जानिए किन्नरों से जुड़े 20 रोचक तथ्य

लखनऊ: किन्नर समुदाय समाज से अलग ही रहता है और इसी कारण आम लोगों में उनके जीवन और रहन-सहन को जानने की जिज्ञासा बनी रहती है। किन्नरों का वर्णन ग्रंथों में भी मिलता है। यहां जानिए किन्नर समुदाय से जुड़ी कुछ खास बातें…

1. ज्योतिष के अनुसार वीर्य की अधिकता से पुरुष (पुत्र) उतपन्न होता है। रक्त (रज) की अधिकता से स्त्री (कन्या) उतपन्न होती है। वीर्य और राज़ समान हो तो किन्नर संतान उतपन्न होती है।
2. महाभारत में जब पांडव एक वर्ष का अज्ञात वास काट रहे थे, तब अर्जुन एक वर्ष तक किन्नर वृहन्नला बनकर रहा था।
3. पुराने समय में भी किन्नर राजा-महाराजाओं के यहां नाचना-गाना करके अपनी जीविका चलाते थे।  महाभारत में वृहन्नला (अर्जुन) ने उत्तरा को नृत्य और गायन की शिक्षा दी थी।
4. किन्नर की दुआएं किसी भी व्यक्ति के बुरे समय को दूर कर सकती हैं। धन लाभ चाहते है तो किसी किन्नर से एक सिक्का लेकर पर्स में रखे।
5. एक मान्यता है कि ब्रह्माजी की छाया से किन्नरों की उत्पत्ति हुई है। दूसरी मान्यता यह है कि अरिष्टा और कश्यप ऋषि से किन्नरों की उतपत्ति हुई है।
6. पुरानी मान्यताओं के अनुसार शिखंडी को किन्नर ही माना गया है। शिखंडी की वजह से ही अर्जुन ने भीष्म को युद्ध में हरा दिया था।
7. यदि कुंडली में बुध गृह कमजोर हो तो किसी किन्नर को हरे रंग की चूड़ियां व साडी दान करनी चाहिए।  इससे लाभ होता है।
8. किसी नए वयक्ति को किन्नर समाज में शामिल करने के भी नियम है। इसके लिए कई रीती-रिवाज़ है, जिनका पालन किया जाता है।  नए किन्नर को शामिल करने से पहले नाच-गाना और सामूहिक भोज होता है।
9. फिलहाल देश में किन्नरों की चार देवियां हैं।
10. कुंडली में बुध, शनि, शुक्र और केतु के अशुभ योगों से व्यक्ति किन्नर या नपुंसक हो सकता है।
11. किसी किन्नर की मृत्यु के बाद उसका अंतिम संस्कार बहुत ही गुप्त तरीके से किया जाता है।
12. किन्नरों की जब मौत होती है तो उसे किसी गैर किन्नर को नहीं दिखाया जाता। ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से मरने वाला अगले जन्म में भी किन्नर ही पैदा होगा। किन्नर मुर्दे को जलाते नहीं बल्कि दफनाते हैं.
13. हिंजड़ों की शव यात्राएं रात्रि को निकाली जाती है। शव यात्रा को उठाने से पूर्व जूतों-चप्पलों से पीटा जाता है।किन्नर के मरने उपरांत पूरा हिंजड़ा समुदाय एक सप्ताह तक भूखा रहता है।
14. किन्नर समुदाय में गुरू शिष्य जैसे प्राचीन परम्परा आज भी यथावत बनी हुई है। किन्नर समुदाय के सदस्य स्वयं को मंगल मुखी कहते है क्योंकि ये सिर्फ मांगलिक कार्यो में ही हिस्सा लेते हैं मातम में नहीं ।
15. किन्नर समाज कि सबसे बड़ी विशेषता है मरने के बाद यह मातम नहीं मनाते हैं। किन्नर समाज में मान्यता है कि मरने के बाद इस नर्क रूपी जीवन से छुटकारा मिल जाता है। इसीलिए मरने के बाद हम खुशी मानते हैं । ये लोग स्वंय के पैसो से कई दान कार्य भी करवाते है ताकि पुन: उन्हें इस रूप में पैदा ना होना पड़े।
16. देश में हर साल किन्नरों की संख्या में 40-50 हजार की वृद्धि होती है। देशभर के तमाम किन्नरों में से 90 फीसद ऐसे होते हैं जिन्हें बनाया जाता है। समय के साथ किन्नर बिरादरी में वो लोग भी शामिल होते चले गए जो जनाना भाव रखते हैं।
17. किन्नरों की दुनिया का एक खौफनाक सच यह भी है कि यह समाज ऐसे लड़कों की तलाश में रहता है जो खूबसूरत हो, जिसकी चाल-ढाल थोड़ी कोमल हो और जो ऊंचा उठने के ख्वाब देखता हो।  यह समुदाय उससे नजदीकी बढ़ाता है और फिर समय आते ही उसे बधिया कर दिया जाता है। बधिया, यानी उसके शरीर के हिस्से के उस अंग को काट देना, जिसके बाद वह कभी लड़का नहीं रहता।
18. अब देश में मौजूद पचास लाख से भी ज्यादा किन्नरों को तीसरे दर्जे में शामिल कर लिया गया है। अपने इस हक के लिए किन्नर बिरादरी वर्षों से लड़ाई लड़ रही थी। 1871 से पहले तक भारत में किन्नरों को ट्रांसजेंडर का अधिकार मिला हुआ था।  मगर 1871 में अंग्रेजों ने किन्नरों को क्रिमिनल ट्राइब्स यानी जरायमपेशा जनजाति की श्रेणी में डाल दिया था। बाद में आजाद हिंदुस्तान का जब नया संविधान बना तो 1951 में किन्नरों को क्रिमिनल ट्राइब्स से निकाल दिया गया। मगर उन्हें उनका हक तब भी नहीं मिला था।
19. आमतौर पर सिंहस्थ में 13 अखाड़े शामिल होते हैं, लेकिन इस बार एक नया अखाड़ा और बना है। ये अखाड़ा है किन्नर अखाड़ा। किन्नर अखाड़े को लेकर समय-समय पर विवाद होते रहे हैं। इस अखाड़े का मुख्य उद्देश्य किन्नरों को भी समाज में समानता का अधिकार दिलवाना है।
20. किन्नर अपने आराध्य देव अरावन से साल में एक बार विवाह करते है। हालांकि यह विवाह मात्र एक  दिन के लिए होता है। अगले दिन अरावन देवता की मौत के साथ ही उनका वैवाहिक जीवन खत्म हो जाता है।

जन्मदिन विशेष: दीपिका चिखलिया 15 की उम्र में बनी थीं सीता

नई दिल्ली: रामानंद सागर की लोकप्रिय टीवी धारावाहिक 'रामायण' में सीता का किरदार निभा चुकीं दीपिका चिखलिया को एक आदर्शवादी महिला किरदार के लिए पहचाना जाता है। उन्होंने सीता के रूप में घर-घर में अपनी खास जगह बनाई। करोड़ों दिलों में दीपिका की छवि अब भी सीता के रूप में बनी हुई है। 

दीपिका चिखलिया ने महज 15-16 की आयु में सीता के किरदार को पर्दे पर इस तरह उभारा कि लोग उन्हें कहीं भी देखते तो खुदबाखुद उनके हाथ श्रद्धा से जुड़ जाते। वैसे सीता का किरदार निभाना दीपिका केलिए आसान नहीं था, उस समय टेलीविजन पर दिखाई देने वाली महिलाओं को सही नहीं समझा जाता था।

अभिनय की ओर बढ़ी रुचि के बारे में दीपिका चिखलिया का कहना है कि रामलीला देखने के बाद ही उनके अंदर अभिनय का शौक जगा। उसके बाद अनेक फिल्मों में किरदार निभाया। हालांकि, उनकी फिल्में अधिक चली नहीं, क्योंकि लोगों के दिमाग में उनकी सीता की छवि बस चुकी थी। 

'रामायण' में सीता बनी दीपिका का जन्म 29 अप्रैल, 1965 में हुआ। वह अभिनेत्री होने के साथ-साथ राजनीतिज्ञ भी हैं। दीपिका चिखलिया ने एक कॉस्मैटिक कंपनी के मालिक हेमंत टोपीवाला से शादी की, जिसके बाद उनका नाम दीपिका चिखलिया से बदलकर दीपिका टोपीवाला हो गया। फिलहाल, दीपिका इसी कंपनी की रिसर्च और मार्केटिंग टीम को हेड करती हैं।

यह कंपनी श्रृंगार बिंदी और टिप्स एंड टोज नेलपॉलिश बनाती है। उनकी दो बेटियां हैं। निधि टोपीवाला और जूही टोपीवाला दोनों अभी पढ़ाई कर रही हैं। दीपिका की बेटियां जब स्कूल में होती हैं, तब दीपिका दफ्तर में और उनके अनुसार, शाम को वह होममेकर के किरदार में आ जाती हैं। दीपिका फिलहाल अभिनय क्षेत्र में लौटना नहीं चाहती हैं। हालांकि उन्हें आज भी धार्मिक किरदारों की पेशकश होती है। लेकिन कंपनी और घरेलू काम में व्यस्त होने के चलते वह इसके लिए हामी नहीं भर सकतीं।

