सुरैया का पैतृक मकान खंडहर में तब्दील

'मेरे पिया गए रंगून वहां से किया है टेलीफून तुम्हारी याद सताती है..' कभी खूब लोकप्रिय हुए इस गीत को अपनी मधुर आवाज देने वाली और उस समय की शीर्ष गायिका सुरैया यूं तो आज भी हर हिंदुस्तानी के दिलों में बसी हैं, मगर राम गांव के लोग आज भी उनकी याद में आंसू बहाया करते हैं। गांव के लोगों का कहना है कि सुरैया के खंडहर हो चुके मकान को देश की धरोहर मानकर महान गायिका के नाम से इसे दर्शनीय स्थल बनाया जाना चाहिए। फिल्म जगत में अभिनय व गायन से पूरे भारत की धड़कनों में बसने वाली सुरैया तो अब इस दुनिया में नहीं रहीं, लेकिन सरेनी क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले राम गांव के लोग आज भी जब उनके खंडहर हो चुके मकान के पास से गुजरते हैं तो उनका दिल जार-जार हो जाता है।

राम गांव (मजरे काल्हीगांव) की प्रधान हाजिरा बानो हैं। उन्होंने बताया कि सुरैया का मकान उनके घर के बगल में ही है, जो अब खंडहर में तब्दील हो गया है। सुरैया का बचपन यहीं बीता था। वह यहीं खेला करती थीं। नन्ही सुरैया की आवाज इतनी मीठी थी कि लोग उसे घेर लेते और कुछ सुनाने को कहते। गांव के शब्बीर अली के बेटे का कहना है कि सुरैया के पिता भगवान दास थे, मगर उनका पालन-पोषण एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। सत्रह वर्ष की आयु में ही वह किसी के साथ बम्बई चली गईं और फिल्मजगत में छा गई। फिर देश का बंटवारा हो गया और आजादी के बाद उनका परिवार पाकिस्तान में बस गया। मगर राम गांव के लोगों को यकीन था कि एक दिन सुरैया अपने गांव जरूर आएंगी।

लोग सुरैया का इंतजार करते रहे और उनके सम्मान में किसी ने उस मकान पर कब्जा नहीं किया। लेकिन वक्त की मार और सरकारी अवहेलना का शिकार सुरैया का वह पैतृक मकान अब खंडहर हो चला है। उस मकान के नजदीक जाते ही गांव के बुजुर्गो की आखों से आंसू निकल आते हैं। वे सोचते हैं, काश! देश का बंटवारा न हुआ होता या सुरैया का परिवार पाकिस्तान जाने की नहीं सोचता। शब्बीर अली के परिवार वालों का कहना है कि गांव वालों को इस बात का मलाल भी है कि सुरैया की स्मृतियां संजोए रखने के लिए उनके मकान को सुरक्षित रखने के उपाय कोई क्यों नहीं करता। शासन-प्रशासन इस धरोहर की सुध क्यों नहीं लेता। यह गांव तो पर्यटन स्थल बन सकता है।

ग्राम प्रधान हाजिरा बानो ने गांव में सुरैया के नाम से एक स्कूल खोलने की इच्छा भी जताई। अब तो यह समय ही बताएगा कि हाजिरा की हसरत पूरी हो पाती है या नहीं। 

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गन्ने को लेकर कहीं खुदकुशी तो कहीं बेटियों की रुक रही हैं शादी

बाराबंकी| उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों की मुश्किलें कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं| जहाँ अभी हाल ही में गन्ना भुगतान को लेकर कर्ज में डूबे लखीमपुर के दो किसानों ने आत्महत्या कर ली थी वहीँ अब उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले से खबर आ रही है जहाँ कई गांवों में गन्ने की खरीद नहीं होने से 45 से ज़्यादा लड़कियों की शादी रुक गई है|

प्राप्त जानकारी के अनुसार, बाराबंकी जिले के मोहम्मदाबाद समेत कई गांवों में गन्ने की खरीद नहीं होने से 45 से ज़्यादा लड़कियों की शादी रुक गई है| मोहम्मदाबाद गाँव की दमयंती की बेटी की शादी इसी दिसंबर में होने वाली थी लेकिन पिछले साल का बकाया नहीं मिलने और इस साल चीनी मिलों के गन्ना नहीं ख़रीदने के कारण उनकी बेटी की शादी रुक गई| दमयंती बताती है कि उसके पास गन्ने के सिवाय कोई अन्य साधन नहीं है| वहीँ इसी गांव के राम मनोहर बताते हैं कि उन्होंने पिछले साल चीनी मिलों को अपना गन्ना बेचा था लेकिन उन्हें अभी तक उसका पैसा नहीं मिला है और इस साल उनके गन्ने को चीनी मिल ने अब तक नहीं ख़रीदा है जिससे उन्हें मजबूर होकर अपनी पोती की शादी रोकनी पड़ी है|

उत्तर प्रदेश में 45 चीनी मिलों ने पेराई शुरू करने का ऐलान किया है| लेकिन अभी तक पेराई शुरू नहीं हुई है और इस वजह से किसानों से गन्ना नहीं खरीदा जा रहा है| भाकियू के प्रांतीय महासचिव मुकेश कुमार सिंह कहते हैं कि चीनी मिलों ने गन्ना किसानों के पिछले साल के बकाए 3200 करोड़ रुपए का भुगतान नहीं किया है और इस साल पेराई भी अभी तक शुरू नहीं होने के कारण किसानों का गन्ना खेतों में ही पड़ा हुआ है| मुकेश बताते है कि आठ करोड़ रुपए तो बाराबंकी ज़िले के गन्ना किसानों का ही बकाया है|

बकाये को लेकर मोहम्मदाबाद गाँव के किसान राम सेवक बताते हैं कि गत वर्ष के बकाए का भुगतान हम लोगों को नहीं मिला तो ऐसे में हम लोग चीनी मिलों के 20 रुपए प्रति क्विंटल का भुगतान बाद में करने पर कैसे भरोसा करें|

आपको बता दें कि बाराबंकी ही पहला जिला नहीं है जहाँ गन्ना किसानों की बेटियों की शादी रुक गई है अन्य जिले भी हैं| पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान मुख्यत गन्ने की खेती करते हैं और यही गन्ना उनके लिए साल भर का बजट बनाता है| किसान आजकल के समय में हीं अपने बेटे बेटियों के विवाह करते हैं| लेकिन अभी तक यूपी की चीनी मिलों में पिराई आरम्भ नहीं हुई जिसके चलते उनकी फसल ऐसे ही खड़ी है| इन किसानों के सामने इस समय सबसे बड़ा संकट उनके सम्मान का है| बेटियों के विवाह के कार्ड तक बंट गए हैं लेकिन खर्च करने को पैसा ही नहीं है ऐसे में कुछ ने ब्याज पर पैसा लिया तो कइयों ने शादी की तारीखें आगे बढ़ा दी हैं| वहीँ कुछ ने तो इस सहालग में शादी न करने का फैसला कर लिया है| हालात ये हैं कि सूबे में करीब 200 शादियां टाल दी गई हैं और लगभग एक हजार कि तारीखों में परिवर्तन किये गये।

गन्ना किसान बेबसी के आंसूं रो रहे हैं| आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि जिस घर में शादी हो और वहाँ तैयारियों के लिए पैसा ही न हो तो माँ बाप पर क्या गुजरती होगी| इस बार सूबे का 29 लाख किसान अपनी फसल को बढ़ते देख जहाँ खुश था वहीँ अब उसके चेहरे पर चिंता साफ़ झलक रही है। उसे समझ नहीं आ रहा कि कहां लेकर जाएं इस गन्ने को। भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत का कहना है कि एक हजार से ज्यादा बेटियों की शादी फंस गई है। रिश्ते होकर टूट रहे हैं। सबसे बुरी स्थिति मेरठ, मुजफ्फरनगर, बागपत, बुलंदशहर, बिजनौर, मुरादाबाद, अमरोहा और लखीमपुर खीरी में है। इन जनपदों का किसान गन्ने के पैसे से ही पूरा बजट तैयार करता है।

