चाहते हैं धन-धान्य और ऐश्वर्य की प्राप्ति तो रखें अक्षय नवमी का व्रत

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को अक्षय नवमी रूप में मनाया जाता है, इसे आंवला नवमी भी कहते हैं| इस बार अक्षय नवमी 11 नवम्बर दिन सोमवार को पड़ रही है| इस दिन स्नान, पूजन, तर्पण तथा अन्नदान करने से हर मनोकामना पूरी होती है। कहते हैं कि अक्षय नवमी के दिन किया गया जप, तप, दान इत्यादि व्यक्ति को सभी पापों से मुक्त करता है तथा सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाला होता है| मान्यता है कि सतयुग का आरंभ भी इसी दिन हुआ था| इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने का विधान है| धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आंवले के वृक्ष में सभी देवताओं का निवास होता है तथा यह फल भगवान विष्णु को भी अति प्रिय है|

अक्षय नवमी का महत्व- 

कार्तिक शुक्ल पक्ष की आंवला नवमी का धार्मिक महत्व बहुत माना गया है| एक बार भगवान विष्णु से पूछा गया कि कलियुग में मनुष्य किस प्रकार से पाप मुक्त हो सकता है। तब भगवान प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि जो प्राणी अक्षय नवमी के दिन मुझे एकाग्र होकर ध्यान करेगा, उसे तपस्या का फल मिलेगा। यही नहीं शास्त्रों में ब्रह्म हत्या को घोर पाप बताया गया है। यह पाप करने वाला अपने दुष्कर्म का फल अवश्य भोगता है, लेकिन अगर वह अक्षय नवमी के दिन स्वर्ण, भूमि, वस्त्र एवं अन्नदान करे और वह आंवले के वृक्ष के नीचे लोगों को भोजन कराए, तो इस पाप से मुक्त हो सकता है।

आंवला नवमी की तिथि को पवित्र तिथि माना गया है| इस दिन किया गया गौ, स्वर्ण तथा वस्त्र का दान अमोघ फलदायक होता है| इन वस्तुओं का दान देने से ब्राह्मण हत्या, गौ हत्या जैसे महापापों से बचा जा सकता है| चरक संहिता में इसके महत्व को व्यक्त किया गया है| जिसके अनुसार कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन ही महर्षि च्यवन को आंवला के सेवन से पुनर्नवा होने का वरदान प्राप्त हुआ था|

अक्षय नवमी की पूजन विधि-

प्रात:काल स्नान कर आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है| पूजा करने के लिए आँवले के वृक्ष की पूर्व दिशा की ओर उन्मुख होकर शोड्षोपचार पूजन करें| दाहिने हाथ में जल, चावल, पुष्प आदि लेकर व्रत का संकल्प करें| 

अद्येत्यादि अमुकगोत्रोमुक (गोत्र का उच्चारण करें) ममाखिलपापक्षयपूर्वकधर्मार्थकाममोक्षसिद्धिद्वारा श्रीविष्णुप्रीत्यर्थं धात्रीमूले विष्णुपूजनं धात्रीपूजनं च करिष्ये।

ऐसा संकल्प कर आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा की ओर मुख करके ऊँ धात्र्यै नम: मंत्र से आवाहनादि षोडशोपचार पूजन करके निम्नलिखित मंत्रों से आंवले के वृक्ष की जड़ में दूध की धारा गिराते हुए पितरों का तर्पण करें-

पिता पितामहाश्चान्ये अपुत्रा ये च गोत्रिण:।

ते पिबन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेक्षयं पय:।।

आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं देवर्षिपितृमानवा:।

ते पिवन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेक्षयं पय:।।

इसके बाद आंवले के वृक्ष के तने में निम्न मंत्र से सूत्रवेष्टन करें-

दामोदरनिवासायै धात्र्यै देव्यै नमो नम:।

सूत्रेणानेन बध्नामि धात्रि देवि नमोस्तु ते।।

इसके बाद कर्पूर या घृतपूर्व दीप से आंवले के वृक्ष की आरती करें तथा निम्न मंत्र से उसकी प्रदक्षिणा करें -


यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।

तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे।।

आंवले के वृक्ष के नीचे ब्राह्मण- भोजन भी कराना चाहिए और अन्त में स्वयं भी आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन करना चाहिए। एक पका हुआ कुम्हड़ा (कद्दू) लेकर उसके अंदर रत्न, सुवर्ण, रजत या रुपया आदि रखकर निम्न संकल्प करें-


ममाखिलपापक्षयपूर्वक सुख सौभाग्यादीनामुक्तरोत्तराभिवृद्धये कूष्माण्डदानमहं करिष्ये। 

तदनन्तर विद्वान तथा सदाचारी ब्राह्मण को तिलक करके दक्षिणासहित कुम्हड़ा दे दें और निम्न प्रार्थना करें-

कूष्णाण्डं बहुबीजाढयं ब्रह्णा निर्मितं पुरा।

दास्यामि विष्णवे तुभ्यं पितृणां तारणाय च।।

पितरों के शीतनिवारण के लिए यथाशक्ति कंबल आदि ऊर्णवस्त्र भी सत्पात्र ब्राह्मण को देना चाहिए। अगर घर में आंवले का वृक्ष न हो तो किसी बगीचे में या गमले में आंवले का पौधा लगा कर यह कार्य सम्पन्न करना चाहिए|

अक्षय नवमी की कथा-

प्राचीन समय की बात है, काशी नगरी में एक वैश्य रहता था| वह बहुत ही धर्म कर्म को मानने वाला धर्मात्मा पुरूष था, किंतु उसके कोई संतान न थी| इस कारण उस वणिक की पत्नी बहुत दुखी रहती थी| एक बार किसी ने उसकी पत्नी को कहा कि यदि वह किसी बच्चे की बलि भैरव बाबा के नाम पर चढा़ए तो उसे अवश्य पुत्र की प्राप्ति होगी| स्त्री ने यह बात अपने पति से कही परंतु वणिक ने ऐसा कार्य करने से मना कर दिया, किंतु उसकी पत्नी के मन में यह बात घर कर गई तथा संतान प्राप्ति की इच्छा के लिए उसने किसी बच्चे की बली दे दी, परंतु इस पाप का परिणाम अच्छा कैसे हो सकता था अत: उस स्त्री के शरीर में कोढ़ उत्पन्न हो गया और मृत बच्चे की आत्मा उसे सताने लगी|


उस स्त्री ने यह बात अपने पति को बताई| हालाँकि पहले तो पति ने उसे खूब दुत्कारा लेकिन फिर उसकी दशा पर उसे दया भी आई| वह अपनी पत्नी को गंगा स्नान एवं पूजन के लिए कहता है, तब उसकी पत्नी गंगा के किनारे जा कर गंगा जी की पूजा करने लगती है| एक दिन माँ गंगा वृद्ध स्त्री का वेश धारण किए उस स्त्री के समक्ष आती है और उस सेठ की पत्नी को कहती है कि यदि वह मथुरा में जाकर कार्तिक नवमी का व्रत एवं पूजन करे तो उसके सभी पाप समाप्त हो जाएंगे| ऎसा सुनकर वणिक की पत्नी मथुरा में जाकर विधि विधान के साथ नवमी का पूजन करती है और भगवान की कृपा से उसके सभी पाप क्षय हो जाते हैं तथा उसका शरीर पहले की भाँति स्वस्थ हो जाता है, उसे संतान रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है|

