जानिए शनिदेव को क्यों चढ़ाते हैं तेल

कठोर न्यायाधीश कहे जाने वाले शनि देव के कोप से सभी भलीभांति परिचित हैं क्योंकि शनि देव बुरे कर्मों का न्याय बड़ी कठोरता से करते हैं। शनि की बुरी नजर किसी भी राजा को रातों-रात भिखारी बना सकती है और यदि शनि शुभ फल देने वाला हो जाए तो कोई भी भिखारी राजा के समान बन सकता है।

आपको पता ही होगा कि सूर्यपुत्र शनि की आराधना करने के लिए शनिवार के दिन तेल के साथ काली तिल, जौ और काली उड़द, काला कपड़ा ये सब चढ़ाने से शनि की साढ़ेसाती में होने वाले दुष्प्रभावों से बचना संभव हो जाता है। लेकिन क्या आपको यह पता है कि सूर्य पुत्र शनि पर तेल क्यों चढाते हैं अगर नहीं पता है तो आज हम आपको बताते हैं कि आखिर सूर्य पुत्र शनि पर तेल क्यों चढाते हैं|

तो आइये जाने सूर्य पुत्र शनि पर क्यों तेल चढाते हैं-

आपको बता दें कि शनि पर तेल चढ़ाने के धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों महत्व है। शनि की नाराजी श्रम से दूर की जा सकती है, लेकिन उस श्रम के लिए हमारे शरीर में शक्ति, स्वास्थ्य और सामथ्र्य रहे, इसके लिए शनि को तेल चढ़ा कर प्रसन्न किया जाता है।

पुराणों में शनि को तेल चढ़ाने के पीछे कई भिन्न-भिन्न कथाएं हैं। मुख्यत: ये सारी कथाएं रामायण काल और विशेष रूप से भगवान हनुमान से जुड़ी हैं। अलग-अलग कथाओं में शनि को तेल चढ़ाने की चर्चा है लेकिन सार सभी का यही है। शनि नीले रंग का क्रूर माना जाने वाला ग्रह है, जिसका स्वभाव कुछ उद्दण्ड था। अपने स्वभाव के चलते उसने श्री हनुमानजी को तंग करना शुरू कर दिया। बहुत समझाने पर भी वह नहीं माना तब हनुमानजी ने उसको सबक सिखाया। हनुमान की मार से पीड़ित शनि ने उनसे क्षमा याचना की तो करुणावश हनुमानजी ने उनको घावों पर लगाने के लिए तेल दिया। शनि महाराज ने वचन दिया जो हनुमान का पूजन करेगा तथा शनिवार को मुझपर तेल चढ़ाएगा उसका मैं कल्याण करुंगा। धार्मिक महत्व के साथ ही इसका वैज्ञानिक आधार भी है।

धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि शनिवार को तेल लगाने या मालिश करने से सुख प्राप्त होता है। उक्त वाक्य और शनि को तेल चढ़ाने का सीधा संबंध है। ज्योतिष शास्त्र में शनि को त्वचा, दांत, कान, हड्डियों और घुटनों में स्थान दिया गया है। उस दिन त्वचा रुखी, दांत, कान कमजोर तथा हड्डियों और घुटनों में विकार उत्पन्न होता है। तेल की मालिश से इन सभी अंगों को आराम मिलता है। अत: शनि को तेल अर्पण का मतलब यही है कि अपने इन उपरोक्त अंगों की तेल मालिश द्वारा रक्षा करो। दांतों पर सरसो का तेल और नमक की मालिश। कानों में सरसो तेल की बूंद डालें। त्वचा, हड्डी, घुटनों पर सरसो के तेल की मालिश करनी चाहिए। शनि का इन सभी अंगों में वास माना गया है, इसलिए तेल चढ़ाने से वे हमारे इन अंगों की रक्षा करते हैं और उनमें शक्ति का संचार भी करते हैं।

भगवान भोलेनाथ के अर्द्घनारीश्वर स्वरूप में छिपा है सृष्टि का रहस्य

हिन्दू धर्म शास्त्रों में भगवान भोलेनाथ के अनेक कल्याणकारी रूप और नाम की महिमा बताई गई है। भगवान शिव ने सिर पर चन्द्रमा को धारण किया तो शशिधर कहलाये| पतित पावनी मां गंगा को आपनी जटाओं में धारण किया तो गंगाधर कहलाये| भूतों के स्वामी होने के कारण भूतवान पुकारे गए| विषपान किया तो नीलकंठ कहलाये| आपने भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती की अर्द्घनारीश्वर तस्वीर जरूर देखी होगी। शिव पार्वती के अन्य स्वरूपों से यह स्वरूप बहुत ही खास है। इस स्वरूप में संसार के विकास की कहानी छुपी है। शिव पुराण, नारद पुराण सहित दूसरे अन्य पुराण भी कहते हैं कि अगर शिव और माता पार्वती इस स्वरूप को धारण नहीं करते तो सृष्टि आज भी विरान रहती।

अर्द्घनारीश्वर स्वरूप के विषय में जो कथा पुराणों में दी गयी है उसके अनुसार ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचना का कार्य समाप्त किया तब उन्होंने देखा कि जैसी सृष्टि उन्होंने बनायी उसमें विकास की गति नहीं है। जितने पशु-पक्षी, मनुष्य और कीट-पतंग की रचना उन्होंने की है उनकी संख्या में वृद्घि नहीं हो रही है। इसे देखकर ब्रह्मा जी चिंतित हुए। अपनी चिंता लिये ब्रह्मा जी भगवान विष्णु के पास पहुंचे। विष्णु जी ने ब्रह्मा से कहा कि आप शिव जी की आराधना करें वही कोई उपाय बताएंगे और आपकी चिंता का निदान करेंगे।

ब्रह्मा जी ने शिव जी की तपस्या शुरू की इससे शिवजी प्रकट हुए और मैथुनी सृष्टि की रचना का आदेश दिया। ब्रह्मा जी ने शिव जी से पूछा कि मैथुन सृष्टि कैसी होगी, कृपया यह भी बताएं। ब्रह्मा जी को मैथुनी सृष्टि का रहस्य समझाने के लिए शिव जी ने अपने शरीर के आधे भाग को नारी रूप में प्रकट कर दिया।

