शिक्षा से आ सकती है बालिकाओं के चेहरे पर मुस्कान

चांद तक पहुंच चुकी दुनिया में बालिकाओं की खिलखिलाहट आज भी उपेक्षित है। खिलकर सभी को खुशी देने वाली लड़कियां आज आज भी खुद अपनी ही खुशी से महरूम हैं। आज भी लड़कियां उपेक्षा और अभावों का सामना कर रही हैं। 

दुनिया को लड़कियों की शिक्षा और अधिकारों के प्रति जागरुक करने के उद्देशय से संयुक्त राष्ट्र ने 19 दिसंबर 2011 को 11 अक्टूबर को विश्व बालिका दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की।

अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने की प्रेरणा कनाडियाई संस्था प्लान इंटरनेशनल के 'बिकॉज आई एम गर्ल' अभियान से मिली। इस अभियान के तहत वैश्विक स्तर पर लड़कियों के पोषण के लिए जागरुकता फैलाई जाती थी।

अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस पहली बार 11 अक्टूबर 2012 को मनाया गया था।

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनियाभर में बहुत सी लड़कियां गरीबी के बोझ तले जी रही हैं और 7.5 करोड़ से ज्यादा लड़कियां शिक्षा से वंचित हैं। 

हर जगह अपना योगदान करने वाली और चुनौतियों का सामना कर रही लड़कियों के अधिकारों के प्रति लिए जागरुकता फैलाने, उनके सहयोग के लिए दुनिया को जागरुक करने के लिए इस दिवस का आयोजन किया गया।

यह दिवस गरीबी, संघर्ष, शोषण और भेदभाव का शिकार होती लड़कियों की शिक्षा और उनके सपनों को पूरा करने के लिए कदम उठाने पर ध्यान केंद्रित करना ही बालिका दिवस का उद्देश्य है।

दुनिया में हर तीन में से एक लड़की शिक्षा से वंचित है। गरीबी और रुढ़ियों के चलते लड़कियों को स्कूल नहीं भेजा जाता। लाख प्रतिभाशाली होने के बावजूद वह प्राथमिक शिक्षा से आगे नहीं बढ़ पाती। कम उम्र में ही उनकी शादी कर दी जाती है या शादी करने के लिए उन्हें मजबूर किया जाता है। 

आज के समय में लड़कियां लड़कों से एक कदम आगे हैं, लेकिन आज भी वह भेदभाव की शिकार हैं। बाहर ही नहीं बल्कि घर में भी लड़कियां भेदभाव, घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न का शिकार हो रही हैं।

अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस का उद्देश्य बालिकाओं के मुद्दे पर विचार कर के इनकी भलाई की ओर सक्रिय कदम बढ़ाने का है।

अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर दुनियाभर में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। कुछ कार्यक्रम संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध होते हैं तो कुछ कार्यक्रम एनजीओ द्वारा किए जाते हैं।

साल 2013 में बालिका दिवस का विषय 'बालिका शिक्षा के लिए अभिनव (इनोवेशन फॉर गर्ल चाइल्ड)' रखा गया है क्योंकि लड़कियों को शिक्षित करना हमारा पहला दायित्व है और नैतिक अनिवार्यता भी। शिक्षा से लड़कियां न सिर्फ शिक्षित होती हैं बल्कि उनके अंदर आत्मविश्वास भी पैदा होता है। वे अपने अधिकारों के प्रति जागरुक होती हैं। शिक्षा गरीबी दूर करने में भी सहायक होती है। 

इस तरह संयुक्त राष्ट्र की इस पहल से एक ओर जहां बालिकाओं के प्रति लोग जागरुक होंगे वहीं दूसरी ओर हर जगह प्यार और खुशी लुटाने वाली लड़कियों के चेहरों पर आत्मविश्वास की सच्ची खुशी झलकेगी।
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अमिट है अमिताभ की आभा

अमिताभ बच्चन, बॉलीवुड का ऐसा नाम जिन्होंने 2009 में हुए एक सर्वेक्षण में चार्ली चैप्लिन और मार्लोन ब्रैंडो जैसी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के कलाकारों को पछाड़ते हुए सदी के महानायक का खिताब हासिल किया। अमिताभ वही शख्स हैं जो मरणासन्न अवस्था में पहुंचने के बाद एकबार फिर बाजार के सबसे बड़े ब्रांड बनकर उभरे हैं, यह उनकी जीवंत का बेहतरीन उदाहरण है। 

लगभग 200 हिंदी फिल्मों में काम कर चुके अमिताभ का जन्म हिंदी के शलाका कवि हरिवंश राय बच्चन और तेजी बच्चन के घर 11 अक्टूबर 1942 को हुआ। उनके जन्म के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के प्राध्यापक अमरनाथ झा ने उनका नाम इंकलाब रखने का सुझाव दिया, लेकिन राष्ट्रकवि सुमित्रा नंदन पंत द्वारा सुझाए गए नाम अमिताभ (जिसकी आभा कभी नहीं मिटती) ने देश-विदेश में अभिनय की कविता रच डाली।

करियर:

बॉलिवुड में 'बिग बी' के नाम से लोकप्रिय अमिताभ के लिए हिंदी सिनेमा में अपना स्थान बनाना आसान नहीं था। 1969 में पहली फिल्म 'सात हिंदुस्तानी' करने के बाद उन्होंने 'परवाना', 'रेशमा' 'शेरा', 'गुड्डी' और 'बांबे टू गोवा' जैसी एक के बाद एक असफल फिल्में कीं, लेकिन इन फिल्मों से वह दर्शकों को खुश नहीं कर पाए। 

अमिताभ को पहली बड़ी पहचान 1971 में ऋषिकेश मुखर्जी के निर्देशन में बनी फिल्म 'आनंद' से मिली। 'आनंद' में अमिताभ द्वारा निभाई गई सहायक भूमिका ने उन्हें पहला फिल्म फेयर पुरस्कार मिला।

अमिताभ को लेकिन बतौर अभिनेता देश की जनता ने 1973 की फिल्म 'जंजीर' में उनके गुस्सैल छवि वाले किरदार से पहचाना। आज बॉलीवुड और अभिनय का पर्याय बन चुके अमिताभ को 'जंजीर' ने ही स्टारडम के साथ एंग्री यंगमैन का तमगा भी दिलाया। इसके बाद तो एक के बाद एक अमिताभ ने 'मर्द', 'शोले', 'कुली', 'लावारिस' जैसी कई सुपरहिट फिल्मों से एंग्री यंग मैन के रूप में अपनी पहचान स्थापित कर ली।

सफलता की दौड़ के बीच उनके जीवन में वह पल भी आया जब 'कुली' फिल्म की शूटिंग में हुए भयानक दुर्घटना ने उनकी रफ्तार रोक ली। उनके स्वस्थ होकर घर आने की उम्मीद कम थी, लेकिन प्रशंसकों की उम्मीद के बीच कई महीने बाद वह स्वस्थ हो कर घर लौटे।

अमिताभ ने इसके बाद कुछ वर्षो के लिए अभिनय से अवकाश ले लिया और अपने मित्र राजीव गांधी की पहल पर राजनीति में किस्मत आजमाई। उन्हें सफलता भी मिली और इलाहाबाद सीट से उन्होंने एच. एन. बहुगुणा के खिलाफ रिकार्ड अंतर से जीत हासिल की। लेकिन राजनीति उन्हें ज्यादा दिन तक रास नहीं आई और इसकी वजह बना बोफोर्स कांड में उनका नाम उछाला जाना। उन्हें न्यायालय ने हालांकि क्लीन चिट दे दी, लेकिन उन्होंने राजनीति को गंदी नाली करार दे कर इससे किनारा कर लिया।

इसके बाद अमिताभ ने 'शहंशाह' फिल्म से वापसी की। यह फिल्म सफल रही, लेकिन आने वाली फिल्मों के औंधे मुंह बॉक्स आफिस पर गिर जाने पर उनकी शोहरत कम होने लगी। उन्होंने फिल्म निर्माण कंपनी 'एबीसीएल' भी खोली लेकिन इसमें भी उनकी किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया।

इधर, पांच साल के अवकाश के बाद अमिताभ ने अपनी वास्तविक उम्र का आभास करते हुए यश चोपड़ा की फिल्म 'मोहब्बतें' से फिर वापसी की। गुरुकुल के शिक्षक की भूमिका से अमिताभ ने नई पारी शुरू की और उनकी नई पारी ने उनके लिए सफलता और शोहरत के दरवाजे फिर खोल दिए। 

अमिताभ का करियर 70-80 के दशक में उफान पर रहा और उन्होंने बॉलीवुड पर एकछत्र राज किया। अमिताभ के करियर के पूर्वार्ध में दर्शकों ने जहां उन्हें 'जंजीर', 'नमकहलाल', 'शोले', 'कूली', 'सुहाग', 'अभिमान', 'सिलसिला', 'मिली', 'मिस्टर नटवर लाल', 'द ग्रेट गैंबलर', 'अग्निपथ', 'चुपके-चुपके', 'लावारिस' में पसंद किया वहीं 'मोहब्बते', 'ब्लैक', 'बंटी और बबली', 'कभी खुशी कभी गम', 'देव', 'सरकार', 'सरकार राज', 'आरक्षण', 'सत्याग्रह' जैसी अनगिनत बेहतरीन फिल्में उनकी दूसरी पारी का इंतजार कर रहे थे।

