मुल्तानी मिट्टी से ऐसे निखारे चेहरे की रंगत

आमतौर पर लोगों को मुल्तानी मिट्टी का पैक लगाते हुए जरुर देखा होगा लेकिन क्या आप जानते हैं कि मुल्तानी मिट्टी में ऐसे क्या फायदे हैं ज‌िसकी वजह से इसका इस्तेमाल इतना अधिक प्रचलित है। मुल्तानी मिट्टी के बारे में कहा जाता है कि मुल्तानी मिट्टी सौन्दर्य का खजाना है। ये नेचुरल कंडीशनर भी है और ब्लीच भी। ये सौन्दर्य निखारने का सबसे सस्ता और आयुर्वेदिक नुस्खा है आइए आज हम आपको बताते हैं मुल्तानी मिट्टी के कुछ ऐसे प्रयोग जो आपकी खूबसूरती को ओर ज्यादा निखार देंगे।

यदि चेहरे पर मुल्तानी मिट्टी का लेप लगाया जाये तो चेहरे की चमक और दमक दोनों लम्बे समय तक कायम रखी जा सकती है। मिट्टी के लेप को चेहरे पर लगाने से इंफेक्शन और स्किन संबंधी बीमारियों के लिए नुकसानदेह बैक्टीरिया से भी बचा जा सकता है। त्वचा रोग विशेषज्ञ तो यहां तक कहते है कि जल्द ही मिट्टी की मेडीसन के रप में इस्तेमाल किया जा सकेगा। ब्यूटी पार्लरों पर कार्यरत विशेषज्ञों की मानें तो मिट्टी में मौजूद मिनरल्स स्किन को एण्टी माइक्रोबियल्स मुहैया कराते है।

मिट्टी का लेप बनाकर उसमें गुलाब जल मिलाकर चेहरे पर लगाने से ठंडक तो मिलती है। साथ ही चेहरे पर मौजूद झाइयां और पिम्पल्स भी दूर होते है। लेप को लगाने के बाद ठण्डे पानी से धो लेने पर चेहरे के सभी रोम छिद्रे खुल जाते है जिससे चेहरे को ऑक्सीजन सोखने की क्षमता बढ़ जाती है। इसके अलावा आधा चम्मच संतरे का रस लेकर उसमें 4-5 बूंद नींबू का रस, आधा चम्मच मुल्तानी मिट्टी, आधा चम्मच चंदन पाउडर और कुछ बूंदें गुलाब जल की मिलाकर कर थोड़ी देर के लिए फ्रिज में रख दें। इसे चेहरे पर लगा कर 15-20 मिनट तक रखें। इसके बाद पानी से इसे धो दें। यह तैलीय त्वचा का सबसे अच्छा उपाय है।

अगर आपकी त्वचा ड्राई है तो काजू को रात भर दूध में भिगो दें और सुबह बारीक पीसकर इसमें मुल्तानी मिट्टी और शहद की कुछ बूंदें मिलाकर स्क्रब करें। मुंहासों की समस्या से परेशान लोगों के लिए तो मुल्तानी मिट्टी सबसे कारगर इलाज है, क्योंकि मुल्तानी मिट्टी चेहरे का तेल सोख लेती है, जिससे मुहांसे सूख जाते हैं। तैलीय त्वचा के लिए मुल्तानी मिट्टी में दही और पुदीने की पत्तियों का पाउडर मिला कर उसे आधे घंटे तक रखा रहने दें, फिर अच्छे से मिलाकर चेहरे और गर्दन पर लगाएं। सूखने पर हल्के गर्म पानी से धो दें। यह तैलीय त्वचा को चिकनाई रहित रखने का कारगर नुस्खा है।

मुल्तानी मिट्टी को एक कटोरे पानी में भिगो दें। दो घन्टे बाद जब मुल्तानी मिट्टी पूरी तरह घुल जाए तो इस घोल को सूखे बालों में लगा कर हल्के हाथ से बालों को रगड़े। पाँच मिनट तक ऐसा ही करें। अगर सर्दियां हैं तो गुनगुने पानी में और गर्मियों में ठन्डे पानी से सिर को धो लें। बाल मुलायम और चमकदार हो जाएंगे।

अगर आपको मुंहासों की समस्या है तो मुल्तानी मिट्टी में टमाटर और पुदीने का रस मिलाकर पैक तैयार करके नियमित रूप से चेहरे पर लगाएं। इससे नए मुंहासे नहीं निकलेंगे और पुराने मुंहासों के निशान भी कम हो जाएंगे। साबुन के इस्तेमाल से अगर आपकी त्वचा रुखी हो चुकी है तो मुल्तानी मिट्टी और चंदन पाउडर को गुलाब-जल में मिलाकर पेस्ट बना लें और नहाने से तकरीबन आधा घंटा पहले इसे पूरे शरीर पर लगा लें। कुछ ही दिनों में त्वचा सोने सी खिल उठेगी।

मुल्तानी मिट्टी में आलू का रस, नींबू का रस और शहद मिलाकर लगाने से पिगमेंटेशन की समस्या कम हो जाती है। अगर धूप के कारण आपकी त्वचा टैन हो गई है तो मुल्तानी मिट्टी में नरियल-पानी और चीनी मिलाकर पेस्ट बनाकर लगाएं और फिर साफ पानी से धो लें। टैनिंग कम हो जाएगी। मुल्तानी मिट्टी को अगर छाछ में भिगोकर रखा जाए और फिर इससे सर धो लिया जाए तो रुसी की समस्या में फायदा पहुंचता है और बाल झड़ने भी कम होते हैं।

यदि बालों में जूएं और लीख हैं तो छाछ में भीगी हुई मुल्तानी मिट्टी में ही कच्चे प्याज का रस मिलाकर पैक बना लें। इस पेक को बालों में लगाकर 2-3 घंटों के लिए छोड़ दें। फिर साफ पानी से धो लें। कुछ दिन ऐसा करने से जूएं और लीख की समस्या कम हो जाएगी है। इन छोटे-छोटे नुस्खों को आजमाएं, इनसे आपका सौंदर्य और भी दमक उठेगा।

गर्मी में पैरों के तलवों में मुल्तानी मिट्टी का लेप करने से ठंडक मिलती है व तलवों की जलन शांत होती है। मुल्तानी मिट्टी में कुछ बूंदें सिरके की डाल कर आंखों के नीचे सावधानीपूर्वक लगाएं। काले घेरे धीरे-धीरे समाप्त हो जाएंगे। तैलीय त्वचा के लिए मुल्तानी मिट्टी में खीरे का रस, दही व चुटकी भर हल्दी मिक्स करके चेहरे पर पैक की तरह लगाएं। सूखने पर धो दें। लाभ मिलेगा। मुल्तानी मिट्टी में खीरे का रस व आलू का गूदा मिला कर आंखों के नीचे रखें। 10-15 मिनट बाद धो दें। काले घेरों से निजात मिलेगी। 

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मलमास आज से, जाने क्यों कहा जाता है इसे पुरुषोत्तम मास

हिन्दू वर्ष में 12 माह होते हैं, लेकिन यह वर्ष करीब 13 माह का होगा। 12 चंद्र मास लगभग 354 दिन का होता है, जिसमें सूर्य की 12 संक्रांतियां होती हैं। जिस चन्द्र मास में सूर्य की संक्रांति नहीं होती है उसे मलमास या पुरुषोत्तम मास कहा जाता है| इस बार मलमास 16 दिसंबर दिन सोमवार से शुरू होकर 13 जनवरी की मध्यरात्रि तक रहेगा| 

आपको बता दें कि मलमास के प्रारम्भ होते ही शुभ मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाएगी| सूर्य और गुरु दोनों ग्रहों का मिलान होने के कारण ही मलमास होता है| इस मलमास में दान पुण्य और सेवा करने का बहुत महत्व है, ऐसा करने से सालभर तक मनुष्य रोग मुक्त होने के साथ-साथ गृहों की शांति भी होती है| किसी भी विवाह संस्कार के लिए सूर्य गृह और गुरु (वृहस्पति) का होना बहुत जरुरी होता है, इसीलिए मल मास में विवाह कार्य नहीं होते है|