दीपिका ने 1983 में 'सुन मेरी लैला' के साथ मनोरंजन-जगत में अपने सफल करियर की शुरुआत की थी, इसमें उन्होंने राज किरण के साथ काम किया। इसके बाद उन्होंने राजेश खन्ना के साथ 3 हिंदी फिल्मों में काम किया। उन्होंने मलयालम, तमिल, बांग्ला फिल्मों के भी जाने-माने कलाकारों के साथ काम किया। उन्होंने 1983 में 'फिल्म सुन मेरी लैला', 1985 में 'पत्थर', 1986 में 'चीख', 1986 में 'भगवान दादा', 1986 में 'घर संसार', 1987 में 'रात के अंधेरे', 1986 में 'घर के चिराग', 1991 में 'रुपया दस करोड़', 1994 में 'खुदाई' जैसी हिंदी फिल्मों में अभिनय किया। उन्होंने मलयालम, कन्नड़, भोजपुरी, तेलुगू, तमिल, बंगाली फिल्मों में भी बेहतरीन प्रस्तुतियां दी हैं।

फिल्मी दुनिया में अपनी किस्मत आजमा चुकीं दीपिका ने कई बी-ग्रेड फिल्मों में अभिनय किया, जिसमें उन्होंने बेहद बोल्ड दृश्य भी दिए। यहां तक कि एक फिल्म में उन्होंने न्यूड सीन फिल्माने में भी कोई संकोच नहीं किया। वहीं रामायण में सीता का किरदार अदा करने के बाद दीपिका ने अपने अभिनय करियर में ऐसे ²श्यों से तौबा कर लिया। 'रामायण' में अरुण गोविल ने राम का किरदार निभाया था और सीता दीपिका चिखलिया बनी थीं। नटराज स्टूडियो में एक फिल्म के ऑडिशन के दौरान रामानंद सागर के बेटे प्रेम सागर ने दीपिका को देखते ही सीता के किरदार के लिए चुन लिया था। 

'राम-सीता' की इस जोड़ी को उस समय इस बात का तनिक भी अहसास नहीं था कि वह इतिहास रचने जा रहे हैं। 'रामायण' की शूटिंग को मात्र छह महीने बीते थे कि वह इतने लोकप्रिय हो गए कि वे खुद को स्टार मानने लगे। 'रामायण' का प्रसारण टेलीविजन चैनल दूरदर्शन पर 25 जनवरी, 1987 से 31 जुलाई, 1988 तक हर रविवार सुबह 9.30 बजे किया जाता रहा। वो ऐसा समय था, जब टीवी सेट रखा कमरा किसी धार्मिक स्थल में तब्दील हो जाता था और हर रविवार सुबह लोग 'रामायण' देखने के लिए टीवी सेट के इर्द-गिर्द इकट्ठा होकर हाथ जोड़कर बैठ जाते थे।

बताया जाता है कि उस समय 'रामायण' में राम का किरदार निभाने वाले अरुण गोविल की छवि लोगों के बीच एक आदर्शवादी पुरुष के समान हो गई थी और सीता का किरदार निभाने वाली दीपिका को भी लोग काफी सम्मान देते थे। राम और सीता का किरदार निभाने वाले इन दोनों कलाकारों को लोग काफी सम्मानजनक दृष्टि से देखते थे। 

'रामायण' के राम और सीता यानी अरुण गोविल और दीपिका को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने भी सम्मानित किया था। उन्हें हर जगह पहचान मिली। 'रामायण' को भले ही तीन दशक बीत चुके हों, लेकिन दीपिका चिखलिया आज भी सीता के रूप में ही घर-घर में पहचानी जाती हैं।

जानिए भगवान भोलेनाथ के कितनी पत्नियां व पुत्र थे

धर्म शास्त्रो में भगवान शिव को जगत पिता बताया गया हैं, क्योकि भगवान शिव सर्वव्यापी एवं पूर्ण ब्रह्म हैं। हिंदू संस्कृति में शिव को मनुष्य के कल्याण का प्रतीक माना जाता हैं। शिव शब्द के उच्चारण या ध्यान मात्र से ही मनुष्य को परम आनंद की अनुभूति होती है। भगवान शिव भारतीय संस्कृति को दर्शन ज्ञान के द्वारा संजीवनी प्रदान करने वाले देव हैं। इसी कारण अनादिकाल से भारतीय धर्म साधना में निराकार रूप में होते हुवे भी शिवलिंग के रूप में साकार मूर्ति की पूजा होती हैं। लेकिन अभी तक भगवान भोलेनाथ के बारे में आप यही जान रहे होंगे कि भगवान शिव की दो पत्नियां थी लेकिन थी देवी सती और दूसरी माता पार्वती। लेकिन यदि हिन्दू पौराणिक कथाओं की माने तो भगवान नीलकंठेश्वर ने एक दो नहीं बल्कि चार विवाह किये थे। उन्होंने यह सभी विवाह आदिशक्ति के साथ ही किए थे।

भगवान शिव ने पहला विवाह माता सती के साथ किया जो कि प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं। पुराणों के अनुसार भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक प्रजापति दक्ष कश्मीर घाटी के हिमालय क्षेत्र में रहते थे। प्रजापति दक्ष की दो पत्नियां थी- प्रसूति और वीरणी। प्रसूति से दक्ष की चौबीस कन्याएं जन्मी और वीरणी से साठ कन्याएं। इस तरह दक्ष की 84 पुत्रियां और हजारों पुत्र थे। राजा दक्ष की पुत्री 'सती' की माता का नाम था प्रसूति। यह प्रसूति स्वायंभुव मनु की तीसरी पुत्री थी। सती ने अपने पिती की इच्छा के विरूद्ध कैलाश निवासी शंकर से विवाह किया था। सती ने अपने पिता की इच्छा के विरूद्ध रुद्र से विवाह किया था। लेकिन, जब अपने पिता के यज्ञ में बिन बुलाए पहुंची सती के सामने भगवान शिव का अपमान हुआ, तब उन्होंने यज्ञ कुंड में ही अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। ऐसे में भगवान शिव माता सती का शव लेकर कई दिनों तक भटकते रहे। माता सती के शव जहां-जहां गिरे वहां पर 51 शक्तिपीठ बन गए।

माता सती के वियोग में भगवान शिव काफी दुःखी थे। इस दुःखद घटना के कई वर्षों बाद भगवान शिव का फिर से विवाह हुआ इस बार उनकी अर्धांगिनी बनी देवी पार्वती। देवी पार्वती हिमालय की पुत्री थीं। उन्हें अल्पआयु में ही भगवान शिव को अपना पति मानकर उनका वरण किया और उनका विवाह बाद में भगवान शिव से हुआ। देवी पार्वती को भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप करना पड़ा था। भगवान गणेश मां पार्वती के ही पुत्र हैं। देवी पार्वती ही मां दुर्गा हैं।

हमारे धर्मग्रंथों में भगवान शिव का तीसरी पत्नी देवी उमा को बताया गया है। देवी उमा को भूमि की देवी भी कहा जाता है। मां उमा देवी दयालु और सरल ह्दय की देवी हैं। आराधना करने पर वह जल्द ही प्रसन्न हो जाती हैं।
उमा के साथ महेश्वर शब्द का उपयोग किया जाता है। अर्थात महेश और उमा। कश्मीर में एक स्थान है उमा नगरी। यह नगरी अनंतनाग क्षेत्र के उत्तर में हिमालय में बसी है। यहां विराजमान है उमा देवी। भक्तों का ऐसा विश्वास है कि देवी स्वयं यहां एक नदी के रूप में रहती हैं जो ओंकार का आकार बनाती है जिसके साथ पांच झरने भी हैं।

भगवान शिव की चौथी पत्नी मां महाकाली को बताया गया है। उन्होंने इस पृथ्वी पर भयानक दानवों का संहार किया था। वर्षों पहले एक ऐसा भी दानव हुआ जिसके रक्‍त की एक बूंद अगर धरती पर गिर जाए तो हजारों रक्तबीज पैदा हो जाते थे। इस दानव को मौत की नींद सुलाना किसी भी देवता के वश में नहीं था। तब मां महाकाली ने इस भयानक दानव का संहार कर तीनों लोकों को बचाया। रक्तबीज को मारने के बाद भी मां का गुस्सा शांत नहीं हो रहा था, तब भगवान शिव उनके चरणों में लेट गए गलती से मां महाकाली का पैर भगवान शिव के सीने पर रख गया। इसके बाद उनका गुस्सा शांत हुआ।

इसके अलावा जानिए भगवान भोलेनाथ के कितने पुत्र थे-

भगवान शिव के साथ साथ उनके पुत्र कार्तिकेय और गणेश भी देवो में पूजनीय है पर क्या आप जानते है की इन दोनों के आलावा भी शिव के चार अन्य पुत्र है .. इस प्रकार शिव के दो नही वरन 6 पुत्र थे | आइये जानते है कैसे हुआ शिवजी के इन 6 पुत्रो का जन्म ;-

