जानिए कितनी भाषाओँ में लिखी गई रामायण

सर्वप्रथम श्रीराम की कथा भगवान श्री शंकर ने माता पार्वतीजी को सुनाई थी। उस कथा को एक कौवे ने भी सुन लिया। उसी कौवे का पुनर्जन्म काकभुशुण्डि के रूप में हुआ।काकभुशुण्डि को पूर्व जन्म में भगवान शंकर के मुख से सुनी वह रामकथा पूरी की पूरी याद थी। उन्होंने यह कथा अपने शिष्यों को सुनाई। इस प्रकार रामकथा का प्रचार-प्रसार हुआ। भगवान शंकर के मुख से निकली श्रीराम की यह पवित्र कथा 'अध्यात्म रामायण' के नाम से विख्यात है।लोमश ऋषि के शाप के चलते काकभुशुण्डि कौवा बन गए थे। लोमश ऋषि ने शाप से मु‍क्त होने के लिए उन्हें राम मंत्र और इच्छामृत्यु का वरदान दिया। कौवे के रूप मंं ही उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन व्यतीत किया। वाल्मीकि से पहले ही काकभुशुण्डि ने रामायण गिद्धराज गरुड़ को सुना दी थी।जब रावण के पुत्र मेघनाथ ने श्रीराम से युद्ध करते हुए श्रीराम को नागपाश से बांध दिया था, तब देवर्षि नारद के कहने पर गिद्धराज गरुड़ ने नागपाश के समस्त नागों को खाकर श्रीराम को नागपाश के बंधन से मुक्त कर दिया था।

भगवान राम के इस तरह नागपाश में बंध जाने पर श्रीराम के भगवान होने पर गरुड़ को संदेह हो गया।गरुड़ का संदेह दूर करने के लिए देवर्षि नारद उन्हें ब्रह्माजी के पास भेज देते हैं। ब्रह्माजी उनको शंकरजी के पास भेज देते हैं। भगवान शंकर ने भी गरुड़ को उनका संदेह मिटाने के लिए काकभुशुण्डिजी के पास भेज दिया। अंत में काकभुशुण्डिजी ने राम के चरित्र की पवित्र कथा सुनाकर गरुड़ के संदेह को दूर किया। वैदिक साहित्य के बाद जो रामकथाएं लिखी गईं, उनमें वाल्मीकि रामायण सर्वोपरि है। वाल्मीकि श्रीराम के समकालीन थे और उन्होंने रामायण तब लिखी, जब रावण-वध के बाद राम का राज्याभिषेक हो चुका था। एक दिन वे वन में ऋषि भारद्वाज के साथ घूम रहे थे और उन्होंने एक व्याघ द्वारा क्रौंच पक्षी को मारे जाने की हृदयविदारक घटना देखी और तभी उनके मन से एक श्लोक फूट पड़ा। बस यहीं से इस कथा को लिखने की प्रेरणा मिली। यह इसी कल्प की कथा है और यही प्रामाणिक है। वाल्मीकि ने राम से संबंधित घटनाचक्र को अपने जीवनकाल में स्वयं देखा या सुना था इसलिए उनकी रामायण सत्य के काफी निकट है, लेकिन उनकी रामायण के सिर्फ 6 ही कांड थे। उत्तरकांड को बौद्धकाल में जोड़ा गया। उत्तरकांड क्यों नहीं लिखा वाल्मीकि ने? यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है।

राम कथा के प्रणेता के रूप में वाल्मीकि रामायण का नाम सर्वप्रथम लिया जाता है। वाल्मीकि रामयाण को स्मृत ग्रंथ माना गया है इस ग्रंथ की रचना माता सरस्वती की कृपा से हुई थी| इस ग्रंथ को ॠतम्भरा प्रज्ञा की देन बताया जाता है। रामायण की रचना संस्कृत भाषा में हुई है। वाल्मीकि रामायण के अलावा भी कई रामायणे लिखी गईं हैं| श्री रामचरित मानस की रचना गोस्वामी तुसलीदास द्वारा संवत 1633 में सम्पन्न हुई थी। अवधी भाषा में रचित इस महाकाव्य की रचना दो वर्ष सात महीने छब्बीस दिन लगे थे। इस ग्रंथ में बालकाण्ड, आयोध्या कांड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धा काण्ड, सुन्दरकाड, लंकाकाण्ड तथा उत्तरकाण्ड के रूप में सात काण्ड है। इन सात काण्डों में ही श्रीराम के सम्पूर्ण चरित्रको समाहित किया गया है।

आध्यात्म रामायण की रचना महर्षि वेदव्यास द्वारा की गई है। ब्राह्मण्ड पुराण के उत्तरखण्ड के अंतर्गत एक आख्ययान के रूप में इसकी रचना हुई है। इसकी रचना संस्कृत भाषा में की गई है। प्रस्तु ग्रंथ में भगवान श्री राम को आध्यात्मिक तत्व माना गया है। आनन्द रामायण महर्षि वाल्मीकि की ही रचना है। इस रामायण को भी सारकाण्ड, जन्म काण्ड, मनोहर काण्ड, राज्य काण्ड आदि काण्डों में बांटा गया है।संस्कृत भाषा में रचित इस रामायण में राजनैतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक आध्यात्मिक एवं सामाजिक महत्व के साथ ही श्री राम के मर्यादा पुरूषत्व की नींव को सुदृढ़ बनाया है। कृति वास रामायण की रचना गोस्वामी तुलसीदास जी के जन्म से लगभग सौ वर्ष पूर्व हुई थी। इस रामायण की भाषा बंगला है। बंग्लादेश स्थित मनीषी कवि कृतिवास द्वारा रचित इस रामायण में भी बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धा काण्ड,उत्तरकाण्ड इत्यादि है । इस रामायण में भी सात काण्ड है। पवार छन्दों में पांचाली गान के रूप में रचित इस ग्रंथ में श्रीराम के उदार चरित्रों का बखान किया गया है।

अदभुत रामायण की रचना भी संस्कृत भाषा में की गई है। इस रामायण की रचना भी महर्षि वाल्मिकी द्वारा ही की गयी है। इस रामायण में सत्ताईस सर्ग के अंतर्गत लगभग चौदह हजार श्लोक है। इस रामायण में भगवती सीता के महात्म्य को विशेष रूप से दर्शाया गया है। इस रामायण के अनुसार सहस्रसुख का भी रावण था जो दशमुख रावण का अग्रज था। सीता ने महाकाली का रूप धारण करके सहस्रसुख रावण का वध कर दिया था। रंगनाथ रामायण की रचना द्रविड़ भाषा में (तेलगु) में श्री मोनबुध्द राज द्वारा देशज छन्दों में 1380 ई. के आसपास की गई । इस रामायण में युध्दकाण्ड के माध्यम से श्रीराम को महाप्रतापी बताया गया है। रावण के कुकृत्यों की निन्दा के साथ ही उसके गुणों की भी इसमें मुक्तकण्ठ से प्रशंसा की गई है।

कश्मीरी रामायण की रचना दिवाकर प्रकाश भट्ट द्वारा कश्मीरी भाषा में की गई है। इस रामायण को रामावतार चरित्र के नाम से भी जाना जाता है । इसका एक नाम प्रकाश रामायण भी है। काशुर रामायण के नाम से इसका हिन्दी रूपान्तर भी प्राप्त है। इस रामायण में भक्ति ज्ञान एवं वैराग्य की त्रिवेणी प्रवाहित होती दिखाई देती है। प्रियंका रामायण की रचना उड़िया भाषा में आदिकवि श्री शरलादास द्वारा की गई है। यह रामायण पूर्वकाण्ड तथा उत्तरकाण्ड के रूप में थी तथा दो खण्डों में है। शिव पार्वती के संवाद के रूप में रचित यह रामायण भगवती महिषासुर मर्दिनी की वन्दना से प्रारंभ है। योगवशिष्ठ - रामायण की रचना भी महर्षि वाल्मीकि द्वारा संपन्न हुई है। इसे महारामायण, आर्य रामायण (आर्ष रामायण), वशिष्ठ रामायण, ज्ञान वशिष्ठ रामायण के नामों से भी जाना जाता है। यह ग्रंथवैराग्य प्रकरण, मुमुक्षु व्यवहार प्रकरण, उत्तप्ति प्रकरण, स्थिति प्रकरण, उपशम प्रकरण तथा निर्वाण प्रकरण (पूर्वार्ध एवं उत्तरार्ध) के रूप में श्रीराम के चरित्र को छ: प्रकरणों में विभक्त किया गया है। संस्कृत भाषा में रचित इस रामायण में श्रीराम के मानवीय चरित्र के पक्ष में विस्तृत रूप से वर्णित किया गया है।

