खूब खाइए मौसमी सब्जियां क्योंकि...


मौसमी सब्जियां ना केवल खनिज तत्वों से भरपूर होती हैं, बल्कि इनमें मौसम की प्रतिकूलताओं से लडने की क्षमता होती है। मौसम के अनुसार सब्जियां शरीर का तापमान बनाये रखती हैं| शरीर की उचित वृद्धि और विकास के लिए कम से कम 10 खनिजों की जरुरत होती है| इनमे से कैल्सियम और फास्फोरस तत्वों की आवश्यकता काफी अधिक पड़ती है और सब्जियों को छोड़कर किसी भी खाद्य पदार्थ में इनकी प्रयाप्त मात्रा नहीं पाई जाती है | इनमे औषधीय गुण भी होते है | संतुलित आहार, पाचन क्रिया की दुरुस्ती तथा स्वास्थ्य की रक्षा के लिए सब्जियां अति आवश्यक होती है |

हरी सब्जियों की विशेषता-

हरी सब्जियों में जरूरी पोषक तत्वों के होने के कारण यह सेहत को चुस्त -दुरूस्त रखने में लाभकारी है। आयरन की कमी से एनी‍मिया हो सकता है। हरी सब्जियों में आयरन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह व्यक्ति को एनीमिया से बचाता है। हरी पत्तेदार सब्जियों में कैल्शियम, बीटा कैरोटिन एवं विटामिन सी भी काफी मात्रा में पाये जाते हैं।

पुदीने में कई सारे लाभकारी तत्व होते हैं। सिरदर्द, माइग्रेन, जुकाम और पेट खराब होने की दिक्कत पुदीने की कुछ पत्तियां चबाने से जल्दी ठीक हो सकती है। 
हरी सब्जियां विटामिन ए और विटामिन बी कॉम्पलेक्स की कमी को दूर करने में सहायक है। बहुत ज्यादा देर तक पकाई हुई हरी सब्जियों से विटामिन सी नष्ट हो जाता है, इसीलिए उन्हें बहुत देर तक पकाना उचित नहीं।

करेला-सुबह खाली पेट एक छोटा चम्मच कच्चे करेले का जूस लेने से ब्लड शुगर का स्तर तेजी से सामान्य हो जाती है। यह केवल डायबिटीज से पीड़ित लोगों के लिए ही प्रभावकारी नहीं हैं। चूंकि यह शरीर पर क्षारीय प्रभाव डालता है, इसलिए षरीर से विषैले तत्वों को भी बाहर निकालता है। करेले में कापर, आयरन और पोटेषियम होता है। इसे खाने का सबसे अच्छा तरीका यह है इन्हें प्रेशर कुकर में स्टीम दिलवाएं और फिर इसमें भरावन भर कर प्याज के साथ भून खाएं। 

खीरा- सलाद में या ऐसे ही खाया जाने वाला खीर भी आपके स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है| क्योंकि यह क्षारीय और खनिज तत्वों से भरपूर होता है। इसमें पोटेशियम प्रचुर मात्रा में होता है, जो हाइ ब्लड प्रेशर को कम करने में मदद करता है। यह अलसर के इलाज में भी सहायक होता है| 

मूली- अगर मूली नहीं खा रहे हैं तो आज से ही खाना शुरू कर दें क्योंकि इसमें विटामिन सी, सोडियम और कैल्शियम उचित मात्रा में होता है| मूली पीलिया या कमजोर लिवर के रोगियों के लिए यह काफी लाभदायक होती है| 

भिंडी- भिन्डी को तो शायद ही कोई हो जो पसंद न करता हो आपको भिन्डी के बारे में यह सेहत का खजाना होती है| भिन्डी में पेक्टोस होने की वजह से यह क्षारीय होती है और जिलेटिन की वजह से एसिडिटी, अपच के शिकार लोगों को ठंडक पहुंचाती है। जिन लोगों को पेशाब से सम्बंधित समस्याएं होती है, उन्हें डॉक्टर खासतौर से भिंडी खाने की हिदायत देते है। 

पुदीना- पोदीने की पत्तियां कच्ची खाने से शरीर की सफाई होती है व ठंडक मिलती है। यह बहुत ही गुणकारी होता है। ताजा पोदीना एंजाइम्स से भरपूर होता है। यह पाचन में सहायता करता है। अनियमित मासिकधर्म की शिकार महिला के शारीरिक चक्र में प्रभावकारी ढंग से संतुलन कायम करता है। यह भूख खोलने का काम करता है। पोदीने की चाय या पोदीने का अर्क लिवर के लिए अच्छा होता है और शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालने में बहुत ही उपयोगी डिटॉक्सीफायर का काम करता है। मेंथॉल ऑइल पोदीने का ही अर्क है और दांतो से सम्बंधित समस्याओं को दूर करने में और क्लोरीन होती है। 

मशरूम- चाइनीज काले मशरूम को खाने से टयूमर नहीं होता। यहां मिलने वाले मशरूम भी खनिज तत्वों से भरपूर होते है मशरूम खासतौर से उन लोगों को खाने के लिए दिये जाते हैं, जिनके लिपिड और कोलेस्ट्राल में असंतुलन होता है। 

सीताफल- यह खनिज तत्वों से भरपूर होता है। प्रोस्टेट की बीमारी के इलाज के लिए सीताफल क बीज खाने चाहिए। इसमें आयरन, मैगनीशियम, सेलेनियम और फास्फोरस होता है। जिन लोगों का पेट गरमी और मौसम में गडबडा जाता है, उनके लिए यह बहुत अच्छा है।

