मकर संक्रांति पर यहाँ से खरीदी लाठी दूर करती है दरिद्रता!

उत्तर प्रदेश के कौशाम्बी में यमुना के तट पर स्थित रोहित गिरि पर सदियों से मकर संक्रांति पर लगने वाला खिचड़ी मेला वर्तमान में भी लाखों श्रद्धालु के लिए आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है और इसमें लाठी खरीदने की अनोखी परम्परा है। श्रद्धालुओं की मान्यता है कि यहां से खरीदी गयी लाठी और पत्थर के सामान से दरिद्रता दूर होती है। यहां आने वाले पुरूष पूजा के बाद बांस की लाठी खरीदना नहीं भूलते। यहाँ की यह भी मान्यता है कि मकर संक्रांति के अवसर पर यहां यमुना में स्नान, सूर्य अध्र्य और फिर रोहित गिरि की पूजा परिक्रमा से समस्त पापों का नाश हो जाता है।

बताया जा रहा है कि यमुना तट पर स्थित रोहित गिरी की एक प्राचीन कथा है| कहा जाता है कि विश्राम सागर में उदघृत प्रसंग के अनुसार बहुला नामक गाय पर्वत पर चरने गयी थी। वहीं जंगल में शेर मिल गया। शेर बहुला को अपना भोजन बनाना चाहता था। बहुला ने उसकी मनोदशा समझ लिया और प्रार्थना की कि घर में उसका बछड़ा उसकी प्रतीक्षा कर रहा होगा। यदि वह मोहलत दे बछड़े को दूध पिला कर वापस आ जाएगी। शेर उसके शरीर से अपनी भूख शान्त कर सकता है। बहुला की विनती पर शेर मान गया और उसे घर जाने दिया। बहुला घर लौटी और बछड़े को दूध पिलाकर शीघ्र ही शेर के पास जाने को तैयार हो गयी। बछड़े के द्वारा अपनी मां के शीघ्र लौटने का कारण पूछे जाने पर बहुला ने अपने व शेर के बीच हुई वार्ता का सम्पूर्ण वृतांत उसे बता दिया।

बछड़ा भी अपनी मां के साथ चलने की जिद में अड़ गया। विवश होकर बहुला अपने बछड़े को साथ लेकर रोहित गिरि पर शेर के पास लौट आयी और क्षुधा शांत करने का आग्रह किया। शेर बहुला की सत्य निष्ठा के आगे नतमस्तक हो गया और उसे मुक्त करते हुए वरदान दिया कि जो व्यक्ति तुम्हारा दर्शन करेगा वह पाप से मुक्त हो जाएगा। तभी से रोहित गिरि पर्वत का महत्व बढ़ गया लोग खिचड़ी पर्व पर आते हैं।

कहा जाता है कि यमुना स्नान के बाद रोहित गिरि पर्वत की पूजा व परिक्रमा करते हैं। खिचड़ी मेले में चित्रकूट, बांदा, इलाहाबाद, जालौन, महोबा, फतेहपुर सहित अनेक जिलों से श्रद्धालु यहां आते है। 

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जानिए मकर संक्रांति पर क्यों खाते हैं खिचड़ी

मकर संक्रान्ति हिन्दुओं के प्रमुख पर्व के रूप में मनाया जाता है| पौष मास में सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के अवसर पर इस पर्व को मनाया जाता है| इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है और दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं|

मकर संक्रान्ति का आध्यात्मिक रूप से भी विशेष महत्व है| क्या आपको पता है की इस दिन लोग खिचड़ी क्यों खाते हैं अगर नहीं तो हमारे ज्योतिषाचार्य आचार्य विजय कुमार बताते हैं कि मकर संक्राति के मौके पर नये चावल की खिचड़ी बनाकर सूर्य देव एवं कुल देवता को प्रसाद स्वरूप भेट करने की परंपरा है। लोग इस दिन एक दूसरे के घर खिचड़ी भेजते हैं और सुख शांति की कामना करते हैं। इस प्रथा के पीछे एक कारण यह है कि भारत कृषि प्रधान देश है। कृषि का आधार सूर्य देव को माना गया है। इसलिए सूर्य का आभार प्रकट करने के लिए नये धान से पकवान एवं खिचड़ी बनाकर सूर्य देवता को भोग लगाते हैं।

खिचड़ी तो आप लोग हर दिन बनाकर खाते हैं लेकिन मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी का स्वाद अनुपम होता है। मकर संक्राति की खिचड़ी नये चावल, उड़द की दाल, मटर, गोभी, अदरक, पालक एवं अन्य तरह की सब्जियों को मिलाकर तैयार की जाती है। इस खिचड़ी में आस्था का स्वाद भी मिला होता है जो अन्य दिनों की खिचड़ी में नहीं होता है। आपको पता है इस तरह सब्जियों को मिलाकर खिचड़ी बनाने की परम्परा की शुरूआत करने वाले बाबा गोरखनाथ थे। ऐसी मान्यता है कि बाबा गोरखनाथ भगवान शिव के अंश हैं। इसलिए इनके द्वारा शुरू की गयी परम्परा लोग श्रद्धापूर्वक निभाते चले आ रहे हैं।

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नवाबों की नगरी में 'मैं हूं आम आदमी' टोपी की धूम

कहते हैं कि राजनीति में ग्लैमर नहीं होता और ये फैशन और स्टाइल से मीलों दूर रहती है, लेकिन अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) की टोपी आजकल नवाबों की नगरी लखनऊ के युवाओं के स्टाइल स्टेटमेंट का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई है।

इन दिनों 'मैं हूं आम आदमी' लिखी टोपी राजधानी के युवाओं को इस कदर पसंद आ रही है कि वे इसे शापिंग और सैर पर जाने के साथ-साथ कालेज जैसी जगहों पर भी पहन रहे हैं।

नेशनल पी.जी़ कालेज के अभिषेक तिवारी कहते हैं कि टोपी (कैप) पहनने के चलन तो बहुत पुराना है। तमाम अलग-अलग तरह की टोपियां युवाओं को लुभाती रही है लेकिन अब इस चलन में बदलाव देखने को मिल रहा है।

बीते समय में अलग अलग तरह की स्पोर्ट्स कैप का शौक युवाओं में देखने को मिलता रहा है, लेकिन अब युवाओं की पहली पसंद है 'मैं हूं आम आदमी' लिखी साधारण गांधी टोपी है।

तिवारी ने कहा, "अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी ने एहसास कराया कि आम आदमी में बहुत शक्ति होती है। वह बड़ा से बड़ा काम सकता है। उनकी जीत के बाद लोगों को आम आदमी कहलाने और दिखने में गर्व महसूस होता है।"

लेटेस्ट फैशन बन चुकी 'मैं हूं आम आदमी' लिखी टोपियों को लेकर युवाओं का कहना है कि अब वे जहां भी जाएंगे, इन टोपियों को पहनकर जाएंगे।

शिया पी.जी. कालेज के आयुष गुप्ता कहते हैं, "मैं और मेरे कालेज के सभी दोस्त अब टोपी को घर से लगाकर निकलते हैं। हम लोग हर जगह खुद को आम आदमी कहलाना पसंद करते हैं।"

लखनऊ विश्वविद्यालय से बीएससी कर रहीं अपूर्वा कहती हैं कि वे तो इस टोपी को लगाकर विश्वविद्यालय परिसर जाती हैं। कई अन्य छात्र भी ये टोपियां लगाकर आते हैं।

युवा सैर पर निकलते समय भी इन टोपियों को लगाकर अपने सिर की शान बढ़ाते हैं। अलीगंज निवासी हिना अय्यूब कहती हैं, "हम लोग अब तो इमामबाड़ा, मरीन ड्राइव, अंबेडकर पार्क जैसे स्थानों पर घूमने जाते हैं तो भी इन टोपियों को लगाकर जाते हैं।"

दुकानदारों का मानना है कि आप नई पार्टी है, इसलिए अभी तक वे इसका सामान (मैं हूं आम आदमी, मुझे स्वराज चाहिए लिखी टोपियां) नहीं रखते थे, लेकिन युवाओं में आजकल इस टोपी के बढ़ते क्रेज को देखते हुए वे लोग अब 'मैं हूं आम आदमी' की टोपियों का स्टॉक रखने लगे हैं।

शीला इंटरप्रेइजेज के मालिक राजेश जायसवाल कहते हैं, "पिछले कुछ हफ्तों से 'मैं हूं आम आदमी' लिखी टोपियों की मांग काफी बढ़ गई है। हर रोज शहर के काफी युवा इसे खरीदने आते हैं।"

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मूवी रिव्यूः डेढ़ इश्किया

निर्देशक: अभिषेक चौबे
कलाकार : माधुरी दीक्षित, हुमा कुरैशी, अरशद वारसी, नसीरूद्दीन शाह, विजय राज

मुंबई। बॉलीवुड मोहिनी माधुरी दीक्षित की बहुप्रतीक्षित फ़िल्म "डेढ़ इश्किया" कल रिलीज हो चुकी है। यश राज कैंप की 'आजा नच ले' के लंबे अर्से बाद इस बार जब माधुरी बड़े पर्दे पर नजर आ रहीं हैं। निर्देशक अभिषेक चौबे ने बॉलीवुड में बतौर निर्देशक अपनी शुरूआत ब्लैक कॉमेडी थ्रिलर फिल्म "इश्किया" से की थी। इस हफ्ते रिलीज हुई उनकी दूसरी फिल्म "इश्किया" की सीक्वल "डेढ़ इश्किया" है। फ़िलहाल पिछली कहानी से इसका कोई लेना-देना नहीं है। यह फिल्म रोमांस, एक्शन और कॉमेडी का कॉकटेल है, जिसका हर दृश्य दिलचस्प है।

नवाबी छाप छोड़ती कहानी बेहद असरदार है। कहानी में खालूजान (नसीरूद्दीन शाह) नवाब का नेकलेस चुराने के बाद से फरार है, जबकि बब्बन (अरशद वारसी) को मुश्ताक भाई (सलमान शाहिद) ने नेकलेस के लिए पकड़ रखा है। इस बार खालूजान महमूदाबाद के एक पुराने भव्य महल में पहुंचते हैं, इस महल में खूबसूरत बेगम पारा (माधुरी दीक्षित) ने एक खुला मुशायरा आयोजित किया हैं। बेगम पारा के इस महल में खालूजान भी खुद को नवाब बताकर दाखिल हो जाते हैं। इस बार उनका मकसद कोई छोटा-मोटा हाथ मारने की बजाय महल की तिजोरी में रखी दौलत को लूटना है। खालूजान खुद को शायर बताते हैं और मुशायरे में शामिल हो जाते हैं। शायरे में अपनी शायरी से बेगम पारा को प्रभावित करने वाले खालूजान साहब खुद बेगम पारा से प्यार करने लगते हैं।

