जाने शनि पर क्यों चढ़ाते है तेल

कठोर न्यायाधीश कहे जाने वाले शनि देव के कोप से सभी भलीभांति परिचित हैं क्योंकि शनि देव बुरे कर्मों का न्याय बड़ी कठोरता से करते हैं। शनि की बुरी नजर किसी भी राजा को रातों-रात भिखारी बना सकती है और यदि शनि शुभ फल देने वाला हो जाए तो कोई भी भिखारी राजा के समान बन सकता है।

आपको पता ही होगा कि सूर्यपुत्र शनि की आराधना करने के लिए शनिवार के दिन तेल के साथ काली तिल, जौ और काली उड़द, काला कपड़ा ये सब चढ़ाने से शनि की साढ़ेसाती में होने वाले दुष्प्रभावों से बचना संभव हो जाता है। लेकिन क्या आपको यह पता है कि सूर्य पुत्र शनि पर तेल क्यों चढाते हैं अगर नहीं पता है तो आज हम आपको बताते हैं कि आखिर सूर्य पुत्र शनि पर तेल क्यों चढाते हैं|

तो आइये जाने सूर्य पुत्र शनि पर क्यों तेल चढाते हैं-

आपको बता दें कि शनि पर तेल चढ़ाने के धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों महत्व है। शनि की नाराजी श्रम से दूर की जा सकती है, लेकिन उस श्रम के लिए हमारे शरीर में शक्ति, स्वास्थ्य और सामथ्र्य रहे, इसके लिए शनि को तेल चढ़ा कर प्रसन्न किया जाता है। 

पुराणों में शनि को तेल चढ़ाने के पीछे कई भिन्न-भिन्न कथाएं हैं। मुख्यत: ये सारी कथाएं रामायण काल और विशेष रूप से भगवान हनुमान से जुड़ी हैं। अलग-अलग कथाओं में शनि को तेल चढ़ाने की चर्चा है लेकिन सार सभी का यही है। शनि नीले रंग का क्रूर माना जाने वाला ग्रह है, जिसका स्वभाव कुछ उद्दण्ड था। अपने स्वभाव के चलते उसने श्री हनुमानजी को तंग करना शुरू कर दिया। बहुत समझाने पर भी वह नहीं माना तब हनुमानजी ने उसको सबक सिखाया। हनुमान की मार से पीड़ित शनि ने उनसे क्षमा याचना की तो करुणावश हनुमानजी ने उनको घावों पर लगाने के लिए तेल दिया। शनि महाराज ने वचन दिया जो हनुमान का पूजन करेगा तथा शनिवार को मुझपर तेल चढ़ाएगा उसका मैं कल्याण करुंगा। धार्मिक महत्व के साथ ही इसका वैज्ञानिक आधार भी है। 

धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि शनिवार को तेल लगाने या मालिश करने से सुख प्राप्त होता है। उक्त वाक्य और शनि को तेल चढ़ाने का सीधा संबंध है। ज्योतिष शास्त्र में शनि को त्वचा, दांत, कान, हड्डियों और घुटनों में स्थान दिया गया है। उस दिन त्वचा रुखी, दांत, कान कमजोर तथा हड्डियों और घुटनों में विकार उत्पन्न होता है। तेल की मालिश से इन सभी अंगों को आराम मिलता है। अत: शनि को तेल अर्पण का मतलब यही है कि अपने इन उपरोक्त अंगों की तेल मालिश द्वारा रक्षा करो। दांतों पर सरसो का तेल और नमक की मालिश। कानों में सरसो तेल की बूंद डालें। त्वचा, हड्डी, घुटनों पर सरसो के तेल की मालिश करनी चाहिए। शनि का इन सभी अंगों में वास माना गया है, इसलिए तेल चढ़ाने से वे हमारे इन अंगों की रक्षा करते हैं और उनमें शक्ति का संचार भी करते हैं। 

चैत्र नवरात्रि कल से, जानिए कलश स्थापना मुहूर्त और विधि

नवरात्रि का अर्थ होता है, नौ रातें। हिन्दू धर्मानुसार यह पर्व वर्ष में दो बार आता है। एक शरद माह की नवरात्रि और दूसरी बसंत माह की| इस पर्व के दौरान तीन प्रमुख हिंदू देवियों- पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ स्वरुपों श्री शैलपुत्री, श्री ब्रह्मचारिणी, श्री चंद्रघंटा, श्री कुष्मांडा, श्री स्कंदमाता, श्री कात्यायनी, श्री कालरात्रि, श्री महागौरी, श्री सिद्धिदात्री का पूजन विधि विधान से किया जाता है | जिन्हे नवदुर्गा कहते हैं।

आपको बता दें की इस बार की चैत्र नवरात्रि 10 दिन की होंगी। तिथियों की घटत-बढ़त के कारण ऐसा होगा। नवरात्र पर्व 23 मार्च से शुरू होकर 1 अप्रैल तक रहेगा। इस दौरान शुभ संयोग भी खूब रहेंगे।

हमारे ज्योतिषाचार्य आचार्य विजय कुमार का कहना है कि चैत्र नवरात्र का आरंभ देवी के वार यानी शुक्रवार से हो रहा है। ऐसे में ये देवी आराधना करने वाले साधकों के लिए विशेष फलदायी रहेंगे। खरीदारी व नवीन कार्यो के लिए भी ये नवरात्र श्रेयस्कर रहेंगे। उन्होंने यह भी बताया है कि नवरात्र के दौरान 29, 30 व 31 मार्च को छोड़कर हर दिन विशेष संयोग भी बन रहे हैं।

इस बार नवरात्रि में राम जन्म पर महामुहूर्त का संयोग है| राम नवमी एक अप्रैल को राम जन्मोत्सव मनेगा। चैत्र नवरात्र की पूर्णता की तिथि महानवमी के साथ सुकर्मा योग व कौलवकरण होने से यह दिन विशेष शुभ होगा। 

घट स्थापना मुहूर्त-

नवरात्र में तिथि वृद्धि सुखद संयोग माना जाता है। प्रतिपदा तिथि रात 10 बजकर 2 मिनट तक रहेगी। नवरात्र पूजन का प्रारंभ घट स्थापना से होता है। घट स्थापना प्रात: काल 6 बजकर 30 मिनट से लेकर 7 बजकर 30 मिनट तक, द्विस्वभाव लग्न मीन में एवं दोपहर 12 बजकर 5 मिनट से लेकर 12 बजकर 50 मिनट तक अभिजीत काल में किया जाना उचित है। दोपहर बाद घट स्थापना एवं देवी पूजन प्रारंभ करने से गृह भंग एवं यश हानि होती है। 

घट स्थापना विधि-

आचार्य विजय कुमार ने कहा है कि नवरात्र पूजन में कई लोग घट व नारियल स्थापना उन्होंने कलश स्थापना की सही विधि घट सही तरीके से न करने से शुभ की जगह अशुभ फल प्राप्त होता है।

आपको बता दें कि मंदिर के उत्तर पूर्व दिशा के मध्य में स्थित ईशान कोण में मिट्टी या धातु के पात्र में साख लगाएं। इसके बाद पात्र में घट (कलश) की स्थापना करें। घट धातु का ही होना चाहिए, तांबे या पीतल धातु का शुभ होता है। घट को मौली बांधे, उसमें जल, चावल, पंचरतनी, चुटकी भर तुलसी की मिट्टी, स्र्वोष्धी, तिलक, फूल व द्रूवा व सिक्के डाल कर आम के नौ पत्ते रख कर उस पर चावल से भरे दोने से ढक सभी देवी-देवताओं का ध्यान कर उनका आह्वान करें।

