सर्द हवाओं के बीच नाकाफी अस्पतालों के रैन बसेरे

लखनऊ| राजधानी के अस्पतालों में कड़ाके की ठंड से तीमारदारों को बचाने के लिए किए गए इंतजाम अब ऊंट के मुंह में जीरा नजर आने लगे हैं। तीमारदारों को ठंड से बचाने के लिए अस्पतालों में कोई कारगर उपाय नहीं किए गए हैं, और जिन अस्पतालों में ठंड से निपटने के लिए व्यवस्था की गई है, वह भी नाकाफी साबित हो रही है।

सरकारी अस्पताल इन दिनों मरीजों के तीमारदारों को सुविधाएं देने के बजाय उनकी तकलीफों को और बढ़ा रहे हैं। एक तरफ जहां रैन बसेरों में रहने वाले तीमारदारों को रात की सर्द हवाओं से ठिठुरना पड़ रहा है, तो वहीं इन रैन बसेरों में गंदगी, मच्छरों और चोरों का भी आतंक रहता है। ऐसे में तीमारदारों को दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।

प्रदेश के दूर-दराज के इलाकों से राजधानी के चिकित्सा विज्ञान महाविद्यालय एवं अस्पताल सहित विभिन्न अस्पतालों में इलाज कराने आए मरीजों के तीमारदारों को अस्पताल प्रशासन की उपेक्षा का शिकार होना पड़ रहा है। यहां पर आए मरीजों के तीमारदारों को अस्पताल प्रशासन ने सुविधा के नाम पर सिर्फ रहने के लिए रैन बसेरे बनवाए हैं, लेकिन आलम यह है कि वह भी नाकाफी सिद्ध हो रहे हैं।

कुछ इसी तरह का हाल महिला अस्पतालों का है। क्वीन मैरी अस्पताल में तीमारदार अस्पताल के मुख्य प्रवेश द्वार से लेकर कहीं भी मुफीद जगह देखकर अपना अस्थाई ठिकाना बना लेते हैं। रैन बसेरों में गंदगी और अव्यवस्था भी चरम पर है। यहां आए मरीजों के तीमारदारों को पीने के पानी के लिए भी काफी मशक्कत करनी पड़ रही है।

इन रैन बसेरों में मच्छरों से निजात दिलाने के लिए कोई व्यवस्था न किए जाने के कारण तीमारदारों के खुद बीमार पड़ने का भय बना रहता है। सुरक्षा के नाम पर अस्पताल प्रशासन ने सुरक्षाकर्मी नियुक्त किए हैं, इसके बावजूद तीमारदारों का समान चोरी होना आम बात हो गई है।

हरदोई निवासी कुंती गुप्ता का इलाज कराने आए सुशील कुमार गुप्ता बताते हैं कि वह सात दिनों से रैन बसेरे में रह रहे हैं। इन रैन बसेरों में गंदगी चरम पर है। वह बताते हैं कि सफाईकर्मी इन रैन बसेरों के सामने झाड़ू लगा कर निकल लेते हैं, जबकि रैनबसेरों में जहां तहां गंदगी का अंबार लगा रहता है। गंदगी से इन रैन बसेरों में संक्रमण का खतरा मंडराता रहता है।

चिकित्सा विज्ञान संस्थान एवं अस्पताल में इलाज करवाने आए देवरिया निवासी सर्वदेव तिवारी ने बताया कि वह अपनी बहु का इलाज करवाने के लिए यहां कई दिनों से रह रहे हैं। यहां की अव्यवस्था के बारे में पूछने पर वह अस्पताल प्रशासन पर बिफर पड़े। उन्होंने कहा कि तीमारदारों के लिए यहां सुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं है, रहने के लिए रैन बसेरा तो बना है, लेकिन गंदगी इतनी रहती है कि सांस लेना मुश्किल होता है।

बलरामपुर अस्पताल में अपने बच्चे का इलाज कराने देवरिया से आए मोहम्मद याकूब भी इन रैन बसेरों में व्याप्त गंदगी से परेशान दिखे। याकूब ने बताया कि यहां के शौचालयों की स्थिति बहुत खराब है। उन्होंने आगे बताया कि रैन बसेरों में दरवाजे तो हैं पर इनकी कुंडियां टूटी हुई हैं, तथा स्नानघर अत्यंत गंदे रहते हैं।

कैंसर की गांठ का इलाज करवाने आए योगेंद्र के परिजन सतपाल ने बताया कि वह रैन बसेरे में व्याप्त गंदगी के चलते अस्पताल के एक कोने को ही अपना ठिकाना बनाए हुए हैं। उन्होंने बताया कि गंदगी के अलावा यहां पीने के साफ पानी का अभाव है और मच्छरों का आतंक काफी व्याप्त है। इन सरकारी अस्पतालों में तीमारदारों के लिए अलाव की भी कोई मुकम्मल व्यवस्था नहीं की गई।

तीमारदारों की समस्याएं-

1- रैनबसेरों में साफ-सफाई का न होना।

2- मच्छरों का प्रकोप।

3- सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता न होने से चोरों का आतंक।

4- सर्दी से बचने के अभी भी कोई पुख्ता इंतजाम नहीं।

5- शौचालयों व स्नानघरों में गंदगी।

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प्रचार के नवीनतम तकनीक अपना रहे राजनीतिक दल

लगातार परिवर्तनशील भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में युवाओं और संभावनाशील आबादी तक अपनी पहुंच का विस्तार करने के लिए राजनीतिक दल प्रचार के नवीनतम तकनीक का व्यापक तौर पर सहारा लेने लगे हैं। पुराने चलन का प्रयोग करने के अलावा राजनीतिक दल अब लोगों को आकर्षित करने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लेने लगे हैं। 

एक समय था जब नेता मतदाताओं को रिझाने के लिए पोस्टरों, कार्डबोर्ड के कटआउट, चित्रों और घर-घर संपर्क का थकाऊ तरीके पर भरोसा करते थे। ये सभी तरीके आज भी चलन में हैं। लेकिन इन सबके बीच देश के शहरी इलाकों में प्रचार का एक तरीका तेजी से सिरे चढ़ रहा है और वह है राजनीतिक दलों का तकनीक सेवी होता जाना। इसका मुख्य कारण युवाओं के बीच पैठ बनाने के लिए इस पर ज्यादा भरोसा करना है।

बड़ी पार्टियों के बीच भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा सक्रिय है। भाजपा ने इसका प्रयोग 2009 के आम चुनाव में भी किया था, हालांकि वह इस चुनाव में सफल नहीं रही थी। लेकिन हाल के वर्षो में इस माध्यम की जड़ें पहले से ज्यादा गहरी हुई हैं।

