सूरजमुखी की खेती से विमुख हो रहे किसान


उत्तर प्रदेश की जलवायु और मिट्टी दोनों सूरजमुखी की खेती के अनुकूल है, लेकिन किसानों का इससे मोहभंग होता जा रहा है। या यूं कहें तो उप्र के खेतों में अब सूरजमुखी की बहार नजर नहीं आती। किसानों को बेहतर लाभ देने और तिलहन के संकट में मददगार होने के बावजूद सूरजमुखी की खेती के लिए प्रोत्साहन सरकार नहीं दे पा रही है। सूरजमुखी की बुवाई का क्षेत्रफल 80 प्रतिशत से कम होना सरकार की नीतियों पर भी सवाल खड़ा करता है। उत्तर प्रदेश में नब्बे के दशक में सूरजमुखी की खेती बड़े पैमाने पर होती थी। यह खेती अब केवल कानपुर मंडल तक सिमट कर रह गई है।

कृषि विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि पहले 55 हजार हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में सूरजमुखी की खेती होती थी, लेकिन अब यह घटकर पांच से छह हजार हेक्टेयर तक आ गई है। उन्होंने बताया, "तो ऐसा नहीं है कि उप्र की जलवायु और मिट्टी सूरजमुखी की खेती के लिए उपयुक्त नहीं है। औसत उपज में उप्र प्रति हेक्टेयर 1889 किलोग्राम का उत्पादन कर सबसे आगे है। हालांकि कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में क्षेत्रफल के हिसाब से अधिक खेती होती है। उप्र में इसकी खेती इसलिए नहीं हो पाती कि इसकी बिक्री की व्यवस्था नहीं की गई है।"

कानपुर में सूरजमुखी की खेती से जुड़े एक किसान शिवशंकर त्रिपाठी ने कहा कि सूरजमुखी की पैदावार में कमी नहीं है, बल्कि इसकी बिक्री की व्यवस्था नहीं हो पाती। सरकार ने इस ओर जरा भी ध्यान नहीं दिया, अन्यथा उप्र में इसकी खेती से किसानों को लाभ पहुंचाया जा सकता था।

किसान और विभाग के वरिष्ठ अधिकारी के दावे को स्वीकार करते हुए कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक प्रो. राजेंद्र कुमार ने बताया, "समय रहते यदि सूरजमुखी का तेल निकालने के लिए उद्योग लगाए गए होते तो किसानों को परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता। तिलहन संकट से निपटने के लिए इस ओर ध्यान देकर किसानों को सूरजमुखी की खेती के लिए प्रोत्साहित करना होगा।"

इधर, कृषि विशेषज्ञों की मानें तो सूरजमुखी में तापमान सहने की अदभुत क्षमता होती है। अत्यधिक ठंडे मौसम को छोड़कर सभी माह में सूरजमुखी की बुवाई की जा सकती है। फूल और बीज बनते समय तेज वर्षा व हवा से फसल गिरने का डर बना रहता है। लेकिन यदि फसल बच गई तो 80 से 120 दिनों के बीच यह तैयार हो जाती है।

नेपाल में विनाशकारी भूस्खलन के 2 साल बाद भी जीने की जंग जारी


दो साल पहले तक मध्य नेपाल के एक गांव में रहने वाले मान बहादुर तमांग को घर और खेती की जमीन का मालिक होने का गर्व था। लेकिन पहाड़ी की ढलान वाले क्षेत्र में हुए विनाशकारी भूस्खलन में उनका सब कुछ तबाह हो गया। इस त्रासदी में 156 लोगों की मौत हुई थी। भारी बारिश के कारण 2 अगस्त, 2014 को इस क्षेत्र में विनाशकारी भूस्खलन हुआ था। इसके चलते नेपाल के सिंधुपालचोक जिले में सुनकोशी नदी में कृत्रिम झील बन गई थी और चीन से जोड़ने वाला अरनिको राजमार्ग करीब पांच किलोमीटर तक टूट गया था।

इस भूस्खलन में तमांग का सब कुछ खत्म हो गया। घर के साथ उसकी जीविका की एक मात्र साधन जमीन भी खत्म हो गई। नजदीक के जंगल से बांस की गठरी सिर पर ले जा रहे तमांग (63) ने कहा, "पर्याप्त खेती की जमीन के मालिक से मैं जीविका चलाने के लिए दैनिक मजदूरी करने वाला मजदूर बन गया हूं। इसी कमाई से अपना छोटा परिवार चलाता हूं।" भूस्खलन से सुनकोशी नदी की धारा अवरुद्ध हो गई थी और एक कृत्रिम झील बन गई थी। इसके चलते एक जल विद्युत संयंत्र भी पानी में डूब गया था। चीन से जोड़ने वाले राजमार्ग को पांच किलोमीटर तक टूटने से प्रतिदिन चार लाख डॉलर का नुकसान हुआ था। यह राजमार्ग 45 दिनों तक बंद रहा था।

सुनकोशी नदी में कृत्रिम झील बनने से बिहार में भी दहशत फैल गई थी, क्योंकि अवरोध से बांध के पीछे अचानक बनी झील को विस्फोट से उड़ाने की स्थिति में नेपाल ने बाढ़ के खतरे की चेतावनी दी थी। भूस्खलन में अपने परिजनों और घर खोने वाले मनखा गांव के 78 वर्षीय जीत बहादुर तमांग ने कहा, "हमारे गांव की बात छोड़ दें, भूस्खलन ने कोदी नदी की प्रवाह, भू-परिदृश्य और खेती की जमीन को बदल दिया।" मनखा गांव में दर्जनों घरों या तो दफन हो गए या फिर ध्वस्त हो गए।