वहीँ अभी तक यूपी सरकार ने कुछ निजी चीनी मिलों पर दबाव बनाने के लिए कुर्की आरम्भ की है| लेकिन हमारे सूत्रों के मुताबिक इस से कुछ होने वाला नहीं है| जब तक सरकार कोई ठोस योजना नहीं बनती इन किसानों के लिए तब तक ये ऐसे ही बेबसी के आंसू बहते रहेंगे| परेशानी सिर्फ ये नहीं है कि पिराई आरम्भ नहीं हो रही बल्कि ट्रांसफर, पोस्टिंग, वसूली, चुनाव, जातीय समीकरण जैसे महत्वपूर्ण कार्यों को निपटा रही सपा सरकार के पास इतना समय ही नहीं है कि वो इन किसानों के प्रतिनिधियों के साथ मिलकर उनकी समस्या को सुन सके|

सूबे के किसान चाहते हैं कि सरकार उनके गन्ने का समर्थन मूल्य बढ़ाये| क्योंकि खाद बिजली पानी मेहनत आदि मिलाकर जो गन्ना वह तैयार कर रहे हैं उससे वर्तमान समर्थन मूल्य पर तो लागत भी निकाल पाना मुश्किल है| किसान नेता चाहते हैं कि एक सरकारी प्रतिनिधि मंडल उनकी मांगों को सुने और उसपर अमल करे लेकिन जहाँ मुलायम दिन-रात प्रधानमंत्री बनने का सपना बुन रहे हैं वहीँ सरकार उनके सपने को पूरा करने के लिए दौड़ भाग कर रही है| वहीँ हमारा ये कहना है कि यदि सरकार इन किसानों के लिए कुछ करे तो मुलायम अपना ये सपना सच भी कर सकते हैं वर्ना प्रदेश में जो माहौल बन रहा है उसके मुताबिक तो किसानों युवाओं और अन्य समुदाय भी सपा को वोट देने में सौ बार सोचेंगे|

इससे पहले शुक्रवार को प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने नई दिल्ली में केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पवार के साथ बैठक के दौरान प्रदेश के गन्ना किसानों की समस्याओं को उठाते हुए उनके लिए पैकेज की मांग की। मुख्यमंत्री ने कहा कि केन्द्रीय सरकार तत्काल 'इन्टरेस्ट सबवेन्शन स्कीम' लागू करे। इस योजना के तहत प्राप्त होने वाली धनराशि का शत-प्रतिशत उपयोग किसानों के बकाए गन्ना मूल्य भुगतान के लिए किया जाए।

उन्होंने यह अनुरोध भी किया कि चीनी उद्योग के संबन्ध में कोई भी नीति बनाते समय केन्द्र सरकार गन्ना किसानों के हितों की सुरक्षा को प्राथमिकता दे। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार के लिए गन्ना किसानों का हित सवरेपरि है। इसके मद्देनजर यह बैठक केवल चीनी उद्योग की समस्याओं पर ही विचार किए जाने तक सीमित न रहे। बल्कि गन्ना किसानों की समस्याओं पर भी पूरा ध्यान दिया जाए, ताकि उनका प्रभावी समाधान सुनिश्चित किया जा सके।

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार 280 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गन्ना मूल्य का भुगतान किसानों को दिलाए जाने के लिए वचनबद्घ है। यादव ने पवार को बताया कि राज्य सरकार ने गन्ना किसानों के हित में कई कदम उठाए हैं। राज्य सरकार की मंशा है कि प्रदेश की सभी चीनी मिलें पेराई कार्य प्रारंभ कर दें और किसानों के खेत खाली हो जाएं, जिससे वे अगली फसल की बुआई कर सकें।

राज्य सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की जानकारी देते हुए मुख्यमंत्री ने बताया कि इस पेराई सत्र के लिए गन्ने का मूल्य 280 रुपए प्रति क्विटंल रखा गया है। यह मूल्य गन्ना किसानों तथा चीनी मिलों, दोनों पक्षों के हितों को ध्यान में रखते हुए तय किया गया है। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा कि जो पैकेज चीनी उद्योग के लिए बनाया जाए, उसमें यह सुनिश्चित किया जाए कि चीनी मिलों को मिलने वाली वित्तीय सुविधा का उपयोग सर्वप्रथम गन्ना किसानों को पिछले वर्ष के बकाए के भुगतान में किया जाए। गन्ना किसानों के बकाए का भुगतान राज्य सरकार की प्राथमिकता है।

आम आदमी की पार्टी 'आप' का उदय

दिल्ली में हुआ इस बार का विधानसभा चुनाव कई मामलों में महत्वपूर्ण है। जिस आम आदमी पार्टी (आप) को दिल्ली की पराजित मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने नवजात जबकि भाजपा ने उसे कांग्रेस की 'बी-टीम' कहकर खारिज किया था उसने खुद को वास्तव में आम आदमी की पार्टी के रूप में साबित किया।

रविवार को घोषित चुनाव परिणाम में आप ने अप्रत्याशित प्रदर्शन कर देश के चुनावी इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा है। गठन के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव में उतरी पार्टी ने जहां दूसरा स्थान प्राप्त किया, वहीं दिल्ली में कांग्रेस का चेहरा मानी जाने वाली शीला दीक्षित को परास्त कर चौंका दिया है। आप के मुख्य प्रचारक अरविंद केजरीवाल के हाथों शीला दीक्षित को पराजय का सामना करना पड़ा है।

दिल्ली में आप का उभार देश के राजनीतिक फलक पर व्यापक असर डालने वाला साबित हो सकता है। इसके बाद पार्टी देश के अन्य हिस्सों में अपनी ताकत बढ़ाने में जुटेगी। पार्टी ने सिर्फ उन्हीं इलाकों की सीट हथियाने में कामयाबी हासिल नहीं की है जहां बड़ी संख्या में गरीब और नौकरीपेशा लोग रहते हैं, बल्कि ग्रेटर कैलाश जैसे 'रसूखदारों' के इलाके में भी जीत हासिल की है।

एक वर्ष पहले गठित आप ने राजनीति में स्वच्छता और लोगों को धनी और रसूखदारों के दबदबे वाले तंत्र से मुक्ति दिलाने का वादा किया है। अपने सीमित साधनों और नियंत्रण के कारण पार्टी ने पांच राज्यों में से केवल दिल्ली में ही चुनाव लड़ने का फैसला किया था। चमकदार प्रचारकों और लोकलुभावन चेहरों से लैस कांग्रेस और भाजपा के मुकाबले आप के पास ले देकर केजरीवाल (45) ही सबसे अधिक देखे जाने वाले और प्रमुख चेहरे थे।

आईआईटी की शिक्षा प्राप्त कर भारतीय राजस्व सेवा में नौकरी कर सामाजिक कार्यकर्ता ने भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ता के रूप में अपनी पहचान बनाई। केजरीवाल ने नई दिल्ली विधानसभा से कांग्रेस की प्रत्याशी शीला दीक्षित के खिलाफ चुनाव लड़ने की घोषणा कर सुर्खियां बटोरी। यह एक ऐसा कदम है जिसे उठाने में कोई नया राजनेता सौ बार सोचेगा। लेकिन, केजरीवाल की इस घोषणा ने आप को चुनावी रंगमंच पर चर्चा के केंद्र में ला खड़ा किया।

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केजरीवाल: खिलाड़ियों को मेमना बनाने वाला इंजीनियर

दिल्ली की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर लगातार तीन कार्यकाल तक काबिज रहने वाली और कांग्रेस की कद्दावर नेता शीला दीक्षित को नई दिल्ली विधानसभा सीट पर अपने पहले ही चुनाव में पराजित करने वाले अरविंद केजरीवाल को राजनीतिक सनसनी माना जाए तो अतिशयोक्ति नहीं। केजरीवाल की जीत का डंका सिर्फ दिल्ली में ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर तक सुनाई देने वाला है।