भाजपा में आईटी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद गुप्ता ने कहा, "हम देश की पहली राजनीतिक पार्टी हैं जिसने 1998 में अपना वेबसाइट लांच किया था। प्रौद्योगिकी भाजपा के डीएनए में रचाबसा है। चाहे समर्थकों को सूचना देने के लिए हो या शीघ्र सूचाना मुहैया कराना हो, हम हमेशा से तकनीक का प्रभावी इस्तेमाल करते आए हैं।"

आंकड़ा विश्लेषण में डॉक्टरेट गुप्ता के साथ पार्टी के डिजीटल आपरेशन सेंटर में 20 लोगों की टीम काम करती है। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस ने देर से ही सही सोशल मीडिया के महत्व को स्वीकार किया। ऑनलाइन गतिविधियों में सक्रिय पार्टी के एक नेता ने अपना नाम जाहिर नहीं होने देने की शर्त पर बातचीत की। उन्होंने मीडिया से बातचीत के लिए अधिकृत नहीं होने के कारण अपना नाम गोपनीय रखने की गुजारिश की।

उन्होंने कहा, "हम परंपरागत माध्यम को बहुत ज्यादा महत्व देते हैं। लेकिन इसमें हेरफेर किया जा सकता है। अब हमने महसूस किया है कि सोशल मीडिया आम लोगों के साथ सीधा संपर्क साधने का जरिया है।"

सोशल मीडिया पर सक्रिय एक और पार्टी है आम आदमी पार्टी (आप)। इसके मुखिया अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बने हैं। ट्विटर पर अरविंद के 900,000 फॉलोअर हैं। आप की प्रवक्ता अस्वति मुरलीधरन ने कहा, "सोशल मीडिया हमारे चुनाव प्रचार का सबसे महत्वपूर्ण औजार रहा है।" इसके आलावा एआईएडीएमके, असम के आल इंडिया यूनाइडेड डेमोक्रेट्रिक फ्रंट और बीजू जनता दल के भी विभिन्न गतिविधियों पर फेसबुक पेज हैं।

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चेन्नई में चढ़ने लगा है 'शोले 3डी' का खुमार

वर्ष 1975 में आई एक्शन फिल्म शोले का थ्रीडी संस्करण 'शोले 3डी' शुक्रवार को सिनेमाघरों में उतरने को तैयार है। बहुत से सिनेप्रेमी फिल्म को देखने की उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे हैं। रमेश सिप्पी निर्देशित 'शोले' भारतीय सिनेमा में मील का पत्थर साबित हुई। फिल्म में धर्मेद्र, अमिताभ बच्चन, हेमा मालिनी, संजीव कुमार और अमजद खान ने मुख्य भूमिका निभाई थी।

डी.जी. वैष्णव कॉलेज के छात्र राकेश अरोड़ा के लिए यह क्लासिक फिल्म देखना रोमांचक अवसर है। अरोड़ा ने कहा, "मैंने अपने कंप्यूटर और टेलीविजन पर कई बार यह फिल्म देखी है, लेकिन सिनेमा हाल में कभी नहीं देखी।" उन्होंने कहा, "मैं अपने पूरे परिवार के साथ यह फिल्म देखने जाऊंगा।" नई फिल्म के लिए सिनेमाघरों में बुधवार से ही बुकिंग शुरू हो रही है। कुछ लोग जिन्होंने 39 साल पहले सिनेमाघरों में 'शोले' देखी थी, फिर से सिनेमाघर की ओर रुख करेंगे।

सत्यम सिनेमा के एक प्रतिनिधि ने बताया, "हम पहले सप्ताहांत में हाउसफुल शो की उम्मीद कर रहे हैं। हमें उम्मीद है कि यह अच्छी जाएगी।" फिल्म इतिहासकार आनंदन का कहना है कि न सिर्फ सत्यम सिनेमा बल्कि अन्य सिनेमाघरों में भी इसने 100 दिन पूरे किए थे।

आनंदम ने बताया, "इसने चेन्नई में जबरदस्त सफलता पाई थी। मुझे याद है 1975 में 15 रुपये में फिल्म देखी थी, यह केसिनो और पायलट जैसे सिनेमाघरों में 100 दिन चली थी। यह 70 मिलीमीटर की पहली भारतीय फिल्म थी।" उन्होंने कहा, "मुझे यकीन है कि लोग इसे फिर से बड़े पर्दे पर देखना पसंद करेंगे। फिल्म के बारे में सुन चुके युवा इसे बड़े पर्दे पर देखना पसंद करेंगे।"

64 वर्षीय सेवानिवृत्त बैंककर्मी आनंद वेंकटरमन कहते हैं, "मैंने पिछले 20 सालों से सिनेमा हाल में फिल्म नहीं देखी। शोले देखने से मैं कभी नहीं थकता। मैं इसे फिर से सिनेमाघर में देखने का अवसर नहीं गंवा सकता।" फिल्म के 3डी संस्करण पर कथित तौर पर 20 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं।

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स्मारक घोटाला: नसीमुद्दीन, कुशवाहा समेत 19 पर कसा शिकंजा

उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के शासनकाल में तमाम घोटालों को अंजाम दिया गया| जैसे कि एनआरएचएम, स्मारक, खाद्यान्न, हाथी, फौव्वारा, यहाँ तक की पेड़- पौधे व घास फूस को भी नहीं छोड़ा गया उसमें भी घोटाला किया गया| तात्कालिक बसपा सरकार में शासनकाल में हुए बहुचर्चित स्मारक घोटाले के घोटालेबाजों पर अब सिकंजा कस्ता नज़र आ रहा है| सतर्कता विभाग (विजिलेंस विभाग) ने बुधवार को पिछली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सरकार के कद्दावर मंत्री रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा सहित 19 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कराया। 

राज्य सरकार की हरी झंडी के बाद सतर्कता विभाग के महानिदेशक ए़ एल़ बनर्जी ने मुकदमा दर्ज कराने के आदेश दिए। सिद्दीकी, कुशवाहा और राजकीय निर्माण निगम के तत्कालीन प्रबंध निदेशक सीपी सिंह व संयुक्त निदेशक एसए फारुखी सहित कुल 19 लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार सहित विभिन्न धाराओं में लखनऊ के गोमतीनगर थाने में दर्ज कराया गया।