इसके बाद नर और नारी भाग अलग हो गये। ब्रह्मा जी नारी को प्रकट करने में असमर्थ थे इसलिए ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर शिवा यानी शिव के नारी स्वरूप ने अपने रूप से एक अन्य नारी की रचना की और ब्रह्मा जी को सौंप दिया। इसके बाद अर्द्घनारीश्वर स्वरूप एक होकर पुनः पूर्ण शिव के रूप में प्रकट हो गया। इसके बाद मैथुनी सृष्टि से संसार का विकास तेजी से होने लगा। शिव के नारी स्वरूप ने कालांतर में हिमालय की पुत्री पार्वती रूप में जन्म लेकर शिव से मिलन किया।

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सोनिया का गढ़ बचाने में जुटी कांग्रेस

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में रायबरेली की पांचों विधानसभा सीटें गवां चुकी कांग्रेस ने अपनी राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के गढ़ को बचाने के लिए जी-तोड़ मेहनत शुरू कर दी है। मकसद सिर्फ एक है, कांग्रेस के पारंपरिक गढ़ के साथ आस-पास के संसदीय क्षेत्रों से पार्टी के जनाधार को खिसकने से बचाना।

कांग्रेस ने स्टार प्रचारक प्रियंका गांधी वाड्रा को आगे कर संगठन को नए सिरे से खड़ा करना शुरू कर दिया है। संगठन को पुर्नगठित करने के साथ कुछ नए प्रयोग भी शुरू किए गए हैं। इससे संगठन में नए सिरे से रक्त संचार होने की संभावना जताई जा रही है।

दो साल पहले विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित होने के बाद कांग्रेस को अपना जनाधार खिसकता नजर आने लगा था। अब 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस को चिंता सताने लगी है। लंबे चिंतन और मंथन के बाद रायबरेली में संगठन को नए सिरे से खड़ा करने का निर्णय लिया गया। संगठन को नए सिरे से खड़ा करने की जिम्मेदारी कांग्रेस की स्टार प्रचारक प्रियंका गांधी वाड्रा को दिया गया।

प्रियंका ने पंचायत स्तर से लेकर जिले स्तर तक संगठन को नए सिरे से खड़ा किया। शहर को छोड़कर जिले के पांचों नगर पंचायतों में संगठन तैयार हो चुका है। संगठन के नए पदाधिकारियों को दो चरणों में प्रशिक्षित किया जा चुका है। प्रशिक्षण के दौरान कांग्रेस के चुनिंदा नेताओं ने जनता से जुड़ने के लिए कई टिप्स दिए हैं। इसी के साथ कुछ नए प्रयोग शुरू करने का निर्णय लिया गया। कार्यकर्ताओं को आश्वस्त किया गया कि ब्लाक कमेटी की संस्तुति पर केंद्र सरकार द्वारा जिले में कराए जाने वाले विकास कार्यो को स्वीकृति प्रदान की जाएगी।

इस निर्णय ने कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को नया जोश प्रदान किया है। संगठन को नए सिरे से खड़ा करने की कवायद पायलट परियोजना के रूप में शुरू की गई है। कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक, अगर सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो पायलट योजना को पूरे देश में लागू करने की योजना है। फिलहाल राहुल गांधी के ड्रीम प्रोजेक्ट मिशन 2014 की सफलता के लिए पदाधिकारियों को संसाधनों से लैस किया जा रहा है, ताकि वे पार्टी और जनता के बीच सेतु का कार्य कर लोकसभा चुनाव में पार्टी का परचम लहराने में बेहतर भूमिका अदा कर सकें।

भारतीय सिनेमा में होगी परदेसियों की वापसी!

एक समय था जब बॉलीवुड फिल्मों की कहानी 'परदेसी' नायक, नायिका और परिवार के इर्द गिर्द बुनी जाती थी। लेकिन धीरे धीरे देसी फिल्मों देसी नायकों और देसी कहानियों ने बॉलीवुड में पांव जमा लिए और फिल्मों का परदेसी फंडा कहीं पीछे छूट गया। लेकिन फिल्म जगत के विशेषज्ञों का मानना है कि 'परदेस' प्रधान फिल्मों का दौर बॉलीवुड में जल्द ही लौटेगा।

कुछ दशक पीछे जाएं तो 1970 में आई अभिनेता मनोज कुमार की फिल्म 'पूरब और पश्चिम' में प्रवासी भारतीय की दुविधा का चित्रण किया गया था और यह फिल्म बेहद सफल रही थी। इसी तरह 1990 के दशक में परदेसी पृष्ठभूमि वाली कई फिल्में आईं जिन्हें भारतीय और अप्रवासी भारतीय दोनों ही दर्शकों ने हाथों हाथ लिया।

फिल्म 'परदेस' में अभिनेता अमरीश पुरी का किरदार और 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' में अभिनेता शाहरुख खान का किरदार ऐसे अप्रवासी भारतीयों का था, जो किसी भी तरह परदेस में रहकर भी अपने देश की संस्कृति को संरक्षित करना चाहते थे।

परदेस की पृष्ठभूमि में बनी कुछ और फिल्में जैसे 'कल हो न हो', 'सलाम नमस्ते', 'दोस्ताना', 'नमस्ते लंदन' और 'चीनी कम' हाल के वर्षो में बनीं और दर्शकों द्वारा सराही भी गईं। वर्तमान समय में फिल्म 'जब तक है जान' और 'इंग्लिश विंग्लिश' जैसी इक्का दुक्का फिल्में ही बॉलीवुड में बनी हैं, लेकिन फिल्म जगत के विशेषज्ञों का मानना है कि अप्रवासी भारतीयों पर बनी परदेसी विषयवस्तु की फिल्मों का दौर फिर से बॉलीवुड में लौटेगा।

फिल्म विशेषज्ञ कोमल नाहटा ने बताया, "यह एक पूरा चक्र होता है। एक समय था जब इस तरह की फिल्मों की अधिकता देखने को मिलती थी। वह समय था, जब इस तरह की फिल्में पसंद की जाती थीं और अच्छा व्यवसाय करती थीं। फिर फिल्मनिर्माताओं को लगने लगा कि फिल्म निर्माण में एकरसता आ गई है, तो उन्होंने परदेसी फिल्मों से विराम लेकर दूसरे विषयों पर प्रयोग करना शुरू किया। लेकिन वह दौर फिर लौटेगा।"

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14 साल पहले गंगा में किया था बेटे का अंतिम संस्कार, आज वह वापस आ गया