आईआईटी की शिक्षा प्राप्त कर भारतीय राजस्व सेवा में नौकरी कर सामाजिक कार्यकर्ता ने भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ता के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले केजरीवाल (45) ने न केवल दो बड़ी राष्ट्रीय स्तर की राजनीतिक पार्टी कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के मुकाबले महज एक वर्ष पुरानी अपनी पार्टी को खड़ा कर लिया, बल्कि एक ऐसे शख्स के रूप में खुद को स्थापित कर लिया जिसे आम आदमी के चेहरे रूप में पहचाना जाने लगा है।

भ्रष्टाचार विरोधी अभियान चलाने वाले मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के वर्ष 2011 के आंदोलन के दौरान निकटवर्ती और प्रवक्ता की भूमिका में रहे केजरीवाल ने बाद में हजारे के विरोध के बावजूद अपनी पार्टी खड़ी करने का फैसला लिया और अपनी राह चले भी।

केजरीवाल ने नई दिल्ली विधानसभा से कांग्रेस की प्रत्याशी शीला दीक्षित के खिलाफ चुनाव लड़ने की घोषणा कर सुर्खियां बटोरी। यह एक ऐसा कदम है जिसे उठाने में कोई नया राजनेता सौ बार सोचेगा। लेकिन, केजरीवाल की इस घोषणा ने आप को चुनावी रंगमंच पर चर्चा के केंद्र में ला खड़ा किया। गठन के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव में उतरी पार्टी ने जहां दूसरा स्थान प्राप्त किया है। दिल्ली में आप का उभार देश के राजनीतिक फलक पर व्यापक असर डालने वाला साबित हो सकता है। इसके बाद पार्टी देश के अन्य हिस्सों में अपनी ताकत बढ़ाने में जुटेगी।

एक वर्ष पहले गठित आप ने राजनीति में स्वच्छता और लोगों को धनी और रसूखदारों के दबदबे वाले तंत्र से मुक्ति दिलाने का वादा किया है। अपने सीमित साधनों और नियंत्रण के कारण पार्टी ने पांच राज्यों में से केवल दिल्ली में ही चुनाव लड़ने का फैसला लिया था। चमकदार प्रचारकों और लोकलुभावन चहरों से लैस कांग्रेस और भाजपा के मुकाबले आप के पास ले देकर केजरीवाल (45) ही सबसे अधिक देखे जाने वाले और प्रमुख चेहरा रहे।

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किसान के बेटे शिवराज का मुख्यमंत्री पद तक का सफर

मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के जैत गांव के एक सामान्य किसान परिवार में जन्मे शिवराज सिंह चौहान ने क्षमता और राजनीतिक कौशल के बल पर अपने नेतृत्व में लगातार दूसरी जीत दिलाकर पार्टी की जीत की हैट्रिक बनाई है।

चौहान ने विदिशा संसदीय क्षेत्र से पांच बार चुनाव लड़ा और हर बार जीत उनके खाते में आई। वर्ष 2005 में उन्हें राज्य के मुख्यमंत्री पद की कमान सौंपी गई। तब से लेकर वे आज तक इस पद पर हैं। पार्टी ने वर्ष 2003 का विधानसभा चुनाव उमा भारती के नेतृत्व में जीता था तो वर्ष 2008 और 2013 के चुनाव चौहान की अगुवाई में जीते गए हैं।

चौहान के राजनीतिक जीवन पर नजर दौड़ाएं तो पता चलता है कि उन्होंने छात्र जीवन में ही राजनीति का ककहरा सीखना शुरू कर दिया था। वर्ष 1975 में वे भोपाल के एक विद्यालय के छात्र संघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। देश में 1975 में आपातकाल लागू होने पर वे भूमिगत रहकर सक्रिय रहे और बाद में एक वर्ष तक जेल में रहे।

चौहान वर्ष 1977 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्वयं सेवक बने और आगे चलकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ गए। उसके बाद उनका नाता भारतीय जनता युवा मोर्चा से जुड़ा। इसके वे अनेक पदों पर रहते हुए प्रदेशाध्यक्ष बने। उन्होंने पहला विधानसभा चुनाव 1990-91 में बुदनी से लड़ा और जीते। पार्टी के निर्देश पर 1991 में लोकसभा चुनाव लड़ा और लगातार पांच बार विदिशा संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। सांसद के तौर पर चौहान कई संसदीय समितियों के सदस्य भी रहे।

पार्टी ने चौहान की क्षमता और राजनीतिक समझ के मद्देनजर उन्हें भाजयुमो का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया और वे 2000 से 2003 तक इस पद पर रहे। भाजपा ने 2005 में उन्हें भाजपा का प्रदेशाध्यक्ष बनाया। उसके बाद बदले राजनीतिक हालातों ने चौहान को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया और उन्होंने 29 नवंबर 2005 को इस पद की जिम्मेदारी संभाली। चौहान ने बुदनी से विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीते।

चौहान राज्य में गैर भाजपा शासित सरकार के पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिन्हें राज्य में यह जिम्मेदारी संभाले आठ वर्ष से ज्यादा वक्त बीत गया है। इतना ही नहीं पार्टी ने एक बार फिर उन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर पेश कर चुनाव लड़ा है, इस चुनाव में भाजपा को जीत भी मिली है।

भाजपा के भीतर और बाहर चौहान के प्रशंसकों की कमी नहीं हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी से लेकर सुषमा स्वराज तक उनके कायल हैं। यही कारण है कि ये नेता गाहे-बगाहे पार्टी के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोंदी से भी उनकी तुलना करने से नहीं चूकते हैं। कांग्रेस भी चाहकर सीधे तौर पर चौहान पर हमला करने का मौका आसानी से नहीं ढूंढ पाती है, यही कारण है कि उनके परिजनों या आसपास रहने वालों के जरिए उन पर निशाना साधती नजर आती है। 

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रिश्तों में गर्माहट लाने वाले स्वेटर अब कहां!

एक समय था, जब जाड़े के दिनों में किसी को उपहार देने की सबसे अच्छी वस्तु हाथ से बुने हुए स्वेटर माने जाते थे। बच्चों के लिए उनकी माएं ठंड आने से पहले से ही उनके लिए स्वेटर बुनना शुरू कर देती थीं। गांव से शहरों तक महिलाओं और लड़कियों को स्वेटर बुनने का प्रशिक्षण देने के लिए संस्थान खुले होते थे। पर आज हाथ से बुने हुए स्वेटरों का चलन काफी कम हो गया है।

ठंड के दिनों में अब लोग रेडीमेड स्वेटर या जैकेट पहनना ज्यादा पसंद करते हैं और कम ही महिलाएं ऊन खरीदकर स्वेटर बुनती देखी जाती हैं। इसकी वजह समयाभाव माना जाए या महिलाओं की स्वेटर बुनने में रुचि कम होना माना जाए, लेकिन आजकल बच्चे हों या बूढ़े, सभी को रेडीमेड स्वेटर ही पसंद आ रहे हैं।

घरों में स्वेटर बुने जाने का चलन उठते जाने के कारण ऊन बेचने वाले व्यापारियों का व्यापार भी मंदा पड़ गया है। पटना सिटी में एक ऊन बेचने वाले दुकानदार अमित साह कहते हैं, "तीन-चार वर्ष पूर्व तक उनके प्रतिष्ठान में ऊन की बिक्री काफी अच्छी होती थी, लेकिन अब तो ऊन खरीदने वाले लोगों की संख्या दो-चार होती है।" ऊन के बजाय अब उन्हें दुकान में रेडीमेड स्वेटर रखना पड़ रहा है।

अमित भी मानते हैं कि पूर्व में महिलाएं अपने परिजनों के अलावा रिश्तेदारों के लिए भी स्वेटर बुनती थीं, लेकिन अब इसका चलन खत्म हो गया है। एक अन्य दुकानदार कहते हैं, "पहले ठंड का मौसम प्रारंभ होने से पहले ही ऊन खरीदने वालों का तांता लग जाता था, मगर अब उनकी संख्या कम होती जा रही है। पहले तो सरकारी स्कूलों में शिक्षिकाएं और कार्यालयों में भी मौका मिलते ही महिला कर्मचारी स्वेटर बुनने लगती थीं।"