काठमांडू, नेपाल के उत्तरी जिलों और चीन सीमा को जोड़ने वाला अरनिको राजमार्ग के निकट भूस्खलन के मलबे आज भी उस त्रासदी की गवाही दे रहे हैं। मलबे से कुछ दूरी पर नल से पानीपीते समय जीत बहादुर तमांग ने कहा, "मैंने अपना सब कुछ खो दिया। बुढ़ापा में अकेला रह रहा हूं। मेरी देखभाल करने वाला करने वाला कोई नहीं है। भूस्खलन के बाद सरकार जीने के लिए राशन देती है।" भूस्खलन से पहले जीत बहादूर तमांग पूर्णत: खेती पर निर्भर थे। लेकिन भूस्खलन में उनकी खेती की जमीन भी खत्म हो गई। अब उन्हें जीने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।

जीत बहादुर ने कहा, "मैं अब एक भूमिहीन मजदूर हूं और चल रही सरकारी परियोजनाओं में मजदूरों के लिए काम पर निर्भर हूं।" अन्य परिवारों के साथ तमांग ने भी रहने के लिए टिन और बांस की झोपड़ी बनाई है। उन्हें उम्मीद है कि सरकार जल्द उन लोगों के लिए घर बना देगी। भूस्खलन का पीड़ित युवक लंका लामा भी है। लामा का भी परिवार कभी खेती पर आश्रित रहा करता था, लेकिन उस त्रासदी में उसका भी सब कुछ खत्म हो गया।

लंका लामा ने कहा, "सरकार को हमलोगों के लिए घर अभी बनाना है। लेकिन आपदा में बचे हमारे जैसे लोगों को जीने के लिए सरकार ने कभी पैसे नहीं दिए।" लामा काठमांडू में ड्राइवर का काम करता है और उसके परिवार के अन्य लोग भी काम करते हैं। लामा ने कहा कि त्रासदी में बचे कई लोग कई लोग जीविका की तलाश में नजदीक के शहरों में और कुछ काठमांडू चले गए।

लामा की दादी सुकु माया ने कहा, "भूस्खलन के बाद हमलोगों को जीने के लिए संघर्ष करना पड़ा था और आज भी कर रही हूं। हमारा भविष्य अनिश्चित है। हमलोग अपनी अगली पीढ़ी को लेकर चिंतित हैं कि वे भय के माहौल में यहां कैसे रहेंगे।" काडमांडू स्थित अंतर्राष्ट्रीय समकेतिक पर्वत विकास केंद्र (आईसीआईएमओडी) के विशेषज्ञों के अनुसार, भारी वर्षा के कारण करीब दो किलोमीटर तक मिट्टी, कीचड़ और चट्टान ढीले पड़ गए थे और पहाड़ी से अलग होकर जुरे गांव की ओर घिसक गए। मलबों से गांव का एक बड़ा भाग पूर्णत: नष्ट हो गया।

आईसीआईएमओडी के विशेषज्ञ अरुण. बी. श्रेष्ठ ने कहा, "इस तरह की प्राकृतिक आपदा को हमलोग नियंत्रित नहीं कर सकते हैं, लेकिन जीविका के साधनों और आधारभूत संरचनाओं पर पड़ने वाले इसके प्रतिकूल प्रभावों को कम किया जा सकता है।"

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सिंहस्थ कुंभ: बंदरों ने भी किया शाही स्नान

उज्जैन: मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में शुक्रवार को पहले शाही स्नान के साथ इस शताब्दी के दूसरे सिंहस्थ कुंभ की शुरुआत हो गई है। शाही स्नान में सबसे पहले जूना अखाड़े के नागा साधुओं ने क्षिप्रा नदी में डुबकी लगाई। सिंहस्थ कुंभ में हिस्सा लेने आए साधु संतों की टोलियों के साथ श्रद्घालुओं का मेला उमड़ आया है। हनुमान जयन्ती के दिन जूना अखाड़े के स्नान के साथ शुरू हुए शाही स्नान का आनंद लेने बंदर भी वहां पहुंचे।महाकाल की भस्मारती के बाद शुरू हुए शाही स्नान के लिए बंदर भी पहुंचे। आम आदमी को भले ही स्नान के लिए इंतजार करना पड़ा हो लेकिन इन बंदरों ने शाही स्नान का पूरा आंनद लिया। साधु संन्यासियों को देखने जुटी भीड़ बड़ी देर तक इन बंदरों को भी निहारती देखी गई।

पहला शाही स्नान होने की वजह से महाकाल की नगरी में शुक्रवार को साधु-संतों की भारी भीड़ नजर आ रही है। परंपरा के मुताबिक, कुंभ में सबसे पहले अखाड़ों के नागा साधु और उसके बाद महामंडलेश्वर स्नान करते है। उसके बाद ही आम लोगों को क्षिप्रा नदी में स्नान की अनुमति होती है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद द्वारा तय किए गए अखाड़ों के क्रम के अनुसार, सबसे पहले श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा स्नान के लिए भेरूपुरा, हनुमानगढ़ी, शंकराचार्य चौक होते हुए छोटीरपट, केदारघाट, एवं दत्त अखाड़ा घाट पहुंचा। नागा साधुओं के बाद महामंडलेश्वर आदि ने स्नान किया। उसके बाद यह अखाड़ा निर्धारित मार्ग से अपनी छावनी को वापस चला गया। इस अखाड़े के साथ श्री पंचायती आवहन अखाड़ा एवं श्री पंचायती अग्नि अखाड़ा के साधुओं ने भी स्नान किया।

सभी 13 अखाड़ों के लिए दत्त अखाड़ा घाट और रामघाट पर स्नान की व्यवस्था की गई है। सभी अखाड़े अपने क्रम के अनुसार अपने अपने शिविर से निकलकर निर्धारित मार्ग से क्षिप्रा नदी के घाटों पर पहुंच रहे हैं। इन अखाड़ों के स्नान के बाद ही आम श्रद्घालु स्नान कर सकेंगे। अखाड़ों के स्नान का यह सिलसिला दोपहर डेढ़ बजे तक चलेगा। शाही स्नान के दौरान सुरक्षा-व्यवस्था बनाए रखने के लिए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। सडकों पर विभिन्न सुरक्षा बलों की तैनाती की गई है तो नदी में गोताखोर, नगर सैनिक और एनडीआरएफ के दस्ते की तैनाती की गई है। इसके अलावा नदी मे सुरक्षा बलों की नौकाएं भी मौजूद हैं। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेन्द्रगिरि महाराज ने संवाददाताओं से कहा, "यह क्षिप्रा नदी के तट पर अनोखा नजारा है, यहां शैव और वैष्णव संप्रदाय दोनों के साधु संत स्नान कर रहे है। व्यवस्थाएं चौकस हैं और जरूरत की सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं।"