इसके बाद चावलों के ऊपर नारियल का मुख अपनी और इस तरह रखें कि उसे देखने पर साधक की नजरें सीधे मुख पर पड़े। शास्त्रों में वर्णित श्लोक के मुताबिक 'अधोमुखं शत्रु विवर्धनाय, ऊ‌र्ध्वस्य वस्त्रं बहुरोग वृध्यै। प्राचीमुखं वित विनाशनाय, तस्तमात् शुभम संमुख्यम नारीकेलम' के अनुसार स्थापना के दौरान नारियल का मुख नीचे रखने से शत्रु बढ़ते हैं, ऊपर रखने से रोग में वृद्धि, पूर्व दिशा में करने से धन हानि होती है। इसलिए नारियल का मुख अपनी तरफ रख ही उसकी स्थापना करनी चाहिए। नारियल जिस तरफ से पेड़ पर लगा होता है, वह उसका मुख वह होता और उसका ठीक उल्टा हिस्सा नुकीला होता है। 

फिर आओ प्यारी गौरैया


घर के आंगन से लेकर दालान चहचहाने वाली गौरैया ने अब घर आना ही छोड़ दिया है। आधुनिकीकरण की अंधी दौड़ ने इन नन्हें प्यारे पक्षियों का घर में आना जाना बंद कराया, तो वहीं कीट-नाशक के इस्तेमाल ने खेतों से इनके आशियाने को छीन लिया। इससे इस छोटी प्यारी से चिड़िया के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो गया है। इनके कम नजर आने से यह बात से साफ हो जाती है कि इनकी संख्या में तेजी से घट रही है।


घरों को अपनी चीं..चीं से चहकाने वाली गौरैया अब दिखाई नहीं देती । इस छोटे आकार वाले खूबसूरत पक्षी का कभी इंसान के घरों में बसेरा हुआ करता था और बच्चे बचपन से इसे देखते बड़े हुआ करते थे । अब स्थिति बदल गई है । गौरैया के अस्तित्व पर छाए संकट के बादलों ने इसकी संख्या काफी कम कर दी है और कहीं..कहीं तो अब यह बिल्कुल दिखाई नहीं देती ।

पहले यह चिड़िया जब अपने बच्चों को चुग्गा खिलाया करती थी तो इंसानी बच्चे इसे बड़े कौतूहल से देखते थे । लेकिन अब तो इसके दर्शन भी मुश्किल हो गए हैं और यह विलुप्त हो रही प्रजातियों की सूची में आ गई है ।पक्षी विज्ञानी हेमंत सिंह के मुताबिक गौरैया की आबादी में 60 से 80 फीसदी तक की कमी आई है । यदि इसके संरक्षण के उचित प्रयास नहीं किए गए तो हो सकता है कि गौरैया इतिहास की चीज बन जाए और भविष्य की पीढ़ियों को यह देखने को ही न मिले ।

ब्रिटेन की ‘रॉयल सोसायटी ऑफ प्रोटेक्शन आफ बर्डस’ ने भारत से लेकर विश्व के विभिन्न हिस्सों में अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययनों के आधार पर गौरैया को ‘रेड लिस्ट’ में डाला है ।आंध्र विश्वविद्यालय द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक गौरैया की आबादी में करीब 60 फीसदी की कमी आई है । यह हृास ग्रामीण और शहरी..दोनों ही क्षेत्रों में हुआ है ।पश्चिमी देशों में हुए अध्ययनों के अनुसार गौरैया की आबादी घटकर खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है ।गौरैया पर मंडरा रहे खतरे के कारण ही सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद मोहम्मद ई दिलावर जैसे लोगों के प्रयासों से आज दुनियाभर में 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मानाया जाता है, ताकि लोग इस पक्षी के संरक्षण के प्रति जागरूक हो सकें । 

दिलावर द्वारा शुरू की गई पहल पर ही आज बहुत से लोग गौरैया बचाने की कोशिशों में जुट रहे हैं ।सिंह के अनुसार आवासीय हृास, अनाज में कीटनाशकों के इस्तेमाल, आहार की कमी और मोबाइल फोन तथा मोबाइल टॉवरों से निकलने वाली सूक्ष्म तरंगें गौरैया के अस्तित्व के लिए खतरा बन रही हैं ।उन्होंने कहा कि लोगों में गौरैया को लेकर जागरूकता पैदा किए जाने की जरूरत है क्योंकि कई बार लोग अपने घरों में इस पक्षी के घोंसले को बसने से पहले ही उजाड़ देते हैं । कई बार बच्चे इन्हें पकड़कर पहचान के लिए इनके पैर में धागा बांधकर इन्हें छोड़ देते हैं । इससे कई बार किसी पेड़ की टहनी या शाखाओं में अटक कर इस पक्षी की जान चली जाती है ।

इतना ही नहीं कई बार बच्चे गौरैया को पकड़कर इसके पंखों को रंग देते हैं जिससे उसे उड़ने में दिक्कत होती है और उसके स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर पड़ता है ।पक्षी विज्ञानी के अनुसार गौरैया को फिर से बुलाने के लिए लोगों को अपने घरों में कुछ ऐसे स्थान उपलब्ध कराने चाहिए जहां वे आसानी से अपने घोंसले बना सकें और उनके अंडे तथा बच्चे हमलावर पक्षियों से सुरक्षित रह सकें। 

भगवान शिव को चढ़ाएं शमी का फूल, पूरी होंगी सभी मुरादें

धर्म शास्त्रो में भगवान शिव को जगत पिता बताया गया हैं, क्योकि भगवान शिव सर्वव्यापी एवं पूर्ण ब्रह्म हैं। हिंदू संस्कृति में शिव को मनुष्य के कल्याण का प्रतीक माना जाता हैं। शिव शब्द के उच्चारण या ध्यान मात्र से ही मनुष्य को परम आनंद प्रदान करता हैं। भगवान शिव भारतीय संस्कृति को दर्शन ज्ञान के द्वारा संजीवनी प्रदान करने वाले देव हैं। इसी कारण अनादि काल से भारतीय धर्म साधना में निराकार रूप में होते हुवे भी शिवलिंग के रूप में साकार मूर्ति की पूजा होती हैं।

आज हम आपको बताते हैं कि शिवलिंग पर कौन सा पुष्प चढ़ाना चाहिए और वह कितना पुण्य देने वाला है| शास्त्रों ने कुछ फूलों के चढाने से मिलने वाले फल का महत्व बतलाया है | वैसे भी पूजा में कुदरती सामग्रियों के चढ़ावे का महत्व है। जिनमें अनेक तरह-तरह के पेड़-पौधों के पत्ते, फूल और फल शामिल होते हैं। शास्त्रों में भगवान शिव पर फूल चढाने का बहुत अधिक महत्व बताया गया है| 

एक फूल शिव पर चढ़ाना से सोने के दान के बराबर फल देता है वो है आक के फूल को चढाने से मिल जाता है , हज़ार आक के फूलों कि अपेक्षा एक कनेर का फूल, हज़ार कनेर के फूलों के चढाने कि अपेक्षा एक बिल्व-पत्र से मिल जाता है जिस तरह पापो के नाश के लिए शिव पर बिल्व पत्र से शिव खुश होते है|

हजार बिल्वपत्रों के बराबर एक द्रोण या गूमा फूल फलदायी। हजार गूमा के बराबर एक चिचिड़ा, हजार चिचिड़ा के बराबर एक कुश का फूल, हजार कुश फूलों के बराबर एक शमी का पत्ता, हजार शमी के पत्तो के बराकर एक नीलकमल, हजार नीलकमल से ज्यादा एक धतूरा और हजार धतूरों से भी ज्यादा एक शमी का फूल शुभ और पुण्य देने वाला होता है। 

इसलिए भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए एक शमी का पुष्प चढ़ाएं क्योंकि यह फूल शुभ और पुण्य देने वाला होता है| 

अगर लड़कियां देखें यह सपने तो समझो..

