तंबाकू से देश में हर घंटे 114 लोगों की मौत

तंबाकू का सेवन मौत का कारण बनता जा रहा है। देश में हर रोज (24 घंटे) 2800 से ज्यादा लोगों की मौत तंबाकू के उत्पाद अथवा अन्य धूम्रपान का सेवन करने की वजह से हो रही है। इस तरह हर घंटे 114 लोगों की मौत का कारण तंबाकू है। इतना ही नहीं दुनिया में हर छह सेकेंड में एक व्यक्ति की मौत का कारण तंबाकू और धूम्रपान का सेवन है, यही कारण है कि जनजागृति लाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने विश्व तंबाकू निषेध दिवस (31 मई) पर तंबाकू उत्पादों पर चेतावनी को ज्यादा स्थान देने पर जोर दिया है।

तंबाकू उत्पादों और धूम्रपान से होने वाली बीमारियां और मौतों की रोकथाम के ध्यान में रखकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लयूएचओ) द्वारा वर्ष 2016 की थीम 'तंबाकू उत्पादों पर प्लेन पैकेजिग' रखी गई है। इसका आशय यह है कि समस्त तंबाकू उत्पादों के पैकेट का निर्धारित रंग हो और उस पर 85 प्रतिशत सचित्र चेतावनी हो तथा उस पर लिखे शब्दों का साइज भी निर्धारित मात्रा में हो, इसके साथ ही इन उत्पादों पर कंपनी को केवल अपने ब्रांड का नाम लिखने की आजादी हो।

वॉयस आफ टोबेको विक्टिमस ने डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों का जिक्र करते हुए बताया कि एक सिगरेट जिदगी के 11 मिनट छीन लेता है। तंबाकू व धूम्रपान उत्पादों के सेवन से हमारे देश में प्रतिघंटा 114 लोग जान गंवा रहे है। वहीं दुनिया में प्रति छह सेकेंड में एक मौत हो रही है। वीओटीवी ने वैश्विक वयस्क तंबाकू सर्वेक्षण (गेट्स) का हवाला देते हुए बताया कि मध्य प्रदेश के 39़ 5 फीसदी वयस्क(15 वर्ष से अधिक) आबादी तम्बाकू का किसी न किसी रूप में प्रयोग करते हैं, जिसमें 58़ 5 प्रतिशत पुरुष और 19 प्रतिशत महिलाएं हैं। वहीं देशभर में 20 प्रतिशत महिलाएं तंबाकू उत्पादों का शौक रखती हैं। सर्वे के अनुसार देश की 10 फीसदी लड़कियों ने स्वयं सिगरेट पीने की बात को स्वीकारा है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट ग्लोबल टोबेको एपिडेमिक पर अगर नजर डालें तो पता चलता है कि महिलाओं में तंबाकू के सेवन का आंकड़ा निरंतर बढ़ता जा रहा है। इनमें किशोर व किशोरियां भी शामिल हैं। जो कि मध्य प्रदेश की कुल आबादी का करीब 17 फीसदी है। यह सर्वेक्षण 2010 का है। गेट्स का सर्वे भारत में 2016 में होना प्रस्तावित है। गेट्स (भारत 2010) के अनुसार रोकी जा सकने योग्य मौतों एवं बीमारियों में सर्वाधिक मौतें एवं बीमारियां तंबाकू के सेवन से होती हैं। विश्व में प्रत्येक 10 में से एक वयस्क की मृत्यु के पीछे तंबाकू सेवन ही है। विश्व में प्रतिवर्ष 55 लाख लोगों की मौत तंबाकू सेवन के कारण होती है। विश्व में हुई कुल मौतों का लगभग पांचवां हिस्सा भारत में होता है।

वायॅस अफ टोबेको विक्टिमस के पैट्रन व मध्यप्रदेश मेडिकल आफीसर एसोसिएशन के संरक्षक डा़ ललित श्रीवास्तव ने बताया कि तंबाकू उद्योग द्वारा तंबाकू के प्रति युवकों को आकíषत करने के प्रतिदिन नए नए प्रयास किए जा रहे हैं। 'युवास्वस्था में ही उन्हें पकड़ो' उनका उद्देश्य है, तंबाकू उत्पादों को उनके समक्ष व्यस्कता, आधुनिकता, अमीरी और वर्ग मानक और श्रेष्ठता के पर्याय के रूप में पेश किया जाता है। वायॅस आफ टोबेको विक्टिमस के मुताबिक हाल ही में प्रारंभिक शोधों में सामने आया है कि तंबाकू का सेवन करने वालों के जीन में भी आंशिक परिवर्तन होते हैं जिससे केवल उस व्यक्ति में ही नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ियों में भी कैंसर होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। इसके साथ ही इन उत्पादों के सेवन से जहां पुरुषों में नपुंसकता बढ़ रही है वहीं महिलाओं में प्रजनन क्षमता भी कम होती जा रही है।

डा़ श्रीवास्तव ने बताया कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान (आईसीएमआर) की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया गया है कि पुरुषों में 50 प्रतिशत और स्त्रियों में 25 प्रतिशत कैंसर की वजह तम्बाकू है। इनमें से 90 प्रतिशत में मुंह का कैंसर होता है।  वायॅस आफ टोबेको विक्टिमस के मुख्य कार्यकारी अधिकारी संजय सेठ ने कहा कि सरकार को सम्पूर्ण राज्य में कोटपा एक्ट को कठोरता से लागू करना चाहिए ताकि बच्चे व युवाओं की पहुंच से इसे दूर किया जा सके। सभी आधुनिक और प्रगतिशील राज्यों को अपने नागरिकों के लिए एक स्वस्थ वातावरण प्रदान करने के लिए कोटपा कानून को कड़ाई से लागू किया जाना अतिआवश्यक है। कर्नाटक और केरल जैसे राज्यों की पुलिस ने तंबाकू व अन्य धूम्रपान उत्पादों की खपत को कम करने में सराहनीय भूमिका निभाई है।

उन्होंने बताया कि भारत में 5500 बच्चे हर दिन तंबाकू सेवन की शुरुआत करते हैं और वयस्क होने की आयु से पहले ही तम्बाकू के आदी हो जाते हैं। तंबाकू उपयोगकर्ताओं में से केवल तीन प्रतिशत ही इस लत को छोड़ने में सक्षम हैं। वीओटीवी की आशिमा सरीन ने बताया कि तंबाकू उत्पादों की बढ़ती खपत सभी के लिए नुकसानदायक है। इससे जहां जनमानस को शारीरिक, मानसिक और आíथक भार झेलना पड़ता है वहीं सरकार को भी आíथक भार वहन करना पड़ता है। इसलिए तंबाकू पर टैक्स बढ़ाने की नीति को निरतर बनाए रखना चाहिए या फिर इस पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए।

उन्होंने बताया कि दुनियाभर में होने वाली हर पांच मौतों में से एक मौत तंबाकू की वजह से होती है तथा हर छह सेकेंड में होने वाली एक मौत तंबाकू और तंबाकू जनित उत्पादों के सेवन से होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि सन 2050 तक 2-2 अरब लोग तंबाकू या तंबाकू उत्पादों का सेवन कर रहे होंगे।

आशीर्वाद से बच्चे पैदा करने वाले बाबा परमानंद की बढ़ी मुश्किलें, मुकदमा दर्ज

बाराबंकी: सोशल मीडिया पर अश्लील वीडियो वायरल होने के बाद विवादों में आए देवा कोतवाली क्षेत्र के हर्रई स्थित आश्रम के कथित बाबा परमानंद की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं। मंगलवार को बाबा से बगावत करने वाले उनके ड्राइवर की तहरीर पर बाबा के खिलाफ फ्रॉड करने, अश्लीलता करने, मारपीट कर जान से मारने की धमकी देने का मुकदमा दर्ज किया गया है। उधर, फरार बाबा की तलाश में कई पुलिस टीमें जुटी है। पुलिस को बाबा के आधा दर्जन करीबी शिष्यों के मोबाइल भी बंद मिल रहे हैं।

मंगलवार को बाबा परमानंद के ड्राइवर लखनऊ निवासी सुशील कुमार की तहरीर पर देवा कोतवाली में मुकदमा दर्ज किया गया। ड्राइवर ने तीन दिन पहले ही पुलिस को तहरीर देकर बाबा द्वारा आश्रम में किए जाने वाले कृत्यों का उल्लेख करते हुए तहरीर दी गई थी। तहरीर में ड्राइवर सुशील ने कहा था कि विरोध करने पर बाबा व उसके पुत्र ने उन्हे मारपीट कर आश्रम से भगा दिया था। देवा के कोतवाल जावेद खान की माने तो बाबा पर यह 11वां मुकदमा है।

बाराबंकी जिले में एक साधू के भेष में महिलाओं का यौन शोषण करने वाले भेड़‍िये का एमएमएस वायरल हो रहा है। स्वंयभू बाबा यह निःसंतान महिलाओं को अपना शिकार बनता था। संतान सुख के नाम पर वह महिलाओं को झांसे में लेकर उनसे शारीरिक संबंध बनाता था। इस दौरान वह महिलाओं का अश्लील वीडियो भी बना लेता था और फिर शुरू हो जाता था महिलाओं को ब्लैकमेल करने का सिलसिला। बाराबंकी के देवा कोतवाली क्षेत्र में मां काली हरई धाम के नाम से राम शंकर तिवारी उर्फ परमानन्द बाबा का आश्रम है।