महिलाएं भी मानती हैं कि स्वेटर बुनने के प्रचलन में कमी आई है। वैसे, कुछ महिलाएं आज भी अपने परिजनों को बुने स्वेटर पहनाना पसंद करती हैं। बोरिंग रोड की रहने वाली गृहिणी ममता कहती हैं, "बुने हुए स्वेटर न केवल रिश्तों में गर्माहट का अहसास कराती हैं, बल्कि यह अपनापन जताने का बहुत ही आकर्षक जरिया भी है।" आज भी वे अपने पति और बच्चों को अपने हाथ से बुना हुए स्वेटर पहनाती हैं।

ममता ने आगे कहा, "स्वेटर बुनने में समय तो लगता है, परंतु इसके तैयार हो जाने के बाद एक सुखद अहसास होता है। यह अपनों के लिए प्यार दर्शाता है।" हालांकि एक अन्य महिला का मानना है, "रेडीमेड स्वेटरों की बात ही अलग है। सभी तरह के रंग और डिजाइन के स्वेटर बाजार में उपलब्ध हैं, जो सभी को पसंद भी आ रहे हैं। अगर बिना मेहनत के ही पसंदीदा डिजाइन और फैशन के अनुसार स्वेटर पहनने को मिल जाए तो फिर स्वेटर बुनने के लिए समय क्यों बर्बाद किया जाए?"

हाथ के बुने हुए स्वेटरों की मांग कम होने के कारण ऐसे लोगों को भी काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, जो कुछ पैसा लेकर दूसरों का स्वेटर बुन देते हैं और अपने परिवार के भरण पोषण के लिए थोड़ा बहुत आय भी कमा लेते हैं। 

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अब अभिभावकों के जरिए परखे जाएंगे शिक्षक!

फिरोजाबाद| अब सरकारी विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों का निरीक्षण छात्रों के अभिभावकों के द्वारा होगा। बेसिक शिक्षा विभाग की ओर से एक ऐसी प्रश्नावली तैयार की गई है, जो है तो शिक्षकों के बारे में जानने के लिए, लेकिन जवाब देंगे छात्रों के अभिभावक। यह खबर उन शिक्षकों को लिए खतरे की घंटी होगी जो अभी तक होने वाले कागजी निरीक्षणों में कोई न कोई पैठ लगा कर नंबर ले लेते थे। बेसिक शिक्षा विभाग ने इस सर्वेक्षण के लिए तैयारी पूरी कर ली है तथा 16 दिसंबर से यह निरीक्षण शुरू हो जाएंगे।

सूत्रों के मुताबिक 16 दिसंबर से खंड शिक्षाधिकारी सवालों की सूची लेकर स्कूल तक जाएंगे। हर माह 20 स्कूलों के निरीक्षण का लक्ष्य एबीएसए को मिला है। एबीएसए स्कूल में निरीक्षण करने के साथ अभिभावकों से भी सवाल पूछेंगे। अभिभवकों से शिक्षकों के पढ़ाने का ढंग उनके स्कूल आने के वक्त, क्लास लेते हैं या नहीं जैसे सवालों के साथ मिड-डे मील से संबंधित सवाल भी पूछे जाएंगे। इसके साथ ही नियमित रूप से खेलकूद होने की भी जांच होगी। ब्लॉक स्तर पर पीटीआई तैनात हैं तो स्कूल में अनुदेशक भी चयनित हुए हैं। ऐसे में खेलकूद के नाम पर स्कूलों से गायब रहने वाले पीटीआई भी इधर-उधर नहीं घूम पाएंगे।

बताते हैं कि एबीएसए अपनी रिपोर्ट को महीने की अंतिम तारीख को अफसरों को सौंप देंगे। इसके बाद में यह रिपोर्ट डायट को भेजी जाएगी। डायट से बीटीसी प्रथम सेमेस्टर एवं पंचम सेमेस्टर के बच्चों की टीम बना कर इसकी क्रॉस चेकिंग कराई जाएगी। यह प्रशिक्षणार्थी स्कूलों में पहुंचेंगे एवं अभिभावकों से बातचीत करेंगे। इस बारे में जिला बेसिक शिक्षाधिकारी डा.जितेंद्र सिंह यादव बताते हैं कि जांच में जो भी खामी मिलेगी, उसे सुधारने का शिक्षकों को मौका भी दिया जाएगा। एक माह का वक्त देने के बाद में फिर से जांच कराएंगे। यदि उसके बाद भी शिक्षकों में सुधार नहीं देखा गया तो कार्रवाई के कदम भी उठाए जाएंगे। 

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'तुनक मिजाजों' की खातिर कब तक शर्मिदा होते रहेंगे अखिलेश!

वर्ष 2014 में होने वाले आम चुनाव से पहले मुस्लिम मतों को अपने पाले में करने की कवायद में जुटे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के सामने नित नई चुनौतियां सामने आ रही हैं। उनके लिए कभी आजम खां परेशानी का सबब बन जाते हैं तो कभी दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री तौकीर रजा ही सरकार की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर देते हैं। इस बीच बड़ा सवाल यह है कि तुनक मिजाजी के लिए मशहूर इन मंत्रियों को मनाने के लिए अखिलेश आखिर कब तक शर्मिदगी झेलते रहेंगे?

मुजफ्फरनगर में हुई हिंसा के बाद से ही पश्चिमी उप्र में सपा के खिलाफ माहौल बना हुआ है। अपने खिलाफ बने इस माहौल को दबाने और मुस्लिम समुदाय की नाराजगी दूर करने के लिए ही अखिलेश यादव ने उस क्षेत्र विशेष से जुड़े लोगों को लालबत्तियों से नवाजा। मुजफ्फरनगर हिंसा में प्रभावित होने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के लिए उन्होंने सूबे का खजाना ही खोल दिया और 90 करोड़ रुपये के मुआवजे की घोषणा कर दी। यह बात अलग है कि अदालत की फटकार के बाद सरकार को अन्य समुदायों को भी इस योजना में शामिल करना पड़ा। बावजूद इसके मुस्लिम समुदाय लगातार उन पर मुसलमानों की बेहतरी के लिए काम न करने का आरोप लगा रहा है।

सरकार ने अल्पसंख्यकों को लुभाने के लिए ही 'हमारी बेटी, उसका कल' जैसी महात्वाकांक्षी योजना चलाई लेकिन बाद में इसकी राशि भी 30 हजार से घटाकर 20 हजार रुपये करनी पड़ी। दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री तौकीर रजा के इस्तीफे और मुख्यमंत्री अखिलेश को लिखे पत्र से एक बार फिर सपा की बेचैनी बढ़ गई है। तौकीर ने पत्र लिखकर सीधे तौर पर अखिलेश सरकार पर यह आरोप लगाया है कि वह मुसलमानों की बेहतरी के लिए काम नहीं कर पा रही है।

तौकीर रजा से पहले सूबे के एक अन्य कद्दावर मंत्री आजम खान ने भी सूबे के वित्त विभाग पर काफी गंभीर आरोप लगाते हुए मुख्य सचिव को एक पत्र लिखा था। पत्र में तब आजम खां ने गाजियाबाद हज हाउस के निर्माण को लेकर वित्त विभाग पर कई तरह के आरोप लगाए थे। सरकार की कार्यशैली को लेकर अल्पसंख्यक समुदाय के इन मंत्रियों की नाराजगी कई मौकों पर सामने आती रही हैं और सपा के नेता हर समय जलालत झेलने को तैयार रहते हैं। तौकीर के इस्तीफे से मचे तूफान के बीच अब उन्हें मनाने का भी दौर चल रहा है। इससे पूर्व भी उप्र विधानसभा चुनाव के समय इमाम बुखारी के दबाव के आगे सपा मुखिया मुलायम सिंह को झुकना पड़ा था। बुखारी ने भी सौदेबाजी के तहत सपा के सामने अपनी कई मांगें रखी थीं।