गौरतलब है कि मायावती सरकार के शासनकाल में वर्ष 2007 से 2012 के बीच नोएडा व लखनऊ में करीब साढ़े चार हजार करोड़ रुपये की लागत से स्मारकों और पार्को का निर्माण कराया गया था। इसमें करीब 1,400 करोड़ रुपये के घोटाले की बात सामने आई थी। समाजवादी पार्टी की अखिलेश यादव सरकार ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) शासनकाल में बनाए गए स्मारकों व पार्को के निर्माण में हुए घोटाले की जांच लोकायुक्त एन के मेहरोत्रा को सौंपी थी। लोकायुक्त ने मई 2012 को राज्य सरकार को सौंपी अपनी जांच रिपोर्ट में पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा और नसीमुद्दीन सिद्दीकी के अलावा कई जनप्रतिनिधियों, लोक निर्माण विभाग व राज्य निर्माण निगम के अभियंताओं सहित 199 लोगों को दोषी ठहराते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति की थी।

मालूम हो कि मई 2012 में तात्कालिक डीआइजी आशुतोष पांडेय ने कई मूर्तिकारों की शिकायत पर हाथी मूर्ति व स्मारक निर्माण में करोड़ों रुपये के घोटाले का राजफाश किया था। तब पुलिस ने गोमतीनगर व कृष्णानगर थाने में कई ठेकेदारों सहित राजकीय निर्माण निगम व लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों के खिलाफ धोखाधड़ी के अलग-अलग मुकदमे दर्ज कर जांच शुरू की थी। पुलिस ने हाथी मूर्तियों की सप्लाई का काम करने वाले एक बड़े ठेकेदार को गिरफ्तार भी किया था। स्मारक निर्माण में करोड़ों रुपये की धांधली सामने आने पर शासन ने इस मामले की जांच आर्थिक अपराध शाखा को स्थानांतरित कर दी थी। इस मामले में ईओडब्ल्यू अब तक जांच के दायरे में आए करीब 25 से अधिक अधिकारियों व कर्मचारियों के बयान दर्ज कर चुकी है।

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सर्द रातों मे नहीं जलते अलाव, रैन बसेरों पर पड़े ताले, तो कहां जायें गरीब निराश्रित........?

शासन द्वारा कितनी ही योजनायें भले ही चलायी जाती हों लेकिन योजनायें बनाने के बाद शासन द्वारा कभी भी यह देखने की जहमत नहीं उठायी जाती कि उसके द्वारा लागू की गई योजनायें धरातल पर क्रियान्वित भी हो रही हैं या नहीं। ऐसे ही शासन द्वारा गरीब व निराश्रित लोगों को जाड़े के मौसम मे उन्हें सर्दी से बचाने के लिए कम्बल बांटने व अलाव जलाकर उनके स्वास्थ्य की रक्षा का जुम्मा जिला प्रशासन को सौंपा गया है। आइये देखते हैं कि जनपद खीरी मे इसका क्रियान्वयन जिला प्रशासन किस तरह से करा रहा है। शीत लहर व घने कोहरे के कहर ने हिमालय की तलहटी मे बसे जनपद खीरी मे आम जनमानस के जीवन को अस्त व्यस्त कर दिया है, ठिठुरन और शरीर को कपकपा देनी वाली सर्द हवाओं से गरीबों व निराश्रित लोगों को बचाने हेतु जिला प्रशासन द्वारा किया जा रहा दावा खोखला नजर आ रहा है। 

वर्ष 2013 के सबसे ठण्डे दिन 31 दिसम्बर की रात को जब पर्दाफाश संवाददाता द्वारा प्रशासनिक व्यवस्थाओं की हकीकत जाननी चाही गई तो प्रशासनिक व्यवस्थायें अव्यवस्थाओं मे परिवर्तित दिखायी दी। जिला प्रशासन ने गरीब निराश्रितों को ठण्ड से बचाने के जो प्रयास किये हैं वह ऊंट के मुंह मे जीरा नजर आये। ठण्ड से कांपते लोगों ने इस संवाददाता को बताया कि भाईसाहब हमारा हाल तो आप देख ही रहे हैं इतनी ठण्ड मे भी हमारी सुधि लेने वाला कोई नहीं है। गन्ने की थोड़ी सी खोई डालकर कहीं कहीं पर अलाव तो जलाये गये हैं लेकिन उनकी हालत ऐसी ही है जैसे फूस तापना। अलाव के नाम पर लकड़ी का तो कहीं नामो निशान ही नहीं है। रैन बसेरे के नाम पर तो प्रशासन द्वारा गरीब निराश्रितों का मजाक ही उड़ाया जा रहा है। बीती रात हो रही धीमी बारिश और हांड़ कपा देने वाली ठण्डी हवाओं के कारण गरीब निराश्रित इधर उधर आश्रय लेते दिखायी दिये। पहाड़ों पर हुयी जबर्दस्त बर्फबारी और कई इलाकों मे हुयी बारिश से बढ़ी ठण्ड और गलन ने तराई इलाका कहलाने वाले जनपद खीरी मे कहर सा बरपा रखा है। 

जहां एक ओर सर्दी मे जनता प्रशासन से कम्बल, रैनबसेरा, अलाव आदि की और बेहतर व्यवस्था की आस लगाये बैठी है वहीं दूसरी ओर प्रशासन लोगों को ठण्ड से बचाने के लिए केवल कागजो पर आंकड़ों की बाजीगरी मे जुटा है, इसका ताजा उदाहरण तब देखने को मिला जब प्रशासन द्वारा सदर तहसील मे स्थापित किये गये रैन बसेरे मे ताले लटकते दिखायी दिये और साथ ही रैन बसेरा लिखा हुआ एक बैनर भी टंगा दिखायी दिया जो इस बात की गवाही दे रहा था कि प्रशासन द्वारा बैनर टांगकर लोगों को ठण्ड से बचाने के लिए मात्र खाना पूर्ति ही की गई है। इसी तरह रोडवेज बस स्टेशन पर बनाये गये रैन बसेरे मे भी प्रशासन द्वारा महज एक चटाई बिछाकर लोगों को ठण्ड से बचाने के प्रयास किये गये है जहां न कुछ ओढ़ने की व्यवस्था है और न ही बिछाने की। प्रशासन ने गरीबो के साथ इतना ही मजाक नहीं किया बल्कि रेलवे स्टेशन के पास हर वर्ष स्थापित किया जाने वाला रैन बसेरा भी इस वर्ष स्थापित नहीं किया गया है, जिसके चलते रात मे रेलगाडि़यों से आने वाले यात्री खुले आसमान के नीचे जमीन पर ठिठुरने को विवश है। 