बाबा महिला भक्तों से घिरे रहते हैं। हाल ही में महिलाओं के साथ अश्‍लील हरकतें करते हुए बाबा का कथित एमएमएस सोशल मीडिया में वायरल हो गया। वह महिलाओं को झांसा देकर उनके साथ अश्लील हरकतें करता और इसी दौरान अंतरंग लम्हों की वीडियो क्लिप भी बनाता था। बाद में वह पीड़ित धनी महिलाओं को ब्लैकमेल करके मोटी रकम वसूल करता था। इस वजह से बाबा की संपत्ति और रुतबा बढ़ता गया। इसका खुलासा तब हुआ जब बाबा का कंप्यूटर खराब हो गया। उसने कंप्यूटर ठीक करवाने के लिए भेजा, तब उसमें सेव किए गए वीडियो सामने आए।

दरअसल, कथित बाबा तंत्र-मंत्र के सहारे नि: संतान महिलाओं को पुत्र प्राप्ति का झांसा देकर उनका यौन शोषण करता था। जिस कमरे में सब होता था वहां लगे कैमरा से महिलाओं की अश्लील वीडियो बना लिए जाते थे। बताया जा रहा है कि इस बाबा के भक्तों में बड़े-बड़े अधिकारी भी शामिल थे। देवा निवासी गिरीश तिवारी ने आरोप लगाया कि बाबा के साथ कुछ पुलिस वाले भी मिले हुए थे। यही वजह थी कि पुलिस ने वहां कभी रेड नहीं की। अगर कोई पुलिस वाला कार्रवाई करता था, तो बाबा उसका ट्रांसफर करा देता था। एमएमएस वायरल होने के बाद मामला पुलिस के पास पहुंचा।

यूपी छोड़ इन 16 राज्यों में अब सरकारी नौकरियों में इंटरव्यू नहीं

नई दिल्ली: नौकरियों में नियुक्ति के लिए इंटरव्यू खत्म करने के केंद्र सरकार के आदेश का क्रियान्वयन अब तक 16 राज्यों ने किया है। दस राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों ने या तो इसे मानने से इनकार कर दिया है या फिर चुप्पी साध ली है। बाकी 10 राज्यों ने इस बारे में विचार करने की बात कही है।
कार्मिक मंत्रलय ने पिछले महीने राज्यों के प्रधान सचिवों के साथ समीक्षा बैठक में यह मुद्दा उठाया था और उनसे क्रियान्वयन रिपोर्ट तलब की थी। इसके बाद अब मंत्रलय ने एक विस्तृत प्रगति रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट के अनुसार 16 राज्यों ने निचले पदों पर भर्ती के लिए इंटरव्यू खत्म कर दिए हैं। इनमें बिहार, उत्तराखंड, झारखंड, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, पांडिचेरी तथा केंद्र शासित प्रदेश दादर नागर हवेली, दमन दीव शामिल हैं।
दस राज्यों उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, सिक्किम, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, असम, अरुणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर एवं मणिपुर ने कहा कि मामला उनके विचाराधीन है तथा जल्दी इस पर फैसला करेंगे। दो राज्यों हरियाणा एवं मिजोरम ने केंद्र के प्रस्ताव से पूरी तरह से असमति जता दी है। इसलिए इन राज्यों में इसके लागू होने की संभावना शून्य हो गई है। आठ राज्यों एवं एवं केंद्र शासित प्रदेशों ने इस पर अभी तक कोई उत्तर केंद्र को नहीं दिया है।

केंद्रीय मदद वाले रिकार्ड खत्म करने के लिए तो नहीं लगाई गई मंडी भवन में आग…?

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित मंडी परिषद के भवन में रविवार रात लगी में घोटालों का धुंआ उठ रहा है। मंडी परिषद में 70 करोड़ रुपये से ज्यादा के 17 मामलों में गड़बड़ियों पर 12 मई को विधानसभा की ऑडिट आपत्ति निस्तारण कमिटी ने नाराजगी जताते हुए जांच के आदेश दिए थे। इसके चौथे ही दिन लगी आग में मामलों से जुड़ी ज्यादातर फाइलें राख हो गईं। माना जा रहा है कि इन मामलों में कई बड़े अधिकारियों की गर्दन फंस सकती थी, लेकिन आग के बाद अब कार्रवाई मुश्किल हो गई है। 

किसान मंडी भवन में लगी आग में करोड़ों रुपये के मंडी शुल्क घपले से संबंधित रिकॉर्ड भी स्वाह हो गए। निर्यात फर्मों को लाइसेंस में दी गई छूट में हुए घोटाले की जांच अब शायद ही आगे बढ़ सके, क्योंकि उसका रिकॉर्ड भी आग की भेंट चढ़ गया। केंद्र से बुंदेलखंड पैकेज के रूप में मिली भारी-भरकम राशि को खर्च करने में हुई गड़बड़ी की जांच संबंधी फाइलों का भी यही हश्र हुआ। विभागीय सूत्रों के मुताबिक, कुछ समय पहले मंडी शुल्क वसूली में करोड़ों रुपये के घपले की जांच शुरू हुई थी। इस अग्निकांड के बाद इससे जुड़ी अधिकतर फाइलें नहीं बची हैं। नोएडा की एक फर्म के खिलाफ ही एक करोड़ रुपये से ज्यादा के घपले की जांच चल रही थी, उसकी फाइल भी जल गई।

सूत्रों की माने तो इस अग्निकांड के पीछे केंद्रीय मदद वाली योजनाओं का रिकार्ड ख़त्म करने के लिए किया गया। इस अग्निकांड में बुन्देखण्ड पैकेज और कृषि मार्केटिंग हब से सम्बंधित फाइलें ज्यादा क्यों जली।केंद्र की इन दोनों योजनाओं में पिछले पांच वर्षों में एक हजार करोड़ रुपये से ज्यादा के काम दिखाए गए हैं। इस भीषण अग्निकांड में बुंदेलखंड पैकेज से बनीं साढ़े तीन अरब की मंडियों की फाइलें भी जलने का अंदेशा है। इन मंडियों के निर्माण में बड़े पैमाने पर धांधली होने की शिकायतें हुई थीं। कुछ में जांच भी शुरू हो गई थी। मंडियों का निर्माण 2013-14 में पूरा होना था, लेकिन अभी तक अधूरी हैं। करीब 3.35 अरब की लागत वाली मंडियों के निर्माण में करीब 2.28 अरब रुपये खर्च किए जा चुके हैं। खबरों के मुताबिक इस अग्निकांड में बुंदेलखंड पैकेज से सात जिलों में 64-64 करोड़ रुपये की लागत से बनाई जा रही विशिष्ट मंडियों की फाइलें भी जलकर राख हो गईं हैं। मंडियों के कागजात के जलने को लेकर तरह- तरह की चर्चाएं हैं। क्योंकि करोड़ों की लागत से बनने वाली मंडियों के निर्माण में बड़े पैमाने पर धांधली होने की शिकायतें मिलती रही हैं। कुछ शिकायतें शासन स्तर पर भी गई। कुछ में स्थानीय स्तर पर जांच भी हुई थी।

प्रदेश सरकार ने बुंदेलखंड विकास पैकेज से बुंदेलखंड के लिए कुल 73 विशिष्ट मंडियां स्वीकृत की थीं। इनकी लागत 3 अरब 35 करोड़ 85 लाख रुपये बताई गई थी। इस योजना में बांदा में नौ, महोबा में चार, हमीरपुर में 10 और चित्रकूट में तीन मंडियों का निर्माण अधूरा है। यह स्थित तब है, जब प्रदेश सरकार इन मंडियों के लिए दो अरब 28 करोड़ 40 लाख रुपये से ज्यादा दे चुकी है। मंडियों का निर्माण वर्ष 2013 या 2014 में पूरा हो जाना चाहिए था। लेकिन अभी तक अधूरी हैं। इतना ही नहीं महोबा में मंडियों के निर्माण के लिए 4627.53 लाख रुपये अवमुक्त हुए लेकिन खर्च 4669.26 लाख रुपये हुए। कहा जाता है कि ज्यादा खर्च होने पर प्रशासन अन्य व्ययों के लिए आए धन को किसी भी कार्य में लगा सकता है।

कुछ समय पहले मंडी शुल्क में समाधान योजना लाई गई थी, उसमें भी करोड़ों का घपला हुआ था। इस मामले से संबंधित फाइलें भी नष्ट हो गईं। मसालों पर लगने वाले मंडी शुल्क के लिए लाई गई समाधान योजना में भी कुछ वर्ष पहले बड़ा घपला सामने आया था, उससे संबंधित फाइलों को दुबारा तैयार कर पाना अब नामुमकिन होगा, क्योंकि मुख्यालय स्तर की फाइलों में तमाम ऐसी नोटिंग थी, जो और कहीं नहीं मिल सकती। तमाम कामों के लिए विभिन्न फर्म्स को दिए गए एडवांस से संबंधित रिकॉर्ड भी आग की भेंट चढ़ गए। मंडी परिषद में और भी तमाम घोटाले हैं, जो भविष्य में सामने आ सकते थे, लेकिन इस अग्निकांड की वजह से उसकी गुंजाइश ही खत्म हो गई।

तमाम कामों के लिए विभिन्न फर्म्स को दिए गए एडवांस से संबंधित रिकॉर्ड भी आग की भेंट चढ़ गए। मंडी परिषद में और भी तमाम घोटाले हैं, जो भविष्य में सामने आ सकते थे, लेकिन इस अग्निकांड की वजह से उसकी गुंजाइश ही खत्म हो गई। किसान मंडी भवन में हुए अग्निकांड में मेंटेनेंस विभाग की भूमिका भी संदिग्ध लग रही है। घटना के समय न तो फ्लोर इंचार्ज मौके पर मौजूद थे और न ही परिसर में लगा कोई हाइड्रेंट काम कर रहा था।