एक वरिष्ठ पत्रकार भी मानते हैं कि लोकसभा चुनाव की आहट को देखते हुए अल्पसंख्यक नेता अखिलेश को सीधेतौर पर 'ब्लैकमेल' कर रहे हैं। पंकज ने कहा, "अल्पसंख्यक नेताओं को यह बखूबी पता है कि मुजफ्फरनगर हिंसा के बाद सपा पश्चिमी उप्र में इस समय कठिन दौर से गुजर रही है। सपा की इसी कमजोर नब्ज को अल्संख्यक नेता पकड़े हुए हैं और इसी का असर है कि कभी इमाम बुखारी तो कभी तौकीर रजा जैसे लोग अखिलेश को ब्लैकमेल कर रहे हैं और उन्हें बार-बार मनाने के लिए सपा को मजबूर होना पड़ रहा है।"

सरकार की कार्यशैली को लेकर मुस्लिम समुदाय में नाराजगी और तौकीर रजा के इस्तीफे के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में सूबे के एक अन्य दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री आबिद खान ने इस मसले पर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। आबिद ने कहा, "इस मामले की पूरी जानकारी हमें नहीं है। तौकीर रजा ने किन बातों का जिक्र किया है और किस बात को लेकर उन्होंने यह कदम उठाया है, इसकी जानकारी करने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है।"

जाहिर है कि आबिद खान को तौकीर रजा के इस्तीफे की जानकारी तो थी लेकिन इस गंभीर मुद्दे पर उन्होंने कुछ न बोलने में ही भलाई समझी। इस बीच अल्पसंख्यक समुदाय की इस नाराजगी पर विरोधी भी चुटकी लेने से नहीं चूक रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की उप्र इकाई के प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा, "तुष्टीकरण की पराकाष्ठा पर पहुंचने वाली सपा सरकार को एक वर्ग विशेष के लिए इतना करने के बावजूद शर्मिदा होना पड़ रहा है। अल्पसंख्यक समुदाय के लिए योजनाओं का पिटारा खोलने वाली यह सरकार अन्य वर्गो के साथ ही अब इस समुदाय विशेष का भी भरोसा खो रही है।" 

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चिपैंजी को च्यवनप्राश तो गैंडे को गन्ना जूस

बिहार में बढ़ती ठंड का असर अब पटना का दिल कहे जाने वाले संजय गांधी जैविक उद्यान के जानवरों पर भी देखने को मिल रह है। ठंड से बचाने के लिए शेर को भरपूर मांस दिया जा रहा है, चिपैंजी को च्यवनप्राश और छुहारा दिया जा रहा है तो गैंडे को गन्ने का जूस देकर उसे वातावरण के अनुकूल रखा जा रहा है।

पटना सहित राज्य के लगभग सभी इलाकों में शीतलहर का प्रकोप है। इस कारण उद्यान के जानवरों के रहने के लिए भी खास व्यवस्था की गई है। संजय गांधी जैविक उद्यान के एक अधिकारी की मानें तो शेर और बाघों के कटघरों में फूस के टाट लगा दिए गए हैं और ब्लोअर भी चलाया जा रहा है। सांपघर में सांपों को गरमी पहुंचाने के लिए ज्यादा वाट के बल्ब जला दिए गए हैं और कंबल की व्यवस्था की गई है।

चिपैंजी और बिग कैट के कटघरों में ब्लोअर चल रहे हैं, तो बंदर, भालू और हिरण के बाड़ों में भी पुआल का इंतजाम कर दिया गया है। इसके अलाव ठंडी हवा से इन जानवरों को ज्यादा परेशानी न हो, इसके लिए उनके कटघरों को तिरपाल और टाट से घेरा भी गया है और कई जानवरों के लिए हीटर की व्यवस्था की गई है।

जैविक उद्यान के निदेशक एस़ चंद्रशेखर ने बताया कि ठंड के मौसम में हर वर्ष वन्यजीवों के भोजन की सूची में परिवर्तन किया जाता है। सभी पशु-पक्षियों के लिए मौसम के हिसाब से उनके शरीर में प्रतिरोधक क्षमता बनाए रखने के लिए ऐसी व्यवस्था की जाती है। उन्होंने बताया कि इस चिड़ियाघर में करीब 1,200 वन्यजीव हैं, जिनके खाने पर हर साल करीब नौ लाख रुपये खर्च होते हैं।

चिड़ियाघर घूमने आने वाले लोग भी मानते हैं कि ठंड के मौसम में खिली धूप में घूमने में तो मजा आता है लेकिन ठंड के कारण हिरण की मदमस्त चाल ठहरी होती है, तो चीतल और सांभर भी ठंड से ठिठुर रहे होते हैं और कोहरे भरे दिनों में तो वन्यजीव बाहर ही नहीं निकलते। मोर, तोता और शुतुरमुर्ग जैसे पक्षी धूप की आस में घोंसले से बाहर सुबह जरूर निकलते हैं, परंतु कोहरे के कारण फिर से घोंसलों में दुबक जाते हैं। इस समय हालत यह है कि ठंड की वजह से चिड़ियाघर घूमने आने वाले दर्शक काफी इंतजार के बाद भी वन्यजीवों को नहीं देख पा रहे हैं।

चिड़ियाघर प्रशासन ने पशु-पक्षियों को ठंड से बचाने के लिए मुकम्मल व्यवस्था की है। उद्यान के अधिकारी ने बताया कि शेर, बाघ और तेंदुए के खाने में मांस की मात्रा बढ़ा दी गई है और नाश्ते में चिकन परोसा जा रहा है। चिपैंजी को ठंड से बचाने के लिए च्यवनप्राश, अनार, सेब, काजू और बादाम दिया जा रहा है तथा भालू और बंदर को अंडे खिलाकर उन्हें सर्दी से बचाने का प्रयास किया जा रहा है।

उन्होंने बताया कि वन्यजीवों के लिए महुआ की व्यवस्था की गई है और उनके भोजन में गुड़ की मात्रा बढ़ा दी गई है। गैंडे, हिरण और हाथी के लिए गन्ने के जूस की व्यवस्था की गई है। अधिकारियों ने बताया कि वन्यजीवों की सेहत का ख्याल रखते हुए ठंड में उन्हें कई तरह की दवाइयां, मल्टी विटामिन और मिनरल मिश्रण भी दिए जा रहे हैं। पटना की 152. 95 एकड़ भूमि में फैले इस उद्यान में 1,200 से ज्यादा पशु-पक्षी हैं। देश-विदेश से प्रतिदिन यहां सैकड़ों लोग घूमने आते हैं और पशुओं को देखकर रोमांचित होते हैं। 

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ज़िंदगी की रेस हारते घोड़े

कभी रेस में अपनी जांबाजी दिखाने वाले घोड़े आज जिंदगी के लिए मौत से लड़ रहे हैं। कुछ तो इस ज़िंदगी और मौत की लड़ाई में हार भी चुके हैं| यही घोड़े कल तक अपनी पीट पर घुड़सवारों को बैठाकर आंधी तूफ़ान की तरह दौड़ लगाते थे लेकिन आज वे भूख के कारण इतने कमजोर हो गए हैं एक पल के लिए भी खड़ा नहीं रहा जाता चक्कर खाकर गिर जाते हैं। फिलहाल देश में पशुओं के अधिकारों के लिए लड़ने वाले समूह ने उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले स्थित प्रजनन केंद्र से 49 घोड़ों को बदहाल हालत में छुड़ाया है|

बताते हैं कि फ्रेंडिकोज द्वारा संचालित चिकित्सा केंद्र में घोड़ों का इलाज चल रहा है। इनमें से चार की हालत गंभीर है। इन्हें बचाना मुश्किल हो रहा है। बाकी घोड़ों की हालत भी ठीक नहीं है। सभी इतने कमजोर हो चुके हैं कि गश खाकर गिर जाते हैं। इनके इलाज में संगठन से जुड़े 25 लोग दिन रात लगे हुए हैं। विशेष ध्यान देने के लिए रॉयल रेसिंग क्लब के विशेषज्ञ डा.प्रभू को बुलाया गया है। इनके आने के बाद से इलाज में तेजी आई है लेकिन स्थिति में बहुत अधिक सुधार नहीं हो रहा है। हालाँकि घोड़ों को बचाने के लिए विशेषज्ञों से सलाह ली जा रही है ताकि अन्य घोड़ों को बचाया जा सके|