उपरोक्त रामायणों के अतिरिक्त विष्णु प्रताप रामायण, मैथिली रामायण, दिनकर रामायण, शंकर रामायण, जगमोहन रामायण, शर्मा नारायण, ताराचंद रामायम, अमर रामायण, प्रेम रामायण, कम्बा रामायण, तोखे रामायण, गड़बड़ रामायण नेपाली रामायण, विचित्र रामायण मंत्र रामायण तिब्बती रामायण, राधेश्याम रामायण, चरित्र रामायण, कर्कविन रामायण जावी रामायम, जानकी रामायण आदि अनेक रामायण की रचना सिर्फ भारत में ही नहीं अपितु विदेशों में भी की गई है।

अगर हम भाषाओं पर जाएं तो अन्नामी, बाली, बांग्ला, कम्बोडियाई, चीनी, गुजराती, जावाई, कन्नड़, कश्मीरी, खोटानी, लाओसी, मलेशियाई, मराठी, ओड़िया, प्राकृत, संस्कृत, संथाली, सिंहली, तमिल, तेलुगू, थाई, तिब्बती, कावी आदि भाषाओं में लिखी गई है रामायण। अभी तक बहुत सारी रामायण लिखी जा चुकी हैं। विदेशों में जो रामायणे लिखी गईं हैं उनमें किंरस-पुंस-पा की 'काव्यदर्श' (तिब्बती), रामायण काकावीन (इंडोनेशियाई कावी), हिकायत सेरीराम (मलेशियाई भाषा), रामवत्थु (बर्मा), रामकेर्ति-रिआमकेर (कंपूचिया खमेर), तैरानो यसुयोरी की 'होबुत्सुशू' (जापानी), फ्रलक-फ्रलाम-रामजातक (लाओस), भानुभक्त कृत रामायण (नेपाल), अद्भुत रामायण, रामकियेन (थाईलैंड), खोतानी रामायण (तुर्किस्तान), जीवक जातक (मंगोलियाई भाषा), मसीही रामायण (फारसी), शेख सादी मसीह की 'दास्ताने राम व सीता'।, महालादिया लाबन (मारनव भाषा, फिलीपींस), दशरथ कथानम (चीन), हनुमन्नाटक (हृदयराम-1623) इसके साथ-साथ अभी भी खोज निरंतर जारी है।

जानलेवा डेंगू से बचना है तो बरतें यह सावधानी

बारिश भले ही नहीं हो रही है मौसम का साइड इफेक्ट दिखने लगा है। बदलते हुए मौसम में सावधान रहना बहुत जरूरी होता है, आपके खान-पान और रहन-सहन में थोड़ी सी लापरवाही आपको बीमार कर सकती है। बदलते मौसम के प्रभाव में आने लोगों का मौसमी बीमारियों के साथ ही मच्छर जनित बीमारियों ने पैर पसारना शुरु कर दिया है। डेंगू भी एक ऐसी ही बीमारी है जो मच्छर जनित होने के साथ-साथ बदलते मौसम में सबसे ज्यादा पनपती है।

डेंगू बुखार का वाइरस बारिश के मौसम में यानी जून से सितंबर-अक्‍टूबर के बीच ही फैलता है। इसका सबसे बड़ा कारण है भारत में बदलता तापमान, इसिलए भी डेंगू बुखार का मौसम बारिश के साथ ही शुरू हो जाता है। आमतौर पर जून कें अंत में बारिश शुरू हो जाती है जुलाई, अगस्त , सितंबर तीन महीनों में डेंगू बुखार सबसे ज्यादा फैलता है, क्योंकि पूरे भारत में सबसे अधिक बारिश इन तीन महीनों के बीच ही होती हैं।

भारत में मौसम का उतार-चढ़ाव लगातार चलता रहता है, कभी बहुत अधिक बारिश तो कभी बहुत अधिक गर्मी या ठंडी होती है जिससे डेंगू के मच्छरों की पैदाइश अधिक बढ़ जाती हैं। इन महीनों में लगातार बारिश और मौसम के उतार-चढ़ाव से काफी उमस और चिपचिपाहट होती है और इसी उमस के कारण डेंगू बुखार के फैलने की संभावना बढ़ जाती है। डेंगू का प्रभाव अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग तरीके से होता है क्योंकि मौसम का उतार-चढ़ाव और बारिश का कभी एक क्षेत्र में आना तो कभी दूसरे में आना इसका मुख्य कारण है।

डेंगू बुखार के कारण पिछले कुछ वर्षों से इंसान में मच्छरों का खौफ बढ़ा है, इससे प्रभावित होने वाले लोग न सिर्फ भारत से हैं बल्कि पूरी दुनिया से हैं। इसमें व्यक्ति को तेज़ बुखार, सिरदर्द, आंखों के पीछे दर्द, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द और शरीर पर फुंसियां हो जाती हैं। इस बुखार में खून में जल्दी से संक्रमण फैलते हैं। डेंगू बुखार एडिज नामक मच्छर के काटने से फैलता है। ये मच्छर एडिज इजिप्टी तथा एडिज एल्बोपेक्टस के नाम से जाने जाते हैं। यह मच्छर साफ, इकट्ठे पानी में पनपते हैं, जैसे घर के बाहर पानी की टंकियाँ या जानवरों के पीने की हौद, कूलर में इकट्ठा पानी, पानी के ड्रम, पुराने ट्यूब या टायरों में इकट्ठा पानी, गमलों में इकट्ठा पानी, फूटे मटके में इकट्ठा पानी आदि।

डेंगू के लक्षण-

आपको बता दें कि डेंगू बुखार हर उम्र के व्यक्ति को हो सकता है, लेकिन छोटे बच्चों और बुजुर्गों को ज़्यादा देखभाल की ज़रूरत होती है। साथ ही दिल की बीमारी के मरीज़ों का भी खास ख्याल रखने की ज़रूरत होती है। यह बुखार युवाओं में भी तेज़ी से फैलता है, क्योंकि वे अलग-अलग जगह जाते हैं और कई लोगों के संपर्क में आते हैं। डेंगू बुखार के लक्षण आम बुखार से थोड़े अलग होते हैं। इसमें बुखार बहुत तेज़ होता है। साथ में कमज़ोरी हो जाती है और चक्कर आते हैं। डेंगू के दौरान मुंह का स्वाद बदल जाता है और उल्टी भी आती है। सिरदर्द के साथ ही पूरा बदन दर्द करता है।

डेंगू में गंभीर स्थिति होने पर कई लोगों को लाल-गुलाबी चकत्ते भी पड़ जाते हैं। अक्सर बुखार होने पर लोग घर में ‘क्रोसिन’ जैसी दवाओं से खुद ही अपना इलाज करते हैं। लेकिन डेंगू बुखार के लक्षण दिखने पर थोड़ी देर भी भारी पड़ सकती है। लक्षण दिखने पर तुरंत अस्पताल जाना चाहिए। नहीं तो ये लापरवाही रोगी की जान भी ले सकती है। डेंगू संक्रमित व्यक्ति अगर पानी पीने और कुछ भी खाने में परेशानी महसूस करता है और बार-बार कुछ भी खाते ही उल्टी करता है तो डीहाइड्रेशन का खतरा हो जाता है। इससे लीवर का खतरा हो सकता है।