लोगों को शीतलहर से बचाने के लिए प्रशासन द्वारा महज इक्का दुक्का स्थानो को छोड़कर अन्य किसी जगह पर भी अलाव जलवाने का प्रबंध नहीं किया गया है और यदि कहीं इक्का दुक्का स्थानो पर अलाव जलवाये भी गये हैं तो वह सिर्फ खानापूर्ति मात्र ही नजर आ रहे हैं। इस बारे मे अपर जिलाधिकारी विद्या शंकर सिंह से जानकारी लेने पर उन्होने बताया कि ‘‘निराश्रित व गरीब लोगों को ठण्ड से बचाने के लिए प्रशासन द्वारा पांच लाख रुपयों के कम्बल बाटे गये है, साथ ही साथ जनपद की प्रत्येक तहसील को अलाव जलवाने के लिए पचास-पचास हजार रुपये भी आवंटित किये गये है।‘‘ अपर जिलाधिकारी विद्या शंकर सिंह भले ही कम्बल बांटने व अलाव जलवाने का राग अलाप रहे हों लेकिन जमीनी हकीकत तो कुछ और ही बयां कर रही है।
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नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

सदा दूर रहो गम की परछाइयों से, सामना न हो कभी तनहाइयों से,
हर अरमान हर ख्वाब पूरा हो आपका, यही दुआ है दिल की गहराइयों से!

अच्छी-बुरी यादों और कुछ पूरे कुछ अधूरे लक्ष्यों के बीच वर्ष 2013 को अलविदा कहते हुए हम और आप एक नए साल में प्रवेश कर रहे है| मैं कामना करता हूँ कि वर्ष 2014 आपके करियर के साथ ही व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन में सफलता के नए आयाम स्थापित करने वाला साबित हो, ताकि आप सभी देश की तरक्की में अपनी सहभागिता निभा सकें| आशा है कि आप नववर्ष का स्वागत बड़ी ही सादगी से करेंगे शराब और हुड़दंग से नहीं|

मेरी तरफ से सभी मित्रों को परिवार समेत नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं, आने वाला नववर्ष आपके लिए नई खुशियां लेकर आये|

विनीत वर्मा "शिब्बू" 
भिलवल हैदरगढ़ बाराबंकी

छोटे पर्दे पर लोकगीतों की सोंधी महक

लोकगीतों की सोंधी महक को समेटे और आल्हा की तान, बिरहा का दर्द, फाग की सुरीली धुन और कजरी की मिठास लिए लोक गायन से सजे लखनऊ दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले 'माटी के बोल' कार्यक्रम को पहली ही कड़ी से खूब सराहा जा रहा है।

लखनऊ दूरदर्शन पर हर सोमवार और मंगलवार शाम 7.30 बजे यह कार्यक्रम प्रसारित हो रहा है। इस कार्यक्रम को जहां लोकगीतों के पुरोधाओं ने खुलकर सराहा, वहीं उन्होंने उम्मीद भी जताई है कि 'माटी के बोल' उत्तर प्रदेश में लोकगीतों की फसल को सींचेगा और युवा पीढ़ी भी अपनी संस्कृति और उसकी मिठास से वाकिफ होगी।

इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए हाल ही में जब मेगाऑडिशन राउंड में उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से आए प्रतिभागियों की भीड़ उमड़ पड़ी, तभी से इसकी सफलता की उम्मीद लगाई जाने लगी थी। निर्णायक मंडल में शामिल सुप्रिसद्ध अवधी लोक गायिका कुसुम वर्मा के मुताबिक, लोक संगीत एक ऐसी विधा है जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरण की प्रवृत्ति रखती है, और समाज में व्याप्त रिवाजों और संस्कारों को अनोखा और आकर्षक रूप प्रदान करती है।

लोक गायन के क्षेत्र की बेहद चर्चित हस्तियां और इस कार्यक्रम के दो अन्य निर्णायक जया श्रीवास्तव एवं मनोज मिहिर के मुताबिक, इस तरह के लोकगीतों से जुड़े कार्यक्रमों को सिर्फ एक रियल्टी शो या प्रतियोगिता के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इनका खुले दिल से प्रोत्साहन देना चाहिए, ताकि लोक गायन एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को विरासत के तौर पर मिलता रहे।

दरअसल, लोक कलाएं संस्कृति की अभिव्यक्ति हैं जो अनंत काल से लोगों के द्वारा गाई जाती रही हैं। खासतौर से भारतीय परिवेश में जहां 'कोस-कोस पे बदले पानी, कोस-कोस पे बानी' की कहावत प्रचलित है वहां लोकगीतों का संसार और भी व्यापक है।

भारतीय समाज में लोक संगीत जन्म से लेकर मृत्यु तक विभिन्न पहलुओं से जुड़ा हुआ है। लोकगीतों में जीवन के विभिन्न चरणों के लिए विभिन्न अभिव्यक्ति प्रदान करने की अद्भुत क्षमता है, जैसे जन्म संस्कार से लेकर नामकरण, मुंडन, अन्नप्राशन, जनेऊ, विवाह, वर खोजाई, तिलक, बन्ना-बन्नी, सुहाग, कन्यादान, भांवरगीत, विदाई आदि जीवन के हर पड़ाव के लिए लोकगीतों में अनेक विधाओं में गीत सुनने को मिल जाते हैं।

वहीं बुंदेलखंड का शौर्यगीत 'आल्हा' आज भी लोगों में जोश और उत्साह पैदा करने वाले गीत के रूप में विश्वविख्यात है। आल्हा की तान के बल पर बुंदेली कलाकार पूरी दुनिया में अपनी ओजपूर्ण शैली का डंका पीटते आए हैं। इसी तरह लोक गायन की अहम विधा बिरहा, जब श्रीकृष्ण विकल गोपियों को छोड़कर ब्रज से चले गए तो उनके दुख को अभिव्यक्त करने के लिए गाया गया।

वहीं काठ के घोड़े पर सवार और रंग-बिरंगे परिधानों से सजे कमर मटकाते कलाकार अपने खास देसी अंदाज में घोबिया गीत की याद दिलाते रहे हैं। इनके अलावा नौटंकी, करमा, पाईडंडा, ऋतु पर्व के गीत, फाग, कजरी, चैती हमारे जीवन से विभिन्न रूपों में जुड़े हुए हैं। उत्तर प्रदेश में पहली बार 'माटी के बोल' जैसा लोकगायन का एक बड़ा रियलिटी शो लाने वाले सिनेक्राफ्ट प्रोडक्शन के कार्यकारी निदेशक विवेक अग्रवाल और क्रिएटिव डायरेक्टर संजय दुबे भी दर्शकों द्वारा कार्यक्रम को पसंद किए जाने पर बेहद उत्साहित हैं। 

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तिरपाल के नीचे ठंड से जूझती जिंदगियां

