता 6 दिसंबर 1992 को ढांचे के ध्वस्त होने के समय फैजाबाद जिले की असिस्टेंट एसपी थीं और उन्हें आडवाणी की सुरक्षा का जिम्मा दिया गया था। साल 2010 में आईपीएस अफसर अंजु गुप्ता ने कहा कि घटना के दिन आडवाणी ने मंच से बहुत ही भड़काऊ और उग्र भाषण दिया था। इसी भाषण को सुनने के बाद कार सेवक और उग्र हो गए थे। अंजु गुप्ता का कहना था कि वह भी मंच पर करीब 6 घंटे तक मौजूद थी, इसी 6 घंटे में विवादित ढांचे को ध्वस्त किया गया था लेकिन उस वक़्त मंच पर आडवाणी मौजूद नहीं थे।

6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिरा दी गई हजरों निर्दोष मारे गए। राजनीति में भी इसका असर देखने को मिला। इस घटना के बाद कल्याण सिंह की सरकार बर्खास्त कर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।

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वाह री यूपी पुलिस! जाँच में ही कर डाला घोटाला


अभी तक आपने उत्तर प्रदेश में हुए कई तरह के घोटाले सुने होंगे लेकिन अभी जिस घोटाले के बारे में बताने जा रहे हैं उसे सुनकर आप भी हैरान हो जायेंगे| उत्तर प्रदेश के मेरठ रेंज के छह जनपदों में संगीन वारदातों की विवेचना में बड़े घोटाले किये गए| जिसमें 40 दरोगा, इंस्पेक्टर और सीओ दागी पाए गए| इन दागी पुलिस अफसरों से न केवल विवेचनाएं ही छीनी गई बल्कि इसके साथ-साथ सभी को मिस कंडेक्ट देखकर उनके करेक्टर रोल में भी इसका उल्लेख किया गया है ताकि भविष्य में इनके प्रोन्नति में रुकावट बन सके|

पुलिस के एक अधिकारी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि डीआइजी ऑफिस पर लगातार विवेचनाओं में नाम बढ़ाने और निकालने की शिकायतें दर्ज होती रही हैं। जिसे शासन ने जब गम्भीरता से लिया तो पुलिस महानिदेशक के निर्देश पर डीआइजी ने पिछले तीन साल में लंबित चल रही विवेचनाओं की जांच बैठा दी। जाँच में यह निकलकर सामने आया कि मेरठ रेंज के छह जनपदों की समीक्षा में सभी संगीन विवाद लूट, हत्या और डकैती में धारा बढ़ाने, नाम निकालने और बढ़ाने का बड़े घोटाले का खुलासा हुआ। जिसमें 40 दरोगा, इंस्पेक्टर और सीओ दागी पाए गए|

पुलिस सूत्रों के मुताबिक, डीआइजी ने इन दागी विवेचकों से विवेचनाओं को छीन कर दूसरे विवेचकों से जांच कराने के निर्देश जारी कर दिए हैं। साथ ही सभी विवेचकों को मिस कंडेक्ट की कार्रवाई करते हुए उनके करेक्टर रोल में भी इसका उल्लेख कर दिया है। ताकि भविष्य में प्रमोशन न हो सके।

मेरठ में जो प्रमुख वारदातें हुई हैं वह इस प्रकार हैं- वर्ष 2011 में नौचंदी थाना क्षेत्र के हत्या का मामला, क्राइम संख्या-754 इसके अलावा इसी वर्ष लिसाड़ीगेट थाना क्षेत्र में डकैती, क्राइम संख्या-98| इसके अलावा वर्ष 2012 में कंकरखेड़ा में हत्या के मामले में भोलू पर नहीं हुई कार्रवाई, क्राइम संख्या-668| 2012 में की नौचंदी में लूट की बड़ी वारदात, क्राइम संख्या-568 वहीं, दागी विवेचक गाजियाबाद में 13, नोएडा में 4, बागपत में भी 4, हापुड़ में 3, मेरठ में 13 और बुलंदशहर में 3 | 
 

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मरीज की बहन के साथ नशे में धुत डॉक्टर व फार्मासिस्ट ने की छेड़खानी

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में स्थित लोकबंधु अस्पताल में बुधवार को शाम इमरजेंसी में ड्यूटी पर तैनात चिकित्सक और फार्मासिस्ट ने शराब के नशे में मरीज की बहन से छेड़खानी की। पीड़िता के आवाज लगाने पर मरीजों के परिजनों ने डॉक्टर व फार्मासिस्ट की जमकर पिटाई की| उसके बाद परिजनों ने अस्पताल परिसर में ही जमकर बवाल किया| 

प्राप्त जानकारी के अनुसार, अस्पताल की इमरजेंसी में रात आठ बजे ड्यूटी पर तैनात ईएमओ डॉ. दिनेश सिंह और फार्मासिस्ट सुभाष शराब ने शराब पी राखी थी| इस दौरान पिंटू को बेहोशी की हालत में परिजन इमरजेंसी लेकर आए थे। मरीज की गंभीर हालत होने की वजह से उसे भर्ती करवाकर वापस लौट गए थे। पीड़ित की देखभाल में लगी उसकी बहन पिंकी को अकेला देख नशे में धुत डॉक्टर और फार्मासिस्ट ने जैसे ही उसे दबोचने का प्रयास किया तो पीड़िता चिल्लाते हुए एक दम से बाहर की भागी। 

पीड़िता ने बताया कि बाद में डॉ. दिनेश और सुभाष अपनी जगह चुपचाप बैठ गए। पीड़िता के पिता का आरोप है कि इसके बाद मौकेपर पहुंचे अन्य मरीज के परिजनों जब डॉक्टर व फार्मासिस्ट से पूछताछ की तो मौकेपर पहुंचे अस्पताल के अधिकारियों ने चिकित्सकों को वहां बाहर निकलवा दिया।

