एक थी निर्भया

दिल्ली में पिछले साल 16 दिसंबर को एक मेडिकल स्टूडेंट के साथ चलती बस में बर्बर सामूहिक दुष्कर्म की घटना का एकमात्र गवाह पीड़िता का दोस्त है। एक वर्ष पहले हुई इस जघन्य वारदात ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था और पीड़िता के दोस्त अरविंद पांडेय का कहना है कि वह अभी भी सदमे में हैं और अपराध बोध से गुजर रहे हैं। 

29 वर्षीय पांडेय अपनी 23 वर्षीय फिजियोथेरेपिस्ट दोस्त के साथ उस दुर्भाग्यपूर्ण रात को दक्षिणी दिल्ली के मुनिरका स्थित बस स्टाप से बस पर चढ़े थे। उन्होंने कहा कि उनको केवल एक बात से संतोष है कि दोषियों में से चार को मृत्युदंड दिया गया है। लेकिन पांडेय की मांग है कि अरोपियों में से नाबालिग को भी कठोर दंड दिया जाए। 

पूर्वी उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में स्थित अपने घर से पांडेय ने फोन पर कहा, "मैं अक्सर खुद से पूछता हूं कि क्या इस पूरी घटना के लिए मैं जिम्मेदार हूं? मैं मॉल क्यों गया? मैं बस में क्यों चढ़ा? मैं दो हफ्ते तक ठीक से बोल भी नहीं पाया।" पांडेय सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। पांडेय उस रात के हमले में गंभीर रूप से घायल हुए थे और बाद में जीवित बच गए थे। उनकी दोस्त की 13 दिनों बाद मौत हो गई। 

बस में दुष्किर्मियों के बीच गुजरे भयावह 84 मिनटों को याद करते हुए पांडेय ने कहा कि जब उन्होंने 'लाइफ ऑफ पाई' फिल्म देखने का फैसला किया तो उनको पता नहीं था कि इसके कारण ऐसी बर्बर घटना घटेगी जो एक वर्ष बाद भी उनका पीछा करेगी। 

उधर, पीड़िता के परिजनों को अभी भी उस दिन का इंतजार है, जब दुष्कर्मियों को फांसी पर लटकाया जाएगा। चलती बस में दरिंदगी की शिकार होने के बाद 13 दिन संघर्ष करते हुए मौत से हारने वाली 23 साल की फीजियोथेरेपी प्रशिक्षु के पिता ने कहा, "हमारे लिए बस समय ही गुजरा है। लेकिन उसके (पीड़िता) घावों की तरह ही हमारे घाव आज भी हरे हैं। मुझे नहीं लगता कि हम कभी इससे उबर पाएंगे।" उज्जवल भविष्य' की ओर कदम बढ़ाने वाली अपनी 'तेजस्विनी बेटी' के अंतिम दिनों को याद करते हुए उनकी आंखों से आंसू टपक पड़े। पीड़िता ने देहरादून से फीजियोथेरेपी का अध्ययन किया था और दिल्ली के एक निजी अस्पताल में बतौर प्रशिक्षु कार्यरत थी।

पीड़िता के पिता ने कहा, "वह जब भी देहरादून से आती थी, दरवाजे के पीछे छिपकर मुझे चौंका देती थी।" इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे पर कुली का काम करने वाले 54 वर्षीय शोकाकुल पिता ने आगे कहा, "उसकी हर चीज मेरे दिमाग में हमेशा घूमती रहती है। मेरे लिए वह अभी भी जीवित है। मेरे लिए समय जैसे ठहर-सा गया है। लगता है, जैसे वह अभी भी दरवाजे के पीछे छिपी हुई है और अचानक कभी भी मेरे सामने आ जाएगी।"

पीड़िता के पिता की अब एक ही इच्छा है, दरिंदों को जल्द से जल्द फांसी। पश्चिमी दिल्ली के द्वारका में अपने दो कमरों वाले घर में बैठे पीड़िता के पिता ने आईएएनएस को बताया, "अपराधियों को फांसी मिलने के बाद ही मुझे संतुष्टि मिलेगी। इससे मेरे परिवार को कुछ सांत्वना मिलेगी।" वह चार महीने पहले ही सरकार द्वारा आवंटित इस घर में आए हैं। पिछले वर्ष राष्ट्रीय राजधानी में एक चलती बस में पांच व्यक्तियों एवं एक किशोर की हवस का शिकार बनी पीड़िता 13 दिनों तक जीवन के लिए जूझती रही।

दिल्ली की एक अदालत द्वारा चार अपराधियों को सुनाई गई मृत्युदंड की सजा से पीड़िता के परिजन संतुष्ट हैं। एक अपराधी (बस के चालक) ने न्यायिक हिरासत के दौरान तिहाड़ जेल में खुदकुशी कर ली थी। दूसरी ओर, पीड़िता के परिजन अपराधी किशोर को मिली सजा से खुश नहीं हैं। किशोर आरोपी को किशोर न्याय बोर्ड ने तीन वर्ष सुधार गृह में रहने की सजा सुनाई है। चार अपराधियों को मिली मृत्युदंड की सजा के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय में अभी सुनवाई चल रही है।

पीड़िता के पिता ने बताया, "हमने सर्वोच्च न्यायालय से किशोर न्याय बोर्ड के फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है।" पिता ने थोड़ा गुस्से से कहा, "किसी दुष्कर्मी को सिर्फ इसलिए कैसे छोड़ा जा सकता है कि वह किशोर है। वह उस बर्बरता में शामिल था। उसे भी फांसी दी जानी चाहिए, ताकि दूसरों को सबक मिले।"

बगल में ही बैठी पीड़िता की मां सब चुपचाप सुनती रहीं और लगातार आंसू बहाती रहीं। उन्होंने बताया कि उनके मन में बेटी की अंतिम समय की छवि जैसे जम सी गई है। भाव-विह्वल होते हुए उन्होंने बताया, "उस शाम जब वह घर से जा रही थी, मैं कभी भूल नहीं सकती। उसने हाथ हिलाकर मुझसे विदा ली और उसके अंतिम वाक्य थे, "बाय मॉम, मैं कुछ ही घंटों में आ जाऊंगी"।" "पर वह घर नहीं लौटी, कभी लौटेगी भी नहीं।" पीड़िता के परिजन शुक्रवार, 16 दिसंबर को पीड़िता की बरसी पर दिल्ली के मध्य में 'कांस्टिट्यूशन क्लब' में पीड़िता की याद में एक श्रद्धांजलि समारोह आयोजित करने की योजना बना रहे हैं।

पिता ने बताया, "हमारा समर्थन करने वाले सभी लोगों को हम धन्यवाद देना चाहते हैं।" अपनी बेटी के अंतिम क्षणों को याद करते हुए उसके पिता ने कहा कि उनके मन में एक कसक रह गई कि वह अपनी बेटी की अंतिम इच्छा पूरी नहीं कर सके। उन्होंने कहा, "वह पानी पीना चाहती थी, पर चिकित्सकों ने मुझे उसे पानी देने से मना किया था। वह मुझसे पानी पीने के लिए कहती रही, पर मैं नहीं दे सका।" इतना कहते-कहते उनका गला रुं ध गया।

विधवा ने किया देह व्यापार से इंकार तो आरोपियों ने काट दिए सिर के बाल

उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में एक सनसनीखेज मामला सामने आया है| यहां देह व्यापार से इंकार करने पर कुछ लोगों ने एक विधवा महिला को मारापीटा और उसके सिर के बाल काट दिए। वहीँ, महिला थाना और कोतवाली पुलिस ने पीड़िता की गुहार पर आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय लीपा पोती में जुटी हुई है|

एक पुलिसकर्मी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि शहर कोतवाली क्षेत्र में एक 28 वर्षीय विधवा महिला अपनी दो साल की बेटी के साथ एक किराए के मकान में रहती थी| गाँव की रहने वाली यह महिला अपनी बेटी की अच्छी परवरिस के लिए शहर चली आयी थी| लेकिन महिला को क्या पता यहां उसे इन भेड़ियों से मुलाकात हो जायेगी| यहां कुछ लोग महिला को देह व्यापार के दल दल में धकेलना चाह रहे थे लेकिन महिला हमेशा यह सब करने से नकारती रही|