मलमास देव आराधना को सबसे उत्तम समय माना जाता है। इसमें भगवान शिव व विष्णु की स्तुति करने से साधक को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। धर्म ग्रंथों में ऐसे कई श्लोक भी वर्णित है जिनका जप यदि पुरुषोत्तम मास में किया जाए तो अतुल्य पुण्य की प्राप्ति होती है। अगर अतुल्य पुण्य की प्राप्ति चाहते हैं तो श्रीकौण्डिन्य ऋषि के इस मंत्र का जप करें- 

मंत्र-

गोवद्र्धनधरं वन्दे गोपालं गोपरूपिणम्।
गोकुलोत्सवमीशानं गोविन्दं गोपिकाप्रियम्।।

इस मंत्र का जप करते समय पीत वस्त्र (पीला कपड़ा) धारण करें| धर्मग्रंथों में लिखा है कि इस मंत्र का एक महीने तक भक्तिपूर्वक बार-बार जप करने से अतुल्य पुण्य की प्राप्ति होती है| 

जाने मलमास को क्यों कहते हैं पुरुषोत्तम मास -

एक पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीनकाल में जब अधिक मास उत्पन्न हुआ, तब स्वामी रहित होने के कारण उसे मलमास कहा गया। सर्वत्र निंदा होने पर वह बैकुंठ में भगवान विष्णु के पास पहुंचा और अपनी व्यथा सुनाई। मलमास की पीड़ा सुनकर भगवान विष्णु उसे सर्वेश्वर श्रीकृष्ण के पास ले गए। मलमास का दुख जानने के बाद भगवान श्रीकृष्ण उसे वरदान देते हुए बोले, मैं अब मलमास का स्वामी हो गया हूं, इसलिए आज से यह पुरुषोत्तम के नाम से जाना जाएगा।

पुरुषोत्तम मास में सारे काम भगवान को प्रसन्न करने के लिए निष्काम भाव से ही किए जाते हैं। इससे प्राणी में पवित्रता का संचार होता है। इस मास में किसी कामना की पूर्ति के लिए अनुष्ठान का आयोजन या विवाह, मुंडन, यज्ञोपवीत, नींव-पूजन, गृह-प्रवेश आदि सांसारिक कार्य सर्वथा निषिद्ध हैं। अधिक मास में भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण की उपासना, जप, व्रत, दान आदि करना चाहिए। संतों का कहना है कि अधिक मास में की गई साधना हमें ईश्वर के निकट ले जाती है।

जो काम काम्य कर्म अधिकमास से पहले ही आरंभ किए जा चुके हैं उन्हें इस माह में किया जा सकता है| शुद्धमास में मृत व्यक्ति का प्रथम वार्षिक श्राद्ध किया जा सकता है| यदि कोई व्यक्ति अत्यधिक बीमार है और रोग की निवृति के लिए रुद्र जपादि अनुष्ठान किया जा सकता है| 

कपिल षष्ठी जैसे दुर्लभ योगों का प्रयोग, संतान जन्म के कृत्य, पितृ श्राद्ध, गर्भाधान, पुंसवन संस्कार तथा सीमांत संस्कार आदि किए जा सकते हैं| ऎसे संस्कार भी किए जा सकते हैं जो एक नियत अवधि में समाप्त हो रहे हों| इस मास में पराया अन्न और तामसिक भोजन का त्याग करना चाहिए|

जो व्यक्ति मलमास में पूरे माह व्रत का पालन करते हैं उन्हें जमीन पर ही सोना चाहिए| व्रत का पालन करने वाले व्यक्ति को केवल एक समय सादा भोजन करना चाहिए| इस मास में व्रत रखते हुए भगवान पुरुषोत्तम अर्थात विष्णु का श्रद्धापूर्वक पूजन करना चाहिए तथा मंत्र जाप करना चाहिए| 

अधिकमास की समाप्ति पर स्नान, दान तथा जप आदि का अत्यधिक महत्व होता है| इस मास की समाप्ति पर व्रत का उद्यापन करके ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और अपनी श्रद्धानुसार दानादि करना चाहिए| इसके अतिरिक्त एक महत्वपूर्ण बात यह है कि मलमास माहात्म्य की कथा का पाठ श्रद्धापूर्वक प्रात: एक सुनिश्चित समय पर करना चाहिए|
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मन में था स्टार बनने का ख्वाब पर एक ही रात में टूट गया

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली खबर सामने आयी है| यहाँ आर्थिक तंगी से जूझ रही एक युवती समाचार पत्र में हिरोइन बनने का विज्ञापन देखकर एक युवक से मिली जहाँ उस युवक ने उसके साथ दुष्कर्म किया| फिलहाल पुलिस युवती की शिकायत पर आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज कर जाँच में जुट गई है| 

प्राप्त जानकारी के अनुसार खीरी की रहने वाली मोनिका (परिवर्तित नाम) चार बहनों में सबसे छोटी है, पिता की मौत के बाद मां ने बड़ी बहनों की शादी कर दी। हाईस्कूल करने के बाद करीब 20 वर्षीय मोनिका रोजगार की तलाश में जुटी थी। इसी दौरान उसने एक समाचार पत्र में हिरोइन बनने का विज्ञापन देखा तो उसने अपने मोहल्ले के कुछ सामाजिक लोगों की मदद से उस विज्ञापन पर छापे नंबर पर संपर्क किया| सपर्क करने वाले युवक ने खुद को वीर सिंह निवासी मथुरा बताते हुए 14 दिसंबर की दोपहर शाहजहांपुर स्टेशन पर मिलने को कहा।

तो मोनिका बिना समझे बुझे उस युवक से मिलने शाहजहांपुर आ गई और उसके साथ ट्रेन में सवार हो गई। शनिवार देर रात युवक ने उसे यह कहकर अलीगढ़ उतार लिया कि यहां रविवार को साक्षात्कार के बाद उसे मुंबई ले जाया जाएगा। उसे सराय दुबे स्थित एक धर्मशाला में रोका। जहाँ युवक ने उसके साथ बलात्कार किया और उसके बाद चुपचाप वहाँ से फरार हो गया| 

रविवार दोपहर युवती ने पड़ोसियों की मदद से सम्बंधित थाने में आरोपी के खिलाफ लिखित शिकायत देकर मुकदमा दर्ज कराया| पुलिस ने बताया कि इस मामले में मुकदमा दर्ज कर लिया गया है, आरोपी युवक की तलाश की जा रही है। चिकित्सकीय जांच में रेप की पुष्टि हुई है।

लखनऊ में मुगलकालीन कतकी मेले का आकर्षण बरकरार

शॉपिंग मॉल संस्कृति के पैर पसारने के बाद भी नवाबों की नगरी लखनऊ में वर्षो से लग रहे कतकी मेले का आकर्षण कम नहीं हुआ है। आज भी समाज के हर वर्ग के लोगों में इस मुगलकालीन मेले को लेकर उत्साह बना रहता है। 

राजधानी में डालीगंज पुल के समीप नबीउल्लाह रोड पर हर साल नवंबर और दिसंबर माह में आयोजित होने वाले इस ऐतिहासिक मेले में घरेलू उपयोग की लगभग हर सामग्री किफायती दामों में मिल जाती है।

मेला समिति के सदस्य शिव गोपाल ने बताया कि इस मेले में क्राकरी से लेकर लगभग सभी तरह की घरेलू सामग्री सस्ते दामों पर मिल जाती है इसलिए परिवर्तन के इस दौर में भी इस ऐतिसाहिक मेले को लेकर लोगों में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है।

मेले में लोग परचून, साज सज्जा, क्राकरी, किचन के बर्तन, पूजा का सामान, फर्नीचर के उत्पादों की खरीददारी करते हैं। लेकिन कतकी मेले में सर्वाधिक आकर्षण मिट्टी के बर्तनों और क्राकरी को लेकर रहता है, जिसे खरीदने के लिए आम से लेकर खास तक सबका जमावड़ा रहता है।