प्लेटलेट्स के कम होने या ब्लड प्रेशर के कम होने या खून का घनापन बढ़ने को भी खतरे की घंटी मानना चाहिए। साथ ही अगर खून आना शुरू हो जाए तो तुरंत अस्पताल ले जाना चाहिए। डेंगू बुखार होने पर सफाई का ध्यान रखने की जरूरत होती है। इलाज में खून को बदलने की जरूरत होती है इसलिए डेंगू के दौरान कुछ स्वस्थ व्यक्तियों को तैयार रखना चाहिए जो रक्तदान कर सकें। सामान्यतः डेंगू से ग्रसित होने वाले सभी लोगों को इससे खतरा होता है। खासतौर पर जब साधारण डेंगू बुखार के बजाय रोगी में रक्तस्राव ज्वर या आघात सिंड्रोम के लक्षण पाए जाते है।

डेंगू रक्तस्राव ज्वर में नाक, मुंह व दांतों में रक्तस्राव के साथ तेज बुखार हो जाता है और मरीज के बुखार का स्तर 105 डिग्री तक भी जा सकता है, जिसका सीधा असर मस्तिष्क पर भी पड़ता है। डीएचएस पॉजीटिव जांच के बाद मरीज को प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत होती है। यदि ऐसा न किया जाए तो वह किसी घातक बीमारी का शिकार हो सकता है या फिर रोगी की मृत्यु भी हो सकती है। डेंगू की गंभीर व तीसरी अवस्था को डेंगू शॉक सिंड्रोम कहा जाता है, जिसके तेज कंपकंपाहट के साथ मरीज को पसीने आते हैं। इस अवस्था में इलाज की देरी मरीज की जान ले सकती है। शॉक सिंड्रोम की स्थिति आने तक मरीज के शरीर पर लाल चकत्ते के दाग स्थाई हो जाते हैं, जिनमें खुजली भी होने लगती है।

जरूरी नहीं हर तरह के डेंगू में प्लेटलेट्स चढ़ाए जाएं, केवल हैमरेजिक और शॉक सिंड्रोम डेंगू में प्लेटलेट्स की जरूरत होती है। जबकि साधारण डेंगू में जरूरी दवाओं के साथ मरीज को ठीक किया जा सकता है। इस दौरान ताजे फलों का जूस व तरल चीजों का अधिक सेवन तेजी से रोगी की स्थिति में सुधार ला सकता है।

डेंगू से बचाव ही उसका इलाज-

रोगग्रसित मरीज का तुरंत उपचार शुरू करें व तेज बुखार की स्थिति में पेरासिटामाल की गोली दें। एस्प्रिन या डायक्लोफेनिक जैसी अन्य दर्द निवारक दवाई न लें। खुली हवा में मरीज को रहने दें व पर्याप्त मात्रा में भोजन-पानी दें जिससे मरीज को कमजोरी न लगे। फ्लू एक तरह से हवा में फैलता है अतः मरीज से 10 फुट की दूरी बनाए रखें तो फैलने का खतरा कम रहता है। जहां बीमारी अधिक मात्रा में हो, वहां फेस मॉस्क पहनना चाहिए। घर के आसपास मच्छरनाशक दवाइयां छिड़काएं।

पानी के फव्वारों को हफ्ते में एक दिन सुखा दें। घर के आसपास छत पर पानी एकत्रित न होने दें। घर का कचरा सुनिश्चित जगह पर डालें, जो कि ढंका हो। कचरा आंगन के बाहर न फेंककर नष्ट करें। पानी की टंकियों को कवर करके रखें व नियमित सफाई करें। इस तरह थोड़ी-सी सावधानी से स्वस्थ रहा जा सकता है।

PHOTOS में देखें Poonam Pandey की सबसे बोल्ड तस्वीरें

मुंबई| मॉडल, एक्ट्रैस पूनम पांडे अक्सर अपने फैंस के लिए सोशल मीडिया पर अपनी बेहद हॉट तस्वीरें शेयर किया करती हैं| पूनम पाण्डेय ने अभी हाल ही में कुछ तस्वीरें इंस्टाग्राम पर शेयर की हैं| तस्वीरें बेहद बोल्ड और आकर्षित हैं। अलग अलग पोज में ली गई ये फोटोज काफी कामुक हैं। 









75 सालों से बिना भोजन-पानी के जिंदा है यह बाबा

सोचिए एक व्यक्ति बिना खाए पिए कितने दिन तक जीवित रह सकता है? लेकिन गुजरात में एक बाबा है जिन्होंने 75 वर्षों से न कुछ खाया है और न ही पीया है फिर भी उनके स्वास्थ्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है| यह बात डॉक्टर्स के टेस्ट में भी यह साबित हो चुका है|

13 अगस्त 1929 को गुजरात के मेहसाणा जिले के छारड़ा गांव में जन्मे इन बाबा को चुनरीवाला माताजी के नाम से भी जाना जाता है। बाबा प्रहलाद के 75 वर्षों से बिना भोजन-पानी जिंदा रहने के दावे को कई लोगों ने नहीं माना। आखिरकार 2003 अहमदाबाद के स्टेर्लिग अस्पताल के डॉक्टरों की एक टीम ने उनका टेस्ट किया। यह टेस्ट लगातार 3 सप्ताह तक चला जिसमें पाया गया कि इस दौरान बाबा ने न कुछ खाया और न पीया।

उसके बाद 2010 में भी एक बार डाक्टरों ने उनका टेस्ट किया| यह टेस्ट लेने वाले डॉक्टर भी बाबा की अनोखी करामात को देखकर आश्चर्य में पड़ गए। बाबा चुनरीवाला माताजी का कहना है कि उन्होंने 7 साल की उम्र में ही अपना घर त्याग कर आत्म रहस्य की खोज में जंगल में निकल गए थे।

बाबा प्रहलाद जानी का कहना है कि उनके ऊपर माताजी के रूप में मानी वाली देवी अंबा का आशीर्वाद है। इसी की वजह से वो इतने सालों तक बिना खाए-पीए सिर्फ हवा खाकर जिंदा है। बाबा प्रहलाद माता की तपस्या में इतने लीन है कि वो कपड़े भी देवी की तरह ही पहनते हैं। इतना ही नहीं इन बाबा ने अपने नाक-कान भी छिदवा रखें हैं और देवी की तरह ही आभूषण पहनते हैं।

जानिए खाना खाने के तुरंत बाद क्यों नहीं पीना चाहिए पानी ?

आपने कई महिलाओं व पुरुषों को देखा होगा कि वे खाना खाते समय व तुरंत बाद पानी नहीं पीते| कभी सोचा है कि आखिर यह लोग ऐसा क्यों करते हैं| यदि नहीं तो आज हम आपको बता देते हैं कि लोग खाना खाने के तुरंत बाद पानी क्यों नहीं पीते हैं|

आयुर्वेद के अनुसार, खाना खाने के तुरंत बाद पानी पीना जहर के समान है। पानी तुरंत पीने से उसका असर पाचन क्रिया पर पड़ता है। हम जो भोजन करते है वह नाभि के बाये हिस्से में स्थित जठराग्नि में जाकर पचता है। जठरआग्नि एक घंटे तक खाना खाने के बाद प्रबल रहती है। आयुर्वेद के मुताबिक जठर की अग्नि से ही खाना पचता है। अगर हम तुरंत पानी पी लेते है तो खाना पचने में काफी दिक्कत होती है। इसलिए आयुर्वेद ने खाने और पानी पीने में यह अंतर रखा है।

पानी पीने से जठराग्नि समाप्त हो जाती है ‘जो कि भोजन के पचने के बाद शरीर को मुख्य ऊर्जा और प्राण प्रदान करती है’। इसलिए ऐसा करने से भोजन पचने के बजाय गल जाता है। ऐसा करने से ज्यादा मात्रा में गैस और एसिड बनता है और एक दुष्चक्र शुरू हो जाता है। महर्षि वाघभट्ट ने 103 रोगों का जिक्र किया है जो भोजन के तुरंत बाद पानी पीने से होते हैं।