हर सपना कुछ-न कुछ कहता है। कुछ सपने निराशा देते हैं, तो कुछ जीवन में खुशियों की लहर भर देते हैं। जब व्यक्ति निद्रावस्था में होता है तो उसकी पाँचों ज्ञानेंद्रियाँ उसका मन और उसकी पाँचों कर्मेंद्रियाँ अपनी-अपनी क्रियाएँ करना बंद कर देती हैं और व्यक्ति का मस्तिष्क पूरी तरह शांत रहता है। उस अवस्था में व्यक्ति को एक अनुभव होता है, जो उसके जीवन से संबंधित होता है। उसी अनुभव को स्वप्न कहा जाता है|

आज हम आपको लड़कियों के सपनों के बारे में बताते हैं-

आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि लड़कियों को खास तरह के सपने आते हैं जिनमें भविष्य का कोई संकेत छुपा होता है। ऐसे सपनों को देखकर पता चल जाता है कि कब किस्मत बदलने वाली है| 

आपको बता दें की जब कोई लड़की अपने सपने में सुंदर चिडिय़ा देखती है तो उसके प्रेम संबंध को विवाह में बदलने में अधिक समय नहीं लगता और उसका होने वाला जीवनसाथी भी शीघ्र ही धनी हो जाता है। इसके अलावा जब कोई कुंवारी कन्या अपने सपने में किसी मूर्तिकार को देखती है तो समझ जाइए कि उस लड़की को जल्द ही उसका मनचाहा वर मिलेगा|

अगर किसी लड़की को सपने में अनार दिखाई दे तो संतान के साथ धन लाभ भी होता है। वहीँ, स्वप्न में यदि कोई युवती किसी सहेली के दिए हुए कंगन पहनती है तो उसका शीघ्र ही विवाह हो जाता है।


जो युवती स्वप्न में कस्तूरी व चंदन अपने शरीर पर लगाती है उसकी मान, प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है तथा मनचाही जगह ट्रांसफर हो जाता है। यदि कोई विवाहित स्त्री स्वप्न में छोटे बच्चे की स्वेटर आदि बुनती है तो उसे शीघ्र ही संतान सुख मिलता है। 

हिन्दू नववर्ष का संवत् 23 मार्च से

हिंदू पंचांग में नववर्ष का आरंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी 'गुड़ी पड़वा' से माना जाता है जो कि इस बार 23 मार्च को पड़ रहा है| हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, यह दिन सृष्टि रचना का पहला दिन है| करीब एक अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 109 वर्ष पूर्व इसी दिन ब्रह्मा जी ने जगत की रचना की थी| इस दिन चैत्र नवरात्रि भी प्रारंभ होती है| हिन्दू परम्परा के अनुसार इस दिन को 'नव संवत्सर' या 'नव संवत' के नाम से भी जाना जाता है|

हिंदू पंचांग के मुताबिक, इस वर्ष 22 मार्च 2012 को शाम 7 बजकर 10 मिनट पर विक्रम संवत् 2069 का प्रारंभ होगा| इस वर्ष का राजा और मंत्री दोनों ही शुक्र है| 23 मार्च 2012 को इस धरा की 1955885113वीं वर्षगांठ है| इसी दिन ब्रह्मा जी ने जगत की रचना प्रारंभ की थी इसीलिए हम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नए साल का आरम्भ मानते हैं| हिन्दू पंचांग का पहला महीना चैत्र होता है| यही नहीं शक्ति और भक्ति के नौ दिन यानी कि नवरात्रि स्थापना का पहला दिन भी यही है| ऐसी मान्यता है कि इस दिन नक्षत्र शुभ स्थिति में आ जाते हैं और किसी भी नए काम को शुरू करने के लिए यह मुहूर्त शुभ होता है|

क्यों मनाते हैं 'गुड़ी पड़वा'-

चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या नववर्ष आरम्भ होता है| 'गुड़ी' का अर्थ होता है 'विजय पताका'| कहा जाता है कि शालिवाहन नामक एक कुम्हार के लड़के ने मिट्टी के सैनिकों का निर्माण किया और उनकी एक सेना बनाकर उस पर पानी छिड़कर उनमें प्राण फूंक दिए| उसने इस सेना की सहायता से शक्तिशाली शत्रुओं को पराजित किया| इसी विजय के प्रतीक के रूप में 'शालिवाहन शक' का प्रारंभ हुआ| महाराष्ट्र में यह पर्व 'गुड़ी पड़वा' के रूप में मनाया जाता है| कश्मीरी हिन्दुओं के लिए नववर्ष एक महत्वपूर्ण उत्सव की तरह है|

इसी तिथि से प्रारंभ होता है विक्रम संवत्-

भारतीय इतिहास में जनप्रिय और न्यायप्रिय शासकों की जब भी बात चलेगी तो वह उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के नाम के बगैर पूरी नहीं हो सकेगी। उनकी न्यायप्रियता के किस्से भारतीय परिवेश का हिस्सा बन चुके हैं। विक्रमादित्य का राज्य उत्तर में तक्षशिला जिसे वर्तमान में पेशावर (पाकिस्तान) के नाम से जाना जाता हैं, से लेकर नर्मदा नदी के तट तक था। उन्होंने यह राज्य मध्य एशिया से आये एक शक्तिशाली राजा को परास्त कर हासिल किया था। राजा विक्रमादित्य ने यह सफलता मालवा के निवासियों के साथ मिलकर गठित जनसमूह और सेना के बल पर हासिल की थी| विक्रमादित्य की इस विजय के बाद जब राज्यारोहण हुआ तब उन्होंने प्रजा के तमाम ऋणों को माफ करने का ऐलान किया तथा नए भारतीय कैलेंडर को जारी किया, जिसे विक्रम संवत नाम दिया गया|

इतिहास के मुताबिक, अवन्ती (वर्तमान उज्जैन) के राजा विक्रमादित्य ने इसी तिथि से कालगणना के लिए 'विक्रम संवत्' का प्रारंभ किया था, जो आज भी हिंदू कालगणना के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है| कहा जाता है कि विक्रम संवत्, विक्रमादित्य प्रथम के नाम पर प्रारंभ होता है जिसके राज्य में न तो कोई चोर हो और न ही कोई अपराधी या भिखारी था| 

वहीँ, अगर ज्योतिष की माने तो प्रत्येक संवत् का एक विशेष नाम होता है| विभिन्न ग्रह इस संवत् के राजा, मंत्री और स्वामी होते हैं| इन ग्रहों का असर वर्ष भर दिखाई देता है| सिर्फ यही नहीं समाज को श्रेष्ठ (आर्य) मार्ग पर ले जाने के लिए स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन को 'आर्य समाज' स्थापना दिवस के रूप में चुना था|

