एक महान योद्धा जो पल भर में कर सकता था महाभारत के युद्ध का अंत!

पौराणिक महाकाव्य महाभारत के बारे में जानता तो हर कोई है| यह एक ऐसा शास्‍त्र है जिसके बारे में सबसे ज्‍यादा चर्चा और बातें की जाती है और इस काव्‍य में कई रहस्‍य है जिनके बारे में आजतक सही-सही पता नहीं लग पाया है या फिर बहुत कम लोगों को ही पता है। उदाहरण के लिए- पाण्डु पुत्र भीम के महाबली पौत्र बर्बरीक के बारे में| आपको पता है बर्बरीक अत्यंत बलशाली था| बर्बरीक के पास दिव्यशक्तियां थी वह एक ही बाण से सब कुछ तहस-नहस कर सकता था| लेकिन महाभारत के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने उससे सिर मांग लिया| क्या आपको पता है भगवान श्री कृष्ण ने भीम के महाबली पौत्र बर्बरीक का सिर मांगा था?

प्रसिद्ध महाकाव्य महाभारत में अनेक शूरवीर और महायोद्धा थे ,पर उन सब में एक ऐसा योद्धा था जो अपने पराक्रम के बल पर इस महान युद्ध को केवल कुछ पलों में ही अपने हित में कर सकता था | जिसके अद्भुत सामथ्र्य से स्वय भगवान कृष्ण भी अचम्भित थे | पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण सभी योद्धाओ की वीरता का आकलन करना चाहते थे , उन्होंने सभी शूरवीरो से एक सवाल किया की तुम इस युद्ध को अपने दम पर कितने दिन में समाप्त कर सकते हो|  महाबली भीम के अनुसार वो इस युद्घ को 20 दिन में समाप्त कर सकते थे ,गुरु दोर्णाचारय 25 दिन में ,महादानी अंगराज कर्ण 24 दिन में तथा महान धनुधर अर्जुन इस युद्ध को 28 दिन में समाप्त कर सकते थे |जब यही सवाल श्री कृष्ण द्वारा महाबली भीम पौत्र और शूरवीर घटोच्कच के पुत्र बर्बरीक से पूछी गयी,तो उनका उत्तर था मात्र केवल कुछ छणों में | जिसका कारण ये था की उन्हें भगवान शंकर से उन्हें तीन आमेघ बाण प्राप्त हुए थे  तथा  बर्बरीक ने युद्ध कौशल अपनी माता से सीखा था|

बर्बरीक महाबली भीम और हिडिम्बा के पुत्र घटोत्कक्ष का पुत्र था जो एक महान योद्धा था I चूँकि बर्बरीक का जन्म राक्षस कुल में हुआ था इसलिए वह शरीर से अतिबलशाली था और बड़ा भयंकर था I बर्बरीक ने बचपन से ही कामख्या देवी की तपस्या करके उनसे वरदान प्राप्त कर लिया था कि उसे युद्ध में कोई भी पराजित नहीं कर सकता था I एक कथा के अनुसार बर्बरीक को देवी कामख्या ने तीन ऐसे अद्वितीय तीर दिए थे जिनके चलाने से सम्पूर्ण दुश्मन सेना का नाश किया जा सकता था ई जब कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत का महाविनाशकारी युद्ध अपनी चरम पर था तभी बर्बरीक ने इस युद्ध में सम्मिलित होने का निर्णय ले लिया I लेकिन बर्बरीक ने साथ यह भी सपथ ली वह उसी तरफ से युद्ध करेगा जो दल कमजोर होगा I और जिस समय बर्बरीक युद्ध के मैदान की तरफ बढ़ रहा था उस समय कौरवों की हालत बहुत ही ख़राब हो रही थी अतः बर्बरीक का कौरवों की तरफ लड़ना बिलकुल तय था | भगवान् श्री कृष्ण को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने सोचा कि यह बर्बरीक जीत को हार में बदल देगाI अब भगवान् श्री कृष्ण ने बर्बरीक का वध करने का निर्णय ले लिए और इससे पहले कि बर्बरीक महाभारत के युद्ध के मैदान में पहुँच कर युद्ध का पाशा पलटपाता या फिर युद्ध के मैदान तक पहुँच पाता उससे पहले ही भगवान् श्री कृष्ण उसके पास पहुँच गए I

भगवान् श्री कृष्ण ने बर्बरीक से कहा कि हे महावीर आप इस युद्ध में किस की तरफ से सम्मिलित होने की इच्छा से आये है ? बर्बरीक ने उत्तर दिया कि जो पक्ष कमजोर होगा मैं उसी की तरफ युद्ध करूँगा ! भगवान् श्री कृष्ण ने कहा कि आपके पास तो कोई सेना नहीं है आप कैसे इस युद्ध में अपने पक्ष को विजय दिला पाओगे ? बर्बरीक ने कहा कि मेरे पास वह दिव्य शक्तियां है कि मैं एक ही बाण से सम्पूर्ण दुश्मन सेना का वध कर सकता हूँ ! भगवान् श्री कृष्ण ने कहा कि क्या आप मुझे वह विद्या दिखा सकते हैं ? कृष्ण ने कहा कि यह जो वृक्ष है ‍इसके सारे पत्तों को एक ही तीर से छेद दो तो मैं मान जाऊँगा। बर्बरीक ने आज्ञा लेकर तीर को वृक्ष की ओर छोड़ दिया।

जब तीर एक-एक कर सारे पत्तों को छेदता जा रहा था उसी दौरान एक पत्ता टूटकर नीचे गिर पड़ा, कृष्ण ने उस पत्ते पर यह सोचकर पैर रखकर उसे छुपा लिया की यह छेद होने से बच जाएगा, लेकिन सभी पत्तों को छेदता हुआ वह तीर कृष्ण के पैरों के पास आकर रुक गया। तब बर्बरीक ने कहा प्रभु आपके पैर के नीचे एक पत्ता दबा है कृपया पैर हटा लीजिए क्योंकि मैंने तीर को सिर्फ पत्तों को छेदने की आज्ञा दे रखी है आपके पैर छेदने की नहीं। उसके इस चमत्कार को देखकर कृष्ण चिंतित हो गए। भगवान श्रीकृष्ण ब्राह्मण का भेष बनाकर अगले दिन बर्बरीक के शिविर के द्वार पर पहुँच गए और दान माँगने लगे। बर्बरीक ने कहा माँगो ब्राह्मण! क्या चाहिए? ब्राह्मण रूपी कृष्ण ने कहा कि तुम दे न सकोगे। लेकिन बर्बरीक कृष्ण के जाल में फँस गए और कृष्ण ने उससे उसका शीश माँग लिया। बर्बरीक द्वारा अपने पितामह पांडवों की विजय हेतु स्वेच्छा के साथ शीशदान कर दिया। दान के पश्चात बर्बरीक ने कहा मेरी ये प्रबलतम इच्छा थी की काश महाभारत का युद्ध देख पाता ! तब भगवान् श्री कृष्ण ने कहा - हे वीर श्रेष्ठ आपकी ये इच्छा मैं पूर्ण करूंगा ! मैं आपके शीश को इस पीपल की सबसे उंची शाखा पर रख देता हूँ ! और आपको वो दिव्य दृष्टी प्राप्त है जिससे आप ये युद्ध पूरा आराम से देख पायेंगे ! उस योद्धा बर्बरीक ने अपना शीश काटकर श्री कृष्ण को दे दिया ! और श्री कृष्ण ने उसको वृक्ष की चोटी पर रखवा दिया|