कतकी मेले में काले और लाल रंग की मिट्टी के घड़ों के साथ गिलास, कटोरी, लोटा और थाली सहित नक्कासी वाले विविध आकारों के बर्तन मिलते हैं।

मेले में पिछले बीस वर्षो से मिट्टी के बर्तनों की दुकान लगा रहे राजकुमार कहते हैं कि मिट्टी की सोंधी महक और डिजाइन लोगों को इन बर्तनों की तरफ बहुत आकर्षित करती है। मेला लगने से एक महीने पहले बर्तनों के निर्माण का काम शुरू कर दिया जाता है। हर वर्ग के लोग इन बर्तनों को खरीदते हैं।

मशहूर इतिहासकार योगेश प्रवीण कहते हैं कि मुगलकाल से इस मेले का आयोजन होता आ रहा है। कभी सिलबट्टे और मिट्टी के बर्तनों की खनक सुनाई पड़ती थी तो पता लग जाता था कि कतकी मेला आने वाला है।

एक महीने से ज्यादा समय तक चलने वाले इस मेले को देखने और खरीदारी करने के लिए लखनऊ के साथ-साथ आस-पास के रायबरेली, हरदोई, सीतापुर, बाराबंकी और लखीमपुर खीरी से भी लोग आते हैं।

बाराबंकी के टिकैतनगर कस्बे से मेला घूमने आए रामफल कहते हैं कि समय बदल गया है, लेकिन लोगों ने इस मेले में आना नहीं छोड़ा। मेले में हालांकि पहले की तरह अब लोगों की खचाखच भीड़ नहीं रहती लेकिन अभी भी मेले को लेकर लोगों में काफी उत्साह दिखता है।

17 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा से शुरू हुआ यह ऐतिहासिक मेला आगामी 22 दिसंबर तक चलेगा। चूंकि मेला अब अपने समापन की तरफ बढ़ रहा है ऐसे में लोगों की भीड़ पहले से ज्यादा दिखने लगी है।
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एक थी निर्भया

दिल्ली में पिछले साल 16 दिसंबर को एक मेडिकल स्टूडेंट के साथ चलती बस में बर्बर सामूहिक दुष्कर्म की घटना का एकमात्र गवाह पीड़िता का दोस्त है। एक वर्ष पहले हुई इस जघन्य वारदात ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था और पीड़िता के दोस्त अरविंद पांडेय का कहना है कि वह अभी भी सदमे में हैं और अपराध बोध से गुजर रहे हैं। 

29 वर्षीय पांडेय अपनी 23 वर्षीय फिजियोथेरेपिस्ट दोस्त के साथ उस दुर्भाग्यपूर्ण रात को दक्षिणी दिल्ली के मुनिरका स्थित बस स्टाप से बस पर चढ़े थे। उन्होंने कहा कि उनको केवल एक बात से संतोष है कि दोषियों में से चार को मृत्युदंड दिया गया है। लेकिन पांडेय की मांग है कि अरोपियों में से नाबालिग को भी कठोर दंड दिया जाए। 

पूर्वी उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में स्थित अपने घर से पांडेय ने फोन पर कहा, "मैं अक्सर खुद से पूछता हूं कि क्या इस पूरी घटना के लिए मैं जिम्मेदार हूं? मैं मॉल क्यों गया? मैं बस में क्यों चढ़ा? मैं दो हफ्ते तक ठीक से बोल भी नहीं पाया।" पांडेय सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। पांडेय उस रात के हमले में गंभीर रूप से घायल हुए थे और बाद में जीवित बच गए थे। उनकी दोस्त की 13 दिनों बाद मौत हो गई। 

बस में दुष्किर्मियों के बीच गुजरे भयावह 84 मिनटों को याद करते हुए पांडेय ने कहा कि जब उन्होंने 'लाइफ ऑफ पाई' फिल्म देखने का फैसला किया तो उनको पता नहीं था कि इसके कारण ऐसी बर्बर घटना घटेगी जो एक वर्ष बाद भी उनका पीछा करेगी। 

उधर, पीड़िता के परिजनों को अभी भी उस दिन का इंतजार है, जब दुष्कर्मियों को फांसी पर लटकाया जाएगा। चलती बस में दरिंदगी की शिकार होने के बाद 13 दिन संघर्ष करते हुए मौत से हारने वाली 23 साल की फीजियोथेरेपी प्रशिक्षु के पिता ने कहा, "हमारे लिए बस समय ही गुजरा है। लेकिन उसके (पीड़िता) घावों की तरह ही हमारे घाव आज भी हरे हैं। मुझे नहीं लगता कि हम कभी इससे उबर पाएंगे।" उज्जवल भविष्य' की ओर कदम बढ़ाने वाली अपनी 'तेजस्विनी बेटी' के अंतिम दिनों को याद करते हुए उनकी आंखों से आंसू टपक पड़े। पीड़िता ने देहरादून से फीजियोथेरेपी का अध्ययन किया था और दिल्ली के एक निजी अस्पताल में बतौर प्रशिक्षु कार्यरत थी।

पीड़िता के पिता ने कहा, "वह जब भी देहरादून से आती थी, दरवाजे के पीछे छिपकर मुझे चौंका देती थी।" इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे पर कुली का काम करने वाले 54 वर्षीय शोकाकुल पिता ने आगे कहा, "उसकी हर चीज मेरे दिमाग में हमेशा घूमती रहती है। मेरे लिए वह अभी भी जीवित है। मेरे लिए समय जैसे ठहर-सा गया है। लगता है, जैसे वह अभी भी दरवाजे के पीछे छिपी हुई है और अचानक कभी भी मेरे सामने आ जाएगी।"

पीड़िता के पिता की अब एक ही इच्छा है, दरिंदों को जल्द से जल्द फांसी। पश्चिमी दिल्ली के द्वारका में अपने दो कमरों वाले घर में बैठे पीड़िता के पिता ने आईएएनएस को बताया, "अपराधियों को फांसी मिलने के बाद ही मुझे संतुष्टि मिलेगी। इससे मेरे परिवार को कुछ सांत्वना मिलेगी।" वह चार महीने पहले ही सरकार द्वारा आवंटित इस घर में आए हैं। पिछले वर्ष राष्ट्रीय राजधानी में एक चलती बस में पांच व्यक्तियों एवं एक किशोर की हवस का शिकार बनी पीड़िता 13 दिनों तक जीवन के लिए जूझती रही।

दिल्ली की एक अदालत द्वारा चार अपराधियों को सुनाई गई मृत्युदंड की सजा से पीड़िता के परिजन संतुष्ट हैं। एक अपराधी (बस के चालक) ने न्यायिक हिरासत के दौरान तिहाड़ जेल में खुदकुशी कर ली थी। दूसरी ओर, पीड़िता के परिजन अपराधी किशोर को मिली सजा से खुश नहीं हैं। किशोर आरोपी को किशोर न्याय बोर्ड ने तीन वर्ष सुधार गृह में रहने की सजा सुनाई है। चार अपराधियों को मिली मृत्युदंड की सजा के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय में अभी सुनवाई चल रही है।

पीड़िता के पिता ने बताया, "हमने सर्वोच्च न्यायालय से किशोर न्याय बोर्ड के फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है।" पिता ने थोड़ा गुस्से से कहा, "किसी दुष्कर्मी को सिर्फ इसलिए कैसे छोड़ा जा सकता है कि वह किशोर है। वह उस बर्बरता में शामिल था। उसे भी फांसी दी जानी चाहिए, ताकि दूसरों को सबक मिले।"

बगल में ही बैठी पीड़िता की मां सब चुपचाप सुनती रहीं और लगातार आंसू बहाती रहीं। उन्होंने बताया कि उनके मन में बेटी की अंतिम समय की छवि जैसे जम सी गई है। भाव-विह्वल होते हुए उन्होंने बताया, "उस शाम जब वह घर से जा रही थी, मैं कभी भूल नहीं सकती। उसने हाथ हिलाकर मुझसे विदा ली और उसके अंतिम वाक्य थे, "बाय मॉम, मैं कुछ ही घंटों में आ जाऊंगी"।" "पर वह घर नहीं लौटी, कभी लौटेगी भी नहीं।" पीड़िता के परिजन शुक्रवार, 16 दिसंबर को पीड़िता की बरसी पर दिल्ली के मध्य में 'कांस्टिट्यूशन क्लब' में पीड़िता की याद में एक श्रद्धांजलि समारोह आयोजित करने की योजना बना रहे हैं।