वहीँ इस घटना को लेकर डॉ. सुरेश सिंह, सीएमएस लोकबंधु अस्पताल का कहना है कि इमरजेंसी में ड्यूटी पर तैनात चिकित्सक डॉ. दिनेश सिंह स्वयं न्यूरो के मरीज हैं। इसलिए वह किसी से भी भिड़ जाते हैं। सुभाष इंटर्न फार्मासिस्ट है। वहीँ छेड़खानी को लेकर उनका कहना है कि अस्पताल परिसर में ऐसी कोई भी घटना नहीं हुई है| केवल मरीज केपरिजन और डॉक्टर केबीच कहा सुनी हुई है। 

इसके अलावा राजधानी के सिविल अस्पताल की इमरजेंसी में भर्ती 55 वर्षीय मसूद अली की सुरक्षा गार्डो के साथ जमकर मारपीट हुई। मसूद अली मानसिक रोगी हैं| घटना की सूचना पर अस्पताल पहुंचे मरीज के परिजनों ने तोड़फोड़ करते हुए जमकर हंगामा काटा मौके पर पहुँची पुलिस ने समझा बुझाकर मामले को शांत कराया| 

हुआ यूँ कि सिविल अस्पताल की इमरजेंसी के बेड संख्या 13 पर भर्ती कैंट निवासी मसूद अली को बीते रविवार को भर्ती कराया गया था। मरीज के परिजनों ने बताया कि पीड़ित इमरजेंसी से बाहर की ओर निकल रहा था। तभी वहां पहुंचे ड्यूटी पर तैनात सुरक्षा गार्ड ने मरीज को धक्का मारते हुए अंदर जाने को कहा। इस पर मरीज गार्ड से भिड़ गया। इस दौरान सुरक्षा गार्ड ने तुरंत अपने अन्य साथियों को बुला लिया और मिलकर मरीज को पीटना शुरू कर दिया।

बेटे को पिटता देख मरीज के पिता ने इसकी जानकारी अपने परिजनों दी, तो कुछ समय में दर्जनों फौजी अस्पताल आ धमके और तोड़फोड़ मचाते हुए सुरक्षा गार्डो को ढूंढ़ना शुरू कर दिया। अस्पताल प्रशासन के व्यवहार से आहत होकर परिजन मरीज को इलाज के लिए दूसरे चिकित्सालय ले गए हैं।

उप्र की जेलों में कैदियों की सत्ता!

उत्तर प्रदेश की जेलों में जहां संख्या से लगभग दोगुना कैदी बंद हैं, वहीं इन जेलों को संभालने के लिए जेलरों की संख्या उतनी भी नहीं है जितनी होनी चाहिए। लोग तो यह भी कहते हैं कि जेलों में 'कैदियों की सत्ता' है। कर्मचारियों की कमी ने प्रदेश की जेलों में कैदियों व जेल के कर्मचारियों की संख्या के अनुपात को बिगाड़ दिया है, जिसके चलते अब जेलों में अब कैदी ज्यादा और उन पर नजर रखने वाले कम हो गए हैं। 

सूत्रों का कहना है कि कैदी इसका बड़ा फायदा उठा रहे हैं। जेलों में कैदियों की संख्या निर्धारित संख्या से दोगुना है। यही वजह है कि जेलों में अब अराजकता और निरंकुशता बढ़ गई है। दबी जबान पर लोग यह कहने से गुरेज नहीं कर रहे कि जेल में 'कैदियों की सत्ता' है। 

बताया जाता है कि प्रदेश में केवल उन्हीं जेलों में कर्मचारियों की कमी नहीं है जिनकी गिनती खास जेलों में की जाती है। वैसे तो प्रदेश में 65 जेल हैं जिनमें जेलरों के 87 पद हैं। लेकिन इनमें से 30 पद आजकल खाली पड़े हैं। यही कारण है कि ऐटा उरई, हरदोई, प्रतापगढ़, मिजार्पुर फतेहपुर और गाजीपुर जैसी जेलों में जेलर नहीं हैं। जहां जेलों में जेलरों की कमी है वहीं इन जेलों में कैदी ठूंस-ठूंस कर भरे हुए हैं। 

यही नहीं, जेलरों की कमी से जूझ रहे विभाग के दो जेलरों आलोक सिंह और शशिकांत को प्रदेश के कारागार मंत्री राजेंद्र चौधरी और राज्य मंत्री अभिषेक मिश्र के घर तैनात किया गया है। इस कमी को पूरा करने के लिए हालांकि, काफी समय से 3000 लोगों की भर्ती की बात कही जा रही है। अगर देखा जाए तो पुलिस विभाग ऊपर से लेकर नीचे तक अपने बड़े अधिकारियों की कमी से जूझ रहा है। 

प्रदेश में एडीजी का एक पद रिक्त पड़ा है। वहीं डीआईजी के चार पदों पर किसी अधिकारी को नहीं बैठाया गया है। इसी तरह जेल अधीक्षक के 64 पदों में से 28 पद रिक्त चल रहे हैं और एक निलंबित है। डिप्टी जेलरों के वैसे तो 448 पद हैं, लेकिन लगभग आधे 268 पद खाली हैं और सात निलंबित हैं। बंदी रक्षक व प्रधान बंदी रक्षकों के 2029 पद रिक्त है। कैदियों की सेहत की बात की जाए तो जेलों में चिकित्सकों के वैसे तो 134 पद हैं जिनमें से 46 पद खाली हैं। इसी प्रकार 134 फार्मेसिस्ट पदों में से 52 रिक्त हैं। 