दान के पश्चात्‌ श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को वर देते हुए कहा कि मैं आपको खुश होकर ये वरदान देता हूँ की आप कलयुग में मेरे श्याम नाम से पूजे जायेंगे| और उस समय आप लोगो का कल्याण करेंगे| और उनके दुःख क्लेश दूर करेंगे| ऐसा कह कर श्री कृष्ण ने उस शीश को खाटू नामक ग्राम में स्थापित कर दिया| ये जगह आज लाखो भक्तो और श्रद्धालुओं की आस्था का स्थान है| यह जगह आज खाटू श्यामजी ( जिला-सीकर, राजस्थान ) के नाम से प्रसिद्द है|

आखिर क्यों भगवान श्रीकृष्ण को काशी नगरी को भस्म करना पड़ा


काशी नगरी वर्तमान वाराणसी शहर में स्थित पौराणिक नगरी है। इसे संसार के सबसे पुरानी नगरों में माना जाता है। भारत की यह जगत्प्रसिद्ध प्राचीन नगरी गंगा के वाम (उत्तर) तट पर उत्तर प्रदेश के दक्षिण-पूर्वी कोने में वरुणा और असी नदियों के गंगासंगमों के बीच बसी हुई है। इस स्थान पर गंगा ने प्राय: चार मील का दक्षिण से उत्तर की ओर घुमाव लिया है और इसी घुमाव के ऊपर इस नगरी की स्थिति है। इस नगर का प्राचीन 'वाराणसी' नाम लोकोच्चारण से 'बनारस' हो गया था जिसे उत्तर प्रदेश सरकार ने शासकीय रूप से पूर्ववत् 'वाराणसी' कर दिया है।

विश्व के सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में काशी का उल्लेख मिलता है - 'काशिरित्ते.. आप इवकाशिनासंगृभीता:'। पुराणों के अनुसार यह आद्य वैष्णव स्थान है। पहले यह भगवान विष्णु (माधव) की पुरी थी। जहां श्रीहरिके आनंदाश्रु गिरे थे, वहां बिंदुसरोवर बन गया और प्रभु यहां बिंधुमाधव के नाम से प्रतिष्ठित हुए। ऐसी एक कथा है कि जब भगवान शंकर ने क्रुद्ध होकर ब्रह्माजी का पांचवां सिर काट दिया, तो वह उनके करतल से चिपक गया। बारह वर्षों तक अनेक तीर्थों में भ्रमण करने पर भी वह सिर उन से अलग नहीं हुआ। किंतु जैसे ही उन्होंने काशी की सीमा में प्रवेश किया, ब्रह्महत्या ने उनका पीछा छोड़ दिया और वह कपाल भी अलग हो गया। जहां यह घटना घटी, वह स्थान कपालमोचन-तीर्थ कहलाया। महादेव को काशी इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने इस पावन पुरी को विष्णुजी से अपने नित्य आवास के लिए मांग लिया। तब से काशी उनका निवास-स्थान बन गया।

क्या आपको पता है एक बार भगवान् श्रीकृष्ण को काशी नगरी को भस्म करना पड़ा था। आखिर ऐसा क्या हुआ। आपको बता दें कि यह कथा द्वापर युग की है तथा इस कथा का संबंध जरासंध से भी है। मगध का राजा जरासंध अत्यन्त क्रूर था तथा उसके पास असंख्य सैनिक तथा विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्र थे। उसकी सेना इतनी शक्तिशाली थी की वह पल भर में ही अनेको बड़े-बड़े सम्राज्यो को धरासायी कर सकती थी। इसलिए अधिकतर राजा जरासंध से डरे रहते थे तथा उसे अपना मित्र बनाये रखना चाहते थे। जरासंध की दो पुत्रिया थी जिनका नाम अस्ति और प्रस्ती था। जरासंध ने अपनी दोनों पुत्रियों का विवाह मथुरा राज्य के राजा कंश से कर दिया।

कंश एक अत्याचारी राजा था जिसके अत्याचार से उसकी प्रजा बहुत दुखी हो चुकी थी। उसके अत्याचार से मथुरा के लोगो को मुक्ति दिलाने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने कंश का वध कर दिया। अपने दामाद की मृत्यु से क्रोधित होकर जरासंध प्रतिशोध की ज्वाला में जलने लगा। उसने अनेको बार मथुरा में आक्रमण किया परन्तु श्री कृष्ण के हाथो वह परास्त होता रहा और हर बार युद्ध के बाद श्री कृष्ण जरासंध को जीवित झोड़ देते। एक बार जरासंध ने कलिंगराज पौंड्रक और काशिराज के साथ मिलकर मथुरा पर आक्रमण करने की योजना बनाई। उन्होंने मिलकर मथुरा के राज्य पर आक्रमण कर दिया परन्तु भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें भी पराजित कर दिया। जरासंध तो उस युद्ध से किसी तरह अपने प्राणो की रक्षा करते हुए भाग निकला लेकिन पौंड्रक और काशिराज भगवान श्री कृष्ण के हाथो मारे गए।

काशिराज के मृत्यु के बाद उसका पुत्र काशिराज बना तथा उसने श्री कृष्ण से अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने की प्रतिज्ञा ली। काशिराज भगवान श्री कृष्ण के शक्तियों को जानता था अतः उसने अपनी कठिन तपस्या के बल पर भगवान शिव को प्रसन्न किया और उनसे श्री कृष्ण को समाप्त करने का वर माँगा। भगवान शिव ने उससे कोई अन्य वर मांगने को कहा परन्तु वह अपने जिद पर अड़ा रहा। तब भगवान शिव ने अपने मंत्रो से एक भयंकर कृत्या काशिराज को बनाकर दी तथा उससे कहा की वत्स ! इसका प्रहार किसी भी प्राणी का अंत कर सकता है लेकिन कभी भी इस अस्त्र का प्रयोग किसी भी ब्राह्मण भक्त पर मत करना अन्यथा इसका प्रभाव निष्फल हो जायेगा। ऐसा कहकर भगवान शिव अंतर्ध्यान हो गए है।

इधर दुष्ट, कालयवन का वध कर भगवान श्री कृष्ण ने सभी मथुरावासियों के साथ मिलकर नई नगरी दवारिका बसाई। काशिराज ने भगवान श्री कृष्ण से अपने पिता के मृत्यु का बदला लेने के लिए कात्या को द्वारिका की ओर भेजा, परन्तु वह वह यह नहीं जनता था की श्री कृष्ण ब्राह्मण भक्त है इसलिए द्वारिका पहुंचकर भी कात्या भगवान श्री कृष्ण का कुछ नहीं कर पाई उल्टा भगवान श्री कृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र उसकी ओर चला दिया। सुदर्शन चक्र भयंकर अग्नि लपेटे हुए कात्या की ओर झपटा था कात्या अपने प्राणो की रक्षा के लिए काशी की ओर भागी। कृत्या के पीछे-पीछे सुदर्शन चक्र भी काशी नगरी आ पहुंचा तथा उसने कात्या को भस्म कर दिया। परन्तु जब इसके बाद भी सुदर्शन का क्रोध शांत नहीं हुआ तो उसने पूरी काशी को अपनी अग्नि से भस्म कर डाला। कालान्तर में वारा और असि नदियों के मध्य यह नगर पुनः बसाई गई। वारा और असि नदियों के मध्य बसने के कारण यह नगर वाराणसी के नाम से विख्यात है। इस प्रकार काशी का वाराणसी के रूप में पुनर्जन्म हुआ।