संस्कृति से जोड़ता है विक्रम संवत्-

गुलामी के बाद अंग्रेजों ने हम पर ऐसा रंग चढ़ाया ताकि हम अपने नववर्ष को भूल उनके रंग में रंग जाए| उन्ही की तरह एक जनवरी को ही नववर्ष मनाये और हुआ भी यही लेकिन अब देशवासियों को यह याद दिलाना होगा कि उन्हें अपना भारतीय नववर्ष विक्रमी संवत बनाना चाहिए, जो आगामी 23 मार्च को है|

वैसे अगर देखा जाये तो विक्रम संवत् ही हमें अपनी संस्कृति से जोड़ता है| भारतीय संस्कृति से जुड़े सभी समुदाय विक्रम संवत् को एक साथ बिना प्रचार और नाटकीयता से परे होकर मनाते हैं और इसका अनुसरण करते हैं| दुनिया का लगभग हर कैलेण्डर सर्दी के बाद बसंत ऋतु से ही प्रारम्भ होता है| यही नहीं इस समय प्रचलित ईस्वी सन बाला कैलेण्डर को भी मार्च के महीने से ही प्रारंभ होना था| आपको बता दें कि इस कैलेण्डर को बनाने में कोई नयी खगोलीय गणना करने के बजाए सीधे से भारतीय कैलेण्डर (विक्रम संवत) में से ही उठा लिया गया था|

12 महीनों के नाम-

ऐसा कहा जाता है कि पृथ्वी द्वारा 365/366 दिन में होने वाली सूर्य की परिक्रमा को वर्ष और इस अवधि में चंद्रमा द्वारा पृथ्वी के लगभग 12 चक्कर को आधार मानकर कैलेण्डर तैयार किया और क्रम संख्या के आधार पर उनके नाम रखे गए हैं| हिंदी महीनों के 12 नाम हैं चैत्र, बैशाख, ज्‍येष्‍ठ, आषाढ, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्‍गुन| 

चुनाव व प्रत्‍याशी किन्‍नर.........................

जब छोटा था तो दादी बताया करती थी, श्रीराम जी वनवास को जा रहे थे तो लोग उन्‍हें अयोध्‍या की सीमा तक छोड्ने आयेा समझदार तो विलाप कर उन्‍हें विदा कर लौट गए लेकिन कुछ न घर लौटे न घाट। श्री राम की बाट जोहते रहे, बाद में यही बन गए किन्‍नर। 
चुनाव के दौरान ऐसे ही एक किन्‍नर प्रत्‍याशी से सवाल पूछा,
सवाल...आप चुनाव क्‍यों लड् रहे है.
............

जवाब......हम औरों...की तरह सिर्फ खडे् नहीं हैं। हम तो नाच रहे हैं, गा रहे हैं, लोगों का दिल बहला रहे हैं। गैरों को अपना बना रहे हैं, वोट दो तो अच्‍छा, वर्ना अपने घर खुश रहो बच्‍चा।


सवाल........ समाज में आपकी इमेज जिस तरह की है उससे लगता है कि लोग आपको वो देंगे....


जवाब........ कम से कम हमारी विरादरी के लोग तिहाड् तो नहीं जाते है, केवल ''तू जी तूजी नहीं करते....., हम तो 'सबजी सबजी' के हिमायती हैं। हम खेल में घोटालों का खेल नहीं खेलते। वे बेल कराते हैं हम दिलों का मेल कराते हैं, जरा एक बार अपने दिल पर हाथ रखकर इमानदारी से बताइये, अब तक जिन्‍हें वोट दे रहे थे क्‍या वे सारे के सारे अपनी बात को, वादों को करने वाले मर्द निकले....नहीं न। तो फिर हमे आजमाने में क्‍या एतराज.....


सवाल..... आपका चुनावी नारा क्‍या है...


जवाब..... जो हमसे टकरायेगा, हम जैसा हो जाएगा...


....................................वैसे इस बार यूपी विधानसभा चुनाव में कुल 4938 किन्‍नर मतदाता भी अपने मतों का प्रयोग करेंगे। इस चुनाव में गाजियाबाद से किन्‍नर प्रत्‍याशी राष्‍ट्रीय विकलांग पार्टी से धौलाना विधानसभा किन्‍नर मोर्चा की राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष शोभा बुआ को प्रत्‍याशी बनाया है। वहीं अयोध्‍या से गुलशन उ र्फ विन्‍दू किन्‍नर मैदान में हैं। इसके समर्थन में तमाम किन्‍नरों ने प्रचार किया है। किन्‍नर गुलशन उ र्फ बिन्‍दू का कहना है, कि वह अयोध्‍यावासियों के सहयोग से विधानसभा पहुंचेगी। ऐसा इसलिए कि राम के असली भक्‍त तो किन्‍नर समुदाय ही हैं। इन किन्‍नरों ने ही राम के लिए 14 वर्ष तक अयोध्‍या राज्‍य की सीमा पर प्रतीक्षा की थी......साभार प्रेमचन्‍द्र श्रीवास्‍तव
 

भगवान भोले शंकर की उपासना का पर्व है महाशिवरात्रि

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भारत पर्वों का देश है यह तो हम सब जानते हैं और यह पर्व ज्यादातर हमारी भक्ति और ईश्वर की स्तुति पर निर्भर होते हैं| भगवान शिव को शीघ्र प्रसन्न होने वाला देव कहा गया है| महाशिवरात्रि भगवान शिव की आराधना का पर्व है। हिंदुओं के इस प्रमुख पर्व को फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्य रात्रि भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था, इसीलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया। अपार सुंदरी गौरा को अर्द्धांगिनी बनाने वाले शिव प्रेतों व पिशाच्चों से घिरे रहते हैं। शरीर पर मसानों की भस्म, गले में सर्पों का हार, कंठ में विष, जटाओं में जगत-तारिणी पावन गंगा तथा माथे में प्रलयंकर ज्वाला है। आपको बता दें कि इस बार शिवरात्रि 20 फरवरी दिन सोमवार (फाल्गुण मास की रयोदशी तिथि) को है|

महाशिवरात्रि का यह पावन व्रत सुबह से ही शुरू हो जाता है। इस व्रत के दिन भगवान शिवलिंग दर्शन के लिए हजारों की संख्या में शिव भक्त आते है| सभी शिवालयों में महाशिवरात्रि के दिन बेल, धतूरा और दूध का अभिषेक किया जाता है| शिवरात्रि मात्र एक व्रत नहीं है, और न ही यह कोई त्यौहार है. सही मायनों में देखा जायें, तो यह एक महोत्सव है इस दिन देवों के देव भगवान भोलेनाथ का विवाह हुआ था| उसकी खुशी में यह पर्व मनाया जाता है| शिवलिंग पर बेल-पत्र आदि चढ़ाकर पूजन करते हैं। इस पर्व पर रात्रि जागरण का विशेष महत्व है।

ज्योतिषीय गणना के अनुसार सूर्य देव भी इस समय तक उत्तरायण में आ चुके होते हैं तथा ऋतु परिवर्तन का यह समय अत्यंत शुभ कहा गया है। शिव का अर्थ है कल्याण, शिव सबका कल्याण करने वाले हैं। महाशिवरात्रि शिव की प्रिय तिथि है। अतः प्रायः ज्योतिषी शिवरात्रि को शिव आराधना कर कष्टों से मुक्ति पाने का सुझाव देते हैं।