यदि सूत्रों की माने तो इस स्टड फार्म में घोड़े 25 दिनों से भूखे थे| जिसकी जानकारी जानवरों की रक्षा के क्षेत्र में कार्यरत संगठन फ्रेंडिकोज को किसी तरह से मिली। संगठन के कई कार्यकर्ता मौके पर पहुंचे तो वहाँ की हालत देखकर हताश रह गए| देखा कि कई घोड़े भूख के कारण मर चुके थे जबकि कई ज़िंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहे थे| कार्यकर्ता जिंदगी व मौत से जूझ रहे 49 घोड़ों को लेकर दस ट्रक से आए। इनमें से पांच की हालत काफी गंभीर थी जिसकी मौत संगठन के चिकित्सा केंद्र में हो गई। एक छोटा बच्चा था वह भी इस बीच गुजर गया।

इस घटना को लेकर फ्रेंडिकोज की संचालिका गीता सेशमणि कहती हैं कि स्टड फार्म में घोड़ों की ऐसी हालत हो सकती है, ऐसा सपने में भी नहीं सोचा था। यही वजह थी कि अलीगढ़ स्थित फार्म के घोड़ों की हालत देखकर मन व्यथित हो गया। रेस में भाग लेने वाले घोड़ों की शरीर की हड्डियां दिख रही थीं। 15-20 घोड़े सामने ही जमीन पर गिरे दिखे जो खत्म हो चुके थे। जो घोड़े खड़े वह चक्कर खाकर गिर रहे थे। ऐसा क्यों हुआ, क्यों घोड़ों को भूखे छोड़ दिया गया, आदि जानकारी हासिल करने का प्रयास किया जा रहा है लेकिन अभी तक इसमें सफलता नहीं मिल पाई है।

फिलहाल इस फॉर्म का मालिक अभी फरार है और वहां मौजूद चार कर्मचारियों ने बताया कि उन्हें पिछले एक वर्ष से वेतन नहीं मिला है| कर्मचारियों ने बताया कि दूसरे सारे कर्मचारी छोड़कर चले गए हैं और इस फॉर्म का इस्तेमाल रेस के घोड़ों के प्रजनन के लिए होता है| उन्होंने कहा कि यहां अधिकांश घोड़े अच्छी नस्ल के थे| फॉर्म में मौजूद कर्मचारियों ने राहत दल को बताया कि इन जानवरों को पिछले कई महीनों से ऐसी ही हालत में छोड़ा हुआ है| कर्मचारियों ने कहा कि शुरुआत में घोड़े घास-फूस खाकर गुजारा करते थे और इसके बाद उन्होंने अपना मल ही खाना शुरू कर दिया लेकिन पिछले कुछ सप्ताह से उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं है|

बाबरी मस्जिद विध्वंस की 21वीं बरसी पर विशेष.......

6 दिसम्बर 1992 के दिन एक ऐसी बर्बर घटना घटी जिसे याद करके आज भी हमारी रूह कांप उठती है। धर्म के नाम पर जो कुछ हुआ वो न भुलाये जाने वाली घटना बन कर रह गई। लोग लड़े-भिड़े, कत्लेआम हुए, आज तक उन घावों के दर्द बरकरार हैं। और आज-तक उस घटना से उत्पन्न टकराव जारी है… आज के दिन कोई अपने आन मान की लड़ाई के लिए कोई शौर्य दिवस मनाता है, तो कोई कलंक दिवस, लेकिन जिन पर वो सब गुजरा उनसे पूछें वो …वो क्या मनाते हैं?…क्या सोचते हैं?…आज उस अमानुशिक घटना की 21 बरसी है।

गंगा-जमुनी तहजीब का संगम है अयोध्या, हिंदुओं के लिए रामलला, हनुमंतलाल और नागेश्वरनाथ जैसे तीर्थ का स्थान, कुंभ की नगरी यहीं मुस्लिमों के पैगंबरों, बौद्धों के धर्मगुरुओं और जैनियों के तीर्थकरों का केंद्र भी यहीं हैं…इस धरती ने समय-समय पर विदेशी के कई घाव झेले फिर भी शान से खड़ा रहा। लेकिन इस धरती के अपनों ने ही उसे ऐसे घाव दे डाले जिसके नासूर आज भी कायम हैं। ऐसा पहली बार नहीं हुआ देश में साम्प्रदायिक दंगे हुए। आजादी मिली तो दंगे, आजाद हुए तो दंगे। वर्ष 1947 में देश आजाद होने के साथ भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय हिन्दू- मुस्लिम एक दूसरे के खून के प्यासे बन गए। वर्ष 1984 में दो सिक्खों की गलती की सजा पूरे सिक्ख समुदाय को भुगतनी पड़ी और देश में नरसंहार हुआ। 1984 के जख्म के नासूर भरे नहीं थे कि 1992 में एक बार फिर देश के सीने पर एक घाव दे दिया गया। हिन्दू-मुसलमान आमने-सामने थे। एक बार फिर धर्म के आग में मासूमों की बलि चढ़ाई गई।

इसके बाद बांग्लादेश और पाकिस्तान समेत देश के भी कई हिस्सों में बेगुनाह हिन्दुओं का खून बहा। इस घटना कि सबसे बड़ी विडंबना ये थी कि इस नरसंहार में वह भी मारे गए जिन्हें यह तक मालूम न था कि अयोध्या का असली मुद्दा क्या है? बाबरी मस्जिद क्या है? फिर गुजरात में दंगे हुए। कब तक देश को धर्म के नाम पर इन दंगों को झेलना पड़ेगा।

अयोध्या की कहानी

1528: पांच सौ साल पहले अयोध्या में एक ऐसे स्थल पर मस्जिद का निर्माण किया गया जिसे हिंदू भगवान राम का जन्म स्थान मानते हैं। समझा जाता है कि मुग़ल सम्राट बाबर ने ये मस्जिद बनवाई थी जिस कारण इसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता था।

1853: फिर दंगा हुआ हिंदुओं का आरोप कि भगवान राम के मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण हुआ। इस मुद्दे पर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच पहली हिंसा हुई।

1859: ब्रिटिश सरकार ने तारों की एक बाड़ खड़ी करके विवादित भूमि के आंतरिक और बाहरी परिसर में मुस्लिमों और हिदुओं को अलग-अलग प्रार्थनाओं की इजाजत दे दी।

1885: मामला पहली बार अदालत में पहुंचा। महंत रघुबर दास ने फैजाबाद अदालत में बाबरी मस्जिद से लगे एक राम मंदिर के निर्माण की इजाजत के लिए अपील दायर की।

23 दिसंबर, 1949: करीब 50 हिंदुओं ने मस्जिद के केंद्रीय स्थल पर कथित तौर पर भगवान राम की मूर्ति रख दी। इसके बाद उस स्थान पर हिंदू नियमित रूप से पूजा करने लगे। मुसलमानों ने नमाज पढ़ना बंद कर दिया।

5 दिसम्बर, 1950: महंत परमहंस रामचंद्र दास ने हिंदू प्रार्थनाएं जारी रखने और बाबरी मस्जिद में राममूर्ति को रखने के लिए मुकदमा दायर किया। मस्जिद को ‘ढांचा’ नाम दिया गया।

17 दिसम्बर, 1959: निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल हस्तांतरित करने के लिए मुकदमा दायर किया।

18 दिसम्बर, 1961: उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर किया।

1984: विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने और राम जन्मस्थान को स्वतंत्र कराने व एक विशाल मंदिर के निर्माण के लिए अभियान शुरू किया।

1 फरवरी, 1986: फैजाबाद जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल पर हिदुओं को पूजा की इजाजत दी। ताले दोबारा खोले गए। नाराज मुस्लिमों ने विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया।