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रैलियों की इस रेस में जल्द ही कूदने वाली है मायावती

आगामी लोकसभा चुनाव में अहम साबित होने वाले देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में रैलियों की रेस अब और दिलचस्प होने वाली है। रैलियों की इस रेस में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष मायावती भी जल्द कूदने वाली हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस की चुनावी रैलियां पहले से शुरू हो चुकी हैं।

उप्र में फिलहाल भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के अलावा सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह के बीच रैलियों की रेस चल रही है। रैलियों में आने वाली भीड़ को लेकर तीनों पार्टियां अपनी पीठ थपथपा रही हैं। अब मायावती भी इसमें शामिल होने जा रही हैं। मायावती की उत्तर प्रदेश में होने वाली रैलियों का कार्यक्रम तय किया जा रहा है।

मायावती तकरीबन तीन माह बाद लखनऊ लौट रही हैं। 10 नवंबर को लखनऊ में पार्टी पदाधिकारियों व जोनल कोआर्डिनेटरों की अहम बैठक बुलाई गई है। बैठक में सूबे के राजनीतिक माहौल को देखते कुछ लोकसभा प्रत्याशियों को बदलने और मायावती की होने वाली रैलियों को लेकर मंथन हो सकता है।

बसपा सूत्रों के अनुसार पार्टी ने लगभग सभी लोकसभा सीटों पर प्रत्याशी तय कर रखे हैं। मायावती की रैलियों का सिलसिला भी जल्द शुरू होगा। गौरतलब है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर बीते तीन माह से मायावती दिल्ली में ही हैं। पार्टी दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में चुनाव लड़ रही है। पदाधिकारियों व जोनल कोआर्डिनेटरों के साथ होने वाली बैठक के बाद मायावती पार्टी के लोकसभा प्रत्याशियों से भी अलग-अलग मिलेंगी।

सूत्रों के मुताबिक मुजफ्फरनगर दंगे के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बदले सियासी समीकरण को देखते हुए भी मायावती कुछ प्रत्याशियों को बदलने का फैसला कर सकती हैं। पदाधिकारियों के साथ बैठक के बाद प्रदेश में रैलियों की तिथि घोषित की जा सकती हैं।

उल्लेखनीय है कि बसपा के पास कुल 21 सांसद हैं, जिसमें 20 उत्तर प्रदेश से हैं। बसपा का सर्वाधिक फोकस सूबे की 80 सीटों पर ही है। पार्टी पिछले वर्ष विधानसभा चुनाव के बाद से ही लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटी है। मायावती के निर्देश पर पदाधिकारी व कार्यकर्ताओं के चुपचाप बूथ स्तर तक संगठन को मजबूत करने के लिए बूथ समितियों का गठन कर कैडर कैंप चल रहे हैं। मतदाता सूची के पुनरीक्षण का काम भी किया जा रहा है।

बसपा के प्रदेश अध्यक्ष राम अचल राजभर ने कहा, "10 नवंबर को राजधानी में होने वाली समीक्षा बैठक के दौरान मायावतीजी मौजूद रहेंगी। इस दौरान पार्टी के संगठनात्क कायरें की समीक्षा की जाएगी।"यह पूछे जाने पर कि क्या मायावती की रैलियों को लेकर भी कोई घोषणा हो सकती है, तो उन्होंने कहा, "10 नवंबर तक इंतजार कीजीए, रैलियों को लेकर जो भी कार्यक्रम बनेगा उसकी जानकारी खुद बहन जी देंगी।" 

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नमो के सहारे अवध में वापसी चाहती है भाजपा

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए अवध क्षेत्र हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है, लेकिन पिछले कुछ समय से भाजपा को इस इलाके में नुकसान पहुंचा है। अवध क्षेत्र में आने वाली 17 लोकसभा सीटों में से सिर्फ एक सीट ही वर्तमान में भाजपा के पास है। नमो के सहारे भाजपा एक बार फिर इस इलाके में अपनी खोई ताकत हासिल करने में जुटी है।

राष्ट्रीयता, हिन्दुत्व और स्वयं सेवक संघ की जड़ें इस क्षेत्र में हमेशा से गहरी रही हैं। अटल बिहारी वाजपेयी, नानाजी देशमुख, के. के. नायर जैसे लोगों की यह कर्मभूमि रही है। गोंडा में नानाजी का 'जय प्रभा ग्राम' आज भी कई प्रकल्पों के जरिए इस इलाके में सेवा कार्य चलाता है। हाल के कुछ वर्षो में इस क्षेत्र में भाजपा के गौरवशाली इतिहास को काफी नुकसान पहुंचा है। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने विधानसभा और लोकसभा चुनावों में इस इलाके में अच्छा प्रदर्शन किया है।

अवध क्षेत्र की 17 लोकसभा सीटों में केवल एक लखनऊ ही भाजपा के पास है। इस इलाके में कुल 85 विधानसभा क्षेत्र आते हैं और भाजपा की कोशिश है कि मोदी की रैली के जरिए एक बार फिर यहां के कार्यकर्ताओं और जनता में पार्टी के प्रति उत्साह का संचार होगा। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा, "अवध क्षेत्र अटल बिहारी वाजपेयी और नानाजी देशमुख जैसे नेताओं की कर्मभूमि रही है। अलग-अलग समय में 17 में से 16 लोकसभा सीटों पर पार्टी विजय भी हासिल कर चुकी है। नरेंद्र मोदी की रैली के बाद पार्टी एक बार फिर वही इतिहास दोहराएगी।"

मोदी के लिए भी बहराइच काफी भाग्यशाली रहा है। इससे पूर्व वर्ष 2001 में उन्होंने यहां कार्यकर्ता सम्मेलन में बतौर राष्ट्रीय महामंत्री हिस्सा लिया था। मोदी का कद तब इतना बड़ा नहीं था। कार्यकर्ता सम्मेलन में हिस्सा लेने के बाद मोदी जब वापस लौटे थे, तभी उन्हें भाजपा ने केशुभाई पटेल की जगह गुजरात का मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया था। 

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छठ पूजा: भगवान सूर्य की उपासना का महापर्व

दीपवाली के ठीक छह दिन बाद मनाए जाने वाले छठ महापर्व का हिंदू धर्म में विशेष स्थान है। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को सूर्य षष्ठी का व्रत करने का विधान है। छठ पूजा का आयोजन आज बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि देश के हर कोने में किया जाता है दिल्ली, कलकत्ता, मुम्बई चेन्न्ई जैसे महानगरों में भी समुद्र किनारे जन सैलाब दिखाई देता है| इस पर्व की महत्ता इतनी है कि अगर घर का कोई सदस्य बाहर है तो इस दिन घर पहुँचने का पूरा प्रयास करता है। देश के साथ-साथ अब विदेशों में रहने वाले लोग अपने -अपने स्थान पर इस पर्व को धूम-धाम से मनाते हैं।

बिहार का प्रमुख लोकपर्व छठ इस वर्ष 6 नवम्बर दिन बुधवार को व्रतियों के 'नहाय-खाय' के साथ प्रारंभ होगा। छठ के अवसर पर व्रत रखने वाली महिलाएं जहां महापर्व की तैयारियों में जुट गई हैं वहीं, छठ बाजार भी सजने लगे हैं। बाजार में सूप, दउरा, आम की लकड़ी, चूल्हा और फलों की दुकानें सज चुकी हैं।