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर और शामली जिलों में सितंबर में हुई भयानक हिंसा के दंश अभी भी पीड़ितों को झेलने पड़ रहे हैं। दिसंबर की इस हाड़ कंपा देने वाली ठंड में शामली जिले के मलकपुर स्थित राहत शिविर में एक तिरपाल के नीचे रहने के लिए लोग मजबूर हैं। मलकपुर राहत शिविर सबसे बड़े राहत शिविरों में से एक है और यहीं से ठंड के कारण बच्चों के मौत की खबरें आ रही हैं।

सितंबर में भड़की हिंसा के कारण करीब 50,000 लोग बेघर हुए थे। इनमें अधिकांश मुस्लिम थे। इनकी जिंदगी अब बहुत कठिन दौर से गुजर रही है। मलकपुर शिविर में 200 परिवार हैं और सभी के लिए केवल एक हैंडपंप है। मलकपुर शिविर में खड़ा एक बड़ा तंबू मस्जिद के रूप में काम कर रहा है और दूसरा स्कूल के रूप में काम कर रहा है। वहां केवल तीन अध्यापक हैं और 200 छात्र हैं।

रहने के लिए खड़े किए गए प्रत्येक कुछ तंबुओं के लिए लगभग दो वर्गफुट की जगह को कपड़ों से घेरकर स्नानागार की शक्ल दी गई है। वहां पर कुछ निर्माण कार्य भी हुए हैं। उपयुक्त सेप्टिक टैंक के साथ कुछ शौचालय भी बने हैं। लेकिन इन निर्माणों के भी गिराए जाने का खतरा है, क्योंकि यह जगह उत्तर प्रदेश वन विभाग की है।

इसी शिविर से पिछले कुछ दिनों से 30 बच्चों के मरने की खबरें आई हैं। इस शिविर को देखने से साफ पता चलता है कि कैसे इन शिविरों में कुछ स्वंयसेवी संस्थाओं की मदद मिली है। कुछ तंबुओं पर तैयब मस्जिद और कुछ पर ह्यूमनिटी ट्रस्ट लिखा है। वहां पर ऑक्सफेम का भी एक बड़ा टेंट है।

राज्य प्रशासन प्रयास कर रहा है कि लोग अब अपने घरों को वापस लौट जाएं। अधिकारियों का दावा है कि मुआवजे का वितरण अब पूरा हो चुका है और बेघर लोगों को वापस लौट जाना चाहिए। कई लोग अपने घरों को इसलिए वापस नहीं लौटना चाहते क्योंकि उन्हें अपने जानमाल पर खतरा महसूस होता है।

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राजेश खन्ना: जिसने जिंदगी को अपनी शर्तो पर जिया

बॉलीवुड में सुपरस्टार का दर्जा सबसे पहले पाने वाले राजेश खन्ना का नाम जब भी लिया जाएगा तब एक ऐसे शख्स की छवि उभरेगी, जिसने जिंदगी को अपनी शर्तो पर जिया।

कहा जाता है कि देव आनंद के बाद अगर किसी ने फिल्म के सफल होने की 'गारंटी' दी तो वह थे सबके चहेते 'काका' यानी राजेश खन्ना।

29 दिसंबर, 1942 को अमृतसर (पंजाब) में जन्मे जतिन खन्ना बाद में फिल्मी दुनिया में राजेश खन्ना के नाम से मशहूर हुए। उनका अभिनय करियर शुरुआती नाकामियों के बाद इतनी तेजी से परवान चढ़ा कि ऐसी मिसाल विरले ही मिलती है।

खन्ना का लालन-पालन चुन्नीलाल और लीलावती ने किया। उनके वास्तविक माता-पिता लाला हीराचंद और चांदरानी खन्ना थे।

किशोर राजेश ने धीरे-धीरे रंगमंच में दिलचस्पी लेनी शुरू की और स्कूल में बहुत से नाटकों में भाग लिया। उन्होंने 1962 में 'अंधा युग' नाटक में एक घायल, गूंगे सैनिक की भूमिका निभाई और अपने बेजोड़ अभिनय से मुख्य अतिथि को प्रभावित किया।

रूमानी अंदाज और स्वाभाविक अभिनय के धनी राजेश खन्ना ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत 1966 में फिल्म 'आखिरी खत' से की।

वर्ष 1969 में आई फिल्म 'आराधना' ने उनके करियर को उड़ान दी और देखते ही देखते वह युवा दिलों की धड़कन बन गए। इस फिल्म ने राजेश खन्ना की किस्मत के दरवाजे खोल दिए। इसके बाद उन्होंने अगले चार साल के दौरान लगातार 15 सफल फिल्में देकर समकालीन और अगली पीढ़ी के अभिनेताओं के लिए मील का पत्थर कायम किया।

वर्ष 1970 में बनी फिल्म 'सच्चा झूठा' के लिए उन्हें पहली बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर अवार्ड मिला।

तीन दशकों के अपने लंबे करियर में 'बाबू मोशाय' ने 180 फिल्मों में अभिनय किया। इस दौरान उन्होंने तीन बार 'फिल्मफेयर बेस्ट एक्टर अवार्ड' जीते और इसके लिए 14 बार नामांकित भी हुए। सबसे अधिक बार 'अवार्डस फॉर बेस्ट एक्टर' (4) पाने का सौभाग्य भी सिर्फ उन्हीं को मिला है। वह इसके लिए 25 दफा नामित भी हुए।

वर्ष 1971 खन्ना के करियर का सबसे यादगार साल रहा। इस वर्ष उन्होंने 'कटी पतंग', 'आनंद', 'आन मिलो सजना', 'महबूब की मेहंदी', 'हाथी मेरे साथी' और 'अंदाज' जैसी अति सफल फिल्में दीं। उन्होंने 'दो रास्ते', 'दुश्मन', 'बावर्ची', 'मेरे जीवन साथी', 'जोरू का गुलाम', 'अनुराग', 'दाग', 'नमक हराम' और 'हमशक्ल' सरीखी हिट फिल्मों के जरिए बॉक्स ऑफिस को कई वर्षो तक गुलजार रखा।

भावपूर्ण दृश्यों में उनके सटीक अभिनय को आज भी याद किया जाता है। फिल्म 'आनंद' में उनके सशक्त अभिनय को एक उदाहरण माना जाता है।

'काका' को 2005 में फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया।

लंबी बीमारी के बाद 18 जुलाई, 2012 को दुनिया को अलविदा कहने वाले इस सितारे को 30 अप्रैल, 2013 को आधिकारिक तौर पर 'द फर्स्ट सुपरस्टार ऑफ इंडियन सिनेमा' की उपाधि प्रदान की गई।

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अरविंद केजरीवाल : अंदर से कोमल, बाहर से सख्त