बेगम पारा का शौहर अब इस दुनिया में नहीं हैं, इस लिए बेगम को अब अपने लिए जीवनसाथी चाहिए। बेगम पारा इसकी वजह भी अपने मरहूम पति की आखिरी ख्वाहिश बताती है। पारा कहती हैं कि नवाब साहब ने मरने से पहले उनसे ऐसा वचन लिया था। इसी मुशायरे के दौरान खालूजान देखते हैं कि यहां बब्बन मियां भी पहुंच चुके हैं। महल में आने के बाद बब्बन मियां को बेगम साहिबा खासमखास नौकरानी मुनिया (हुमा कुरैशी) से इश्क हो जाता है। इसके बाद कई ऎसी परिस्थितियां बनती हैं, जिनको देखना एक इंटरेस्टिंग एक्सपीरियंस है।

अभिषेक चौबे की स्क्रीनप्ले के साथ डायरेक्शन पर भी पकड़ रही। इस फिल्म को यकीनन अपनी पिछली फिल्म इश्किया के मुकाबले कहीं ज्यादा दमदार बनाया है। अभिषेक अपनी स्क्रिप्ट से नहीं भटकते । इस फ़िल्म में उन्होंने माधुरी को 20-25 साल की लड़की दिखाने की कोशिश नहीं की, जिस उम्र में वह हैं, उसी के अनुसार उन्हें पेश किया है। फ्लैशबैक में माधुरी और नसीर के युवावस्था के किरदारों के लिए उन्होंने युवा कलाकारों का सहारा लिया है। फिल्म के हर सीन पर उनकी छाप नजर आती है।

पूरी फिल्म नसीरुद्दीन शाह और माधुरी दीक्षित पर टिकी है। पूरी फिल्म में इन दोनों ने गजब अभिनय किया है। माधुरी के फैंस के लिए ये फ़िल्म बहुत अच्छी है। नसीर ने भी अपने किरदार को बखूवी निभाया है। अरशद वारसी और नसीर की केमिस्ट्री खूब जमती है। खालूजान और बब्बन मियां के ज्यादातर सीन फिल्म की हैं। विशाल भारद्वाज संगीत भी ठीक-ठाक है।

बच्चों में जल्द आ रहा यौवन, माता-पिता की चिंता बढ़ी

ख्याति खन्ना (बदला हुआ नाम) उम्र के लिहाज से अभी 10 वर्ष के कच्चे पड़ाव पर हैं, लेकिन अपने शरीर में अचानक आ रहे परिवर्तन के कारण उसने स्कूल जाने से इनकार कर दिया है, यहां तक कि वह पूरे दिन घर के अंदर ही रहना चाहती है तथा दोस्तों और परिवार के लोगों से भी दूर-दूर ही रहना चाहती है। ख्याति की मां ने बताया, "अपनी उम्र से अधिक दिखाई पड़ना शुरू होने, उभरते स्तनों और इतनी कम उम्र में आ रहे यौवन के कारण वह शरमाई सकुचाई-सी रहने लगी है। पहले की अपेक्षा चिड़चिड़ी, आक्रामक और अत्यधिक गुस्सैल रहने लगी है।"

उन्होंने आगे बताया, "जब मैंने उससे पूछा तो उसका कहना था कि जब उसकी उम्र के दूसरे बच्चों में यह सब नहीं हो रहा, तो उसमें क्यों। मेरे पास इसका कोई जवाब नहीं है। यह बहुत ही चिंताजनक है। एक मां के स्तर पर मुझे उससे बात करने में बहुत मुश्किल होती है।"

विशेषज्ञों का कहना है कि ख्याति का मामला बहुत अलहदा नहीं है। धीरे-धीरे आठ से 10 वर्ष की आयुवर्ग की बच्चियों में जल्द तरुणाई आने के मामले बढ़ते जा रहे हैं। चिकित्साशास्त्रियों का कहना है कि इस उम्र में बच्चों के स्वभाव में आक्रामकता, उत्तेजना एवं तेजी से मनोभाव बदलने के लक्षणों को तरुणाई आने की प्रक्रिया के रूप में देखा जा सकता है।

चंडीगढ़ के परास्नातक चिकित्सा विज्ञान शिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान (पीजीआईएमईआर) में प्राध्यापक आदर्श कोहली ने कहा, "दुर्भाग्य से यह सच है। आक्रामकता, उत्तेजना एवं मनोभावों में तेज बदलाव पहले जहां किशोरियों में पाया जाता था, अब आठ से 10 वर्ष की बच्चियों में देखा जाने लगा है।" उन्होंने तरुणाई आने की उम्र घटने की बात स्वीकार की।

पीजीआईएमईआर द्वारा किए गए एक अध्ययन का हवाला देते हुए आदर्श ने बताया कि आठ से 10 वर्ष की बच्चियों में जल्द यौवन आने के लक्षण पाए गए। यह अध्ययन चार से 12 वर्ष के 400 बच्चों पर किया गया है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के मनोरोग विभाग में नैदानिक मनोचिकित्सक मंजू मेहता के अनुसार, यौवन आने के उम्र में आई कमी चिंता का विषय है और परिजनों को ज्यादा समझदारी से काम लेना होगा।

इस तरह के मामलों में मीडिया और टीवी की संभावित भूमिका पर मंजू ने कहा, "टेलीविजन पर बच्चों के लिए विशेष तौर पर तैयार किए गए कार्यक्रमों एवं खबरों का प्रसारण होना चाहिए। माता-पिता को यह सुनिश्चित करना होगा कि बच्चे ऐसे कार्यक्रम देखें जिनसे उनमें नई-नई रूचियां पैदा हो सकें।"

उन्होंने आगे कहा कि परिजनों को बच्चों की गतिविधियों में अधिक से अधिक सम्मिलित होने की जरूरत भी है। एक सात वर्षीय बच्ची में आए यौवन से जुड़े मामले पर किए गए अध्ययन का हवाला देते हुए मंजू मेहता ने बताया कि परिजनों को अपने बच्चों के लिए अधिक से अधिक मददगार की भूमिका निभानी होगी। उन्होंने कहा, "जब बच्चियां इस अवस्था से गुजरती हैं तो परिजनों को अधिक समझदारी से काम लेना होगा, क्योंकि इस अवस्था में मानसिक समस्याएं होने की आशंका सर्वाधिक रहती है।" 

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'गया का तिलकुट' बिना मकर संक्रांति अधूरी

मकर संक्रांति के दिन लोगों के भोजन में आम तौर पर चूड़ा-दही और तिलकुट शामिल होता है और तिलकुट की बात हो रही हो और उसमें गया की तिलकुट की चर्चा न हो, यह तो संभव नहीं। गया का तिलकुट पूरे देश में ही नहीं, विदेशों में भी काफी पसंद किया जाता है। मकर संक्रांति यानी 14 जनवरी को लेकर बिहार की गलियों से लेकर सड़कों तक में तिलकुट की दूकानें सज गई हैं। गया की तिलकुट बिहार और झारखंड में ही नहीं पूरे देश में भी प्रसिद्ध है।

मकर संक्रांति के एक महीने पहले से ही बिहार के गया की सड़कों पर तिलकुट की सोंधी महक और तिल कूटने की 'धम-धम' आवाज लोगों को मकरसंक्रांति की याद दिला देती है। गया के तिलकुट के स्वाद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बोधगया में जनवरी महीने में आने वाला कोई भी पर्यटक गया का तिलकुट ले जाना नहीं भूलता, चाहे ये पर्यटक देश के हों या विदेशी। बोधगया में पिछले महीने काग्यू मोनलम पूजा में आए विदेशी बौद्ध धर्मावलंबी भी गया का तिलकुट खरीद कर अपने-अपने घर ले गए।

मकर संक्रांति के एक से डेढ़ महीने पूर्व से यहां तरह-तरह के तिलकुट बनने लगते हैं। गया में हाथ से कूटे जाने वाले तिलकुट न केवल खास्ता होते हैं, बल्कि यह कई दिनों तक खास्ता रहते हैं। गया के इस सांस्कृतिक मिष्ठान्न की अपनी अलग पहचान है। हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन (14 जनवरी) तिल की वस्तु दान देने और खाने से पुण्य की प्राप्ति होती है। इसी मान्यता को लेकर धर्म नगरी गया में करीब डेढ़ सौ वर्ष पूर्व तिलकुट बनाने का कार्य प्रारंभ हुआ था।

गया के प्रसिद्ध तिलकुट प्रतिष्ठान श्रीराम भंडार के कारीगर महावीर आईएएनएस को बताते हैं कि गया में रमना मुहल्ले में पहले तिलकुट निर्माण का कार्य प्रारंभ हुआ। वैसे अब टेकारी रोड, कोयरीबारी, स्टेशन रोड सहित कई इलाकों में कारीगर हाथ से कूटकर तिलकुट का निर्माण करते हैं, परंतु रमना रोड और टेकारी के कारीगरों द्वारा बने तिलकुट आज भी बेहद लजीज होते हैं। वे बताते हैं कि गया में कुछ ऐसे परिवार भी हैं जिनका यह खानदानी पेशा बन गया है।

खास्ता तिलकुट के लिए प्रसिद्ध गया का तिलकुट झारखंड, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र आदि अन्य राज्यों में भेजा जाता है। तिलकुट के एक अन्य दुकानदार रामदेव कहते हैं कि इस वर्ष तिलकुट के व्यापार पर भी महंगाई की मार पड़ी है। इस वर्ष तिलकुट की कीमत में करीब 20 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। हालांकि वे कहते हैं कि महंगे तिलकुट होने के बावजूद लोग तिलकुट खरीद जरूर रहे हैं, लेकिन उसकी मात्रा में कमी आ गई है। पिछले वर्ष तिल 120 रुपये प्रति किलोग्राम मिल जाता था, पर इस वर्ष तिल की कीमतों में भी बढ़ोत्तरी हुई है।

वे कहते हैं कि आम तौर पर मकर संक्रांति के मौके पर तिलकुट की बिक्री में बढ़ोत्तरी हो जाती है परंतु बोधगया में आए विदेशी पर्यटक भी यहां के तिलकुट ले जाते हैं, जिस कारण यह व्यवसाय साल भर चलता रहता है। तिलकुट के एक अन्य कारीगर मुकुंद प्रसाद बताते हैं कि तिलकुट कई प्रकार के होते हैं। मावेदार तिलकुट, खोवा तिलकुट, चीनी तिलकुट, गुड़ तिलकुट बाजार में मिलते हैं। हर प्रकार के तिलकुट बनाने में काफी मेहनत लगती है, लेकिन उसके अनुसार मजदूरी नहीं मिलती है।