मंगलवार की शाम को घर के बाहर नल पर पानी भरने गई थी इसी दौरान महिला के साथ उन लोगों ने मारपीट की और इसके सिर के बाल काट दिए| पीड़ित महिला ने जब घटना की जानकारी महिला थाना और कोतवाली पुलिस को दी तो पुलिस पीड़िता की गुहार पर आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय लीपा पोती में जुटी हुई है|

वहीँ, इस घटना को लेकर कोतवाली प्रभारी ने कहा है कि उन्हें ऐसी घटना का पता ही नहीं हैं। पीड़िता ने जिला अस्पताल में अपना चिकित्सीय परीक्षण कराया है। एसपी ने कहा कि महिला से लिखित शिकायत मिलने पर जांच कर कार्रवाई की जाएगी। 

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दिल्ली गैंगरेप: 'जख्म अब भी हरे'

उस त्रासद घटना का एक वर्ष पूरा होने को है। दोषी दरिंदों को सजा भी सुना दी गई है। मगर पीड़िता के माता-पिता के जख्म अभी भी हरे हैं। परिजन ही नहीं, देश का जन-जन उस क्रूरतापूर्ण घटना को याद कर सिहर उठता है। देश की राष्ट्रीय राजधानी में पिछले वर्ष 16 दिसंबर को बर्बरतम सामूहिक दुष्कर्म की शिकार पीड़िता के परिजनों को अभी भी उस दिन का इंतजार है, जब दुष्कर्मियों को फांसी पर लटकाया जाएगा।

चलती बस में दरिंदगी की शिकार होने के बाद 13 दिन संघर्ष करते हुए मौत से हारने वाली 23 साल की फीजियोथेरेपी प्रशिक्षु के पिता ने कहा, "हमारे लिए बस समय ही गुजरा है। लेकिन उसके (पीड़िता) घावों की तरह ही हमारे घाव आज भी हरे हैं। मुझे नहीं लगता कि हम कभी इससे उबर पाएंगे।" उज्जवल भविष्य' की ओर कदम बढ़ाने वाली अपनी 'तेजस्विनी बेटी' के अंतिम दिनों को याद करते हुए उनकी आंखों से आंसू टपक पड़े। पीड़िता ने देहरादून से फीजियोथेरेपी का अध्ययन किया था और दिल्ली के एक निजी अस्पताल में बतौर प्रशिक्षु कार्यरत थी।

पीड़िता के पिता ने कहा, "वह जब भी देहरादून से आती थी, दरवाजे के पीछे छिपकर मुझे चौंका देती थी।" इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे पर कुली का काम करने वाले 54 वर्षीय शोकाकुल पिता ने आगे कहा, "उसकी हर चीज मेरे दिमाग में हमेशा घूमती रहती है। मेरे लिए वह अभी भी जीवित है। मेरे लिए समय जैसे ठहर-सा गया है। लगता है, जैसे वह अभी भी दरवाजे के पीछे छिपी हुई है और अचानक कभी भी मेरे सामने आ जाएगी।"

पीड़िता के पिता की अब एक ही इच्छा है, दरिंदों को जल्द से जल्द फांसी। पश्चिमी दिल्ली के द्वारका में अपने दो कमरों वाले घर में बैठे पीड़िता के पिता ने आईएएनएस को बताया, "अपराधियों को फांसी मिलने के बाद ही मुझे संतुष्टि मिलेगी। इससे मेरे परिवार को कुछ सांत्वना मिलेगी।" वह चार महीने पहले ही सरकार द्वारा आवंटित इस घर में आए हैं। पिछले वर्ष राष्ट्रीय राजधानी में एक चलती बस में पांच व्यक्तियों एवं एक किशोर की हवस का शिकार बनी पीड़िता 13 दिनों तक जीवन के लिए जूझती रही।

दिल्ली की एक अदालत द्वारा चार अपराधियों को सुनाई गई मृत्युदंड की सजा से पीड़िता के परिजन संतुष्ट हैं। एक अपराधी (बस के चालक) ने न्यायिक हिरासत के दौरान तिहाड़ जेल में खुदकुशी कर ली थी। दूसरी ओर, पीड़िता के परिजन अपराधी किशोर को मिली सजा से खुश नहीं हैं। किशोर आरोपी को किशोर न्याय बोर्ड ने तीन वर्ष सुधार गृह में रहने की सजा सुनाई है। चार अपराधियों को मिली मृत्युदंड की सजा के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय में अभी सुनवाई चल रही है।

पीड़िता के पिता ने बताया, "हमने सर्वोच्च न्यायालय से किशोर न्याय बोर्ड के फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है।" पिता ने थोड़ा गुस्से से कहा, "किसी दुष्कर्मी को सिर्फ इसलिए कैसे छोड़ा जा सकता है कि वह किशोर है। वह उस बर्बरता में शामिल था। उसे भी फांसी दी जानी चाहिए, ताकि दूसरों को सबक मिले।"

बगल में ही बैठी पीड़िता की मां सब चुपचाप सुनती रहीं और लगातार आंसू बहाती रहीं। उन्होंने बताया कि उनके मन में बेटी की अंतिम समय की छवि जैसे जम सी गई है। भाव-विह्वल होते हुए उन्होंने बताया, "उस शाम जब वह घर से जा रही थी, मैं कभी भूल नहीं सकती। उसने हाथ हिलाकर मुझसे विदा ली और उसके अंतिम वाक्य थे, "बाय मॉम, मैं कुछ ही घंटों में आ जाऊंगी"।" "पर वह घर नहीं लौटी, कभी लौटेगी भी नहीं।" पीड़िता के परिजन शुक्रवार, 16 दिसंबर को पीड़िता की बरसी पर दिल्ली के मध्य में 'कांस्टिट्यूशन क्लब' में पीड़िता की याद में एक श्रद्धांजलि समारोह आयोजित करने की योजना बना रहे हैं।

पिता ने बताया, "हमारा समर्थन करने वाले सभी लोगों को हम धन्यवाद देना चाहते हैं।" अपनी बेटी के अंतिम क्षणों को याद करते हुए उसके पिता ने कहा कि उनके मन में एक कसक रह गई कि वह अपनी बेटी की अंतिम इच्छा पूरी नहीं कर सके। उन्होंने कहा, "वह पानी पीना चाहती थी, पर चिकित्सकों ने मुझे उसे पानी देने से मना किया था। वह मुझसे पानी पीने के लिए कहती रही, पर मैं नहीं दे सका।" इतना कहते-कहते उनका गला रुं ध गया। 

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संसद हमले की 12 वीं बरसी पर शहीदों को नमन

13 दिसम्बर मंगलवार को संसद पर हमले के 12 साल पूरे हो गए हैं। देश की राजधानी दिल्ली की सबसे सुरक्षित इमारत यानी देश की संसद पर हमले की खबर ने सबको हैरान ही नहीं किया, हिला कर रख दिया| 13 दिसंबर 2001 की सुबह करीब पौने बारह बजे अचानक संसद में कुछ आंतकियों ने गोलीबारी शुरू कर दी थी| इस हमले में हैंड ग्रेनेड और एके-47 से लैस पांच आतंकी शामिल थे|

हालाँकि जवाबी कार्रवाई में पांचों आतंकी मारे गये, लेकिन इस हमले में दिल्ली पुलिस के जवान और संसद के कुछ कर्मचारियों समेत कुल 9 लोगों को भी अपनी जान गवानी पड़ी| जिस समय यह हमला हुआ था संसद में कई वरिष्ठ मंत्रियों समेत तकरीबन दो सौ संसद सदस्य मौजूद थे| इसे एक तरह से ससंद पर नहीं, देश पर हमला कहा जा सकता है|

आपको बता दें कि इस हमले की साज़िश रचने वाले अफजल गुरु सहित चार आतंकवादियों को पकड़ा गया था। हमले के एक साल बाद अफजल गुरु को इस मामले में दोषी पाया गया और उसे फांसी दे दी गई|
13 दिसंबर को संसद हमले की बरसी पर पूरा भारत उन शहीदों को नमन कर रहा है, जिन्होंने अपने देश की रक्षा के लिए अपनी जान की कुर्बानी दे दी।