भगवान शिव क्यों कहलाते हैं त्रिपुरारी, जानिए क्या है रहस्य


हिन्दू धर्म में भगवान शिव को मृत्युलोक देवता माने गए हैं। शिव को अनादि, अनंत, अजन्मा माना गया है यानि उनका कोई आरंभ है न अंत है। न उनका जन्म हुआ है, न वह मृत्यु को प्राप्त होते हैं। इस तरह भगवान शिव अवतार न होकर साक्षात ईश्वर हैं। भगवान शिव को कई नामों से पुकारा जाता है। कोई उन्हें भोलेनाथ तो कोई देवाधि देव महादेव के नाम से पुकारता है| वे महाकाल भी कहे जाते हैं और कालों के काल भी।

शिव की साकार यानि मूर्तिरुप और निराकार यानि अमूर्त रुप में आराधना की जाती है। शास्त्रों में भगवान शिव का चरित्र कल्याणकारी माना गया है। उनके दिव्य चरित्र और गुणों के कारण भगवान शिव अनेक रूप में पूजित हैं। आपको बता दें कि देवाधी देव महादेव मनुष्य के शरीर में प्राण के प्रतीक माने जाते हैं| आपको पता ही है कि जिस व्यक्ति के अन्दर प्राण नहीं होते हैं तो उसे शव का नाम दिया गया है| भगवान् भोलेनाथ का पंच देवों में सबसे महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है|

भगवान शिव को मृत्युलोक का देवता माना जाता है| आपको पता होगा कि भगवान शिव के तीन नेत्रों वाले हैं| इसलिए त्रिदेव कहा गया है| ब्रम्हा जी सृष्टि के रचयिता माने गए हैं और विष्णु को पालनहार माना गया है| वहीँ, भगवान शंकर संहारक है| यह केवल लोगों का संहार करते हैं| भगवान भोलेनाथ संहार के अधिपति होने के बावजूद भी सृजन का प्रतीक हैं। वे सृजन का संदेश देते हैं। हर संहार के बाद सृजन शुरू होता है। इसके आलावा पंच तत्वों में शिव को वायु का अधिपति भी माना गया है। वायु जब तक शरीर में चलती है, तब तक शरीर में प्राण बने रहते हैं। लेकिन जब वायु क्रोधित होती है तो प्रलयकारी बन जाती है। जब तक वायु है, तभी तक शरीर में प्राण होते हैं। शिव अगर वायु के प्रवाह को रोक दें तो फिर वे किसी के भी प्राण ले सकते हैं, वायु के बिना किसी भी शरीर में प्राणों का संचार संभव नहीं है। 

तो आइये जाने आखिर क्यों कहलाते हैं भगवान शिव त्रिपुरारी!

भगवान शिव के त्रिपुरारी कहलाने के पीछे एक बहुत ही रोचक कथा है। शिव पुराण के अनुसार जब भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने दैत्यराज तारकासुर का वध किया तो उसके तीन पुत्र तारकक्ष, विमलाकक्ष, तथा विद्युन्माली  अपने पिता की मृत्यु पर बहुत दुखी हुए। उन्होंने देवताओ और भगवान शिव से अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने की ठानी तथा कठोर तपश्या के लिए उच्चे पर्वतो पर चले गए। अपनी घोर तपश्या के बल पर उन्होंने ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और उनसे अमरता का वरदान  माँगा। परन्तु ब्रह्मा जी ने कहा की मैं तुम्हे यह वरदान देने में असमर्थ हूँ अतः मुझ से कोई अन्य वरदान मांग लो। तब तारकासुर के तीनो पुत्रो ने ब्रह्मा जी से कहा की आप हमारे लिए तीनो पुरियों (नगर) का निर्माण करवाइये तथा इन नगरो के अंदर बैठे-बैठे हम पृथ्वी का भ्रमण आकाश मार्ग से करते रहे है। जब एक हजार साल बाद यह पूरिया एक जगह आये तो मिलकर सब एक पूर हो जाए। तब जो कोई देवता इस पूर को केवल एक ही बाण में नष्ट कर दे वही हमारी मृत्यु का कारण बने। ब्रह्माजी ने तीनो को यह वरदान दे दिया व एक मयदानव को प्रकट किया। ब्रह्माजी ने मयदानव से तीन पूरी का निर्माण करवाया जिनमे पहला सोने का दूसरा चांदी का व तीसरा लोहे का था। जिसमे सोने का नगर तारकक्ष, चांदी का नगर विमलाकक्ष व लोहे का महल विद्युन्माली को मिला।

तपश्या के प्रभाव व ब्रह्मा के वरदान से तीनो असुरो में असीमित शक्तिया आ चुकी थी जिससे तीनो ने लोगो पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। उन्होंने अपने पराक्रम के बल पर तीनो लोको में अधिकार कर लिया। इंद्र समेत सभी देवता अपने जान बचाते हुए भगवान शिव की शरण में गए तथा उन्हें तीनो असुरो के अत्याचारों के बारे में बताया। देवताओ आदि के निवेदन पर भगवान शिव त्रिपुरो को नष्ट करने के लिए तैयार हो गए। स्वयं भगवान विष्णु, शिव के धनुष के लिए बाण बने व उस बाण की नोक अग्नि देव बने। हिमालय भगवान शिव के लिए धनुष में परिवर्तित हुए व धनुष की प्रत्यंचा शेष नाग बने। भगवान विश्वकर्मा ने शिव के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण करवाया जिसके पहिये सूर्य व चन्द्रमा बने. इंद्र, वरुण, यम कुबेर आदि देव उस रथ के घोड़े बने।

उस दिव्य रथ में बैठ व दिव्य अश्त्रों से सुशोभित भगवान शिव युद्ध स्थल में गए जहाँ तीनो दैत्य पुत्र अपने त्रिपुरो में बैठ हाहाकार मचा रहे थे। जैसे ही त्रिपुर एक सीध में आये भगवान शिव ने अपने अचूक बाण से उन पर निशाना साध दिया। देखते ही देखते उन त्रिपुरो के साथ वे दैत्य भी जलकर भष्म हो गए और सभी देवता आकश मार्ग से भगवान शिव पर फूलो की वर्षा कर उनकी जय-जयकार  करने लगे। उन तीनो त्रिपुरो के अंत के कारण ही भगवान शिव त्रिपुरारी नाम से जाने जाते है।