व्रत रखने वाली महिलाएं इस दिन स्नान कर अरवा चावल, चना दाल और कद्दू की सब्जी खाएंगी। इस दिन खाने में सेंधा नमक का ही प्रयोग किया जाता है। दूसरे दिन सोमवार को कार्तिक शुक्ल पक्ष पंचमी के मौके पर दिनभर व्रत रखने वाली महिलाएं उपवास कर शाम को विधि विधान से रोटी तथा गुड़ से बनी खीर का प्रसाद तैयार करेंगी और फिर सूर्य भगवान का स्मरण कर प्रसाद ग्रहण करेंगी। इस पूजा को 'खरना' कहा जाता है।

क्यों मनाते है छठ पूजा-

छठ पूजा का प्रारंभ आज से नहीं बल्कि महाभारत काल में कुंती द्वारा सूर्य की आराधना व पुत्र कर्ण के जन्म के समय से माना जाता है। यह मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जीवन के महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए, इन्हें साक्षी मानकर भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका धन्यवाद करते हुए मां गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर ( तालाब ) के किनारे यह पूजा की जाती है।

छठ पूजा की विधि-

छठ पर्व तीन दिनों तक मनाया जाता है। इसे छठ से दो दिन पहले चौथ के दिन शुरू करते हैं जिसमें दो दिन तक व्रत रखा जाता है। इस पर्व की विशेषता है कि इसे घर का कोई भी सदस्य रख सकता है तथा इसे किसी मन्दिर या धार्मिक स्थान में न मना कर अपने घर में देवकरी ( पूजा-स्थल) व प्राकृतिक जल राशि के समक्ष मनाया जाता है।

तीन दिन तक चलने वाले इस पर्व के लिए महिलाएँ कई दिनों से तैयारी करती हैं, इस अवसर पर घर के सभी सदस्य स्वच्छता का बहुत ध्यान रखते हैं| जहाँ पूजा स्थल होता है वहाँ नहा धो कर ही जाते हैं| यही नही, तीन दिन तक घर के सभी सदस्य देवकरी के सामने जमीन पर ही सोते हैं।

पर्व के पहले दिन पूजा में चढ़ावे के लिए सामान तैयार किया जाता है जिसमें सभी प्रकार के मौसमी फल, केले की पूरी गौर (गवद), इस पर्व पर खासतौर पर बनाया जाने वाला पकवान ठेकुआ ( बिहार में इसे खजूर भी कहते हैं। यह गेहूं के आटे और गुड़ व तिल से बने हुए पुए जैसा होता है), नारियल, मूली, सुथनी, अखरोट, बादाम, नारियल, इस पर चढ़ाने के लिए लाल/ पीले रंग का कपड़ा, एक बड़ा घड़ा जिस पर बारह दीपक लगे हो गन्ने के बारह पेड़ आदि।

पहले दिन महिलाएँ नहा धो कर अरवा चावल, लौकी और चने की दाल( जिनमे सेंधा नमक ही डाला जाता है) का भोजन करती हैं और देवकरी में पूजा का सारा सामान रख कर दूसरे दिन आने वाले व्रत की तैयारी करती हैं।

छठ पर्व पर दूसरे दिन पूरे दिन व्रत रखा जाता है और शाम को गन्ने के रस की खीर बनाकर देवकरी में पांच जगह कोशा ( मिट्टी के बर्तन) में खीर रखकर उसी से हवन किया जाता है। बाद में प्रसाद के रूप में खीर का ही भोजन किया जाता है व सगे संबंधियों में इसे बाँटा जाता है।

तीसरे यानी छठ के दिन 24 घंटे का निर्जल व्रत रखा जाता है, सारे दिन पूजा की तैयारी की जाती है और पूजा के लिए एक बांस की बनी हुई बड़ी टोकरी, जिसे दौरी कहते हैं, और सूप में पूजा के सभी सामान डाल कर देवकरी में रख दिया जाता है। देवकरी में गन्ने के पेड़ से एक छत्र बनाकर और उसके नीचे मिट्टी का एक बड़ा बर्तन, दीपक, तथा मिट्टी के हाथी बना कर रखे जाते हैं और उसमें पूजा का सामान भर दिया जाता है। वहाँ पूजा अर्चना करने के बाद शाम को एक सूप में नारियल कपड़े में लिपटा हुआ नारियल, कम से कम पांच प्रकार के फल, पूजा का अन्य सामान ले कर दौरी में रख कर घर का पुरूष इसे अपने हाथों से उठा कर नदी, समुद्र या पोखर पर ले जाता है। यह अपवित्र न हो जाए इसलिए इसे सिर के उपर की तरफ रखते हैं। पुरूष, महिलाएँ, बच्चों की टोली एक सैलाब की तरह दिन ढलने से पहले नदी के किनारे सोहर गाते हुए जाते हैं :-

काचि ही बांस कै बहन्गिया, बहिंगी लचकत जाय
भरिहवा जै होउं कवनरम, भार घाटे पहुँचाय
बाटै जै पूछेले बटोहिया, ई भार केकरै घरै जाय
आँख तोरे फूटै रे बटोहिया, जंगरा लागै तोरे घूम
छठ मईया बड़ी पुण्यात्मा, ई भार छठी घाटे जाय


नदी किनारे जाकर नदी से मिट्टी निकाल कर छठ माता का चौरा बनाते हैं वहीं पर पूजा का सारा सामान रख कर नारियल चढ़ाते हैं और दीप जलाते हैं। उसके बाद टखने भर पानी में जा कर खड़े होते हैं और सूर्य देव की पूजा के लिए सूप में सारा सामान ले कर पानी से अर्घ्य देते हैं और पाँच बार परिक्रमा करते हैं। सूर्यास्त होने के बाद सारा सामान ले कर सोहर गाते हुए घर आ जाते हैं और देवकरी में रख देते हैं। रात को पूजा करते हैं। कृष्ण पक्ष की रात जब कुछ भी दिखाई नहीं देता श्रद्धालु अलस्सुबह सूर्योदय से दो घंटे पहले सारा नया पूजा का सामान ले कर नदी किनारे जाते हैं। पूजा का सामान फिर उसी प्रकार नदी से मिट्टी निकाल कर चौक बना कर उस पर रखा जाता है और पूजन शुरू होता है।

सूर्य देव की प्रतीक्षा में महिलाएँ हाथ में सामान से भरा सूप ले कर सूर्य देव की आराधना व पूजा नदी में खड़े हो कर करती हैं। जैसे ही सूर्य की पहली किरण दिखाई देती है सब लोगों के चेहरे पर एक खुशी दिखाई देती है और महिलाएँ अर्घ्य देना शुरू कर देती हैं। शाम को पानी से अर्घ्य देते हैं, लेकिन सुबह दूध से अर्घ्य दिया जाता है। इस समय सभी नदी में नहाते हैं तथा गीत गाते हुए पूजा का सामान ले कर घर आ जाते हैं। घर पहुँच कर देवकरी में पूजा का सामान रख दिया जाता है और महिलाएँ प्रसाद लेकर अपना व्रत खोलती हैं तथा प्रसाद परिवार व सभी परिजनों में बांटा जाता है।

छठ पूजा में कोशी भरने की मान्यता है अगर कोई अपने किसी अभीष्ट के लिए छठ मां से मनौती करता है तो वह पूरी करने के लिए कोशी भरी जाती है इसके लिए छठ पूजन के साथ -साथ गन्ने के बारह पेड़ से एक समूह बना कर उसके नीचे एक मिट्टी का बड़ा घड़ा जिस पर छ: दिए होते हैं देवकरी में रखे जाते हैं और बाद में इसी प्रक्रिया से नदी किनारे पूजा की जाती है नदी किनारे गन्ने का एक समूह बना कर छत्र बनाया जाता है उसके नीचे पूजा का सारा सामान रखा जाता है। कोशी की इस अवसर पर काफी मान्यता है उसके बारे में एक गीत गाया जाता है जिसमें बताया गया है कि कि छठ मां को कोशी कितनी प्यारी है।