वह कहते हैं कि तिलकुट बनाने का कार्य ठंड के मौसम में जरूर मिल जाता है, परंतु शेष दिनों अन्य कार्य करने पड़ते हैं। उन्होंने बताया कि गया के तिलकुट कारीगर अब राज्य के अन्य शहरों में भी जाने लगे हैं। गया में प्रत्येक वर्ष तिलकुट का बाजार सजा रहता है। देश-विदेश से आने वाले पर्यटक अपने साथ गया के तिलकुट जरूर ले जाना चाहते हैं। विदेशियों को खोया वाला तिलकुट बहुत पसंद आता है। गया में तिलकुट के अलावा 'खूबी' मिठाई की भी अलग पहचान है। यहां तिलकुट खरीदने वाले खूबी भी खरीदते हैं हालांकि मकर संक्रांति के दौरान खूबी की बिक्री में कुछ गिरावट आ जाती है। 

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लोहड़ी: प्रेम-सौहार्द का पर्व

लोहड़ी उत्तर भारत का एक प्रसिद्ध त्योहार है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, लोहड़ी मकर संक्रांति के एक दिन पहले मनाई जाती है और इस बार लोहड़ी का पर्व 13 जनवरी दिन सोमवार को मनाया जा रहा है| लोहड़ी को सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण में आने का स्वागत पर्व भी माना जाता है। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल एवं कश्मीर में इस त्यौहार की सबसे ज्यादा धूम रहती है।

लोहड़ी से 20 से 25 दिन पहले ही बालक एवं बालिकाएँ 'लोहड़ी' के लोकगीत गाकर लकड़ी और उपले इकट्ठे करते हैं। संचित सामग्री से चौराहे या मुहल्ले के किसी खुले स्थान पर आग जलाई जाती है। मुहल्ले या गाँव भर के लोग अग्नि के चारों ओर आसन जमा लेते हैं। घर और व्यवसाय के कामकाज से निपटकर प्रत्येक परिवार अग्नि की परिक्रमा करता है। रेवड़ी अग्नि की भेंट किए जाते हैं तथा ये ही चीजें प्रसाद के रूप में सभी उपस्थित लोगों को बाँटी जाती हैं। घर लौटते समय 'लोहड़ी' में से दो चार दहकते कोयले, प्रसाद के रूप में, घर पर लाने की प्रथा भी है।

लोहड़ी के दिन सुबह से ही बच्चे घर–घर जाकर गीत गाते हैं तथा प्रत्येक घर से लोहड़ी माँगते हैं। यह कई रूपों में उन्हें प्रदान की जाती है। जैसे तिल, मूँगफली, गुड़, रेवड़ी व गजक। पंजाबी रॉबिन हुड दूल्हा भट्टी की प्रशंसा में गीत गाते हैं। कहते हैं कि दुल्ला भट्टी एक लुटेरा हुआ करता था लेकिन वह हिंदू लड़कियों को बेचे जाने का विरोधी था और उन्हें बचा कर वह उनकी हिंदू लड़कों से शादी करा देता था इस कारण लोग उसे पसंद करते थे और आज भी लोहड़ी गीतों में उसके प्रति आभार व्यक्त किया जाता है|

हिन्दू शास्त्रों में यह मान्यता है कि लोहड़ी के दिन इस आग में जो भी समर्पित किया जाता है वह सीधे हमारे देवों-पितरों को जाता है| इसलिए जब लोहड़ी जलाई जाती है तो उसकी पूजा गेहूं की नयी फसल की बालियों से की जाती है| लोहडी के दिन अग्नि को प्रजव्व्लित कर उसके चारों ओर नाच-गाकर शुक्रिया अदा किया जाता है|

यूं तो लोहडी उतरी भारत में प्रत्येक वर्ग, हर आयु के जन के लिये खुशियां लेकर आती है| परन्तु नवविवाहित दम्पतियों और नवजात शिशुओं के लिये यह दिन विशेष होता है| युवक -युवतियां सज-धज, सुन्दर वस्त्रों में एक-दूसरे से गीत-संगीत की प्रतियोगिताएं रखते है| लोहडी की संध्यां में जलती लकडियों के सामने नवविवाहित जोडे अपनी वैवाहिक जीवन को सुखमय व शान्ति पूर्ण बनाये रखने की कामना करते है| सांस्कृतिक स्थलों में लोहडी त्यौहार की तैयारियां समय से कुछ दिन पूर्व ही आरम्भ हो जाती है|

क्यों मनाई जाती है लोहड़ी-

कंस सदैव बालकृष्ण को मारने के लिए नित नए प्रयास करता रहता था। एक बार जब सभी लोग मकर संक्रांति का पर्व मनाने में व्यस्थ थे कंस ने बालकृष्ण को मारने के लिए लोहिता नामक राक्षसी को गोकुल में भेजा था, जिसे बालकृष्ण ने खेल-खेल में ही मार डाला था। लोहिता नामक राक्षसी के नाम पर ही लोहड़ी उत्सव का नाम रखा। उसी घटना की स्मृति में लोहड़ी का पावन पर्व मनाया जाता है।

लोहड़ी पर गिद्दा व भांगड़ा की धूम

लोहडी़ के पर्व पर लोकगीतों की धूम मची रहती है, चारों और ढोल की थाप पर भंगड़ा-गिद्दा करते हुए लोग आनंद से नाचते नज़र आते हैं| लोहडी के दिन में भंगडे की गूंज और शाम होते ही लकडियां की आग और आग में डाले जाने वाले खाद्धानों की महक एक गांव को दूसरे गांव व एक घर को दूसरे घर से बांधे रखती है| यह सिलसिला देर रात तक यूं ही चलता रहता है| बडे-बडे ढोलों की थाप, जिसमें बजाने वाले थक जायें, पर पैरों की थिरकन में कमी न हों, रेवडी और मूंगफली का स्वाद सब एक साथ रात भर चलता रहता है|

पौष की विदाई और माघ का आगमन-

लोहडी पर्व मकर संक्रान्ति से ठीक एक दिन पहले मनाया जाता है तथा इस त्यौहार का सीधा संबन्ध सूर्य के मकर राशि में प्रवेश से होता है| लोहड़ी पौष की आख़िरी रात को मनायी जाती है जो माघ महीने के शुभारम्भ व उत्तरायण काल का शुभ समय के आगमन को दर्शाता है और साथ ही साथ ठंड को दूर करता हुआ मौसम में बदलाव का संकेत बनता है|

बिठूर: ब्रम्हा जी ने यहीं की थी सृष्टि की रचना

महान क्रांतिकारी तात्या टोपे, नाना राव पेशवा और झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई जैसे क्रांतिकारियों की यादें अपने दामन में समेटे हुए है बिठूर। यह ऐसा दर्शनीय स्थल है जिसे ब्रह्मा, महर्षि वाल्मीकि, वीर
बालक ध्रुव, माता सीता, लव कुश ने किसी न किसी रूप में अपनी कर्मस्थली बनाया। रमणीक दृश्यों से भरपूर यह जगह सदियों से श्रद्धालुओं और पर्यटकों को लुभा रही है। तो आइये शुरू करते हैं बिठूर की यात्रा|
सन् 1857 में भारतीय स्वतंत्रता का प्रथम संग्राम बिठूर में ही प्रारम्भ हुआ था। यह शहर उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर से 22 किलोमीटर दूर कन्नौज रोड़ पर स्थित है। पवित्र पावनी गंगा के किनारे बसा बिठूर का कण-कण नमन के योग्य है। यह दर्शनीय इसलिए है कि महाकाव्य काल से इसकी महिमा बरकरार है। यह महर्षि वाल्मीकि की तपोभूमि है। यह क्रांतिकारियों की वीरभूमि है। यहाँ महान क्रांतिकारी तात्या टोपे ने क्रांति मचा दी थी। यहाँ नाना साहब पेशवा की यादें खण्डहरों के बीच बसती हैं। यही नहीं तपस्वी बालक ध्रुव और उसके पिता उत्तानपाद की राजधानी भी कभी यहीं पर थी। 
कहते हैं कि 'ध्रुव का टीला' ही उस समय ध्रुव के राज्य की राजधानी थी। आज राजधानी की झलक देखने को नहीं मिलती लेकिन ऐतिहासिकता की कहानी यहाँ के खण्डहर सुनाते हैं। बिठूर के किनारे से होकर गंगा कल-कल करती बहती है। सुरम्यता का आलम यह है कि जिधर निकल जाइए, मन मोहित हो जाता है। कहते हैं कि इसी स्थान पर भगवान राम ने सीता का त्याग किया था और यहीं संत वाल्मीकि ने तपस्या करने के बाद पौराणिक ग्रंथ रामायण की रचना की थी।
dhruv ashram
lav kush mandir
बिठूर के विषय में कहा जाता है कि ब्रह्मा ने वहीं पर सृष्टि रचना की थी और सृष्टि रचना के पश्चात अश्वमेध यज्ञ किया था उस यज्ञ के स्मारक स्वरूप उन्होंने घोड़े की एक नाल वहां स्थापित की थी, जो ब्रह्मावर्त घाट के ऊपर अभी तक विद्यमान है। इसे ब्रह्मनाल या ब्रह्म की खूंटी भी कहते हैं क्योंकि महर्षि वाल्मीकि की यह तपोभूमि है, इसलिए इसका राम कथा से जुड़ाव स्वाभाविक है। धोबी के ताना मारने के बाद जब राजा राम ने सीता को राज्य से निकाला तो उन्हें यहाँ पर वाल्मीकि के आश्रम में शरण मिली थी। यहीं पर उनके दोनों पुत्र लव और कुश का जन्म हुआ।

यही नहीं जब मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने अश्वमेघ यज्ञ किया तो उनके द्वारा छोड़े गए घोड़े को यहीं पर लव-कुश ने पकड़ा। ज़ाहिर है कि इस तरह यह भूमि प्रभु राम और माता सीता के आख़िरी मिलन की भूमि है। भगवान शंकर ने मां पार्वती देवी को इस तीर्थस्थल का महात्म्य समझाते हुए कहा है-

ब्रह्मवर्तस्य माहात्म्यं भवत्यै कथितं महत्।
यदा कर्णन मात्रेण नरो न स्यात्स्नन्धयः।
 
 यही नहीं, सन 1818 में अंतिम पेशवा बाजीराव अंग्रेज़ों से लोहा लेने का मन बनाकर बिठूर आ गए। नाना साहब पेशवा ने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ क्रांति का बिगुल इसी ज़मीन पर बजाया। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का शैशवकाल यहीं बीता। इस ऐतिहासिक भूमि को तात्या टोपे जैसे क्रांतिकारियों ने अपने ख़ून से सींचकर उर्वर बनाया है। यहाँ क्रांतिकारियों की गौरव गाथाएँ आज भी पर्यटक सुनने आते हैं।