गणेश :- गणेश की उत्तपति पार्वती जी ने चन्दन से की थी ,एक बार गणेश का द्वार पर बिठा कर पार्वतीजी स्नान कर रही थी .इतने में शिव भवन में प्रवेश करने लगे .जब गणेश ने उन्हें रोक तो क्रोध में शिव ने गणेश का सिर काट दिया .जब पार्वती ने देखा की उनके पुत्र का सिर काट दिया है तो वे क्रोधित हो गई | उन्हें शांत करने के लिए शिवजी ने गणेश के सिर के स्थान पर एक हाथी का सिर लगा दिया. और वे फिर से जीवित हो उठे |

कार्तिकेय :- जब शिव शती के आग में भस्म होने कारण दुःख से तपस्या में लीन हो गए थे तब धरती पर तारकासुर नामक दैत्य धरती पर अत्याचार मचाने लगा | उस दैत्य के अत्याचार से परेशान होकर देवता ब्रह्मा जी के पास गए तब ब्रह्माजी ने कहा की इसका समाधान शिवजी का पुत्र ही कर सकता है | फिर देवता शिव के पास गए और तारकासुर के अत्याचारों से मुक्ति के लिए प्राथना करी | उनकी प्राथना सुन शिव,पार्वती से शुभ घड़ी व शुभ मुहरत में विवाह करते है , इस प्रकार भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ |

सुकेश :- शिव का तीसरा पुत्र था सुकेश | दानवो में दो भाई थे हेति और प्रहेति | दानवो ने इन्हे अपना प्रतिनिधि बनाया, ये दोनों भाई बलशाली और प्रतापी थे |प्रहेति धर्मिक था और हेति को राजपाट और राजनीति की लालशा थी | दानव हेति ने अपने वंश को आगे बढ़ाने के लिए काल की पुत्री से ‘भय’ से विवाह कर लिया .कुछ समय पश्चात उनका पुत्र हुआ जिसका नाम था विद्युत्केश | विद्युत्केश का विवाह सालकटंकटा से हुआ क्योकि सालकटंकटा व्यभिचारणी थी इस कारण उन्होंने अपने पुत्र को लवारिश छोड़ दिया | पुराणो के अनुसार जब भगवान शिव और पार्वती की उस लावारिश बालक पर नजर गई तो उन्होंने उसे गोद लिया |

जलंधर :- जलंधर शिव जी का ही अंश था, एक बार जब शिव ने अपना तेज जल में फेका तो उस से जलंधर की उत्पति हुई | जलंधर बहुत ही शक्तिशाली था उसने अपने आक्रमण से स्वर्ग में कब्जा कर लिया तो वे शिवजी के पास गए और उन्हें पूरी घटना बताई | शिव ने इंद्रा से जलंधर की पत्नी वृंदा का पतिव्रत धर्म तोड़ने को कहा क्योकि उंसकी पतिव्रता धर्म की शक्ति के कारण शिव जलंधर को पराजित करने में असमर्थ थे | अतः इंद्र ने जलंधर का रूप धारण कर वृंदा का पतिवर्त धर्म तोडा तथा शिव ने जलंधर का वध कर दिया|

अयप्पा :- अयप्पा भगवन शिव और मोहिनी का पुत्र था | कहते हैं कि जब भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया था तो उनकी मादकता से भगवान शिव का वीर्यपात हो गया था और उस वीर्य से इस बालक का जन्म हुआ | दक्षिण भारत में अयप्पा देव की पूजा अधिक की जाती हैं अयप्पा देव को ‘हरीहर पुत्र’ के नाम से भी जाना जाता हैं |

भौम :- भौम भगवान शिव के पसीने से उत्पन हुआ था .जब भगवान शिव तपश्या में लीन थे तो उस समय उनके सर से पसीने की एक बून्द टपकी जो धरती पर गिरी | इन पसीने की बूंदों से एक सुंदर और प्यारे बालक का जन्म हुआ, जिसके चार भुजाएं थीं | इस पुत्र का पृथ्वी ने पालन पोषण करना शुरु किया। तभी भूमि का पुत्र होने के कारण यह भौम कहलाया। कुछ बड़ा होने पर मंगल काशी पहुंचा और भगवान शिव की कड़ी तपस्या की। तब भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उसे मंगल लोक प्रदान किया । 

एक महान योद्धा जो पल भर में कर सकता था महाभारत के युद्ध का अंत!

पौराणिक महाकाव्य महाभारत के बारे में जानता तो हर कोई है| यह एक ऐसा शास्‍त्र है जिसके बारे में सबसे ज्‍यादा चर्चा और बातें की जाती है और इस काव्‍य में कई रहस्‍य है जिनके बारे में आजतक सही-सही पता नहीं लग पाया है या फिर बहुत कम लोगों को ही पता है। उदाहरण के लिए- पाण्डु पुत्र भीम के महाबली पौत्र बर्बरीक के बारे में| आपको पता है बर्बरीक अत्यंत बलशाली था| बर्बरीक के पास दिव्यशक्तियां थी वह एक ही बाण से सब कुछ तहस-नहस कर सकता था| लेकिन महाभारत के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने उससे सिर मांग लिया| क्या आपको पता है भगवान श्री कृष्ण ने भीम के महाबली पौत्र बर्बरीक का सिर मांगा था?

प्रसिद्ध महाकाव्य महाभारत में अनेक शूरवीर और महायोद्धा थे ,पर उन सब में एक ऐसा योद्धा था जो अपने पराक्रम के बल पर इस महान युद्ध को केवल कुछ पलों में ही अपने हित में कर सकता था | जिसके अद्भुत सामथ्र्य से स्वय भगवान कृष्ण भी अचम्भित थे | पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण सभी योद्धाओ की वीरता का आकलन करना चाहते थे , उन्होंने सभी शूरवीरो से एक सवाल किया की तुम इस युद्ध को अपने दम पर कितने दिन में समाप्त कर सकते हो|  महाबली भीम के अनुसार वो इस युद्घ को 20 दिन में समाप्त कर सकते थे ,गुरु दोर्णाचारय 25 दिन में ,महादानी अंगराज कर्ण 24 दिन में तथा महान धनुधर अर्जुन इस युद्ध को 28 दिन में समाप्त कर सकते थे |जब यही सवाल श्री कृष्ण द्वारा महाबली भीम पौत्र और शूरवीर घटोच्कच के पुत्र बर्बरीक से पूछी गयी,तो उनका उत्तर था मात्र केवल कुछ छणों में | जिसका कारण ये था की उन्हें भगवान शंकर से उन्हें तीन आमेघ बाण प्राप्त हुए थे  तथा  बर्बरीक ने युद्ध कौशल अपनी माता से सीखा था|

बर्बरीक महाबली भीम और हिडिम्बा के पुत्र घटोत्कक्ष का पुत्र था जो एक महान योद्धा था I चूँकि बर्बरीक का जन्म राक्षस कुल में हुआ था इसलिए वह शरीर से अतिबलशाली था और बड़ा भयंकर था I बर्बरीक ने बचपन से ही कामख्या देवी की तपस्या करके उनसे वरदान प्राप्त कर लिया था कि उसे युद्ध में कोई भी पराजित नहीं कर सकता था I एक कथा के अनुसार बर्बरीक को देवी कामख्या ने तीन ऐसे अद्वितीय तीर दिए थे जिनके चलाने से सम्पूर्ण दुश्मन सेना का नाश किया जा सकता था ई जब कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत का महाविनाशकारी युद्ध अपनी चरम पर था तभी बर्बरीक ने इस युद्ध में सम्मिलित होने का निर्णय ले लिया I लेकिन बर्बरीक ने साथ यह भी सपथ ली वह उसी तरफ से युद्ध करेगा जो दल कमजोर होगा I और जिस समय बर्बरीक युद्ध के मैदान की तरफ बढ़ रहा था उस समय कौरवों की हालत बहुत ही ख़राब हो रही थी अतः बर्बरीक का कौरवों की तरफ लड़ना बिलकुल तय था | भगवान् श्री कृष्ण को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने सोचा कि यह बर्बरीक जीत को हार में बदल देगाI अब भगवान् श्री कृष्ण ने बर्बरीक का वध करने का निर्णय ले लिए और इससे पहले कि बर्बरीक महाभारत के युद्ध के मैदान में पहुँच कर युद्ध का पाशा पलटपाता या फिर युद्ध के मैदान तक पहुँच पाता उससे पहले ही भगवान् श्री कृष्ण उसके पास पहुँच गए I