रात छठिया मईया गवनै अईली
आज छठिया मईया कहवा बिलम्बली
बिलम्बली – बिलम्बली कवन राम के अंगना
जोड़ा कोशियवा भरत रहे जहवां,
जोड़ा नारियल धईल रहे जहंवा
उंखिया के खम्बवा गड़ल रहे तहवां ||

भैया दूज: भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक

दीपावली के साथ ही भाई-बहन के पावन प्रेम की प्रतीक भाई द्वितीया का अपना विशेष महत्व है। भारतीय बहनें इस पर्व पर भाई की मंगल कामना कर अपने को धन्य मानती हैं। भैयादूज हिन्दू समाज में भाई-बहन के पवित्र रिश्तों का प्रतीक है| यह पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है| इस बार यह पर्व 5 नवम्बर दिन मंगलवार को मनाया जायेगा| भाई-बहन के पवित्र रिश्तों के प्रतीक के पर्व को हिन्दू समुदाय के सभी वर्ग के लोग हर्ष उल्लास से मनाते हैं| इस पर्व पर जहां बहनें अपने भाई की दीर्घायु व सुख समृद्धि की कामना करती हैं तो वहीं भाई भी सगुन के रूप में अपनी बहन को उपहार स्वरूप कुछ भेंट देने से नहीं चूकते| इस पर्व पर बहनें प्राय: गोबर से मांडना बनाती हैं, उसमें चावल और हल्दी के चित्र बनाती हैं तथा सुपारी फल, पान, रोली, धूप, मिष्ठान आदि रखती हैं, दीप जलाती हैं। इस दिन यम द्वितीया की कथा भी सुनी जाती है|

भैयादूज की प्रथम कथा-

भविष्य पुराण में उल्लेखित यह द्वितीया की कथा सर्वमान्य एवं महत्वपूर्ण है, इसके अनुसार सूर्य की पत्नी संज्ञा की दो संतानें थीं। उनमें पुत्र का नाम यमराज और पुत्री का नाम यमुना था। संज्ञा अपने पति सूर्य की उद्दीप्त किरणों को सहन नहीं कर सकने के कारण उत्तरी ध्रुव में छाया बनकर रहने लगी। इसी से ताप्ती नदी तथा शनिश्चर का जन्म हुआ। इसी छाया से सदा युवा रहने वाले अश्विनी कुमारों का भी जन्म हुआ है, जो देवताओं के वैद्य माने जाते हैं। उत्तरी ध्रुव में बसने के बाद संज्ञा (छाया) का यम तथा यमुना के साथ व्यवहार में अंतर आ गया। इससे व्यथित होकर यम ने अपनी नगरी यमपुरी बसाई। यमुना अपने भाई यम को यमपुरी में पापियों को दंड देते देख दु:खी होती, इसलिए वह गोलोक चली गई।

समय व्यतीत होता रहा। तब काफी सालों के बाद अचानक एक दिन यम को अपनी बहन यमुना की याद आई। यम ने अपने दूतों को यमुना का पता लगाने के लिए भेजा, लेकिन वह कहीं नहीं मिली। फिर यम स्वयं गोलोक गए जहां यमुनाजी की उनसे भेंट हुई। इतने दिनों बाद यमुना अपने भाई से मिलकर बहुत प्रसन्न हुई। यमुना ने भाई का स्वागत किया और स्वादिष्ट भोजन करवाया। इससे भाई यम ने प्रसन्न होकर बहन से वरदान मांगने के लिए कहा। तब यमुना ने वर मांगा कि- 'हे भैया, मैं चाहती हूं कि जो भी मेरे जल में स्नान करे, वह यमपुरी नहीं जाए।

भैयादूज की द्वितीय कथा-

एक राजा अपने साले के साथ चौपड़ खेला करता था। साला जीत जाता था। राजा ने सोचा कि भाई दूज पर यह बहन से टीका कराने आता है, इसलिए जीत जाता है। अतः राजा ने भाई दूज आने पर साले को आने से रोक दिया। साथ ही कड़ा पहरा लगा दिया कि वह न आ सके। जब भैया दूज पर भाई बहन के पास टीका कराने नहीं पहुंचा तो वह बहन बहुत दुःखी हुई।

तब भाई यमराज की कृपा से कुत्ते का रूप धारण कर राजा के कड़े पहरे के बावजूद बहन के यहां पहुंचा। बहन हाथ में टीका लेकर बैठी थी। कुत्ते को देखकर उसने प्रेम से अपना टीके से सना हाथ उसके माथे पर फेरा। कुत्ता वापस चला गया। लौटकर वह राजा से बोला—मैं भाई दूज का टीका करा आया, आओ अब खेलें। राजा बहुत चकित हुआ। तब साले ने पूरी बात सुनाई। राजा टीके के महत्व को मान गया और अपनी बहन से टीका कराने चला गया।

यह सुनकर यम चिंतित हो उठे और मन-ही-मन विचार करने लगे कि ऐसे वरदान से तो यमपुरी का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। भाई को चिंतित देख, बहन बोली- भैया आप चिंता न करें, मुझे यह वरदान दें कि जो लोग आज के दिन बहन के यहां भोजन करें तथा मथुरा नगरी स्थित विश्रामघाट पर स्नान करें, वे यमपुरी नहीं जाएं। यमराज ने इसे स्वीकार कर वरदान दे दिया। बहन-भाई मिलन के इस पर्व को अब भाई-दूज के रूप में मनाया जाता है।

भैयादूज में दान का महत्व -

भारतीय संस्कृति में प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान के साथ दान का विशेष महत्व है| दान में केवल मानव ही नही पशु पक्षी भी समिमलित होतें हैं, भाई दूज के दिन किसी निर्धन या विद्वान ब्रह्मण को भोजन करना चाहिए, साथ ही गाय,कुत्ता व पक्षियों को भी यथायोग्य भोजन दिया जाये| परिवार के सभी लोग सूर्य को जल दें, जो बहनें व्रत रखती हैं, वह दोपहर बाद भोजन कर सकती हैं, लेकिन जब तक भाई की आरती कर लें| भाई को चाहिए जी वो सामर्थ्य के अनुसार अपनी बहन को उपहार अवश्य दे और यदि बहन किसी संकट में है तो उसे दूर करने का प्रयास करे|

विनीत वर्मा की रिपोर्ट-

भैया दूज के दिन 'गोधन' कूटने की अनोखी परम्परा

हमारे देश में संस्कृति और परम्परा विविधताओं से भरी है। कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को मनाए जाने वाले 'भैया दूज' को आमतौर पर 'गोधन' के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन उत्तर भारत के कई राज्यों में बहनें अपने भाइयों को 'शाप' देने की अनोखी परम्परा निभाती हैं। मान्यता है कि इस 'शाप' से भाइयों को मृत्यु का डर नहीं होता।