बरेली| उत्तर प्रदेश के बरेली के थाना क्षेत्र देबरनिया के भुड़वा नगला गाँव के कृषक नन्थू लाल का 23 वर्षीय पुत्र छत्रपाल को 14 वर्ष पूर्व खेत मे काम करते समय सर्पदंश से मौत हो गयी थी| छत्रपाल की मौत के बाद परिजनो ने अन्य सैकड़ो ग्रामीणो के साथ जाकर रामगंगा में छत्रपाल की लाश को जल समाधि देकर अंतिम संस्कार कर दिया ,लेकिन आज 14 बर्ष बाद मृतक छत्रपाल परिजनों के पास जिन्दा होकर अपने घर लौटा है इस चमत्कार से ग्रामीणो में उत्साह व छत्रपाल को देखने होड़ में आसपास के तमाम ग्रामीणो की भारी भीड़ उमड़ पड़ी है|

मृतक छत्रपाल को 14 वर्ष बाद जिन्दा देखकर उस के परिजनो व पत्त्नी बच्चो को तो अपार ख़ुशी के बाद चमत्कारी कर्तव्य देखकर पुरे परिवार में खुशियाँ ही खुशियाँ दिख रही है वही हजारो की तादायत में ग्रामीणो का हुजूम नन्थुलाल के घर के बाहर उमड़ पड़ा है| मृतक छत्रपाल को देखकर सभी ग्रामीण अचम्भितब हो कर देख रहे है कि आखिर मौत के बाद आँखों के सामने लाश का हुआ अंतिम संस्कार फिर यह चमत्कार की छत्रपाल जिन्दा होकर सामने खड़ा है यह भगवन की लीला क्या है जबकि छत्रपाल को डॉक्टरो ने मृतक घोषित किया और सभी ग्रामीणो ने मिलकर उसकी लाश का अंतिम संस्कार 14 वर्ष पूर्व कर दिया था|

आज वही छत्रपाल उन्ही ग्रामीणो व परिवार के लोगो के सामने जिन्दा खड़ा हुआ है और अब छत्रपाल के पिता, पत्नी, भाई, माँ तमाम परिजन व ग्रामीण अपने-अपने तरीके से छत्रपाल के साथ पूर्व जीवन में बीती घटनाओ को पूछ-पूछ कर जीवित छत्रपाल की परीक्षा ले रहे है और मृतक छत्रपाल है कि हर सवालों का जवाब स्पष्ट रूप से देता चला जा रहा है| छत्रपाल के गुरु सपेरो ने पिछली जिंदगी भुला कर छत्रपाल को नया जीवन देकर उसका नाम भी नया रखते हुए रूपकिशोर नाम रख दिया है|

नन्थुलाल के पुत्र छत्रपाल को जिन जिन्दा कर के घर पर लाने वाले गुरु सपेरे हरिसिंह को नन्थुलाल का परिवार ही नहीं तमाम ग्रामीण भी उन्हें भगवान रूपी इंसान मानने के लिये मजबूर हैं| वही चमत्कारी सपेरा भी निस्वार्थ समाज सेवा करते हुए तमाम मरे हुए लोगो को जिन्दा कर के अपने साथ लिये घूम रहा है| अपनी इस कला का प्रदर्शन करते हुए अपने साथ अन्य लाये हुए चेलो को भी इसी प्रकार जिन्दा कर अपना शिष्य बनाने की बात कह रहे है सपेरे हरिसिंह भी आपबीती सुनते हुए बताते है कि वह भी सांप के डसने से मर गये थे और उनके परिजनो ने सामजिक रीतिरिवाजो के अनुसार उनकी लाश को भी परिजनो ने गंगा में बहा दिया था हरिसिंह की लाश बहती हुई बंगाल जा पहुँची वहाँ एक महात्मा ने हरीसिंह की लाश देखकर उसे जिन्दा कर दिया और अपना शिष्य बना लिया हरिसिंह भी अपने गुरु का परम शिष्य बन गया और गुरु सेवा करते-करते हरिसिंह ने भी बंगाल के अपने गुरु से सारी गुरु विद्या सीख ली और आज उसी गुरु विद्या से समाज सेवा करते हुए सर्पदश से मरे हुए लोगो को जीवन दान देकर अपने जीवन को सार्थक बना रहा है|

जड़ी बूटियों के ज्ञानी सपेरे हरिसिंह लाइलाज बीमारियो को फ्री सेवा भाव से ही ठीक कर देते है| सांप के काटने से मर चुके दर्जनो लोगो को इन्होने जीवन दान देकर उनके परिजनों को बगैर कीमत वसूले सौप है आज वो परिवार जिनके परिजन मृत्यु को प्राप्त हो चुके है और उन युवकों को सपेरे गुरु ने जिन्दा कर के उनके परिजनो को सौपा है वह लोग उनको अपना गुरु मानते हुए भगवान रूपी इंसान मान रहे है| सपेरे हरिसिंह का कहना है कि वह सांप के काटे का इलाज फ्री करते हुए बीन बजाकर सापो की लीला दिखाते हुए साधू-सन्यासी व ब्रम्ह्चर्य जीवन व्यतीत कर रहे है| निस्वार्थ भाव से जड़ी बूटियों के माध्यम से लोगो का फ्री इलाज भी कर देते है संपर्क के लिये इन्होने अपना मोबाइल नंबर भी लोगो को दे रखा है-8941943751 .

मौत के बाद छत्रपाल को जीवन दान देकर सपेरा हरीसिंह अपने कबीलो की परंपरा को बताते हुए बोले की जिन्दा किया हुआ इंसान कम से कम बारह वर्ष तक हमारे साथ रहता है उसके बाद वह अपनी वा पूर्व परिजनो की मर्जी से अपने घर जा सकता है नहीं तो वह जीवन भर हमारे साथ रहे और हमारी तरह बीन बजाये और गुरु शिक्षा ग्रहण करते हुए साधू रूपी जीवन जिये भगवान रूपी सपेरे दावा करते है कि सांप का काटा हुआ इंसान मर जाये और उसके नाक, कान, मुँह से खून नहीं निकला हो तो हम दस दिन एक महीना बाद भी उसे जिन्दा कर लेते है इसी प्रकार जिन्दा किये हुए कई लोग आज अपने परिवार के साथ जिंदगिया जी रहे है| इस काम का हम लोग किसी से कोई रुपया पैसा नहीं लेते है|