कारागार मंत्री राजेंद्र चौधरी भी मानते हैं कि प्रदेश की जेलों में बंदी रक्षकों और डिप्टी जेलरों की कमी है। उन्होंने बताया कि जेलों में बंदी रक्षकों व डिप्टी जेलरों की कमी है। इस कमी को पूरा करने व नई भर्ती के लिए एक प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेज दिया गया है। 

उन्होंने कहा कि प्रदेश की जेलों में 48 हजार कैदियों के लिए स्थान है, जहां लगभग 84,000 कैदी बंद हैं। जेलों में कैदियों की निर्धारित संख्या से दोगुना कैदियों के होने की समस्या नए जिले बनने के कारण खड़ी हुई है, जिसे दूर करने के लिए सरकार एक दर्जन नई जेले बनवा रही है। उन्होंने कहा कि 2014 तक जेलों से जुड़ी हर समस्या हल कर ली जाएगी।

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गन्ना भुगतान की भेंट चढ़ा एक और किसान, प्रशासन बता रहा पारिवारिक कलह

प्रदेश सरकार की दबंगर्इ के चलते जनपद खीरी मे गन्ना किसानो द्वारा बकाया भुगतान को लेकर आत्महत्या करने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। जनपद के थाना भीरा क्षेत्र के बस्तौली गांव मे किसान सत्यपाल की आत्महत्या का मामला अभी ठण्डा भी नहीं हो पाया था कि थाना नीमगांव क्षेत्र मे एक और गन्ना किसान ने फांसी लगाकर अपनी जान गंवा दी। 

मिली जानकारी के मुताबिक थाना नीमगांव क्षेत्र के ग्राम पकरिया निवासी 45 वर्षीय छोटेलाल पुत्र मिश्रीलाल का क्षेत्र की कुम्भी चीनी मिल पर पिछले वर्ष का लगभग तीस हजार रुपया बाकी था। इस वर्ष भी उसने अपनी छह बीघा खेती मे गन्ना बोया था, छोटेलाल की मंशा थी कि पिछली बार न सही लेकिन इस बार चीनी मिल चलने पर भुगतान मिल जायेगा लेकिन प्रदेश सरकार की उदासीनता के चलते अभी तक चीनी मिले चालू नहीं हो सकी है। तनावग्रस्त गन्ना किसान छोटेलाल कर्ज के बोझ से दब रहा था, लगातार कर्ज अदा करने के बन रहे दबाव के कारण छोटेलाल ने फांसी लगाकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। बताया जाता है कि छोटे लाल सुबह ही अपने घर से निकल गया और दोपहर बाद ग्रामीणों ने रामेश्वर के खेत मे लगे आम के पेड़ से उसका शव फांसी पर झूलता पाया। 

शव मिलने की सूचना पूरे क्षेत्र मे आग की तरह फैली और गन्ना किसान की आत्महत्या की सनसनीखेज घटना से जिला प्रशासन भी हिल गया। आनन फानन मे सूचना पाकर मौके पर पहुंंची नीमगांव पुलिस ने शव को अन्त्य परीक्षण हेतु जिला मुख्यालय भेज दिया। किसान की आत्महत्या की सूचना जिले मे सूखे पत्तो मे लगी आग की तरह फैली और नेता भी अपनी राजनीतिक रोटिया सेेंकने के लिए मौके पर पहुंचना शुरु हो गये। इधर जिला प्रशासन इस घटना को यह कहकर टरकाने का प्रयास कर रहा है कि किसान ने गन्ना भुगतान के कारण आत्महत्या नहीं की है उसने पारिवारिक कलह के चलते आत्महत्या की है।

जनपद के अपर जिलाधिकारी विधा शंकर सिंह का कहना है कि मृतक के नाम छ:-सात बीघा खेती है, मृतक पर कोर्इ कर्जा नहीं है तथा न ही कुम्भी चीनी मिल पर उसका गन्ना भुगतान बकाया है। एडीएम साहब इस सम्बन्ध मे मीडिया को जारी एक प्रेस विज्ञपित मे पेरार्इ सत्र 2012-13 मे उसको प्राप्त गन्ना पर्चियो पर भुगतान किये जाने का प्रमाण उसके खाता संख्या व प्राप्त रकम को आंकड़ों सहित प्रस्तुत कर रहे है। 

प्रशासन भले ही गन्ना किसान द्वारा की गर्इ आत्महत्या को पारिवारिक कलह बता रहा हो लेकिन मृतक छोटेलाल की प्राथमिक विधालय मे रसोइयां पत्नी तथा दो लड़के व तीन लड़कियो पर से छत्रछाया हट गर्इ है।

मुंबई: 8 माह, 229 रेप, 8 गैंगरेप

देश की व्यवसायिक राजधानी मुम्बई में वर्ष 2013 के पहले आठ माह में बलात्कार के 229 और सामूहिक दुष्कर्म के आठ मामले सामने आए जिनमें अधिकतर मामलों में पीड़िता आरोपी को जानती थी और उनमें से ज्यादातर ‘मित्र और प्रेमी’ या पड़ोसी थे।

सामाजिक कार्यकर्ता अनिल गलगली ने सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआई) के तहत ये सूचनाएं जुटायी हैं जिससे पता चला कि इस साल अगस्त तक कम से कम बलात्कार के 229 और सामूहिक बलात्कार के 8 मामले सामने आए। सामूहिक बलात्कार के मामलों में शक्ति मिल में हुई सामूहिक बलात्कार की दो घटनाएं शामिल हैं जिन्होंने देश को हिला दिया था।