बिठूर के दार्शनिक स्थल निम्न प्रकार है| पहले तो बात करते हैं वाल्मीकि आश्रम की| हिन्दुओं के लिए इस पवित्र आश्रम का बहुत महत्व है। यही वह स्थान है जहां रामायण की रचना की गई थी। संत वाल्मीकि इसी आश्रम में रहते थे। राम ने जब सीता का त्याग किया तो वह भी यहीं रहने लगीं थीं। इसी आश्रम में सीता ने लव-कुश नामक दो पुत्रों को जन्म दिया। यह आश्रम थोड़ी ऊंचाई पर बना है, जहां पहुंचने के लिए सीढि़यां बनी हुई हैं। इन सीढि़यों को स्वर्ग जाने की सीढ़ी कहा जाता है। आश्रम से बिठूर का सुंदर दृश्य देखा जा सकता है।

ब्रह्मावर्त घाट- इसे बिठूर का सबसे पवित्रतम घाट माना जाता है। भगवान ब्रह्मा के अनुयायी गंगा नदी में स्नान करने बाद खड़ाऊ पहनकर यहां उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने यहां एक शिवलिंग स्थापित किया था, जिसे ब्रह्मेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा यहाँ एक लाल पत्थरों से बना हुआ घाट है जिसे पाथर घाट कहते हैं| अनोखी निर्माण कला के प्रतीक इस घाट की नींव अवध के मंत्री टिकैत राय ने डाली थी। घाट के निकट ही एक विशाल शिव मंदिर है, जहां कसौटी पत्थर से बना शिवलिंग स्थापित है।

यहाँ एक टीला भी है जिसे आज ध्रुव टीला के नाम से जाना जाता है| कहते हैं कि बालक ध्रुव ने एक पैर पर खड़े होकर तपस्या की थी। ध्रुव की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने उसे एक दैवीय तारे के रूप में सदैव चमकने का वरदान दिया था। इन धार्मिक स्थानों के अलावा भी बिठूर में राम जानकी मंदिर, लव-कुश मंदिर, हरीधाम आश्रम, जंहागीर मस्जिद और नाना साहब स्मारक अन्य दर्शनीय स्थल हैं। 




वर्ष 2014 के पर्व व त्यौहार

जनवरी

1 जनवरी – नववर्ष 2014 ई. प्रारम्भ, देवपितृ कार्ये अमावस्या, वकुला अमावस्या (उड़ीसा), शहादते इमाम हसन (मु.)
2 जनवरी – चन्द्रदर्शन
3 जनवरी – खिचड़ी महोत्सव (वृंदावन), मु. महीना रवि-उल-अव्वल प्रारम्भ, जोर मेला (पंजाब)
5 जनवरी – गुरु गोविन्दसिंह जयन्ती (नवीनमतानुसार), छप्पन भोग गरुड़ गोविन्द (मथुरा)
7 जनवरी – गुरु गोविन्दसिंह जयन्ती (प्राचीनमतानुसार)
10 जनवरी – शाम्ब दशमी (उड़ीसा)
11 जनवरी – पुत्रदा एकादशी व्रत सर्वेषाम्
12 जनवरी – स्वामी विवेकानन्द जयंती
13 जनवरी – प्रदोष व्रत, लोहड़ी पर्व (पंजाब)
14 जनवरी – मकर संक्रांति, पुण्यकाल दोपहर 13/12 से माघ विहू (असम), गंगा सागर यात्रा प्रारंभ, पोंगल पर्व (केरल)
15 जनवरी – पूर्णिमा व्रत, थल सेना दिवस
16 जनवरी – पौषी पूर्णिमा, माघ स्नान प्रारम्भ, शाकम्भरी जयन्ती
19 जनवरी – संकष्टी श्री गणेश चतुर्थी (संकट चौथ) चन्द्रो. रा. 20/43, दिव्य दर्शन श्री सिद्ध विनायक (गणेश टीला मथुरा), ईद-ए-मौलाद (वारावफात) (मु.)
21 जनवरी – उर्स हजरत निजामुद्दीन (मु.), राष्ट्रीय माघ प्रारम्भ
23 जनवरी – नेताजी सुभाष बोस जयन्ती, श्रीरामानंदाचार्य जंयती
24 जनवरी – कालाष्टमी
26 जनवरी – 65 वाँ भारतीय गणतंत्र दिवस
27 जनवरी – षटतिला एकादशी व्रत (सर्वे.)
28 जनवरी – प्रदोष व्रत, लाला लाजपतराय जयन्ती
29 जनवरी – मेरू त्रयोदशी, मासिक शिवरात्रि
30 जनवरी – मौनी अमावस्या, मेला प्रयागराज, देवपितृकार्य अमावस्या, शहीद दिवस, गाँधी जी पुण्यतिथि,
31 जनवरी – गुप्त नवरात्रि व्रत प्रारम्भ

फरवरी

1 फरवरी – बाबा रामदेव दौज (राजस्थान), लाल दयाल जयंती, चन्द्रदर्शन (मु.15)
2 फरवरी – गौरी तृतीया व्रत, वरद चतुर्थी
3 फरवरी – वरद चतुर्थी, तिल चतुर्थी
4 फरवरी – बसन्त पंचमी, सरस्वती जयन्ती, निराला जयन्ती, दुर्वासा मेला (मथुरा)
5 फरवरी – शीतला षष्ठी (बंगाल), मंदार छठ
6 फरवरी – रथ सप्तमी, श्री दुर्गाष्टमी, भानु व आरोग्य सप्तमी, श्री नर्मदा जयंती, श्री देव नारायण जयन्ती (गुर्जर समाज)
7 फरवरी – भीमाष्टमी, श्री दुर्गाष्टमी व्रत
8 फरवरी – गुप्त नवरात्र समाप्त, विश्व महिला दिवस
9 फरवरी – श्री राधा दामोदर प्राकट्योत्सव (वृंदावन)
10 फरवरी – जया एकादाशी व्रत (सर्वे), भैनी ग्यारस (बंगाल)
11 फरवरी – भीष्म द्वादशी, वेणेश्वर मेला प्रारम्भ (डुंगरपुर)
12 फरवरी – कुंभ संक्रानित, प्रदोष व्रत, विश्वकर्मा जयन्ती, ग्यारहवीं शरीफ (मु.), मेला पंचखंडपीठ प्रा. (राजस्थान)
13 फरवरी – रामचरण स्नेहीज, शाहापुरा (मेवाड़), ललिता जयन्ती
14 फरवरी – माघी पूर्णिमा, पूर्णिमा व्रत, माघ स्नान समाप्त, संत रविदास जयंती, वेलेनटाइन डे, माही नदी स्नान मेला (राजस्थान)
18 फरवरी – श्री गणेश चतुर्थी व्रत
19 फरवरी – शिवाजी जयन्ती
22 फरवरी – कालाष्टमी, श्रीनाथ जी पाटोत्सव (नाथद्वारा)
23 फरवरी – समर्थ गूरू रामदास जयन्ती
24 फरवरी – महर्षि दयायन्द सरस्वती जयन्ती, समर्थ गुरु रामदास नवमी
25 फरवरी – विजया एकादशी व्रत (स्मार्त)
26 फरवरी – विजया एकादशी व्रत (वैष्णव)
27 फरवरी – श्री महाशिवरात्रि पर्व व व्रत, प्रदोष व्रत, श्री वैधनाथ जयन्ती, मेला राठौरा (रामपुरा, उत्तर प्रदेश)
28 फरवरी – शिव खप्पर पूजा, अमावस्या
28 फरवरी – राष्ट्रीय विज्ञान दिवस

मार्च

1 मार्च – शनैश्चरी अमावस्या, देवपितृकार्य एवं भोला अमावस्या, शिव खप्पर पूजा
2 मार्च – चन्द्रदर्शन
3 मार्च – चन्द्रदर्शन, फुलैरा दौज, स्वामी रामकृष्ण परमहंस जयंती
4 मार्च – विनायक चतुर्थी
8 मार्च – श्री दुर्गाष्टमी, होलिकाष्टक प्रारम्भ, विश्व महिला दिवस, दादू दयाल जयन्ती
10 मार्च – लट्ठमार होली (बरसाना)
11 मार्च – लट्ठमार होली (नन्दगांव)
12 मार्च – आमलकी एकादशी व्रत, मेला खाटू श्यामजी प्रारम्भ (राजस्थान), रामस्नेही फोलडोल शाहपुरा (मेवाड़), लटठमार होली (मथुरा-वृंदावन)
13 मार्च – गोविन्द द्वाद्वशी
14 मार्च – मीन संक्रानित, शिव प्रदोष व्रत, मेला खाटू श्याम जी
16 मार्च – पूर्णिमा व्रत, होलिका दहन, सायं 7 बजे, फाल्गुन पूर्णिमा, चैतन्य महाप्रभु जयंती
17 मार्च – होली (धुलैड़ी), गणगौरी पूजा (राजस्थान) प्रारम्भ, पंखा मेला झज्जर (हरियाणा), मेला रामधाम खेड़ापा (जोधपुर), विश्व विकलांग दिवस
18 मार्च – संत तुकाराम जयन्ती, श्री रंगजी उत्सव प्रारम्भ (वृंदावन)
20 मार्च – श्री गणेश चतुर्थी व्रत (चन्द्रोदय 22/3)
21 मार्च – रंग पंचमी, शीतला पूजा (बासौड़ा)
22 मार्च – एकनाथ षष्ठी
23 मार्च – श्री शीतला माता पूजन (बासौड़ा) मेला नौचन्दी प्रारम्भ (मेरठ), मेला नाहरपुर (एटा)
24 मार्च – श्री शीतला अष्टमी, बासौड़ा पूजन, श्री ऋषभदेव जयंती, मेला केशरिया (मेवाड़), मेला श्री केला देवी (करौली) प्रारम्भ (राजस्थान), श्री रंगनीरथोत्सव (वृंदावन)
25 मार्च – बुढ़वा मंगल पर्व
26 मार्च – दशमाता व्रत
27 मार्च – पापमोचनी एकादशी व्रत, पंचक 19/50 से प्रारम्भ
28 मार्च – प्रदोष व्रत, रंग तेरस
29 मार्च – मेला पृथुदक पिहोवा (हरियाणा)
30 मार्च – संवत 2070 पूर्ण, देवपितृकार्ये अमावस्या
31 मार्च – नव संवत 2071 प्रारम्भ, चैत्र नवरात्र प्रारम्भ घट स्थापना प्रात: 7 बजे, गुड़ी पड़वा, गौतम जयंती, चेतीचन्द, श्री झूलेलाल जयंती (सिन्धी), डा. हेडगेवार जयन्ती