देश में अब से लेकर वर्ष 1993 तक हुए बड़े आतंकी हमलों पर एक नज़र-

13 जुलाई 2011: मुंबई में एक साथ तीन जगहों पर सीरियल बम ब्लास्ट। जिसमें 20 लोगों की मौत जबकि 100 लोग घायल हुए थे।

30 अक्टूबर 2008: असम में एक साथ 13 बम धमाके जिसमें 61 लोग मरे 300 लोग घायल हुए थे|

27 सितंबर 2008: दिल्ली के फूल बाजार में धमाका, एक की मौत।

13 सितंबर 2008: दिल्ली के शॉपिंग स्थलों पर 5 बम धमाके, 21 लोगों की मौत 100 से अधिक घायल। इस हमले की जिम्मेदारी इंडियन मुजाहिद्दीन ने ली|

26 जुलाई 2008: गुजरात की राजधानी अहमदाबाद में सीरियल बम ब्लास्ट। 45 लोगों की मौत जबकि 150 लोग घायल।

25 जुलाई 2008: बैंगलोर में एक साथ 7 धमाके किस्में एक की मौत जबकि 150 से अधिक लोग घायल।

13 मई 2008: जयपुर में 6 बम धमाके जिसमें 63 लोगों की मौत जबकि 150 लोग घायल।

26 मई 2007: गुवाहाटी में हुए धमाके में 6 लोगों की मौत जबकि 30 लोग घायल।

18 मई 2007: हैदराबाद की मक्का मस्जिद में शुक्रवार की नमाज के दौरान बम विस्फोट। 13 लोगों की मौत।

8 सितंबर 2006 को महाराष्ट्र के मालेगांव की एक मस्जिद के पास बम विस्फोट, 37 लोगों की मौत व 125 घायल। 

11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेन में 7 धमाके। इसमें 200 लोगों की मौत हुई थी।

7 मार्च 2006: वाराणसी में हुए आतंकी हमले में 28 लोगों की मौत, 101 लोग घायल।

29 अक्टूबर 2005: दक्षिण दिल्ली के बाजारों में जबरदस्त धमाका। 59 लोगों की मौत जबकि 200 घायल। 

5 जुलाई 2005: अयोध्या में राम जन्मभूमि पर आतंकी हमला।

15 अगस्त 2004: असम में ब्लास्ट। 16 लोगों की मौत जिसमें ज्यादातर स्कूली बच्चे शामिल थे।

25 अगस्त 2003: मुंबई में दोहरे कार धमाके में 52 लोगों की मौत जबकि 150 लोग घायल।

14 मई 2002: जम्मू के पास आर्मी कैंट पर आतंकी हमला। 30 लोगों की मौत।

24 सितंबर 2002: गुजरात के अक्षरधाम मंदिर पर हमला। 31 लोगों की मौत, 79 घायल।

13 दिसंबर 2001: संसद पर आतंकी हमले में 12 लोगों की मौत जबकि 18 लोग घायल।

1 अक्टूबर 2001: जम्मू-कश्मीर एसेंबली परिसर में आतंकी हमला। 35 लोगों की मौत। 

14 फरवरी 1998: कोयंबटूर में 11 जगहों पर बम ब्लास्ट, 46 लोगों की मौत जबकि 200 घायल।

12 मार्च 1993: मुंबई में एक साथ 13 सीरियल बम ब्लास्ट, 257 लोगों की मौत जबकि 700 लोग घायल हुए। 

डौंडियाखेड़ा के बाद अब आदमपुर में 2500 टन सोना दबा होने का दावा कर रहे हैं शोभन सरकार!

उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के डौंडियाखेड़ा स्थित राजा रामबख्श सिंह के किले में हजारो टन खजाना दबा होने का दावा करने वाले सोभन सरकार ने अब आदमपुर के गंगा के किनारे 2500 टन सोना दबा होने का दावा किया है| शोभन सरकार ने माननीय उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर फतेहपुर के आदमपुर में गंगा किनारे 2500 टन सोना दबा होने का दावा करते हुए सर्वे कराने की अनुमति मांगी है। उनका कहना है कि इसके लिए खुदाई और सुरक्षा में होने वाले खर्च को वे वहन करने को तैयार हैं।

प्राप्त जानकारी के अनुसार, संत शोभन सरकार की ओर से यह याचिका उनके चेला ओमबाबा ने दाखिल की है। याचिका बुधवार को न्यायमूर्ति वीके शुक्ल और न्यायमूर्ति सुमित कुमार की कोर्ट में पेश हुई। हालाँकि दोनों न्यायाधीश ने इस याचिका पर सुनवाई करने से इंकार कर दिया है और इसे अन्य पीठ को दिए जाने का आदेश करते हुए मुख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया। याची की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता उमेश नारायण शर्मा व चंदन शर्मा बहस करेंगे।

शोभन सरकार का कहना है कि उन्होंने आदमपुर में सोना दबा होने का सर्वे कराने के लिए प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री व जिलाधिकारी सहित कई विभागों को पत्र लिखा है। इस पर 20 अक्टूबर को टीम कानपुर के लिए रवाना भी हुई थी। सर्वे का खर्च 7 लाख 86 हजार 652 रुपये याची ने जमा भी कर दिए हैं। इस राशि के अलावा यातायात खर्च 84 हजार 400 व आईआईटी, कानपुर को 3 लाख 37 हजार 80 रुपये दिए गए हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि वह सुरक्षा के लिए जो भी खरच लगेगा उसका भी वहन कर लेंगे| 

गौरतलब है कि इससे पहले पर्दाफाश ने अपने पाठकों को बताया था कि आदमपुर में 2500 टन सोना होने की खबर से इस खजाने को पाने के लिए हर कोई पैतरा चल रहा है। सोने की चाहत में अज्ञात लोगों ने यहां 30 घनफुट खुदाई कर डाली। सूत्रों के अनुसार, यहां सोने का खजाना होने की घोषणा के बाद से ही मलवां पुलिस उस स्थल की निगरानी में लगी है, लेकिन खुदाई की उन्हें भनक तक नहीं लगी। ग्रामीणों के अनुसार, मामला प्रकाश में आने के बाद से यहां तैनात पुलिस के सिपाही रात भर गांव में आराम से सोते रहे और खुदाई करने वाले अपना काम करते रहे।

तड़के ग्रामीणों में इसकी चर्चा फैली तो सिपाही भाग कर मौके पर पहुंचे और आनन-फानन में खुदाई वाले गड्ढे की पुन: मिट्टी से पुराई करा दी। इस बीच फतेहपुर के पुलिस अधीक्षक शिवसागर सिंह ने सोने के भंडार जैसी किसी खबर से इंकार किया है। उन्होंने बताया कि रात को मंदिर के पास किसी ने थोड़ी-बहुत खुदाई की थी। वहां किसी तरह की अशांति न हो इसके लिए कुछ सिपाही तैनात कर दिए गए हैं।

ग्रामीणों का कहना है कि शोभन सरकार ने जो कहा है वह सही है, क्योंकि अब तक यहां कई तांत्रिक भी खुदाई का प्रयास कर चुके थे, लेकिन किसी के हाथ कुछ भी नहीं लगा। शोभन सरकार की घोषणा के बाद से उन्नाव जनपद का डौंडियाखेड़ा और जनपद का आदमपुर हर जुबान पर चर्चा का विषय बना हुआ है। आदमपुर गांव में हालांकि सरकार की ओर से अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। 

खागा कस्बे के करीब स्थित कुकरा कुकरी ऐलई ग्राम का टीला तथा टिकरी गांव का टीला इन दिनों जिज्ञासु लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गया है। इन स्थानों पर लोगों की चहल कदमी बढ़ गई है, जबकि कुछ ऐसे विवादास्पद स्थानों के प्रति भी लोग आकर्षित हुए हैं जिन्हें लोगों ने अपना कब्जा जमा रखा है। जनपद मुख्यालय के भिटौरा ब्लॉक अंर्तगत गंगा तट पर स्थित आदमपुर गांव में सोने का खजाना दबे होने की चर्चा ने क्षेत्र के पुरातात्विक महत्व के स्थानों का जनाकर्षण बढ़ा दिया है। लोगों के बीच ऐसे स्थान चर्चा के विषय बने हुए हैं।