सामाजिक कार्यकर्त्ता ने कहा है कि वर्ष के अंत तक इन मामलों की संख्या और बढ़ जाएगी क्योंकि केवल नवंबर में ही उपनगरीय दिनदोशी और बोरीवली इलाकों में नाबालिग लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार की दो घटनाएं हुईं। पिछले साल यहां बलात्कार के 223 मामले और सामूहिक बलात्कार के 8 मामले सामने आए थे। जबकि 2011 में बलात्कार के 211 और सामूहिक बलात्कार के 9 मामले दर्ज किए गए थे। इससे पहले 2010 में कुल 188 बलात्कार के मामले जबकि सात सामूहिक बलात्कार के मामलों का पता चला था।

मुम्बई में हो रही इस तरह की घटनों को लेकर बॉलीवुड अभिनेत्रियां भी अपने आप को असुरक्षित पाती हैं| अभी हाल ही में एक फ़ोटो जर्नलिस्ट के साथ हुए बलात्कार के मामले में बॉलीवुड अभिनेत्रियों ने कुछ इस तरह अपनी प्रतिक्रिया दी थी| बॉलीवुड अभिनेत्री प्रीति जिंटा ने कहा था कि हमें उस डर और अनिश्चितता के माहौल को दूर करने के लिए उपचारात्मक समाधान निकालने होंगे, जिनका महिलाओं को सामना करना पड़ता है। नहीं तो हम और अधिक आत्मकेंद्रित हो जाएंगे। वहीँ, स्वरा भास्कर का कहना था कि क्या मैं मुंबई में सुरक्षित महसूस करती हूं? हां या ना। हां, इसलिए चूंकि यहां दिन या रात किसी भी समय बाहर निकलना आसान है। और ना इसलिए क्योंकि मुंबई में मुझसे कई बार छेड़छाड़ हो चुकी है। मुंबई भी देश के अन्य राज्यों की जितनी ही असुरक्षित है।

वहीँ, सोफी चौधरी ने कहा था कि जब मैं अपनी मां के साथ लंदन से मुंबई आई तो हमने इसे लड़कियों के लिए विश्व के सुरक्षित शहरों में से एक पाया था। लेकिन अब ऐसा नहीं रहा। अगर आप अकेली लड़की हैं तो यहां आपको लगातार अपनी चौकीदारी करनी पड़ेगी। जबकि ऋचा चड्ढा का कहना था कि मुझे स्वीकार करना पड़ेगा कि यहां हमेशा सुरक्षित महसूस नहीं करती हूं। लेकिन क्या मैं किसी अन्य शहर में सुरक्षित हूं?

इसके अलावा अमृता राव ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि यह शहर कामकाजी महिलाओं के लिए कतई सुरक्षित नहीं है। जब मैं शूटिंग पर होती हूं तो स्वयं को अनचाहे लोगों से बचाने के लिए अंगरक्षक रखने पड़ते हैं। मनीषा लांबा का कहना था कि यह पेचीदा सवाल है। मैं मुंबई में देश के अन्य शहरों जितना ही सुरक्षित महसूस करती हूं। तनीशा चटर्जी ने कहा था, "मैं बीते पांच वर्षो की तुलना में अब कम सुरक्षित अनुभव करती हूं।" शिल्पा शुक्ला का कहना था कि मैं जब और जहां भी हूं स्वयं को सुरक्षित महसूस करती हूं।

किशोरी का यौन शोषण करने वाले सीओ का तबादला, जांच शुरू

बाराबंकी| नौकरी का झांसा देकर किशोरी का यौन शोषण करने वाले आरोपी सीओ मुसाफिरखाना विपुल कुमार श्रीवास्तव का तबादला अपराध साखा अपराध अनुसंधान विभाग (सीबीसीआइडी) लखनऊ के लिए कर दिया गया। इसके अलावा पीड़िता को धमकाने में कोतवाली प्रभारी मुसाफिरखाना मनोज तिवारी व सिपाही अरुण तिवारी को भी लाइन हाजिर कर दिया गया है। वहीं, दूसरी ओर किशोरी की मेडिकल परीक्षण रिपोर्ट आ गई है, जिसमें दुष्कर्म की पुष्टि हुई है। 

वहीं इस मामले को लेकर पीड़ित लड़की के पिता ने बताया कि सीओ विपुल कुमार श्रीवास्तव ने इस मामले को दबाने के लिए उन्हें एक सिपाही के माध्यम से दो लाख रुपये देने की पेशकश की थी जिसे उसने ठुकरा दिया था। उसके बाद मुसाफिरखाना कोतवाली प्रभारी मनोज तिवारी ने सुलह को पीड़िता के पिता को फर्जी मुकदमे में फंसा जेल भेजने, जान से मारने की धमकी दी थी।

वहीँ पुलिस सूत्रों से खबर मिल रही है कि मुसाफिरखाना एसओ मनोज तिवारी के स्थान पर एसपी हीरालाल ने जायस कोतवाली के एसआई जेपी चौबे को मुसाफिरखाना कोतवाली का प्रभार सौंपा है। वहीं कमरौली एसओ एसके यादव को मोहनगंज थाने की कमान दी गई है। जगदीशपुर के एसआई एपी तिवारी को कमरौली का एसओ बनाया गया है।

शेर के बच्चे की तरह निर्भीक होकर फांसी के तख्ते की ओर बढ़ा था यह सेनानी

भारतीय स्वाधीनता संग्राम की क्रांतिकारी धारा में त्याग और बलिदान जज्बा पैदा करने और देश में आजादी के लिए जान न्योछावर करने का साहस भरने वाले प्रथम सेनानी खुदीराम बोस माने जाते हैं। उनकी शाहदत ने हिंदुस्तानियों में आजादी की जो ललक पैदा की उससे स्वाधीनता आंदोलन को नया बल मिला। खुदीराम बोस मात्र 19 साल की उम्र में देश के लिए फांसी के फंदे पर झूल गए थे। बंगाल में मिदनापुर जिले के हबीबपुर गांव में त्रैलोक्य नाथ बोस के यहां 3 दिसंबर 1889 ई. को जन्म लेने वाले खुदीराम बोस जब बहुत छोटे थे तभी उनके माता-पिता का निधन हो गया था। उनकी बड़ी बहन ने उनका लालन-पालन किया था। 