सिंहस्थ कुंभ : पहले शाही स्नान से धार्मिक समागम की शुरुआत

उज्जैन: मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में शुक्रवार को पहले शाही स्नान के साथ इस शताब्दी के दूसरे सिंहस्थ कुंभ की शुरुआत हो गई है। शाही स्नान में सबसे पहले जूना अखाड़े के नागा साधुओं ने क्षिप्रा नदी में डुबकी लगाई। सिंहस्थ कुंभ में हिस्सा लेने आए साधु संतों की टोलियों के साथ श्रद्घालुओं का मेला उमड़ आया है। श्रद्घालुओं की भीड़ के मद्देनजर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं।

पहला शाही स्नान होने की वजह से महाकाल की नगरी में शुक्रवार को साधु-संतों की भारी भीड़ नजर आ रही है। परंपरा के मुताबिक, कुंभ में सबसे पहले अखाड़ों के नागा साधु और उसके बाद महामंडलेश्वर स्नान करते है। उसके बाद ही आम लोगों को क्षिप्रा नदी में स्नान की अनुमति होती है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद द्वारा तय किए गए अखाड़ों के क्रम के अनुसार, सबसे पहले श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा स्नान के लिए भेरूपुरा, हनुमानगढ़ी, शंकराचार्य चौक होते हुए छोटीरपट, केदारघाट, एवं दत्त अखाड़ा घाट पहुंचा। नागा साधुओं के बाद महामंडलेश्वर आदि ने स्नान किया। उसके बाद यह अखाड़ा निर्धारित मार्ग से अपनी छावनी को वापस चला गया। इस अखाड़े के साथ श्री पंचायती आवहन अखाड़ा एवं श्री पंचायती अग्नि अखाड़ा के साधुओं ने भी स्नान किया।

सभी 13 अखाड़ों के लिए दत्त अखाड़ा घाट और रामघाट पर स्नान की व्यवस्था की गई है। सभी अखाड़े अपने क्रम के अनुसार अपने अपने शिविर से निकलकर निर्धारित मार्ग से क्षिप्रा नदी के घाटों पर पहुंच रहे हैं। इन अखाड़ों के स्नान के बाद ही आम श्रद्घालु स्नान कर सकेंगे। अखाड़ों के स्नान का यह सिलसिला दोपहर डेढ़ बजे तक चलेगा। शाही स्नान के दौरान सुरक्षा-व्यवस्था बनाए रखने के लिए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। सडकों पर विभिन्न सुरक्षा बलों की तैनाती की गई है तो नदी में गोताखोर, नगर सैनिक और एनडीआरएफ के दस्ते की तैनाती की गई है। इसके अलावा नदी मे सुरक्षा बलों की नौकाएं भी मौजूद हैं।

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेन्द्रगिरि महाराज ने संवाददाताओं से कहा, "यह क्षिप्रा नदी के तट पर अनोखा नजारा है, यहां शैव और वैष्णव संप्रदाय दोनों के साधु संत स्नान कर रहे है। व्यवस्थाएं चौकस हैं और जरूरत की सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं।"

यूपी बोर्ड का रिजल्ट मई के दूसरे सप्ताह में आ सकता है

इलाहाबाद: उत्तर प्रदेश के माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के हाईस्कूल और इंटरमीडिएट के परीक्षार्थियों की मेहनत का फल अपने आखिरी चरण में पहुंच गया है। शुक्रवार को परीक्षार्थियों की उत्तर पुस्तिका का मूल्यांकन कार्य पूरा हो गया। अब रिजल्ट तैयार किया जा रहा है। मई के दूसरे सप्ताह में रिजल्ट आने की उम्मीद जताई जा रही है।

यूपी माध्यमिक शिक्षा परिषद की सचिव शैल यादव ने उम्मीद जताई है कि प्रदेश में मूल्यांकन कार्य आज संपन्न हो जाएगा। सिर्फ लखनऊ के एक केंद्र पर कुछ कापियों का मूल्यांकन बाकी है. मूल्यांकन में देरी की वजह परीक्षकों का कॉपी जांचने में रूचि न दिखाना था। शैल यादव ने कहा कि उम्मीद है कि मई के दूसरे हफ्ते तक रिजल्ट की घोषणा हो सकती है।

गौरतलब है कि इस वर्ष हाई स्कूल और इंटर की परीक्षा 18 फ़रवरी से 21 मार्च के बीच कराई गई थी। इस दौरान अलीगढ, आगरा, और अन्य जिलों से सामूहिक नक़ल की कई तस्वीरें भी सामने आई थीं। जिसके बाद प्रशाशन ने 90 परसेंट मार्क्स पाने वाले स्टूडेंट्स की कापियों की दुबारा जांच कराई गई थी। इस बार यूपी बोर्ड की परीक्षा में करीब 68 लाख परीक्षार्थियों ने पंजीकरण किया था, जिसमे से लगभग दस लाख छात्रों ने एग्जाम नहीं दिया। इसमें हाई स्कूल और इंटर दोनों के छात्र शामिल हैं।

'सेल्फी क्रेज' से अमेरिका में बढ़ा होंठों की सर्जरी का चलन!