बिहार और झारखण्ड में गोधन के मौके पर बहनें भाइयों को खूब कोसती हैं और उन्हें गालियां भी देती हैं। यहां तक कि भाइयों को मर जाने का शाप भी देती हैं। इस दौरान विशेष पौधे 'रेंगनी' के कांटें को भी ये बहनें अपनी जीभ में चुभाती रहती हैं। इसे 'शापना' कहा जाता है। ऐसा बहनें सोकर उठने के तुरंत बाद करती हैं।

गोधन पूजा करने वाली महिलाएं सभी उम्र की होती हैं। हर साल गोधन पूजा करने वाली एक महिला ने बताया कि इस दिन मुहल्ले में एक घर के बाहर महिलाए सामूहिक रूप से गोबर से चौकोर आकृति बनाती हैं, जिसमें यम और यमी की गोबर से ही प्रतिमा बनाई जाती है। इसके अतिरिक्त सांप, बिच्छु आदि की आकृति भी बनाई जाती है। महिलाएं पहले इसकी पूजा करती हैं और फिर इन्हें डंडे से कूटा जाता है।

उन्होंने बताया कि आकृति के भीतर चना, ईंट, नारियल, सुपारी और वह कांटा भी रख दिया जाता है, जिसे बहनें अपनी जीभ में चुभाकर भाइयों को कोसती हैं। इस दौरान महिलाएं गीत और भजन भी गाती हैं। इनहें कूट लेने के बाद उसमें डाले गए चने को निकाल लिया जाता है और फिर सभी बहनें अपने-अपने भाइयों को तिलक लगाकर इसे खिलाती हैं। इस दौरान भाई अपनी बहनों को उपहार भी देते हैं।

महिलाओं का कहना है कि यह परम्परा काफी प्राचीन है, जिसे वे भी पूरी आस्था से मनाती हैं। बिहार के औरंगाबाद जिले के पंडित महादेव मिश्र कहते हैं कि इस परम्परा के पीछे मान्यता है कि द्वितीया के दिन भाइयों को गालियां और शाप देने से उन्हें यम (यमराज) का भी भय नहीं होता। गोधन को यम द्वितीया भी कहा जाता है।

उन्होंने बाताया, प्राचीन काल में एक राजा के बेटे की शादी थी। राजा ने अपनी विवाहित पुत्री को भी बुलाया था। दोनों भाई-बहनों में अपार स्नेह था। बहन जब भाई की बारात में शामिल होने जा रही थी तो उसने लोगों को यह कहते हुए सुना कि चूंकि राजा की बेटी ने अपने बेटे को कभी गाली नहीं दी, इसलिए वह बारात के दौरान ही मर जाएगा।

इसके बाद बारात निकलने के रास्ते में बहन ने अपने भाई को खूब गालियां दी और रास्ते में जो भी सांप-बिच्छू दिखाई दिए, उन्हें मारती और आंचल में डालती चली गई। जब वह घर लौटी तो उसके भाई के प्राण लेने के लिए यमराज उनके घर आए हुए थे, लेकिन यमराज ने जब भाई-बहन का प्रेम देखा तो वे राजा के बेटे का प्राण लिए बगर ही यमपुरी लौट गए।

उन्होंने कहा कि यम द्वितीया के दिन जो भी बहन अपने भाई को शाप और गाली देगी, उस भाई को मृत्यु का भय नहीं रहता। तभी से बहनें गोधन पूजा के रूप में यह परम्परा मनाती आ रही हैं। इस दिन सभी घरों में मीठा पकवान बनता है और पूरा परिवार मीठा भोजन ही करता है। 

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बुंदेलखंड में जमघट से शुरू होती है गोवर्धन पूजा

उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड में हर तीज-त्योहार मनाने के कुछ अलग ही रिवाज हैं। प्रकाश पर्व दीपावली के दूसरे दिन जमघट से दो अलग-अलग मान्यताओं के साथ गोवर्धन पूजा की शुरुआत होती है, अपने को भगवान श्रीकृष्ण का वंशज बताने वाले ग्वालवंशी 'गोवर्धन पर्वत' और किसान वर्ग 'गोबर धन' के रूप में एक पखवाड़े तक पशुओं के गोबर से बने टीले की पूजा करते हैं।

वैसे, उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड में हर तीज-त्योहार हर्षोल्लास के साथ मनाए जाते हैं, लेकिन रीति-रिवाज और मान्यताएं कुछ अलग हैं। अब आप प्रकाश पर्व दीपावली के दूसरे दिन जमघट से एक पखवाड़ा तक चलने वाली गोवर्धन पूजा को ही ले लीजिए। इस पूजा में भी दो अलग-अलग मान्यताएं जुड़ी हुई हैं।

अपने को भगवान श्रीकृष्ण का वंशज बताने वाले ग्वालवंशी (यादव) पशुओं के गोबर से बने टीले को गोवर्धन पर्वत और किसान वर्ग इस टीले की पूजा गोबर-धन के रूप में करते हैं। गांव-देहातों में इसे गोधन दाई के नाम से पुकारते हैं।

बुंदेलखंड में गोवर्धन पूजा को लेकर दो अलग-अलग मान्यताएं हैं, पहली मान्यता के बारे में बांदा जिले के पनगरा में रहने वाले ग्वालवंशी लाला यादव का कहना है कि भगवान श्रीकृष्ण ने जमघट के दिन अपनी उंगली में गोवर्धन पर्वत उठा कर गोकुलवासियों की रक्षा की थी, तभी से पशुओं के गोबर का पर्वत (गोधन दाई) बनाकर इसकी एक पखवाड़ा तक पूजा की जाने लगी है।

दूसरी मान्यता के बारे में गड़ाव गांव के बुजुर्ग किसान काशी प्रसाद तिवारी का कहना है कि पशुओं का गोबर किसान का सबसे बड़ा धन है, इसलिए किसान गोबर-धन की पूजा करता है। सबसे खास बात यह है कि गोवर्धन पर्वत में इस्तेमाल किए गए गोबर को एक पखवाड़ा बाद हर किसान अपने खेत में फेंककर अच्छी फसल की मन्नत मांगते हैं। इस दौरान किसान अपने पशुओं का गोबर पड़ोसियों को मुफ्त में नहीं देते।

बरतें चन्द सावधानियां, और खुशी से मनाएं दीपों का त्यौहार दीपावली

दीपावली का त्योहार हो और पटाखे छोड़कर खुशी न मनार्इ जाए ऐसा संभव नहीं है। मगर चिंतन का विषय यह है कि खुशियों में दागे जाने वाले पटाखों से फैलने वाला ध्वनि एवं वायु प्रदूषण ग्लोबल वार्मिंग में इजाफा कर रहा है इसलिए कोशिश यही होनी चाहिए कि दीपावली की खुशियां भी बरकरार रहे और प्रदूषण कम से कम फैले। दीपावली हर घर में खुशियों का संदेशा लेकर आती है। भारतीय संस्कृति के अनुसार देश में हर त्योहार का अलग-अलग महत्व है। रोशनी का त्योहार कहे जाने वाले इस पर्व को समाज का प्रत्येक वर्ग बड़े हर्षोल्लास से मनाना चाहता है। खासकर बच्चों और युवाओं में पटाखे फोड़ने की ललक रहती है। दीपावली पर हर साल करोडों रुपये की आतिशबाजी फूंकने के बाद पर्यावरण को प्रदूषण के सिवा कुछ नहीं मिलता है। बदलते युग में समाज में तौर-तरीकों पर काफी परिवर्तन आया है। हम अपनी खुशियों के खातिर दूसरों को परेशानियों में डाल देते हैं। हर साल करोड़ों रुपये की आतिशबाजी से ध्वनि प्रदूषण तो होता ही है इसके साथ ही साथ वायु प्रदूषण भी फैलता है।