बंगाल विभाजन (1905 ई.) के बाद खुदीराम बोस स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे। सत्येन बोस के नेतृत्व में खुदीराम बोस ने अपना क्रांतिकारी जीवन शुरू किया था। खुदीराम बोस राजनीतिक गतिविधियों में स्कूल के दिनों से ही भाग लेने लगे थे। वे जलसे जलूसों में शामिल होते थे तथा अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ नारे लगाते थे। उन्होंने नौवीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी और सिर पर कफन बांधकर जंग-ए-आजादी में कूद पड़े।

वे रिवोल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बने और वंदेमातरम पंफलेट वितरित करने में बड़ी भूमिका निभाई। पुलिस ने 28 फरवरी, सन 1906 ई. को सोनार बंगला नामक एक इश्तहार बांटते हुए बोस को दबोच लिया। लेकिन बोस पुलिस के शिकंजे से भागने में सफल रहे। 16 मई, सन 1906 ई. को एक बार फिर पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया, लेकिन उनकी आयु कम होने के कारण उन्हें चेतावनी देकर छोड़ दिया गया था। 6 दिसंबर, 1907 को बंगाल के नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर किए गए बम विस्फोट की घटना में भी बोस भी शामिल थे। 

कलकत्ता (अब कोलकाता) में किंग्सफोर्ड चीफ प्रेंसीडेसी मजिस्ट्रेट बहुत सख्त और क्रूर अधिकारी था। वह अधिकारी देश भक्तों, विशेषकर क्रांतिकारियों को बहुत तंग करता था। उन पर वह कई तरह के अत्याचार करता। क्रांतिकारियों ने उसे मार डालने की ठान ली थी। युगांतर क्रांतिकारी दल के नेता वीरेंद्र कुमार घोष ने घोषणा की कि किंग्सफोर्ड को मुजफ्फरपुर (बिहार) में ही मारा जाएगा। इस काम के लिए खुदीराम बोस तथा प्रपुल्ल चाकी को चुना गया।

ये दोनों क्रांतिकारी बहुत सूझबूझ वाले थे। इनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। देश भक्तों को तंग करने वालों को मार डालने का काम उन्हें सौंपा गया था। एक दिन वे दोनों मुजफ्फरपुर पहुंच गए। वहीं एक धर्मशाला में वे आठ दिन रहे। इस दौरान उन्होंने किंग्सफोर्ड की दिनचर्या तथा गतिविधियों पर पूरी नजर रखी। उनके बंगले के पास ही क्लब था। अंग्रेजी अधिकारी और उनके परिवार के लोग शाम को वहां जाते थे।

30 अप्रैल, 1908 की शाम किंग्स फोर्ड और उसकी पत्नी क्लब में पहुंचे। रात्रि के साढ़े आठ बजे मिसेज कैनेडी और उसकी बेटी अपनी बग्घी में बैठकर क्लब से घर की तरफ आ रहे थे। उनकी बग्घी का रंग लाल था और वह बिल्कुल किंग्सफोर्ड की बग्घी से मिलती-जुलती थी। खुदीराम बोस तथा उसके साथी ने किंग्सफोर्ड की बग्घी समझकर उस पर बम फेंक दिया जिससे उसमें सवार मां-बेटी की मौत हो गई। क्रांतिकारी इस विश्वास से भाग निकले कि किंग्सफोर्ड को मारने में वे सफल हो गए हैं।

खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चंद 25 मील तक भागने के बाद एक रेलवे स्टेशन पर पहुंचे। खुदीराम बोस पर पुलिस को संदेह हो गया और पूसा रोड रेलवे स्टेशन (अब यह स्टेशन खुदीराम बोस के नाम पर) पर उन्हें घेर लिया। अपने को घिरा देख प्रफुल्ल चंद ने खुद को गोली मारकर शहादत दे दी पर खुदीराम पकड़े गए। उनके मन में तनिक भी भय नहीं था। खुदीराम बोस को जेल में डाल दिया गया और उन पर हत्या का मुकदमा चला। अपने बयान में स्वीकार किया कि उन्होंने तो किंग्सफोर्ड को मारने का प्रयास किया था। लेकिन, इस बात पर बहुत अफसोस है कि निर्दोष कैनेडी तथा उनकी बेटी गलती से मारे गए।

मुकदमा केवल पांच दिन चला। 8 जून, 1908 को उन्हें अदालत में पेश किया गया और 13 जून को उन्हें प्राण दंड की सजा सुनाई गई। 11 अगस्त, 1908 को इस वीर क्रांतिकारी को फांसी पर चढ़ा दिया गया। उन्होंने अपना जीवन देश की आजादी के लिए न्यौछावर कर दिया

मुजफ्फरपुर जेल में जिस मजिस्ट्रेट ने उन्हें फांसी पर लटकाने का आदेश सुनाया था, उसने बाद में बताया कि खुदीराम बोस एक शेर के बच्चे की तरह निर्भीक होकर फांसी के तख्ते की ओर बढ़ा था। शहादत के बाद खुदीराम इतने लोकप्रिय हो गए कि बंगाल के जुलाहे उनके नाम की एक खास किस्म की धोती बुनने लगे। खुदीराम बोस को भारत की स्वतंत्रता के लिए संगठित क्रांतिकारी आंदोलन का प्रथम शहीद माना जाता है। अपनी निर्भीकता और मृत्यु तक को सोत्साह वरण करने के लिए वे घर-घर में श्रद्धापूर्वक याद किए जाते हैं|
आपको सत-सत नमन  