लोगों का कहना है कि ऐतिहासिक घटनाओं या प्राकृतिक आपदाओं से भूगर्भ में समा चुके पुराने वैभव का समाज व राष्ट्रहित में उपयोग के प्रति संत शोभन सरकार की पहल पर सरकार की सक्रियता को प्रशासन विस्तार दे दे तो खागा की सरजमीं भी देश का भाग्य बदलने में सहायक साबित हो सकती है। जनचर्चा के अनुसार, नगर के संस्थापक राजा खड़क सिंह के इतिहास से जुड़ा कुकरा कुकरी स्थल में भी अकूत भू-संपदा होने की संभावना है। 

इस स्थान को लेकर लंबे समय तक सक्रिय रहे पत्रकार सुमेर सिंह का कहना है कि इस टीले के आसपास के ग्रामीणों को कई मर्तबा बहुमूल्य नगीने पत्थर व सिक्के हाथ लगे हैं। इनका कहना है कि टीले की थोड़ी बहुत खुदाई उन्होंने करा दी थी, जिसमें कतिपय भग्नावशेष उनके हाथ लगे थे। बताया कि इस बारे मे उन्होंने पुरातत्व विभाग को पत्र भी लिखा था लेकिन कोई जवाब न मिलने के कारण निराश हो कर बैठ गए।

अब जबकि आदमपुर के खजाने की बात सामने आ गई है, इन दिनों उस स्थान पर लोगों की चहल कदमी बढ़ गई है। प्राचीन धरोहरों और सामानों के शौकीन कुंवर लाल रामेंद्र सिंह के अनुसार, इस स्थान के चक्कर लगाते हुए उन्हें कई बार ऐसे तांत्रिक भी मिले हैं, जिन्होंने टीले के अंदर बहुमूल्य संपदा होने के का दावा किया है।

फिलहाल इन दिनों इस स्थान पर धनाकांक्षी लोगों की चहल पहल बढ़ गई है। नहर किनारे रहने वाले ग्रामीणों ने बताया कि आजकल शाम को कुछ लोग टीले के आसपास मंडराते देखे जाते हैं। नगर के दक्षिण-पूर्व सीमा के बाहर ऐलई गांव के पहले प्रवेश मार्ग के पास जिस टीले पर माइक्रो टावर लगा है, वह भी इस समय चर्चा में शुमार है।

बताते हैं कि सन् 1984 में जब टावर लगाने के लिए टीले की सतही की खुदाई हुई थी, उस समय भारी मात्रा में चांदी व ताबे के सिक्के निकले थे। अरबी भाषा की लिखाई वाले ये सिक्के कुछ ग्रामीणों के हाथ भी लगे थे, लेकिन डर और लोभ की वजह से लोगों ने सिक्कों के बाबत चुप्पी साध ली। लगभग 200 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैले इस टीले के आसपास अब आबादी बढ़ जाने के बावजूद रात मे टीले का वातावरण रहस्यमय रहता है, ग्रामीण भी टीले में जाने से भय खाते हैं।
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मोक्ष देने वाली ‘मोक्षदा एकादशी’

हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। इस बार मोक्षदा एकादशी का व्रत 13 दिसंबर दिन शुक्रवार को है| इसी दिन भगवान श्रीकृ्ष्ण ने महाभारत के प्रारम्भ होने से पूर्व अर्जुन को श्रीमद भगवतगीता का उपदेश दिया था| अतः इस दिन भगवान श्रीकृ्ष्ण के साथ साथ गीता का भी पूजन करना चाहिए| मोक्षदा एकाद्शी को दक्षिण भारत में वैकुण्ठ एकादशी के नाम से भी जाना जाता है|

मोक्षदा एकाद्शी व्रत विधि-

मोक्षदा एकादशी का व्रत करने वाले व्रती को चाहिए कि वह एकादशी व्रत के दिन मुख्य रुप से दस वस्तुओं का सेवन नहीं किया जाता है| जौ, गेहूं, उडद, मूंग, चना, चावल और मसूर की दाल दशमी तिथि के दिन नहीं खानी चाहिए| इसके अतिरिक्त मांस और प्याज आदि वस्तुओं का भी त्याग करना चाहिए| दशमी तिथि के दिन उपवासक को ब्रह्माचार्य करना चाहिए| और अधिक से अधिक मौन रहने का प्रयास करना चाहिए| बोलने से व्यक्ति के द्वारा पाप होने की संभावनाएं बढती है, यहां तक की वृ्क्ष से पत्ता भी नहीं तोडना चाहिए|

व्रत के दिन मिट्टी के लेप से स्नान करने के बाद ही मंदिर में पूजा करने के लिये जाना चाहिए| मंदिर या घर में श्री विष्णु पाठ करना चाहिए और भगवान के सामने व्रत का संकल्प लेना चाहिए| दशमी तिथि के दिन विशेष रुप से चावल नहीं खाने चाहिए| परिवार के अन्य सदस्यों को भी इस दिन चावल खाने से बचना चाहिए| इस व्रत का समापन द्वादशी तिथि के दिन ब्राह्माणों को दान-दक्षिणा देने के बाद ही होता है. व्रत की रात्रि में जागरण करने से व्रत से मिलने वाले शुभ फलों में वृ्द्धि होती है|

मोक्षदा एकादशी की कथा-

एक बार धर्मराज युधिष्ठिर बोले : देवदेवेश्वर ! मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष में कौन सी एकादशी होती है ? उसकी क्या विधि है तथा उसमें किस देवता का पूजन किया जाता है? स्वामिन् ! यह सब यथार्थ रुप से बताइये ।

श्रीकृष्ण ने कहा : नृपश्रेष्ठ ! मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का वर्णन करुँगा, जिसके श्रवणमात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है । उसका नाम ‘मोक्षदा एकादशी’ है जो सब पापों का अपहरण करनेवाली है । राजन् ! उस दिन यत्नपूर्वक तुलसी की मंजरी तथा धूप दीपादि से भगवान दामोदर का पूजन करना चाहिए । पूर्वाक्त विधि से ही दशमी और एकादशी के नियम का पालन करना उचित है । मोक्षदा एकादशी बड़े बड़े पातकों का नाश करनेवाली है । उस दिन रात्रि में मेरी प्रसन्न्ता के लिए नृत्य, गीत और स्तुति के द्वारा जागरण करना चाहिए । जिसके पितर पापवश नीच योनि में पड़े हों, वे इस एकादशी का व्रत करके इसका पुण्यदान अपने पितरों को करें तो पितर मोक्ष को प्राप्त होते हैं । इसमें तनिक भी संदेह नहीं है ।

पूर्वकाल की बात है, वैष्णवों से विभूषित परम रमणीय चम्पक नगर में वैखानस नामक राजा रहते थे । वे अपनी प्रजा का पुत्र की भाँति पालन करते थे । इस प्रकार राज्य करते हुए राजा ने एक दिन रात को स्वप्न में अपने पितरों को नीच योनि में पड़ा हुआ देखा । उन सबको इस अवस्था में देखकर राजा के मन में बड़ा विस्मय हुआ और प्रात: काल ब्राह्मणों से उन्होंने उस स्वप्न का सारा हाल कह सुनाया ।

राजा बोले : ब्रह्माणो ! मैने अपने पितरों को नरक में गिरा हुआ देखा है । वे बारंबार रोते हुए मुझसे यों कह रहे थे कि : ‘तुम हमारे तनुज हो, इसलिए इस नरक समुद्र से हम लोगों का उद्धार करो। ’ द्विजवरो ! इस रुप में मुझे पितरों के दर्शन हुए हैं इससे मुझे चैन नहीं मिलता । क्या करुँ ? कहाँ जाऊँ? मेरा हृदय रुँधा जा रहा है । द्विजोत्तमो ! वह व्रत, वह तप और वह योग, जिससे मेरे पूर्वज तत्काल नरक से छुटकारा पा जायें, बताने की कृपा करें । मुझ बलवान तथा साहसी पुत्र के जीते जी मेरे माता पिता घोर नरक में पड़े हुए हैं ! अत: ऐसे पुत्र से क्या लाभ है ?