अग्निशमन विभाग के अधिकारियों ने इसके पीछे किसी बड़ी साजिश की आशंका जताई है। किसान मंडी भवन में सभी फ्लोर पर यूपी सैनिक कल्याण निगम के सुरक्षा गार्डों की ड्यूटी रहती है। इसके अलावा मंडी भवन की अपनी फायर यूनिट है, जिसके कर्मचारी 24 घंटे मुस्तैद रहते हैं। बताया जा रहा है कि आग रविवार रात लगभग सवा बारह बजे लगी। सिक्योरिटी गार्ड लाल बहादुर ने इसकी सूचना मंडी भवन की फायर यूनिट को दी। उन्होंने पहले खुद ही आग बुझाने की कोशिश की। जब रिकॉर्ड रूम पूरी तरह से आग की चपेट में आ गया और खिड़कियों से भीषण लपटें निकलने लगीं तो इसकी सूचना अग्निशमन विभाग और पुलिस को दी गई। इसके बाद फायर ब्रिगेड बुलाई गई।

आपको बता दें कि मंडी शुल्क वसूली में करोड़ों रुपये के घपले की जांच शुरू हुई थी। आग से अधिकांश फाइलें नष्ट हो गईं। कई नियार्त फर्मों को लाइसेंस में दी गई छूट वाली फाइलें भी राख हो गईं। यानी इनमें गड़बड़ियों की जांच नहीं हो पाएगी। केंद्र से बुंदेलखंड पैकेज के रूप में मिली रकम को खर्च करने में हुई गड़बड़ी की जांच संबंधी फाइलें भी आग की भेंट चढ़ गईं। कृषि उत्पादन आयुक्त (एपीसी) प्रवीर कुमार ने अग्निकांड की जांच के लिए विशेष सचिव (कृषि एवं विपणन) मार्कण्डेय शाही की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया है। उसे एक हफ्ते में रिपोर्ट सौंपनी है। एपीसी प्रवीर ने कहा कि आग से कई महत्वपूर्ण अनुभागों में कुछ बचा ही नहीं है।

राजधानी के सरकारी दफ्तरों में छुट्टी के दिन या दफ्तर बंद होने के बाद ही आग लगने की घटनाएं होती हैं और महत्वपूर्ण फाइलें इनकी भेंट चढ़ जाती हैं। जानकारों के अनुसार दफ्तर बंद होने से बिजली का लोड कम होता है। ऐसे में शॉर्ट सर्किट की संभावनाएं काफी कम हो जाती हैं। इसके बावजूद आग लगने की घटनाएं सवाल पैदा करती हैं। इसके पहले इंदिरा भवन व स्वास्‍थ्य भवन में भी इसी तरह की आग लगी थी, जिसमें फाइलें जल गईं थीं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि अगर ये साजिश है तो आखिर इसके पीछे कौन है?

दुबई में बारिश कराएगा कृत्रिम पहाड़

दुनिया भर में ऊंची इमारत बनाने वाला देश अब कृत्रिम पहाड़ बनाने की कोशिश में है। ताकि यहां के लोगों को देश में गर्मी से निजात मिल सके व जल संकट से जूझ रहे इस देश में बारिश ज्यादा हो व लोग बारिश का आनंद उठा सकें। यह कृत्रिम पहाड़ 1.93 किलोमीटर ऊंचा बनेगा ताकि पर्याप्त बारिश हो सके। यूएई की सरकार ने इस योजना पर शोध शुरू करने के साथ ही अमेरिका की कंपनी ‘‘नेशनल सेंटर फॉर एटमस्फेरिक रिसर्च’ (एनसीएआर) को इससे संबंधित अध्ययन करने के लिए तैनात किया है। इससे पता लगेगा कि कैसा, कितना ऊंचा, कितना चौड़ा और कितनी ढलान वाला पहाड़ बनाने पर बारिश में इजाफा होगा।

इस गर्मी के मौसम तक प्रारंभिक रिपोर्ट आने की संभावना है। वैसे तो पहाड़ों से बारिश कैसे होती है, यह बहुत लोग जानते हैं। कहा जाता है कि नम वायु पहाड़ से टकराकर ऊपर की ओर उठती हैं और ठंडी होती जाती है। यह हवा संघनित होकर पानी में बदल जाती है, यही पानी बारिश के रूप में गिरता है। जिस तरह के पहाड़ से हवा टकराती है वहां बारिश होती है, जबकि पहाड़ का दूसरा हिस्सा सूखा रह जाता है।यूएई मध्यपूर्व का ऐसा देश है जहां पर रेगिस्तान अधिक है। इस कारण से भी यहां साल में बेहद कम करीब पांच इंच बारिश होती है। गर्मी के दिनों में यहां 43.33 डिग्री सेल्सियस तापमान रहता है, लेकिन बारिश नहीं के बराबर होती है। दूसरे देशों से तुलना करें तो भारत में यहां से तीन से पांच गुना और अमेरिका में आठ गुना तक बारिश साल में होती है।

यूएई की सरकार ने कृत्रिम बारिश पर छह करोड़ खर्च कर पिछले साल क्लाउड सीडिंग तकनीक के बारिश कराने की कोशिश की थी। यहां साल में कुल 186 जगहों पर क्लाउड सीडिंग कराई गई है। वहीं तीस करोड़ रु पए का फंड बारिश बढ़ाने सबंधी शोध के लिए दिया गया है। इससे फायदा भी हुआ है, पिछले दिनों यहां कुछ इलाकों में एक दिन में 11 इंच तक बारिश हुई है। पानी की कमी को देखते हुए यूएई की सरकार ने पानी से जुड़े कई बड़े प्रोजेक्ट अपने हाथों में लिए हैं और इसी सिलसिले में देश में समुद्री पानी को पेयजल में बदलने के लिए बनाए कई संयंत्र लगाए जाने वाले हैं।  

सनी लियोन के जन्मदिन पर जानिए उनसे जुड़ी ख़ास बातें

इंडो-कनाडाई अभिनेत्री सनी लियोन अब किसी परिचय की मोहताज नहीं। दुनिया में उनके चाहने वालों की कमी नहीं है। सनी ने अपनी खूबसूरती से सबको अपना कायल बनाया है। वह हॉलीवुड की पोर्न इंडस्ट्री को छोड़ अब बॉलीवुड में अपने पैर जमा चुकी हैं। आज कई कलाकार उनके साथ काम करने को इच्छुक हैं। वर्ष 2011 के रियलिटी टीवी शो 'बिग बॉस 5' में आने से पहले उन्हें बहुत कम लोग जानते थे। इसके बाद वह दिनों दिन लोकप्रिय होती गईं और उन्हें एक से एक बेहतरीन फिल्मों के ऑफर मिले।

सनी लियोन का जन्म 13 मई, 1981 को कनाडा के सार्निया (ओंटारियो) में एक सिख पंजाबी परिवार में हुआ था। उनका असली नाम करेनजीत कौर वोहरा है। उनके पिता तिब्बत में जन्मे और दिल्ली में पले बढ़े थे। वह बाद में कनाडा में रहने लगे। सन् 1996 में सनी का परिवार दक्षिणी कैलिफोर्निया में जाकर बस गया। उनकी मां नहान (जिनकी 2008 में मृत्यु हो गई) हिमाचल प्रदेश के एक छोटे-से गांव सिरमौर से थीं। सनी ने 1999 में हाईस्कूल पास कर कॉलेज में दाखिला लिया। बचपन में सनी को हॉकी खेलना बेहद पसंद था और अक्सर वह लड़कों के साथ हॉकी खेलती थीं। उन्हें आइस स्केटिंग भी बहुत पसंद है। 

सनी ने पोर्न इंडस्ट्री में कदम रखने के पहले एक बेकरी तथा एक टेक्स एंड रिटायरमेंट फर्म में भी काम कर चुकी हैं। सनी को मॉडलिंग करने की सलाह उनके एक क्लासमेट ने दी। एक फोटोग्राफर से मुलाकात होने के बाध उन्होंने पेंटहाउस मैगजीन के लिए उन्होंने पोज दिया। इसके बाद उनके पास प्रस्तावों की झड़ी लग गई। सनी को मैगजीन के लिए न्यूड पोज देने में काफी स्कोप नजर आया। पैसा और देश-विदेश घूमने का अवसर भी बहुत था। इसलिए उन्होंने इस दिशा में कदम बढ़ाए। वर्ष 2003 में सनी ने विविड एंटरटेनमेंट के साथ तीन वर्ष का करार कर हार्डकोर पोर्नोग्राफी की दुनिया में कदम रखा।

सनी की पहली फिल्म का नाम भी 'सनी' था। पोर्न इंडस्ट्री में कदम रखते ही उन्होंने ऐलान किया था कि वह लेस्बियन सीन ही करेंगी। इन फिल्मों में काम करने के बाद सनी के दीवानों की संख्या बढ़ती गई और वे उनकी फिल्म देखने के लिए उतावले होने लगे। वर्ष 2007 में सनी कैमरे के सामने पुरुष के साथ आने के लिए राजी हो गईं। उनके पार्टनर मैट एरिक्सन उनके मंगेतर भी थे। मैट से सनी का रिश्ता तब टूटा, जब उन्होंने दूसरे पुरुषों के साथ भी फिल्म करने के लिए हामी भर दी और टॉमी गन, चार्ल्स डेरा, जेम्स डीन जैसे पुरुषों के साथ उन्होंने कई फिल्में कीं। 

सनी ने अपनी लोकप्रियता का जमकर फायदा उठाया। फिल्म निर्देशक बन एडल्ट फिल्में बनाई। इंटरनेट के जरिए इन फिल्मों से पैसा कमाया और कई लोकप्रिय उत्पादों की मॉडलिंग की। वर्ष 2005 में एमटीवी इंडिया के लिए उन्होंने एमटीवी अवार्डस के दौरान रेड कारपेट रिपोर्टर की भूमिका भी निभाई थी।

