रंगों से पहचानें लोगों का स्वभाव

क्या आप जानते हैं कि रंगों की पसंद के अनुसार भी किसी व्यक्ति का स्वभाव मालूम किया जा सकता है। ज्योतिष के अनुसार हमारा जैसा स्वभाव होता है वैसे ही रंग हमारी पसंद होते हैं। रंगों का ग्रहों से भी गहरा संबंध होता है। वहीं यदि यह कहा जाए कि हमारी पसंद-नापसंद पर शुभ-अशुभ ग्रहों का प्रभाव पड़ता है तो गलत न होगा। 

कुछ ज्योतिष के जानकारों का कहना है कि लाल, काला, नीला, हरा, पीला रंग के अनुसार हम अपना स्वभाव जान सकते हैं। निम्नलिखित रंगों के अनुसार हम अपने स्वभाव को जान सकते हैं।

लाल- आप बहुत सावधान रहने वाले हैं, आपके जीवन प्रेम का बहुत अधिक महत्व है। आप बहुत अच्छे प्रेमी सिद्ध हो सकते हैं।

काला- आपका स्वभाव रूढ़िवादी है। साथ ही आपको गुस्सा बहुत जल्द आता है। आपको बदलाव बहुत कम ही पसंद आता है।

नीला- आप स्वाभिमानी हैं, किसी से मदद लेना आपको पसंद नहीं होता। प्रेमी को पूरा समय देते हैं।

हरा- आप बहुत शांति प्रिय इंसान हैं। लड़ाई-झगड़ों से दूर ही रहते हैं।

पीला- आप हमेशा खुश रहने वाले इंसान हैं। दूसरों को हमेशा सही मार्गदर्शन देते हैं। सभी की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।

कहा जाता है कि ज्योतिष के अनुसार उपर्युक्त रंगों के अनुसार व्यक्ति का स्वभाव लगभग इसी तरह का रहता है। वहीं नौ ग्रहों की अलग-अलग स्थिति के अनुसार स्वभाव में परिवर्तन भी हो सकता है।

इस बार ड्रिंकिंग गेम्स के साथ मनाइए दिलचस्प दीवाली


कौन कहता है कि दिवाली पर घर में होने वाली दावतें सिर्फ ताश के पत्ते खेलने या सामाजिकता निभाने तक की सीमित हैं। 'स्नैक्स एंड शॉट्स', 'क्रॉस एंड शॉट्स' जैसे खेलों के वयस्क रूपांतरण के साथ आप अपनी दीवाली दावत को नया और दिलचस्प बना सकते हैं। आपकी दिवाली मस्ती को दुगुना करने के लिए बाजार में बास्केट शॉट गेम, ट्रथ और शॉट, बीयर पॉन्ग और ड्रिंकिंग रौलेट, ड्रिंकिंग शतरंज, ड्रिकिंग बास्केटबॉल जैसे खेल उपलब्ध हैं।

राजधानी दिल्ली स्थित एक्सटर्डम किचन एंड बार के सनुज बिड़ला का कहना है, "सिर्फ शराब पीना उबाऊ है।" एक्सटर्डम किचन एंड बार में लोगों के निवेदन पर ड्रिंकिंग गेम्स की व्यवस्था की गई है। बिरला ने बताया, "शराब के साथ खेल होना मजेदार है, ये खेल आपके अंदर छिपे बचपने को बाहर लाते हैं।" राजधानी की कई मधुशालाओं में मांग पर ड्रिंकिंग गेम्स की पेशकश की गई है। इसमें वेयरहाउस कैफे के अलावा अंडरडॉग्स स्पोर्ट्स बार और ग्रिल भी अच्छे विकल्प हैं।

डीजे खुशी के नाम से मशहूर खुश सोनी का मानना है कि ऐसे खेल खेलने में काफी मजा आता है। फैट निंजा के मालिक और पैंजिया के प्रबंध साझेदार का कहना है कि प्रबंधन को यह अच्छी तरह पता होना चाहिए कि लाइन कहां बनाई जाए। कई बार युवा घर में ही दोस्तों के साथ ड्रिंकिंग गेम्स का लुत्फ उठाते हैं। 'ये जवानी है दिवानी' का ट्रेन का ड्रिंकिंग गेम वाला दृश्य तो आपको याद ही होगा।

29 वर्षीय श्रेय कुमार कहते हैं, "बाहर जाना महंगा होता है और पेय भी अत्यिधिक कर के साथ मिलते हैं। इसलिए बेहतर है कि दावत घर पर ही की जाए। यहां हम खेलों का मजा बेहतर तरीके से उठा सकते हैं और बिल की चिंता भी नहीं होगी। " वयस्कों के लिए ऑनलाइन भी बहुत सारे ड्रिंकिंग गेम्स उपलब्ध हैं। ये गेम्स 500 से 1,000 रुपये तक में उपलब्ध हैं।

आईपार्टी वाइल्ड की संस्थापक श्रुति सिंह ने बताया, "जैसे-जैसे ऐसी दावतें बढ़ रही हैं, लोगों ने मेहमानों के मनोरंजन के लिए नए तरीके ढूंढ़ने शुरू कर दिए हैं और इस तरह ड्रिकिंग गेम्स दावतों का हिस्सा बन रहे हैं।" श्रुति की कंपनी ने ट्रिपी डाइस, क्वीन बी, अल्टीमेट डेयरडेविल्स, किंग्स सर्कल और फिल्म-ओ-हॉलिक जैसे कुछ नए गेम्स पेश किए हैं ।

श्रुति ने बताया, "ड्रिकिंग गेम्स शराब के लिए नहीं है, ये इन्हें खेलते हुए आपके अनुभव के लिए है। ये खेल नशे की हालत में आपके धर्य, गति, सोचने की क्षमता को चुनौती देने के लिए बनाए गए हैं। इनके नियम सरल हैं, इसलिए लोग इन खेलों में जल्दी घुलमिल जाते हैं।" अगर आप शराब नहीं पीते हैं तो परेशान मत होइए। आप नींबू पानी के साथ भी इन खेलों का लुत्फ उठा सकते हैं।

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मुजफ्फरनगर के ग्रामीण नहीं मनाएंगे दीवाली

दंगों का दंश झेलने वाले मुजफ्फरनगर के सैकड़ों ग्रामीण इस साल दिवाली पर न तो पटाखे छोड़ेंगे और न ही मोमबत्तियां जलाकर घरों की सजावट करेंगे। बीते माह भड़की हिंसा के दौरान राज्य सरकार की 'भूमिका' से नाराज कई गावों के लोग इस साल दिवाली नहीं मनाएंगे।