आज बाजार का ब्रांड बन चुके अमिताभ की दूसरी पारी में शोहरत दिलाने का श्रेय गेम शो 'कौन बनेगा करोड़पति' को भी काफी हद तक जाता है। इस शो में मेजबान की भूमिका ने उन्हें हर भारतीय से दोबारा जोड़ने में मदद की और बेशक इसका फायदा उनकी फिल्मों को भी मिला। अमिताभ ने जीवन के सातवें दशक में हॉलीवुड में कदम रखा, और उनकी पहली फिल्म 'द ग्रेट गैट्सबाय' हाल ही में प्रदर्शित हुई है।

निजी जिंदगी:

उनकी शादी बॉलीवुड की बेहतरीन अदाकारा जया बहादुरी से हुई। दोनों की पहली मुलाकात पुणे के फिल्म इंस्टीट्यूट में और फिर 'गुड्डी' फिल्म के सेट पर हुई। इन्होंने इस मुलाकात के बाद कई फिल्में साथ कीं और इसके जरिए एक दूसरे के करीब आए। लेकिन उनके करियर की तरह निजी जिंदगी में उतार-चढ़ाव का दौर तब आया जब अभिनेत्री रेखा से उनके कथित विवाहेत्तर संबंध की खबरें आम होने लगीं। अमिताभ हालांकि, आज जया के साथ आज खुश हैं, वहीं रेखा ने भी दोनों के संबंधों पर कभी खुलकर बात नहीं की।

अमिताभ के जीवन से जुड़ी कई रोचक बातें हैं, मसलन उनकी सफलता की वजह वे फिल्में रहीं जिसे तत्कालीन सुपर स्टार राजेश खन्ना ने ठुकरा दी थीं। कहा जाता है कि जब वह फिल्म 'खुदा गवाह' की शूटिंग के लिए अफगानिस्तान गए थे तो वहां की सरकार ने देश के आधे सुरक्षाकर्मियों को उनकी सुरक्षा के लिए तैनात कर दिया था।

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शर्मनाक! नौकरी के लिए पत्नी को किया अफसरों के साथ कमरे में बंद

लखनऊ| समाज में इंसानियत कई तरह से हर रोज शर्मसार होती है| लेकिन अभी जो मामला प्रकाश में आया है यह तो बहुत ही शर्मनाक है| मामला उत्तर प्रदेश के बरेली जिले का है जहाँ एक युवक ने नौकरी पाने के लिए अपनी पत्नी को रेलवे अफसरों के सामने परोस दिया| पीड़ित युवती ने अपने पति पर आरोप लगाते हुए कहा है कि सरकारी नौकरी पाने के लिए उसके पति ने उसे दो रेलवे अफसरों के साथ एक कमरे बंद कर दिया। दोनों ने रातभर उससे रेप किया।

पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, यहाँ 23 साल की श्रुति (परिवर्तित नाम) ने पुलिस को दी गई तहरीर में कहा है कि उसके पड़ोस में ही मोबाइल टावर पर अलीगंज के गैनी गांव का प्रमोद उर्फ बबलू काम करता था। बबलू उसके घर पर भी आता जाता रहता था| बबलू अक्सर उससे प्यार का इजहार करता था पहले तो वह टालती रही लेकिन एक दिन वह उसके झांसे में आ ही गई और अपने मां बाप को बिना बताये उसके साथ उसके घर चली गई|

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श्रुति ने आगे बताया कि जब वह बबलू के घर गई तो वह बतौर पत्नी के रूप में रख लिया और उससे शादी नहीं की लेकिन जब वह शादी के लिए बबलू पर दबाव डालने लगी तो बबलू उसे कुछ कोर्ट के कागज़ लाकर उससे दस्तखत करवा लिया और बता दिया कि उसने कोर्ट मैरेज कर ली है अब कोई दिक्कत की बात नहीं रही| श्रुति ने बबलू की बैटन पर विश्वास कर लिया और उसके साथ अच्छे से दिन बिताने लगी|

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उसने बताया कि कुछ समय पहले बबलू पर उसके बड़े भाई नेत्रपाल और चमनलाल ने रेलवे में नौकरी हासिल करने के लिए अपने बहनोई अमर सिंह से संपर्क करने का दबाव डाला। बाद में तीनों ने उसे रेलवे के दो अफसरों के बारे में भी बताया। उसे सलाह दी कि वह अगर अपनी पत्नी से उन्हें खुश करा दे तो उसे नौकरी मिल सकती है। इस पर बबलू ने श्रुति से कहा तो वह साफ़ इनकार कर दिया लेकिन दो अक्टूबर को उसके घर पर दो लोग आये पूछने पर बबलू ने बताया कि वह रेलवे अफसर हैं|

पढ़ें स्मैक के लिए पति ने किया पत्नी के जिस्म का सौदा!

उसके बाद उसने श्रुति को उन अफसरों के साथ एक कमरे में बंद कर दिया| आरोप है कि दोनों अधिकारियों ने उसके साथ दुष्कर्म किया| मामला यहीं नहीं खत्म हुआ इस घटना के बाद भी बबलू उन अधिकारियों के साथ श्रुति को सोने के लिए मजबूर करता था लेकिन एक दिन मौका देखते ही वह अपनी मां के घर भागकर जालिमों से अपनी जान बचाई| फिलहाल पुलिस ने श्रुति की तहरीर पर मुकदमा दर्ज कर लिया है और जांच में जुट गई है|

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कानून व्यवस्था को दुरुस्त करने में अखिलेश सरकार नाकाम, पुलिस हिरासत में हो रही मौतें

पिछले कुछ महीनो पर नज़र डालें तो साफ़ जाहिर होता है कि उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था के नाम पर जमकर खिलवाड़ हो रहा है| प्रदेश में अपराध का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है| यहाँ हिरासत में मौत आम बात हो गयी हैं| अभी हाल में प्रदेश के बरेली जिले में जहाँ एक नहीं बल्कि दो थानों में अभियुक्तों की पुलिस हिरासत में मौत हो गई और पुलिस उसे आत्महत्या करार देने में जुटी रही अभी यह मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि एक और ऐसी घटना अलीगढ़ में देखने को मिल गई|

अलीगढ़ के बन्ना देवी थाना क्षेत्र के सारसौल निवासी ज्ञानेंद्र सिंह उर्फ पप्पू (37) को शराब तस्करी के आरोप में सिपाही गिरीश कुमार, राजेश और अशोक कुमार मंगलवार शाम को पकड़कर थाने ले आए। पप्पू के परिजनों का कहना है पुलिसकर्मी पप्पू को छोड़ने के बदले रुपये मांग रहे थे और रुपये न देने पर हिरासत में उसकी बेरहमी से पिटाई की गई, जिससे उसकी मौत हो गई। वहीं पुलिस का कहना है कि पप्पू ने रात को हवालात के शौचालय में पजामे के नाड़े को खिड़की से बांधकर फांसी लगा ली।

अलीगढ़ के पुलिस अधीक्षक (शहर) पंकज पांडे ने बुधवार को संवाददाताओं को बताया कि घटना की मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दे दिए गए हैं। शव के पोस्टमार्टम के बाद ही मौत की असल वजह का पता चल सकेगा। पांडे ने कहा कि जिन सिपाहियों पर वसूली और पिटाई के आरोप हैं, उन्हें निलंबित कर उनके खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया गया है।

उत्तर प्रदेश में यह कोई पहला मामला नहीं है जब पुलिस हिरासत में कैदियों की मौत हो रही है इससे पहले भी कई मामले इस तरह के आ चुके हैं लेकिन अखिलेश सरकार कार्यवाई करने के बजाय हाथ पर हाथ रखे हुए बैठी है| इससे पहले के बरेली में थाना हाफिजगंज की हवालात में युवक की हुई मौत के बाद एसएसपी ने कड़ा रुख अपनाते हुए एसओ समेत 6 पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया गया था|

गौरतलब है कि लूट के कथित मामले में पकड़कर लाये गये दलित युवक सोहनलाल बीती रात को हाफिजगंज थाने की हवालात में फंदे पर लटका मिला| हाफिजगंज पुलिस फरीदपुर के दन्नपुरा निवासी सोहन लाल दलित को 6 अगस्त को सुन्नौर के ब्रजपाल यादव और सुकटिया के ओमकार के घर लूटपाट के मामले में पकड़ा था| रविवार को दलित सोहनलाल के परिजन ग्राम प्रधान आदि लोग थाने पर मिलने पहुचे तो सोहनलाल घबराया डरा हुआ था और बार-बार कह रहा था की मैंने कुछ नहीं किया है| मुझे छुड़ा लो पुलिस वाले मुझे मार डालेगे वह रो रोकर अपबीती अपने परिजनों को सुना रहा था और सोहनलाल की बेगुनाही के चलते परिजन व ग्राम प्रधान ने एसओ यादव से सोहनलाल को छोड़ने की विनती की तो एसओ योगेंदर कृष्ण यादव ने कहा कि लूट करने वाले आरोपियों के नाम सोहनलाल बता देगा तो छोड़ देगे|