हरिसिंह सपेरे बताते है कि सांप के काटे का इलाज सबसे आसान है इस इलाज में इस्तमाल लाने वाला मुख्य यंत्र साइकिल में हवा डालने वाला पम्प होता है इसी पम्प से हम मरे हुए लोगो को पुनः जीवन दान देते है सपेरे हरी सिंह अपने कबीलो के साथ ग्राम शरीफ नगर इटौआ में अपने डेरो समेत रुके है थे और साथ में पड़ोस के गाँव भड़वा नगला के नन्थुलाल का मृतक बेटा भी था अचानक मृतक छत्रपाल की याददाश्त आ गयी और वह स्थानीय लोगो को बताने लगा कि मै पड़ौस के गाँव भड़वा के नन्थुलाल का पुत्र हूँ 14 वर्ष पूर्व साँप के काटे जाने से मौत हो गयी थी सपेरे गुरु हरिसिंह ने अपनी विद्या से मुझे जीवित कर लिया|

इस चमत्कार भरी कहानी सुनते ही पूरे क्षेत्र में अफरा तफरी मच गयी और खबर आग की तरह फैलते हुई पड़ौसी गांव भड़वा नगला के नन्थुलाल तक पहुँच गयी फिर तो ग्रामीण क्या परिजन क्या हजारो की तादात में लोगो का हुजूम सपेरो के काफिलो की तरफ उमड़ पड़ा और होड़ सी मच गयी उस मृतक युवक को जिन्दा देखने के लिये जो 14 वर्ष पूर्व मर गया था आज वह जिन्दा कैसे हो गया है इन तमाम सवालो का जवाब खोजने में लगे लोगो में चर्चा की मुख्य वजह तो थी ही वही मृतक के परिजन भी अन्य ग्रामीणो के साथ सपेरो के डेरे पर पहुँच गये और अपने खोये हुए लाल को पहचानने में जरा सी भी देरी नहीं की और तमाम मिन्नतो और खेरो खुशमात से सपेरो को अपने घर नन्थुलाल ले आया|

ऐसा आपने फ़िल्मी कहानियो में देखा होगा पर यहाँ यह हकीकत है कि पूरा गाँव इस कहानी को चमत्कार मान रहा है कला हो या चमत्कार या फिर जड़ीबूटियों की ताकत पर गुरु सपेरा हरिसिंह किसी भी चमत्कारी से कम नहीं। 

पर्दाफाश डॉट कॉम से साभार

एक ऐसा गांव जहां घरों में नहीं होते दरवाजे

आज जहां चोरी और लूट की वारदातों से सबक लेकर गांव-शहर सभी जगह लोग अपने घरों को सुरक्षित रखने के लिए तमाम प्रबंध करते हैं, वहीं इलाहाबाद में एक ऐसा गांव है, जहां के लोग अपने घरों में दरवाजे तक नहीं लगाते। उनका मानना है कि गांव के बाहर बने मंदिर में विराजमान काली मां उनके घरों की रक्षा करती हैं। 

इलाहाबाद जिले के सिंगीपुर गांव के सभी घरों ये समानता देखने को मिलती है कि उनमें दरवाजे नहीं हैं। कच्चे, पक्के और झोपड़े हर तरह के इस गांव तकरीबन 150 घर हैं। ग्रामीण सहजू लाल ने कहा, "ये बाकी लोगों को चौंकाने वाली हो सकती है, लेकिन हमारे लिए ये एक परंपरा बन चुकी है। हम दशकों से बिना दरवाजों के घरों में रह रहे हैं।"

इलाहाबाद शहर के करीब 40 किलोमीटर दूर सिंगीपुर गांव की आबादी करीब 500 है। गांव में निचले मध्यम वर्गीय परिवार और गरीब तबके के लोग रहते हैं, जो फेरी लगाने, छोटी मोटी दुकानें चलाने और मजदूरी कर परिवार चलाते हैं। गांव में दलितों, जनजातियों और पिछड़ा वर्ग के लोगों की संख्या ज्यादा है।

कोरांव थाना प्रभारी सुरेश कुमार सैनी ने कहा, "मुझे नहीं लगता कि कोई दूसरा इस तरह का गांव होगा, जहां लोग घरों में दरवाजे नहीं लगाते हों।" वह कहते हैं, "जब मुझे पहली बार इस गांव के बारे में पता चला तो मैं आश्चर्यचकित रह गया।" सैनी ने कहा कि उन्होंने गांव के किसी भी घर में पूर्ण रूप से लगे दरवाजे नहीं देखे। हां, कुछ घरों में ये देखा कि वे खस (घास) के पर्देनुमा चटाई लटकाए थे ताकि घर के अंदर का दृश्य बाहर से न दिखे।

उन्होंने कहा कि गांव में पिछले कई सालों से चोरी की कोई घटना नहीं हुई है। ग्रामीणों का विश्वास है कि मां काली उनके घरों की रक्षा करती हैं और जो भी उनके घरों में चोरी का प्रयास करेगा, मां उसे दंड देंगी।ग्रामीण बड़े लाल निषाद बसंत लाल कहते हैं, "गांव के बाहर बने मंदिर में विराजमान मां काली पर हमें पूरा भरोसा है, इसीलिए हम अपने घरों की चिंता नहीं करते।" निषाद के मुताबिक उनके बुजुर्ग कहा कहते थे कि जिन लोगों ने इस गांव में चोरी की, उनकी या तो मौत हो गई या वे गंभीर बीमारियों से ग्रस्त हो गए।

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गाय करेगी अपने मालिक का फैसला!