भगवान् श्री कृष्ण ने बर्बरीक से कहा कि हे महावीर आप इस युद्ध में किस की तरफ से सम्मिलित होने की इच्छा से आये है ? बर्बरीक ने उत्तर दिया कि जो पक्ष कमजोर होगा मैं उसी की तरफ युद्ध करूँगा ! भगवान् श्री कृष्ण ने कहा कि आपके पास तो कोई सेना नहीं है आप कैसे इस युद्ध में अपने पक्ष को विजय दिला पाओगे ? बर्बरीक ने कहा कि मेरे पास वह दिव्य शक्तियां है कि मैं एक ही बाण से सम्पूर्ण दुश्मन सेना का वध कर सकता हूँ ! भगवान् श्री कृष्ण ने कहा कि क्या आप मुझे वह विद्या दिखा सकते हैं ? कृष्ण ने कहा कि यह जो वृक्ष है ‍इसके सारे पत्तों को एक ही तीर से छेद दो तो मैं मान जाऊँगा। बर्बरीक ने आज्ञा लेकर तीर को वृक्ष की ओर छोड़ दिया।

जब तीर एक-एक कर सारे पत्तों को छेदता जा रहा था उसी दौरान एक पत्ता टूटकर नीचे गिर पड़ा, कृष्ण ने उस पत्ते पर यह सोचकर पैर रखकर उसे छुपा लिया की यह छेद होने से बच जाएगा, लेकिन सभी पत्तों को छेदता हुआ वह तीर कृष्ण के पैरों के पास आकर रुक गया। तब बर्बरीक ने कहा प्रभु आपके पैर के नीचे एक पत्ता दबा है कृपया पैर हटा लीजिए क्योंकि मैंने तीर को सिर्फ पत्तों को छेदने की आज्ञा दे रखी है आपके पैर छेदने की नहीं। उसके इस चमत्कार को देखकर कृष्ण चिंतित हो गए। भगवान श्रीकृष्ण ब्राह्मण का भेष बनाकर अगले दिन बर्बरीक के शिविर के द्वार पर पहुँच गए और दान माँगने लगे। बर्बरीक ने कहा माँगो ब्राह्मण! क्या चाहिए? ब्राह्मण रूपी कृष्ण ने कहा कि तुम दे न सकोगे। लेकिन बर्बरीक कृष्ण के जाल में फँस गए और कृष्ण ने उससे उसका शीश माँग लिया। बर्बरीक द्वारा अपने पितामह पांडवों की विजय हेतु स्वेच्छा के साथ शीशदान कर दिया। दान के पश्चात बर्बरीक ने कहा मेरी ये प्रबलतम इच्छा थी की काश महाभारत का युद्ध देख पाता ! तब भगवान् श्री कृष्ण ने कहा - हे वीर श्रेष्ठ आपकी ये इच्छा मैं पूर्ण करूंगा ! मैं आपके शीश को इस पीपल की सबसे उंची शाखा पर रख देता हूँ ! और आपको वो दिव्य दृष्टी प्राप्त है जिससे आप ये युद्ध पूरा आराम से देख पायेंगे ! उस योद्धा बर्बरीक ने अपना शीश काटकर श्री कृष्ण को दे दिया ! और श्री कृष्ण ने उसको वृक्ष की चोटी पर रखवा दिया|

दान के पश्चात्‌ श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को वर देते हुए कहा कि मैं आपको खुश होकर ये वरदान देता हूँ की आप कलयुग में मेरे श्याम नाम से पूजे जायेंगे| और उस समय आप लोगो का कल्याण करेंगे| और उनके दुःख क्लेश दूर करेंगे| ऐसा कह कर श्री कृष्ण ने उस शीश को खाटू नामक ग्राम में स्थापित कर दिया| ये जगह आज लाखो भक्तो और श्रद्धालुओं की आस्था का स्थान है| यह जगह आज खाटू श्यामजी ( जिला-सीकर, राजस्थान ) के नाम से प्रसिद्द है|

आखिर क्यों भगवान श्रीकृष्ण को काशी नगरी को भस्म करना पड़ा


काशी नगरी वर्तमान वाराणसी शहर में स्थित पौराणिक नगरी है। इसे संसार के सबसे पुरानी नगरों में माना जाता है। भारत की यह जगत्प्रसिद्ध प्राचीन नगरी गंगा के वाम (उत्तर) तट पर उत्तर प्रदेश के दक्षिण-पूर्वी कोने में वरुणा और असी नदियों के गंगासंगमों के बीच बसी हुई है। इस स्थान पर गंगा ने प्राय: चार मील का दक्षिण से उत्तर की ओर घुमाव लिया है और इसी घुमाव के ऊपर इस नगरी की स्थिति है। इस नगर का प्राचीन 'वाराणसी' नाम लोकोच्चारण से 'बनारस' हो गया था जिसे उत्तर प्रदेश सरकार ने शासकीय रूप से पूर्ववत् 'वाराणसी' कर दिया है।

विश्व के सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में काशी का उल्लेख मिलता है - 'काशिरित्ते.. आप इवकाशिनासंगृभीता:'। पुराणों के अनुसार यह आद्य वैष्णव स्थान है। पहले यह भगवान विष्णु (माधव) की पुरी थी। जहां श्रीहरिके आनंदाश्रु गिरे थे, वहां बिंदुसरोवर बन गया और प्रभु यहां बिंधुमाधव के नाम से प्रतिष्ठित हुए। ऐसी एक कथा है कि जब भगवान शंकर ने क्रुद्ध होकर ब्रह्माजी का पांचवां सिर काट दिया, तो वह उनके करतल से चिपक गया। बारह वर्षों तक अनेक तीर्थों में भ्रमण करने पर भी वह सिर उन से अलग नहीं हुआ। किंतु जैसे ही उन्होंने काशी की सीमा में प्रवेश किया, ब्रह्महत्या ने उनका पीछा छोड़ दिया और वह कपाल भी अलग हो गया। जहां यह घटना घटी, वह स्थान कपालमोचन-तीर्थ कहलाया। महादेव को काशी इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने इस पावन पुरी को विष्णुजी से अपने नित्य आवास के लिए मांग लिया। तब से काशी उनका निवास-स्थान बन गया।

क्या आपको पता है एक बार भगवान् श्रीकृष्ण को काशी नगरी को भस्म करना पड़ा था। आखिर ऐसा क्या हुआ। आपको बता दें कि यह कथा द्वापर युग की है तथा इस कथा का संबंध जरासंध से भी है। मगध का राजा जरासंध अत्यन्त क्रूर था तथा उसके पास असंख्य सैनिक तथा विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्र थे। उसकी सेना इतनी शक्तिशाली थी की वह पल भर में ही अनेको बड़े-बड़े सम्राज्यो को धरासायी कर सकती थी। इसलिए अधिकतर राजा जरासंध से डरे रहते थे तथा उसे अपना मित्र बनाये रखना चाहते थे। जरासंध की दो पुत्रिया थी जिनका नाम अस्ति और प्रस्ती था। जरासंध ने अपनी दोनों पुत्रियों का विवाह मथुरा राज्य के राजा कंश से कर दिया।

कंश एक अत्याचारी राजा था जिसके अत्याचार से उसकी प्रजा बहुत दुखी हो चुकी थी। उसके अत्याचार से मथुरा के लोगो को मुक्ति दिलाने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने कंश का वध कर दिया। अपने दामाद की मृत्यु से क्रोधित होकर जरासंध प्रतिशोध की ज्वाला में जलने लगा। उसने अनेको बार मथुरा में आक्रमण किया परन्तु श्री कृष्ण के हाथो वह परास्त होता रहा और हर बार युद्ध के बाद श्री कृष्ण जरासंध को जीवित झोड़ देते। एक बार जरासंध ने कलिंगराज पौंड्रक और काशिराज के साथ मिलकर मथुरा पर आक्रमण करने की योजना बनाई। उन्होंने मिलकर मथुरा के राज्य पर आक्रमण कर दिया परन्तु भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें भी पराजित कर दिया। जरासंध तो उस युद्ध से किसी तरह अपने प्राणो की रक्षा करते हुए भाग निकला लेकिन पौंड्रक और काशिराज भगवान श्री कृष्ण के हाथो मारे गए।

काशिराज के मृत्यु के बाद उसका पुत्र काशिराज बना तथा उसने श्री कृष्ण से अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने की प्रतिज्ञा ली। काशिराज भगवान श्री कृष्ण के शक्तियों को जानता था अतः उसने अपनी कठिन तपस्या के बल पर भगवान शिव को प्रसन्न किया और उनसे श्री कृष्ण को समाप्त करने का वर माँगा। भगवान शिव ने उससे कोई अन्य वर मांगने को कहा परन्तु वह अपने जिद पर अड़ा रहा। तब भगवान शिव ने अपने मंत्रो से एक भयंकर कृत्या काशिराज को बनाकर दी तथा उससे कहा की वत्स ! इसका प्रहार किसी भी प्राणी का अंत कर सकता है लेकिन कभी भी इस अस्त्र का प्रयोग किसी भी ब्राह्मण भक्त पर मत करना अन्यथा इसका प्रभाव निष्फल हो जायेगा। ऐसा कहकर भगवान शिव अंतर्ध्यान हो गए है।