न्यूयॉर्क: क्या आप आकर्षक पाउट के साथ एक शानदार सेल्फी लेना चाहते हैं? तो इसके लिए होंठों की सर्जरी कराइए, क्योंकि का चलन बढ़ गया है! मीडिया में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2015 में होंठों की सर्जरी का एक नया रिकॉर्ड कायम हुआ। अमेरिका में हर 19 मिनट में होंठ की एक सर्जरी होती है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकन सोसायटी ऑफ प्लास्टिक सर्जन्स (एएसपीएस) के एक सर्वे से ज्ञात हुआ है कि 2015 में पुरुषों और महिलाओं में 27,449 लिप इम्प्लांट्स हुए। वर्ष 2,000 के मुकाबले यह 48 फीसदी ज्यादा है। अमेरिकन सोसायटी ऑफ प्लास्टिक सर्जन्स के डेविड सॉन्ग के मुताबिक, "हम सेल्फी युग में रह रहे हैं और हम खुद को निरंतर सोशल मीडिया पर देखते रहते हैं, इसलिए हम इस बात को काफी महत्व देने लगे हैं कि हमारे होंठ कैसे दिख रहे हैं।"

ब्रिटेन की एक कॉस्मेटिक डेंटिस्ट्री कंपनी ने दावा किया है कि सेल्फियों के कारण लोग अलग तरह की मुस्कान चाहने लगे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, "लोग अब एक नई 'सेल्फी मुस्कान' चाहते हैं।" क्लीनिकल निदेशक और कॉस्मेटिक दंत चिकित्सक टिम बैड्रस्टॉक-स्मिथ ने कहा, "पिछले पांच सालों में वेबसाइट के जरिए सेल्फी भेजने वालों की संख्या में 30 प्रतिशत का इजाफा हुआ है, जिसमें उन्होंने अपने सामने के दांतों को लेकर चिंता व्यक्त की। लेकिन हकीकत में मिलने पर ज्यादातर इन लोगों के दांत बिल्कुल भी बुरे नहीं दिखाई दिए।"

अमेरिका के ओहियो के एक प्लास्टिक सर्जन रॉबर्ट हाउजर ने कहा, "कोई व्यक्ति फेसलिफ्ट या आईलिड सर्जरी के लिए भले ही तैयार न हो, लेकिन कई ऐसे तरीके हैं जिनसे आप अपने होंठों का आकार बदल सकते हैं।" एएसपीएस ने करीब 1,000 महिलाओं पर शोध किया। इसमें ज्ञात हुआ कि महिलाओं को हॉलीवुड अभिनेत्री जेनिफर लॉरेंस के होंठ सबसे अधिक आकर्षक लगे, जिसे उन्होंने पाने की इच्छा जताई।

प्रथम शाही स्नान के साथ सिंहस्थ कुंभ शुरू, बिखरे धर्म-संस्कृति के रंग

उज्जैन: इस शताब्दी के दूसरे सिंहस्थ कुंभ के लिए मध्यप्रदेश की धार्मिक नगर उज्जैन पूरी तरह तैयार है। हर तरफ धर्म और संस्कृति के रंग बिखरे पड़े हैं। यहां पहुंचीं साधु-संतों से लेकर श्रद्धालुओं की टोलियां तक हर किसी का मोह रही हैं। शुक्रवार (22 अप्रैल) को पहले शाही स्नान के साथ कुंभ मेले की शुरुआत होगी। मोक्षदायनी क्षिप्रा नदी के तट पर आयोजित सिंहस्थ कुंभ 22 अप्रैल से शुरु होकर 21 मई तक चलेगा। इसकी औपचारिक शुरुआत से पहले 13 अखाड़ों की पेशवाई निकल चुकी है।

आयोजन को सफल बनाने के लिए राज्य सरकार द्वारा विभिन्न विकास कार्यो पर तीन हजार करोड़ रुपये से ज्यादा राशि खर्च की जा चुकी है। यहां अपने वाले साधु-संतों के अलावा श्रद्धालुओं को किसी तरह की असुविधा न हो, इसके लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं। राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बीते दो माह से औसतन हर चौथे दिन उज्जैन पहुंचकर तैयारियों का जायजा ले रहे हैं।  उन्होंने प्रशासनिक अधिकारियों को साफ निर्देश दिए हैं कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं को किसी तरह की असुविधा नहीं होनी चाहिए।

सिंहस्थ मेला क्षेत्र का नजारा ही धर्म और संस्कृति का संदेश देता नजर आता है। यहां लगभग तीन हजार हेक्टेयर क्षेत्र में चार हजार से ज्यादा साधु-संतों के पंडाल नजर आते हैं। साथ धर्म-ध्वजाएं इस नजारे को और आकर्षक बना देती हैं। राज्य सरकार का अनुमान है कि इस आयेाजन में लगभग पांच करोड़ श्रद्धालु आ सकते हैं। श्रद्धालुओं की इस संख्या को ध्यान में रखकर ही सरकार ने खास इंतजाम किए हैं, विभिन्न पुलों के निर्माण के साथ अस्पताल, भवन, सड़कों का निर्माण कराया है।

राज्य सरकार ने उज्जैन आने वाली बसों के किराए में 25 प्रतिशत की छूट का प्रावधान किया है, वहीं इंदौर-उज्जैन के बीच विशेष बसें चलाई जा रही हैं। रेलवे ने भी कुंभ मेले के लिए विशेष गाड़ियां और एयर इंडिया ने दिल्ली-इंदौर के बीच विशेष उड़ान शुरू करने का ऐलान किया है। सिंहस्थ कुंभ में शुक्रवार को शाही स्नान में सभी 13 अखाड़ों के साधु-संत क्षिप्रा नदी में डुबकी लगाएंगे। इसमें शैव संप्रदाय के सात अखाड़े दत्त अखाड़ा घाट पर डुबकी लगाएंगे, वहीं रामघाट पर वैष्णव संप्रदाय के तीन अखाड़े और तीन उदासीन अखाड़े के साधु-संत स्नान करेंगे।

उज्जैन के पुलिस महानिरीक्षक मधु कुमार के मुताबिक, सुरक्षा के मद्देनजर मेला क्षेत्र और क्षिप्रा के घाटों पर विभिन्न सुरक्षा बलों की तैनाती की गई है। 22 हजार से अधिक पुलिस जवान तैनात रहेंगे।