नौसेना दिवस पर विशेष: गौरवमयी है भारतीय नौसेना का इतिहास

भारतीय जल सीमा की सुरक्षा की जिम्मेदारी निभा रही भारतीय नौसेना की शुरुआत वैसे तो 5 सितंबर 1612 को हुई थी, जब ईस्ट इंडिया कंपनी के युद्धपोतों का पहला बेड़ा सूरत बंदरगाह पर पहुंचा था और 1934 में 'रॉयल इंडियन नेवी' की स्थापना हुई थी, लेकिन हर साल चार दिसंबर को 'भारतीय नौसेना दिवस' मनाए जाने की वजह इसके गौरवमयी इतिहास से जुड़ी हुई है। 

भारतीय नौसेना दिवस का इतिहास 1971 के ऐतिहासिक भारत-पाकिस्तान युद्ध से जुड़ा है, जिसमें भारत ने पाकिस्तान पर न केवल विजय हासिल की थी, बल्कि पूर्वी पाकिस्तान को आजाद कराकर स्वायत्त राष्ट्र 'बांग्लादेश' का दर्जा दिलाया था। भारतीय नौसेना अपने इस गौरवमयी इतिहास की याद में प्रत्येक साल चार दिसंबर को नौसेना दिवस मनाती है।

आधुनिक भारतीय नौसेना की नींव 17वीं शताब्दी में रखी गई थी, जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने एक समुद्री सेना के बेड़े रूप में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की। यह बेड़ा 'द ऑनरेबल ईस्ट इंडिया कंपनीज मरीन' कहलाता था। बाद में यह 'द बॉम्बे मरीन' कहलाया। पहले विश्व युद्ध के दौरान नौसेना का नाम 'रॉयल इंडियन मरीन' रखा गया। 

26 जनवरी 1950 को भारत गणतंत्र बना और इसी दिन भारतीय नौसेना ने अपने नाम से 'रॉयल' को त्याग दिया। उस समय भारतीय नौसेना में 32 नौ-परिवहन पोत और लगभग 11,000 अधिकारी और नौसैनिक थे। 15 अगस्त 1947 में भारत को जब देश आजाद हुआ था, तब भारत के नौसैनिक बेड़े में पुराने युद्धपोत थे। 

आईएनएस 'विक्रांत' भारतीय नौसेना पहला युद्धपोतक विमान था, जिसे 1961 में सेना में शामिल किया गया था। बाद में आईएनएस 'विराट' को 1986 में शामिल किया गया, जो भारत का दूसरा विमानवाही पोत बन गया। आज भारतीय नौसेना के पास एक बेड़े में पेट्रोल चालित पनडुब्बियां, विध्वंसक युद्धपोत, फ्रिगेट जहाज, कॉर्वेट जहाज, प्रशिक्षण पोत, महासागरीय एवं तटीय सुरंग मार्जक पोत (माइनस्वीपर) और अन्य कई प्रकार के पोत हैं।

इसके अलावा भारतीय नौसेना की उड्डयन सेवा कोच्चि में आईएनएस 'गरुड़' के शामिल होने के साथ शुरू हुई। इसके बाद कोयम्बटूर में जेट विमानों की मरम्मत व रखरखाव के लिए आईएनएस 'हंस' को शामिल किया गया। 

भारतीय नौसेना ने जल सीमा में कई बड़ी कार्रवाइयों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिनमें प्रमुख है जब 1961 में नौसेना ने गोवा को पुर्तगालियों से स्वतंत्र करने में थल सेना की मदद की। इसके अलावा 1971 में जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ा तो नौसेना ने अपनी उपयोगिता साबित की। 

भारतीय नौसेना ने देश की सीमा रक्षा के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा शांति कायम करने की विभिन्न कार्यवाहियों में भारतीय थल सेना सहित भाग लिया। सोमालिया में संयुक्त राष्ट्र संघ की कार्रवाई इसी का एक हिस्सा थी। 

देश के अपने स्वयं के पोत निर्माण की दिशा में आरंभिक कदम उठाते हुए भारतीय रक्षा मंत्रालय ने बंबई (मुंबई) के मजगांव बंदरगाह को 1960 में और कलकत्ता (कोलकाता) के गार्डन रीच वर्कशॉप (जीआरएसई) को अपने अधिकार में लिया। वर्तमान में भारतीय नौसेना का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है और यह मुख्य नौसेना अधिकारी 'एडमिरल' के नियंत्रण में होता है। भारतीय नौ सेना तीन क्षेत्रों की कमान (पश्चिम में मुंबई, पूर्व में विशाखापत्तनम और दक्षिण में कोच्चि) के तहत तैनात की गई है, जिसमें से प्रत्येक का नियंत्रण एक फ्लैग अधिकारी द्वारा किया जाता है।

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वर्दी हुई दागदार, नौकरी का झांसा देकर डीएसपी ने किया किशोरी का बलात्कार

वर्दी लोगों की, समाज की सुरक्षा के लिए होती है। वर्दी की हनक से लोगों पर रुतबा कायम करने के लिए पुलिस अफसरों को उसकी आन बरकरार रखनी होती है लेकिन कुछ अफसर वर्दी की आड़ में ऐसा काम कर देते हैं की पूरा महकमा शर्मसार हो जाता है। उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले के एक डीएसपी की काली करतूत ने एक बार फिर से खाकी को शर्मसार कर दिया| ख़बरों के मुताबिक, मुसाफिरखाना की एक किशोरी ने डीएसपी विपुल कुमार श्रीवास्तव पर नौकरी का झांसा देकर दुष्कर्म करने का आरोप लगाया है। डीएसपी ने मुंह खोलने पर उसे, उसके पिता व भाई को मरवा देने की धमकी दी थी। सोमवार को परिजनों की शिकायत पर एसपी ने डीएसपी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी। किशोरी की मेडिकल जांच कराई गई है।