इधर दुष्ट, कालयवन का वध कर भगवान श्री कृष्ण ने सभी मथुरावासियों के साथ मिलकर नई नगरी दवारिका बसाई। काशिराज ने भगवान श्री कृष्ण से अपने पिता के मृत्यु का बदला लेने के लिए कात्या को द्वारिका की ओर भेजा, परन्तु वह वह यह नहीं जनता था की श्री कृष्ण ब्राह्मण भक्त है इसलिए द्वारिका पहुंचकर भी कात्या भगवान श्री कृष्ण का कुछ नहीं कर पाई उल्टा भगवान श्री कृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र उसकी ओर चला दिया। सुदर्शन चक्र भयंकर अग्नि लपेटे हुए कात्या की ओर झपटा था कात्या अपने प्राणो की रक्षा के लिए काशी की ओर भागी। कृत्या के पीछे-पीछे सुदर्शन चक्र भी काशी नगरी आ पहुंचा तथा उसने कात्या को भस्म कर दिया। परन्तु जब इसके बाद भी सुदर्शन का क्रोध शांत नहीं हुआ तो उसने पूरी काशी को अपनी अग्नि से भस्म कर डाला। कालान्तर में वारा और असि नदियों के मध्य यह नगर पुनः बसाई गई। वारा और असि नदियों के मध्य बसने के कारण यह नगर वाराणसी के नाम से विख्यात है। इस प्रकार काशी का वाराणसी के रूप में पुनर्जन्म हुआ।

भगवान शिव क्यों कहलाते हैं त्रिपुरारी, जानिए क्या है रहस्य


हिन्दू धर्म में भगवान शिव को मृत्युलोक देवता माने गए हैं। शिव को अनादि, अनंत, अजन्मा माना गया है यानि उनका कोई आरंभ है न अंत है। न उनका जन्म हुआ है, न वह मृत्यु को प्राप्त होते हैं। इस तरह भगवान शिव अवतार न होकर साक्षात ईश्वर हैं। भगवान शिव को कई नामों से पुकारा जाता है। कोई उन्हें भोलेनाथ तो कोई देवाधि देव महादेव के नाम से पुकारता है| वे महाकाल भी कहे जाते हैं और कालों के काल भी।

शिव की साकार यानि मूर्तिरुप और निराकार यानि अमूर्त रुप में आराधना की जाती है। शास्त्रों में भगवान शिव का चरित्र कल्याणकारी माना गया है। उनके दिव्य चरित्र और गुणों के कारण भगवान शिव अनेक रूप में पूजित हैं। आपको बता दें कि देवाधी देव महादेव मनुष्य के शरीर में प्राण के प्रतीक माने जाते हैं| आपको पता ही है कि जिस व्यक्ति के अन्दर प्राण नहीं होते हैं तो उसे शव का नाम दिया गया है| भगवान् भोलेनाथ का पंच देवों में सबसे महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है|

भगवान शिव को मृत्युलोक का देवता माना जाता है| आपको पता होगा कि भगवान शिव के तीन नेत्रों वाले हैं| इसलिए त्रिदेव कहा गया है| ब्रम्हा जी सृष्टि के रचयिता माने गए हैं और विष्णु को पालनहार माना गया है| वहीँ, भगवान शंकर संहारक है| यह केवल लोगों का संहार करते हैं| भगवान भोलेनाथ संहार के अधिपति होने के बावजूद भी सृजन का प्रतीक हैं। वे सृजन का संदेश देते हैं। हर संहार के बाद सृजन शुरू होता है। इसके आलावा पंच तत्वों में शिव को वायु का अधिपति भी माना गया है। वायु जब तक शरीर में चलती है, तब तक शरीर में प्राण बने रहते हैं। लेकिन जब वायु क्रोधित होती है तो प्रलयकारी बन जाती है। जब तक वायु है, तभी तक शरीर में प्राण होते हैं। शिव अगर वायु के प्रवाह को रोक दें तो फिर वे किसी के भी प्राण ले सकते हैं, वायु के बिना किसी भी शरीर में प्राणों का संचार संभव नहीं है। 

तो आइये जाने आखिर क्यों कहलाते हैं भगवान शिव त्रिपुरारी!

भगवान शिव के त्रिपुरारी कहलाने के पीछे एक बहुत ही रोचक कथा है। शिव पुराण के अनुसार जब भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने दैत्यराज तारकासुर का वध किया तो उसके तीन पुत्र तारकक्ष, विमलाकक्ष, तथा विद्युन्माली  अपने पिता की मृत्यु पर बहुत दुखी हुए। उन्होंने देवताओ और भगवान शिव से अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने की ठानी तथा कठोर तपश्या के लिए उच्चे पर्वतो पर चले गए। अपनी घोर तपश्या के बल पर उन्होंने ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और उनसे अमरता का वरदान  माँगा। परन्तु ब्रह्मा जी ने कहा की मैं तुम्हे यह वरदान देने में असमर्थ हूँ अतः मुझ से कोई अन्य वरदान मांग लो। तब तारकासुर के तीनो पुत्रो ने ब्रह्मा जी से कहा की आप हमारे लिए तीनो पुरियों (नगर) का निर्माण करवाइये तथा इन नगरो के अंदर बैठे-बैठे हम पृथ्वी का भ्रमण आकाश मार्ग से करते रहे है। जब एक हजार साल बाद यह पूरिया एक जगह आये तो मिलकर सब एक पूर हो जाए। तब जो कोई देवता इस पूर को केवल एक ही बाण में नष्ट कर दे वही हमारी मृत्यु का कारण बने। ब्रह्माजी ने तीनो को यह वरदान दे दिया व एक मयदानव को प्रकट किया। ब्रह्माजी ने मयदानव से तीन पूरी का निर्माण करवाया जिनमे पहला सोने का दूसरा चांदी का व तीसरा लोहे का था। जिसमे सोने का नगर तारकक्ष, चांदी का नगर विमलाकक्ष व लोहे का महल विद्युन्माली को मिला।

तपश्या के प्रभाव व ब्रह्मा के वरदान से तीनो असुरो में असीमित शक्तिया आ चुकी थी जिससे तीनो ने लोगो पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। उन्होंने अपने पराक्रम के बल पर तीनो लोको में अधिकार कर लिया। इंद्र समेत सभी देवता अपने जान बचाते हुए भगवान शिव की शरण में गए तथा उन्हें तीनो असुरो के अत्याचारों के बारे में बताया। देवताओ आदि के निवेदन पर भगवान शिव त्रिपुरो को नष्ट करने के लिए तैयार हो गए। स्वयं भगवान विष्णु, शिव के धनुष के लिए बाण बने व उस बाण की नोक अग्नि देव बने। हिमालय भगवान शिव के लिए धनुष में परिवर्तित हुए व धनुष की प्रत्यंचा शेष नाग बने। भगवान विश्वकर्मा ने शिव के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण करवाया जिसके पहिये सूर्य व चन्द्रमा बने. इंद्र, वरुण, यम कुबेर आदि देव उस रथ के घोड़े बने।

उस दिव्य रथ में बैठ व दिव्य अश्त्रों से सुशोभित भगवान शिव युद्ध स्थल में गए जहाँ तीनो दैत्य पुत्र अपने त्रिपुरो में बैठ हाहाकार मचा रहे थे। जैसे ही त्रिपुर एक सीध में आये भगवान शिव ने अपने अचूक बाण से उन पर निशाना साध दिया। देखते ही देखते उन त्रिपुरो के साथ वे दैत्य भी जलकर भष्म हो गए और सभी देवता आकश मार्ग से भगवान शिव पर फूलो की वर्षा कर उनकी जय-जयकार  करने लगे। उन तीनो त्रिपुरो के अंत के कारण ही भगवान शिव त्रिपुरारी नाम से जाने जाते है।

...और अब लंगूरों ने टावर को ही बना लिया आशियाना


छत्तीसगढ़ में जंगलों की बेतहाशा कटाई के कारण जानवरों के रहन-सहन में भी बदलाव आया है। इससे सबसे ज्यादा प्रभावित लंगूर (काले मुंह का बंदर) हुए हैं। ऐसा इसलिए माना जा रहा है क्योंकि लंगूरों ने जंगल को छोड़कर जानलेवा 90-90 फीट ऊंचे बिजली टावर को अपना आशियाना बनाना शुरू कर दिया है। यह तथ्य छत्तीसगढ़ वाइल्ड लाइफ सोसाइटी की 'एडॉप्शन ऑफ पावर टावर एस रिफ्यूज बाई ग्रे लंगूर' के एक रिसर्च के जरिए सामने आया है। राज्य के आधा दर्जन जगहों पर बकायदा इसकी तस्दीक भी हुई है। इतने खतरनाक टावर में रहने के लिए उनके बीच संघर्ष के हालात भी देखे जा रहे हैं। 

जानकारों का कहना है कि लंगूर टावरों को जंगल से ज्यादा सुरक्षित मान रहे हैं। छत्तीसगढ़ वाइल्डलाइफ सोसाइटी के अध्यक्ष ए.एम.के भरोस बताते हैं कि इस रिसर्च को करने से पहले हमने जानना चाहा कि बंदर टावर पर क्यों चढ़ रहे हैं? देश-दुनिया के वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट से भी बातचीत की गई। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद, पांडुका, नांदघाट व मुंगेली, बेमेतरा में सड़क से लगे टावर में लंगूरों के समूह बैठे नजर आए। इसके अलावा उन जगहों पर भी गए जहां से जंगल की दूरी कम है।