बेटों ने मां को जिंदा जला दिया

बुलंदशहर: उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में दिल दहला देने वाली वारदात सामने आई है। गुरूवार को एक वृद्ध मां को उसी के दो बेटों ने जिंदा जला डाला। दिल्ली में इलाज के दौरान वृद्धा की मौत हो गयी। पुलिस ने एक आरोपी बेटे की इस मामले में गिरफ्तार कर लिया है।

बताया जा रहा है कि फैसलाबाद इलाके की 6 बेटों की मां मिर्जा बेगम को उनके बेटों ने संपत्ति हड़प कर घर से बाहर निकाल दिया था। मिर्जा बेगम मुहल्ले में सड़क किनारे झोंपड़ी डालकर मुहल्ले के लोगो से आने वाले भोजन से अपना पेट पालती थी। गुरूवार सुबह वृद्ध मां के बेटों ने आपस में झगड़ा किया और अपने सिर फोड़ लिया।

जब मृतका मिर्जा बेगम बीच-बचाव करने लड़कों के बीच पहुंच गयी तो आरिफ और शाबिर ने उन पर मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दी। करीब 90 फीसदी जल चुकी मिर्जा बेगम को जिला अस्पताल में प्राथमिक उपचार के बाद दिल्ली रेफर कर दिया। दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में इलाज के दौरान मिर्जा बेगम की मौत हो गयी। पुलिस ने परिजनों से मिली तहरीर के आधार पर केस दर्ज करके एक आरोपी आरिफ को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है।

घोर लापरवाही! बीआरडी मेडिकल कालेज से नवजात बच्चे को लेकर भागा कुत्ता

गोरखपुर: उत्तर प्रदेश के गोरखपुर स्थित बाबा राघवदास मेडिकल कालेज में बृहस्पतिवार की सुबह एक सनसनीखेज व दिल दहला देने वाली घटना घटी। एक कुत्ता अस्पताल के अंदर से एक नवजात को मुंह में दबाए बाहर आया और जब तीमारदारों ने शोर मचाया तो खून से लथपथ बच्चे को पुरानी पर्ची काउंटर के पास छोड़कर भाग गया। बच्चे के पास जब लोग पहुंचे तो उसकी मौत हो चुकी थी। उसकी नाभि पर चिपकी पट्टी (लिकोप्लास्ट) से आशंका जतायी जा रही है कि बच्चा एनएनआईसीयू में था और कुत्ता वहीं से उसे उठा कर लाया होगा। पर, मेडिकल कालेज प्रशासन इस मामले में कुछ भी कहने से बच रहा है।

प्रशासन का कहना है कि कल कार्यालय खुलने के बाद ही पता चल सकेगा कि बच्चा मेडिकल कालेज में भर्ती था या कहीं बाहर से लाया गया था। समाचार लिखे जाने तक बच्चे को अपना बताने वाला कोई दंपति सामने नहीं आया था। बृहस्पतिवार की सुबह करीब साढ़े चार बजे मेडिकल कालेज के पुरानी पर्ची काउंटर से एक कुत्ता नवजात बच्चे को मुंह में दबाए बाहर आता दिखा। कुत्ते ने बच्चे की गर्दन पकड़ रखी थी। इस दृश्य को देखकर वहां मौजूद तीमारदारों का दिल दहल गया और उन्होंने शोर मचाया तो कुत्ता बच्चे को जमीन पर छोड़कर थोड़ी दूर जाकर खड़ा हो गया। बच्चे को देखकर यह आशंका जतायी जा रही है कि बच्चा मेडिकल कालेज के एनएनआईसीयू में भर्ती रहा होगा और कुत्ता वहीं से उसे लेकर बाहर आया होगा।

मेडिकल कालेज का एनएनआईसीयू दूसरे तल पर है और वह जिस तरह से पैक रहता है, उसमें किसी कुत्ते का घुस पाना आसान नहीं लगता। इस बात की भी आशंका जतायी जा रही है कि किसी ने मरे हुए बच्चे को कूड़ेदान में डाल दिया होगा और कुत्ता वहीं से उसे लेकर जा रहा था। दोनों ही स्थितियों में यह बेहद लापरवाही का मामला है। वहां मौजूद अन्य मरीजों के परिजनों का कहना है कि यह दृश्य देखकर कलेजा मुंह को आ गया। एक कुत्ता किसी बच्चे को मेडिकल कालेज में लेकर भाग रहा है, यह निश्चित ही घोर लापरवाही का मामला है। इस मामले में मेडिकल कालेज के एसआईसी एमक्यू बेग का कहना है कि मेडिकल कालेज में था या कोई बाहर से लाया, इस बात का पता शुक्रवार को कार्यालय खुलने पर चल सकेगा। यदि मेडिकल कालेज से उसे लेकर कुत्ता गया है तो कर्मचारियों पर कार्रवाई की जाएगी।

इस वर्ष विशेष योगों के साथ मनेगी हनुमान जयंती

हनुमान जी को हिन्दु धर्म में कष्ट विनाशक और भय नाशक देवता के रूप में जाना जाता है| हनुमान जी अपनी भक्ति और शक्ति के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं| सारे पापों से मुक्त करने ओर हर तरह से सुख-आनंद एवं शांति प्रदान करने वाले हनुमान जी की उपासना लाभकारी एवं सुगम मानी गयी है। पुराणों के अनुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी मंगलवार, स्वाति नक्षत्र मेष लग्न में स्वयं भगवान शिवजी ने अंजना के गर्भ से रुद्रावतार लिया।