...और अब लंगूरों ने टावर को ही बना लिया आशियाना


छत्तीसगढ़ में जंगलों की बेतहाशा कटाई के कारण जानवरों के रहन-सहन में भी बदलाव आया है। इससे सबसे ज्यादा प्रभावित लंगूर (काले मुंह का बंदर) हुए हैं। ऐसा इसलिए माना जा रहा है क्योंकि लंगूरों ने जंगल को छोड़कर जानलेवा 90-90 फीट ऊंचे बिजली टावर को अपना आशियाना बनाना शुरू कर दिया है। यह तथ्य छत्तीसगढ़ वाइल्ड लाइफ सोसाइटी की 'एडॉप्शन ऑफ पावर टावर एस रिफ्यूज बाई ग्रे लंगूर' के एक रिसर्च के जरिए सामने आया है। राज्य के आधा दर्जन जगहों पर बकायदा इसकी तस्दीक भी हुई है। इतने खतरनाक टावर में रहने के लिए उनके बीच संघर्ष के हालात भी देखे जा रहे हैं। 

जानकारों का कहना है कि लंगूर टावरों को जंगल से ज्यादा सुरक्षित मान रहे हैं। छत्तीसगढ़ वाइल्डलाइफ सोसाइटी के अध्यक्ष ए.एम.के भरोस बताते हैं कि इस रिसर्च को करने से पहले हमने जानना चाहा कि बंदर टावर पर क्यों चढ़ रहे हैं? देश-दुनिया के वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट से भी बातचीत की गई। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद, पांडुका, नांदघाट व मुंगेली, बेमेतरा में सड़क से लगे टावर में लंगूरों के समूह बैठे नजर आए। इसके अलावा उन जगहों पर भी गए जहां से जंगल की दूरी कम है।

रिसर्च टीम ने इसके लिए दो दिन इन जगहों पर गुजारे। तब यह पाया कि बंदर टावर पर रहना तो चाहते हैं लेकिन इंसानों से बचना चाहते हैं, इसलिए सूर्योदय से पहले उतर जाते हैं। वहीं अगर दिन में जाना है तो इनका समूह मॉनिटरिंग करता रहता है। एक विशेष आवाज के बाद टावर पर चढ़ते हैं। कई मौकों पर दूसरे समूह के लंगूर भी यहां आकर रहना चाहते हैं, जिससे संघर्ष की स्थिति उत्तपन्न होती है।

रविवि में लाइफ साइंस विभाग के प्रोफेसर डॉ. एके पति कहते हैं कि जंगल में रहने व खाने की कमी के कारण जंगली जानवर बस्तियों की ओर आ रहे हैं। लंगूर ऊंची जगह की तलाश करते-करतेटॉवर पर भी बैठ सकते है। हालांकि इस पर रिसर्च की आवश्यकता है। सूबे का 44 फीसदी इलाका जंगल है, लेकिन इसकी कटाई भी बेहिसाब हो रही है। ऐसे में वन्यजीव हाथी, भालू व हिरण भी इंसानी बस्ती की ओर रुख कर रहे हैं। बलरामपुर व रायगढ़ जिले में हाथियों का उत्पात है। 

महासमुंद जिले में भालूओं का समूह गांवों में पहुंचता है। बागबाहरा के चंडी माता मंदिर में तो भालू का पूरा परिवार हर शाम यहां आता है। इसी तरह हिरण भी पानी व चारा की तलाश में बस्तियों की ओर आ रहे है। पिछले दिनों राजधानी के माना और उरला के पास वाहन की ठोकर से दो हिरणों की मौत इसका प्रमाण है।

प्रेमिका को प्रपोज करने के लिए चढ़ गया पहाड़ पर, आगे क्या हुआ खुद ही पढ़ लीजिए

शादी तो हर इंसान करता है पर अपनी प्रेमिका से शादी के प्रपोज करने को लेकर पहाड़ पर चढ़ने को आप क्या कहेंगे। इस मौके को बेहद खास बनाने के चक्कर में यह युवक ऐसा फंसा कि वो वाकई उस खास दिन को कभी नहीं भूल पाएगा। दरअसल, वो अपनी प्रेमिका को शादी के लिए प्रपोज करने के लिए पहाड़ी पर चढ़ गया। जहां से उसने लाइव वीडियो के माध्यम से उसे प्रपोज भी किया, पर लौटते समय वो दूसरे रास्ते से उतरने की कोशिश में फंस गया।

माइकल बैंक्स नाम का युवक अपनी प्रेमिको को शादी के लिए प्रपोज करने के लिए 6000 फीट ऊपर पहाड़ी पर चढ़ गया और वहीं से उसने सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी र्गफ्रेंड को प्रपोज किया। पर जब वो वापस दूसरे रास्ते से आ रहा था, तो बीच में ही फंस गया। युवक के फंसने के बाद सूचना पाकर मौके पर पुलिस भी पहुंच गई। 

यही नहीं, जब पुलिस भी उसे नहीं उतार पाई, तो उसे उतारने में आपातकालीन सेवा को संदेश भेजकर हेलीकॉप्टर की मदद ली गई। बहरहाल, युवक की प्रेमिका ने तो उसे शादी के लिए हां बोल दिया, पर अब हेलीकॉप्टर से उतरने के बदले उसे अच्छी खासी रकम भरनी पड़ रही है। अब आप ऐसे इंसान को क्या कहेंगे जो अपनी प्रेमिका के लिए पहाड़ पर चढ़ जाए। द एजेंसी

पांच साल की बेटी को गोमती में डुबोकर मार डाला

लखनऊ: अवैध संबंधों के शक में पत्नी से झगड़कर राजमिस्त्री पांच साल की मासूम शिवानी को लेकर दिल्ली से निकल पड़ा। ट्रेन पर सवार पिता बच्ची को लेकर लखनऊ स्टेशन पर उतरा और फिर पैदल चल दिया। जेब में दस का फटा नोट और भूख से बिलखती बच्ची। झल्लाकर वह बच्ची को नहाने के बहाने स्मृति वाटिका के नीचे गोमती नदी में ले गया और डूबो दिया। दरिंदगी देख वहां मौजूद लोग दौड़े और आरोपित को पकड़ने के साथ ही बच्ची को नदी से निकालकर अस्पताल भेजा, जहां डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। आक्रोशित लोगों ने हैवान पिता को पीटने के बाद महानगर पुलिस के सुपुर्द कर दिया। पुलिस को आरोपित के पास एक बैग मिला, जिसमें उनके कपड़े व मोबाइल था। पुलिस ने मोबाइल से परिजनों को सूचना दे दी है।

मूल रूप से बिहार के मुज्जफरपुर खरकपुर बिरारी निवासी विनोद उर्फ वकील साहनी का बेटा बिरजू राजमिस्त्री है। बिरजू ने करीब सात साल पहले सासाराम की रहने वाली शालू गुप्ता से प्रेम विवाह किया था। उनकी पांच साल की बेटी शिवानी व डेढ़ साल की मुस्कान है। बिरजू परिवार के साथ दिल्ली के तम्बाकू फैक्ट्री स्वतंत्र नगर में कई साल से रह रहा था। बिरजू को शालू के चाल-चलन पर शक था। इसको लेकर उनके बीच आये दिन झगड़े होते थे। इंस्पेक्टर महानगर पी.के.झा ने बताया कि रविवार को बिरजू काम से लौटा तो उसने शालू को मोबाइल पर किसी से बात करते देख लिया। इस पर उनके बीच विवाद हुआ और बिरजू ने उसकी पिटाई कर दी। यह देख परिवारवालों ने बिरजू को जमकर कोसा और फटकार लगायी। सोमवार शाम बिरजू ने बैग में अपने व शिवानी के कपड़े रखे और उसे लेकर घर से निकल गया।