सिसौली, बुढ़ाना, पुरकाजी और सिखेड़ा क्षेत्र के करीब 15 गांवों के ग्रामीणों ने सितंबर में भड़की दो वर्गो के बीच हिंसा में निर्दोष लोगों की मौत और घटना में राज्य सरकार की कथित एक पक्षीय कार्रवाई से नाराज होकर इस साल दिवाली नहीं मनाने का ऐलान किया है।

सलेमपुर गांव निवासी पूर्व ग्राम प्रधान प्रेम सिंह राणा ने कहा, "आस-पास के करीब पांच गावों की पंचायत करके हमने ये फैसला लिया है कि राज्य सरकार द्वारा सिर्फ समुदाय विशेष को खुश करने के लिए की गई एक पक्षीय कार्रवाई के खिलाफ हम दीपावली नहीं मनाएंगे।"

राणा ने कहा, "किसी भी सरकार की नजर में हर नागरिक एक समान होना चाहिए, लेकिन समाजवादी पार्टी की सरकार जाति और धर्म के चश्मे से देखकर कार्रवाई करती है। हिंसा के बाद एक विशेष समुदाय को खुश करने के लिए हमें झूठे मुकदमों में फंसाया जा रहा है, इसीलिए हमने दिवाली नहीं मनाने का फैसला लिया है।"

सलेमपुर की तरह अन्य गावों के लोगों ने भी पंचायत कर फैसला किया कि वे दिवाली की रात न तो घरों में दीप जलाएंगे, न मोमबत्ती से घर को सजाएंगे और न ही पटाखे छोड़ेंगे। उनकी दिवाली केवल गणेश-लक्ष्मी की पूजा तक सीमित रहेगी।

लखनौती गांव के निवासी प्रेमपाल शर्मा ने कहा कि अगर कवाल की घटना में राज्य सरकार निष्पक्ष कार्रवाई करती तो दंगे के हालात पैदा ही न होते और निर्दोष लोग मारे नहीं जाते।

शर्मा ने कहा, "हिंसा के बाद अब हमारे समुदाय के सैकड़ों निर्दोष लोगों को झूठे मुकदमों में फंसाया जा रहा है। कई गावों के युवक तो दूसरे स्थानों पर शरण लिए हुए हैं, क्योंकि उन्हें भय है कि कहीं पुलिस उन्हें हिंसा भड़काने के आरोप में पकड़ न ले। राज्य सरकार की एकतरफा कार्रवाई से हम लोग बहुत आहत हैं, ऐसी हालत में हम खुशियां क्या मनाएं।"

याद रहे कि राज्य सरकार पर एकतरफा कार्रवाई का आरोप लगाते हुए करीब दर्जनभर गांवों के लोगों ने दशहरे के दिन बुराई के प्रतीक माने जाने वाले रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले जलाने के बजाय सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और कैबिनट मंत्री आजम खान के पुतले जलाए थे।

विगत 27 अगस्त को जिले के कवाल गांव में एक छेड़खानी की घटना को लेकर हुए विवाद के तूल पकड़ने के बाद सात सितंबर को जिलेभर में हिंसा भड़क गई थी, जिसमें 62 लोग मारे गए थे और करीब 50,000 लोग बेघर हो गए थे।

हिंसा के बाद एक निजी समाचार चैनल के स्टिंग आपरेशन में इस तरह की बातें सामने आई थीं कि राज्य सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री ने अधिकारियों से कवाल की घटना के दोषियों को पुलिस हिरासत से छोड़ने को कहा, जिसके बाद दूसरे समुदाय के लोगों में अंसतोष पैदा हुआ और हालात बिगड़ने शुरू हो गए। 

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लुप्त हो रही कार्तिक स्नान की पुरातन परंपरा

आधुनिकता की होड़ में तीज त्योहारों की पुरानी परम्पराएं धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है। शहरी परिवेश ने तो कई अच्छी परम्पराओं पर एक तरह से पर्दा डाल दिया है। ऐसी ही एक परम्परा है कार्तिक स्नान की। लेकिन आज के बदलते दौर में न सिर्फ युवाओं ने बल्कि बुजुर्गों ने भी भोर के समय कार्तिक स्नान की पुरानी परम्परा को लगभग भुला दिया है।

महानगरीय चकाचौंध और कस्बे, गांवों में तालाबों का अस्तित्व गुम हो जाने के कारण ज्यादातर लोग चाहते हुए भी इस परम्परा का निर्वहन नहीं कर पा रहे हैं। रायपुर की बुजुर्ग महिला सरिता शास्त्री कहती हैं कि पहले कार्तिक माह में दिन के प्रथम प्रहर में स्नान कर भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती थी, अब इसे भुला दिया गया है। पहले शरद पूर्णिमा से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक पूरे एक माह प्रतिदिन नदी और तालाब में स्नान कर जल में दीप प्रज्वलित किए जाते थे। आधुनिकता के दौर में गांवों की वर्षो पुरानी परम्परा धीरे-धीरे अब विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई है। शहर में तो यह न के बराबर दिखती है।

वर्तमान में कस्बों के साथ गांवों में भी तालाबों का अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है। इसकी वजह से भी लोग कार्तिक स्नान की धार्मिक परम्परा में रुचि नहीं दिखा रहे हैं। घर के बड़े बुजुर्ग कार्तिक स्नान की परम्परा को आज याद तो करते हैं पर आसपास में तालाब या नदी के अभाव में वे केवल याद करके ही रह जाते हैं। पुराणी बस्ती के सुरेश वर्मा का कहना है कि पहले कार्तिक का महीना प्रारम्भ होते ही सुबह चार बजे लोग अपने घर से स्नान के लिए निकल पड़ते थे। ठंडे पानी में स्नान के बाद जल में दीप प्रज्वलित करने का नजारा देखते ही बनता था। भोर के समय कार्तिक स्नान के लिए तालाब में दूर दूर के लोग पहुंच कर दीपदान करते थे, तालाब के आसपास बेहद मनोरम दृष्य बन जाता था।

भिलाई के कमल शर्मा ने बताया कि आधुनिकता के चलते अब पुरानी परंपरा विलुप्त कर दी गई है। उन्होंने कहा कि कार्तिक स्नान की परम्परा के पीछे धार्मिक कारण से अधिक अच्छे स्वास्थ्य पर ध्यान देने की आदत बनती थी। शर्मा ने कहा कि गुलाबी ठंड में प्रात: का स्नान स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहतर रहता है। तालाब अथवा नदी में दीप प्रज्वलित करने के बाद चावल आदि से भगवान शिव की पूजा अर्चना करने से आसपास के जीव जन्तुओं को भोजन मिलता है। इससे तालाब का पानी भी स्वच्छ रहता है। भोर में कार्तिक स्नान के बहाने लोगों को जल्द उठने की आदत बन जाती है। पर अब आधुनिकता कि आड़ में अच्छी परम्पराओं को भुला दिया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि अच्छे स्वास्थ्य के लिए इन परम्पराओं को जीवित रखना बेहद जरूरी है। बहरहाल आज भी कुछ गांवों में परम्पराओं को मानने वाले लोग हैं, जो अलसुबह कार्तिक स्नान के लिए तालाबों की तरफ निकल पड़ते हैं। 

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सुनत हैं गुजरात में बड़ा विकास कीन है....