खाना खाने के लगभग पौन घंटे या एक घंटे के बाद पानी पीना उचित होता है। इस दौरान जठरआग्नि अपना काम कर चुकी होती है। अगर हम पानी खाने के तुरंत बाद पी लेते है तो वह मंद पड़ जाती है जिससे खाना ठीक से नहीं पचता है।

विघ्नविनाशक गणपति के इस मंत्र से पूरी कर सकते हैं कोई भी मन्नत

हमारे हिन्दू धर्म में कोई भी शुभ कार्य की शुरुआत ईश्वर के नाम के बिना नहीं होती| हिंदू धर्म के अनुयायी भगवान श्रीगणेश की पूजा सर्वप्रथम करते हैं। भगवान श्रीगणेश बुद्धि के देवता हैं। जीवन के हर क्षेत्र में गणपति विराजमान हैं। गणपति की पूजा सम्पूर्ण मानी जाती है| हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि गणपति सब देवताओं में अग्रणी हैं।

गणेश के इस नाम का शाब्दिक अर्थ – भयानक या भयंकर होता है। क्योंकि गणेश की शारीरिक रचना में मुख हाथी का तो धड़ पुरुष का है। सांसारिक दृष्टि से यह विकट स्वरूप ही माना जाता है। किंतु इसमें धर्म और व्यावहारिक जीवन से जुड़े गुढ़ संदेश है। धार्मिक आस्था से श्री गणेश विघ्रहर्ता है। इसलिए माना जाता है कि वह बुरे वक्त, संकट और विघ्रों का भयंकर या विकट स्वरूप में अंत करते हैं। आस्था से जुड़ी यही बात व्यावहारिक जीवन का एक सूत्र बताती है कि धर्म के नजरिए से तो सज्जनता ही सदा सुख देने वाली होती है, लेकिन जीवन में अनेक अवसरों पर दुर्जन और तामसी वृत्तियों के सामने या उनके बुरे कर्मों के अंत के लिये श्री गणेश के विकट स्वरूप की भांति स्वभाव, व्यवहार और वचन से कठोर या भयंकर बनकर धर्म की रक्षा जरूर करना चाहिए।

शास्त्रों में श्री गणेश को प्रसन्न करने के लिए तरह-तरह के विधि विधान बताये गए हैं| आज हम आपको एक ऐसा चमत्कारी गणेश मंत्र बताने जा रहे हैं जो तुरंत मन्नत पूरी करता है!

मंत्र

“ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गणपतये वर वरदे नम:”

इस मंत्र का जाप करने लिए सुबह स्नान के बाद मन्दिर या घर में पूर्व दिशा की ओर मुख कर पीले आसन पर बैठें| एक चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर अक्षत की ढेरी या अष्टदल कमल पर श्रीगणेश मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। श्रीगणेश को फूल, चंदन, धूप, दीप व भोग में पीले रंग के लड्डू चढ़ाएं। गौ माता के घी का दीप श्रीगणेश के सामने जलाएं|

श्रीगणेश की कामना विशेष मंत्र को संकल्प लेकर हर रोज 108 बार मंत्र स्मरण करें। चंदन, रुद्राक्ष की माला से 108 बार स्मरण न कर पाएं तो 9, 18, 27 या 54 बार भी जप कर सकते हैं। यह विशेष गणेश मंत्र आसान व मनोरथसिद्धी करने वाला बताया गया है| 

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ऐसे भगाएं तन की दुर्गंध

कई बार ऐसा होता है कि सामने वाले से ऐसी दुर्गंध आती है कि उसके पास बैठना मुश्किल हो जाता है. ऐसा नहीं है कि जो लोग नहीं नहाते, उन्हीं के शरीर से दुर्गंध आती है| कई बार नियमित तौर पर नहाने के बाद भी शरीर से दुर्गंध आती है, जिसका एक कारण तो यह भी है कि आजकल ज्यादातर लोग फील्ड वर्क करते हैं| डियोडोरेंट कुछ समय से ज्यादा शरीर की दुर्गंध को दूर नहीं भगा सकता, परंतु आप अपनी रूटीन में कुछ तरीकों को शामिल कर आसानी से इस समस्या को दूर भगा सकती हैं|

पेट हर हाल में साफ रखें यानी कब्जियत या दूसरी पेट संबंधी कोई समस्यान होने दें। लहसुन, प्याज जैसी तीव्र गंध वाली चीजों से यथा संभव दूरी बनाकर रखें या अधिक सेवन न करें। नियमित व्यायाम अवश्य ही करें, इससे शरीर में बनने वाला दूषित जल पहले ही निकल जाएगा। इसके बाद ही नहाएं ताकि दिनभर अधिक पसीना निकलने की संभावना ही न रहे।

पानी ज्यादा से ज्यादा पीयें, दिन भर में कम से कम 8 से 10 गिलास पानी एक वयस्क व्यक्ति को अवश्य ही पीना चाहिये। शरीर की त्वचा को अधिक से अधिक साफ-सुथरा रखें, हो सके तो नहाते समय मुल्तानी मिट्टी या उससे बने साबुन का ही इस्तेमाल करें। अपने शरीर की प्रकृति और मौसम की अनुसार कपड़े पहनें, भारतीय मौसम में कॉटन के कपड़े ही ज्यादा अनुकूल रहते हैं। कपड़े ऐसे हों जो आपके शरीर को प्राकृतिक वायु से जोड़े रखें।

शरीर से पसीने की दुर्गंध ज्यादा महसूस होती हो तो आप नहाने के पानी में ताजा गुलाब की पत्तियां, यूडीक्लोन, गुलाब जल, नींबू का रस या अन्य कोई खुशबूदार सामग्री मिला कर भी नहा सकती हैं, जो आपके शरीर को कुदरती महक देगी| शरीर से ज्यादा पसीना या दुर्गंध आने पर आप टेल्कम पाऊडर का इस्तेमाल करें, इससे आपके शरीर की दुर्गंध दूर होगी और पसीना भी नहीं आएगा|

रोज नहाने के बाद एक चुटकी बेकिंग सोडा को पानी में मिलाकर अगर आप अपने अंडरआर्म्स पर लगाएंगे तो पसीने से दुर्गंध नहीं आएगी| अगर आपको बहुत अधिक पसीना आता है तो नहाने के बाद एक चुटकी बेकिंग सोडा में नींबू का रस मिलाकर अंडरआर्म्स पर लगाने से भी दुर्गंध से छुटकारा मिलेगा| कपड़े पहनने से पहले अंडरआर्म्स को सूखे कपड़े से जरूर पोछें| एक कपड़े को दोबारा पहनने से पहले जरूर साफ करें. एक ही कपड़े को बार-बार पहनने से पसीने के भाग में संक्रमण भी हो सकता है|

पसीने की बदबू से बचने के लिए नियमित व्यायाम अवश्य ही करें, इससे शरीर में बनने वाला दूषित जल पहले ही निकल जाएगा| इसके बाद ही नहाएं ताकि दिनभर अधिक पसीना निकलने की संभावना ही न रहे| पसीने, गर्मी और प्रदूषण के कारण अक्सर हमारे अंडरआर्म काले पड़ जाते हैं और उससे बदबू भी आने लगती है| इससे छुटकारा पाने के लिए रूई के सहारे नींबू अंडरआर्म में लगाएं या फिर नींबू के एक टुकड़े को उसपर रगड़ें|

हथेली, बगल, माथे, पीठ, घुटनों के पीछे, पैरों की अंगुलियों के बीच में और बॉडी की ऎसी जगहें जो हवा के सीधे संपर्क में नहीं आ पाती, पसीना वहां ज्यादा आता है| बॉडी की दुर्गध को रोकने के लिए आपको अपने इन पार्ट्सस की साफ-सफाई का खयाल रखना होगा| हमेशा अपने अंडरआर्म्स पर वैक्स करवाएं| वैक्सिंग के साथ ही आजकल कई नई तकनीकें भी हैं जो अनचाहे बालों से निजात दिलाती है. लेजर हेअर रीमूवल सबसे एडवांस तकनीक है, जिसे आप आजमा सकती हैं|