ब्राह्मण बोले : राजन् ! यहाँ से निकट ही पर्वत मुनि का महान आश्रम है । वे भूत और भविष्य के भी ज्ञाता हैं । नृपश्रेष्ठ ! आप उन्हींके पास चले जाइये ।

ब्राह्मणों की बात सुनकर महाराज वैखानस शीघ्र ही पर्वत मुनि के आश्रम पर गये और वहाँ उन मुनिश्रेष्ठ को देखकर उन्होंने दण्डवत् प्रणाम करके मुनि के चरणों का स्पर्श किया । मुनि ने भी राजा से राज्य के सातों अंगों की कुशलता पूछी ।

राजा बोले: स्वामिन् ! आपकी कृपा से मेरे राज्य के सातों अंग सकुशल हैं किन्तु मैंने स्वप्न में देखा है कि मेरे पितर नरक में पड़े हैं । अत: बताइये कि किस पुण्य के प्रभाव से उनका वहाँ से छुटकारा होगा ?

राजा की यह बात सुनकर मुनिश्रेष्ठ पर्वत एक मुहूर्त तक ध्यानस्थ रहे । इसके बाद वे राजा से बोले : ‘महाराज! मार्गशीर्ष के शुक्लपक्ष में जो ‘मोक्षदा’ नाम की एकादशी होती है, तुम सब लोग उसका व्रत करो और उसका पुण्य पितरों को दे डालो । उस पुण्य के प्रभाव से उनका नरक से उद्धार हो जायेगा ।’

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : युधिष्ठिर ! मुनि की यह बात सुनकर राजा पुन: अपने घर लौट आये । जब उत्तम मार्गशीर्ष मास आया, तब राजा वैखानस ने मुनि के कथनानुसार ‘मोक्षदा एकादशी’ का व्रत करके उसका पुण्य समस्त पितरों सहित पिता को दे दिया । पुण्य देते ही क्षणभर में आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी । वैखानस के पिता पितरों सहित नरक से छुटकारा पा गये और आकाश में आकर राजा के प्रति यह पवित्र वचन बोले: ‘बेटा ! तुम्हारा कल्याण हो ।’ यह कहकर वे स्वर्ग में चले गये ।

राजन् ! जो इस प्रकार कल्याणमयी ‘‘मोक्षदा एकादशी’ का व्रत करता है, उसके पाप नष्ट हो जाते हैं और मरने के बाद वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है । यह मोक्ष देने वाली ‘मोक्षदा एकादशी’ मनुष्यों के लिए चिन्तामणि के समान समस्त कामनाओं को पूर्ण करनेवाली है । इस माहात्मय के पढ़ने और सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है । 

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करें आखों की देखभाल ताकि रोशन रहे जिंदगी

आँखों के बिना बदरंग होती है जिंदगी। आँखों के बिना रंगों, नज़ारों का कोई मतलब नहीं। आँखें है तो दुनिया की रंगीनियां हैं, आँखें हैं तो रोशनी हैं। तो क्यों ना ध्यान दिया जाये इन आँखों का। कुछ एक्सरसाइज और ध्यान रख कर हम अपनी रोशनी को बरकरार रख सकतें हैं। 

हर वक़्त कंप्यूटर पर काम या देर तक पढ़ाई के दौरान आंखें सिर्फ थक ही नहीं जाती हैं बल्कि स्ट्रेस का असर उनकी रोशनी पर भी पड़ सकता है। इसलिए कम्प्यूटर पर काम करते वक्त पलकों को झपकाते रहना चाहिए। उन्हें एक जगह ठहराए हुए नहीं रखना चाहिए। इससे आंखों के आंसू फैलते हैं, जिससे आंखें सूखेपन से बची रहती हैं और इनमें नमी बनी रहती है। हर 20 मिनट में 20 सेकेंड का ब्रेक लें और 20 फीट दूर कहीं देखें। फिर दोबारा काम शुरू करें। आँखों के लिए कुछ एक्सरसाइज हैं जिन्हे अपना कर आँखों को सेहतमंद रखा जा सकता है। 

1. पलके झपकाएं आंखों पर देर तक रहने वाले तनाव को कम करने के लिए यह बहुत आसान एक्सरसाइज है। कम से कम तीन से चार सेकंड तक अपनी पलकों को लगातार झपकाएं और फिर आंखें तेजी से बंद कर लें। कुछ सेकंड बाद आंखें खोलें। आप आराम महसूस करेंगे। 

2 रिलैक्सेशन एक्सरसाइज, आंखों को आराम देने के लिए ये एक्सरसाइज करें। इसके लिए सबसे पहले दोनों हाथों को आपस में रगड़ें और फिर तेजी से आंखों पर रखें। आंखों के आगे अंधेरा रहना चाहिए। कुछ क्षण बाद हाथों को हटा लें और फिर धीरे-धीरे आंखें खोलें।

3. दूर तक देखें, आप ऐसी जगह देखें जो आपसे दूर हो कम से कम पांच से दस मिनट तक यह एक्सरसाइज करें। इससे दूर की नजर मजबूत होती है और फोकस बढ़ता है।

4 . ज़ूम करें, फोकस तेज करने के लिए यह अच्छी एक्सरसाइज है। अपने अंगूठे पर फोकस करें। धीरे-धीरे अंगूठे को आंखों के नजदीक लाएं और फिर धीरे-धीरे इसे आंखों से दूर करें। सुबह उठते ही आँखों पर साफ पानी से छीटें डालनी चाहिए। इससे आँखों की रोशनी बढ़ती है और बीमारियां दूर होतीं हैं। 

योग आंखों के लिए काफी फायदेमंद रहता है लेकिन किसी विशेषज्ञ की देखरेख में ही योग शुरू करें। कपाल भांति आंखों के लिए बहुत अच्छा है। अनुलोम-विलोम और व अन्य प्राणायाम भी करें। हरी सब्जियों और फलों में ये दोनों तत्व प्रचुर मात्र में पाए जाते हैं। इसलिए विटामिन से भरपूर खाना खाएं जैसे दूध, हरी सब्जी, मौसमी फल आदि। थोड़ी सी देखभाल और सावधानी हम अपनी दुनिया रोशन रख सकतें हैं।

मप्र में हार से कांग्रेस में घमासान

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में मिली लगातार तीसरी हार से कांग्रेस में हाहाकार मच गया है। पार्टी नेता इस हार का ठीकरा बड़े नेताओं पर फोड़ रहे हैं। कोई हार के लिए कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह को जिम्मेदार ठहरा रहा है तो कोई छानबीन समिति के अध्यक्ष मधुसूदन मिस्त्री पर टिकट बेचने का आरोप लगा रहा है।

राज्य विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार मिली है और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने जीत की हैट्रिक बनाई है। कांग्रेस इस चुनाव में सत्ता वापसी के सपने संजोए थी, मगर नतीजे ठीक उलट आए। इस हार की जहां पार्टी आलाकमान समीक्षा कर रहा है वहीं राज्य में नेताओं के अपनों पर ही हमले तेज हो गए हैं। 

कांग्रेस की तेज तर्रार विधायक के तौर पर पहचानी जाने वाली कल्पना पारुलेकर महीदपुर विधानसभा क्षेत्र में मिली हार से आपा खो बैठी हैं। उनका आरोप है कि सिर्फ महीदपुर ही नहीं पूरे राज्य में पार्टी महासचिव दिग्विजय सिंह के कारण कांग्रेस हारी है। उनका कहना है कि सिंह ने राज्य में गुटबाजी को बढ़ाया है। उनके शासनकाल के पाप आज भी कांग्रेस को भोगने पड़ रहे हैं। राज्य में कांग्रेस को बचाना है तो दिग्विजय सिंह को प्रतिबंधित कर देना चाहिए। 