महाशिवरात्रि की व्रत विधि-

शिवपुराणके अनुसार व्रती पुरुष को महाशिवरात्रि के दिन प्रातःकाल उठकर स्न्नान-संध्या आदि कर्मसे निवृत्त होनेपर मस्तकपर भस्मका त्रिपुण्ड्र तिलक और गलेमें रुद्राक्षमाला धारण कर शिवालयमें जाकर शिवलिंगका विधिपूर्वक पूजन एवं शिवको नमस्कार करना चाहिये। तत्पश्चात्‌ उसे श्रद्धापूर्वक महाशिवरात्रि व्रतका इस प्रकार संकल्प करना चाहिये-

शिवरात्रिव्रतं ह्यतत्‌ करिष्येऽहं महाफलम्‌।
निर्विघ्नमस्तु मे चात्र त्वत्प्रसादाज्जगत्पते॥

महाशिवरात्रि के प्रथम प्रहर में संकल्प करके दूध से स्नान तथा `ओम हीं ईशानाय नम:’ का जाप करें। द्वितीय प्रहर में दधि स्नान करके `ओम हीं अधोराय नम:’ का जाप करें। तृतीय प्रहर में घृत स्नान एवं मंत्र `ओम हीं वामदेवाय नम:’ तथा चतुर्थ प्रहर में मधु स्नान एवं `ओम हीं सद्योजाताय नम:’ मंत्र का जाप करें।

पूजा सामग्रीः- 

सुगंधित पुष्प, बिल्वपत्र, धतूरा, भाँग, बेर, आम्र मंजरी, जौ की बालें,तुलसी दल, मंदार पुष्प, गाय का कच्चा दूध, ईख का रस, दही, शुद्ध देशी घी, शहद, गंगा जल, पवित्र जल, कपूर, धूप, दीप, रूई, मलयागिरी, चंदन, पंच फल पंच मेवा, पंच रस, इत्र, गंध रोली, मौली जनेऊ, पंच मिष्ठान्न, शिव व माँ पार्वती की श्रृंगार की सामग्री, वस्त्राभूषण रत्न, सोना, चाँदी, दक्षिणा, पूजा के बर्तन, कुशासन आदि।


भगवान भोलेनाथ को बिल्वपत्र चढ़ाने का मंत्रः-

नमो बिल्ल्मिने च कवचिने च नमो वर्म्मिणे च वरूथिने च
नमः श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो दुन्दुब्भ्याय चा हनन्न्याय च नमो घृश्णवे॥

दर्शनं बिल्वपत्रस्य स्पर्शनम्‌ पापनाशनम्‌। अघोर पाप संहारं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्‌॥
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुधम्‌। त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्‌॥
अखण्डै बिल्वपत्रैश्च पूजये शिव शंकरम्‌। कोटिकन्या महादानं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्‌॥
गृहाण बिल्व पत्राणि सपुश्पाणि महेश्वर। सुगन्धीनि भवानीश शिवत्वंकुसुम प्रिय।


महाशिवरात्रि व्रत की कथा-

एक बार पार्वती ने भगवान शिवशंकर से पूछा, 'ऐसा कौन सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्यु लोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?'

उत्तर में शिवजी ने पार्वती को 'शिवरात्रि' के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- 'एक गाँव में एक शिकारी रहता था। पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधवश साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी।

शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया।

अपनी दिनचर्या की भाँति वह जंगल में शिकार के लिए निकला, लेकिन दिनभर बंदीगृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल-वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढँका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला।

पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियाँ तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए।

एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुँची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, 'मैं गर्भिणी हूँ। शीघ्र ही प्रसव करूँगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं अपने बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे सामने प्रस्तुत हो जाऊँगी, तब तुम मुझे मार लेना।' शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी झाड़ियों में लुप्त हो गई।

कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, 'हे पारधी ! मैं थोड़ी देर पहले ही ऋतु से निवृत्त हुई हूँ। कामातुर विरहिणी हूँ। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूँ। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊँगी।'

शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर न लगाई, वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, 'हे पारधी! मैं इन बच्चों को पिता के हवाले करके लौट आऊँगी। इस समय मुझे मत मार।'

शिकारी हँसा और बोला, 'सामने आए शिकार को छोड़ दूँ, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूँ। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे।'

उत्तर में मृगी ने फिर कहा, 'जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी, इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान माँग रही हूँ। हे पारधी! मेरा विश्वास कर मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूँ।'

मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के आभाव में बेलवृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्व करेगा।

शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला,' हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि उनके वियोग में मुझे एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूँ। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण जीवनदान देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊँगा।'

मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटना-चक्र घूम गया। उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, 'मेरी तीनों पत्नियाँ जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएँगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूँ।'

उपवास, रात्रि जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गए। भगवान शिव की अनुकम्पा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा।

थोड़ी ही देर बाद मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आँसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया।

देव लोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहा था। घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प वर्षा की। तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए।'

किराए के बिस्तर और रजाई से कटती है बेघरों की ठंडी रात

पुरानी दिल्ली के जामा मस्जिद के पीछे वाहनों के पुर्जो का एक बड़ा बाजार है, जहां दिन में दुकानें गुलजार रहती हैं वहीं रात में दुकानों के शटर गिरते ही यह स्थान बेघरों के शरणगाह के रूप में तब्दील हो जाता है। ठंड के मौसम में बेघर लोग यहां किराए की रजाई और खाट लेकर किसी तरह रात काटते हैं।

फूल और छोटी-मोटी चीजें बेचकर जीविका चलाने वाला 14 वर्षीय भानू कुमार ठंड का मौसम समाप्त होने का इंतजार कर रहा है, ताकि तोशक और रजाई पर खर्च होने वाला किराये का पैसा बचे और वह उसे मध्य प्रदेश में अपने परिवार को भेज पाए।

दिन में तो तापमान में थोड़ी वृद्धि हुई है, लेकिन रात अभी भी ठंडी है। उत्तर भारत के कुछ इलाकों में बर्फ गिरने के कारण ठंड कुछ बढ़ गया है और हल्की बारिश के कारण इन बेघरों की परेशानी और बढ़ गई है।

भानू ने कहा कि ठंड का मौसम हम लोगों के लिए काफी कठिन होता है। कई बार तो हम लोगों पास खाने और बिस्तर किराए पर लेने के लिए पैसे तक नहीं होते। उसने कहा, "किसी तरह ठंड का मौसम समाप्त हो ताकि रोज बिस्तर और रजाई के किराए पर खर्च होने वाले 10 रुपये बचने शुरू हों।"

दिल्ली में कई सालों से बेघर किराए पर बिस्तर और रजाई लेकर ठंड की रात काटते रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के मुताबिक दिल्ली की सड़कों पर करीब 56 हजार बेघर लोग रात बिताते हैं।

कासिम उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से करीब 30 सालों पहले दिल्ली आया था। वह वर्षो से यहां सोने के लिए आया करता है। उसने कहा कि गरीबों के लिए सिर्फ दो ही मौसम होते हैं - जाड़ा और गर्मी। दोनों में परेशानी होती है। लेकिन ठंड का मौसम अधिक परेशानी वाला होता है। गर्मी में तो लोग कहीं भी सो सकते हैं।

हवा में उड़ते वक्त टकराने से कैसे बचते हैं पक्षी

पंछियों को उड़ते देख क्या आपने कभी सोचा है कि पंछी हवा में उड़ते समय किसी पेड़ या अन्य से टकराते क्यों नहीं है| आपको पता है पंछी हवा में उड़ते समय क्यों नहीं टकराते हैं दरअसल पक्षियों को उड़ते वक्त भीड़-भाड़ वाली सड़कों की परेशानी तो नहीं होती, लेकिन उन्हें खुद को किसी पेड़ और अन्य वस्तु से टकराने से बचाने के लिए गति सीमा का ध्यान रखना पड़ता है।

मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) के शोधकर्ता मानते हैं कि उनकी खोज सेना को मानव रहित विमान ड्रोन को बिना दुर्घटनाग्रस्त हुए अधिकतम गति से उड़ाने में मदद कर सकती है।इतना ही नहीं शोधकर्ताओं ने एक गणितीय मॉडल भी तैयार किया है, जो पक्षियों के हवा में उड़ने के ढंग पर आधारित है। 

एमआईटी के प्रोफेसर और अध्ययन के लेखक एमिलियो फ्रेजोली ने कहा है कि अगर पक्षियों की उड़ने की गति तुरन्त दिखाई देने वाली वस्तुओं पर आधारित होती तो वह ज्यादा तेजी से नहीं उड़ पाते।

एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पक्षी जिस वातावरण में उड़ रहे होते हैं, मौटे तौर पर उसके घनत्व की गणना कर लेते हैं। वे पेड़ों और भवनों के बीच अंतर खोजने की सम्भावना के आधार पर अपनी उड़ने की शीर्ष गति का निर्धारण करते हैं। 

इस वक्त कबूतरों पर अपने सिद्धांत का परीक्षण कर रहे फ्रिजोली बताते है, "कोई एक अधिकतम गति तय नहीं की जा सकती है। अधिकतम गति का सम्बंध कुछ मापदंडों से है, जो पेड़ के धनत्व और आकार और पक्षी की उड़ने की निपुणता और आकार पर निर्भर करती है।"

उन्होंने कहा कि पक्षियों के हवा में उड़ने के ढंग के आधार पर बनाए गए गणितीय मॉडल का उपयोग मानव रहित ड्रोन के सुरक्षित उड़ान के लिए अधिकतम गति को बढ़ाने में किया जा सकता है।

कुदरत के आगोश में प्रकृति पुत्र नेपाल

काठमांडू : पर्वतराज हिमालय की गोद में बसा नेपाल। सारी दुनिया में नेपाल का बेदाग खूबसूरती और बेपनाह सौंदर्य के चलते एक अलग स्थान है। सैर-सपाटे के लिये दुनियाभर के पर्यटकों की ये पसंदीदा है। खूबसूरत वादियाँ, अनगिनत चमकती पर्वत माला, हरे-भरे जंगल,कल-कल करती नदियां, झीलें, झरने और दूर तक फैली मखमली हरियाली लुभा लेती है। लगता है जैसे कुदरत ने बड़ी फुर्सत में हसीन नजारे गढ़े हैं।

कुदरती नाजो अदा का दीदार होने पर हर नजारा दिल को अपने आगोश में ले लेता है। प्राकृतिक सौंदर्य से छलकता नेपाल मन्दिरों, स्तूपों, पैगोडा और आस्था के कई अन्य स्थलों के साथ ऐतिहासिक धरोहरों को भी समेटे हुए हैं। नेपाल में ही दुनिया की सबसे ऊंची चोटी 8848 मीटर की माउंट एवरेस्ट है, जिसके साथ अदभुत और रोमांचकारी बर्फ से ढकी पर्वत मालाएं हैं। आप को जान कर हैरत होगी कि दुनिया के दस सबसे ऊंचे शिखरों में से आठ नेपाल में हैं। एवरेस्ट के साथ ही कंचनजंगा, लाहोत्से, मकालू, चू-ओपू, धौलागिरी, मांसलू और अन्नपूर्णा- इन सभी की ऊंचाई 8000 मीटर से ज्यादा है। बादल तो ऐसे मचलते हैं, जैसे मस्ती के आलम में बेसुध हों। जब ये पर्वत मालाओं से टकराते हैं तो मानो मचलते हुए बाँहों में भर रहे हैं। मौसम इतना खुशगवार कि तबियत गार्डन- गार्डन हो जाये।

नेपाल के उत्तर में तिब्बत और चीन, पूर्व में सिक्किम, दक्षिण में भारत के उत्तर प्रदेश व बिहार और पश्चिम में उत्तराखण्ड राज्यों की सीमाएं लगती हैं। वैसे तो नेपाल का हर कोना प्राकृतिक हुस्न का जीता जगता शाहकार है, किन्तु फिर भी कुछ बहुत खास हैं।

काठमांडू : नेपाल की राजधानी काठमांडू विश्व के प्राचीनतम नगरों में से एक है। पहले इसे कांतीपुर कहा जाता था। यह काफी खूबसूरत शहर है। यहां ज़बरदस्त चहल-पहल रहती है। हवाई अड्डा है। छोटे-बडे काफी होटल हैं। कई फाइव स्टार होटल हैं। बाजार अच्छा है। न्यू रोड पर मशहूर अत्याधुनिक किस्म का बाजार है। कई मॉल भी हैं। विदेशी सामानों की यहां भरमार है। काठमांडू में ही थामेल मशहूर बाजार है, जहां सभी तरह के सामानों के अलावा छोटे-बडे कई रेस्तरां हैं, जहां पर आपको मनपसन्द भोजन मिल सकता है। इसी क्षेत्र में ‘नेपाली चुलू’ अर्थात नेपाली भोजन का स्वाद गीत-संगीत-नृत्य के साथ लिया जा सकता है, वो भी नेपाली स्टाइल में।

पशुपतिनाथ का भव्य मन्दिर काठमांडू में है, जो बागमती नदी के तट पर स्थित है। यहां श्रद्धालुओं की हमेशा भीड रहती है। काफी लम्बे-चौडे भूभाग में बने भगवान शिव के मन्दिर के साथ ही कई और मन्दिर भी दर्शनीय हैं। काठमांडू में ही भगवान बुद्ध से सम्बन्धित दो प्रमुख स्तूप हैं- बौद्धनाथ और स्वयंभूनाथ स्तूप। ये दोनों काफी ऊंचाई पर हैं। भगवान बुद्ध की जन्मस्थली लुम्बिनी भी नेपाल में है।

काठमांडू की घाटी में तीन प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं- काठमांडू दरबार स्क्वायरपाटनऔर भक्तपुर दरबार स्क्वायर। भक्तपुर में काफी लम्बे चौडे क्षेत्र में कई भवनों, मंदिरों आदि में कलात्मक नमूना देखा जा सकता है। यहां पर पचपन खिडकियों का सुन्दर भवन कलात्मक लकडी का अदभुत नमूना पेश करता है।

नागरकोट :- यह काठमांडू से 32 किलोमीटर की दूरी पर काफी ऊंचाई पर स्थित है। यहां से प्रातःकाल सूरज निकलने का मनोरम दृश्य देखा जा सकता है। इसके लिये पर्यटक रात में ही नगरकोट पहुंच जाते हैं। यहां ठण्ड अधिक होती है।

मनोकामना देवी मन्दिर: यह गोरखा नाम के कस्बे से 12 किलोमीटर की दूरी पर है। मन्दिर में दर्शन और मन्नत मांगने के लिए 1302 मीटर के पहाड पर जाने के लिये ‘केबिल कार’ से जाया जाता है। 