11 नवंबर 1986 को विश्व हिंदू परिषद ने विवादित मस्जिद के पास की ज़मीन पर गड्ढे खोदकर शिला पूजन किया।

1987 में उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ में एक याचिका दायर की कि विवादित मस्जिद के मालिकाना हक़ के लिए ज़िला अदालत में चल रहे चार अलग अलग मुक़दमों को एक साथ जोड़कर उच्च न्यायालय में उनकी एक साथ सुनवाई की जाए।

जून 1989: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने विहिप को औपचारिक समर्थन देना शुरू करके मंदिर आंदोलन को नया जीवन दे दिया।

जुलाई, 1989: भगवान रामलला विराजमान नाम से पांचवा मुकदमा दाखिल किया गया

9 नवम्बर, 1989: तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने बाबरी मस्जिद के नजदीक शिलान्यास की इजाजत दी।

25 सितम्बर, 1990: भाजपा अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली, जिसके बाद साम्प्रदायिक दंगे हुए।

नवम्बर 1990: आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया। भाजपा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया। सिंह ने वाम दलों और भाजपा के समर्थन से सरकार बनाई थी। बाद में उन्होंने इस्तीफा दे दिया।

अक्टूबर 1991: उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह सरकार ने बाबरी मस्जिद के आस-पास की 2.77 एकड़ भूमि को अपने अधिकार में ले लिया।

6 दिसम्बर, 1992: हजारों की संख्या में कार सेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी मस्जिद ढाह दिया, जिसके बाद सांप्रदायिक दंगे हुए। जल्दबाजी में एक अस्थाई राम मंदिर बनाया गया। प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने मस्जिद के पुनर्निर्माण का वादा किया।

16 दिसम्बर, 1992: मस्जिद की तोड़-फोड़ की जिम्मेदार स्थितियों की जांच के लिए एम.एस. लिब्रहान आयोग का गठन हुआ।

जनवरी 2002: प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यालय में एक अयोध्या विभाग शुरू किया, जिसका काम विवाद को सुलझाने के लिए हिंदुओं और मुसलमानों से बातचीत करना था।

अप्रैल 2002: अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर उच्च न्यायालय के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की।

मार्च-अगस्त 2003: इलाहबाद उच्च न्यायालय के निर्देशों पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में खुदाई की। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का दावा था कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष होने के प्रमाण मिले हैं। मुस्लिमों में इसे लेकर अलग-अलग मत थे।

सितम्बर 2003: एक अदालत ने फैसला दिया कि मस्जिद के विध्वंस को उकसाने वाले सात हिंदू नेताओं को सुनवाई के लिए बुलाया जाए।

अक्टूबर 2004: आडवाणी ने अयोध्या में मंदिर निर्माण की भाजपा की प्रतिबद्धता दोहराई।

जुलाई 2005: संदिग्ध इस्लामी आतंकवादियों ने विस्फोटकों से भरी एक जीप का इस्तेमाल करते हुए विवादित स्थल पर हमला किया। सुरक्षा बलों ने पांच आतंकवादियों को मार गिराया।

जुलाई 2009: लिब्रहान आयोग ने गठन के 17 साल बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी।

28 सितम्बर 2010: सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहबाद उच्च न्यायालय को विवादित मामले में फैसला देने से रोकने वाली याचिका खारिज करते हुए फैसले का मार्ग प्रशस्त किया।

30 सितम्बर 2010: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया।

6 दिसम्बर 1992 कैसे क्या हुआ..

1992: विश्व हिंदू परिषद, शिव सेना और भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया। इसके परिणामस्वरूप देश भर में हिंदू और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे जिसमें 2000 से ज़्यादा लोग मारे गए।

5 दिसंबर, 1992 लाखों की संख्या में भीड़ इकट्ठा हो रही है। दूर दूर से लोग इसमें हिस्सा लेने अयोध्या पहुँच रहें हैं। कारसेवको का नारा बार-बार गूंज रहा है... मिट्टी नहीं सरकाएंगे, ढांचा तोड़ कर जाएंगे। ये तैयारी एक दिन पहले की गयी थी। कारसेवकों की भीड़ ने अगले दिन 12 बजे का वक्त तय किया कारसेवा शुरू करने का। सबके चेहरे पर जोश और एक जूनून देखा जा रहा था।

6 दिसंबर, सुबह 11 बजे: सुबह 11 बजते ही कारसेवकों के एक बड़ा जत्था सुरक्षा घेरा तोड़ने की कोशिश करता है, लेकिन उन्हें वापस पीछे धकेला दिया जाता है। तभी वहां नजर आतें हैं वीएचपी नेता अशोक सिंघल, कारसेवकों से घिरे हुए और वो उन्हें कुछ समझाते हैं। थोड़ी ही देर में उनके साथ बीजेपी के बड़े नेता मुरली मनोहर जोशी भी इन कारसेवकों से जुड़ जातें हैं। तभी भीड़ में एक और चेहरा नजर आता है लालकृष्ण आडवाणी का। सभी सुरक्षा घेरे के भीतर मौजूद हैं और लगातार बाबरी मस्जिद की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं। कारसेवकों के नारे वातावरण में गूंज रहें हैं। सभी मंदिर के दरवाजे पर पहुंचतें हैं और मंदिर के दरवाजे को तोड़ने की कोशिश करतें हैं| पहली बार मस्जिद का बाहरी दरवाजा तोड़ने की कोशिश की जाती है लेकिन पुलिस इनके कोशिश को नाकाम करती है।

6 दिसंबर, सुबह साढ़े 11 बजे: मस्जिद अब भी सुरक्षित थी। आज के दिन ऐसी थी जो सदियों तक नासूर बने रहने वाली थी। तभी वहां पीली पट्टी बांधे कारसेवकों का आत्मघाती दस्ता आ पहुंचता है। उसने पहले से मौजूद कारसेवकों को कुछ वो कुछ समझातें हैं। सबके चेहरे के भाव से लगता है कि वो किसी बड़ी घटना के लिए सबको तैयार कर रहे हैं। तभी एक चौकाने वाली घटना होती है। बाबरी मस्जिद की सुरक्षा में लगी पुलिस की इकलौती टुकड़ी धीरे धीरे बाहर निकल रही है। न कोई विरोध, न मस्जिद की सुरक्षा की परवाह। पुलिस के निकलते ही कारसेवकों का दल मस्जिद के मेन गेट की तरफ बढ़ता है| दूसरा और बड़ा धावा बोला दिया जाता है। जो कुछ पुलिसवाले वहां बचे रह गए थे वो भी पीठ दिखाकर भाग खड़े होतें हैं।

6 दिसंबर, घडी में दोपहर के 12 बज रहे थे एक शंखनाद पूरे इलाके में गूंज उठाता है। वहाँ सिर्फ कारसेवकों के नारों की आवाज गूंज रही है। कारसेवकों का एक बड़ा जत्था मस्जिद की दीवार पर चढ़ने लगा है। बाड़े में लगे गेट का ताला भी तोड़ दिया गया है। लाखों के भीड़ में कारसेवक मस्जिद में टूट पड़तें हैं और कुछ ही देर में मस्जिद को कब्जे में ले लेतें हैं। तभी इस वक्त तत्कालीन एसएसपी डीबी राय पुलिसवालों को मुकाबला करने के लिए कहतें हैं कोई उनकी बातें नहीं सुनता है। सबके दिमाग में एक ही सवाल उभरा कि क्या पुलिस ड्रामा कर रही हैं। या कारसेवकों के साथ हैं। पुलिस पूरी तरह समर्पण कर चुकी होती है। हाथों में कुदाल लिए और नारे लगते हुए कारसेवक तब तक मस्जिद गिराने का काम शुरू कर देतें हैं। एक दिन पहले की गई रिहर्सल काम आई और कुछ ही घंटों में बाबरी मस्जिद को पूरी तरह ढहा दिया गया।