पार्टी के प्रदेश सचिव रघु परमार ने उम्मीदवार चयन पर ही सवाल उठाया है। उनका आरोप है कि छानबीन समिति के अध्यक्ष मधुसूदन मिस्त्री ने इंदौर में टिकट बेचा था। इसकी शिकायत उन्होंने नेताओं से की मगर उनकी बात नहीं सुनी गई। वहीं उन्होंने दिग्विजय सिंह का बचाव करते हुए कहा कि पारुलेकर बताएं कि अगर वह जननेता हैं तो आखिर चुनाव में उनकी जमानत क्यों जब्त हुई। इससे पहले मीडिया में राज्यसभा सदस्य सत्यव्रत चतुर्वेदी की ओर से दिग्विजय सिंह के खिलाफ बयान की बात सामने आई थी। इस पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय सिंह ने चतुर्वेदी पर ही सवाल खड़े कर दिए थे।

पार्टी में जारी बयानबाजी पर अजय सिंह ने कहा है कि टिकट वितरण ठीक हुआ था, जहां तक सार्वजनिक तौर पर बयान देने की बात है तो नेताओं को इससे बचना चाहिए। जो भी कहना है, उसे पार्टी फोरम पर रखें। पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष लक्ष्मण सिंह ने अनर्गल बयानबाजी करने वालों को सलाह दी है कि वे इससे बचें। जहां तक दिग्विजय सिंह की बात है तो पूरा प्रदेश जानता है कि उनके पास पार्टी के तीन राज्यों के प्रभार हैं। लक्ष्मण सिंह ने भी पारुलेकर से सवाल किया कि आखिर उनकी जमानत क्यों जब्त हुई। विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद कांग्रेस की अंदरूनी कलह सड़क पर आ गई है।
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तो इसलिए महाभारत युद्ध में कृष्ण को क्यों उठाना पड़ा था चक्र?

महाभारत वह महाकाव्य है जिसके बारे में जानता तो हर कोई है लेकिन आज भी कुछ ऐसे चीजें हैं जिसे जानने वालों की संख्या कम है| क्या आपको पता है महाभारत युद्ध में कृष्ण को क्यों उठाना पड़ा था चक्र? महाभारत के युद्ध में भीमसेन के पीछे महारथी विराट और द्रुपद खड़े हुए। उनके बाद नील के बाद धृष्टकेतु थे। धृष्टकेतु के साथ चेदि, काशि और करूष एवं प्रभद्रकदेशीय योद्धाओं के साथ सेना के साथ धर्मराज युधिष्ठिर भी वहां ही थे। उनके बाद सात्यकि और द्रोपदी के पांच पुत्र थे। फिर अभिमन्यु और इरावान थे। इसके बाद युद्ध आरंभ हुआ। चहरों तरफ हाहाकार मचा हुआ था| 

कौरवों ने एकाग्रचित्त होकर ऐसा युद्ध किया की पांडव सेना के पैर उखड़ गए। पांडव सेना में भगदड़ मच गई भीष्म ने अपने बाणों की वर्षा तेज कर दी। सारी पांडव सेना बिखरने लगी। पांडव सेना का ऐसा हाल देखकर श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि तुम अगर इस तरह मोह वश धीरे-धीरे युद्ध करोगे तो अपने प्राणों से हाथ धो बैठोगे। यह सुनकर अर्जुन ने कहा केशव आप मेरा रथ पितामह के रथ के पास ले चलिए। कृष्ण रथ को हांकते हुए भीष्म के पास ले गए। अर्जुन ने अपने बाणों से भीष्म का धनुष काट दिया। भीष्मजी फिर नया धनुष लेकर युद्ध करने लगे। यह देखकर भीष्म ने अर्जुन और श्रीकृष्ण को बाणों की वर्षा करके खूब घायल किया। भगवान श्रीकृष्ण ने जब देखा कि सब पाण्डव सेना के सब प्रधान राजा भाग खड़े हुए हैं और अर्जुन भी युद्ध में ठंडे पढ़ रहे हैं तो तब श्रीकृष्ण ने कहा अब मैं स्वयं अपना चक्र उठाकर भीष्म और द्रोण के प्राण लूंगा और धृतराष्ट्र के सभी पुत्रों को मारकर पाण्डवों को प्रसन्न करूंगा। कौरवपक्ष के सभी राजाओं का वध करके मैं आज युधिष्ठिर को अजातशत्रु राजा बनाऊंगा।

इतना कहकर कृष्ण ने घोड़ों की लगाम छोड़ दी और हाथ में सुदर्शन चक्र लेकर रथ से कूद पड़े। उसके किनारे का भाग छूरे के समान तीक्ष्ण था। भगवान कृष्ण बहुत वेग से भीष्म की ओर झपटे, उनके पैरों की धमक से पृथ्वी कांपने लगी। वे भीष्म की ओर बढ़े। वे हाथ में चक्र उठाए बहुत जोर से गरजे। उन्हें क्रोध में भरा देख कौरवों के संहार का विचार कर सभी प्राणी हाहाकार करने लगे। उन्हें चक्र लिए अपनी ओर आते देख भीष्म बिल्कुल नहीं घबराए। उन्होंने कृष्ण से कहा आइए-आइए मैं आपको नमस्कार करता हूं। 

कृष्ण को आगे बढ़ते देख अर्जुन भी रथ से उतरकर उनके पीछे दौड़े और पास जाकर उन्होंने उनकी दोनों बांहे पकड़ ली। भगवान रोष मे भरे हुए थे, अर्जुन के पकडऩे पर भी वे रूक न सके। अर्जुन ने जैसे -तैसे उन्हें रोका और कहा केशव आप अपना क्रोध शांत कीजिए, आप ही पांडवों के सहारे हैं। अब मैं भाइयों और पुत्रों की शपथ लेकर कहता हूं कि मैं अपने काम में ढिलाई नहीं करूंगा, प्रतिज्ञा के अनुसार ही युद्ध करूंगा। तब अर्जुन की यह प्रतिज्ञा सुनकर श्रीकृष्ण प्रसन्न हो गए।

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सुरैया का पैतृक मकान खंडहर में तब्दील

'मेरे पिया गए रंगून वहां से किया है टेलीफून तुम्हारी याद सताती है..' कभी खूब लोकप्रिय हुए इस गीत को अपनी मधुर आवाज देने वाली और उस समय की शीर्ष गायिका सुरैया यूं तो आज भी हर हिंदुस्तानी के दिलों में बसी हैं, मगर राम गांव के लोग आज भी उनकी याद में आंसू बहाया करते हैं। गांव के लोगों का कहना है कि सुरैया के खंडहर हो चुके मकान को देश की धरोहर मानकर महान गायिका के नाम से इसे दर्शनीय स्थल बनाया जाना चाहिए। फिल्म जगत में अभिनय व गायन से पूरे भारत की धड़कनों में बसने वाली सुरैया तो अब इस दुनिया में नहीं रहीं, लेकिन सरेनी क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले राम गांव के लोग आज भी जब उनके खंडहर हो चुके मकान के पास से गुजरते हैं तो उनका दिल जार-जार हो जाता है।

राम गांव (मजरे काल्हीगांव) की प्रधान हाजिरा बानो हैं। उन्होंने बताया कि सुरैया का मकान उनके घर के बगल में ही है, जो अब खंडहर में तब्दील हो गया है। सुरैया का बचपन यहीं बीता था। वह यहीं खेला करती थीं। नन्ही सुरैया की आवाज इतनी मीठी थी कि लोग उसे घेर लेते और कुछ सुनाने को कहते। गांव के शब्बीर अली के बेटे का कहना है कि सुरैया के पिता भगवान दास थे, मगर उनका पालन-पोषण एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। सत्रह वर्ष की आयु में ही वह किसी के साथ बम्बई चली गईं और फिल्मजगत में छा गई। फिर देश का बंटवारा हो गया और आजादी के बाद उनका परिवार पाकिस्तान में बस गया। मगर राम गांव के लोगों को यकीन था कि एक दिन सुरैया अपने गांव जरूर आएंगी।

