आप जब भी शिव मंदिर में भगवान भोलेनाथ के मंदिर में दर्शनों के लिए जाते हैं तो आपने देखा होगा कि देवाधि देव महादेव के साथ उनका बैल नंदी जरुर होता है| क्या आप जानते हैं कि भगवान भोलेनाथ के मंदिर में उनके सामने नंदी क्यों बैठाया जाता है और उसका मुंह शंकर की तरफ ही क्यों किया जाता है? अगर नहीं तो आज हम आपको बताते हैं|आपको बता दें कि भगवान शंकर के मंदिर में उनके सामने उनकी सवारी नंदी को इसलिए स्थापित करते हैं क्योंकि शिवजी का वाहन नंदी पुरुषार्थ यानी मेहनत का प्रतीक है। अब सवाल यह बनता है कि नंदी शिवलिंग की ओर ही मुख करके क्यों बैठा होता है? जानते हैं दरअसल नंदी का संदेश है कि जिस तरह वह भगवान शिव का वाहन है। ठीक उसी तरह हमारा शरीर आत्मा का वाहन है।जिस प्रकार नंदी की नज़र भगवान शंकर की तरफ होती हैं उसी तरह हमारी नजर भी आत्मा की ओर होनी चाहिए| इस प्रकार हर मनुष्य को अपने दोषों को देखना चाहिए। हमेशा दूसरों के लिए अच्छी भावना रखना चाहिए। आपको बता दें कि भगवान शंकर की सवारी नंदी का इशारा यही होता है कि शरीर का ध्यान आत्मा की ओर होने पर ही हर व्यक्ति चरित्र, आचरण और व्यवहार से पवित्र हो सकता है।
क्या आपको पता है कि छोटे बच्चों या लड़कियों की सुंदरता को किसी भी बुरी नजर न लगे इसके लिए उन्हें काला धागा क्यों बांधा जाता है| अगर नहीं पता है तो हमारे ज्योतिषाचार्य आचार्य विजय कुमार बताते हैं कि बुरी नजर लगने के पीछे वैज्ञानिक कारण भी हो सकते हैं।आप भी जानते हैं कि हमारा शरीर पंच तत्वों से मिलकर बना है। यह पंच तत्व हैं- पृथ्वी, वायु, अग्नि, जल और आकाश। इन्हीं पंच तत्वों से मिलने वाली ऊर्जा ही हमारे शरीर का संचालन करती हैं। इनसे मिलने वाली ऊर्जा से ही हम सभी सुविधाओं को प्राप्त करते हैं। जब किसी इंसान की बुरी नजर हमारी सुविधाओं को लगती है तब इन पंच तत्वों से मिलने वाली संबंधित सकारात्मक ऊर्जा हम तक नहीं पहुंच पाती है। इसीलिए गले में काला धागा बांधा जाता है।अगर हम बुरी नज़र से बचने के लिए काले धागे के प्रयोग की बात करें तो इसकी वैज्ञानिक मान्यता यह है कि काला रंग उष्मा का अवशोषक होता है। यह माना जाता है कि काला धागा बुरी नजर को या बुरा ऊर्जाओं को अवशोषित कर लेता है व उनका प्रभाव हम पर नहीं पडऩे देता है। यही वजह है कि बुरी नज़र से बचने के लिए काला धागा बांधा जाता है| इसके आलावा बुरी नज़र से बचने के लिए लोग काला टीका भी लागते है|
अगर आप कहीं पूजा में या मंदिर जाते होंगे तो आपने देखा होगा कि लोग पूजा करते समय या पूजा में बैठते समय अपने सिर को ढक लेते हैं| क्या आपको पता है पूजा करते समय आखिर क्यों ढका जाता है सिर| आपको बता दें कि हमारी परंपरा में सिर को ढकना स्त्री और पुरुषों सबके लिए आवश्यक किया गया था। सभी धर्मों की स्त्रियां दुपट्टा या साड़ी के पल्लू से अपना सिर ढंककर रखती थी। इसीलिए मंदिर या किसी अन्य धार्मिक स्थल पर जाते समय या पूजा करते समय सिर ढकना जरूरी माना गया था। लेकिन सिर ढकने का एक वैज्ञानिक कारण भी है| दरअसल सिर मनुष्य के अंगों में सबसे संवेदनशील भाग होता है। ब्रह्मरंध्र सिर के बीचों-बीच स्थित होता है। मौसम के मामूली से परिवर्तन के दुष्प्रभाव ब्रह्मरंध्र के भाग से शरीर के अन्य अंगों पर आते हैं। इसीलिये सिर को ढक लिया जाता है| इसके अलावा आकाशीय