दिल्ली से वह ट्रेन पर सवार हुआ। मंगलवार सुबह वह चारबाग स्टेशन पर उतरा और शिवानी को लेकर बाहर आ गया। शिवानी भूख से रोने लगी तो बिरजू ने जेब में हाथ डाला। जेब में दस का फटा नोट मिला, जिसे चलाने का उसने भरसक प्रयास किया लेकिन नोट की खराब हालत देख किसी ने भी लेने से मना कर दिया। पैदल भटकता-भटकता बिरजू उसे लेकर निशातगंज आ पहुंचा। गर्मी व भूख से बिलख रही शिवानी को देख बिरजू ने चुप कराने की कोशिश की लेकिन वह संभाल नहीं सका। करीब साढ़े ग्यारह बजे स्मृति वाटिका के पास मंदिर के बगल में सीढ़ियां देख वह उसे लेकर नीचे पहुंचा। इस दौरान निशातगंज के पेपरमिल कालोनी निवासी रिजवान व न्यू हैदरबाद निवासी कल्लू गोमती नदी में नहा रहे थे। इस बीच बिरजू शिवानी को लेकर नदी में उतरा लेकिन और लोगों को देख वह बच्ची को नहलाने का दिखावा करने लगा। जैसे ही वहां सन्नाटा हुआ। बिरजू शिवानी को खीचकर गहरे पानी में ले गया और डूबोने लगा। बच्ची की छटपटाहट व चीख सुनकर कल्लू व रिजवान मदद के लिए दौड़े। दोनों ने बिरजू को धक्का मारा और शिवानी को बाहर निकाला।

बिरजू ने हमले की कोशिश की तो उन लोगों ने उसे जमकर पीटा। घटना की सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची। आनन-फानन में पुलिस ने बच्ची को सिविल अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। पुलिस को आरोपित बिरजू के पास एक बैग मिला। बैग में कपड़े व मोबाइल था। पुलिस ने मोबाइल के जरिये आरोपित बिरजू के पिता विनोद व साले प्रमोद गुप्त को फोन किया और सारी बात बतायी। पुलिस के मुताबिक घरवाले लखनऊ के लिए रवाना हो गये हैं। इंस्पेक्टर महानगर ने बताया कि आरोपित बिरजू अपने को पागल साबित करने का ढोंग करता रहा। पूछताछ के दौरान बिरजू खामोश बैठा था। उसे पुलिस की बात समझ नहीं आ रही थी। पुलिसकर्मी थप्पड़ मारता और पूछता, लेकिन वह भाषा बूझ नहीं पाता। आखिरकार इंस्पेक्टर को उसकी भाषा समझ आयी और फिर मैथिली भाषा में आरोपित के बयान लिये। उन्होंने बताया कि आरोपित के बैग में एक पत्र मिला। बिरजू ने यह पत्र बहन पिंकी के प्रेमी के खिलाफ लिखा था। उसने कहा कि बहन उसकी बदनामी करा रही है। मैं उसे भी मार डालूंगा। इंस्पेक्टर ने बच्ची की जान बचाने का प्रयास करने वाले व आरोपित को पकड़ने वाले रिजवान व कल्लू को पांच-पांच सौ रुपये का इनाम दिया।

गर्मियों में ऐसे संभालें दिल

गर्मियों का मौसम शुरू हो चुका है, तामपान तेजी से ऊंचाई छू रहा है। साधारण बेचैनी और थकान के साथ ही भीषण गर्मी कई स्वास्थ्य समस्याओं खास कर मौजूदा दिल के रोगियों के लिए समस्याएं खड़ी कर सकता है। सेहतमंद लोग आराम से इस बदलाव को सह लेते हैं, लेकिन जिनका दिल कमजोर हो उनमें स्ट्रोक, डिहाइड्रेशन और दिल का दौरा जैसी समस्याएं हो सकती हैं। यह स्थिति कभी-कभी जानलेवा भी हो सकती है। ऐसे में दिल को संभालने के लिए जागरूकता जरूरी है।

मानव दिल मुट्ठीभर मांस पेशियों का एक ढांचा है जो रक्त धमनियों के जरिए शरीर के बाकी अंगों और तंतुओं को रक्त पहुंचाता है। बाहर के तापमान में वृद्धि होने से शरीर को ठंडा रखने के लिए आम दिनों से ज्यादा पानी खर्च हो जाता है। दिल को ज्यादा तेजी से काम करना पड़ता है, ताकि त्वचा की सतह तक रक्त पहुंचा पसीने के जरिए शरीर को ठंडा रखने में मदद की जाए।

एस्कॉर्ट हार्ट इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर के निदेशक डॉ. प्रवीर अग्रवाल कहते हैं कि दिल के रोगियों में हीट स्ट्रोक (लू) का खतरा काफी ज्यादा होता है, क्योंकि प्लॉक से तंग हो चुकी धमनियों से त्वचा तक खून का बहाव सीमित हो सकता है।
उन्होंने कहा कि पसीना, जुकाम, त्वचा में तनाव, चक्कर आना, बेहोशी, मांसपेशियों में तनाव, एड़ियों में सूजन, सांस में दिक्कत, जी मिचलाना, उल्टी हीट स्ट्रोक के लक्षण हैं।

डॉ. प्रवीर अग्रवाल ने बताया कि हीट स्ट्रोक से बचने के लिए दिल के रोगियों को गर्मी के दिनों में दोपहर में घर के अंदर ही रहना चाहिए, खुले और हवादार कपड़े पहनने चाहिए, खूब पानी पीते रहना चाहिए और व्यायाम नहीं करना चाहिए। हीट स्ट्रोक होने पर दिल के रोगी को तुरंत नजदीकी हस्पातल ले जाना चाहिए।

फरीदाबाद स्थित फोर्टिस एस्कॉर्ट अस्पताल के कार्डियोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. संजय कुमार ने बताया कि गर्मियों में होने वाली डिहाइड्रेशन दिल के रोगियों के लिए बेहद खतरनाक है। यह धमनियों में रिसाव और स्ट्रोक का कारण बनता है। उन्होंने कहा कि 50 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोग अक्सर अपनी प्यास का अंदाजा नहीं लगा पाते और डिहाइड्रेशन का शिकार हो जाते हैं। घर से बाहर जाने पर बार-बार पानी पीते रहने का ध्यान रखना चाहिए।

बचाव के उपाय :

-सुबह सैर करना, दौड़ना और बागबानी ठंडे वक्त में करना चाहिए

-हल्के वजन और रंगों वाले ऐसे कपड़े पहनें, जिनमें सांस लेना आसान हो

-कैफीन और शराब से दूर रहें, क्योंकि यह डिहाइड्रेटिंग करते हैं

-हल्का और सेहतमंद आहार लें

-पूरे दिन में आठ से दस गिलास पानी पीना जरूरी है

-गर्मियों में अच्छी नींद लेना दिल पर दबाव कम करने और शरीर को स्फूर्ति देने के लिए आवश्यक है।