रिसर्च टीम ने इसके लिए दो दिन इन जगहों पर गुजारे। तब यह पाया कि बंदर टावर पर रहना तो चाहते हैं लेकिन इंसानों से बचना चाहते हैं, इसलिए सूर्योदय से पहले उतर जाते हैं। वहीं अगर दिन में जाना है तो इनका समूह मॉनिटरिंग करता रहता है। एक विशेष आवाज के बाद टावर पर चढ़ते हैं। कई मौकों पर दूसरे समूह के लंगूर भी यहां आकर रहना चाहते हैं, जिससे संघर्ष की स्थिति उत्तपन्न होती है।

रविवि में लाइफ साइंस विभाग के प्रोफेसर डॉ. एके पति कहते हैं कि जंगल में रहने व खाने की कमी के कारण जंगली जानवर बस्तियों की ओर आ रहे हैं। लंगूर ऊंची जगह की तलाश करते-करतेटॉवर पर भी बैठ सकते है। हालांकि इस पर रिसर्च की आवश्यकता है। सूबे का 44 फीसदी इलाका जंगल है, लेकिन इसकी कटाई भी बेहिसाब हो रही है। ऐसे में वन्यजीव हाथी, भालू व हिरण भी इंसानी बस्ती की ओर रुख कर रहे हैं। बलरामपुर व रायगढ़ जिले में हाथियों का उत्पात है। 

महासमुंद जिले में भालूओं का समूह गांवों में पहुंचता है। बागबाहरा के चंडी माता मंदिर में तो भालू का पूरा परिवार हर शाम यहां आता है। इसी तरह हिरण भी पानी व चारा की तलाश में बस्तियों की ओर आ रहे है। पिछले दिनों राजधानी के माना और उरला के पास वाहन की ठोकर से दो हिरणों की मौत इसका प्रमाण है।

प्रेमिका को प्रपोज करने के लिए चढ़ गया पहाड़ पर, आगे क्या हुआ खुद ही पढ़ लीजिए

शादी तो हर इंसान करता है पर अपनी प्रेमिका से शादी के प्रपोज करने को लेकर पहाड़ पर चढ़ने को आप क्या कहेंगे। इस मौके को बेहद खास बनाने के चक्कर में यह युवक ऐसा फंसा कि वो वाकई उस खास दिन को कभी नहीं भूल पाएगा। दरअसल, वो अपनी प्रेमिका को शादी के लिए प्रपोज करने के लिए पहाड़ी पर चढ़ गया। जहां से उसने लाइव वीडियो के माध्यम से उसे प्रपोज भी किया, पर लौटते समय वो दूसरे रास्ते से उतरने की कोशिश में फंस गया।

माइकल बैंक्स नाम का युवक अपनी प्रेमिको को शादी के लिए प्रपोज करने के लिए 6000 फीट ऊपर पहाड़ी पर चढ़ गया और वहीं से उसने सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी र्गफ्रेंड को प्रपोज किया। पर जब वो वापस दूसरे रास्ते से आ रहा था, तो बीच में ही फंस गया। युवक के फंसने के बाद सूचना पाकर मौके पर पुलिस भी पहुंच गई। 

यही नहीं, जब पुलिस भी उसे नहीं उतार पाई, तो उसे उतारने में आपातकालीन सेवा को संदेश भेजकर हेलीकॉप्टर की मदद ली गई। बहरहाल, युवक की प्रेमिका ने तो उसे शादी के लिए हां बोल दिया, पर अब हेलीकॉप्टर से उतरने के बदले उसे अच्छी खासी रकम भरनी पड़ रही है। अब आप ऐसे इंसान को क्या कहेंगे जो अपनी प्रेमिका के लिए पहाड़ पर चढ़ जाए। द एजेंसी

पांच साल की बेटी को गोमती में डुबोकर मार डाला

लखनऊ: अवैध संबंधों के शक में पत्नी से झगड़कर राजमिस्त्री पांच साल की मासूम शिवानी को लेकर दिल्ली से निकल पड़ा। ट्रेन पर सवार पिता बच्ची को लेकर लखनऊ स्टेशन पर उतरा और फिर पैदल चल दिया। जेब में दस का फटा नोट और भूख से बिलखती बच्ची। झल्लाकर वह बच्ची को नहाने के बहाने स्मृति वाटिका के नीचे गोमती नदी में ले गया और डूबो दिया। दरिंदगी देख वहां मौजूद लोग दौड़े और आरोपित को पकड़ने के साथ ही बच्ची को नदी से निकालकर अस्पताल भेजा, जहां डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। आक्रोशित लोगों ने हैवान पिता को पीटने के बाद महानगर पुलिस के सुपुर्द कर दिया। पुलिस को आरोपित के पास एक बैग मिला, जिसमें उनके कपड़े व मोबाइल था। पुलिस ने मोबाइल से परिजनों को सूचना दे दी है।

मूल रूप से बिहार के मुज्जफरपुर खरकपुर बिरारी निवासी विनोद उर्फ वकील साहनी का बेटा बिरजू राजमिस्त्री है। बिरजू ने करीब सात साल पहले सासाराम की रहने वाली शालू गुप्ता से प्रेम विवाह किया था। उनकी पांच साल की बेटी शिवानी व डेढ़ साल की मुस्कान है। बिरजू परिवार के साथ दिल्ली के तम्बाकू फैक्ट्री स्वतंत्र नगर में कई साल से रह रहा था। बिरजू को शालू के चाल-चलन पर शक था। इसको लेकर उनके बीच आये दिन झगड़े होते थे। इंस्पेक्टर महानगर पी.के.झा ने बताया कि रविवार को बिरजू काम से लौटा तो उसने शालू को मोबाइल पर किसी से बात करते देख लिया। इस पर उनके बीच विवाद हुआ और बिरजू ने उसकी पिटाई कर दी। यह देख परिवारवालों ने बिरजू को जमकर कोसा और फटकार लगायी। सोमवार शाम बिरजू ने बैग में अपने व शिवानी के कपड़े रखे और उसे लेकर घर से निकल गया।

दिल्ली से वह ट्रेन पर सवार हुआ। मंगलवार सुबह वह चारबाग स्टेशन पर उतरा और शिवानी को लेकर बाहर आ गया। शिवानी भूख से रोने लगी तो बिरजू ने जेब में हाथ डाला। जेब में दस का फटा नोट मिला, जिसे चलाने का उसने भरसक प्रयास किया लेकिन नोट की खराब हालत देख किसी ने भी लेने से मना कर दिया। पैदल भटकता-भटकता बिरजू उसे लेकर निशातगंज आ पहुंचा। गर्मी व भूख से बिलख रही शिवानी को देख बिरजू ने चुप कराने की कोशिश की लेकिन वह संभाल नहीं सका। करीब साढ़े ग्यारह बजे स्मृति वाटिका के पास मंदिर के बगल में सीढ़ियां देख वह उसे लेकर नीचे पहुंचा। इस दौरान निशातगंज के पेपरमिल कालोनी निवासी रिजवान व न्यू हैदरबाद निवासी कल्लू गोमती नदी में नहा रहे थे। इस बीच बिरजू शिवानी को लेकर नदी में उतरा लेकिन और लोगों को देख वह बच्ची को नहलाने का दिखावा करने लगा। जैसे ही वहां सन्नाटा हुआ। बिरजू शिवानी को खीचकर गहरे पानी में ले गया और डूबोने लगा। बच्ची की छटपटाहट व चीख सुनकर कल्लू व रिजवान मदद के लिए दौड़े। दोनों ने बिरजू को धक्का मारा और शिवानी को बाहर निकाला।

बिरजू ने हमले की कोशिश की तो उन लोगों ने उसे जमकर पीटा। घटना की सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची। आनन-फानन में पुलिस ने बच्ची को सिविल अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। पुलिस को आरोपित बिरजू के पास एक बैग मिला। बैग में कपड़े व मोबाइल था। पुलिस ने मोबाइल के जरिये आरोपित बिरजू के पिता विनोद व साले प्रमोद गुप्त को फोन किया और सारी बात बतायी। पुलिस के मुताबिक घरवाले लखनऊ के लिए रवाना हो गये हैं। इंस्पेक्टर महानगर ने बताया कि आरोपित बिरजू अपने को पागल साबित करने का ढोंग करता रहा। पूछताछ के दौरान बिरजू खामोश बैठा था। उसे पुलिस की बात समझ नहीं आ रही थी। पुलिसकर्मी थप्पड़ मारता और पूछता, लेकिन वह भाषा बूझ नहीं पाता। आखिरकार इंस्पेक्टर को उसकी भाषा समझ आयी और फिर मैथिली भाषा में आरोपित के बयान लिये। उन्होंने बताया कि आरोपित के बैग में एक पत्र मिला। बिरजू ने यह पत्र बहन पिंकी के प्रेमी के खिलाफ लिखा था। उसने कहा कि बहन उसकी बदनामी करा रही है। मैं उसे भी मार डालूंगा। इंस्पेक्टर ने बच्ची की जान बचाने का प्रयास करने वाले व आरोपित को पकड़ने वाले रिजवान व कल्लू को पांच-पांच सौ रुपये का इनाम दिया।