आपको बता दें कि जब भी दास्य भक्ति का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण देना होता है तो हनुमान की रामभक्ति का स्मरण होता है। वे अपने प्रभु पर प्राण अर्पण करने के लिए सदैव तैयार रहते थे। प्रभु राम की सेवा की तुलना में शिवत्व व ब्रह्मत्व की इच्छा भी उन्हें कौडी के मोल की लगती थी। हनुमान सेवक व सैनिक का एक सुंदर सम्मिश्रण हैं। हनुमान अर्थात शक्ति व भक्ति का संगम। अंजनी को भी दशरथ की रानियों के समान तपश्चर्या द्वारा पायस (चावल की खीर, जो यज्ञ-प्रसाद के तौरपर बाँटी जाती है) प्राप्त हुई थी व उसे खाने के उपरांत ही हनुमानका जन्म हुआ था। उस दिन चैत्रपूर्णिमा थी, जो आज हनुमान जयंती’ के रूप में मनाई जाती है । इस बार हनुमान जयंती 22 अप्रैल दिन शुक्रवार को है|

इस वर्ष हनुमान जयंती पर तीन विशेष योग के साथ मनेगी। वहीं संकट मोचन की जयंती चंद्रग्रहण मुक्त मनेगी। चैत्र शुक्ल पक्ष पूर्णिमा शुक्रवार 22 अप्रैल को आ रही हनुमान जयंती में वज्र योग, सिद्धी योग और राज योग बनने के साथ ही उधा के सूर्य, उधा के शुक्र एवं सिंह राशि में गुरु तथा चंद्र व सूर्य की परस्पर दृष्टि बन रही है। हनुमान जयंती पर यह विशेष योग 12 साल बाद बना है।

हनुमान जयंती पर 22 अप्रैल को वज्र योग चित्रा नक्षत्र में सुबह 6.11 बजे से शुरू होकर दूसरे दिन स्वाति नक्षत्र में सुबह 8.48 बजे तक रहेगा। शुक्रवार सुबह 6.11बजे सूर्योदय होगा। इसी समय हनुमानजी का जन्म माना है। सिद्धी योग शुक्रवार सुबह 10.41 से शाम 5.37 बजे तक तथा राज योग सूर्योदय से दोपहर 3.08 बजे तक रहेगा। इसके साथ ही उच्च के सूर्य, उच्च के शुक्र एवं सिंह राशि में गुरु तथा चंद्र व सूर्य की परस्पर दृष्टि बन रही है।

चैत्र पूर्णिमा के दिन हनुमान जयंती मनाई जाती है। प्राय: शनिवार व मंगलवार हनुमान के दिन माने जाते हैं। इस दिन हनुमानजी की प्रतिमा को सिंदूर व तेल अर्पण करने की प्रथा है। कुछ जगह तो नारियल चढाने का भी रिवाज है। अध्यात्मिक उन्नति के लिए वाममुखी (जिसका मुख बाईं ओर हो) हनुमान या दास हनुमान की मूर्ति को पूजा में रखते हैं।

अगर धन या पैसों से जुड़ी समस्याओं से निजात पाना चाहते है, दुर्भाग्य को दूर करना है तो हनुमानजी के ऐसे फोटो की पूजा करनी चाहिए जिसमें वे स्वयं श्रीराम, लक्ष्मण और सीता माता की आराधना कर रहे हैं। पवनपुत्र के भक्ति भाव वाली प्रतिमा या फोटो की पूजा करने से उनकी कृपा तो प्राप्त होती है साथ ही श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता की कृपा भी प्राप्त होती है। इन देवी-देवताओं की प्रसन्नता के बाद दुर्भाग्य भी सौभाग्य में परिवर्तित हो जाता है।  

चोरी के आरोप में दबंगों ने की युवक की पिटाई, मौत

बाराबंकी। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जनपद के थाना लोनी कटरा क्षेत्र के अन्तर्गत चोरी के आरोप में दबंगों ने एक व्यक्ति की जमकर लात घूसों व डंडों से पिटायी कर दी जिसकी इलाज के दौरान रविवार रात मेडिकल कालेज लखनऊ मे मौत हो गयी मृतक की पत्नी ने तीन दबंगों के विरुद्ध नामजद तहरीर दी है। पुलिस ने कार्रवाई शुरू कर दी है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार, 8 अप्रैल की दोपहर थाना लोनी कटरा क्षेत्र के ग्राम छेदी का पुरवा मजरे इलियासपुर निवासी काशीराम गौतम पुत्र सतन लाल अपने खेत मे पिपरमिंट की वेरन उखाड़ रहा था। इसी बीच गांव के दबंग जैकी वर्मा, मोहित वर्मा व अर्जुन वर्मा आदि लोग आये और यह कहकर काशीराम को पीटने लगे कि मेरे खेत में चोरी कर रहे हो, इन दबंगों की पिटाई से काशीराम वहीं पर अधमरा हो गया। जब ग्रामीणों ने बीच बचाव किया तो दबंग वहा से निकल भागे गंभीर अवस्था में काशी राम को लेकर उसके परिजन पहले त्रिवेदीगंज अस्पताल आये, जहा पर डॉक्टरों ने उसे लखनऊ ट्रामा सेंटर रेफर कर दिया, जहां बीती रात इलाज के दौरान काशीराम की मौत हो गयी।

मौत की सूचना मिलने के बाद गांव में मातम छा गया पीड़ित की पत्नी ने थाना लोनी कटरा में आकर नामजद शिकायती पत्र दिया है, घटना के बारे मे थाना प्रभारी श्रीधर पाठक का कहना है कि जांच करके मुकदमा दर्ज किया जायेगा और आरोपियों को पकड़कर जेल भेजा जायेगा।

महावीर जयंती: ऐसे बने वर्धमान से महावीर स्वामी

24वें तीर्थकर भगवान महावीर स्वामी की जयंती आज देशभर में मनाई जा रही है| महावीर स्वामी ऐसे अवतरी थे जिन्होनें तत्कालीन समाज में व्याप्त अवांछनीयता का निराकरण कर समाज को नयी व सार्थक दिशा दी|महावीर जयंती के अवसर पर जैन धर्मावलंबी प्रात:काल प्रभातफेरी निकालते हैं| भव्य जुलूस के साथ पालकी यात्रा का आयोजन भी किया जाता है| इसके बाद महावीर स्वामी का अभिषेक किया जाता है व शिखरों पर ध्वजा चढ़ाई जाती है|