अप्रैल

1 अप्रैल – बैंक वार्षिक लेखाबंदी, श्रृंगार (सिंधारा) दौज, मूर्ख दिवस, चन्द्रदर्शन, चेटीचंड
2 अप्रैल – मेला गणगौर (जयपुर), उत्सव (उदयपुर), गणगौरी पूजा, मत्स्य जयंती, सरहुल (बिहार), मु. महीना जमादिलाखर प्रारम्भ
4. अप्रैल – श्री पंचमी
5. अप्रैल – स्कंद षष्ठी व्रत, श्री यमुना जयंती, मेला यमुना छठ (मथुरा)
7 अप्रैल – श्री दुर्गाष्टमी, मेला मनसा देवी, मेला नरी सेमरी
8 अप्रैल – श्री दुर्गानवमी, श्रीराम नवमी, नवरात्र समाप्त, लटठ पूजा नरी सेमरी देवी (मथुरा)
9 अप्रैल – धर्मराज दशमी
11 अप्रैल – कामदा एकादशी व्रत (सर्वे.), फूल डोलोत्सव ग्यारस (वृंदावन), फूल बंगला प्रारम्भ श्री बिहारीजी
11 अप्रैल – कामदा एकादशी व्रत, लक्ष्मीकांत डोलोत्सव
12 अप्रैल – प्रदोष व्रत
13 अप्रैल – श्री महावीर स्वामी जयन्ती (जैन)
14 अप्रैल – डा. भीमराव अम्बेडकर जयन्ती, पूर्णिमा व्रत, मेष संक्रान्ति, शिव दमनक चर्तुदर्शी, बंगाली सं. 1421 प्रारम्भ
15 अप्रैल – पूर्णिमा व्रत, हनुमान जयन्ती, मेष संक्रान्ति, वैशाखी, चैत्री पूर्णिमा, वैशाख स्नान प्रारम्भ, मेला सालासरधाम बालाजी (राजस्थान)
15 अप्रैल – श्री हनुमान जयंती, चैत्र पूर्णिमा, मेला सालासर, बालाजी
18 अप्रैल – श्री गणेश चतुर्थी व्रत, चन्द्रोदय 22/3, गुड फॉइडे
19 अप्रैल – अनुसूया जयन्ती
20 अप्रैल – गुरु तेगबहादुर जयन्ती
22 अप्रैल – बूढ़ा बासौड़ा (शीतला पूजा)
23 अप्रैल – बाबू कुंवर सिंह जयन्ती (बिहार)
25 अप्रैल – वरुथिनी एकादशी व्रत (सर्वे.) श्री बल्लभाचार्य 2817 वीं जयन्ती,
26 अप्रैल – प्रदोष व्रत
27 अप्रैल – मासिक शिवरात्रि व्रत
28 अप्रैल – पितृकार्य अमावस्या, मेला पीपल जातर, कुल्लू (हिमाचल प्रदेश)
29 अप्रैल – देवकार्ये अमावस्या, शुकदेव मुनि जयंती
30 अप्रैल – देव दामोदर तिथि (असम), चन्द्रदर्शन (मु.30)

मई

1 मई – शिवाजी जयन्ती, परशुराम जयन्ती, मजदूर दिवस, मेला ख्वाजा साहब अजमेर शरीफ उर्स प्रारंभ
2 मई – अक्षय तृतीय, चरण दर्शन श्री बांके बिहारी जी (वृंदावन), श्री बद्रीनाथ केदारनाथ दर्शन प्रारम्भ (चारो धाम), सत्तू तीज
4 मई – श्री आद्यशंकराचार्य 1225 वीं जयंती, सूरदास 536 वीं जयंती
5 मई – श्री रामानुजाचार्य जयन्ती
6 मई – गंगा सप्तमी, श्री गंगा जयंती
7 मई – टैगौर जयंती, श्री दुर्गा अष्टमी, श्री बगुलामुखी जयंती, मेला भातृहरि
8 मई – सीता नवमी
10 मई – मोहिनी एकादशी व्रत सर्वेषाम
12 मई – प्रदोष व्रत
12 मई – शिव प्रदोष व्रत
13 मई – श्री नृरसिंह जयन्ती, नृसिंह चौदस, छिन्नमस्ता जयंती, हजरत अली जन्म (मु.)
14 मई – पूर्णिमा व्रत, वृष संक्रान्ति, बुद्ध पूर्णिमा, बुद्ध जयंती, कूर्म जयंती, वैशाख स्नान पूर्ण, देवयानी यात्रा सांभरलेक (राजस्थान), पीपल पूजन, मेला बंजार प्रारम्भ, (कुल्लू) 4 दिन, मेला डुंगरी जातर (मनाली) प्रारंभ 2 दिन
16 मई – नारद जयन्ती, वीणादान, वन विहार परिक्रमा (वृंदावन)
17 मई – गणेश चतुर्थी व्रत (चन्द्रोदय 21/48)
21 मई – कालाष्टमी
24 मई – अपरा एकादशी व्रत (सर्वे.), भद्रकाली ग्यारस (पं.)
26 मई – प्रदोष व्रत, मासिक शिवरात्रि व्रत, शब्बे मिराज (मु.)
28 मई – श्री शनि जयंती, देवपितृकार्ये अमावस्या, वट पूजन परिक्रमा कोकिला वन (कोसी) मथुरा, वट सावित्री पूजा, भावुका अमावस्या
29 मई – श्रीगंगा दशहरा मेघ स्नान प्रारंभ
30 मई – चन्द्रदर्शन
31 मई – महाराणा प्रताप जयन्ती, रंभा व्रत, मेला हल्दी घाटी (मेवाड़), मु. महीना सावान प्रारम्भ

जून

3 जून – सांई टेऊराम पुण्य तिथि
4 जून – अरण्य षष्ठी, विन्ध्यावासिनी पूजा, जामित्र षष्ठी
6 जून – श्री दुर्गाष्टमी, धूमावती जयन्ती, मेला क्षीर भवानी (कश्मीर)
7 जून – महेश नवमी (माहेश्वरी समाज)
8 जून – श्री गंगा दशहरा, श्री रामेश्वर प्रतिष्ठा, श्री बटुक भैरव जयन्ती, नौवे गुरु बोहरे (पं.) आचार्य श्रीराम शर्मा जी पुण्य तिथि (मथुरा)
9 जून – निर्जला एकादशी व्रत, मेला खाटू श्यामजी, भैनी ग्यारस
10 जून – प्रदोष व्रत, वट सावित्री प्रारम्भ:
12 जून – पूर्णिमा व्रत
13 जून – संत कबीर जयन्ती, ज्येष्ठ पूर्णिमा, जगन्नाथ जी स्नान यात्रा प्रारम्भ, वट सावित्री व्रत पूर्ण
14 जून – मेला भूंतर (कुल्लू) प्रारम्भ 3 दिन, गुरु हरगोविन्द जयंती, शब्बेरात (मु.)
15 जून – मिथुन संक्रनित
16 जून – श्री गणेश चतुर्थी व्रत (चन्द्रोदय 22/18)
19 जून – कालाष्टमी, पंढरपुरयात्रा (महाराष्ट्र)
20 जून – कालाष्टमी
22 जून – व्यास पुण्यतिथि
23 जून – योगिनी एकादशी व्रत (वैष्णव) देवराह बाबा पुण्य तिथि (वृंदावन)
24 जून – प्रदोष व्रत
25 जून – मासिक शिवरात्रि व्रत
27 जून – देवपितृकार्य अमावस्या
28 जून – गुप्त नवरात्रि प्रारम्भ
29 जून – श्री जगन्नाथ रथ यात्रा (पुरी), ठाकुरजी रथदर्शन (बल्लभाकुल सम्प्रदार्य मंदिरों में), मनोरथ द्वितीया (बंगाल), चन्द्रदर्शन
30 जून – रमजान पाक रोजे प्रारम्भ (मु.)

जुलाई

1 जुलाई – हेरा पंचमी
2 जुलाई – स्कंद छठ, कौमारिया छठ, सांई टेऊराम जयन्ती
4 जुलाई – विवस्वत् सप्तमी (सूर्य पूजा)
5 जुलाई – श्री दुर्गाष्टमी
6 जुलाई – भडड्ली नवमी
7 जुलाई – आशा दशमी, भड़रिया नौमी, मेला शरीफ भवानी (का.)
8 जुलाई – देवशयनी एकादशी व्रत (सर्वे.), चातुर्मास व्रत प्रा., मेला मुडि़या पूनो, श्री गोवर्धन परिक्रमा प्रारम्भ, दादा मेला (अजमेर)
9 जुलाई – चार्तुमास व्रत प्रारम्भ
10 जुलाई – प्रदोष व्रत, जया पार्वती व्रत
11 जुलाई – पूर्णिमा व्रत
12 जुलाई – गुरु पूर्णिमा, व्यास पूजा, सन्यासी चातुर्मास व्रत प्रारंभ, कोकिल व्रत, वायु परीक्षा, मुडि़या पूनौ मेला गोवर्धन, मेला श्री गोवर्धन परिक्रमा समाप्त
13 जुलाई – नक्त व्रत प्रारम्भ, अशून्य शयन व्रत
15 जुलाई – श्री गणेश चतुर्थी व्रत (चन्द्रोदय 21/40)
16 जुलाई – नागपंचमी (राजस्थान) भैय्या पाँचे, कर्क संक्रान्ति, शहादते हजरत अली (मु.)
22 जुलाई – कामिका एकादशी व्रत (सर्वे.)
24 जुलाई – प्रदोष व्रत
25 जुलाई – मासिक शिवरात्रि व्रत, जुमातुल विदा (मु.)
26 जुलाई – देवीपितृ कार्यो अमावस्या, हरियाली अमावस्या
28 जुलाई – सोमेश्वर पूजन, चन्द्रदर्शन, स्वामी करपात्री जयंती
29 जुलाई – तृतीया व्रत, श्रृंगार (सिंधारा दौज, राजस्थान), ईद-उल-फितर (मीठी ईद), मु. महीना सव्वाल प्रारम्भ
31 जुलाई – हरियाली तीज (स्वर्ण गौरी व्रत), मधुश्रवा तीज, सिंधारा तीज, वरद चतुर्थी, दूर्वा गणपति व्रत, तीज मेला (जयपुर, उदयपुर)