बॉलीवुड में सनी लियोन :

फिल्म निर्माता महेश भट्ट ने रियलिटी टीवी शो 'बिग बॉस' के अंदर जाकर सनी को अपनी फिल्म की कहानी सुनाई। यह कहानी सनी को बेहद पसंद आई। इसके बाद उन्होंने 'जिस्म-2' में मुख्य किरदार निभाया। सन्नी ने वर्ष 2014 में बनी फिल्म 'हेट लव स्टोरी' में आइटम गीत 'गुलाबी होंठ..' में भी काम किया और ये गीत काफी लोकप्रिय हुआ। भट्ट की निगाह बहुत पहले से सनी पर थी। उन्होंने अपनी फिल्म 'कलयुग' में भी सनी को लेने की कोशिश की थी, लेकिन सनी ने तब 10 लाख डॉलर मांगे थे और यह रकम सुन भट्ट ने उन्हें फिल्म में लेने का इरादा छोड़ दिया।

फिल्म 'जिस्म-2' के बाद सनी के लिए अभिनय की राह खुल गई। इसके बाद उन्होंने 'जैकपॉट', 'रागिनी एमएमएस 2', 'एक पहेली लीला', 'कुछ कुछ लोचा है' और 'मस्तीजादे' जैसी फिल्मों में अभिनय किया। इसके अलावा, 'शूटआउट एट वडाला', 'हेट स्टोरी 2', 'बलविंदर फेमस हो गया' और 'सिंह इज ब्लिंग' जैसी फिल्मों में उन्होंने अतिथि भूमिका निभाई। सनी लियोन जल्द ही शाहरुख खान अभिनीत फिल्म 'रईस' में आइटम नंबर करती दिखाई देंगी। इसके साथ उनकी 'बेईमान लव', 'टीना एंड लोलो' और 'वन नाइट स्टैंड' भी जल्दी ही रिलीज होगी।

सनी लियोन ने लगभग 35 एडल्ट फिल्म बतौर अभिनेत्री और 25 फिल्मों का निर्देशन किया है। वह कहती हैं कि उन्हें पुरस्कार पाने की कोई लालसा नहीं है, वह सिर्फ अपने प्रशंसकों का प्यार चाहती हैं। सनी लियोन अपने स्वास्थ्य को लेकर सनी बेहद जागरूक हैं। लियोन की लंबाई 5 फीट 4 इंच और वजन 50 किलो है। वह रोजाना वर्कआउट करती हैं। वह सब्जियां, फलों के जूस और दूध भरपूर मात्रा में लेती हैं। सनी लियोन के पति डैनियल वेबर उनका सारा काम संभालते हैं। सनी बाइसेक्सुअल हैं, लेकिन बाद में उन्होंने बताया कि वह पुरुष को प्राथमिकता देती हैं। अपना खाली समय वह पेंटिंग, हॉर्स राइडिंग और रीडिंग कर बिताती हैं। डिस्कवरी चैनल देखना उन्हें बेहद पसंद है।

सनी लियोन को जन्मदिन पर ढेर सारी शुभकामनाएं!

चित्रकूट धाम के प्रमुख आकर्षण

कामदगिरि
इस पवित्र पर्वत का काफी धार्मिक महत्व है। श्रद्धालु कामदगिरि पर्वत की 5 किमी. की परिक्रमा कर अपनी मनोकामनाएं पूर्ण होने की कामना करते हैं। जंगलों से घिरे इस पर्वत के तल पर अनेक मंदिर बने हुए हैं। चित्रकूट के लोकप्रिय कामतानाथ और भरत मिलाप मंदिर भी यहीं स्थित है। कामतानाथजी को चित्रकुट तीर्थ का प्रधान देवता माना गया है। वैसे तो मंदाकिनी नदी के तट पर चित्रकुट के दर्शन के लिए भक्तों का आना-जाना तो सदा लगा रहता है पर अमावस्या के दिन यहां श्रध्दालुओं के आगमन से विशाल मेला लग जाता है। श्री कामदर गिरी की परिक्रम की महिमा अपार है। श्रध्दा सुमन कामदर गिरी को साक्षात ॠग्वेद विग्रह मानसकर उनका दर्शन पूजन और परिक्रमा अवश्य करते रहते हैं।


चित्रकूट में रामघाट

मंदाकिनी नदी के तट पर बने रामघाट में अनेक धार्मिक क्रियाकलाप चलते रहते हैं। घाट में गेरूआ वस्त्र धारण किए साधु-सन्तों को भजन और कीर्तन करते देख बहुत अच्छा महसूस होता है। शाम को होने वाली यहां की आरती मन को काफी सुकून पहुंचाती है। चित्रकुट के केन्द्र स्थल का नाम रामघाट है जो मंदाकिनी के किनारे शोभायमान है। इस घाट के ऊपर अनेक नए पुराणे मठ, मंदिर, अखाडे व धर्मशालाएं हैं, लेकिन कामदर गिरी भवन अच्छा बना हुआ है। इस भवन को बंबई के नारायणजी गोयनका ने बनवाया। इसके दक्षिण में राघव प्रयागघाट है यहां तपस्विनी मंदाकिनी ओर गायत्री नदियां आकर मिलती हैं।

जानकी कुण्ड

रामघाट से 2 किमी. की दूरी पर मंदाकिनी नदी के किनार जानकी कुण्ड स्थित है। जनक पुत्री होने के कारण सीता को जानकी कहा जाता था। माना जाता है कि जानकी यहां स्नान करती थीं। जानकी कुण्ड के समीप ही राम जानकी रघुवीर मंदिर और संकट मोचन मंदिर है।

स्फटिक शिला

जानकी कुण्ड से कुछ दूरी पर मंदाकिनी नदी के किनार ही यह शिला स्थित है। माना जाता है कि इस शिला पर सीता के पैरों के निशान मुद्रित हैं। कहा जाता है कि जब वह इस शिला पर खड़ी थीं तो जयंत ने काक रूप धारण कर उन्हें चोंच मारी थी। इस शिला पर राम और सीता बैठकर चित्रकूट की सुन्दरता निहारते थे।

मंदाकिनी तीरे अनुसूया आश्रम

स्फटिक शिला से लगभग 4 किमी. की दूरी पर घने वनों से घिरा यह एकान्त आश्रम स्थित है। इस आश्रम में अत्रि मुनी, अनुसुइया, दत्तात्रेयय और दुर्वाशा मुनी की प्रतिमा स्थापित हैं।

गुप्त गोदावरी

नगर से 18 किमी. की दूरी पर गुप्त गोदावरी स्थित हैं। यहां दो गुफाएं हैं। एक गुफा चौड़ी और ऊंची है। प्रवेश द्वार संकरा होने के कारण इसमें आसानी से नहीं घुसा जा सकता। गुफा के अंत में एक छोटा तालाब है जिसे गोदावरी नदी कहा जाता है। दूसरी गुफा लंबी और संकरी है जिससे हमेशा पानी बहता रहता है। कहा जाता है कि इस गुफा के अंत में राम और लक्ष्मण ने दरबार लगाया था।

हनुमान धारा

पहाड़ी के शिखर पर स्थित हनुमान धारा में हनुमान की एक विशाल मूर्ति है। मूर्ति के सामने तालाब में झरने से पानी गिरता है। कहा जाता है कि यह धारा श्रीराम ने लंका दहन से आए हनुमान के आराम के लिए बनवाई थी। पहाड़ी के शिखर पर ही 'सीता रसोई' है। यहां से चित्रकूट का सुन्दर दृष्य देखा जा सकता है।

भरतकूप
कहा जाता है कि भगवान राम के राज्याभिषेक के लिए भरत ने भारत की सभी नदियों से जल एकत्रित कर यहां रखा था। अत्रि मुनि के परामर्श पर भरत ने जल एक कूप में रख दिया था। इसी कूप को भरत कूप के नाम से जाना जाता है। भगवान राम को समर्पित यहां एक मंदिर भी है।

चित्रकूट यात्रा: औरंगजेब ने बनवाया था मंदाकिनी तट पर 'बालाजी मंदिर'

वैसे तो मुगल शासक औरंगजेब हिंदुओं के मंदिर तुड़वाने और धार्मिक कट्टरता के लिए बदनाम रहा। लेकिन भगवान श्रीराम की तपोस्थली चित्रकूट के मंदाकिनी तट पर 'बालाजी मंदिर' बनवाकर उसने धार्मिक सौहार्द की मिसाल भी कायम की थी। इतना ही नहीं हिंदू देवता की पूजा-अर्चना में कोई बाधा न आए इसलिए उसने इस मंदिर को 330 बीघा बे-लगानी कृषि भूमि भी दान की थी। उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड के प्रसिद्ध तीर्थस्थल चित्रकूट में भगवान श्रीराम ने अपने बारह वर्ष वनवास के बिताए थे। इसी से यह हिंदू समाज के लिए विशेष श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। यहां हर माह की अमावस्या को देश-विदेश से आए लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ जमा होती है। यहां कुछ ऐसे भी ऐतिहासिक मंदिर हैं जो धार्मिक सद्भावना की मिसाल कायम किए हैं। इनमें से एक है मंदाकिनी नदी के किनारे गोपीपुरम का बालाजी मंदिर।