पिता ने बताया, "हमारा समर्थन करने वाले सभी लोगों को हम धन्यवाद देना चाहते हैं।" अपनी बेटी के अंतिम क्षणों को याद करते हुए उसके पिता ने कहा कि उनके मन में एक कसक रह गई कि वह अपनी बेटी की अंतिम इच्छा पूरी नहीं कर सके। उन्होंने कहा, "वह पानी पीना चाहती थी, पर चिकित्सकों ने मुझे उसे पानी देने से मना किया था। वह मुझसे पानी पीने के लिए कहती रही, पर मैं नहीं दे सका।" इतना कहते-कहते उनका गला रुं ध गया।

विधवा ने किया देह व्यापार से इंकार तो आरोपियों ने काट दिए सिर के बाल

उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में एक सनसनीखेज मामला सामने आया है| यहां देह व्यापार से इंकार करने पर कुछ लोगों ने एक विधवा महिला को मारापीटा और उसके सिर के बाल काट दिए। वहीँ, महिला थाना और कोतवाली पुलिस ने पीड़िता की गुहार पर आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय लीपा पोती में जुटी हुई है|

एक पुलिसकर्मी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि शहर कोतवाली क्षेत्र में एक 28 वर्षीय विधवा महिला अपनी दो साल की बेटी के साथ एक किराए के मकान में रहती थी| गाँव की रहने वाली यह महिला अपनी बेटी की अच्छी परवरिस के लिए शहर चली आयी थी| लेकिन महिला को क्या पता यहां उसे इन भेड़ियों से मुलाकात हो जायेगी| यहां कुछ लोग महिला को देह व्यापार के दल दल में धकेलना चाह रहे थे लेकिन महिला हमेशा यह सब करने से नकारती रही|

मंगलवार की शाम को घर के बाहर नल पर पानी भरने गई थी इसी दौरान महिला के साथ उन लोगों ने मारपीट की और इसके सिर के बाल काट दिए| पीड़ित महिला ने जब घटना की जानकारी महिला थाना और कोतवाली पुलिस को दी तो पुलिस पीड़िता की गुहार पर आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय लीपा पोती में जुटी हुई है|

वहीँ, इस घटना को लेकर कोतवाली प्रभारी ने कहा है कि उन्हें ऐसी घटना का पता ही नहीं हैं। पीड़िता ने जिला अस्पताल में अपना चिकित्सीय परीक्षण कराया है। एसपी ने कहा कि महिला से लिखित शिकायत मिलने पर जांच कर कार्रवाई की जाएगी। 

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दिल्ली गैंगरेप: 'जख्म अब भी हरे'

उस त्रासद घटना का एक वर्ष पूरा होने को है। दोषी दरिंदों को सजा भी सुना दी गई है। मगर पीड़िता के माता-पिता के जख्म अभी भी हरे हैं। परिजन ही नहीं, देश का जन-जन उस क्रूरतापूर्ण घटना को याद कर सिहर उठता है। देश की राष्ट्रीय राजधानी में पिछले वर्ष 16 दिसंबर को बर्बरतम सामूहिक दुष्कर्म की शिकार पीड़िता के परिजनों को अभी भी उस दिन का इंतजार है, जब दुष्कर्मियों को फांसी पर लटकाया जाएगा।

चलती बस में दरिंदगी की शिकार होने के बाद 13 दिन संघर्ष करते हुए मौत से हारने वाली 23 साल की फीजियोथेरेपी प्रशिक्षु के पिता ने कहा, "हमारे लिए बस समय ही गुजरा है। लेकिन उसके (पीड़िता) घावों की तरह ही हमारे घाव आज भी हरे हैं। मुझे नहीं लगता कि हम कभी इससे उबर पाएंगे।" उज्जवल भविष्य' की ओर कदम बढ़ाने वाली अपनी 'तेजस्विनी बेटी' के अंतिम दिनों को याद करते हुए उनकी आंखों से आंसू टपक पड़े। पीड़िता ने देहरादून से फीजियोथेरेपी का अध्ययन किया था और दिल्ली के एक निजी अस्पताल में बतौर प्रशिक्षु कार्यरत थी।

पीड़िता के पिता ने कहा, "वह जब भी देहरादून से आती थी, दरवाजे के पीछे छिपकर मुझे चौंका देती थी।" इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे पर कुली का काम करने वाले 54 वर्षीय शोकाकुल पिता ने आगे कहा, "उसकी हर चीज मेरे दिमाग में हमेशा घूमती रहती है। मेरे लिए वह अभी भी जीवित है। मेरे लिए समय जैसे ठहर-सा गया है। लगता है, जैसे वह अभी भी दरवाजे के पीछे छिपी हुई है और अचानक कभी भी मेरे सामने आ जाएगी।"

पीड़िता के पिता की अब एक ही इच्छा है, दरिंदों को जल्द से जल्द फांसी। पश्चिमी दिल्ली के द्वारका में अपने दो कमरों वाले घर में बैठे पीड़िता के पिता ने आईएएनएस को बताया, "अपराधियों को फांसी मिलने के बाद ही मुझे संतुष्टि मिलेगी। इससे मेरे परिवार को कुछ सांत्वना मिलेगी।" वह चार महीने पहले ही सरकार द्वारा आवंटित इस घर में आए हैं। पिछले वर्ष राष्ट्रीय राजधानी में एक चलती बस में पांच व्यक्तियों एवं एक किशोर की हवस का शिकार बनी पीड़िता 13 दिनों तक जीवन के लिए जूझती रही।

दिल्ली की एक अदालत द्वारा चार अपराधियों को सुनाई गई मृत्युदंड की सजा से पीड़िता के परिजन संतुष्ट हैं। एक अपराधी (बस के चालक) ने न्यायिक हिरासत के दौरान तिहाड़ जेल में खुदकुशी कर ली थी। दूसरी ओर, पीड़िता के परिजन अपराधी किशोर को मिली सजा से खुश नहीं हैं। किशोर आरोपी को किशोर न्याय बोर्ड ने तीन वर्ष सुधार गृह में रहने की सजा सुनाई है। चार अपराधियों को मिली मृत्युदंड की सजा के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय में अभी सुनवाई चल रही है।

पीड़िता के पिता ने बताया, "हमने सर्वोच्च न्यायालय से किशोर न्याय बोर्ड के फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है।" पिता ने थोड़ा गुस्से से कहा, "किसी दुष्कर्मी को सिर्फ इसलिए कैसे छोड़ा जा सकता है कि वह किशोर है। वह उस बर्बरता में शामिल था। उसे भी फांसी दी जानी चाहिए, ताकि दूसरों को सबक मिले।"

बगल में ही बैठी पीड़िता की मां सब चुपचाप सुनती रहीं और लगातार आंसू बहाती रहीं। उन्होंने बताया कि उनके मन में बेटी की अंतिम समय की छवि जैसे जम सी गई है। भाव-विह्वल होते हुए उन्होंने बताया, "उस शाम जब वह घर से जा रही थी, मैं कभी भूल नहीं सकती। उसने हाथ हिलाकर मुझसे विदा ली और उसके अंतिम वाक्य थे, "बाय मॉम, मैं कुछ ही घंटों में आ जाऊंगी"।" "पर वह घर नहीं लौटी, कभी लौटेगी भी नहीं।" पीड़िता के परिजन शुक्रवार, 16 दिसंबर को पीड़िता की बरसी पर दिल्ली के मध्य में 'कांस्टिट्यूशन क्लब' में पीड़िता की याद में एक श्रद्धांजलि समारोह आयोजित करने की योजना बना रहे हैं।