अगस्त

1 अगस्त – कल्की जयन्ती, नाग पंचमी (देशाचारे), तक्षक पूजा, तिलक पुण्यतिथि
2 अगस्त – वर्ण षष्ठी
3 अगस्त – शीतला सप्तमी, गोस्वामी तुलसीदास जयन्ती
4 अगस्त – दुर्गाष्टमी, मेला श्री नयनादेवी व चिन्तपूर्णी
7 अगस्त – पवित्रा एकादशी व्रत (सर्वे.)
8 अगस्त – प्रदोष व्रत, दधिभक्षण त्याग
10 अगस्त – रक्षाबन्धन, श्रावणी पूर्णिमा, पूर्णिमा व्रत, श्री गायत्री जयन्ती, श्री बलभद्र पूजा (उड़ीसा), बंगवाल उत्सव (उत्तराखण्ड), अमरनाथ यात्रा (कश्मीर) संपन्न, संस्कृत दिवस, हयग्रीव जयंती, अमरनाथ दर्शन पूर्णिमा
12 अगस्त – कज्जली (बूढ़ी) तीज, भीमचण्डी देवी जयंती
13 अगस्त – चतुर्थी व्रत
13 अगस्त – चतुर्थी व्रत चन्द्रो. 21/3, सातूड़ी तीज
15 अगस्त – 68 वाँ स्वतंत्रता दिवस, रक्षापंचमी, पंचक 11/03 से समाप्त हलषष्ठी
16 अगस्त – शीतला व्रत, चन्द षष्ठी व्रत
17 अगस्त – श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत (सर्वे.), संत ज्ञानेश्वर जयन्ती, आधाकाली जयंती
18 अगस्त – गोगा नवमी, नन्दोत्सव (गोकुल), नंदगाँव
21 अगस्त – अजा एकादशी व्रत (वैष्णव), वत्स पूजा, जैन पयूर्षण
22 अगस्त – प्रदोष व्रत, गोवत्स पूजा
23 अगस्त – मासिक शिवरात्रि व्रत
25 अगस्त – कुशाग्रहणी अमावस्या, सोमती अमावस्या, देवपितृकार्य अमावस्या, सती पूजा, मेला राणी सती (झुझनूं), मेला लोहार्गल स्नान (सीकर)
27 अगस्त – रुणिचा मेला प्रारम्भ (जैलसमेर), बाबारामदेव दौज, चन्द्रदर्शन (मु.45)
28 अगस्त – श्री वराह जयंती, हरितालिका व्रत, मु. महीना जिल्काद प्रारम्भ
29 अगस्त – श्री गणेश चतुर्थी, महोत्सव प्रारम्भ (महाराष्ट्र), डन्डाचौथ, (चन्द्रदर्शन निषेध), पंत जयन्ती
30 अगस्त – ऋषि पंचमी, जैन संवत्सरी
31 अगस्त – सूर्य छठ, ललिता छठ, हल छठ, श्री बलराम जयन्ती, बलदेव छठ (ब्रज मंडल), महालक्ष्मी व्रत प्रारंभ, मेला हाथरस

सितम्बर

1 सितम्बर – मुक्ताभरण सप्तमी व्रत
2 सितम्बर – श्री राधा अष्टमी (बरसाना), श्री दधीचि जयंती, महालक्ष्मी व्रत पूर्ण, दुर्गाष्टमी, मेला बरसाना
3 सितम्बर – अदु:ख नवमी व्रत, गौरी पूजन, चन्द्रनवमी, मेला रामदेवजी, नवलदुर्ग
4 सितम्बर – मेला तेजाजी (ब्यावर), मेला रामदेव (जै.) पू.
5 सितम्बर – जलझूलनी एकादशी व्रत (सर्वे.), डा. राधाकृष्णन जयंती (शिक्षक दिवस), मेला चार भूजानाथ जी (मेवाड़), ढोल ग्यारस (मध्य प्रदेश), जलझूलनी एकादशी व्रत
6 सितम्बर – प्रदोष व्रत, वामन जयंती, दुग्ध व्रत
8 सितम्बर – पूर्णिमा व्रत, अनन्त चौदस, कदली व्रत, श्राद्ध पक्ष प्रारम्भ, पूर्णिमा श्राद्ध, श्रीगणेश विसर्जनम
9 सितम्बर – प्रौष्ठपदी पूर्णिमा, इंदुला पूर्णिमा, महालय श्राद्ध प्रारम्भ, मेला गया जी
10 सितम्बर – द्वितीया श्राद्ध
11 सितम्बर – तृतीया श्राद्ध
12 सितम्बर – श्री गणेश चतुर्थी व्रत चन्द्रोदय 20/3, चतुर्थी श्राद्ध
13 सितम्बर – पंचमी श्राद्ध, कन्या संक्रान्ति
14 सितम्बर – राष्ट्रभाषा हिन्दी दिवस, षष्ठी श्राद्ध
15 सितम्बर – श्रीमहालक्ष्मी व्रत, सप्तमी श्राद्ध
16 सितम्बर – अशोकाष्टमी, जीवित्पुत्रिका व्रत, अष्टमी श्राद्ध
17 सितम्बर – विश्वकर्मा जयन्ती, मातृनवमी, नवमी श्राद्ध (सौभाग्यवतियों का श्राद्ध दिन)
18 सितम्बर – दशमी श्राद्ध
19 सितम्बर – इन्दिरा एकादशी व्रत (सर्वे.), एकादशी श्राद्ध
20 सितम्बर – द्वाद्वशी श्राद्ध, संन्यासिनी श्राद्ध
21 सितम्बर – त्रयोदशी श्राद्ध, प्रदोष व्रत
22 सितम्बर – चतुर्दशी श्राद्ध, मासिक शिवरात्रि व्रत
23 सितम्बर – सर्वपितृ अमावस्या, सर्वपितृ श्राद्ध अमावस्या, पितृ विसर्जनम्
24 सितम्बर – देवकार्य अमावस्या, नाना-नानी श्राद्ध दिन
25 सितम्बर – शरदीय नवरात्र व्रत प्रारम्भ, घट स्थापना, श्री अग्रसेन जयंती, मेला तारा देवी, बगलामुखी देवी (हिमाचल प्रदेश)
26 सितम्बर – चन्द्रदर्शन
27 सितम्बर – चतुर्थी व्रत, मु. महीना जिल्हेज प्रारम्भ
29 सितम्बर – उपांग ललिता व्रत
30 सितम्बर – बैंक अर्ध-वार्षिक लेखा बन्दी

अक्टूबर

1 अक्टूबर – सरस्वती पूजा
2 अक्टूबर – महाष्टमी, गांधी जयन्ती, शास्त्री जयन्ती, दुर्गाष्टमी, भद्रकाली जयन्ती, सरस्वती बलिदान
3 अक्टूबर – श्रीराम नवमी, दुर्गा नवमी, सरस्वती विसर्जन, नवरात्र समाप्त, शस्त्र पूजा, शमी पूजा
4 अक्टूबर – पापांकुशा एकादशी व्रत (स्मार्त), पंचक 29/11 से प्रारम्भ
5 अक्टूबर – पापांकुशा एकादशी व्रत (वैष्णव), भरत मिलाप, ब्रज यात्रा प्रारम्भ
6 अक्टूबर – शिव प्रदोष व्रत, ईद-उल-जूहा (बकरीद) (मु.)
7 अक्टूबर – शरद पूर्णिमा, पूर्णिमा व्रत कोजागरी व्रत (लक्ष्मी-कुबेर पूजा), मेला शाकम्भरी देवी, व्रत पूर्णिमा
8 अक्टूबर – पूर्णिमा, कार्तिक स्नान प्रारम्भ, श्री बाल्मीकि जयंती, खग्रास चन्द्र ग्रहण, मारवाड उत्सव (जोधपुर)
9 अक्टूबर – पंचक 7/17 पर समाप्त
11 अक्टूबर – करवाचौथ चन्द्रोदय 20//29, करक चतुर्थी व्रत, दशरथ ललिता व्रत
13 अक्टूबर – स्कंद षष्ठी
15 अक्टूबर – अहोई अष्टमी, राधाकुण्ड स्नान (गोवर्धन)
17 अक्टूबर – तुला संक्रांति
19 अक्टूबर – रमा एकादशी व्रत (सर्वे.)
20 अक्टूबर – गोवत्स द्वादशी
21 अक्टूबर – प्रदोष व्रत, धनतेरस, धन्वतंरी जयंती
22 अक्टूबर – छोटी दीपावली, मासिक शिवरात्रि व्रत, दीपदान, नरक चौदस, रूप चौदस, यमतर्पण
23 अक्टूबर – दीपावली, देवपितृकार्ये अमावस्या, श्री महालक्ष्मी व कुबेर पूजा, श्री कमला जयंती, श्री महाकाली जयंती
24 अक्टूबर – श्री गोवर्धन पूजा (अन्नकूटोत्सव), गुजराती नव सं., मेला बटेश्वर प्रारम्भ (आगरा) 15 दिन, बलि पूजा
25 अक्टूबर – भैया दूज (यम द्वितीया) यमुना स्नान (मथुरा), विश्वकर्मा पूजा
26 अक्टूबर – मौर्हरम हिजरी 1436 ई. प्रारम्भ
27 अक्टूबर – दूर्वा गणपति व्रत, छठ मेला प्रारंभ (बिहार)
28 अक्टूबर – सौभाग्य पंचमी, पाण्डव पंचमी, सूर्यछठ
29 अक्टूबर – सूर्य षष्ठी, छठ पूजा (बिहार)
31 अक्टूबर – श्री गोपाष्टमी, दुर्गाष्टमी, गौ पूजा

नवम्बर

1 नवम्बर – अक्षय नवमी, कुष्मांड नवमी, जुगल जोड़ी परिक्रमा (मथुरा-वृंदावन)
2 नवम्बर – कंस वध मेला (मथुरा)
3 नवम्बर – देव प्रबोधिनी एकादशी (देवठान), तुलसी विवाह, भीष्म पंचक प्रारम्भ, तीन वन परिक्रमा (मथुरा), मेला पुष्कर प्रारम्भ
4 नवम्बर – प्रदोष व्रत, मोहर्रम (ताजिया दफन), कालीदास जयंती, मेला खाटू श्यामजी (राजस्थान)
5 नवम्बर – बैकुण्ठ चौदस
6 नवम्बर – कार्तिक पूर्णिमा व व्रत, कार्तिक स्नान समाप्त, गुरु नानक जयंती, मेला रामतीर्थ (हिमाचल प्रदेश), मेला गढगंगा, मेला कपाल मोचन (हरियाणा), भीष्म पंचक समाप्त, मेला पुष्कर पूर्ण
10 नवम्बर – श्री गणेश चतुथी व्रत, चन्द्रोदय 20/40
11 नवम्बर – श्री सत्यसांई जयंती
12 नवम्बर – गुरुतेग बहादुर शहीद दिवस
14 नवम्बर – काल भैरवाष्टमी, बालदिवस (पं. नेहरू जयन्ती)
16 नवम्बर – वृश्चिक संक्रान्ति, श्रीजम्भोनीपु.ति. (बि.समाज)
18 नवम्बर – उत्पत्ति एकादशी व्रत (सर्वे.), वैतरणी व्रत
20 नवम्बर – प्रदोष व्रत, मासिक शिवरात्रि व्रत
22 नवम्बर – देवपितृ अमावस्या, श्रीबालाजी जयंती, मेला पुरमण्डल देविका स्नान (का.), श्री मल्लारी भैरव षटरात्र प्रारम्भ
24 नवम्बर – चंद्रदर्शन
25 नवम्बर – चतुर्थी व्रत, रम्भा तीज व्रत
27 नवम्बर – नागपंचमी, स्कंदषष्ठी, बिहारी पंचमी (श्री बांके बिहारीजी प्राकट्योत्सव) श्री रामजानकी विवाहोत्सव
28 नवम्बर – स्कन्द व चम्पा षष्ठी, मित्र 7, नरसी मेहता जयन्ती
30 नवम्बर – पं. बावलिया पुण्य तिथि (चिड़ावा)