इसका निर्माण मुगल शासक औरंगजेब ने 328 साल पहले सन् 1683 में कराया था। जिसके अभिलेखीय प्रमाण अब भी मौजूद हैं। इतना ही नहीं इस मंदिर में विराजमान भगवान 'ठाकुर जी' की पूजा-अर्चना में कोई बाधा न आए इसके लिए आठ गांवों की 330 बीघा कृषि भूमि दान कर लगान (भूमि कर) भी माफ किया था। इतिहासकार राधाकृष्ण बुंदेली बताते हैं कि मुगल शासक औरंगजेब ने अपनी सेना को सन् 1669 में जारी अपने एक हुक्मनामे पर हिंदुओं के सभी मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया था। इस दौरान सोमनाथ मंदिर, वाराणसी का मंदिर, मथुरा का केशव राय मंदिर के अलावा कई हिंदू देवी-देवताओं के प्रसिद्ध मंदिर तोड़ दिए गए थे। वह बताते हैं कि सन् 1683 में औरंगजेब चित्रकूट आया यह तो इतिहास के पन्नों में दर्ज है। लेकिन किन परिस्थितियों में बालाजी के तिमंजिला मंदिर का निर्माण कराया इसकी प्रमाणिकता का उल्लेख नहीं मिलता।

मंदिर के पुजारी नारायण दास की मानें तो यहां दो किंवदंतियां प्रचारित हैं। एक तो यह कि औरंगजेब चित्रकूट आते ही सेना को आदेश दिया था कि सुबह होते ही यहां के सभी मठ-मंदिर तोड़ कर मूर्तियां नदी में बहा दी जाएं। लेकिन रात में सेना के सभी जवानों के पेट में भयंकर दर्द हुआ और औरंगजेब को बालाजी मंदिर के संत बाबा बालकदास की शरण में जाना पड़ा था। बाबा की दी हुई 'भभूत' (भस्म) से जवानों का दर्द ठीक हुआ। इस चमत्कार से प्रभावित होकर औरंगजेब ने चित्रकूट के किसी भी मंदिर को छुआ तक नहीं और इस मंदिर का भव्य निर्माण भी कराया। दूसरा यह कि कालिंजर किला फतह करने के बाद औरंगजेब को बाबा बालकदास के चमत्कारों के बारे में पता चला तो वह चित्रकूट के मंदिर तुड़वाने की मंशा त्याग मंदिर का निर्माण कराया और दान दिया।

ताम्रपत्र में टंकित औरंगजेब के फरमान (जो मंदिर में मौजूद है) में उल्लेख है कि यह फरमान आलमगीर बादशाह ने शासन के 35 वर्ष रमजान की 19वीं तारीख को जारी किया है। फरमान के लेखक नवाब रफीउल कादर सआदत खां वाकया नवीश थे। फरमान को रमजान की 25वीं तारीख में जमाल मुल्क नाजिम आफताब खां ने शाही रजिस्टर में अंकित किया है। जिसका सत्यापन एवं प्रमाणीकरण मुख्य माल अधिकारी मातमिद्दौला रफीउल शाह ने किया है। फारसी भाषा में लिखे गए इस राजाज्ञा फरमान की इबारत को कालिंजर के रहने वाले वशीर खां हिंदी अनुवाद कर बताते हैं कि इस राजाज्ञा में कहा गया है कि बादशाह का शाही आदेश है कि इलाहाबाद सूबे के कालिंजर परगना के अंतर्गत चित्रकूट पुरी के निर्वाणी महंत बालक दास जी को ठाकुर बाबा जी के सम्मान में उनकी पूजा व भोग के लिए बिना लगानी आठ गांव देवखरी, हिनौता, चित्रकूट, रौदेरा, सिरिया, पड़री, जरवा और दोहरिया दान स्वरूप प्रदान किए गए हैं और 330 बीघा बिना लगानी कृषि योग्य भूमि राठ परगना के जाराखाड़ गांव की 150 बीघा व अमरावती गांव की 180 बीघा के साथ-साथ कोनी परोष्ठा परगना की लगान वसूली से एक रुपया दैनिक अनुदान भी स्वीकृत किया गया है।

उन्होंने बताया कि इस फरमान में बादशाह औरंगजेब का यह भी आदेश दर्ज है कि राज्य के वर्तमान तथा भावी सामंत जागीरदार आठों गांवों सहित दान की सारी जायदाद को पीढ़ी दर पीढ़ी लगानी माफी के रूप में मानते चले जाएंगे। इसमें किसी भी प्रकार का हस्ताक्षेप नहीं करेंगे तथा राजाज्ञा के विपरीति कोई कदम न उठाएंगे। वह बताते हैं कि औरंगजेब के इस फरमान को सन् 1814 में चित्रकूट के आधिपति पन्ना नरेश महाराज हिंदूपत और बाद में ब्रिटिश हुकूमत ने भी स्वीकार कर बरकरार रखा। पुजारी के पास ब्रिटिश शासन काल में उच्च न्यायालय द्वारा प्रमाणित फारसी भाषा के अंग्रेजी अनुवाद की प्रति भी मौजूद है।

बाला जी मंदिर के पुजारी नारायण दास का कहना है कि वह दान में मिले गांवों मे से जरवा गांव की कृषि भूमि के लिए अदालत में कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। अन्य गांवों की भूमि का अता-पता ही नहीं है। मंदिर के भवन पर नगर पालिका पषिद कर्वी में कई लोग नाम मात्र की किरायादारी दर्ज कराकर अवैध कब्जा कर लिए हैं और अवैध निर्माण कर मंदिर का नक्शा तक बदल दिया। शायद देश में किसी हिंदू देवता का यह पहला मंदिर होगा जिसका निर्माण मुगल शासक औरंगजेब ने कराया है। मंदिर की दीवारें दरक चुकी हैं। मंदिर के परिसर में अवैध कब्जाधारकों के पालतू पशुओं के गोबर का ढेर लगा है। पुरातत्व विभाग ने इस धरोहर को अब तक अधिग्रहीत नहीं किया है और न ही संरक्षित करने का प्रयास ही किया है।

धार्मिक सौहार्द का प्रतीक का यह मंदिर सरकारी उपेक्षा से नेस्तनाबूद होने के कगार पर है। चित्रकूट के जिलाधिकारी डॉ. बलकार सिंह कहते हैं कि मैं जल्द ही इस मंदिर को पुरातत्व विभाग के हवाले करने के लिए शासन को पत्र लिखूंगा और मंदिर को अवैध कब्जाधारकों से मुक्त कराया जाएगा।

चित्रकूट की यात्रा: भाग 1

वाल्मीकि रामायण, महाभारत पुराण स्मृति उपनिषद व साहित्यक पोराणिक साक्ष्यों में खासकर कालिदास कृत मेघदुतम में चित्रकुट का विशद विवरण प्राप्त होता है। त्रेतायुग का यह तीर्थ अपने गर्भ में संजोय स्वर्णिम प्राकृतिक दृश्यावलियों के कारण ही चित्रकूट के नाम से प्रसिध्द है जो लगभग 11 वर्ष तक श्रीराम माता सिता व भ्राता लक्ष्मण की आश्रय स्थली बनी रही। यही मंदाकिनी पयस्विनी और सावित्री के संगम पर श्रीराम ने पितृ तर्पण किया था। श्रीराम व भ्राता भरत के मिलन का साक्षी यह स्थल श्रीराम के वनवास के दिनों का साक्षात गवाह है, जहां के असंख्य प्राच्यस्मारकों के दर्शन के रामायण युग की परिस्थितियों का ज्ञान हो जाता है।

ब्रह्मा, विष्णु और महेश चित्रकुट तीर्थ में ही इहलोकोका गमन हुआ था यहां के सती अनुसूया के आश्रम को इस कथा के प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। चित्रकूट का विकास राजा हर्षवर्धन के जमाने में हुआ। मुगल काल में खासकर स्वामी तुलसीदासजी के समय में यहां की प्रतिष्ठा प्रभा पुनः मुखारिन हो उठी। भारत के तीर्थों में चित्रकुट को इसलिए भी गौरव प्राप्त है कि इसी तीर्थ में भक्तराज हनुमान की सहायता से भक्त शिरोमणि तुलसीदास को प्रभु श्रीराम के दर्शन हुए। यहां हनुमान जी ने अग्नि शांत की| यूं तो भारत में एक से बढ़ कर एक हनुमान जी के भव्य मंदिर हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश के बांदा से लगे मध्यप्रदेश के सतना जिले में स्थित चित्रकूट धाम के हनुमान धारा मंदिर की बात ही कुछ और है। आज भी वहां हनुमान जी की बायीं भुजा पर लगातार जल गिरता नजर आता है। वहां विराजे हनुमान जी की आंखों को देख कर ऐसा लगता है, मानो हमें देख कर वह मुस्करा रहे हैं। साथ में भगवान श्रीराम का छोटा-सा मंदिर भी वहां है। 

हनुमान धारा : यहां पर पंचमुखी हनुमान की प्रतिमा है। यह लगभग 100 मीटर ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। जब श्रीराम लंका विजय से वापस लौट रहे थे, तब उन्होंने हनुमान के विश्राम के लिए इस स्थल का निर्माण किया था। यहीं पर पहाड़ी की चोटी पर `सीता रसोई' स्थित है। भक्तगणों द्वारा पंखा तथा अन्य दान की गई वस्तुओं के विषय में कई तरह के नाम लिखित पत्थर भी हैं वहां। सिंदूर और तेल में रचे-बसे  हनुमान जी के दर्शनों से पहले नीचे बने कुंड में हाथ-मुंह धोना कोई भी भक्तगण नहीं भूलता। सीढ़ियां कहीं सीधी हैं तो कहीं घुमावदार। कोई पुराने रास्ते से आ रहा है, कोई सीमेंट की बनी सीढ़ियों पर चल रहा है। 