बैगंन- बैगंन में पोटेशियम, सल्फर, क्लोरीन, थोडा-बहुत आयरन और विटामिन सी होता है। जो लोग वायु विकार के शिकार होते है, उन्हें बैगन खाने चाहिए। आयुर्वेद के अनुसार आर्थराइटिस के रोगियों को इस सब्जी के अलावा आलू- टमाटर से परहेज करना चाहिए। बैंगन खाने से कोलेस्ट्राल कम होता है और खट्टी डकारे भी दूर होती है। 

टमाटर- टमाटर विटामिन ए,सी, फोलेट, पोटेशियम, फाइबर ओर दुसरे सभी तरह के सुरक्षात्मक एंटी ऑक्सीडेंट बहुतायत में मिलते है। इसे खाने से ब्लड प्रेशर नियंत्रण में रहता है और प्रतिरोधक क्षमता बढती है, जिससे कोल्ड ओर फ्लू नहीं होता। टमाटर प्राकृतिक सनस्क्रीन का भी काम करता है। इसे खाने से धमनियों और दिल के रोग की समस्याएं नहीं होती।

मोतियों से चमकेंगे आपके दांत


किसी भी मुस्‍कुराहट को खूबसूरत बनाने के लिए सफेद दांतों का होना बहुत जरुरी है। दांतों की सुंदरता से लोगों का आत्मविश्वास काफी बढ़ जाता है। यदि आपके दांत सुंदर व चमकदार हैं तो चेहरे पर हमेशा मुस्कराहट रहेगी। भरी भीड़ में ठहाके लगाने में भी कोई दिक्कत नहीं होगी। लेकिन इसके विपरीत दांतों पर पीलापन होने के कारण कई बार लोगों को शर्मिंदा होना पड़ता है। लाख कोशिश के बाद भी उनके दांतों में चमक नहीं। इसका कारण नियमित सफाई नहीं, बल्कि कुछ सावधानी नहीं रख पाना भी है। 

इस तरह रखें अपने दांतों का ख्याल-

अगर आपके दांतों में पीलापन है तो आपके लिए मसूर की दाल काफी लाभदायक सिद्ध हो सकती है| मसूर की दाल को आग पर जलाकर इसकी राख को बारीक पीसकर मंजन बना लें और इससे प्रतिदिन सुबह-शाम मंजन करने से दांत साफ होते हैं। इसके अलावा कीकर या कोयला 50 ग्राम, भुनी फिटकरी 20 ग्राम तथा नमक लौहरी 10 ग्राम को बारीक पीस व छानकर मंजन बनाकर प्रतिदिन सुबह-शाम मंजन करने से दांत साफ व चमकदार बनते हैं।

दांतों में पीले व काले रंग के मैल को साफ करने के लिए सुबह दांत साफ करने से पहले आधा चम्मच नमक में नींबू का 4 से 5 बूंद रस मिलाकर दांत व मसूढ़ों पर मलें और 5 मिनट बाद कुल्ला करके मंजन करें। इससे दांत साफ व चमकदार बनाते हैं।

खाने में खुशबू लाने वाला तेजपत्ता भी आपके दांतों के लिए काफी अच्छा है| तेजपत्ता के सूखे पत्तों को बारीक पीसकर मंजन बनाकर रख लें और इस मंजन से हर 3 दिन में एक बार मंजन करें। यह दांतों पर जमे पीले और काले रंग के मैल को खत्म कर दांतों को साफ तथा चमकदार बनाता है। वहीँ, 50 ग्राम पिसी हुई हल्दी तथा 5 ग्राम भुनी हुई फिटकरी को बारीक पीसकर मंजन करने से दांत चमचमा उठते हैं| 

सेब का रस सोडे के साथ मिलाकर दांतों पर मलने से दांतों से निकलने वाला खून बन्द होता है और दांतों पर जमी हुई पपड़ी दूर होती है। स्‍ट्रॉबेरी भी दांतों को सफेद बनाने में असरदार होता है। कुछ स्‍ट्रॉबेरी लेकर उससे अपने दांतों पर रगडि़ये जिससे वह सफेद हो जाएं। इसके अलावा हो सके तो सेब के सिरके से ब्रश करें। यह दांतों को स्‍वस्‍थ्‍य बनाता है और जो बैक्‍टीरिया, इनेमिल को सड़ाते हैं, उनका भी खात्‍मा करता है। 

नींबू के छिलके को सुखाकर बारीक पीसकर मंजन बनाकर प्रतिदिन दांत साफ करने से सांस की बदबू दूर होती है और दांत साफ होते हैं। नींबू के रस निचोड़े हुए टुकड़े को दांतों पर रगड़ने से दांत साफ होते हैं।

नीम की टहनी पत्तियों सहित छाया में सुखाकर आग में जला लें और इसकी राख में लौंग मिलाकर पीसकर मंजन बना लें। इससे प्रतिदिन मंजन करने से दांत साफ व चमकदार बनते हैं तथा दांतों में कीड़े नहीं लगते हैं। इसके अलावा बादाम का छिलका जलाकर किसी बर्तन से ढक दें। दूसरे दिन इसके राख में 5 गुना फिटकरी मिलाकर बारीक पीसकर मंजन बना लें और इससे मंजन करने से दांत साफ, चमकदार और मजबूत बनते हैं।