विद्युतीय तरंगे खुले सिर वाले व्यक्तियों के भीतर प्रवेश कर क्रोध, सिर दर्द, आंखों में कमजोरी आदि रोगों को जन्म देती है। इसलिए इन सब से बचने के लिए औरतें और पुरुष अपना सिर ढक लेते हैं| इसी कारण सिर और बालों को ढककर रखना हमारी परंपरा में शामिल था। इसके बाद धीरे-धीरे समाज की यह परंपरा बड़े लोगों को या भगवान को सम्मान देने का तरीका बन गई। साथ ही इसका एक कारण यह भी है कि सिर के मध्य में सहस्त्रारार चक्र होता है। पूजा के समय इसे ढककर रखने से मन एकाग्र बना रहता है। इसीलिए नग्न सिर भगवान के समक्ष जाना ठीक नहीं माना जाता है। यह मान्यता है कि जिसका हम सम्मान करते हैं या जो हमारे द्वारा सम्मान दिए जाने योग्य है उनके सामने हमेशा सिर ढककर रखना चाहिए। इसीलिए पूजा के समय सिर पर और कुछ नहीं तो कम से कम रूमाल ढक लेना चाहिए। इससे मन में भगवान के प्रति जो सम्मान और समर्पण है उसकी अभिव्यक्ति होती है।
किसी भी महीने की अमावस्या जब सोमवार को होती है, तो उसे सोमवती अमावस्या कहते है| हिन्दू ग्रंथों में माघ मास को बेहद पवित्र माना जाता है। माघ मास के कृष्णपक्ष की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहते हैं। ग्रंथों में ऐसा उल्लेख है कि इसी दिन से द्वापर युग का शुभारंभ हुआ था। दुख दरिद्र और सभी को सफलता दिलाने वाली मौनी अमावस्या 23 जनवरी दिन सोमवार को पड़ने जा रही है। इस बार अमावस्या सोमवार के दिन पड़ने से सोने पर सुहागा से कम नहीं है। इस दिन सूर्य और चंद्रमा मकर राशि में समान अंश पर होंगे। इसके बाद यह दुर्लभ संयोग के लिए 20 साल का इंतजार करना होगा। यानी 20 जनवरी 2036 को मौनी अमावस्या के साथ सोमवती अमावस्या के योग बनेंगे। मौनी अमावस्या का महत्व-माघ मास की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है| इस दिन सूर्य तथा चन्द्रमा गोचरवश मकर राशि में आते हैं| ऐसा माना गया है कि इस दिन सृष्टि के निर्माण करने वाले मनु ऋषि का जन्म भी माना जाता है| लोगों का यह भी मानना है कि इस दिन ब्रह्मा जी ने मनु महाराज तथा महारानी शतरुपा को प्रकट करके सृष्टि की शुरुआत की थी, इसलिए भी इस अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है| मौनी अमावस्या में स्नान करने की विधि-माघ मास की अमावस्या जिसे मौनी अमावस्या कहते हैं। यह योग पर आधारित महाव्रत है । मान्यताओं के अनुसार इस दिन पवित्र संगममें देवताओं का निवास होता है इसलिए इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। इस मास को भी कार्तिक के समान पुण्य मास कहा गया है। गंगा तट पर इस करणभक्त जन एक मास तक कुटी बनाकर गंगा सेवन करते हैं। इस दिन व्यक्ति विशेष को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान, पुण्य तथा जाप करने चाहिए| यदि किसी व्यक्ति की सामर्थ्य त्रिवेणी के संगम अथवा अन्य किसी तीर्थ स्थान पर जाने की नहीं है तब उसे अपने घर में ही प्रात: काल उठकर दैनिक कर्मों से निवृत होकर स्नान आदि करना चाहिए अथवा घर के समीप किसी भी नदी या नहर में स्नान कर सकते हैं क्योंकि पुराणों के अनुसार इस दिन सभी नदियों का जल गंगाजल के समान हो जाता है| स्नान करते हुए मौन धारण करें और जाप करने तक मौन व्रत का पालन करें| इस दिन व्यक्ति प्रण करें कि वह झूठ, छल-कपट आदि की बातें नहीं करेगें| इस दिन क्यों