खीरे में एंटीऑक्सिडेंट्स भरपूर मात्रा में होते हैं| अगर आप नहाने के बाद कुछ देर खीरे के टुकड़े अपने अंडरआर्म्स पर रखेंगे तो इसमें मौजूद एंटीऑक्सिडेंट्स पसीने के बैक्टीरिया को खत्म कर देंगे| इससे पसीने से दुर्गंध नहीं आएगी|

अनूठा मंदिर: यहां प्याज चढ़ाने से प्रसन्न होते हैं देवता

आमतौर पर मंदिरों में फूल, फल, मेवा-मिठाई का चढ़ावा चढ़ता है, लेकिन राजस्थान में एक ऐसा अनोखा मंदिर है, जहां प्याज का भोग लगाया जाता है| सूत्रों के अनुसार राजस्थान में गोगामे़डी स्थित गोगाजी और गुरू गोरखनाथ मंदिर में लोग बाकायदा प्याज चढ़ा रहे हैं। यह संभवत इकलौता मंदिर है जिसमें देवता को प्याज और दाल चढ़ाई जाती है। लोगों के अनुसार किवदंती है कि यहां पर प्याज व दाल चढाने से देवता प्रसन्न होते हैं। 

बताते हैं कि करीब एक हजार साल पहले यहां गोगाजी व मजमूद गजनवी के बीच युद्ध हुआ था। गोगाजी ने इस युद्ध में सहायता के लिए विभिन्न स्थानों से सेनाएं बुलाई थीं जो अपने साथ भोजन के लिए प्याज और दाल लाए थे। इस युद्ध गोगाजी वीरगति को प्राप्त हुए। वापसी में जब सहायक सेनाएं अपने गंतव्य स्थान को वापस लौट रहीं थी तो लौटने से पहले बची हुई प्याज व दाल गोगाजी की समाधि पर अर्पित कर दी। तब से यह परंपरा है कि जो भी भक्त गोगाजी के दर्शन करने आता है वह प्याज व दाल चढाता है। कहते हैं गोगाजी को प्याज चढ़ाने से भक्त की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं| 

इस मंदिर में भादों के महीने में प्रथम पखवाडे में 15 दिन मेला भरता है और इस मेले में लगभग 40-50 लाख लोग दर्शन के लिए पहुंचते हैं जिससे यहां पर सैकडों क्विंटल प्याज इकटा हो जाती है जिसे बेचकर जो राशि प्राप्त होती है उस राशि से मंदिर का भण्डारा किया जाता है और गौशाला चलाने के काम में यह राशि काम में ली जाती है। 

आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में एक ऐसा मंदिर है जहां लोग इडली, दोसा, सांभर, बड़ा जैसे फास्ट फूड का भोग लगाते हैं| अमरैया चिंगराजपारा के मां धूमावती मंदिर में सिर्फ शनिवार को पूजा-आराधना होती है। लोग चटपटे व्यंजन लेकर मंदिर के द्वार पर खड़े रहते हैं। दूसरी खासियत कि यह देश का दूसरा एकलपीठ है। पहला धूमावती मंदिर मध्यप्रदेश के दतिया में भारत-चीन युद्ध के दौरान भारत की जीत के लिए स्थापित हुआ था।

शिव-शक्ति दुर्गा मंदिर परिसर में 2005 में स्थापित मां धूमावती मंदिर में देवी का स्वरूप तामस है। यही वजह है कि देवी को चटपटे व्यंजनों का ही भोग लगाया जाता है। लहसुन, मिर्च, प्याज से बने व्यंजन तामसी होते हैं। शुरुआत में मिर्ची भजिया चढ़ाने का प्रचलन था। समय के साथ भोग भी बदले और अब इडली-दोसा तक चढ़ाए जाने लगे। इन व्यंजनों को बाद में प्रसाद के तौर पर बांट दिया जाता है। प्राचीन काल में देवी के इस रूप को भोग में बलि चढ़ाने की परंपरा थी। आमतौर पर धूमावती देवी की पूजा मंदिरों के बजाय श्मशानों में होती है, क्योंकि वे तांत्रिक आराधना के लिए जानी जाती हैं।

लीडिया ही नहीं और भी बच्चों के पास है आइंस्टीन जैसा दिमाग

विनीत वर्मा । आमतौर पर किसी भी व्यक्ति के बौद्धिक स्तर यानी आईक्यू को उसकी बौद्धिक योग्यता का पैमाना माना जाता हैं और उसके आईक्यू के आधार पर उसकी परख की जाती है। इंग्लैंड में भारतीय मूल की एक बारह वर्षीय बालिका लीडिया सेबेस्टियन नें आईक्यू टेस्ट में आइंस्टीन जैसे दिग्गज वैज्ञानिक को भी पीछे छोड़ दिया। उसका आईक्यू लेवल अल्बर्ट आइंस्टीन और स्टीफन हॉकिंग जैसे वैज्ञानिकों से भी ज्यादा है। लीडिया ने अधिकतम 162 का स्कोर हासिल किया है। हालांकि हॉकिंग और आइंस्टीन ने कभी इस तरह का आईक्यू टेस्ट नहीं दिया, लेकिन उनका आईक्यू 160 के स्कोर का माना जाता है।

यूके के मेन्सा मे आयोजित एक आईक्यू टेस्ट में लीडिया ने 162 का संभावित सर्वाधिक स्कोर हासिल किया है। ऐसा माना जाता है कि हॉकिंग और आइंस्टीन का आईक्यू 160 था और मेनसा दुनिया की सबसे बड़ी और पुरानी आईक्यू सोसायटी मानी जाती है। इसके बारे में बताते हुए लीडिया कहती हैं कि सुरू में वो काफी नर्वस थीं, लेकिन टेस्ट शुरू होते ही उसे सब आसान लगने लगा। आईक्यू लेवल का टेस्ट मेन्सा सोसायटी की ओर से लिया जाता है, जो दुनिया की सबसे बड़ी संस्था है। इसकी मेंबरशिप कोई भी ले सकता है। इसके टेस्ट में हिस्सा लेने के लिए टॉप 2 फीसदी में आपको जगह बनानी पड़ती है। इसके लिए अलग से चयन प्रक्रिया है। गार्डियन में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक लीडिया ने कहा कि टेस्ट में उसकी भाषा के साथ उसके तार्किक पक्ष का आकलन भी किया गया। 

इस बारे में बताते हुए लीडिया के पिता अरुण सेबेस्टियन जो एसेक्स में एक रेडियोलॉजिस्ट हैं उन्होंने बताया कि उनकी बेटी ने आईक्यू टेस्ट में अपने आप ही रुचि दिखाई और फिर उनकी पत्नी से इस बारे में बात करने के बाद टेस्ट के लिए राजी कर लिया। लीडिया के बारे में कुछ असामान्य बातें जो सुनकर आप चौंक जाएंगे। लीडिया अपने जन्म के छठे महीने में बोलने लगी थी। चार साल की छोटी से उम्र से लीडिया वायलन बजा रहीं हैं और हैरी पॉटर के किताबों के सीरीज को वे तीन बार पढ़ चुकीं हैं। पेपर में भाषाई कौशल, एनालॉजी और परिभाषाएं, तर्क शक्ति से जुड़े सवाल पूछे गए थे। इसमें 150 सवाल होते हैं। बड़ों का अधिकतम स्कोर 161 और 18 साल से कम उम्र के बच्चों का 162 हो सकता है।