गर्मियों में ऐसे संभालें दिल

गर्मियों का मौसम शुरू हो चुका है, तामपान तेजी से ऊंचाई छू रहा है। साधारण बेचैनी और थकान के साथ ही भीषण गर्मी कई स्वास्थ्य समस्याओं खास कर मौजूदा दिल के रोगियों के लिए समस्याएं खड़ी कर सकता है। सेहतमंद लोग आराम से इस बदलाव को सह लेते हैं, लेकिन जिनका दिल कमजोर हो उनमें स्ट्रोक, डिहाइड्रेशन और दिल का दौरा जैसी समस्याएं हो सकती हैं। यह स्थिति कभी-कभी जानलेवा भी हो सकती है। ऐसे में दिल को संभालने के लिए जागरूकता जरूरी है।

मानव दिल मुट्ठीभर मांस पेशियों का एक ढांचा है जो रक्त धमनियों के जरिए शरीर के बाकी अंगों और तंतुओं को रक्त पहुंचाता है। बाहर के तापमान में वृद्धि होने से शरीर को ठंडा रखने के लिए आम दिनों से ज्यादा पानी खर्च हो जाता है। दिल को ज्यादा तेजी से काम करना पड़ता है, ताकि त्वचा की सतह तक रक्त पहुंचा पसीने के जरिए शरीर को ठंडा रखने में मदद की जाए।

एस्कॉर्ट हार्ट इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर के निदेशक डॉ. प्रवीर अग्रवाल कहते हैं कि दिल के रोगियों में हीट स्ट्रोक (लू) का खतरा काफी ज्यादा होता है, क्योंकि प्लॉक से तंग हो चुकी धमनियों से त्वचा तक खून का बहाव सीमित हो सकता है।
उन्होंने कहा कि पसीना, जुकाम, त्वचा में तनाव, चक्कर आना, बेहोशी, मांसपेशियों में तनाव, एड़ियों में सूजन, सांस में दिक्कत, जी मिचलाना, उल्टी हीट स्ट्रोक के लक्षण हैं।

डॉ. प्रवीर अग्रवाल ने बताया कि हीट स्ट्रोक से बचने के लिए दिल के रोगियों को गर्मी के दिनों में दोपहर में घर के अंदर ही रहना चाहिए, खुले और हवादार कपड़े पहनने चाहिए, खूब पानी पीते रहना चाहिए और व्यायाम नहीं करना चाहिए। हीट स्ट्रोक होने पर दिल के रोगी को तुरंत नजदीकी हस्पातल ले जाना चाहिए।

फरीदाबाद स्थित फोर्टिस एस्कॉर्ट अस्पताल के कार्डियोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. संजय कुमार ने बताया कि गर्मियों में होने वाली डिहाइड्रेशन दिल के रोगियों के लिए बेहद खतरनाक है। यह धमनियों में रिसाव और स्ट्रोक का कारण बनता है। उन्होंने कहा कि 50 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोग अक्सर अपनी प्यास का अंदाजा नहीं लगा पाते और डिहाइड्रेशन का शिकार हो जाते हैं। घर से बाहर जाने पर बार-बार पानी पीते रहने का ध्यान रखना चाहिए।

बचाव के उपाय :

-सुबह सैर करना, दौड़ना और बागबानी ठंडे वक्त में करना चाहिए

-हल्के वजन और रंगों वाले ऐसे कपड़े पहनें, जिनमें सांस लेना आसान हो

-कैफीन और शराब से दूर रहें, क्योंकि यह डिहाइड्रेटिंग करते हैं

-हल्का और सेहतमंद आहार लें

-पूरे दिन में आठ से दस गिलास पानी पीना जरूरी है

-गर्मियों में अच्छी नींद लेना दिल पर दबाव कम करने और शरीर को स्फूर्ति देने के लिए आवश्यक है।

सिंहस्थ : मुस्लिम समाज के नौजवान बचा रहे जिंदगियां

उज्जैन: मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में चल रहे सिंहस्थ कुंभ में सांप्रदायिक सद्भाव के भी रंग देखने को मिल रहे हैं। एक तरफ जहां हिंदू क्षिप्रा नदी के जल में डुबकी लगाकर पुण्य लाभ अर्जित कर रहे हैं, तो दूसरी ओर मुस्लिम समाज के नौजवान पानी में डूबने वालों को बचाने में जुटे हैं। उज्जैन में क्षिप्रा नदी के घाटों पर विभिन्न तैराकों के दलों की तैनाती की गई है, ताकि स्नान के दौरान कोई हादसा न हो और जो श्रद्धालु गहरे पानी में पहुंचे उसे सुरक्षित निकाल लिया जाए। सबसे ज्यादा श्रद्धालु रामघाट पर पहुंचते हैं। यहां एक दल मौलाना मौज तैराक संघ का भी तैनात है। इस दल में ज्यादातर युवा मुस्लिम समुदाय से है।

मौलाना मौज तैराक दल संघ के अध्यक्ष अखलाक खान ने बताया कि उनके दल के सदस्य अब तक 40-45 श्रद्धालुओं को डूबने से बचा चुके हैं। पहले शाही स्नान के दिन 22 अप्रैल को छह जिंदगियों को डूबने से बचाया है। उन्होंने बताया कि तैराक दल न केवल पावन क्षिप्रा नदी में श्रद्धालुओं के साथ स्नान के दौरान होने वाली कोई भी अनहोनी को रोकने के लिए त संकल्पित है, बल्कि नदी तटों पर दिखने वाले जहरीले जीवों व सांपों को भी पकड़कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने में लगे हैं। इस प्रकार जलजीवों की सुरक्षा भी वे कर रहे हैं।

तैराक दल के सदस्य अब्दुल वाजिद ने बताया कि दल के सभी सदस्य सीटी बजाकर स्नान करने आए श्रद्धालुओं को गहरे पानी में जाने से चेताते हैं तथा उन्हें जंजीरों व बैरिकेड्स के भीतर ही रहने के लिए समझाते हैं। इसके बावजूद जब कुछ श्रद्धालु गहरे पानी में डुबकी लगाने के उत्साह में डूबने लगते हैं, वैसे ही दल के सदस्य डूबते व्यक्ति को गोता लगाकर बचा लेते हैं। मौलाना मौज तैराक दल संघ के अध्यक्ष खान ने आगे बताया कि उनका दल ग्रीन सिंहस्थ-क्लीन सिंहस्थ लिए भी काम कर रहा है। दल के सदस्यों ने सोमवार को होमगार्ड के आह्वान पर रामघाट की साफ-सफाई और नदी के पानी को स्वच्छ व निर्मल बनाने के लिए फूलों व अन्य पूजन सामग्री सहित कचरे को भी निकालकर बाहर किया।

बताया गया है कि तैराक दल वर्तमान तीन शिटों में 24 घंटे श्रद्धालुओं की सेवा व सुरक्षा में लगा हैं। सिविल डिफेंस के रूप में जो भी जिम्मेदारी दल के सदस्यों को सौंपी जाती है, दल द्वारा सेवा भावना से पूरा करने का प्रयास किया जाता है।

जल संरक्षण की अनूठी मिसाल पेश कर रहे हैं सिवनी गांव के आदिवासी

एक तरफ जहां छत्तीसगढ़ सहित पूरा देश में भीषण गर्मी के चलते पानी को लेकर हाहाकार मचा हुआ है, वहीं छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले का एक गांव पानी की उपलब्धता कैसे कायम रखा जा सकता है, इसकी सीख दे रहा है। घने जंगलों के बीच बसे सिवनी गांव के आदिवासी पिछले 10 साल से जल संरक्षण की अनूठी मिसाल पेश कर रहे हैं। एक छोटे से जलस्रोत को संरक्षित करके भीषण गर्मी में भी जल प्रबंधन और संरक्षण कैसे किया जा सकता है, ये आदिवासी ग्राम सिवनी के ग्रामीणों से सीखा जा सकता है।

भीषण गर्मी के इस मौसम में भी इस गांव के जलस्रोत लबालब हैं और आसपास हरियाली छाई हुई है। जल के बेहतर प्रबंधन से गांव के जलस्रोतों में पानी का स्तर बढ़ा है, जिससे लगभग 25 एकड़ क्षेत्र में ग्रीष्मकालीन खेती भी किया जाता है। राजधानी रायपुर से 90 किलोमीटर की दूरी पर गरियाबंद जिला है। गरियाबंदे जिले के अंतर्गत विकासखंड मुख्यालय छुरा से 9 किलोमीटर दूर खरखरा-रसेला मार्ग पर लगभग 900 जनसंख्या वाला आदिवासी बहुल ग्राम सिवनी स्थित है।