रखा जाता है मौन-विद्वानों के अनुसार इस दिन व्यक्ति विशेष को मौन व्रत रखना चाहिए| मौन व्रत का अर्थ है कि व्यक्ति को अपनी इन्द्रियों को अपने वश में रखना चाहिए| धीरे-धीरे अपनी वाणी को संयत करके अपने वश में करना ही मौन व्रत है| कई लोग इस दिन से मौन व्रत रखने का प्रण करते हैं | वह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि कितने समय के लिए वह मौन व्रत रखना चाहता है| प्रत्येक मनुष्य के अंदर तीन प्रकार का मैल होता है| कर्म का मैल, भाव का मैल तथा अज्ञान का मैल| इन तीनों मैलों को त्रिवेणी के संगम पर धोने का महत्व है| त्रिवेणी के संगम पर स्नान करने से व्यक्ति के अंदर स्थित मैल का नाश होता है और उसकी अन्तरआत्मा स्वच्छ होती है, इसलिए व्यक्ति को इस दिन मौन व्रत धारण करके ही स्नान करना चाहिए क्योंकि ऐसा माना जाता है कि त्रिवेणी के संगम में मौनी अमावस्या के दिन स्नान करने से सौ हजार राजसूय यज्ञ के बराबर फल की प्राप्ति होती है अथवा इस दिन संगम में स्नान करना और अश्वमेघ यज्ञ करना दोनों के फल समान है|मौनी अमावस्या की कथा-प्राचीन समय में कांचीपुरी में देवस्वामी नाम का ब्राह्मण रहता था| उसकी पत्नी का नाम धनवती था| देवस्वामी की आठ संताने थी| सात पुत्र और एक पुत्री थी| उसकी पुत्री का नाम गुणवती था| ब्राह्मण ने अपने सातों पुत्र के विवाह के बाद अपनी पुत्री के लिए योग्य वर की तलाश में अपने सबसे बडे़ पुत्र को भेजा| उसी दौरान किसी ज्योतिषी ने कन्या की कुण्डली देखकर कहा कि विवाह समाप्त होते ही वह विधवा हो जाएगी| इससे देवस्वामी तथा अन्य सदस्य चिन्तित हो गये| देवस्वामी ने गुणवती के वैधव्य दोष के निवारण के बारे में ज्योतिषी से पूछा तब उसने कहा कि सिंहल द्वीप में सोमा नाम की धोबिन रहती है| सोमा का पूजन करने से गुणवती के वैधव्य दोष का निवारण हो सकता है| आप किसी भी प्रकार सोमा को विवाह होने से पहले यहाँ बुला लें| यह सुनने के पश्चात गुणवती और उसका सबसे छोटा भाई सिंहल द्वीप की ओर चल दिए| सिंहल द्वीप सागर के मध्य स्थित था| दोनों बहन-भाई सागर तट पर एक वृक्ष के नीचे सागर को पार करने की प्रतीक्षा में बैठ गए| दोनों को सागर पार करने की चिन्ता थी\ उसी वृक्ष के ऊपर एक गिद्ध ने अपना घोंसला बना रखा था| उस घोंसले में गिद्ध के बच्चे रहते थे\ जब शाम को गिद्ध अपनी पत्नी के साथ घोंसलें में लौटा तब उसके बच्चों ने बताया कि इस वृक्ष के नीचे बहन-भाई सुबह से भूखे-प्यासे बैठे हैं| जब तक वह दोनों खाना नहीं खाएंगें, हम भी भोजन ग्रहण नहीं करेगें|गिद्ध ने दोनों बहन-भाइयों को भोजन कराया तथा उनके वहाँ आने का कारण पूछा तब उन्होंने सारा वृतांत सुनाया| सारी बातें जानने के बाद गिद्ध ने उन्हें सिंहल द्वीप पर पहुंचाने का अश्वासन दिया| अगले दिन सुबह ही गिद्ध ने दोनों को सिंहल द्वीप पहुंचा दिया| सिंहल द्वीप पर आने के बाद दोनों बहन-भाइयों ने सोमा धोबिन के घर का काम करना शुरु कर दिया| सारे घर की साफ सफाई तथा घर के अन्य कार्य दोनों बहन-भाई बहुत ही सफाई से करने लगे| सुबह सोमा जब उठती तब उसे हैरानी होती कि कौन यह सब कम कर रहा है| सोमा ने अपनी पुत्रवधु से पूछा तब उसने बडे़ ही चतुराई से कहा कि हम करते हैं और कौन करेगा| सोमा को अपनी बहु की बातों पर विश्वास नहीं हुआ और उसने उस रात जागने का निर्णय