लेकिन सावधान! बंदरों को चना खिलाते वक्त कई बार अप्रिय स्थिति भी पैदा हो जाती है। रास्ते भर प्राकृतिक दृश्यों को देख कर मन यहां बार-बार आने को करता है। हनुमान धारा से ठीक 100 सीढ़ी ऊपर सीता रसोई है, जहां माता सीता ने भोजन बना कर भगवान श्रीराम और देवर लक्ष्मण को खिलाया था। निकटतम रेलवे स्टेशन कर्वी है, जो इलाहाबाद से 120 किलोमीटर दूर है। मंगलवार और शनिवार के अलावा नवरात्रों और हनुमान जी के दोनों जन्मदिनों पर (हनुमान जी के जन्मदिन पर विद्वानों में मतभेद है) श्रद्धालुओं की बड़ी भीड़ होती है।  

अरुणा ईरानी 9 साल की उम्र से दिखा रहीं हुनर

थोड़ा रेशम लगता है', 'चढ़ती जवानी मेरी चाल मस्तानी', 'दिलबर दिल से प्यारे', 'मैं शायर तो नहीं' जैसे बॉलीवुड फिल्मों के गीतों पर थिरकने वाली अभिनेत्री अरुणा ईरानी को बच्चा-बच्चा पहचाता है। उन्होंने फिल्मों में अपने बेजोड़ अभिनय से दर्शकों को लुभाया। वह अपने अभिनय के साथ-साथ अपने नृत्य के लिए भी प्रसिद्ध हैं।

अरुणा ने बड़े-पर्दे के बाद छोटे पर्दे का रुख करने से कोई परहेज नहीं किया। वह आज भी टेलीविजन पर सक्रिय हैं, जो अन्य कलाकारों के लिए प्रेरणा है। उन्होंने दिलीप कुमार के साथ 1961 में फिल्म 'गंगा जमना' से बतौर बाल कलाकार अपने अभिनय करियर की शुरुआत की, उस वक्त वह सिर्फ 9 साल की थी। तभी दिलीप कुमार उनके अभिनय से काफी प्रभावित हुए और अरुणा की अभिनय कला को सराहा। वह अब तक 357 फिल्मों में काम कर चुकी हैं।

फिल्मों में भले ही अरुणा ईरानी ने सह-कलाकार के रूप में अभिनय किया, लेकिन अपने अभिनय से उन्होंने दर्शकों के दिलों में जगह बना ली। अरुणा का जन्म मुंबई में 3 मई, 1952 को हुआ था। उनके पिताजी की थिएटर कंपनी थी। उनके दो भाई इंद्र कुमार और आदि ईरानी हैं, जो फिल्म उद्योग से जुड़े हुए हैं। अरुणा ने बाल कलाकार, कॉमेडियन, खलनायिका, हीरोइन व चरित्र अभिनेत्री के रूप में काम किया।

फिल्म 'गंगा जमुना' (1961) में उन्होंने चरित्र अभिनेत्री अजरा के बचपन की भूमिका निभाई थी और हेमंत कुमार के गीत 'इंसाफ की डगर पे बच्चों दिखाओ चलके' में अपने गुरुजी के साथ गा रहे बच्चों में भी वह शामिल हुईं। इसके बाद उन्होंने 'जहांआरा', 'फर्ज', 'उपकार' जैसी फिल्मों में छोटे-मोटे किरदार निभाए। फिर कॉमेडी किंग महमूद के साथ उनकी जोड़ी बनी, जो 'औलाद', 'हमजोली', 'नया जमाना' जैसी फिल्मों में खूब सराही गई। अरुणा के करियर में महत्वपूर्ण मोड़ 1971 की फिल्म 'कारवां' के साथ आया। इस सुपरहिट म्यूजिकल फिल्म में उन्होंने तेज-तर्रार बंजारन की यादगार भूमिका निभाते हुए अपने अभिनय कौशल के साथ-साथ नृत्य की प्रतिभा का भी प्रदर्शन किया।

अरुणा को महमूद की 1972 'बॉम्बे टू गोवा'ं में बतौर नायिका का किरदार मिला, जिसमें नायक अमिताभ बच्चन थे। 'बॉम्बे टू गोवा'ं हिट रही। राजकपूर की 1973 की फिल्म 'बॉबी' में एक संक्षिप्त मगर दिलचस्प भूमिका में उन्होंने अपनी छाप छोड़ी। इसके बाद वह लगातार एक सशक्त चरित्र अभिनेत्री के तौर पर अपनी विशेष ख्याति बनाती चली गईं। अरुणा ने 'खेल-खेल में', 'मिली', 'लैला मजनूं', 'शालीमार' आदि उनकी महत्वपूर्ण फिल्में रहीं। 'लव स्टोरी' में वह 'क्या गजब करते हो जी' गाते हुए कुमार गौरव को रिझाती नजर आईं, इसके बाद 'कुदरत' में मंच पर शास्त्रीय अंदाज में 'हमें तुमसे प्यार कितना' गाते हुए दिखाई दीं।

गुलजार की क्लासिक कॉमेडी 'अंगूर' में देवेन वर्मा की पत्नी के रूप में वह अपने किरदार में पूरी तरह डूबी नजर आईं। 1984 में 'पेट, प्यार और पाप' के लिए उन्हें फिल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्री अवॉर्ड मिला। अरुणा ने नए कलाकारों की काफी मदद की। अपने करियर के दौरान अरुणा कई मराठी फिल्में भी कर चुकी हैं। अरुणा ईरानी ने नब्बे के दशक से 'बेटा' और 'राजा बाबू' जैसी फिल्मों से मां का किरदार निभाना शुरू किया। 'बेटा' में उन्होंने एक बार फिर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया और फिल्मफेयर अवार्ड जीता। फिल्म 'यार मेरी जिंदगी' (2008) के बाद से वह टेलीविजन धारावाहिकों में अलग-अलग तरह के किरदारों में नजर आ रही हैं। इसके अलावा उन्होंने कई गुजराती फिल्मों में भी काम किया है। सन् 2000 में उन्होंने धारावाहिक 'जमाना बदल गया' से छोटे पर्दे पर अभिनय की शुरुआत की थी।

इसके बाद 'कहानी घर घर की' (2006-2007), 'झांसी की रानी' (2009-2011), 'देखा एक ख्वाब' (2011-2012), 'परिचय' (2013-2013), 'संस्कार धरोहर अपनो की' (2013-14) जैसे कई टेलीविजन धारावाहिकों में अरुणा अहम किरदार निभा चुकी हैं। आज के दौर के निर्देशकों में अरुणा करण जौहर और इम्तियाज अली के साथ काम करना चाहती हैं, क्योंकि उनके मुताबिक ये निर्देशक नए दौर के अनुरूप फिल्में तो बनाते ही हैं, बल्कि भावनाओं पर भरपूर जोर देते हैं। मनोरंजन-जगत में अरुणा का सिक्का कुछ कम नहीं है, उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई। बचपन से काम करती आ रहीं अरुणा अपनी अंतिम सांस तक काम करते रहना चाहती हैं। उनके जन्मदिन पर हम तो यही कामना करेंगे कि वह यूं ही लंबे समय तक दर्शकों का मनोरंजन करती रहें।

जानिए किन्नरों से जुड़े 20 रोचक तथ्य

लखनऊ: किन्नर समुदाय समाज से अलग ही रहता है और इसी कारण आम लोगों में उनके जीवन और रहन-सहन को जानने की जिज्ञासा बनी रहती है। किन्नरों का वर्णन ग्रंथों में भी मिलता है। यहां जानिए किन्नर समुदाय से जुड़ी कुछ खास बातें…