पिता ने बताया, "हमारा समर्थन करने वाले सभी लोगों को हम धन्यवाद देना चाहते हैं।" अपनी बेटी के अंतिम क्षणों को याद करते हुए उसके पिता ने कहा कि उनके मन में एक कसक रह गई कि वह अपनी बेटी की अंतिम इच्छा पूरी नहीं कर सके। उन्होंने कहा, "वह पानी पीना चाहती थी, पर चिकित्सकों ने मुझे उसे पानी देने से मना किया था। वह मुझसे पानी पीने के लिए कहती रही, पर मैं नहीं दे सका।" इतना कहते-कहते उनका गला रुं ध गया। 

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संसद हमले की 12 वीं बरसी पर शहीदों को नमन

13 दिसम्बर मंगलवार को संसद पर हमले के 12 साल पूरे हो गए हैं। देश की राजधानी दिल्ली की सबसे सुरक्षित इमारत यानी देश की संसद पर हमले की खबर ने सबको हैरान ही नहीं किया, हिला कर रख दिया| 13 दिसंबर 2001 की सुबह करीब पौने बारह बजे अचानक संसद में कुछ आंतकियों ने गोलीबारी शुरू कर दी थी| इस हमले में हैंड ग्रेनेड और एके-47 से लैस पांच आतंकी शामिल थे|

हालाँकि जवाबी कार्रवाई में पांचों आतंकी मारे गये, लेकिन इस हमले में दिल्ली पुलिस के जवान और संसद के कुछ कर्मचारियों समेत कुल 9 लोगों को भी अपनी जान गवानी पड़ी| जिस समय यह हमला हुआ था संसद में कई वरिष्ठ मंत्रियों समेत तकरीबन दो सौ संसद सदस्य मौजूद थे| इसे एक तरह से ससंद पर नहीं, देश पर हमला कहा जा सकता है|

आपको बता दें कि इस हमले की साज़िश रचने वाले अफजल गुरु सहित चार आतंकवादियों को पकड़ा गया था। हमले के एक साल बाद अफजल गुरु को इस मामले में दोषी पाया गया और उसे फांसी दे दी गई|
13 दिसंबर को संसद हमले की बरसी पर पूरा भारत उन शहीदों को नमन कर रहा है, जिन्होंने अपने देश की रक्षा के लिए अपनी जान की कुर्बानी दे दी।

देश में अब से लेकर वर्ष 1993 तक हुए बड़े आतंकी हमलों पर एक नज़र-

13 जुलाई 2011: मुंबई में एक साथ तीन जगहों पर सीरियल बम ब्लास्ट। जिसमें 20 लोगों की मौत जबकि 100 लोग घायल हुए थे।

30 अक्टूबर 2008: असम में एक साथ 13 बम धमाके जिसमें 61 लोग मरे 300 लोग घायल हुए थे|

27 सितंबर 2008: दिल्ली के फूल बाजार में धमाका, एक की मौत।

13 सितंबर 2008: दिल्ली के शॉपिंग स्थलों पर 5 बम धमाके, 21 लोगों की मौत 100 से अधिक घायल। इस हमले की जिम्मेदारी इंडियन मुजाहिद्दीन ने ली|

26 जुलाई 2008: गुजरात की राजधानी अहमदाबाद में सीरियल बम ब्लास्ट। 45 लोगों की मौत जबकि 150 लोग घायल।

25 जुलाई 2008: बैंगलोर में एक साथ 7 धमाके किस्में एक की मौत जबकि 150 से अधिक लोग घायल।

13 मई 2008: जयपुर में 6 बम धमाके जिसमें 63 लोगों की मौत जबकि 150 लोग घायल।

26 मई 2007: गुवाहाटी में हुए धमाके में 6 लोगों की मौत जबकि 30 लोग घायल।

18 मई 2007: हैदराबाद की मक्का मस्जिद में शुक्रवार की नमाज के दौरान बम विस्फोट। 13 लोगों की मौत।

8 सितंबर 2006 को महाराष्ट्र के मालेगांव की एक मस्जिद के पास बम विस्फोट, 37 लोगों की मौत व 125 घायल। 

11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेन में 7 धमाके। इसमें 200 लोगों की मौत हुई थी।

7 मार्च 2006: वाराणसी में हुए आतंकी हमले में 28 लोगों की मौत, 101 लोग घायल।

29 अक्टूबर 2005: दक्षिण दिल्ली के बाजारों में जबरदस्त धमाका। 59 लोगों की मौत जबकि 200 घायल। 

5 जुलाई 2005: अयोध्या में राम जन्मभूमि पर आतंकी हमला।

15 अगस्त 2004: असम में ब्लास्ट। 16 लोगों की मौत जिसमें ज्यादातर स्कूली बच्चे शामिल थे।

25 अगस्त 2003: मुंबई में दोहरे कार धमाके में 52 लोगों की मौत जबकि 150 लोग घायल।

14 मई 2002: जम्मू के पास आर्मी कैंट पर आतंकी हमला। 30 लोगों की मौत।

24 सितंबर 2002: गुजरात के अक्षरधाम मंदिर पर हमला। 31 लोगों की मौत, 79 घायल।

13 दिसंबर 2001: संसद पर आतंकी हमले में 12 लोगों की मौत जबकि 18 लोग घायल।

1 अक्टूबर 2001: जम्मू-कश्मीर एसेंबली परिसर में आतंकी हमला। 35 लोगों की मौत। 

14 फरवरी 1998: कोयंबटूर में 11 जगहों पर बम ब्लास्ट, 46 लोगों की मौत जबकि 200 घायल।

12 मार्च 1993: मुंबई में एक साथ 13 सीरियल बम ब्लास्ट, 257 लोगों की मौत जबकि 700 लोग घायल हुए। 

डौंडियाखेड़ा के बाद अब आदमपुर में 2500 टन सोना दबा होने का दावा कर रहे हैं शोभन सरकार!

उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के डौंडियाखेड़ा स्थित राजा रामबख्श सिंह के किले में हजारो टन खजाना दबा होने का दावा करने वाले सोभन सरकार ने अब आदमपुर के गंगा के किनारे 2500 टन सोना दबा होने का दावा किया है| शोभन सरकार ने माननीय उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर फतेहपुर के आदमपुर में गंगा किनारे 2500 टन सोना दबा होने का दावा करते हुए सर्वे कराने की अनुमति मांगी है। उनका कहना है कि इसके लिए खुदाई और सुरक्षा में होने वाले खर्च को वे वहन करने को तैयार हैं।

प्राप्त जानकारी के अनुसार, संत शोभन सरकार की ओर से यह याचिका उनके चेला ओमबाबा ने दाखिल की है। याचिका बुधवार को न्यायमूर्ति वीके शुक्ल और न्यायमूर्ति सुमित कुमार की कोर्ट में पेश हुई। हालाँकि दोनों न्यायाधीश ने इस याचिका पर सुनवाई करने से इंकार कर दिया है और इसे अन्य पीठ को दिए जाने का आदेश करते हुए मुख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया। याची की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता उमेश नारायण शर्मा व चंदन शर्मा बहस करेंगे।

शोभन सरकार का कहना है कि उन्होंने आदमपुर में सोना दबा होने का सर्वे कराने के लिए प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री व जिलाधिकारी सहित कई विभागों को पत्र लिखा है। इस पर 20 अक्टूबर को टीम कानपुर के लिए रवाना भी हुई थी। सर्वे का खर्च 7 लाख 86 हजार 652 रुपये याची ने जमा भी कर दिए हैं। इस राशि के अलावा यातायात खर्च 84 हजार 400 व आईआईटी, कानपुर को 3 लाख 37 हजार 80 रुपये दिए गए हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि वह सुरक्षा के लिए जो भी खरच लगेगा उसका भी वहन कर लेंगे| 

गौरतलब है कि इससे पहले पर्दाफाश ने अपने पाठकों को बताया था कि आदमपुर में 2500 टन सोना होने की खबर से इस खजाने को पाने के लिए हर कोई पैतरा चल रहा है। सोने की चाहत में अज्ञात लोगों ने यहां 30 घनफुट खुदाई कर डाली। सूत्रों के अनुसार, यहां सोने का खजाना होने की घोषणा के बाद से ही मलवां पुलिस उस स्थल की निगरानी में लगी है, लेकिन खुदाई की उन्हें भनक तक नहीं लगी। ग्रामीणों के अनुसार, मामला प्रकाश में आने के बाद से यहां तैनात पुलिस के सिपाही रात भर गांव में आराम से सोते रहे और खुदाई करने वाले अपना काम करते रहे।