किया| तब सोमा ने देखा कि गुणवती अपने छोटे भाई के साथ सोमा के घर का सारा कार्य निबटा रही है| सोमा उन दोनों से बहुत प्रसन्न हुई और उनके ऎसा करने का कारण पूछा तब उन्होंने गुणवती के विवाह तथा उसके वैधव्य की बात बताई|सोमा ने गुणवती को आशीर्वाद दिया, लेकिन दोनों बहन-भाई सोमा से अपने साथ विवाह में चलने की जिद करने लगे| सोमा उनके साथ चलने के लिए तैयार हो गई और अपनी पुत्रवधु से कहा कि यदि परिवार में किसी कि मृत्यु हो जाती है तब उसका अंतिम संस्कार ना करें, मेरे घर आने की प्रतीक्षा करें| गुणवती का विवाह होने लगा| विवाह समाप्त होते ही गुणवती के पति का देहांत हो गया| सोमा ने अपने अच्छे कर्मों के बल पर गुणवती के मरे हुए पति को अपने आशीर्वाद से दोबारा जीवित कर दिया, लेकिन ऎसा करने पर सोमा के सभी अच्छे कर्म समाप्त हो गये और सिंहल द्वीप पर रहने वाले उसके परिवार के सदस्यों का देहान्त हो गया| सोमा ने वापस अपने घर जाते हुए रास्ते में ही अपने संचित कर्मों को फिर से एकत्रित करने की बात सोची और रास्ते में एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर पूजा की और पीपल के वृक्ष की 108 बार परिक्रमा की| ऎसा करने पर उसके परिवार के मृतक सदस्य दोबारा जीवित हो गये, सोमा को उसके नि:स्वार्थ भाव से की गई सेवा का फल मिल गया|
हनुमान जी को हिन्दु धर्म में कष्त विनाशक और भय नाशक देवता के रूप में जाना जाता है| हनुमान जी अपनी भक्ति और शक्ति के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं| सारे पापों से मुक्त करने ओर हर तरह से सुख-आनंद एवं शांति प्रदान करने वाले हनुमान जी की उपासना लाभकारी एवं सुगम मानी गयी है। पुराणों के अनुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी मंगलवार, स्वाति नक्षत्र मेष लग्न में स्वयं भगवान शिवजी ने अंजना के गर्भ से रुद्रावतार लिया।क्या आपको पता है कि मंगल की पूजा मे भात यानी चावल, लाल गुलाल ये चीजें ऐसी हैं जो अनिवार्य मानी गई हैं। अगर नहीं तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि मंगल की पूजा में यह वस्तुएं चढ़ाने से वे व्यक्ति के अनुकुल असर करते हैं। आखिर फूलों में लाल गुलाब ही मंगल को क्यों प्रिय है? लाल गुलाब न हो तो लाल रंग का कोई दूसरा फूल भी उन्हें चढ़ाया जा सकता है। आखिर लाल फूल खासतौर पर गुलाब ही मंगल को क्यों चढ़ाया जाता है?आपको बता दें कि मंगल अग्नि का कारक ग्रह है। उसका स्वरूप लाल है। मंगल लाल कपड़े, लाल फूल आदि से प्रसन्न होते हैं। बताते हैं कि गुलाब का रंस और गंध दोनों ही मानव शरीर को ठंडक देने वाला हैं। गर्मियों में गुलाब का शरबत भी बनाया जाता है जो मानव शरीर में शीतलता प्रदान करता है।
क्या आपको पता है कि मनुष्य की कब आरती की जाती है अगर नहीं तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि मनुष्य की कब आरती की जाती है| आपको बता दें कि मनुष्य की मुख्य रूप से तीन बार आरती की जाती है| पहला शुभ कार्य के प्रारंभ में, दूसरा अत्यधिक यश प्राप्त होने पर और तीसरा प्राणोत्क्रमण के बाद।आपको बता दें कि घर में धार्मिक कार्यो के अवसरों पर एवं नैमित्तिक व्रत के दिन उतारी जाने वाली आरती को कुर्वडी कहते हैं। शुभ कार्य के प्रारंभ में पुण्याह वाचन करके व्यक्ति की आरती उतारें। पुण्याह वाचन के समय ली गई कुर्वडी के बाद एक दूसरे को शक्कर, पेडे एवं गुड आदि मीठे पदार्थ दिए जाते हैं।