सिंहस्थ : मुस्लिम समाज के नौजवान बचा रहे जिंदगियां

उज्जैन: मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में चल रहे सिंहस्थ कुंभ में सांप्रदायिक सद्भाव के भी रंग देखने को मिल रहे हैं। एक तरफ जहां हिंदू क्षिप्रा नदी के जल में डुबकी लगाकर पुण्य लाभ अर्जित कर रहे हैं, तो दूसरी ओर मुस्लिम समाज के नौजवान पानी में डूबने वालों को बचाने में जुटे हैं। उज्जैन में क्षिप्रा नदी के घाटों पर विभिन्न तैराकों के दलों की तैनाती की गई है, ताकि स्नान के दौरान कोई हादसा न हो और जो श्रद्धालु गहरे पानी में पहुंचे उसे सुरक्षित निकाल लिया जाए। सबसे ज्यादा श्रद्धालु रामघाट पर पहुंचते हैं। यहां एक दल मौलाना मौज तैराक संघ का भी तैनात है। इस दल में ज्यादातर युवा मुस्लिम समुदाय से है।

मौलाना मौज तैराक दल संघ के अध्यक्ष अखलाक खान ने बताया कि उनके दल के सदस्य अब तक 40-45 श्रद्धालुओं को डूबने से बचा चुके हैं। पहले शाही स्नान के दिन 22 अप्रैल को छह जिंदगियों को डूबने से बचाया है। उन्होंने बताया कि तैराक दल न केवल पावन क्षिप्रा नदी में श्रद्धालुओं के साथ स्नान के दौरान होने वाली कोई भी अनहोनी को रोकने के लिए त संकल्पित है, बल्कि नदी तटों पर दिखने वाले जहरीले जीवों व सांपों को भी पकड़कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने में लगे हैं। इस प्रकार जलजीवों की सुरक्षा भी वे कर रहे हैं।

तैराक दल के सदस्य अब्दुल वाजिद ने बताया कि दल के सभी सदस्य सीटी बजाकर स्नान करने आए श्रद्धालुओं को गहरे पानी में जाने से चेताते हैं तथा उन्हें जंजीरों व बैरिकेड्स के भीतर ही रहने के लिए समझाते हैं। इसके बावजूद जब कुछ श्रद्धालु गहरे पानी में डुबकी लगाने के उत्साह में डूबने लगते हैं, वैसे ही दल के सदस्य डूबते व्यक्ति को गोता लगाकर बचा लेते हैं। मौलाना मौज तैराक दल संघ के अध्यक्ष खान ने आगे बताया कि उनका दल ग्रीन सिंहस्थ-क्लीन सिंहस्थ लिए भी काम कर रहा है। दल के सदस्यों ने सोमवार को होमगार्ड के आह्वान पर रामघाट की साफ-सफाई और नदी के पानी को स्वच्छ व निर्मल बनाने के लिए फूलों व अन्य पूजन सामग्री सहित कचरे को भी निकालकर बाहर किया।

बताया गया है कि तैराक दल वर्तमान तीन शिटों में 24 घंटे श्रद्धालुओं की सेवा व सुरक्षा में लगा हैं। सिविल डिफेंस के रूप में जो भी जिम्मेदारी दल के सदस्यों को सौंपी जाती है, दल द्वारा सेवा भावना से पूरा करने का प्रयास किया जाता है।

जल संरक्षण की अनूठी मिसाल पेश कर रहे हैं सिवनी गांव के आदिवासी

एक तरफ जहां छत्तीसगढ़ सहित पूरा देश में भीषण गर्मी के चलते पानी को लेकर हाहाकार मचा हुआ है, वहीं छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले का एक गांव पानी की उपलब्धता कैसे कायम रखा जा सकता है, इसकी सीख दे रहा है। घने जंगलों के बीच बसे सिवनी गांव के आदिवासी पिछले 10 साल से जल संरक्षण की अनूठी मिसाल पेश कर रहे हैं। एक छोटे से जलस्रोत को संरक्षित करके भीषण गर्मी में भी जल प्रबंधन और संरक्षण कैसे किया जा सकता है, ये आदिवासी ग्राम सिवनी के ग्रामीणों से सीखा जा सकता है।

भीषण गर्मी के इस मौसम में भी इस गांव के जलस्रोत लबालब हैं और आसपास हरियाली छाई हुई है। जल के बेहतर प्रबंधन से गांव के जलस्रोतों में पानी का स्तर बढ़ा है, जिससे लगभग 25 एकड़ क्षेत्र में ग्रीष्मकालीन खेती भी किया जाता है। राजधानी रायपुर से 90 किलोमीटर की दूरी पर गरियाबंद जिला है। गरियाबंदे जिले के अंतर्गत विकासखंड मुख्यालय छुरा से 9 किलोमीटर दूर खरखरा-रसेला मार्ग पर लगभग 900 जनसंख्या वाला आदिवासी बहुल ग्राम सिवनी स्थित है।

बताया जाता है कि इस ग्राम के पूर्व की ओर एक छोटी सी लटी डबरा नाला बहती है, इस नाले पर बहने वाली जल को रोकने के लिए ग्राम पंचायत द्वारा एक छोटा सा पुलिया (रपटा) का निर्माण किया गया है, ग्रामीणों द्वारा जल के महत्व को समझते हुए इसे रोकने की पहल की गई और ग्राम पंचायत द्वारा सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर इस पर पुलिया का निर्माण किया गया। साथ ही छह छोटे गेट के माध्यम से पानी को रोका गया।

बरसात के दिनों में गेट को खोल दिया जाता है, परंतु बरसात खत्म होते ही गेट को बंद कर पानी रोका जाता है, जिससे गर्मी के चार महीने में भी नाले में चार फीट पानी लबालब रहता है, जिससे आसपास हरियाली तो रहती ही है, साथ-साथ गांव के लोग निस्तारी कार्य भी करते हैं। ग्रामीण बताते हैं कि इस नाले से न केवल गांव के ग्रामीण निस्तारी करते हैं, बल्कि जानवरों के लिए भी उपयोगी है। सिवनी की सरपंच गंगाबाई ठाकुर, सचिव गैंदराम नागेश और ग्रामीण कृष्ण कुमार ने बताया कि नाले के पानी को रोकने के लिए पहले ग्राम स्तरीय बैठक कर आपसी सहमति के बाद ग्राम पंचायत द्वारा सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया जाता है और समय-समय पर इसकी सफाई भी किया जाता है।

उन्होंने बताया कि गांव में लगभग 25 नलकूप हैं और 65-70 कुएं हैं, जिसके जलस्तर में वृद्धि हुई है। ग्राम पंचायत के सचिव नागेश ने बताया कि रपटा के ऊपरी भाग में एक छोटी-सी डबरी है, जिसके मेढ़ को काटकर उसमें मिलाने का विचार ग्राम पंचायत द्वारा किया जा रहा है, जिससे जल क्षेत्र में विस्तार होगा और ग्रामीणों को निस्तारी की बेहतर सुविधा मिलेगी।