जाने बच्चे का बिस्तर गीला करने का कारण और उसका निवारण

कई लोग अपने बच्चों को लेकर खासा परेशान रहते है| उनकी सबसे बड़ी परेशानी होती उनके बच्चों का बिस्तर पर पेशाब कर देना| बच्चों का बिस्तर पर पेशाब करना एक उम्र तक हर मां- बाप को अच्छा लगता है लेकिन उम्र निकल जाने के बाद भी आगरा बच्चे ऐसा कर रहे हैं तो चिंता का कारण बन जाते हैं| अगर आपका भी बच्चा बिस्तर गीला कर देता है तो आपको ज्यादा परेशान होने की जरुरत नहीं है|

आपको बता दें कि सोते समय बिस्तर पर पेशाब करने का रोग बच्चो में बहुत ज्यादा पाया जाता है। बच्चों में यह रोग पाचनक्रिया खराब होने के कारण तथा ठंड लग जाने के कारण होता है। इसके अलावा अधिक मीठी चीजें खिलाने से भी यह रोग बच्चों में हो जाता है| 

बिस्तर गीला करने का कारण-

बच्चे दिन भर कुछ न कुछ खाया करते हैं| बार-बार कुछ खाने से बच्चों की पाचन क्रिया खराब हो जाती है। इसके अलावा कुछ बच्चे दिन में ज्यादा समय खेलते-कूदते रहते हैं जिसकी वजह से बच्चे बुरी तरह से थक जाते हैं। ऐसे बच्चों को ज्यादा भूख लगती है और वह खाते ही सो जाते हैं। थकावट की वजह से बच्चे रात को सोते हुए बार-बार पेशाब करते हैं। कई अनुभवियों के अनुसार स्नायु विकृति के कारण बच्चे रात को सोते हुये बिस्तर पर पेशाब कर देते हैं| स्नायु विकृति में शरीर में बहुत ज्यादा उत्तेजना होती है। ऐसे में बच्चा सोते हुए पेशाब करने पर काबू नहीं कर पाता और पेशाब कर देता है। । पेट में कीड़े होने पर भी बच्चे सोते हुए बिस्तर पर पेशाब कर देते हैं।

घरेलू उपचार- 

जो बच्चे रात में बिस्तर गीला कर देते हैं उन्हें खजूर व छुहारे अधिक मात्रा में खिलाना चाहिए| इसके अलावा मुनक्का के बीज को निकालकर उसके स्थान पर उसमे काली मिर्च के दाने डाल दें|
2-3 मुनक्के प्रतिदिन सुबह बच्चों को खिलाएं| 

रोजाना रात को सोने से पहले बच्चे को एक चम्मच शहद खिलाएं| एक चम्मच शहद को एक कप पानी में घोलकर 4-5 दिन तक बच्चे को पिलाने से बच्चे का बिस्तर पर पेशाब करना बंद हो जाता है।

काला तिल भी इस रोग में लाभदायक होता है| काले तिल को पीसकर चूर्ण बनाकर बच्चों को चटाने से बच्चों के इस प्रकार के रोग जल्दी ही ठीक हो जाते हैं। जिन बच्चों को यह रोग हो तो उनके भोजन में चावल, केला, दूध तथा मट्ठा आदि देना बंद कर देना चाहिए।

बच्चे के पेड़ू पर मिट्टी की गीली पट्टी तथा उसकी रीढ़ पर 8-10 मिनट के लिए गर्म ठंडा सेंक करने से बच्चे का ये रोग ठीक हो जाता है। इसके अलावा बच्चों की धूप में मालिश करने से भी उसका बिस्तर गीला करना बंद हो जाता हैं।

रोजाना खाएं एक सेब फिर देखें इसका कमाल


गर्मियों में हमारा लाइफस्टाइल बिल्कुल बदल जाता है। खानपान के मामले में हम ज्यादा सजग हो जाते हैं। इन दिनों हमें काम करने में अतिरिक्त उर्जा की आवश्यकता होती है। इन दिनों यदि आप रोजाना एक सेब नियमित रूप से खाते हैं तो आपके पास कोई बीमारी नहीं आएगी| क्योंकि सेब में पाया जाता है एण्टी आक्सिडेंट्स जो कैंसर से शरीर की सुरक्षा करते हैं। साथ ही सेब दिल का ख्याल रखता है। सेब में पोटैशियम, कैंल्शियम, फारफोरस, मैग्नीशियम, आयरन, कापर और जिंक पाया जाता है जो आपकी त्वचा की रंगत निखारता है। 

रोजाना सेब खाने से आपके चेहरे से दाग-धब्बे बिलकुल दूर हो जायेंगे। इसलिए रोजाना नाश्ते में एक सेब और एक गिलास का दूध लेना चाहिए। सेब आपकी पाचन क्रिया को भी नियंत्रित करता है। 

सेब की जेली को चेहरे पर लगाने से त्वचा सुंदर और मुलायम होती है। सेब उन लोगों के लिए फायदेमंद होता है जो मोटे हो रहे हैं, क्योंकि सेब में जीरो कैलोरी होती है और जो यह सोच रहे हैं कि वो पतले हैं तो निश्चिन्त होकर सेब खा सकते हैं क्योंकि सेब आपके शरीर को मजबूती प्रदान करता है। ये आपके अंदर की थकान को दूर करता है। तो देर किस बात की आज से ही सेब खाना शुरू कर दें|

गवाही देने के लिए अदालत में पेश हुई बकरियां!