उत्तर प्रदेश के बुंदेलों की नगरी झांसी के जीआईसी ग्राउंड में शुक्रवार को नरेंद्र मोदी को सुनने पहुंचे युवाओं के साथ ही बुजुर्गो को भी मोदी से बड़ी उम्मीदें हैं, उन्होंने कहा, "सुनत हैं कि गुजरात में बड़ा विकास कीन है। उनकै सुने खाती आइन बानी।"

भाजपा की विजय शंखनाद रैली में आए लोगों का कहना है कि उन्होंने मोदी में विकास पुरुष की छवि दिखी। झांसी के समथर इलाके से आए 50 वर्षीय किसान गंगा प्रसाद ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, "हम मोदी को सुनने आए हैं।" भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की कानपुर के बाद झांसी में आयोजित दूसरी विजय शंखनाद रैली में पहली रैली की अपेक्षा बेहतर प्रबंधन दिखा। कार्यकर्ताओं और रैली में आने वाले लोगों में उत्साह भी कई गुना रहा।

झांसी के सबसे बड़े जीआईसी ग्राउंड में आयोजित रैली में खड़े होने तक की जगह नहीं बची। नेताओं के भाषण के दौरान लगातार 'मोदी-मोदी' के नारे गूंजते रहे। इस बीच बड़ागांव क्षेत्र से आए परवेश सिंह राजपूत कहते हैं कि उनका घर पारिक्षा पावर प्लांट के पास है। यहां से बिजली उत्पादन होता है, लेकिन हमारे गांव में ही बिजली नहीं आती। सड़कें जर्जर हैं। समय से खाद बीज नहीं मिल पाता।

राजपूत ने कहा, "मोदी और भाजपा को लेकर मेरी पसंद या नपसंद की बात नहीं है। हमने सुना है कि मोदी ने बहुत अच्छा कार्य किया है। गुजरात का विकास किया है।" पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने कहा कि बुंदेलखंड की यह रैली ऐतिहासिक है। पार्टी की यह दूसरी रैली थी। उन्होंने दावा किया कि आगे की सभी रैलियों में संख्या में और भी इजाफा होता रहेगा। 

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बेटे की लंबी उम्र के लिए रखें अहोई अष्टमी का व्रत

कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अहोई अष्टमी का व्रत किया जाता है| पुत्रवती महिलाओं के लिए यह व्रत अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह व्रत व पूजन संतान व पति के कल्याण हेतु किया जाता है| माताएं अहोई अष्टमी के व्रत में दिन भर उपवास रखती हैं और सायंकाल तारे दिखाई देने के समय अहोई माता का का पूजन किया जाता है। तारों को करवा से अर्ध्य भी दिया जाता है। इस दिन धोबी मारन लीला का भी मंचन होता है, जिसमें श्री कृष्ण द्वारा कंस के भेजे धोबी का वध करते प्रदर्शन किया जाता है। इस वर्ष अहोई अष्टमी का व्रत 26 अक्टूबर दिन शनिवार को मनाया जायेगा| कहते हैं कि जिन्हें संतान का सुख प्राप्त नहीं हो पा रहा हो उन्हें अहोई अष्टमी व्रत अवश्य करना चाहिए क्योंकि संतान प्राप्ति हेतु अहोई अष्टमी व्रत अमोघफल दायक होता है| इसके लिए, एक थाल मे सात जगह चार-चार पूरियां एवं हलवा रखना चाहिए| इसके साथ ही पीत वर्ण की पोशाक-साडी एवं रूपये आदि रखकर श्रद्धा पूर्वक अपनी सास को उपहार स्वरूप देना चाहिए| शेष सामग्री हलवा-पूरी आदि को अपने पास-पडोस में वितरित कर देना चाहिए सच्ची श्रद्धा के साथ किया गया यह व्रत शुभ फलों को प्रदान करने वाला होता है|

अहोई अष्टमी व्रत विधि-

संतान की शुभता को बनाये रखने के लिये क्योकि यह उपवास किया जाता है इसलिये इसे केवल माताएं ही करती है| इस व्रत को रखने वाली माताएं प्रात: काल उठकर स्नान आदि करके अहोई माता का चित्रांकन करें| चित्रांकन में ज्यादातर आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती है। उसी के पास सेह तथा उसके बच्चों की आकृतियां बना दी जाती हैं। उत्तर भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अहोई माता का स्वरूप वहां की स्थानीय परंपरा के अनुसार बनता है। सम्पन्न घर की महिलाएं चांदी की अहोई बनवाती हैं। जमीन पर गोबर से लीपकर कलश की स्थापना होती है। अहोईमाता की पूजा करके उन्हें दूध-चावल का भोग लगाया जाता है। तत्पश्चात एक पाटे पर जल से भरा लोटा रखकर कथा सुनी जाती है। तारे निकलने पर इस व्रत का समापन किया जाता है| तारों को करवे से अर्ध्य दिया जाता है. और तारों की आरती उतारी जाती है| इसके पश्चात संतान से जल ग्रहण कर, व्रत का समापन किया जाता है|

पूजा पाठ करके अपनी संतान की दीर्घायु व सुखमय जीवन हेतू कामना करें और माता अहोई से प्रार्थना करें, कि हे माता मैं अपनी संतान की उन्नति, शुभता और आयु वृ्द्धि के लिये व्रत कर रही हूं, इस व्रत को पूरा करने की आप मुझे शक्ति दें| यह कर कर व्रत का संकल्प लें| एक मान्यता के अनुसार इस व्रत को करने से संतान की आयु में वृ्द्धि, स्वास्थय और सुख प्राप्त होता है| साथ ही माता पार्वती की पूजा भी इसके साथ-साथ की जाती है| क्योकि माता पार्वती भी संतान की रक्षा करने वाली माता कही गई है|