लोग सुरैया का इंतजार करते रहे और उनके सम्मान में किसी ने उस मकान पर कब्जा नहीं किया। लेकिन वक्त की मार और सरकारी अवहेलना का शिकार सुरैया का वह पैतृक मकान अब खंडहर हो चला है। उस मकान के नजदीक जाते ही गांव के बुजुर्गो की आखों से आंसू निकल आते हैं। वे सोचते हैं, काश! देश का बंटवारा न हुआ होता या सुरैया का परिवार पाकिस्तान जाने की नहीं सोचता। शब्बीर अली के परिवार वालों का कहना है कि गांव वालों को इस बात का मलाल भी है कि सुरैया की स्मृतियां संजोए रखने के लिए उनके मकान को सुरक्षित रखने के उपाय कोई क्यों नहीं करता। शासन-प्रशासन इस धरोहर की सुध क्यों नहीं लेता। यह गांव तो पर्यटन स्थल बन सकता है।

ग्राम प्रधान हाजिरा बानो ने गांव में सुरैया के नाम से एक स्कूल खोलने की इच्छा भी जताई। अब तो यह समय ही बताएगा कि हाजिरा की हसरत पूरी हो पाती है या नहीं। 

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गन्ने को लेकर कहीं खुदकुशी तो कहीं बेटियों की रुक रही हैं शादी

बाराबंकी| उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों की मुश्किलें कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं| जहाँ अभी हाल ही में गन्ना भुगतान को लेकर कर्ज में डूबे लखीमपुर के दो किसानों ने आत्महत्या कर ली थी वहीँ अब उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले से खबर आ रही है जहाँ कई गांवों में गन्ने की खरीद नहीं होने से 45 से ज़्यादा लड़कियों की शादी रुक गई है|

प्राप्त जानकारी के अनुसार, बाराबंकी जिले के मोहम्मदाबाद समेत कई गांवों में गन्ने की खरीद नहीं होने से 45 से ज़्यादा लड़कियों की शादी रुक गई है| मोहम्मदाबाद गाँव की दमयंती की बेटी की शादी इसी दिसंबर में होने वाली थी लेकिन पिछले साल का बकाया नहीं मिलने और इस साल चीनी मिलों के गन्ना नहीं ख़रीदने के कारण उनकी बेटी की शादी रुक गई| दमयंती बताती है कि उसके पास गन्ने के सिवाय कोई अन्य साधन नहीं है| वहीँ इसी गांव के राम मनोहर बताते हैं कि उन्होंने पिछले साल चीनी मिलों को अपना गन्ना बेचा था लेकिन उन्हें अभी तक उसका पैसा नहीं मिला है और इस साल उनके गन्ने को चीनी मिल ने अब तक नहीं ख़रीदा है जिससे उन्हें मजबूर होकर अपनी पोती की शादी रोकनी पड़ी है|

उत्तर प्रदेश में 45 चीनी मिलों ने पेराई शुरू करने का ऐलान किया है| लेकिन अभी तक पेराई शुरू नहीं हुई है और इस वजह से किसानों से गन्ना नहीं खरीदा जा रहा है| भाकियू के प्रांतीय महासचिव मुकेश कुमार सिंह कहते हैं कि चीनी मिलों ने गन्ना किसानों के पिछले साल के बकाए 3200 करोड़ रुपए का भुगतान नहीं किया है और इस साल पेराई भी अभी तक शुरू नहीं होने के कारण किसानों का गन्ना खेतों में ही पड़ा हुआ है| मुकेश बताते है कि आठ करोड़ रुपए तो बाराबंकी ज़िले के गन्ना किसानों का ही बकाया है|

बकाये को लेकर मोहम्मदाबाद गाँव के किसान राम सेवक बताते हैं कि गत वर्ष के बकाए का भुगतान हम लोगों को नहीं मिला तो ऐसे में हम लोग चीनी मिलों के 20 रुपए प्रति क्विंटल का भुगतान बाद में करने पर कैसे भरोसा करें|

आपको बता दें कि बाराबंकी ही पहला जिला नहीं है जहाँ गन्ना किसानों की बेटियों की शादी रुक गई है अन्य जिले भी हैं| पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान मुख्यत गन्ने की खेती करते हैं और यही गन्ना उनके लिए साल भर का बजट बनाता है| किसान आजकल के समय में हीं अपने बेटे बेटियों के विवाह करते हैं| लेकिन अभी तक यूपी की चीनी मिलों में पिराई आरम्भ नहीं हुई जिसके चलते उनकी फसल ऐसे ही खड़ी है| इन किसानों के सामने इस समय सबसे बड़ा संकट उनके सम्मान का है| बेटियों के विवाह के कार्ड तक बंट गए हैं लेकिन खर्च करने को पैसा ही नहीं है ऐसे में कुछ ने ब्याज पर पैसा लिया तो कइयों ने शादी की तारीखें आगे बढ़ा दी हैं| वहीँ कुछ ने तो इस सहालग में शादी न करने का फैसला कर लिया है| हालात ये हैं कि सूबे में करीब 200 शादियां टाल दी गई हैं और लगभग एक हजार कि तारीखों में परिवर्तन किये गये।

गन्ना किसान बेबसी के आंसूं रो रहे हैं| आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि जिस घर में शादी हो और वहाँ तैयारियों के लिए पैसा ही न हो तो माँ बाप पर क्या गुजरती होगी| इस बार सूबे का 29 लाख किसान अपनी फसल को बढ़ते देख जहाँ खुश था वहीँ अब उसके चेहरे पर चिंता साफ़ झलक रही है। उसे समझ नहीं आ रहा कि कहां लेकर जाएं इस गन्ने को। भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत का कहना है कि एक हजार से ज्यादा बेटियों की शादी फंस गई है। रिश्ते होकर टूट रहे हैं। सबसे बुरी स्थिति मेरठ, मुजफ्फरनगर, बागपत, बुलंदशहर, बिजनौर, मुरादाबाद, अमरोहा और लखीमपुर खीरी में है। इन जनपदों का किसान गन्ने के पैसे से ही पूरा बजट तैयार करता है।

वहीँ अभी तक यूपी सरकार ने कुछ निजी चीनी मिलों पर दबाव बनाने के लिए कुर्की आरम्भ की है| लेकिन हमारे सूत्रों के मुताबिक इस से कुछ होने वाला नहीं है| जब तक सरकार कोई ठोस योजना नहीं बनती इन किसानों के लिए तब तक ये ऐसे ही बेबसी के आंसू बहते रहेंगे| परेशानी सिर्फ ये नहीं है कि पिराई आरम्भ नहीं हो रही बल्कि ट्रांसफर, पोस्टिंग, वसूली, चुनाव, जातीय समीकरण जैसे महत्वपूर्ण कार्यों को निपटा रही सपा सरकार के पास इतना समय ही नहीं है कि वो इन किसानों के प्रतिनिधियों के साथ मिलकर उनकी समस्या को सुन सके|

सूबे के किसान चाहते हैं कि सरकार उनके गन्ने का समर्थन मूल्य बढ़ाये| क्योंकि खाद बिजली पानी मेहनत आदि मिलाकर जो गन्ना वह तैयार कर रहे हैं उससे वर्तमान समर्थन मूल्य पर तो लागत भी निकाल पाना मुश्किल है| किसान नेता चाहते हैं कि एक सरकारी प्रतिनिधि मंडल उनकी मांगों को सुने और उसपर अमल करे लेकिन जहाँ मुलायम दिन-रात प्रधानमंत्री बनने का सपना बुन रहे हैं वहीँ सरकार उनके सपने को पूरा करने के लिए दौड़ भाग कर रही है| वहीँ हमारा ये कहना है कि यदि सरकार इन किसानों के लिए कुछ करे तो मुलायम अपना ये सपना सच भी कर सकते हैं वर्ना प्रदेश में जो माहौल बन रहा है उसके मुताबिक तो किसानों युवाओं और अन्य समुदाय भी सपा को वोट देने में सौ बार सोचेंगे|