यह कहकर परिजनों को थाने से वापस कर दिया बीती रात को हवालात से निकालकर पुलिस ने जमकर सोहन को पीटा और दूसरे पकड़े गये शक के आधार पर तोताराम, सोहनलाल के भतीजे के सामने ही पिटाई का सिलसिला चल रहा था| पिटाई से पस्त हो चुके सोहन की हालत बिगड़ने पर पुलिस ने उसे हवालात में बंद कर दिया और उस के बाद हवालात से सोहन की लाश बरामद हुई जिसे अब पुलिस आत्महत्या का रूप दे रही है| पुलिस का कहना है कि सोहन ने अपनी टीशर्ट की आस्तीन से फाँसी लगाकर आत्महत्या कर ली है बरेली पुलिस दलितों पर इस कदर अत्याचार कर रही है जिसका अंदाज इन्ही घटनाओ से बखूबी लगाया जा सकता है एक के बाद एक दलित युवको की पुलिस पिटाई से हत्या होती चली जा रही है|

गौरतलब है कि अभी 26 सितम्बर को ही मोनू नाम के दलित युवक की थाना बिथरी की पुलिस चौकी रामगंगा पर जमकर पिटाई की गयी थी जिस के चलते उसकी मौत हो गयी जिसे पुलिस के अधिकारी ने आत्म हत्या का रूप दिया लेकीन पोस्टमार्टम में मौत का रूप ही अलग था| ठीक उसी प्रकार अब दलित सोहनलाल की मौत को पुलिस व अधिकारी आत्महत्या बता रहे है| जबकि प्रत्यक्षदर्शी सोहन लाल का भतीजा तोताराम आँखों देखी घटना को बताते हुए पुलिस की पिटाई से सोहन की हत्या बता रहा है और मृतक की पत्नी ने भी पुलिस की पिटाई से युवक की मौत का होना बताया|

उससे पहले मई माह में राजधानी लखनऊ के ट्रामा सेंटर में एक विचाराधीन कैदी की मौत से एटा जिले की पुलिस सवालों में घिर गई है। आरोप है कि हत्या के आरोपी इस युवक से पुलिस ने कथित रूप से थर्ड डिग्री के बल पर जुर्म कबूल करवाया था और फिर जेल भेज दिया था। यातना से पीड़ित युवक की जेल में हालत बिगड़ गई और उसे इलाज के लिए लखनऊ ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया गया था जहां शुक्रवार को इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। अलीगढ़ रेंज के डीआईजी प्रकाश डी. ने मामले की जांच के आदेश दिए हैं। आरोप है कि पुलिस ने युवक के गुप्तांग में पेट्रोल और तेजाब भरकर इंजेक्शन लगाया, जिससे उसकी पहले हालत खराब हुई और फिर बाद में मौत हो गई।

एटा जिले के सकरौली क्षेत्र के इसौली गांव के रहने वाले मानिकचंद्र सरानी का शव 9 अप्रैल को हजारा नहर में मिला था। मृतक के चाचा गंगाराम ने मामले में मानिकचंद्र के ससुर साहब सिंह, पत्नी सावित्री देवी, ससुर के भाई सुनहरी लाल, प्रेमपाल और सरानी गांव के प्रधान मनवीर सिंह सहित पांच लोगों के खिलाफ अवागढ़ थाने में आत्महत्या के लिए उकसाने का मुकदमा दर्ज कराया था। मुकदमे की तफ्तीश के दौरान चार दिन बाद ही अवागढ़ पुलिस ने केस का रुख पलट दिया और मानिकचंद्र के भाई महेश और बहनोई चोब सिंह और गांव के ही बलवीर और बनी खान पर अवैध संबंधों के चलते हत्या कर शव नहर में फेक देने का आरोप लगाया। 20 अप्रैल को पुलिस ने इस मामले में महेश, चोब सिंह, बलवीर और बनी खान को हिरासत में लिया।

जुर्म का इकबाल कराने के बाद पुलिस ने सभी को 24 अप्रैल को जेल भेज दिया। जेल में बलवीर की तबीयत बिगड़ गई। जेल प्रशासन ने बलवीर को पहले इलाज के लिए एटा जिला अस्पताल में भर्ती कराया, जहां से डाक्टरों ने उसे केजीएमयू रेफर कर दिया। शुक्रवार सुबह बलवीर ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। डीआईजी अलीगढ़ प्रकाश डी. ने कहा कि उन्होंने मामले की जांच का आदेश एटा पुलिस को दे दिया है। जांच में जो भी पुलिसकर्मी दोषी पाया जाएगा उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

इससे पहले अप्रैल माह में राजधानी लखनऊ में भी एक इसी तरह का मामला प्रकाश में आया था| लखनऊ में डालीगंज क्षेत्र में अवैध शस्त्र रखने के आरोप में गिरफ्तार एक युवक की पुलिस कस्टडी में मौत हो गई थी| मदेयगंज चौकी प्रभारी शिवाकांत त्रिपाठी वीरेन्द्र मिश्रा (26) को अवैध असलहा रखने के मामले में पकड़ पर हसनगंज कोतवाली लाए थे। जहां पर रात में उसकी संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। एएसपी ट्रांसगोमती हबीबुल हसन ने दावा किया था कि वीरेंद्र ने हवालात में मिले कंबल को फाड़कर उसके सहारे दस फीट ऊंचे रोशनदान से लटककर फांसी लगाने का प्रयास किया। वीरेंद्र को फांसी पर लटका देखकर उसे ट्रॉमा सेंटर ले जाया गया, जहां उसकी मौत हो गई।

घटना की सूचना पाकर एएसपी, सीओ महानगर राजेश श्रीवास्तव, सीओ महानगर विद्यासागर मिश्र, सीओ गाजीपुर विशाल पांडेय सहित अन्य पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंचे और छानबीन शुरू की। वहीं पुलिस देर रात तक घटना को दबाने का प्रयास करती रही और वीरेंद्र के घरवालों को भी इसकी सूचना नहीं दी गई थी। आशंका है कि पुलिस पिटाई से वीरेंद्र की जान गई है। मायानगर, हसनगंज निवासी वीरेंद्र की बूढ़ी मां लाभेश्वरी मिश्र के मुताबिक, पुलिस ने उनके बेटे वीरेंद्र को घर से पकड़ा था। वीरेंद्र होली के बाद ही वाहन चोरी के मामले में जेल से छूटकर आया था। वीरेंद्र के पिता स्व.महेंद्र मिश्र डालीगंज स्थित एक दुकान में मुनीम थे। बताते हैं कि उसके बड़े भाई योगेंद्र की करीब एक साल पूर्व बीमारी से मौत हो गई थी। उसका एक भाई जितेंद्र निजी नौकरी करता है।

वीरेंद्र के परिजन यह भी बताते हैं कि जितेंद्र खाना लेकर कोतवाली गया था लेकिन पुलिस ने न वीरेंद्र को खाना दिया और न ही जितेंद्र को उससे मिलने दिया गया था। घटना का पता लगने पर मुहल्ले के लोगों में काफी आक्रोश था। कुछ लोगों का कहना था कि पुलिस ने अपने सराहनीय कार्य के चक्कर में वीरेंद्र को उठाकर उसके पास से तमंचा दिखा दिया। पुलिस किसी घटना के राजफाश के लिए उस पर दबाव बना रही होगी और इन्कार पर उसे बेरहमी से पीटा गया होगा। हालांकि अधिकारी वीरेंद्र की पिटाई किए जाने की बात से इन्कार कर रहे हैं।

इस मामले में इंस्पेक्टर जावेद खान, मदेयगंज चौकी प्रभारी शिवाकांत त्रिपाठी, नाइट अफसर दारोगा बृजेश कुमार, हेड कांस्टेबिल राकेश कुमार, सिपाही रामकृपाल पांडेय व संतरी ड्यूटी पर तैनात सिपाही मुनेश्वर को कल रात ही निलंबित कर दिया गया था। आज इनके खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया। इसके साथ ही मामले की जांच सीबीसीआइडी को सौंपी गई है। एसएसपी ने कहा कि इस मामले में जांच के आदेश दिए जा चुके हैं और जो भी मामले का दोषी पाया जाएगा उसे बक्शा नहीं जाएगा|

इससे पहले इसी महीने प्रतापगढ़ में भी कुछ इसी तरह का मामला प्रकाश में आया था| उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में कथित रूप से पुलिस प्रताड़ता से हिरासत में हुई महिला की मौत के मामले में जिलाधिकारी ने जांच के आदेश दे दिए हैं। रानीगंज इलाके में मायके में रही हेमा नाम की महिला की पड़ोसियों से मारपीट हो गई। इसी मामले में उसे पुलिस उसे पूछताछ के लिए थाने ले आई।