किशोरी ने डीएसपी पर आरोप लगाते हुए कहा है कि गलती से उसके मोबाइल से डीएसपी मुसाफिरखाना विपुल कुमार श्रीवास्तव के सीयूजी नंबर पर काल चली गई थी। इसके बाद डीएसपी ने काल बैक कर उसकी परेशानी पूछी, तो उसने कोई समस्या न कहकर फोन रख दिया। लेकिन डीएसपी ने उसे फोन लगाना जारी रखा। नौकरी लगवाने व शादी का झांसा देकर उससे बातचीत करने लगे। उससे मिलने डीएसपी उसके गांव भी आए पर मुलाकात नहीं हो सकी। उसके बाद 23 नवमबर को डीएसपी ने उसे राजधाजी लखनऊ के आलमबाग में बुलाया| किशोरी नौकरी के लालच में अपने परिजनों को बिना बताये उससे मिलने 24 नवंबर को आलमबाग गई तो डीएसपी ने उसे एक होटल में बुलाया| किशोरी का आरोप है कि वहाँ डीएसपी ने उसके साथ कई बार बलात्कार किया| पीड़िता ने जब पूरा मामला सबके सामने लाने की बात डीएसपी से कही तो वह उसके परिजनों को जान से मरवाने की धमकी देने लगे। इस बीच लड़की ने फोन करके पूरा घटनाक्रम अपने परिजनों को बताया।

तब एसओ मुसाफिरखाना मनोज तिवारी व कांस्टेबल अरुण तिवारी ने पीड़िता के पिता को मुकदमे में फंसाने और जान से मारने की धमकी दी। पुलिस महकमा पहले तो इस मामले को दबाने में जुटा रहा लेकिन जब बात नहीं बनी तो सोमवार को एसपी ने एसो रेखा सिंह को मामला दर्ज करने के आदेस्ज दे दिए है| एसपी हीरालाल ने प्रकरण को गम्भीर बताते हुए उच्च स्तरीय जाँच करने की बात कही है| 

आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश में यह कोई पहला मामला नहीं है जब खाकी दागदार हुई हो इससे पहले भी इस तरह के संगीन मामले प्रकाश में आ चुके हैं| अपराध रोकने के लिए बनाई गई खाकी को खुद खाकीधारी ही कलंकित करने में जरा भी नही चूक रहे है। इसी के चलते महिला सिपाही ने थानाध्यक्ष पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए आईजी जोन से शिकायत की। उन्होने मामले की जांच सीओ चांदपुर को सौंप दी है।

एक महिला सिपाही ने आईजी जोन बरेली मुकुल गोयल से शिकायत की कि थाने में प्रभारी पद पर रहे दरोगा ने शादी करने का झांसा देकर उसका एक साल तक यौन शोषण किया। बाद में शादी करने से इंकर कर दिया। महिला कास्टेबिल ने कई बार एसओ पर शादी करने क लिए दवाब बनाया, पर वह तैयार नहीं हुआ। इज्जत के डर से महिला कांस्टेबिल अपना मुंह खोलने से भी डर रही है। आईजी जोन मुकुल गोयल ने सीओ चांदपुर सीपी सिंह को इस मामले की जांच सौंपकर जांच रिपोर्ट देने को कहा। सीओ चांदपुर ने महिला कांस्टेबिल व उसकी साथी अन्य महिला कांस्टेबिल के भी इस संबंध में बयान दर्ज किए है। 

अभी हाल ही में कुशीनगर जिले में भी एक ऐसा मामला देखनें को मिला था| यहाँ एक बलात्कार पीड़ित जब आरोपी के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाने थाने पहुंची तो वहां मौजूद दरोगा ने उसके साथ सहानभूति दिखाने के स्थान पर अश्लील सवाल पूछने शुरू कर दिए| ये सुनकर बेचारी भौचक्की रह गयी| वो तो यहाँ आई थी इन्साफ मांगने लेकिन कानून के रखवालों ने उसे ऐसा रूप दिखाया कि उसका तो विश्वाश ही उठ गया इस कानून से| दरोगा की इस हरकत से शर्मसार महिला वापस लौट गयी| खबर लिखे जाने तक ये नहीं पता चल सका कि उसने इस दरोगा की शिकायत बड़े अधिकारी से की है या नहीं| हमारे देश का सामाजिक ढांचा कुछ ऐसा है कि बदनामी और अन्य कारणों से बलात्कार के अधिकतर मामले दर्ज ही नहीं होते। यदि कोई पीड़ित पुलिस वालों से शिकायत करने जाता है तो उसे ऐसी बेईज्ज़ती से दो चार होना पड़ता है| सिर्फ इतना ही नहीं रसूखदार आरोपी के सामने हमारी पुलिस भी नतमस्तक नज़र आती है और समझौता करने का दबाव बना देती है|

सितम्बर 2013 में प्रदेश के देवरिया में नौकरी दिलाने के नाम पर एक महिला खिलाड़ी के साथ महीनों तक सिपाही द्वारा दुराचार किये जाने का मामला सामने आया। इस मामले में आरोपी सिपाही के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली गयी थी। एसपी देवरिया उमेश श्रीवास्तव ने बताया किसदर कोतवाली इलाके की एक युवती ने देवरिया में तैनात सिपाही राम नारायण यादव के खिलाफ शिकायत दर्ज करायी| युवती का कहना है कि नौकरी दिलाने के नाम पर महीनों तक उसके साथ दुष्कर्म किया गया। सिपाही उस वक्त सदर कोतवाली में तैनात था। पीड़ित युवती ने कहा कि वह रोज पुलिस लाइन में दौड़ का अभ्यास करती थी। उसी वक्त सिपाही ने उसे नौकरी दिलाने का झांसा दिया।सिपाही ने झारखंड के देवघर में वैद्यनाथ धाम मंदिर में उसके साथ शादी भी की। वहां से लौटने के बाद उसने अपना तबादला प्रतापगढ़ करा लिया| सिपाही राम नारायण यादव के खिलाफ आईपीसी की धारा 419,420,467,468 तथा 376 के तहत रिपोर्ट दर्ज की गयी है।