तड़के ग्रामीणों में इसकी चर्चा फैली तो सिपाही भाग कर मौके पर पहुंचे और आनन-फानन में खुदाई वाले गड्ढे की पुन: मिट्टी से पुराई करा दी। इस बीच फतेहपुर के पुलिस अधीक्षक शिवसागर सिंह ने सोने के भंडार जैसी किसी खबर से इंकार किया है। उन्होंने बताया कि रात को मंदिर के पास किसी ने थोड़ी-बहुत खुदाई की थी। वहां किसी तरह की अशांति न हो इसके लिए कुछ सिपाही तैनात कर दिए गए हैं।

ग्रामीणों का कहना है कि शोभन सरकार ने जो कहा है वह सही है, क्योंकि अब तक यहां कई तांत्रिक भी खुदाई का प्रयास कर चुके थे, लेकिन किसी के हाथ कुछ भी नहीं लगा। शोभन सरकार की घोषणा के बाद से उन्नाव जनपद का डौंडियाखेड़ा और जनपद का आदमपुर हर जुबान पर चर्चा का विषय बना हुआ है। आदमपुर गांव में हालांकि सरकार की ओर से अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। 

खागा कस्बे के करीब स्थित कुकरा कुकरी ऐलई ग्राम का टीला तथा टिकरी गांव का टीला इन दिनों जिज्ञासु लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गया है। इन स्थानों पर लोगों की चहल कदमी बढ़ गई है, जबकि कुछ ऐसे विवादास्पद स्थानों के प्रति भी लोग आकर्षित हुए हैं जिन्हें लोगों ने अपना कब्जा जमा रखा है। जनपद मुख्यालय के भिटौरा ब्लॉक अंर्तगत गंगा तट पर स्थित आदमपुर गांव में सोने का खजाना दबे होने की चर्चा ने क्षेत्र के पुरातात्विक महत्व के स्थानों का जनाकर्षण बढ़ा दिया है। लोगों के बीच ऐसे स्थान चर्चा के विषय बने हुए हैं।

लोगों का कहना है कि ऐतिहासिक घटनाओं या प्राकृतिक आपदाओं से भूगर्भ में समा चुके पुराने वैभव का समाज व राष्ट्रहित में उपयोग के प्रति संत शोभन सरकार की पहल पर सरकार की सक्रियता को प्रशासन विस्तार दे दे तो खागा की सरजमीं भी देश का भाग्य बदलने में सहायक साबित हो सकती है। जनचर्चा के अनुसार, नगर के संस्थापक राजा खड़क सिंह के इतिहास से जुड़ा कुकरा कुकरी स्थल में भी अकूत भू-संपदा होने की संभावना है। 

इस स्थान को लेकर लंबे समय तक सक्रिय रहे पत्रकार सुमेर सिंह का कहना है कि इस टीले के आसपास के ग्रामीणों को कई मर्तबा बहुमूल्य नगीने पत्थर व सिक्के हाथ लगे हैं। इनका कहना है कि टीले की थोड़ी बहुत खुदाई उन्होंने करा दी थी, जिसमें कतिपय भग्नावशेष उनके हाथ लगे थे। बताया कि इस बारे मे उन्होंने पुरातत्व विभाग को पत्र भी लिखा था लेकिन कोई जवाब न मिलने के कारण निराश हो कर बैठ गए।

अब जबकि आदमपुर के खजाने की बात सामने आ गई है, इन दिनों उस स्थान पर लोगों की चहल कदमी बढ़ गई है। प्राचीन धरोहरों और सामानों के शौकीन कुंवर लाल रामेंद्र सिंह के अनुसार, इस स्थान के चक्कर लगाते हुए उन्हें कई बार ऐसे तांत्रिक भी मिले हैं, जिन्होंने टीले के अंदर बहुमूल्य संपदा होने के का दावा किया है।

फिलहाल इन दिनों इस स्थान पर धनाकांक्षी लोगों की चहल पहल बढ़ गई है। नहर किनारे रहने वाले ग्रामीणों ने बताया कि आजकल शाम को कुछ लोग टीले के आसपास मंडराते देखे जाते हैं। नगर के दक्षिण-पूर्व सीमा के बाहर ऐलई गांव के पहले प्रवेश मार्ग के पास जिस टीले पर माइक्रो टावर लगा है, वह भी इस समय चर्चा में शुमार है।

बताते हैं कि सन् 1984 में जब टावर लगाने के लिए टीले की सतही की खुदाई हुई थी, उस समय भारी मात्रा में चांदी व ताबे के सिक्के निकले थे। अरबी भाषा की लिखाई वाले ये सिक्के कुछ ग्रामीणों के हाथ भी लगे थे, लेकिन डर और लोभ की वजह से लोगों ने सिक्कों के बाबत चुप्पी साध ली। लगभग 200 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैले इस टीले के आसपास अब आबादी बढ़ जाने के बावजूद रात मे टीले का वातावरण रहस्यमय रहता है, ग्रामीण भी टीले में जाने से भय खाते हैं।
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मोक्ष देने वाली ‘मोक्षदा एकादशी’

हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। इस बार मोक्षदा एकादशी का व्रत 13 दिसंबर दिन शुक्रवार को है| इसी दिन भगवान श्रीकृ्ष्ण ने महाभारत के प्रारम्भ होने से पूर्व अर्जुन को श्रीमद भगवतगीता का उपदेश दिया था| अतः इस दिन भगवान श्रीकृ्ष्ण के साथ साथ गीता का भी पूजन करना चाहिए| मोक्षदा एकाद्शी को दक्षिण भारत में वैकुण्ठ एकादशी के नाम से भी जाना जाता है|

मोक्षदा एकाद्शी व्रत विधि-

मोक्षदा एकादशी का व्रत करने वाले व्रती को चाहिए कि वह एकादशी व्रत के दिन मुख्य रुप से दस वस्तुओं का सेवन नहीं किया जाता है| जौ, गेहूं, उडद, मूंग, चना, चावल और मसूर की दाल दशमी तिथि के दिन नहीं खानी चाहिए| इसके अतिरिक्त मांस और प्याज आदि वस्तुओं का भी त्याग करना चाहिए| दशमी तिथि के दिन उपवासक को ब्रह्माचार्य करना चाहिए| और अधिक से अधिक मौन रहने का प्रयास करना चाहिए| बोलने से व्यक्ति के द्वारा पाप होने की संभावनाएं बढती है, यहां तक की वृ्क्ष से पत्ता भी नहीं तोडना चाहिए|

व्रत के दिन मिट्टी के लेप से स्नान करने के बाद ही मंदिर में पूजा करने के लिये जाना चाहिए| मंदिर या घर में श्री विष्णु पाठ करना चाहिए और भगवान के सामने व्रत का संकल्प लेना चाहिए| दशमी तिथि के दिन विशेष रुप से चावल नहीं खाने चाहिए| परिवार के अन्य सदस्यों को भी इस दिन चावल खाने से बचना चाहिए| इस व्रत का समापन द्वादशी तिथि के दिन ब्राह्माणों को दान-दक्षिणा देने के बाद ही होता है. व्रत की रात्रि में जागरण करने से व्रत से मिलने वाले शुभ फलों में वृ्द्धि होती है|

मोक्षदा एकादशी की कथा-

एक बार धर्मराज युधिष्ठिर बोले : देवदेवेश्वर ! मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष में कौन सी एकादशी होती है ? उसकी क्या विधि है तथा उसमें किस देवता का पूजन किया जाता है? स्वामिन् ! यह सब यथार्थ रुप से बताइये ।