अहोई अष्टमी व्रत कथा-

प्राचीन काल में किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात लड़के थे। दीपावली से पहले साहूकार की स्त्री घर की लीपा-पोती हेतु मिट्टी लेने खदान में गई और कुदाल से मिट्टी खोदने लगी। दैव योग से उसी जगह एक सेह की मांद थी। सहसा उस स्त्री के हाथ से कुदाल सेह के बच्चे को लग गई जिससे सेह का बच्चा तत्काल मर गया। अपने हाथ से हुई हत्या को लेकर साहूकार की पत्नी को बहुत दुख हुआ परन्तु अब क्या हो सकता था? वह शोकाकुल पश्चाताप करती हुई अपने घर लौट आई। कुछ दिनों बाद उसके बेटे का निधन हो गया। फिर अकस्मात दूसरा, तीसरा और इस प्रकार वर्ष भर में उसके सभी बेटे मर गए। महिला अत्यंत व्यथित रहने लगी। एक दिन उसने अपने आस-पड़ोस की महिलाओं को विलाप करते हुए बताया कि उसने जान-बूझ कर कभी कोई पाप नहीं किया। हाँ, एक बार खदान में मिट्टी खोदते हुए अंजाने में उससे एक सेह के बच्चे की हत्या अवश्य हुई है और तत्पश्चात मेरे सातों बेटों की मृत्यु हो गई।

यह सुनकर पास-पड़ोस की वृद्ध औरतों ने साहूकार की पत्नी को दिलासा देते हुए कहा कि यह बात बताकर तुमने जो पश्चाताप किया है उससे तुम्हारा आधा पाप नष्ट हो गया है। तुम उसी अष्टमी को भगवती माता की शरण लेकर सेह और सेह के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी अराधना करो और क्षमा-याचना करो। ईश्वर की कृपा से तुम्हारा पाप धुल जाएगा। साहूकार की पत्नी ने वृद्ध महिलाओं की बात मानकर कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उपवास व पूजा-याचना की। वह हर वर्ष नियमित रूप से ऐसा करने लगी। बाद में उसे सात पुत्र रत्नों की प्राप्ति हुई। तभी से अहोई व्रत की परम्परा प्रचलित हो गई।

इसके अलावा एक और काठ प्रचलित है जो इस प्रकार है, प्राचीन काल में दतिया नगर में चंद्रभान नाम का एक आदमी रहता था। उसकी बहुत सी संतानें थीं, परंतु उसकी संताने अल्प आयु में ही अकाल मृत्यु को प्राप्त होने लगती थीं। अपने बच्चों की अकाल मृत्यु से पति-पत्नी दुखी रहने लगे थे। कालान्तर तक कोई संतान न होने के कारण वह पति-पत्नी अपनी धन दौलत का त्याग करके वन की ओर चले जाते हैं और बद्रिकाश्रम के समीप बने जल के कुंड के पास पहुंचते हैं तथा वहीं अपने प्राणों का त्याग करने के लिए अन्न-जल का त्याग करके उपवास पर बैठ जाते हैं। इस तरह छह दिन बीत जाते हैं तब सातवें दिन एक आकाशवाणी होती है कि, हे साहूकार! तुम्हें यह दुख तुम्हारे पूर्व जन्म के पाप से मिल रहे है।

अतः इन पापों से मुक्ति के लिए तुम्हें अहोई अष्टमी के दिन व्रत का पालन करके अहोई माता की पूजा-अर्चना करनी चाहिए, जिससे प्रसन्न हो अहोई माता तुम्हें पुत्र प्राप्ति के साथ-साथ उसकी दीर्घ आयु का वरदान देंगी। इस प्रकार दोनों पति-पत्नी अहोई अष्टमी के दिन व्रत करते हैं और अपने पापों की क्षमा मांगते हैं। अहोई मां प्रसन्न हो उन्हें संतान की दीर्घायु का वरदान देती हैं। आज के समय में भी संस्कारशील माताओं द्वारा जब अपनी सन्तान की इष्टकामना के लिए अहोई माता का व्रत रखा जाता है और सांयकाल अहोई मता की पूजा की जाती है तो निश्चित रूप से इसका शुभफल उनको मिलता ही है और सन्तान चाहे पुत्र हो या पुत्री, उसको भी निश्कंटक जीवन का सुख मिलता है। 

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बुंदेलों को आकर्षित करेंगे मोदी

उत्तर प्रदेश के झांसी शहर में स्थित महारानी लक्ष्मीबाई के किले की तर्ज पर तैयार मंच से शुक्रवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी लोगों को सम्बोधित करेंगे।

कानपुर की रैली में जिस तरह से मोदी ने क्षेत्रीय समस्याओं को तवज्जो दी थी, उसके बाद अब झांसी में भी बुंदेलखंड पैकेज के बहाने लोगों को आकर्षित करते नजर आएंगे। इस बीच सूत्रों की माने तो मप्र से भी भीड़ जुटाने की जोरदार तैयारी चल रही है।

मोदी की उत्तर प्रदेश में यह दूसरी रैली है। इससे पहले कानपुर की रैली में बड़ी संख्या में जुटी भीड़ से उत्साहित मोदी ने कांग्रेस की दुखती रग पर हाथ फेरा था। कानपुर में बंद पड़े उद्योग धंधों और आजादी में उनके योगदान का जिक्र कर अपने को उनके करीब खड़ा करने का प्रयास किया था। पार्टी सूत्रों का दावा है कि मोदी झांसी में भी स्थानीय समस्याओं को ही उठाएंगे।

भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा कि पार्टी के लिए विकास हमेशा से ही मुद्दा रहा है और जाहिर है कि पार्टी अपनी रैलियों में विकास को मुद्दा बनाएगी। इस बीच झांसी में शुक्रवार को आयोजित विजय शंखनाद रैली की तैयारियों में पूरी भाजपा ने धरती आसमान एक कर रखा है। इस क्षेत्र के चारों लोकसभा क्षेत्रों बांदा, झांसी, ललितपुर, हमीरपुर और जालौन से भीड़ जुटाने के साथ आस पास के क्षेत्रों से लोगों के आने की उम्मीद लगाई जा रही है।