अमूमन विवादों पर समझौते तथा फैसले पंचायतों व न्यायालय में होते हैं, मगर मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में एक गाय को अपने मालिक का फैसला करने का अधिकार दिया गया है। यह समझौता पुलिस की मौजूदगी में गाय पर अपना दावा पेश करने वाले दो लोगों के बीच हुआ है। 

कोतवाली क्षेत्र के प्रभुदेवा व चेतन सगोतिया के बीच एक गाय का असली मालिक होने के लेकर विवाद था। मामला रविवार को कोतवाली तक जा पहुंचा। प्रभुदेवा का कहना था कि उनकी गाय जंगल में चरने गई थी और चेतन अपने मवेशियों के साथ उनकी गाय को अपने घर ले गए। वहीं चेतन गाय का मालिक स्वयं होने का दावा कर रहे हैं। यह विवाद पिछले कई दिनों से चला आ रहा था, आखिर में यह मामला रविवार को कोतवाली जा पहुंचा।

दोनों पक्ष कोतवाली पहुंचे और गाय पर अपना-अपना दावा पेश किया। दोनों के बीच पुलिस ने समझौता कराया, जिस पर वे राजी भी हो गए। इस समझौते में तय हुआ कि गाय को 15 दिन तक प्रभुदेवा अपने घर पर रखकर उसकी देखभाल करेंगे और गाय को 16वें दिन दोनों दावेदारों के घर से समान दूरी पर जंगल में छोड़ दिया जाएगा। गाय जिसके भी घर पर पहुंचेगी वही उसका असली मालिक होगा।

दोनों पक्षों के बीच समझौता कराने में अहम भूमिका निभाने वाले सहायक उपनिरीक्षक के.एल.प्रजापति का कहना है कि यह मामला उनके लिए भी अनोखा है। दोनों पक्ष इस बात के लिए राजी हो गए हैं कि गाय जिसके घर जाएगी वही मालिक होगा। अच्छी बात यह रही कि बगैर किसी विवाद के यह समझौता हो गया।

पशु विशेषज्ञों का मानना है कि जानवर दिन में कहीं भी रहे शाम ढलते ही वह अपने ठौर की ओर चल देते हैं। गाय 16वें दिन वहीं जाएगी जहां उसका सही ठौर अर्थात रहने की उसकी आदत होगी। पुलिस की मौजूदगी में दो पक्षों के बीच गाय के मालिकाना हक को लेकर हुए समझौते ने एक बात साफ कर दी है कि लोग अभी भी थानों में रिपोर्ट दर्ज कराने और न्यायालय के चक्कर काटने से भरसक बचना चाहते हैं।

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नए साल में सिर्फ 90 दिन ही बजेगी शहनाई

वर्ष 2014 में कुल 90 दिन शहनाइयां बजेंगी। जून माह में जहां सर्वाधिक 17 दिन विवाह के लिए शुभ हैं, वहीं नवंबर माह में मात्र एक दिन ही वैवाहिक संयोग है। विगत वर्ष की अपेक्षा कम मुहूर्त होने पर लोगों को अधिक भागदौड़ करनी होगी। 

वर्ष 2014 में वैवाहिक आयोजन के लिए मात्र 90 दिन का ही संयोग बन रहा है। विगत वर्ष 126 दिन का संयोग था। इसकी अपेक्षा इस वर्ष वैवाहिक दिनों की संख्या कम हो गई है। इस वर्ष कुल 90 दिन का वैवाहिक संयोग है। इसमें जनवरी में 11 दिन, 18 जनवरी, 19, 20, 21, 22, 23, 24, 25, 26, 27 व 28 जनवरी को वैवाहिक आयोजन हो सकता है। इसके अलावा फरवरी माह में 3, 4, 8, 9, 10, 14, 15, 17, 18, 19, 20, 21, 22, 23, 24 व 26 फरवरी को शुभ मुहूर्त माना गया है। इस प्रकार फरवरी माह में 16 दिन शहनाई बज सकती है। 

मार्च माह में 7 दिन लगन के लिए शुभ हैं। इसमें 2, 3, 4, 7, 8, 9 व 14 मार्च शामिल है। अप्रैल माह में विवाह के लिए 9 दिन, 16, 17, 18, 19, 20, 21, 22, 26 व 27 अप्रैल को लोग विवाह का दिन तय कर सकते हैं। मई माह में 15 दिन विवाह के लिए शुभ हैं। इसमें 1, 2, 7, 8, 10, 11, 13, 15, 17, 19, 23, 24, 25, 29 व 30 मई को वैवाहिक समारोह का आयोजन किया जा सकता है।

जून माह में सर्वाधिक 17 दिन लगन मुहूर्त के लिए उत्तम हैं। इसमें 4, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 19, 20, 21, 24, 25 व 26 तारीख को धूमधाम से शहनाई बजाई जा सकती है। जुलाई माह में 5 दिन का योग है। इसमें 1, 2, 3, 4 व 5 जुलाई को वैवाहिक आयोजन हो सकता है।

नवंबर माह में मात्र एक दिन 30 नवंबर को ही विवाह का योग है, जबकि वर्ष के अंतिम माह दिसंबर में 9 दिन का संयोग बनता है। इसमें 1, 2, 5, 6, 7, 12, 13, 14 व 15 दिसंबर को शहनाई बज सकती है। अगस्त, सितंबर व अक्टूबर माह में वैवाहिक आयोजन के लिए कोई संयोग नहीं बनता है।

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सर्द हवाओं के बीच नाकाफी अस्पतालों के रैन बसेरे

लखनऊ| राजधानी के अस्पतालों में कड़ाके की ठंड से तीमारदारों को बचाने के लिए किए गए इंतजाम अब ऊंट के मुंह में जीरा नजर आने लगे हैं। तीमारदारों को ठंड से बचाने के लिए अस्पतालों में कोई कारगर उपाय नहीं किए गए हैं, और जिन अस्पतालों में ठंड से निपटने के लिए व्यवस्था की गई है, वह भी नाकाफी साबित हो रही है।

सरकारी अस्पताल इन दिनों मरीजों के तीमारदारों को सुविधाएं देने के बजाय उनकी तकलीफों को और बढ़ा रहे हैं। एक तरफ जहां रैन बसेरों में रहने वाले तीमारदारों को रात की सर्द हवाओं से ठिठुरना पड़ रहा है, तो वहीं इन रैन बसेरों में गंदगी, मच्छरों और चोरों का भी आतंक रहता है। ऐसे में तीमारदारों को दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।

प्रदेश के दूर-दराज के इलाकों से राजधानी के चिकित्सा विज्ञान महाविद्यालय एवं अस्पताल सहित विभिन्न अस्पतालों में इलाज कराने आए मरीजों के तीमारदारों को अस्पताल प्रशासन की उपेक्षा का शिकार होना पड़ रहा है। यहां पर आए मरीजों के तीमारदारों को अस्पताल प्रशासन ने सुविधा के नाम पर सिर्फ रहने के लिए रैन बसेरे बनवाए हैं, लेकिन आलम यह है कि वह भी नाकाफी सिद्ध हो रहे हैं।