इसके बाद जब कोई व्यक्ति विजय प्राप्ति करके आता है या वश की प्राप्ति करके आता है तो उसकी कुर्वडी उतारने का रिवाज है। कुर्वडी की आरती पुण्याह वाचन के लिए बैठे स्त्री, पुरूष तथा बच्चो की उतारी जाती है जबकि विजयोत्सव की कुर्वडी केवल पुरूष ही करते हैं। कुर्वडी करने का अधिकार केवल सुहागिन स्त्रियों को है। यदि सुहागिन स्त्री उपस्थित न हो तो कुमारी कन्या कुर्वडी कर सकती है।वहीँ, औक्षण आरती का अधिकार सभी स्त्रियों को है। भैयादूज के दिन विधवा बहन अपने भाई का औक्षण कर सकती है। आश्विन पूर्णिमा के के दिन विधवा माता अपने ज्येष्ठापत्य का नीरांजन कर सकती है। कुर्वडी और औक्षण के लिए तेल की दो बत्तियों का प्रयोग करें। औक्षण के लिए पीतल के दो दीये लेते हैं। कई बार औक्षण के लिए पंचारती का भी उपयोग किया जाता है। कुर्वडी या औक्षण के समय थाली में हल्दी, कुंकुम, अक्षत, पान, सुपारी एवं कुछ सुवर्ण अलंकार रखें।इसके बाद मनुष्य की अंतिम यात्रा भी अंतिम समय में ही होती है यह आरती जब मनुष्य का शव को स्नान कराया जाता है तो उस वक्त होती है| अर्थी उठाने के पहले तेल की पणती उतारी जाती है। फिर उसे मृत व्यक्ति द्वारा हमेशा इस्तेमाल की जाने वाली जगह पर या घर के किसी कोने में आटे का छोटा ढेर लगाकर उस पर रखने की प्रथा है।
जन्मकुंडली में शनि ग्रह अशुभ प्रभाव में होने पर व्यक्ति को निर्धन, आलसी, दुःखी, कम शक्तिवान, व्यापार में हानि उठाने वाला, नशीले पदार्थों का सेवन करने वाला, अल्पायु निराशावादी, जुआरी, कान का रोगी, कब्ज का रोगी, जोड़ों के दर्द से पीड़ित, वहमी, उदासीन, नास्तिक, बेईमान, तिरस्कृत, कपटी, अधार्मिक तथा मुकदमें व चुनावों में पराजित होने वाला बनाता है।अशुभ शनि के लिए उपाय-शनि ग्रह के अशुभ प्रभावों को दूर करने के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिएं :1 शनि ग्रह के तांत्रिक मंत्र का प्रतिदिन १०८ बार पाठ करें। मंत्र है क्क प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः। शनि मन्त्र के अनुष्ठान की मन्त्र जाप संख्या है २३,००० है।2 शनि ग्रह का यंत्र गले में धारण करें।3 शनि ग्रह का यंत्र अपने पूजास्थल अथवा घर के मुख्य द्वार पर स्थापित करें।4 शनि ग्रह की वस्तुओं का दान करें। शनि ग्रह की वस्तुएं हैं काला उड़द, तेल, नीलम, काले तिल, कुलथी, लोहा तथा लोहे से बनी वस्तुएं, काला कपड़ा, सुरमा आदि।5 शनिवार को कीड़े-मकोड़ों को काले तिल डालें।६. शनिवार को काली माह (काले उड़द) की दाल पीस कर उसके आटे की गोलियां बनाकर मछलियों को खिलाएं।7. शनिवार को श्मशान घाट में लकड़ी दान करें।8. सात शनिवार सरसों का तेल सारे शरीर में लगाकर और मालिश करके साबुन लगााकर नहाएं।9. शनिवार को शनि ग्रह की वस्तुएं न दान में लें और न ही बाजार से खरीदें। 10. सात शनिवार को सात बादाम तथा काले उड़द की दाल धर्म स्थान में दान करें।11. शराब तथा सिगरेट का प्रयोग न करें।12. सपेरे को सांप को दूध पिलाने के लिए पैसे दान करें।13. शनिवार को व्रत करें। व्रत की विधि इस प्रकार है :- शनिवार को व्रत किसी भी मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से शुरु करें।- शनि ग्रह का व्रत प्रत्येक शनिवार को ही रखें।