क्या है धारणा

जैन धर्म के अनुसार, भगवान महावीर का जन्म 540 ई.पूर्व कुण्ड ग्राम (वर्तमान बिहार) के एक राजघराने में राजकुमार के रूप में चैत्र शुक्ल पक्ष त्रयोदशी को हुआ था| इनके बचपन का नाम वर्धमान था, यह लिच्छवी कुल के राजा सिद्दार्थ और रानी त्रिशला के पुत्र थे| जैन धर्म के धर्मियों का मानना है कि वर्धमान ने घोर तपस्या द्वारा अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर ली थी जिस कारण वह विजेता हुए और उनको ‘महावीर’ कहा गया व उनके अनुयायी ‘जैन’ कहलाए| अहिंसा परमो धर्म: के प्रवर्तक के रूप में महावीर स्वामी की शिक्षाएं वर्तमान में कहीं अधिक प्रासंगिक और अनुकरणीय हैं|

महावीर के उपदेश

महावीर जी ने अपने उपदेशों द्वारा समाज का कल्याण किया उनकी शिक्षाओं में मुख्य बातें थी कि सत्य का पालन करो, अहिंसा को अपनाओ, जियो और जीने दो। इसके अतिरिक्त उन्होंने पांच महाव्रत, पांच अणुव्रत, पांच समिति तथा छ: आवश्यक नियमों का विस्तार पूर्वक उल्लेख किया, जो जैन धर्म के प्रमुख आधार हुए|

महावीर ने अपने प्रत्येक अनुयायी के लिए अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्राह्मचर्य व अपरिग्रह इन पांच व्रतों का पालन अनिवार्य बताया है, लेकिन इन सभी में अहिंसा की भावना प्रमुख है| उनकी मान्यता है कि मानव व दानव में केवल अहिंसा का ही अंतर है| जबसे मानव ने अहिंसा को भुलाया तभी से वह दानव होता जा रहा है और उसकी दानवी वृत्ति का अभिशाप आज समस्त विश्व भोगने को विवश है| उनका कहना था कि संसार के प्रत्येक जीव को अपना जीवन अति प्रिय है, जो उसको नष्ट करने व उसको क्षति पहुंचाने को उद्यत रहता वह हिंसक और दानव है| इसके विपरीत जो उसकी रक्षा करता है वह अहिंसक और वही मानव है|

महावीर ने बताई जीवन की ‘बारह भावना’

महावीर स्वामी ने संसार में जीव की स्थिति और कर्मानुसार उसकी भली-बुरी गति के संदर्भ में गहन चिंतन किया| इस गहन चिंतन के बाद उन्होंने जिस जीवन प्रणाली का प्रतिपादन किया वह जैन धर्म में ‘बारह भावना’ के नाम से प्रसिद्ध है|

1. अनित्य भावना- उन्होंने कहा इंद्रिय सुख क्षणभंगुर है इसलिए इस अनित्य जगत के लिए मैं उत्सुक नहीं होऊंगा|
2. अशरण भावना- अर्थात जिस प्रकार निर्जन वन में सिंह के पंजे में आये शिकार के लिए कोई शरण नहीं होती, उसी प्रकार सांसारिक प्राणियों की रोग व मृत्यु से रक्षा करने वाला कोई नहीं है|
3. संसारानुप्रेक्षा भावना-जिसका अर्थ है अज्ञानी भोग विषयों को भी सुख मानते हैं, लेकिन ज्ञानी उनको नरक का निमित्त समझते हैं, इसलिए मानव को सत्कर्मों द्वारा पाप से छूटने का यत्न करना चाहिए|
4. एकत्व भावना- अर्थात प्राणी को जन्म के बाद अकेले ही संसार रूपी वन में भटकना होता है|
5. अन्यत्व भावना- इसका अर्थ है कि जगत में कोई भी संबंध स्थित नहीं है| माता-पिता, पत्नी व संतान भी अपने नहीं है और समस्त सांसारिक पदार्थ व्यक्ति से अलग है|
6. अशुचि भावना- इसका अर्थ है रुधिर, वीर्य आदि से उत्पन्न यह शरीर मल मूत्र आदि से भरा हुआ है| अत: इस पर गर्व करना अनुचित है|
7. अस्तव भावना- जिस प्रकार छिद्र युक्त जहाज जल में डूब जाता है उसी प्रकार जीव भी कर्मों के अनुसार इस भव सागर में डूबता-उतराता रहता है|
8. निर्जरा भावना- इसका अर्थ है पूर्व कर्मों को तपस्या द्वारा क्षय करना ही योगियों का कर्तव्य है|

इस तरह कुल बारह भावनाओं के परिमार्जन से महावीर ने जीवन को मोक्ष की दिशा दी|

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी थे महावीर से प्रभावित

अहिंसा को अपने जीवन में उतारने वाले राष्ट्रपिता व महात्मा गांधी कहकर सम्बोधित किये जाने वाले मोहन दास करमचंद गांधी भी महावीर से प्रभावित थे| उन्होंने गुजरात के एक जैन विचारक के उपदेशों से प्रभावित होकर महावीर स्वामी के अहिंसा तत्व दर्शन का गहन अध्ययन किया| जिसके बाद महात्मा गांधी, महावीर के विचारों से इतने प्रभावित हुए कि आजीवन उनके अनुयायी बने रहे| उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का आधार अहिंसा पर रखकर पूरे संसार के सामने एक एक अनूठा आदर्श रखा|