इसके अलावा दिसंबर 2012 में एक ऐसा ही मामला फैजाबाद जिले में देखने को मिला था| जहां एक पुलिस वाले ने डीआइजी के यहां बयान दिलाने के बहाने एक युवती को अपनी हवस का शिकार बनाया|सूचना पाकर मौके पर पहुंची पुलिस ने आरोपी दारोगा को गिरफ्तार कर लिया। युवती की तहरीर पर महिला थाने में एसएसआइ के विरुद्ध दुराचार का मुकदमा पंजीकृत कर दारोगा को जेल भेज दिया गया। 

पुलिस ने बताया कि अम्बेडकर जिले के कोतवाली अकबरपुर क्षेत्र की पहितीपुर निवासी 16 वर्षीय युवती ने चार महीने पहले अकबरपुर कोतवाली में रेप का मुकदमा दर्ज कराया था| इस मामले की जांच सीनियर सब-इंस्पेक्टर मान सिंह को सौंपी गई थी। बुधवार को आरोपी दारोगा युवती को डीआईजी के यहां बयान दिलाने के बहाने फैजाबाद लेकर आया और शहर के एक होटल में युवती को अपना करीबी रिश्तेदार बताकर कमरा लिया| दिनभर युवती उसी होटल में रही और देर शाम डीआईजी के न मिलने की बात कहकर मान सिंह ने युवती को कमरे में रुकने को कहा। युवती ने बताया कि कुछ देर बाद मान सिंह लौटकर आया और मेरे सात गलत हरकत करने लगा| इसके बाद जब मान सिंह सो गया तो युवती ने इसकी जानकारी मोबाइल के जरिये अपने परिचितों को दी| इस दौरान परिचितों ने पुलिस से संपर्क साधा| पुलिस ने युवती को होटल से बरामद किया और आरोपी दारोगा को पकड़ लिया। युवती का कहना है उसके पिता ने उसे घर से निकाल दिया है और वह अपने दादी के साथ रहती है।

नवम्बर 2012 में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के एक दरोगा की काली करतूत ने खाकी को शर्मसार कर दिया था| माल में तैनात दरोगा ने जांच के बहाने दलित महिला को थाने बुलाया और एसओ आवास में बंधक बनाकर दुष्कर्म करने का प्रयास किया| दलित महिला की पुकार सुनकर एसओ व अन्य पुलिसकर्मी मौके पर पहुंचे और दरवाजा तोड़कर महिला की आबरू लुटने से बचाया| क़स्बा माल की विजयलक्ष्मी ने नौ महीने पहले एक दलित महिला पर मारपीट का आरोप लगाते हुए थाने में तहरीर दी थी| बाद में इलाके के कुछ लोगों ने दोनों के बीच समझौता कराकर मामले को रफा-दफा कर दिया लेकिन विजयलक्ष्मी की तहरीर थाने में ही रह गई| कुछ दिन पहले विजयलक्ष्मी की यह तहरीर दरोगा कामत प्रसाद अवस्थी के साथ लगी| दरोगा ने दलित महिला के बारे में छानबीन की और जांच के बहाने उसे फोन करना शुरू कर दिया| 

खाकी को शर्मसार करने वाले इस दरोगा ने मामला समाप्त कराने के बहाने महिला को फोन किया और उससे अश्लील बातें करने लगा| दरोगा ने बुधवार रात दलित महिला को फोन किया और कहा कि कप्तान के यहां से जांच आई है, जल्दी थाने में मेरे कमरे पर आ जाओ, बयान दर्ज करके तुरंत रिपोर्ट देनी है| ऐसा करने से यह मामला समाप्त हो जायेगा| इसके बाद महिला अपने पति के साथ रात में थाने के गेट पर पहुंची लेकिन दरोगा ने उसे दोबारा फोन कर अकेले कमरे में आने के लिए कहा| 

थाने में कई अन्य पुलिस को देखकर महिला एसओ के आवास में गई| वहां पहले से उपस्थित दरोगा ने उसे कमरे में बुलाया और दरवाजा भीतर से बंद कर छेड़खानी करने लगा| खींचतान में दरोगा की बनियान फट गई| महिला की चींख पुकार सुनकर एसओ राकेश कुमार सिंह व अन्य पुलिसकर्मी कमरे की तरफ दौड़े| एसओ ने किसी तरह कमरा खुलवाकर महिला को दरोगा के चंगुल से छुड़ाया| इस बीच मौका पाकर दरोगा कामता प्रसाद ने खुद को कमरे में बंद कर लिया और दूसरे रास्ते से फरार हो गया| दरोगा कामता प्रसाद द्वारा दलित महिला के साथ थाने में दुष्कर्म का प्रयास करने की खबर फैलाते ही ग्रामीण थाने के बाहर एकत्रित हो गए और दरोगा के खिलाफ कार्यवाहीं की मांग कर प्रदर्शन करने लगे| एसओ ने दरोगा के खिलाफ सख्त कार्यवाही का आश्वासन देते हुए उग्र ग्रामीणों को शांत कराया| यदि प्रदेश में हो रही इस तरह की ताबड़तोड़ घटनाओं को सूबे की सरकार गम्भीरता से नहीं लेती हैं तो मित्रता का ढोल पीटने वाले यूपी की पुलिस पर से जनता का विश्वास उठ जाएगा?