कई वर्षो तक वे हाशिए के लोगों और बेआवाजों के अधिकार की लड़ाई लड़ते रहे। पारदर्शिता से लेकर भ्रष्टाचार तक के मुद्दे उठाने के बावजूद वे देश में कोई जाना-पहचाना चेहरा नहीं थे। अरविंद केजरीवाल नाम का यह शख्स वर्ष 2011 में अन्ना हजारे के 12 दिवसीय उपवास के दौरान लोगों के ध्यान में आया और शनिवार को इस आदमी ने दिल्ली के सातवें और कम उम्र के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।

कांग्रेस को ध्वस्त कर देने वाली और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विजय रथ का पहिया थाम देने वाली आम आदमी पार्टी (आप) के धूमकेतु की तरह उदित होने के पीछे मजबूत इरादे वाला यह आदमी खड़ा है जिसके नस-नस में राजनीति बसी हुई है। यह इसी आदमी का करिश्मा है जिसने भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन को महज दो वर्षो के भीतर एक सफल राजनीतिक दल में बदल कर रख दिया।

दिल्ली पर हुकूमत करने जा रहे केजरीवाल (45) अभी तक एकमात्र ऐसे प्रहरी बने हुए हैं जो कांग्रेस के साथ रोटी साझा करने के लिए तैयार नहीं है। चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस पर तीखा प्रहार करने से बाज नहीं आने वाले अरविंद की अल्पमत की सरकार उसी पार्टी के बाहरी समर्थन पर टिकी रहेगी।

आप ने न केवल 28 सीटें बटोर कर राजनीतिक सनसनी पैदा कर दी, बल्कि दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को 25000 से ज्यादा मतों से पराजित कर केजरीवाल देश में एक प्रमुख राजनीतिक हैसियत भी बनाने में कामयाब रहे। आप को 28 सीटें मिली जबकि कांग्रेस 8 पर सिमट गई और भाजपा का रथ 31 पर जाकर अटक गया।

दिल्ली 70 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत के अभाव में उनकी एक वर्ष पुरानी पार्टी की कुछ अपनी बंदिशें होंगी। लेकिन केजरीवाल और उनके दोस्तों का कहना है कि वे हमेशा से लड़ाके रहे हैं। हरियाणा के सिवान गांव में 16 अगस्त 1968 को एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे केजरीवाल की प्रारंभिक शिक्षा अंग्रेजी माध्यम के मिशनरी स्कूल में हुई।

परिवारवाले केजरीवाल को चिकित्सक बनते देखना चाहते थे, लेकिन परिवार की मर्जी के खिलाफ उन्होंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर में दाखिला लिया और वहां से उन्होंने यांत्रिक अभियंत्रण की पढ़ाई पूरी की।

इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे भारतीय राजस्व सेवा में आए और भ्रष्टाचार के लिए सर्वाधिक बदनाम माने जाने वाले आयकर विभाग में अधिकारी नियुक्त हुए। राजस्व सेवा की नौकरी छोड़ सामाजिक बदलाव के लिए उतरे केजरीवाल को वर्ष 2006 में रेमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 

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2013 में खोई ताकत पाने में जुटी रही बसपा

उत्तर प्रदेश विधानसभा में प्रमुख विपक्षी दल बहुजन समाज पार्टी (बसपा) वर्ष 2013 में पूरे साल सियासी नक्शे पर अपनी खोई ताकत पाने की कोशिश में जुटी रही। पार्टी ने कभी सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले को फिर से आगे बढ़ाया, तो कभी रैली में भारी भीड़ जुटाकर विरोधी दलों को परेशान किया। 

 इन प्रयासों के बीच उसे कोई सफलता तो हाथ नहीं लगी, लेकिन वर्ष बीतते-बीतते मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान व दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों ने उसको जरूर झटका दे दिया। इसके साथ ही भ्रष्टाचार के विभिन्न मामलों को लेकर बसपा के कई नेताओं को जूझते रहना पड़ा।

करीब डेढ़ दशक के लंबे अंतराल बाद प्रदेश में पहली पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने वाली बसपा को वर्ष 2012 में राज्य की सत्ता से बाहर होना पड़ा था। इस पराजय ने बसपा को जो दर्द दिया, उससे उबरने की कोशिशों में वर्ष भर जुटी रही।

वर्ष के शुरू में रसोई गैस सिलेंडर, पेट्रोलियम पदार्थो की कीमतों तथा रिटेल में एफडीआई को मंजूरी जैसे मुद्दों पर केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार को समर्थन पर पुर्नविचार का ऐलान करके बसपा प्रमुख मायावती ने देश की सियासत में अचानक गरमाहट पैदा कर लोगों का ध्यान खींचा था।

इस मुद्दे पर राजधानी लखनऊ में आयोजित रैली में भारी भीड़ जुटाकर उसने राज्य की सत्ताधारी समाजवादी पार्टी (सपा) को सोचने को मजबूर कर दिया था। लेकिन इन सबका बसपा के राजनीतिक कद पर कोई असर नहीं पड़ सका। सोशल इंजीनियरिंग के जिस उपाय पर बसपा ने प्रदेश में बहुमत की सरकार बनाई थी, उसी फार्मूले पर फिर से लौटने का बसपा प्रमुख मायावती ने फैसला लिया है।

राज्य में लोकसभा चुनाव की मजबूत जमीन तैयार करने के लिए प्रदेश के तमाम जिलों में ब्राह्मण सम्मेलनों की बड़ी श्रंखला का आयोजन किया गया। जिला स्तर के सम्मेलनों के बाद राजधानी लखनऊ में आयोजित ब्राह्मण महासम्मेलन की मुख्य अतिथि मायावती रहीं।

उन्होंने ब्राह्मणों के साथ-साथ अन्य अगरों को भी पार्टी से जोड़ने का ऐलान किया। इसके लिए मायावती ने ब्राह्मण सम्मेलनों की तरह अन्य जातियों के भी सम्मेलन आयोजित करने की बात कही। इस बीच अदालत द्वारा जाति सम्मेलनों पर रोक लगा दिये जाने के कारण बसपा को अपने कदम वापस खींचने पड़े।

इतना ही नहीं, अदालत के निर्देशों को गंभीरता से लेते हुए मायावती ने आपसी भाईचारा कमेटियों को खत्म करने और उन्हें पार्टी संगठन में विलय करने तक का फरमान जारी कर दिया था, लेकिन बाद में अदालत के निर्णय का मंथन करने के बाद भाईचारा कमेटियों को समाप्त किए जाने के फैसले को अमलीजामा नहीं पहनाया गया।