पोखरा :- यह काठमांडू से 200 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां प्रकृति का हुस्न देखने लायक है। यहां से हिमालय पर्वत श्रेणियों को अपेक्षाकृत नजदीक से देखा जा सकता है। अन्नपूर्णा, धौलागिरी और मांसलू चोटियों को यहां निकट से देखा जा सकता है। यह कुदरत का अदभुत करिश्मा है कि 800 मीटर की ऊंचाई पर बसे पोखरा से 8000 मीटर से भी ऊंचे पहाड सिर्फ 25-30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। पहाडों के अलावा झीलें, नदियां, झरनों के साथ-साथ मन्दिर, स्तूप और म्यूजियम भी पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। यहां भी हवाई अड्डा है। सडकें अच्छी हैं। शॉपिंग का भरपूर मजा लिया जा सकता है। अब तो एक कैसिनो भी खुल गया है।

यहां पर भी सूर्य के उदय के दर्शन के लिये लोग सारंगकोट में 1591 मीटर की ऊंचाई पर तडके ही पहुंच जाते हैं। जब सूरज की पहली किरण बर्फ जमे पहाडों पर पडती है तो उस समय का सुनहरापन पहाड का श्रृंगार कर देता है। प्रकृति का यह अदभुत दृश्य कभी न भूलने वाला बन जाता है।

पोखरा को झीलों का शहर कहते हैं। पोखरा में आठ झीलें हैं- फेवा, बनगास, रूपा, मैदी, दीपपांग, गुंडे, माल्दी और खास्त। फेवा झील में तो बाराही मन्दिर भी है, जहां लोग दर्शन करने जाते हैं। इसमें बोटिंग का मजा लिया जा सकता है। इसके अलावा बर्ड वाचिंग, स्विमिंग, सनबाथिंग आदि को अपना बना सकते हैं। यहां पर काली-गंडक नदी में विश्व में सबसे संकरी गहराई वाला स्थान है। कई नदियां भी हैं। एक है सेती नदी! नेपाली में सेती का अर्थ सफेद! अर्थात सफेद दूधिया पानी की नदी! खास बात- यह नदी कहीं अंडरग्राउंड तो कहीं सिर्फ दो मीटर चौडी और कहीं-कहीं यह 40 मीटर गहरी है। महेन्द्र पुल, के.एल. सिंह ब्रिज, रामघाट, पृथ्वी चौक से इस नदी का उफान देखा जा सकता है।

झीलों, नदियों के साथ मनमोहक झरना दिलोदिमाग को ताजगी से भर देता है। यहीं पर गुप्तेश्वर महादेव गुफा के अन्दर शिवजी का मन्दिर देखने लायक बना है। इनके अलावा गुफाएं भी रोमांच पैदा करती हैं। पोखरा में इंटरनेशनल म्यूजियम और गोरखा मेमोरियल म्यूजियम अपनी अपनी कहानी बताकर इतिहास से परिचित कराते हैं। तितली म्यूजियम का भी मजा लिया जा सकता है।

चितवन नेशनल पार्कएवरेस्ट नेशनल पार्कबरदिया नेशनल पार्कलांगटांग नेशनल पार्कशिवपुरी नेशनल पार्क हैं, जो नेपाल की 19.42 प्रतिशत भूमि को घेरे हुए हैं। नेपाल को चिडियों से प्यार है तभी तो यहां 848 किस्म की चिडियां पाई जाती हैं। ‘मोनल’ यहां का राष्ट्रीय पक्षी है। रंग-बिरंगी तितलियां हर ओर मिलती हैं। देश में तितलियों की 300 किस्में पाई जाती हैं। 

भारतीयों के साथ जापान, मलेशिया, सिंगापुर, कोरिया, बांग्लादेश, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, आस्ट्रेलिया, अमेरिका, कनाडा, न्यूजीलैण्ड, इटली आदि देशों से भी यहाँ पर्यटक आते हैं।

नेपाल की राष्ट्रीय भाषा नेपाली है लेकिन अंग्रेजी और हिन्दी में बातचीत की जा सकती है। यहां नेपाली रुपया चलता है। भारतीय एक सौ रुपया नेपाल के 160 रुपये के बराबर होता है। नेपाल में कैसिनो का मज़ा लिया जा सकता है। काठमांडू में सात और पोखरा में एक कैसिनो है।

भारतीयों को नेपाल जाने के लिये किसी वीजा की जरुरत नहीं होती। उन्हें वहां जाने के लिये एक फोटो पहचान पत्र जरूरी होता है जो पासपोर्ट भी हो सकता है और पासपोर्ट भी न हो तो मतदाता पहचान पत्र या अन्य किसी सरकारी फोटो पहचान पत्र से भी काम चलाया जा सकता है।

कैसे जायें :- 

दिल्ली व यूपी के वाराणसी के साथ ही भैरहवा से वायुयान की सुविधा। काठमांडू से पोखरा के लिये कई हवाई उडान! काठमांडू से पोखरा हवाई यात्रा समय 20-25 मिनट।

सडक मार्ग: उत्तर प्रदेश और बिहार के सीमावर्ती स्थानों से काठमांडू और पोखरा के लिये बस, टैक्सी आसानी से मिल जाती हैं |

यारों! शादी मत करना

यारों! शादी मत करना, ये है मेरी अर्ज़ी
फिर भी हो जाए तो ऊपर वाले की मर्ज़ी।

लैला ने मजनूँ से शादी नहीं रचाई थी
शीरी भी फरहाद की दुल्हन कब बन पाई थी
सोहनी को महिवाल अगर मिल जाता, तो क्या होता
कुछ न होता बस परिवार नियोजन वाला रोता
होते बच्चे, सिल-सिल कच्छे, बन जाता वो दर्ज़ी।

सक्सेना जी घर में झाड़ू रोज़ लगाते हैं
वर्मा जी भी सुबह-सुबह बच्चे नहलाते हैं
गुप्ता जी हर शाम ढले मुर्गासन करते हैं
कर्नल हों या जनरल सब पत्नी से डरते हैं
पत्नी के आगे न चलती, मंत्री की मनमर्ज़ी।

बड़े-बड़े अफ़सर पत्नी के पाँव दबाते हैं
गूंगे भी बेडरूम में ईलू-ईलू गाते हैं
बहरे भी सुनते हैं जब पत्नी गुर्राती है
अंधे को दिखता है जब बेलन दिखलाती है
पत्नी कह दे तो लंगड़ा भी, दौड़े इधर-उधर जी।

पत्नी के आगे पी.एम., सी.एम. बन जाता है
पत्नी के आगे सी एम, डी.एम. बन जाता है
पत्नी के आगे डी. एम. चपरासी होता है
पत्नी पीड़ित पहलवान बच्चों सा रोता है
पत्नी जब चाहे फुड़वा दे, पुलिसमैन का सर जी।

पति होकर भी लालू जी, राबड़ी से नीचे हैं
पति होकर भी कौशल जी, सुषमा के पीछे है
मायावती कुँवारी होकर ही, सी.एम. बन पाई
क्वारी ममता, जयललिता के जलवे देखो भाई
क्वारे अटल बिहारी में, बाकी खूब एनर्जी।
पत्नी अपनी पर आए तो, सब कर सकती है 
कवि की सब कविताएं, चूल्हे में धर सकती है
पत्नी चाहे तो पति का, जीना दूभर हो जाए
तोड़ दे करवाचौथ तो पति, अगले दिन ही मर जाए
पत्नी चाहे तो खुदवा दे, घर के बीच क़बर जी।
शादी वो लड्डू है जिसको, खाकर जी मिचलाए 
जो न खाए उसको, रातों को, निंदिया न आए
शादी होते ही दोपाया, चोपाया होता है
ढेंचू-ढेंचू करके बोझ, गृहस्थी का ढोता है
सब्ज़ी मंडी में कहता है, कैसे दिए मटर जी.....