1990 बैच की आईपीएस अधिकारी अंजु गुप्ता का बयान: 1990 बैच की आईपीएस अधिकारी अंजु गुप्ता 6 दिसंबर 1992 को ढांचे के ध्वस्त होने के समय फैजाबाद जिले की असिस्टेंट एसपी थीं और उन्हें आडवाणी की सुरक्षा का जिम्मा दिया गया था। साल 2010 में आईपीएस अफसर अंजु गुप्ता ने कहा कि घटना के दिन आडवाणी ने मंच से बहुत ही भड़काऊ और उग्र भाषण दिया था। इसी भाषण को सुनने के बाद कार सेवक और उग्र हो गए थे। अंजु गुप्ता का कहना था कि वह भी मंच पर करीब 6 घंटे तक मौजूद थी, इसी 6 घंटे में विवादित ढांचे को ध्वस्त किया गया था लेकिन उस वक़्त मंच पर आडवाणी मौजूद नहीं थे।

6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिरा दी गई हजरों निर्दोष मारे गए। राजनीति में भी इसका असर देखने को मिला। इस घटना के बाद कल्याण सिंह की सरकार बर्खास्त कर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।

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वाह री यूपी पुलिस! जाँच में ही कर डाला घोटाला


अभी तक आपने उत्तर प्रदेश में हुए कई तरह के घोटाले सुने होंगे लेकिन अभी जिस घोटाले के बारे में बताने जा रहे हैं उसे सुनकर आप भी हैरान हो जायेंगे| उत्तर प्रदेश के मेरठ रेंज के छह जनपदों में संगीन वारदातों की विवेचना में बड़े घोटाले किये गए| जिसमें 40 दरोगा, इंस्पेक्टर और सीओ दागी पाए गए| इन दागी पुलिस अफसरों से न केवल विवेचनाएं ही छीनी गई बल्कि इसके साथ-साथ सभी को मिस कंडेक्ट देखकर उनके करेक्टर रोल में भी इसका उल्लेख किया गया है ताकि भविष्य में इनके प्रोन्नति में रुकावट बन सके|

पुलिस के एक अधिकारी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि डीआइजी ऑफिस पर लगातार विवेचनाओं में नाम बढ़ाने और निकालने की शिकायतें दर्ज होती रही हैं। जिसे शासन ने जब गम्भीरता से लिया तो पुलिस महानिदेशक के निर्देश पर डीआइजी ने पिछले तीन साल में लंबित चल रही विवेचनाओं की जांच बैठा दी। जाँच में यह निकलकर सामने आया कि मेरठ रेंज के छह जनपदों की समीक्षा में सभी संगीन विवाद लूट, हत्या और डकैती में धारा बढ़ाने, नाम निकालने और बढ़ाने का बड़े घोटाले का खुलासा हुआ। जिसमें 40 दरोगा, इंस्पेक्टर और सीओ दागी पाए गए|

पुलिस सूत्रों के मुताबिक, डीआइजी ने इन दागी विवेचकों से विवेचनाओं को छीन कर दूसरे विवेचकों से जांच कराने के निर्देश जारी कर दिए हैं। साथ ही सभी विवेचकों को मिस कंडेक्ट की कार्रवाई करते हुए उनके करेक्टर रोल में भी इसका उल्लेख कर दिया है। ताकि भविष्य में प्रमोशन न हो सके।

मेरठ में जो प्रमुख वारदातें हुई हैं वह इस प्रकार हैं- वर्ष 2011 में नौचंदी थाना क्षेत्र के हत्या का मामला, क्राइम संख्या-754 इसके अलावा इसी वर्ष लिसाड़ीगेट थाना क्षेत्र में डकैती, क्राइम संख्या-98| इसके अलावा वर्ष 2012 में कंकरखेड़ा में हत्या के मामले में भोलू पर नहीं हुई कार्रवाई, क्राइम संख्या-668| 2012 में की नौचंदी में लूट की बड़ी वारदात, क्राइम संख्या-568 वहीं, दागी विवेचक गाजियाबाद में 13, नोएडा में 4, बागपत में भी 4, हापुड़ में 3, मेरठ में 13 और बुलंदशहर में 3 | 
 

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मरीज की बहन के साथ नशे में धुत डॉक्टर व फार्मासिस्ट ने की छेड़खानी

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में स्थित लोकबंधु अस्पताल में बुधवार को शाम इमरजेंसी में ड्यूटी पर तैनात चिकित्सक और फार्मासिस्ट ने शराब के नशे में मरीज की बहन से छेड़खानी की। पीड़िता के आवाज लगाने पर मरीजों के परिजनों ने डॉक्टर व फार्मासिस्ट की जमकर पिटाई की| उसके बाद परिजनों ने अस्पताल परिसर में ही जमकर बवाल किया| 

प्राप्त जानकारी के अनुसार, अस्पताल की इमरजेंसी में रात आठ बजे ड्यूटी पर तैनात ईएमओ डॉ. दिनेश सिंह और फार्मासिस्ट सुभाष शराब ने शराब पी राखी थी| इस दौरान पिंटू को बेहोशी की हालत में परिजन इमरजेंसी लेकर आए थे। मरीज की गंभीर हालत होने की वजह से उसे भर्ती करवाकर वापस लौट गए थे। पीड़ित की देखभाल में लगी उसकी बहन पिंकी को अकेला देख नशे में धुत डॉक्टर और फार्मासिस्ट ने जैसे ही उसे दबोचने का प्रयास किया तो पीड़िता चिल्लाते हुए एक दम से बाहर की भागी। 

पीड़िता ने बताया कि बाद में डॉ. दिनेश और सुभाष अपनी जगह चुपचाप बैठ गए। पीड़िता के पिता का आरोप है कि इसके बाद मौकेपर पहुंचे अन्य मरीज के परिजनों जब डॉक्टर व फार्मासिस्ट से पूछताछ की तो मौकेपर पहुंचे अस्पताल के अधिकारियों ने चिकित्सकों को वहां बाहर निकलवा दिया।

वहीँ इस घटना को लेकर डॉ. सुरेश सिंह, सीएमएस लोकबंधु अस्पताल का कहना है कि इमरजेंसी में ड्यूटी पर तैनात चिकित्सक डॉ. दिनेश सिंह स्वयं न्यूरो के मरीज हैं। इसलिए वह किसी से भी भिड़ जाते हैं। सुभाष इंटर्न फार्मासिस्ट है। वहीँ छेड़खानी को लेकर उनका कहना है कि अस्पताल परिसर में ऐसी कोई भी घटना नहीं हुई है| केवल मरीज केपरिजन और डॉक्टर केबीच कहा सुनी हुई है। 

इसके अलावा राजधानी के सिविल अस्पताल की इमरजेंसी में भर्ती 55 वर्षीय मसूद अली की सुरक्षा गार्डो के साथ जमकर मारपीट हुई। मसूद अली मानसिक रोगी हैं| घटना की सूचना पर अस्पताल पहुंचे मरीज के परिजनों ने तोड़फोड़ करते हुए जमकर हंगामा काटा मौके पर पहुँची पुलिस ने समझा बुझाकर मामले को शांत कराया| 

हुआ यूँ कि सिविल अस्पताल की इमरजेंसी के बेड संख्या 13 पर भर्ती कैंट निवासी मसूद अली को बीते रविवार को भर्ती कराया गया था। मरीज के परिजनों ने बताया कि पीड़ित इमरजेंसी से बाहर की ओर निकल रहा था। तभी वहां पहुंचे ड्यूटी पर तैनात सुरक्षा गार्ड ने मरीज को धक्का मारते हुए अंदर जाने को कहा। इस पर मरीज गार्ड से भिड़ गया। इस दौरान सुरक्षा गार्ड ने तुरंत अपने अन्य साथियों को बुला लिया और मिलकर मरीज को पीटना शुरू कर दिया।

बेटे को पिटता देख मरीज के पिता ने इसकी जानकारी अपने परिजनों दी, तो कुछ समय में दर्जनों फौजी अस्पताल आ धमके और तोड़फोड़ मचाते हुए सुरक्षा गार्डो को ढूंढ़ना शुरू कर दिया। अस्पताल प्रशासन के व्यवहार से आहत होकर परिजन मरीज को इलाज के लिए दूसरे चिकित्सालय ले गए हैं।