बताया जाता है कि इस ग्राम के पूर्व की ओर एक छोटी सी लटी डबरा नाला बहती है, इस नाले पर बहने वाली जल को रोकने के लिए ग्राम पंचायत द्वारा एक छोटा सा पुलिया (रपटा) का निर्माण किया गया है, ग्रामीणों द्वारा जल के महत्व को समझते हुए इसे रोकने की पहल की गई और ग्राम पंचायत द्वारा सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर इस पर पुलिया का निर्माण किया गया। साथ ही छह छोटे गेट के माध्यम से पानी को रोका गया।

बरसात के दिनों में गेट को खोल दिया जाता है, परंतु बरसात खत्म होते ही गेट को बंद कर पानी रोका जाता है, जिससे गर्मी के चार महीने में भी नाले में चार फीट पानी लबालब रहता है, जिससे आसपास हरियाली तो रहती ही है, साथ-साथ गांव के लोग निस्तारी कार्य भी करते हैं। ग्रामीण बताते हैं कि इस नाले से न केवल गांव के ग्रामीण निस्तारी करते हैं, बल्कि जानवरों के लिए भी उपयोगी है। सिवनी की सरपंच गंगाबाई ठाकुर, सचिव गैंदराम नागेश और ग्रामीण कृष्ण कुमार ने बताया कि नाले के पानी को रोकने के लिए पहले ग्राम स्तरीय बैठक कर आपसी सहमति के बाद ग्राम पंचायत द्वारा सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया जाता है और समय-समय पर इसकी सफाई भी किया जाता है।

उन्होंने बताया कि गांव में लगभग 25 नलकूप हैं और 65-70 कुएं हैं, जिसके जलस्तर में वृद्धि हुई है। ग्राम पंचायत के सचिव नागेश ने बताया कि रपटा के ऊपरी भाग में एक छोटी-सी डबरी है, जिसके मेढ़ को काटकर उसमें मिलाने का विचार ग्राम पंचायत द्वारा किया जा रहा है, जिससे जल क्षेत्र में विस्तार होगा और ग्रामीणों को निस्तारी की बेहतर सुविधा मिलेगी।

ऐसा सूखा इससे पहले कभी नहीं देखा

तेलंगाना में प्रमुख जलाशयों के जलस्तर में तेजी से कमी आने के कारण पेयजल का गंभीर संकट पैदा हो गया है और ऊपर से पड़ रही भीषण गर्मी ने खेती को तबाह करके रख दिया है। यहां के लोगों का कहना है कि ऐसा सूखा उन्होंने इससे पहले कभी नहीं देखा। देश का सबसे नया राज्य दूसरी बार गंभीर सूखे की चपेट में है। पानी का संकट न सिर्फ गांवों में है, बल्कि यह शहरों तक और राजधानी हैदराबाद तक पहुंच चुका है। वर्षा के जल पर निर्भर रहनेवाले इस राज्य से लगभग 3.5 करोड़ छोटे किसानों का दूसरे राज्यों के शहरों में पलायन हो चुका है।

पानी की कमी के कारण किसान अपने पशुओं को बेहद कम कीमत पर बेच रहे हैं। किसान संगठनों के मुताबिक, सूखे से सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों -महबूबनगर, रंगा रेड्डी, मेडक, निजामाबाद और आदिलाबाद- से लगभग 14 लाख किसानों का पलायन हुआ है। अखिल भारतीय किसान सभा के उपाअध्यक्ष ए. एस. माला रेड्डी ने बताया, "पलायन यह दिखाता है कि यहां की स्थिति कितनी भयावह है।" यहां के लोग काम की तलाश में ज्यादातर मुंबई, भिवंडी, अहमदाबाद और सूरत जा रहे हैं।

किसान जिन पशुओं को कृषि और दुग्ध उत्पादों के लिए पाल रहे थे, उन्हें अब वे 20-30 फीसदी कम कीमत पर बेच रहे हैं। माला रेड्डी ने बताया, "बाजार में सैंकड़ों पशु रोज बेचने के लिए लाए जा रहे हैं।" किसानों की आत्महत्या की सबसे ज्यादा संख्या वाले इस राज्य की कृषि विकास दर नकारात्मक रही है और अब सूखे के कारण समस्या और गंभीर होने वाली है। राज्य के कुल 450 मंडलों में 231 मंडल सूखे की चपेट में है, जबकि किसान संगठनों का कहना है कि 368 मंडल सूखे की चपेट में हैं। साल 2015-16 में यहां अनाज उत्पादन 65 लाख टन रहा, जबकि लक्ष्य 1.11 करोड़ टन का था। राज्य में चावल का उत्पादन 35 लाख टन रहा, जबकि खपत 60 लाख टन की हुई। वहीं, दालों और तिलहन के उत्पादन में भी तेजी से गिरावट देखी गई।

राज्य में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) का काम कई गांवों में शुरू ही नहीं हो पाया है और जिन गांवों में काम शुरू भी हुआ है, वहां मजदूर तेज गर्मी के कारण इसमें शामिल नहीं हो रहे हैं। माला रेड्डी ने बताया कि इस योजना के तहत काम कर चुके मजदूरों को अभी तक मजदूरी नहीं मिली है। तेलंगाना संयुक्त कार्रवाई समिति (जेएसी) ने कहा है कि मनरेगा के तहत मजदूरी के भुगतान में देरी संकट को और बढ़ा रहा है। जेएसी के अध्यक्ष एम. कोडनडरम ने कहा कि सभी जिलों में स्थिति भयावह है। उन्होंने बताया कि नलगोंडा जिले के लोगों ने अपने 70 फीसदी पशुओं की बिक्री कर दी है।

राज्य ने केंद्र सरकार से सूखा राहत के तहत 3,064 करोड़ रुपये की मांग की है। लेकिन नई दिल्ली ने अभी तक 791 करोड़ रुपये देने की ही घोषणा की है। इसमें से भी अभी तक केवल 400 करोड़ रुपये ही जारी किए गए हैं। किसानों का कहना है कि फसलों के मुआवजे का वितरण अभी तक शुरू नहीं हुआ है। पेयजल की आपूर्ति के लिए राज्य सरकार ने केंद्र से 555 करोड़ रुपये की मांग की थी, लेकिन केंद्र ने अभी तक 72 करोड़ रुपये जारी किए हैं। वहीं, सरकार की लू से हुई मौत के आंकड़ों को छिपाने को लेकर आलोचना हो रही है, जबकि अधिकारी विरोधाभासी आंकड़े जारी कर रहे हैं।

माला रेड्डी ने बताया, "एक अधिकारी के मुताबिक लू से इस साल अब तक 45 लोगों की मौत हुई है, जबकि अनाधिकृत रूप से 200 लोगों के मरने की सूचना है।" किसान सभा ने कई स्थानों पर गरीबों के लिए खिचड़ी केंद्र खोला है, जिसमें मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव का निर्वाचन क्षेत्र मेडक जिले का गजवेल भी शामिल है। तेलंगाना राष्ट्र समिति की सरकार ने दावा किया है कि राहत के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं। स्कूलों में गर्मी की छुट्टियों के बावजूद वहां मिड डे मील के तहत भोजन मुहैया कराया जा रहा है।

सरकार ने कहा है कि वह सूखे के स्थायी निदान के लिए महत्वाकांक्षी परियोजना पर काम कर रही है। इसके तहत सिंचाई परियोजनाओं को फिर से डिजाइन किया जाएगा। सिंचाई टैंक को ठीक करने के लिए मिशन ककतिया और हरेक घर को पाइप से पीने का पानी पहुंचाने के लिए मिशन भगीरथ शुरू किया जाएगा। एक किसान नेता ने कहा कि अविभाजित आंध्र प्रदेश की सरकार ने साल 2005 से 2014 के बीच सिचाई परियोजनाओं पर 90,000 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए। लेकिन इससे केवल एक लाख एकड़ की अतिरिक्त भूमि की ही सिंचाई हो सकती है।

78 वर्षीय माला रेड्डी कहते हैं कि उन्होंने इससे खराब सूखा नहीं देखा है। "1972 में भी गंभीर सूखा का संकट पैदा हुआ था, लेकिन उस वक्त की सरकार ने गांवों में अनाज वितरण केंद्र खोलकर और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति कर इससे बेहतर तरीके निपटा था।" प्रदेश के कृष्णा और गोदावरी नदियों के 14 बड़े जलाशयों में पानी का स्तर बहुत ज्यादा कम हो गया है। वहीं भूजल के स्तर में 2.5 मीटर की गिरावट आई है। हैदराबाद में पानी की आपूर्ति करनेवाले चार जलाशय पूरी तरह सूख गए हैं। एक करोड़ की आबादी वाला यह शहर कृष्णा और गोदावरी नदियों के दो जलाशयों पर निर्भर है। वहीं, दूसरे शहरों में स्थितियां और भी खराब है, जहां ज्यादातर लोगों तक पाइप के जरिए पानी की आपूर्ति नहीं की जाती और वे सप्ताह में एक बार आनेवाले निगम के टैंकर पर निर्भर हैं।