ऐसा सूखा इससे पहले कभी नहीं देखा

तेलंगाना में प्रमुख जलाशयों के जलस्तर में तेजी से कमी आने के कारण पेयजल का गंभीर संकट पैदा हो गया है और ऊपर से पड़ रही भीषण गर्मी ने खेती को तबाह करके रख दिया है। यहां के लोगों का कहना है कि ऐसा सूखा उन्होंने इससे पहले कभी नहीं देखा। देश का सबसे नया राज्य दूसरी बार गंभीर सूखे की चपेट में है। पानी का संकट न सिर्फ गांवों में है, बल्कि यह शहरों तक और राजधानी हैदराबाद तक पहुंच चुका है। वर्षा के जल पर निर्भर रहनेवाले इस राज्य से लगभग 3.5 करोड़ छोटे किसानों का दूसरे राज्यों के शहरों में पलायन हो चुका है।

पानी की कमी के कारण किसान अपने पशुओं को बेहद कम कीमत पर बेच रहे हैं। किसान संगठनों के मुताबिक, सूखे से सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों -महबूबनगर, रंगा रेड्डी, मेडक, निजामाबाद और आदिलाबाद- से लगभग 14 लाख किसानों का पलायन हुआ है। अखिल भारतीय किसान सभा के उपाअध्यक्ष ए. एस. माला रेड्डी ने बताया, "पलायन यह दिखाता है कि यहां की स्थिति कितनी भयावह है।" यहां के लोग काम की तलाश में ज्यादातर मुंबई, भिवंडी, अहमदाबाद और सूरत जा रहे हैं।

किसान जिन पशुओं को कृषि और दुग्ध उत्पादों के लिए पाल रहे थे, उन्हें अब वे 20-30 फीसदी कम कीमत पर बेच रहे हैं। माला रेड्डी ने बताया, "बाजार में सैंकड़ों पशु रोज बेचने के लिए लाए जा रहे हैं।" किसानों की आत्महत्या की सबसे ज्यादा संख्या वाले इस राज्य की कृषि विकास दर नकारात्मक रही है और अब सूखे के कारण समस्या और गंभीर होने वाली है। राज्य के कुल 450 मंडलों में 231 मंडल सूखे की चपेट में है, जबकि किसान संगठनों का कहना है कि 368 मंडल सूखे की चपेट में हैं। साल 2015-16 में यहां अनाज उत्पादन 65 लाख टन रहा, जबकि लक्ष्य 1.11 करोड़ टन का था। राज्य में चावल का उत्पादन 35 लाख टन रहा, जबकि खपत 60 लाख टन की हुई। वहीं, दालों और तिलहन के उत्पादन में भी तेजी से गिरावट देखी गई।

राज्य में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) का काम कई गांवों में शुरू ही नहीं हो पाया है और जिन गांवों में काम शुरू भी हुआ है, वहां मजदूर तेज गर्मी के कारण इसमें शामिल नहीं हो रहे हैं। माला रेड्डी ने बताया कि इस योजना के तहत काम कर चुके मजदूरों को अभी तक मजदूरी नहीं मिली है। तेलंगाना संयुक्त कार्रवाई समिति (जेएसी) ने कहा है कि मनरेगा के तहत मजदूरी के भुगतान में देरी संकट को और बढ़ा रहा है। जेएसी के अध्यक्ष एम. कोडनडरम ने कहा कि सभी जिलों में स्थिति भयावह है। उन्होंने बताया कि नलगोंडा जिले के लोगों ने अपने 70 फीसदी पशुओं की बिक्री कर दी है।

राज्य ने केंद्र सरकार से सूखा राहत के तहत 3,064 करोड़ रुपये की मांग की है। लेकिन नई दिल्ली ने अभी तक 791 करोड़ रुपये देने की ही घोषणा की है। इसमें से भी अभी तक केवल 400 करोड़ रुपये ही जारी किए गए हैं। किसानों का कहना है कि फसलों के मुआवजे का वितरण अभी तक शुरू नहीं हुआ है। पेयजल की आपूर्ति के लिए राज्य सरकार ने केंद्र से 555 करोड़ रुपये की मांग की थी, लेकिन केंद्र ने अभी तक 72 करोड़ रुपये जारी किए हैं। वहीं, सरकार की लू से हुई मौत के आंकड़ों को छिपाने को लेकर आलोचना हो रही है, जबकि अधिकारी विरोधाभासी आंकड़े जारी कर रहे हैं।

माला रेड्डी ने बताया, "एक अधिकारी के मुताबिक लू से इस साल अब तक 45 लोगों की मौत हुई है, जबकि अनाधिकृत रूप से 200 लोगों के मरने की सूचना है।" किसान सभा ने कई स्थानों पर गरीबों के लिए खिचड़ी केंद्र खोला है, जिसमें मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव का निर्वाचन क्षेत्र मेडक जिले का गजवेल भी शामिल है। तेलंगाना राष्ट्र समिति की सरकार ने दावा किया है कि राहत के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं। स्कूलों में गर्मी की छुट्टियों के बावजूद वहां मिड डे मील के तहत भोजन मुहैया कराया जा रहा है।

सरकार ने कहा है कि वह सूखे के स्थायी निदान के लिए महत्वाकांक्षी परियोजना पर काम कर रही है। इसके तहत सिंचाई परियोजनाओं को फिर से डिजाइन किया जाएगा। सिंचाई टैंक को ठीक करने के लिए मिशन ककतिया और हरेक घर को पाइप से पीने का पानी पहुंचाने के लिए मिशन भगीरथ शुरू किया जाएगा। एक किसान नेता ने कहा कि अविभाजित आंध्र प्रदेश की सरकार ने साल 2005 से 2014 के बीच सिचाई परियोजनाओं पर 90,000 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए। लेकिन इससे केवल एक लाख एकड़ की अतिरिक्त भूमि की ही सिंचाई हो सकती है।

78 वर्षीय माला रेड्डी कहते हैं कि उन्होंने इससे खराब सूखा नहीं देखा है। "1972 में भी गंभीर सूखा का संकट पैदा हुआ था, लेकिन उस वक्त की सरकार ने गांवों में अनाज वितरण केंद्र खोलकर और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति कर इससे बेहतर तरीके निपटा था।" प्रदेश के कृष्णा और गोदावरी नदियों के 14 बड़े जलाशयों में पानी का स्तर बहुत ज्यादा कम हो गया है। वहीं भूजल के स्तर में 2.5 मीटर की गिरावट आई है। हैदराबाद में पानी की आपूर्ति करनेवाले चार जलाशय पूरी तरह सूख गए हैं। एक करोड़ की आबादी वाला यह शहर कृष्णा और गोदावरी नदियों के दो जलाशयों पर निर्भर है। वहीं, दूसरे शहरों में स्थितियां और भी खराब है, जहां ज्यादातर लोगों तक पाइप के जरिए पानी की आपूर्ति नहीं की जाती और वे सप्ताह में एक बार आनेवाले निगम के टैंकर पर निर्भर हैं।

जर्मन बाला को भाया बिहारी दूल्हा

भारत के लोग आमतौर पर जहां पाश्चात्य संस्कृति के कायल हुए जा रहे हैं, वहीं विदेशियों को भारतीय संस्कृति खूब भा रही है। यही नहीं, विदेशी मेमों (युवतियों) को अब भारतीय दूल्हा भी पसंद आने लगा है। जर्मनी की एक बाला को भारतीय संस्कृति ऐसी भाई कि उसने भारतीय बनने का फैसला कर लिया। जर्मन युवती विक्टोरिया ने बिहार के जमुई पहुंचकर गिद्धौर प्रखंड के रतनपुर गांव के 30 वर्षीय युवक राज के साथ परिणय सूत्र में बंध गई। जमुई निबंधन कार्यालय में कानूनी रूप से शादी के बंधन में बंधने को पहुंचे इन प्रेमी जोड़ों को देखने के लिए सोमवार को काफी लोग पहुंचे।