 एक ऐसी खबर जिसे सुनकर आप भी हैरान हो जायेंगे खबर है मध्य प्रदेश के खंडवा की जहाँ की अदालत में उस समय अफरातफरी मच गई जब गवाही देने के लिए दो बकरियों को अदालत में पेश किया गया।

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, बकरियों को अदालत में इसलिए पेश किया गया क्योंकि एक बकरे के असली मालिक का पता नहीं चल रहा था| यहाँ रोचक बात यह थी कि बकरा उसी का निकला जिस व्यक्ति पर चोरी का आरोप था। 

मामला कुछ इस तरह है, यहाँ के तलवडिय़ा गांव के निवासी गजराज चापमाट पर विनोद पूनमसिंह निवासी पिपलौद ने यह आरोप लगाया था कि गजराज ने उसके बकरे को चोरी कर किसी को बेच दिया है। मामला थाने में पहुंचने के बाद इस केस की न्यायिक मजिस्ट्रेट सीता कनौजे की मौजूदगी में सुनवाई की गई। मामले का कोई निर्णय न निकलने पर यह मामला न्यायाधीश कनौजे की अनुपस्थिति में मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी गंगाचरण दुबे की कोर्ट में पहुंचा। न्यायाधीश ने सारी बात सुनने के बाद दोनों पक्षों को बकरे की मां को कोर्ट में लाने के आदेश दिए। 

गुरुवार को दोनों पक्ष बकरी लेकर कोर्ट में पहुंचे। न्यायाधीश सीजेएम ने बकरे को खोलने के आदेश दिए। जैसे ही विवादित बकरे को छोड़ा गया तो वह गजराज की बकरी के पास पहुंचा और दूध पीने लगा। कोर्ट ने बकरा जगराज के सुपुर्द करने का फैसला सुनाया। 

गौरतलब है कि गत वर्ष अक्टूबर माह में कुछ इसी तरह का मामला पुणे में देखने को मिला था जहाँ एक बैल ने खुद को तलब किये जाने पर अपने मालिक के साथ फारासखना पुलिस थाने में हाजिरी लगाई।

दरअसल, बैल के मालिक के खिलाफ पशु क्रूरता निषेध अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था। इसी शिकायत के संबंध में बैल को भी थाने में हाजिर होना पड़ा। मामला यह था कि गणेश प्रतिमा विसर्जन के दौरान जोर-जोर से बज रहे वाद्य यंत्रों को सुनकर बैल भड़क गया। बारिश भी हो रही थी और बैल की टांगें कांप रही थी। फिर भी उसे झांकी खींचने के लिए बाध्य किया गया। बैल ने डर के मारे रस्ते में गोबर भी कर दिया जिसकी वजह से गणेश विसर्जन में शामिल कई श्रद्धालु फिसलकर घायल भी हो गए। 

शिकायत में कहा गया कि गणोश प्रतिमा विसर्जन के दौरान संदीप नाम के इस बैल का निर्ममतापूर्वक इस्तेमाल किया गया। शिकायत किसी और ने नहीं,बल्कि पुलिस ने ही दर्ज कराई थी।फारासखना पुलिस ने जुलूस की वीडियो फुटेज के आधार पर बैल के मालिक गणेश मंडल के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया| थाने के एक कांस्टेबल ने बैल की नापतौल भी की।


रामनवमी पर विशेष......


भारत पर्वों का देश है। यहाँ की दिनचर्या में ही पर्व-त्योहार बसे हुए हैं। ऐसा ही एक पर्व है रामनवमी। असुरों का संहार करने के लिए भगवान विष्णु ने राम रूप में पृथ्वी पर अवतार लिया और जीवन में मर्यादा का पालन करते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। 

आपको बता दें कि रामनवमी शुक्‍ल पक्ष की 9वीं तिथि जो अप्रैल में किसी समय आती है, को राम के जन्‍म दिन की स्‍मृति में मनाया जाता है। इस बार राम नवमी 19 अप्रैल दिन शुक्रवार को पड़ रही है| 

रामनवमी के दिन, श्रद्धालु बड़ी संख्‍या में मन्दिरों में जाते हैं और राम की प्रशंसा में भक्तिपूर्ण भजन गाते हैं तथा उसके जन्‍मोत्‍सव को मनाने के लिए उसकी मूर्तियों को पालने में झुलाते हैं। इस महान राजा की कहानी का वर्णन करने के लिए काव्‍य तुलसी रामायण से पाठ किया जाता है। भगवान राम का जन्‍म स्‍थान अयोध्‍या, रामनवमी त्‍यौहार के महान अनुष्‍ठान का केंद्र बिन्‍दु है। राम, उनकी पत्‍नी सीता, भाई लक्ष्‍मण व भक्‍त हनुमान की रथ यात्राएं बहुत से मंदिरों से निकाली जाती हैं।

हिंदू घरों में रामनवमी पूजा करके मनाई जाती है। पूजा के लिए आवश्‍यक वस्‍तुएं, रोली, ऐपन, चावल, जल, फूल, एक घंटी और एक शंख होते हैं। इसके बाद परिवार की सबसे छोटी महिला सदस्‍य परिवार के सभी सदस्‍यों को टीका लगाती है। पूजा में भाग लेने वाला प्रत्‍येक व्‍यक्ति के सभी सदस्‍यों को टीका लगाया जाता है। पूजा में भाग लेने वाला प्रत्‍येक व्‍यक्ति पहले देवताओं पर जल, रोली और ऐपन छिड़कता है, तथा इसके बाद मूर्तियों पर मुट्ठी भरके चावल छिड़कता है। तब प्रत्‍येक खड़ा होकर आ‍रती करता है तथा इसके अंत में गंगाजल अथवा सादा जल एकत्रित हुए सभी जनों पर छिड़का जाता है। पूरी पूजा के दौरान भजन गान चलता रहता है। अंत में पूजा के लिए एकत्रित सभी जनों को प्रसाद वितरित किया जाता है।