परिजनों का आरोप है कि दूसरे पक्ष के लोगों के कहने पर हेमा की हिरासत में इस कदर पिटाई की गई कि वह मरणासन्न हालत में पहुंच गई। बाद में पुलिसकर्मी उसे अस्पताल लेकर गए जहां उसकी मौत हो गई। जिले के अपर पुलिस अधीक्षक वी़ एस़ यादव ने संवाददाताओं को बताया कि जिलाधिकारी की तरफ से घटना की जांच के आदेश दे दिए गए हैं। जांच के बाद आगे की कार्रवाई होगी।

इसके अलावा अप्रैल माह में गाजीपुर जिले में एक युवक की पुलिस हिरासत में पिटाई से मौत होने पर नाराज भीड़ ने जमकर हंगामा किया। भीड़ ने पुलिस चौकी और गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया। हंसराजपुर पुलिस चौकी के पास स्थित नसीरपुर गांव की 13 साल की एक लड़की 20 साल के एक लड़के के साथ भाग गई थी। युवती के परिवार वालों ने गांव के ही युवक गुल्लू राम के खिलाफ तहरीर दी थी। इस आधार पर आरोपी के दोस्त घनश्याम राम को पुलिस ने हिरासत में लेकर पूछताछ की। आरोप है कि पूछताछ के दौरान उसकी पिटाई की गई और हालत बिगड़ने पर छोड़ दिया।

पिटाई से जख्मी घनश्याम को घर वाले जिला हॉस्पिटल ले जा रहे थे। तभी रास्ते में ही उसकी मौत हो गई। इससे गुस्से में ग्रामीणों ने शव के साथ सड़क जाम कर दिया और हंसराजपुर पुलिस चौकी में तोड़फोड़ करने के बाद आग लगा दी। भीड़ ने चौकी में खड़ी पुलिस की गाड़ियों को भी आग के हवाले कर दिया। पुलिस के बल प्रयोग के बाद हालात पर काबू पाने में कामयाबी मिली।

उधर राज्य के अपर पुलिस महानिदेशक (एडीसी) अरुण कुमार ने लखनऊ में कहा कि फिलहाल स्थिति तनावपूर्ण लेकिन नियंत्रण में हैं। मौके पर भारी संख्या में पुलिस बल और पीएसी के जवानों की तैनाती की गई है। उन्होंने कहा कि वाराणसी क्षेत्र के पुलिस उपमहानिरीक्षक को मौके पर भेजकर घटना की जांच करने के लिए कहा गया है। युवक की मौत कैसे हुई यह जांच के बाद ही पता चल सकेगा। जांच के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।

गौरतलब है कि पिछले कुछ महीनों से पुलिस हिरासत में हो रही कैदियों की मौत से यह साफ़ जाहिर होता है कि अखिलेश सरकार प्रदेश में बिगड़ती कानून व्यवस्था को दुरुस्त करने में नाकाम साबित हो रहे हैं..? 

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देश-विदेश में दशहरे की धूम

भगवान राम की रावण का विजय का पर्व दशहरा पूरे देश में पूरे धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। आज भी दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। आज भी उस दिन की याद दिलाता है जब श्रीराम ने रावण को मार कर इस इस धरती को उसके अत्याचार मुक्त कराया था। दशहरा मनाने की परंपरा सदियों से हमारे देश में चली आ रही है। दशहरा को विजयादशमी भी कहतें हैं। भगवान श्री राम की विजय के रूप में मनाया जाए या दुर्गा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह शक्ति पूजा अराधना का उत्सव रहा है।

दशहरा पर्व भारत में ही नहीं बल्कि भारत के बाहर विश्व के अनेक देशों में हर्षो उल्लास के साथ मनाया जाता रहा है। भारत में विजयादशमी का पर्व देश के कोने कोने में बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है।यहां मैसूर का दशहरा, कूल्लू का दशहरा, दक्षिण भारत में तथा इसके अतिरिक्त उत्तर भारत, बंगाल इत्यादि में विजयादशमी के त्यौहार को बडे़ पैमाने पर मनाया जाता है। यहाँ का दशहरा बस देखते ही बनता है।

कुल्लू का दशहरा

हिमांचल के कुल्‍लु का दशहरा पूरे देश में प्रसि‍द्ध है। इसे अलग और अनोखे अंदाज़ में मनाया जाता है। आश्विन मास की दसवीं तारीख को इसकी शुरुआत होती है। कुल्लू का दशहरा पर्व, परंपरा, रीतिरिवाज़ की दृष्टि से ऐतिहासिक महत्व रखता है। जब पूरे भारत में विजयादशमी की समाप्ति होती है उस दिन से कुल्लू की घाटी में इस त्योहार का रंग देखते ही बनता है। स्त्रियाँ, पुरुष सभी रंग-विरंगे वस्त्रों से सुसज्जित होकर अपने वाद्य यंत्रों के साथ बाहर निकलते हैं। इस उत्सव के दौरान पहाड़ी लोग अपने ग्रामीण देवता जुलूस निकाल कर धूम धाम से पूजन करते हैं। इन देवताओं के लिए आकर्षक पालकी सजाई जाती है। साथ ही वे अपने मुख्य देवता रघुनाथ जी की भी पूजा करते हैं। नृत्य का प्रदर्शन किया जाता है । इस प्रकार जुलूस बनाकर नगर के मुख्य भागों से होते हुए नगर परिक्रमा करते हैं और कुल्लू नगर में देवता रघुनाथजी की वंदना से दशहरे के उत्सव का आरंभ करते हैं। इस दशहरे की खास बात ये है कि यहां का दशहरा में रावण, मेघनाथ और कुंभकर्ण के पुतलों का दहन करके नहीं मनाया जाता। सात दिनों तक चलने वाला यह उत्‍सव हिमाचल के लोगों की संस्‍कृति और धार्मिक आस्‍था का प्रतीक है। उत्‍सव के दौरान भगवान रघुनाथ जी की रथयात्रा निकाली जाती है। उत्सव के छठे दिन सभी देवी-देवता इकट्ठे होकर मिलते हैं जिसे ‘मोहल्ला’ कहते हैं। रघुनाथ जी के इस पड़ाव में सारी रात लोगों का नाचगाना चलता है। सातवे दिन रथ को बियास नदी के किनारे ले जाया जाता है। जहाँ लंकादहन का आयोजन होता है तथा कुछ जानवरों की बलि दी जाती है।

सन 1660 में यहां पहली बार दशहरा आयोजित किया गया था। कहा जाता है कि कुल्लू में विजयदशमी के पर्व मनाने की परंपरा राजा जगत सिंह के समय से मानी जाती है। कहा जाता है कि एक बार राजा जगत सिंह, को पता चलता है कि पास के एक गाँव में एक ब्राह्मण के पास बहुत कीमती रत्न है, तो राजा के मन में उस रत्न को पाने की इच्छा उत्पन्न होती है और व अपने सैनिकों को उस ब्राह्मण से वह रत्न लाने का आदेश देता है। सैनिक उस ब्राह्मण को अनेक प्रकार से उसे सताते हैं। इन यातनाओं से मुक्ति पाने के लिए वह ब्राह्मण परिवार समेत आत्महत्या कर लेता है। परंतु मरने से पहले वह राजा को श्राप देकर जाता है । इस श्राप के वजह से कुछ दिन बाद राजा का स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है। तब एक संत राजा को श्रापमुक्त होने के लिए रघुनाथजी की मूर्ति लगवाने को कहता है। रजा रघुनाथ जी की मूर्ति लगवाता है। रघुनाथ जी कि इस मूर्ति के कारण राजा धीरे-धीरे ठीक होने लगता है। राजा ने स्वयं को भगवान रघुनाथ को समर्पित कर दिया तभी से यहाँ दशहरा पूरी धूमधाम से मनाया जाने लगा।

मैसूर का दशहरा

कहतें हैं कि मैसूर का दशहरा नहीं देखा तो क्या देखा? यह दशहरा भारत में ही नहीं विश्व में प्रसिध्द है। पहले इसे 'नवरात्रि' के नाम से ही जाना जाता था लेकिन वाडेयार राजवंश के लोकप्रिय शासक कृष्णराज वाडेयार के समय में इसे दशहरा कहने का चलन शुरू हुआ। यहां विजयादशमी के अवसर पर शहर की रौनक देखते ही बनती है शहर को फूलों, दीपों एवं बल्बों से सुसज्जित किया जाता है सारा शहर रौशनी में नहाया होता है जिसकी शोभा देखने लायक होती है। वर्तमान में इस उत्सव की लोकप्रियता देखकर कर्नाटक सरकार ने इसे राज्योत्सव का सम्मान प्रदान किया है।