इससे पहले शुक्रवार को प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने नई दिल्ली में केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पवार के साथ बैठक के दौरान प्रदेश के गन्ना किसानों की समस्याओं को उठाते हुए उनके लिए पैकेज की मांग की। मुख्यमंत्री ने कहा कि केन्द्रीय सरकार तत्काल 'इन्टरेस्ट सबवेन्शन स्कीम' लागू करे। इस योजना के तहत प्राप्त होने वाली धनराशि का शत-प्रतिशत उपयोग किसानों के बकाए गन्ना मूल्य भुगतान के लिए किया जाए।

उन्होंने यह अनुरोध भी किया कि चीनी उद्योग के संबन्ध में कोई भी नीति बनाते समय केन्द्र सरकार गन्ना किसानों के हितों की सुरक्षा को प्राथमिकता दे। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार के लिए गन्ना किसानों का हित सवरेपरि है। इसके मद्देनजर यह बैठक केवल चीनी उद्योग की समस्याओं पर ही विचार किए जाने तक सीमित न रहे। बल्कि गन्ना किसानों की समस्याओं पर भी पूरा ध्यान दिया जाए, ताकि उनका प्रभावी समाधान सुनिश्चित किया जा सके।

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार 280 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गन्ना मूल्य का भुगतान किसानों को दिलाए जाने के लिए वचनबद्घ है। यादव ने पवार को बताया कि राज्य सरकार ने गन्ना किसानों के हित में कई कदम उठाए हैं। राज्य सरकार की मंशा है कि प्रदेश की सभी चीनी मिलें पेराई कार्य प्रारंभ कर दें और किसानों के खेत खाली हो जाएं, जिससे वे अगली फसल की बुआई कर सकें।

राज्य सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की जानकारी देते हुए मुख्यमंत्री ने बताया कि इस पेराई सत्र के लिए गन्ने का मूल्य 280 रुपए प्रति क्विटंल रखा गया है। यह मूल्य गन्ना किसानों तथा चीनी मिलों, दोनों पक्षों के हितों को ध्यान में रखते हुए तय किया गया है। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा कि जो पैकेज चीनी उद्योग के लिए बनाया जाए, उसमें यह सुनिश्चित किया जाए कि चीनी मिलों को मिलने वाली वित्तीय सुविधा का उपयोग सर्वप्रथम गन्ना किसानों को पिछले वर्ष के बकाए के भुगतान में किया जाए। गन्ना किसानों के बकाए का भुगतान राज्य सरकार की प्राथमिकता है।

आम आदमी की पार्टी 'आप' का उदय

दिल्ली में हुआ इस बार का विधानसभा चुनाव कई मामलों में महत्वपूर्ण है। जिस आम आदमी पार्टी (आप) को दिल्ली की पराजित मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने नवजात जबकि भाजपा ने उसे कांग्रेस की 'बी-टीम' कहकर खारिज किया था उसने खुद को वास्तव में आम आदमी की पार्टी के रूप में साबित किया।

रविवार को घोषित चुनाव परिणाम में आप ने अप्रत्याशित प्रदर्शन कर देश के चुनावी इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा है। गठन के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव में उतरी पार्टी ने जहां दूसरा स्थान प्राप्त किया, वहीं दिल्ली में कांग्रेस का चेहरा मानी जाने वाली शीला दीक्षित को परास्त कर चौंका दिया है। आप के मुख्य प्रचारक अरविंद केजरीवाल के हाथों शीला दीक्षित को पराजय का सामना करना पड़ा है।

दिल्ली में आप का उभार देश के राजनीतिक फलक पर व्यापक असर डालने वाला साबित हो सकता है। इसके बाद पार्टी देश के अन्य हिस्सों में अपनी ताकत बढ़ाने में जुटेगी। पार्टी ने सिर्फ उन्हीं इलाकों की सीट हथियाने में कामयाबी हासिल नहीं की है जहां बड़ी संख्या में गरीब और नौकरीपेशा लोग रहते हैं, बल्कि ग्रेटर कैलाश जैसे 'रसूखदारों' के इलाके में भी जीत हासिल की है।

एक वर्ष पहले गठित आप ने राजनीति में स्वच्छता और लोगों को धनी और रसूखदारों के दबदबे वाले तंत्र से मुक्ति दिलाने का वादा किया है। अपने सीमित साधनों और नियंत्रण के कारण पार्टी ने पांच राज्यों में से केवल दिल्ली में ही चुनाव लड़ने का फैसला किया था। चमकदार प्रचारकों और लोकलुभावन चेहरों से लैस कांग्रेस और भाजपा के मुकाबले आप के पास ले देकर केजरीवाल (45) ही सबसे अधिक देखे जाने वाले और प्रमुख चेहरे थे।

आईआईटी की शिक्षा प्राप्त कर भारतीय राजस्व सेवा में नौकरी कर सामाजिक कार्यकर्ता ने भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ता के रूप में अपनी पहचान बनाई। केजरीवाल ने नई दिल्ली विधानसभा से कांग्रेस की प्रत्याशी शीला दीक्षित के खिलाफ चुनाव लड़ने की घोषणा कर सुर्खियां बटोरी। यह एक ऐसा कदम है जिसे उठाने में कोई नया राजनेता सौ बार सोचेगा। लेकिन, केजरीवाल की इस घोषणा ने आप को चुनावी रंगमंच पर चर्चा के केंद्र में ला खड़ा किया।

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केजरीवाल: खिलाड़ियों को मेमना बनाने वाला इंजीनियर

दिल्ली की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर लगातार तीन कार्यकाल तक काबिज रहने वाली और कांग्रेस की कद्दावर नेता शीला दीक्षित को नई दिल्ली विधानसभा सीट पर अपने पहले ही चुनाव में पराजित करने वाले अरविंद केजरीवाल को राजनीतिक सनसनी माना जाए तो अतिशयोक्ति नहीं। केजरीवाल की जीत का डंका सिर्फ दिल्ली में ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर तक सुनाई देने वाला है।

आईआईटी की शिक्षा प्राप्त कर भारतीय राजस्व सेवा में नौकरी कर सामाजिक कार्यकर्ता ने भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ता के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले केजरीवाल (45) ने न केवल दो बड़ी राष्ट्रीय स्तर की राजनीतिक पार्टी कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के मुकाबले महज एक वर्ष पुरानी अपनी पार्टी को खड़ा कर लिया, बल्कि एक ऐसे शख्स के रूप में खुद को स्थापित कर लिया जिसे आम आदमी के चेहरे रूप में पहचाना जाने लगा है।

भ्रष्टाचार विरोधी अभियान चलाने वाले मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के वर्ष 2011 के आंदोलन के दौरान निकटवर्ती और प्रवक्ता की भूमिका में रहे केजरीवाल ने बाद में हजारे के विरोध के बावजूद अपनी पार्टी खड़ी करने का फैसला लिया और अपनी राह चले भी।

केजरीवाल ने नई दिल्ली विधानसभा से कांग्रेस की प्रत्याशी शीला दीक्षित के खिलाफ चुनाव लड़ने की घोषणा कर सुर्खियां बटोरी। यह एक ऐसा कदम है जिसे उठाने में कोई नया राजनेता सौ बार सोचेगा। लेकिन, केजरीवाल की इस घोषणा ने आप को चुनावी रंगमंच पर चर्चा के केंद्र में ला खड़ा किया। गठन के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव में उतरी पार्टी ने जहां दूसरा स्थान प्राप्त किया है। दिल्ली में आप का उभार देश के राजनीतिक फलक पर व्यापक असर डालने वाला साबित हो सकता है। इसके बाद पार्टी देश के अन्य हिस्सों में अपनी ताकत बढ़ाने में जुटेगी।

एक वर्ष पहले गठित आप ने राजनीति में स्वच्छता और लोगों को धनी और रसूखदारों के दबदबे वाले तंत्र से मुक्ति दिलाने का वादा किया है। अपने सीमित साधनों और नियंत्रण के कारण पार्टी ने पांच राज्यों में से केवल दिल्ली में ही चुनाव लड़ने का फैसला लिया था। चमकदार प्रचारकों और लोकलुभावन चहरों से लैस कांग्रेस और भाजपा के मुकाबले आप के पास ले देकर केजरीवाल (45) ही सबसे अधिक देखे जाने वाले और प्रमुख चेहरा रहे।

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