1. ज्योतिष के अनुसार वीर्य की अधिकता से पुरुष (पुत्र) उतपन्न होता है। रक्त (रज) की अधिकता से स्त्री (कन्या) उतपन्न होती है। वीर्य और राज़ समान हो तो किन्नर संतान उतपन्न होती है।
2. महाभारत में जब पांडव एक वर्ष का अज्ञात वास काट रहे थे, तब अर्जुन एक वर्ष तक किन्नर वृहन्नला बनकर रहा था।
3. पुराने समय में भी किन्नर राजा-महाराजाओं के यहां नाचना-गाना करके अपनी जीविका चलाते थे।  महाभारत में वृहन्नला (अर्जुन) ने उत्तरा को नृत्य और गायन की शिक्षा दी थी।
4. किन्नर की दुआएं किसी भी व्यक्ति के बुरे समय को दूर कर सकती हैं। धन लाभ चाहते है तो किसी किन्नर से एक सिक्का लेकर पर्स में रखे।
5. एक मान्यता है कि ब्रह्माजी की छाया से किन्नरों की उत्पत्ति हुई है। दूसरी मान्यता यह है कि अरिष्टा और कश्यप ऋषि से किन्नरों की उतपत्ति हुई है।
6. पुरानी मान्यताओं के अनुसार शिखंडी को किन्नर ही माना गया है। शिखंडी की वजह से ही अर्जुन ने भीष्म को युद्ध में हरा दिया था।
7. यदि कुंडली में बुध गृह कमजोर हो तो किसी किन्नर को हरे रंग की चूड़ियां व साडी दान करनी चाहिए।  इससे लाभ होता है।
8. किसी नए वयक्ति को किन्नर समाज में शामिल करने के भी नियम है। इसके लिए कई रीती-रिवाज़ है, जिनका पालन किया जाता है।  नए किन्नर को शामिल करने से पहले नाच-गाना और सामूहिक भोज होता है।
9. फिलहाल देश में किन्नरों की चार देवियां हैं।
10. कुंडली में बुध, शनि, शुक्र और केतु के अशुभ योगों से व्यक्ति किन्नर या नपुंसक हो सकता है।
11. किसी किन्नर की मृत्यु के बाद उसका अंतिम संस्कार बहुत ही गुप्त तरीके से किया जाता है।
12. किन्नरों की जब मौत होती है तो उसे किसी गैर किन्नर को नहीं दिखाया जाता। ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से मरने वाला अगले जन्म में भी किन्नर ही पैदा होगा। किन्नर मुर्दे को जलाते नहीं बल्कि दफनाते हैं.
13. हिंजड़ों की शव यात्राएं रात्रि को निकाली जाती है। शव यात्रा को उठाने से पूर्व जूतों-चप्पलों से पीटा जाता है।किन्नर के मरने उपरांत पूरा हिंजड़ा समुदाय एक सप्ताह तक भूखा रहता है।
14. किन्नर समुदाय में गुरू शिष्य जैसे प्राचीन परम्परा आज भी यथावत बनी हुई है। किन्नर समुदाय के सदस्य स्वयं को मंगल मुखी कहते है क्योंकि ये सिर्फ मांगलिक कार्यो में ही हिस्सा लेते हैं मातम में नहीं ।
15. किन्नर समाज कि सबसे बड़ी विशेषता है मरने के बाद यह मातम नहीं मनाते हैं। किन्नर समाज में मान्यता है कि मरने के बाद इस नर्क रूपी जीवन से छुटकारा मिल जाता है। इसीलिए मरने के बाद हम खुशी मानते हैं । ये लोग स्वंय के पैसो से कई दान कार्य भी करवाते है ताकि पुन: उन्हें इस रूप में पैदा ना होना पड़े।
16. देश में हर साल किन्नरों की संख्या में 40-50 हजार की वृद्धि होती है। देशभर के तमाम किन्नरों में से 90 फीसद ऐसे होते हैं जिन्हें बनाया जाता है। समय के साथ किन्नर बिरादरी में वो लोग भी शामिल होते चले गए जो जनाना भाव रखते हैं।
17. किन्नरों की दुनिया का एक खौफनाक सच यह भी है कि यह समाज ऐसे लड़कों की तलाश में रहता है जो खूबसूरत हो, जिसकी चाल-ढाल थोड़ी कोमल हो और जो ऊंचा उठने के ख्वाब देखता हो।  यह समुदाय उससे नजदीकी बढ़ाता है और फिर समय आते ही उसे बधिया कर दिया जाता है। बधिया, यानी उसके शरीर के हिस्से के उस अंग को काट देना, जिसके बाद वह कभी लड़का नहीं रहता।
18. अब देश में मौजूद पचास लाख से भी ज्यादा किन्नरों को तीसरे दर्जे में शामिल कर लिया गया है। अपने इस हक के लिए किन्नर बिरादरी वर्षों से लड़ाई लड़ रही थी। 1871 से पहले तक भारत में किन्नरों को ट्रांसजेंडर का अधिकार मिला हुआ था।  मगर 1871 में अंग्रेजों ने किन्नरों को क्रिमिनल ट्राइब्स यानी जरायमपेशा जनजाति की श्रेणी में डाल दिया था। बाद में आजाद हिंदुस्तान का जब नया संविधान बना तो 1951 में किन्नरों को क्रिमिनल ट्राइब्स से निकाल दिया गया। मगर उन्हें उनका हक तब भी नहीं मिला था।
19. आमतौर पर सिंहस्थ में 13 अखाड़े शामिल होते हैं, लेकिन इस बार एक नया अखाड़ा और बना है। ये अखाड़ा है किन्नर अखाड़ा। किन्नर अखाड़े को लेकर समय-समय पर विवाद होते रहे हैं। इस अखाड़े का मुख्य उद्देश्य किन्नरों को भी समाज में समानता का अधिकार दिलवाना है।
20. किन्नर अपने आराध्य देव अरावन से साल में एक बार विवाह करते है। हालांकि यह विवाह मात्र एक  दिन के लिए होता है। अगले दिन अरावन देवता की मौत के साथ ही उनका वैवाहिक जीवन खत्म हो जाता है।

जन्मदिन विशेष: दीपिका चिखलिया 15 की उम्र में बनी थीं सीता

नई दिल्ली: रामानंद सागर की लोकप्रिय टीवी धारावाहिक 'रामायण' में सीता का किरदार निभा चुकीं दीपिका चिखलिया को एक आदर्शवादी महिला किरदार के लिए पहचाना जाता है। उन्होंने सीता के रूप में घर-घर में अपनी खास जगह बनाई। करोड़ों दिलों में दीपिका की छवि अब भी सीता के रूप में बनी हुई है। 

दीपिका चिखलिया ने महज 15-16 की आयु में सीता के किरदार को पर्दे पर इस तरह उभारा कि लोग उन्हें कहीं भी देखते तो खुदबाखुद उनके हाथ श्रद्धा से जुड़ जाते। वैसे सीता का किरदार निभाना दीपिका केलिए आसान नहीं था, उस समय टेलीविजन पर दिखाई देने वाली महिलाओं को सही नहीं समझा जाता था।

अभिनय की ओर बढ़ी रुचि के बारे में दीपिका चिखलिया का कहना है कि रामलीला देखने के बाद ही उनके अंदर अभिनय का शौक जगा। उसके बाद अनेक फिल्मों में किरदार निभाया। हालांकि, उनकी फिल्में अधिक चली नहीं, क्योंकि लोगों के दिमाग में उनकी सीता की छवि बस चुकी थी। 

'रामायण' में सीता बनी दीपिका का जन्म 29 अप्रैल, 1965 में हुआ। वह अभिनेत्री होने के साथ-साथ राजनीतिज्ञ भी हैं। दीपिका चिखलिया ने एक कॉस्मैटिक कंपनी के मालिक हेमंत टोपीवाला से शादी की, जिसके बाद उनका नाम दीपिका चिखलिया से बदलकर दीपिका टोपीवाला हो गया। फिलहाल, दीपिका इसी कंपनी की रिसर्च और मार्केटिंग टीम को हेड करती हैं।

यह कंपनी श्रृंगार बिंदी और टिप्स एंड टोज नेलपॉलिश बनाती है। उनकी दो बेटियां हैं। निधि टोपीवाला और जूही टोपीवाला दोनों अभी पढ़ाई कर रही हैं। दीपिका की बेटियां जब स्कूल में होती हैं, तब दीपिका दफ्तर में और उनके अनुसार, शाम को वह होममेकर के किरदार में आ जाती हैं। दीपिका फिलहाल अभिनय क्षेत्र में लौटना नहीं चाहती हैं। हालांकि उन्हें आज भी धार्मिक किरदारों की पेशकश होती है। लेकिन कंपनी और घरेलू काम में व्यस्त होने के चलते वह इसके लिए हामी नहीं भर सकतीं।

दीपिका ने 1983 में 'सुन मेरी लैला' के साथ मनोरंजन-जगत में अपने सफल करियर की शुरुआत की थी, इसमें उन्होंने राज किरण के साथ काम किया। इसके बाद उन्होंने राजेश खन्ना के साथ 3 हिंदी फिल्मों में काम किया। उन्होंने मलयालम, तमिल, बांग्ला फिल्मों के भी जाने-माने कलाकारों के साथ काम किया। उन्होंने 1983 में 'फिल्म सुन मेरी लैला', 1985 में 'पत्थर', 1986 में 'चीख', 1986 में 'भगवान दादा', 1986 में 'घर संसार', 1987 में 'रात के अंधेरे', 1986 में 'घर के चिराग', 1991 में 'रुपया दस करोड़', 1994 में 'खुदाई' जैसी हिंदी फिल्मों में अभिनय किया। उन्होंने मलयालम, कन्नड़, भोजपुरी, तेलुगू, तमिल, बंगाली फिल्मों में भी बेहतरीन प्रस्तुतियां दी हैं।

फिल्मी दुनिया में अपनी किस्मत आजमा चुकीं दीपिका ने कई बी-ग्रेड फिल्मों में अभिनय किया, जिसमें उन्होंने बेहद बोल्ड दृश्य भी दिए। यहां तक कि एक फिल्म में उन्होंने न्यूड सीन फिल्माने में भी कोई संकोच नहीं किया। वहीं रामायण में सीता का किरदार अदा करने के बाद दीपिका ने अपने अभिनय करियर में ऐसे ²श्यों से तौबा कर लिया। 'रामायण' में अरुण गोविल ने राम का किरदार निभाया था और सीता दीपिका चिखलिया बनी थीं। नटराज स्टूडियो में एक फिल्म के ऑडिशन के दौरान रामानंद सागर के बेटे प्रेम सागर ने दीपिका को देखते ही सीता के किरदार के लिए चुन लिया था। 

'राम-सीता' की इस जोड़ी को उस समय इस बात का तनिक भी अहसास नहीं था कि वह इतिहास रचने जा रहे हैं। 'रामायण' की शूटिंग को मात्र छह महीने बीते थे कि वह इतने लोकप्रिय हो गए कि वे खुद को स्टार मानने लगे। 'रामायण' का प्रसारण टेलीविजन चैनल दूरदर्शन पर 25 जनवरी, 1987 से 31 जुलाई, 1988 तक हर रविवार सुबह 9.30 बजे किया जाता रहा। वो ऐसा समय था, जब टीवी सेट रखा कमरा किसी धार्मिक स्थल में तब्दील हो जाता था और हर रविवार सुबह लोग 'रामायण' देखने के लिए टीवी सेट के इर्द-गिर्द इकट्ठा होकर हाथ जोड़कर बैठ जाते थे।

बताया जाता है कि उस समय 'रामायण' में राम का किरदार निभाने वाले अरुण गोविल की छवि लोगों के बीच एक आदर्शवादी पुरुष के समान हो गई थी और सीता का किरदार निभाने वाली दीपिका को भी लोग काफी सम्मान देते थे। राम और सीता का किरदार निभाने वाले इन दोनों कलाकारों को लोग काफी सम्मानजनक दृष्टि से देखते थे। 

'रामायण' के राम और सीता यानी अरुण गोविल और दीपिका को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने भी सम्मानित किया था। उन्हें हर जगह पहचान मिली। 'रामायण' को भले ही तीन दशक बीत चुके हों, लेकिन दीपिका चिखलिया आज भी सीता के रूप में ही घर-घर में पहचानी जाती हैं।