श्रीकृष्ण ने कहा : नृपश्रेष्ठ ! मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का वर्णन करुँगा, जिसके श्रवणमात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है । उसका नाम ‘मोक्षदा एकादशी’ है जो सब पापों का अपहरण करनेवाली है । राजन् ! उस दिन यत्नपूर्वक तुलसी की मंजरी तथा धूप दीपादि से भगवान दामोदर का पूजन करना चाहिए । पूर्वाक्त विधि से ही दशमी और एकादशी के नियम का पालन करना उचित है । मोक्षदा एकादशी बड़े बड़े पातकों का नाश करनेवाली है । उस दिन रात्रि में मेरी प्रसन्न्ता के लिए नृत्य, गीत और स्तुति के द्वारा जागरण करना चाहिए । जिसके पितर पापवश नीच योनि में पड़े हों, वे इस एकादशी का व्रत करके इसका पुण्यदान अपने पितरों को करें तो पितर मोक्ष को प्राप्त होते हैं । इसमें तनिक भी संदेह नहीं है ।

पूर्वकाल की बात है, वैष्णवों से विभूषित परम रमणीय चम्पक नगर में वैखानस नामक राजा रहते थे । वे अपनी प्रजा का पुत्र की भाँति पालन करते थे । इस प्रकार राज्य करते हुए राजा ने एक दिन रात को स्वप्न में अपने पितरों को नीच योनि में पड़ा हुआ देखा । उन सबको इस अवस्था में देखकर राजा के मन में बड़ा विस्मय हुआ और प्रात: काल ब्राह्मणों से उन्होंने उस स्वप्न का सारा हाल कह सुनाया ।

राजा बोले : ब्रह्माणो ! मैने अपने पितरों को नरक में गिरा हुआ देखा है । वे बारंबार रोते हुए मुझसे यों कह रहे थे कि : ‘तुम हमारे तनुज हो, इसलिए इस नरक समुद्र से हम लोगों का उद्धार करो। ’ द्विजवरो ! इस रुप में मुझे पितरों के दर्शन हुए हैं इससे मुझे चैन नहीं मिलता । क्या करुँ ? कहाँ जाऊँ? मेरा हृदय रुँधा जा रहा है । द्विजोत्तमो ! वह व्रत, वह तप और वह योग, जिससे मेरे पूर्वज तत्काल नरक से छुटकारा पा जायें, बताने की कृपा करें । मुझ बलवान तथा साहसी पुत्र के जीते जी मेरे माता पिता घोर नरक में पड़े हुए हैं ! अत: ऐसे पुत्र से क्या लाभ है ?

ब्राह्मण बोले : राजन् ! यहाँ से निकट ही पर्वत मुनि का महान आश्रम है । वे भूत और भविष्य के भी ज्ञाता हैं । नृपश्रेष्ठ ! आप उन्हींके पास चले जाइये ।

ब्राह्मणों की बात सुनकर महाराज वैखानस शीघ्र ही पर्वत मुनि के आश्रम पर गये और वहाँ उन मुनिश्रेष्ठ को देखकर उन्होंने दण्डवत् प्रणाम करके मुनि के चरणों का स्पर्श किया । मुनि ने भी राजा से राज्य के सातों अंगों की कुशलता पूछी ।

राजा बोले: स्वामिन् ! आपकी कृपा से मेरे राज्य के सातों अंग सकुशल हैं किन्तु मैंने स्वप्न में देखा है कि मेरे पितर नरक में पड़े हैं । अत: बताइये कि किस पुण्य के प्रभाव से उनका वहाँ से छुटकारा होगा ?

राजा की यह बात सुनकर मुनिश्रेष्ठ पर्वत एक मुहूर्त तक ध्यानस्थ रहे । इसके बाद वे राजा से बोले : ‘महाराज! मार्गशीर्ष के शुक्लपक्ष में जो ‘मोक्षदा’ नाम की एकादशी होती है, तुम सब लोग उसका व्रत करो और उसका पुण्य पितरों को दे डालो । उस पुण्य के प्रभाव से उनका नरक से उद्धार हो जायेगा ।’

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : युधिष्ठिर ! मुनि की यह बात सुनकर राजा पुन: अपने घर लौट आये । जब उत्तम मार्गशीर्ष मास आया, तब राजा वैखानस ने मुनि के कथनानुसार ‘मोक्षदा एकादशी’ का व्रत करके उसका पुण्य समस्त पितरों सहित पिता को दे दिया । पुण्य देते ही क्षणभर में आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी । वैखानस के पिता पितरों सहित नरक से छुटकारा पा गये और आकाश में आकर राजा के प्रति यह पवित्र वचन बोले: ‘बेटा ! तुम्हारा कल्याण हो ।’ यह कहकर वे स्वर्ग में चले गये ।

राजन् ! जो इस प्रकार कल्याणमयी ‘‘मोक्षदा एकादशी’ का व्रत करता है, उसके पाप नष्ट हो जाते हैं और मरने के बाद वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है । यह मोक्ष देने वाली ‘मोक्षदा एकादशी’ मनुष्यों के लिए चिन्तामणि के समान समस्त कामनाओं को पूर्ण करनेवाली है । इस माहात्मय के पढ़ने और सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है । 

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करें आखों की देखभाल ताकि रोशन रहे जिंदगी

आँखों के बिना बदरंग होती है जिंदगी। आँखों के बिना रंगों, नज़ारों का कोई मतलब नहीं। आँखें है तो दुनिया की रंगीनियां हैं, आँखें हैं तो रोशनी हैं। तो क्यों ना ध्यान दिया जाये इन आँखों का। कुछ एक्सरसाइज और ध्यान रख कर हम अपनी रोशनी को बरकरार रख सकतें हैं। 

हर वक़्त कंप्यूटर पर काम या देर तक पढ़ाई के दौरान आंखें सिर्फ थक ही नहीं जाती हैं बल्कि स्ट्रेस का असर उनकी रोशनी पर भी पड़ सकता है। इसलिए कम्प्यूटर पर काम करते वक्त पलकों को झपकाते रहना चाहिए। उन्हें एक जगह ठहराए हुए नहीं रखना चाहिए। इससे आंखों के आंसू फैलते हैं, जिससे आंखें सूखेपन से बची रहती हैं और इनमें नमी बनी रहती है। हर 20 मिनट में 20 सेकेंड का ब्रेक लें और 20 फीट दूर कहीं देखें। फिर दोबारा काम शुरू करें। आँखों के लिए कुछ एक्सरसाइज हैं जिन्हे अपना कर आँखों को सेहतमंद रखा जा सकता है। 

1. पलके झपकाएं आंखों पर देर तक रहने वाले तनाव को कम करने के लिए यह बहुत आसान एक्सरसाइज है। कम से कम तीन से चार सेकंड तक अपनी पलकों को लगातार झपकाएं और फिर आंखें तेजी से बंद कर लें। कुछ सेकंड बाद आंखें खोलें। आप आराम महसूस करेंगे। 

2 रिलैक्सेशन एक्सरसाइज, आंखों को आराम देने के लिए ये एक्सरसाइज करें। इसके लिए सबसे पहले दोनों हाथों को आपस में रगड़ें और फिर तेजी से आंखों पर रखें। आंखों के आगे अंधेरा रहना चाहिए। कुछ क्षण बाद हाथों को हटा लें और फिर धीरे-धीरे आंखें खोलें।

3. दूर तक देखें, आप ऐसी जगह देखें जो आपसे दूर हो कम से कम पांच से दस मिनट तक यह एक्सरसाइज करें। इससे दूर की नजर मजबूत होती है और फोकस बढ़ता है।

4 . ज़ूम करें, फोकस तेज करने के लिए यह अच्छी एक्सरसाइज है। अपने अंगूठे पर फोकस करें। धीरे-धीरे अंगूठे को आंखों के नजदीक लाएं और फिर धीरे-धीरे इसे आंखों से दूर करें। सुबह उठते ही आँखों पर साफ पानी से छीटें डालनी चाहिए। इससे आँखों की रोशनी बढ़ती है और बीमारियां दूर होतीं हैं। 