दिसम्बर

2 दिसम्बर – मोक्षदा एकादशी व्रत (सर्वे.) गीता जयन्ती, श्री घालदास जयंती, रामधाम खेड़ापा (जोधपुर)
3 दिसम्बर – अखण्ड द्वादशी
4 दिसम्बर – प्रदोष व्रत, अनंग त्रयोदशी
5 दिसम्बर – पिशाच मोचन श्राद्ध, पूर्णिमा व्रत, गुरु दत्तात्रेय जयंती
6 दिसम्बर – मार्गशीर्ष पूर्णिमा, श्री अन्नपूर्णा जयंती, श्री विधा जयंती, श्री त्रिपुर सुन्दरी जयन्ती, डा अम्बेडकर पुण्य तिथि
7 दिसम्बर – झण्डा दिवस
9 दिसम्बर – श्री गणेश चतुर्थी व्रत, चन्द्रोदय 20/15
11 दिसम्बर – स्वामी करपात्री जी जयंती
13 दिसम्बर – चेहल्लुम (मु.)
16 दिसम्बर – धनु संक्रान्ति, खरमास प्रारम्भ
18 दिसम्बर – सफला एकादशी व्रत (सर्वे.), स्वरूप द्वादसी
19 दिसम्बर – प्रदोष व्रत
20 दिसम्बर – मासिक शिवरात्रि व्रत
21 दिसम्बर – देवपितकार्ये अमावस्या, वकुला अमावस्या
23 दिसम्बर – खिचड़ी महोत्सव (वृंदावन), चन्द्रदर्शन (मु.45)
24 दिसम्बर – मु. महीना रविलावल प्रारम्भ
25 दिसम्बर – क्रिसमिस-डे (बड़ा दिन), ईसा मसीह जयंती
26 दिसम्बर – छप्पन भोग गरुण गोविन्द (मथुरा)
28 दिसम्बर – गुरु गोविन्दसिहं जयंती (प्राचीनमतानुसार)
29 दिसम्बर – दुर्गाष्टमी व्रत
30 दिसम्बर – शाम्ब दशमी
31 दिसम्बर – 2015 नववर्ष पूर्व संध्या

संतान प्राप्ति के लिए रखें पुत्रदा एकादशी का व्रत

हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रतिवर्ष पुत्रदा एकादशी का व्रत दो बार कहा जाता है एक बार पौष माह की शुक्ल पक्ष को तो दूसरा श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है| इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है| पौष माह की पुत्रदा एकादशी उत्तर भारतीय प्रदेशों में ज्यादा महत्वपूर्ण जबकि श्रावण माह की पुत्रदा एकादशी दूसरे प्रदेशों में ज्यादा महत्वपूर्ण है। इस बार पुत्रदा एकादशी 11 अगस्त दिन शनिवार को पड़ रही है|

पुत्रदा एकादशी व्रत का महत्व-

इस व्रत के नाम के अनुसार ही इस व्रत का फल है| जिन व्यक्तियों के संतान होने में बाधाएं आती हैं उनके लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत बहुत ही शुभफलदायक होता है| इसलिए संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को व्यक्ति विशेष को अवश्य रखना चाहिए, जिससे उन्हें मनोवांछित फल की प्राप्ति हो| इस व्रत को रखने के लिए सबसे पहले सुबह स्नानादि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने के पश्चात श्रीहरि का ध्यान करना चाहिए| सबसे पहले धूप दीप आदि से भगवान नारायण की पूजा अर्चना की जाती है, उसके बाद फल- फूल, नारियल, पान सुपारी लौंग, बेर आंवला आदि व्यक्ति अपनी सामर्थ्य अनुसार भगवान नारायण को अर्पित करते हैं| पूरे दिन निराहार रहकर संध्या समय में कथा आदि सुनने के पश्चात फलाहार किया जाता है|

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा-

युधिष्ठिर बोले: श्रीकृष्ण ! कृपा करके श्रावण मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का माहात्म्य बतलाइये । उसका नाम क्या है? उसे करने की विधि क्या है ? उसमें किस देवता का पूजन किया जाता है ?

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा: राजन्! श्रावण मास के शुक्लपक्ष की जो एकादशी है, उसका नाम ‘पुत्रदा’ है ।

‘पुत्रदा एकादशी’ को नाम-मंत्रों का उच्चारण करके फलों के द्वारा श्रीहरि का पूजन करे । नारियल के फल, सुपारी, बिजौरा नींबू, जमीरा नींबू, अनार, सुन्दर आँवला, लौंग, बेर तथा विशेषत: आम के फलों से देवदेवेश्वर श्रीहरि की पूजा करनी चाहिए । इसी प्रकार धूप दीप से भी भगवान की अर्चना करे ।

‘पुत्रदा एकादशी’ को विशेष रुप से दीप दान करने का विधान है । रात को वैष्णव पुरुषों के साथ जागरण करना चाहिए । जागरण करनेवाले को जिस फल की प्राप्ति होति है, वह हजारों वर्ष तक तपस्या करने से भी नहीं मिलता । यह सब पापों को हरनेवाली उत्तम तिथि है ।

चराचर जगतसहित समस्त त्रिलोकी में इससे बढ़कर दूसरी कोई तिथि नहीं है । समस्त कामनाओं तथा सिद्धियों के दाता भगवान नारायण इस तिथि के अधिदेवता हैं ।

"पूर्वकाल की बात है, भद्रावतीपुरी में राजा सुकेतुमान राज्य करते थे । उनकी रानी का नाम चम्पा था । राजा को बहुत समय तक कोई वंशधर पुत्र नहीं प्राप्त हुआ । इसलिए दोनों पति पत्नी सदा चिन्ता और शोक में डूबे रहते थे । राजा के पितर उनके दिये हुए जल को शोकोच्छ्वास से गरम करके पीते थे । ‘राजा के बाद और कोई ऐसा नहीं दिखायी देता, जो हम लोगों का तर्पण करेगा …’ यह सोच सोचकर पितर दु:खी रहते थे ।

एक दिन राजा घोड़े पर सवार हो गहन वन में चले गये । पुरोहित आदि किसीको भी इस बात का पता न था । मृग और पक्षियों से सेवित उस सघन कानन में राजा भ्रमण करने लगे । मार्ग में कहीं सियार की बोली सुनायी पड़ती थी तो कहीं उल्लुओं की । जहाँ तहाँ भालू और मृग दृष्टिगोचर हो रहे थे । इस प्रकार घूम घूमकर राजा वन की शोभा देख रहे थे, इतने में दोपहर हो गयी । राजा को भूख और प्यास सताने लगी । वे जल की खोज में इधर उधर भटकने लगे । किसी पुण्य के प्रभाव से उन्हें एक उत्तम सरोवर दिखायी दिया, जिसके समीप मुनियों के बहुत से आश्रम थे । शोभाशाली नरेश ने उन आश्रमों की ओर देखा । उस समय शुभ की सूचना देनेवाले शकुन होने लगे । राजा का दाहिना नेत्र और दाहिना हाथ फड़कने लगा, जो उत्तम फल की सूचना दे रहा था । सरोवर के तट पर बहुत से मुनि वेदपाठ कर रहे थे । उन्हें देखकर राजा को बड़ा हर्ष हुआ । वे घोड़े से उतरकर मुनियों के सामने खड़े हो गये और पृथक् पृथक् उन सबकी वन्दना करने लगे । वे मुनि उत्तम व्रत का पालन करनेवाले थे । जब राजा ने हाथ जोड़कर बारंबार दण्डवत् किया,तब मुनि बोले : ‘राजन् ! हम लोग तुम पर प्रसन्न हैं।’

राजा बोले: आप लोग कौन हैं ? आपके नाम क्या हैं तथा आप लोग किसलिए यहाँ एकत्रित हुए हैं? कृपया यह सब बताइये ।

मुनि बोले: राजन् ! हम लोग विश्वेदेव हैं । यहाँ स्नान के लिए आये हैं । माघ मास निकट आया है । आज से पाँचवें दिन माघ का स्नान आरम्भ हो जायेगा । आज ही ‘पुत्रदा’ नाम की एकादशी है,जो व्रत करनेवाले मनुष्यों को पुत्र देती है ।

राजा ने कहा: विश्वेदेवगण ! यदि आप लोग प्रसन्न हैं तो मुझे पुत्र दीजिये।

मुनि बोले: राजन्! आज ‘पुत्रदा’ नाम की एकादशी है। इसका व्रत बहुत विख्यात है। तुम आज इस उत्तम व्रत का पालन करो । महाराज! भगवान केशव के प्रसाद से तुम्हें पुत्र अवश्य प्राप्त होगा ।

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: युधिष्ठिर ! इस प्रकार उन मुनियों के कहने से राजा ने उक्त उत्तम व्रत का पालन किया । महर्षियों के उपदेश के अनुसार विधिपूर्वक ‘पुत्रदा एकादशी’ का अनुष्ठान किया । फिर द्वादशी को पारण करके मुनियों के चरणों में बारंबार मस्तक झुकाकर राजा अपने घर आये । तदनन्तर रानी ने गर्भधारण किया । प्रसवकाल आने पर पुण्यकर्मा राजा को तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ, जिसने अपने गुणों से पिता को संतुष्ट कर दिया । वह प्रजा का पालक हुआ ।

इसलिए राजन्! ‘पुत्रदा’ का उत्तम व्रत अवश्य करना चाहिए । मैंने लोगों के हित के लिए तुम्हारे सामने इसका वर्णन किया है । जो मनुष्य एकाग्रचित्त होकर ‘पुत्रदा एकादशी’ का व्रत करते हैं, वे इस लोक में पुत्र पाकर मृत्यु के पश्चात् स्वर्गगामी होते हैं। इस माहात्म्य को पढ़ने और सुनने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिलता है ।

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धर्माधता का हो अंत: स्वामी विवेकानंद

भारतीय गौरव को जिन महापुरुषों ने देश की सीमा के बाहर ले जाकर स्थापित किया उनमें स्वामी विवेकानंद अग्रणी माने जाते हैं। पश्चिम बंगाल में 12 जनवरी, 1863 को जन्मे नरेंद्रनाथ दत्त (स्वामी विवेकानंद) ने अमेरिका के शिकागो में 11 सितंबर, 1893 को आयोजित विश्व धर्म संसद में भारतीय चिंतन परंपरा का जिन जोरदार शब्दों में परचम लहराया, उसकी प्रतिध्वनि युगों-युगों तक सुनाई देती रहेगी : मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों!