राजा वाडेयार की इच्छा थी कि इस उत्सव को आने वाली पीढ़ियाँ याद रखें तथा उसी प्रकार से मनाएँ, जिस प्रकार विजयनगर के शासक मनाया करते थे। अत: इसके लिए उन्होंने निर्देशिका भी तैयार की थी, जिसमें लिखा था कि किसी भी कारण से दशहरा मनाने की परंपरा टूटनी नही चाहिए। कहा जाता है कि दशहरे से ठीक एक दिन पहले जब राजा के पुत्र नंजाराजा की मृत्यु हो गई थी परंतु तब भी राजा वाडेयार ने बिना किसी अवरोध के ‘दशहरा उत्सव’ का आयोजन किया और परंपरा को कायम रखा । उनके बाद वाडेयार राजघराने के वंशजों ने भी जीवित रखने की कोशिश जारी रखी। इस मौके पर भव्य जुलूस निकाला जाता है, जिसमें बलराम के सुनहरी हौदे पर सवार हो चामुंडेश्वरी देवी मैसूर नगर भ्रमण के लिए निकलती हैं। वर्ष भर में यह एक ही मौका होता है, जब देवी की प्रतिमा यूं नगर भ्रमण के लिए निकलती है।

पंजाब का दशहरा

पंजाब में दशहरा नवरात्रि के नौ दिन का उपवास रखकर मनाते हैं। इस दौरान यहां आगंतुकों का स्वागत पारंपरिक मिठाई और उपहारों से किया जाता है। अष्टमी और नवमी के दिन मां दुर्गा जी की उपासना की जाती है। यहां भी रावण-दहन के आयोजन होते हैं व मैदानों में मेले लगते हैं।

बस्तर का दशहरा

बस्तर में दशहरे मां दंतेश्वरी की पूजा का विधान है। यह पर्व उनको ही समर्पित है। माँ दंतेश्वरी यहाँ के निवासियों की आराध्य देवी हैं, जो दुर्गा का ही एक रूप हैं। बस्तर में दशहरा का त्यौहार श्रावण मास की अमावस से आश्विन मास की शुक्ल त्रयोदशी तक चलता है। इसका समापन ओहड़ी पर्व से किया जाता है।

बंगाल का दशहरा

यह बंगालियों का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। बंगाल में यह पर्व दुर्गा पूजा के रूप में ही मनाया जाता है। यह पूरे बंगाल में पांच दिनों के लिए मनाया जाता है। यहां देवी दुर्गा को भव्य सुशोभित पंडालों विराजमान करते हैं। इसके साथ अन्य देवी-देवताओं की भी कई मूर्तियां बनाई जाती हैं। त्योहार के दौरान शहर में छोटे-मोटे स्टाल भी मिठाइयों से भरे रहते हैं। यहां षष्ठी के दिन दुर्गा देवी का बोधन, आमंत्रण एवं प्राण प्रतिष्ठा आदि का आयोजन किया जाता है। षष्ठी के दिन दुर्गा जी का पूजन एवं प्राण प्रतिष्ठा आदि का आयोजन किया जाता है इसके उपरांत सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी के दिन प्रातः और सायंकाल दुर्गा पूजा होती है दशमी के दिन विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है।

ओडिशा और असम का दशहरा

यहां भी पर्व दुर्गा पूजा के रूप में ही मनाया जाता है,यहाँ इसे चार दिन तक मनाया जाता है। बंगाल के दशहरे की तरह स्त्रियां देवी के माथे पर सिंदूर चढ़ाती हैं, और एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं एक प्रकार से सिंदूर की होली खेली जाती है। इसके पश्चात देवी की प्रतिमाओं को विसर्जन के लिए ले जाया जाता है।

तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक का दशहरा

तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक में दशहरा नौ दिनों तक चलता है जिसमें तीन देवियां लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा की पूजा की जाती है। पहले तीन दिन लक्ष्मी-धन और समृद्धि की देवी का पूजन होता है। अगले तीन दिन सरस्वती देवी की अर्चना की जाती है और अंतिम दिन देवी दुर्गा-शक्ति की देवी की पूजा की जाती है। यहां दशहरा शिक्षा या कोई भी नया कार्य जैसे संगीत और नृत्य सीखने के लिए शुभ समय होता है।

महाराष्ट्र में दशहरा

महाराष्ट्र में दशहरे को नवरात्रि कहतें हैं। ये पर्व माँ दुर्गा को समर्पित होता है। दसवें दिन माँ सरस्वती की पूजा कि जाती है। किसी भी चीज को प्रारंभ करने के लिए खासकर विद्या आरंभ करने के लिए यह दिन काफी शुभ माना जाता है। महाराष्ट्र के लोग इस दिन विवाह, गृह-प्रवेश एवं नये घर खरीदने का शुभ मुहूर्त मानतें हैं।

गुजरात का दशहरा

गुजरात में भी दशहरे को नवरात्र के रूप में मनाया जाता है। नवरात्र के नौ दिनों तक यहां पारंपरिक नृत्य गरबा की धूम होती है। रंगीन घड़ा देवी का प्रतीक माना जाता है और इसको कुंवारी लड़कियां सिर पर रखकर एक लोकप्रिय नृत्य करती हैं जिसे गरबा कहा जाता है।

नेपाल, मॉरीशस में दशहरा

जैसे दशहरा भारत में हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है वैसे ही कई अन्य देशों जैसे इंडोनेशिया, मलेशिया, श्रीलंका, चीन और थाइलैंड के अलावा दूनिया के दूसरे देशों में भी मनाया जाता है। विजयादशमी नेपाल में बहुत बडे़ स्तर पर मनाया जाता है। यहां यह वर्ष का सबसे बड़ा त्यौहार होता है। माँ काली तथा माँ दुर्गा की पूजा नौ दिनों तक की जाती है। विजयादशमी वाले दिन राज दरबार में राजा प्रजा को अबीर, चावल, दही का टीका लगाते हैं।

..यहां गिरी थी सती की दाहिनी जांघ

बिहार की राजधानी पटना में स्थित पटन देवी मंदिर शक्ति उपासना का प्रमुख केंद्र माना जाता है। देवी भागवत और तंत्र चूड़ामणि के अनुसार, सती की दाहिनी जांघ यहीं गिरी थी। नवरात्र के दौरान यहां काफी भीड़ उमड़ती है।सती के 51 शक्तिपीठों में प्रमुख इस उपासना स्थल में माता के तीन स्वरूपों वाली प्रतिमाएं विराजित हैं। पटन देवी भी दो हैं- छोटी पटन देवी और बड़ी पटन देवी, दोनों के अलग-अलग मंदिर हैं।

पटना की नगर रक्षिका भगवती पटनेश्वरी हैं जो छोटी पटन देवी के नाम से भी जानी जाती हैं। यहां मंदिर परिसर में मां महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की स्वर्णाभूषणों, छत्र व चंवर के साथ विद्यमान हैं। लोग प्रत्येक मांगलिक कार्य के बाद यहां अवश्य आते हैं।

इस मंदिर के पीछे एक बहुत बड़ा गड्ढा है जिसे 'पटनदेवी खंदा' कहा जाता है। कहा जाता है कि यहीं से निकालकर देवी की तीन मूर्तियों को मंदिर में स्थापित किया गया था। वैसे तो यहां मां के भक्तों की प्रतिदिन भारी भीड़ लगी रहती है, लेकिन नवरात्र के प्रारंभ होते ही इस मंदिर में भक्तों का तांता लग जाता है।

पुजारी आचार्य अभिषेक अनंत द्विवेदी ने बताया कि नवरात्र के दौरान महाष्टमी और नवमी को पटन देवी के दोनों मंदिरों में हजारों श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए आते हैं। महासप्तमी को महानिशा पूजा, अष्टमी को महागौरी और नवमी को सिद्धिदात्री देवी के पूजन के बाद हवन और कुमारी पूजन में बड़ी भीड़ जुटती है। दशमी तिथि को अपराजिता पूजन, शस्त्र पूजन और शांति पूजन किया जाता है।

बड़ी पटन देवी मंदिर भी शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि महादेव के तांडव के दौरान सती के शरीर के 51 खंड हुए। ये अंग जहां-जहां गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ स्थापित की गई। यहां सती की दाहिनी जांघ गिरी थी। गुलजार बाग इलाके में स्थित बड़ी पटन देवी मंदिर परिसर में काले पत्थर की बनी महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की प्रतिमा स्थापित हैं। इसके अलावा यहां भैरव की प्रतिमा भी है।

यहां के बुजुर्गो का कहना है कि सम्राट अशोक के शासनकाल में यह मंदिर काफी छोटा था। इस मंदिर की मूर्तियां सतयुग की बताई जाती हैं। मंदिर परिसर में ही योनिकुंड है, जिसके विषय में मान्यता है कि इसमें डाली जाने वाली हवन सामग्री भूगर्भ में चली जाती है।

देवी को प्रतिदिन दिन में कच्ची और रात में पक्की भोज्य सामग्री का भोग लगता है। यहां प्राचीन काल से चली आ रही बलि-प्रदान की परंपरा आज भी विद्यमान है। भक्तों की मान्यता है कि जो भक्त सच्चे दिल से यहां आकर मां की अराधना करते हैं, उनकी मनोकामना जरूर पूरी होती है। मंदिर के महंत विजय शंकर गिरि बताते हैं कि यहां वैदिक और तांत्रिक विधि से पूजा होती है।