आपको बता दें कि लीडिया पहली लड़की नहीं है जिसका दिमाग आईक्यू टेस्ट में आइंस्टीन जैसा है| इंडियन गूगल बॉय के नाम से मशहूर कौटिल्य पंडित का उम्र महज पांच साल 11 महीने में आईक्यू लेवल 130 निकला था | कौटिल्य का दिमाग इतना तेज की कम्प्यूटर और अंतरिक्ष से लेकर इतिहास के सवालों का जवाब तपाक से दे देते हैं| पिता सतीश शर्मा बताते हैं कि कुछ दिन पहले तक कौटिल्य पढ़ने में ध्यान नहीं लगाता था और एक बार तो उन्होंने उसकी पिटाई भी कर दी| लेकिन फिर कौटिल्य का ध्यान पढ़ने में लगने लगा और अब तो वह सवाल पूछना बंद ही नहीं करता है, "वह तब तक पूछता रहता है, जब तक उसे बात समझ नहीं आ जाती|

भले ही दुनिया बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन की दीवानी हो, लेकिन खुद अमिताभ कौटिल्य के दीवाने हैं| बच्चों के लिए एक खास टीवी शो में उनकी मुलाकात कौटिल्य से हुई और तभी से वह पांच साल के इस बच्चे से प्रभावित हैं| उन्होंने तो परिचय भी कुछ इस तरह दिया था देवियो और सज्जनो! ये हैं महा तेज, महा ज्ञानी, महा बुद्धिमान, महा कीर्तिमानी, ओजस्वी, तेजस्वी, यशस्वी, श्रीमान कौटिल्य पंडित जी| फिलहाल कौटिल्य के बारे में यह भी बता दूँ कि कौटिल्य एक ऐसी कार बनाने की सोच रहे हैं जो दुनिया को अंतरिक्ष की सैर कराएगी। पुष्पक विमान से बेहतर होगी, चारों ओर से खुली होगी। जमीन पर भी सबसे तेज फर्राटा भरने वाली कार से लोग घंटों की दूरी मिनटों में तय करेंगे। न खर-खर की होगी आवाज और न होगा ध्वनि प्रदूषण।

कौटिल्य से पहले सिंगापुर के एक ढाई साल के बच्चे का आईक्यू टेस्ट किया गया था जिसमें उसे 142 अंक मिले थे| सामान्य से बहुत ज्यादा आईक्यू लेवल होने के कारण एलिजा कैटलिग को जीनियस क्लब 'मेन्सा' में शामिल किया गया था। जिस समय एलिजा मेन्सा में शामिल किये गए थे उस समय उनकी उम्र सिर्फ 2 साल 6 महीने है, इसी उम्र में वो स्टोरी बुक पढ़ लेते थे और पैटर्न सॉल्व कर लेते थे। साथ ही वो खुद से बहुत ज्यादा बड़े लोगों के लिए बने आईक्यू गेम्स को भी अच्छे से खेल लेते थे। एलिजा के पैरंट्स ने पिछले महीने उनका मनोवैज्ञानिक टेस्ट करवाया जिसमें उनका आईक्यू स्कोर 142 दिखा। विशेषज्ञों का मानना है कि फेमस साइंटिस्ट आइंस्टीन का आईक्यू 160 के आसपास रहा होगा।

एलिजा के अलावा वर्ष 2012 में ब्रिटेन में एक चार साल की लड़की का बौद्धिक स्तर 159 मापा गया था जो कि अलबर्ट आइंस्टीन और स्टीफन हॉकिंग के आई क्यू से मात्र एक अंक कम था| हैंपशायर की हेडी हैन्किंस ने दो वर्ष की आयु में ही चालीस तक गिंती करना सीख लिया था| वह लोगों के चित्र बनाने लगी थीं, कविताएं पढ़ने लगी थी और सात वर्ष के बच्चों के लिए लिखी गई पुस्तकें भी पढ़ने लगी थीं| एक साल के अंदर ही उन्होंने जोड़ना और घटाना भी सीख लिया था| उसके माता पिता 47 वर्षीय मैथ्यू और 43 वर्षीय उम्मीद कर रहे हैं कि उनकी पुत्री को सितंबर में शुरू होने वाले सत्र में स्कूल न जाना पड़े| मेन्सा के अनुसार एक सामान्य व्यक्ति का आइ क्यू 100 होता है जबकि 130 के आई क्यू को अच्छा माना जाता है| 2009 में रेडिंग के ढ़ाई वर्ष के ऑस्कर रिगली को मेन्सा के सबसे कम उम्र के सदस्य होने का सम्मान मिला था| उनका बौद्धिक स्तर 160 मापा गया था|

इसके अलावा अमेरिका के 14 वर्षीय जैकब बार्नेट क्वांटम के आईक्यू को अल्बर्ट आइंस्टीन के आईक्यू से बेहतर आंका गया था| जैकब की इस कामयाबी में उनकी मां क्रिस्टीन बार्नेट का अहम योगदान रहा है| जब बार्नेट महज साढ़े तीन साल के हुए तो एक दिन क्रिस्टीन उन्हें पड़ोस के ताराघर ले गई| जहां एक प्रोफेसर एक लेक्चर देने के बाद बच्चों से सवाल पूछ रहे थे| क्रिस्टीन ये देखकर आश्चर्य में पड़ गईं कि जैकब हर सवाल का सही जवाब दे रहा था| इसके बाद क्रिस्टीन ने अपने बेटे को पढ़ाने के लिए एक नई तरकीब विकसित की, मचनेस के नाम से. इस तरकीब के जरिए क्रिस्टीन ने हर उस काम को करने पर जोर दिया जिससे जैकब का उत्साह और मनोबल बढ़ता था| इसके चलते क्रिस्टीन ने दूसरे सामान्य बच्चों के बीच जैकब को खेलने कूदने का भी मौका दिया और देखते देखते जैकब के जीवन में तेजी से बदलाव आने लगा| महज आठ साल की उम्र में जैकब कॉलेज में पढ़ने लगे|

जैकब बार्नेट क्वांटम के अलावा अमेरिका की ही रहनी वाली एक तीन साल लड़की को जीनियस क्‍लब ‘मेन्‍सा’ में शामिल कर लिया गया था। उसका भी बौद्धिक स्तर आइंस्टीन के करीब निकला था| ऐलेक्सिस नाम की इस लड़की के माता-पिता का कहना कि उन्हें लड़की के इतने तेज दिमाग की जानकारी तब हुई जब उसने एक रात पहले सुनी कहानी को बिल्‍कुल उसी तरह दोहरा दिया। ऐलेक्सिस स्‍पेनिश भाषा भी काफी अच्छे ढंग से बोल लेती है। ऐलेक्सिस ने ये भाषा एक एप्प के जरिये सीखी थी। वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि ऐलेक्सिस का आईक्यू एल्‍बर्ट आइंस्‍टीन के आईक्‍यू के बराबर है हालांकि आजतक आइंस्‍टीन ने किसी तरह के आईक्‍यू कम्पटीशन में भाग नहीं लिया था। ऐलेक्सिस का नाम मेन्‍सा में शामिल होने पर विशेषज्ञों ने कहा कि मेन्‍सा में सिर्फ वही लोग शामिल हो पाते हैं जिनका आईक्‍यू बहुत ऊंचा हो और ऐलेक्सिस को उन लोगों में शामिल किया गया है।

जानिए मशहूर संगीतकार आदेश श्रीवास्तव से जुड़ी कुछ ख़ास बातें

कैंसर से पीड़ित मशहूर संगीतकार आदेश श्रीवास्तव का शुक्रवार-शनिवार की दरम्यानी रात साढ़े 12 बजे निधन हो गया। 51 साल के आदेश पिछले करीब 40 दिनों से अंधेरी के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में कैंसर के इलाज के लिए भर्ती थे।

अपने सुरीले, रोमांटिक गीतों के लिए मशहूर संगीतकार-गायक आदेश श्रीवास्तव ने हिन्दी फिल्मों में अमिताभ बच्चन से लेकर शाहरूख खान और रणबीर कपूर तक पुराने और नए दोनों तरह के कलाकारों के लिए संगीत रचना की थी। चाहे वह ‘बागबान’ में अमिताभ, हेमा मालिनी पर फिल्माया गया भावुक गीत ‘मैं यहां तू वहां’ हो, शाहरूख की फिल्म ‘चलते चलते’ का ‘सुनो ना सुनो ना’ हो या रणबीर की ‘राजनीति’ का ‘मोरा पिया’ गाना, आदेश ने अपने साफ सुथरे, तरोताजा और सादगी से भरे संगीत से अपनी उत्कृष्टता दिखायी थी।