कुछ इसी तरह का हाल महिला अस्पतालों का है। क्वीन मैरी अस्पताल में तीमारदार अस्पताल के मुख्य प्रवेश द्वार से लेकर कहीं भी मुफीद जगह देखकर अपना अस्थाई ठिकाना बना लेते हैं। रैन बसेरों में गंदगी और अव्यवस्था भी चरम पर है। यहां आए मरीजों के तीमारदारों को पीने के पानी के लिए भी काफी मशक्कत करनी पड़ रही है।

इन रैन बसेरों में मच्छरों से निजात दिलाने के लिए कोई व्यवस्था न किए जाने के कारण तीमारदारों के खुद बीमार पड़ने का भय बना रहता है। सुरक्षा के नाम पर अस्पताल प्रशासन ने सुरक्षाकर्मी नियुक्त किए हैं, इसके बावजूद तीमारदारों का समान चोरी होना आम बात हो गई है।

हरदोई निवासी कुंती गुप्ता का इलाज कराने आए सुशील कुमार गुप्ता बताते हैं कि वह सात दिनों से रैन बसेरे में रह रहे हैं। इन रैन बसेरों में गंदगी चरम पर है। वह बताते हैं कि सफाईकर्मी इन रैन बसेरों के सामने झाड़ू लगा कर निकल लेते हैं, जबकि रैनबसेरों में जहां तहां गंदगी का अंबार लगा रहता है। गंदगी से इन रैन बसेरों में संक्रमण का खतरा मंडराता रहता है।

चिकित्सा विज्ञान संस्थान एवं अस्पताल में इलाज करवाने आए देवरिया निवासी सर्वदेव तिवारी ने बताया कि वह अपनी बहु का इलाज करवाने के लिए यहां कई दिनों से रह रहे हैं। यहां की अव्यवस्था के बारे में पूछने पर वह अस्पताल प्रशासन पर बिफर पड़े। उन्होंने कहा कि तीमारदारों के लिए यहां सुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं है, रहने के लिए रैन बसेरा तो बना है, लेकिन गंदगी इतनी रहती है कि सांस लेना मुश्किल होता है।

बलरामपुर अस्पताल में अपने बच्चे का इलाज कराने देवरिया से आए मोहम्मद याकूब भी इन रैन बसेरों में व्याप्त गंदगी से परेशान दिखे। याकूब ने बताया कि यहां के शौचालयों की स्थिति बहुत खराब है। उन्होंने आगे बताया कि रैन बसेरों में दरवाजे तो हैं पर इनकी कुंडियां टूटी हुई हैं, तथा स्नानघर अत्यंत गंदे रहते हैं।

कैंसर की गांठ का इलाज करवाने आए योगेंद्र के परिजन सतपाल ने बताया कि वह रैन बसेरे में व्याप्त गंदगी के चलते अस्पताल के एक कोने को ही अपना ठिकाना बनाए हुए हैं। उन्होंने बताया कि गंदगी के अलावा यहां पीने के साफ पानी का अभाव है और मच्छरों का आतंक काफी व्याप्त है। इन सरकारी अस्पतालों में तीमारदारों के लिए अलाव की भी कोई मुकम्मल व्यवस्था नहीं की गई।

तीमारदारों की समस्याएं-

1- रैनबसेरों में साफ-सफाई का न होना।

2- मच्छरों का प्रकोप।

3- सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता न होने से चोरों का आतंक।

4- सर्दी से बचने के अभी भी कोई पुख्ता इंतजाम नहीं।

5- शौचालयों व स्नानघरों में गंदगी।

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प्रचार के नवीनतम तकनीक अपना रहे राजनीतिक दल

लगातार परिवर्तनशील भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में युवाओं और संभावनाशील आबादी तक अपनी पहुंच का विस्तार करने के लिए राजनीतिक दल प्रचार के नवीनतम तकनीक का व्यापक तौर पर सहारा लेने लगे हैं। पुराने चलन का प्रयोग करने के अलावा राजनीतिक दल अब लोगों को आकर्षित करने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लेने लगे हैं। 

एक समय था जब नेता मतदाताओं को रिझाने के लिए पोस्टरों, कार्डबोर्ड के कटआउट, चित्रों और घर-घर संपर्क का थकाऊ तरीके पर भरोसा करते थे। ये सभी तरीके आज भी चलन में हैं। लेकिन इन सबके बीच देश के शहरी इलाकों में प्रचार का एक तरीका तेजी से सिरे चढ़ रहा है और वह है राजनीतिक दलों का तकनीक सेवी होता जाना। इसका मुख्य कारण युवाओं के बीच पैठ बनाने के लिए इस पर ज्यादा भरोसा करना है।

बड़ी पार्टियों के बीच भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा सक्रिय है। भाजपा ने इसका प्रयोग 2009 के आम चुनाव में भी किया था, हालांकि वह इस चुनाव में सफल नहीं रही थी। लेकिन हाल के वर्षो में इस माध्यम की जड़ें पहले से ज्यादा गहरी हुई हैं।

भाजपा में आईटी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद गुप्ता ने कहा, "हम देश की पहली राजनीतिक पार्टी हैं जिसने 1998 में अपना वेबसाइट लांच किया था। प्रौद्योगिकी भाजपा के डीएनए में रचाबसा है। चाहे समर्थकों को सूचना देने के लिए हो या शीघ्र सूचाना मुहैया कराना हो, हम हमेशा से तकनीक का प्रभावी इस्तेमाल करते आए हैं।"

आंकड़ा विश्लेषण में डॉक्टरेट गुप्ता के साथ पार्टी के डिजीटल आपरेशन सेंटर में 20 लोगों की टीम काम करती है। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस ने देर से ही सही सोशल मीडिया के महत्व को स्वीकार किया। ऑनलाइन गतिविधियों में सक्रिय पार्टी के एक नेता ने अपना नाम जाहिर नहीं होने देने की शर्त पर बातचीत की। उन्होंने मीडिया से बातचीत के लिए अधिकृत नहीं होने के कारण अपना नाम गोपनीय रखने की गुजारिश की।

उन्होंने कहा, "हम परंपरागत माध्यम को बहुत ज्यादा महत्व देते हैं। लेकिन इसमें हेरफेर किया जा सकता है। अब हमने महसूस किया है कि सोशल मीडिया आम लोगों के साथ सीधा संपर्क साधने का जरिया है।"