अपनी राजनीतिक जमीन फिर से हासिल करने के लिए परेशान मायावती लोकसभा उम्मीदवारों के चयन को लेकर बेहद सतर्क रहीं और प्रत्याशी के रिपोर्ट कार्ड में गड़बड़ी नजर आने पर उन्हे बदलने में जरा भी देर नहीं की।

रायबरेली, एटा, कन्नौज, आगरा, बहराइच, कैराना, अलीगढ़, हमीरपुर, सलेमपुर, देवरिया, गोरखपुर सहित डेढ़ दर्जन सीटों पर उम्मीदवारों को बदला गया। नौकरानी की हत्या की साजिश में फंसे पार्टी के बाहुबली सांसद धनंजय सिंह की उम्मीदवारी को भी साल जाते-जाते पार्टी को वापस लेनी पड़ी।

राज्यों के निराशाजनक चुनावी नतीजों के बाद बसपा प्रमुख ने अपने जन्मदिन 15 जनवरी 2014 को बड़ी रैली का ऐलान करके पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश भरने की कोशिश की है, ताकि लोकसभा चुनाव में खोई ताकत वापस लाई जा सके। 

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स्वेटर का विकल्प 'सलूका' अब कहां!

बुंदेलखंड में कभी ठंड से बचाव के लिए ग्रामीण महिलाएं पुराने कपड़ों से बने 'सलूका' से तन ढककर तड़के ही चूल्हा-चौका और फिर खेती-बारी के काम में जुट जाया करती थीं, लेकिन अब गांव-देहात के दर्जी न तो इसकी सिलाई करते हैं और न ही महिलाएं इससे तन ढकने को तैयार हैं। बदलते समय के साथ गरीबों का स्वेटर कहा जाने वाला सलूका जाने कहां गायब हो गया है।

बुंदेलखंड में आर्थिक तंगी जूझते भूमिहीन लोगों की आजीविका का साधन लंबरदारों के घर 'बनी-मजूरी' करना था। इस वर्ग को लंबरदार 'जन' कहकर पुकारा करते थे। डेढ़ सेर अनाज की मिली 'बनी' से परिवार के पेट की आग बुझाना उनका एक मात्र उद्देश्य हुआ करता था। अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिनको दो वक्त की रोटी का इंतजाम करना भारी पड़ता रहा हो, वह ठंड से बचाव के लिए स्वेटर या गर्म कपड़े का इंतजाम कैसे कर सकता है?

लिहाजा, लंबरदारों के तन के उतरन से खुद के तन को ढकना गरीबों की मजबूरी हुआ करती थी। उतरन में मिले कपड़ों को घर का मुखिया गांव के दर्जी से सलूका सिलवाकर महिलाओं को दिया करते थे। लेकिन अब इस वर्ग की हालत में कुछ सुधार हुआ है। जहां मजदूरी में इजाफा हुआ है, वहीं बाजारों में सस्ते दामों में बिकने वाले रेडीमेड गर्म कपड़े गरीबों को ठंड से बचाने में सहायक हैं।

बांदा जिले के तेंदुरा गांव के बुजुर्ग जगदेउना मेहतर (85) का कहना है कि बड़े लोगों के घर अच्छी मेहनत करने पर डेढ़ सेर अनाज की बनी के साथ बख्शीश में पुराने कपड़े मिल जाया करते थे। गांव के दर्जी इन कपड़ों से महिलाओं के लिए सलूका और पुरुषों के लिए गंजी सिल दिया करते थे।

जगदेउना बताते हैं कि पहले कमाई-धमाई थी नहीं, सो स्वेटर या गर्म कपड़ा बाजार से खरीदने की कूबत ही नहीं थी। ठंड के मौसम में घर की महिलाएं सलूका पहनकर तड़के से चूल्हा-चौका और खेती-किसानी का काम किया करती थीं।

बकौल जगदेउना, अब उनके लड़के बड़े हो गए हैं, वे परदेस में कमाते हैं और इधर मजदूरी भी बढ़ी है, जिससे बाजार में सस्ते दामों में मिलने वाले गर्म कपड़े वे आसानी से खरीद लेते हैं। इसी गांव की बुजुर्ग महिला दसिया बताती हैं कि उन्होंने पूरी उम्र में सलूका पहनकर ही ठंड काटी है, मगर करीब दस साल से उनका नाती बाजार से गर्म कपड़े खरीदकर पहना रहा है। वह यह भी बताती हैं कि अबकी बहुएं सलूका जानती भी नहीं हैं। अगर सिलवाकर दे भी दिया जाए तो वह पहनने को तैयार नहीं हैं।

इसी गांव में दर्जी का काम करने वाले बुजुर्ग बउरा ने बताया, "मुझे याद है कि करीब 12 साल पहले मइयादीन रैदास एक पुराने पैंट का सलूका सिलवाकर ले गया गया था, उसके बाद से अब तक सलूका का कोई नाम ही नहीं ले रहा है।" इसे आधुनिकता का प्रभाव मानें या ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति में सुधार का नतीजा कि अब ग्रामीण क्षेत्र में ठंड के मौसम में कोई भी महिला सलूका पहनना पसंद नहीं करतीं। ऐसे में सलूका शब्द अपना अर्थ खोने लगा है।

सफला एकादशी व्रत से मिलता है हजारों यज्ञों का फल

हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। पद्मपुराण के अनुसार, पौष मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला नामक एकादशी के नाम से जाना जाता है| इस बार यह व्रत 28 दिसंबर को मनाया जायेगा| सफला एकादशी के विषय में कहा गया है, कि यह एकादशी व्यक्ति को सहस्त्र वर्ष तपस्या करने से जिस पुण्य की प्रप्ति होती है| वह पुण्य भक्ति पूर्वक रात्रि जागरण सहित सफला एकादशी का व्रत करने से मिलता है| मान्यता है कि सफला एकादशी का व्रत करने से कई पीढियों के पाप दूर होते है| 

सफला एकादशी की व्रत विधि-

सफला एकादशी के व्रत में देव श्री विष्णु का पूजन किया जाता है| जिस व्यक्ति को सफला एकाद्शी का व्रत करना हो व इस व्रत का संकल्प करके इस व्रत का आरंभ नियम दशमी तिथि से ही प्रारम्भ करे| व्रत के दिन व्रत के सामान्य नियमों का पालन करना चाहिए| इसके साथ ही साथ जहां तक हो सके व्रत के दिन सात्विक भोजन करना चाहिए| भोजन में उसे नमक का प्रयोग बिल्कुल नहीं करना चाहिए| इस व्रत को करने वाले व्यक्ति को व्रत के दिन प्रातःकाल स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण कर माथे पर श्रीखंड चंदन अथवा गोपी चंदन लगाकर कमल अथवा वैजयन्ती फूल, फल, गंगा जल, पंचामृत, धूप, दीप, सहित लक्ष्मी नारायण की पूजा एवं आरती करें और और भगवान को भोग लगायें| इस दिन भगवान नारायण की पूजा का विशेष महत्व होता है| ब्राह्मणों तथा गरीबों, को भोजन अथवा दान देना चाहिए| इस व्रत में रात्रि जागरण का बहुत ही महत्व है इसलिए व्रती को चाहिए कि वह रात्रि में कीर्तन पाठ आदि करे| यह एकादशी व्यक्ति को सभी कार्यों में सफलता प्रदान कराती है| 