काल सर्प को दोष नहीं योग कहना चाहिए क्योंकि.......

साढ़े साती और काल सर्प योग का नाम सुनते ही लोग घबरा जाते हैं| इनके प्रति लोगों के मन में जो भय बना हुआ है इसका फायदा उठाकर बहुत से ज्योतिषी लोगों को लूट रहे हैं| बात करें काल सर्प योग की तो इसके भी कई रूप और नाम हैं| काल सर्प को दोष नहीं बल्कि योग कहना चाहिये|

काल सर्प का सामान्य अर्थ यह है कि जब ग्रह स्थिति आएगी तब सर्प दंश के समान कष्ट होगा| पुराने समय राहु तथा अन्य ग्रहों की स्थिति के आधार पर काल सर्प का आंकलन किया जाता था| आज ज्योतिष शास्त्र को वैज्ञानिक रूप में प्रस्तुत करने के लिए नये नये शोध हो रहे हैं| इन शोधो से कालसर्प योग की परिभाषा और इसके विभिन्न रूप एवं नाम के विषय में भी जानकारी मिलती है| वर्तमान समय में कालसर्प योग की जो परिभाषा दी गई है उसके अनुसार जन्म कुण्डली में सभी ग्रह राहु केतु के बीच में हों या केतु राहु के बीच में हों तो काल सर्प योग बनता है|

कालसर्प योग के नाम-

ज्योतिष शास्त्र में प्रत्येक भाव के लिए अलग अलग कालसर्प योग के नाम दिये गये हैं| इन काल सर्प योगों के प्रभाव में भी काफी कुछ अंतर पाया जाता है जैसे प्रथम भाव में कालसर्प योग होने पर अनन्त काल सर्प योग बनता है| 

अनन्त कालसर्प योग -

जब प्रथम भाव में राहु और सप्तम भाव में केतु होता है तब यह योग बनता है| इस योग से प्रभावित होने पर व्यक्ति को शारीरिक और, मानसिक परेशानी उठानी पड़ती है साथ ही सरकारी व अदालती मामलों में उलझना पड़ता है| इस योग में अच्छी बात यह है कि इससे प्रभावित व्यक्ति साहसी, निडर, स्वतंत्र विचारों वाला एवं स्वाभिमानी होता है|

कुलिक काल सर्प योग -

द्वितीय भाव में जब राहु होता है और आठवें घर में केतु तब कुलिक नामक कालसर्प योग बनता है| इस कालसर्प योग से पीड़ित व्यक्ति को आर्थिक काष्ट भोगना होता है| इनकी पारिवारिक स्थिति भी संघर्षमय और कलह पूर्ण होती है| सामाजिक तौर पर भी इनकी स्थिति बहुत अच्छी नहीं रहती|

वासुकि कालसर्प योग - 

जन्म कुण्डली में जब तृतीय भाव में राहु होता है और नवम भाव में केतु तब वासुकि कालसर्प योग बनता है| इस कालसर्प योग से पीड़ित होने पर व्यक्ति का जीवन संघर्षमय रहता है और नौकरी व्यवसाय में परेशानी बनी रहती है| इन्हें भाग्य का साथ नहीं मिल पाता है व परिजनों एवं मित्रों से धोखा मिलने की संभावना रहती है|

शंखपाल कालसर्प योग-

राहु जब कुण्डली में चतुर्थ स्थान पर हो और केतु दशम भाव में तब यह योग बनता है| इस कालसर्प से पीड़ित होने पर व्यक्ति को आंर्थिक तंगी का सामना करना होता है| इन्हें मानसिक तनाव का सामना करना होता है| इन्हें अपनी मां, ज़मीन, परिजनों के मामले में कष्ट भोगना होता है|

पद्म कालसर्प योग-

पंचम भाव में राहु और एकादश भाव में केतु होने पर यह कालसर्प योग बनता है| इस योग में व्यक्ति को अपयश मिलने की संभावना रहती है| व्यक्ति को यौन रोग के कारण संतान सुख मिलना कठिन होता है| उच्च शिक्षा में बाधा, धन लाभ में रूकावट व वृद्धावस्था में सन्यास की प्रवृत होने भी इस योग का प्रभाव होता है|

महापद्म कालसर्प योग -

जिस व्यक्ति की कुण्डली में छठे भाव में राहु और बारहवें भाव में केतु होता है वह महापद्म कालसर्प योग से प्रभावित होता है| इस योग से प्रभावित व्यक्ति मामा की ओर से कष्ट पाता है एवं निराशा के कारण व्यस्नों का शिकार हो जाता है| इन्हें काफी समय तक शारीरिक कष्ट भोगना पड़ता है| प्रेम के ममलें में ये दुर्भाग्यशाली होते हैं|

तक्षक कालसर्प योग-

तक्षक कालसर्प योग की स्थिति अनन्त कालसर्प योग के ठीक विपरीत होती है| इस योग में केतु लग्न में होता है और राहु सप्तम में| इस योग में वैवाहिक जीवन में अशांति रहती है| कारोबार में साझेदारी लाभप्रद नहीं होती और मानसिक परेशानी देती है| 

शंखचूड़ कालसर्प योग-

तृतीय भाव में केतु और नवम भाव में राहु होने पर यह योग बनता है| इस योग से प्रभावित व्यक्ति जीवन में सुखों को भोग नहीं पाता है| इन्हें पिता का सुख नहीं मिलता है| इन्हें अपने कारोबार में अक्सर नुकसान उठाना पड़ता है|

घातक कालसर्प योग -

कुण्डली के चतुर्थ भाव में केतु और दशम भाव में राहु के होने से घातक कालसर्प योग बनता है| इस योग से गृहस्थी में कलह और अशांति बनी रहती है| नौकरी एवं रोजगार के क्षेत्र में कठिनाईयों का सामना करना होता है|

विषधर कालसर्प योग -

केतु जब पंचम भाव में होता है और राहु एकादश में तब यह योग बनता है| इस योग से प्रभावित व्यक्ति को अपनी संतान से कष्ट होता है| इन्हें नेत्र एवं हृदय में परेशानियों का सामना करना होता है| इनकी स्मरण शक्ति अच्छी नहीं होती| उच्च शिक्षा में रूकावट एवं सामाजिक मान प्रतिष्ठा में कमी भी इस योग के लक्षण हैं| 

शेषनाग कालसर्प योग -

व्यक्ति की कुण्डली में जब छठे भाव में केतु आता है तथा बारहवें स्थान पर राहु तब यह योग बनता है| इस योग में व्यक्ति के कई गुप्त शत्रु होते हैं जो इनके विरूद्ध षड्यंत्र करते हैं| इन्हें अदालती मामलो में उलझना पड़ता है| मानसिक अशांति और बदनामी भी इस योग में सहनी पड़ती है| इस योग में एक अच्छी बात यह है कि मृत्यु के बाद इनकी ख्याति फैलती है| अगर आपकी कुण्डली में है तो इसके लिए अधिक परेशान होने की आवश्यक्ता नहीं है| काल सर्प योग के साथ कुण्डली में उपस्थित अन्य ग्रहों के योग का भी काफी महत्व होता है| आपकी कुण्डली में मौजूद अन्य ग्रह योग उत्तम हैं तो संभव है कि आपको इसका दुखद प्रभाव अधिक नहीं भोगना पड़े और आपके साथ सब कुछ अच्छा हो|