मोदी की रैली के लिये झांसी का जीआइसी ग्राउंड जोर शोर से सजाया जा रहा है। देर रात तक सजावट का कार्य पूरा कर लिया जाएगा। मोदी के स्वागत में भाजपाइयों ने शहर के हर चौराहे पर होर्डिंग बैनर पाट दिए हैं। भाजपा नेताओं में अब भी भीड़ जुटने को लेकर चिंता दिख रही है। बताया जा रहा है कि वैसे तो मोदी की रैली के लिहाज से पार्टी के नेता जीआइसी ग्राउंड को छोटा मानकर चल रहे हैं। लेकिन बुंदेलखण्ड में कानपुर जैसी भीड़ एकत्र हो, इस पर भी आश्वस्त नहीं हो सकते। यही वजह है कि पार्टी ने इस मैदान को चुना है।

झांसी शहर मध्य प्रदेश से सटा हुआ है। मध्य प्रदेश का दतिया जिला मुख्यालय रैली स्थल से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर है। वहां से बड़ी संख्या में लोगों के आने की उम्मीद है। मप्र के शिवपुरी से भी लोग आएंगे। पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री व प्रभारी अमित शाह खुद रैली स्थल पर जमे हुए हैं। वह हर पहलू पर ध्यान दे रहे हैं।

ऐसे में यदि जीआइसी ग्राउंड छोटा पड़ गया तो पास के दो ग्राउंड पर पार्टी नेताओं व जिला प्रशासन की नजर है। उसी में चिन्हित कर किसी ग्राउंड पर लोगों को रोका जा सकता है। देर रात तक उस ग्राउंड में एलईडी लगाने की योजना है जिससे कि रैली नहीं पहुंच पाने वाले लोग भी मोदी का भाषण सुन सकें।

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ लक्ष्मीकांत बाजपेयी का दावा है कि केवल चार लोकसभा क्षेत्रों के लोग ही आ रहे हैं। उनका दावा है कि इस क्षेत्रों के प्रत्येक बूथ से कार्यकर्ता आ रहे हैं। उनका मानना है कि यह रैली बुंदेलखण्ड की ऐतिहासिक रैली साबित होगी। 

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नमो की रैली में बुलाने का अनोखा तरीका

वीरों की भूमि बुंदेलखंड तथा वीरंगना रानी लक्ष्मीबाई की तपोभूमि झांसी में हो रही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की दूसरी विजय शंखनाद रैली में लोगों को बुलाने के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं ने एक अनोखा तरीका अख्तिायार किया है। यह अनूठी पहल हालांकि वर्तमान पीढ़ी के लिए नई बात हो सकती है, लेकिन आनादि काल से ही शुभ कार्य में आगंतुकों को बुलाने के लिए पीला अक्षत (चावल) भेजे जाने की भारतीय परंपरा रही है।

भाजपा के इस अनूठे निमंत्रण से मोदी की रैली में आने वालों की संख्या काफी बढ़ने की संभावना है। भाजपा समर्थकों का कहना है कि यही एक ऐसी पार्टी है जो भारतीय परंपरा को बचा सकती है, साथ ही देश को सशक्त व समृद्धि के रास्ते पर ले जा सकती है। शहर के कुछ लोगों का भी मानना है कि निमंत्रण के इस तरीके से लोगों का भाजपा से लगाव ही नहीं, आत्मीयता भी बढ़ी है। इतना ही नहीं, जो इस पार्टी का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विरोध करते हैं, वे भी भाजपा द्वारा भेजे गए पीले अक्षत को स्वीकार कर रहे हैं और रैली में आने का वादा कर रहे हैं।

झांसी के रहने वाले ज्योतिषाचार्य पं. संजय ने बताया, "हमारी भारतीय परंपरा में सनातन धर्म का प्रतीक है पीतांबर। परंपरा में तीन रंग शुभकारी हैं- रक्तांबर, पीतांबर और श्वेतांबर।" उन्होंने बताया कि ब्रह्मा रजोगुण यानी पीतांबर, विष्णु सतोगुण यानी श्वेतांबर तथा भगवान शंकर तमोगुण यानी रक्तांबर के प्रतीक हैं। उन्होंने कहा कि वैदिक परंपरा में अक्षत का महात्मय बहुत है। अच्छत का मतलब जिसका कभी क्षय (नाश) न हो। पीले रंग में रंगना अर्थात शुभकार्य का प्रगटीकरण, प्रगति का प्रतीक तथा ताकत के प्रतीक को दर्शाती है। पीले रंग अर्थात हल्दी को महौषधि भी कहा गया है। हल्दी एक ऐसी औषधि है जिसे सभी प्रकार के रोगों में इस्तेमाल किया जाता है, यह एंटीबायोटिक भी है।

इस निमंत्रण से अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा संदेश देना चाहती है कि भारतीय परंपराओं व प्राचीन विरासत की नींव पर ही भारत का विकास होगा। मोदी के मंच पर रानी लक्ष्मीबाई की तस्वीर को लगाकर पार्टी ने विपक्षियों को यह भी संदेश देने की कोशिश की है कि भारत में अब महापुरुषों व क्रांतिकारियों का अपमान नहीं होने दिया जाएगा और उनके सपनों को पार्टी सकार भी करेगी।

इस अनोखे निमंत्रण पर पार्टी के मीडिया प्रभारी मनीष शुक्ल ने कहा कि वीरंगना रानी लक्ष्मीबाई की इस धरती से विपक्षियों को मोदी की ताकत का अहसास होगा। इस अनोखी पहल का मतलब ही है कि वर्तमान देश की जर्जर अवस्था से उबारने के लिए देश को मोदी भाई जैसे एंटीबायोटिक यानी हल्दी की आवश्यकता है। 

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क्रांतिकारी पत्रकार थे गणेश शंकर विद्यार्थी

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जिन पत्रकारों ने अपनी लेखनी को हथियार बनाकर आजादी की जंग लड़ी थी उनमें गणेश शंकर विद्यार्थी का नाम अग्रगण्य है। आजादी की क्रांतिकारी धारा के इस पैरोकार ने अपने धारदार लेखन से तत्कालीन ब्रिटिश सत्ता को बेनकाब किया और इस जुर्म के लिए उन्हें जेल तक जाना पड़ा। सांप्रदायिक दंगों की भेंट चढ़ने वाले वह संभवत: पहले पत्रकार थे। उनका जन्म 26 अक्टूबर, 1890 को उनके ननिहाल प्रयाग (इलाहाबाद) में हुआ था। इनके पिता का नाम जयनारायण था। पिता एक स्कूल में अध्यापक थे और उर्दू व फारसी के जानकार थे। विद्यार्थी जी की शिक्षा-दीक्षा मुंगावली (ग्वालियर) में हुई थी। पिता के समान ही इन्होंने भी उर्दू-फारसी का अध्ययन किया।