हिन्दी फिल्मों में अपने करियर के अलावा आदेश एकमात्र ऐसे भारतीय कलाकार थे जिन्होंने एकॉन, टी-पेन, नोरा जोन्स, सोल्जा बे, क्वीन लतीफा, शकीरा और विक्लेफ ज्यां जैसे अंतरराष्ट्रीय संगीत कलाकारों के साथ काम किया था। उन्होंने अपने करियर में 100 से अधिक हिन्दी फिल्मों और कई एलबमों में संगीत दिया।

आपको बता दें कि आदेश श्रीवास्तव का जन्म मध्य प्रदेश के जबलपुर में हुआ था। उनके पिता रेलवे में सुपरिटेंडेंट और मां एक कॉलेज में लेक्चरार थीं। संगीत में रुचि होने की वजह से आदेश ने बचपन से संगीत की दुनिया में कदम रख दिया था। उन्हें स्कूल-कॉलेज में जब कभी संगीत प्रदर्शन और सीखने का कोई मौका मिलता फौरन वहां पहुंच जाते। आदेश ने जतिन ललित की बहन अभिनेत्री विजेता पंडित से शादी की। इनके अवितेश और अनिवेश नाम के दो बेटे भी हैं।

संगीत के प्रति अपने जुनून के कारण उन्होंने संगीतकार के तौर पर करियर बनाने का फैसला किया और अपनी किस्मत आजमाने मुंबई आ गए। उन्होंने करीब एक दशक तक प्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के साथ काम किया और फिर पेशेवर संगीतकार के तौर पर काम करना शुरू कर दिया। आदेश को पहला बड़ा ब्रेक 1993 में ‘कन्यादान’ फिल्म के साथ मिला। सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने उनके लिए अपना पहला गाना भी गाया लेकिन बदकिस्मती से फिल्म रिलीज नहीं हुई और आदेश के काम पर किसी का ध्यान नहीं गया।

आदेश की अगली फिल्म ‘जाने तमन्ना' का भी यही हाल रहा और उनके काम पर लोगों का ध्यान नहीं गया| बहरहाल, ‘आओ प्यार करे' फिल्म से वह चर्चा में आए| इस फिल्म की ‘हाथों में जो' गीत हिट रही और उनका सितारा चमक उठा| उनकी अन्य फिल्में ‘सलमा पे दिल आ गया' और ‘शस्त्र' थीं| फिल्म ‘शस्त्र' के गीत ‘क्या अदा क्या जलवे तेरे पारो' ने उन्हें शोहरत दिलाई| 1998 में ‘अंगारे' फिल्म में दिया गया उनका संगीत भी हिट रहा| अन्य फिल्में जिनमें उन्होंने संगीत दिया उनमें ‘रहना है तेरे दिल में', ‘दीवानापन', ‘चलते चलते', ‘बाबुल', ‘खुदा कसम' और ‘कभी खुशी कभी गम' शामिल हैं. उन्होंने पार्श्व गायन में भी हाथ आजमाया और 2010 में आयी ‘राजनीति' फिल्म में उनका अर्द्ध शास्त्रीय गीत ‘मोरा पिया' हिट रहा|

आदेश श्रीवास्तव ऐसे भाग्यशाली म्यूजिक डायरेक्टर्स में शुमार हैं जिनकी पहली फिल्म के लिए लता मंगेशकर ने गाना गाया। हालांकि आदेश की यह फिल्म दुर्भाग्यवश रिलीज नहीं हो पाई। आदेश की फिल्म 'जाने तमन्ना' के साथ भी ऐसा ही हुआ। हालांकि इसके बावजूद आदेश ने हथियार नहीं डाले और फिल्म 'आओ प्यार करें' से जबरदस्त वापसी की। इस फिल्म के गाना 'हाथों में आ गया जो कल रुमाल आपका...', से आदेश को जो पहचान मिली, वो आज तक कायम है।

आदेश के करियर ने अभी पूरी तफ्तार भी नहीं पकड़ी थी कि उनकी जिंदगी को बड़ा झटका लगा। 2011 में आदेश को पता चला कि उन्हें ब्लड कैंसर है। पहली बार कैंसर का पता लगने के बाद आदेश ने कहा था कि एकदम से बीमार पड़ना बहुत कष्ट भरा है। जिन लोगों के साथ मैंने बरसों काम किया उनके ठंडे रुख ने मुझे इस बीमारी से ज्यादा तकलीफ पहुंचाई है। जब मैं बीमार हुआ तो कोई मुझसे मिलने नहीं आया। असल में आदेश ड्राइविंग के शौकीन थे। वह अक्सर अलग-अलग गाड़ियां ड्राइव करते हुए नजर आते थे। उन्होंने हमर और बैंटली ड्राइव करते हुए अपनी फोटो भी फेसबुक पर शेयर की हैं। इलाज के लिए उन्होंने अपनी महंगी कारें बेच दीं। इसी तरह के हालत इस बार फिर बन गए थे। जब उन्हें रोज 12-12 लाख की इंजेक्‍शन लगाने पड़ रहे थे।

फिलहाल आपको यह भी बता दें कि आदेश श्रीवास्तव की मौत से बॉलीवुड भी सदमें में है| फिल्मी जगत के तमाम सितारों ने ट्विटर पर आदेश की मौत पर अपनी श्रद्धांजलि दी और दुख व्यक्त किया है। बॉलीवुड अभिनेता ऋषि कपूर ने लिखा, "#RIP आदेश श्रीवास्तव।" अभिनेता रितेश देशमुख ने कहा, बहुत ही दुखद है, भगवान आदेश श्रीवास्तव की आत्मा को शांति दे...आप अपने संगीत, बड़ीसी हंसी और गर्मजोशी के लिए हमेशा याद आएंगे। अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ने लिखा, "#RIP आदेश श्रीवास्तव। मेरी संवेदना परिवार के साथ है"

गायक सोनू निगम ने लिखा, #RIP आदेश श्रीवास्तव। अभिनेता अर्जुन कपूर, इस जानलेवा बीमारी ने एक और की जान ले ली। भगवान आदेश श्रीवास्तव की आत्मा को शांति दे। गायक कैलाश खेर ने लिखा, अपने नियमों को भगवान ही जानता है, मैं परिवार के लिए प्रार्थना करता हूं। #RIP आदेश श्रीवास्तव। अभिनेत्री माधुरी दिक्षित ने कहा, दुनिया ने एक बेहद टैलेन्टड संगीतकार और एक अच्छी आत्मा को खो दिया। भगवान आदेश श्रीवास्तव की आत्मा को शांति दे। हमारी संवेदना उनके परिवार के साथ है।

...यहां संतान प्राप्ति के लिए महिलाएं भरती हैं यशोदा मैया की गोद

देश और दुनिया में कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जा रहा है। राधा-कृष्ण के मंदिरों में श्रद्धालु उत्सव मना रहे हैं, मगर इंदौर में एक ऐसा मंदिर है जहां श्रद्धालु माता यशोदा की पूजा करते हैं। बाल गोपाल को गोद में लिए यशोदा मां के इस मंदिर में मान्यता है कि यहां गोद भराई की रस्म करने वाली महिलाओं को संतान की प्राप्ति होती है। जन्माष्टमी का पर्व इस बार रविवार और सोमवार को मनाया जा रहा है, मध्य प्रदेश में यह पर्व अधिकांश स्थानों पर सोमवार को मनाया जाएगा।