आपने जिस सौहार्द और स्नेह के साथ हम लोगों का स्वागत किया है उसके प्रति आभार प्रकट करने के निमित्त खड़े होते समय मेरा हृदय अवर्णनीय हर्ष से पूर्ण हो रहा है। संसार में संन्यासियों की सबसे प्राचीन परंपरा की ओर से मैं आपको धन्यवाद देता हूं। धर्मो की माता की ओर से धन्यवाद देता हूं। और सभी संप्रदायों एवं मतों के कोटि-कोटि हिंदुओं की ओर से भी धन्यवाद देता हूं। मैं इस मंच पर से बोलने वाले उन कतिपय वक्ताओं के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित करता हूं जिन्होंने प्राची के प्रतिनिधियों का उल्लेख करते समय आपको यह बतलाया है कि सुदूर देशों के ये लोग सहिष्णुता का भाव विविध देशों में प्रचारित करने के गौरव का दावा कर सकते हैं।

मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व का अनुभव करता हूं जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृत दोनों की ही शिक्षा दी हैं। हम लोग सब धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते वरन समस्त धर्मों को सच्चा मान कर स्वीकार करते हैं। मुझे ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान है जिसने इस पृथ्वी के समस्त धर्मों और देशों के उत्पीड़ितों और शरणार्थियों को आश्रय दिया है। मुझे आपको यह बतलाते हुए गर्व होता है कि हमने अपने वक्ष में उन यहूदियों के विशुद्धतम अवशिष्ट को स्थान दिया था जिन्होंने दक्षिण भारत आकर उसी वर्ष शरण ली थी जिस वर्ष उनका पवित्र मंदिर रोमन जाति के अत्याचार से धूल में मिला दिया गया था।

ऐसे धर्म का अनुयायी होने में मैं गर्व का अनुभव करता हूं जिसने महान जरथुष्ट्र जाति के अवशिष्ट अंश को शरण दी और जिसका पालन वह अब तक कर रहा है। भाइयों, मैं आप लोगों को एक स्तोत्र की कुछ पंक्तियां सुनाता हूं जिसकी आवृत्ति मैं बचपन से कर रहा हूं और जिसकी आवृत्ति प्रतिदिन लाखों मनुष्य किया करते हैं : रुचीनां वैचि˜या²जुकुटिलनानापथजुषाम। नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव।।

अर्थात् जैसे विभिन्न नदियां भिन्न-भिन्न स्रोतों से निकलकर समुद्र में मिल जाती हैं उसी प्रकार हे प्रभो! भिन्न भिन्न रुचि के अनुसार विभिन्न टेढ़े-मेढ़े अथवा सीधे रास्ते से जानेवाले लोग अंत में तुझमें ही आकर मिल जाते हैं।

यह सभा, जो अभी तक आयोजित सर्वश्रेष्ठ पवित्र सम्मेलनों में से एक है स्वत: ही गीता के इस अद्भुत उपदेश का प्रतिपादन एवं जगत के प्रति उसकी घोषणा करती है : ये यथा मा प्रपद्यंते तांस्तथैव भजाम्यहम। मम वत्मार्नुर्वतते मनुष्या: पार्थ सर्वश:।। अर्थात् जो कोई मेरी ओर आता है-चाहे किसी प्रकार से हो-मैं उसको प्राप्त होता हूं। लोग भिन्न मार्ग द्वारा प्रयत्न करते हुए अंत में मेरी ही ओर आते हैं।

सांप्रदायिकता, हठधर्मिता और उनकी वीभत्स वंशधर धर्माधता इस सुंदर पृथ्वी पर बहुत समय तक राज्य कर चुकी हैं। वे पृथ्वी को हिंसा से भरती रही हैं व उसको बारंबार मानवता के रक्त से नहलाती रही हैं, सभ्यताओं को ध्वस्त करती हुई पूरे के पूरे देशों को निराशा के गर्त में डालती रही हैं।

यदि ये वीभत्स दानवी शक्तियां न होतीं तो मानव समाज आज की अवस्था से कहीं अधिक उन्नत हो गया होता। पर अब उनका समय आ गया है और मैं आंतरिक रूप से आशा करता हूं कि आज सुबह इस सभा के सम्मान में जो घंटाध्वनि हुई है वह समस्त धर्माधता का, तलवार या लेखनी के द्वारा होनेवाले सभी उत्पीड़नों का तथा एक ही लक्ष्य की ओर अग्रसर होने वाले मानवों की पारस्पारिक कटुता का मृत्यु निनाद सिद्ध हो।

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स्वामी विवेकानंद: भारतीय संस्कृति के सच्चे संवाहक

भारतीय अध्यात्म का परचम दुनियाभर में लहराने वाले और भारत की गौरवशाली परंपरा एवं संस्कृति के सच्चे संवाहक स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 में पश्चिम बंगाल के कोलकाता में हुआ था। एक युवा संन्यासी के रूप में भारतीय संस्कृति की सुगंध विदेशों में बिखरने वाले विवेकानंद साहित्य, दर्शन और इतिहास के प्रकांड विद्वान थे। 

विवेकानंद का मूल नाम 'नरेंद्रनाथ दत्त' था। उनके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता उच्च न्यायालय में वकील थे और मां भुवनेश्वरी धर्मपरायण महिला थीं। नरेंद्रनाथ आगे चलकर स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हुए। वह युगांतकारी आध्यात्मिक संत थे। उन्होंने सनातन धर्म को गतिशील तथा व्यावहारिक बनाया और सुदृढ़ सभ्यता के निर्माण के लिए आधुनिक मानव से विज्ञान व भौतिकवाद को भारत की आध्यात्मिक संस्कृति से जोड़ने का आग्रह किया। भारत में स्वामी विवेकानंद के जन्म दिवस को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

मात्र 39 वसंत देखने वाले युवा संन्यासी' और 'युवा हृदय सम्राट' नरेंद्र यानी स्वामी विवेकानंद ने युवाओं का आह्वान किया था- "गीता पढ़ने के बजाय फुटबॉल खेलो।" दरअसल, वह कर्मयोगी और युगद्रष्टा थे, इसलिए उनका उद्घोष था- "उठो, जागो और तब तक मत रुको, जब तक लक्ष्य को न प्राप्त कर लो।"

अपने समय से बहुत आगे की सोचने वाले महान चिंतक और दार्शनिक विवेकानंद वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बहुत महत्व देते थे। वह शिक्षा और ज्ञान को आस्था की कुंजी मानते हैं। स्त्री शिक्षा के वह विशेष हिमायती थे। एक विदेशी महिला मार्ग्रेट नोबल यानी भगिनी निवेदिता उनकी शिष्या थीं। 

महान संत रामकृष्ण परमहंस के शिष्य विवेकानंद भारतीय समाज को छुआछूत और सामाजिक बुराइयों से दूर करने की बात करते थे। उन्होंने 1893 में अमेरिका के शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में जब कहा, "अमेरिका के मेरे भाइयों और बहनों!" तब यह वाक्यांश सुनते ही पूरा अमेरिका उनका मुरीद बन गया। सभागार तालियों से गूंज उठा। भारतीय धर्म, अध्यात्म और दर्शन पर उनके संबोधन से सारा अमेरिका चकित रह गया। 

स्वामी विवेकानंद गौतम बुद्ध को अपना आदर्श मानते थे। 4 जुलाई 1902 को उनका देहावसान हो गया।

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हो सके तो एक साथ न बनवाएं बाथरूम और टॉयलेट, जानिए क्यों?

वास्तु एक ऐसा माध्यम है जिसके सिद्धान्तों पर चलकर मनुष्य अपने जीवन को सुखी, समृद्ध, शक्तिशाली और निरोगी बना सकता है। आज आपको वास्तु सम्मत से जुडी कुछ उपयोगी जानकारी देने जा रहे हैं जिसका पालन कर आप अपने घर को सुखी व समृद्धशाली बना सकते हैं।

आज कल घरों में बाथरूम और टॉयलेट एक साथ होना आम बात हो गई है लेकिन वास्तुशास्त्र के नियम के अनुसार इससे घर में वास्तुदोष उत्पन्न होता है। इस दोष के कारण घर में रहने वालों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पति-पत्नी एवं परिवार के अन्य सदस्यों के बीच अक्सर मनमुटाव एवं वाद-विवाद की स्थिति बनी रहती है।

हमारे ज्योतिषाचार्य विजय कुमार बताते हैं कि मकान बनाते समय एक बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए वह यह कि भवन के पूर्व दिशा में स्नानगृह होना चाहिए। वहीँ, शौंचालय दक्षिण-पश्चिम दिशा के मध्य होना चाहिए| अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर क्या वजह है जो बाथरूम और टॉयलेट एक स्थान पर नहीं होना चाहिए तो आपको बता दें कि वास्तुशास्त्र के अनुसार स्नानगृह में चंद्रमा का वास है तथा शौचालय में राहू का। यदि किसी घर में स्नानगृह और शौचालय एक साथ हैं तो चंद्रमा और राहू एक साथ होने से चंद्रमा को राहू से ग्रहण लग जाता है, जिससे चंद्रमा दोषपूर्ण हो जाता है।

चंद्रमा के दूषित होते ही कई प्रकार के दोष उत्पन्न होने लगते हैं। चंद्रमा मन और जल का कारक है और राहु विष का। इस युति से जल विष युक्त हो जाता है। जिसका प्रभाव पहले तो व्यक्ति के मन पर पड़ता है और दूसरा उसके शरीर पर। शास्त्रों में चन्द्रमा को सोम अर्थात अमृत कहा गया है और राहु का विष। इस दशा में दोनों ही विपरीत तत्व हैं। इसलिए बाथरूम और टॉयलेट एक साथ होने पर परिवार में अलगाव होता है। लोगों में सहनशीलता की कमी आती है। इसलिए जहाँ तक हो सके तो बाथरूम और टॉयलेट एक स्थान पर न बनाकर दी गई दिशा पर ही बनाएं|

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