आर्थिक कठिनाइयों के कारण वह एंट्रेंस तक ही पढ़ सके, लेकिन उनका स्वतंत्र अध्ययन जारी रहा। विद्यार्थी जी ने शिक्षा ग्रहण करने के बाद नौकरी शुरू की, लेकिन अंग्रेज अधिकारियों से नहीं पटने के कारण उन्होंने नौकरी छोड़ दी। पहली नौकरी छोड़ने के बाद विद्यार्थी जी ने कानपुर में करेंसी आफिस में नौकरी की, लेकिन यहां भी अंग्रेज अधिकारियों से उनकी नहीं पटी। इस नौकरी को छोड़ने के बाद वह अध्यापक हो गए।

महावीर प्रसाद द्विवेदी उनकी योग्यता के कायल थे। उन्होंने विद्यार्थी जी को अपने पास 'सरस्वती' में बुला लिया। उनकी रुचि राजनीति की ओर पहले से ही थी। एक ही वर्ष के बाद वह 'अभ्युदय' नामक पत्र में चले गए और फिर कुछ दिनों तक वहीं पर रहे। सन 1907 से 1912 तक का उनका जीवन संकट में रहा। उन्होंने कुछ दिनों तक 'प्रभा' का भी संपादन किया था। अक्टूबर 1913 में वह 'प्रताप' (साप्ताहिक) के संपादक हुए। उन्होंने अपने पत्र में किसानों की आवाज बुलंद की।

सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं पर विद्यार्थी जी के विचार बड़े ही निर्भीक होते थे। विद्यार्थी जी ने देशी रियासतों द्वारा प्रजा पर किए गए अत्याचारों का तीव्र विरोध किया। पत्रकारिता के साथ-साथ गणेश शंकर विद्यार्थी की साहित्य में भी अभिरुचि थी। उनकी रचनाएं 'सरस्वती', 'कर्मयोगी', 'स्वराज्य', 'हितवार्ता' में छपती रहीं। 'शेखचिल्ली की कहानियां' उन्हीं की देन है। उनके संपादन में 'प्रताप' भारत की आजादी की लड़ाई का मुखपत्र साबित हुआ। सरदार भगत सिंह को 'प्रताप' से विद्यार्थी जी ने ही जोड़ा था। विद्यार्थी जी ने राम प्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा 'प्रताप' में छापी, क्रांतिकारियों के विचार व लेख 'प्रताप' में निरंतर छपते रहते थे।

महात्मा गांधी ने उन दिनों अंग्रेजों के खिलाफ अहिंसात्मक आंदोलन की शुरुआत की थी, जिससे विद्यार्थी जी सहमत नहीं थे, क्योंकि वह स्वभाव से उग्रवादी विचारों के समर्थक थे। विद्यार्थी जी के 'प्रताप' में लिखे अग्रलेखों के कारण अंग्रेजों ने उन्हें जेल भेजा, जुर्माना लगाया और 22 अगस्त 1918 में 'प्रताप' में प्रकाशित नानक सिंह की 'सौदा ए वतन' नामक कविता से नाराज अंग्रेजों ने विद्यार्थी जी पर राजद्रोह का आरोप लगाया व 'प्रताप' का प्रकाशन बंद करवा दिया।

आर्थिक संकट से जूझते विद्यार्थी जी ने किसी तरह व्यवस्था जुटाई तो 8 जुलाई 1918 को फिर इसकी की शुरुआत हो गई। 'प्रताप' के इस अंक में विद्यार्थी जी ने सरकार की दमनपूर्ण नीति की ऐसी जोरदार खिलाफत कर दी कि आम जनता 'प्रताप' को आर्थिक सहयोग देने के लिए मुक्त हस्त से दान करने लगी। जनता के सहयोग से आर्थिक संकट हल हो जाने पर साप्ताहिक 'प्रताप' का प्रकाशन 23 नवंबर 1990 से दैनिक समाचार पत्र के रूप में किया जाने लगा। लगातार अंग्रेजों के विरोध में लिखने से इसकी पहचान सरकार विरोधी बन गई और तत्कालीन दंडाधिकारी मि. स्ट्राइफ ने अपने हुक्मनामे में 'प्रताप' को 'बदनाम पत्र' की संज्ञा देकर जमानत की राशि जप्त कर ली। कानपुर के हिंदू-मुस्लिम दंगे में निस्सहायों को बचाते हुए 25 मार्च 1931 को विद्यार्थी जी भी शहीद हो गए। उनका पार्थिव शरीर अस्पताल में पड़े शवों के बीच मिला था। 

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गीतों को नया आयाम देने वाले गायक थे मन्ना डे

महान पाश्र्व गायक मन्ना डे की शास्त्रीय संगीत में रुचि और पसंद उनके फिल्मी करियर के लिए अभिशाप भी साबित हो सकती थी, लेकिन दादा साहेब फाल्के अवार्ड से सम्मानित डे को उनकी बहुमुखी और प्रेम गीतों की मर्दानी शैली की गायिकी के लिए जाना जाएगा। 

डे ने अपने लचीले और बहुआयामी गायन का परिचय 'आजा सनम मधुर चांदनी में हम', 'चुनरी संभाल गोरी उड़ी चली जाए रे', 'जिंदगी कैसी है पहेली हाय' और 'चलत मुसाफिर मोह लियो रे' जैसे मशहूर और लोकप्रिय गानों में दिया।

उनकी बहुमुखी प्रतिभा को दुनिया के सामने लाने का श्रेय संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन को भी जाता है, जिन्होंने उनसे अलग-अलग शैली के गाने गवाए।

शुरुआत में शास्त्रीय गायक के रूप में पहचाने जाने वाले डे को अपने समकालीन गायकों, पाश्र्व गायकों जितनी शोहरत और पहचान नहीं मिली, इसके बावजूद उन्होंने अपने पूरे करियर में 3,500 से ज्यादा गाने गाए। कला और संस्कृति के क्षेत्र में उन्हें कई सारे सम्मानों से भी नवाजा गया।

डे ने अपनी जीवनी 'जीबोनेर जोलशाघोरे' अंग्रेजी में 'मेमोरीज कम्स अलाईव' में संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन का आभार जताते हुए लिखा है, "उन्हें विश्वास था कि रोमांटिक गीतों में मेरी मर्दाना आवाज श्रोताओं का ध्यान खींचने और उनका दिल जीतने में कामयाब होगी।" 