- शनि ग्रह के व्रतों की संख्या कम-से-कम १८ होनी चाहिए। तथापि पूर्ण लाभ के लिए लगातार एक वर्ष तक व्रत रखें।- भोजन के रूप में उड़द के आटे का बना भोजन, तेल में पकी वस्तु शनिदेव को भोग लगााकर या काले कुत्ते या गरीब को देकर रोज वस्तु का सेवन करें। - भोजन का सेवन शनि का दान देने के पश्चात् ही करें। शनि ग्रह के दान में काले उड़द, सरसों का तेल, तिल, कुलथी, लोहा या लोहे से बनी कोई वस्तु, नीलम रत्न या उसका उपरत्न, भैंस, काले कपड़े सम्मिलित हैं। यह दान दोपहर को या सांयकाल के समय किसी गरीब भिखारी को दें।- भोजन से पूर्व एक बर्तन में भोजन तथा काले तिल या लौंग मिलाकर पश्चिम की ओर मुंह करके पीपल के पेड़ की जड़ में डाल दें।- व्रत के दिन नमक वर्जित है।- व्रत के दिन शनि के बीज मंत्र का २३,००० जाप करें या कम-से-कम ८ माला जाप करें।- व्रत के दिन सिर पर भष्म का तिलक करें तथा काले रंग के कपड़े पहनें।-जब व्रत का अन्तिम शनिवार हो तो शनि मंत्र से हवन कराकर भिखारियों या गरीब व्यक्तियों को दान दें।14 घर में रोटी बनाकर काली गाय या काले कुत्ते को खिलाएं।15 शनि ग्रह की पीड़ा के निवारण के लिए शनि से संबंधित जड़ी बूटियों व औषधियों से स्नान करने का विधान है। यह स्नान सप्ताह में एक बार किया जाता है। औषधियों को अभीष्ट दिन से पूर्व रात्रि में शुद्ध जल में भिगो दें तथा अगले दिन उन्हें छान कर छने हुए द्रव्य को स्नान के जल में मिला कर स्नान करें। शनि ग्रह के लिए काले तिल, शतपुष्पी, काले उड़द, लौंग, लोधरे के फूल तथा सुगन्धित फूलों को औषधियों के रूप में प्रयोग किया जाता है। मानसिक व शारीरिक शांति तथा अनिष्ट फल के निवारण के लिए विधिवत् स्नान से बहुत लाभ होता है। स्नान से पूर्व जल को इस मंत्र से अभिमंत्रित कर लेना चाहिए :क्कँ द्द्वीं शं शनैश्चराय नमः।
यूं तो सेक्स करने का कोई निश्चित समय नहीं होता, लेकिन क्या आप जानते हैं सेक्स का सही समय क्या है? बात अजीब जरुर लग रही होगी लेकिन एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया है कि सुबह का समय सेक्स के लिए बेहतर होता है।शोधकर्ताओं का कहना है कि सुबह-सुबह शरीर में सेक्स हार्मोन अधिक होते हैं और साथ ही ऊर्जा भी होती है इसलिए सेक्स का सबसे अच्छा समय सुबह साढ़े सात बजे होता है। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि सेक्स सुबह- सुबह एक व्यायाम का काम करता है तथा तन-मन में पूरे दिन ताजगी बनी रहती है।आपको बता दें कि सेक्स की अपनी एक स्थित और समय होता है। इसलिए हमेशा सेक्स सही माइने में समय के अनुसार करना चाहिए| आयुर्वेद में भी कहा गया है कि जो पुरुष स्त्री के साथ संयम और नियम से सेक्स करता है, वह जल्दी बूढ़ा नहीं होता। सेक्स और शरीर विशेषज्ञों का कहना है कि स्त्री-पुरुष दोनों को अपनी स्वास्थ्य क्षमता और शारीरिक शक्ति के अनुसार ही सेक्स करना चाहिए।