जानिए होलाष्टक से जुड़ी ख़ास बातें


होली हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है| होली शीत ऋतु के उपरांत बंसत के आगमन, चारों और रंग- बिरंगे फूलों का खिलना होली आने की ओर इशारा करता है| होली का त्योहर प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है| होली पर्व के आने की सूचना होलाष्टक से प्राप्त होती है| होलाष्टक को होली पर्व की सूचना लेकर आने वाला एक हरकारा कहा जात सकता है| “होलाष्टक” शब्द होली और अष्टक दो शब्दों से मिलकर बना है। जिसका अर्थ है होली के आठ दिन। इसकी शुरुआत होलिका दहन के सात दिन पहले और होली खेले जाने वाले दिन के आठ दिन पहले होती है और धुलेडी के दिन से इसका समापन हो जाता है। यानी कि फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी से शुरू होकर चैत्र कृष्ण प्रतिपदा तक होलाष्टक रहता है। अष्टमी तिथि से शुरू होने कारण भी इसे होलाष्टक कहा जाता है। इसी दिन से होली उत्सव के साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरू हो जाती है।

इस वर्ष होलाष्टक 20 मार्च से प्रारम्भ होकर 28 मार्च 2013 तक रहेगा। इन आठ दिनों में क्रमश: अष्टमी तिथि को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध एवं चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु उग्र रूप लिए माने जाते हैं, जिसकी वजह से इस दौरान सभी शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।

होलाष्टक के विषय में यह माना जाता है कि जब भगवान भोले नाथ ने क्रोध में आकर काम देव को भस्म कर दिया था, तो उस दिन से होलाष्टक की शुरुआत हुई थी| वहीँ, पौराणिक दृष्टि से प्रह्लाद का अधिग्रहण होने के कारण यह समय अशुभ माना गया है लेकिन पर्यावरण एवं भौतिक दृष्टि से पूर्णिमा से आठ दिन पूर्व मनुष्य का मस्तिष्क अनेक सुखद-दुखद आशंकाओं से ग्रसित हो जाता है। जिसके परिणामस्वरूप वह चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को अष्टग्रहों की अशुभ प्रभाव से क्षीण होने पर अपने मनोभावों की अभिव्यक्ति रंग, गुलाल से प्रदर्शित करता है।

होलिका पूजन करने के लिये होली से आंठ दिन पहले होलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर उसमें सूखे उपले, सूखी लकडी, सूखी खास व होली का डंडा स्थापित कर दिया जाता है| जिस दिन यह कार्य किया जाता है, उस दिन को होलाष्टक प्रारम्भ का दिन भी कहा जाता है| जिस गांव, क्षेत्र या मौहल्ले के चौराहे पर पर यह होली का डंडा स्थापित किया जाता है| होली का डंडा स्थापित होने के बाद संबन्धित क्षेत्र में होलिका दहन होने तक कोई शुभ कार्य संपन्न नहीं किया जाता है|

जाने जलती होली में क्यों डालते हैं धान या गेंहूँ

होली बसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। रंगों का त्यौहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन होलिका जलायी जाती है, जिसे होलिका दहन कहते है। होलिका दहन में एक परंपरा जो बरसों से चली आ रही है वह है जलती होली में नया अन्न या धान डालने की| क्या आप जानते हैं कि आखिर जलती होली में धान या नया अन्न क्यों डाला जाता है अगर नहीं तो आज हम आपको बताते हैं|

आपको बता दें कि इस परंपरा का कारण हमारे देश का कृषि प्रधान होना है। होलिका के समय खेतों में गेहूं और चने की फसल आती है। ऐसा माना जाता है कि इस फसल के धान के कुछ भाग को होलिका में अर्पित करने पर यह धान सीधा नैवैद्य के रूप में भगवान तक पहुंचता है। होलिका में भगवान को याद करके डाली गई हर एक आहूति को हवन में अर्पित की गई आहूति के समान माना जाता है।

इसके अलावा यह भी मान्यता है कि इस तरह से नई फसल के धान को भगवान को नैवैद्य रूप में चढ़ा कर और फिर उसे घर में लाने से घर हमेशा धन-धान्य से भरा रहता है। इसलिए होलिका में धान डालने की परंपरा बनाई गई। आज भी हमारे देश के कई क्षेत्रों में इस परंपरा का अनिवार्य रूप से निर्वाह किया जाता है।

इसलिए याद रहे जब भी आप होलिका दहन में जाएँ तो अपने साथ धान या फिर नया अन्न जरुर लेकर जाएँ|

जाने किस देवी-देवता की कितनी करें परिक्रमा?


शास्त्रों में भगवान को प्रसन्न करने के लिए कई मार्ग बताए गए हैं। यह अलग-अलग विधियां भगवान की प्रसन्नता दिलाती है जिससे हमारी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए लोग मंदिर या भगवान् की प्रतिमा की परिक्रमा करते हैं| वैसे तो सभी देवी देवताओं की परिक्रमा की जाती है लेकिन हिन्दू धर्म शास्त्रों में अलग-अलग देवी देवताओं के लिए परिक्रमा की अलग-अलग संख्या भी निर्धारित की गई है| 

तो आइये जाने किस देवी-देवता की कितनी परिक्रमा करनी चाहिए-

श्रीराम भक्त हनुमान व पर्वत्री नंदन गणेश की तीन परिक्रमा करनी चाहिए| इसके अलावा भगवान भोलेनाथ की आधी परिक्रमा की जाती है| भगवान विष्णुजी एवं उनके सभी अवतारों की चार परिक्रमा करनी चाहिए। इसके अलावा देवियों की तीन परिक्रमा करने का विधान है| 