वैदिक पूजा सार्वजनिक होती है, जबकि तांत्रिक पूजा मात्र आठ-दस मिनट की होती है। परंतु इस मौके पर विधान के अनुसार, भगवती का पट बंद रहता है। वे बताते हैं कि सती की यहां दाहिनी जांघ गिरी थी, इस कारण यह शक्तिपीठों में से एक है। वे कहते हैं कि यह मंदिर कालिक मंत्र की सिद्धि के लिए प्रसिद्ध है।

गिरि कहते हैं कि नवरात्र में यहां महानिशा पूजा की बड़ी महता है। जो व्यक्ति अर्धरात्रि के समय पूजा के बाद पट खुलते ही 2.30 बजे आरती होने के बाद मां के दर्शन करता है उसे साक्षात् भगवती का आशीर्वाद प्राप्त होता है। 

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59 की हुईं मस्तानी आंखों वाली रेखा

यूं तो रेखा की 'आंखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं' मगर हिंदी फिल्मों की सांवली सलोनी अभिनेत्री सिनेमा जगत में अपने अलहदा रूप-सौंदर्य और आकर्षण के लिए भी खूब मशहूर हैं। उनकी मोहक अदा और मादक आवाज ने उनके अभिनय और संवाद अदायगी के साथ मिलकर दशकों तक बॉलीवुड और सिनेप्रेमियों के दिल में राज किया है।

जेमिनी गणेशन और पुष्पावली की संतान के रूप में 10 अक्टूबर 1954 को जन्मी रेखा का वास्तविक नाम भानुरेखा गणेशन है। सत्तर और अस्सी के दशक की अग्रणी अभिनेत्रियों में शुमार रेखा फिल्मों में शुरुआत बतौर बाल कलाकार तेलुगू भाषा की फिल्म 'रंगुला रत्नम' से कर चुकी थीं। लेकिन 1970 में फिल्म 'सावन भादो' से उन्हें बॉलीवुड में एक अभिनेत्री के रूप में औपचारिक प्रवष्टि मिली और उसके बाद उन्होंने अपने रूप और सौंदर्य के साथ-साथ सिनेमा जगत में अपने अभिनय का भी लोहा मनवाया।

उन्होंने कई यादगार फिल्मों में काम किया। रेखा ने एक तरफ सजा (1972), आलाप (1977), मुकद्दर का सिकंदर (1978), मेहंदी रंग लाएगी (1982), रास्ते प्यार के (1982), आशा ज्योति (1984), सौतन की बेटी (1989),बहूरानी (1989), इंसाफ की देवी (1992), मदर (1999) जैसी मुख्यधारा की फिल्मों में अपने अभिनय के जरिये नाम कमाया तो दूसरी तरफ उनकी निजी जिंदगी भी लोगों के लिए कौतूहल का विषय बनी।

करियर की शुरुआत में ही उनका नाम अभिनेता नवीन निश्चल से जुड़ा तो कभी किरण कुमार के साथ जोड़ा गया, यहां तक कि अभिनेता विनोद मेहरा के साथ गुपचुप शादी कर लेने की खबर भी उड़ी और अमिताभ बच्चन के साथ रेखा के रिश्ते की सरगोशियां तो आज तक लोगों के जुबां से हटी नहीं हैं।

लेकिन नवीन निश्चल के साथ रेखा का नाम जुड़ना उनकी जिंदगी में प्यार के आने और चले जाने की शुरुआत भर थी। नवीन निश्चल और किरण कुमार के साथ रेखा का नाम जोड़कर कुछ समय बाद लोगों ने इन किस्सों को भुला दिया।

इसके बाद रेखा का नाम अभिनेता विनोद मेहरा के साथ जुड़ा, मगर मेहरा ने खुद अपनी शादी की बात कभी नहीं स्वीकारी। अमिताभ बच्चन के साथ रेखा की प्रेम कहानी तो आज भी एक पहेली ही है। कहा जाता है कि 1981 में बनी फिल्म 'सिलसिला' रेखा और जया भादुड़ी (बच्चन) के प्रेम के बीच बंटे अमिताभ की वास्तविक जिंदगी की सच्चाई पर आधारित थी। फिल्म बहुत सफल नहीं रही, बल्कि यह फिल्म रेखा-अमिताभ की जोड़ी वाली आखिरी फिल्म साबित हुई।

रेखा के लिए उद्योगपति मुकेश अग्रवाल के साथ विवाह (1990) भी उनके जीवन का दुर्भाग्य ही रहा। उनके पति ने शादी के एक साल बाद ही फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली, तब रेखा न्यूयार्क गई हुई थीं। इस घटना के लिए रेखा को लंबे समय तक सवालों और आक्षेपों का सामना करना पड़ा था।

रेखा एक बार फिर अपने जीवन में अकेली हो गईं। लेकिन बीच-बीच में सार्वजनिक समारोहों और कार्यक्रमों में शुद्ध कांजीवरम साड़ी और मांग में सिंदूर सजाकर रेखा लोगों के बीच कौतूहल का विषय बनती रहीं। रेखा की जिंदगी में प्यार कई बार और कई सूरतों में आया लेकिन जिस स्थायी सहारे और सम्मान की उन्हें जीवन में चाहत और जरूरत थी, उससे वह महरूम ही रहीं।

साल 2005 में आई फिल्म 'परिणीता' में रेखा पर फिल्माया गीत 'कैसी पहेली जिंदगानी' जैसे वास्तव में रेखा की जिंदगी को शब्दों में पिरोया हुआ गीत हो। रेखा को अपने अब तक के अपने फिल्मी सफर में दो बार (1981,1989) सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्म फेयर अवार्ड और एक बार सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के फिल्मफेयर अवार्ड (1997) से नवाजा जा चुका है। जीवन के 59 वसंत देख चुकीं खूबसूरत रेखा इस समय राज्यसभा सदस्य होने के साथ-साथ फिल्म जगत में भी सक्रिय हैं। 

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भारतीय संगीत व सद्भाव के अग्रदूत अमजद अली खान

12 वर्ष की अल्पायु में अपनी पहली संगीत प्रस्तुति देकर उस्ताद संगितज्ञों को मंत्रमुग्ध कर देने वाले सरोद सम्राट अमजद अली खान का 9 अक्टूबर को (बुधवार) 68वां जन्मदिवस है। अमजद अली खान वर्तमान भारत के वास्तविक सद्भावना दूत हैं, यही कारण है कि महात्मा गांधी की 144वीं जयंती पर जब संयुक्त राष्ट्र की विशेष सभा में राष्ट्रपिता को संगीत से श्रद्धांजलि देने की बारी आई तो इस कार्य के लिए अमजद अली खान को चुना गया।

भारतीय शास्त्रीय संगीत के अनेक वाद्यों का प्रचलन जहां दिनों दिन कम होता जा रहा है, और आने वाली पीढ़ियों की उन वाद्य यंत्रों पर संगीत साधना से रुचि समाप्त होती जा रही है, वहीं अमजद अली खान ने एक ऐसे वाद्य यंत्र से भारतीय शास्त्रीय संगीत को समृद्ध किया जो न सिर्फ दूर देश ईरान से लाए गए वाद्य 'रबाब' को भारतीय संगीत परंपरा एवं वाद्यों के अनुकूल परिवर्धित करके निर्मित किया गया। यह नया वाद्य यंत्र 'सरोद' कहलाया जिसका अर्थ होता है मेलोडी अर्थात् मधुरता।

अमजद अली खान ने संगीत के लिए प्रसिद्ध बंगश घराने की पारंपरिक संगीत को छठी पीढ़ी में न सिर्फ जीवित रखा है, बल्कि अनेक मौलिक रचनाओं के साथ उसे नया जीवन प्रदान किया है। इतना ही नहीं अपने दोनों बेटों अमान अली और अयान अली को सरोद में दीक्षित कर वे इस संगीत की परंपरा को बंगश वंशावली की सातवीं पीढ़ी के सुरक्षित हाथों में सौंप चुके हैं।

ग्वालियर के शाही परिवार के संगीतकार हाफिज अली खां के पुत्र अमजद अली खां प्रसिद्ध बंगश वंशावली की छठी पीढ़ी के हैं, जिसकी जड़ें संगीत की सेनिया बंगश शैली में हैं। इस शैली की परंपरा को शहंशाह अकबर के अमर दरबारी संगीतकार मियां तानसेन के समय से जोड़ा जा सकता है। अमजद अपने पिता के खास शिष्य थे।