सफला एकादशी की कथा-


एक बार युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा: प्रभु! पौष मास के कृष्णपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है? उसकी क्या विधि है तथा उसमें किस देवता की पूजा की जाती है? यह बताइये ।

भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा: राजन सुनो! बड़ी बड़ी दक्षिणावाले यज्ञों से भी मुझे उतना संतोष नहीं होता, जितना एकादशी व्रत के अनुष्ठान से होता है। पौष मास के कृष्णपक्ष में ‘सफला’ नाम की एकादशी होती है। उस दिन विधिपूर्वक भगवान नारायण की पूजा करनी चाहिए। जैसे नागों में शेषनाग, पक्षियों में गरुड़ तथा देवताओं में श्रीविष्णु श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार सम्पूर्ण व्रतों में एकादशी तिथि श्रेष्ठ है।

राजन् ! ‘सफला एकादशी’ को नाम मंत्रों का उच्चारण करके नारियल के फल, सुपारी, बिजौरा तथा जमीरा नींबू, अनार, सुन्दर आँवला, लौंग, बेर तथा विशेषत: आम के फलों और धूप दीप से श्रीहरि का पूजन करे। ‘सफला एकादशी’ को विशेष रुप से दीप दान करने का विधान है। रात को वैष्णव पुरुषों के साथ जागरण करना चाहिए। जागरण करने वाले को जिस फल की प्राप्ति होती है, वह हजारों वर्ष तपस्या करने से भी नहीं मिलता।

नृपश्रेष्ठ ! अब ‘सफला एकादशी’ की शुभकारिणी कथा सुनो। चम्पावती नाम से विख्यात एक पुरी है, जो कभी राजा माहिष्मत की राजधानी थी । राजर्षि माहिष्मत के पाँच पुत्र थे । उनमें जो ज्येष्ठ था, वह सदा पापकर्म में ही लगा रहता था । परस्त्रीगामी और वेश्यासक्त था । उसने पिता के धन को पापकर्म में ही खर्च किया । वह सदा दुराचारपरायण तथा वैष्णवों और देवताओं की निन्दा किया करता था । अपने पुत्र को ऐसा पापाचारी देखकर राजा माहिष्मत ने राजकुमारों में उसका नाम लुम्भक रख दिया। फिर पिता और भाईयों ने मिलकर उसे राज्य से बाहर निकाल दिया । लुम्भक गहन वन में चला गया । वहीं रहकर उसने प्राय: समूचे नगर का धन लूट लिया । एक दिन जब वह रात में चोरी करने के लिए नगर में आया तो सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया । किन्तु जब उसने अपने को राजा माहिष्मत का पुत्र बतलाया तो सिपाहियों ने उसे छोड़ दिया । फिर वह वन में लौट आया और मांस तथा वृक्षों के फल खाकर जीवन निर्वाह करने लगा । उस दुष्ट का विश्राम स्थान पीपल वृक्ष बहुत वर्षों पुराना था । उस वन में वह वृक्ष एक महान देवता माना जाता था । पापबुद्धि लुम्भक वहीं निवास करता था ।

एक दिन किसी संचित पुण्य के प्रभाव से उसके द्वारा एकादशी के व्रत का पालन हो गया । पौष मास में कृष्णपक्ष की दशमी के दिन पापिष्ठ लुम्भक ने वृक्षों के फल खाये और वस्त्रहीन होने के कारण रातभर जाड़े का कष्ट भोगा । उस समय न तो उसे नींद आयी और न आराम ही मिला । वह निष्प्राण सा हो रहा था । सूर्योदय होने पर भी उसको होश नहीं आया । ‘सफला एकादशी’ के दिन भी लुम्भक बेहोश पड़ा रहा । दोपहर होने पर उसे चेतना प्राप्त हुई । फिर इधर उधर दृष्टि डालकर वह आसन से उठा और लँगड़े की भाँति लड़खड़ाता हुआ वन के भीतर गया । वह भूख से दुर्बल और पीड़ित हो रहा था । राजन् ! लुम्भक बहुत से फल लेकर जब तक विश्राम स्थल पर लौटा, तब तक सूर्यदेव अस्त हो गये । तब उसने उस पीपल वृक्ष की जड़ में बहुत से फल निवेदन करते हुए कहा: ‘इन फलों से लक्ष्मीपति भगवान विष्णु संतुष्ट हों ।’ यों कहकर लुम्भक ने रातभर नींद नहीं ली । इस प्रकार अनायास ही उसने इस व्रत का पालन कर लिया| उस समय सहसा आकाशवाणी हुई: ‘राजकुमार ! तुम ‘सफला एकादशी’ के प्रसाद से राज्य और पुत्र प्राप्त करोगे ।’ ‘बहुत अच्छा’ कहकर उसने वह वरदान स्वीकार किया । इसके बाद उसका रुप दिव्य हो गया । तबसे उसकी उत्तम बुद्धि भगवान विष्णु के भजन में लग गयी । दिव्य आभूषणों से सुशोभित होकर उसने निष्कण्टक राज्य प्राप्त किया और पंद्रह वर्षों तक वह उसका संचालन करता रहा । उसको मनोज्ञ नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । जब वह बड़ा हुआ, तब लुम्भक ने तुरंत ही राज्य की ममता छोड़कर उसे पुत्र को सौंप दिया और वह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के समीप चला गया, जहाँ जाकर मनुष्य कभी शोक में नहीं पड़ता ।

राजन् ! इस प्रकार जो ‘सफला एकादशी’ का उत्तम व्रत करता है, वह इस लोक में सुख भोगकर मरने के पश्चात् मोक्ष को प्राप्त होता है । संसार में वे मनुष्य धन्य हैं, जो ‘सफला एकादशी’ के व्रत में लगे रहते हैं, उन्हीं का जन्म सफल है । महाराज! इसकी महिमा को पढ़ने, सुनने तथा उसके अनुसार आचरण करने से मनुष्य राजसूय यज्ञ का फल पाता है ।

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