उन्होंने लिखा है, "मैं खास तौर से शंकरजी का आभारी हूं। उनकी सरपरस्ती न मिलती, तो शायद मैं कामयाबी की उस ऊंचाई को नहीं छू पाता। वही एक व्यक्ति थे, जिन्हें पता था कि कैसे मेरे अंदर से बेहतर गायक को बाहर लाना है।"

मन्ना डे शंकर-जयकिशन के आभारी होने के साथ अभिनेता राज कपूर के भी शुक्रगुजार हैं, जिन्हें महसूस हुआ कि उनकी गायकी और आवाज में सचमुच दम है।

डे ने एक बार एक साक्षात्कार में कहा था, "मैं राज कपूर को फिल्म क्षेत्र का एक आइकन मानता था। वही हैं, जिन्होंने मुझे 'प्यार हुआ, इकरार हुआ' और 'ये रात भीगी भीगी' जैसे गीत गाने का अवसर दिया।"

उन्होंने कहा, "लोगों को लगता था कि मन्ना डे और रोमांटिक गाने, असंभव है। लेकिन मैंने यह भी साबित कर के दिखाया।"

शंकर-जयकिशन, मन्ना डे और राज कपूर की टीम ने कई सारे मशहूर और लोकप्रिय गीत दिए हैं। इनमें 'तेरे बिना आग ये चांदनी', 'मुड़ मुड़ के न देख' 'ऐ भाई जरा देख के चलो' और 'यशोमती मईया से बोले नंदलाला' कुछ प्रमुख गीत हैं।

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'अनुशासन के कड़े पर नर्म दिल थे मन्ना डे'

महान पाश्र्व गायक मन्ना डे के करीबी लोगों को कहना है कि वह ज्ञान को तलाशने वाले, साहसिक व्यक्तित्व वाले और बेहद सख्त अनुशासन वाले व्यक्ति थे। मन्ना डे का गुरुवार तड़के बेंगलुरू के एक अस्पताल में निधन हो गया। 94 साल के डे लंबे समय से बीमार थे। वाइलिन वादक दुर्बादल चटर्जी मन्ना डे के साथ बिताए अपने चार दशकों को याद करते हुए कहते हैं, "वह अपनी जड़ों को नहीं भूले थे। बाहर से सख्त होने के बावजूद वह अंदर से उतने ही नर्म दिल इंसान थे। मछली पकड़ना उनका प्रिय शौक था।"

चटर्जी ने बताया, "उनके बारे में कई लोगों को गलतफहमी थी कि वह बेहद सख्त और रूखे व्यवहार वाले हैं। असल में तो वह अंदर से बेहद नर्म दिल इंसान थे। यदि वह किसी को पसंद करते तो उसके कायल हो जाते और यदि नापसंद करते तो सख्त रहते। वह अजनबियों से घुलते-मिलते नहीं थे।" चटर्जी, मन्ना डे के बारे में एक मशहूर किस्सा बताते हैं, "एक बार हम उनके पुराने घर में बैठे थे। वह हारमोनियम लेकर गा रहे थे और मैं उनके सुरों को लिखता जा रहा था। अचानक एक लड़की दरवाजा खोलकर अंदर आई। मन्ना डे ने बिल्कुल रूखाई और सख्ती से कहा कि वह व्यस्त हैं और उसे वहां से जाने को कहा। लेकिन वह लड़की थोड़ी देर बाद फिर वहीं नजर आई।"

उन्होंने आगे बताया, "इस बार लड़की ने आग्रह से पूछा कि क्या मन्ना डे का घर यही है। मन्ना डे ने दो टूक शब्दों में पूछा कि वह क्यों आई है, वह उनकी बहुत बड़ी प्रशंसक थी और एक बार उनके चरण स्पर्श करना चाहती थी। यह सुनकर डे नर्म पड़ गए और उस लड़की को अंदर आने दिया। वह बेहद शालीन थे।" मन्ना डे ने अपने संगीत करियर में हिंदी, बांग्ला, गुजराती, मराठी, मलयालम, कन्नड़, असमी फिल्मों में पाश्र्व गायक के रूप में अपनी आवाज दी। उन्हें भारतीय क्षेत्रीय संगीत से बेहद प्रेम था, लेकिन पारंपरिक संगीत, सुर और राग के साथ आधुनिकता का मिश्रण भी उन्हें स्वीकार्य था।

चटर्जी ने कहा, "वह कोई भी नया सुर, नया राग, नई बोली बहुत जल्दी सीखते थे, ऐसा नहीं होता तो कई सारी भाषाओं में उनके गीत नहीं होते।" मोहम्मद रफी, किशोर कुमार, मुकेश और हेमंत मुखोपाद्ययाय जैसे गायकों के समकालीन मन्ना डे ने हमेशा अपनी गायकी के स्तर को बनाए रखा। चटर्जी बताते हैं कि मन्ना सिर्फ काम और संगीत के क्षेत्र में ही अनुशासनप्रिय नहीं थे बल्कि निजी जिंदगी में भी वह काम और समय के बेहद पाबंद थे। वह रोज सुबह पांच बजे उठते थे, नित्यकर्म से निबटकर व्यायाम के लिए जाते थे, वापस आकर सुबह की चाय बनाते थे और फिर अपनी पत्नी को जगाते थे।
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यूकेलिप्टस की पत्तियां बताती हैं जमीन में दबे सोने का राज

भारत में जहां एक संत के सपने के आधार पर जमीन में दबे सोने के खजाने की तलाश की जा रही है, वहीं आस्ट्रेलिया में कुछ पेड़ों की पत्तियां जमीन में दबे खजाने की पता बताती हैं। इन वृक्षों ने सदियों पुरानी उस कहावत को भी झुठला दिया है, जिसमें कहा गया है कि रुपया पेड़ों पर नहीं उगता। आस्ट्रेलिया के पश्चिमी हिस्से में कालगूर्ली क्षेत्र में युकेलिप्टस के कुछ ऐसे वृक्ष मिले हैं जिनकी पत्तियों में अत्यंत बारीक सोने के कण पाए गए।