भारतीय शास्त्रीय संगीत में अमजद अली खान आज सर्वोत्कृष्ट स्थान हासिल कर चुके हैं, और कला के लिए समर्पण ने उन्हें विश्व में भारतीय संगीत के अग्रदूत के रूप में स्थापित किया है। भारत ही नहीं, पूरा विश्व आज उनसे संगीत की दीक्षा लेना चाहता है, और संगीत के इस असीम सागर से कुछ मोती प्राप्त करना चाहता है। इसी सिलसिले में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय ने उन्हें पिछले वर्ष संगीत की शिक्षा प्रदान करने के लिए आमंत्रित किया। यहां उन्होंने 'इंडियन क्लासिकल म्यूजिक : ए वे आफ लाइफ' शीर्षक वाले पाठ्यक्रम के अंतर्गत विश्व को भारतीय संगीत की मधुरता एवं विश्वप्रियता से अवगत कराया।

भारतीय संगीत के जरिए विश्व में सद्भावना का संदेश प्रसारित करने वाले अमजद अली खान को इस वर्ष 20 अगस्त को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के जन्मदिवस पर राष्ट्रीय एकता एवं सौहार्द के क्षेत्र में अतिविशिष्ट कार्यो के लिए दिया जाने वाला राजीव गांधी सद्भावना सम्मान से सम्मानित किया गया। वैसे तो कहा जाता है कि अमजद अली खान जैसे विश्वस्तर के कलाकारों को ये सम्मान उन सम्मानों का ही सम्मान बढ़ाने का काम करते हैं। इसीलिए शायद विश्वभर से उन्हें इतने सम्मानों से सम्मानित किया गया।

1971 में उन्होंने द्वितीय एशियाई अंतर्राष्ट्रीय संगीत-सम्मेलन में भाग लिया जहां उन्हें 'रोस्टम पुरस्कार' से सम्मानित किया गया। खान साहब को इसके अलावा भारत के प्रतिष्ठित पुरस्कारों, पद्मश्री, पद्म विभूषण, पद्म विभूषण, संगीत नाटक अकादमी सम्मान, कला रत्न सम्मान, तानसेन सम्मान और उनकी उपलब्धियों के लिए उन्हें 2011 में मल्लिकार्जुन भीमरायप्पा मंसूर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा अमजद अली खां साहब को यूनेस्को सम्मान एवं यूनिसेफ के राष्ट्रीय राजदूत सम्मान से नवाजा गया।

अमजद अली खां ऐसे संगीतकार हैं, जिन्हें न सिर्फ संगीत के प्रति समर्पण के लिए ही नहीं बल्कि उसकी परंपरा को भी संजोने के लिए भी जाना जाएगा। उन्होंने अपने पिता हाफिज अली खान पर 'माई फादर, ऑवर फ्रैटर्निटी : द स्टोरी ऑफ हाफिज अली खान एंड माई वल्र्ड' शीर्षक से पुस्तक लिखकर भारतीय के एक संगीत घराने के योगदान एवं परंपरा को अमर कर दिया। उनकी पुस्तक का विमोचन महानायक अमिताभ बच्चन ने किया।

अमजद अली खान का व्यक्तित्व इतना सहज लेकिन इतना प्रभावी है कि मशहूर गीतकार एवं निर्देशक गुलजार ने 1990 में उन पर फिल्म प्रभाग की तरफ से 'अमजद अली खान' शीर्षक से एक वृतचित्र फिल्म का निर्माण किया और इस फिल्म को उस वर्ष सर्वश्रेष्ठ वृतचित्र का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।

अमजद की सृजनात्मक प्रतिभा को उनके द्वारा रचित कई मनमोहक रागों में अभिव्यक्ति मिली। उन्होंने इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की स्मृति में क्रमश: राग प्रियदर्शनी और राग कमलश्री की रचना की। उनके द्वारा रचित अन्य रागों में शिवांजलि, हरिप्रिया कानदा, किरण रंजनी, सुहाग भैरव, ललित ध्वनि, श्याम श्री और जवाहर मंजरी शामिल हैं।

अमजद अली खान ने देश-विदेश के अनेक महžवपूर्ण संगीत केंद्रों में संगीत प्रस्तुत कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया है। इनमें कुछ प्रमुख हैं- रॉयल अल्बर्ट हॉल, रॉयल फेस्टिवल हॉल, केनेडी सेंटर, हाउस ऑफ कॉमंस, फ्रैंकफुर्ट का मोजार्ट हॉल, शिकागो सिंफनी सेंटर, ऑस्ट्रेलिया का सेंट जेम्स पैलेस और ओपेरा हाउस आदि।

सरोद के प्रति उनकी दीवानगी को इसी से समझा जा सकता है कि आपने ग्वालियर में सरोद म्यूजियम 'सरोद घर' भी बनाया है, जिसमें सरोद से जुड़े फोटो, दस्तावेज, शास्त्रीय संगीत पर किताबें, लेख ऑडियो-विडियो दस्तावेजों का बहुमूल्य खजाना उपलब्ध है। वह अपने इस सरोद घर में लाइव संगीत कार्यक्रमों का आयोजन भी करवाते हैं।

अमजद अली खान ने अपनी पत्नी एवं प्रख्यात भरतनाट्यम नृत्यांगना सुब्बालक्ष्मी के लिए विशेष तौर पर एक राग 'सुब्बालक्ष्मी' की रचना की है। अमजद अली खान के विश्व बंधुत्व, सर्वधर्म समभाव और मानवीय हृदय को इसी बात से जाना जा सकता है कि उन्होंने कहा था कि उन्हें संगीत प्रस्तुति देते वक्त मंच पर जाते वक्त ऐसी ही अनुभूति होती है, जैसी किसी धार्मिक व्यक्ति को मस्जिद में रोज नमाज पढ़ने या मंदिर में भगवान के दर्शन के लिए जाने पर होती होगी। 

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वक्त के साथ घटा रामलीलाओं का आकर्षण

करीब 20 साल पहले तक रामलीला के प्रति लोगों में इतना आकर्षण था कि इनमें बड़ी संख्या में दर्शक जुटते थे और भगवान राम और लक्ष्मण बने पात्रों को लोग कंधे पर उठा लेते थे। फूल-माला और आरती लेकर रामलीला देखने आते थे। बैठने के लिए बोरे भी साथ लाते थे, मगर अब यह सब देखने को नहीं मिलता। अब रामलीलाओं में दर्शकों का टोटा रहता है। केवल विजयदशमी पर ही भीड़भाड़ दिखायी देती है।

सूबे के तमाम जनपदों में होने वाली रामलीला कमेटियों के मुख्य व्यवस्थापकों का कहना है कि करीब बीस वर्ष पूर्व रामलीला को देखने का लोगों में जो उत्साह था वह आज देखने को नहीं मिलता। कलाकारों की सोच में भी परिवर्तन दिख रहा है। वह भी इसे प्रोफेशन के रूप में लेते हैं।

लखनऊ की बात करें तो यहां होने वाली तमाम रामलीला कमेटियों के मुख्य व्यवस्थापकों का कहना है कि 20 साल पहले तक गांवों में जब कलाकार रामलीला का मंचन करने पहुंचते थे तो लोग स्टेशन से कंधे पर उठाकर मंच तक ले जाते थे। उन्हें माला पहनाते थे और आरती उतारते थे। सैकड़ों की संख्या में दर्शक जुटते थे और जयकारे लगाते रहते थे, लेकिन अब यह सब कुछ दिखायी नहीं देता।

कुछ ऐसा ही कानपुर में रामलीला कमेटी शास्त्रीनगर के मुख्य व्यवस्थापक महेंद्र कुमार बाजपेयी भी बताते हैं। अध्यक्ष बाबू त्रिपाठी, महामंत्री गुलाब वर्मा और स्वागताध्यक्ष जमशेद आलम अंसारी बताते हैं कि पहले तखत पर पेट्रोमेक्स की रोशनी में रामलीला होती थी। दर्शक दीर्घा में जगह पाने के लिए लोग अपना खाना तक लेकर आते थे, मगर अब वो जुनून नजर नहीं आता। कलाकार भी व्यावसायिक हो गए हैं। पहले कलाकार पैसे मांगते नहीं थे। जितने दो ले लेते थे। 

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अवकाश चाहिए तो रात 9 बजे आवास पर आइए!