देवी देवताओं की परिक्रमा करते समय ध्यान रहे कि परिक्रमा करते समय बीच में रुकना नहीं चाहिए| इसके अलावा परिक्रमा जहाँ से शुरू करें खत्म भी वहीँ करें। इसके अलावा परिक्रमा करते समय बातचीत बिलकुल न करें और मन में जिस जिस देवी या देवता को परिक्रमा कर रहे हैं उसका सुमिरन करते रहें| 

परिक्रमा से पहले देवी-देवताओं से प्रार्थना करें। हाथ जोडकर, भावपूर्ण नाम जप करते हुए मध्यम गति से परिक्रमा लगाएं। ऐसा करते समय गर्भगृह को स्पर्श न करें। परिक्रमा लगाते हुए, देवता की पीठ की ओर पहुंचने पर रुकें एवं देवता को नमस्कार करें।

जाने धृतराष्ट्र अंधे व पाण्डु पीले क्यों थे?

महाभारत वह महाकाव्य है जिसके बारे में जानता तो हर कोई है लेकिन आज भी कुछ ऐसे चीजें हैं जिसे जानने वालों की संख्या कम है| क्या आपको पता है कि कौरवों के पिता धृतराष्ट्र अंधे व पांडवों के पिता महाराज पांडु पीले क्यों थे? आखिर क्या वजह थी जो धृतराष्ट्र अंधे व पांडु पीले हो गए?

दरअसल हुआ कुछ यूँ कि महाराज विचित्रवीर्य अम्बिका और अंबालिका से विवाह होने के बाद दोनों के साथ प्रेम से रहने लगे| इस तरह सात साल खुशी-खुशी बीत गए। कुछ दिन बाद महाराज विचित्रवीर्य क्षय रोग से ग्रसित हो गए| काफी उपचार हुआ लेकिन विचित्रवीर्य पर कोई असर नहीं हुआ| और वह बिना संतान उत्पन्न किए ही स्वर्गवासी हो गए। 

विचित्रवीर्य के स्वर्ग सिधार जाने के बाद हस्तिनापुर का सिंहासन बिलकुल खाली होगा| सिहासन खाली देखकर सभी लोग इस विचार में पड़ गए कि अब इस सिहासन पर किसको आसीन किया जाए| तब माता सत्यवती ने भीष्म को कहा कि वे काशीनरेश की कन्याओं के द्वारा संतान उत्पन्न कर अपने वंश की रक्षा करें। तब भीष्म ने अपनी प्रतिज्ञा को न तोडऩे का संकल्प दोहराया। 

भीष्म की प्रतिज्ञा सुनकर सत्यवती ने अपने पुत्र महर्षि वेदव्यास को बुलाया। व्यास के आने के बाद सत्यवती ने उन्हें विचित्रवीर्य के क्षेत्र में संतान उत्पन्न करने के लिए कहा। इस पर उन्होंने अंबिका से धृतराष्ट्र व अंबालिका से पांडु उत्पन्न किया| जब अंबिका महर्षि वेदव्यास के पास गई तो व्यास जी ने अंबिका को देखकर अपनी आंखें बंद कर इसी कारण धृतराष्ट्र जन्म से ही अंधे हो गए और जब अंबालिका व्यास जी के पास आई तो अंबालिका को देखकर व्यास जी का शरीर पीला पड़ गया| इसी कारण पांडु पीले और कमजोर हुए|

गंगा ने क्यों बहाया अपने पुत्रों को नदी में...?

हस्तिनापुर नरेश राजा दुष्यंत व शकुंतला का पुत्र भरत चक्रवर्ती सम्राट बना। भरत के वंश में आगे जाकर प्रतीप नामक राजा हुए। एक बार प्रतीप गंगा के किनारे तपस्या कर रहे थे। उनके रूप-सौन्दर्य से मोहित हो कर देवी गंगा उनकी दाहिनी जाँघ पर आकर बैठ गईं। महाराज यह देख कर आश्चर्य में पड़ गये तब गंगा ने कहा, 'हे राजन्! मैं जह्नु ऋषि की पुत्री गंगा हूँ और आपसे विवाह करने की अभिलाषा ले कर आपके पास आई हूँ।' इस पर महाराज प्रतीप बोले, 'गंगे! तुम मेरी दहिनी जाँघ पर बैठी हो। पत्नी को तो वामांगी होना चाहिये, दाहिनी जाँघ तो पुत्र का प्रतीक है अतः मैं तुम्हें अपने पुत्रवधू के रूप में स्वीकार करता हूँ।' यह सुन कर गंगा वहाँ से चली गईं। अब महाराज प्रतीप ने पुत्र प्राप्ति के लिये घोर तप करना आरम्भ कर दिया। उनके तप के फलस्वरूप उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम उन्होंने शान्तनु रखा। शान्तनु के युवा होने पर उसे गंगा के साथ विवाह करने का आदेश दे महाराज प्रतीप स्वर्ग चले गये।

पिता के आदेश का पालन करने के लिये शान्तनु ने गंगा के पास जाकर उनसे विवाह करने के लिये निवेदन किया। इस पर गंगा बोली, राजन! मैं आपके साथ विवाह तो कर सकती हूँ किन्तु आपको वचन देना होगा कि आप मेरे किसी भी कार्य में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।” शान्तनु ने गंगा के कहे अनुसार वचन दे कर उनसे विवाह कर लिया। गंगा के गर्भ से महाराज शान्तनु के आठ पुत्र हुए जिनमें से सात को गंगा ने नदी में प्रवाहित कर दिया| यह सब देखते हुए भी महाराज शांतनु अपने दिए हुए बचनों में बंधे होने के कारण कुछ न बोल सके| 