सोशल मीडिया पर सक्रिय एक और पार्टी है आम आदमी पार्टी (आप)। इसके मुखिया अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बने हैं। ट्विटर पर अरविंद के 900,000 फॉलोअर हैं। आप की प्रवक्ता अस्वति मुरलीधरन ने कहा, "सोशल मीडिया हमारे चुनाव प्रचार का सबसे महत्वपूर्ण औजार रहा है।" इसके आलावा एआईएडीएमके, असम के आल इंडिया यूनाइडेड डेमोक्रेट्रिक फ्रंट और बीजू जनता दल के भी विभिन्न गतिविधियों पर फेसबुक पेज हैं।

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चेन्नई में चढ़ने लगा है 'शोले 3डी' का खुमार

वर्ष 1975 में आई एक्शन फिल्म शोले का थ्रीडी संस्करण 'शोले 3डी' शुक्रवार को सिनेमाघरों में उतरने को तैयार है। बहुत से सिनेप्रेमी फिल्म को देखने की उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे हैं। रमेश सिप्पी निर्देशित 'शोले' भारतीय सिनेमा में मील का पत्थर साबित हुई। फिल्म में धर्मेद्र, अमिताभ बच्चन, हेमा मालिनी, संजीव कुमार और अमजद खान ने मुख्य भूमिका निभाई थी।

डी.जी. वैष्णव कॉलेज के छात्र राकेश अरोड़ा के लिए यह क्लासिक फिल्म देखना रोमांचक अवसर है। अरोड़ा ने कहा, "मैंने अपने कंप्यूटर और टेलीविजन पर कई बार यह फिल्म देखी है, लेकिन सिनेमा हाल में कभी नहीं देखी।" उन्होंने कहा, "मैं अपने पूरे परिवार के साथ यह फिल्म देखने जाऊंगा।" नई फिल्म के लिए सिनेमाघरों में बुधवार से ही बुकिंग शुरू हो रही है। कुछ लोग जिन्होंने 39 साल पहले सिनेमाघरों में 'शोले' देखी थी, फिर से सिनेमाघर की ओर रुख करेंगे।

सत्यम सिनेमा के एक प्रतिनिधि ने बताया, "हम पहले सप्ताहांत में हाउसफुल शो की उम्मीद कर रहे हैं। हमें उम्मीद है कि यह अच्छी जाएगी।" फिल्म इतिहासकार आनंदन का कहना है कि न सिर्फ सत्यम सिनेमा बल्कि अन्य सिनेमाघरों में भी इसने 100 दिन पूरे किए थे।

आनंदम ने बताया, "इसने चेन्नई में जबरदस्त सफलता पाई थी। मुझे याद है 1975 में 15 रुपये में फिल्म देखी थी, यह केसिनो और पायलट जैसे सिनेमाघरों में 100 दिन चली थी। यह 70 मिलीमीटर की पहली भारतीय फिल्म थी।" उन्होंने कहा, "मुझे यकीन है कि लोग इसे फिर से बड़े पर्दे पर देखना पसंद करेंगे। फिल्म के बारे में सुन चुके युवा इसे बड़े पर्दे पर देखना पसंद करेंगे।"

64 वर्षीय सेवानिवृत्त बैंककर्मी आनंद वेंकटरमन कहते हैं, "मैंने पिछले 20 सालों से सिनेमा हाल में फिल्म नहीं देखी। शोले देखने से मैं कभी नहीं थकता। मैं इसे फिर से सिनेमाघर में देखने का अवसर नहीं गंवा सकता।" फिल्म के 3डी संस्करण पर कथित तौर पर 20 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं।

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स्मारक घोटाला: नसीमुद्दीन, कुशवाहा समेत 19 पर कसा शिकंजा

उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के शासनकाल में तमाम घोटालों को अंजाम दिया गया| जैसे कि एनआरएचएम, स्मारक, खाद्यान्न, हाथी, फौव्वारा, यहाँ तक की पेड़- पौधे व घास फूस को भी नहीं छोड़ा गया उसमें भी घोटाला किया गया| तात्कालिक बसपा सरकार में शासनकाल में हुए बहुचर्चित स्मारक घोटाले के घोटालेबाजों पर अब सिकंजा कस्ता नज़र आ रहा है| सतर्कता विभाग (विजिलेंस विभाग) ने बुधवार को पिछली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सरकार के कद्दावर मंत्री रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा सहित 19 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कराया। 

राज्य सरकार की हरी झंडी के बाद सतर्कता विभाग के महानिदेशक ए़ एल़ बनर्जी ने मुकदमा दर्ज कराने के आदेश दिए। सिद्दीकी, कुशवाहा और राजकीय निर्माण निगम के तत्कालीन प्रबंध निदेशक सीपी सिंह व संयुक्त निदेशक एसए फारुखी सहित कुल 19 लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार सहित विभिन्न धाराओं में लखनऊ के गोमतीनगर थाने में दर्ज कराया गया।

गौरतलब है कि मायावती सरकार के शासनकाल में वर्ष 2007 से 2012 के बीच नोएडा व लखनऊ में करीब साढ़े चार हजार करोड़ रुपये की लागत से स्मारकों और पार्को का निर्माण कराया गया था। इसमें करीब 1,400 करोड़ रुपये के घोटाले की बात सामने आई थी। समाजवादी पार्टी की अखिलेश यादव सरकार ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) शासनकाल में बनाए गए स्मारकों व पार्को के निर्माण में हुए घोटाले की जांच लोकायुक्त एन के मेहरोत्रा को सौंपी थी। लोकायुक्त ने मई 2012 को राज्य सरकार को सौंपी अपनी जांच रिपोर्ट में पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा और नसीमुद्दीन सिद्दीकी के अलावा कई जनप्रतिनिधियों, लोक निर्माण विभाग व राज्य निर्माण निगम के अभियंताओं सहित 199 लोगों को दोषी ठहराते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति की थी।

मालूम हो कि मई 2012 में तात्कालिक डीआइजी आशुतोष पांडेय ने कई मूर्तिकारों की शिकायत पर हाथी मूर्ति व स्मारक निर्माण में करोड़ों रुपये के घोटाले का राजफाश किया था। तब पुलिस ने गोमतीनगर व कृष्णानगर थाने में कई ठेकेदारों सहित राजकीय निर्माण निगम व लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों के खिलाफ धोखाधड़ी के अलग-अलग मुकदमे दर्ज कर जांच शुरू की थी। पुलिस ने हाथी मूर्तियों की सप्लाई का काम करने वाले एक बड़े ठेकेदार को गिरफ्तार भी किया था। स्मारक निर्माण में करोड़ों रुपये की धांधली सामने आने पर शासन ने इस मामले की जांच आर्थिक अपराध शाखा को स्थानांतरित कर दी थी। इस मामले में ईओडब्ल्यू अब तक जांच के दायरे में आए करीब 25 से अधिक अधिकारियों व कर्मचारियों के बयान दर्ज कर चुकी है।

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सर्द रातों मे नहीं जलते अलाव, रैन बसेरों पर पड़े ताले, तो कहां जायें गरीब निराश्रित........?