उत्तर प्रदेश में लगातार यौन अपराध की घटनाएं सामने आ रही हैं| ताजा मामला अलीगढ़ का है जहां एक बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) ने तो सारी हदें ही पार कर दी| अलीगढ़ के बीसए पर एक महिला ने गंभीर आरोप लगत्ते हुए कहा है कि मातृत्व अवकाश को मंजूर कराने के लिए 'साहब' ने उन्हें आवास पर बुला लिया। नहीं गई तो फाइल महीनेभर उनके यहां पड़ी रही और छुट्टी मंजूर नहीं की गई। फिलहाल इस मामले को लेकर सपा के विधायक जफर आलम के नाराज होने पर सीडीओ ने आरोपों की जांच कराने का निर्देश दिया है।

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, जवां ब्लाक स्थित छेरत प्राइमरी विद्यालय की सहायक अध्यापक शाहिद परवीन ने बताया है कि उनके तीन महीने के बेटे की तबियत खराब होने के कारण एक सितंबर को खंड शिक्षा अधिकारी के यहां मातृत्व अवकाश के लिए आवेदन किया था। उनकी संस्तुति के बाद पत्रावली नौ सितंबर को बीएसए कार्यालय आ गई। तब से अक्सर बीएसए कार्यालय पर जाती रहीं, लेकिन अवकाश स्वीकृत नहीं हुआ। तो एक दिन बीएसए साहब ने कहा कि यदि छुट्टी मंजूर करनी है रत को नौ बजे उनके आवास पर आना होगा| यह सूचना उसने यूपी उर्दू टीचर्स एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष गुलजार अहमद को दी।

पीड़ित टीचर को अवकाश देने के लिए शहर विधायक जफर आलम ने भी बीएसए से बात की, लेकिन हुआ कुछ नहीं। एबीएसए उसे बच्चे को स्कूल लाने से भी रोकते हैं। ऐसे में टीचर क्या करे? सो, उन्हें धरना-प्रदर्शन को मजबूर होना पड़ा। शाम को शहर विधायक जफर आलम ने सीडीओ से फोन पर बात की। सीडीओ शमीम अहमद ने घटना को गंभीरता से लेते हुए जाँच के आदेश दे दिए हैं| वहीँ, इस घटना को बीएसए निराधार बता रहे हैं| उनका कहना है कि मैंने महिला को कभी भी घर आने के लिए नहीं कहा है हाँ रही बात छुट्टी की तो मैंने वह मंजूर कर दी है| 

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बरवां गांव की रामलीला 300 साल पुरानी!

देश के विभिन्न हिस्सों में रामलीला के माध्यम से मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के चरित्र को रंगमंच पर उतारने की परंपरा काफी प्राचीन है, लेकिन वाराणसी जनपद में एक गांव ऐसा भी है, जहां यह परंपरा 300 वर्षो से भी पहले से चली आ रही है। 

वाराणसी से 40 किलोमीटर दूर स्थित बरवां गांव के बुजुर्गो की मानें तो वाराणसी के रामनगर में आयोजित होने वाली विश्वप्रसिद्ध रामलीला से भी पहले से इस गांव में रामलीला का मंचन होता आया है। बरवां गांव में रामलीला करने वालों के मुताबिक, हालांकि इसका कोई लिखित प्रमाण तो नहीं है, लेकिन इस गांव की रामलीला का मंचन लगभग 300 वर्ष पहले से होता आ रहा है।

बरवां गांव की रामलीला राघवेंद्र रामलीला समिति के नेतृत्व में पूरी परंपरा और निष्ठा के साथ आज भी अनवरत जारी है और उसी 300 वर्ष पुरानी परंपरा के अनुसार यहां प्रतिवर्ष रामलीला होती है।

रामनगर की रामलीला को वैसे तो अति प्राचीन माना जाता है, लेकिन बरवां गांव के बुजुर्गो का कहना है कि अगर उनके पास इस रामलीला मंचन का लिखित अभिलेख सुरक्षित होता तो उनके गांव की रामलीला के रामनगर से भी प्राचीन होने के प्रमाण मिल जाते।

समिति के वर्तमान अध्यक्ष महेंद्र दुबे ने बताया, "हमारे पास पिछले 100 वर्षो का प्रमाण तो है, लेकिन उसके पहले के प्रमाण नष्ट हो चुके हैं।" उन्होंने बताया, "बढ़ती महंगाई ने वर्तमान में जहां अन्य जगहों पर होने वाली रामलीलाओं पर असर डाला है, वहीं गांव वालों के सहयोग से हमारी रामलीला इससे अछूती है।"

उन्होंने आगे बताया, "11 दिनों चलने वाली रामलीला के आयोजन की तैयारी दो महीने पहले से शुरू हो जाती है। पात्रों के पोशाकों के चयन से लेकर संवाद तक हर पहलू को ध्यान में रखते हुए कड़ी मेहनत की जाती है। संगीत पक्ष भी अपनी तैयारी करता है। रामलीला में इसका बहुत ही महत्व है।"

इस गांव में होने वाली रामलीला में कुछ ऐसे कलाकार भी हैं जो लगातार कई वर्षो से हनुमान, रावण और अंगद का किरदार निभाते आ रहे हैं।

पिछले 25 वर्षो से रावण का किरदार निभाने वाले 60 वर्षीय पन्नालाल शर्मा ने बताया, "रावण रामकथा का एक विशेष पात्र है। किसी भी कृति के लिए अच्छे पात्रों के साथ-साथ बुरे पात्रों का होना अति आवश्यक है। किंतु रावण में अवगुणों की अपेक्षा गुण अधिक थे। यदि रावण न होता तो रामायण की रचना भी न हो पाती।"

शर्मा ने कहा, "देखा जाए तो रामकथा में रावण ही ऐसा पात्र है, जो राम के उज्ज्वल चरित्र को उभारने का काम करता है।"

शर्मा ने कहा, "रावण जहां दुष्ट और पापी था वहीं उसमें शिष्टाचार और ऊंचे आदर्श वाली मर्यादाएं भी थीं। रावण कितना भी अहंकारी क्यों न रहा हो, लेकिन उसके गुणों को विस्मृत नहीं किया जा सकता। रावण एक अति बुद्घिमान ब्राह्मण तथा शंकर भगवान का बहुत बड़ा भक्त था। वह महा तेजस्वी, प्रतापी, पराक्रमी, रूपवान तथा विद्वान था।"
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व्रत में सेहत का रखे ख़ास ख्याल

नवरात्र में ज्यादातर माँ के भक्त उपवास रखते हैं और फलाहार पर ही पूरा दिन बिता देते हैं| यदि ऐसे में आप सामान्य भोजन नहीं ले रहे हैं तो सेहत को चुस्त-दुरुस्त बनाये रखने के लिए आपको विशेष सावधानी बरतनी होगी| ख़ास तौर से मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग से पीड़ित रोगियों को उपवास के दौरान विशेष सावधानी बरतनी चाहिए| क्योंकि खान-पान में लापरवाही बरतने से आप कई तरह की समस्याओ से घिर सकते हैं|

यदि आप उपवास रख रहे हैं तो आपको अपने दिन की शुरुआत मूंगफली और चाय के साथ करनी चाहिए क्यूंकि इस से आपको अच्छी मात्रा में प्रोटीन, वसा और ऊर्जा प्राप्त होगी| आपको ये ध्यान रखना होगा कि आप जो भी कुछ खा रहे हो उसमें पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा हो| इस लिहाज़ से एक ग्लास फ्रूट मिल्क शेक, या एक कटोरी फ्रूट सलाद, या एक गिलास जूस ले सकते हैं|

नवरात्र में कुछ बातो का ध्यान अवश्य रखें:-

पानी पीने में कोई कोताही नहीं बरतनी चाहिए कम से कम 4-5 लीटर पानी जरुर पीना चाहिए| इसके अलावा व्यायाम या कठिन परिश्रम बिलकुल मत करें| 

उपवास में सब्जियों और फलों का जूस लेना फायदेमंद होता है और इस से शरीर में उर्जा बनी रहती है| इसके साथ- साथ यह भी ध्यान रखें कि उपवास कभी भी भारी भोजन के साथ नहीं तोड़ना चाहिए|

नवरात्रि में ही क्यों होती तांत्रिक पूजा ?

हिन्दू धर्मानुसार चैत्र और अश्विन मास में पडऩे वाली नवरात्रि का हिन्दू त्योहारों में बड़ा ही महत्व है। दोनों ही नवरात्रियां माता पर्व के दिन हैं, फिर तांत्रिक अनुष्ठानों व सिद्धियों के लिए अश्विन नवरात्रि को ही श्रेष्ठ माना जाता है?

अश्विन नवरात्रि पर्व को सिद्धि के लिए विशेष लाभदायी माना गया है। इस नवरात्रि में की गयी पूजा, जप-तप साधना, यंत्र-सिद्धियां, तांत्रिक अनुष्ठान आदि पूर्ण रूप से सफल एवं प्रभावशाली होते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि माँ दुर्गा स्वयं आदि शक्ति का रूप हैं और नवरात्रों में स्वयं मूर्तिमान होकर उपस्थित रहती हैं और उपासकों की उपासना का उचित फल प्रदान करती हैं। 

सृष्टि के पांच प्रमुख तत्वों में देवी को भूमि तत्व की अधिपति माना जाता है। तंत्र-मंत्र की सारी सिद्धियां इस प्रथ्वी पर मौजूद सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा से जुड़ी होती हैं। नवरात्रि के नौ दिनों में नकारात्मक ऊर्जा कमजोर पड़ जाती है सकारात्मक ऊर्जा अपने पूरे प्रभाव में होती है। 
ऐसा इसलिए क्योंकि इन दिनों चारों तरफ पूजा और मंत्रों का उच्चारण होता है| अन्य दिनों की अपेक्षा इन दिनों जो भी काम किया जाता है, वह सफल होता है| यही वजह है की तंत्र की सिद्धि आम दिनों के मुकाबले बहुत आसानी से और कम समय में मिलती है।

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