जब गंगा ने आठवें पुत्र को जन्म दिया और उसे भी नदी में प्रवाहित करने के लिए चली तो राजा शांतनु से रहा नहीं गया और बोले गंगे! तुमने मेरे सात पुत्रों को नदी में प्रवाहित कर दिया मैंने कुछ नहीं बोला और अब मैं तुमसे प्रार्थना करता हूँ कि कम से कम इस बालक को तो छोड़ दो इस पर गंगा ने कहा कि महाराज आपने अपनी प्रतिज्ञा भग्न कर दी इसलिए मैं अब आपके पास नहीं रह सकती| इतना कहकर गंगा पुत्र के साथ अंतर्ध्यान हो गई| 

गंगा के चले जाने के बाद महाराज शांतनु ने 26 वर्ष तक ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर के व्यतीत कर दिये। एक बार वह गंगा के किनारे गए और गंगा से कहने लगे कि गंगे आज मेरी अपने बालक को देखने की इच्छा हो रही है जिसे तुम अपने साथ लेकर चली आयी थी| तुरंत गंगा उस बालक के साथ प्रकट हुई और बोली यह आपका पुत्र है जिसका नाम देवव्रत इसे आप ग्रहण करें| यह बहुत ही पराक्रमी और गुणवान होगा| इसके साथ-साथ यह शस्त्र विद्या में भी बहुत पारंगत होगा| इतना सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुए और उसे हस्तिनापुर लाकर युवराज घोषित कर दिया।

जानिए भगवान विष्णु को क्यों कहते हैं नारायण...?

हिन्दू धर्म में भगवान के जितने रूप है उतने ही उनके नाम भी बताये गए है। भगवान विष्णु का ऐसा ही एक नाम है नारायण। क्या आपको पता है भगवान विष्णु का नारायण नाम कैसे पड़ा? यदि नहीं तो आज हम आपको बताते हैं कि भगवान विष्णु को नारायण क्यों कहते हैं| 

विष्णु महापुराण में कहा गया है कि जल की उत्पत्ति नर अर्थात भगवान के पैरों से हुई है इसलिए पानी को नीर या नार भी कहा जाता है। भगवान विष्णु का निवास स्थान (अयन) पानी यानी कि क्षीर सागर को माना गया है इसलिए जल में निवास करने के कारण ही भगवान को नारायण (नार+अयन) कहा जाता है।

हिन्दू धर्म शास्त्रों में भी बताया गया है कि सृष्टि का निर्माण भी जल से ही हुआ है। भगवान विष्णु के पहले तीन अवतार भी जल से उत्पन्न हुए हैं इसलिए हिन्दू धर्म में जल को देव रूप मे पूजा जाता है।

इस तरह हुआ कौरवों व पांडवों का जन्म


महाभारत का नाम किसने नहीं सुना होगा| महाभारत का युद्ध कौरवों और पांडवों के बीच हुआ था| यह भी पता होगा महाराज पाण्डु के पुत्र पांडव कहलाये और धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव कहलाये| क्या आपको पता है कौरव व पांडव का जन्म कैसे हुआ| 

पुराणों के अनुसार, ब्रह्मा जी से अत्रि, अत्रि से चन्द्रमा, चन्द्रमा से बुध और बुध से इला-नन्दन पुरूरवा का जन्म हुआ। उनसे आयु, आयु से राजा नहुष और नहुष से ययाति उत्पन्न हुए। ययाति से पुरू हुए। पूरू के वंश में भरत और भरत के कुल में राजा कुरु हुए। कुरु के वंश में शान्तनु हुए। शान्तनु से गंगानन्दन भीष्म उत्पन्न हुए। शान्तनु से सत्यवती के गर्भ से चित्रांगद और विचित्रवीर्य उत्पन्न हुए थे। चित्रांगद चित्रांगद नाम वाले गन्धर्व के द्वारा मारे गये और राजा विचित्रवीर्य राजयक्ष्मा से ग्रस्त हो स्वर्गवासी हो गये। तब सत्यवती की आज्ञा से व्यासजी ने नियोग के द्वारा अम्बिका के गर्भ से धृतराष्ट्र और अम्बालिका के गर्भ से पाण्डु को उत्पन्न किया। धृतराष्ट्र ने गांधारी द्वारा सौ पुत्रों को जन्म दिया, जिनमें दुर्योधन सबसे बड़ा था और पाण्डु के युधिष्टर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव आदि पांच पुत्र हुए। 

धृतराष्ट्र जन्म से ही नेत्रहीन थे, अतः उनकी जगह पर पाण्डु को राजा बनाया गया। एक बार राजा पाण्डु अपनी दोनों पत्नियों- कुन्ती तथा माद्री के साथ आखेट के लिये वन में गये। वहाँ उन्हें एक मृग का मैथुनरत जोड़ा दिखाई पड़ा| पाण्डु ने तत्काल अपने बाण से उस मृग को घायल कर दिया। मरते हुये मृग ने पाण्डु को शाप दिया, "राजन! तुम्हारे समान क्रूर पुरुष इस संसार में कोई भी नहीं होगा। तूने मुझे मैथुन के समय बाण मारा है अतः जब कभी भी तू मैथुनरत होगा तेरी मृत्यु हो जायेगी।"