शासन द्वारा कितनी ही योजनायें भले ही चलायी जाती हों लेकिन योजनायें बनाने के बाद शासन द्वारा कभी भी यह देखने की जहमत नहीं उठायी जाती कि उसके द्वारा लागू की गई योजनायें धरातल पर क्रियान्वित भी हो रही हैं या नहीं। ऐसे ही शासन द्वारा गरीब व निराश्रित लोगों को जाड़े के मौसम मे उन्हें सर्दी से बचाने के लिए कम्बल बांटने व अलाव जलाकर उनके स्वास्थ्य की रक्षा का जुम्मा जिला प्रशासन को सौंपा गया है। आइये देखते हैं कि जनपद खीरी मे इसका क्रियान्वयन जिला प्रशासन किस तरह से करा रहा है। शीत लहर व घने कोहरे के कहर ने हिमालय की तलहटी मे बसे जनपद खीरी मे आम जनमानस के जीवन को अस्त व्यस्त कर दिया है, ठिठुरन और शरीर को कपकपा देनी वाली सर्द हवाओं से गरीबों व निराश्रित लोगों को बचाने हेतु जिला प्रशासन द्वारा किया जा रहा दावा खोखला नजर आ रहा है। 

वर्ष 2013 के सबसे ठण्डे दिन 31 दिसम्बर की रात को जब पर्दाफाश संवाददाता द्वारा प्रशासनिक व्यवस्थाओं की हकीकत जाननी चाही गई तो प्रशासनिक व्यवस्थायें अव्यवस्थाओं मे परिवर्तित दिखायी दी। जिला प्रशासन ने गरीब निराश्रितों को ठण्ड से बचाने के जो प्रयास किये हैं वह ऊंट के मुंह मे जीरा नजर आये। ठण्ड से कांपते लोगों ने इस संवाददाता को बताया कि भाईसाहब हमारा हाल तो आप देख ही रहे हैं इतनी ठण्ड मे भी हमारी सुधि लेने वाला कोई नहीं है। गन्ने की थोड़ी सी खोई डालकर कहीं कहीं पर अलाव तो जलाये गये हैं लेकिन उनकी हालत ऐसी ही है जैसे फूस तापना। अलाव के नाम पर लकड़ी का तो कहीं नामो निशान ही नहीं है। रैन बसेरे के नाम पर तो प्रशासन द्वारा गरीब निराश्रितों का मजाक ही उड़ाया जा रहा है। बीती रात हो रही धीमी बारिश और हांड़ कपा देने वाली ठण्डी हवाओं के कारण गरीब निराश्रित इधर उधर आश्रय लेते दिखायी दिये। पहाड़ों पर हुयी जबर्दस्त बर्फबारी और कई इलाकों मे हुयी बारिश से बढ़ी ठण्ड और गलन ने तराई इलाका कहलाने वाले जनपद खीरी मे कहर सा बरपा रखा है। 

जहां एक ओर सर्दी मे जनता प्रशासन से कम्बल, रैनबसेरा, अलाव आदि की और बेहतर व्यवस्था की आस लगाये बैठी है वहीं दूसरी ओर प्रशासन लोगों को ठण्ड से बचाने के लिए केवल कागजो पर आंकड़ों की बाजीगरी मे जुटा है, इसका ताजा उदाहरण तब देखने को मिला जब प्रशासन द्वारा सदर तहसील मे स्थापित किये गये रैन बसेरे मे ताले लटकते दिखायी दिये और साथ ही रैन बसेरा लिखा हुआ एक बैनर भी टंगा दिखायी दिया जो इस बात की गवाही दे रहा था कि प्रशासन द्वारा बैनर टांगकर लोगों को ठण्ड से बचाने के लिए मात्र खाना पूर्ति ही की गई है। इसी तरह रोडवेज बस स्टेशन पर बनाये गये रैन बसेरे मे भी प्रशासन द्वारा महज एक चटाई बिछाकर लोगों को ठण्ड से बचाने के प्रयास किये गये है जहां न कुछ ओढ़ने की व्यवस्था है और न ही बिछाने की। प्रशासन ने गरीबो के साथ इतना ही मजाक नहीं किया बल्कि रेलवे स्टेशन के पास हर वर्ष स्थापित किया जाने वाला रैन बसेरा भी इस वर्ष स्थापित नहीं किया गया है, जिसके चलते रात मे रेलगाडि़यों से आने वाले यात्री खुले आसमान के नीचे जमीन पर ठिठुरने को विवश है। 

लोगों को शीतलहर से बचाने के लिए प्रशासन द्वारा महज इक्का दुक्का स्थानो को छोड़कर अन्य किसी जगह पर भी अलाव जलवाने का प्रबंध नहीं किया गया है और यदि कहीं इक्का दुक्का स्थानो पर अलाव जलवाये भी गये हैं तो वह सिर्फ खानापूर्ति मात्र ही नजर आ रहे हैं। इस बारे मे अपर जिलाधिकारी विद्या शंकर सिंह से जानकारी लेने पर उन्होने बताया कि ‘‘निराश्रित व गरीब लोगों को ठण्ड से बचाने के लिए प्रशासन द्वारा पांच लाख रुपयों के कम्बल बाटे गये है, साथ ही साथ जनपद की प्रत्येक तहसील को अलाव जलवाने के लिए पचास-पचास हजार रुपये भी आवंटित किये गये है।‘‘ अपर जिलाधिकारी विद्या शंकर सिंह भले ही कम्बल बांटने व अलाव जलवाने का राग अलाप रहे हों लेकिन जमीनी हकीकत तो कुछ और ही बयां कर रही है।
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