जानिए भगवान भोलेनाथ के कितनी पत्नियां व पुत्र थे

धर्म शास्त्रो में भगवान शिव को जगत पिता बताया गया हैं, क्योकि भगवान शिव सर्वव्यापी एवं पूर्ण ब्रह्म हैं। हिंदू संस्कृति में शिव को मनुष्य के कल्याण का प्रतीक माना जाता हैं। शिव शब्द के उच्चारण या ध्यान मात्र से ही मनुष्य को परम आनंद की अनुभूति होती है। भगवान शिव भारतीय संस्कृति को दर्शन ज्ञान के द्वारा संजीवनी प्रदान करने वाले देव हैं। इसी कारण अनादिकाल से भारतीय धर्म साधना में निराकार रूप में होते हुवे भी शिवलिंग के रूप में साकार मूर्ति की पूजा होती हैं। लेकिन अभी तक भगवान भोलेनाथ के बारे में आप यही जान रहे होंगे कि भगवान शिव की दो पत्नियां थी लेकिन थी देवी सती और दूसरी माता पार्वती। लेकिन यदि हिन्दू पौराणिक कथाओं की माने तो भगवान नीलकंठेश्वर ने एक दो नहीं बल्कि चार विवाह किये थे। उन्होंने यह सभी विवाह आदिशक्ति के साथ ही किए थे।

भगवान शिव ने पहला विवाह माता सती के साथ किया जो कि प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं। पुराणों के अनुसार भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक प्रजापति दक्ष कश्मीर घाटी के हिमालय क्षेत्र में रहते थे। प्रजापति दक्ष की दो पत्नियां थी- प्रसूति और वीरणी। प्रसूति से दक्ष की चौबीस कन्याएं जन्मी और वीरणी से साठ कन्याएं। इस तरह दक्ष की 84 पुत्रियां और हजारों पुत्र थे। राजा दक्ष की पुत्री 'सती' की माता का नाम था प्रसूति। यह प्रसूति स्वायंभुव मनु की तीसरी पुत्री थी। सती ने अपने पिती की इच्छा के विरूद्ध कैलाश निवासी शंकर से विवाह किया था। सती ने अपने पिता की इच्छा के विरूद्ध रुद्र से विवाह किया था। लेकिन, जब अपने पिता के यज्ञ में बिन बुलाए पहुंची सती के सामने भगवान शिव का अपमान हुआ, तब उन्होंने यज्ञ कुंड में ही अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। ऐसे में भगवान शिव माता सती का शव लेकर कई दिनों तक भटकते रहे। माता सती के शव जहां-जहां गिरे वहां पर 51 शक्तिपीठ बन गए।

माता सती के वियोग में भगवान शिव काफी दुःखी थे। इस दुःखद घटना के कई वर्षों बाद भगवान शिव का फिर से विवाह हुआ इस बार उनकी अर्धांगिनी बनी देवी पार्वती। देवी पार्वती हिमालय की पुत्री थीं। उन्हें अल्पआयु में ही भगवान शिव को अपना पति मानकर उनका वरण किया और उनका विवाह बाद में भगवान शिव से हुआ। देवी पार्वती को भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप करना पड़ा था। भगवान गणेश मां पार्वती के ही पुत्र हैं। देवी पार्वती ही मां दुर्गा हैं।

हमारे धर्मग्रंथों में भगवान शिव का तीसरी पत्नी देवी उमा को बताया गया है। देवी उमा को भूमि की देवी भी कहा जाता है। मां उमा देवी दयालु और सरल ह्दय की देवी हैं। आराधना करने पर वह जल्द ही प्रसन्न हो जाती हैं।
उमा के साथ महेश्वर शब्द का उपयोग किया जाता है। अर्थात महेश और उमा। कश्मीर में एक स्थान है उमा नगरी। यह नगरी अनंतनाग क्षेत्र के उत्तर में हिमालय में बसी है। यहां विराजमान है उमा देवी। भक्तों का ऐसा विश्वास है कि देवी स्वयं यहां एक नदी के रूप में रहती हैं जो ओंकार का आकार बनाती है जिसके साथ पांच झरने भी हैं।

भगवान शिव की चौथी पत्नी मां महाकाली को बताया गया है। उन्होंने इस पृथ्वी पर भयानक दानवों का संहार किया था। वर्षों पहले एक ऐसा भी दानव हुआ जिसके रक्‍त की एक बूंद अगर धरती पर गिर जाए तो हजारों रक्तबीज पैदा हो जाते थे। इस दानव को मौत की नींद सुलाना किसी भी देवता के वश में नहीं था। तब मां महाकाली ने इस भयानक दानव का संहार कर तीनों लोकों को बचाया। रक्तबीज को मारने के बाद भी मां का गुस्सा शांत नहीं हो रहा था, तब भगवान शिव उनके चरणों में लेट गए गलती से मां महाकाली का पैर भगवान शिव के सीने पर रख गया। इसके बाद उनका गुस्सा शांत हुआ।

इसके अलावा जानिए भगवान भोलेनाथ के कितने पुत्र थे-

भगवान शिव के साथ साथ उनके पुत्र कार्तिकेय और गणेश भी देवो में पूजनीय है पर क्या आप जानते है की इन दोनों के आलावा भी शिव के चार अन्य पुत्र है .. इस प्रकार शिव के दो नही वरन 6 पुत्र थे | आइये जानते है कैसे हुआ शिवजी के इन 6 पुत्रो का जन्म ;-

गणेश :- गणेश की उत्तपति पार्वती जी ने चन्दन से की थी ,एक बार गणेश का द्वार पर बिठा कर पार्वतीजी स्नान कर रही थी .इतने में शिव भवन में प्रवेश करने लगे .जब गणेश ने उन्हें रोक तो क्रोध में शिव ने गणेश का सिर काट दिया .जब पार्वती ने देखा की उनके पुत्र का सिर काट दिया है तो वे क्रोधित हो गई | उन्हें शांत करने के लिए शिवजी ने गणेश के सिर के स्थान पर एक हाथी का सिर लगा दिया. और वे फिर से जीवित हो उठे |

कार्तिकेय :- जब शिव शती के आग में भस्म होने कारण दुःख से तपस्या में लीन हो गए थे तब धरती पर तारकासुर नामक दैत्य धरती पर अत्याचार मचाने लगा | उस दैत्य के अत्याचार से परेशान होकर देवता ब्रह्मा जी के पास गए तब ब्रह्माजी ने कहा की इसका समाधान शिवजी का पुत्र ही कर सकता है | फिर देवता शिव के पास गए और तारकासुर के अत्याचारों से मुक्ति के लिए प्राथना करी | उनकी प्राथना सुन शिव,पार्वती से शुभ घड़ी व शुभ मुहरत में विवाह करते है , इस प्रकार भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ |

सुकेश :- शिव का तीसरा पुत्र था सुकेश | दानवो में दो भाई थे हेति और प्रहेति | दानवो ने इन्हे अपना प्रतिनिधि बनाया, ये दोनों भाई बलशाली और प्रतापी थे |प्रहेति धर्मिक था और हेति को राजपाट और राजनीति की लालशा थी | दानव हेति ने अपने वंश को आगे बढ़ाने के लिए काल की पुत्री से ‘भय’ से विवाह कर लिया .कुछ समय पश्चात उनका पुत्र हुआ जिसका नाम था विद्युत्केश | विद्युत्केश का विवाह सालकटंकटा से हुआ क्योकि सालकटंकटा व्यभिचारणी थी इस कारण उन्होंने अपने पुत्र को लवारिश छोड़ दिया | पुराणो के अनुसार जब भगवान शिव और पार्वती की उस लावारिश बालक पर नजर गई तो उन्होंने उसे गोद लिया |

जलंधर :- जलंधर शिव जी का ही अंश था, एक बार जब शिव ने अपना तेज जल में फेका तो उस से जलंधर की उत्पति हुई | जलंधर बहुत ही शक्तिशाली था उसने अपने आक्रमण से स्वर्ग में कब्जा कर लिया तो वे शिवजी के पास गए और उन्हें पूरी घटना बताई | शिव ने इंद्रा से जलंधर की पत्नी वृंदा का पतिव्रत धर्म तोड़ने को कहा क्योकि उंसकी पतिव्रता धर्म की शक्ति के कारण शिव जलंधर को पराजित करने में असमर्थ थे | अतः इंद्र ने जलंधर का रूप धारण कर वृंदा का पतिवर्त धर्म तोडा तथा शिव ने जलंधर का वध कर दिया|

अयप्पा :- अयप्पा भगवन शिव और मोहिनी का पुत्र था | कहते हैं कि जब भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया था तो उनकी मादकता से भगवान शिव का वीर्यपात हो गया था और उस वीर्य से इस बालक का जन्म हुआ | दक्षिण भारत में अयप्पा देव की पूजा अधिक की जाती हैं अयप्पा देव को ‘हरीहर पुत्र’ के नाम से भी जाना जाता हैं |

भौम :- भौम भगवान शिव के पसीने से उत्पन हुआ था .जब भगवान शिव तपश्या में लीन थे तो उस समय उनके सर से पसीने की एक बून्द टपकी जो धरती पर गिरी | इन पसीने की बूंदों से एक सुंदर और प्यारे बालक का जन्म हुआ, जिसके चार भुजाएं थीं | इस पुत्र का पृथ्वी ने पालन पोषण करना शुरु किया। तभी भूमि का पुत्र होने के कारण यह भौम कहलाया। कुछ बड़ा होने पर मंगल काशी पहुंचा और भगवान शिव की कड़ी तपस्या की। तब भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उसे मंगल लोक प्रदान किया ।