आस्ट्रेलिया के एक समाचार पत्र 'द वेस्ट आस्ट्रेलियन' में बुधवार को प्रकाशित रपट के अनुसार, पश्चिमी आस्ट्रेलिया के कालगूर्ली क्षेत्र में यूकेलिप्टस की पत्तियां जमीन के भीतर दबे सोने का पता बताती हैं। समाचार पत्र के अनुसार इस क्षेत्र में जमीन के नीचे दबे सोने के कणों को ये वृक्ष अपनी जड़ों के जरिए पत्तियों एवं अन्य हिस्सों तक पहुंचा देते हैं।

इस प्रकार इस क्षेत्र में यदि किसी वृक्ष की पत्तियों में सोने के कण दिखाई देते हैं, तो समझ लिया जाता है कि वहां जमीन के नीचे सोने की खान होगी। सीएसआईआरओ के वैज्ञानिकों ने इसका पता लगाया और इससे संबंधित शोध पत्र विज्ञान शोध पत्रिका 'नेचर कम्यूनिकेशंस' के ताजा अंक में प्रकाशित हुआ है। शोध पत्र में मुख्य शोधकर्ता एवं भूरसायनविद मेल लिंटर ने कहा है, "सुनहरी पत्तियों से जमीन के नीचे सोने के अमूल्य खजाने का पता लग सकता है।"

लिंटन ने आगे कहा है, "इनमें से कुछ वृक्षों की जड़ें जमीन में बहुत गहराई तक गई हुई हैं, तथा हमारे लिए जमीन के भीतर दबे खजाने के लिए खिड़की की तरह काम करती हैं।" समाचार पत्र के अनुसार, इस शोध के बाद पारंपरिक तरीके से ड्रीलिंग द्वारा जमीन के अंदर सोने का पता लगाने की बजाय पत्तियों के परीक्षण द्वारा यह कार्य काफी किफायती हो जाएगा। इस तकनीक से सोने के अलावा जमीन में दबे अन्य धातुओं का भी पता लगाया जा सकता है।
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उप्र में पिछड़ों को लुभाने की सियासत हुई तेज

वर्ष 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव का समय जैसे जैसे नजदीक आ रहा है वैसे वैसे विभिन्न राजनीतिक दलों ने सियासी दांव चलना शुरू कर दिया है। सूबे की सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी (सपा) की सरकार ने जहां पिछड़ों को हक दिलाने के नाम पर रथयात्राएं निकालने का निर्णय लिया है वहीं विपक्षी दलों ने सपा पर पिछड़ों को गुमराह करने का आरोप लगाया है।

भाजपा ने सपा की मंशा पर सवाल खड़ा करते हुए कहा है कि सपा यह बताए कि जिन 17 जातियों के नाम पर वह अधिकार यात्रा और सामाजिक न्याय यात्रा निकालने जा रही है, उनके लिए क्या कदम उठाए हैं। भाजपा के प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा, "आरक्षण के संदर्भ में उच्च न्यायालय ने आरक्षण की व्यवस्था को लेकर अपनी राय रखी और सरकार से अपेक्षा थी कि सरकार उन परिस्थितियों पर विचार करे जिनमें आरक्षण से वंचित रह गए लोगों को पहले आरक्षण का लाभ मिले इसकी व्यवस्था की जाए।"

पाठक ने कहा कि राजनाथ सिंह के कार्यकाल के दौरान समाज में आरक्षण पाने से वंचित पिछड़े तबके के लोगों को आरक्षण का समुचित लाभ मिल पाए, इसके लिए समाजिक न्याय समिति का गठन किया गया। समाजिक न्याय समिति की संस्तुतियों के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था से आरक्षण की मूल अवधारणा को बल मिलता और सामाजिक रूप से पिछड़ी जातियों का जीवन स्तर उठाने में सहायता मिलती।

उन्होंने कहा, "राजनीतिक स्वार्थो के नाते सामाजिक न्याय समिति की संस्तुतियों को लागू करने से बचती सरकारों ने आरक्षण के नाम पर राजनीति तो खूब की, पर जब हिस्सेदारी देने की बात आती है तो कहीं न कहीं आश्चर्यजनक चुप्पी छा जाती है।"

बकौल पाठक जिन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की वकालत करते हुए समाजवादी पार्टी यात्राएं और रैलियों का आयोजन करने जा रही है। अखिलेश सरकार यह क्यों नहीं बताती कि अपने स्तर से इन जातियों का जीवन स्तर उठाने के लिए क्या प्रयास किए हैं?

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के प्रदेश अध्यक्ष रामअचल राजभर ने कहा कि सपा सीधतौर पर इन 17 जातियों को गुमराह करने का काम कर रही है। सपा यह अच्छी तरह से जानती है कि यह उसके वश की बात नहीं है। पिछड़ी जातियों को गुमराह करने के लिए यात्राओं के नाम पर सपा नौटंकी करने जा रही है।

उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव से पहले पिछड़ों को जोड़ने की मुहिम के तहत ही सपा मुख्यालय से 24 अक्टूबर को 17 पिछड़ी जातियों को उनका अधिकार दिलाने के लिए अधिकार यात्रा और सामाजिक न्याय यात्रा का आगाज किया जाएगा। दोनों यात्राएं 29 अक्टूबर को आजमगढ़ में होने वाली रैली स्थल पर जाकर समाप्त होंगी।

यात्राओं के बारे में सपा के पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के अध्यक्ष नरेश उत्तम ने बताया कि सूबे में पिछड़ी जातियों की आबादी 60 फीसदी है, लेकिन उन्हें 27 फीसदी आरक्षण तक ही सीमित कर दिया गया है। अधिकांश पिछड़ी आबादी आर्थिक-सामाजिक दृष्टि से बहुत कमजोर हैं। पिछड़ों को जागृत करने के लिए ही सामाजिक न्याय यात्रा और 17 पिछड़ी जातियों की अधिकार यात्रा निकाली जा रही है।

इधर, राष्ट्रीय लोकदल के प्रदेश अध्यक्ष मुन्ना सिंह चौहान ने इसे सपा सरकार का लॉलीपाप करार दिया। चौहान ने कहा, सपा 17 पिछड़ी जातियों को को उसी तरह का लालीपॉप दे रही है, जिस तरह उसने विधानसभा चुनाव से पहले मुसलमानों को दिया था। चौहान ने कहा कि यह सपा भी जानती है कि वह चाहकर भी ऐसा नहीं कर सकती है। विधानसभा चुनाव से पहले उसने मुसलमानों से वादा किया था कि सरकार बनी तो 18 फीसदी आरक्षण दिया जाएगा, नतीजा सबके सामने है। वे पिछड़ों को बेवकूफ बनाना चाहते हैं।
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