हर तरफ तैयारियां चल रही हैं, इंदौर के यशोदा माता मंदिर में रविवार को भी महिलाओं ने आराधना कर अपनी गोद भराई की रस्म कराई ताकि उनकी गोद भर सके। लगभग दो शताब्दी पुराने इस मंदिर में माता यशोदा कृष्ण को गोद में लिए दुलार रही हैं। यह प्रतिमा मनमोहक है और वात्सल्य प्रेम का अनुपम उदाहरण है। मंदिर के पुजारी मनोहर दीक्षित बताते हैं कि इस मंदिर का विशेष महत्व है और माना जाता है कि यहां आने वाली महिलाओं की मनोकामना पूरी होती है, और उनकी गोद भर जाती है।

दीक्षित के अनुसार इस मंदिर में हर गुरुवार महिलाओं की गोद भराई की रस्म होती है, जन्माष्टमी पर यहां आने वाली महिलाएं भी इस रस्म को निभाती हैं। इस रस्म में महिला की गोद में सवा किलोग्राम चावल, नारियल, मीठा और वस्त्र डाला जाता है। यहां आने वाली महिलाओं को निराशा नहीं हाथ लगती। यहां गोद भरने की कामना लेकर आई लक्ष्मी शर्मा बताती हैं कि उन्होंने कई महिलाओं से सुना है कि यशोदा माता मंदिर में दर्शन करने से गोद भर जाती है इसीलिए वह भी यहां आई हैं। उन्होंने यशोदा माता से कामना की है कि वे उनकी भी गोद भर दें। स्थानीय लोग बताते हैं कि यशोदा माता मंदिर में विभिन्न स्थानों से आई महिलाएं अपनी मनोकामना पूरी होने की कामना करती हैं, और सोमवार को जन्माष्टमी पर इस मंदिर में महिलाओं का तांता लगा रहेगा।

राष्ट्रीय एकता की सच्ची तस्वीर, यहां मुस्लिम भाई मनाते हैं जन्माष्टमी

राजस्थान में एक जगह ऐसा भी है, जहां मुस्लिम समुदाय के लोग दरगाह में जन्माष्टमी पर्व धूमधाम से मनाते हैं। लेकिन बेहद कम लोगों को ही इसकी जानकारी होगी। राजधानी जयपुर से 200 किलोमीटर दूर झुंझुनू जिले के चिरवा स्थित नरहर दरगाह, जिसे शरीफ हजरत हाजिब शकरबार दरगाह के रूप में भी जाना जाता है, में भगवना कृष्ण के जन्मदिन यानी जन्माष्टमी के अवसर पर तीन दिनों का उत्सव आयोजित किया जाता है।
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दरगाह के सचिव उस्मान अली पठान ने कहा कि यह पर्व पिछले 300-400 वर्षों से मनाया जा रहा है। यहां हर समुदाय के लोग आते हैं। इस समारोह का मुख्य उद्देश्य हिंदुओं और मुस्लिमों में भाईचारे को बढ़ावा देना है। त्योहार के दौरान यहां बिहार, महाराष्ट्र, दिल्ली, हरियाणा, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश समेत कई राज्यों के लोग आते हैं। उन्होंने कहा कि यहां हजारों हिंदू आते हैं और दरगाह में फूल, चादर, नारियल और मिठाइयां चढ़ाते हैं। त्योहार के दौरान दरगाह के आसपास 400 से ज्यादा दुकानें सज जाती हैं।

जन्माष्टमी की रात यहां मंदिरों की तरह ही कव्वाली, नृत्य और नाटकों का आयोजन होता है। पठान कहते हैं कि यह कहना बेहद मुश्किल है कि यह त्योहार कब और कैसे शुरू हुआ, लेकिन इतना जरूर है कि यह राष्ट्रीय एकता की सच्ची तस्वीर पेश करता है। क्योंकि त्योहार को यहां हिंदू, मुस्लिम और सिख साथ मिलकर मनाते हैं। उन्होंने कहा कि नवविवाहित जोड़े यहां खुशहाल और लंबे वैवाहिक जीवन की मन्नतें मांगने आते हैं। पास के गांव की रेखा ने कहा कि वह यहां पिछले दो साल से आ रही हैं। यहां आकर उन्हें मानसिक शांति मिलती है। साथ ही वह मेले का भी लुत्फ उठाती हैं।

जब पाप का अंत करने धरा पर आए भगवान

भगवान विष्णु के दस अवतारों में दो अवतार ऐसे हैं जिनका भारतीय जीवन पर गहरा असर है। ये दो अवतार श्रीरामावतार और श्रीकृष्णावतार हैं। कलाओं की दृष्टि से भगवान श्रीकृष्ण को पूर्णावतार माना गया है। भगवान श्रीकृष्ण कई मायनों भारतीय जीवन को दिशा देते हैं। असल में विष्णु का यह अवतार अपने समय के समाज से लेकर आज के आधुनिक समाज तक का दिशा-निर्देशन करता है। श्रीकृष्ण का विराट व्यक्तित्व और उनकी शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं।

भारतीय चिंतन परंपरा की अमूल्य धरोहर और ज्ञान, भक्ति और कर्म की त्रिवेणी 'भगवत् गीता' श्रीकृष्ण के उपदेश का संकलन माना जाता है। कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र में स्वजनों से युद्ध करने में अर्जुन की किंतर्व्य विमूढ़ता और अनाशक्ति को दूर करने के लिए भगवान ने जो कुछ कहा था वही गीता में पद्य के रूप में संकलित किया गया है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्र मास (भादो महीना) की अष्टमी तिथि को मध्यरात्रि में हुआ था। पुरा आख्यानकों और जनश्रुतियों के मुताबिक उस समय मथुरा के राजा कंस के अत्याचार से लोक जगत त्राहि-त्राहि कर रहा था। कंस का संहार करने के लिए ही भगवान विष्णु देवकी और वसुदेव के आठवें पुत्र के रूप में उत्पन्न हुए थे।

कथा के अनुसार, देवकी कंस की बहन थी। उनका विवाह बड़ी धूमधाम से वसुदेव के साथ हुआ था। विदा वेला में आकाशवाणी से कंस को ज्ञात हुआ कि जिस बहन के प्रति वह इतना प्रेम दिखा रहा है उसी के गर्भ से उत्पन्न होने वाला आठवां पुत्र उसका वध करेगा। इसके बाद कंस ने अपनी बहन और बहनोई को कैद कर लिया और उनकी हर संतान का वध करने लगा। आठवीं संतान के रूप में जब श्रीकृष्ण का जन्म हुआ तब माया के प्रभाव से सभी प्रहरी निद्रा के आगोश में समा गए और वसुदेव बालक श्रीकृष्ण को लेकर गोकुल में अपने मित्र नंद के यहां छिपा आए। 

नंद की पत्नी यशोदा ने एक मृत बच्ची को जन्म दिया था जिसे वे अपने साथ लेते आए और उसे कंस को अगले दिन सौंप दिया। किंवदंती है कि सौंपे जाने से पूर्व बच्ची जीवित हो उठी थी और जैसे ही कंस ने उसे पत्थर पर पटकना चाहा, वह उसके हाथों से छूट गई और उसने अट्टहास करते हुए कहा, "तुम्हारा वध करने वाला तो गोकुल में खेल रहा है।" यहीं से कंस और कृष्ण के बीच द्वंद्व की शुरुआत होती है जो कंस के वध तक जारी रहती है। 

कृष्ण जन्मोत्सव का दिन भारत में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। कृष्ण जन्मभूमि मथुरा में देश-विदेश से लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। देशभर में पूरे दिन व्रत रखकर नर-नारी तथा बच्चे रात्रि 12 बजे मंदिरों में अभिषेक होने पर पंचामृत ग्रहण कर व्रत खोलते हैं। कृष्ण के जन्म स्थान मथुरा के अलावा गुजरात के द्वारकाधीश मंदिर सहित देश के सभी कृष्ण मंदिरों में भव्य समारोह का आयोजन होता है। विशेष रूप से यह महोत्सव वृंदावन, मथुरा (उत्तर प्रदेश), द्वारका (गुजरात), गुरुवयूर (केरल), उडूपी (कर्नाटक) तथा देश-विदेश में स्थित इस्कॉन के मंदिरों में आयोजित होते हैं।