वर्ष 1919 में एक सभा में भाषण देते हुए महात्मा गांधी ने कहा, “मैं विश्वासपूर्वक कहता हूं कि महावीर स्वामी का नाम इस समय यदि किसी सिद्धान्त के लिए पूजा जाता है तो वह अहिंसा ही है| मैंने अपनी शक्ति के अनुसार संसार के जिन अलग-अलग धर्मों का अध्ययन किया है और मुझे उनके जो सिद्धांत योग्य लगे, मैं उनका आचरण करता रहा हूं| मैं स्वयं को एक पक्का सनातनी हिन्दू मानता हूं, परन्तु मैं नहीं समझता कि जैन धर्म दूसरे दर्शनों की अपेक्षा हल्का है| मैं जानता हूं कि जो सच्चा हिन्दू है वह जैन है और जो सच्चा जैन है, वह हिन्दू है| प्रत्येक धर्म की उच्चता इसी बात में है कि उस धर्म में अहिंसा का तत्व कितने परिमाण में है और इस तत्व को यदि किसी ने अधिक से अधिक विकसित किया है तो वे महावीर स्वामी थे|”

महावीर ने बलि प्रथा जैसी कुरीतियों का खुलकर विरोध किया| भगवान महावीर ने ‘जियो और जीने दो’ का सिद्धान्त प्रचारित कर मानव में वैचारिक सहिष्णुता, अहिंसा और प्राणी मात्र के प्रति सदभावना जगाने का प्रयास किया| हम भगवान महावीर के बताए आदर्शो को आत्मसात कर समाज में सदभाव का वातावरण बनाने में भागीदारी निभा सकते है|

...यहां बिन सिर वाली मां पूरी करती हैं मनोकामनाएं


झारखंड की राजधानी रांची से करीब 80 किलोमीटर दूर रजरप्पा स्थित छिन्नमस्तिके मंदिर शक्तिपीठ के रूप में काफी विख्यात है। यहां भक्त बिना सिर वाली देवी मां की पूजा करते हैं और मानते हैं कि मां उन भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। मान्यता है कि असम स्थित मां कामाख्या मंदिर सबसे बड़ी शक्तिपीठ है, जबकि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी शक्तिपीठ रजरप्पा स्थित मां छिन्नमस्तिके मंदिर ही है। रजरप्पा के भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मां छिन्नमस्तिके मंदिर आस्था की धरोहर है। मंदिर के वरिष्ठ पुजारी असीम पंडा ने बताया कि वैसे तो यहां साल भर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है, लेकिन शारदीय नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि के समय भक्तों की संख्या बढ़ जाती है।

मंदिर की उत्तरी दीवार के साथ रखे एक शिलाखंड पर दक्षिण की ओर रुख किए माता छिन्नमस्तिके का दिव्य रूप अंकित है। मंदिर के निर्माण काल के बारे में पुरातात्विक विशेषज्ञों में मतभेद है। कई विशेषज्ञ का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण 6000 वर्ष पहले हुआ था और कई इसे महाभारतकालीन का मंदिर बताते हैं। छिन्नमस्तिके मंदिर के अलावा, यहां महाकाली मंदिर, सूर्य मंदिर, दस महाविद्या मंदिर, बाबाधाम मंदिर, बजरंगबली मंदिर, शंकर मंदिर और विराट रूप मंदिर के नाम से कुल सात मंदिर हैं। पश्चिम दिशा से दामोदर तथा दक्षिण दिशा से कल-कल करती भैरवी नदी का दामोदर में मिलना मंदिर की खूबसूरती का बढ़ावा देता है।

मंदिर के अंदर जो देवी काली की प्रतिमा है, उसमें उनके दाएं हाथ में तलवार और बाएं हाथ में अपना ही कटा हुआ सिर है। शिलाखंड में मां की तीन आंखें हैं। बायां पैर आगे की ओर बढ़ाए हुए वह कमल पुष्प पर खड़ी हैं। पांव के नीचे विपरीत रति मुद्रा में कामदेव और रति शयनावस्था में हैं। मां छिन्नमस्तिके का गला सर्पमाला तथा मुंडमाल से सुशोभित है। बिखरे और खुले केश, आभूषणों से सुसज्जित मां नग्नावस्था में दिव्य रूप में हैं। दाएं हाथ में तलवार तथा बाएं हाथ में अपना ही कटा मस्तक है। इनके अगल-बगल डाकिनी और शाकिनी खड़ी हैं जिन्हें वह रक्तपान करा रही हैं और स्वयं भी रक्तपान कर रही हैं। इनके गले से रक्त की तीन धाराएं बह रही हैं।

माता द्वारा सिर काटने के पीछे एक पौराणिक कथा है। जनश्रुतियों और कथा के मुताबिक कहा जाता है कि एक बार मां भवानी अपनी दो सहेलियों के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने आई थीं। स्नान करने के बाद सहेलियों को इतनी तेज भूख लगी कि भूख से बेहाल उनका रंग काला पड़ने लगा। उन्होंने माता से भोजन मांगा। माता ने थोड़ा सब्र करने के लिए कहा, लेकिन वे भूख से तड़पने लगीं। सहेलियों के विनम्र आग्रह के बाद मां भवानी ने खड्ग से अपना सिर काट दिया, कटा हुआ सिर उनके बाएं हाथ में आ गिरा और खून की तीन धाराएं बह निकलीं।

सिर से निकली दो धाराओं को उन्होंने उन दोनों की ओर बहा दिया। बाकी को खुद पीने लगीं। तभी से मां के इस रूप को छिन्नमस्तिका नाम से पूजा जाने लगा। पुजारी कन्हैया पंडा के मुताबिक, यहां प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में साधु, महात्मा और श्रद्धालु नवरात्रि में शामिल होने के लिए आते हैं। 13 हवन कुंडों में विशेष अनुष्ठान कर सिद्धि की प्राप्ति करते हैं। मंदिर का मुख्य द्वारा पूरब मुखी है। मंदिर के सामने बलि का स्थान है। बलि-स्थान पर प्रतिदिन औसतन सौ-दो सौ बकरों की बलि चढ़ाई जाती है। रजरप्पा जंगलों से घिरा हुआ है, इसलिए एकांत वास में साधक तंत्र-मंत्र की सिद्धि प्राप्ति में जुटे रहते हैं। नवरात्रि के मौके पर असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश समेत कई प्रदेशों से साधक यहां जुटते हैं।