आपको बता दें कि वर्ष 2011 विश्व के लिए जगह-जगह आक्रोश और जनचेतना जगाने वाला तो रहा ही साथ ही यह साल सेक्स के नाम भी रहा| पूरे वर्ष सेक्स को लेकर जगह-जगह सर्वे होते रहे हैं| सेक्स को लेकर आज फिर एक नया अध्ययन सामने आया है| इस अध्ययन में यह पाया गया है कि पुरुषों में अपने साथी से प्यार के बावजूद हमेशा उसे धोखा देने की प्रवृत्ति होती है। वे अपने साथी को छोड़ना नहीं चाहते हैं और उनका कहना होता है कि समाज खुले यौन सम्बंधों को अपनाता है। कहने का मतलब यह है कि ज्यादातर पुरुष अपने साथी के साथ रहना चाहते हैं और वे अधिक से अधिक यौन सम्बंध बनाना चाहते हैं।मिली जानकारी के मुताबिक, ब्रिटेन के विनचेस्टर विश्वविद्यालय के अमेरिकी समाज विज्ञानी एंडरसन ने कहा है कि यौन सम्बंधों के मामले में पुरुषों के एकनिष्ठ रहने से वे बहुत से ऐसे काम नहीं कर पाते हैं, जो कि वे करना चाहते हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि इस समय लोगों ने तेजी से खुले यौन सम्बंधों को अपनाना शुरू कर दिया है। वह कहते हैं कि जो लोग ऐसा नहीं करते वे सामाजिक मजबूरी के चलते यौन कैद में रहते हैं।अध्ययन के लिए एंडरसन ने 120 समलैंगिक व अन्य पुरुषों पर सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण में यह पाया गया है कि इनमें से 78 प्रतिशत ने अपने साथी के साथ धोखाधड़ी की। वैसे इन लोगों का कहना था कि वे अपने साथी से प्यार करते हैं और उसके साथ रहना चाहते हैं। वहीँ, कुछ पुरुष एक ही महिला से जुड़ना चाहते हैं, लेकिन यौन सम्बंध कई महिलाओं से बनाना चाहते हैं।
क्या आप किसी स्त्री या पुरुष को देखकर यह जान सकते हैं कि वह स्त्री या पुरुष एक दूसरे से प्यार और 'सम्बन्ध' बनाने को इच्छुक है, नहीं न लेकिन शोधकर्ताओं ने स्त्री-पुरुष की भाव-भंगिमाओं को लेकर कुछ ठोस निष्कर्ष निकाले हैं, जिसके द्वारा आप यह जान सकते हैं कि वह स्त्री व पुरुष सहवास करने के इच्छुक है| पुरुषों के इशारे-आपको बता दें कि अगर हम सम्बन्ध बनाने के इच्छुक पुरुष की बात करें तो अध्ययन के अनुसार उसकी बॉडी लैंग्वेज से एकदम साफ जाहिर हो जाता है कि पुरुष सहवास करने की इच्छा रखता है| शोधकर्ताओं ने कुछ इशारे बताये हैं जो इस प्रकार है- प्यार के आगोश में पड़ने वाले व्यक्ति के चेहरे के उस हिस्से में कसावट आ जाती है, जो आमतौर पर थोड़ा फूला होता है| कामातुर पुरुषों का जहाँ एक ओर सीना थोड़ा बाहर की ओर निकल जाता है वहीँ, दूसरी ओर उस व्यक्ति का पेट थोड़ा अंदर की ओर धंस जाता है| प्यार और 'संबंध' बनाने के इच्छुक पुरुषों के होठ और गाल समेत पूरे चेहरे की लालिमा बढ़ जाती है, क्योंकि उन भागों में रक्त का प्रवाह तेज हो जाता है|स्त्रियों के इशारे-वहीँ अगर हम कामातुर स्त्रियों की बात करें तो स्त्री पुरुष को पाने के लिए अनायास ही कुछ प्रयास करती है, जैसे कि प्यार पाने की आतुर महिलाएं अपने बालों को छूती है और अपने कपड़ों पर भी हाथ फेरती है| इसके आलावा माथे को झटककर अपने बाल पीछे की ओर कर लेती है| स्त्रियां झुकी हुई पलकों से पुरुष को निहारती हैं और कुछ देरे पर निगाहें टिकाए रहती हैं| महिलाओं के पिछले हिस्से में पहले की तुलना में थोड़ा और उभार आ जाता है| कामातुर स्त्री प्यार पाने के लिए अपने पैरों को एक-दूसरे से रगड़ती रहती है|