जर्मनी के हमबर्ग की रहने वाली विक्टोरिया की मुलाकात जमुई जिले के रतनपुर गांव के निवासी राज सिंह से वर्ष 2014 में गोवा में उस समय हुई थी, जब वह गोवा घूमने आई थी। राज गोवा स्थित एक टूरिज्म कंपनी में कार्यरत है। राज बताते हैं कि इस मुलाकात के बाद दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई, जो धीरे-धीरे प्यार में बदल गई। बकौल राज, "हम दोनों काफी करीब आ गए और दोनों ने शादी करने का फैसला ले लिया। विक्टोरिया को भी भारत का माहौल काफी पसंद आया।" वहीं विक्टोरिया ने कहा, "राज की बातों व विचारों से प्रभावित होकर मैंने उसके साथ जीवन गुजारने का फैसला कर लिया।"

विक्टोरिया इसी साल छह मार्च को दुल्हन बनने के इरादे से भारत आई और राज के साथ जमुई के रतनपुर गांव पहुंची। राज के पिता नरेंद्र कुमार सिंह व माता तिलोत्तमा देवी से आदेश मिलने के बाद दोनों ने 11 मार्च को शादी के लिए जमुई स्थित निबंधन कार्यालय में आवेदन दिया और फिर 25 अप्रैल को कागजी प्रक्रिया पूरी करने के बाद दोनों ने विधिवत शादी कर ली। राज के माता-पिता भी विदेशी बहू पाकर बहुत उत्साहित हैं। राज के पिता ने कहा कि भारतीय संस्कृति 'वसुधैव कुटुंबकम्' पर विश्वास करती है, यानी सारे जहां को अपना रिश्तेदार मानती है। ऐसे में जाति और देश का बंधन रिश्तों पर भारी नहीं पड़ सकता। उनके लिए उनके बेटे की खुशी ही सवरेपरि है।

शादी का प्रमाणपत्र लेने के बाद परिणय सूत्र में बंधे विक्टोरिया ने कहा, "मुझे भारत की संस्कृति बहुत पसंद है। मैं इसे पूरी तरह अपनाने की कोशिश करूंगी। हालांकि मुझे थोड़ी कठिनाई होगी, लेकिन मैं पूरी कोशिश करूंगी। बहरहाल, एक जर्मन युवती का 'बिहारिन' बनना क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है।

ये है दुनिया की सबसे छोटी पत्रकार, अकेले दम पर निकाला है अखबार

पेन्सिलवेनिया: अमेरिका के पेन्सिलवेनिया में एक 9 साल की बच्ची हिल्दे केट लिसियाक अखबार निकालती है। उसे कई भी खबर की जानकारी लगने के बाद वह खुद पेन, डायरी और कैमरा लेकर घटनास्थल तक पहुंच जाती है। इसके बाद वो उस खबर को अपने पेपर में जगह देती है और विस्तार से छापती है। 

इतनी छोटी बच्ची को रिपोर्टिंग करता देख अक्सर लोग हैरान रह जाते हैं। अब इसके चलते उसके इस काम से दुनिया भर में हिल्दे की जमकर तारीफ हो रही है।  इतना ही नहीं हिल्दे ने मर्डर की भी रिपोर्टिंग की है। हिल्दे को 2 अप्रैल को इलाके में हुई हत्या का पता चला। हत्या के चलते पुलिस ने उसके घर के आसपास के रास्ते बंद कर रखे थे।

इस दौरान हिल्दे ने पुलिस को बताया कि 'मैं जर्नलिस्ट हूं'। इसके बाद वह सीधे घटनास्थल पर पहुंच गई। यहां वह उस कमरे में गई, जहां शख्स की हत्या की गई थी। वापस घर आकर उसने पुलिस के अफसरों को मामले से जुड़ी सूचनाओं के लिए फोन भी किया। हिल्दे ने घटना का वीडियो भी बनाया। जब हिल्दे घटनास्थल पहुंची तो वहां दूसरा कोई जर्नलिस्ट नहीं था। इस घटना की फोटो और न्यूज को उसने सबसे पहले अपने सोशल मीडिया पेज और वेबसाइट पर दिखाया था। इसे देख सबने उसके काम की खूब सराहना की।

भीख मांगने से अच्छा है महिलाएं स्टेज पर डांस करें: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने डांस बारों को लाइसेंस न देने के मुद्दे पर सोमवार को महाराष्ट्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि गुजर-बसर के लिए सड़कों पर भीख मांगने या कोई अस्वीकार्य काम करने से अच्छा है कि महिलाएं स्टेज पर डांस करें। महाराष्ट्र सरकार ने डांस बारों की ओर से कुछ शतरें को न मानने की दलील देकर उन्हें लाइसेंस देने से इनकार कर दिया था। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति शिवकीर्ति सिंह की पीठ ने डांस बारों को लाइसेंस देने के लिए तय की गई कुछ पूर्व शर्तों पर गौर किया और कहा, बाद की शतरें की बराबरी पहले की शतरें से नहीं की जा सकती। न्यायालय ने कहा कि सरकार को कार्यस्थल पर महिलाओं की गरिमा का संरक्षण करना होगा। शीर्ष न्यायालय ने कहा, यह क्या है ? आपने हमारे आदेश का पालन क्यों नहीं किया है ?

हमने आपसे पिछली बार कहा था कि आपको संवैधानिक मानदंडों का पालन करना होगा। बहरहाल, पीठ ने महाराष्ट्र सरकार की तरफ से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पिंकी आनंद की यह दलील मान ली कि राज्य सरकार को सुनिश्चित करना है कि डांस बारों में कोई अश्लीलता न हो और महिलाओं की गरिमा वहां सुरक्षित रहे। विवादित शतरें पर न्यायालय ने डांस बार मालिकों और पुलिस दोनों से कहा कि जिन शतरें पर आपसी सहमति बनी थी, उसका पालन करें। ये शत्रें न्यायालय के पहले के आदेशों में शामिल थीं। न्यायालय ने सभी डांस बारों से कहा कि वे स्थानीय पुलिस से अपने कर्मियों की पृष्ठभूमि की जांच कराएं और डांस बारों के सभी प्रवेश बिंदुओं पर सीसीटीवी कैमरे लगाएं।

शीर्ष न्यायालय ने डांस बारों से यह भी कहा कि वे इस शर्त का पालन करें कि जहां बार बाला नाचेंगी और जहां दर्शक बैठकर देखेेंगे, उसके बीच एक रेलिंग होनी चाहिए। न्यायालय ने पुलिस को आदेश दिया कि वह डांस बार आवेदकों को नगर निकायों, स्वास्य एवं अग्निशमन विभागों से अनापत्ति प्रमाण-पत्र लाने के लिए न कहें क्योंकि जब होटल या रेस्तरां बनाए गए होंगे तो ये दस्तावेज जरूर मांगे गए होंगे। न्यायालय अब इस मामले पर अगली सुनवाई 10 मई को करेगा।