इस शाप से पाण्डु अत्यन्त दुःखी हुये और अपनी रानियों से बोले, "हे देवियों! अब मैं अपनी समस्त वासनाओं का त्याग कर के इस वन में ही रहूँगा तुम लोग हस्तिनापुर लौट जाओ़" उनके वचनों को सुन कर दोनों रानियों ने दुःखी होकर कहा, "नाथ! हम आपके बिना एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकतीं। आप हमें भी वन में अपने साथ रखने की कृपा कीजिये।" पाण्डु ने उनके अनुरोध को स्वीकार कर के उन्हें वन में अपने साथ रहने की अनुमति दे दी। 

इसी दौरान राजा पाण्डु ने अमावस्या के दिन बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों को ब्रह्मा जी के दर्शनों के लिये जाते हुये देखा। उन्होंने उन ऋषि-मुनियों से स्वयं को साथ ले जाने का आग्रह किया। उनके इस आग्रह पर ऋषि-मुनियों ने कहा, "राजन्! कोई भी निःसन्तान पुरुष ब्रह्मलोक जाने का अधिकारी नहीं हो सकता अतः हम आपको अपने साथ ले जाने में असमर्थ हैं।"

ऋषि-मुनियों की बात सुन कर पाण्डु अपनी पत्नी से बोले, "हे कुन्ती! मेरा जन्म लेना ही वृथा हो रहा है क्योंकि सन्तानहीन व्यक्ति पितृ-ऋण, ऋषि-ऋण, देव-ऋण तथा मनुष्य-ऋण से मुक्ति नहीं पा सकता क्या तुम पुत्र प्राप्ति के लिये मेरी सहायता कर सकती हो?" कुन्ती बोली, "हे आर्यपुत्र! दुर्वासा ऋषि ने मुझे ऐसा मन्त्र प्रदान किया है जिससे मैं किसी भी देवता का आह्वान करके मनोवांछित वस्तु प्राप्त कर सकती हूँ। आप आज्ञा करें मैं किस देवता को बुलाऊँ।" इस पर पाण्डु ने धर्म को आमन्त्रित करने का आदेश दिया। धर्म ने कुन्ती को पुत्र प्रदान किया जिसका नाम युधिष्ठिर रखा गया। कालान्तर में पाण्डु ने कुन्ती को पुनः दो बार वायुदेव तथा इन्द्रदेव को आमन्त्रित करने की आज्ञा दी। वायुदेव से भीम तथा इन्द्र से अर्जुन की उत्पत्ति हुई। तत्पश्चात् पाण्डु की आज्ञा से कुन्ती ने माद्री को उस मन्त्र की दीक्षा दी। माद्री ने अश्वनीकुमारों को आमन्त्रित किया और नकुल तथा सहदेव का जन्म हुआ। 

एक दिन राजा पाण्डु माद्री के साथ वन में सरिता के तट पर भ्रमण कर रहे थे। वातावरण अत्यन्त रमणीक था और शीतल-मन्द-सुगन्धित वायु चल रही थी। सहसा वायु के झोंके से माद्री का वस्त्र उड़ गया। इससे पाण्डु का मन चंचल हो उठा और वे मैथुन मे प्रवृत हुये ही थे कि शापवश उनकी मृत्यु हो गई। माद्री उनके साथ सती हो गई किन्तु पुत्रों के पालन-पोषण के लिये कुन्ती हस्तिनापुर लौट आई।

इधर युधिष्ठिर के जन्म होने पर धृतराष्ट्र की पत्नी गान्धारी के हृदय में भी पुत्रवती होने की लालसा जागी। एक बार महर्षि वेदव्यास हस्तिनापुर आए। गांधारी ने उनकी बहुत सेवा की। जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने गांधारी को वरदान मांगने को कहा। गांधारी ने अपने पति के समान ही बलवान सौ पुत्र होने का वर मांगा। समय पर गांधारी को गर्भ ठहरा और वह दो वर्ष तक पेट में ही रहा। इससे गांधारी घबरा गई और उसने अपना गर्भ गिरा दिया। उसके पेट से लोहे के समान एक मांस पिण्ड निकला। 

महर्षि वेदव्यास ने अपनी योगदृष्टि से यह सब देख लिया और वे तुरंत गांधारी के पास आए। तब गांधारी ने उन्हें वह मांस पिण्ड दिखाया। महर्षि वेदव्यास ने गांधारी से कहा कि तुम जल्दी से सौ कुण्ड बनवाकर उन्हें घी से भर दो और सुरक्षित स्थान में उनकी रक्षा का प्रबंध कर दो तथा इस मांस पिण्ड पर जल छिड़को। जल छिड़कने पर उस मांस पिण्ड के एक सौ एक टुकड़े हो गए। 

व्यासजी ने कहा कि मांस पिण्डों के इन एक सौ एक टुकड़ों को घी से भरे कुण्डों में डाल दो। अब इन कुण्डों को दो साल बाद ही खोलना। इतना कहकर महर्षि वेदव्यास तपस्या करने हिमालय पर चले गए। समय आने पर उन्हीं मांस पिण्डों से पहले दुर्योधन और बाद में गांधारी के 99 पुत्र तथा एक कन्या उत्पन्न हुई। दुर्योधन जन्म लेते ही गधे की तरह रेंकने लगा। ज्योतिषियों से इसका लक्षण पूछे जाने पर उन लोगों ने धृतराष्ट्र को बताया, "राजन्! आपका यह पुत्र कुल का नाश करने वाला होगा। इसे त्याग देना ही उचित है। किन्तु पुत्रमोह के कारण धृतराष्ट्र उसका त्याग नहीं कर सके।