योग आंखों के लिए काफी फायदेमंद रहता है लेकिन किसी विशेषज्ञ की देखरेख में ही योग शुरू करें। कपाल भांति आंखों के लिए बहुत अच्छा है। अनुलोम-विलोम और व अन्य प्राणायाम भी करें। हरी सब्जियों और फलों में ये दोनों तत्व प्रचुर मात्र में पाए जाते हैं। इसलिए विटामिन से भरपूर खाना खाएं जैसे दूध, हरी सब्जी, मौसमी फल आदि। थोड़ी सी देखभाल और सावधानी हम अपनी दुनिया रोशन रख सकतें हैं।

मप्र में हार से कांग्रेस में घमासान

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में मिली लगातार तीसरी हार से कांग्रेस में हाहाकार मच गया है। पार्टी नेता इस हार का ठीकरा बड़े नेताओं पर फोड़ रहे हैं। कोई हार के लिए कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह को जिम्मेदार ठहरा रहा है तो कोई छानबीन समिति के अध्यक्ष मधुसूदन मिस्त्री पर टिकट बेचने का आरोप लगा रहा है।

राज्य विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार मिली है और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने जीत की हैट्रिक बनाई है। कांग्रेस इस चुनाव में सत्ता वापसी के सपने संजोए थी, मगर नतीजे ठीक उलट आए। इस हार की जहां पार्टी आलाकमान समीक्षा कर रहा है वहीं राज्य में नेताओं के अपनों पर ही हमले तेज हो गए हैं। 

कांग्रेस की तेज तर्रार विधायक के तौर पर पहचानी जाने वाली कल्पना पारुलेकर महीदपुर विधानसभा क्षेत्र में मिली हार से आपा खो बैठी हैं। उनका आरोप है कि सिर्फ महीदपुर ही नहीं पूरे राज्य में पार्टी महासचिव दिग्विजय सिंह के कारण कांग्रेस हारी है। उनका कहना है कि सिंह ने राज्य में गुटबाजी को बढ़ाया है। उनके शासनकाल के पाप आज भी कांग्रेस को भोगने पड़ रहे हैं। राज्य में कांग्रेस को बचाना है तो दिग्विजय सिंह को प्रतिबंधित कर देना चाहिए। 

पार्टी के प्रदेश सचिव रघु परमार ने उम्मीदवार चयन पर ही सवाल उठाया है। उनका आरोप है कि छानबीन समिति के अध्यक्ष मधुसूदन मिस्त्री ने इंदौर में टिकट बेचा था। इसकी शिकायत उन्होंने नेताओं से की मगर उनकी बात नहीं सुनी गई। वहीं उन्होंने दिग्विजय सिंह का बचाव करते हुए कहा कि पारुलेकर बताएं कि अगर वह जननेता हैं तो आखिर चुनाव में उनकी जमानत क्यों जब्त हुई। इससे पहले मीडिया में राज्यसभा सदस्य सत्यव्रत चतुर्वेदी की ओर से दिग्विजय सिंह के खिलाफ बयान की बात सामने आई थी। इस पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय सिंह ने चतुर्वेदी पर ही सवाल खड़े कर दिए थे।

पार्टी में जारी बयानबाजी पर अजय सिंह ने कहा है कि टिकट वितरण ठीक हुआ था, जहां तक सार्वजनिक तौर पर बयान देने की बात है तो नेताओं को इससे बचना चाहिए। जो भी कहना है, उसे पार्टी फोरम पर रखें। पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष लक्ष्मण सिंह ने अनर्गल बयानबाजी करने वालों को सलाह दी है कि वे इससे बचें। जहां तक दिग्विजय सिंह की बात है तो पूरा प्रदेश जानता है कि उनके पास पार्टी के तीन राज्यों के प्रभार हैं। लक्ष्मण सिंह ने भी पारुलेकर से सवाल किया कि आखिर उनकी जमानत क्यों जब्त हुई। विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद कांग्रेस की अंदरूनी कलह सड़क पर आ गई है।
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तो इसलिए महाभारत युद्ध में कृष्ण को क्यों उठाना पड़ा था चक्र?

महाभारत वह महाकाव्य है जिसके बारे में जानता तो हर कोई है लेकिन आज भी कुछ ऐसे चीजें हैं जिसे जानने वालों की संख्या कम है| क्या आपको पता है महाभारत युद्ध में कृष्ण को क्यों उठाना पड़ा था चक्र? महाभारत के युद्ध में भीमसेन के पीछे महारथी विराट और द्रुपद खड़े हुए। उनके बाद नील के बाद धृष्टकेतु थे। धृष्टकेतु के साथ चेदि, काशि और करूष एवं प्रभद्रकदेशीय योद्धाओं के साथ सेना के साथ धर्मराज युधिष्ठिर भी वहां ही थे। उनके बाद सात्यकि और द्रोपदी के पांच पुत्र थे। फिर अभिमन्यु और इरावान थे। इसके बाद युद्ध आरंभ हुआ। चहरों तरफ हाहाकार मचा हुआ था| 

कौरवों ने एकाग्रचित्त होकर ऐसा युद्ध किया की पांडव सेना के पैर उखड़ गए। पांडव सेना में भगदड़ मच गई भीष्म ने अपने बाणों की वर्षा तेज कर दी। सारी पांडव सेना बिखरने लगी। पांडव सेना का ऐसा हाल देखकर श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि तुम अगर इस तरह मोह वश धीरे-धीरे युद्ध करोगे तो अपने प्राणों से हाथ धो बैठोगे। यह सुनकर अर्जुन ने कहा केशव आप मेरा रथ पितामह के रथ के पास ले चलिए। कृष्ण रथ को हांकते हुए भीष्म के पास ले गए। अर्जुन ने अपने बाणों से भीष्म का धनुष काट दिया। भीष्मजी फिर नया धनुष लेकर युद्ध करने लगे। यह देखकर भीष्म ने अर्जुन और श्रीकृष्ण को बाणों की वर्षा करके खूब घायल किया। भगवान श्रीकृष्ण ने जब देखा कि सब पाण्डव सेना के सब प्रधान राजा भाग खड़े हुए हैं और अर्जुन भी युद्ध में ठंडे पढ़ रहे हैं तो तब श्रीकृष्ण ने कहा अब मैं स्वयं अपना चक्र उठाकर भीष्म और द्रोण के प्राण लूंगा और धृतराष्ट्र के सभी पुत्रों को मारकर पाण्डवों को प्रसन्न करूंगा। कौरवपक्ष के सभी राजाओं का वध करके मैं आज युधिष्ठिर को अजातशत्रु राजा बनाऊंगा।

इतना कहकर कृष्ण ने घोड़ों की लगाम छोड़ दी और हाथ में सुदर्शन चक्र लेकर रथ से कूद पड़े। उसके किनारे का भाग छूरे के समान तीक्ष्ण था। भगवान कृष्ण बहुत वेग से भीष्म की ओर झपटे, उनके पैरों की धमक से पृथ्वी कांपने लगी। वे भीष्म की ओर बढ़े। वे हाथ में चक्र उठाए बहुत जोर से गरजे। उन्हें क्रोध में भरा देख कौरवों के संहार का विचार कर सभी प्राणी हाहाकार करने लगे। उन्हें चक्र लिए अपनी ओर आते देख भीष्म बिल्कुल नहीं घबराए। उन्होंने कृष्ण से कहा आइए-आइए मैं आपको नमस्कार करता हूं। 

कृष्ण को आगे बढ़ते देख अर्जुन भी रथ से उतरकर उनके पीछे दौड़े और पास जाकर उन्होंने उनकी दोनों बांहे पकड़ ली। भगवान रोष मे भरे हुए थे, अर्जुन के पकडऩे पर भी वे रूक न सके। अर्जुन ने जैसे -तैसे उन्हें रोका और कहा केशव आप अपना क्रोध शांत कीजिए, आप ही पांडवों के सहारे हैं। अब मैं भाइयों और पुत्रों की शपथ लेकर कहता हूं कि मैं अपने काम में ढिलाई नहीं करूंगा, प्रतिज्ञा के अनुसार ही युद्ध करूंगा। तब अर्जुन की यह प्रतिज्ञा सुनकर श्रीकृष्ण प्रसन्न हो गए।

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