आतिशबाजी से निकलने वाली गूंज और ध्वनि से स्वास्थ्य पर सबसे ज्यादा असर पड़ता है। इस तरह से प्रदूषण के एकाएक बढ़ जाने से समाज के सभी लोगों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। हम सभी अपनी खुशियों की खातिर समाज को एक जटिल मुशिकल में डाल रहे हैं। धरातल पर कम प्लाटेंशन भी इसकी मुख्य वजह माना जा सकता है। पटाखों से निकलने वाला धुआं शरीर के लिए काफी हानिकारक होता है। सांस रोगियों और दिल के रोगियों को पटाखों से परहेज करना चाहिए। अगर किसी को भी परेशानी हो तो तुरंत ही ड‚क्टर से संपर्क करना चाहिए।

पटाखे फोड़ने पर होने वाले नुकसान : -

• सांस रोगियों को सांस लेने मे परेशानी
• वातावरण में प्रदूषण की मात्रा अधिक होने से स्वच्छ हवा न मिल पाना
• जहरीली गैसों से श्वांस रोगों का बढ़ता खतरा
• श्रवण शक्ति पर पड़ता हैं काफी असर

पटाखे दगाते समय क्या बरतें सावधानी : -

• पटाखे दगाते समय ढीले ढाले वस्त्र पहने
• कसे व सिकन टाइट वस्त्र न पहने
• तेज आवाज के पटाखों का प्रयोग न करें
• खुले मैदान पर पटाखों का प्रयोग करना चाहिए
• तेज रोशनी वाले पटाखों का प्रयोग न करें
• जहरीली गैसों के पटाखों से परहेज करें
• लोकल पटाखों का प्रयोग न करें
• बच्चों को अपने निर्देशन मे ही पटाखे फोड़ने दे

इन चन्द बातों का ध्यान रखकर आप अपनी दीपावली बहुत ही श्रद्धा, उल्लास व खुशी से शांति पूर्वक मना सकते हैं। आप सबकी दीपावली मंगलमय हो, भगवान गणेश, माता लक्ष्मी व कुबेर जी की कृपा सभी पर सदैव बनी रहे।

मेरा संघर्ष की ओर से सभी सुधी पाठकों को दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएं -

भगवान श्रीकृष्ण की उपासना का पर्व है 'गोवर्धन पूजा

कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है| इस वर्ष यह पर्व 4 नवंबर दिन सोमवार को मनाया जायेगा| यह पर्व उत्तर भारत में विशेषकर मथुरा क्षेत्र में बहुत ही धूम-धाम और उल्लास के साथ मनाया जाता है| इसे अन्नकूट पूजा के नाम से भी जाना जाता है| यह पर्व श्रीकृष्ण की भक्ति व प्रकृत्ति के प्रति उपासना व सम्मान को दर्शाता है|

गोवर्धन पूजा-
गाय के गोबर से गोवर्धननाथ जी की बनाकर उनका पूजन किया जाता है तथा अन्नकूट का भोग लगाया जाता है| यह परम्परा आज से नहीं बल्कि द्वापर युग से चली आ रही है| श्रीमद्भागवत में इस बारे में कई स्थानों पर उल्लेख प्राप्त होते हैं जिसके अनुसार भगवान कृष्ण ने ब्रज में इंद्र की पूजा के स्थान पर कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा आरंभ करवाई थी| भगवान श्रीकृष्ण इसी दिन इन्द्र का अहंकार धवस्त करके पर्वतराज गोवर्धन जी का पूजन करने का आहवान किया था| इस विशेष दिन मन्दिरों में अन्नकूट किया जाता है तथा संध्या समय गोबर के गोवर्धन बनाकर पूजा की जाती है|

गोवर्धन पूजा महत्व-
गोवर्धन पूजा के विषय में एक कथा प्रसिद्ध है| जिसके अनुसार ब्रजवासी देवराज इन्द्र की पूजा किया करते थे क्योंकि देवराज इन्द्र प्रसन्न होने पर वर्षा का आशीर्वाद देते जिससे अन्न पैदा होता| किंतु इस पर भगवान श्री कृष्ण ने ब्रजवासीयों को समझाया कि इससे अच्छे तो हमारे पर्वत है, जो हमारी गायों को भोजन देते है| ब्रज के लोगों ने भगवान कृष्ण की बात मानकर गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी प्रारम्भ कर दी| जब इन्द्र देव ने देखा कि सभी लोग मेरी पूजा करने के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा कर रहे है, तो उनके अंह को ठेस पहुँची क्रोधित होकर उन्होने ने मेघों को गोकुल में जाकर खूब बरसने का आदेश दिया आदेश पाकर मेघ ब्रजभूमि में मूसलाधार बारिश करने लगें| ऎसी बारिश देख कर सभी भयभीत हो गये तथा श्री कृष्ण की शरण में पहुंचें, श्री कृ्ष्ण से सभी को गोवर्धन पर्व की शरण में चलने को कहा| जब सब गोवर्धन पर्वत के निकट पहुंचे तो श्री कृ्ष्ण ने गोवर्धन को अपनी कनिष्का अंगूली पर उठा लिया| सभी ब्रजवासी भाग कर गोवर्धन पर्वत की नीचे चले गये| ब्रजवासियों पर एक बूंद भी जल नहीं गिरा| यह चमत्कार देखकर इन्द्रदेव को अपनी गलती का अहसास हुआ और वे श्री कृ्ष्ण से क्षमा मांगी सात दिन बाद श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत नीचे रखा और ब्रजबादियों को प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा और अन्नकूट पर्व मनाने को कहा| तभी से यह पर्व इस दिन से मनाया जाता है|

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दीये बनाने वाले खुद रहते अंधेरे में

महंगाई ने कुंभकारों की कमर तोड़ दी है। दिवाली पर दूसरों के घर रोशन करने के लिए वे रात-दिन एक कर देते हैं, फिर भी उनके घर में अंधेरा ही रहता है। इस दुर्दशा के लिए वह महंगाई के साथ-साथ मोमबत्ती और इलेक्ट्रॉनिक दीयों को भी जिम्मेदार ठहारते हैं।

बाराबिरवा निवासी नानी के नाम से प्रसिद्ध रामकली ने बताया कि महंगाई के इस दौर में इस पेशे के साथ जीना मुश्किल हो गया है। जिंदगी का रुख बदल गया है। पेट भरने के लिए कुम्हारी का पुश्तैनी काम छोड़कर मजदूरी और छोटी-मोटी नौकरियों का रुख करना पड़ रहा है।

रामकली कहती हैं कि दीपावली से तीन माह पहले से दीये बनाना शुरू कर देते हैं, मगर त्योहार पर दाल-रोटी ही मयस्सर हो जाये तो बहुत बड़ी बात है। नये कपड़े, मिठाइयां और पटाखे तो बच्चों के लिए सपना बनकर रह गये हैं। हम दूसरों का घर रोशन करने के लिए रात-दिन एक कर देते हैं, मगर अपना ही घर रोशन नहीं कर पाते।

वहीं, नन्हकऊ कहते हैं कि पिछले साल तक एक ट्रॉली मिट्टी की कीमत 5-6 सौ थी, जो अब 15 सौ हो गई है। चूंकि आसपास के जिलों से भी दीये बिकने आते हैं, इसलिए हम लोगों को प्रतिस्पर्धा में माल सस्ता भी बेचना पड़ता है।