कुंडली में नौ ग्रह अपना समय आने पर पूरा प्रभाव दिखाते हैं। अगर आप अपनी कुंडली में ग्रहों के अशुभ योग से परेशान हैं और उनके प्रभाव से आपके हर शुभ कार्य में बाधा आती हो। काम बनते बनते रह जाते हो तो यह चमत्कारी उपाय एक बार अवश्य करें।आपको बता दें कि हर कोई अशुभ प्रभाव से बचने के लिए हवन ,ध्यान और उपाय संबंधी रत्नों का उपयोग करते हैं। लेकिन फिर भी कभी का भी यह मुल्यां रत्न आपको इसका लाभ नहीं पहुंचा पाते हैं तो ऐसे में मनुष्यों को वृक्षों की जड़ धारण करने को कहा जाता है। माना जाता है कि ये जड़े रत्नो से अधिक असरदार होती है। हमारे ज्योतिषाचार्य आचार्य विजय कुमार ने बताया है कि वृक्षों में भी ग्रहों को शांत करने की क्षमता होती है| उन्होंने बताया कि जो वृक्ष ऊंचे और मज़बूत तथा कठोर तने वाले हैं, उनपर सूर्य का विशेष अधिकार होता है। दूध वाले वृक्षों पर चंद्र का प्रभाव होता है। लता , वल्ली इत्यादि पर चंद्र और शुक्र का अधिकार होता है। झाडिय़ों वाले पौधों पर राहू और केतू का विशेष अधिकार है।जिन वृक्षों में रस विशेष न हो, कमज़ोर, देखने में अप्रिय और सूखे वृक्षों पर शनि का अधिकार है। सभी फलदार वृक्षों पर बृहस्पति, बिना फल के वृक्षों पर बुध का और फल , पुष्प वाले चिकने वृक्षों पर शुक्र का अधिकार है। औषधीय जड़ी बूटियों का स्वामी चन्द्रमा है। आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली में किसी ग्रह के अधीन आने वाले वनस्पतियों और औषधियों से ही उस ग्रह-जनक रोग का उपचार किया जाता है।इसलिए आप अगर ग्रहों के प्रभाव से परेशान हैं तो अपनी राशि के अनुसार उस वृक्ष की जड़ को धारण करें|
हिन्दू धर्म में तुलसी के पौधे का बहुत ही महत्व होता है| ऐसा मानना है कि जिस घर में इसका वास होता है वहा आध्यात्मिक उन्नति के साथ सुख-शांति एवं आर्थिक समृद्धता स्वयं आ जाती है। वातावारण में स्वच्छता एवं शुद्धता, प्रदूषण का शमन, घर परिवार में आरोग्य की जड़ें मज़बूत करने, श्रद्धा तत्व को जीवित करने जैसे अनेकों लाभ इसके हैं। आपको पता है कि तुलसी का पौधा आपके लिए कितना महत्वपूर्ण है| आज आपको तुलसी की सबसे खास बात बताने जा रहा हूँ आपको पता है आपके घर में पूजी जाने वाले तुलसी अगर आपके घर परिवार पर कोई विपदा आने वाली होती है तो वह आपको पहले से ही सचेत कर देती है बस उसको कोई समझ नहीं पता है|हमारे ज्योतिषाचार्य आचार्य विजय कुमार बताते हैं कि आपके घर, परिवार या आप पर कोई मुसीबत आने वाली होती है तो उसका असर सबसे पहले आपके घर में स्थित तुलसी के पौधे पर होता है। आप उस पौधे का कितना भी ध्यान रखें लेकिन वह धीरे- धीरे सूखने लगता है। तुलसी का पौधा ऐसा है जो आपको पहले ही बता देगा कि आप पर या आपके घर परिवार को किसी मुसिबत का सामना करना पड़ सकता है।
किसी भी लडकी के लिए यह श्रेष्ठ है कि उसका विवाह समय पर हो जाए। इस बात की चिंता उसके माता-पिता के साथ खुद उस कन्या को भी होती है। वर्तमान समय में योग्य युवक-युवती न मिलने के कारण शादी-विवाह में बहुत अड़चने आती हैं। कई बार विवाह योग्य उम्र निकल भी जाती है। अगर आपके विवाह में भी परेशानी आ रही है तो अब आपको परेशान होमने की जरुरत नहीं है बस आप यह आसान उपाय करें और आपकी होगी चाट मंगनी पट विवाह| तो आइये जाने क्या है यह सरल उपाय-उपायप्रत्येक सोमवार को स्नानादि करके 11 बेलपत्र लेकर उस पर सिंदूर से ऊं गौरी शंकराये नम: लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाएं, लगातर ग्यारह सोमावर तक ऐसा करने से देवाधिदेव महादेव आप पर प्रसन्न होंगे और आपकी चट मंगनी पट विवाह होगा|बस इतना ध्यान रहे कि जिस बेलपत्र को आप प्रयोग में ला रही हैं वह फटा नहीं होना चाहिए इसके आलावा वाही पत्तों का इस्तेमाल करें जिसमे तीन पत्तियां आपस में जुड़ी हुई हों|