ये लोग कहते हैं कि एक साल पहले तक बिजनेस इतना तेज चलता था कि एक-एक कुम्हार तीन माह के अंदर 50-60 हजार दीये बना लेता था, मगर अब नौकरी करने के कारण यह भी संभव नहीं है। जो दीये बनाते हैं, वही नहीं बिक पाते हैं। अब लोग इलेक्ट्रॉनिक दीये और मोमबत्ती ज्यादा पसंद करने लगे हैं। 

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दीपावली कल, इस तरह करें महालक्ष्मी और श्रीगणेश को प्रसन्न

हर वर्ष भारतीय पंचांग के कार्तिक मास की अमावस्या का दिन दीपावली के रूप में पूरे देश में बडी धूम-धाम से मनाया जाता हैं। इस वर्ष दिपावली, 3 नवम्बर दिन रविवार को होगी| दीपावली में अमावस्या तिथि, प्रदोष काल, शुभ लग्न व चौघाडिया मुहूर्त विशेष महत्व रखते है| कहा जाता है कि कार्तिक अमावस्या को भगवान रामचन्द्र जी चौदह वर्ष का बनवास पूरा कर अयोध्या लौटे थे। अयोध्या वासियों ने श्री रामचन्द्र के लौटने की खुशी में दीप जलाकर खुशियाँ मनायी थीं, इसी याद में आज तक दीपावली पर दीपक जलाए जाते हैं और कहते हैं कि इसी दिन महाराजा विक्रमादित्य का राजतिलक भी हुआ था। एक अन्य कथा के अनुसार, एक बार के साधु के मन में राजसिक सुख भोगने का विचार आया| इसके लिये उसने लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिये तपस्या करनी प्रारम्भ कर दी| तपस्या पूरी होने पर लक्ष्मी जी ने प्रसन्न होकर उसे मनोवांछित वरदान दे दिया| वरदान प्राप्त करने के बाद वह साधु राजा के दरबार में पहुंचा और सिंहासन पर चढ कर राजा का मुकुट नीचे गिरा दिया| राजा ने देखा कि मुकुट के अन्दर से एक विषैला सांप निकल कर भागा| यह देख कर राजा बहुत प्रसन्न हुआ, क्योकि साधु ने सर्प से राजा की रक्षा की थी| इसी प्रकार एक बार साधु ने सभी दरबारियों को फौरन राजमहल से बाहर जाने को कहा, सभी के बाहर जाते ही, राजमहल गिर कर खंडहर में बदल गया| राजा ने फिर उसकी प्रशंसा की, अपनी प्रशंसा सुनकर साधु के मन में अहंकार आने लगा| साधु को अपनी गलती का पता चला, उसने गणपति को प्रसन्न किया, गणपति के प्रसन्न होने पर राजा की नाराजगी दूर हो गई, और साधु को उसका स्थान वापस दे दिया गया| इसी लिए कहा गया है कि धन के लिये बुद्धि का होना आवश्यक है. यही कारण कि दीपावली पर लक्ष्मी व श्री गणेश के रुप में धन व बुद्धि की पूजा की जाती है|

दीपावली यानी दीप पक्तियां, अमावस्या को जब चन्द्रमा और सूर्य दोनों किसी भी एक डिग्री पर होते हैं तो गहन अंधकार को जन्म देते हैं। दीपावली गहन अंधकार में भी प्रकाश फैलने का पर्व है, यह त्योहार हम सभी को प्रेरणा देता है कि अज्ञान रूपी अंधकार में भटकने के बजाय हम अपने जीवन में ज्ञान रूपी प्रकाश से उजाला करें और जगत के कल्याण में सहभागिता करें। कहते हैं कि दीपावली की रात्रि को महालक्ष्मी की कृपा जिस व्यक्ति या परिवार पर पड़ जाती है उसे कभी धन का अभाव नहीं होता है और उसके घर में हमेशा सुख-समृद्धि रहती है| दीपावली के शुभ अवसर पर महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिये कुछ पूजा-आराधना इस प्रकार से करनी चाहिये कि पूरे वर्ष धन-धान्य में वृद्धि होकर सुख-समृद्धि बनी रहे और निरन्तर मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहे। रावण के पास जो सोने की लंका थी, कहते हैं वह लंका रावण को महालक्ष्मी की कृपा से ही प्राप्त हुई थी। रावण के भाई कुबेर जो धनाधिपति के रूप में भी जाने जाते हैं, उनके साथ भी लक्ष्मी का शुभ आर्शीवाद ही था। दीपावली के शुभ अवसर पर भगवती महालक्ष्मी जी एवं गणेश जी का ही विशेष पूजन किया जाता है, क्योंकि पूरे वर्ष में एक यही पर्व है जिसमें लक्ष्मी का पूजन भगवान विष्णु के साथ नहीं होता क्योंकि भगवान विष्णु तो चार्तुमास शयन कर रहे हैं इसलिये लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी का पूजन दीपावली के शुभ अवसर पर किया जाता है|

माँ लक्ष्मी की पूजा के लिये लक्ष्मी-गणेश की नवीन मूर्ति, श्रीयंत्रा, कुबेर मंत्रा, फल-फूल, धूप-दीपक, खील-बतासे, मिठाई, पंचमेवा, दूध, दही, शहद, गंगाजल, रोली, कलावा, कच्चा नारियल, तेल के दीपक, व दीपकों की कतार और एक घी के दीपक जलाएं| पूजन के लिये एक थाली में रोली से ओम और स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर गणेश जी व माता लक्ष्मी जी को स्थापित करे। थाली में एक तरफ षोडस् मातृका पूजन के लिये रोली से 16 बिन्दु लगायें। नवग्रह पूजन के लिये रोली से ही खाने बनायें, सर्प आकृति बनायें, एक तरफ अपने पितरों को स्थान दें, अब आप पूर्व की दिशा या उत्तर की दिशा में मुहं कर बैठकर आचमन, पवित्रो-धारण-प्राणायाम कर अपने ऊपर तथा पूजा-सामग्री पर यह मंत्र ( ओइम् अपवित्राः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोडपि वा। य स्मरेत पुण्डरीकाक्षं सः बाह्य अत्यंतरः शुचि।।) पढ़ते हुये गंगाजल छिड़ककर शुद्ध कर लें| तत्पश्चात सभी देवी-देवताओं को गंगाजल छिड़ककर स्नान करायें, स्नान करने के बाद उनको तिलक करें, इसके पश्चात् गंगाजल मिले हुए जल से भरा लोटा या कलश का पूजन करे, डोरी बांधे, रोली से तिलक करे, पुष्प व चावल कलश पर वरूण देवता को नमस्कार करते हुये अर्पित करें। इतना करने के बाद थाली में जो 9 खाने वाली जगह है, उस पर रोली, डोरी, पुष्प, चावल, फल, मिठाई आदि चढ़ाते हुये नवग्रह का ध्यान व प्रणाम करे और प्रार्थना करें कि सभी नवग्रह सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, बृह॰, शुक्र, शानि, राहू, केतू शान्ति प्रदान करें| इसके पश्चात इस मंत्र के द्वारा कुबेर का ध्यान करें-

धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।
भवंतु त्वत्प्रसादान्मे धनधान्यादिसम्पदः॥

इसके लिए एक पाट पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर एक जोड़ी लक्ष्मी तथा गणेशजी की मूर्ति रखें। समीप ही एक सौ एक रुपए, सवा सेर चावल, गुढ़, चार केले, मूली, हरी ग्वार की फली तथा पाँच लड्डू रखकर लक्ष्मी-गणेश का पूजन करें और उन्हें लड्डुओं से भोग लगाएँ।

कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी कहते हैं। इस दिन यमराज के निमित्त पूजा की जाती है। इस बार यह पर्व 2 नवम्बर, शनिवार को है। नरक चतुर्दशी की जिसे छोटी दीपावली भी कहते हैं। इसे छोटी दीपावली इसलिए कहा जाता है क्योंकि दीपावली से एक दिन पहले रात के वक्त उसी प्रकार दीयों की रोशनी से रात के तिमिर को प्रकाश पुंज से दूर भगा दिया जाता है जैसे दीपावली की रात। इस रात दीए जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं और लोकमान्यताएं हैं। एक कथा के अनुसार आज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी दु्र्दान्त असुर नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष में दीयों की बरात सजायी जाती है।

नरक चतुर्दशी की एक और कथा प्रचलित है| प्राचीन काल की बात है रन्तिदेवी नाम के राजा हुए थे। रन्तिदेवी अपने पूर्व जन्म में काफी धार्मिक व दानी थे, इस जन्म में भी दान पुण्य में ही समय बिताया था। कोई पाप किया याद न था, लेकिन जब अंतिम समय आया तो यमदूत लेने आए। राजा ने यमदूतों से पूछा कि मैंने तो काफी दान पुण्य किया है कोई पाप नहीं किया फिर यमदूत क्यों आए हैं मतलब मैं नरक में जांऊगा। राजा रन्तिदेवी ने यमदूतों से एक वर्ष की आयु की माँग की। यमदूतों ने राजा की प्रार्थना स्वीकार कर ली और बताया कि एक बार तुम्हारे द्वार से एक ब्राह्मण भूखा वापस लौट गया था इस कारण नरक भोगना पडेगा। राजा ने ऋषि मुनियों से जाकर अपनी व्यथा बताई। ऋषियों ने कहा कि राजन् तुम कार्तिक मास की कष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करो और इस ब्राह्मणों को भोजन कराओ और अपना अपराध सबके सामने स्वीकार कर क्षमा याचना करो। ऐसा करने से तुम पाप से मुक्त हो जाओगे। राजा ने ब्राह्मणों के कहे अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को व्रत रखा व सब पापों से मुक्त हो विष्णु लोक चला गया। 

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मोदी रॉकेट, प्रियंका फुलझड़ी से सजा पटाखा बाजार

रोशनी के त्योहार दीपावली के मौके पर इस बार नेताओं ने अभिनेताओं को पूरी तरह से पछाड़ दिया है। राजनीति के अखाड़े में जोर आजमाइश करने वाले इन राजनेताओं की प्रतिद्वंद्विता दीपावली के इस खास मौके पर भी नजर आ रही है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का चेहरा बन चुके नरेंद्र मोदी के नाम पर बने रॉकेट की जबर्दस्त बिक्री हो रही है, वहीं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की बेटी प्रियंका वाड्रा के नाम पर बिक रही फुलझड़ियां भी लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।

सूबे के अलग-अलग शहरों के बाजारों में नेताओं के चित्र वाले पटाखों की भरमार है। पटाखों के खरीदार पटाखों की प्रति को नेताओं के व्यवहार से भी जोड़ कर देख रहे हैं। अगर बाजार में मोदी, सोनिया और लाल कृष्ण आडवाणी के नाम से रॉकेट बिक रहे हैं तो मुलायम सिंह यादव व राहुल गांधी के नाम वाले अनार की भी खूब खरीदारी हो रही है। दुकानदारों का कहना है कि भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार मोदी के चित्र वाले रॉकेट की मांग सबसे अधिक है। मोदी के बाद सोनिया रॉकेट व प्रियंका फुलझड़ी बिक रही हैं, अन्य नेताओं को लेकर जनता में विशेष रुचि नहीं है।

हर बार की अपेक्षा इस बार दीपावली के मौके पर पटाखों में बॉलीवुड के अभिनेता, अभिनेत्रियों की तुलना में राजनेताओं की तस्वीरें ज्यादा दिखाई दे रही हैं। पटाखा विक्रेताओं को राजनेताओं के सहारे माल बिकने की उम्मीद भी है। पटाखों के थोक विक्रेता साबिर अली कहते हैं कि चुनावी मौसम में पटाखा बाजार भी उसी रंग में रंगे हुए हैं। खरीदार अपने पसंद के नेता की तस्वीर वाले पटाखे ले रहे हैं, बच्चे, युवाओं व बुजुर्गो सभी की पसंद मोदी रॉकेट बना है।

हर बार की अपेक्षा इस बार पटाखा बाजार में रौनक कम है। पटाखों की दुकानें तरह-तरह के अनार, फुलझड़ी, बम, चकरी से सजी हैं, लेकिन उन्हें खरीदने के लिए हर बार की अपेक्षा भीड़ कम है। सिविल लाइंस के दुकानदार राजेश शर्मा के अनुसार, इस बार बच्चों की भीड़ काफी कम है, इससे उनकी बिक्री प्रभावित हुई है। चौक के दुकानदार अनवर कहते हैं कि तेज आवाज के पटाखों की बिक्री न के बराबर हुई है, बिना आवाज वाले अनार, फुलझड़ी, चकरी ही लोग ले जा रहे हैं। 

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...यहाँ एक महीने बाद मनाई जाती है दीपावली

आपको पता है पूरे देश में दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या को मनाई जाती है लेकिन हिमांचल प्रदेश में एक महीने बाद दीपावली मनाई जाती हैं| आपको बता दें कि हिमाचल प्रदेश के कुछ इलाकों में शुक्रवार से इस त्योहार को मनाया जाएगा। इस अवसर पर परम्परा के मुताबिक स्थानीय लोगों द्वारा सैकड़ों पशुओं की बलि चढ़ाई जाती है।

देर से दीवाली मनाने के विषय में राज्य मंदिर समिति के सदस्य सचिव प्रेम प्रसाद पंडित ने बताया कि स्थानीय लोगों की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान राम के विजयी होकर अयोध्या लौटने की खबर इन क्षेत्रों में देर से पहुंची थी। इस त्योहार को स्थानीय लोग बूढ़ी दीवाली कहते हैं। इसे प्रमुख रूप से कुल्लू जिले के अनी तथा र्निमड, सिरमौर जिले के शिल्लई और शिमला जिले के छोपाल में मनाया जाता है।

अमावस्या के दिन शुरू होने वाला यह त्योहार स्थानीय परम्परा और रीति-रिवाज के अनुसार तीन दिन से एक हफ्ते तक चलता है। लोग रात में आग के सामने महाभारत से सम्बंधित लोककथा को गाकर नृत्य करते हैं और ढोल बजाकर देवताओं का आह्वान करते हैं। उत्सव की परम्परा महाभारत के युद्ध से भी जुड़ी है। माना जाता है कि बूढ़ी दीवाली के दिन ही यह युद्ध शुरू हुआ था।

परम्परा के अनुसार गांव वाले अपने पशुओं को मंदिर ले जाते हैं जहां उनकी अमावस्या पर बलि चढ़ाई जाती है। पशुओं के सिर देवताओं को चढ़ा दिए जाते हैं और मांस पकाकर खाया जाता है। पंडित ने कहा कि कुछ स्थानीय रीति-रिवाज हैं जिन पर सरकार को प्रतिबंध नहीं लगाना चाहिए।